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Romance प्यास और हवस
#1
Exclamation 
दोस्तो तुषार की लिखी हुई एक और कहानी लेकर हाजिर हूँ . और उम्मीद करता हूँ आपको ये कहानी भी पसंद आएगी 

अपडेट - १

मैं बदहवास सी बेड पर लेटी हुई उन दोनो की तरफ देख रही थी…..मेरे सामने मेरी भाभी अपनी टाँगे को राज की कमर पर लपेटे हुए अपनी गान्ड को ऊपेर की ओर उछाल रही थी….और राज का लंड भाभी की चूत के पानी से भीगा हुआ चूत के अंदर बाहर हो रहा था….और जैसे ही राज का लंड भाभी की चूत मे जाता. तो भाभी अपनी गान्ड को ऊपेर की ओर उठा लेती….ये देखते हुए मेरा हाथ कब मेरी चूत पर जा पहुँचा मुझे पता ही नही चली…और मैं अपनी चूत को धीरे-2 मसलने लगी…

भाभी ने अपनी बाहों को राज की पीठ पर कस रखा था…और राज भाभी की नेक को मदहोशी के आलम मे चूस रहा था….तभी भाभी ने मेरी ओर अपनी अध खुली मस्ती से भरी आँखों से मेरी ओर देखा और काँपती हुई आवाज़ मे बोली….”ओह्ह डॉली तुम्हारा स्टूडेंट तो सब आह सीईईई अब एक्सपर्ट हो गया है…..” 

राज ने भाभी की बात सुन कर मेरी तरफ देखा और फिर भाभी की एक टाँग को ऊपेर उठा लिया…जिससे मुझे भाभी की चूत और राज का लंड और सॉफ दिखाई देने लगा….और उसने अपने लंड को बाहर निकाल-2 कर भाभी की चूत मे घस्से लगाने शुरू कर दिए….


वो भाभी की चूत मे घस्से मारते हुए लगतार मुस्कुराते हुए मेरी ओर देखे जा रहा था…और फिर एक दम से भाभी की चूत मे अपना लंड पूरा उतार कर रुक गया. उसकी साँसे उखड चुकी थी….सॉफ था कि, राज ने भाभी की चूत को अपने लंड के रस से सरोबार कर दया था...लंबे चौड़े बदन वाली भाभी की टाँगो के बीच मे लेटा हुआ राज बहुत छोटा सा लग रहा था…छोटा होता भी क्यों ना…अभी उसकी उम्र ही क्या था…वो 11थ क्लास मे था…..और महज ***5 साल का था….



फ्रेंड्स वो क्या वजह थी…..जिसकी वजह से ना चाहते हुए भी मैं अपने ही स्टूडेंट के लंड की दीवानी हो गयी थी….मैं ही नही…मेरी भाभी भी….मैं दो बार प्रेगएनेट हुई, और दोनो बार मुझे ऑपरेशन करवाना पड़ा…पर वो था कि, वो मुझे हर बार कॉंडम के बिना ही चोदता…अपनी मरज़ी से ज़बरदस्ती ये मेरी चूत की मजबूरी थी…जो अब उसके लंड को देखते ही पिघल जाती थी….


सो फ्रेंड्स इस राज़ से परदा उठेगा आगे आने वाले अपडेट्स मे….इसमे कुछ वो पल भी शामिल है…जो मेरे साथ नही घटे…और ना ही मेने देखा…पर बाद मे जो कुछ भी मुझे पता चला वो सब मैं आपको यहा बताउन्गी…..सो फ्रेंड्स आगे आने वाले अपडेट्स का इंतजार कीजिए….पर अभी आपको इस स्टोरी के कुछ ख़ास करेक्टर के बारे मे बता देती हूँ…..


राज- एज:*** साल… हॅंडसम डॅशिंग रिच (उसके मोम & डॅड अब्रॉड मे है. पिछले 4 सालो से…और वो अपने अंकल हेमंत शर्मा के पास रहता है. जो कि हमारे इलाक़े के सबसे बड़े कॉलेज के ओनर है…उनका सारा परिवार कार आक्सिडेंट मे मारा गया था….अब वो अकेले है….इसीलिए उन्होने ने राज को अपने पास रख लिया था…क्योंकि राज के डॅड हेमंत के बहुत अच्छे दोस्त है….)





पायल: मेरी भाभी एज 29 साल….हाइट 5 फीट 10 इंच….भरे हुए बदन की मालकिन….बूब्स साइज़ 34फ एक दम कसे हुए बूब्स हमेशा तने हुए रहते है. वेस्ट 28 और गान्ड 38 पीछे की तरफ बाहर निकली हुई…पेट पर हल्की से चर्बी की परत है….पर हाइट की वजह से एक सेक्स बॉम्ब लगती है….अभी कोई बच्चा नही है….इसीलिए अभी भी एक दम फिट रहती है….रंग एक दम गोरा है…मंसूरी मे पली बढ़ी है…पर है पंजाबी…हम सब पंजाब से ही बिलॉंग करते है.


डॉली: ये मेरा घर का नाम है….घर मे मम्मी पापा मुझे इसी नाम से बुलाते थे…जब वो जिंदा थे…मेरी एज 27 साल है…और मेरी 21 साल की उम्र मे शादी हुई थी….जो यूएस मे सेट्ल था…..और शादी के 10 दिन बाद ही डाइवोर्स हो गया था…क्योंकि जिससे मेरी शादी हुई, तो अब्रॉड मे रह कर जॉब कर रहा था….और मुझे पहले ही हफ्ते मे ये पता चल गया था कि, उस सख्स ने पहले से ही यूएसए मे शादी की हुई है…और उसकी एक बेटी भी है…मेरी हाइट 5 फीट 8 इंच है…आम भारतीय औरतों के आवरेज हाइट से ज़्यादा है..फिगर बल्कुल भाभी की कॉपी ही लगती है…पर भाभी से हाइट मे दो इंच कम हूँ…वैसे रंग तो मेरा भी गोरा है….पर भाभी से थोड़ा कम है….

चेतन: मेरे भैया….उम्र 34 साल….नशे के आदि हो चुके है…काम काज कुछ नही करते…घर की हालत उन दिनो बहुत ख़राबा चल रही थी….भाभी के मयके से हर महीने उनके माता पिता कुछ पैसे भेज देते थे….जिससे घर चल रहा था. और मैं बच्चों को घर पर ट्यूशन पढ़ाती थी….भैया का काम सारा दिन अपने नशेड़ी दोस्तो के साथ घूमना और नशे बाजी करना था…कई बार तो 2-3 दिन तक घर ही नही आते थे….



 ललिता: एज राज की हमउमर है…..उसी की क्लास मे है…और क्लास की ही नही कॉलेज की सबसे होशयार और ब्राइट स्टूडेंट है…पूरे कॉलेज के टीचर और स्टूडेंट्स उस पर नाज़ करते है….और कॉलेज की सबसे खूबसूरत स्टूडेंट एक दम क्यूट सी स्माइल और उतना ही क्यूट उसका फेस…


कुछ और कॅरक्टर भी है…जो टाइम ब टाइम आते रहेंगे और जाते भी रहँगे…

तो जैसे कि मेने बताया कि, हमारे घर की आर्थिक दशा बहुत खराब चल रही थी….मेरी ट्यूशन की कमाई और भाभी के घर वालों से मिल हुए पैसे से हमारा घर कर खरच बड़ी मुस्किल से चलता था…और उस पर भी भैया के नशों का बोझ था…दिन भर यही सोचते निकल जाता था कि, आज घर मे खाना पकेगा भी नही….मेरी भाभी से ज़्यादा नही बनती थी…क्योंकि वो मुझे भी अपने ऊपेर बोझ समझती थी…पर मेने समाज की सभी मुसबीतों का सामना करने की ठान ली थी…


अपने पति से धोखा खाने और भैया की करतूतों को देखने के बाद मुझे मर्द जात से चिढ़ सी हो गयी थी….कई बार रिश्तेदारों ने मेरे लिए रिस्ते देखे बात की, पर मेने हर बार मना कर दिया..अब मैं अपनी जिंदगी को किसी और भरोसे पर नही छोड़ना चाहती थी. डाइवोर्स के बाद ही, मम्मी पापा की मौत हो गयी….और उसके बाद मेने फिर से कॉलेज जाय्न कर लिया…तब मेरी एज 21 साल की थी…इंग्लीश मे बीए करने के बाद मेने बी.एड की…और फिर उसके बाद नोकरि तलाश करने लगी..बहुत जगह ट्राइ किया…पर बात नही बनी…हर कॉलेज और कॉलेज का गेट नॉक करके देख लिया…पर सब व्यर्थ था.

मैं घर पर बच्चों को पढ़ा कर कुछ पैसे कमाने लगी….फिर मुझे अपने मोहल्ले मे ही एक घर मे ट्यूशन मिल गयी…उनके जुड़वा बच्चे थे..एक लड़का और लड़की. मैं उनको ट्यूशन देने के लिए उनके घर जाने लगी….वो दोनो ***** कॉलेज मे पढ़ते थे. जो हमारे इलाक़े का सबसे बड़ा मशहूर और महँगा कॉलेज था…मेने उन दोनो खूब लगन से पढ़ाया…जब उनके बच्चों का रिज़ल्ट आया तो, वो मुझसे बहुत खुश हुए, और उन्होने ने ही मेरी सिफारिश जिसस कॉलेज मे उनके बच्चे पढ़ते थे, उसके प्रिन्सिपल जय सर से की, और फिर मेरा इंटरव्यू करवाया….


मुझे उस कॉलेज मे इंग्लीश टीचर की जॉब मिल गये…..सल्लेरी पॅकेज इतना अच्छा था कि, मेने सोचा भी नही था….मेरी सॅलरी स्टार्टिंग मे ही 14000 पर मंत फिक्स हो गयी थी…मैं बेहद खुस थी…अब मैं अपने पैरो पर खड़ी हो चुकी थी…अप्रेल का मंत था…रिज़ल्ट्स के बाद अभी क्लासस शुरू हुए ही थे…और मैं पहले दिन पढ़ा कर कॉलेज से बाहर निकली थी…कि बाहर गरम हवा के झोंको ने मेरा स्वागत किया.

गरम हवा के थपेडे मुझे अपने चेहरे पर बर्दास्त नही हो रहे थे...मेने अपने दुपट्टे से अपने चेहरे को ढक लिया, और बस स्टॉप की तरफ बढ़ने लगी....रोड सुनसान सा हो गया था....आस पास की सभी दुकाने भी बंद थी......मैं नीचे सड़क की ओर देखते हुए आगे बढ़ रही थी, कि तभी मुझे मेरे पीछे से आवाज़ आई...."मेडम क्यों धूप मे परेशान हो रही हो...कहो तो घर छोड़ दूं"
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#2
अपडेट - २

ये तो आम बात है.....पर अक्सर मेरे साथ ऐसा नही होता...मेने उस तरफ ध्यान ना देकर आगे बढ़ना जारी रखा....उसने मुझे फिर से आवाज़ दी...पर मैं ना रुकी........इसकी इतनी हिम्मत कि वो मेरे सामने आकर मेरा रास्ता रोक कर खड़ा हो गया....

