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17-03-2022, 01:01 PM
(This post was last modified: 17-03-2022, 01:01 PM by neerathemall. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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नीतिका और भव्या: दोनों ही पक्की और बचपन की सहेलियां थीं, चूंकि दोनों के ही पिता अखिल जी (नीतिका के पापा) और प्रदीप जी (भव्या के पापा) एक ही सरकारी महकमे में लगभग एक ही पद पर भले ही अलग अलग विभागों में कार्यरत थे लेकिन आपस में काफी अच्छे दोस्त थे। यही वजह थी जो शायद इनकी माएं, विभाजी (नीतिका की मां और मोहिनी जी (भव्या की मां) भी आपस में बहुत गहरी दोस्त तो नहीं, लेकिन एक दूसरे के प्रति काफी मेलजोल था। इनका घर भी आपस में बहुत ज्यादा दूर नहीं था, दोनों एक ही कॉलोनी के बस अलग अलग छोरों पर ही था।
एक ओर जहां नीतिका स्वभाव से थोड़ा गंभीर शांत और शर्मीली सी थी वहीं दूसरी ओर भव्या थोड़ी शरारती, मूडी और बेबाक अंदाज वाली लड़की थी। देखने में दोनों ही सुंदर और प्यारी तो थीं ही लेकिन वहीं साथ -साथ पढ़ाई में भी काफी होशियार थीं तो इम्तिहान में इनके नंबर भी अच्छे ही आते थे। जिस काम को करने में नीतिका दस बार सोचती उसी काम को भव्या पहले धड़ाक से कर बैठती फिर सोचती। यही वजह भी थी कि जहां दोनों दिन में हजार बार लड़ती फिर अगले ही मिनट दोस्त बन जाती।
आस पास रहने की वजह और आपसी मेलजोल की वजह से लगभग सारे पर्व त्योहार भी साथ ही मनाते और यही वजह थी कि इनके ज्यादातर रिश्तेदारों से भी ये दोनों ही परिवार भली भांति परिचित थे।
नीतिका और भव्या दोनों ही एक मामले में और भी एक से थे, वो ये कि दोनों ही एक भाई और एक बहन थे। बस फर्क इतना था कि नीतिका अपने भाई शुभम से बड़ी लेकिन भव्या अपने भाई विवेक से छोटी थी।
जहां कभी नीतिका को लगता कि काश वो छोटी होती अपने भाई शुभम से तो घरवाले उसे ज्यादा प्यार करते क्योंकि उसे लगता था कि हर बात पर उसे ही टोका और समझाया जाता है, शुभम को छोटे होने की वजह से कभी भी कोई कुछ कहता ही नहीं है वहीं भव्या सोचती कि काश वो बड़ी होती तो जितना रोब विवेक उसके ऊपर जमाता है, उतना ही वो उसपर जमाती। घर वाले भी हर बात पर वो बड़ा है, उससे सीखो, उसको देखो कह कर परेशान भी नहीं करते। इस बात पर भी दोनों सहेलियां घंटों बातें करती और अपना दुखड़ा सुना कर मन हल्का करतीं।
चूंकि दोनों ही सहेलियां अब तक अपना लगभग हर काम एक जैसा और एक साथ करती आईं थीं तो जाहिर था कि अब बारहवीं खत्म होने के बाद दोनों एक ही कॉलेज में और एक ही विभाग में अपना नाम भी लिखवाना चाहती थीं। दोनों के मां बाप भी इस बात से काफी खुश थे कि अगर दोनों एक दूसरे के साथ रहेंगी तो इनके घरवालों को भी इनकी थोड़ी कम चिंता होगी जो इस उम्र की हर लड़कियों के मां बाप को ना चाहते हुए भी रहती ही है।
