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Incest समन्दर किनारे दीदी
#1
समन्दर किनारे दीदी

जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#2
सुरभि दीदी कोलकाता में एक साफ्टवेयर कंपनी में जॉब कर रही है और मैं अपना बी.टेक. खत्म कर चुका हूँ। मुझे सुरभि दीदी की चुदाई किए हुए दो महीने से ज्यादा हो गए थे और हम दोनों में से किसी का भी अभी घर जाने का कोई प्लान नहीं था। सो हम दोनों ने कहीं घूमने जाने का प्लान बनाया। बहुत जगह जाने की बात होने पर लास्ट में पुरी (ओडिशा) जाना फाइनल हुआ। यह जगह हम दोनों को सही लगी और हम दोनों पुरी पहुँच गए।
मैं उससे पहले पहुँच कर उसका इंतज़ार करने लगा। मैं स्टेशन पर बैठा हुआ था कि उसकी ट्रेन आई।
मेरी नज़र सुरभि को ढूँढ रही थी कि तभी वो सामने से आती हुई दिखी।
वैसे तो मैं उसको 100 से ज्यादा बार चोद चुका हूँ.. लेकिन फिर भी पता नहीं क्यों मन नहीं भरा। उसको देखते ही मेरा लंड तो मानो बोल रहा था कि अब मजा आएगा। मेरी सबसे प्यारी चुत जो सामने से गांड हिलाती हुई आ रही थी।
इस वक्त सुरभि ने सफ़ेद जींस और काले रंग का टॉप पहन रखा था। जींस और टॉप दोनों एकदम स्किनफिट थे, जिससे कोई भी उसके सेक्सी बदन को देख कर लंड खड़ा कर सकता था। उसकी 38 की चुची दूर से ही उठी और तनी हुई दिख रही थीं। उसका दूध सा गोरा बदन, ऊपर से काला टॉप.. अह.. कयामत लग रही थी.. और उस पर उसके खुले बाल.. तो सोने पे सुहागा लग रहे थे।
मैं उसके पास गया और उसको बांहों में ले लिया। आस-पास वाले लोग हमें ही देख रहे थे, सो हम दोनों जल्द ही अलग हुए।
मैं उसको ले कर पुरी बीच के पास चला गया और वहीं एक होटल में कमरा बुक कर लिया। मुझे सिंगल बेड वाला कमरा मिला था, रूम में जाते ही मैं उससे लिपट गया और उसको अपनी बांहों में भर कर चूमने लगा।
सुरभि बोली- थोड़ा तो सब्र करो यार.. हम लोगों को पूरे चार दिन तक अभी मजा ही करना है।
मैं उससे अलग हो गया तो वो बोली- मैं बाथरूम जा रही हूँ, फ्रेश होकर आती हूँ। इसके बाद हम लोग सी-बीच पर घूमने चलेंगे।
वो बाथरूम में जाने लगी और जैसे ही वो दरवाजा बंद करने लगी तो मैंने मना कर दिया- कम से कम दीदार तो करने दो!
