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Adultery एक औरत की आत्मकथा
#1
प्रगति एक ३५ साल की शादी शुदा महिला है जिसका पति, मुरली, पुलिस में कांस्टेबल है। प्रगति एक सुन्दर औरत है जो दिखने में एक २०-२२ साल की लड़की की तरह दिखती है। ५' २" ऊंचा कद, छोटे स्तन, गठीला सुडौल शरीर, रसीले होंट, काले लम्बे बाल ओर मोहक मुस्कान। उनके एक बेटा था जो १३ साल की उम्र में भगवन को प्यारा हो गया था। इस हादसे से प्रगति को बहुत आघात लगा था। इसके बाद बहुत कोशिशों के बाद भी उनको कोई बच्चा नहीं हुआ था।

मुरली एक शराबी कबाबी किस्म का आदमी था जो की पत्नी को सिर्फ एक सेक्स का खिलौना समझता था। उसकी आवाज़ में कर्कशता और व्यवहार में रूखापन था। वोह रोज़ ऑफिस से आने के बाद अपने दोस्तों के साथ घूमने चला जाता था। पुलिस में होने के कारण उसका मोहल्ले में बहुत दबदबा था। उसको शराब और ब्लू फिल्म का शौक था जो उसे अपने पड़ोस में ही मुफ्त मिल जाते थे।
रोज़ वोह शराब पी के घर आता और ब्लू फिल्म लगा कर देखता। फिर खाना खा कर अपनी पत्नी से सम्भोग करता। यह उसकी रोज़ की दिन चर्या थी।
बेचारी प्रगति का काम सिर्फ सीधे या उल्टे लेट जाना होता था। मुरली बिना किसी भूमिका के उसके साथ सम्भोग करता जो कई बार प्रगति को बलात्कार जैसा लगता था। उसकी कोई इच्छा पूर्ति नहीं होती थी ना ही उस से कुछ पूछा जाता था। वह अपने पति से बहुत तंग आ चुकी थी पर एक भारतीय नारी की तरह अपना पत्नी धर्म निभा रही थी। पहले कम से कम उसके पास अपना बेटा था पर उसके जाने के बाद वह बिलकुल अकेली हो गई थी। उसका पति उसका बिलकुल ध्यान नहीं रखता था। सम्भोग भी क्रूरता के साथ करता था। न कोई प्यारी बातें ना ही कोई प्यार का इज़हार। बस सीधा अपना लिंग प्रगति की योनि में घुसा देना। प्रगति की योनि ज्यादातर सूखी ही होती थी और उसे इस तरह के सम्भोग से बहुत दर्द होता था। पर कुछ कह नहीं पाती थी क्योंकि पति घर में और भी बड़ा थानेदार होता था। इस पताड़ना से प्रगति को महीने में पांच दिन की छुट्टी मिलती थी जब मासिक धर्म के कारण मुरली कुछ नहीं कर पाता था। मुरली की एक बात अच्छी थी की वो पुलिसवाला होने के बावजूद भी पराई औरत या वेश्या के पास नहीं जाता था।
प्रगति एक कंपनी में सेक्रेटरी का काम करती थी। वह एक मेहनती और ईमानदार लड़की थी जिसके काम से उसका बॉस बहुत खुश था। उसका बॉस एक ५० साल का सेवा-निवृत्त फौजी अफसर था। वह भी शादीशुदा था और एक दयालु किस्म का आदमी था। कई दिनों से वह नोटिस कर रहा था कि प्रगति गुमसुम सी रहती थी। फौज में उसने औरतों का सम्मान करना सीखा था। उसे यह तो मालूम था कि उसका बेटा नहीं रहा पर फिर भी उसका मासूम दुखी चेहरा उसको ठेस पहुंचाता था। वह उसके लिए कुछ करना चाहता था पर क्या और कैसे करे समझ नहीं पा रहा था। वह उसके स्वाभिमान को ठेस नहीं पहुँचाना चाहता था। उधर प्रगति अपने बॉस का बहुत सम्मान करती थी क्योंकि उसे अपने बॉस का अपने स्टाफ के प्रति व्यवहार बहुत अच्छा लगता था। बॉस होने के बावजूद वह सबसे इज्ज़त के साथ बात करता था और उनकी छोटी बड़ी ज़रूरतों का ध्यान रखता था। सिर्फ प्रगति ही नहीं, बाकी सारा स्टाफ भी बॉस को बहुत चाहता था।

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#2
एक दिन, जब सबको महीने की तनख्वाह दी जा रही थी, बॉस ने सबको जल्दी छुट्टी दे दी। सब पैसे ले कर घर चले गये, बस प्रगति हिसाब के कागजात पूरे करने के लिए रह गई थी। जब यह काम ख़त्म हो गया तो वह बॉस की केबिन में उसके हस्ताक्षर लेने गई। बॉस, जिसका नाम शेखर है, उसका इंतज़ार कर रहा था। उसने उसे बैठने को कहा और उसका वेतन उसे देते हुए उसके काम की सराहना की। प्रगति ने झुकी आँखों से धन्यवाद किया और जाने के लिए उठने लगी।

शेखर ने उसे बैठने के लिए कहा और उठ कर उसके पीछे आकर खड़ा हो गया। उसने प्यार से उस से पूछा कि वह इतनी गुमसुम क्यों रहती है? क्या ऑफिस में कोई उसे तंग करता है या कोई और समस्या है?
प्रगति ने सिर हिला कर मना किया पर बोली कुछ नहीं। शेखर को लगा कि ज़रूर कोई ऑफिस की ही बात है और वह बताने से शरमा या घबरा रही है। उसने प्यार से उसके सिर पर हाथ फिराते हुए कहा कि उसे डरने की कोई ज़रुरत नहीं है और वह बेधड़क उसे सच सच बता सकती है। प्रगति कुछ नहीं बोली और सिर झुकाए बैठी रही। शेखर उसके सामने आ गया और उसकी ठोडी पकड़ कर ऊपर उठाई तो देखा कि उसकी आँखों में आँसू थे।
शेखर ने उसके गालों से आँसू पौंछे और उसे प्यार से अपने सीने से लगा लिया। इस समय प्रगति कुर्सी पर बैठी हुई थी और शेखर उसके सामने खड़ा था। इसलिए प्रगति का सिर शेखर के पेट से लगा था और शेखर के हाथ उसकी पीठ और सिर को सहला रहे थे। प्रगति अब एक बच्चे की तरह रोने लग गई थी और शेखर उसे रोने दे रहा था जिस से उसका मन हल्का हो जाये। थोड़ी देर बाद वह शांत हो गई और अपने आप को शेखर से अलग कर लिया। शेखर उसके सामने कुर्सी लेकर बैठ गया। पास के जग से एक ग्लास पानी प्रगति को दिया। पानी पीने के बाद प्रगति उठकर जाने लगी तो शेखर ने उसे बैठे रहने को कहा और बोला कि अपनी कहानी उसे सुनाये। क्या बात है ? क्यों रोई ? उसे क्या तकलीफ है ?
प्रगति ने थोड़ी देर इधर उधर देखा और फिर एक लम्बी सांस लेकर अपनी कहानी सुनानी शुरू की। उसने बताया किस तरह उसकी शादी उसकी मर्ज़ी के खिलाफ एक गंवार, क्रूर,शराबी के साथ करा दी थी जो उम्र में उस से १५ साल बड़ा था। उसके घरवालों ने सोचा था कि पुलिस वाले के साथ उसका जीवन आराम से बीतेगा और वह सुरक्षित भी रहेगी। उन्होंने यह नहीं सोचा कि अगर वह ख़राब निकला तो उसका क्या होगा? प्रगति ने थोड़ी हिचकिचाहट के बाद अपने दाम्पत्य जीवन की कड़वाहट भी बता डाली। किस तरह उसका पति उसके शरीर को सिर्फ अपने सुख के लिए इस्तेमाल करता है और उसके बारे मैं कुछ नहीं सोचता। किस तरह उसके साथ बिना किसी प्यार के उसकी सूखी योनि का उपभोग करता है, किस तरह उसका वैवाहिक जीवन नर्क बन गया है। जब उसने अपने १३ साल के बेटे के मरने के बारे में बताया तो वह फिर से रोने लगी। किस तरह से उसके घरवाले उसे ही उसके बेटे के मरने के लिए जिम्मेदार कहने लगे। किस तरह उसका पति एक और बच्चे के लिए उसके साथ ज़बरदस्ती सम्भोग करता था और अपने दोस्तों के सामने उसकी खिल्ली उड़ाता था।
शेखर आराम से उसकी बातें सुनता रहा और बीच बीच में उसका सिर या पीठ सहलाता रहा। एक दो बार उसको पानी भी पिलाया जिस से प्रगति का रोना कम हुआ और उसकी हिम्मत बढ़ी। धीरे धीरे उसने सारी बातें बता डालीं जो एक स्त्री किसी गैर मर्द के सामने नहीं बताती। प्रगति को एक आजादी सी महसूस हो रही थी और उसका बरसों से भरा हुआ मन हल्का हो रहा था। कहानी ख़त्म होते होते प्रगति यकायक खड़ी हो गई और शेखर के सीने से लिपट गई और फिर से रोने लगी मानो उसे यह सब बताने की ग्लानि हो रही थी।
शेखर ने उसे सीने से लगाये रखा और पीठ सहलाते हुए उसको सांत्वना देने लगा। प्रगति को एक प्यार से बात करने वाले मर्द का स्पर्श अच्छा लग रहा था और वह शेखर को जोर से पकड़ कर लिपट गई। शेखर को भी अपने से १५ साल छोटी लड़की-सी औरत का आलिंगन अच्छा लग रहा था। वैसे उसके मन कोई खोट नहीं थी और ना ही वह प्रगति की मजबूरी का फायदा उठाना चाहता था। फिर भी वह चाह रहा था कि प्रगति उससे लिपटी रहे।
थोड़ी देर बाद प्रगति ने थोड़ी ढील दी और बिना किसी हिचकिचाहट के अपने होंट शेखर के होंटों पर रख दिए और उसे प्यार से चूमने लगी। शायद यह उसके धन्यवाद करने का तरीका था कि शेखर ने उसके साथ इतनी सुहानुभूति बरती थी। शेखर थोड़ा अचंभित था। वह सोच ही रहा था कि क्या करे !
जब प्रगति ने अपनी जीभ शेखर के मुँह में डालने की कोशिश की और सफल भी हो गई। अब तो शेखर भी उत्तेजित हो गया और उसने प्रगति को कस कर पकड़ लिया और जोर से चूमने लगा। उसने भी अपनी जीभ प्रगति के मुँह में डाल दी और दोनों जीभों में द्वंद होने लगा। अब शेखर की कामुकता जाग रही थी और उसका लिंग अंगडाई ले रहा था। एक शादीशुदा लड़की को यह भांपने में देर नहीं लगती। सो प्रगति ने अपना शरीर और पास में करते हुए शेखर के लिंग के साथ सटा दिया। इस तरह उसने शेखर को अगला कदम उठाने के लिए आमंत्रित लिया। शेखर ने प्रगति की आँख में आँख डाल कर कहा कि उसने पहले कभी किसी पराई स्त्री के साथ ऐसा नहीं किया और वह उसका नाजायज़ फायदा नहीं उठाना चाहता।
अब तो प्रगति को शेखर पर और भी प्यार आ गया। उसने कहा- आप थोड़े ही मेरा फायदा उठा रहे हो। मैं ही आपको अपना प्यार देना चाहती हूँ। आप एक अच्छे इंसान हो वरना कोई और तो ख़ुशी ख़ुशी मेरी इज्ज़त लूट लेता। शेखर ने पूछा कि वह क्या चाहती है, तो उसने कहा पहले आपके गेस्ट रूम में चलते हैं, वहां बात करेंगे।

