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Incest बहन के जिस्म का पहला स्पर्श
#1
बहन के जिस्म का पहला स्पर्श
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#2
सन्द तो मैं दीदी को बचपन से ही करता हूं। जब से लन्ड जवान हुआ है तब से ही मैं उनके हुस्न का दीवाना हूँ। स्कूल में जब दीदी स्कर्ट में गांड मटकाते हुए चलती थी तो मेरा लन्ड मचल उठता था। मैंने कई बार अपनी बहन के बारे में सोच कर मुठ मारी है. मगर खुल कर कभी प्रयास नहीं किया था.

यह बात तब की है जब मैं फर्स्ट ईयर में था। छुट्टियों में घर आया हुआ था. मुझे नहीं पता था कि इन छुट्टियों में मुझे एक खुशबूदार चूत मिलने वाली है.

प्रीति:

मैं छत पर बैठी रो रही थी, मेरे हाथों में शराब की बोतल थी। वैसे मैं शराब पीने की आदी नहीं थी. लेकिन आज कुछ हुआ ही था ऐसा कि मुझे पीने की जरूरत आन पड़ी थी.

“दीदी आप यहाँ है, वहाँ पार्टी में सब आपका इन्तजार कर रहे हैं.”
“तू चल मैं आती हूँ.” मैं रुंधी सी आवाज में बोली.

“दीदी आप रो रही हो?” वो मेरे पास आते हुए बोला.
“नहीं ऐसा कुछ नहीं है.” मैंने आँसू पौंछते हुए कहा.
“आप रो रहे हो … और ये शराब कब से पीने लगे आप?” थोड़ी गम्भीर आवाज में उसने बोला.

“मैं नहीं रो रही. मैंने कहा न कि तू चल, मैं आती हूँ.”
विशाल घुटनों के बल मेरे सामने बैठ गया। मेरा हाथ पकड़ कर बोला- क्या हुआ है दीदी? प्लीज बताओ, मैं प्रोमिस करता हूं मैं आपकी हेल्प करूँगा.

मैं अभी भी चुप थी, मेरा भाई फिर बोल पड़ा- दीदी, आप मुझ पर भरोसा कर सकते हो. ये बात हम दोनों के बीच ही रहेगी प्रोमिस!
उसके इस अंदाज पर मैं पिघल गयी। उसकी बांहों में लिपट कर रोने लगी। उसने भी गले लगा कर मुझे सहारा दिया। लेकिन आप सब जैसा सोच रहे हैं वैसे नहीं। मैंने उसे फोन में व्हाट्सएप खोल कर थमा दिया जिसमें अश्विन और मेरे चैट्स खुले थे।

अश्विन उर्फ आशू मेरा एक्स बॉयफ्रेंड था। तीन महीने पहले हमारा ब्रेकअप हो गया क्योंकि वो बड़ा ही कमीना था। उसने मेरे साथ धोखा किया था। धोखे में मुझे मजबूर कर अपने एक दोस्त से चुदवा दिया और उसका वीडियो बना लिया। अब मुझे ब्लैकमेल कर रहा था। जब मन करता मुझे बुला कर अपनी वासना बुझाता।
मैं मजबूर थी।

आज के दिन भी वो मुझे अपने एक दोस्त के नीचे चुदने के लिए बुला रहा था।

दोस्तो, चुदाई या सेक्स अपनी जगह है लेकिन वो मेरा पहला प्यार था. दिल से चाहती थी उसे. मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था कि वो मेरा इस कदर फायदा उठाएगा। मैं पूरी तरह टूट चुकी थी।

“बहनचोद …” चैट्स पढ़ कर विशाल गुस्से में चिल्लाया.
मैं तो डर ही गयी. उसका चेहरा गुस्से से लाल था। लेकिन दूसरे ही पल वो मेरे सामने घुटनों पर था.

मेरा हाथ पकड़ कर बोला- दीदी आप टेंशन ना लो, इसे मैं देखता हूँ. आज आपका बर्थडे है. आपको सब पार्टी में खोज रहे हैं. बस जल्दी से तैयार होकर नीचे आओ.

मैंने हाँ में सिर हिलाया और वो चला गया। मैं तैयार होकर नीचे आ गयी. पार्टी में सबके साथ एन्जॉय करने लगी। लेकिन मेरी गांड फटी पड़ी थी क्योंकि मेरा मोबाइल भाई के पास ही था। व्याकुलता में रात कटी. पता नहीं था कि वो क्या करने वाला है।

सुबह मुझे विशाल ने अपने साथ कॉलेज चलने को कहा; मैं चल पड़ी। जैसे-जैसे वो बोलता गया मैं करती गयी।

उसने बाइक पार्किंग में रोकी। कुछ दूरी पर आशू और उसके दोस्त बैठे थे। उसने रास्ते भर से ही मुझे समझा रखा था। मैं आशू और उसके दोस्तों की ओर बढ़ी. आशू के साथ उसके चार दोस्त बैठे थे।

मुझे उनकी तरफ आता देख एक ने बोला- वो देख आ गयी आशू की रंडी!
फिर सब हँसने लगे।
आशू- क्यों री … कल बुलाया तो क्यों नहीं आई?
“देखो मैं ऐसा वैसा कुछ नहीं करने वाली अब, वैसे भी हमारा ब्रेकअप हो चुका है.”

आशू- सुबह-सुबह चढ़ा कर (दारू पीकर) आयी है क्या, तुझे पता है न मैं क्या कर सकता हूँ?
वो मेरा वीडियो कॉलेज ग्रुप में डालने की धमकी देने लगा. बोला कि मुझे पूरे कॉलेज के सामने नंगी कर देगा. मैं डर के मारे चुप हो गयी.

विशाल पीछे से आते हुए- क्या कर लेगा तू?
आशू- तू कौन है बे? प्रीति का नया कस्टमर है क्या?

बस इतना कहना था कि भाई ने एक पंच दे मारा आशू के थोबड़े पर. तभी उसके चारों दोस्त भी मेरे भाई पर टूट पड़े. विशाल 6 फिट लम्बा और शरीर से काफी तगड़ा था. स्कूल के दिनों से ही बॉक्सिंग कर रहा था. दो मिनट में ही उसने सबको धो डाला.

चारों में से कोई नहीं उठ पाया.

आशू- इसका अंजाम बहुत बुरा होगा.
मेरी ओर देखते हुए उसने कहा.
विशाल ने अपनी जेब से एक पेन ड्राइव निकाला और आशू की जेब में डालते हुए फुसफुसाकर बोला- इसको पूरे कॉलेज में बांट देना, तुझे तेरी औकात पता लग जायेगी.

आशू का चेहरा उस समय देखने लायक था. उस दिन के बाद से मेरा भाई कॉलेज की लड़कियों का हीरो बन गया. मैं भी खुश थी कि आशू जैसे लड़के के साथ ऐसा ही होना चाहिए था. उस दिन के बाद से हर लड़की मुझसे मेरे भाई विशाल के बारे में ही पूछती रहती थी.

सब कुछ ठीक चल रहा था. मेरे भाई के प्रति मेरे मन में सेक्स जैसे कोई भाव नहीं थे जब तक कि मेरी दोस्ती आयशा के साथ न हुई थी. आयशा आशू की गर्लफ्रेंड थी. आयशा के होते हुए भी आशू मुझे ही चोदता था.

आशू के साथ लड़ाई होने के बाद आयशा ने उसके साथ ब्रेकअप कर लिया था. अब वो मेरी अच्छी दोस्त बन गयी थी. एक दिन वो ग्रुप स्टडी के लिए मेरे घर आई थी। हम दोनों पढ़ाई कम और इधर उधर की बातें ज्यादा कर रहे थे।

“यार तेरा भाई बड़ा डैशिंग है.” आयशा बोली.

मैं- हा हा हा … कॉलेज की बाकी लड़कियां भी यही सोचती हैं, मेरे से उसका नम्बर मांगती हैं.
वो बोली- हां यार … कसम से, तेरे भाई को देख कर तो चूत मचल उठती है.
मैंने कहा- चुप कर! कुछ भी बोलती रहती है.

आयशा- यार काश मेरा भी तेरे जैसा कोई भाई होता!
मैं- तो क्या करती फिर तू? मैंने उसे छेड़ते हुए पूछा.
वो बोली- तो फिर बाहर मुँह मारने की जरूरत ही नहीं पड़ती, घर में ही इतना हॉट लौड़ा मिल जाता.

मैं हैरान होते हुए- चुप कर! ऐसे थोड़ी न होता है?
वो बोली- अरे, होता है मेरी जान. मेरी एक कजिन है. वो भी चुदवाती है रोज अपने भाई से!

हैरानी से मैंने कहा- चल झूठी, ऐसा केवल कहानियों में होता है.
आयशा- सच में भी होता है डियर, वैसे तुझे भरोसा नहीं तो मैं मिलवा दूंगी, तू खुद पूछ लेना.

मैंने कहा- सच्ची?
वो बोली- और क्या… मैंने तो अपनी मां को भी कई बार अपने मामा के साथ देखा है. वो दोनों कई बार चुदाई करते हैं. कई बार तो मैंने उनको सेक्सी बातें करते हुए भी सुना है.
“धत्त… सही में?” मैंने आश्चर्य से पूछा.

वो बोली- हां सच्ची यार, जब भी मेरे मामा विदेश से आते हैं तो वो दोनों मुझे किसी न किसी बहाने से घर के बाहर भेज देते हैं. पापा तो बचपन में ही गुजर गये थे. इसलिए मां अपने भाई के साथ ही काम चला लेती है.

कुछ देर की चुप्पी के बाद मैंने पूछा- पर यार, सगे भाई के साथ कैसे हो सकता है ये सब?

मैं इससे आगे कुछ कहती इससे पहले ही वो बोल पड़ी- अरे बहुत फायदे हैं … देख! पहले तो घर मे ही लौड़ा मिल जाएगा. जब मन करे, चुद सकती है. दूसरा फायदा ये कि घर का है तो तू ट्रस्ट कर सकती है. आशू की तरह तुझे धोखा खाने का डर भी नहीं रहेगा. तीसरा फायदा ये कि घर वालों की टेंशन भी वही लेगा. तुझे तो बस चुदाई के मजे लेने हैं.

“हा हा हा … और?” मैंने हंसते हुए आयशा से पूछा.
वो बोली- सेफ सेक्स की गारंटी होती है. जब मन करे चुद लिया कर. अगर मेरा कोई भाई इतना सेक्सी होता तो मैं बॉयफ्रेंड ही नहीं रखती.