उसने हंस कर फ्लाइंग किस दी और बाथरूम का दरवाजा बंद नहीं किया। वो अपना टॉप उतारने लगी थी कि तभी बाहर से कमरे के दरवाजे पर किसी चूतिया ने दस्तक दी, तो उसने झट से बाथरूम का दरवाजा बंद कर लिया।
मैंने भुनभुनाते हुए कमरे का दरवाजा खोला तो होटल का स्टाफ था.. रूम साफ करने आया था।
मैंने उसे आने दिया। जब तक उसने रूम साफ किया, तब तक सुरभि नहा ली।
जैसे ही वो आदमी कमरे से बाहर गया.. मैंने दरवाजा लॉक लगाया और इसी आवाज को सुनकर सुरभि केवल एक तौलिया में बाहर निकल आई।
आह.. मैं तो मन ही मन रूम सर्विस वाले को गाली दे रहा था, लेकिन सारा गुस्सा सुरभि के भीगे बदन को देख कर गायब हो गया। उसका भीगा बदन.. ऊपर से पानी की बूंदें.. उसके बदन पर मोती की तरह लग रही थीं। तौलिया में जबरन क़ैद उसकी चुची मानो बोल रही हों कि हमें आजाद कर के बाहर निकाल दो।
मैं आगे बढ़ कर उसकी तौलिया को पकड़ने ही वाला था कि उसने मना कर दिया, बोली- चलो पहले बाहर से घूम कर आते हैं.. ये सब तो रात में मिलेगा ही।
उसने मुझे तरसाते हुए कैपरी और टॉप पहन लिया। मेरे कहने पर ब्रा और पेंटी नहीं पहनी।
अब आप को बताने की ज़रूरत तो नहीं है कि 38 साइज़ की चुची बिना ब्रा के सिर्फ़ टी-शर्ट में कैसी लग रही होंगी.. आप बस कल्पना कर सकते हैं।
मैं उसके साथ नीचे आ गया और मैं उसकी कमर में हाथ डाल कर चलने लगा। हम दोनों सी-बीच पर आ गए, शाम का टाइम होने के कारण वहाँ बहुत भीड़ थी। सुरभि भीड़ के पास बैठने को बोली.. लेकिन मैं उसको थोड़ा भीड़ से थोड़ा दूर एकांत में ले गया।
भीड़ से दूर होते ही मेरा हाथ उसकी कमर से नीचे हो गया और चूतड़ों पर पहुँच गया। मैंने उसके मुलायम चूतड़ों को दबा दिया।
दीदी बोली- अह.. क्या कर रहे हो यार.. कोई देख लेगा!
तो मैं बोला- यहाँ कोई नहीं देखेगा.. सब अपने में मस्त हैं।
यह बोलते हुए मैंने उसके गालों पर किस कर दिया।
वो बोली- चलो कहीं बैठते हैं।
हम दोनों वहीं समुद्र के किनारे भीड़ से दूर रेत पर बैठ गए। अब हमें दूर-दूर तक कोई नहीं दिख रहा था.. तो हम दोनों मस्ती से बैठ गए और बातें होने लगीं।
बातों के बीच-बीच में मैं उसको किस करता जा रहा था.. कभी गर्दन पर, कभी गाल पर, कभी पीठ पर तो कभी-कभी होंठ पर भी चूमता रहा.. कुछ देर ऐसा चलता रहा।
फिर मैं उसकी गोद में सिर रख कर लेट गया। वो मेरे बालों में हाथ फेरने लगी। मैंने उसके टॉप को थोड़ा ऊपर किया और अब मेरे सामने उसका नंगा पेट था.. सामने सेक्सी सी नाभि थी। मैंने बिना कुछ सोचे समझे उसकी नाभि के पास किस कर दिया।
इस बार वो पूरा सिहर गई.. मतलब मुझे लगने लगा कि अब ये जल्द ही गर्म हो जाएगी। सो मैं रुक-रुक कर उसके पेट पर किस करने लगा, उसकी नाभि में अपना जीभ फिराने लगा और हाथों से उसकी पीठ सहलाने लगा।
मैं उसके पेट पर किस कर रहा था तो वो रोमांचित हो रही थी। इससे मैं और उत्साहित होकर और ऊपर बढ़ने लगा और चुची के निचले भाग पर पहुँच गया। वहाँ किस करने के बाद तो वो एकदम से गर्म हो गई थी। मैंने उसके पूरे टॉप को एक बार में ऊपर कर दिया, जिससे उसकी दोनों चुची उछल कर बाहर आ गईं।