अब बात आई कॉलेज और विषय तय करने की तो बहुत मुश्किल से दोनों कॉमर्स पर आ कर मानी। जहां भव्या को कॉमर्स काफी पसंद था वहीं नीतिका के लिए ये सब समझना थोड़ा मुश्किल था लेकिन साथ रहेंगी ये सोच कर दोनों ही तैयार थीं। जब कॉलेज की बात आई तो उस वक्त उस एक साधारण से शहर में कुछ ही गिने चुने कॉलेज थे जो कॉमर्स की अच्छी पढ़ाई के लिए जाने जाते थे लेकिन मुसीबत ये थी कि वे सारे ही कॉलेज को-एजुकेशन वाले थे यानी कि जिसमें लड़के और लड़कियां दोनों ही थे।
कॉलेज का को-एजुकेशन होने की वजह से नीतिका के घरवाले शुरू में थोड़ा हिचकिचाए लेकिन फिर बच्ची का अच्छा फ्यूचर सोच कर मान गए। दूसरी ओर भव्या के घर में तो मानो तूफान ही आने वाला था क्योंकि ये ना तो उसकी दादी चाहती थीं और ना ही उसका बड़ा भाई, विवेक। विवेक दिल का बुरा नहीं था लेकिन उसकी सोच भी बस आम भाइयों जैसी थी जिसकी वजह से वो अपनी बहन को उस दुनिया से दूर रखना चाहता था।
भव्या के कहने की वजह से नीतिका ने विवेक को काफी समझाया और तैयार किया ताकि वो घर में बांकी सभी को भी मना पाए। नीतिका और विवेक का रिश्ता भी अक्सर मिलने जुलने की वजह से काफी अच्छा था, नीतिका भी चूंकि उसका कोई खुद का बड़ा भाई नहीं था तो वो भी उसे ही बहुत मानती और इज्जत करती थी। वहीं विवेक भी उसका अपनी छोटी बहन भव्या की तरह ही खयाल भी रखता था। यही वजह भी थी कि नीतिका ने जबको-एजुकेशन वाले कॉलेज को लेकर मना नहीं किया तो वो उससे भी काफी नाराज़ था।
नीतिका - क्यों, इतना नाराज़ हो रहे हैं आप भैया, जबकि आप भी अच्छे से जानते हैं कि वो कॉलेज काफी अच्छा है।
विवेक (थोड़ा गुस्से में)- तुम लोगों को समझ नहीं आता, अभी तक तुम लोगों की दुनिया बस तुम्हारे कॉलेज से ले कर तुम्हारे चाट और गोलगप्पे की दुकान तक की ही है ना, इसीलिए.....
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विवेक (फिर से नाराज हो कर)- अगर कभी कोई कुछ कहे तो समझना चाहिए, at least तुम दोनों अच्छे से जानती हो कि मैं तुम्हारा कोई दुश्मन नहीं हूं।
नीतिका (प्यार से)- भैया, आपकी बात बिल्कुल सही है लेकिन आप बस मेरी एक बात का दिल से जवाब दीजिए।
विवेक उसकी तरफ देख रहा था।
नीतिका (थोड़ा गंभीर हो कर)- भैया, क्या आप नहीं चाहते कि हम लोग अपने पैरों पर खड़े हों???
विवेक - तुम लोगों को क्या सच में ऐसा लगता है ???
नीतिका - नहीं भैया, अगर ऐसा लगता तो आज आपसे कोई बात कहने में मैं जरूर हिचकिचाती, लेकिन ऐसा बिलकुल भी नहीं है, आप जानते हैं।
विवेक -तो.......
नीतिका - तो भैया, आप हमें इस माहौल, इन परेशानियों से कब तक बचाएंगे??? और अगर हम अभी से ही खुद ऐसे माहौल में खुद को नहीं ढालेंगे तो कल क्या ये सब और भी ज्यादा मुश्किल नहीं होगा हमारे लिए???