आयशा तो चली गयी लेकिन दिन भर ये बात मेरे दिमाग में घूमती रही।
“सेफ सेक्स की गारन्टी” बात तो कुतिया ने सही कही थी। हाँ ये अलग है कि वो मेरे भाई पर लाइन मार रही थी।

आयशा ने उस दिन मुझे मेरी फड़कती चूत का इलाज बता दिया था. मेरे दिमाग में खुराफात का बीज पड़ गया था.

एक दिन सुबह-सुबह मैं विशाल के कमरे में गयी तो केवल बॉक्सर में ही था. उसने शायद कुछ देर पहले ही वर्कआउट किया था. उसका कसरती बदन, मस्त डोले, चौड़ी छाती, सिक्स पैक ऐब्स, उसके मस्त कट्स देख कर मैं उसको देखती ही रह गयी. किसी बॉडी बिल्डर से कम नहीं लग रहा था वो। उसको देख कर किसी भी चूत का चुदने को मन कर जाये.

नाश्ता करने के बाद मैं और भाई मेरी मां के साथ मंदिर में दर्शन के लिए गये. हम लोग बाहर खड़े होकर मां का वेट करने लगे. विशाल से बात करने का अच्छा मौका था.

मैंने पूछा- तूने आशू के कानों में उस दिन ऐसा क्या कहा था जो वो अगले ही दिन मेरे पैरों में गिर गया था?
वो बात पलटने की कोशिश करते हुए बोला- छोड़ो न दीदी. बीत गयी तो बात गयी.

जोर देकर मैं बोली- नहीं बता, मुझे जानना है?
वो बोला- मैंने उसे एक पेन ड्राइव दी थी, उसकी करतूतों का चिट्ठा था उसमें. उसने जितनी भी लड़कियों के साथ सेक्स किया था उसके सारे वीडियो थे उसमें.

हैरानी से मैंने पूछा- लेकिन ये सब तुझे कहां से मिला?
विशाल- “आसान था, मैंने प्रीति बनकर उससे चैट की. उसका लंड खड़ा कर दिया. उसके कुछ वीडियो और फोटो मांग लिये. उसने अपने मोबाइल को कम्प्यूटर से कनेक्ट कर लिया. मैंने अपने एक दोस्त की मदद से उसका कम्प्यूटर हैक कर लिया और सारे वीडियोज और फोटोज गायब कर लिए.

“हे भगवान, तूने वो फोटोज देखे तो नहीं?” मेरी बात पर वो मूक बना खड़ा था।
“बोल, बोलता क्यों नहीं… ” मैंने गुस्से से पूछा.
विशाल बोला- सॉरी दीदी, मैं आपकी मदद कर रहा था.

उसकी बात सुनकर मैं वहीं पर सिर को पकड़ कर बैठ गयी. कुछ देर के बाद मैंने पूछा- तेरे दोस्त ने भी देख लिये?
“नहीं दीदी बिल्कुल नहीं, मम्मी कसम, उसने सिर्फ मेरी मदद की थी. मैंने सारी फ़ाइल डिलीट करवा दी. उसने कुछ नहीं देखा.”

मेरे पैरों तले से जमीन खिसक गयी थी ये जान कर कि मेरा भाई मेरी नंगी फोटोज देख चुका है. मैं वहीं सीढ़ियों पर बैठ गयी. मुझे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था. कैसे मैं आशू की बातों में आ गयी. आखिर क्यों मैंने उस पर भरोसा किया.

नतीजा यह हुआ कि मैं अपने भाई के सामने नंगी हो गयी थी.

मेरे चेहरे पर चिंता के भाव देख कर विशाल डर गया और वो मुझे मनाने लगा- सॉरी दीदी, मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था. मैं तो आपकी हेल्प करना चाह रहा था. मैंने आपके कुछ फोटोज के अलावा कुछ नहीं देखा. मेरी नजर आपकी इज्जत आज भी वैसी ही है.

बात तो उसकी सही थी. उसने मुझे एक बड़ी समस्या से निकाला था। वैसे भी गलती उसकी नहीं मेरी थी। उसने तो मेरी हेल्प की थी। फिर मैं मान गयी। उसने भरोसा दिलाया कि वो सारे फोटो डिलीट कर चुका है.

उस दिन मेरे ज़हन में एक बात आयी। ये जानते हुए भी कि मैं कितनी बड़ी रण्डी हूं उसने मेरा फायदा नहीं उठाया। मेरी हेल्प की और मुझे इस समस्या से निकाला।
ये सोचते हुए आयशा की बात मेरे दिमाग में घूमने लगी ‘सेफ सेक्स की गारंटी!’

उस दिन के बाद से मेरे मन में एक भावना का उदय हो गया था. मेरे भाई का भोला चरित्र मेरे मन को भा गया था. मेरी नजर उसके लिए बदलने लगी थी. अब मैं छिप कर अपने भाई की सेक्सी बॉडी को निहारा करती थी.

घर में विशाल केवल बनियान और शॉर्ट्स में ही घूमा करता था. उसको अपनी बॉडी दिखाने का बहुत शौक था. मेरा भाई मुझे पसंद आने लगा था. वो सच में बहुत सेक्सी था.

मैं एक दिन पार्लर गयी और मैंने सिर को छोड़कर शरीर के सारे बाल हटवा लिए. अपनी चूत भी चिकनी करवा ली. मैं अपने ही घर में सेक्सी ड्रेस पहनने लगी. अपना चिकना बदन अपने भाई को दिखाने लगी. हमारी फैमिली वैसे भी काफी खुले विचारों वाली थी इसलिए कोई दिक्कत नहीं थी. सूट सलवार पहनने वाली लड़की अब एक सेक्सी माल बन चुकी थी.

मेरे इस नये अवतार को देक कर भाई भी हैरान था. उसकी नजर अक्सर मेरे बूब्स पर रहती थी. वो मेरे सेक्सी बदन को निहारा करता था. मैंने भी उसको जैसे खुली छूट दे रखी थी. कभी कभी तो मैं नीचे से ब्रा भी नहीं पहनती थी ताकि उसको मेरे कड़क निप्पल्स दिखाई दे जायें.

कई बार मैं विशाल को खुद ही मेरे बदन को छूने का मौका देती थी ताकि वो मुझे पटक कर चोद दे. मगर अभी तक मुझे बिल्कुल अकेले में ऐसा मौका नहीं मिल पाया था. वैसे तो हमारे कमरे भी अलग थे लेकिन मैं अपनी तरफ से पहल नहीं करना चाह रही थी. यदि मैं ऐसा करती तो उसकी नजरों में गिर जाती.

एक दिन भगवान ने मेरी तड़पती हुई चूत की पुकार सुन ली और मुझे मौका मिल ही गया. उस दिन मेरे छोटे मामा की शादी थी. मां और पापा पहले ही निकल चुके थे. हम दोनों के एग्जाम्स चल रहे थे. हम शादी के दो दिन पहले ही पहुंचने वाले थे.

पापा ने हमें बस से आने के लिए कहा. ट्रेन में कोई बुकिंग नहीं मिल रही थी. मुझे बसों में सफर करने में बिल्कुल भी रूचि नहीं थी इसलिए मैंने भाई को पर्सनल सवारी से जाने की इच्छा जताई. बाय रोड 8 या 10 घंटे का सफर था. हम लोग आसानी से कार से जा सकते थे. भाई भी कार से जाने के लिए मान गया और हम निकल पड़े.

अब विशाल के शब्दों में:

मौसम आज सुबह से ही खराब था। सुबह से ही बारिश हो रही थी। रास्ता लम्बा था। मैं धीरे धीरे कार चला रहा था। ट्रेन और बस के चक्कर में हमने काफी लेट कर दिया था। अन्धेरा होने को आया था.

हम लगभग आधे रास्ते तक ही पहुंचे थे। तभी तेज हवा के साथ बारिश होने लगी.

कुछ दूरी पर जाकर देखा तो हाइवे जाम हो गया था. कुछ लोगों से पूछने पर पता लगा कि तूफान की वजह से आगे रास्ता बंद कर दिया गया है. तूफान के समय में भूस्खलन का डर रहता है. हम भाई-बहन ने किसी होटल में रुकने का प्लान किया. हमें 2 किलोमीटर पैदल चलने के बाद एक होटल मिला.

पैदल चलते हुए हम भीग गये थे. जब होटल में पहुंचे तो होटल मैनेजर ने पहले ही कह दिया कि लाइट बारिश रुकने के बाद ही आयेगी. होटल में बिजली भी नहीं थी. मगर हमें लाइट से क्या करना था. हमें तो रात गुजारने के लिए छत चाहिए थी. चाबी लेकर हम भाई-बहन कमरे में आ गये. मैंने दीदी की ओर देखा तो वो पूरी की पूरी भीग गयी थी.

दीदी की भीगी हुई जुल्फें, गोरा सा चेहरा, सुर्ख लाल होंठ. उसने रेड कलर का सूट पहना हुआ था. उसका सूट भीग कर उसके बदन के साथ चिपक गया था. दीदी के उभार भी साफ नजर आ रहे थे. मगर बाकी दिनों की तुलना में थोड़े छोटे लग रहे थे.

बारिश में भीगी उस लड़की को देख कर लग ही नहीं रहा था कि वो मेरी बहन है. वो किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी. मुझे पहली बार दीदी की खूबसूरती का अंदाजा हुआ था.

अब प्रीति के शब्दों में:

मैं भीगे बदन के कारण ठंड से ठिठुर रही थी।
भाई ने कहा- दीदी, आप भीग चुकी हो. कपड़े बदल लो.
हमने एक्स्ट्रा कपड़े लिए ही नहीं थे। सारे लग्गेज को हमने मां और पापा के साथ ही भेज दिया था.

उसने मुझे ठंड से ठिठुरती देख कर अपनी जैकेट ऑफ़र की। लेकिन मैं पूरी तरह भीगी हुई थी। उसके कपड़े उसके लैदर जैकेट की वजह से काफी हद तक बचे हुए थे।
कुछ देर बाद वो बोला- दीदी अगर आप बुरा न मानो तो आप मेरे कपड़े पहन सकती हो.
“और तू क्या पहनेगा फिर?” मैंने पूछा.

वो बोला- “मेरे पास है न. वैसे भी मैं भीगा नहीं हूं, मुझे जरूरत नहीं है”

चूंकि छोटे कपड़े तो मैं घर में भी पहनती थी। वैसे भी नंगी तो वो मुझे देख ही चुका था। उसे रिझाने का ये मौका मैं कैसे गंवा देती।

मैं कपड़े बदलने गयी तब तक उसने होटल वालों से कह कर अलाव का इंतजाम करवा लिया था। कुछ देर आग के सामने बैठे हुए हम बातें करते रहे। आग की गर्मी से हमें कुछ राहत मिली.

