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घर के औरतों की कामुक वासना
#1
मैं शशि गोयल हूॅ। शादी को पॉच साल हुये हैं। मेरा छोटा परिवार है जिसमें मेरे पति अनिल और चार साल की बेटी स्वीटी है। सास ससुर है जो ज्यादातर समय राजिस्थान में अपनी खानदानी हवेली में रहते हैं। मेरे ससुर एक बहुत बड़े सरकारी पद पर थे। उन्होने दक्षिण दिल्ली में बसंत विहार मे एक बड़ी दो मंजिला कोठी बनबायी थी। अपने दोनों बच्र्चों मेरे पति और उनसे छोटी मेरी ननद को. उन्होने ऊॅची शिक्षा दी। मेरी ननद की एक अच्छे परिवार मे शादी हुयी है । उसके पति मध्यप्रदेश कैडर के आइ ए एस अफसर है। मेरे पति एक प्राईवेट कम्पनी में मैनेजर के पद पर हैं। घर में खुशहाली है और हमारे सम्बन्धों में मधुरता। मैं पूरी औरत हूॅ । मुझे चुदबाने में बड़ा मजा आता है और उतन ही मजा अनिल को मुझे चोदने में। पहले तो करीब करीब रोज चुदायी करते थे।अनिल बहुत व्यस्त रहते हैं।अब हफ्ते में दो दिन पर आ गये हैं। जिस दिन बीच में नहीं चुद पाती हूॅ तो मैं मिस करती हूॅ पर अगली बार हफ्ते भर की कसर निकाल लेती हूॅ। बैसे तो हम लोगों को आर्थिक जरूरत नहीं थी लेकिन मकान खाली पड़ा होने की बजह से हम लोगों ने ऊपर की मंजिल किराये पर उठा दी। ऊपर दो कमरे का पूरी यूनिट है। सामने खुली हुयी बड़ी सी छत जिसको हम लोग भी स्तेमाल करते रहते हैं। कपड़े बगैरह सुखाने डाल आते हैं। पहला जो किरायेदार आया वह सी पी डब्ल्यू डी में इंजीनियर था। नाम था राजन माथुर। अकेला जवान था शादी नहीं हुयी थी। आते ही स्वीटी से घ्ुालमिल गया। मुझे भी बड़े अपनेपन से भाभी भाभी बुलाने लगा। मैं बातचीत में बहुत जल्दी खुल जाती हूॅ। 

राजन से भी हॅसी मजाक करने लगी। शादी को ले कर उसको छेड़ती जिसमें सैक्स का पुट होता। वह भी कहता “भाभी जब तुम हो तो बीवी की क्या जरूरत है”। शायद मेरे खुलेपन का उसने गलत मतलब लगाया। वह बात बात में मेरा हाथ पकड़ता था. चिपकने की कोशिश करता था। एकाध बार उसने मेरी चूचियॉ दबा दीं। मैं मजाक समझ कर टाल गयी। थोड़े दिनों में ही उसकी नियत साफ हो गयी। मुझे घूरता था तो उसकी ऑखों में सैक्स साफ नजर आता था। उसकी नजरें मेरे सीने और टॉगों के बीच में ही गडी रहतीं। मुझे उलझन होने लगी थी। एक दिन मौका देख कर उसने मेरी चूत के ऊपर हाथ फेर दिया। मैने उसको सीधे शब्दों में झटक दिया “राजन मुझे यह सब पसंद नहीं है आगे से मत करना”।

लेकिन वह नहीं माना। एक दिन उसने मुझ को बॉहों में जकड़ लिया। मैं धक्का दे कर अलग हो गयी। मैं उस से दूर रहने लगी। अनिल को तो बैसे भी समय नहीं था। जब कभी वह होते उनके बहाने राजन आ जाता और तपाक से भाभी करता रहता पर मैं वहॉ आती ही नहीं थी। अनिल को मैने बतला दिया था कि वह मुझे अच्छा नहीं लगता है। एक दिन तो हद हो गयी। मैं झत पर कपड़े डालने गयी। देखा तो राजन दरवाजा खोले एकदम नंगा खड़ा हुआ था। उसकी तौंद निकली हुयी थी। उसके नीचे काला लण्ड जो थोड़ा छोटा था एक दम तना हुआ था। उसको न जाने कैसे मुगालता हो गया था कि मैं अपने अच्छे खासे पति को छोड़ कर उसके इस लण्ड पर रीझ जाउॅगी। मैं वहॉ से भागी तो नीचे आ कर ही सॉस ली।मेरा सीना धुक धुक कर रहा था। शाम को मैने अनिल से सब कुछ कह सुनाया। वह क्रोध से पागल हो गये। मैने उनको बहुत रोका पर सीधे ऊपर जा कर उन्होने राजन को जा पकड़ा “मैने तुम्हें शरीफ समझ कर घर का समझा पर तू तो इतना नीच है। तेरी हिम्मत कैसे हुयी”। गलती मानने की जगह राजन हाथापाई और ऐसी गाली गलौच पर उतर आया जो हम लोग सोच भी नहीं सकते। अनिल ने कहा “तू मेरा मकान खाली कर दे”। राजन ने बुरा सा मुॅह बना कर के कहा “जा जा बड़ा मकान खाली कराने बाला आया है। करा के तो देख। मैं तो यहीं रहूॅगा. देखता हूॅ कौन करा सकता है मकान खाली”। उसकी धमकी सच्ची निकली। वह किराया समय पर भेज देता था। मकान खाली कराने का कोई जरिया नहीं था। राजन की हरकतें भी बढ गयीं थीं। ऊपर सुखाने डाली हुयी मेरी पैण्टी गायब हो जाती। एक दिन गायब हुयी पैण्टी तार पर मिली।उसने पैण्टैी को अपने लण्ड पर रगड़ कर के पैण्टी को ही मेरी चूत समझ के चोद दिया था। पैण्टी के ऊपर ठीक चूत के सामने जहॉ पर मेरी चूत के रिसने दाग पड़ गया उसका वीर्य सूख गया था। मैने पैण्टी को फेंक दिया। अनिल को नहीं बतलाया नहीं तो खून खराबा हो जाता। अब मैं बहुत डर गयी थी। ऊपर जाती ही नहीं थी। अनिल तो देर से आते थे। जब वह घर में होता था तो मैं कमरे से बाहर नहीं निकलती थी। मैं अपने मकान में ही कैद हो गयी थी। हम लोग बहुत परेशान थे खासकर मैं। किसी तरह मकान खाली कराने में जुड़े थे। सब तरह की तरकीबें सोचने पर एक हल निकला। मेरे ननदोई ने अपनी पोजीशन का फायदा उठा कर राजन का ट्रान्सफर गौहाठी करा दिया। उसको मालूम हो गया कि इस्के पीछे किसका हाथ है। राजन ने बहुत हाथ पैर मारे पर ऊपर से जोर होने के कारण अपना ट्रान्सफर न रूकबा पाया। आखिर उसको जाना पड़ा और हम ने चैन की सॉस ली। उसके बाद हम लोगों ने यूनिट किराये पर नहीं उठायी। कई महीने वह हिस्सा खाली पड़ा रहा। अनिल के दोस्त ने सुझाव दिया कि मल्टीनेशनल कम्पनी को किराये पर दो और लीज लिखबालो । अनिल के मन में लोभ है। उसने एक बड़ी अमेरिकन कम्पनी को अच्छे किराये पर उठा दिया। किसी के आने के पहले कम्पनी ने ऊपर के हिस्से की काया पलट कर दी। दोनों कमरों में में एयर कंडीशनर लग गये। बथरूम में बड़ा सा गीजर लग गया। कार्पेट डाल दिये। पर्दे टॅग गये। सोफा बैड टेबल सब नया फर्नीचर जम गया। और एक दिन उनका आई टी मैनेजर इम्पोर्टिड एयरकंडीशन कार में आ गया। मैं सकते में आ गयी। यह भी अकेला अविवाहित नौजवान था। नाम था सुकान्त अग्रवाल। देखने में सुदर्शन था। उसने भी आते ही सब से पहले स्वीटी से दोस्ती की। उसको इतनी बड़ी चाकलेट दी जो उसने पहले कभी नहीं देखी थी। वह खुश हो गयी। मुझे अपनेपन से भाभी पुकारा। मैं कुढ़ गयी। मुझे किसी अजनबी से भाभी बुलाये जाने से चिढ हो गयी थी। मैं उसे बढाबा नहीं देना चाहती थी। सुकान्त भी अपने काम से काम रखने लगा। जब अनिल सामने पड़ जाता था तो ‘भाई साहब नमस्ते” कर लेता था। मुझ से बात नहीं करता था। हॉ स्वीटी से उसकी अच्छी पट रही थी। सुकान्त की जुबानी कम्पनी ने जो मकान दिया वह बहुत अच्छा था। नीचे मकान मालिक का छोटा सा परिवार रहता था। वह सम्भ्रान्त सलीेके बाले लोग थे। पति पत्नि और चार पॉच साल की बच्ची स्वीटी। पति अनिल का बहुत अच्छा व्यक्तित्व था और बहुत अच्छी पोजीशन। पत्नि शशि गजब की खूबसूरत थी। लम्बी सॉचे में ढली बनाबट। एक बच्ची के बाबजूद भी उसकी फिगर में कोई फर्क नहीं आया था। नाजुक सा चेहरा एक कमसिन लड़की की तरह लगता था। अंग पूरे खिल गये थे। सीने के उभार एकदम गोल और उठे हुये। नितम्ब आधा गोले की आकार के सुडौल। आगे से भरी भरी रानेों पर साड़ी सीधी तनी हुयी उसके ग्रेस को बढा देती थी। चेहरे से तो वह खूबसूरत थी ही। सैक्स पाकर शरीर भी मादक हो गया था। जहॉ जहॉ ंमॉस होना चाहिये था भर गया था। वह मुझे बिल्कुल अपनी बड़ी भाभी की तरह लगी। और स्वीटी तो बाकई स्वीटी थी। अपनी मॉ की तरह खूबसूरत चेहरा था। पर उसका और उसके पति का व्यवहार बहुत ही ठंडा लगा। बस स्वीटी ही को खुशी हुयी। मेरे भाभी अभिवादन का भी शशि ने कोई जवाब नहीं दिया।
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#2
मैने भी तय कर लिया कि मैं अपने काम से काम रखॅगा इस परिवार से दूर ही रहॅूगा। पर स्वीटी जब भी मुझे देखती दौड़ कर आ जाती। वह मुझे बहुत पसंद करती थी। मुझे भी वह बहुत भली लगती थी। शशि की जुबानी सुकान्त और राजन मैं एक फरक था। राजन मना करने के बावजूद भी भाभी भाभी कह कर पीछे पड़ा रहता था और सुकान्त मुझ से बात तक नहीं करता था। अभी उसे आय्ो थोड़े ही दिन हुये थे कि देखा कि एक दिन स्वीटी उसकी उॅगली पकड़े हुये छलॉग लगाती चली आ रही है। पता चला कि रास्ते में सुकान्त को देख कर उसने रिक्शे से उसको आवाज लगा दी और सुकान्त उसको रिक्शा छुड़बा कर अपनी कार में ले आया साथ ही आइसक्रीम भी। इस बीच थोड़ी बहुत बातचीत के आधार पर ही अनिल भी उसको पसंद करने लगे थे।बस मैं ही उदासीन थी। सुकान्त को आये एक महीना हो गया था। इस बीच स्वीटी सुकान्त से घुलमिल गयी थी। उसका सारा समय उनके यहॉ गुजरता था। उसको एयरकंडीशन की आदत पड़ गयी थी। घर में उसे आग बरसती थी। सुकान्त ने उसको एक चाभी दे दी थी। उसके लिये अलग से टेबिल लगा दी थी जिस पर उसकी किताबें सजी रहतीं थीं। वह अंकल से उसके चाचा हो गये थे। हम लोगों को भी अब एकान्त मिलने लगा था। जब अनिल घर में होता था तो दिन में भी हम लोग चुदायी का मजा ले लेते थे। अगले महिने मेरे सास ससुर आ गये। एक दिन देखा कि वह सुकान्त की कार से उतर कर आ रहे हैं। सुकान्त ने उन्हें पार्क से लौटते हुये देखा तो साथ ले आया। मेरी सास उससे बहुत प्रभावित थीं। उन्होने अनिल की पसंद की खीर बनायी तो एक कटोरी में निकाल कर मुझ से कहा ‘बहू इसे सुकान्त को दे आ”। मैं सास से शालीन व्यवहार करती थी इसलिये न कह सकी कि वहॉ भेजने की जरूरत नहीं है। बस इतना कहा “ंमॉजी मैं ऊपर नहीं जाती आप ही दे आइये”। मॉजी ऊपर गयीं तो वहीं की हो कर रह गयीं। कहॉ तो खीर देने गयीं थीं पर वहॉ से ढेर सारी मिठाई ले के आ गयीं। साथ में उसके बारे में पूरा चिठ्ठा। बड़ा ही सीधा लड़का है। जमींदार घराना है। एक भाई है जिसकी पॉच साल पहले शादी हो गयी है। घर बालों ने जोर दिया तो अमेरिका से लौट आया है। अगले साल शादी हो जायेगी। यही नहीं उसने पट्टी पढा दी थी कि सास और ससुर दोनों उसके यहॉ आराम किया करं। उसके सोफे के दोनों सिरे बटन दबाते ही खुल जाते थे जहॉ वह लोग आराम कर सकते थे. टी। वी। देखा सकते थे या पढ सकते थे। जैसे जैसे वह लोग उसके यहॉ दिन गुजारने लगे उसकी और तारीफ करने लगे। सुकान्त भी उनकी सेवा में लगा रहता था। 