इस बार दीदी ने भी विरोध नहीं किया। सुरभि दीदी की चुची के बारे में एक बात बता देता हूँ कि उसकी चुची एकदम गोल, किसी छोटी साइज़ की फुटबॉल की तरह हैं और इतनी अधिक सुडौल हैं कि बिना ब्रा के भी नहीं झूलती हैं।
जैसे ही दीदी की चुची बाहर आईं.. मैं उन पर टूट पड़ा। एक हाथ में तो अब इसकी एक चुची आती नहीं है.. खैर इन दोनों चुची से तो मैं तब से खेल रहा हूँ जब ये सिर्फ़ एक सेब जितनी थीं। पिछले 3 सालों में 28 इंच से बढ़ कर 38 हो गईं.. मतलब एप्पल से छोटी फुटबाल बन गई थीं।
मैंने दीदी की एक चुची को हाथ से पकड़ा और एक चुची में मुँह में लगा लिया ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ वो भी झुक गई ताकि मैं आसानी से उसकी चुची पी सकूँ।
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मैंने उसकी एक चुची का निप्पल अपने मुँह में रखा हुआ था और मैं निप्पल चुसकने के साथ ही उसकी चुची को अपने मुँह में पूरा भर लेने की कोशिश करने लगा, लेकिन जो चुची हाथ में नहीं आती है.. वो मुँह में क्या आएगी।
सुरभि की दूसरी चुची मेरी गर्दन के पास थी.. मैं उसकी नरमाहट का मजा ले रहा था और सोच भी रहा था कि दीदी इतनी मोटी और बड़ी चुची को कैसे सम्भालती है।
कुछ देर ऐसा करने के बाद उसका हाथ भी मेरे लंड पर लोअर के ऊपर से ही घूमने लगा। उसने मेरे लंड पर हाथ डाला मतलब मैं समझ गया कि अब उसको चुदने का मन हो गया है।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#3
मैंने दीदी को वहीं बालू पर ही लिटा दिया और उसकी चुची को मुँह से चूसने-काटने लगा। इसी के साथ मेरा हाथ दीदी की कैपरी के अन्दर चला गया। हाथ के स्पर्श से मालूम हुआ कि उसने नीचे चुत के बाल साफ कर रखे थे, मतलब वो चुदने का पूरा प्लान बना कर आई थी।
मैं उसकी चुत पर अपनी उंगली घुमाने लगा तो उसके मुँह से मादक सीत्कार निकलने लगी। फिर मैंने धीरे से एक उंगली को उसकी गीली होती हुई चुत में डाल दिया।
हालांकि मुझे पता था कि सुरभि दीदी जैसी चुदक्कड़ को अपनी चुत में एक उंगली से कोई फ़र्क तो पड़ने वाला नहीं था.. फिर भी मैंने चुत में खलबली मचाने के लिए उंगली को अन्दर डाल दिया और घुमाने लगा।
इधर दीदी ने भी मेरे लंड को बाहर निकाल लिया और हिलाने लगी।
कुछ देर ये सब चलता रहा.. फिर हम दोनों 69 पोज़िशन में आ गए। वो मेरे नीचे मुँह किए हुई दबी पड़ी थी.. मैं ऊपर था। उसने मेरे लंड को अपने मुँह में ले लिया था और मैं उसकी चुत को मुँह से चाटने लगा। अब दीदी भी मेरे लंड को आइसक्रीम की तरह चाट-चूस रही थी। कुछ देर ऐसे ही चुसाई कार्यक्रम चलता रहा। फिर मैं उसके नीचे हो गया और दीदी मेरे ऊपर हो गई। अभी भी 69 पोज़िशन ही थी.. मेरा लंड उसके मुँह के पास था और उसकी चुत मेरे मुँह में दबी थी।