आज सुबह से ही मेरी चूत फड़क रही थी। मुझे अहसास हो रहा था कि आज कुछ होने वाला है लेकिन मुझे इसकी उमीद नहीं थी कि मैं भाई के साथ घर से इतनी दूर इस होटल में अकेले एक कमरे में होंगी।

पिछले कई महीनों से मैं एक किसी ऐसे ही अवसर की तलाश में थी. उस रात भाई को देख कर मेरे मन में एक ही तमन्ना बार बार उठ रही थी कि वो अपनी मजबूत बांहों में भर कर मुझे पूरी रात प्यार करे.

मैं उसके सेक्सी बदन को भोगना चाह रही थी. मगर अभी भी हमारे बीच में बहन-भाई के रिश्ते की दीवार सी खड़ी थी. उस दीवार को लांघने की हिम्मत भी नहीं हो पा रही थी मुझसे.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#3
ccccccccccccccccccccccc
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#4
उस दिन के बाद से मेरे कॉलेज की हर लड़की मेरे भाई के बारे में ही पूछती रहती थी. यहां तक कि मेरे एक्स ब्वॉयफ्रेंड आशू की गर्लफ्रेंड आयशा भी मेरे भाई पर लाइन मारने लगी थी.

धीरे धीरे भाई की तरफ मेरा आकर्षण बढ़ने लगा. उसका कसरती बदन और सिक्स पैक एब्स मुझे उसकी ओर खींचते थे. मेरी चूत फड़कने लगी थी और मैं अपने भाई से चुदना चाह रही थी.
मेरी दोस्त आयशा ने मुझे भाई बहन की चुदाई की कहानी बताई थी. मैं भी अब कुछ ऐसा ही अनुभव लेना चाहती थी.

एक दिन वो मौका भी मुझे मिल गया जब मुझे अपने अपने छोटे मामा की शादी में जाना था. अपने भाई के साथ मैं कार में जा रही थी लेकिन रास्ते में बारिश शुरू हो गयी. हम दोनों भीग गये और होटल में रुकने का प्लान किया. होटल के अकेले कमरे में मेरी चूत में गर्मी पैदा होने लगी लेकिन मैं भाई बहन के रिश्ते की दीवार को लांघने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी.

तभी विशाल बोला- दीदी, आप बेड पर सो जाओ.
“और तू?” मैंने पूछा.
“मैं मम्मी-पापा को कॉल करने की कोशिश करता हूं.” वो बोला.

मैं बेड पर लेट गई. वो खिड़की पर बैठ कर फोन में कुछ कर रहा था। मैं जानती थी कि वो जानबूझकर बहाने बना रहा है। असल में वो मुझसे शरमा रहा था। क्योंकि कमरे में सिर्फ एक ही बेड था। उसका यही भोलापन तो मेरे दिल में घर कर गया था.

विशाल के शब्दों में:

मैंने चोर नजरों से दीदी को देखा। क्या मस्त लग रही थी वो। उन्होंने ऊपर मेरी शर्ट पहन रखी थी। जिसमें उनकी ब्लैक कलर की ब्रा की झलकी साफ नजर आ रही थी।

नीचे मेरी शर्ट उनकी आधी जांघों को ही ढक पा रही थी। उनकी गोरी चिकनी टांगें बिल्कुल नग्न थीं। ठंड से ठिठुर कर वो पैर मोड़ कर सोई थी।
दीदी ने कहा- विशाल, क्या कर रहा है, आ यहीं सो लेंगे, एक ही रात की तो बात है.

ये सुन कर मेरी धड़कनें बढ़ गयीं। आज उनके इस अवतार को देख कर मुझे दीदी के करीब जाने में भय सा लग रहा था. किंतु मैं उनकी बात को भी नहीं टाल सकता था.

मैं दीदी की बगल में ही सो गया। हम दोनों एक दूसरे के विपरीत करवट लेकर लेटे हुए थे। हम एक दूसरे के आमने सामने थे। मैंने दीदी के प्यारे से चेहरे को फिर से देखा। उनके वो गुलाबी होंठ, काली-काली आंखें, गोरे मुखड़े पर कहर बरपा रही थीं।

भीगे बालों में मेरी बहन अप्सरा लग रही थी। पारदर्शी सफ़ेद शर्ट में झलकता उनका गोरा मखमली बदन मुझे पागल बना रहा था। कसम से आज वो कमाल की सेक्सी लग रही थी।

प्रीति के शब्दों में:

आह! जिस पल का मुझे महीनों से इन्तजार था। वो आ गया था। शायद भाई मुझे देख रहा था. मगर इस बार बहन की तरह नहीं। उसे मेरी मदमस्त जवानी दिख रही थी। ये सब किसी फिल्म की तरह था लेकिन रोमांचक था।

मैं उसकी फौलादी बांहों में कस जाना चाहती थी। हाँ मेरी जवानी खुद ही उससे लुटने को फड़फड़ा रही थी. लेकिन मैं तो एक लड़की थी. लड़की कभी पहल नहीं करती.

वो हरामी भी कब से मुझे घूर रहा था लेकिन कोई पहल नहीं कर रहा था. मेरी चूत में हलचल होने लगी थी. न चाहते हुए भी मुझे ही पहल करनी पड़ी और बोली- क्या देख रहा है?

विशाल के शब्दों में:

मैं दीदी की रसीली मदमस्त जवानी में खोया हुआ था।
“क्या देख रहा है?” उन्होंने आंखें बंद किये हुए पूछा।
मुझे जवाब नहीं सूझा और मैं हड़बड़ा गया।
हड़बड़ाहट में बोला- क … कक … कुछ भी तो नहीं दीदी.

दीदी ने आंखें खोल दीं. वो आश्चर्य की निगाहों से मेरी ओर देख रही थी. उन्होंने मेरी ओर कातिल मुस्कान से देखा और फिर दोबारा से अपनी आंखें बंद करके सोने का नाटक करने लगी.

उनके हुस्न के जादू से मेरे लौड़े का बुरा हाल हो रहा था. मेरा लौड़ा मेरी पैंट को फाड़ कर बाहर आने के लिए तैयार था. उसे बस इस हुस्न की परी की उस रसीली मुनिया (चूत) के हां कहने की जरूरत थी. बहुत ही कातिल दृश्य था मेरी आंखों के सामने.

“दीदी आप बहुत ही सुंदर हो.” मेरे मुख से निकल ही गया। हालांकि उस टाइम पर ये मैंने बड़ी ही हिम्मत से कहा था।

“अच्छा जी … वो कैसे?” दीदी ने फिर से कटीली मुस्कान के साथ पूछा।

इसका जबाब मेरे पास नहीं था। क्या बोलता कि ‘दीदी आपकी गोल चूचियां मुझे पागल कर रही हैं!’
नहीं … ये जवाब सही नहीं था. मुझे काफी संभल कर जवाब देना था.

कुछ देर तक हम दोनों फिर से चुप करके लेटे रहे.
फिर मैंने कहा- दीदी आप सच में कयामत हो.
वो बोली- कैसे?

मैंने कहा- आपकी ये आंखें किसी को भी घायल कर सकती हैं।
वो बोली- अच्छा … और?
मैंने कहा- आपकी घुंघराली काली जुल्फें, जो सावन की घटा की तरह हैं, कोई भी इनका दीवाना हो जाये.

“और?”
“आपके ये रसीले सुर्ख होंठ, जो प्यासे समंदर की तरह हैं, आपके गोरे चेहरे पर आकर्षण का केंद्र हैं. आपके गुलाबी गाल … जब आप हँसती हो तो गुलाब से खिल उठते हैं।”

इतना कहकर मैं रुक गया। हम दोनों ने असहज महसूस किया। मैं कुछ ज्यादा बोल गया था। मैं माफी मांग कर अपनी गलती जाहिर नहीं करना चाहता था।

दीदी बोली- मेरी आज तक किसी ने ऐसे तारीफ नहीं की, आशू ने भी नहीं.
मैं बोला- शायद किसी ने आपको तबियत से देखा ही नहीं.
मैं आवेग में कह गया।

प्रीति के शब्दों में:

मैं अपने भाई की आंखों में देख रही थी। मैं सच में उसकी ओर बहती जा रही थी। ऐसी तारीफ मेरी किसी ने नहीं की। उसके द्वारा मेरे होंठों की तारीफ़ ने तो मेरे अंदर हलचल पैदा कर दी थी। मैं उसकी आंखों में अपने लिए चाहत देख पा रही थी। जी हाँ … जिस्मानी चाहत।

मगर विशाल की बातें उससे थोड़ी अलग थीं. मेरी अन्तर्वासना कह रही थी कि आगे बढ़ कर अपने भाई के होंठों पर होंठों को रख दूं.
मगर मैंने खुद को रोके रखा और उसकी आंखों में देखते हुए पूछा- और … और क्या पसंद है तुझे मेरे अंदर?

एक पल के लिये भी मैंने नजरें नहीं हटाईं क्योंकि मुझे अब कोई डर नहीं था। उसकी चाहत मुझ पर हावी थी और मुझे उसके ख्यालों का पता लग चुका था।

विशाल के शब्दों में:

दीदी मेरी आंखों में देख रही थी। ये खुली छूट थी। उन्हें मेरी बातों का बुरा नहीं लगा था। उनके इस बर्ताव से मेरी वासना को चिंगारी मिल गयी। उनकी आँखों में जिस्मानी प्यास देख कर मैं मदहोश हो उठा। मैंने नियंत्रण खो दिया।

मर्दाना बात बताऊं तो जब एक मस्त हॉट माल अधनंगी हालत में तुम्हारे सामने हो तो आपको कंट्रोल करना कठिन ही नहीं नामुमकिन हो जाता है। मेरा हाल भी वैसा ही था.

मैंने आगे बढ़ कर उनके होंठों को चूम लिया। उनका विरोध ना पाकर उनके होंठों को अपने होंठों तले दबा कर चूसने लगा। उफ्फ … वो रसीले होंठ। आज भी मुझे उत्तेजित कर जाते हैं. दीदी भी उतनी ही प्यासी थी। शायद मुझसे कहीं ज्यादा। वो भी मेरा साथ देने लगी। उस आनंद में मैं इतना खो गया कि मुझे होश ही नहीं रहा कि हम दोनों भाई-बहन हैं.

प्रीति के शब्दों में:

मेरा भाई मदहोश होकर मेरे होंठों का रस-पान कर रहा था। वो मेरे बदन पर हाथ फेरते हुए किस कर रहा था। मैं भी उसका भरपूर साथ दे रही थी। धीरे धीरे उसने उसने दोनों हाथ मेरे शर्ट के नीचे डाल दिए और उसके हाथ मेरी नंगी पीठ को सहलाने लगा।

मैं उसकी मजबूत बांहों में जकड़ती जा रही थी। उसके हाथ मेरी ब्रा तक पहुंच चुके थे। वो ब्रा खोलने की कोशिश करने लगा मगर ब्रा उससे खुली नहीं. मैंने हाथ पीछे ले जाकर ब्रा को खोलने में उसकी मदद की.