विवेक चुप हो गया।
नीतिका (फिर से)- भैया मैं जानती हूं, बड़े भाई होने के नाते आप हमें बहुत सी विषम परिस्थितियों से पहले ही बचाना चाहते हैं लेकिन हम पर भी भरोसा कीजिए कि ये स्थितियां हम अच्छे से समझ और संभाल सकती हैं।
नीतिका अपनी बात पूरी कर वहां से जाने लगी कि तभी विवेक की बात पर रुक गई।
विवेक (गंभीर तौर पर)- अगर तुम चाहती हो कि भव्या भी उसी कॉलेज में जाए तो तुम्हें अपने साथ साथ उसका भी पूरा खयाल रखने का प्रॉमिस देना होगा, ताकि मैं भी निश्चिंत हो सकूं।
विवेक (फिर से)- मैं जानता हूं तुम्हारी नज़र में मैं पुराने जमाने के दादा और नाना जैसी बातें करता हुआ दिख रहा हूं, लेकिन मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
मैं तुम दोनों के ही स्वभाव को जानता हूं और शायद इसीलिए मैं ये बात भव्या से नहीं बल्कि तुमसे कर रहा हूं। खुल कर कहूं तो उसकी बेबाकी और उसके चंचल स्वाभाव se थोड़ा डरता हूं कि अनजाने ही में लेकिन कहीं कोई बेवकूफी ना कर बैठे।
नीतिका भी विवेक कि बातों का मतलब अच्छे से समझ रही थी तो उसने भी ज्यादा कुछ नहीं कहा और हां बोलकर वहां से चली गई। बरामदे से निकली ही थी कि भव्या ने भैया माने या नहीं और बांकी और भी ढेरों सवालों की झड़ी लगा दी।
नीतिका (हंसती हुई) - बस...... बस, हो गया मेरी मां, कितना बोलेगी, थोड़ा तो रहम कर इस बिचारी जुबान पर.......
भव्या झूठ -मूठ का मुंह बना कर नीतिका को घूरने लगी।
नीतिका (हंसती हुई) - चल नौटंकी सब समझती हूं तेरी हरकतें, चल अब कल कॉलेज जा कर फॉर्म भी भरना है जिसकी कितनी तैयारियां भी करनी हैं, बिल्कुल भी टाइम नहीं है, टाइम निकल गया तो भैया को इतने मेहनत से पटाने का कोई फायदा भी नहीं होगा, समझी।
नीतिका कह कर मुड़ते हुए अपने घर जाने लगी, तभी भव्या ने उसे प्यार जोर से पकड़ लिया।
भव्या -आइ ल्व यु आइ नो यु आर द बेस्ट(I luv u..... I know, u are the best...).?
नीतिका (धीरे से कान में)- (I know.)मुझे पता है...??
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आज काफी वक्त बाद जहां भव्या को आखिर चैन मिला कि अब जा कर उसका एडमिशन उसके पसंद के कॉलेज में हो पाएगा, वहीं अब वो दूसरी सोच में गुम होने लगी, कि नया कॉलेज कैसा होगा, लोग कैसे होंगे... पहली बार को-एजुकेशन में कैसे मैनेज करेगी। वहीं दूसरी ओर ये सारे सवाल तो नीतिका के भी मन में चल रहे थे जिसे वो भी नहीं समझ पा रही थी।
अगले ही दिन दोनों दोस्तें तैयार हो कर कॉलेज के लिए निकल गईं। कॉलेज पहुंचते ही चारों तरफ इतनी रौनक और भीड़ देख कर दोनों के ही कदम धीरे हो गए। फॉर्म काउंटर पर खड़ी लाइन देख कर ही उन दोनों ने अपना सिर पकड़ लिया क्योंकि केवल एक फॉर्म लेने और जमा करने में ही कम से कम पूरा का पूरा दिन निकलना था।
खैर कोई दूसरा उपाय ना देख दोनों वहीं लाइन में लग गईं। अभी तक थोड़े ही लोगों का काम हुआ था कि अचानक से एक लड़का तेजी से काउंटर की ओर आगे बढ़ा और वहां बैठे शक्श जो फॉर्म बांटने का काम कर रहा था, को गुस्से में कुछ कहा फिर वहीं उसके बगल में रखा "closed" का बैनर खड़ा कर दिया। इन दोनों सहेलियों को तो उस पल कुछ भी समझ नहीं आया लेकिन जब थोड़ा नॉर्मल हुईं तो पता चला कि उतने रौब से आने वाला और इतना कुछ करने वाला शक्श इस कॉलेज का यूनियन लीडर और थर्ड ईयर का स्टूडेंट आद्विक सिन्हा था।