हम दोनों एक-दूसरे के आइटम चूस-चाट रहे थे। मैंने अपना हाथ सुरभि की कमर पर रखा और उसकी नंगी पीठ को सहलाने लगा। फिर धीरे-धीरे पीछे से उसकी कैपरी में हाथ डाल दिया और उसके चूतड़ों को सहलाने लगा। फिर मैंने एक झटके में उसकी कैपरी को नीचे कर दिया। अब उसकी कैपरी उसके घुटनों पर पहुँच गई और उसके चूतड़ पूरे नंगे हो गए। मैं उसके नंगे चूतड़ों को मसलते हुए दबाने लगा।
वैसे तो सुरभि का पूरा बदन मस्त है लेकिन उसकी गांड और चुची की जितनी भी तारीफ करूँ, उतनी कम है। वो जैसा भी ड्रेस पहने, उसकी 38 की चुची और उठी हुई गांड के इलाके दूर से ही पता चल जाते हैं।
खैर.. कुछ देर मज़े करने के बाद हम दोनों वहीं झड़ गए। उसकी चुत का पूरा पानी मेरे चेहरे पर आ गया और मेरे लंड का सारा पानी उसने पी कर मेरे लंड को चाट-चाट कर साफ कर दिया।
उसके बाद हम दोनों अलग हुए.. तब तक अंधेरा भी होने लगा था या बोलें लगभग अंधेरा हो चुका था।
वो अपने कपड़े ऊपर करने लगी तो मैं बोला- अब तो अंधेरा हो ही गया है.. इसकी क्या ज़रूरत है।
ये बोलते हुए मैंने उसके टॉप को पूरा उतार दिया.. वो ऊपर से पूरी नंगी हो गई थी। वो मुझ से अपना टॉप माँगने लगी.. तो मैं टॉप ले कर भागने लगा। वो मेरे पीछे नंगी ही दौड़ी।
जब वो मेरे पीछे दौड़ रही थी तो उसकी चुची ऊपर-नीचे होते हुए बड़ा सेक्सी सीन बना रही थीं.. जिसके देखने में मुझे बहुत मजा आ रहा था। सो मैं जानबूझ कर और भी उसको अपने पीछे भगा रहा था।
कुछ दूर तक भगाने के बाद मैंने अपनी बनियान उतार कर दे दी और बोला- लो इसको पहन सकती हो, तो पहन लो।
अब हम दोनों भाई-बहन सी-बीच पर ऊपर से नंगे थे।
जब वो मेरे करीब आई तो उसको मैंने अपने सीने से लगा लिया.. उसकी नंगी चुची मेरे सीने पर मजा दे रही थीं।
मैं उसकी पीठ को सहलाते हुए बोला- एक राउंड यहीं हो जाए।
तो वो बोली- यहाँ?
मैं बोला- हाँ क्या प्राब्लम है.. अंधेरा तो हो ही गया है.. कोई तो इधर आएगा नहीं। बंद कमरे में तो हम लोग बहुत बार मज़े कर चुके हैं, कभी खुले आसमान में भी करके देखो.. कितना मजा आता है।
वो बोली- तो हो जाए.. रोका किसने है।
इतना सुनते ही मुझे मानो मुँह माँगी मुराद मिल गई हो।
मैं दीदी की चुदाई के इस मौके का फायदा उठाने में देर करने वाला नहीं था, मैंने सीधे सुरभि दीदी के होंठ पर अपने होंठ रख दिए और उसे लिपकिस शुरू कर दिया। अब तक मेरा हाथ उसकी कैपरी को भी नीचे कर चुका था।
कुछ देर लिपकिस करने के बाद हम दोनों पूरे नंगे हो गए और मैंने हम दोनों के कपड़ों को एक पत्थर से दबा दिया कि कहीं हवा में ना उड़ जाएं।
इसके बाद मैं सीधा सुरभि दीदी की चुत पर टूट पड़ा। मैंने उसके दोनों चूतड़ों को पकड़ कर अपने से चिपका लिया.. जिससे मेरा लंड उसकी चुत पर रगड़ने लगा। मेरे लंड ने भी अपने जाने का रास्ता देख लिया था, सो मैंने वहीं सुरभि डार्लिंग को बालू पर लिटा दिया और लंड को चुत के मुँह पर रख कर एक जोरदार झटका दे मारा। मेरा पूरा लंड एक बार में दीदी की चुत में घुसता चला गया।
उसके मुँह से जोर से ‘आअहह..’ की आवाज़ निकली, तो मैं उसकी चुत के पास अपनी हाथ से सहलाने लगा। थोड़ा देर यूं ही चुत को सहलाने के बाद मैं लंड को आधा बाहर निकाल कर चुत में अन्दर-बाहर करने लगा।
