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आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 05
#1
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आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 05
 
 
Namaskar मैं बहुत तरोताजा महसूस कर रही थी , शायद उस जड़ी बूटी वाले पानी से स्नान करने की वजह से ऐसा लग रहा था. गुरुजी की पूजा से भी मैं संतुष्ट थी.
 
फिर थोड़ी देर मैंने बेड में आराम किया.
कुछ समय बाद किसी ने दरवाज़ा खटखटा दिया.
मैने जल्दी जल्दी ब्लाउज के तीन हुक लगाए . ऊपर के दो हुक लग ही नही रहे थे. इससे मेरी चूचियों का आधा ऊपरी भाग दिख जा रहा था. मैंने अच्छी तरह से साड़ी से ब्लाउज को ढक लिया.
 
समीर ने कहा था की परिमल डिनर लेकर आएगा तो मैंने सोचा 10 बज गये हैं, वही आया होगा. मैंने दरवाज़ा खोला तो परिमल ही आया था पर वो डिनर नही लाया था.
 
परिमल – मैडम , दीक्षा कैसी रही ?
“ठीक रही. मुझे गुरुजी की पूजा अच्छी लगी.”
परिमल – जय लिंगा महाराज……...गुरुजी पर आस्था बनाए रखना , वो आपके जीवन की सारी बाधाओं को दूर कर देंगे.
परिमल मुस्कुरा रहा था.
नाटे कद के परिमल को देखते ही मेरे होठों पर मुस्कान आ जाती थी. मैंने सोचा थोड़ी देर इसके साथ मस्ती करती हूँ.
ना जाने क्यूँ पर परिमल के साथ मुझे संकोच नही लगता था शायद उसके ठिगने कद की वजह से. इसीलिए मैं भी उसके साथ मस्ती कर लेती थी , वरना अपने शर्मीले स्वभाव की वजह से पहले तो कभी किसी मर्द के सामने मैं ऐसे बात नही करती थी.
परिमल – मैडम, मैं आपके लिए डिनर ले आऊँ ?
“नही , अभी 10 ही बजे हैं. मैं तो 10:30 के बाद ही डिनर करती हूँ.”
कुछ रुककर मैं बोली,” परिमल, तुमने जो बात मुझसे कही थी , मैंने उसके बारे में सोचा. मुझे लगता है तुम सही बोल रहे थे. स्कूल यूनिफॉर्म की स्कर्ट मुझे फिट नही आएगी. इसलिए मैं अपने शब्द वापस लेती हूँ.
 
परिमल ने ऐसा मुँह बनाया की मैंने बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी रोकी. उसके लिए ‘हाथ आया पर मुँह ना लगा’ वाली बात हो गयी थी. वो सोच रहा था की दीक्षा के बाद मुझे स्कूल यूनिफॉर्म लाके देगा और उस छोटी ड्रेस में मुझे देखने की कल्पना से उसकी आँखें चमक रही थी. वो मुझे अपने जाल में फँसा हुआ समझकर निश्चिंत था. पर अब मैंने हार मान ली थी तो उसका चेहरा ही उतर गया.
परिमल – लेकिन मैडम वो ….आपने तो कहा था की एक बार ट्राइ कर के देखोगी.
 
“हाँ , पहले मैंने ऐसा सोचा था, पर अब मैं तुम्हारी बात मान रही हूँ की मुझे स्कूल यूनिफॉर्म फिट नही आएगी.”
मैंने अपने अंगों का नाम नही लिया की कहाँ पर स्कर्ट फिट नही आएगी जैसे जांघें या नितंब.
 
परिमल ऐसे दिख रहा था जैसे अभी अभी इसकी कुछ कीमती चीज़ खो गयी हो , मुझे छोटी स्कूल ड्रेस में देखने का उसका सपना टूट गया था. उसको निराश देखकर मैंने बातचीत बदल दी. मैं उसका उत्साह बनाए रखना चाहती थी ताकि उससे मस्ती चलती रहे.
“ मेरी एक दूसरी समस्या है . क्या तुम कोई उपाय बता सकते हो ?”
परिमल का चेहरा अभी भी मुरझाया हुआ था पर मेरी बात सुनकर उसने नज़रें उठाकर मुझे देखा.
“समीर ने जो ब्लाउज मुझे दिया है वो मुझे टाइट हो रहा है. तुम कोई दूसरा ब्लाउज ला सकते हो ?”
परिमल की आँखों में फिर से चमक आ गयी. शायद वो सोच रहा होगा अगर छोटी स्कर्ट में मेरे नितंब देखने को नही मिले तो टाइट ब्लाउज में चूचियाँ ही सही.
परिमल – क्यों ? समीर ने आपको 34” साइज़ का ब्लाउज नही दिया क्या ?
 