आद्विक सिन्हा, उसी शहर के एक सबसे मशहूर वकील का बेटा और उसी शहर के हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज का पोता था। तीन भाई बहनों में सबसे छोटा, सबका दुलारा, ऊपर से सभी को मनमौजी, दिलफेंक दिखने वाला लड़का अंदर से उतना ही भावुक था जिसका अंदाजा उसके दादाजी को छोड़ और बहुत ही कम लोगों को था। हां, उसकी सारी अच्छी बुरी शैतानियों का गवाह और कोई हो ना हो लेकिन उसका अपना ममेरा भाई दर्श था, जो बचपन से ही एक दूसरे के काफी करीब थे।
जहां स्वभाव में आद्विक चंचल, गुस्सैल और लगभग हर बात में हड़बड़ी मचाने वाला था वहीं दर्श अपने दो भाई बहनों में बड़ा और काफी शांत और सौम्य स्वभाव का था। दोनों की किसी बात पर एक मत हो जाए ऐसा लगभग असंभव ही था लेकिन फिर भी दोनों ही भाइयों के रिश्ते और दोस्ती की गांठ इतनी मजबूत थी कि उन्हें बांकी किसी बात से कोई फर्क ही नहीं पड़ता था।
आद्विक के साथ ही उसी कॉलेज में उसी क्लास में दर्श भी था लेकिन स्वभाव की वजह से दोनों का ही ग्रुप और दोस्त बिल्कुल अलग अलग थे। यही वजह भी थी कि वे दोनों आपस में भाई या दोस्त थे ये बहुत ही कम लोगों को अब तक पता चल पाया था।
"यार, क्या ड्रामा है ये, हरकतें तो इनकी ऐसी हैं कि इनके बाप का ये कॉलेज हो?? यूनियन लीडर ना हो गया कि कोई राष्ट्रपति हो गया, जो कि जो कह दे, वही पत्थर की लकीर हो जायेगी।" गुस्से में बड़बड़ाती हुई भव्या बोल पड़ी।
नीतिका (थोड़ा उदासी से)- हां यार, आज का पूरा दिन बर्बाद हो गया, उसपर कोई काम भी नहीं निकला सो अलग।
".........पता नहीं, इस सड़ियल को कोई झेलता कैसे होगा।" फिर से भव्या बोल पड़ी।
नीतिका (भव्या का गुस्सा कम करते हुए)- अच्छा छोड़ ना, हमें क्या करना है ये सब जान कर, वो सोचे, जो इसे झेले, हमारा सोचो अब क्या करना है।
कुछ सोच कर दोनों ही थोड़ी देर के लिए उसी कॉलेज के पार्क के एक बेंच पर बैठ गईं और अपने बैग से पानी की बोतल निकाल कर पीने लगीं।
"अच्छा एक बात तो बता निकू कि अगर तेरी शादी ऐसे अड़ियल से ही हो गई, तो फिर क्या करेगी तू??" कुछ सोचती हुई अगले ही पल भव्या खिलखिलाती हुई नीतिका से बोल पड़ी।
नीतिका (गुस्से में चिढ़ कर)- मेरा जो होगा वो होगा, तू ही सोच अगर तुझे ऐसा पीस मिल गया तो फिर क्या होगा, या तो वो ही बचेगा या तू क्योंकि, काट -मार तो मचना निश्चित है।
भव्या (हंसती हुई)- ना नीकू ना........ तेरी दोस्त इतनी भी पागल नहीं है कि जिंदगी का इतना बड़ा कदम यूं ही बिना सोचे समझे उठाएगी। मैं तो देखना तुम्हे पहले भी कहा है और अब फिर से कह रही हूं कि जब भी करूंगी, लव मैरिज ही करूंगी, ताकि शादी के बाद कोई स्यापा का कोई चांस ही नहीं हो, और लाइफ बस परफेक्ट, मस्त और चिल.......
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भव्या (फिर से मुंह बना कर)- तू अपना सोच जो कलयुग में हो कर भी सतयुग की बेटी की तरह बस सिर झुकाए हुए खड़ी रहेगी और घरवाला जिससे करा दे, उससे कर लेगी।.... हुंह...
नीतिका (शांति से) - भावी, ये शादी ब्याह, सब किस्मत की बातें हैं जिस पर हमारा कोई भी जोर नहीं चलता, जो जोड़ियां ऊपर पहले ही बन गईं वो ही आगे भी मिलेंगी, फिर क्यों बेकार में सोच -सोच कर अपना खून जलाना।
भव्या (कुछ सोच कर)- फिर भी, अगर कहीं किसी अजीब से इंसान से तेरा पाला पड़ गया तो???