मेरे मम्मे अब आजाद थे। मेरी नंगी पीठ पर हाथ फिराते हुए वो मेरे होंठों को हब्शी की तरह चूस रहा था. मैं पूरी तरह चुदने के लिए तैयार थी। तभी वो एक झटके में मुझसे अलग हो गया.
“नहीँ ये सब गलत है दीदी!” कहकर वो झटके से अलग हुआ और बेड से उठ गया। मुझे बहुत गुस्सा आया। मैं खुल कर उससे चुदने को भी नहीं कह सकी थी.

मुझे पता था ये गांडू कुछ न कुछ गड़बड़ करेगा। मुझे अधनंगी करके मुझे गर्म करके छोड़ गया। पहली बार उसके भोलेपन पर मुझे प्यार नहीं बल्कि गुस्सा आ रहा था। यहाँ एक हॉट लड़की चूत खोले अपनी जवानी परोस रही है और इसे फालतू चीजों की पड़ी है।

मुझे बड़ा ही अपमान महसूस हुआ। शायद मुझमें ही कुछ कमी है. ऐसे हीन भाव आने लगे मेरे मन में। मैं मन मारकर सो गई।

सुबह मैं उठी तो मेरे बगल में मेरे सूखे हुए कपड़े रखे हुए थे। भाई कमरे में नहीं था। मैं तैयार होकर बाहर आई. बाहर गाड़ी खड़ी थी। भाई काउंटर के पास मेरा इन्तजार कर रहा था। हमने चेक आउट किया। फिर से गाड़ी में हम नाना के घर के लिए निकल गए।

गाड़ी में सब शांत था. दोनों में से कोई किसी से बात नहीं कर रहा था। एक दो बार उसने बात करने की कोशिश की लेकिन मैंने कुछ रेस्पोन्स नहीं दिया.

हम नानी के घर पहुँच गए. गाड़ी से उतरते समय भी उसने मुझे बात करना चाहा लेकिन मैंने उसे अनदेखा कर दिया और वहाँ भीड़ के साथ हो लिये हम दोनों.

अगले दो दिनों तक मैं खूब मस्त रही, उसे इग्नोर करती रही। इस बीच उसने कई बार मुझसे बात करना चाही लेकिन मैं जान बूझकर मौका नहीं दे रही थी।

शादी का दिन आ गया। दुल्हन भी सजी, मैं भी सज गयी। मैंने एक मॉडर्न लहंगा पहना था. नेट वाली स्लीव लेस चोली था। वन साइडेड दुपट्टा था जिसमें मेरी नंगी पीठ और पेट साफ नजर आ रहे थे। मेरी पतली कमर, फूले हुए स्तन अलग से चमक रहे थे। ऐसा लग रहा था कि मैं लड़कों के आकर्षण का केंद्र बन गयी थी.

मैं खुद सोच में पड़ गयी थी कि एक पढा़ई करने वाली लड़की पटाखा कैसे बन गयी. मेरी मां ने मुझे दूल्हे यानि कि मेरे मामा का कमरा सजाने के लिए काम दे दिया था.

कमरे को सजाने के काम में मैं लग गयी. तभी विशाल कमरे में आया और दरवाजा बंद करने लगा.
मैंने कहा- “तू? तू यहाँ क्या कर रहा है?”
वो दरवाजा बंद करके मेरी तरफ बढ़ा।

मैं बाहर की ओर जाने लगी. उसने मेरे हाथ को पकड़ लिया और मुझे अपनी ओर खींचते हुए बोला- दीदी सुन तो सही.
मैंने हाथ झटकते हुए कहा- मुझे तेरी कोई बात नहीं सुननी है.

उसने मुझे दीवार के सहारे अपनी मजबूत बांहों के नीचे दबा लिया. मेरे होंठों के पास अपने होंठ लाकर बोला- दीदी, आपको मेरी बात सुननी ही होगी.
मैंने कहा- मुझे तुझसे कोई बात नहीं करनी. तूने मुझे अधनंगी छोड़ दिया. गलती मेरी ही थी. तू भी अश्विन के जैसा ही निकला. तूने मेरी इन्सल्ट की है.

ये कहते हुए मेरी आंखों में आंसू आ गये.
वो मेरे गालों से अपने गाल सटाते हुए बोला- नहीं दीदी, आप गलत सोच रही हो. मैं घबरा गया था. ऐसा कुछ नहीं है जैसा आप सोच रही हो. एक बार मेरी बात तो सुन लो.

मैंने छुड़ाने की कोशिश की लेकिन उसकी पकड़ मजबूत थी. इसलिए मैं छुड़ा नहीं पायी.
उसने बोलना शुरू किया- दीदी मैं स्कूल के दिनों से ही आपको पसंद करने लगा था. आपके पीछे बैठ कर आपको देखता रहता था. आपके सेक्सी जिस्म के बारे में सोच कर न जाने कितनी बार मैंने … (मुठ मारी हुई है)

वो कहते हुए ही रुक गया.
फिर बोला- आज तक मैंने सिर्फ आपको सपने में ही देखा है. उस दिन के लिए मैं दिल से सॉरी कह रहा हूं. आई लव यू दीदी.

विशाल के शब्द:
मेरी बातों को दीदी हैरानी से सुन रही थी. जब मेरी बात खत्म हो गयी तो मुझे लगा कि दीदी मान गयी और उसने मुझे हटा दिया.
मगर अगले ही पल उसने मेरे गाल पर जोर का तमाचा दे मारा.
मैंने कहा- क्या हुआ दीदी?

वो बोली- कमीने, ये सब तू उस रात को नहीं बोल सकता था.
मैंने कहा- सॉरी दीदी.
अगले ही पल दीदी ने अपने होंठों को मेरे होंठों पर रख दिया और मुझे प्यार करने लगी. मैं भी दीदी के होंठों को चूसने लगा.

प्रीति के शब्द:

मेरी सहमति क्या मिली, मेरा सेक्सी भाई विशाल मेरे ऊपर भूखे भेड़िये की तरह टूट पड़ा। मेरे ऊपर उसने चुम्बनों की बारिश कर दी। मेरे होंठों को चूसते हुए खुद से ही मेरे जिस्म से चिपकने लगा। वो दोनों हाथों से मेरे चेहरे को पकड़े हुए जोरों से मेरे होंठों का रसपान कर रहा था।

उसने मुझे एक झटके में गोद में उठा लिया जैसे कि मैं कोई छोटी सी बच्ची थी. उसने मुझे बेड पर पटक लिया. वो सेज मैंने अपने मामा के लिए सजाई थी. मगर सुहागरात शायद हम भाई-बहन की होने वाली थी.

विशाल ने एक झटके में अपनी शेरवानी उतार फेंकी. उसका विशालकाय कसरती बदन मेरी आंखों के सामने था. उसके मस्त डोले, फौलादी सीना, और ऊंचा कद. किसी बॉडी बिल्डर के जैसा लग रहा था वो. उसके आगे में सच में ही बच्ची लग रही थी.

वो मेरे ऊपर आ गया। मुझे बेसब्री से चूमने लगा. वो बरसों से तड़प रहा था। मैं उसकी बेताबी समझ रही थी. वो पागल हो गया था जैसे. मुझे चूसने काटने लगा.
मेरा दुपट्टा तो कब का मेरा साथ छोड़ चुका था। उसने चूमते हुए मेरी चोली की स्ट्रिप कंधों से सरका दी और मेरे नग्न कंधो और गर्दन के भागों को चूमने-चाटने लगा. मैं तो मचल उठी।

मेरा भाई मेरी चूचियों के ऊपर के नग्न भाग को चूम रहा था. मैं उत्तेजना में सिसकारियां भर रही थी. कपड़ों के ऊपर से ही उसने मेरे स्तनों को सहलाना शुरू कर दिया. वो मजे से उन पर हाथ फिराकर पूरा आनंद ले रहा था जैसे.

फिर वो मेरी चोली खोलने लगा तो मैंने उसे रोका. शादी का माहौल था, कोई भी आ सकता था। मैं नंगी नहीं हो सकती थी. वो मेरी चूचियों को चोली के ऊपर से ही दबाने लगा. उनको मुंह में भरने की कोशिश करने लगा.

उसके बाद वो नीचे की ओर मेरे पेट की तरफ चला. मेरी सिसकारियां निकलने लगीं. मैं उसके बालों में हाथ फिराते हुए उसके सिर को अपनी चूचियों पर दबाने की कोशिश कर रही थी.

विशाल मेरे लहंगे को उठा चुका था. उसने मेरी पैंटी के ऊपर से ही मेरी चूत को चूमा और अपने लबों को मेरी चूत पर रखने लगा. मेरे शरीर में करंट सा दौड़ने लगा.

विशाल के शब्दों में:

दीदी की चूत से मस्त मादक खुशबू आ रही थी. उसकी पैंटी का निचला हिस्सा गीला हो चुका था. उसकी चूत की फांकें साफ नजर आ रही थीं. मैंने पैंटी के ऊपर से चूत पर जीभ को फिराया. उन पलों को सोचता हूं तो उसकी चूत के रस का नमकीन स्वाद आज भी मेरे मुंह में पानी ले आता है.

प्रीति के शब्द:

उसने मेरी पैन्टी भी निकाल दी और मेरी गीली हो चुकी चूत पर हमला बोल दिया. उसने मेरे लहंगे के अंदर ही मेरे चूतड़ों को पकड़ कर अपनी जीभ को मेरी चूत में घुसा दिया. मैं तो जैसे होश में ही नहीं रह गयी थी.

मैं उसके सिर को अपनी चूत में दबाने लगी. इतनी गर्म हो गयी थी कि मैं अगले कुछ मिनट में ही झड़ गयी. झड़ने में पहली बार मुझे इतना आनंद मिला था. मेरा भाई विशाल सच में बहुत मस्त तरीके से चूत को चूसता था.

जब तक मैंने खुद को संभाला तो मैंने पाया कि मेरा लहंगा मेरी कमर तक उठ गया था. उसका 8 इंच का लौड़ा मेरी चूत पर लगा कर वो मेरी चूत को सहला रहा था. उसका खूंखार लंड देख कर मैं तो सहम सी गयी.

मैं सोचने लगी कि अगर इस मूसल लंड से अभी चुदने लग गयी तो चीखें निकल जायेंगी और सबको पता लग जायेगा.
मैंने पूछा- कॉन्डम कहां हैं?
वो बोला- मेरे पास नहीं है.