मेरी भौंहे तन गयी. इसको मेरा साइज़ कैसे पता ? वो तो मैंने समीर को बताया था. हे भगवान ! इस आश्रम में सबको पता है की मेरी चूचियों का साइज़ 34” है.
“पता नही. लेकिन ब्लाउज फिट नही आ रहा. मुझे लगता है ग़लत साइज़ दे दिया.”
परिमल – नही मैडम. साइज़ तो वही होगा क्यूंकी आश्रम में अलग साइज़ को अलग बंड्ल में रखते हैं.
“अगर ब्लाउज फिट नही आ रहा है तो सही साइज़ कैसे होगा ? यहाँ पर कितना टाइट हो रहा है.”
मैंने अपनी चूचियों की तरफ इशारा किया. मैं परिमल को थोड़ा टीज़ करना चाहती थी.
परिमल – मैडम, ये रेडीमेड ब्लाउज है, शायद इसीलिए आपको टाइट लग रहा होगा.
 
“परिमल, ये इतना टाइट है की मैं ऊपर के दो हुक नही लगा पा रही हूँ.”
 
पहले कभी भी किसी मर्द के सामने मैंने ऐसी बातें नही की थी पर पता नही उस बौने के सामने मैं इतनी बेशरमी से कैसे बातें कर दे रही थी.
अब परिमल ने सीधे मेरी चूचियों की तरफ देखा. साड़ी के पल्लू से मेरा ब्लाउज ढका हुआ था. परिमल शायद अपने मन में कल्पना कर रहा था की अगर पल्लू हट जाए तो आधे खुले ब्लाउज में मैं कैसी दिखूँगी.
 
परिमल –मैडम, तब तो आपको परेशानी हो रही होगी. बिना हुक लगाए आप कैसे रहोगी ? मैं कोई दूसरा ब्लाउज ले आऊँ क्या अभी ?
 
 
 
ओहो …..देखो तो , ये बिचारा मुझ हाउसवाइफ के लिए कितना चिंतित है…………..
 
 
 
“ अभी रहने दो. वैसे भी रात हो गयी है. अब तो मैं अपने कपड़े उतारकर नाइट्गाउन पहनूँगी.”
 
 
 
मैं देखना चाहती थी की मेरी इस बात का उस पर क्या रिएक्शन होता है.
 
 
 
मैंने देखा उसके पैंट में थोड़ा उभार आ गया है. शायद वो मेरे कपड़े उतारने की कल्पना कर रहा होगा. उसके रिएक्शन से मेरे दिल की धड़कने भी तेज हो गयी.
 
 
 
परिमल – ठीक है मैडम. आप कपड़े चेंज करो , मैं डिनर ले आता हूँ.
 
 
 
ये ठिगना आदमी बहुत चालू था. उसे मालूम था की मेरे पास अंडरगार्मेंट्स नही है. जब मैं साड़ी ब्लाउज उतारकर नाइट्गाउन पहनूँगी तो सेक्सी लगूंगी.
 
मैंने हाँ बोल दिया और वो डिनर लेने चला गया. मैंने सोचा नाइट्गाउन में अगर अश्लील लग रही हूँगी तो नही पहनूँगी.
 
 
 
परिमल के जाने के बाद मैंने दरवाज़ा बंद किया और कपबोर्ड से नाइट्गाउन निकाला. नाइट्गाउन भगवा रंग का था. भगवान का शुक्र है ये पतले कपड़े का नही था और इसमे बाहें भी थी लेकिन लंबाई कुछ कम थी. रूखे कपड़े से बना हुआ छोटी नाइटी जैसा गाउन था. दिखने में तो मुझे ठीक ही लगा.
 
 
 
मैं कमरे में अपने कपड़े उतारने लगी . उस टाइट ब्लाउज को उतारकर मुझे राहत मिली. उसमें मेरी चूचियाँ इतनी कस रही थी की दर्द करने लगी थी. नाइटी पहनकर मैंने अपने को उस बड़े से मिरर में देखा.
 
 
 
अंडरगार्मेंट्स तो मेरे पास थे नही. नाइटी के रूखे कपड़े के मेरी चूचियों पर रगड़ने से मेरे निपल तन गये और चूचियाँ कड़क हो गयी.
 
 
 
एक दिन में इतनी बार मैं पहले कभी गरम नही हुई थी . मुझे क्या पता था आने वाले दिनों के सामने तो ये कुछ भी नही है.
 
 
 
नाइटी काफ़ी फैली सी थी और कपड़ा भी मोटा था , इसलिए बिना ब्रा पैंटी के भी अश्लील नही लग रही थी. लेकिन लंबाई कम होने से घुटने तक थी, पूरे पैर नही ढक रही थी.
 
 
 
मैंने मिरर में हर तरफ से देखा , मुझे ठीक ही लगी. सिर्फ़ मेरे तने हुए निपल्स की शेप दिख रही थी और बिना ब्रा के उसको ढकने का कोई उपाय नही था.
 
 
 
थोड़ी देर में परिमल डिनर की ट्रे लेकर आ गया. डिनर में सब्जी, दाल और रोटी थी.
 
 
 
परिमल नाइटी में मुझे घूर रहा था . मैंने कोशिश करी की ज़्यादा हिलू डुलू नही वरना मेरी बड़ी चूचियाँ बिना ब्रा के उछलेंगी.
 