अनिल के पास तो समय था नहीं। सुकान्त अपने समय का मालिक था। घर पर बैठ भी कम्पयूटर से काम करता रहता था। वह सास ससुर को मंदिर ले जाता था। स्वीटी तो जहॉ कहती थी वह जाता था। मैं घर मैं कोई चीज नयी बनाती थी मेरी सास सुकान्त को ले जाती थीं। लौट कर कहती सुकान्त ने कितनी तारीफ की। मुझे सुन कर अच्छा लगता था। अब मैं खुद ही उसके लिये चीज बनाती थी। घर में नहीं बनती तो उसके लिये बना कर स्वीटी से भिजवा देती। स्वीटी से पूछती “तेरे चाचा को पसंद आयी”। वह कहती “चाचा तो पूरी चट्ट कर गये”। मन के साथ साथ मेरा शरीर भी रोमॉचित हो उठता। कोई त्योहार का दिन था। घर में पकवान बन रहे थे। मॉजी से रहा नहीं गया “तीज त्योहार का दिन है और घर का लड़का बाहर होटल में खाने जायेगा”। मैने कहा “तो बुला लो न”। अनिल बीच में बोल पड़े “शशि बैसे तो तुमको बुलाना चाहिये”। मैं ऊपर गयी। सुकान्त पेपर पढने में लगे थे। जैसे ही मुझे देखा उठ खड़े हुये “आइये. आइये”। मैने हॅस कर कहा “भाभी नहीं कहोगे”। सुकान्त तुरत बोला “आइये भाभी. बैठिये”। मैने कहा “मैं बैठने नहीं आयी हूॅ। आज त्योहार का दिन है शाम का खाना आप हमारे साथ कीजिये”। सुकान्त ने कहा “भाभी आज शाम को तो मुझे कहीं जाना है”। मैंने और कुछ नहीं कहा। लौटने बाली थी कि वह बोला “भाभी ठीक है मैं शाम को आउॅगा”। यह सोच कर कि शाम को सुकान्त आ रहा है मैने ज्यादा श्रंगार किया। खूब फिट होते हुये कपड़े पहने। नये साड़ी ब्लाउज पहने। डिजायनर ब्रेजियर और पैण्टी पहनी हालॉकि नीचे का दिखाना नहीं था। सुकान्त भी सज सॅभर कर आया था। बहुत ही सैक्सी लग रहा था। वह मेरे लिये एक बहुत बड़ा बुके लाया था और स्वीटी के लिये ड्रैस। जब सुकान्त ने झुक कर मुझे बुके दिया तो अनजाने ही मैने उसको चिपका लिया।




फिर सॅभल गयी। शाम हॅसी खुशी में गुजरी। उसको खुश देख कर मैं आनन्द मैं भर गयी। यहॉ तक कि उस रात मैने पहल करके चुदबाया और चुदबाने मैं बहुत आनन्द आया। मन में हुलास भरी रही। सुकान्त की जुबानी उस दिन मैं पेपर पढने में तल्लीन था। पैरों की आवाज आयी तो मै समझा स्वीटी आयी है। सोच भी नही सकता था कि शशि भाभी होंगीऌ वह तो बात भी नहीं करतीं थीं। पर शशि भाभी को देख कर हड़बड़ा कर ‘आइये आइये” निकल पड़ा। वह बड़ी मीठी आवाज में बोल उठीं जैसे घंटी बज उठी हो “भाभी नहीं कहोगे”। मैने अचकचा कर कहा “आइये बैठिये भाभी”। उन्होने शाम की दावत का न्योता दिया। उसी दिन क्लब में मेरे सहयोगियों ने प्रोग्राम रखा था। मना करने पर शशि का चेहरे पर जिस तरह के भाव आये उनको देख कर अपने आप ही मेरे मुॅह से हामी निकल गयी। ऊपर से नीचे सामने के दरवाजे से पहली बार जा रहा था। शशि को देखा तो देखता ही रह गया जैसे रति सामने खड़ी हो कामदेव को रिझाने के लिये। उन्होने बड़े प्यार से मेरा स्वागत किया। अपने से चिपका लिया तो उनके सख्त उभार मुझ पर गढ गये। मैं सिहर कर सॅभल गया। वह खिलखिला हॅसती रहीं। उनसे पहली बार बातें हुयीं थीं पहली बार आना जाना शुरू हुआ था। शशि की जुबानी मेरे सास ससुर तो चले गये पर आने जाने का सिलसिला बना गये। ऊपर नीचे में बहुत फरक था। सुकान्त ने सब तरह का सुख जुटा रखा था। स्वीटी के साथ मैं भी दोपहर में जब कड़ाके की धूप पडती थी ऊपर पहुॅच जाती थी। स्वीटी तो बाहर अपनी डेस्क या सोफे पर काम करती रहती थी। मैं अन्दर के ठंडे कमरे में मैगजीन या नाविल पढती रहती थी। पहले तो उसके पलंग पर लेटने में हिचक हुयी। फिर आराम से उसके बिस्तर में तकिया लगा कर टिक कर पढती रहती थी और पढते पढते वहीं खिसक कर सो जाती थी। सुकान्त के आने के पहले बिस्तर ठीक कर देती थी और नीचे आ जाती थी। एक दिन पता नहीं मैं देर तक सोती रही या सुकान्त जल्दी आ गया। वह अन्दर घुस आया। उस दिन साड़ी नयी होने की बजह से उतार दी थी कि मुस न जाये। पेटीकोट ब्लाउज में पड़ी थी। हड़बड़ा कर बैसी ही खड़ी हो गयी। पेटीकोट भी नाड़े के पास ज्यादा चिरा हुआ था। अन्दर से चूत के आसपास का हिस्सा दिख रहा था। केसरक्यारी झलक रही थी। चेहरा शरम से लाल हो गया। मै साड़ी उठा कर बाहर की और बढी। सुकान्त ने कहा “भाभी आइ एम सॉरी। आप आराम करो”। मेरे कुछ कहने के पहले ही वह बाहर निकल गया और खीच कर दरवाजा बंद कर दिया। मैं जल्दी से साड़ी पहन कर बाहर आ गयी। सुुकान्त ने सहजता से पूछा “भाभी चाय पियेंगी”। मैं सुकान्त से ऑखें न्हाीं मिला पा रही थी। उसने मुझे अधनंगा देख लिया था वह भी अपने बिस्तर पर। मै वहॉ से भाग आना चाहती थी। बोली “आप नीचे मेरे यहॉ चाय पीजियेगा”। नीचे आ कर कुछ देर में मैं सहज हो पायी। सुकान्त आया तो चाय देते हुये मैने सफाई दी “पता नहीं बैठे बैठे मुझे कब झपकी लग गयी”।
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#3
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#4
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#5
सुकान्त ने कहा “इट्रस आल राइट भाभी। मुझे ही इस तरह नहीं घुस आना था। आगे से नॉक करके आउॅगा”। मै धीरे से बोली “आगे से मैं वहॉ नहीं जाउॅगी”। सुकान्त अधीरता से बोला “भाभी ऐसी कैसी बात करती हैं। मैने अपनी गलती मान तो ली है। घर आपका है। ये लीजिये अन्दर के कमरे की चाभी। आप आराम से बन्द कर के हमेशा की तरह लेटिये”। शशि को ताज्जुब हुआ क्योंकि वह बिस्तर अच्छी तरह ठीक कर देती थी। उसने पूछ लिया “आपको कैसे पता कि मैं वहॉ लेटती हूॅ”। सुकान्त सम्मोहित सा बोला “भाभी तुम्हारे शरीर की गंध तो मेरे बिस्तर में बस गयी है”। शशि का चेहरा सिंदूर की तरह हो गया। इसके बाद मैं उठना बैठना नहाना धोना ऊपर बेधड़क करती थी। बाथरूम में सब आधुनिक सुबिधायें र्थींदीवार से दीवार तक का शीशा। प्रसाधन के सामान के लिये केबिनेट. अन्दर के कपड़ों के लिये क्लाजिट और चौबीस घंटे ठंडा गरम पानी की सुबिधा। बाथटब और शॉवर। सुकान्त के आने तक मैं मैं ऊपर ही तैयार हो जाती।

साथ में हम लोग चाय पीते फिर कभी स्वीटी के साथ कभी हम दोनों ही शॉपिंग या घूमने निकल जाते। लौट कर आते तो अनिल आ गया होता था। खाना मैं दिन में ही तैयार कर लेती थी। अनिल और मैं डिनर साथ लेते। सुकान्त भी आये दिन हमारे साथ ही डिनर करता। सुकान्त और वह गपसप करते रहते। सुकान्त और मैं काफी नजदीक आ गये थे पर हॅसने हॅसाने और छूने छुलाने से आगे हम लोगों के शारिरिक सम्बन्ध नहीं थे। सुकान्त मर्यादा का ध्यान रखता था। मैं दो मर्दो के बीच मैं झूल रही थी। घूमती फिरती रूठना रूठाना सुकान्त से करती थी। चुदबाती अनिल से थी। मेरी सहेलियॉ सुकान्त को ले कर मुझसे छेड़ाखानी करती थी। सैक्स की बात भी कह डालती थी “मजे तो इसके हैं दो दो स्वाद लेती है। बता तो कौन सा स्वाद अच्छा लगता है”। सुनकर मेरे मन में भी गुदगुदी होती थी। वदन में भी सुरसुराहट होने लगती थी। कभी कभी चूत मे भी सनसनाहट होने लगती थी। रात में चुदबाने में और मजा आ जाता था। इतने साथ रहते हुये भी सुकान्त दूरी बनाये हुये था। इसे मैं अपनी कमी समझ कर उसे अपनी ओर झुकाना चाहती थी। देखना चाहती थी कि वह मेरे पीछे पीछे डोले और मैं लापरवाही दिखाऊॅ। सुकान्त का इतना साथ रहता था। उसके व्यक्तित्व का आकर्षण ऊपर से सहेलियों की बातें। मैं सुकान्त की तरफ खिचती जा रही थी। मैं बात बात पर उस पर गिर गिर जाती थी। जाने अनजाने उस से चिपक जाती। सिनेमा में या और कहीं साथ साथ बैठते तो मैं अपनी रानों का दवाव उसकी रानों पर डाल देती। अपने उभार उस से चिपका देती। इन हरकतों से मैं आनन्द में भर जाती थी। इन दिनों मैं ज्यादा चुदबाना चाहती थी। जी करता था कि फिर हर दूसरे दिन के रूटीन पर आ जाऊॅ। चुदबाती तो मैं अनिल से ही थी। मुझे सुकान्त के साथ थोड़ा मजा लेने में कोई भी बुरायी नहीं लगती थी। इस से चुदबाने में भरपूर आनन्द आ जाता था। सुकान्त मेरी हरकतों से पीछे तो नहीं हटता था। वह भी मजा लेता था पर अपनी तरफ से पहल नहीं करता था। ना ही आगे बढता था। एक शाम सुकान्त के दफ्तर में पार्टी थी। लोग बीवियों के साथ आ रहे थे। सुकान्त ने मुझ से पुछा “भाभी मेरे साथ चलोगी”। मैने हॅसते हुये कहा “यानी तुम्हारी बीवी बन के”। सुकान्त सकपका गया “भाभी ये बात तो……।” मैने उसकी बात को काटते हुये कहा “मुझे कोई ऐतराज नहीं है। पर घूमने जाने की बात और है पार्टी में जाने की दूसरी। तुम अपने भइया से पूछ लो”।् सुकान्त सुन कर रह गया। उसने अनिल से इस बाबत कोई बात नहीं की। मैने ही उसकी मौजूदगी में अनिल से पूछा “सुकान्त के आफिस में पार्टी है। वह मुझे साथ चलने को कह रहा है”। अनिल ने चट से जबाव दिया “इस में पूछने की क्या बात है”। पार्टी के लिये मै खूब सजी सॅभरी। नयी साड़ी कसी ब्रेजियर और ब्लाउज पहने। मैच्ािंग झूलता हार चूड़ियॉ सैडिल पर्स। ऊपर गयी तो सुकान्त ने मुझे देखा। उसकी ऑखों में पसंद की चमक थी। उसने कहा “भाभी आप बहुत खूबसूरत लग रही हौ”। बस इतना कह कर रह गया। मूझे कोफ्त हुयी। चाहती थी और तारीफ करे। मुझे चिपकाये करे। चूम भी ले तो कोई बात नहीं। मैने कुढ कर कहा “वहॉ भाभी भाभी मत करना बरना मैं बूढी लगूॅगी। बैसे भी तुमसे बड़ी हूॅ”। सुकान्त ने ईमानदारी से कहा “आप को बड़ी कोई भी नहीं कह सकता”। सुकान्त शेरवानी मैं बहुत हैंडसम लग रहा था। मै उसका हाथ पकड़ कर दाखिल हुयी तो लोग हम लोगों की ओर देखते रह गये। पार्टी में मैं केन्द्र बन गयी। एक तो सुकान्त की पोजीशन ऊॅची थी। ज्यादातर उसके मातहत लोगों की बीवियॉ थीं। दूसरे सब लोग मेरी खूबसूरती से प्रभावित थे। उसके साथियों ने और सीनियरों ने मेरी तारीफ की। सुकान्त ने मेरा परिचय कराते हुये कह “ये शशि हैं”। आगे का लोगों ने अपने आप मतलब निकाल लिया। सुकान्त औरतों में बहुत पापुलर था। वह सब से मजाक भरे लहजे में बात कर रहा था खाासतौर पर मिसिज माहिनी नाथ से। यह एक नया ही सुकान्त था।मोहिनी नाथ का अंग अंग भरा हुआ था। वह मोटी नहीं थीं । बाहें रानें कमर सीना और कूल्हे जिस तरह से भरपूर थे वह बेहद सेक्सी लगती थी। वह सुकान्त पर बिछी जा रही थी। उसके खास लोगों को छोड़ कर बाकी सब मुझे उसकी बीवी समझ रहे थे। खासतौर पर उसके जूनियर मिसिज अग्रवाल कह कह कर मेरी खुशामद में लगे थे।
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#6
कुछ तो यहॉ तक समझ रहे थे कि अभी हम लोगों की शादी होने बाली है। एक पाॉच साल के बच्चे की मॉ और लोग समझैं कुॅआरी हूॅ इससे बड़ी तारीफ क्या हो सकती है। मुझे वाइन से परहेज नहीं है पर वाइन लेते ही मैं बहकने लगती हूॅ इसलिये नहीं लेती। बहुत दिनों बाद ऐसी पार्टी में आयी थी। मैने एक गिलास ले ली। खाने के साथ एक गिलास और ला कर दिया। मैं एक से ज्यादा नहीं लेती पर लिहाज में मैने दूसरा गिलास भी ले लिया। 