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#3
ऑफिस का एक कमरा बतौर गेस्ट-रूम इस्तेमाल होता था जिसमें बाहर से आने वाले कंपनी अधिकारी रहा करते थे। उधर रहने की सब सुविधाएँ उपलब्ध थीं। प्रगति, शेखर का हाथ पकड़ कर, उसे गेस्ट-रूम की तरफ ले जानी लगी। कमरे में पहुँचते ही उसने अन्दर से दरवाज़ा बंद कर लिया और शेखर के साथ लिपट गई।

उसकी जीभ शेखर के मुँह को टटोलने लगी। प्रगति को जैसे कोई चंडी चढ़ गई थी। उसे तेज़ उन्माद चढ़ा हुआ था। उसने जल्दी से अपने कपड़े उतारने शुरू किए और थोड़ी ही देर में नंगी हो गई। नंगी होने के बाद उसने शेखर के पांव छुए और खड़ी हो कर शेखर के कपड़े उतारने लगी। शेखर हक्काबक्का सा रह गया था। सब कुछ बहुत तेजी से हो रहा था और उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे।
वह मंत्र-मुग्ध सा खड़ा रहा। उसके भी सारे कपड़े उतर गए थे और वह पूरा नंगा हो गया था। प्रगति घुटनों के बल बैठ गई और शेखर के लिंग को दोनों हाथों से प्रणाम किया। फिर बिना किसी चेतावनी के लिंग को अपने मुँह में ले लिया। हालाँकि शेखर की शादी को २० साल हो गए थे उसने कभी भी यह अनुभव नहीं किया था। उसके बहुत आग्रह करने के बावजूद भी उसकी पत्नी ने उसे यह सुख नहीं दिया था। उसकी पत्नी को यह गन्दा लगता था। अर्थात, यह शेखर के लिए पहला अनुभव था और वह एकदम उत्तेजित हो गया। उसका लिंग जल्दी ही विकाराल रूप धारण करने लगा।
प्रगति ने उसके लिंग को प्यार से चूसना शुरू किया और जीभ से उसके सिरे को सहलाने लगी। अभी २ मिनट भी नहीं हुए होंगे कि शेखर अपने पर काबू नहीं रख पाया और अपना लिंग प्रगति के मुँह से बाहर खींच कर ज़ोरदार ढंग से स्खलित हो गया। उसका सारा काम-मधु प्रगति के स्तनों और पेट पर बरस गया। शेखर अपनी जल्दबाजी से शर्मिंदा था और प्रगति को सॉरी कहते हुए बाथरूम चला गया।
प्रगति एक समझदार लड़की थी और आदमी की ताक़त और कमजोरी दोनों समझती थी। वह शेखर के पीछे बाथरूम में गई और उसको हाथ पकड़ कर बाहर ले आई। शेखर शर्मीला सा खड़ा था। प्रगति ने उसे बिस्तर पर बिठा कर धीरे से लिटा दिया। उसकी टांगें बिस्तर के किनारे से लटक रहीं थीं और लिंग मुरझाया हुआ था। प्रगति उसकी टांगों के बीच ज़मीन पर बैठ गई और एक बार फिर से उसके लिंग को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। मुरझाये लिंग को पूरी तरह मुँह में लेकर उसने जीभ से उसे मसलना शुरू किया।
शेखर को बहुत मज़ा आ रहा था। प्रगति ने अपने मुँह से लिंग अन्दर बाहर करना शुरू किया और बीच बीच में रुक कर अपने थूक से उसे अच्छी तरह गीला करने लगी। शेखर ख़ुशी के मारे फूला नहीं समा रहा था। उसके हाथ प्रगति के बालों को सहला रहे थे। धीरे धीरे उसके लिंग में फिर से जान आने लगी और वह बड़ा होने लगा। अब तक प्रगति ने पूरा लिंग अपने मुँह में रखा हुआ था पर जब वह बड़ा होने लगा तो मुँह के बाहर आने लगा। वह उठकर बिस्तर पर बैठ गई और झुक कर लिंग को चूसने लगी। उसके खुले बाल शेखर के पेट और जांघों पर गिर रहे थे और उसे गुदगुदी कर रहे थे।
अब शेखर का लिंग बिलकुल तन गया था और उसकी चौड़ाई के कारण प्रगति के दांत उसके लिंग के साथ रगड़ खा रहे थे। अब तो शेखर की झेंप भी जाती रही और उसने प्रगति को एक मिनट रुकने को कहा और बिस्तर के पास खड़ा हो गया। उसने प्रगति को अपने सामने घुटने के बल बैठने को कहा और अपना लिंग उसके मुँह में डाल दिया। अब उसने प्रगति के साथ मुख-मैथुन करना शुरू किया। अपने लिंग को उसके मुँह के अन्दर बाहर करने लगा। शुरू में तो आधा लिंग ही अन्दर जा रहा था पर धीरे धीरे प्रगति अपने सिर का एंगल बदलते हुए उसका पूरा लिंग अन्दर लेने लगी। कभी कभी प्रगति को ऐसा लगता मानो लिंग उसके हलक से भी आगे जा रहा है।
शेखर को बहुत ज्यादा मज़ा आ रहा था। उसने अपने धक्के तेज़ कर दिए और मानो भूल गया कि वह प्रगति के मुँह से मैथुन कर रहा है। प्रगति को लिंग कि बड़ी साइज़ से थोड़ी तकलीफ तो हो रही थी पर उसने कुछ नहीं कहा और अपना मुँह जितना ज्यादा खोल सकती थी खोल कर शेखर के आनंद में आनंद लेने लगी। शेखर अब दूसरी बार शिखर पर पहुँचने वाला हो रहा था। उसने प्रगति के सिर को पीछे से पकड़ लिया और जोर जोर से उसके मुँह को चोदने लगा। जब उसके लावे का उफान आने लगा उसने अपना लिंग बाहर निकालने की कोशिश की पर प्रगति ने उसे ऐसा नहीं करने दिया और दोनों हाथों से शेखर के चूतड पकड़ कर उसका लिंग अपने मुँह में जितना अन्दर कर सकती थी, कर लिया। शेखर इसके लिए तैयार नहीं था। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि वह किसी लड़की के मुँह में अपने लावे का फव्वारा छोड़ पायेगा। इस ख़ुशी से मानो उसका लंड डेढ़ गुना और बड़ा हो गया और उसका क्लाइमेक्स एक भूकंप के बराबर आया। प्रगति का मुँह मक्खन से भर गया पर उसने बाहर नहीं आने दिया और पूरा पी गई।
शेखर ने अपना लिंग प्रगति के मुँह से बाहर निकाला और झुक कर उसे ऊपर उठाया। प्रगति को कस कर आलिंगन में भर कर उसने उसका जोरदार चुम्बन लिया जिसमे कृतज्ञता भरी हुई थी। प्रगति के मुँह से उसके लावे की अजीब सी महक आ रही थी। दोनों ने देर तक एक दूसरे के मुँह में अपनी जीभ से गहराई से खोजबीन की और फिर थक कर लेट गए। शेखर कई सालों से एक समय में दो बार स्खलित नहीं हुआ था। उसका लिंग दोबारा खड़ा ही नहीं होता था। उसे बहुत अच्छा लग रहा था।
दिन के डेढ़ बज रहे थे। दोनों को घर जाने की जल्दी नहीं थी क्योंकि ऑफिस शाम ५ बजे तक का था और वैसे भी उन्हें ऑफिस में देर हो ही जाती थी। आमतौर पर वे ६-७ बजे ही निकल पाते थे। दोनों एक दूसरे की बाहों में लेट गए और न जाने कब सो गए। करीब एक घंटा सोने के बाद शेखर की आँख खुली तो उसने देखा प्रगति दोनों के टिफिन खोल कर खाना टेबल पर लगा रही थी। उसने अपने को तौलिये से ढक रखा था। शेखर ने अपने ऑफिस की अलमारी से रम की बोतल और फ्रीज से कोक की बोतलें निकालीं और दोनों के लिए रम-कोक का ग्लास बनाया। प्रगति ने कभी शराब नहीं पी थी पर शेखर के आग्रह पर उसने ले ली। पहला घूँट उसे कड़वा लगा पर फिर आदत हो गई। दोनों ने रम पी और घर से लाया खाना खाया। खाने के बाद दोनों फिर लेट गए।
शेखर को अचानक ध्यान आया कि अब तक उसने प्रगति को ठीक से छुआ तक नहीं है। सारी पहल प्रगति ने ही की थी। उसने करवट बदलकर प्रगति की तरफ रुख़ किया और उसके सिर को सहलाने लगा। प्रगति ने तौलिया लपेटा हुआ था। शेखर ने तौलिये को हटाने के लिए प्रगति को करवट दिला दी जिस से अब वह उल्टी लेटी हुई थी। शेखर ने उसके हाथ दोनों ओर फैला दिए और उसकी टांगें थोड़ी खोल दीं। अब शेखर उसकी पीठ के दोनों तरफ टांगें कर के घुटनों के बल बैठ गया और पहली बार उसने प्रगति के शरीर को छुआ। उसके लिए किसी पराई स्त्री को छूने का यह पहला अनुभव था।