 
 
परिमल – आप डिनर कीजिए. मैं यहीं पर वेट करता हूँ ताकि अगर आपको किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो ला सकूँ.
 
 
 
“ठीक है परिमल.”
 
 
 
मुझे मालूम था की परिमल अपनी आँखें सेकने के लिए ही मेरे साथ रुक रहा है. पर मैने उसे मना नही किया.
 
मैं बेड में बैठ गयी और डिनर की छोटी सी टेबल को अपनी तरफ खींचा. लेकिन जैसे ही मैं बेड में बैठी मेरी नाइटी जो पहले से ही छोटी थी थोड़ी और ऊपर उठ गयी और घुटने दिखने लगे.
 
 
 
परिमल – मैडम, आप खाओ . मैं यहाँ पर बैठ जाता हूँ.
 
 
 
ऐसा कहते हुए वो मुझसे कुछ दूरी पर फर्श में बैठ गया.
 
 
 
पहले मैंने सोचा ये लोग आश्रम में रहते हैं तो ज़मीन में बैठने के आदी होंगे. कमरे में कोई चेयर भी नही थी , इसलिए परिमल फर्श पर बैठ गया होगा.
 
 
 
लेकिन कुछ ही देर में मुझे उस नाटे आदमी की बदमाशी का पता चल गया. असल में नाटे कद का होने से फर्श में बैठकर उसे मेरी नाइटी का ‘अपस्कर्ट व्यू’ दिख रहा था. इतना चालू निकला.
 
 
 
मैंने तो पैंटी भी नही पहनी थी. मैं एकदम से अलर्ट हो गयी और अपनी जांघों को चिपका लिया. एक हाथ से मैंने नाइटी को नीचे खींचने की कोशिश की लेकिन मेरे बड़े नितंबों की वजह से नाइटी नीचे को खिंच नही रही थी.
 
 
 
मैंने परिमल को देखा , उसकी नज़रें मेरी टांगों पर ही थी . लेकिन मेरे जांघों को चिपका लेने से उसके चेहरे पर निराशा के भाव थे. जो वो देखना चाह रहा था वो उसे देखने को नही मिल रहा था. उसके चेहरे के भाव देखकर मुझे हंसी आ गयी.
 
 
 
परिमल के सामने बैठे होने की वजह से मैंने जल्दी जल्दी डिनर किया और हाथ धोने बाथरूम चली गयी.
 
 
 
परिमल अभी भी फर्श पर बैठा हुआ था तो पीछे से उस छोटी नाइटी में मेरे हिलते हुए नितंबों को वो देख रहा होगा. सूखने को रखा हुआ टॉवेल फर्श पर गिरा हुआ था तो जब मैं झुककर उसे उठाने लगी तो मेरी छोटी नाइटी पीछे से ऊपर उठ गयी , पता नही परिमल ने फर्श पर बैठे हुए कितना देख लिया होगा.
 
 
 
फिर परिमल ट्रे लेकर चला गया लेकिन उसकी आँखों की चमक बता रही थी की मेरे झुककर टॉवेल उठाने के पोज़ को वो अपने मन में रीवाइंड करके देख रहा है.
 
 
 
परिमल के जाने के बाद मैं सोने के लिए बेड में लेट गयी , लेकिन मुझे नींद नही आ रही थी. मेरे मन में ये बात आ रही थी की कहीं मैंने परिमल के साथ अपनी हद तो पार नही की ? जब मैं टॉवेल उठाने के लिए झुकी तो पता नही उसने क्या देखा.
 
 
 
मुझे बहुत बेचैनी होने लगी तो मैं बेड से उठ गयी और बाथरूम में मिरर के आगे उसी पोज़ में झुककर देखने लगी. मैंने झुककर बाथरूम के फर्श को हाथों से छुआ और पीछे मिरर में देखा.
 
 
 
हे भगवान ! मेरी नाइटी जांघों तक ऊपर उठ गयी थी और पीछे को उभरकर मेरे सुडौल नितंबों का शेप बहुत कामुक लग रहा था. उस पोज़ में मेरी मांसल जांघें तो खुली हुई दिख रही थी.अगर नाइटी थोड़ी और ऊपर उठ जाती तो बिना पैंटी के मेरे नितंबों के बीच की दरार भी दिख जाती. क्या पता उस ठिगने परिमल को दिख भी गयी हो.
 
 
 
मुझे अपने ऊपर इतनी शरम आई की क्या बताऊँ. मेरी नींद ही उड़ गयी. मैं इतनी केयरलेस कैसे हो सकती हूँ. झुकने से पहले मुझे ध्यान रखना चाहिए था की पीछे वो ठिगना आदमी बैठा है. मुझे अपने ऊपर बहुत गुस्सा आया और मैं खुद को कोसने लगी.
 
 
 
खिन्न मन से मैं बेड में लेट गयी और आगे से ज़्यादा ध्यान रखूँगी , सोचने लगी.
 
 
 
सोने से पहले मैंने जय लिंगा महाराज का जाप किया और अपना उपचार सफल होने की प्रार्थना की.
 
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