मेरी तबियत हल्की हो गयी। डी जे ने म्यूजिक लगा दिया था। डान्स चालू हो गया था। मैं अच्छा डान्स करती हूॅ। सुकान्त भी सब के साथ अच्छा डान्स कर रहा था। माहिनी नाथ सुकान्त के साथ डान्स चिपक चिपक कर डान्स करने लगी थी। मुझ से बर्दास्त नहीं हुआ। मैं सुकान्त के पास पहुॅची और उसको साथ ले कर नाचने लगी। सब अपने में मग्न थे। मुझे एक शरारत सूछी। सोचा बच्चू को सबक सिखाऊॅ। ये अलग अलग रहता है। 

सब लोग मुझ पर बिछे जा रहे थे और ये हैं कि दूर से ही तारीफ कर के रह गया। देखूॅ इसका खड़ा होता है या नहीं। मैं सुकान्त से नीचे से चिपक गयी।अपने सामने हा हिस्सा उसकी टॉगों के बीच में बैठा दिया। सीधी अपनी चूत उसके लण्ड पर रगड़ी। उसका सॉप फन उठा के खड़ा हो गया। वह मेरी चूत के ऊपर चुभने लगा। अचानक सुकान्त मुझे अलग कर के एक टेबल पर जा कर बैठ गया। मैं भी जा कर बैठ गयी। पूछा “क्या हुआ सुकान्त। डान्स नहीं करोगे”। उसने कहा “मेरा मन नही है”। मैं बैठी रही। उसने कहा “आप तो जा कर के डान्स कीजिये”। मैने कहा “डान्स करूॅगी तो बस तुम्हारे साथ नई तो नहीं करूॅगी”। उसने हार कर कहा “अच्छा चलो”। मैं शुरूर में थी। कभी अपनी चूत कभी अपनी चूची उस से चिपका देती थी और वह दूर हट जाता था। पर थोड़ी देर में उसने पीछे हटना बन्द कर दिया। उसका पत्थर जैसा लण्ड मैं महसूस अपनी चूत के ऊपर महसूस करती रही। चूत के द्वार पर ठक ठक हो रही थी। चूत का दरवाजा खुल गया था। एकाध बार उसने कमर में हाथ डाल कर अपनी तरफ खीचा और सामने से लण्ड दबाया। पर जैसे उसे होश आ गया हो बोला ‘भाभी चलो चलते हैं”। मैने कहा “अभी से अभी तो पार्टी जमी है”। लेकिन वह मेरा हाथ पकड़ कर बाहर आ गया। मैने शुरूर में कहा “चलो कहॉ ले जाना चाहते हो”। वह बोला “भाभी अभी आप आपे में नहीं हैं”। उसने कार का दरवाजा खोल कर मुझे बैठा दिया और ड्राइवर सीट पर बैठ गया। मैने रौ में कहा “अब भाभी भाभी करते हो। वहॉ तो शशि की रट लगा लगा रखी थी। मैं तुम्हारी भाभी नहीं हूॅ शशि हूॅ शशि तुम्हारी बीवी”। 





उसने मुझे एकटक देखा। मेरे माथे पर आयी एक लट को पीछे कर दिया और मूझे चूम लिया। वहॉ से सीधे हम लोग घर आ गये। मैं अन्दर जाने लगी तो अचानक उसने मुझे पकड़ कर कस कर बॉहों मैं भर लिया। अपने होंठ मेरे होंठों पर चिपका दिये। उसका खड़ा हुआ लण्ड मैं अपनी टॉगों के बीच में महसूस कर रही थी। कुछ देर कर मुझे बॉधे रहा फिर “गुडनाइट भाभी” कह कर ऊपर बढ गया। मैं अन्दर गयी तो अनिल अभी जग रहा था। उसने पूछा “पार्टी इतनी जल्दी खत्म हो गयी”। मैने कहा “नहीं सुकान्त ही जल्दी चला आया”। अनिल जानता था कि मैं वाइन लेती हूॅ तो मूड में आ जाती हूॅ। या तो मैं बहुत खूबसूरत लग रही थी या मेरे शरीर की हालत मेरे चेहरे पर पढली। अनिल ने मुझे साड़ी उतारने का मौका भी नहीं दिया। उसने मुझ्े बिस्तर पर गिराया। मेरी साड़ी उलट दी। मेरी सोक हुयी पैण्टी खीच दी और एक ही झटके मैं पूरा लण्ड पेल दिया। मेरी चूत को लण्ड की जरूरत थी। मैने उसकी कमर को बाहों में बॉध लिया और बोली “अनिल कस कस के लगा दो”। अनिल ने लण्द प्ूरा बाहर खीच कर चोटैं मारना चालू कर दीं। वह पूरे बेग से पेल रहा था। चोटै मारते मारते ही उसने मेरा ब्लउज और ब्रेजियर कोल कर अलग की और दोनों मुठ्ठियों में दोनों तनी हुयी चूचियों को दबोच लिया। मैं उसकी हर चोट “ओह” “ओऔह’ अअ‍ेऔअओह” “आोह” आोहहहहहहहहहहह” करके ले रही थी। वह मेरी चूत की आधा घंटे तक गुड़ायी करता रहा। पहले मैं झड़ी। मेरी लौकती हुयी झड़ती चूत में जारों से पेलता हुआ अनिल मेरे ऊपर ढेर हो गया। दूसरे दिन मैं बड़ी देर तक सोती रही। अनिल ने उठा कर चाय दी। पूछा “कल की पार्टी कैसी रही” उसको मैने कह दिया “बहुत ही अच्छी थी”। पर मेरे को कल की याद आयी तो बड़ी ग्लानि हुयी। माई गाड मैं क्या कर बैठी थी। कितना आगे बढ गयी थी। 


भला हो सुकान्त का उसने मेरा सब कुछ ले लिया होता”। उसकी तरफ मेरी श्रद्वा और बढ गयी। साथ ही यह सोच कर मरी जा रही थी कि उसके सामने कैसे जा पााउॅगी। सुकान्त की जुबानी शशि भाभी में एकदम परिवर्तन आ गया था। कहॉ तो वह मुझ से बात भी नहीं करतीं थी लेकिन जब मैं खाने पर उनके यहॉ गया तो बुके लेते समय अपनी बाहों में भर लिया। मैं अचकचा गया। सरे वख्त वह मेरी ओर खिंची रहीं। बात बात पर हॅसती रहीं। कितनी साफ खनकती हुयी हॅसी। मेरे मन में हूक सी उठने लगती थी। उस दिन अचानक में कमरे में जा पहुॅचा। उनकी बदहवासी और वह शरीर। उनके अन्दर की भी झलक दिख गयी। ओ माई गाड अगर मैं पहले से जानता होता तो अपने को ना रोक पाता। उसके बाद तो वह मुझ् से घुलमिल गयी कि सोच भी नहीं सकते कि मैं इनके बगैर रहता था। खुबसूरत के अलाबा इतनी खुश दिल हैं। उनकी नजदीकी मुझे बहुत अच्छी लगती है। जब वह चिपकती तो मैं आगे बठ कर समेट लेना चाहता। पहले थोड़ा लिहाज से हिचकिचाहट थी। उन्होने अपने पहले किरायेदार के बारे में बतााया तो सारी बात समझ मैं आ गयी कि वह जब मैं आया आया था तो क्यों खिंची रहती थी। साथ ही मुझे अहसास हो गया कि मैं कुछ ऐसी बैसी बात न कर दूॅ जिससे पहले के किदायेदार जैसी स्थिति बन जाये। फिर भी मैं जब वह अपनी गरम गरम जाने अनजाने में ही सही पुष्ट रानें मुझ से चिपकाती हैं और उनको सख्त गोले मुझ पर गड़ते हैं तो मैं रोक नहीं पाता। आनन्द में भर जाता हूॅ। मेरे साथ पार्टी में जाने के लिये जब वह तूयार हो कर आयीं तो मैं देखता ही रह गया। रम्भा सामने खड़ी थी। 



कमल स चेहरा। पुष्ट उरोज। कमनीय देह। अदभुत श्रंगार। मैं आगे बढकर उनसे मिलता तो गजब हो जाता। दूर से ही जब्त करके रह गया। लेकिन पार्टी में तो हद हो गयी। सशि भाभी शायद पीने की आदी नहीं थीं। उन्होने नशे मैं ऐसी हरकत की सोच भी नहीं सकते। उन्होने अपनी चूत चिपका ही नहीं दी। वह उसको मेरे लण्ड पर रगड़ने लगीं। मेरा लण्ड काबू के बाहर हो कर तन्ना कर खड़ा हो गया। उनको चुभा तो जरूर होगा। इतने लोगों के बीच में मुझे अलग हो कर आ कर ही बैठना पड़ा। वह भी आ गयीं। अच्छा हुआ उन्होनें किसी और के साथ डान्स करने के लिये मना कर दिया। किसी और से कर बैठती तो। दुबारा उन्होने कहा तो मैने सोचा अब सॅभल गयी होगीं लेकिन वह तो बार बार वही हरकत करने लगी। आीखर मैं भी तो इंशान हूॅ और शशि भाभी को बेहद पसंद करता हूॅ। मैने भी इंनज्वाय करने की सोच ली। लेकिन उनके इस कामुक तरीके से रगड़ने मैम् इस स्टेज पर आ गया कि वहीं उनको पकड़ कर उनके ऊपर झड़ जाता। देखा तो औरतें मुझे घूर रहे थे। मोहिनी की निगाहें तो मेरे ऊपर लगी थीं। शशि भाभी तो आना ही नहीं चाहतीं थीम्। जबर्दस्ती कलाई पकड़ कर खीच लाया। उनको होश नहीं था। कहीं भी जाने को तैयार थी। सोचा कि नशे की हालत में फायदा न्हीं उठान चाहिये कि फिर पछताना पड़े और फिर अनिल ने जिस विश्वास के साथ भेजा था तोडना नहीं चाहता था। कार में जब वह बड़बड़ायीं तो इतनी प्यारी लगी। उनकी वह लटैं इतनी मादक लगीं ं कि मैं मैं उनको प्यार करने से रोक भी नहीं पाया। घर पहुॅचने पर मेरा सब्र का बॉध टूट गया। मैं अपने को रोक न सका और उनको अपने में समेट लिया। भला हो कि वह तो हम लोगों का घर आ गया था। थोड़ी देर बाद मैं सॅभल गया। लेकिन मेरा लण्ड खड़ा ही रहा। जाते ही मैने कपड़े फेंके। उनका नाम लेता हुआ उनकी चूत के रागड़ने को याद करता हुआ जब मैने पिचकारी छोड़ी तो मेरा लण्ड उनकी चूत के लिये लौंकता रहा। शशि की जुबानी सुकान्त से में अगले दिन ऑख नहीं मिला पा रही थी। लेकिन उसने बड़ी सहजता से लिया जैसे कि कुछ हुआ ही न हो। पर मैं शारिरिक तौर पर सुकान्त के और नजदीक आ गयी थी। उसके पास ज्यादा से ज्यादा रहना चाहती थी।उसको खुल कर अपना वदन दिखाना चाहती थी। उसको बात बात में बॉहों में भर लेती। उस से कुल कर मजाक करती जिसमें सैक्स सामिल होता था। सुकान्त मेरा और स्वीटी की दिनचर्या का अंग बन गया था। वह उसकी पढायी में भी सहायता करता था। स्वीटी भी उसी से पूछती थी। स्कूल की बातें भी उसे ही सब से पहले बतलाती थी। जब कभी स्कूल जाना होता था तो मुझे अनिल को बतला कर वह खुद ही चला जाता था। मेरी शॉपिंग तो उसके साथ ही होती थी। अनिल भी खुश था क्योंकि वह ज्यादा समय नहीं दे पाता था। एक दिन सुकान्त ने मुझ से कहा कि मैं उसकी एक अच्छी से अच्छी साड़ी खरीदने में मदद करूॅ मैने मजाक किया “क्या कोई पसंद की है उसके लिये चाहिये या मोहनी को देनी है”। वह मुस्करा के बोला ‘हॉ कुछ ऐसा ही है”। मैने कुछ साड़ियॉ पसंद की एक साड़ी बहुत पसंद आयी पर कीमत दूसरों से दुगनी थी। उसने वही साड़ी ली। मैने मजाक किया “कहो तो ब्रा भी खरीद दूॅ”। उसने हिचकिचाने के बजाय कहा “भाभी दैट विल बी ग्रेट”। मैने ऑख नचाके कहा “क्या साइज है”। उसने तपाक से कहा “आप की साइज की”। मेरा चेहरा थोड़ा लाल हो गया। उसको ताना दिया “अगर मोहनी के लिये लेना है तो दुगनी साइज की लेनी पड़ेगी और होने बाली बीवी के लिये आधा साइज की क्योकि हमारी साइज की होने में समय लगेगा”। फिर शरारत से पूछा “मोहनी का साइज तो तुम्हें मालूम होगा”। वह हाजिर जबाव था “मुझे तो बस एक साइज पता है आपका”। मैं अचकचा गयी”क्याााााााााााााा” फिर बोली “मुॅह धो के रखो तुम्हें मेरी साइज कभी भी पता नहीं चलने की”। उसी शाम को हमारे यहॉ आया। आते ही उसने कहा “हैप्पी ऐनीवर्सेरी भाभी जी हैप्पै ऐनीवर्सेरी भाई साहब”। उसके हाथ में एक गिफ्ट पेकिट था जो उसने मुझ को थमा दिया। हम लोगों की अगले हफ्ते शादी की छटीं वर्षगॉठ थी। अभी तो हम लोगों ने प्लान भी नहीं बनाया था। मैने खुशी जाहिर करके पेकिट रख लिया तो अनिल बोला “अरे खोल कर के तो देखौ क्या लाये हैं तुम्हारे लिये। मेरे लिये तो कुछ है नहीं”। सुकान्त बोला “नहीं भाभी जी आप बाद में खोलियेगा”। पर अनिल नहीं माना। मैने पैकिट खोला तो वही साड़ी थी जो शाम को खरीदी थी।ं मैैने अनिल के सामने साड़ी रख दी। पेकिट में नीचे विक्टोरिया सीक्रेट इम्पोर्टिड ब्रजियर का पेयर और पैण्टी का पेयर था। मैने उसकी तरफ देखा तो उसके चेहरे पर हवाइयॉ उड़ रहीं थीं। मैने उसकी तरफ मक्कारी से मुस्कराया। अनिल से नही कहा। साथ में अनिल के नाम का लिफाफा था। अनिल ने देखा तो आगरा मै हम लोगों की रिजर्वेशन थी। अनिल खुश हो गया। रात में मैने देखा तो मेरे ही नाप की बेहद कीमती बेजियर और पैण्टी थीं। उनकी ही कीमत दो तीन हजार होगी। मैं उसका धन्यवाद भी ढंग से नहीं कर पायी थी। बड़े सवेरे ही उसके निकल जाने के पहले मैं ऊपर गयी। वह विस्तर में ही था। मैने उसको कस के बॉहों में बॉध लिया और उसके होठों पर ही चुम्बन दिया। बोली “इतनी खूबसूरत गिफ्ट के लिये धन्यवाद”। उसने कहा “इट इज माइ पलेजर भाभी”। मैने पूछा “अच्छा ये तो बतााओ तुम्हें मेरी साइज कैसे पता चली”। वह बोला “मैं देख कर नाप ले लेता हूॅ”। मैने कहा “अरे जाऔ मेरी पैण्टी का नाप कैसे ले सकते हो”। वह बोला “यह मेरा सीक्रिट है”। मुझे जान ने की इच्छा हो रही थी। बड़ी मनौअल के बाद उसने बताया कि बाहर ताार पर सूखने के लिये पड़ी मेरी ब्रा और पैण्टी से उसने मेरी साइज पता लगायीक्त थीं। मैने उस से कहा ‘तुम भी हमारे संग चलो न”। वह मक्कारी से बोला “मैं दाल भात मैं मूसरचन्द क्या करूॅगा। मैं स्वीटी का ख्याल रखॅूगा तुम लोग अपन हनीमून मनाओ। पर मुझे पूरा हालचाल बताना मत भूलना”। मैं शर्म से लाल हो गयी। उसको एक चिकोटी काटी और वहॉ से भाग आयी। मेरी वर्षगॉठ बहुत ही मजेदार रही।