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#4
कुछ पाप बड़ा आनंद देते हैं। उसके हाथ प्रगति के पूरे शरीर पर फिरने लगे। प्रगति का स्पर्श उसे अच्छा लग रहा था और उसकी पीठ और चूतड़ का दृश्य उसमें जोश पैदा कर रहा था।

प्रगति एक मलयाली लड़की थी जो नहाने के लिए साबुन का इस्तेमाल नहीं करती थी। उसे पारम्परिक मुल्तानी मिट्टी की आदत थी जिससे उसकी काया बहुत चिकनी और स्वस्थ थी। वह बालों में रोज़ नारियल तेल से मालिश करती थी जिस से उसके बाल काले और घने थे। इन मामलों में वह पुराने विचारों की थी। उसके पुराने विचारों में अपने पति की आज्ञा मानना और उसकी इच्छा पूर्ति करना भी शामिल था। यही कारण था की इतने दिनों से वह अपने पति का अत्याचार सह रही थी। शेखर प्रगति के शरीर को देख कर और छू कर बहुत खुश था। उसे उसके पति पर रश्क भी हो रहा था और गुस्सा भी आ रहा था कि ऐसी सुन्दर पत्नी को प्यार नहीं करता था।
शेखर ने प्रगति के कन्धों और गर्दन को मलना और उनकी मालिश करना शुरू किया। कहीं कहीं गाठें थी तो उन्हें मसल कर निकालने लगा। जब हाथ सूखे लगने लगे तो बाथरूम से तेल ले आया और तेल से मालिश करने लगा। जब कंधे हो गए तो वह थोड़ा पीछे खिसक गया और पीठ पर मालिश करने लगा। जब वह मालिश के लिए ऊपर नीचे होता तो उसका लंड प्रगति की गांड से हलके से छू जाता।
प्रगति को यह स्पर्श गुदगुदाता और वह सिहर उठती और शेखर को उत्तेजना होने लगती। थोड़ी देर बाद शेखर और नीचे खिसक गया जिस से लंड और गांड का संपर्क तो टूट गया पर अब शेखर के हाथ उसकी गांड की मालिश करने लगे। उसने दोनों चूतडों को अच्छे से तेल लगाकर मसला और मसाज करने लगा। उसे बहुत मज़ा आ रहा था। प्रगति भी आनंद ले रही थी। उसे किसी ने पहले ऐसे नहीं किया था। शेखर के मर्दाने हाथों का दबाव उसे अच्छा लग रहा था। शेखर अब उसकी जाँघों तक पहुँच गया था। शेखर की उंगलियाँ उसकी जाँघों के अंदरूनी हिस्से को टटोलने लगी। प्रगति ने अपनी टांगें थोड़ी और खोल दीं और ख़ुशी से मंद मंद करहाने लगी। शेखर ने हल्के से एक दो बार उसकी योनि को छू भर दिया और फिर उसके घुटनों और पिंडलियों को मसाज करने लगा।
प्रगति चाहती थी कि शेखर योनि से हाथ न हटाये पर कसमसा कर रह गई। शेखर भी उसे जानबूझ कर छेड़ रहा था। वह उसे अच्छी तरह उत्तेजित करना चाहता था। थोड़ी देर बाद प्रगति के पांव अपने गोदी में रख कर सहलाने लगा तो प्रगति एकदम उठ गई और अपने पांव सिकोड़ लिए। वह नहीं चाहती थी कि शेखर उसके पांव दबाये। पर शेखर ने उसे फिर से लिटा दिया और दोनों पांव के तलवों की अच्छी तरह से मालिश कर दी। प्रगति को बहुत आराम मिल रहा था और न जाने कितने वर्षों की थकावट दूर हो रही थी। अब प्रगति कृतज्ञता महसूस कर रही थी।
शेखर ने प्रगति को सीधा होने को कहा और वह एक आज्ञाकारी दासी की तरह उलट कर सीधी हो गई। शेखर ने पहली बार ध्यान से प्रगति के नंगे शरीर को सामने से देखा। जो उसने देखा उसे बहुत अच्छा लगा। उसके स्तन छोटे पर बहुत गठीले और गोलनुमा थे जिस से वह एक १६ साल की कमसिन लगती थी। चूचियां हलके कत्थई रंग की थी और स्तन पर तन कर मानो राज कर रही थी। शेखर का मन हुआ वह उनको एकदम अपने मुँह में ले ले और चूसता रहे पर उसने धीरज से काम लिया।
हाथों में तेल लगा कर उसने प्रगति की भुजाओं की मालिश की और फिर उसके स्तनों पर मसाज करने लगा। यह अंदाज़ लगाना मुश्किल था कि किसको मज़ा ज्यादा आ रहा था। थोड़ी देर मज़े लेने के बाद शेखर ने प्रगति के पेट पर हाथ फेरना शुरू किया। उसके पतले पेट पर तेल का हाथ आसानी से फिसल रहा था। उसने नाभि में ऊँगली घुमा कर मसाज किया और फिर हौले हौले शेखर के हाथ उसके मुख्य आकर्षण की तरफ बढ़ने लगे।

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#5
प्रगति ने पूर्वानुमान से अपनी टांगें और चौड़ी कर लीं। शेखर ने हाथों में और तेल लगाकर प्रगति की योनि के इर्द गिर्द सहलाना शुरू किया। कुछ देर तक उसने जानबूझ कर योनि को नहीं छुआ। अब प्रगति को तड़पन होने लगी और वह कसमसाने लगी। शेखर के हाथ नाभि से लेकर जांघों तक तो जाते पर योनि और उसके भग को नहीं छूते। थोड़ी देर तड़पाने के बाद जब शेखर की उँगलियाँ पहली बार योनि की पलकों को लगीं तो प्रगति उन्माद से कूक गई और उसका पूरा शरीर एक बार लहर गया। मसाज से ही शायद उसका स्खलन हो गया था, क्योंकि उसकी योनि से एक दूधिया धार बह निकली थी।