कुछ देर ऐसा करने के बाद मैं उससे घोड़ी बनने को बोला.. तो वो बन गई। मैं पीछे से उसकी चुत में लंड डाल के ‘घाप.. घाप..’ धक्के मारने लगा।
वो भी मजे से मादक सीत्कारों के साथ दीदी की चुत की चुदाई का मजा उठाने लगी। सुरभि ‘आआह.. ऊऊओहुउउ..’ की आवाज़ करने लगी। लेकिन उससे ज्यादा तेज आवाज़ समंदर की लहरों की थी। कुछ देर चुदाई का खेल चला.. फिर मैंने उसको गोद में उठा लिया तो दीदी ने अपने दोनों पैरों से मेरी कमर को जकड़ लिया। मैंने उसके चूतड़ों को अपने हाथों में सम्भाल रखे थे।
अब मेरा लंड उसकी चुत में फनफनाते हुए अन्दर जा रहा था.. फिर बाहर आ रहा था। इस खेल में उसकी चुची से मेरा सिर फुटबाल खेल रहा था। बीच-बीच में मैं उसके निप्पलों को भी चूस रहा था और चुत में झटके भी मार रहा था।
कुछ देर ऐसा करने के बाद हम दोनों अलग हुए और मैं समंदर के पानी के ठीक पास पीठ के बल लेट गया.. जिससे समंदर का पानी जब आता तो मेरे पैर तक छू कर लौट जाता था। मैं लेटा तो दीदी अपने मन से ही मेरे लंड पर बैठ गई और खुद से चुदने लगी।
मैं भी नीचे से लंड के झटके मार रहा था और सामने उसकी चुची उछाल मार रही थीं, जिनको देख कर मैं और भी जोर-जोर से झटके मारने लगा। वो भी जोर-जोर से आहें भरने लगी, ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ करने लगी जो कि वहाँ के पूरे वातावरण में गूँज रही थी।
उधर समुंदर का पानी भी जब आता था, तो हम दोनों भिगो कर चला जाता था। दरिया का ठंडा पानी और हम दोनों के गरम शरीर.. अह.. बहुत मजा आ रहा था।
कुछ देर उसी पोज़ में धकापेल चोदा चोदी हुई.. फिर 4-5 आसनों में और चुदाई की। फिर हम दोनों झड़ गए और कुछ देर वहीं लेटे रहे।
फिर कुछ देर बाद अपने शरीर से रेत झाड़ कर हम दोनों ने अपने-अपने कपड़े पहन लिए।
अब तक रात के 9 बज चुके थे.. हम दोनों होटल के कमरे में आए और यहीं फ्रेश हो कर खाना मंगा कर खाना खा कर बिस्तर पर आ गए।
वो बिस्तर पर आते ही मचल कर मेरी बांहों में आ गई और बोली- क्या बात है आज बहुत मूड में थे.. लगता है बहुत दिनों से कोई मिली नहीं है।
मैं बोला- तुम भी तो मूड में थीं। वैसे मुझे मिलती तो बहुत हैं.. लेकिन सब में वो बात नहीं है.. जो तुम में है। वैसे भी तुम मेरी बीवी हो.. तुमको जितना भी प्यार करता हूँ, कम ही लगता है। वैसे आज खुले आसमान के नीचे मज़े करके कैसा लगा?
वो बोली- पहले थोड़ा डर लगा, लेकिन मजा बहुत आया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#4
(21-03-2022, 02:01 PM)neerathemall Wrote:
समन्दर किनारे दीदी

जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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मस्त कहानी।
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#6
(30-04-2022, 12:28 AM)bhavna Wrote: मस्त कहानी।

शुक्रिया, आपका आभार
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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