 मैने सुकान्त की दी हुयी साड़ी और ब्रेजियर और पैण्टी पहनी। अनिल ने मुझे रात में छक कर चोदा। पहली बार तो दोपहर के लंच के बाद थोड़ी सी देर के लिये ही कमरे में आये। नीचे ग्रुप टूर के लिये इंतजार कर रहे थे। मैं उसे इतनी अच्छी लग रही थी और वह इतना गरम था कि उसने मेरे बगैर कपड़े उतारे ही मेरी चुदायी की। बस साड़ी उलट कर पैण्टी उतार दी और ब्लाउज और ब्रेजियर के हुक खोल दिये। मैने टॉगें चौड़ा कर उसका लण्ड धाम कर अपनी बुर में घुसा लिया। मैं साड़ी सुकान्त की पहने थी। बेजियर सुकान्त की पहने थी। पैण्टी सुकान्त की थी जो उतार दी गयी थी। चुदबा अनिल से रही थी। जिस चोरी की तरह मैं चुदायी करा रही थी मुझे सुकान्त याद आ रहा था। बहम हो रहा था कि उसने पकड़ रखा है। मुझे उस चुदायी में भी नया मजा आ रहा था। अनिल का लण्ड मेरी चूत में शन्ट कर रहा था। मैं आनन्द मैं पागल हुयी मोन कर रही थी हॉफ रही थी ‘हॉ हॉ हॉ हॉ हॉ हॉ” तभी दरवाजे पर ठक ठक हुयी। आवाज आयी “सा’ब सब लोग आपका इंतजार कर रहे हैं”। अनिल ने कहा “आ रहा हूॅ”। मैने अनिल से कहा “ अभी झड़ना नहीं”। मै बिस्तर के किनारे खिसक आयी। अनिल से कहा खड़े हो कर जोरों से लगा दो। वह खड़ा हुआ तो मेरी चूत उसके लण्ड के सीध में थी। उसने पूरे वेग से पेला तो मैं अन्दर तक हिल गयी। मुॅह से निकल गया “ओ माााााॉ रीई“। उसने मेरी दोनोण् चूचियों को हाथ म्ों जकड़ा और बुरी तरह से चोदने लगा। हर झटके पर वह चूचियों को मसल रहा था और लण्ड अन्दर तक दीवार पर ठक से पड़ रहा था। मैं बिलबिला रही थी। वह बेरहमी से मारता रहा जब तक खलास नही हो गया। जब सारा पाानी अन्दर छोड चुका तो लण्ड बाहर खींचा और अअदत के अनुसार मेरी पैण्टी से पौछ लिया। पैण्टी मेरी चूत के मुॅह पर रख कर बाहर निकलता हुआ वीर्य पौंछ दिया। समय कम था और मेरे को न जाने क्या सूझी कि मैने बैसी ही पैण्टी पहन ली। जब हम लोग नीचे आये तो सब लोग बस में बैठे इंतजार कर रहे थे। लोगों ने हमें हिमाकत से घूर के देखा। कुछ औरतों ने शरारत भरी मुस्कान से। औरतें चाल से या चुदायी के बाद चेहरे पर आये भाव से समझ जातीं हैं कि चूत की अभी अभी मरम्मत हुयी है। घूमते समय वीर्य से गीली पेण्टी से मुझे बड़ा सुख मिल रहा था। चूत को रगडती अनिल के वीर्य और सुकान्त की पैण्टी की मिली जुली याद आ रही थी। उसके बाद रात में अनिल ने तीन बार फिर चुदायी की अलग अलग तरीके से। एक बार ऊपर चढ कर सीधी सीधी चोटै दीं। एक बार पलंग से सटा कर घोड़ी बना कर इतने जोर से पेला कि मैं पालंग पर बिछ बिछ गयी और तीसरी बार मुझे ऊपर चढा लिया। मैंने उसके लण्ड पर उछल उछल कर चुदायी की। 




बार बार मुझे सुकान्त की याद आयी। पहली बार हुआ था जब चुदबाते समय किसी दूसरे की तरफ ध्यान हुआ हो। गरमियों की छुट्टी में मैं कुछ समय के लिये मैके हो आती थी। मेरी भाभी कुसुम वह एक कस्वे से थीं । ज्यादा पढी लिखी भी नहीं थीं। बड़ी खुली हुयी और खुशमिजाज थीं। उनको क्या बात किसके सामने नहीं कहनी चाहिये इसकी परवाह नहीं थी। ब्ोधडल्ले कोई भी बात कह देती थीं। सैक्स की बात करने की उनकी आदत थी जिसको वह खुले आम कह देती थीं। अपनी चुदायी तक की बात करने में उनको शरम नहीं थी। पर दिल की साफ थीं। वह मुझे तो बहुत चाहतीं थीं इस कारण मेरा भी वहॉ जाने का मन करता था। उनकी और मेरी शादी एक ही समय हुयी थी। उनके दो बच्चे थे। बड़ी बेटी स्वीटी की उमर की ही थी। उसकी स्वीटी से बहुत पटती थी। इसलिये स्वीटी भी गरमियों में वहॉ जाना चहती थी। अनिल का भी चेन्ज हो जाता था और भाभी ननदोई में जिस तरह सैक्सभरी नौंकछौंक होती थी उसमें उसको तो क्या मुझे भी आनन्द आ जाता था। पर इस बार अनिल को समय नहीं था। अभी हाल में ही वर्षगॉठ के समय छुट्टी लीं थी। इस कारण इस बार जाने का प्रोग्राम नहीं था। पर स्वीटी जिद कर रही थी और कुसुम भाभी भी पीछे पड़ी थी। तय हुआ कि अनिल मुझे छोड़ आयेगा और एक हफ्ते के बाद लेने पहुॅच जायेगा। पर जब ले आने की बारी आयी तो अनिल के यहॉ एक हाईपावर डैलिगेशन आया हुआ था। मैने कहा कि सुकान्त को भेज दो तो अनिल ने कहा तुम्ही उससे बात कर लो। मैने सुकान्त को फोन किया “क्या तुम्हें भाभी की याद भी नहीं आती है”। वह भी कम नहीं था “भाभी मुझे तो नींद भी नहीं आती”। “तभी तो भाभी यहॉ पड़ी है और तुम मोहनी के साथ गुलछर्रे उड़ा रहे हो”। “भाभी तुम्ही तो मैके में सब को भूल गयी हो रोज आने का बढाती जा रही हो”। “तो फिर आ जाओ न लेने के लिये”। उसी दिन सुकान्त आ पहुॅचा। कुसुम भाभी पहली बार सुकान्त से मिलीं थीं पर अपनी आदत के अनुसार शुरू हो गयीं “क्यों देवर जी एक हफ्ते का सब्र नहीं कर सके”। मैने रोका “भाभी मैने बुलाया है इन्हें”। कुसुम भाभी अब मेरे से उलझ गयीं “ओ तो इतनी आदी हो गयी हो अपने देवर की कि एक हफ्ते में ही खुजली होना शुरू हो गयी”। मैने उनको टोका “भाभी कुछ भी कहना चालू कर देती हो। सुकान्त एक बहुत शरीफ आदमी है। बड़े ऊॅचे घराने से है”। कुसुम भाभी चालू थीं “क्यों शरीफ आदमी के वो नहीं होता है। वह करता नहीं है”। सुकान्त उनको मुॅह बाये देख रहा था। मैने कहा “बस तुम तो एक सम्बन्ध ही जानती हो”।
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कुसुम भाभी ने ताज्जुब करते हुये कहा “लो इतना छैला सा देवर है और तुमने अभी तक कुछ नहीं किया है। इसको अभी तक नहीं निगला है। इसको अपनी रसमलायी नहीं खिलायी है । छी छी मैं होती तो दूसरे दिन ही चट्ट कर जाती। मैने कहा “भाभी भैया तो हैं कितना ही चट्ट करो उनको”। कुसुम भाभी सॉस भरती हुयी बोली “ वह स्वाद और है ये स्वाद और है। एक गाजर दूसरी मूली। मैने ताना कसा “तुम बड़ी चटखोर हो कितने स्वाद चखे हैं”। भाभी बोली “जब भी नया स्वाद मिल जाता है तबियत से चखती हूॅ। हाय किस किस का बताऊॅ। ननदेऊ का सुनोगी। सुकान्त उठ कर जाने लगा तो कुसुम भाभी ने उसका हाथ पकड़ कर कहा “देवर जी भागते कहॉ हो तुम भी सुनो ये काम की बातें हैं”। पर सुकान्त रूका नहीं । 


कुसुम से बोला “भाभी मैं एक मिनट में आता हूॅ”। मैं विश्वास भी नहीं कर सकती थी कि अनिल ने कुसुम को लगाया होगा। मैं सोच में थी कि कुसुम भाभी बोलीं “देख तेरी मेरी शादी साथ हुयी है। मैने कितने मजे लिये हैं और तुझे पता ही नहीं है कि मजा क्या होता है”। मैने कहा “मैं नहीं कर सकती कि जिस किसी से लगबाती फिरूॅ”। कुसुम भाभी बोली” सुन मेरी बन्नो। मैं हरेक के लिये थोड़े कह रहीं हूॅ कि तू किसी के साथ भी सोजा। देवर के साथ करने में कोई बुरायी नहीं है। हाय ये इतना बॉका है और बाकई बहुत सीधा है। अनिल बाबू तो हैं ही स्वाद बदलने के लिये इसके साथ मजे ले। तू नहीं करेगी तो और कोई चट्ट कर जायेगा। अभी इसको बुर नहीं मिली है तो तेरे पीछे पीछे डोल रहा है। एक इशारे में इतनी दूर तक आ गया है। एक बार शादी हो जायेगी तो बाजार तक छोड़ने नहीं जायेगा। मैने बात खतम करने के लिये कहा “भाभी तुमको मुवारक हो ये सब। आखिर नैतिकता भी तो होती है”। पर इधर एक हफ्ते से बुर को उसकी खुराक नहीं मिली थी रात के अकेले में उसमे सनसनाहट होने लगी। 