शेखर ने ज्यादा तडपाना ठीक ना समझते हुए उसकी योनि में ऊँगली से मसाज शुरू किया और दूसरे हाथ से उसकी भगनासा को सहलाने लगा। प्रगति की योनि मानो सम्भोग की भीख मांग रही थी और प्रगति की आँखें भी शेखर से यही प्रार्थना कर रही थीं। उधर शेखर का लिंग भी अंगडाई ले चुका था और धीरे धीरे अपने पूरे यौवन में आ रहा था।
शेखर ने प्रगति को बताया कि वह सम्भोग नहीं कर सकता क्योंकि उसको पास कंडोम नहीं है और वह बिना कंडोम के प्रगति को जोखिम में नहीं डालना चाहता, इसलिए वह प्रगति को उँगलियों से ही संतुष्ट कर देगा। पर प्रगति ने शेखर को बिना कंडोम के ही सम्भोग करने को कहा। उसने कहा- अगर कंडोम होता भी तो भी वह उसे इस्तेमाल नहीं करने देती। जबसे उसके बेटे की मौत हुई है उसे बच्चे की लालसा है और अगर बच्चा हो भी जाता है तो उसके घर में खुशियाँ आ जाएँगी। उसने भरोसा दिलाया कि वह कभी भी शेखर को इस के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराएगी और ना ही कभी इसका हर्जाना मांगेगी।
उसने शेखर को कहा कि अगर उसे प्रगति पर भरोसा है तो हमेशा बिना कंडोम के ही सम्भोग करेंगे। उसने यह भी कहा कि जितना सुख उसे आज मिला है उसे १४ साल की शादी में नहीं मिला और वह चाहती है कि यह सुख वह भविष्य में भी लेती रहे। उसने कहा कि शायद वह एक निम्न चरित्र की औरत जैसी लग रही होगी पर ऐसी है नहीं और उसके लिए किसी गैर-मर्द से साथ ऐसा करना पहली बार हुआ है।
शेखर ने उसे समझाया कि कई बार जल्दबाजी में लिए हुए निर्णय बाद में पछतावे का कारण बन जाते हैं इस लिए अच्छे से सोच लो।
प्रगति ने कहा कि कोई भी औरत ऐसे निर्णय बिना सोचे समझे नहीं लेती। वह पूरे होशो-हवास में है और अपने निर्णय पर अडिग है और शर्मिंदा नहीं है।
शेखर को प्रगति के इस निश्चय और आत्मविश्वास पर गर्व हुआ और उसने तेल से सनी हुई प्रगति को उठा कर सीने से लगा लिया। इस दौरान शेखर का लिंग मुरझा गया था। प्रगति ने लिंग की तरफ देखते हुए शेखर को आँखों ही आँखों में आश्वासन दिलाया कि वह उस लिंग में जान डाल देगी। उसने शेखर को लिटा दिया और उसके ऊपर हाथों और घुटनों के बल आ गई। पहले उसने अपने बालों की लटों से उसके मुरझाये लिंग पर लहरा कर गुदगुदी की और फिर अपने स्तनों से लंड को मसलने लगी। अपनी उभरी हुई चूचियों से उसने लंड को ऊपर से नीचे तक गुलगुली की। शेखर का बेचारा लिंग इस तरह के लुभाने का आदि नहीं था और जल्दी ही मरे से अधमरा हो गया।
प्रगति ने शेखर के लंड की नींव के चारों तरफ जीभ फिराना शुरू किया और उसकी छड़ चाटने लगी। एक एक करके उसने दोनों अण्डों को मुँह में लेकर चूस लिया। अपनी गीली जीभ को लंड के सुपारे पर घुमाने लगी और फिर उसके अधमरे लंड को पूरा मुँह में लेकर चूसने लगी। इस बार चूसते वक़्त वह लंड को निगलने की कोशिश कर रही थी और हाथों से उसके अण्डों को गुदगुदा रही थी। शेखर को इतना मज़ा पहले कभी नहीं आया था। उसका लंड एक बार फिर अपनी ज़िम्मेदारी निभाने के लिए तैयार हो गया।
उसके पूरे तरह से तने हुए लंड को प्रगति ने एक बार और पुच्ची दी और शेखर को बिना बताये उसके लंड पर अपनी योनि रखकर बैठ गई। शेखर का मुश्तंड लंड उसकी गीली चूत में आसानी से घुस गया। प्रगति ने अपने कूल्हों को गोल गोल घुमा कर शेखर के लंड की चक्की चलाई और फिर ऊपर नीचे हो कर मैथुन के मज़े लूटने लगी। शेखर भी अपनी गांड ऊपर उछाल उछाल कर प्रगति के धक्कों का जवाब देने लगा। प्रगति के स्तन मस्ती में उछल रहे थे और उसके चेहरे पर एक मादक मुस्कान थी। थोड़ी देर इस तरह करने के बाद शेखर ने प्रगति को अपनी तरफ खींच कर आलिंगनबद्ध कर लिया और उसे पकड़े हुए और बिना लंड बाहर निकाले हुए पलट गया।

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#6
अब शेखर ऊपर था प्रगति नीचे और चुदाई लगातार चल रही थी। प्रगति उसके प्रहारों का जमकर जवाब दे रही थी और अपनी तरफ से शेखर के लंड को पूरी तरह अन्दर लेने में सहायता कर रही थी। दोनों बहुत मस्त थे। यकायक प्रगति के मुँह से आवाजें आने लगीं- .. " ऊऊह आः हाँ हाँ .. और ज़ोर से ... हाँ हाँ .. चलते रहो ... और .. और .... मुझे मार डालो ... मेरे मम्मे नोंचो .... ऊऔउई ..."

शेखर यह सुन कर और उत्तेजित हो कर ज़ोर ज़ोर से चोदने लगा। चार पांच छोटे धक्कों के बाद लंड पूरा बाहर निकाल कर पेलने लगा। जब वह ऐसा करता तो प्रगति ख़ुशी से चिल्लाती " हाँ ऐसे ... और करो ....और करो .. "
शेखर का स्खलन आम तौर पर 4-5 मिनटों में हो जाया करता था पर आज चूंकि यह उसका तीसरा वार था और उसे प्रगति जैसी लड़की का सुख प्राप्त हो रहा था, उसका लंड मानो चरमोत्कर्ष तक पहुंचना ही नहीं चाहता था। यह जान कर शेखर को अपने मर्दानगी पर नया गर्व हो रहा था और वह दुगने जोश से चोद रहा था।
उसने प्रगति को अपने हाथों और घुटनों पर हो जाने को कहा और फिर पीछे से उसकी चूत में प्रवेश करके चोदने लगा। उसके हाथ प्रगति के मम्मों को गूंथ रहे थे। अब हर बार उसका लंड पूरा बाहर आता और फिर एक ही झटके में पूरा अन्दर चला जाता। शेखर ने एक ऊँगली प्रगति की योनि-मटर के आस पास घुमानी शुरू की तो प्रगति एक गेंद की तरह ऊपर नीचे फुदकने लगी। उस से इतना सारा मज़ा नहीं सहा जा रहा था।
उसकी उन्माद में ऊपर नीचे होने की गति बढ़ने लगी तो अचानक लंड फिसल कर बाहर आ गया। इस से पहले कि शेखर लंड को फिर से अन्दर डालता प्रगति ने करवट लेकर उसको अपने मुँह में ले लिया और अपने थूक से अच्छे से गीला कर दिया। और फिर अपनी चूत लंड की सीध में करके चुदने के लिए तैयार हो गई। शेखर ने प्रगति को फिर से पीठ के बल लेटने को कहा और आसानी से गीले लंड को फिच से अन्दर डाल दिया।
प्रगति आराम से लेट गई और शेखर भी उसके ऊपर पूरा लेट गया। लंड पूरा अन्दर था और शेखर का वज़न थोड़ा प्रगति के बदन पर और थोड़ा अपनी कोहनियों पर था। शेखर के सीने के नीचे प्रगति के सख्त बोबे पिचक रहे थे और तनी हुई चूचियां शेखर को छेड़ रहीं थीं। रह रह कर शेखर अपने कूल्हे ऊपर उठा कर अपने लंड को अन्दर बाहर करता रहता पर ज्यादातर बस प्रगति पर लेटा रहता। वह बस इतनी ही हरकत कर रहा था जिस से उसका लंड शिथिल ना हो। उसने प्रगति से पूछा कि वह ठीक है या उसे तकलीफ हो रही है ? जवाब मैं प्रगति ने ऊपर हो कर उसके होटों पर पुच्ची दे दी।
शेखर अब बहुत आराम से सम्भोग का मज़ा ले रहा था। उसने प्रगति की भुजाओं को पूरा फैला दिया था और उसकी टांगों को जोड़ दिया था जिस से उसके लंड को योनि ने और कस लिया। जब शेखर मैथुन का धक्का मरता तो उसे तंग और कसी हुई योनि मिलती। शेखर को ऐसा लग रहा था मानो वह किसी कुंवारी बाला का पहला प्यार हो। उधर प्रगति को टांगें बंद करने से शेखर का लंड और भी मोटा लगने लगा था। दोनों के मज़े बढ़ गए थे। कुछ देर इसी तरह मगरमच्छ की तरह मैथुन करने के बाद शेखर ने प्रगति कि टांगें एक बार फिर खोल दीं और नीचे खिसक कर उसकी योनि मटर पर जीभ फेरने लगा।
प्रगति को मानो करंट लग गया.वह उछल गई। शेखर ने उसके मटर को खूब चखा। प्रगति की चूत में पानी आने लगा और वह आपे से बाहर होने लगी। यह देखकर शेखर फिर पूरे जोश के साथ चोदने लगा। पांच-छः छोटे धक्के और दो लम्बे धक्कों का सिलसिला शुरू किया। एक ऊँगली उसने प्रगति की गांड में घुसा दी एक अंगूठा मटर पर जमा दिया। शेखर को यह अच्छा लग रहा था कि उसे स्खलन का संकेत अभी भी नहीं मिला था। उसे एक नई जवानी का आभास होने लगा। इस अनुभूति के लिए वह प्रगति का आभार मान रहा था। उसी ने उसमें यह जादू भर दिया था। वह बेधड़क उसकी चुदाई कर रहा था।
प्रगति अब चरमोत्कर्ष की तरफ बढ़ रही थी। उसका बदन अपने आप डोले ले रहा था उसकी आँखें लाल डोरे दिखा रही थी, साँसें तेज़ हो रहीं थीं। स्तन उफ़न रहे थे और चूचियां नई ऊँचाइयाँ छू रहीं थीं। उसकी किलकारियां और सिसकियाँ एक साथ निकल रहीं थीं। प्रगति ने शेखर को कस के पकड़ लिया और उसके नाखून शेखर कि पीठ में घुस रहे थे। वह ज़ोर से चिल्लाई और एक ऊंचा धक्का दे कर शेखर से लिपट गई और उसके लंड को चोदने से रोक दिया। उसका शरीर मरोड़ ले रहा था और उसकी आँखों में ख़ुशी के आँसू थे। थोड़ी देर में वह निढाल हो गई और बिस्तर पर गिर गई।
शेखर ने अपना लंड बाहर निकालने की कोशिश की तो प्रगति ने उसे रोक दिया, बोली कि थोड़ी देर रुक जाओ। मैं तो स्वर्ग पा चुकी हूँ पर तुम्हें पूरा आनंद लिए बिना नहीं जाने दूँगी। तुमने मेरे लिए इतना किया तो मैं भी तुम्हें क्लाइमेक्स तक देखना चाहती हूँ। शेखर ने थोड़ी देर इंतज़ार किया। जब प्रगति की योनि थोड़ी शांत हो गई तो उसने फिर से चोदना शुरू किया। उसका लंड थोड़ा आराम करने से शिथिल हो गया था तो शेखर ने ऊपर सरक कर अपना लंड प्रगति के मम्मों के बीच में रख कर रगड़ना शुरू किया। कुछ देर बाद प्रगति ने शेखर को अपने तरफ खींच कर उसका लंड लेटे लेटे अपने मुँह में ले लिया और जीभ से उसे सहलाने लगी।
बस फिर क्या था। वह फिर से जोश में आने लगा और देखते ही देखते अपना विकराल रूप धारण कर लिया। शेखर ने मुँह से निकाल कर नीचे खिसकते हुए अपना लंड एक बार फिर प्रगति की चूत में डाल दिया और धीरे धीरे चोदने लगा। उसकी गति धीरे धीरे तेज़ होने लगी और वार भी पूरा लम्बा होने लगा। प्रगति भी साथ दे रही थी और बीच बीच में अपनी टांगें जोड़ कर चूत तंग कर लेती थी। शेखर ने अपने शरीर को प्रगति के सिर की तरफ थोड़ा बढ़ा लिया जिससे उसका लंड घर्षण के दौरान प्रगति के मटर के साथ रगड़ रहा था। यह प्रगति के लिए एक नया और मजेदार अनुभव था। उसने अपना सहयोग और बढ़ाया और गांड को ज़ोर से ऊपर नीचे करने लगी। अब शेखर को उन्माद आने लगा और वह नियंत्रण खोने लगा। उसके मुँह से अचानक गालियाँ निकलनी लगीं," साली अब बोल कैसा लग रहा है? ... आआअह्ह्ह्हाअ अब कभी किसी और से मराएगी तो तेरी गांड मार दूंगा .... आह्हा कैसी अच्छी चूत है !! ..... मज़ा आ गया .... साली गांड भी मराती है क्या? ..... मुझसे मरवाएगी तो तुझे पता चलेगा ..... ऊओह ."