नीतिका (सोचते हुए)- यार, सच कहूं तो वो इंसान जो भी हो, जैसा भी हो, बस शांत और तमीजदार हो, बांकी कोई फर्क नहीं पड़ता।
दोनों ऐसे ही अपनी पसंद -नापसंद की बातें करते घर लौट आईं।
उधर आज काफी वक्त बाद आद्विक और दर्श भी अपने पुराने और पसंदीदा जगह "चाचा की चाय" वाली दुकान पर जो कि उनके कॉलेज से थोड़ी ही दूर पर था, वहीं आ कर बैठे थे ताकि दोनों दोस्त आराम से थोड़ी देर इधर उधर की बातें कर सके। वे दोनों अपनी अपनी चाय और उस दुकान के श्याम चाचा की खैर खबर ले कर बगल में पड़ी बेंच पर बैठे ही थे कि इतने में वहीं एक और लड़का -लड़की जो शायद आपस में काफी करीबी जान पड़ते थे, वहीं आ कर बैठ गए। उन दोनों की बातों से यही लग रहा था कि लड़की उस लड़के को रिश्तों की कद्र और उसकी इज्जत करने की बात समझा रही था वहीं वो लड़का बस ये कह कर उसकी बात टाल रहा था कि हर किसी को अपनी जिंदगी में हर वक्त एक ज्ञान देने वाली मां नहीं बल्कि ऐसा शक्श चाहिए होता है कि जिन्हें देख या जिनसे मिल कर इंसान कितना भी थका हो उसका मूड फ्रेश हो जाए वो सुकून पा पाए क्योंकि अगर कोई इंसान हर वक्त यही सोचता रहा कि आस पास के लोग क्या बोलेंगे और क्या सोचेंगे तो इंसान खुद की मर्जी से कब जिएगा।
थोड़ी देर बातें कर और अपनी चाय खत्म कर वे दोनों अजनबी तो वहां से चले गए लेकिन दर्श उनकी बातें सुन कुछ सोचने लगा।
आद्विक - क्या हुआ भाई, अब तुम क्या सोचने लगे??
आद्विक (फिर से दर्श की ओर देखते हुए)- अब plz ये तो बिल्कुल भी मत कहना कि वो लड़की कितनी समझदार थी...., गंभीर थी....... कितनी अच्छी थी।
दर्श (कुछ सोच कर)- क्यों, सही तो कह रही थी वो, क्या गलत कहा उसने......
आद्विक (बात बीच में ही काटते हुए)- क्या खाक सही बोल रही थी, देखा नहीं उसकी गर्लफ्रेंड कम और उसकी गुरु मां ज्यादा लग रही थी। पता नहीं इन्हें ये बात क्यों समझ नहीं आती कि बीवी या गर्लफ्रेंड वही बन कर रहें तो ज्यादा बेहतर है, हम हर किसी की जिंदगी में हर बात पर ज्ञान के लिए दादी नानी हैं।
आद्विक (फिर से)- और सच कहूं तो यार शादी में अगर एक जैसी सोच वाले लोग ना मिले तो उस शादी को आज के जमाने में तो भगवान भी नहीं चला पाएंगे। इसीलिए तो मैं सीधा मानता हूं कि बांकी कोई काम अपनी पसंद से करो या ना करो, लेकिन शादी तो खुद की पसंद की होनी ही चाहिए।
दर्श - नहीं यार, एक समझदार लड़की हर रिश्ते को बखूबी संभाल सकती है, और ये खोजने की जो पारखी नज़र हमारे बड़े या मां बाप की होगी वो किसी और की हो ही नही सकती है।
दोनों भाई यूं ही कुछ वक्त तक अपनी -अपनी राय देते रहे फिर अपने अपने घर के लिए निकल गए।
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चूंकि दोनों ही पढ़ने में अच्छी थीं और उनके बारहवीं के नंबर भी काफी अच्छे थे तो अगले ही कुछ हफ्तों में उन दोनों ही सहेलियों का एडमिशन उनकी पसंद के कॉलेज में हो गया। कल सुबह उनके कॉलेज का पहला दिन था जिसे सोच कर ही दोनों के ही मन में इतनी गुदगुदी थी कि नींद आना तो मुश्किल ही था और आंखों ही आंखों में पूरी रात कट गई।