कुसुम भाभी की बातें भी याद आ रहीं थी। उनका कहना याद आता कि काई और चट्ट कर जायेगा तो मोहनी की सूरत याद आने लगती। सुकान्त की तरफ मैं झुक तो रही ही थी। कुसुम भाभी की सीधी सीधी बातो ने आग में घी का काम किया। मैने मन बना लिया कि सुकान्त से फ्लर्ट करूॅगी। सोच कर चूत में गुदगुदी होने लगी। ऐसा लगा जैसे पानी रिस रहा हो। मैने चूत पर हाथ दिया तो और भड़क उठी। तबियत हुयी कि सुकान्त के पास चली जाऊॅ। सुबह फिर कुसुम भाभी ने निशाना साधा। जब भाई साहब चले गये तो सुकान्त से उन्होने ऑखौं में शरारत करके पूछा “देवर जी रात कैसी गुजरी”? फिर मुझ से पूछा “क्यौ ननदी रानी इतनी दूर से देवर आया था। हालचाल जानने के लिये उसके कमरे में गयीं थी। या ऐसी ही पड़ी रहीं”। मैने चोट की “तुम्हारा मेहमान है भाभी तुम्हें हालचाल पूछना चाहिये”। वह बोलीं “हमें मालूम होता कि तुम हालचाल पूछने नहीं जाओगी तो जरूर चली जाती”। जब हम लोग बापिस आ रहे थे तो सुकान्त बहुत तैस में था “मैं आगे से यहॉ कभी नहीं आउॅगा”। मैने उसे उकसाया “क्यों तुम डरते हो कि वह तुम्हारे कमरे में न घुस आयें”। उसने जवाब दिया”मुझे उनकी बातें बिल्कुल पसंद नहीं हैं”। मैने फिर चैलेन्ज किया “क्योकि वह सच कह रहीं थी। तुम मेरे इतने साथ रहते हो। तुमको जो करना चाहिये उसकी तुम्हारी हिम्मत ही नहीं होती है”। सुकान्त को बुरा लग गया “मुझसे हिम्मत की बात मत करो। मैं जब तक तुम्हारी रजामन्दी नहीं हो कुछ नहीं करूॅगा। मैं जो चाहता हूॅ उससे ज्यादा सम्बन्ध महत्व रखते हैं। मुझे तुम्हारे और राजन के बीच की बात मालूम है”। 



मैने अपनी बात कह दी “राजन गुण्डा था और तुम बुद्वू हो”। उसने मुझे ध्यान से देखते हुये कहा “क्याााााााा कहाााााााााा”। मेरा चेहरा शर्म से भर गया केबल बोल पायी “हॉ ऑ”। वह बोला “घर चलो फिर मैं अपनी हिम्मत बताऊॅगा”। मैने कहा “मेरी बला से मैं हाथ ही नहीं आउॅगी”। इसके बाद हम लोगों का चूहे बिल्ली का खेल शुरू हो गया। मैं उसके साथ उसी समय होती थी जब स्वीटी या अनिल मौजूद होते थे या भीड़ की जगह होती थी। पहले जैसा मैं उसके यहॉ अकेले में जाती थी पर जल्दी भाग आती थी। मैं छेड़खानी पर उतर आयी थी। सब से पहले तो मैने एक दिन जब मैं उसके बिस्तर में लेटी थी अपनी पैण्टी उतार ली। यह वही पैण्टी थी जिसको उसने खरीदा था। उसको अपनी चूत के ऊपर रगड़ा। अच्छा लगा तो और रगड़ा फिर चादर के नीचे छोड़ दी। एक नोट छोड़ दिया “ ‘अभी तक तो तुमने मेरे शरीर की गंध ली है अब इसकी की गंध लो. मैं तो मिलने से रही चाहो तो इसी से अपना काम चला लो”। रात भर यह सोच कर चूत में चुनहाहट होती रही कि वह मेरी पेण्टी से क्या कर रहा होगा”। जैसे ही सुकान्त आफिस गया मैं देखने के लिये ऊपर आ गयी। पैण्टी वहॉ नहीं थी। सब जगह ढूॅढ डाली पैण्टी कहीं भी नहीं थी। नहाने के लिये बा्र और पंण्टी उतारी तो वहीं उसके बाथरूम में छोड़ दी उसके अण्डरवियर के बीच में। वह दोनों चीजें भी नहीं थीं। पर जब कपड़े डालने गयी तो वह धो कर के सूखने के लिये डाल दी गयी थी। मौका मिलने पर मैने रिमार्क कसा “कुछ आदमियों को ओरतों के कपड़े धोने में मजा आता है”। वह हॅस कर बोला “मैं तो सब तरह की सेवा के लिये तैयार हूॅ”। मै बोल्ड होती जा रही थी। एक दिन मैने बिना ब्रा के ही ब्लाउज पहना। मेरे सब ब्लाउज पतले कपड़े के हैं। उन में से मेरै काली निपिल्ल्स और घेरा दिख रहा था। शाम को जब हम सब खाने पर बैठे तो मैने उनको साड़ी से अच्छी तरह से ढॉप रखा था। मैं अनिल के बगल मैं और सुकान्त के ठीक सामने बैठी। 




जब मैने देखा कि समय ठीक है मैने साड़ी का पल्लू गिरा दिया। एक झलक दिखा कर मैने फिर से पल्लू कस लिया।उसका लाल मुॅह देखने लायक था। यहॉ तक की दूसरे छुट्टी बाले दिन ऊपर भी बिना ब्रा के चली गयी। स्वीटी वहॉ पर थी। मैने पैण्टी भी नहीं डाली थी। रात में ही चुदायी के समय उनको उतार दिया था फिर पहना ही नहीं था। अब मैने ठीक उसके मुॅह के सामने पल्लू अलग कर दिया। सुकान्त ने स्वीटी से कहा “स्वीटी बेटै जरा नीचे से पेपर तो ले आ”। मैने कहा “पेपर यही है”। पर तब तक स्वीटी भाग कर नीचे जा चुकी थी। सुकान्त ने चट से मुझै पीछे से चपेट लिया। उसने मेरी दोनों गोलाइयों को अपनी हथेलियों में जकड़ लिया। मेरे चूतड़ अपनी टॉगों में सम्ोट लिये। मैं उसका लण्ड अपने क्रेक में महसूस कर रही थी। मैं छूटने की कोशिश कर रही थी। वह बुरी तरह से मेरी चूचियों को मसल रहा था साथ ही पीछे से अपना लण्ड दबा रहा था। मैं कसमसाती रही और वह मुझे दबोचे रहा। जब स्वीटी के ऊपर आने की आहट हुयी तो उसने मुझे छोड़ दिया। चट से एक चुम्बन ले लिया। मैं ऑख तेरती हुयी नीचे चली आयी। वह हॅस रहा था। शाम को हम लोग शॉपिंग को गये। वह ऐसे ही मौके ढूॅढता था। वह मुझसे बिल्कुल सटा हुआ खड़ा था। उसकी रानों से मेरा एक चूतड़ दब रही थी। सामने की सेल्स गर्ल मुस्करा रही थी। मैने अपना पल्लू सामने गिरा लिया और उसके पीछे हाथ ले जा कर उसका लण्ड मुठ्ठी में भर लिया। तब तक मुठ्ठी बॉधे रही जब तक वह तन्ना के खडा. नहीं हो गया। सुकान्त तुरत बैंच पर जाके बैठ गया। मैं जान गयी कि खड़े हुये लण्ड को छुपाने के लिये वह जा बैठा है। मैं शरारत से उसको बुलाती रही। मैने सुबह का बदला ले लिया था। मै इसी तरह की शरारतों में लगी थी। इनका फायदा भी हो रहा था और नुकसान भी। फयदा तो ये था कि चुदबाने में मुझे अब बहुत ज्यादा मजा आता था। नुकसान यह था कि अब मुझे जल्दी जल्दी चुदबाने की तबियत होती थी और वह अनिल नहीं करता था। मैं तो चुदबा कर के अपनी तबियत शान्त कर लेती थी। पर बेचारा सुकान्त उसकी हालत दिन पर दिन खराब होती जा रही थी। कभी उसके ऊपर दया आती थी पर खिजाने में भी बड़ा मजा आ रहा था। जानती थी जब भी वह मुझे पकड़ पायेगा छोड़ेगा नहीं। उस दिन मेरी सब सहेलियों ओर उनके पतियों ने मिल कर पिकनिक मनायी। अनिल और सुकान्त दोनो थे। सब लोग हॅसी खुशी छेड़छाड़ में लगे हुये थे। कोई लोग वालीबॉल खेल रहे थे। कोई ताश खेल रहे थे। कोई खाने में लगे थे. कोई बनाने में.और कोई गपशप में। पास में लेक में स्वीमिंग भी चल रही थी। मैं और सुकान्त ब्रिज में पार्टनर थे। अनिल ब्रिज नहीं खेलता था। मै पैर पर पैर रख कर बैठी थी। मैने देखा कि आगे बढ कर हाथ उठाते समय मेरी साड़ी एक ओर हो जाती थी। मेरी जॉघ कुछ दिख जाती थी। सुकान्त वहॉ देखता था। जब पत्ते बॉटे जा रहे थे मैं बाथरूम गयी। वहॉ मैने अपनी पैण्टीउतार कर अपने पसे में रख ली। आकर मैं घुटने उठा कर बैठ गयी। घुटनो के सामने साड़ी खीच ली। 



जब मैने देखा कि दूसरे दोनों मियॉ बीवी खेलने मैं ज्यादा मग्न हैं। मैने अपनी साड़ी सामने से उठा दी। सामने से सब कुछ नजारा दिख रहा था। दौनों टॉगें. टॉगों का मिलन और मैने टॉघें चौड़ायीं तो स्वर्ग जिसका द्वार खुला हुआ था। सुकान्त खेलना भूल गया। उसका मुॅह खुला रह गया।
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#10
ऑखें जलने लगीं। उसका इतना लाल चेहरा मैने कभी नहीं देखा था। वह बुदबुदाने लगा। “भाभी इट इज नॉट फेयर। तुम ठीक नहीं कर रही हो”। दूसरे दोनों पार्टनर को समझ नहीं आया कि मैनै क्या ठीक नहीं खेला। 


मुझको महसूस हुआ कि मैं इसको ज्यादा ही छेड़ रही हूॅ। सुकान्त की जुबानी शशि भाभी सीधा छोड़खानी पर उतर आयीं थीं। उनकी सेक्सभरी हरकतें बहुत आगे बढ गयीं थीं। मैं हमेशा तनाव में रहता था सैक्स से भरा हुआ। ब््िराज में वह हमेशा मेरी पार्टनर बनतीं थीं। उस दिन शशि भाभी मेरे सामने टिक कर के बैठ गयीं थी। घुटने मोड़ कर उन्होने पैर सामने कर लिये थे। टॉगें फैला ली थीं। सामने साड़ी खींच ली थी जो टॉगें अलग होने से एकदम तन गयी थी। वह मेरी डमी थी। सामने उनके पत्ते फैले हुये थे। मैंने सामने देखा तो जैसे पर्दा ऊपर उठता है उनकी साड़ी ऊपर उठती गयी। उनका अन्दर तक सामने दिख रहा था। उन्होने कुछ भी नही पहन रखा था। टॉगें चौड़ा रखी थीं। सामने दोनों टॉगों के अन्दर का सब कुछ दिख रहा था। वह भाग स्पंज सा फूला हुआ था। बुर उनके रंग से थोड़ी काली थी। मूझको देखते हुये देख कर भाभी ने टॉगें और चौड़ा दीं। बुर का मुॅह खुल गया। दोनों संतरे सी फॉकें अलग हो गयी। एकदम रस से सराबोर । उनके बीच से उनकी लाल उठे हुये दानें सी क्लिटोरी आगे तक आ गयी थी। चूत के अन्दर की नाजुक लाल परतं फैल गयीं थीं। छेद के अन्दर तक लालामी नजर आ रही थी। उसमे से रस की बूॅदें चमक रहीं थी। पानी मोती सा चमक रहा था।ऊपर का हिस्सा बिल्कुल साफ था। पूरा भाग बेमिसाल था डबलरोटी की तरह से भरा हुआ। पूरा जन्नत का नजारा था। अमृत की वर्षा हो रही थी। मेरे लण्ड में उसी क्षण हरकत हुयी जैसे करैंट सा लग गया हो। मेरा तो दिमाग सुन्न हो गया। समझ नहीं आया क्या करूॅ। यह पल भर के लिये हो गया दूसरे क्षण उनकी साड़ी खिच चुकी थी। वह बड़ी मक्कारी से मुस्करा रहीं थीं । मैं अपने को जब्त नहीं कर पाया। मैने ताश फैक दिये। साथ के पेयर ने कहा “क्या हुआ। तुम तो जीत रहे हो”। मैने कहा “अब नहीं खेलूॅगा”। उसी समय किसी ने कहा “चलो लेक में चलते हैं”। शशि भाभी बोलीं “मैं नहीं जाती मुझे तैरना नहीं आता है”। एक ने कहा “तो क्या हुआ पानी ज्यादा नहीं है”। वह बोलीं “नहीं मैं स्वीमिग कस्टयूम ले कर नहीं आयी हूॅ”। उस सहेली ने जो मोटी थी कहा “मेरे पास और है मैं दे दूॅगी”। भाभी बोलीं “नहीं मैं कस्टयूम नहीं पहनूॅगी”। एक दूसरी सहेली ने कहा “मेरे पास एक कुर्ता सूट है। उसको पहन लो”। मुझे उन्होनें बुरी तरह भड़का दिया था। मै उनका हाथ पकड़ कर खींचते हुये बोला “नही तुम्हें चलना पड़ेगा”। दूसरे लोग भी जुट गये। वह ना ना कहती रही। और हम लोग उनको बैसा ही पानी में खीच ले गये। पानी में पहुॅच कर मैने उन पर पानी उछालना चालू कर दिया। सब लोग भी उन पर और एक दूसरे पर पानी उछालने लगे। वह घबड़ा सी गयीं थीं और अपने को हाथ उठा कर बचा सा रहीं थीं। शशि भाभी ने पतली साड़ी और झीना ब्लाउज पहन रखा था। वह उनके वदन से चिपक गया था। भीग कर पारदर्शी हो गया था। उनके भरे हुये उरोजों का पूरा आकार दिख रहा था। अन्दर से उनका रंग झॉक रहा था। गोलों के चारों ओर के काले चकत्ते ऊभर आये थे। ठंड से उनके निपिल्ल्स कील की तरह खड़े हो गये थे। वह ब्लाउज से आधा इंच ऊपर निकल आये थे। यही नहीं उनकी साड़ी और पेटीकोट उनके चूतड़ों और रानों पर चिपक गये थे। उन्होने पंण्टी उतार रखी थी। पेटीकोट उनके क्रेक में घुस गया था। आगे से चूत पर चिपक गया था। दोनों टॉगों के बीच का गडढा दिखायी दे रहा था। चूत का आकार दिख रहा था। उनकी एक सहेली ने उनके कान में कुछ कहा तो वह अपने उभारों को देख कर छुपााने की बेकाम कोशिश कर रहीं थी। वह कॉप भी रहीं थीं। उन्होने पानी से बाहर आने की कोशिश की। उनकी सहेली ने मदद भी करना चाही। पर मैने नहीं निकलने दिया। मैने और दूसरे लोगों ने उन्हें करीब करीब नंगा देखा। आखिर अनिल उनका हाथ पकड़ कर ले गया। 