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#7
कहते हैं जब इंसान चरमोत्कर्ष को पाता है तो जानवर हो जाता है। कुछ ऐसा ही हाल शेखर का हो रहा था। वह एक भद्र अफसर से अनपढ़ जानवर हो गया था। थोड़ी ही देर में उसके वीर्य का गुब्बारा फट गया और वह ज़ोर से गुर्रा के प्रगति के बदन पर गिर गया और हांफने लगा। उसका वीर्य प्रगति की योनि में पिचकारी मार रहा था। शेखर क्लाइमेक्स के सुख में कंपकंपा रहा था और उसका फव्वारा अभी भी योनि को सींच रहा था। कुछ देर में वह शांत हो गया और शव की भांति प्रगति के ऊपर पड़ गया।

शेखर ने ऐसा मैथुनी भूकंप पहले नहीं देखा था। वह पूरी तरह निढाल और निहाल हो चुका था। उधर प्रगति भी पूरी तरह तृप्त थी। उसने भी इस तरह का भूचाल पहली बार अनुभव किया था। दोनों एक दूसरे को कृतज्ञ निगाहों से देख रहे थे। शेखर ने प्रगति को प्यार भरा लम्बा चुम्बन दिया। अब तक उसका लिंग शिथिल हो चुका था अतः उसने बाहर निकाला और उठ कर बैठ गया। प्रगति भी पास में बैठ गई और उसने शेखर के लिंग को झुक कर प्रणाम किया और उसके हर हिस्से को प्यार से चूमा।
शेखर ने कहा- और मत चूमो नहीं तो तुम्हें ही मुश्किल होगी।
प्रगति बोली कि ऐसी मुश्किलें तो वह रोज झेलना चाहती है। यह कह कर उसने लंड को पूरा मुँह में लेकर चूसा मानो उसकी आखिरी बूँद निकाल रही हो। उसने लंड को चाट कर साफ़ कर दिया और फिर खड़ी हो गई।
घड़ी में शाम के छः बज रहे थे। उन्होंने करीब छः घंटे रति-रस का भोग किया था। दोनों थके भी थे और चुस्त भी थे। प्रगति शेखर को बाथरूम में ले गई और उसको प्यार से नहलाया, पौंछा और तैयार किया। फिर खुद नहाई और तैयार हुई। शेखर के लिंग को पुच्ची करते हुए उसने शेखर को कहा कि अब यह मेरा है। इसका ध्यान रखना। इसे कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए। मैं चाहती हूँ कि यह सालों तक मेरी इसी तरह आग बुझाये।
शेखर ने उसी अंदाज़ में प्रगति की चूत और गांड पर हाथ रख कर कहा कि यह अब मेरी धरोहर हैं। इन्हें कोई और हाथ ना लगाये। प्रगति ने विश्वास दिलाया कि ऐसा ही होगा पर पूछा की गांड से क्या लेना देना? शेखर ने पूछा कि क्या अब तक उसके पति ने उसकी गांड नहीं ली?
प्रगति ने कहा- नहीं ! उनको तो यह भी नहीं पता कि यह कैसे करते हैं।
शेखर ने कहा कि अगर तुम्हे आपत्ति न हो तो मैं तुम्हें सिखाऊंगा। प्रगति राजी राजी मान गई। शेखर ने अगले शुक्रवार के लिए तैयार हो कर आने को कहा और फिर दोनों अपने अपने घर चले गए।
शेखर अब अगले शुक्रवार की तैयारी में जुट गया। वह चाहता था कि अगली बार जब वह प्रगति के साथ हो तो वह अपनी सबसे पुरानी और तीव्र इच्छा को पूरा कर पाए।
उसकी इच्छा थी गांड मारने की। वह बहुत सालों से इसकी कोशिश कर रहा था पर किसी कारण बात नहीं बन रही थी।
उसे ऐसा लगा कि शायद प्रगति उसे खुश करने के लिए इस बात के लिए राज़ी हो जायेगी। उसे यह भी पता था कि उसकी यह मुराद इतने सालों से पूरी इसलिए नहीं हो पाई थी क्योंकि इस क्रिया मैं लड़की को बहुत दर्द हो सकता है इसीलिए ज्यादातर लड़कियाँ इसके खिलाफ होती हैं। उनके इस दर्द का कारण भी खुद आदमी ही होते हैं, जो अपने मज़े में अंधे हो जाते हैं और लड़की के बारे में नहीं सोचते।

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#8
शेखर को वह दिन याद है जब वह सातवीं कक्षा में था और एक हॉस्टल में रहता था। तभी एक ग्यारहवीं कक्षा के बड़े लड़के, हर्ष ने उसके साथ एक बार बाथरूम में ज़बरदस्ती करने की कोशिश की थी तो शेखर को कितना दर्द हुआ था वह उसे आज तक याद है।

शेखर चाहता था कि जब वह अपनी मन की इतनी पुरानी मुराद पूरी कर रहा हो तब प्रगति को भी मज़ा आना चाहिए। अगर ऐसा हुआ तो न केवल उसका मज़ा दुगना हो जायेगा, हो सकता है प्रगति को भी इसमें इतना मज़ा आये की वह भविष्य में भी उससे गांड मरवाने की इच्छा जताए।
शेखर को पता था कि गांड में दर्द दो कारणों से होता है। एक तो चूत के मुकाबले उसका छेद बहुत छोटा होता है जिससे लंड को प्रवेश करने के लिए उसके घेरे को काफी खोलना पड़ता है जिसमें दर्द होता है। दूसरा, चूत के मुकाबले गांड में कोई प्राकृतिक रिसाव नहीं होता जिस से लंड के प्रवेश में आसानी हो सके। इस सूखेपन के कारण भी लंड के प्रवेश से दर्द होता है। यह दर्द आदमी को भी हो सकता है पर लड़की (या जो गांड मरवा रहा हो) को तो होता ही है।
भगवान ने यह छेद शायद मरवाने के लिए नहीं बनाया था !!!
शेखर यही सोच रहा था कि इस क्रिया को किस तरह प्रगति के लिए बिना दर्द या कम से कम दर्द वाला बनाया जाए।
उसे एक विचार आया। उसने एक बड़े आकार की मोमबत्ती खरीदी और चाकू से शिल्पकारी करके उसे एक मर्द के लिंग का आकार दे दिया। उसने यह देख लिया कि इस मोम के लिंग में कहीं कोई खुरदुरापन या चुभने वाला हिस्सा नहीं हो।
उसने जानबूझ कर इस लिंग की लम्बाई ९-१० इंच रखी जो कि आम लंड की लम्बाई से ३-४ इंच ज्यादा है और उसका घेरा आम लंड के बराबर रखा। उसने मोम के लिंग का नाम भी सोच लिया। वह उसे "बलराम" बुलाएगा !
उसने बाज़ार से एक के-वाई जेली का ट्यूब खरीद लिया। वैसे तो प्रगति के बारे में सोच कर शेखर को जवानी का अहसास होने लगा था फिर भी एहतियात के तौर पर उसने एक पत्ती तडालफ़िल की गोलियों की खरीद ली जिस से अगर ज़रुरत हो तो ले सकता है। वह नहीं चाहता था कि जिस मनोकामना की पूर्ति के लिए वह इतना उत्सुक है उसी की प्राप्ति के दौरान उसका लंड उसे धोखा दे जाये। एक गोली के सेवन से वह पूरे २४ घंटे तक "बलराम" की बराबरी कर पायेगा।
अब उसने अपने हाथ की सभी उँगलियों के नाखून काट लिए और उन्हें अच्छे से फाइल कर लिया। एक बैग में उसने "बलराम", के-वाई जेली का ट्यूब, एक छोटा तौलिया और एक नारियल तेल की शीशी रख ली। अब वह प्रगति से मिलने और अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए तैयार था। बेसब्री से वह अगले शुक्रवार का इंतज़ार करने लगा।
उधर प्रगति भी शेखर के ख्यालों में गुम थी। उसे रह रह कर शेखर के साथ बिताये हुए पल याद आ रहे थे। वह जल्द से जल्द फिर से उसकी बाहों में झूलना चाहती थी। शेखर से मिले दस दिन हो गए थे। उस सुनहरे दिन के बाद से वे मिले नहीं थे। शेखर को किसी काम से कानपुर जाना पड़ गया था। पर वह कल दफ्तर आने वाला था।
प्रगति सोच नहीं पा रही थी कि अब दफ्तर में वह शेखर से किस तरह बात करेगी या फिर शेखर उस से किस तरह पेश आएगा। कहीं ऐसा तो नहीं कि आम आदमियों की तरह वह उसकी अवहेलना करने लगेगा। कई मर्द जब किसी लड़की की अस्मत पा लेते हैं तो उसमें से उनकी रुचि हट जाती है और कुछ तो उसे नीचा समझने लगते हैं ....। प्रगति कुछ असमंजस में थी ....।
लालसा, वासना, डर, आशंका, ख़ुशी और उत्सुकता का एक अजीब मिश्रण उसके मन में हिंडोले ले रहा था।
प्रगति ने सुबह जल्दी उठ कर विशेष रूप से उबटन लगा कर देर तक स्नान किया। भूरे रंग की सेक्सी पैंटी और ब्रा पहनी जिसे पहन कर ऐसा लगता था मानो वह नंगी है। उसके ऊपर हलके बैंगनी रंग की चोली के साथ पीले रंग की शिफोन की साड़ी पहन कर वह बहुत सुन्दर लग रही थी। बालों में चमेली का गजरा तथा आँखों में हल्का सा सुरमा। चूड़ियाँ, गले का हार, कानों में बालियाँ और अंगूठियाँ पहन कर ऐसा नहीं लग रहा था कि वह दफ्तर जाने के लिए तैयार हो रही हो। प्रगति मानो दफ्तर भूल कर अपनी सुहाग रात की तैयारी कर रही थी।