इतने में ही फोन की रिंग बजने लगी. मैंने देखा तो मां का फोन था.
“कहां है तू?” मां ने पूछा.
मैंने कहा- बस अभी आती हूं मम्मी.

वो बोली- मैंने जो काम दिया था वो किया कि नहीं?
मैंने कहा- हां हो गया मां, बस अभी नीचे ही आ रही हूं.

फोन रखने के बाद मैंने विशाल से कहा- चल उठ, मां बुला रही है.
वो मुझसे रुकने की मिन्नत करने लगा.
मैंने उसको समझाते हुए कहा- पागल हो गया है क्या, हम लोग शादी में आये हुए हैं. मां ने बहुत सारा काम दिया हुआ है. वैसे भी शादी खत्म होने वाली है. नीचे सब लोग वेट कर रहे हैं. मैं काफी देर से गायब हूं. अभी रिस्क है.

विशाल बोला- प्लीज दीदी … एक बार करने दो.
मैंने कहा- नहीं, अभी हमारे पास सेफ्टी भी नहीं है.
ये सुनकर उसका मुंह उतर गया.
मैंने कहा- अच्छा ठीक है. अभी के लिए जा. हम घर पहुंच कर देखेंगे.

ये सुनकर उसके चेहरे पर फिर से मुस्कान आ गयी.
वो बोला- आइ लव यू दीदी.
मैंने कहा- आइ लव यू टू … अब तू निकल यहां से, वरना दोनों पकड़े जायेंगे.

उसने मेरी गीली पैंटी को देख कर कहा- अब ये तो आपके किसी काम की नहीं है.
मैंने अपनी गीली पैंटी उसके मुंह पर दे मारी और उससे बोली- ये ले … खा ले इसको … अब निकल यहां से.
वो चला गया.

विशाल ने बेड की सारी सजावट खराब कर दी थी. मुझे सारा काम दोबारा से करना पड़ा लेकिन साथ ही खुशी भी हो रही थी. मैंने अपने कपड़े ठीक किये और थोड़ा सा मेकअप किया और फिर से नीचे आ गयी.
वो मुझे कहीं पर दिखाई नहीं दिया.

विशाल के शब्द:
मैं दीदी की चुदाई करने से एक कदम की दूरी पर रहकर चूक गया था. मेरा लंड तना हुआ था. मैं सीधा जेन्ट्स के बाथरूम में गया और दीदी के बारे में सोच कर मुठ मारने की सोची.
मैंने दीदी की गीली पैंटी निकाली और उसको मुंह पर लगा कर लंड को रगड़ने लगा.

उसकी पैंटी से आ रही उसके प्रिकम की खुशबू मेरी सांसों में घुलने लगी. मेरा लौड़ा फटने को हो गया. मैंने पैंटी को जीभ से चाटा. मैंने अपने लंड को वापस तना हुआ ही अंदर दबा लिया. मैंने मन बना लिया था कि दीदी की चूत मैं घर जाकर नहीं बल्कि यहीं पर चोदनी है.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#5
vvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvv
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#6
फिर दीदी ने मुझे अपनी गीली पैंटी दे दी और मैं सीधा जेन्ट्स के बाथरूम में आ गया. दीदी की गीली पैंटी को जेब से निकाल कर मैंने सूंघ लिया.

मेरा लौड़ा खड़ा हो गया और मैं मुठ मारने लगा. फिर कुछ सोचकर मैंने लंड को वापस अंदर कर लिया. मैंने मन बना लिया कि मैं घर तक पहुंचने का वेट नहीं कर सकता. दीदी की चूत की चुदाई यहीं पर करनी है मुझे.

मार्केट में जाकर मैं कॉन्डम ले आया और सही मौके का इंतजार करने लगा.

प्रीति के शब्द:
कुछ घंटों में शादी खत्म हो गयी। सब मेहमान चले गये. घर के लोग भी अपने अपने कमरे में जाने लगे।
मामाजी मामी को चोदने के लिए कमरे में ले गए. उसी कमरे में सुहागरात मनाने के लिए जहां पर कुछ देर पहले मैंने अपने भाई के साथ अधूरी सुहागरात मनाई थी.

मैं सोने की कोशिश कर रही थी लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी। आज दोपहर का दृश्य मेरे तन बदन में आग लगाए हुए था। उसका लंड मैंने पहली बार देखा था. मेरी बेचैनी बढ़ने लगी थी. मेरी चूत में पसीना आ रहा था उसके लंड के बारे में सोचकर.

मां से मैंने कहा- मैं बाहर घूमने के लिए जा रही हूं. मेरे सिर में दर्द सा है.
मां बोली- जल्दी आना, रात बहुत हो गयी है.
मैं कमरे से निकल गयी. सब लोग अपने कमरों में जाकर सो गये थे.

मेरे कदम खुद ही जेन्ट्स के रूम की ओर बढ़ रहे थे. सोच रही थी कि अगर भाई को बुलाऊंगी तो वो सोचेगा कि मेरी बहन चुदने के लिए कितनी उतावली हो रही है.

रूम तक पहुंचने से पहले ही मुझे किसी ने हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया. मुझे दीवार से लगा कर मेरे होंठों को उसने अपने होंठों से चूसना शुरू कर दिया. स्पर्श से ही मुझे पता लग गया कि वो मेरा भाई ही है.

उसकी पकड़ से मेरे लिये छूटना नामुमकिन था. मगर मैं तो खुद ही नहीं छूटना चाह रही थी. मैं उसके आगोश में खो सी गयी.
वो बोला- दीदी एक बार करने दो प्लीज.
मैंने कहा- पागल है क्या, किसी ने देख लिया तो.

वो बोला- कोई नहीं देखेगा. देखो, अब तो मेरे पास कॉन्डम भी हैं.
उसने कॉन्डम का पैकेट दिखाते हुए कहा.
मैंने कहा- घर जाकर कर लेना.
वो बोला- नहीं, मुझसे रुका नहीं जायेगा. एक बार प्लीज … दीदी … करने दो प्लीज!
उसकी जिद के आगे मैं हार गयी.

फिर हम लोग आगे चलने लगे. वो मेरे पीछे पीछे आ रहा था. हम लोग ऐसे चल रहे थे जैसे किसी को हमारे ऊपर शक न हो.

विशाल के शब्दों में:
अपनी गांड को मटकाते हुए दीदी स्टोर रूम की ओर बढ़ रही थी. मुझे स्कूल के दिन याद आ गये जब मैं दीदी की मस्त गांड को देख कर मुठ मार कर अपने लंड को शांत किया करता था. आज मेरी तमन्ना पूरी होने वाली थी.

प्रीति के शब्द:
स्टोर रूम में पहुंच कर हमने भीतर से दरवाजे को बंद कर लिया. अंदर कुछ पुराना सामान पड़ा हुआ था. यह जगह काफी सेफ लग रही थी और किसी के आने का डर नहीं था. मेरी इजाजत के बिना ही विशाल ने मुझे अपनी बांहों में भर लिया और मेरे होंठों को चूसने लगा.

उसने मेरी टीशर्ट को मेरे कंधे से हटा दिया और मेरे कंधे के नग्न भाग को चूमने लगा. मैं सिहर गयी. फिर उसने मुझे घुमा लिया और मेरी टीशर्ट को ऊपर उठा कर मेरी नंगी पीठ पर चुम्बन जड़ दिया.

फिर उसने मेरी टीशर्ट को उतार दिया. मैं अपनी नंगी चूचियों को छिपाने लगी. मेरा चेहरा शर्म से लाल हो गया था. वो मेरी नंगी पीठ को चूमने लगा. मेरी आंखें बंद होने लगीं.

कमर के नीचे मैंने लॉन्ग स्कर्ट पहनी हुई थी. स्कर्ट के ऊपर से ही वो मेरे चूतड़ों को दबाने लगा. फिर वो नीचे बैठ गया. मेरे चूतड़ों पर उसने अपने गर्म होंठ रख दिये.

मेरे मखमली चूतड़ों पर अपने दांत गड़ा कर वो उनको चूमने लगा. मैं तो उन्माद से भर गयी जैसे. ऐसा लग रहा था कि जैसे वो उनको खाना चाहता है.

अचानक से ही उसने मेरी गांड पर अपना चेहरा मलना शुरू कर दिया. मैंने नीचे से पैंटी भी नहीं पहनी हुई थी. मुझे उसकी नाक अपनी गांड के छेद पर लगती हुई महसूस हो रही थी.

मेरा बैलेंस बिगड़ने लगा और मैंने अपनी चूचियों को छोड़ कर पास की अलमारी को पकड़ कर खुद को संभाला. इस बात से अन्जान वो मेरी गांड में ही मुंह को घुसेड़े जा रहा था.

विशाल ने मुझे मेरी कमर से पकड़ लिया था इसलिए उसकी पकड़ से छूट पाना काफी मुश्किल था. उसका जोश देख कर लग रहा था कि आज मैं बुरी तरह से चुदने वाली हूं.

काफी देर तक वो मेरी गांड से खेलता रहा. उसने मुझे कंधों से पकड़ कर अपनी तरफ घुमाया.
मैं हाथों से अपनी चूचियों को छिपा रही थी. मुझे अपने सगे भाई के सामने नंगी होने में शर्म आ रही थी. उसने मेरे होंठों पर होंठों को रख दिया और मेरे होंठों का रसपान करने लगा. मैं भी उसका साथ देने लगी.

कुछ देर में वो अलग हुआ। उसने मेरी चूचियों से मेरे हाथ हटा लिये। मैं अब निर्विरोध उसे अपने जिस्म से खेलने दे रही थी। मेरे नंगे चूचे उसके सामने थे। उसने मेरे दायें चूचे को मुंह में भर लिया।

जब उसने मेरे चूचे पर मुंह रखा तो मैं एक उन्माद से भर गयी. बहुत ही सुखद अहसास था वो. मैं बाकी लड़कियों से कहूंगी कि कभी अपने भाई से कभी अपनी चूचियों को चुसवा कर देखना, वो अहसास ही निराला होता है. फिर विशाल यहां वहां देखने लगा. वो कुछ जल्दी में लग रहा था.