उन्होने बाथरूम में जा कर दिया हुआ कुर्ता सूट पहन लिया। पर ब्रा न होने के कारण उनके गोले गेंद से उछलते बड़े ही मादक लगते थे। जैसे जैसे गोले हिलते थे मेरे लण्ड में भी हरकत होती थी। उनको पकड़ने के लिये मैं बेकाबू हो रहा था। शशि भाभी का मूड उखड़ गया था। उसके बाद वह ज्यादा देर नहीं ठहरीं। रास्ते में मैने बात करना चाही तो बड़ी बेरूखी से वह बोलीं “ंमै अब तुमसे बात नहीं करना चाहती”। अनिल हॅस कर रह गया। उनकी वह बेरूखी क्षणिक नहीं थी। उन्होने मुझ से बात करना छौड़ दिया था। ना ऊपर आतीं थीं और ना खाने पर बुलातीं थीं। शशि की जुबानी मेरी सहेली ने कान में कहा “शशि तुम नंगी जैसी दिख रही हो”। मैं शर्म से गड़ गयी। कुछ भी तो नहीं कर पा रही थी। 




बाहर आने की कोशिश की तो सुकान्त ने रोक दिया। सुकान्त ने इतने सारे लोगों के बीच मेरा तमाशा बनाया। इतने सारे लोगों ने मुझे नंगा देखा। कोई अपनों की दूसरे लोगों के सामने इस तरह नुमायश करता है। मैं सुकान्त से बेहद नाराज हूॅ। मेरी नाराजी देख कर वह भी सहम गया था। अभी दो दिन से वह हजरत भी दिखायी नहीं पड़े। ना ही उनकी कार आती जाती दिखी। अपना मुॅह छुपा रहे हैं। आखिर जब तीसरे दिन सुबह भी सुकान्त नहीं दिखाायी दिया तो मुझ से नहीं रहा गया। मैने स्वीटी से कहा “देख तो तेरे चाचा क्या कर रहे है”। स्वीटी बोली “मॉ वह तो तीन दिन से बुखार में पड़े हैं”। स्वीटी को मालूम था लेकिन मेरी उस से नाराजी को जानते हुये उसने नहीं बताया था। स्वीटी को स्कूल भेज कर मैं उसी दम ऊपर जा पहॅची। सुकान्त लेटा हुआ था। उसका चेहरा उतर गया था। तीन दिन की दाढी बढी हुयी थी। मुझे देखा तो उसकी ऑखों में चमक आ गयी। मैने उसके माथे पर हाथ रखा तो तप रहा था। मैने कहा “तीन दिन से बीमार पड़े हो और मुझे याद तक नहीं किया”। वह धीमे से बोला “आप तो नाराज थीं”। मैं उसके पास जाकर उसके उलझे हुये बालों मैं हाथ करती हुयी हॅसती हुयी बोली “तुम बुद्धू ही नहीं महा बुद्धू हो”। मैं इतने नजदीक थी कि उसने अपना सिर मेरे उरोजों के बीच में छुपा लिया। मैं बिस्तर पर बैठ गयी और उसका चेहरा हाथों में लेकर उसके तपते होठों पर अपने होंठ सटा दिये। वह बोला “भाभी मुझे फ्लू है मैने कहा “क्या होगा अगर मैं बीमार पड़ जाउॅगी तो तुम सेवा कर देना”। 




सुकान्त मुझे खीच कर अपने बगल में लिटाते हुये बोला “वह तो मैं जिन्दगी भर करने के लिये तैयार हूॅ”। उसने मुझे खींच कर अपने सामने करबट कर लिटा लिया और कसके बॉहो में भीच लिया। अपना सिर मेरे दोनों उभारो की गहराइयों में छिपा लिया। अपनी बायीं टॉग घुटनों से मौड़ कर मेरी दोनों टॉगों के बीच में डाल दी। अपनी टॉग से मेरी साड़ी पेटीकोट समेत उठाता गया। उसका घुटना अब पैण्टी के ऊपर से मेरी चूत को दबा रहा था। उसने अपने गरम गरम होंठ दोनों उरोजों की गहराइयों में चिपका कर चूसा साथ ही अपना घुटना चूर के ऊपर रगड़ा। मैं सिहर उठी। मैने भी अपनी बाहें उसकी पीठ पर बॉध लीं। उसने हाथ बॉधे हुये ही मेरे ब्लाउज के बटन और ब्रा के हुक खोल दिये। मुॅह से दोनों को अलग कर अपना मुॅह मेरे दाये जोवन पर रख कर कसके दवाया साथ ही अपना घुटना ज्तिनी जोर से दबा सकता था दबाया। 



मैं उसका तना हुआ लण्ड अपनी जॉघ पर चुभता हुआ महसूस कर रही थी। मेरे शरीर में बिजली जैसी दौड़ गयी। मैने उसे और कसके बॉध लिया साथ ही अपनी दायीं टॉग उसकी कमर पर बॉध ली। वह कभी मेरे दायें जोवल् पर मुॅह रखता था कभी बायें पर। साथ ही मेरे तने हुये निपिल को होठों में भ्र लेता था।मेरी चूत में इतनी जोर की झुरझुरी हो रही थी कि मै भी अपनी तरफ से अपने उरोजों को जितने जोरों से हो सकता था उसके मुञ् में डालने की कोशिश कर रही थी। अपनी टॉग उठा कर के उसकी कमर पर जितना बॉध सकती थी अपनी टॉगों में जकड़ कर अपनी और खीच रही थी। साथ ही अपनी चूत भी रगड़ रही थी। मुॅह से शी शी निकल रही थी सॉसें खींच रही थी। बड़ी देर तक हम दोनों एक दूसरे की पीठ पर हाथ बाधे इसी तरह पड़े रहे। सुकान्त मेरी दोनों गोलाइयों से तरह तरह से खेल रहा था। ऊपर से ही मेरी जॉघ पर ही लण्ड दबा कर ऊपर नीचे हो रहा था। सथ ही बुदबुदाये जा रहा था “भाभी मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूॅ”। मैं भी उसको बुरी तरह से चूम कर प्यार जता रही थी। उसके लण्ड पर हाथ फेर रही थी। अपनी चूत उसके घ्ुाटने पर रगड़ रही थी। मैं पूरी तरह गरम हो चुकी थी। सुकान्त ने एक हाथ आगे ले जा कर मेरा नाड़ा खीच ढीला कर मेरी साड़ी और पेटीकोट एक ओर पालंग के नीचे फेंक दिया था। खिसका.......?
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#11
मस्त स्टोरी। अपडेट जल्दी दीजिये।
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#12
Uff update update update
[+] 2 users Like Bhavana_sonii's post
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#13
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#14
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#15
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#16
agla update do...beech mei hi chor diya
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#17
Super bahut achhi kahaani
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#18
खिसका कर मेरी पैण्टी उतार दी थी।  अब व मेरे चूतड के दोनो गोलों को जकड़े हुये था अपनी तरफ दबा रहा था।  मेरी चूत से नदी बह रही थी।  उसके घुटना पूरा चिपचिपा हो गया था। सुकान्त ने मुझे इतने जोर से बाहों में भींचा कि मेरी हडडी चरमरा उठी। मैं आनन्द में भर गयी। उसने मेरी पीढ को दबाया।  मेरे कंधों को दबाया।  मेरी बगल को दबाया।  मेरे हरेक चूतड। के गोले को जोर से दबाया।  मेरा हर पोर खुल गया।  यह मेरे लिये ब्ल्किुल नया मजा था।  ऊसने मेरी टॉगों के बीच के पूरे उभरे हुये भाग को हथेली में भर कर एक बार दबोचा तो अन्दर तक मेरी चूत में तरंग सी उठ गयी।  दूसरी बार उसने मुइी मसली तो तन के रह गयी।  मेरी चूत जैसे उसकी मुठ्ठी में आ गयी थी। मुझे एक लम्बी चुदायी जैसा आनन्द आ रहा था।  लगता था कि वह मुझे इसी तरह करता रहे। पर सुकान्त ने मुझे चित कर दिया और उठ कर के मेरी टॉगों के बीच में बैठ गया। मैने कहा “सुकान्त तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है। ये मत करो”। पर उसने अपना मुॅह मेरी टॉगों के बीच में रख दिया। मैने कहा “अच्छा तुम लेटे रहो।  मुझे करने दो”। 





मैने उठ कर उसकी कमीज बनियान उतार फेंकी।  अपने बोझ से उसे लिटा कर उसका पजामा और अण्डरवियर पैरों से नीचे खीच दिया। उसका सॉप जैसा लण्ड फन उठा के खड़ा हो गया। लण्ड अनिल जैसा ही था।  अनिल का कुछ लम्बा है उसका कुछ मोटा था।  मैने उसको मुठ्ठी में बॉध लिया। वह तप रहा था।  बुखार होने से लण्ड ज्यादा गरम था।  मैं उसके ऊपर लेट गयी।  उसके माथे पर गालों पर होठों पर ऑखों पर चूमती रही। फिर नीचे सरक कर उसके सीने को चूमने लगी।  उसके निपिल को होठों में भर लिया।  वह सिहर उठा।  उसने हाथ से अपना लण्ड पकड़ कर मेरे अन्दर घुसाने की कोशिश की पर मैने अपनी टॉगें बॉध रखीं थीं। मैं उसके ऊपर लेटी हुयी उसके निपिल को चूस रही थी।  उसने हाथ बॉध कर मुझे जकड़ रखा था। मैं इतने नीचे खिसक आयी थी कि मेरे रस कलस उसके लण्ड को छू रहे थे। मैने उसके लण्ड को अपनी दोनों गोलाइयों की दराज में दबा रखा था।  मैं सुकान्त के निपिल को चूसते हुये ऊपर नीचे हो रही थी जिससे उसका लण्द मेरे दोनो गोलों के बीच में  फॅसा हुआ चुदायी कर रहा था। मैने अपनी चूचियों को थोड़ा उठाया।  उसके निपल्सि को चूसती रही।  नीचे हाथ ले जा कर उसके लण्ड को मुठ्ठी में थाम कर उसका सुपाड़ा खोल कर अपनी बायी निपिल पर रगड़ा।  दोनों कोमल अंग में सहरन दौड़ गयी। सुकान्त भोल “ओ माई गॉड” मेरा निपिल एकदम तन कर के सख्त हो गये। अब मैं उसके लण्ड को पकड़े हुये सुपाड़ा सीधा निपिल्स की नोक पर टकरा रही थी। निपिल्स आधा इंच उठ कर लण्ड जैसे तन गये थे और सुकान्त के लण्ड के छेद पर बार कर रहे थे जैसे उसको चूत मिल गयी हो। मेरे निपिल्स का रोंया रोंया तन गया था। 