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#9
सज धज कर जब उसने अपने आप को शीशे में देखा तो खुद ही शरमा गई। उसके पति ने जब उसे देखा तो पूछ उठा- कहाँ कि तैयारी है ...?

प्रगति ने बताया कि आज दफ्तर में ग्रुप फोटो का कार्यक्रम है इसलिए सब को तैयार हो कर आना है !! रोज़ की तरह उसका पति उसे मोटर साइकिल पर दफ्तर तक छोड़ कर अपने काम पर चला गया। प्रगति ने चलते वक़्त उसे कह दिया हो सकता है आज उसे दफ्टर में देर हो जाये क्योंकि ग्रुप फोटो के बाद चाय-पानी का कार्यक्रम भी है।
दफ्तर १० बजे शुरू होता था पर प्रगति ९.३० बजे पहुँच जाती थी क्योंकि उसे छोड़ने के बाद उसके पति को अपने दफ्तर भी जाना होता था। प्रगति ने ख़ास तौर से शेखर का कमरा ठीक किया और पिछले १० दिनों की तमाम रिपोर्ट्स और फाइल करीने से लगा कर शेखर की मेज़ पर रख दी।
कुछ देर में दफ्तर के बाकी लोग आने शुरू हो गए। सबने प्रगति की ड्रेस की तारीफ़ की और पूछने लगे कि आज कोई ख़ास बात है क्या?
प्रगति ने कहा कि अभी उसे नहीं मालूम पर हो सकता है आज का दिन उसके लिए नए द्वार खोल सकता है !!!
लोगों को इस व्यंग्य का मतलब समझ नहीं आ सकता था !!
वह मन ही मन मुस्कराई ....
ठीक दस बजे शेखर दफ्तर में दाखिल हुआ। सबने उसका अभिनन्दन किया और शेखर ने सबके साथ हाथ मिलाया। जब प्रगति शेखर के ऑफिस में उस से अकेले में मिली शेखर ने ऐसे बर्ताव किया जैसे उनके बीच कुछ हुआ ही न हो। वह नहीं चाहता था कि दफ्तर के किसी भी कर्मचारी को उन पर कोई शक हो। प्रगति को उसने दफ्तर के बाद रुकने के लिए कह दिया जिस से उसके दिल की धड़कन बढ़ गई।
किसी तरह शाम के ५ बजे और सभी लोग शेखर के जाने का इंतजार करने लगे। शेखर बिना वक़्त गँवाए दफ्तर से घर की ओर निकल पड़ा। शीघ्र ही बाकी लोग भी निकल गए। प्रगति यह कह कर रुक गई कि उसे एक ज़रूरी फैक्स का इंतजार है। उसके बाद वह दफ्तर को ताला भी लगा देगी और चली जायेगी।
उसने चौकीदार को भी छुट्टी दे दी। जब मैदान साफ़ हो गया तो प्रगति ने शेखर को मोबाइल पर खबर दे दी। करीब आधे घंटे बाद शेखर दोबारा ऑफिस आ गया और अन्दर से दरवाज़ा बंद करके दफ्टर की सभी लाइट, पंखे व एसी बंद कर दिए। सिर्फ अन्दर के गेस्ट रूम की एक लाइट तथा एसी चालू रखा।
अब उसने प्रगति को अपनी ओर खींच कर जोर से अपने आलिंगन में ले लिया और वे बहुत देर तक एक दूसरे के साथ जकड़े रहे। सिर्फ उनके होंठ आपस में हरकत कर रहे थे और उनकी जीभ एक दूसरे के मुँह की गहराई नाप रही थी। थोड़ी देर में शेखर ने पकड़ ढीली की तो दोनों अलग हुए।
घड़ी में ५.३० बज रहे थे। समय कम बचा था इसलिए शेखर ने अपने कपड़े उतारने शुरू किये पर प्रगति ने उसे रोक कर खुद उसके कपड़े उतारने लगी। शेखर को निर्वस्त्र कर उसने उसके लिंग को झुक कर पुच्ची की और खड़ी हो गई।
अब शेखर ने उसे नंगा किया और एक बार फिर दोनों आलिंगन बद्ध हो गए। इस बार शेखर का लिंग प्रगति की नाभि को टटोल रहा था। प्रगति ने अपने पंजों पर खड़े हो कर किसी तरह लिंग को अपनी योनि की तरफ किया और अपनी टांगें थोड़ी चौड़ी कर लीं। शेखर का लिंग अब प्रगति की चूत के दरवाज़े पर था और प्रगति उसकी तरफ आशा भरी नज़रों से देख रही थी। शेखर ने एक ऊपर की तरफ धक्का लगाया और उसका लंड चूत में थोड़ा सा चला गया।
अब उसने प्रगति को चूतड़ से पकड़ कर ऊपर उठा लिया और प्रगति ने अपने हाथ शेखर की गर्दन के इर्द-गिर्द कर लिए तथा उसकी टांगें उसकी कमर से लिपट गईं। अब वह अधर थी और शेखर खड़ा हो कर उसे अपने लंड पर उतारने की कोशिश कर रहा था। थोड़ी देर में लंड पूरा प्रगति की चूत में घुस गया या यों कहिये कि चूत उसके लंड पर पूरी उतर गई।
प्रगति ने ऊपर नीचे हो कर अपने आप को चुदवाना शुरू किया। उसे बड़ा मज़ा आ रहा था क्योंकि ऐसा आसन उसने पहली बार ग्रहण किया था। कुछ देर के बाद शेखर ने बिना लंड बाहर निकाले प्रगति को बिस्तर पर लिटा दिया और उसके ऊपर लेट कर उसको जोर जोर से चोदने लगा। हालाँकि शेखर आज प्रगति की गांड मारने के इरादे से आया था पर काम और क्रोध पर किसका जोर चलता है !!

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#10
शेखर २-३ मिनटों में ही बेहाल हो गया और उसकी पिचकारी प्रगति की योनि में छूट गई। शेखर की यही एक कमजोरी थी कि पहली बार उसका काम बहुत जल्दी तमाम हो जाता था। पर दूसरी और तीसरी बार जब वह सम्भोग करता था तो काफी देर तक डटा रह सकता था।