"अर्रे मेडम इस ग़रीब पर भी तो ध्यान दो....कब से एक गुज़ारिश कर रहा हूँ" दिल कर रहा था कि, अभी उसका मूह तोड़ दूं..पर फिलहाल इसकी ज़रूरत नही पड़ेगी....मेने नज़र उठा कर उसकी तरफ देखा, वो लड़का कॉलेज यूनिफॉर्म मे खड़ा था…मेने उसकी तरफ देखा और अपने चेहरे से अपना दुपट्टा हटा दिया......मुझे देखते ही उसकी आँखें फेल गये....और वो अपने पैर सर पर रख कर भागा....

चाहते हुए भी मैं अपनी हँसी ना रोक पे..चलो उस उल्लू की वजह से आज मैं कई दिनो बाद हँसी तो.....वरना मुझे कई बार लगता, कि मैं हंस भी सकती हूँ या नही....मेने अपने चेहरे को फिर से दुपट्टे से ढाका....और बस स्टॉप की ओर चल पड़ी.... जैसे ही बस स्टॉप के पास पहुँची, तो देखा कि बस आ गयी है.....मैं तेज कदमों से चलते हुए बस मे चढ़ गयी.....और सीट पर बैठ गयी...घर पहुँचने मे भी 30 मिनिट तो लग ही जाते है....मेने अपने बॅग से अपना मोबाइल फोन निकाला, और एअर फोन लगा कर सॉंग सुनने लगी...

विंडो से आ रही गरम हवा से बस मे बैठे हुए सब लोगो का बुरा हाल था...क्या मुसीबत है.....इतनी अच्छी नौकरी मिल गयी है कुछ महीनो बाद मैं अपने लिए स्कूटी खरीद लूँगी….स्कूटी क्यों मज़ाक कर रही है डॉली अपने आप से...घर का गुज़ारा और निकम्मे भाई के नशे के बाद कुछ बचेगा तो उसे संभाल लेना.. मैं अपने मन मे यही सब सपने लिए सोच रही थी…

क्यों नही ले सकती मैं स्कूटी मेने क्या ठेका ले रखा है, जो उस नाकमजाब इंसान का बोझ सारी उम्र मैं ही उठाती रहूं...ये सोचते-2 कब मेरी आँखें भीग गयी...उसका अहसास मुझे तब हुआ, जब बस मे खड़ी एक औरत को मेने अपनी तरफ देखते हुए पाया....मेने जल्दी से अपनी आँखें पोन्छि....और दूसरी तरफ फेस घुमा लिया.

और खुद को कोसने लगी....."हां अब तुझे ही ये सब बोझ उठाना होगा..क्योंकि तूने अपने लिए खुद ये रास्ता चुना है" और तू चाह कर भी अपने भाई को इग्नोर तो नही कर सकती....आख़िर है तो वो भाई ना" सोचते-2 कब रास्ता बीत गया पता नही चला....मेरा स्टॉप आ गया था.. मैं अपने स्टॉप पर उतरी, और उस रोड पर चलते हुए, अपने घर की तरफ चल पड़ी....10 मिनिट और चिलचिलाती धूप मे झुलसने के बाद मैं घर के बाहर पहुँची, और डोर बेल बजाई.....

"उफ्फ क्या मुसबीत है" ये भाभी भी ना सो गयी होगी....." मेने फिर से डोर बेल बजाई, तो थोड़ी देर बाद भाभी ने डोर खोला....और डोर से पीछे हट गयी...जैसे ही मैं घर के अंदर आई तो, उसने डोर बंद कर दिया…

भाभी : खाना लगाउ क्या दीदी .....और आपके कॉलेज का पहला दिन कैसा रहा….

मैं: बहुत बढ़िया भाभी…….

भाभी: तो सॅलरी कितनी फिक्स हुई तुम्हारी…..

मैं: पता नही भाभी अभी दो दिन बाद पता चलेगा…..(मेने भाभी से अपनी सॅलरी की बात छुपा ली….)

"हां भाभी खाना लगा दो…मैं ज़रा फ्रेश होकर आती हूँ…" और मैं अपने रूम की तरफ बढ़ने लगी..... तो अचानक से भैया के रूम में मुझे हलचल महसूस हुई.....मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया....मेने भाभी से पूछा...."भैया आज काम पर नही गये थे क्या"

भाभी: ओ गये थे पर शायद उनके ऑफीस मे स्ट्राइक हो गयी आज..

ये बंदा कब सुधरेगा....रोज नये बहाने होते है इसके पास ....मुझे तो शक है कि वो काम पर जाते है या नही....अब इनसे बहस करना रोज मेरे बस की बात नही है....वो कहते है ना भैंस के आगे बीन बजाने से क्या फ़ायदा.. मैं मन मे बुदबुदाते हुए अपने रूम मे चली गयी....

हमारे घर मे सिर्फ़ तीन ही रूम थे….एक किचिन और बाहर गेट के पास बाथरूम और टाय्लेट था….मैं मम्मी पापा के दहनत के बाद से ही उनके रूम मे रहने लगी थी….अब मेरे रूम मे सिर्फ़ एक चारपाई थी…एक छोटा सा स्टडी टेबल और एक परुआना टीवी रूम भी छोटा सा था….मैने रूम मे पहुँचने के बाद, अपना पर्स रखा और घर पर पहनने वाले पुराने से सलवार कमीज़ लेकर बाथरूम की तरफ चली गयी…ताजे ठंडे पानी से नहाने के बाद मेरे जिस्म मे थोड़ी सी जान आई….और अपने रूम मे आए, तो देखा भाभी ने खाना डाल कर मेरी स्टडी टेबल पर रखा हुआ था….

इस सारी खिदमत का राज़ मे जानती थी, क्योंकि अब मुझे नोकारी जो मिल गयी थी…मेने बैठ कर खाना शुरू कर दिया….भाभी जाकर चारपाई पर बैठ गयी….” डॉली मैं क्या बोल रही थी, कि तू ना अच्छे से उस कॉलेज में सेट हो जा…सुना है बहुत अच्छा कॉलेज है….वहाँ टीचर्स को काफ़ी अच्छी सॅलरी मिल जाती है…”

मैं: (खाना खाते हुए) हां भाभी सही सुना है आप ने…

भाभी: तो फिर बस तू अपनी जगह पक्की कर ले वहाँ पर…एक बार जब तू सेट हो जाए तो, मेरे लिए भी वहाँ के प्रिन्सिपल से जॉब की बात कर लेना….

मैं: जॉब और आप…..आप पढ़ा लेंगी बच्चों को….?

भाभी: हां क्यों नही मैं कॉन सा पढ़ी लिखी नही हूँ….माना कि तुमसे थोडा कम पढ़ी लिखी हूँ….

मैं: भाभी वहाँ जॉब पाना इतना आसान काम नही है…मुझे लगता कि वो आपको वहाँ पर जॉब पर रखेंगे….

भाभी: क्यों नही रखेंगे….अच्छा एक बात बता तुम कॉन सी क्लास को पढ़ाती हो…

मैं: कॉन मैं….मैं तो 8थ से लेकर 12थ तक….पर आप क्यों पूछ रही हो….?

भाभी: देख भले ही मैं बड़ी क्लासस के बच्चों को ना पढ़ा सकूँ…पर छोटी क्लासस के बच्चों को तो आराम से पढ़ा सकती हूँ…वहाँ छोटी क्लासस है ना…?

मैं: हां है…वैसे भाभी कह तो तुम ठीक रही हो…छोटी क्लासस को पढ़ाना मुश्किल तो नही होगा आपके लिए….

भाभी: देख डॉली तुझे तेरे भैया को तो पता है…कुछ काम धंधा तो करते है नही…और मेरे बेचारे माँ बाप पता नही कब तक इस दुनिया मे है…देख मुझे ज़्यादा लालच नही है….अगर 5000-6000 भी मिल जाए तो क्या बुराई है…कम से कम कुछ तो घर के हालात सुधरेंगे…तुम अपने लिए और मैं अपने लिए कुछ तो पैसे जोड़ सकेंगे.

मैं सोचने लगी की, भाभी कह तो सही रही है….इंसान पैदा होते ही बुरा नही हो जाता…उसे बुरा बनाता है समाज और बुरा वक़्त…शायद भैया की वजह से ही भाभी का रवईया अभी तक मेरे साथ ठीक नही था…एक वजह और भी थी कि, भाभी ने मेरी दोबारा शादी करवाने के लिए बहुत कॉसिश की थी….पर मेरे अपने मन मे जो मर्दो के प्रति नफ़रत थी…उसके चलते शादी से मना कर दिया था….फिर शायद भाभी की ये सोच थी कि, मैं उन पर ज़बरदस्ती बोझ बन रही हूँ…

भाभी: क्या हुआ डॉली किस सोच मे डूबी हुई हो….?

मैं: कुछ नही भाभी…..मैं कॉसिश करूँगी कि आपको भी वहाँ जॉब मिल जाए….

भाभी: अर्रे इतनी भी जल्दी नही है…तुम्हारी भाभी इतनी भी लालची नही.. पहले तू खुद आपने आप को वहाँ पर बेस्ट टीचर साबित कर दे….ताकि वहाँ का प्रिन्सिपल तुम्हे मना ही ना कर सके….तब तक मैं भी कुछ प्रॅक्टीस कर लूँगी…

मैं: ठीक है भाभी….तो आज से आप शाम को जो छोटी क्लासस के बच्चे आते है. उनको ट्यूशन देना शुरू कर दो….आपको थोड़ा एक्सपीरियेन्स भी हो जाएगा…

भाभी: तूने ये बात ठीक कही डॉली…अच्छा अब तू खाना खा और आराम कर 5 बजे बच्चे भी आजाएँगे ...

आगे अगले अपडेट में...
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#3
Mast story hai maza aa giya next update ka wait rahega brother
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#4
अपडेट -3 

खाना खाने के बाद मैं अपने रूम मे आकर बेड पर लेट गयी...और लेटते ही, उस लड़के की वो हरकत याद आ गयी....वो लड़का मेरी 11थ क्लास का स्टूडेंट था...जिसने मुझे रास्ते मे रोका था...जब मेने अपने फेस को बेपरदा किया तो, अपनी टीचर को सामने देख कर यानि के मुझे देख कर डर गया था......