सुकान्त बुरी तरह से गरमा गया था।  वह चूतड़ उठा उठा कर मेरे निपिल्स को चोद रहा था।  उसने मेरे होठो पर अपने होठ बॉध रखे थे। मैने सुकान्त के लण्ड में कॅपकॅपी होती देखी। मैं अपने को खिसकाती हुयी सुकान्त की टॉगौं के बीच में बिल्ली सी आ गयी। मैने अपने दोनों हाथों में उसका लण्ड भर लिया। उसका सुपाड़ा लाल हो रहा था।  छेद पर बूॅद चमक रही थी। मैने उसके सुपाड़े को बड़े लाड़ से देखा और एक चुम्बन लगा दिया। उसका पानी मेरे होठों पर लग गया।  उसके वीर्य की गंध मेरी नाक में भर गयी।  मैं अनिल की गंध से बाकिफ थी। लेकिन कुॅआरे वीर्य की गंध अलग थी ज्यादा तेज।  मैने जीभ निकाल कर उसके छेद पर चलायी तो वह दुहरा हो गया।  मुॅह से निकल पड़ा “ओ भाभी ये क्या करती हो”। मैं बैसे ही दोनों हाथों में भरे  खोले हुये अपनी जीभ आगे पीछे कर बटरफ्लाई किस उसके सुपाड़े को देती रही। अब व्ह तड़पने लग गया था “ओ मेरी भाभी ओ मेरी भाभी”। मैने सुपाड़े की रिंग को अपने होठों में भर लिया तो सुकान्त की चीख निकल गयी।  उसने अपना धड़ हवा में उठा दिया।  अब मैं अकेले सुपाड़े को होठों में समेटे उसे बटरफ्लाई किस दे रही थी।  वह पूरा आनन्द में भर गया था।  मेरा आनन्द मेरे चूत के रास्ते से बह रहा था।  रानें गीली हो गयी थी। 



सुकान्त बेचैनी से हिल रहा था “ओ भाभी अब और नही सह सकता ऊपर आ जाऔ ना”। वह मुझे ऊपर खीचने की कोशिश कर रहा था साथ ही बड़बड़ाये जा रहा था। “भाभाी मेरा ले लो ना”। “भाभी इसको अन्दर लो ना”। “भााााभीीीीीीीीीीीीी हमेशा से तुम मुझे सताती हो।  ये ठीक बात नहीं है।  “अब आओ भी ना”। सुकान्त ने उठने की कोशिश की तो मैने उसके अंडकोशों को मुठ्ठी में भरा तो वह बैसा ही पड़ा रह गया। अब मैने उसके पूरे डंडे को मुॅह में भर लिया।  वह बैसा ही तड़प रहा था और मुझे अपने ऊपर खीचने की कोशिश कर रहा था।  मैने अपने पूरे बाल खोल कर उसके लण्ड के चारों ओर फैला लिये थे।  और अब बाकायदा उसके पूरे लण्ड के ऊपर मुॅह चला रही थी।  कभी मुॅह में भर लेती थी। कभी जीभ से चाटती थी।  कभी चाटती हुयी उसके अंड़ों को हौले से मुॅह में ले लेती थी। बुखार की बजह से उसका लण्ड ज्यादा गरम लग रहा था। वह लण्ड को उसकी असली जगह में डालने के लिये प्लीड कर रहा था।  मुझे खाीचने की कोशिश कर रहा था।  पर मैं जौंक की तरह चिपक गयी थी।  बाल उसके ऊपर छितराये हुये मैं उसे चूसती रही।  उसने भी अब अपना हाथ मेरे सिर पर जमा दिया था।  वह ऊपर से हाथ से दबा रहा था और नीचे चूतड़ उठा कर लण्ड से मुॅह में चोदने की कोशिश कर रहा था। एक बार उसने पेलने के लिये चूतड़ ऊपर उठाये तो वहीं तन कर रह गया।  मेरे मुॅह  में जैसे लावा भर गया हो। मैने झटे से मुॅह हटाया और मुठ्ठी में लण्ड भर कर जल्दी जल्दी मुठ्ठी चलायी। उसका कॉपता रहा और रूक रूक कर पिचकारी की तरह सफेदी उगलता रहा। धार ऊपर तक जा कर उसके पेट पर इकठ्ठी होती रही। सुकान्त ने मुझे टॉगौं के नीचे से बैसी ही हालत में अपने ऊपर खींच लिया।  उसका गरम गरम पदार्थ मेरी दोनों चूचियों और पैट पर फैल गया।  उसी तरह वह बडी  देर तक  अपनी बॉहों में बाधे रहा। मैं उस से अलग हुयी तो उसके वीर्य से लथपथ थी। मैं उठी तो मैने अपने बाल समेट कर ढीले से जूड़े में बॉध लिये।  मैं अपने कपड़े समेट कर बाथरूम  मैं भागी। ऐसे तौलिये से पौछ कर बगैर पैण्टी और ब्रेजियर के साड़ी ब्लाउज पहन कर जल्दी से बाहर गयी। सबसे पहले मैने सुकान्त को बुखाार के लिये दो टाइलेनौल की गोलियॉ दीं। 



उसकी तरफ वही ताौलिया फेकते हुये बोली “अब उठो मुझे बिस्तर ठीक करने दो। देखो तो क्या हालत बना रखी है। अपनी यह तीन दिन की दाढी उतारो।  जल्दी से फ्रेश हो जाओ तब तक मैं गरम गरम नास्ता बनाती हूॅ। सुकान्त को बाथरूम में धकेल कर मैने उसके चादर गिलाफ बदल डाले।  अभी मैं नास्ता तैयार भी नहीं कर पायी थी कि सुकान्त ने पीछे से आ कर मुझे जकड़ लिया। उसके चेहरे पर रौनक आ गयी थी।  वह हाल ही नहाने के बाद बड़ा हैण्डसम लग रहा था हॉलॉकि दाढी उसने अभी भी नहीं बनायी थी। दाढी मैं वह और भी सैक्सी हो उठा था। मैने कहा “अभी मुझे छोड़ो।  मैं नहा कर आती हूॅ फिर साथ में नास्ता करेंगे”। अपने को छुड़ा कर मैं बाथरूम की तरफ बढी।  उसने पकड़ने की कोशिस की पर मैं भाग कर बाथरूम में घुस गयी। मैने ठंडा गरम पानी मिला कर गुनगुने पानी का शॉवर खोला।  मेरा मन वहुत खुश था।  मैं गुनगुना रही थी। मैने शॉवर की धार अपनै निपिल्स और पेट के ऊपर की।  उसका गाढा चिपचिपा वीर्य चूत के ऊपर होता हुआ बह गया।  चूत पर गुनगुने पानी की धार पड़ी तो बहुत अच्छा लगा।  मैने टॉगें खोल कर चूट का मुॅह सीधा शॉवर के सामने कर दिया। प्रेसर से क्लिटोरी पर गिरती बूॅदें गुदगुदी कर रहीं थीं।  बैसे भी चूत को उसकी खुराक नही मिली थी।  चूत में कुछ खुजली सी होने लगी।  मैने साबुन का ढेर सारा झाग बनाया और उॅगलियों में भर कर छेद मैं गूसेड़ लिया। अच्छा लगा तो साबुन की बट्टी ही छेद में घुसा ली। मैं इतनी मगन हो गयी थी कि मुझे पता ही नहीं चला कि सुकान्त चाभी से दरवाजा खोल कर अन्दर घुस आया है। उसे देख कर मैं शर्मा गयी हॉलॉकि अभी हाल ही  उसके आगे नंगी हुयी थी। मैने अपनी बुर छिपाते हुये कहा “अभी तुम बाहर निकलो”। पर उसने मुझे आगे बढ कर जकड़ लिया। 
सुकान्त की जुबानी......शशि भाभी भाग तो गयीं पर जाते जाते मुॅह चिड़ा गयीं जिस से जाहिर था कि अगर पकड़ लो तो मुझे पाा लो। अन्दर से उनके मस्ती से गुनगुनाने की आवाज आ रही थी।  बहुत ही मधुर आवाज थी।  मैने चाभी से दरवाजा खोला तो धक से रह गया।  शॉवर की बौछार में वह आकृति जैसी लग रहीं थीं  लम्बी छहहरी देह चिकनी त्वचा और गोरा रंग। भरे हुये मस्त उरोज और उनके ऊपर फूली हुयी घुीण्डयॉ पानी में चम्क रहीं थीं।  उनके कूल्हे भरे हुये थे और नितम्ब के दोनों सुडौल गोले पीछे तक उभरे और उठे हुये थे उनमें बिल्कुल भी जुकाव नहीं था।  उन्होने  अपनी टॉगें खोल कर  चूत को शॉवर की धार के आगे कर रखाा था। देखते ही मेरा लण्ड एकदम तन गया। मुझे इस तरह देख कर वह कमसिन की तरह लजा गयीं।  मैने आगे बढ कर उनको बॉध लिया।  



भीगने की परवाह भी नहीं की। शशि भाभी ने मना किया “तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है पानी में मत भीगो”। पर मैने अपनी हथेलियॉ पीछे से उनकी मस्त पहाड़ियों पर बॉध ली और उन्हें मसलने लगा। अपना मुॅह उनकी गरदन पर रख कर उसे चूमने लगा। भाभी ने हार कहा “अच्छा पानी तो बन्द कर दो”। मैने कहा “चलने दो तुम्हारे शरीर पर अच्छा लग रहा है”। हम लोग थोड़ी देर तक नहाते रहे।  मैं हथेलियों से उनके ऊपर के उभार दबाये हुये था और अपनी रानों के बीच में पीछे की गोलाइयों को दबाये हुये था।  मेरा लण्ड दोनों गोलाइयों के बीच में घसने की कोशिश कर रहा था। उनकी पतली देह एकदम तन गयी थी और पीछे से म्ुॉह घुमा कर मुझे चूम रहीं थीं। मैने उनको घुमा कर अपने सामने कर लिया और उनके सामने नीचे बैठ गया।   भाभी ने बड़े प्यार से मुझे देखा और मेरे भीगे कपड़े उतार फेके।मैने घुटने के बल बैठ कर उनकी पतली कमर को बाहों में भर लिया और अपने होठ उनकी नाभि पर जमा दिये।  मैं उनकी नाभि के गडढे में जीभ डाल कर चूसने लगा । भाभी ने बायॉ हाथ सिर पर रख कर अपने से और चिपका लिया और दायें हाथ मेरे बालों में फेरने लगीं। वह मुझे बड़े प्यार से देख रहीं थीं। मैने अपना मुॅह और नीचे सरकाया तो उन्होने टॉगें चौड़ी कर दीं। मैने उनकी बुर को चूम तो लिया पर टॉगों के बीच में छुपी होने के कारण पहुॅच न सका। मैने उठ कर उनको बाहों में उठाया और वहीं संगमरमर के फर्स पर लिटा दिया। भाभी बोली “ये क्या कर रहे हो”। पर जबाव देने की जगह मैने उनकी टॉगें चौड़ी कर के अपने कंधे पर रख लीं। मेरे सामने भरी भरी फाकों बाली बुर मुॅह खोले हुये  थी।  



अन्दर की कोमल पर्ते गहरी गुलाबी लिये हुये गहरायी तक दिख रहीं थी. जिनको मैं दूर से देख कर मदहोश हो गया था।  शॉवर का पानी उनकी बुर के छेद पर सीधा गिर रहा था.  उसके इम्पैक्ट से उनको सुख मिल रहा था।  वह टॉगें और चौड़ा कर धार के सामने कर रहीं थीं।  मैने अपना मुॅह उनकी चूत के ऊपर रख दिया तो वह सिहर उठीं “ओ मेरे सुकान्त”। मैने उसका चूत का दाना अपने होठों से चूसा तो वह अपने चूतड़ उठा उठी। मैने उसके दाने पर जीभ ऊपर नीच्ो कर के बटरफ्लाई किस करना शुरू कर दिया। अब शशि भाभी के तड़पने की बारी थी। वह चिल्लाने लगीं “ओ सुकान्त प्लीज ऐ मत करो।  मुझे कुछ भी कर लो”। मैं अपनी जीभ की नोक से जैसे बिल्ली दुध पीती है उनकी क्लिटोरी से खेल रहा था।  साथ ही एकाध बार अपनी उॅगली उनकी छेद में डाल कर घुमा देता था। वह दोहरी हो जाती थीं। अब वह गिगयाने लगीं थीं “सुकान्त और म्त तड़पाऔ प्लीज अन्दर डाल दो न”। शशि भाभी हाथ से लण्ड पकड़ कर मसल रहीं थीं  और अपनी चूत की तरफ खीचने की कोशिश कर रहीं थी। मैने गहरायी तक उॅगली डाली तो उठ कर बैठ गयी “सुकान्त इसको उॅगली की नहीं तुम्हारे इसकी जरूरत है। कस कस के ठोक दो इसको अब मैं नहीं सह सकती। मैने देखा कि शशि भाभी आपा खो चुकी थीक्त मैने अपना पूरा मॅुह उनकी चूत की गहरायी तक चिपका दिया। और चूसा तो वह सिर हिला कर ऊॅची आवाज मैं मोन करने लगीं थी। “उॅ है. उॅ हैं “उॅ है. उ ॅहैं उॅ हैं “उॅ है. उ ॅहैं उॅ हैं “उॅ है. उ ॅहैं मैं अपनी पुृी जीभ से छेद से लेकर क्लिटोरी तक चाट रहा था और जब क्लिटोरी तक पहुॅचता था तो होठों से उसे बरी तरह से खा रहा था। उसी समय शशि भाभी अपने दोनों हाथ मेरे मुॅह के दोनों तरफ जाघों पर बेचौनी से फेरती थीं साथ ही लगातार उनकी आवाज बढती जा रही थी “उॅ है. उॅ हैं “उॅ है. उ ॅहैं उॅ हैं “उॅ है. उ ॅहैं उॅ हैं “उॅ है. उ ॅहैं मैने उनको फिर चाटा “उॅ है. उॅ हैं “उॅ है. उ ॅहैं उॅ हैं “उॅ है. उ ॅहैं उॅ हैं “उॅ है. उ ॅहैं “उॅ है. उॅ हैं “उॅ है. उ ॅहैं उॅ हैं “उॅ है. उ ॅहैं उॅ हैं “उॅ है. उ ॅहैं मेने होंठ जोरो से गडाये “उॅ है. उॅ हैं “उॅ है. उ ॅहैं उॅ हैं “उॅ है. उ ॅहैं उॅ हैं “उॅ है. उ ॅहैं “उॅ है. उॅ हैं “उॅ है. उ ॅहैं उॅ हैं “उॅ है. उ ॅहैं उॅ हैं “उॅ है. उ ॅहैं “उॅ है. उॅ हैं “उॅ है. उ ॅहैं उॅ हैं “उॅ है. उ ॅहैं उॅ हैं “उॅ है. उ ॅहैं उनकी चूत में कम्पन मालूम पड़ने लगा था। मेरा लण्ड भी जमीन को रगड़ रहा था।  मैं पलट कर उनके ऊपर चढ बैठा।  