विशाल के शब्दों में:

दीदी के हॉट जिस्म से खेलने का मेरा बड़ा मन था। बचपन से इस जिस्म को निहारते हुए बड़ा हुआ था मैं। कितनी ही बार दीदी के सेक्सी जिस्म को सोच कर मुठ मार चुका था। थोड़ी सी देर में मन कहां भरने वाला था। मैं चाहता था कि जल्दी से दीदी की चुदाई कर दूँ. मुझे डर था कहीं वो अपना मन न बदल लें।

प्रीति:
अलमारी पर रखे पुराने गद्दे को उसने नीचे उतारा। उसे जमीन पर बिछा दिया और मुझे गद्दे पर आने का इशारा किया। मैं पीठ के बल लेट गयी। वो मेरे ऊपर आ गया।

गद्दे पर आते ही वो मेरे ऊपर टूट पड़ा. मेरी चूचियों गर्दन और पेट को जोर से चूमने लगा. मैं सिहर गयी और मेरी वासना सातवें आसमान पर पहुंच गयी थी। मैं लगातार ज़ोर ज़ोर से सिसकारियां ले रही थी। पूरे कमरे में मेरी ही सिसकरियां गूंज रही थीं।

मेरी चूचियां चूस कर वो मेरे नग्न पेट की तरफ बढ़ा। मेरी कमर पर चूमते चाटते हुये उसने मेरी स्कर्ट भी मेरे तन से अलग कर दी। अब मैं भाई के सामने बिल्कुल नग्न थी। मैं वासना में खोई हुयी थी।

अब तो मेरी मुनिया भी उसके सामने नंगी हो चुकी थी। उसने मेरे दायें पैर के अंगूठे को मुँह में भर लिया। मेरे पैरों पर चूमते हुए जांघों के बीच आ गया। उसने मेरी मुनिया पर जीभ से चाटा. मेरे शरीर में करंट सा दौड़ गया. उसको मेरी हालत देख कर काफी मजा आ रहा था.

वो मेरी चूत चाटने लगा। मैं मदमस्त हो उठी। कुछ देर में फिर वो अलग हुआ। मेरी वासना चरम पराकाष्ठा पर थी. मुझे वर्तमान में आने में समय लगा। आंखें खोल कर जब मैंने देखा तो अगले ही मिनट वो सिर्फ चड्डी में था, जिसमें उसका तना हुआ वज्र लण्ड साफ दिखाई दे रहा था। वो मुस्कराते हुये अपनी चड्डी के ऊपर से ही अपने लंड को मसल रहा था.

उसने मेरी ललचाई नजरों को झेंपते हुये मुझे अपना लौड़ा ऑफर किया चाटने के लिये। मैंने साफ मना कर दिया। इस पर उसने अपनी चड्डी भी निकाल फेंकी। 8 इंच का मूसल लंड फुफकारता हुआ बाहर निकल आया. वो तोप की तरह टाइट था।

वैसे तो मुझे लंड चूसना पसंद नहीं था लेकिन उसके मदमस्त लन्ड को देख मेरे मुँह में पानी आ गया। हालांकि उसने दोबारा नहीं पूछा। वो झुका और उसने अपने नीचे गिरी लोअर से कंडोम का पैकेट निकाल लिया. पैकेट को मुंह से फाड़ कर लौड़े पर लगाने लगा।

उसने मुझे पीठ के बल लिटा दिया। इतना भयंकर लन्ड देख मेरी गांड तो फटने लगी थी लेकिन पीछे हटने की हालत में मैं भी नहीं थी। मेरी कमर के नीचे विशाल ने तकिया डाल दिया ताकि मेरी चूत थोड़ी उठ जाए. वो थूक लगा कर मेरी चूत पर मलने लगा। मेरी चूत तो पहले से ही गीली थी।

डर के मारे मैं बोली- भाई, थोड़ा आराम से … करना।
वो मेरी ओर देख कर शैतानी मुस्कान से हँसने लगा. फिर अपने लंड के टोपे को मेरी चूत पर मसलने लगा. मैं फिर से मचल उठी. तेज तेज सिसकारियां लेने लगी.

उसने लंड को मेरी चूत के छेद पर सेट कर दिया और अंदर पेलने लगा. मेरे मुंह से चीख निकल गयी. मैं चिल्लाई तो उसने मेरे मुंह पर हाथ रख लिया और मेरी चीख को अंदर ही दबा लिया. वो मेरे होंठों को चूमने लगा और चूचियों को मसलने लगा.

दोस्तो, मेरी चूत नयी तो नहीं थी. मैं दो दो लंड से चुद चुकी थी. मगर भाई का लंड उन दोनों लंड पर बहुत भारी था. विशाल ने दबाव बनाया और उसका लंड मेरी चूत की दीवारों को चीरते हुए अंदर तक चला गया.

दर्द के मारे मेरी आंखों से आंसू आ गये. वो लगातार मुझे चूमे-चाटे जा रहा था।
मैं सामान्य हुई।
उसने धक्के लगाना शुरू किया। हल्के हल्के धक्के लगाता रहा।
कुछ देर में मेरी चूत ने उसके लन्ड को एडजस्ट कर लिया. उसने धक्के तेज कर दिये.

अब मैं भी मस्ती से सिसकारियां ले रही थी। मेरी और उसकी सिसकारियां कमरे में गूंज रही थीं।

मैं उसके भार से नीचे दबी थी। इसी आसन में वो मुझे करीब 10 मिनट तक चोदता रहा। साथ ही साथ वो मेरी चूचियां मसलता तो कभी चूसता और चाट लेता. कभी मेरे होंठों को चूसता तो कभी मेरी गर्दन व गालों पर चुम्बन कर देता. उसके ऐसा करने से मैं कुछ ज्यादा ही गर्म हो गयी थी.

फिर उसने आसन चेंज किया. मुझे घोड़ी बना दिया और पीछे से उसने लन्ड पेल दिया और घोड़ी वाले आसन में चुदाई करने लगा। मेरी कमर पकड़ कर धक्के लगाते हुए उसका लंड पूरा का पूरा मेरी चूत में जा रहा था जिसके कारण फच-फच की आवाज हो रही थी. लगता उसका लन्ड पूरा मेरी चुत में घुसता जिससे फच फच की आवाज होती।

‘आह.. उम्म्ह… अहह… हय… याह… इस्स… ह्म्म्म… यस. फक मी… याह्ह’ करके मैं और वो दोनों कामुक आवाजें निकाल रहे थे.
फिर वो नीचे आ गया और मुझे अपने लौड़े पर बिठा लिया और नीचे से धक्के लगाने लगा।

विशाल- ये काफी मस्त आसान था। मैं दीदी की कमर से पकड़ कर बैलेंस बनाये हुए था. वो खुद ही उछल कर मेरे लंड को अंदर ले रही थी. दीदी का खुला बदन मेरी आंखों के सामने था। हर एक धक्के के साथ उनकी चूचियां ऊपर नीचे हो रही थीं। दीदी के हाथ उसके बालों में थे। उनकी चिकनी काखें मेरे सामने थीं। दीदी का वो चुदक्कड़ और कामुक रूप सच में देखने लायक था.

प्रीति- भाई काफी उत्तेजित था। उसके धक्के अपने पूरे जोर पर थे। मैं भी अब अपने चरम सुख के करीब पहुंच गयी थी। वो मुझे अपनी बांहों में जकड़े हुए धक्के लगा रहा था। उसकी पकड़ मुझ पर मजबूत होती जा रही थी। मेरा बदन अकड़ने लगा.

मैं कांपते हुए झड़ने लगी और उसे कसकर अपने बांहों में जकड़ने लगी। कुछ देर में वो भी झड़ गया। निढाल होकर विशाल मेरे ऊपर गिर गया। हाँफते हुए वो मेरे होंठों को चूमने लगा। फिर मेरे बगल में लेट गया।

कुछ देर तो हम यूं ही पड़े हुए हाँफते रहे. 30 मिनट तक जबरदस्त चुदाई हुई थी। चढ़ाई करके मैं उसके विशालकाय शरीर पर लेटी हुई उससे पूछने लगी- अच्छा सच बता कि तू स्कूल में मेरे पीछे क्यों बैठा करता था.

वो बोला- मुझे आपके बदन की खुशबू बहुत पसंद थी। आप नई नई जवान हुई थी. आपकी कांखों से आती मादक खुशबू मुझे पागल बनाती थी। आप के बदन की खुशबू लेने के लिए मैं आपके पीछे बैठता था।
“छीईई …”
“इसमें छी क्या दीदी, आपकी गर्म जवानी थी ही ऐसी!”
“और क्या क्या किया है तूने मेरे पीठ पीछे?”

“आपके चूचे आपकी उम्र की लड़कियों से काफी बड़े थे। स्कूली ड्रेस में आपके तने हुए चूचों को देख कर मेरा लन्ड खड़ा हो जाता था।”
“अच्छा जी!” मैंने कहा.

“हाँ, स्कर्ट में आपकी मटकती गांड देखकर जी करता था कि काट खाऊँ मैं आपके मस्त चूतड़ों को!”

“बदमाश … अपनी बहन के चूचे और गांड देखता था तू!” मैंने उसके सीने पर प्यार से मुक्का मारते हुए कहा.
“आपको हमारा किराये का घर याद है जब हम छोटे थे?”
“हाँ याद है.”

“उसमें एक ही बाथरूम हुआ करता था.”
“हाँ सही कहा.”
“आपके नहाने के बाद मैं अक्सर बाथरूम में जाता था, आपकी गर्म पैंटी सूंघता था और मुठ मारता था. आपके कॉलेज में जाने पर तो कभी कभी मुझे आपकी गीली पैंटी मिल जाती थी जिसे मैं सूँघता और चाटता था. आपकी चूत की खुशबू बहुत मादक लगती थी. मेरे लौड़े का बुरा हाल हो जाता था.”

“हे भगवान, तू तो नंगी देखता तो चोद ही डालता मुझे!”
उसकी बातों से मैं फिर से गर्म हो रही थी.

“नहीं दीदी, नंगी तो मैंने कई बार देखा तुम्हें, मैं अक्सर आपको कपड़े बदलते हुये, बाथरूम में नहाते हुए छुप कर देखता था। लेकिन पहल करने की हिम्मत न हुई।”

अब मैं समझी कि मेरी नंगी फोटोज देख कर भी उसने प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी। नंगी तो वो मुझे बचपन से देखता आ रहा है.

“तो अब तो कर लिया न!”
“अब तो रोज करूँगा दीदी!”
“अच्छा जी?”
“हाँ, मेरी डार्लिंग दीदी!”

“अच्छा सुन, ये बात हम दोनों के बीच ही रहनी चाहिए, किसी को पता चला तो बड़ी बदनामी होगी.”
“उस सब की टेंशन आप मुझ पर छोड़ दो दीदी, सबके सामने हम भाई बहन की तरह ही रहेंगे.”
“ओके”
“बोलो, रोज चुदोगी न मुझसे?”
“हम्म बाबा ठीक है.”
“नहीं, मुँह से बोलो.”

“ओके बाबा रोज चुदूँगी अपने छोटे भाई से, अब सो जा मुझे भी सोने दे.”
“दीदी एक बार और करने दो न … मैं आपसे बातें करके गर्म हो चुका हूँ.” विशाल ने मेरे बोबे दबाते हुए बोला.