उसके चेहरे के हावभाव उस वक़्त जो थे...उन्हे सोचते ही, मेरे होंटो पर एक बार फिर मुस्कान फेल गये.....यूँ इधर उधर की बातें सोचते हुए, कब नींद आ गयी....पता नही चला..... 5 बजे प्यास लगने के कारण फिर से मेरी नींद खुली, और मैं पानी पीने के लिए रूम से निकल कर नीचे आ गयी.....


अभी मैं किचिन की तरफ जा ही रही थी, कि मुझे चेतन भैया के रूम से हल्की सी सिसकने की आवाज़ आई....उस आवाज़ को मैं झट से पहचान गयी...आवाज़ पायल भाभी की थी. पर वो इस समय भैया के साथ क्या कर रही थी....उत्सकता वश मेरे कदम खुद-ब खुद भैया के रूम की तरफ मूड गये...

डोर अंदर से बंद था....पर रूम के डोर के पास पहुँचते ही, भाभी की आवाज़ और सॉफ सुनाई देने लगी......ये इस समय भैया के रूम मे क्या हो रहा है...भाभी दबी हुई आवाज़ मे भैया को कुछ कह रही थी…मेने डोर पर कान लगा कर सुनने की कॉसिश की तो मुझे कुछ सॉफ सुनाई देने लगा…”देखो चेतन मैं तुम्हे कह रही हूँ…मेरे ऊपेर से हट जाओ….तुम्हे नशे ने इतना खोखला कर दिया है कि तुम दो मिनिट भी नही टिक पाते…और मुझे सुलगती हुई छोड़ कर बाहर अपने नशेड़ी दोस्तो के पास चले जाते हो….”



एक बार तो दिल किया अभी चीख कर दोनो को बाहर आने को कहूँ... पर नज़ाने क्यों मेरी हिम्मत जवाब दे गयी....मैं अपने कानो को डोर से सटा कर अंदर की बातें सुनने की कॉसिश करने लगी...



"आह क्या कर रहे हो छोड़ो मुझे ....दीदी घर पर है....



"तो क्या हुआ...वो अभी शाम तक नही उठने वाली....एक बार अपनी चुनमुनियाँ चोदने दे ना"

भैया की आवाज़ और ये लफ़्ज सुनते ही मेरे हाथ पैर काँपने लगे.....नज़ाने क्यों अंदर क्या हो रहा देखने की टीस मन मे उठने लगी....पर अंदर झाँकना ना मुमकिन था....मैं हड़बड़ा कर पीछे हटी, और वापिस जाने के लिए मूडी...तो फिर से एक बार भाभी की आवाज़ ने मेरे कदमो को रोक दिया...



मैं मूड कर फिर से डोर के साथ कान लगा कर खड़ी हो गयी..."आह चेतन नही प्लीज़ हट जाओ….देखो तुम्हारा ये औजार तो सच मैं किसी काम का नही रहा..” शायद भाभी भैया के चंगुल से छूटने की कॉसिश कर रही थी…”अभी दीदी घर पर है मुझे जाने दो ना...कहीं वो उठ गयी तो, 



भैया : अच्छा ठीक है लेकन कल मुझे तू अपनी चुनमुनियाँ देगी ना"



भाभी: हां अब तो पीछा छोड़ो मेरा…."




और फिर मुझे दोनो के खिलखिलाने की आवाज़ आई....मैं जल्दी से किचिन मे गयी....और पानी की बॉटल लेकर ऊपेर अपने रूम मे आ गयी....मुझे भैया से अब नफ़रत सी होने लगी थी...वो इंसान जो काम धंधा तो कुछ करता नही.....हमारे पैसो से अयाशी कर रहा है.....और मैं हूँ कि, खुद दिन रात मरती हूँ...


मैं गुस्से से भरी हुई अपने रूम मे आ गयी..........मेरा दिल कर रहा था कि मैं अभी जाकर भाई को धक्के देकर घर से बाहर निकल दूं. पर दुनिया और मरियादाओ के डर से कुछ नही कर सकती थी....मैं अपने रूम मे तो आ गयी थी....पर मेरे अंदर हलचल मची हुई थी....उम्र के 27 साल मे थी. और अभी तक सिर्फ़ सेक्स के बारे मे सुना ही था....और ना ही कभी दिल मे कभी कोई ऐसी हसरत ने जनम लिया था....मुझे तो अपने भाई की करतूतों ने मर्दो से नफ़रत करना सिखा दिया था.....और ना ही मैं चाहती थी...



जब कभी भी कोई रिस्तेदार मेरे लिए, कोई रिस्ता लेकर आता, तो एक अंजान सा डर मेरे दिमाग़ मे छा जाता....मैं नही चाहती थी कि, जो मेरी भाभी के साथ गुज़रा, वो मेरे साथ भी हो...जिसका पूरा ज़िमेदार मेरा भाई था.....उसने ना तो कभी अपनी पत्नी के सुख की परवाह की, और ना ही उसकी ज़रूरतों की, आख़िर वो भी कितने दिनो तक अपने माँ बाप के आगे हाथ जोड़ती रहे…और उनकी कमाई के पैसे खाती रहे. शाम को 5 बजे ट्यूशन के लिए बच्चे आ गये थे…भैया का पता नही कहाँ गये थे…उनको ट्यूशन देने के बाद मेने और भाभी ने रात का खाना तैयार किया….


जैसे तैसे रात हुई......रात का खाना खा कर ऊपेर अपने कमरे मे आई, तो एक बार फिर से मुझे मेरे इस कमरे की तन्हाई ने घेर लिया.....ना कोई दोस्त ना कोई साथी.....जिसके साथ कोई बात करती....तो सोचा कल के लेक्चर के लिए तैयारी कर लेती हूँ....और बुक उठा कर पढ़ने लगी......फिर भी रह-2 कर मन मे ख़याल आता कि, कहीं मैं अपने साथ ही तो बेइंसाफी तो नही कर रही....मैं क्यों अपनी हर ज़रूरत को ख़तम कर के जी रही हूँ.....जब कभी भी बाहर किसी प्रेमी जोड़े या बिहाए जोड़े को देखती.....तो मन मैं एक टीस सी उठती....

पर हार बार मन मार कर रह जाती...शायद ये सुख मेरे नसीब मे नही है....घड़ी की तरफ अचानक नज़र पड़ी, तो रात के 12 बज रहे थी....सुबह कॉलेज भी जाना है...चल सो जा.....डॉली...."मेने अपने आप से कहा. और बिस्तर पर लेट गयी..."



अगली सुबह मैं जब उठी, तो लेट हो रही थी.....तैयार होकर नीचे आई तो, भाभी नीचे खड़ी थी...मुझे देखते ही बोली.....



भाभी : दीदी नाश्ता तैयार है.....लगा दूं ?



मैं: नही आज मैं लेट हो रही हूँ....कॉलेज मैं ही कुछ खा लूँगी....



मैं तेज कदमो के साथ चलती हुई, मेन रोड की तरफ जाने लगी...डर था कि, कहीं बस ना निकल जाए......आज तो मानो जैसे बदल ज़मीन को छूने के लिए नीचे उतर आए हों...चारो तरफ काले बदल छाए हुए थे...आज हवा में ठंडक थी...जो बयान कर रही थी कि, कहीं बारिस हो रही है.और यहाँ भी होने वाली है....ये सोचते ही, मैं और तेज़ी से चलने लगी......पर मेरे तेज चलने का भी कोई फ़ायदा नही हुआ....एक दम से मानो जैसे बदल फॅट पड़े हो...


और तेज गड्गडाहट के साथ बारिश शुरू हो गयी... मैं जितना तेज चल सकती थी...उतनी तेज़ी से चलते हुए मेन रोड तक पहुँची....पर सर छुपाने के नाम पर वहाँ पर सिर्फ़ पेड़ ही था.....बस अभी तक नही अयेए थी....मैं पैड के नीचे खड़ी होकर बस का वेट करने लगी.....बारिश से से मेरा लाइट पिंक कलर का सूट एक दम भीग चुका था.......और मेरे बदन से इस कदर चिपक गया था...कि मेरेए ब्लॅक ब्रा और पैंटी उसमे से सॉफ झलकने लगी.......रोड पर से आते जाते मोहल्ले और आस पास के इलाक़े के लोग एक बार मेरी तरफ देखते और फिर अपनी नज़रें झुका कर आगे निकल जाते....
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#5
Bro super story and very nice likha tum ne.
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#6
Next update please
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#7
अपडेट -4 

भले ही माँ बाप इस दुनिया मे नही थे....पर आस पास के लोगो मे जो मेरी इमेज बनी हुई थी...शायद उसी के चलते मुझे इस हालत मे भी कोई नज़र उठा कर देखने की कॉसिश नही कर रहा था.....एक बार तो मुझे अपने आप पर फकर सा महसूस हुआ...पर अगले ही पल मे मेरे दिमाग़ मे अजीब -2 तरहा के ख़याल आने लगे.....क्या सच मे लोग मेरी इज़्ज़त करते हैं, और मुझसे डरते है...जो बारिश मे भीग रही एक जवान लड़की पर नज़र नही डालते....या फिर मुझ मे कोई कमी तो नही....



अभी मैं इन्ही ख़यालो मे खोई हुई थी......कि मुझे मेरे पास से कुछ चरमराने की आवाज़ सुनाई दी....जैसे ही मेने उस ओर देखा, तो वहाँ पर कोई लड़का खड़ा था......उसने कॉलेज की यूनिफॉर्म पहन रखी थी....पर टाइ और बेल्ट नही लगा रखी थी. जिससे पता चल सके कि वो किस कॉलेज का स्टूडेंट है…और कंधे पर बॅग लटका रखा था....वो साथ वाले पेड़ के नीचे खड़ा होकर शायद बस का वेट कर रहा था.....


लड़का हमारे मोहल्ले का नही था....और ना ही मेने उससे पहले यहाँ देखा था.....मैं अभी उसी की तरफ देख रही थी, कि उस लड़के ने मेरी तरफ देखा.....जैसे ही उसकी आँखें मेरी आँखों से मिली, मेने अपने चेहरे को दूसरी तरफ घुमा लिया.....और रोड के उस तरफ देखने लगी. जिस तरफ से बस आनी थी...

भले ही मेने उससे अपनी नज़रें हटा ली थी....पर नजाने क्यों मुझे अभी भी उसकी नज़रें अपनी बदन पर चूबती हुई महसूस हो रही थी....बारिश अभी भी लगातार जारी थी.....और उस तरफ टकटकी लगाए देख रही थी....पर मन मे यही सोच रही थी, कि वो अभी भी मेरी तरफ देख रहा है...नज़ाने क्यों मैं अपने आप को उस तरफ देखने से ना रोक पाई. और जब मेने उस लड़के की तरफ देखा, तो मेरे होश ऐसे उड़ गये.......मानो जैसे मेने किसी का कतल होते हुए देख लिया हो.....