" कितनी बार कहा है कि टाइम की कद्र करो, पता नहीं क्या करती रहती हो?? इतने साल हो गए लेकिन भागते दौड़ते पहुंचने की आदत इस लड़की की अब तक नहीं गई है।" कहते हुए भव्या के पिताजी अपनी चाय लिए वहीं बैठ गए जहां भव्या बगल में बैठी मुंह बनाए जबरदस्ती अपनी मां के गुस्से की वजह से पराठे के टुकड़े को पानी की मदद से सरका रही थी।
भव्या (चिढ़ कर)- प्लीज पापा, अब हम कॉलेज में हैं, कॉलेज में नहीं कि बस घंटियों की आवाज पर बस दौड़ती रहें, अब तो थोड़े बहुत लेट होने से कोई फर्क नहीं पड़ता।
भव्या की मां (थोड़े गुस्से में) - हां, समय पर इस लड़की का कोई काम तब हो ना जब इसे किसी जिम्मेदारी का कोई अहसास हो?? यहां तो बस जो मन आया जैसे मन आया पड़े रहे।
"वाउ, क्या बात है लहसुन मिर्च वाली चटनी...... तब तो जरूर वो खस्ता वाले पराठे ही बन रहे होंगे, क्यों आंटी जी...??" कहती हुई नीतिका प्यार से आ कर बगल में बैठ गई और भव्या को जल्दी करने के इशारे करने लगी।
नीतिका की प्यारी बात पर भव्या की मां भी मुस्कुरा उठीं और नाश्ता करने को कहा लेकिन नीतिका ने पेट बिल्कुल भरा है कह कर टाल दिया और दोनों से मिल कर भव्या के साथ कॉलेज के लिए निकल गई।
कॉलेज का पहला दिन किसी बड़े त्योहार से कम नहीं होता है नए बच्चों के लिए, वही हाल वहां भी था। जहां लड़कियां रंग बिरंगे कपड़ों, पर्स में अपना एक से एक फैशन दिखा रही थीं वहीं लड़के भी किसी मामले में कम नहीं थे। जहां लड़कियां नजरें बचा -बचा कर स्मार्ट लड़कों को निहार रही थीं वहीं लड़के भी अपनी - अपनी सेटिंग बिठाने के फिराक में हर किसी पर नजरें जमा रहे थे।
ऐसे माहौल में थोड़ी बहुत नर्वस तो दोनों ही दोस्तें थीं लेकिन फिर भी जहां भव्या खुद को वहां के माहौल में ढाल लेने में थोड़ी हद तक सफल हो रही थी वहीं नीतिका इसके विपरीत खुद के अंदर की असहजता से परेशान थी। आज का पहला दो क्लास तो यूं ही एक दूसरे को और टीचर्स को जानने और समझने में ही निकल गया और आगे लगभग चालीस मिनट का ब्रेक था तो दोनों ही दोस्त कॉलेज के कैंटीन की ओर ना जा कर वहीं उसके थोड़े पहले एक शांति वाली जगह देख कर बैठ गईं।
भव्या (हंसती हुई)- बाप रे, नीकू ये तो गांव के मेले जैसा नहीं लग रहा, जो रंग खोजो वो मिलेगा.....
नीतिका (थोड़ी परेशान सी)- भावी, यार मेरे से सच में ये सब संभलेगा भी या नहीं। कहीं कॉमर्स ले कर मैंने कोई गलती तो नहीं कर दी।
भव्या (घूरती हुई)- ले..... मैं यहां इतना मजेदार नजारा दिखा रहा हूं और एक तुम, कॉलेज के पहले दिन ही अपने पढ़ाई का रोना ले कर बैठी हो।
नीतिका (रुआंसी सी)- सच कहूं तो यहां कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा भावी, सब कुछ कितना अलग है ना.... (फिर कुछ सोच कर)...... शायद विवेक भैया सही ही कह रहे थे कि ये जगह हमारे लिए नहीं है।
भव्या (थोड़ा चिढ़ कर)- यार नीकू तू भी...... यहां हमें खुल कर जीने को आसमान मिल रहा है और तुझे अब भी अपने रूम में ही रहना है, निकलेंगे नहीं तो फिर जिएंगे कैसे खुल कर।
भव्या (थोड़ा समझाती हुई प्यार से)- अच्छा, अब ये बताओ कि जब जॉब करोगी तब क्या करोगी??