“अभी तो किया था?”
“क्या करूँ दीदी, आप इतनी सेक्सी हॉट हो कि आप को देख कर हमेशा मेरा लन्ड खड़ा हो जाता है.” वो लगातार मेरे बोबे दबाते हुए मुझे सूँघते हुए चूमता-चाटता जा रहा था।

मैं भी थोड़ा गर्म हो गयी थी उसकी बचपन की कहानियां सुनकर- भाई, गर्म तो मैं भी हूं लेकिन मेरी चूत चुदने के हालात में नहीं है.
उसने जो चुदाई की थी उससे मेरी चूत पाव रोटी बन गयी थी और काफी दर्द कर रही थी.

मैंने कहा- तू कहे तो मैं हाथ से शांत कर दूं तेरे लंड को?
वो तो मेरी गांड मारने की फिराक में था लेकिन मैंने साफ मना कर दिया। कुछ देर की बहस के बाद में वो मान गया।

फिर मैं उसके पैरों के पास आई। उसका मूसल लन्ड फुंफकार रहा था। मैंने उसे हाथों से पकड़ लिया. वो काफी मोटा और लम्बा था। उसका लंड मेरी मुट्ठी में पूरा आ भी नहीं रहा था. मुझे यकीन नहीं हुआ कि मैं कुछ देर पहले ही इस लंड से चुद चुकी हूं.

मैंने हाथ ऊपर नीचे करना शुरू किया। उसका लन्ड खम्भे की तरह खड़ा था और गर्म भी था। भाई को भी मस्ती छाने लगी जो उसके चेहरे पर साफ दिख सकती थी। उसका मस्त लौड़ा देख मेरे मुंह में पानी आ रहा था। मैंने न चाहते हुए भी उसके टोपे पर जीभ से फेर दिया। हल्का नमकीन स्वाद था उसके लंड का.

जीभ से सुपारे को चाटते हुए उसका टोपा मैंने मुँह में भर लिया। उसका टोपा काफी बड़ा था, मुश्किल से मुंह में आ पा रहा था। मैं उसके टोपे को मुँह में लेकर चूसने लगी। साथ में नीचे ही नीचे उसके लन्ड को मुठिया भी रही थी। अब मुझे भी मस्ती छा रही थी. मैंने उसका लण्ड अंदर लेना शुरू किया।

विशाल:
दीदी रंडियों की तरह मेरा लौड़ा चूस रही थी। उन्होंने लौड़े को गले तक उतार रखा था। ऐसा लग ही नहीं रहा था कि वो लंड को पहली बार चूस रही है।

वो मेरा लंड अपने गले तक उतार रही थी. जब उसकी सांस फूल जाती तो फिर से बाहर निकाल लेती. फिर मेरे लौड़े पर जीभ फिराने लगती. बीच बीच में दीदी मेरे अंडकोष भी चाट रही थी.

प्रीति:
मुझे अब मजा आ रहा था। उसका प्रीकम का स्वाद मैं अपनी जीभ पर महसूस कर सकती थी। भाई अहहह … इस्स … की कामुक आवाजें निकाल रहा था।

15 मिनट से मैं उसका लौड़ा चूस रही थी लेकिन साला झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था। मेरा मुँह दर्द करने लगा तो वो मेरा सिर पकड़ कर मेरा मुख चोदन करने लगा।
5 मिनट के मुख चोदन में भी वो नहीं झड़ा तो मैंने हार मान कर उसे चुदाई की इजाजत दे दी।

मैं उसके लन्ड पर सवार हो गई। वो धक्के लगाने लगा। उसने मुझे अपने से चिपका रखा था। मेरा भाई मेरे होंठ चूसते हुए धक्के लगा रहा था। मैं भी उसका लन्ड चूस कर गर्म हो चुकी थी और मस्ती में चुद रही थी।

अगले 20 मिनट मुझे अलग अलग आसनों में चोदने के बाद वो मेरी चूत में ही झड़ गया। मैं जीवन में पहली बार एक ही दिन में तीसरी बार झड़ी थी। उसका जोश काबिले तारीफ था। लेकिन लौड़ा बड़ा ही बेदर्द था. इसका अहसास तो मुझे सुबह ही होने वाला था।

मैं थक गई थी। कब आंख लग गयी पता ही नहीं चला। सुबह उठी तो मैंने पाया कि हम दोनों नंगे ही चिपक कर सो रहे थे। मैंने मोबाइल देखा तो दिन के 10 बज रहे थे। मैंने भाई को उठाया और खुद भी कपड़े पहने।

कल की चुदाई के बाद जो हाल था उसके कारण मैं लँगड़ा कर चल रही थी। भाई ने मुझे सहारा देकर कमरे तक पहुंचाया। उसने बर्फ से मेरी चूत की सिकाई की। तब जाकर मैं थोड़ा चलने के काबिल हुई।

आते समय भी वो जुगाड़ लगाकर मेरे साथ अकेले हो लिया। रास्ते में उसने एक बार फिर मुझे चोद दिया ये कहते हुए कि फिर “आपकी रसीली चूत पता नहीं कब नसीब हो”

इसके बाद तो वो जब मन करता वो मेरी चुदाई करता। मुझे भी जब मन करता उससे चुदने लगी. वैसे ऐसा कभी नहीं होता कि मेरा मन न हो चुदाई के लिए. मैं हमेशा तैयार रहती हूँ।

ज्यादातर हम घर के बाहर ही चुदाई करते थे. कभी होटल में, कभी किसी दोस्त के यहाँ। घर में पापा मम्मी होते थे तो यहां तो मुश्किल था।
लेकिन धीरे धीरे उसकी हिम्मत और बढ़ने लगी. अब मौका पाकर वो घर में भी शुरू हो जाता था। विशाल के रूप में मुझे अपनी प्यासी चूत का परमानेंट इलाज मिल गया था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#7
मस्त स्टोरी।
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#8
(12-01-2021, 01:14 AM)bhavna Wrote: मस्त स्टोरी।

[Image: ef3b4bc9d064da059f1e96e50f5cb3ee.gif]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#9
मेरे बहनचोद बनने की गन्दी कहानी




जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#10
बात तीन साल पहले की है जब मैं 18 साल का था और दीदी 22 साल की थी। उन दिनों मैं 12वीं की पढ़ाई खत्म करके कामाचलाऊ नौकरी ढूंढ रहा था। रोज काम की तलाश में जाता था और घर वापस आ जाता था. उन दिनों मम्मी-पापा ऊपर के कमरे में सोते थे और हम दोनों भाइ-बहन नीचे कमरे में कुंडी लगाकर सोते थे।

उस रात मैं चादर ओढ़ कर अन्तर्वासना की कहानी पढ़ रहा था और जियरा दीदी जैसे घोड़े बेच कर सो रही थी। उन्होंने काले रंग का टी-शर्ट और पतली ढीली हेरम पहन रखी थी। हमारी खटिया बिल्कुल नजदीक ही थी और नाइट लेम्प की रोशनी में उनके सुडौल स्तन और गांड बहुत प्यारे लग रहे थे।

दीदी की कमसिन जवानी देख कर और कहानी पढ़ कर मुझे मुठ मारने का बड़ा मन कर रहा था लेकिन सोच रहा था कि अगर उठ कर गया तो दीदी जग जायेगी. दीदी जाग जायेगी इस ख्याल से मैं लंड को हाथ में पकड़ कर चुपचाप सोता रहा।

इतने में दीदी ने करवट बदली और सीधी लेट कर सोने लगी। इससे उनकी चूत का गुब्बारा बिल्कुल मेरी आंखों के सामने आ गया. अब मैं चाह कर भी अपने आप को रोक नहीं पाया और नींद में हाथ उठाने का नाटक करते हुए मैंने उनकी चूत पर हाथ रख दिया. दीदी तो नींद में थी. मेरी हिम्मत बढ़ गई और मैं चूत के सुराख को हेरम के ऊपर से ही सहलाने लगा.

मेरी इस हरकत पर दीदी थोड़ी सी हिली और उसने मेरा हाथ अपनी चूत से हटा दिया. अब मेरे अंदर की वासना की आग भड़क उठी थी. मैंने वापस वही हरकत की.
इस बार दीदी धीरे से बोल पड़ी- प्रतीक, भाई और बहन के बीच ये सब नहीं होता.
दीदी ने इतना तो कहा लेकिन अपनी चूत से मेरा हाथ नहीं हटाया.

मैंने नींद में ही बड़बड़ाने का नाटक करते हुए कहा- दीदी प्लीज, एक बार करने दो न।
दीदी बोली- अगर करना ही है तो मर्द की तरह कर, ऐसे बुजदिल बन कर क्यों कर रहा है.
मैंने अब होश संभालते हुए कहा- दीदी आप सच में मुझे करने दोगी?
वो बोली- हट बदमाश, मैं तो तुझे जगाने के लिए ऐसा कह रही थी. ये सब तू अपनी गर्लफ्रेंड के साथ ही करना. मैं तुझे अपनी नहीं देने वाली।

मैंने कहा- दीदी, मेरी कोई गर्लफ्रेन्ड नहीं है. मैं ये सब किसके साथ करूं?
दीदी बोली- तो ढूंढ ले।
मैंने कहा- कोई भी नहीं मिल रही।

दीदी बोली- अगर कोई नहीं मिल रही तो बहनचोद बनेगा क्या?
मैं- आप हो ही इतनी प्यारी कि बहनचोद बनने का मन कर रहा है।
दीदी- चल झूठा।
मैं- सच में दीदी, आज की रात सिर्फ एक बार मुझे मेरी ख्वाहिश पूरी कर लेने दो प्लीज!
दीदी- चल ठीक है, लेकिन मेरी एक शर्त है!
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#11
मैं- सब मंजूर है, बताइये क्या शर्त है?
दीदी- इस कमरे की बात बाहर नहीं जानी चाहिये और मेरी मर्जी के खिलाफ कुछ भी नहीं किया जायेगा। मंजूर है?
मैं- अरे मेरी जान सब मंजूर है।

इतना सुनते ही मैं उन की खटिया में कूद गया और उन पर टूट पड़ा; चुम्बनों की बारिश कर दी मैंने … और दीदी भी अच्छा सहकार दे रही थी। दोनों बहन भाई पूरे गर्म हो चुके थे।
अब मम्मे दबाने की बारी थी। मैंने दीदी की टी-शर्ट उतार दी. मैं दीदी की ब्रा के ऊपर से मम्मे दबा रहा था और मेरी जीभ उनके मुंह में टटोल रही थी. एक हाथ से मैं बहन की चूत को सहला रहा था।

थोड़ी देर मम्मे सहलाने के बाद मैंने खड़ा होकर अपनी पैंट निकाल ली. मेरा सात इंच का लंड तन कर बेहाल हो रहा था. मैंने अपने बेकाबू से लंड को दीदी के हाथ में पकड़ा कर दीदी को चूसने का इशारा किया तो दीदी ने खड़ी होकर मुझे जोरदार तमाचा मारा और कहा- बहनचोद, मैं रंडी हूं क्या जो तू मुझे अपना लंड चूसने के लिए बोल रहा है?