वो लड़का अभी भी मेरी तरफ देख रहा था...हमारे बीच कोई 7-8 फुट का फाँसला था......और वो मेरे बदन को बड़ी अजीब सी नज़रों से देख रहा था.......और उसका राइट हॅंड उसकी पेंट की ज़िप के ऊपेर धीरे-2 रेंग रहा था......."इसकी इतनी हिम्मत कि मुझे ऐसे देखे" मैं मन ही मन कहा. दिल तो कर रहा था कि, अभी जाकर उसको गले से पकड़ दो चान्टे जड दूं.


एक कॉलेज जाने वाले स्टूडेंट की ये हिम्मत जो मुझे देख कर छि...आज तक कॉलेज के लड़को ने इतनी हिम्मत नही की थी…मेरे सख़्त रवैये की वजह से मेरे कॉलेज के स्टूडेंट्स ने भी आँख उठा कर मेरी तरफ नही देखा था....और ये तो.....मैने अभी उसकी तरफ कदम बढ़ाया ही था, कि मुझे बस का हॉर्न सुनाई दिया.....मैं वहीं रुक गयी...आज शायद इसकी किस्मत अच्छी थी....अगर बस ना आती तो पता नही मैं इसका क्या हाल करती......जैसे ही बस रुकी, मेने एक बार उसकी तरफ गुस्से से खा जाने वाली नज़रों से देखा और बस मे चढ़ गयी.....वैसे जब मैं उसकी तरफ बढ़ी थी..तो वो भी थोड़ा घबरा गया था....

ये सोच कर मेने अपने मन को तसल्ली दी....ओह्ह नो आज भी बस मे बहुत भीड़ थी....खड़े होने को भी मुस्किल था...खैर किसी तरह मेने अपने खड़े होने के लिए जगह बनाई....और मेरे बस के डोर की तरफ देखा..वो लड़का भी बस मे चढ़ चुका था....और वो बिल्कुल मेरे पीछे खड़ा था....बस चल पड़ी....थोडी देर बाद मेने एक बार अपनी गर्दन को थोड़ा सा घुमा कर पीछे की तरफ देखा..वो मुझसे थोड़ा सा फाँसला बनाए हुए खड़ा था....मैने सोचा अभी जो थोड़ी देर पहले मैने कदम उठाया था......वो सही था....



खैर जैसे ही अगला स्टॉप आया....बस एक दम से और भर गयी.....बस के दोनो डोर से लोग बस मे चढ़ रहे थे...और मुझे ना चाहते हुए भी और पीछे हटना पड़ा....और अगले ही पल उसकी छाती मेरी पीठ पर आ लगी..हाइट मे वो मेरे से 1-2 इंच कम ही था....शायद अभी अपनी ग्रोत एअर मे था....आज तक मुझे ऐसी सिचुयेशन का सामना नही करना पड़ा था.....उसकी चेस्ट मेरी पीठ से रगड़ खा रही थी....और जैसे ही बस चली, बस मे खड़े लोग अपने आप को अड्जस्ट करने लगे.....


और हम दोनो एक दूसरे से और चिपक गये......मेरे आगे एक औरत खड़ी थी....बस मे आते जाते हुए एक दो बार उससे बात हुई थी....वो सरकारी बॅंक मे एंप्लायी थी....और मुझे वो काफ़ी खुले विचारो वाली लगती थी….मेरा सूट बारिश के पानी से एक दम भीगा हुआ मेरे बदन से चिपका हुआ था…जैसे ही मुझे अपने भीगे हुए सलवार कमीज़ की याद आई तो मैं एक दम से घबरा गयी….वो लड़का ठीक मेरे पीछे खड़ा था. और उसे कमीज़ के अंदर से मेरी ब्लॅक ब्रा ज़रूर नज़र आ रही होगी….”ये सोचते ही मेरा बदन एक दम से कांप गया….


तभी उसने अपना हाथ उठा कर सीट के हॅंडेल पर रख दिया….जगह बहुत तंग थी. इसलिए उस लड़के का हाथ मेरी राइट जाँघ पर साइड से रगड़ खाने लगा….वो ये सब जान बूझ कर कर रहा था…मेने उसकी तरफ फेस घुमा कर देखा तो वो बाहर देखने की आक्टिंग करते हुए अपने सर को झुकाए हुए खड़ा था….”बदतामीज…..” मेने मन ही मन उसे गाली दी…और फिर से आगे की तरफ देखने लगी…”तभी मुझे अपने चुतड़ों की दरार मे कुछ हार्ड और गरम सा अहसास हुआ, मेरे बदन मे मानो जैसे करेंट दौड़ गया हो….पूरे बदन मे झुरजुरी सी दौड़ गयी….



पर दिल मे मर्दो के लिए बेपानाह नफ़रत ने मुझे और भड़का दिया…मेने गुस्से से पीछे मूड कर उसकी तरफ देखा…तो वो सामने की तरफ देख रहा था..मेने उसकी ओर देखते हुए गुस्से से कहा…” पीछे होकर खड़े हो जाओ…..” मेने अपनी तिरछी नज़रों से पीछे नीचे की और देखा तो, उसका बदन नीचे से मेरे चुतड़ों पर चिपका हुआ था. और अगले ही पल मेरी रूह ये सोच कर कांप गयी कि, उसका बाबूराव मेरे चुतड़ों की दरार मे चुभ रहा है…..”पीछे कहाँ जगह है…आपको दिखाई दे रही है….” उसने हॉंसला दिखाते हुए कहा…मैं उसकी बात सुन कर चुप हो गयी….


और आगे की ओर देखने लगी….अब मुझे उसका बाबूराव और हार्ड होता हुआ महसूस हो रहा था…और मुझे अपनी गान्ड के छेद पर अजीब सी सरसराहट महसूस हो रही थी…मेरे बदन का रोम-2 थरथराने लगा था….मे आँखे बंद होती जा रही थी…तभी बस एक बार फिर रुकी….इस बार बस एक कॉलेज के बाहर रुकी थी….बस मे कॉलेज के कई स्टूडेंट्स थे..जो वहाँ पर उतरे…बस मे थोड़ी सी जगह बनी..मेने फिर से उसकी तरफ गुस्से से देखा तो, उसने अपना सर झटका…जैसे मेरा मज़ाक उड़ा रहा हो…

और फिर उसने मुझे कंधे से पकड़ कर साइड मे किया, और खुद आगे निकल कर मेरे से आगे खड़ा हो गया…”खुश” उसने चिढ़ाने वाली स्माइल के साथ कहा….कुछ लोग उतरे तो कुछ लोग और चढ़ भी गये…बस फिर से ठूंस कर भर गयी….उस लड़के ने फिर से एक बार मेरी तरफ देखा और फिर सीधा होकर खड़ा हो गया…”हद है यार डॉली” मैने मन ही मन अपने आप को कोसा….और सोचने लगी कि, शायद मेने उस लड़के के साथ सही नही किया…कई बार वक़्त और हालात ही ऐसे हो जाते है कि, सामने वाले की ग़लती ना होने पर भी वो आपको कसूरवार लगने लगता है..


मुझे अपने आप मे बहुत गिल्टी फील हो रहा था…कि उस बेचारे का क्या दोष….बस मे भीड़ ही इतनी ज़्यादा है, कि हर कोई एक दूसरे से मजबूरन सटा हुआ था…मैं अभी यही सोच रही थी कि, मेरी 11थ क्लास की स्टूडेंट ललिता जिसका जिकर मेने शुरू मे इंट्रो मे किया था….वो मेरे आगे आकर खड़ी हो गयी…मैं सीधी खड़ी थी..और ललिता उस लड़के साथ सीट के हॅंडेल को पकड़ कर खड़ी थी….

ललिता: गुड मॉर्निंग मॅम….



मैं: गुड मॉर्निंग ललिता हाउ आर यू…?



ललिता: फाइन…..


मैं: अर्रे तुम तो भीग गये हो…

इसके आगे अगले अपडेट में ....
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#8
Very nice update bro
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#9
Mast super story... please update more
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#10
अपडेट -5 

ललिता: (मुस्कुराते हुए) भीग तो आप भी गयी हो…


ललिता ने वाइट कलर की चेक वाली शर्ट पहनी हुई थी…और नीचे ग्रे कलर की स्कर्ट….जो कि हमारे कॉलेज मे लड़कियों की यूनिफॉर्म थी…

मेरा कॉलेज मे दूसरा ही दिन था….इसलिए ललिता मुझसे ज़्यादा फ्रीली बात नही कर रही थी…और ऊपेर से मेरा सख़्त रवैया….जिसके कारण मेरे स्टूडेंट्स ने मुझसे बात करने से परहेज करते थे……बस फिर से चल पड़ी थी….ललिता का फेस विंडोस की तरफ था. जबकि वो लड़का अब ललिता के पीछे साइड मे खड़ा था….थोड़ी देर बाद मुझे लगा कि ललिता थोड़ा अनकनफेर्टबल महसूस कर रही है….जब मेने ध्यान से देखा तो एक बार फिर से मे गुस्से अपने दाँत पीसने लगी….

वो लड़का ललिता के राइट हिप्स पर हाथ रखे खड़ा था…और उसकी पेंट मे एक बड़ा सा उभार बना हुआ था….जो ललिता की स्कर्ट के ऊपेर से उसकी चुतड़ों की दरार मे धंसा हुआ था…और ललिता बेबस लड़की की तरह सर झुकाए खड़ी थी…उसने एक बार मेरी तरफ देखा और फिर अपनी नज़रें चुरा ली….पर थोड़ी ही देर मे हमारा कॉलेज आ गया था. मैं और ललिता पीछे वाले डोर से नीचे उतर आई….और वो लड़का आगे वाले डोर से उतर कर हमारे पीछे कॉलेज के अंदर आ गया…

मुझे उस पर बेहद गुस्सा आ रहा था…मैं जैसा पहले सोच रही थी…वो लड़का था ही वैसा….जब मेने उसे हम दोनो के पीछे आते हुए देखा तो मुझसे रहा ना गया. मैं जैसे ही उसकी तरफ मूडी तो ललिता ने मेरा हाथ पकड़ लिया…”रहने दीजिए मॅम…आप क्यों उस बंदर के मूह लग रही हो….” मेने ललिता की तरफ देखा तो उसने नज़रें झुका कर मेरा हाथ छोड़ दिया….मैं उस लड़के की तरफ मूडी….जो ठीक मेरे पास आ चुका था…”क्या चाहिए तुम्हे…” मेने गुस्से से उसकी तरफ देखते हुए कहा….