नीतिका (खुद को सामान्य करते हुए)- हां यार, ठीक कह रही है।
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भव्या (मजाक में)- अच्छा यह सब छोड़ो, ये बताओ यहां अब तक इतने लड़कों में तुम्हें सबसे स्मार्ट कौन लगा??
नीतिका (मुंह बना कर)- मुझे क्या पता, तुम ही खोजो, वैसे भी तुम्हें ही रचानी है ना प्यार वाली शादी। मेरे लिए तो सब एक ही जैसे हैं।
भव्या (मुंह बना कर)- कितनी बोर है तू यार, पता नहीं कैसे झेलेगा तेरा पति तुझ जैसी सती सावित्री को।
नीतिका (हंसती हुई)- अरे तू अपनी चिंता कर ना तू कब खोजेगी अपना राजकुमार, जो भाई मैडम के दिन रात आगे पीछे करे, इनके हजारों नखड़े उठाए।
भव्या - हुंह..... उड़ा ले मेरा मजाक, लेकिन देखना जब वक्त आएगा तब तुझे समझ आएगी मेरी बात कि अच्छी और सुकून की जिंदगी के लिए लव मैरिज कितना जरूरी है।
नीतिका (हंसती हुई)- हां, तेरी बात सुन लूं तो जिंदगी का एक मात्र गोल शादी ही लगने लगेगी मुझे, ना बाबा ना..... फिर मेरी नौकरी का क्या होगा।
भव्या (सिर पर हाथ रखती हुई)- हे प्रभु, फिर से कर दी ना चिंदी वाली बात?? शादी के बाद वाली नौकरी तो बस मजे के लिए होती है ना, घर मैं ही चलाऊंगी तो फिर वो क्या करेगा।
नीतिका (मुंह बना कर)- कुछ नहीं हो सकता तेरा....
दोनों यूं ही आपस में बात कर रही थीं कि अचानक घड़ी की ओर देखा तो याद आया कि क्लास होने का समय कब का हो गया और वे बातों में भूली बैठी थीं। दोनों सहेलियां हड़बड़ाते हुए क्लास की ओर जा रही थीं कि तेजी में नीतिका अचानक किसी से टकरा गई और उसका बैग और सामने वाले के हाथ से उसका फोन गिर पड़ा।
अनजान इंसान (थोड़ा गुस्से में)- ओ मैडम, क्या बदतमीजी है ये, कॉलेज में पैर रखे दो घंटे नहीं हुए हैं कि अपनी हरकतें चालू कर दीं।
नीतिका उसकी बातें सुन बस बुत सी वहीं खड़ी हो गई और ना चाह कर भी उसकी आंखें भर आईं। उस अनजान शक्श की ऐसी बातें सुन भव्या भी गुस्से में कुछ कहने के लिए मुड़ी ही थी कि तब तक वो इंसान वहां से जा चुका था। उसने नीतिका को प्यार से संभाला और फिर आगे बढ़ गईं।
उस अनजान आदमी की ऐसी बातें सुन आज नीतिका का मन अब कहीं भी नहीं लग रहा था उसे क्लास में भी थोड़ी घुटन सी महसूस हो रही थी। वॉशरूम का बहाना बना कर वो आखिर बाहर निकल कर क्लास के दूसरी ओर के कॉरिडोर में जहां एक बेंच लगा पड़ा था वहीं बैठ गई।
नीतिका (खुद से)- पता नहीं लोग खुद को क्या समझते हैं, सेकंड भर भी नहीं सोचते और अपनी राय बना लेते हैं, भले ही सामने वाले की कोई गलती हो भी या नहीं। उन्हें क्यों फर्क पड़ेगा कि उनकी ऐसी बातों ने सामने वाले को कितनी तकलीफ पहुंचाई होगी।
"हम्मम...... बात तो आपकी बिल्कुल सही है लेकिन सच कहें तो उनकी भी क्या गलती है, उन्होंने जो उस एक पल में देखा, वही सोचा और वही समझा। या ये भी तो हो सकता है कि उस वक्त उसकी भी मनोस्थिति कुछ अलग हो और वो कहीं की बात कहीं और ही कह गया हो।" बोलता हुआ एक शक्श वहीं मुस्कुराता हुआ निकिता के बगल में बैठ गया।
नीतिका ने हड़बड़ा कर बगल वाले सक्श की ओर देखा तो वो अब भी मुस्कुरा रहा था।