उसने लंड बाहर निकाला और प्रगति को माथे पर पुच्ची करके बाथरूम चला गया। अपना लंड धो कर वह वापस आ गया। प्रगति जब कुछ देर के लिए बाथरूम गई तो शेखर ने एक गोली खा ली। शाम के ६ बज रहे थे। अभी भी उसके पास करीब २ घंटे थे। जब प्रगति वापस आई तो शेखर ने उससे पूछा कि वह कितनी देर और रुक सकती है।
प्रगति ने भी अपने पति से देर से आने की बात कह दी थी सो उसे भी कोई जल्दी नहीं थी। तो शेखर ने सोचा की शायद आज ही उसकी बरसों की मनोकामना पूरी हो जायेगी। उसने प्रगति से पूछा वह उस से कितना प्यार करती है।
प्रगति ने कहा- इम्तिहान ले कर देख लो !!
शेखर ने कहा- कितना दर्द सह सकती हो?
प्रगति ने कहा- जब औरत बच्चे को जन्म दे सकती है तो बाकी दर्द की क्या बात !!
यह सुन कर शेखर खुश हो गया और प्रगति को बिस्तर पर उल्टा लेटने के लिए बोला। प्रगति एक अच्छी लड़की की तरह झट से उलटा लेट गई। शेखर ने उसके पेट के नीचे एक मोटा तकिया लगा दिया जिस से उसकी गांड ऊपर की ओर और उठ गई।
शेखर ने अपने बैग से तेल की शीशी, जेली का ट्यूब, छोटा तौलिया और "बलराम" को निकाला और पास की मेज़ पर रख दिया। प्रगति का मुँह तकिये में छुपा था और शायद उसकी आँखें बंद थीं। वह जानती थी कि क्या होने वाला है और वह शेखर की खातिर कोई भी दर्द सहने के लिए तैयार थी।
शेखर ने नारियल के तेल से प्रगति के चूतड़ों की मालिश शुरू की। प्रगति की मांस पेशियाँ जो कसी हुईं थीं उन्हें धीरे धीरे ढीला किया और उसके बदन से टेंशन दूर करने लगा। उसके हाथ कई बार उसकी चूत के इर्द गिर्द और उसके अन्दर भी आने जाने लगे थे। प्रगति को आराम भी मिल रहा था और मज़ा भी आ रहा था।
इस तरह मालिश करते करते शेखर ने प्रगति की गांड के छेद के आस पास भी ऊँगली घुमाना शुरू किया और अच्छी तरह तेल से गांड को गीला कर दिया। अब उसने अपनी तर्जनी ऊँगली उसकी गांड में डालने की कोशिश की। ऊँगली गांड में थोड़ी सी घुस गई तो प्रगति थोड़ी सी हिल गई।
शेखर ने पूछा- कैसा लग रहा है?
तो प्रगति ने कहा- अच्छा !
उसने कहा की अब वह ऊँगली पूरी अन्दर करने की कोशिश करेगा और प्रगति को इस तरह जोर लगाना चाहिए जैसे वह शौच के वक़्त लगाती है। इससे गांड का छेद अपने आप ढीला और बड़ा हो जायेगा। प्रगति ने वैसा ही किया और शेखर की एक ऊँगली उसकी गांड में पूरी चली गई।
शेखर ने कोई और हरकत नहीं की और ऊँगली को कुछ देर अन्दर ही रहने दिया। फिर उसने प्रगति से पूछा- कैसा लग रहा है?
प्रगति ने कहा- ठीक है।
तो शेखर ने धीरे से अपनी ऊँगली बाहर निकाल ली।
अब उसने अपनी ऊँगली पर जेली अच्छी तरह से लगा ली और प्रगति की गांड के बाहर और करीब आधा इंच अन्दर तक अच्छी तरह से जेली मल दी। अब उसने प्रगति से कहा कि जब वह ऊँगली अन्दर की तरफ डालने की कोशिश करे उसी वक़्त प्रगति को शौच वाला जोर लगाना चाहिए। जब दोनों ने ऐसा किया तो ऊँगली बिना ज्यादा मुश्किल के अन्दर चली गई।
शेखर ने ऊँगली अन्दर ही अन्दर घुमाई और बाहर निकल ली। अब उसने अपनी दो उँगलियों पर जेली लगाई और वही क्रिया दोहराई। दो उँगलियों के अन्दर जाने में प्रगति को थोड़ी तकलीफ हुई पर ज्यादा दर्द नहीं हुआ।
शेखर हर कदम पर प्रगति से उसके दर्द के बारे में पूछता रहता था। उसने इसीलिए अपनी उँगलियों के नाखून काट कर फाइल कर लिए थे वरना प्रगति को अन्दर से कट लग सकता था...
एक दो बार जब दो उँगलियों से गांड में प्रवेश की क्रिया ठीक से होने लगी तो उसने दो उँगलियों को गांड के अन्दर घुमाना शुरू किया जिस से गांड का छेद और ढीला हो सके।
इसके बाद उसने "बलराम" को निकाला और उसके अगले ४-५ इंच को अच्छी तरह जेली से लेप दिया। प्रगति की गांड के छेद के इर्द गिर्द और अन्दर भी अच्छे से जेली लगा दी। अब शेखर ने प्रगति की टांगें थोड़ी और चौड़ी कर दी और बलराम को उसकी गांड के छेद पर रख दिया। दूसरे हाथ से वह उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगा। बलराम का स्पर्श प्रगति को ठंडा लगा और उसकी गांड यकायक टाइट हो गई।
उसने पलट कर देखा तो बलराम को देख कर आश्चर्यचकित रह गई। उसने ऐसा यन्त्र पहले नहीं देखा था। शेखर ने बताया कि इसे उसने खुद ही बनाया है और इसको इस्तेमाल करके वह प्रगति के दर्द को कम करेगा। उसने यह भी बताया कि इस यन्त्र का नाम "बलराम" है। नाम सुन कर प्रगति को हंसी आ गई।
शेखर ने आश्वासन के तौर पर उसकी पीठ थपथपाई और फिर से उलटे लेट जाने को कहा। उसने प्रगति को याद दिलाया की किस तरह (शौच की तरह) उसे अपनी गांड ढीली करनी है जिस से बलराम गांड में जा सके। प्रगति ने सिर हिला कर सहयोग करने का इशारा किया।
अब शेखर ने कहा कि तीन की गिनती पर वह बलराम को अन्दर करेगा। प्रगति तैयार हो गई पर अनजाने में फिर उसकी गांड टाइट हो गई। शेखर ने उसे घबराने से मना किया और उसकी योनि, पीठ तथा चूतड़ों पर प्यार से हाथ सहलाने लगा।
उसने कहा- जल्दबाजी की कोई ज़रुरत नहीं है। अगर तुम तैयार नहीं हो तो किसी और दिन करेंगे।
प्रगति ने कहा- ऐसी कोई बात नहीं है और मैं तैयार हूँ !
शेखर ने कहा "ओ के, अब मैं तीन गिनूंगा तुम तीन पर अपनी गांड ढीली करना"।
प्रगति ने चूतड़ हिला कर हाँ का इशारा किया। शेखर ने एक, दो, तीन कहते हुए तीन पर बलराम को गांड के छेद में डालने के लिए जोर लगाया। पर प्रगति की कुंवारी गांड बलराम की चौड़ाई के लिए तैयार नहीं थी सो बलराम अपने निशाने से फिसल गया और जेली के कारण बाहर आ गया। शेखर की हंसी छूट गई और प्रगति भी मुस्करा कर पलट गई।
शेखर ने कहा- कोई बात नहीं, एक बार फिर कोशिश करते हैं।

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#11
उसने बलराम के सुपारे पर थोड़ी और जेली लगाई और एक-दो-तीन कह कर फिर से कोशिश की। इस बार बलराम करीब आधा इंच अन्दर चला गया। प्रगति के मुँह से एक हलकी सी आवाज़ निकली।