मैं: ललिता तुम अपनी क्लास मे जाओ…(मेने ललिता की ओर देख कर कहा तो ललिता अपनी क्लास मे चली गयी) हां अब बोलो हमारा पीछा क्यों कर रहे हो….इतनी मार मारूँगी ना कि आगे से ये सीख जाओगे कि लड़कियों के साथ कैसे पेश आते है…



लड़का: क्यों ऐसा क्या कर दिया मेने जो तुम मुझे मारोगी….



मैं: देखो स्मार्ट बनने के कॉसिश मत करो…और बताओ कि तुम यहा हमारे पीछे क्यों आ रहे हो…या फिर मैं सेक्यूरिटी वालो को बुलाऊ…..


लड़का: अब स्टूडेंट्स कॉलेज मे क्यों आते है…पढ़ने के लिए ना….तो मेने भी सोचा थोड़ा पढ़ लेता हूँ…इसलिए कॉलेज आ गया….

मैं: तुम इस कॉलेज मे पढ़ते हो….अच्छा कॉन से क्लास मे हो….?



लड़का: 11थ क्लास मे…..



मैं: अच्छा मेने तो तुम्हे कल नही देखा कॉलेज….और तुम्हारी टाइ और बेल्ट कहाँ पर है.


लड़का: वो मैं…

अभी वो लड़का बोलने ही वाला था कि, प्रिन्सिपल हेमंत सर हमारे पास आ गये…. “तो राज तुम कॉलेज पहुँच गये हां….जाओ रिसेप्षन से अपने लिए टाइ और बेल्ट ले लो. मेने वहाँ बोल रखा है….और भी किसी चीज़ की ज़रूरत पड़े तो मेरे ऑफीस मे आ जाना.



राज: अच्छा अंकल मैं चलता हूँ…



जय सर: अंकल घर पर हां…कॉलेज मे सर….



राज: ओके सर….



और राज ने एक बार मुझे घूर कर देखा और फिर रिसेप्षन की तरफ चला गया…”सर आप इस लड़के को जानते है…” मेने सर की ओर सवालिया नज़रों से देखते हुए कहा. 

“हां ये राज है मेरे दोस्त का बेटा है…मेरे साथ मेरे ही घर मे रह रहा है आज कल इसके मम्मी पापा अब्रॉड गये हुए है…पिछले 4 साल से वही जॉब कर रहे थे. पहले अपने दादी के पास रहता था….पर दादी का देहांत हो गया…कल इसकी अपने कॉलेज मे अड्मिशन करवाई है….पर तुम क्यों पूछ रही हो….”



मैं: नही वो बस ऐसे ही टाइ और बेल्ट नही लगाई थी…तो उससे पूछ रही थी…


मेने और कोई सवाल नही किया और स्टाफ रूम की तरफ चल पड़ी….”मेरा पहला पीरियड 11थ क्लास मे ही था…जैसे ही मैं क्लास मे दाखिल हुई, तो मेने देखा कि वो लड़का जिसका नाम राज है…वो ललिता के ठीक पीछे वाले बेंच पर बैठा हुआ था….और ललिता का चेहरा ये बता रहा था कि, वो उसकी माजूदगी मे खुद को सहज महसूस नही कर रही थी….मेने क्लास को पढ़ाना शुरू कर दिया…मैं बुक मे देख कर बच्चों को कुछ पढ़ा रही थी कि, तभी मुझे ऐसा लगा कि, कोई फुसफुसा रहा हो…

जब मेने बुक से नज़र हटा कर देखा तो ललिता पीछे की तरफ फेस किए हुए, राज से कुछ कह रही थी…..फिर उसने अपना फेस आगे कर लिया….और उसके चेहरे पर परेशानी के भाव सॉफ नज़र आ रहे थे\



…”राज क्या प्राब्लम है तुम्हे….ढंग से बैठ नही सकते क्या….” मेने उँची आवाज़ मे गुस्से से भरे हुए लहजे मे कहा…



राज: ढंग से ही तो बैठा हूँ…मेने क्या किया…?



मैं: ललिता क्या कर रहा था ये…..



ललिता: एक दम से चोन्कते हुए) जी क क कुछ नही मॅम….



और ललिता सर झुका कर बैठ गयी…अब अगर ललिता कुछ नही बोली तो मैं उसका क्या कर सकती थी…मैं चुप होकर पढ़ाने लगी…..हाफ टाइम चल रहा था….मैं बाहर बने पार्क मे टहल रही थी कि, तभी मेरी नज़र ललिता पर पड़ी….वो एक दम मुरझाई सी , नीचे घास पर बैठी थी….एक दम अकेली….मैं उसके साथ जाकर बैठ गयी…



मैं: क्या हुआ ललिता परेशान दिखाई दे रही हो….?



ललिता: नही कुछ भी नही ऐसे ही…..



मैं: मुझे पता है तुम उस लड़के की वजह से परेशान हो ना…पर ये सब तुम्हारी वजह से है…तुम उसकी ग़लतियों को छुपा कर और नज़रअंदाज़ करके उसको और बढ़ावा दे रही हो. देखना एक दिन तुमको इस कॉलेज मे पढ़ना भी मुस्किल कर देगा…



ललिता: छोड़ो ना मॅम वो है ही ऐसा….(ललिता के मूह से एक दम और बेखायाली से निकल गया था…)


मैं: वो ऐसा ही है…मतलब तुम उसको पहले से जानती हो….

मेरी बात सुन कर ललिता के चेहरे का रंग एक दम से उड़ गया….उसने एक बार मेरी तरफ देखा और फिर अपनी नज़रें झुका ली….



मैं: ललिता तुम उसे पहले से जानती हो ना….?



ललिता: (सर झुकाए हुए हाँ मे सर हिलाते हुए) जी मॅम….



मैं: तुम्हारा उसके साथ अफेर है…?



ललिता: नही मॅम ऐसे कोई बात नही है…..



मैं: फिर तुम उसे कैसे जानती हो…उसकी तो आज ही अड्मिशन हुई इस कॉलेज मे…



ललिता कभी मेरी ओर देखती तो कभी नीचे घास की तरफ उसके हाथ कांप रहे थे.



मैं: ललिता बताओ कि तुम उसे कैसे जानती हो…देखो तुम अगर नही बताओगी तो मैं तुम्हारी हेल्प कैसे कर पाउन्गी…देखो तुम मुझे अपनी फ्रेंड समझो…और तुम्हे जो भी परेशानी है….वो मुझे बताओ….फिर देखना कि मैं उसे कैसे सीधा करती हूँ….



ललिता: नही मॅम आप कुछ नही करेंगी…और ना ही आप उससे कुछ कहेंगी…



मैं: पर क्यों….? तुम इतना डर क्यों रही हो…मुझे बताओ क्या हुआ..उसने तुम्हारे साथ कोई बदतमीज़ी तो नही की….


ललिता मेरी बात सुन कर ऐसी चुप हुई, जैसे उसने कोई साँप देख लिया हो…” ललिता बोल क्यों नही रही….बता ना….”

ललिता: मॅम पहले आप प्रॉमिस करो कि ये बात आप किसी से शेर नही करेंगी…और ना ही उस राज को कुछ कहेंगी…..क्योंकि मैं नही चाहती कि, किसी बात को लेकर हंगामा हो…और मेरी बदनामी हो….आप मेरे पापा को नही जानती….वो मुझे 10थ के बाद पढ़ाना भी नही चाहते थे….और अगर उन्हे ये पता चला तो वो मेरा कॉलेज भी बंद करवा देंगे…



मैं: ओके ओके ललिता रिलॅक्स हो जाओ….मैं प्रॉमिस करती हूँ कि तुम्हारी बात किसी से शेर नही करूँगी….



ललिता: ये लास्ट जनवरी की बात है…..मैं अपने मामी की बेटी की शादी मे गयी हुई थी. कसोली वहाँ पर ये भी आया हुआ था….



मैं: ये तुम्हारी मामा के घर कैसे पहुँच गया….



ललिता: ये मामा के बेटे का फ्रेंड है….10थ तक दोनो एक हॉस्टिल मे रह कर पढ़ते थे…



मैं: ओह्ह अच्छा फिर…..


ललिता: जिस दिन दीदी की शादी थी…उससे एक दिन पहले की बात है….राज वहाँ पर बहाने -2 से मुझसे बात करने की कॉसिश कर रहा था…पर मैं इससे दूर चली जाती. शादी गाओं मे थी….इसलिए ज़्यादा इंतज़ाम नही किए हुए थे…मामा जी का घर बहुत बड़ा था. उनके घर के पीछे ही उनके खेत थे….जहाँ पर उनका फलो का बाग था….
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#11
Please update more
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#12
Nice story really wonderful storyline . Please continue tiil end please please
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#13
अपडेट 6

मैं घर के पीछे बाग मे टहल रही थी….घने पैड थे चारो तरफ….वहाँ पर घर का कोई भी इंसान नही था….और ना ही बाहर…तभी एक दम राज मेरे सामने आ गया….मैं उसे देख कर डर गयी….और घर की तरफ जाने लगी, तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया…..जब मेने उससे अपना हाथ छोड़ने के लिए कहा तो, वो कहने लगा कि उसे मुझसे कुछ बात करनी है….मेने कहा कहो जो भी कहना है….पर मेरा हाथ छोड़ दो. पर मॅम उसने मेरा हाथ नही छोड़ा…..और कहने लगा कि, वो मुझसे फ्रेंडशिप करना चाहता है….मैने उसे सॉफ इनकार कर दिया…तो कहने लगा कि वो मेरे बिना जी नही पाएगा. जब से मेने तुम्हे देखा है, उसी पल से मैं तुम्हे चाहने लगा हूँ…..


मैं: फिर क्या हुआ ललिता…..


ललिता: मेने उसे सॉफ इनकार कर दिया….और ये भी बताया कि मेरे पापा बहुत ज़्यादा रिस्ट्रिक्ट है…अगर उन्हे पता चला तो वो मुझे जान से मार देंगे….पर वो फिर भी नही माना…..और उसने मुझे धक्का देकर पेड़ के साथ लगा दिया और फिर उसने….

मैं: हां-2 ललिता बोलो….फिर उसने क्या किया…?

ललिता: फिर उसने मुझे ज़बरदस्ती किस किया…लिप्स पर…..मेने बहुत बार अपने लिप्स को अलग किया….पर हर बार वो ज़बरदस्ती किस करने लगता….मुझे बहुत डर लग रहा था. कि कही कोई मुझे ढूंढता हुआ इधर ना आ जाए….मैने उसे कई बार मना किया…पर वो मुझे 15 मिनट तक किस करता रहा….