मेरा मुॅह उनकी चूत की तरफ था और लण्ड उनके दोनों जोवनों के बीच। मैने उनके दोनें जोवनों के बीच की दराज में ल्ण्ड पेलना चालू कर दिया साथ ही पूरी तरह मुॅह घुसा कर जीभ से उनकी चूत की चुदायी करने लगा। वह सिहर उठी”ो मेरे सुकान्त मैं तो गय्ईईईईईईईईईईईईईईईईईऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊ य्ोएएएएए क्याााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााा कियााााााााााााााााााााााााााााााा।  बगैर डाले हीीीीीीीीीीीीीीीीीी झड।ााााााााााााााााााा दियाााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााा”। मैं भी अपने को नही रोक सका।  गाढा गाढा पानी उनकी छातियों पर उगलता रहा। मेरे वीर्य से उनकी गोलाइयॉ चूचिया6 बुरी तरह से सन गयीं थी। शशि भाभी ने शिकायत की” मैं नहा चुकी थी देखो ये क्या किया”। मैने उनको बॉधते हाये कहा “चलो अभी नहलाये देते है”। उन्होने कहा “नहीं तुम बाहर चलो मैं नहा के आती हूॅ”। नहा के आयी तो शशि भाभी बहुर प्यारी लग रहीं थी।  उन्होने बैस ही ढीला जूडा. बना रखा था।  आते ही उन्होंने नास्ता लगा दिया। उन्होने बड़े अधिकार से कहा “चलो अब नास्ता करो”। मैने कहा “मझे भूख नहीं है”। वह बोलीं “हॉ तुम्हें तो ओर ही चीज की भूख है।  मुझे पता होता कि तुम यह करोगे तो मैं आती ही नहीं”। मैने कहा “हॉ हॉ चहे मैं मर ही जाता”। शशि भाभी मेरे पास आकर मुझको चूमते हुये बोलीं’ तुम्हें मेरी कसम है  ऐसी बात फिर कभी मत कहना”। मैने उनको जकड़ लिया। वह बोलीं “नहीं पहले नास्ता करो।  ना जाने इतने दिनों से कुछ नहीं खाया है”। मैनै कहा “अच्छा यहीं बैठा”। उन्होंने बड़े लाड़ से मुझे खिलाया।  वह उठ कर किचिन में जाने लगीं तो मैने उन्हें सामने से बॉध लिया और होठों पर अपने होंठ चिपका दिये।  उन्होने अपनी बॉहें मेरे गले में डाल दीं। मेरी ऑखों में ऑखें डाल कर बोली “मेरे देवर जी।  अब मुझे छोड़ो मैं लंच के समय आउॅगी। मैने कहा “ना भाभी मैं जिसके लिये इतना तड़पा हूॅ।  ाभी तो पारी पूरी हुयी नही हैं। मैं उनको खींच कर बैडरूम में ले गया। 



शशि की जुबानी......... मैं झड़ चुकी थी।  पर लण्ड न लगने से थोड़ी कसमसहट रह गयी थी।  सुकान्त के मेरे उभारों पर मुॅह रखने से फिर से जग गयी।  मेरी चूचियॉ बहुत सेंसिटिव हैं। सुकान्त जकड़े हुये मुझे कमरे में ले आया।  मैक्त उसका भारी लण्ड अपने चूतड़ों पर महसूस कर रही थी।  दो बार झड़ने के बाद वह पत्थर की तरह सख्त हो गया था।  अनिल को दुबारा खड़े होने में समय लगता था वह भी मुझे लण्ड को जगाना पड़ताा था। सुकान्त बिस्तर पर बैठ गया।  मुझे अपनी टॉगों के बीच में खड़ा कर लिया।  उसने मेरे ब्लाउज के बटन खोल डाले.  ब्रेजियर का हुक खोल दिया।  मेरे बड़ी बडी.े लचकदार गेदें जम्प कर के बाहर आ गयी।  उसने सड़ी के ऊपर से ही नाड़ा खीच दिया तो साड़ी पेटीकोट समेत पैरों पर गिर गयी। मैने भी उसकी उतार डाली।  उसने मुॅह मेरी चूचियों की तरफ किया तो मैनै अपनी बायें जोवन को ञथ मैं भर कर खुड उसके मुॅह मैं दे दिया और दूसरा हाथ उसके सिर पर रख कर अपने उभार पर दबाया। उसने अपने गथ मेरे पीछे बॉध लिये थे।  वह सधे हाथ से मेरे कंधे।  मेरी पीठ और उभरे हुये कूल्हे दबा रहा था।  वह हाथ ऊपर से नीचे तक फेर रहा था।  नीचे आता तो चूतड़ो को दबाता हुआ हाथ दराार के अन्दर तक ले जाता था तो मैम् सिहर उठती थी।  मैने नीचे हाथ करके उसके पजामे का नाड़ा खोल दिया।  उसको सरकाया  तो वह खुद ऊपर उठ गया।  ाब मैने भी उसके मर्दानेपन को मुट्टी में बॉध लिया था ाौर उस पर हाथ चलाने लगी थी।  सुकान्त पीछे से उॅगलियॉ और नीचे से ले जाकर मेरी निजी चीज को छूने लगा था।  




मै तो उसके चूसने से ही गर्मा गयी थी।  मैने अपन िटॉगें और फैला दी जिससे कि वह आसानी से मेरे स्वर्गद्वार में प्रवेश कर सके।  जैसे ही उसकी उॅगलियों ने मेरे निजी मुॅह को  छुआ मुझ में आग लग गयी “उ ई ई ई ईईईई“ मैने भी कस के मुठ्ठी मे उसके तने को दबा लिया।  वह भी शीत्कार कर उठा “ओ मााााााााईईईईईईइ गॉडडडडडडडडडडड”। वह अपनी तर्जनी मेरे छेद में करने लगा।  मैं बेहद गरम थी।  चूत से पानी टपकने लगा था। उसने मेरे निपिल्स पर तॉत लगा दिये।  मैं और से चीखी और बाल खीच कर उसका मुॅह अलग कर दिया। सुकान्त बैड से उतर कर नीचे बैठ गया और मेरे दोनों कूल्हों को जकड़ कर अपना मुॅह मेरी केशरक्यारी पर रख दिया। बैसे तो मैं क्लीनशेव्ड रखती हूॅ पर अचानक हो जाने से मेरे छोटे छोटे से बाल थे।  उसने मुॅह केशरक्यारी पर रगड़ा तो मुझे बहुत अच्छा लगा। उसने अपना मुॅह और नीचे किया तो मैने ताना कसा “क्या बात है इतना बड़ा हथियार देखने के लिये है काम नही करता है”। सुकान्त को जोश आ गया बोला “अच्छा ऐसी बात है”। उसने मुझे घुमाकर बैड पर पटक दिया।  जॉघे पकड़ कर दोनों टॉगें खोली और एक झटके में पूरे बेग से अपना लण्द मेरी चूत में पेल दिया। बैड चरमरा उठा। मै खिसक कर बैड के दूसरे सिरे तक चली गयी। उसका लण्द मेरी चूत की गहरायी में अन्दर की दीबार पर कटाक से पड़ा। मेरे मुॅह से चीख निकाल गयी “ओ मेरी मॉऑऑऑ”। वह पूरे बेग से पिल गया।  उसका पूरा ड़ंडा बाहर निकलता था फिर उसी तेजी से अन्दर हो जाता था। मुझे परम आनन्द मिल रहा था। मैने अपने नाखून उसकी पीठ पर गद.ा दिये थो। मैं जोरोम् से मोन कर रही थी “ओह ओह ओह ओह ओह अअ‍ेह अअ‍ेह अओह”  वह भी जोश में कहे जा रहा था “ये लो ये लो ये लो ये और लो और और और लो”। पंदरह मिनट तक वह मेरी चूत को गूथता रहा। मैने कहा “अच्छा देवर जी मैं मान गयी हूॅ अब तो आराम से करो”। वह थम गया।  मैं बैड पर खिसक कर लेट गयी।  वह मेरे ऊपर आ गया।  मैने उसके लण्ड को थामा तो वह मेरे पाानी से लथपथ था। मैने बड़े प्यार से उसके सुपााड़े को चूमा और सुपााड़ा अपनी फैली हुयी चूत में बैठा दिया। सुकान्त अब आराम से अन्दर बाहर कर रहा था।  उसका पूरा लण्ड अन्दर जाता था फिर पूरा बाहर आ जाता था।  झाते समय और निकालते समय् वह मेरी चूत की दीवार से रगड़ता जाताा था।  मुझे बहुत सुख मिल रहा था। मेरी चूत तो आनन्द के लण्ड को चकती रहती थी।  पर उसको लण्ड का फरक पता चल रहा था।  चूत एक नया स्वाद महसूस कर रही थी बेहद स्वादिष्ट आनन्दमय। पूरी तबियत से लगबा रही थी। जब उसका लण्ड अन्दर पिलायी कर रहा था मैने पूछा “सुकान्त एक बात पूॅछूॅ सही सही बताना तुमने पहले किस की की है”। सुकान्त बोला “ मैं बताउॅगा अगर भाभी तुम भी बताऔ कि तुमने सबसे पहले किस पर निझाबर की है”। मैने हामी भर दी तो वह ऊपर से उतरने लगा “भाभी तुम लगाओ मैं सुनूॅगा”। मैने उसको पकड़ लिया “नही नही तुम ऐसे ही करते रहो और अपनी कहानी सुनाओ”। सुकान्त की जुबानी शशि भाभी को स्ट्रोक लगाते हुये मैने कहना शुरू किया।  मैने उनके दोनों रस कलस मुठ्ठियों में भर रखे थे और हर बार चोट करते हुये गूॅध रहा था।  वह बीच बीच में आनन्द से कराह उठती थी पर कहानी सुनने में मग्न हो गयी थीं। “मै एक किराये के मकान में रहता था। 



मकान की मालकिन बहुत ही खूबसूरत थी।  एकदम कोमल।  एकदम पारदर्शी कि अगर धूप में खड़ी हुयी तो झुलस जायेगी।  चेहरे पर संभ्रान्ता की छाप।  छोटे छोटे पतले फूल से होंठ। शशि भाभी बीच में बोली “तुम्हारी नजर हमेशा मकान मालकिन पर रहती है। भोलेपन का ढोंग करते हो”। मैने कहा “अगर बीच में टोकोगी तो मैं नहीं कहूॅगा”। मैने आगे चालू रखा “उनका बहुत अच्छा परिवार था।  फूल सी बच्ची थी।  मिलनसार हैंडसम पति था।  वह मिल कर बहुत खुश होते थे। पर मकान मालकिन मुझ से बेबजह खफा रहती थी।मैने एक दो बार बड़े आदर से उसको विश किया लेकिन उसकी साफ ब्ोरूखी देख कर सोच लिया कि आगे से बात नहीं करूॅगा शायद उनको अपने रूप का घमंड है।  पर बच्ची और उसके सास ससुर के कारण मेरा उनके यहॉ आना जाना शुरू हुआ तो मालूम हुआ कि वह तो बहुत नर्म और मृदुभाषिणी है। उसको तो घंमंड छू तक नही गया है। ये तो उसके पहले किरायेदार के कड़बे अनुभव के कारण है”। शशि भाभी समझ गयीं मेरे सीने पर मुक्के बरसाती हुयी बोली “ये तो तुम मेरे बारे में कह रहे हो”।  मैने कहा “तुम्ही ने तो पूछा था कि सबसे पहले मैने किस की की है”। शशि भाभी ने मेरी ऑखों में देखते हुये पूछा “सच कह रहे हो”। मैने जबाव दिया “हॉ भाभी”। वह उठ बैठी।  मुझे बार बार चूमती हुयी बोली “मैं बहुत गर्व महसूस कर रही हूॅ।  




अपना कोरे लण्ड का सुख तुम अपनी भाभी को दे रहे हो।  मैं जिन्दगी भर याद रखूॅगी”। मैने कहा’भाभी मुझे अपना काम तो करने दो”। मैने उनको बिस्तर पर दबाकर के कि वह हिल भी न पायें घुटनों के बल बैठ कर के गहरे गहरे स्पीड से चोटें दीं। वह भी जोस में आ गयीं थीं।  हर बार अपनी चूत ऊपर उठा देती थी। बड़बडा रहीं थीं ‘हॉ लगाओ.................……… और लगाओ……………।हॉ हॉ हॉ हॉ हॉ”।
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#19
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#20
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