शेखर ने एकदम बलराम को बाहर निकाल कर प्रगति से पूछा कि कैसा लगा? दर्द बहुत हुआ क्या?
प्रगति ने पलट कर उसके होटों पर एक ज़ोरदार चुम्मी की और कहा- तुम मेरा इतना ध्यान रख रहे हो तो मुझे दर्द कैसे हो सकता है !! अब मेरे बारे में सोचना बंद करो और बलरामजी को अन्दर डालो।
यह सुनकर शेखर का डर थोड़ा कम हुआ और उसने कहा- ठीक है, चलो इस बार देखते हैं तुम में कितना दम है !!
एक बार फिर जेली गांड और बलराम पर लगा कर उसने एक-दो-तीन कह कर थोड़ा ज्यादा ज़ोर लगाया। इस बार बलराम अचानक करीब डेढ़ इंच अन्दर चला गया और प्रगति ने कोई आवाज़ नहीं निकाली। बस एक लम्बी सांस लेकर छोड़ दी। शेखर ने बलराम को अन्दर ही रहने दिया और प्रगति की पीठ सहलाने लगा। उसने प्रगति को शाबाशी दी और कहा वह बहुत बहादुर है।
थोड़ी देर बाद शेखर ने प्रगति को बताया कि अब वह बलराम को बाहर निकालेगा। और फिर धीरे धीरे बलराम को बाहर खींच लिया। उसने प्रगति से पूछा उसे अब तक कैसा लगा तो प्रगति ने कहा कि उसे दर्द नहीं हुआ और थोड़ा मज़ा भी आया।
शेखर ने प्रगति को आगाह किया कि इस बार वह बलराम को और अन्दर करेगा और अगर प्रगति को तकलीफ नहीं हुई तो बलराम से उसकी गांड को चोदने की कोशिश करेगा। प्रगति ने कहा वह तैयार है।
पर शेखर ने एक बार फिर सब जगह जेली का लेप किया और तीन की गिनती पर बलराम को घुमाते हुए उसकी गांड के अन्दर बढ़ा दिया। प्रगति थोड़ा कसमसाई क्योंकि बलरामजी इस बार करीब चार इंच अन्दर चले गए थे। शेखर ने प्रगति को और शाबाशी दी और कहा कि अब वह तीन की गिनती नहीं करेगा बल्कि प्रगति को खुद अपनी गांड उस समय ढीली करनी होगी जब उसे लगता है कि बलराम अन्दर जा रहा है।
यह कह कर उसने बलराम को धीरे धीरे अन्दर बाहर करना शुरू किया। हर बार जब बलराम को वह अन्दर करता तो थोड़ा और ज़ोर लगाता जिससे बलराम धीरे धीरे अब करीब ६ इंच तक अन्दर पहुँच गया था। प्रगति को कोई तकलीफ नहीं हो रही थी। यह उसके हाव भाव से पता चल रहा था। शेखर ने प्रगति की परीक्षा लेने के लिए अचानक बलराम को पूरा बाहर निकाल लिया और फिर से अन्दर डालने की कोशिश की। प्रगति चौकन्नी थी और उसने ठीक समय पर अपनी गांड को ढील दे कर बलराम को अपने अन्दर ले लिया। शेखर प्रगति की इस बात से बहुत खुश हुआ और उसने प्रगति की जाँघों को प्यार से पुच्ची कर दी।
अब वह बलराम से उसकी गांड चोद रहा था और अपनी उँगलियों से उसकी चूत के मटर को सहला रहा था जिससे प्रगति उत्तेजित हो रही थी और अपने बदन को ऊपर नीचे कर रही थी। कुछ देर बाद शेखर ने बलराम को धीरे से बाहर निकाला और प्रगति को पलटने को कहा। उसने प्रगति के पेट और मम्मों को पुच्चियाँ करते हुआ कहा कि उसके हिसाब से वह गांड मरवाने के लिए तैयार है।
प्रगति ने कहा- हाँ, मैं तैयार हूँ पर शेखर के लंड की तरफ इशारा करते हुए कहा कि यह जनाब तो तैयार नहीं हैं, लाओ इन्हें मैं तैयार करूँ।
शाम के सात बज रहे थे। अभी एक घंटा और बचा था। प्रगति की उत्सुकता देख कर उसका मन भी गांड मारने के लिए डोल उठा। उसके लंड पर प्रगति की जीभ घूम रही थी और उसके हाथ शेखर के अण्डों को टटोल रहे थे। साथ ही साथ गोली का असर भी हो रहा था।
थोड़ी ही देर में शेखर का लंड ज़ंग के लिए तैयार हो गया। पहली बार गांड में घुसने की उम्मीद में वह कुछ ज़्यादा ही बड़ा हो गया था। प्रगति ने उसके सुपारे को चुम्बन दिया और शेखर के इशारे पर पहले की तरह उलटी लेट गई। शेखर ने उसके कूल्हे थोड़े और ऊपर की ओर उठाये और टांगें और खोल दी। प्रगति का सिर उसने तकिये पर रखने को कहा और छाती को बिस्तर पर सटा दिया। अब उसने प्रगति की गांड की अन्दर बाहर जेली लगा दी और अपने लंड पर भी उसका लेप कर दिया। शेखर ने पीछे से आ कर अपने लंड को उसकी गांड के छेद पर टिकाया और प्रगति को पूछा कि क्या वह तैयार है ।
प्रगति तो तैयार ही थी। शेखर ने धीरे धीरे लंड को अन्दर डालने के लिए ज़ोर लगाया पर कुछ नहीं हुआ। एक बार फिर सुपारे को छेद की सीध में रखते हुए ज़ोर लगाया तो लंड झक से फिसल गया और चूत की तरफ चला गया। शेखर ने एक बार कोशिश की पर जब लंड फिर भी नहीं घुसा तो उसने फिर से बलराम का सहारा लिया। बलराम को जेली लगा कर फिर से कोशिश की तो बलराम आराम से अन्दर चला गया। बलराम से उसकी गांड को ढीला करने के बाद एक और बार शेखर ने अपने लंड से कोशिश की।
पर उसका लंड बलराम से थोड़ा बड़ा था और वह प्रगति को दर्द नहीं पहुँचाना चाहता था शायद इसीलिए वह ठीक से ज़ोर नहीं लगा रहा था। प्रगति ने मुड़ कर शेखर की तरफ देखा और कहा- मेरी चिंता मत करो। मुझे अभी तक दर्द नहीं हुआ है। तुम थोड़ा और ज़ोर लगाओ और मैं भी मदद करूंगी।

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#12
शेखर को और हिम्मत मिली और इस बार उसने थोड़ा और ज़ोर लगाया। उधर प्रगति ने भी अपनी गांड को ढीला करते हुए पीछे की तरफ ज़ोर लगाया। अचानक शेखर का लंड करीब एक इंच अन्दर चला गया। पर इस बार प्रगति की चीख निकल गई। इतनी तैयारी करने के बाद भी शेखर के लंड के प्रवेश ने प्रगति को हिला दिया।

शेखर को चिंता हुई तो प्रगति ने कहा- अब मत रुकना।
शेखर ने लंड का जो हिस्सा बाहर था उस पर और जेली लगाई और लंड को थोड़ा सा बाहर खींच कर एक और ज़ोर लगाया।
प्रगति ने भी पीछे के तरफ ज़ोर लगाया और शेखर का लंड लगभग पूरी तरह अन्दर चला गया। प्रगति थोड़ा सा हिली पर फिर संभल गई। शेखर से ज़्यादा प्रगति के कारण उन्हें यह सफलता मिली थी।
अब शेखर को अचानक अपनी सफलता का अहसास हुआ। उसका लंड इतनी टाइट सुरंग में होगा उसको अंदाजा नहीं था। उसे बहुत मज़ा आ रहा था। ख़ुशी के कारण उसका लंड शायद और भी फूल रहा था जिस से उसकी टाइट गांड और भी टाइट लग रही थी।
थोड़ी देर इस तरह रुकने के बाद उसने अपने लंड को हरकत देनी शुरू की। उसका लंड तो चूत का आदि था जिसमें अन्दर बाहर करना आसान होता है। गांड की और बात है। इस टाइट गुफा में जब उसने लंड बाहर करने की कोशिश की तो ऐसा लगा मानो प्रगति की गांड लंड को अपने से बाहर जाने ही नहीं देना चाहती। फिर भी शेखर ने थोड़ा लंड बाहर निकाला और जितना बाहर निकला उस हिस्से पर जेली और लगा ली। अब धीरे धीरे उसने अन्दर बाहर करना शुरू किया। बाहर करते वक़्त थोड़ा तेज़ और अन्दर करते वक़्त धीरे-धीरे की रफ्तार रखने लगा।
उसने प्रगति से पूछा- कैसा लग रहा है?
तो प्रगति ने बहुत ख़ुशी ज़ाहिर की। उसे वाकई बहुत मज़ा आ रहा था। उसने शेखर को और ज़ोर से चोदने के लिए कहा। शेखर ने अपनी गति बढ़ा दी और उसका लंड लगभग पूरा अन्दर बाहर होने लगा।
शेखर की तेज़ गति के कारण एक बार उसका लंड पूरा ही बाहर आ गया। अब वह इतनी आसानी से अन्दर नहीं जा रहा था जितना चूत में चला जाता है। उसने फिर से गांड में और लंड पर जेली लगाई और फिर पूरी सावधानी से लंड को अन्दर डाला। एक बार फिर प्रगति की आह निकली पर लंड अन्दर जा चुका था। शेखर ने फिर से चोदना शुरू किया। उसके लंड को गांड की कसावट बहुत अच्छी लग रही थी और उसे प्रगति के पिछले शरीर का नज़ारा भी बहुत अच्छा लग रहा था।
अब उसने प्रगति को आगे की ओर धक्का देते हुए बिस्तर पर सपाट लिटा दिया। वह भी उसके ऊपर सपाट लेट गया। प्रगति पूरी बिस्तर पर फैली हुई थी। उसकी टांगें और बाजू खुले हुए थे और उसके चूतड़ नीचे रखे तकिये के कारण ऊपर को उठे हुए थे। शेखर का पूरा शरीर उसके पूरे शरीर को छू रहा था। सिर्फ चोदने के लिए वह अपने कूल्हों को ऊपर नीचे करता था और उस वक़्त उनके इन हिस्सों का संपर्क टूटता था। शेखर ने अपने हाथ सरका कर प्रगति के बदन के नीचे करते हुए दोनों तरफ से उसके मम्मे पकड़ लिए। शेखर का पूरा बदन कामाग्नि में लिप्त था और उसने इतना ज्यादा सुख कभी नहीं भोगा था। उधर प्रगति ने भी इतना आनंद कभी नहीं उठाया था। उसके नितम्ब रह-रह कर शेखर के निचले प्रहार को मिलने के लिए ऊपर उठ जाते थे जिससे लंड का समावेश पूरी तरह उसकी गांड में हो रहा था। दोनों सातवें आसमान पर पहुँच गए थे।
अब शेखर चरमोत्कर्ष पर पहुँचने वाला था। उसके मुंह से मादक आवाजें निकलने लगी थी। प्रगति भी अजीब आवाजें निकल रही थी। शेखर ने गति तेज़ करते हुए एक बार लंड लगभग पूरा बाहर निकाल कर एक ही वार में पूरा अन्दर घुसेड़ दिया, प्रगति की ख़ुशी की चीख के साथ शेखर की दहाड़ निकली और शेखर का वीर्य फूट फूट कर उसकी गांड में निकल पड़ा। प्रगति ने अपनी गांड ऊपर की तरफ दबा कर उसके लंड को जितनी देर अन्दर रख सकती थी रखा। थोड़ी देर में शेखर का लंड स्वतः बाहर निकल गया और प्रगति की पीठ पर निढाल पड़ गया।
दोनों की साँसें तेज़ चल रही थी और दोनों पूर्ण तृप्त थे। शेखर ने प्रगति को उठा कर अपने सीने से लगा लिया। उसके पूरे चेहरे पर चुम्बन की वर्षा कर दी और कृतज्ञ आँखों से उसे निहारने लगा।
प्रगति ने भी घुटनों के बल बैठ कर शेखर के लिंग को पुचकारा और और धन्यवाद के रूप में उसको अपने मुँह में ले कर चूसने लगी। उसकी आँखों में भी कृतज्ञता के आँसू थे। दोनों एक बार फिर आलिंगनबद्ध होते हुए बाथरूम की तरफ चले गए।
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समाप्त
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