जब मैं घर आई तो मैं बहुत डर गयी थी मॅम…मेरे हाथ पैर काँपने लगे थे. फिर उसने मुझे शादी मे बहुत तंग किया…मुझे जब अकेला देखता तो मुझे ज़बरदस्ती टच करता…..मेरे प्राइवेट पार्ट्स भी….



मैं: ललिता तुम फिकर ना करो….मैं उस हरामजादे को देख लूँगी…



ललिता: नही नही मिस आप कुछ ना करना….मैं संभाल लूँगी….आप सच मे मेरे पापा को नही जानती…वो कोई बात नही सुनेगे…और मुझे कॉलेज से घर मे बैठा लेंगे..



मैं ललिता की बात सुन कर एक दम से परेशान हो गयी थी…मुझे समझ मे नही आ रहा था कि, मैं ललिता की कैसे हेल्प करूँ…ललिता का डर सिर्फ़ राज की वजह से नही था. उसके पापा की तरफ से भी था…खैर मेने सोच लिया था कि, मैं ललिता की मदद ज़रूर करूँगी, पर कैसे ये मुझे भी नही पता था….दिन ब दिन बीत रहे थे…मुझे कॉलेज जाय्न किए हुए, 15 दिन हो चुके थे….



ललिता को परेशान देख कर मैं भी परेशान हो जाती थी…मैं चाहते हुए भी उसकी कोई हेल्प नही कर पा रही थी….पर एक दिन जय सर ने कॉलेज मे छुट्टी के बाद टीचर्स मीटिंग रखी. वजह ये थी कि, इस साल हमारे कॉलेज मे बहुत ज़्यादा न्यू ऐड्मीशन हुई थी….ज़्यादा बच्चों को हॅंडेल करना मुस्किल हो रहा था….उसी बात पर डिसक्यूसषन होना था…सब अपनी अपनी राय दे रहे थे…पर मेरा ध्यान ललिता मे था…



जय सर:- मिस डॉली…..आपका क्या विचार है….


मैं: जी वो मैं सोच रही थी कि, अब हमे हर क्लास के दो-2 सेक्षन कर देने चाहिए. जिससे बच्चों को हॅंडल करने मे आसानी हो….

जय सर,:- वो तो मिस्टर, राजेश भी यही कह रहे है….पर एक दम से सेक्षन मे क्लास को डिवाइड नही कर सकते….ऐसे तो टीचर्स कम पड़ जाएँगे….और नये टीचर को ढूँढने और रखने मे बहुत टाइम लग जाएगा….



मैं: सर, मेरे ख़याल से पहले हमे, +1, +2 के क्लासस के सेक्षन्स को अलग कर देना चाहिए, लड़कियों के लिए अलग सेक्षन और लड़को के लिए अलग….फिर उसके बाद सबसे छोटी क्लासस के…. बाकी के क्लासस के सेक्षन हम टाइम ब टाइम बनाते रहेंगे…और धीरे-2 नये टीचर्स भी मिलते रहेंगे…..



जय सर: दट’स आ गुड आइडिया…तो ठीक आप सभी टीचर्स को किसी बात पर कुछ कहना है…..



उसके बाद जय सर को सबने अपने सहमति जता दी….मैं बहुत खुस थी कि, मेरे इस उठाए कदम से ललिता को कुछ तो राहत मिलेगी..कम से कम क्लास मे वो अपनी स्टडी पर अच्छे से ध्यान दे पाएगी….


अगले वीक तक 4 क्लासस को डिवाइड करके दो-2 सेक्षन बना दिए गये….मुझे इसमे एक और फ़ायदा ये हुआ कि, टीचर्स की डिमॅंड बढ़ने से नये जॉब कॉलेज मे खाली थे. मैने एक दिन जय सर, से भाभी के बारे मे बात की, तो वो झट से मान गये….और भाभी को अगले ही दिन इंटरव्यू मे बुला लिया…मेरा रेफार्र्न्स होने के कारण उन्हे जॉब भी मिल गयी….6000 सॅलरी से भाभी भी बेहद खुश थी….कुछ ना होने से तो अच्छा ही था…धीरे टाइम बीत रहा था…पर राज अभी भी अपनी हरकतों से बाज़ नही आ रहा था. 

कॉलेज आते हुए वो ललिता को बस मे किसी ना किसी बहाने से तंग करता रहता था…पर मेने एक बात नोटीस की थी…कि अब ललिता उसकी हरकतों से उतनी परेशान नही दिखाई देती थी….मेने सोचा शायद मेरा वहेम हो….मई का लास्ट चल रहा था…और अगले 1 जून से कॉलेज मे सम्मर वकेशन्स शुरू हो रही थी…और दूसरी तरफ भैया अब और ज़्यादा नशा करने लगे थे….घर पर हर समय लड़ाई झगड़ा करते रहते थी…पैसो के लिए झगड़ा होना हमारे घर मे आम से बात हो गयी थी….


एक दिन मैं शाम को सो कर उठी थी….तो मुझे भैया और भाभी के लड़ने के आवाज़ सुनाई दी….मैं जैसे ही रूम से बाहर आई तो भैया भाभी के बालो को पकड़ कर खेंचते हुए अंदर ले जा रहे थे…और बहुत गंदी-2 गालियाँ बक रहे थे…” चल साली तुझे दिखाता हूँ….कि अपने पति की इज़्ज़त कैसे की जाती है….” भैया ने भाभी के बालो से पकड़ कर खेंचते हुए कहा….मुझसे ये सब देखा ना गया…और मैं बीच मे आ गयी…और भाभी को भैया से छुड़वाने लगी…” भैया क्या कर रहे हो… छोड़ो भाभी को….क्यों गली मोहल्ले के लोगो को तमाशा लगा कर दिखा रहे हो…
भैया: डॉली तू हट जा बीच मे से….आज इसे बताता हूँ कि पति के साथ कैसे पेश आया जाता है….



मैं: नही भैया मैं नही हटने वाली छोड़ो भाभी को….


मेने भैया के हाथो को पकड़ कर भाभी को छुड़वाने की कोशिस करते हुए कहा…तो भैया ने मुझे एक दम से धक्का दे दिया…मैं अपने आप को संभाल नही पाई, और नीचे गिर गयी…भैया भाभी को रूम मे ले गये…और इससे पहले कि खड़ी होकर कुछ कर पाती ….भैया ने डोर अंदर से लॉक कर दिया….मैं डोर को पीटती रही..पर भैया ने डोर नही खोला…अंदर से भाभी के सिसकने और रोने की आवाज़ आती रही. मैं बेबस से वही खड़ी होकर भैया भैया पुकारती रही….और रोने लगी…करीब 3 मिनिट बाद डोर खुला और भैया रूम से बाहर निकल कर घर से बाहर चले गये…

मैं जलदी से भाभी के रूम मे भागी, तो सामने का नज़ारा देख मेरे होश उड़ गये. भाभी ज़मीन पर बैठी हुई थी…और उनकी सलवार और पेंटी उनकी एक टाँग मे अटकी हुई थी…भाभी अपनी पीठ दीवार से टकाए हुए, सूबक रही थी….मैने जल्दी से भाभी को पकड़ कर बेड पर बैठा दिया….”भाभी मैं मैं पानी लेकर आती हूँ….” भाभी ने अपनी पेंटी और सलवार को पकड़ा जो, उनके लेफ्ट टाँग मे लटक रही थी, और उसे पहनते हुए बोली….”रहने दो दीदी…मैं ठीक हूँ…साला हिजड़ा है तुम्हारा भाई….” भाभी ने सलवार और पेंटी पहनी और अपने आँसू सॉफ करते हुए बोली…



भाभी: आए डॉली तू क्यों रो रही है….ये सब आज पहली बार तो नही हुआ हमारे घर पर…(तभी बाहर से हमारे पडोस मे रहने वाला लड़का भागता हुआ आया….)


लड़का: दीदी दीदी वो चेतन अंकल का बाहर रोड पर आक्सिडेंट हो गया है….
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#14
अपडेट 7

उस लड़के की बात सुन कर हमारे पैरों तले से ज़मीन खिसक गयी…एक पल के लिए मेने भाभी की तरफ देखा….और फिर हम दोनो बिना दुपट्टा लिए, घर से बाहर की तरफ भागी….जब बाहर रोड पर पहुँचे तो वहाँ पर लोगो की बहुत ज़्यादा भीड़ थी…हम भीड़ को चीरते हुए आगे बढ़े तो, देखा भैया ट्रक के अगले टाइयर के थोड़ा सा पीछे पड़े तड़प रहे थे…ट्रक का टाइयर उनकी टाँगो के ऊपेर से निकल गया था..

और उनकी दोनो टांगे बुरी तरह पिस चुकी थी…तभी पास के ही हॉस्पिटल की आंब्युलेन्स वहाँ आ गये…और हम वहाँ से भैया को लेकर हॉस्पिटल मे पहुँचे…पूरी रात हम हॉस्पिटल मे ही रहे…सुबह हमे पता चला कि भैया की दोनो टाँगो को काटना पड़ा था..नही तो उन्हे बचाना मुस्किल था….वैसे भी उनके टाँगे बेकार हो गयी थी… सुबह पोलीस भी आ गयी…इनस्पेक्टर ने मुझे बताया कि, उन्होने ट्रक ड्राइवर को पकड़ा हुआ है…उन्होने भैया का स्टेट्मेंट पहले से ही ले लिया था…

इनस्पेक्टर ने बताया कि, वो ड्राइवर जिस ट्रांसपोर्ट का ट्रक चला रहा था..वो ट्रांसपोर्टेर हम से मिलना चाहता था…हम सब हॉस्पिटल के एक खाली रूम मे इकट्ठा हुए, तो तो ट्रांसपोर्टेर ने अपने ड्राइवर की ग़लती के लिए हम से माफी माँगी….इनस्पेक्टर ने बताया कि आपका भाई नशे मे था…और ये आक्सिडेंट उसी की ग़लती वजह से हुआ है…इसलिए आप इस आक्सिडेंट पर कोई केस फाइल ना करे….और बदले मे ट्रांसपोर्ट के मालिक हमे 20 लाख रुपये देने के लिए तैयार है….

मेने और भाभी ने इस बारे मे बहुत सोचा..अगर हम केस भी करते तो हमारे हाथ कुछ ना लगता….उसी दिन हम ने फैंसला कर लिया था कि, हम ये केस रज़ामंदी के साथ बंद कर देंगे…भाभी के मम्मी पापा ने भी हमें यही सलाह दी….ट्रांसपोर्ट के मालिक ने हमे उसी शाम 20 लाख रुपये दे दिए….और हमने केस को क्लोज़ करवा दिया.. उस दिन सनडे था…भैया को अभी 7 दिन और हॉस्पिटल मे रखना था….इसलिए भाभी अगले दिन कॉलेज नही जा पे….मेने जय सर को जब ये बात बताई तो उन्होने कहा कि, तुम घर जाओ…तुम्हारी भाभी और भैया को इस समय तुम्हारी ज़रूरत है….