हैलो मैँ दर्श ( "Hello, I am) दर्श, कॉमर्स थर्ड ईयर का स्टूडेंट...." मुस्कुरा कर बोलते हुए दर्श ने अपना हाथ आगे बढाया।
चूंकि आज तो सुबह से ही नीतिका का वक्त बुरा चल रहा था तो वो खुद ही मन में ये सोच कर बड़बड़ाने लगी कि पता नहीं अब ये क्या नई आफत है। कहीं कोई उसकी रैगिंग तो नहीं ले रहा।
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"घबराओ मत, कोई रैगिंग नहीं हो रही तुम्हारी, सब ठीक है। तुम्हें ऐसे अकेले परेशान बैठे देखा तो रुक गया।" मुस्कुराते हुए दर्श फिर से बोल पड़ा।
अब तक नीतिका भी खुद को काफी संभाल चुकी थी तो उसने भी मुस्कुरा कर हाथ मिला लिया और अपना नाम बता दिया। वे दोनों आगे कुछ और बोल पाते कि तब तक भव्या भी वहां नीतिका को खोजती हुई आ पहुंची थी।
भव्या (दर्श की तरफ घूरते हुए)- क्या हुआ, यहां क्या कर रही है?? ठीक है ना??
नीतिका (शांति से मुस्कुरा कर)- हां, बिल्कुल ठीक हूं, बस क्लास की ही ओर आ रही थी।
भव्या - हूं....... इतने देर से नहीं लौटी तो टेंशन हो रही थी।
नीतिका - हम्मम..... चलो।
नीतिका (अचानक रुक कर)- भावी, इनसे मिलो ये दर्श हैं, हमारे सीनियर.......
भव्या (बीच में ही बात काट कर गुस्से में)- क्या हुआ, किसी ने फिर से कुछ कहा क्या??
नीतिका उसे इशारों में चुप रहने को कहती रही लेकिन उसने बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया।
भव्या - इस बार तो बिल्कुल नहीं छोड़ने वाली मैं, तू देख क्या करती हूं मैं??
दर्श (मुस्कुराते हुए)- तुम्हें अपना इतना खून जलाने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है, मैंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा है तुम्हारी दोस्त को।
दर्श की बात से नीतिका भी मुस्कुराने लगी। अब तक भव्या का गुस्सा भी भले ही कम हो चुका था लेकिन अब वो दर्श की बेबाक बात पर बस उसे घूरे जा रही थी।
दर्श (हाथ आगे बढ़ा कर)- अब तो जान गई ना??
भव्या ने एक नज़र उसे घूरा और फिर से नीतिका को ले कर बिना कुछ बोले आगे बढ़ गई और दर्श वहां खड़ा उसकी हरकत को देख मुस्कुराता रहा।
शाम को कॉलेज से लौटते वक्त सामने फिर से नीतिका और भव्या की नजर दर्श पर गई तो उसने हाथ के इशारे से दोनो को बाय किया। जवाब में नीतिका भी मुस्कुरा दी।
भव्या (चिढ़ कर)- ये चिपकू कुछ ज्यादा तेज नही बन रहा??
नीतिका (प्यार से)- ऐसे क्यों कह रही है, देखा नहीं कितने डिसेंट से हैं, वरना यहां तो....... नीतिका फिर अचानक सुबह उस अनजान शक्श की बात याद कर दुखी हो गई।
भव्या - हुंह.... वो तो दुष्ट था ही, ये चिपकू भी कम नहीं लगता है मुझे। तुम उससे थोड़ा संभल कर रहो।
नीतिका - तुम्हारी सुई तो यार बस एक ही जगह आ कर रुक गई है, कितने सीधे से तो हैं वे।
भव्या - हुंह..... सीधा
दोनों दोस्त यूं ही आज पूरे दिन भर की बातें करती रहीं और आखिर यूं ही उन दोनों का आज के कॉलेज का पहला दिन निकल गया और दोनों घर लौट गईं।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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Nice story
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