और किसी भी तरह की मदद की ज़रूरत हो तो मुझे कहना….मैं वहाँ से सीधा हॉस्पिटल आ गयी…वहाँ पर भाभी की मम्मी पापा और भाई भी थे…मेने भाभी से जाकर भैया का हाल चाल पूछा….तो उन्होने कहा कि भैया अभी पहले से काफ़ी बेहतर है…तभी भाभी के पापा ने मुझसे कहा…..”डॉली बेटा हमने तुमसे एक ज़रूरी बात करनी है….” 



मैं: जी कहिए ना….



अंकल: यहाँ नही बेटा चलो कॅंटीन मे चलते है….वहाँ पर आराम से बैठ कर बात करेंगे…और तुम्हारी भाभी ने सुबह से कुछ नही खाया है….वो भी कुछ खा लेगी.


मैं: ठीक है अंकल जैसे आप कहे़...

हम सब वहाँ से कॅंटीन मे आ गये….वहाँ कॅंटीन मे भाभी के लिए समोसे मँगवाए और हम सब ने चाइ ऑर्डर की…”देखो डॉली बेटा….अब तक जो हम से बन पड़ा हम ने अपनी बेटी के लिए किया…पर हमारी भी कुछ लिमिट्स है…देखो इसको ग़लत तरीके से मत लेना….पर मैं यहाँ पर तुम्हे और तुम्हारी भाभी दोनो को सॉफ-2 बता रहा हूँ कि, जो पैसे कल तुम दोनो को मिले है…उनमे से कुछ पैसो से अपने पुराने वाले घर को तुड़वा कर ठीक ढंग का नया मकान बना लो…चाहे छोटा सा ही…पर बना लो…और बाकी जो पैसे बचेंगे….मेरे ख़याल से कम से कम 6 लाख तुम्हारे घर और बाकी के समान को खरीदने मे लग जाएँगे….बाकी 14 लाख तुम दोनो अपने-2 बॅंक अकाउंट मे जमा करवा लो….


तुम भी मेरे बेटी जैसी हो….इसलिए मैं तुम्हारी साथ कोई नाइंसाफी नही कर सकता. अपने भाई की एक ना सुनना…अगर उसके हाथ ये पैसे लगे तो वो बेड पर लेटा लेटा ही सब कुछ उजाड़ देगा…” मैं अंकल की बात से एक दम सहमत थी….आख़िर अब हमारा इस दुनिया मे कॉन था…जो ज़रूरत के वक़्त हमे सहारा देता….अगले ही दिन मैने और भाभी ने अपने-2 बॅंक अकाउंट मे 7-7 लाख रुपये जमा करवा दिए…कॉलेज से मेरे दो ऑफ चुके थे. भाभी तो अभी कॉलेज नही जा सकती थी…

जय सर ने भाभी को 7 दिन की लीव दे दी थी….क्योंकि 7 दिन बाद वैसे भी कॉलेज सम्मर वकेशन पर क्लोज़ होने वाला था एक महीने के लिए…..



28 मे जब मैं कॉलेज पहुँची, तो मुझे पता चला कि, +1 और +2 के क्लासस को डॅल्लूसियी हिल स्टेशन पर 1 जून से लेकर 4 जून तक टूर पर लेकर जा रहे थे. जय सर ने मुझे साथ चलने के लिए कहा…क्योंकि मैं उन क्लासस को पढ़ाती थी..साथ जय सर और एक जेंट्स टीचर और दो लॅडीस टीचर्स भी चल रहे थे….


मेने जय सर को मना किया…पर मुझे जय सर ने कहा कि, तुम्हे साथ मैं जाना ही होगा…मुझे सर की बात माननी पड़ी….सर ने दो एसी बसों का इंतज़ाम किया हुआ था. हम सब 1 जून को सुबह 9 बजे कॉलेज के ग्राउंड मे इकट्ठा हुए, सब स्टूडेंट्स और टीचर जो साथ चल रहे थे…बेहद खुस थी….धीरे-2 सभी स्टूडेंट्स बस मे चढ़ने लगे…मैं भी बस मे चढ़ि…आगे वाली सीट भर चुकी थी…पर लास्ट वाले कुछ रौ खाली थी….मैं बस के पीछे की तरफ बढ़ी…तो मेरी नज़र राज पर पड़ी. और अगले ही पल मैं ये देख कर गुस्से से भर गयी कि, वो ललिता के साथ बैठा हुआ था.. 

बस के एक तरफ तीन सीट्स होती है तो दूसरी दो सीट्स होती…दोनो दो सीट्स वाली तरफ बैठे हुए थे….मैने पीछे बैठ कर ललिता को आवाज़ लगाई…”ललिता इधर आजा…इधर जगह खाली है…” पर मेरे पीछे भी कुछ और स्टूडेंट्स चढ़ रहे थी…हमारे कॉलेज की हिन्दी की टीचर सुनीता मेरे पास आकर बैठ गयी….



सुनीता: अर्रे वहाँ बैठे रहने दो ना उसे….मैं तुम्हारे साथ बैठती हूँ…गप्पें मारेंगे सारे रास्ते….



मैं: ललिता आजा ना….


मेने देखा कि राज ने धीरे से ललिता के कान मे कुछ कहा…ललिता ने एक बार मेरी तरफ देखा और थोड़े उदास से चेहरे से बोली…”मैं यही ठीक हूँ मॅम….” मुझे उसकी ये बात सुन कर बहुत हैरानी हुई…खैर बस चली पड़ी…बहुत लंबा सफ़र था..हम ने बीच मे दो बार ब्रेक लिया….और हम दोपहर को 2 बजे डलहौजि पहुँचे …

जय सर, ने वहाँ पर एक होटेल पूरा का बूरा बुक करवा रख था…होटेल मे 40 रूम थे….हम 5 टीचर्स के लिए एक-2 रूम और 120 स्टूडेंट्स को बाकी के 35 रूम शेर करने थे….लड़कियों के लिए अलग और लड़को के लिए अलग…जय सर और मैथ वाले सर ने मिल कर सब बच्चों को बता दिया कि, कॉन किस रूम मे रहेगा…सफ़र की थॅकन से हम सभी पस्त थे….लंच तो हम ने रास्ते मे ही कर लिया था..



सब अपने -2 रूम्स मे जाकर आराम करने लगे….मैं भी अपने रूम मे पहुँची और फ्रेश होने के बाद बेड पर लेटते ही सो गयी…..डलहौजी का मौसम बेहद ठंडा था. जब मेरी आँख खुली तो 5 बज रहे थे….मैं फ्रेश होकर अपने रूम से बाहर आई तो एक स्टूडेंट्स से पता चला कि सब लोग बाहर होटेल के पार्क मे है…मैं बाहर पार्क मे आ गयी…और बाकी के टीचर्स के साथ जाकर बैठ गयी…


सभी स्टूडेंट्स इधर उधर बैठे हुए एक दूसरे से बातें कर रहे थे…पर मेरी नज़र ललिता को ढूँढ रही थी….पर मुझे ललिता कही दिखाई नही दी….मैं थोड़ा परेशान हो गयी क्योंकि मुझे राज भी कही नज़र नही आ रहा था…मैं चारो तरफ देख रही थी. तभी मुझे होटेल के अंदर से राज आता हुआ नज़र आया…और पार्क मे आया और अपने दोस्तो के पास जाकर खड़ा हो गया….तभी ये देख कर कि ललिता भी होटेल के अंदर से बाहर आ रही है…मैं एक से घबरा गयी….मैं उठ कर ललिता की तरफ गयी...

जैसे ही मैं ललिता के सामने जाकर खड़ी हुई, तो ललिता एक दम से घबरा गयी….उसके चेहरे का रंग एक दम से उड़ गया….”कहाँ थी तुम सब लोग बाहर है….और तुम अंदर क्या कर रही थी….”



ललिता: जी वो मैं जी….वो मैं वॉशरूम गयी थी….



मैं: मेने देखा राज भी अभी बाहर आया था..तुमसे पहले कही वो तुम्हे परेशान तो नही कर रहा….



ललिता: जी जी नही मैं तो वॉश रूम मे थी…मुझे पता नही….



मैं: ललिता क्या चल रहा सच-2 बताओ…..



ललिता: जी मॅम मैं कुछ समझी नही….



मैं: देखो ललिता मैं तुम्हारी टीचर हूँ…और मुझे तुमसे बहुत ज़्यादा एक्सपीरियेन्स है… सच सच बताओ तुम दोनो के बीच मे क्या चल रहा है….कही वो तुम्हे किसी बात को लेकर ब्लॅकमेल तो नही कर रहा…



ललिता: जी नही मॅम ऐसी कोई बात नही है….



मैं: तो फिर जब मेने तुम्हे बस मे अपने पास बैठने के लिए बुलाया था….तो तुम क्यों नही आई…उसके पास से उठ कर या फिर तुम खुद उसके पास बैठना चाहती थी.



ललिता: नही मेम ऐसे कोई बात नही है सच मे….वो दरअसल मुझे विंडो वाली सीट पर ही बैठना था, क्योंकि मुझे बस मे वॉर्म्टिंग होने लगती है…इसलिए नही आई आपके पास…..आपके पास विंडो सीट नही थी…नही तो मेरा बुरा हाल हो जाता…



मैं: तुम सच कह रही हो ना…


ललिता: यस मॅम…

मैं: अच्छा आओ वहाँ चल कर बैठते है….



फिर सब लोग अपनी मस्ती मे लगे रहे….बाहर पार्क मे रात को डिन्नर की स्टॉल लग गयी थी..क्योंकि हर एक के रूम मे जाकर सर्व करना होटेल वालो के लिए मुस्किल था…हम सब ने वहाँ पर खूब मस्ती की….फिर रात को खाना खाया और अपने -2 रूम्स मे जाकर सो गये…क्योंकि अगली सुबह हम सब को डलहौजी घूमना था….मैं अपने रूम मे बेड पर लेटी सोच रही थी कि, ललिता एक दम से काफ़ी बदल गयी….अब वो राज की माजूदगी मे कम और मेरी माजूदगी मे ज़्यादा परेशान होने लगी थी…


यही एक बात मेरे दिमाग़ मे खटक रही थी….पर मैने तो ललिता को सॉफ-2 कहा था कि, अगर कोई तकलीफ़ हो तो मुझे बता दे….हो सकता है, सच मे उसको कोई प्राब्लम ना हो. और शायद मैं अपने मन मे बसी मर्दो के लिए नफ़रत के कारण ललिता को लेकर ज़्यादा पगेसिव हो रही हूँ…और मैं उस पर कुछ ज़्यादा ही नज़र रख रही हूँ…
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#15
Very nice update thanks bro
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#16
अपडेट  - 8

खैर यही सोचते-2 मुझे कब नींद आ गयी मुझे पता नही चला…अगली सुबह जब मैं उठी, तो बाहर निकल कर देखा तो कुछ बच्चे रेडी थी…और कुछ अभी तैयार हो रहे थे….वेटर रूम मे आकर चाइ दे गया था…मेने ब्रश किया और फिर चाइ पीते हुए, रूम के बाहर बनी हुई गॅलरी मे जाकर खड़ी हो गयी…जो बाहर पार्क की तरफ़ खुलती थी….क्योंकि जो रूम मुझे मिला था…..वो फर्स्ट फ्लोर पर था…और पार्क के आगे बड़े-2 पहाड़ जो कि बरफ से ढके हुए बहुत सुंदर नज़ारा पेश कर रहे थे…



मैं अभी कुदरत के इस नज़ारे को देख ही रही थी कि, मुझे नीचे पार्क के चारो और बनी रेलिंग के साथ खड़ी हुई ललिता दिखाई दी….उसने अपनी पीठ रेलिंग से टिका रखी थी. और उसके साथ राज खड़ा था….जो रेलिंग पर हाथ रख कर खड़ा था…दोनो आपस मे कुछ बात कर रहे थे….फिर थोड़ी देर बाद ललिता वहाँ से हट कर रूम मे आ गयी…पहले तो राज की पीठ मेरी तरफ थी…फिर वो मेरी साइड पलटा और रेलिंग के साथ अपनी पीठ लगा कर खड़ा हो गया….


अचानक से जैसे ही उसका ध्यान मुझ पर पड़ा तो, वो मुझे देख कर मुस्कुराने लगा. मैं उसकी इस हरकत से एक दम से चिड गयी….और उसने फिर तो हद ही कर दी. उसने मेरे सामने अपने बाबूराव को पेंट के ऊपेर से पकड़ कर दो तीन बार हिलाया. और फिर से मेरी तरफ पीठ करके खड़ा हो गया….

अचानक से जैसे ही उसका ध्यान मुझ पर पड़ा तो, वो मुझे देख कर मुस्कुराने लगा. मैं उसकी इस हरकत से एक दम से चिड गयी….और उसने फिर तो हद ही कर दी. उसने मेरे सामने अपने बाबूराव को पेंट के ऊपेर से पकड़ कर दो तीन बार हिलाया. और फिर से मेरी तरफ पीठ करके खड़ा हो गया….



मैं एक गुस्से से लाल हो गयी थी…अब मेरी बर्दस्त से बाहर हो गया था…मैने चाइ कप का रखा और अपने ऊपेर शॉल ओढ़ कर नीचे गयी….और फिर बाहर पार्क मे चली गयी…राज ने मुझे अपने पास आता हुआ देखा तो वो थोड़ा सा घबरा गया… “ ये क्या बदतमीज़ी है…तुम्हे शरम नही आती…” मेने गुस्से से उसकी ओर देखते हुए कहा..



राज: क्यों क्या कर दिया मेने….



मैं: तुम अच्छी तरह जानते हो कि तुमने कैसे घटिया हरकत की है…और इसका ख़ामियाजा तुम्हे भुगतना ही पड़ेगा….


राज: ओह्ह अच्छा अब समझा तुम किस की बात कर रही हो…अर्रे यार अब बंदे को अगर अपने प्राइवेट पार्ट्स पर खुजली हो रही हो, तो वो बेचारा खुजाएगा तो ना… हां ये अलग बात है कि आप ग़लत टाइम पर ग़लत जगह पर खड़ी थी….इसमे मेरे कोई ग़लती नही.

मैं: देखो मैं तुम्हे अच्छे से समझती हूँ…..ये आज मैं तुम्हे लास्ट वॉर्निंग दे रही हूँ…सुधार जाओ नही तो मुझसे बुरा नही होगा….और हां ललिता से दूर रहना… नही तो मैं तुम्हारी शीकायत जय सर से कर दूँगी….





राज: ओह्ह तो तुम ही हो…जो ललिता के कान मेरे खिलाफ भर रही हो….रही मेरी बात ललिता से दूर रहने की, तो चलो मैं ललिता से दूर ही रहूँगा….पर ललिता मुझसे दूर रह सकती है या नही तुम खुद देख लेना….



मैं: तुम एक घटिया इंसान हो…तुम्हे तो ये भी नही पता कि, अपने टीचर से कैसे बात करते है…तुम-2 कह कर बुला रहे हो ना तुम मुझे…देखना एक दिन सब के सामने तुम्हारी सच्चाई ना ला दी तो मेरा नाम भी डॉली नही…



राज: जा जा मेरी सच्चाई तू क्या सामने लाएगी….



मैं गुस्से से पैर पटकती अपने रूम की तरफ जाने लगी….


राज: अपनी ललिता को संभाल कर रखना….और उससे कह देना कि मेरे पीछे ना आए..
मेने मूड कर गुस्से से राज की तरफ देखा…पर वो मुझसे अब ज़रा सा भी नही डर रहा था…उसके चेहरे पर फेली हुई कमीनी मुस्कान देख कर मैं अंदर तक सुलग गयी. और अपने रूम मे गयी….पीछे से एक स्टूडेंट मेरे रूम मे आई, और बोली, कि जय सर जल्दी तैयार होकर मुझे नीचे आने को कह रहे थे….



मैं जलदी से तैयार हुई, और नीचे आ गयी….नीचे सब रेडी थे…उसके बाद हम दलहौजी देखने के लिए होटेल से निकल पड़े….पैदल चलते हुए घूमते हुए हम सब ने बहुत एंजाय किया….हम मेन सिटी से घूमते हुए काफ़ी बाहर आ चुके थे. सुबह 11 बजे थे….इसलिए हमें कोई जलदी नही थी….सब लोग इधर उधर बिखरे हुए चल रहे थे…पहले तो ललिता मेरे साथ चल रही थी…पर मैं अपने कॉलेज की हिन्दी की टीचर के साथ बातों मे उलझ गयी….


अचानक से मेरा ध्यान ललिता की तरफ गया तो वो मुझे कही दिखाई नही दी…सब लोग थोड़ा थक चुके थी….और इधर उधर बैठ गये थे….चारो तरफ काफ़ी बड़े-2 पैड थी….कुछ स्टूडेंट इधर जा रहे थे कुछ उधर….पर ललिता मुझे दिखाई नही दी. तभी मेरी नज़र राज पर पड़ी…जो कि पहाड़ी की ढलान पर खड़ा मेरी ओर देख रहा था…जैसे ही मेने उसकी तरफ देखा तो उसने दूसरी तरफ मूह घुमा लिया. और पहाड़ी के ऊपेर की तरफ चलाने लगा…

मेरे दिल की धड़कने एक दम से बढ़ गयी….मैने मॅम से कहा कि, मैं अभी आई, और मैं राज के पीछे जाने लगी….वो बेहद तेज़ी से चल रहा था….मैं उससे से थोड़ा पिछड़ गयी…जब मैं ऊपेर पहुँची तो वो मुझे नज़र नही आया…मैं थोड़ा और आगे बढ़ी तो मुझे राज नज़र आ गया….पर आगे जो मेने देखा…वो देख कर तो मेरे पैरो तले से ज़मीन ही खिसक गयी…उससे 15-20 कदमो के आगे ललिता खड़ी थी….


उसने ब्लू कलर के जीन्स और ब्लॅक कलर के टीशर्ट पहनी हुई थी…राज ललिता की तरफ बढ़ा और ललिता के पास जाकर रुक गया…तभी ललिता की नज़र मुझ पर पड़ी तो वो एक दम से घबरा गयी….उसने अपने फेस को झुका लिया…और राज को धीरे से कुछ कहा. मुझे वहाँ से ललिता के होन्ट हिलते हुए नज़र आए….पर मैं उन दोनो से 30 कदमो के फाँसले पर खड़ी थी…इसलिए मुझे कुछ सुनाई नही दिया…राज अब भी मेरी ओर पीठ किए हुए खड़ा था…उसने ललिता का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खेंचा तो, ललिता के बूब्स राज की चेस्ट मे दब गये…ललिता घबराई हुए सी मेरी तरफ देख रही थी..

फिर राज ने ललिता के फेस को नीचे से पकड़ा और ऊपेर उठाते हुए, उसके होंटो को अपने होंटो मे भर लिया…और उसके होंटो को चूसने लगा…मुझे तो ऐसा लग रहा था कि, जैसे ज़मीन अभी फॅट जाएगी…और मैं उसमे समा जाउन्गी…पर अगले ही पल मुझे उससे भी बढ़ा शॉक तब लगा..जब ललिता ने अपनी बाहों को राज के गले मे डाल दिया…और राज के बालो मे अपनी उंगलियों को घूमाते हुए अपने होंटो को चुसवाना शुरू कर दिया. ललिता अपने पंजो के बल खड़ी थी….



उसकी एडियाँ ऊपेर उठी हुई थी….जो कुछ मेरे सामने हो रहा था…मैं उसे देख कर भी यकीन नही कर पा रही थी….तभी राज ने ललिता की पीठ घुमा कर मेरी तरफ कर दी…और ललिता के चुतड़ों को उसकी जीन्स के ऊपेर से जो कि उसके चुतड़ों पर एक दम कसी हुई थी….ऊपेर से दबाना और मसलाना शुरू कर दिया…ये देख कर मेरा मूह हैरानी से और खुल गया….मैं वहाँ से हटना चाहती थी….पर पता नही जैसे ज़मीन ने मेरे पैरो को वहाँ जाकड़ लिया था…मैं हिल भी नही पा रही थी…


फिर राज ललिता की गान्ड को मसलते हुए थोड़ा सा घुमा अब दोनो की साइड मेरी तरफ थी…और राज ने ललिता के होंटो से अपने होन्ट अलग कर दिए….ललिता थोड़ा सा पीछे होकर खड़ी हो गयी….वो सर झुकाए चोर नज़रों से मेरी ओर देख रही थी…फिर राज ने ललिता से कुछ कहा…जिसे सुन कर ललिता थोड़ा सा घबरा गयी…पर अगले ही पल ललिता ने वो किया..जिसकी उम्मीद मुझे उससे बिल्कुल भी नाही थी….

.........
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#17
Really nice
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#18
Yea kis tarah sai romantic  Lagg Rahe Hai  bhai tu bata he de.  Kya kuch bhi prefix dal dete ho.
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#19
Mast story... Keep it up
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#20
Mast kahani
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