दीदी की इस बात पर मुझे गुस्सा आया लेकिन मैंने कुछ कहा नहीं क्योंकि बना बनाया काम बिगड़ सकता था. मैं चुपचाप अपने कपड़े वापस पहनने लगा तो दीदी घबरा सी गई. अब मुझे पता चल गया था कि आग दोनों तरफ ही बराबर की लगी हुई थी.
वो बोली- सॉरी, गुस्से में डांट दिया मैंने, बुरा क्यों मान रहा है?
मैंने कहा- गलती तो मुझसे हो गई है लेकिन अब मैं आपके साथ कुछ नहीं करूंगा.

मैं अपनी पैंट को वापस पहनने लगा. मेरा लंड तो कह रहा था कि आज तो दीदी की चूत मार ही ले लेकिन मैं दीदी को परखना चाह रहा था कि वो भी मेरे लंड को लेना चाहती है या नहीं.

जब मैं पैंट पहन रहा था तो दीदी मेरे कच्छे में तने हुए मेरे लौड़े की तरफ ही देख रही थी. उसकी चूत भी शायद मेरे लंड को लेकर अपने अंदर की गर्मी को शांत करने के लिए उससे माफी मंगवा रही थी.

मगर मैंने भी अपना नखरा जारी रखा. पैंट पहनने के बाद मैंने अपने तने हुए लंड को अपनी पैंट में एडजस्ट करने का दिखावा सा किया. मैं जानबूझकर दीदी के सामने बार-बार अपने खड़े हुए लंड को हाथ लगा रहा था. मैं जितनी बार भी अपने लंड को हाथ लगा रहा था तो दीदी अपना मन मसोस कर रह जाती थी. वह अपने मुंह से गुस्से में निकली डांट पर अब शायद पछता रही थी. उसको लगने लगा था कि मेरा गर्म लौड़ा अब उसकी चूत को शायद नहीं मिल पायेगा.

इसलिए कुछ देर पहले वो इतने गुस्से में थी और अब वो मुझसे खुद ही माफी मांग रही थी. मैं भी दीदी को और झुकाना चाह रहा था. मैंने अपनी शर्ट भी पहननी शुरू कर दी.

दीदी को लगा कि अब मैं उसकी बात नहीं मानने वाला. उसके चेहरे पर दुविधा के भाव मैं देख सकता था. एक तो उसकी चूत में मैंने आग लगा दी थी और अब मैं बिना लंड दिये ही उसको गर्म करके छोड़ रहा था. इसलिए वो समझ नहीं पा रही थी कि मुझे कैसे मनाये. उसने गुस्से में मुझे डांट तो दिया लेकिन अब उसको बात संभालनी मुश्किल हो रही थी.

मैंने अब तक शर्ट और पैंट दोनों ही पहन ली थी. मैं पूरा दिखावा कर रहा था कि मैं अब उसकी चूत को हाथ नहीं लगाने वाला. फिर जब उससे कुछ भी न होते बना तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया.
मेरी दीदी बोली- मेरे भाई, जिस हाथ से तुझे राखी बांधी उसी से मैंने तुझे तमाचा मार दिया. मुझे माफ कर दे. आज अपनी बहन की चूत का भोसड़ा बना दे. नानी याद करा दे इसे!

दीदी के ऐसा कहते ही मैंने फिर से अपने कपड़े उतारे और उसके भी कपड़े उतारे. फिर उसकी चूत को चाटने लगा. मेरी जीभ जब दीदी की चूत पर लगी तो वो बड़ी मुश्किल से अपनी आवाज को दबा पा रही थी. अगर उसकी सिसकारियों से कोई जाग जाता तो हमारी खैर नहीं थी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#12
जब दीदी से कंट्रोल नहीं हुआ तो उसने अपनी चूत से मेरा मुंह हटा दिया और खड़ी हो गई. उसने दोनों ही खटिया को एक तरफ करके जमीन पर गद्दा बिछाया और उस पर लेट गई और फिर मुझे उसके ऊपर चढ़ने का इशारा किया. मैं भी सांड की तरह फटाक से पोजीशन तैयार करके चुदाई के लिए रेडी हो गया.

मैंने दीदी की चूत पर लंड को लगाया और अंदर डालने की कोशिश करने लगा लेकिन लंड अंदर नहीं जा रहा था. दीदी ने अपने मुंह से थूक निकाला और मेरे लंड पर मल दिया. फिर जब लंड चिकना हो गया तो दीदी ने धक्का लगाने का इशारा किया.

आंखें बंद करके मैंने भी पूरी ताकत से एक धक्का लगाया और मेरा रामपुरी लंड जियरा दीदी की चूत को चीरता हुआ अंदर समा गया. दीदी दर्द से कांप उठी.

मैंने उनकी हालत देखी और रुक कर उनके सिर और पीठ पर हाथ फेर कर उन्हें सामान्य होने दिया. जब दीदी थोड़ी नॉर्मल हुई तो मैं धीरे-धीरे धक्के लगाने लगा. अब दीदी के चेहरे पर भी आनंद नजर आ रहा था.
अब मेरा मन कर रहा था कि दीदी की पोजीशन बदलवा दूं लेकिन लंड चूसने की बात पर दीदी मुझसे गुस्सा हो गई थी इसलिए मैंने चुप रहना ही ठीक समझा.

दीदी भी अपने पैर मेरी कमर के पीछे लॉक करके हर धक्के का आनंद ले रही थी। इसी पोजीशन में मैंने लगभग काफी देर तक दीदी को चोदा। हम दोनों पसीने से भीग गये थे।
मेरे धक्के तेज हो गये और हम दोनों का शरीर अब अकड़ने लगा था. मैंने बिना कुछ बोले अपना पानी दीदी की चूत में छोड़ दिया और साथ में दीदी भी झड़ गयी। अपनी दीदी की चूत के गर्म पानी का लंड पर जो अहसास मुझे उस समय मिल रहा था वो तो मेरे जैसा बहनचोद ही समझ सकता था.

चुदाई करने के बाद हम दोनों एकदम निढ़ाल से हो गये थे. मेरा लंड अभी भी दीदी की चूत में था और मैं उसके मम्मों से खेल रहा था.
तब दीदी बोली- प्रतीक तुझे पता नहीं है क्या, इस तरह से तूने जो मेरी चूत के अंदर अपना पानी छोड़ दिया है उससे मैं प्रेग्नेंट हो सकती हूँ.
मैं- तो अब क्या होगा दीदी?
दीदी- कुछ नहीं, कल में बाजार से गर्भनिरोधी गोली ला कर खा लूंगी लेकिन अगली बार ध्यान रखना।

जब दीदी ने अगली बार कहा तो मैं खुश हो गया. इसका मतलब अब दीदी की चूत मुझे अगली बार भी मिलने वाली थी.
दीदी बोली- अब खटिया सही कर ले और हम भाई-बहन की तरह ही सो जाते हैं.
जब हम उठने लगे तो मेरी नज़र दीदी की चूत पर से बह रहे खून पर पड़ी.
मैंने कहा- दीदी ये खून!

वो बोली- कुछ नहीं है भाई, बस मेरी सील टूट गई है. मैं तेरे से कई साल बड़ी हूं, तुझे इन सब बातों के बारे में अभी नहीं पता है. इसमें तेरी कोई गलती नहीं है.

फिर हमने उठ कर अपने गुप्तांगों को साफ किया और कपड़े पहन कर सोने लगे. हम दोनों धीमी आवाज़ में ही बात कर रहे थे. सुबह जब मैं उठा तो दीदी खेत पर जा चुकी थी. मुझे बड़ा मजा आया इस चुदाई में. उसके बाद तो दीदी की चूत चुदाई का ये सिलसिला शुरू ही हो गया.

अब मैं भी शहर में अप-डाउन करके नौकरी पर जाने लगा. हम दोनों दिन भर मेहनत करने लगे. दीदी खेत पर काम करती थी और मैं नौकरी करने लगा था. फिर रात को हम भाई-बहन चुदाई का मजा लेते और सो जाते. हम दोनों ही खुश रहने लगे थे.

इस भाई-बहन के रिश्ते की आड़ में मैं दीदी को कई बार मूवी दिखाने भी लेकर चला जाता था. हम दोनों शहर में जाकर खूब मस्ती करते थे.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#13
दीदी के पीरियड्स के दिनों को छोड़कर चुदाई की छुट्टी कभी नहीं होती थी. मैं लगातार तीन साल तक अपनी दीदी की चूत की चुदाई करता रहा. मुझे चुदाई का हर सबक मेरी दीदी ने ही सिखाया था.

हम रोज रात नंगे बदन एक दूसरे की बांहों में लिपट कर प्यार की बातें किया करते थे. हम दोनों भाई-बहन अब एक-दूसरे के बिना नहीं रह सकते थे. फिर दीदी के रिश्ते की बातें होने लगी. दीदी भी शादी नहीं करना चाहती थी और मैं भी दीदी के बगैर नहीं रह सकता था इसलिए शादी के ख्याल से ही दोनों की गांड फटने लगी.

मैंने और दीदी ने मिल कर एक प्लान बनाया. हमने अपने एक्सीडेंट का नाटक किया. उसमें हमने एक बाइक को खाई में फेंक दिया और घरवालों को लगा कि हम भी खाई में गिर कर ऊपर पहुंच गये. इस तरह से दुनिया की नजर में हम अब इस दुनिया में जिंदा नहीं थे. इसी बात का फायदा उठाकर हम दोनों घर से भाग गये.

बैंगलोर जाकर हमने मंदिर में शादी कर ली और अब हम पति-पत्नी की तरह रहने लगे थे. हम दोनों ही मेहनती थे और वहाँ पर हमने अपना नया घर बसा लिया. मैंने और दीदी ने मेहनत की. मैंने नौकरी में तरक्की भी की और हमारी चुदाई भी चलती रही.

इस तरह हमारी एक फूल सी बेटी हुई. इससे पहले न जाने कितनी बार मैंने दीदी को गोली खिला कर बच्चा होने से रोक कर रखा हुआ था. लेकिन शादी होने के बाद ऐसा कोई डर नहीं था. इसलिए दीदी ने हम दोनों की बच्ची को जन्म दिया.

उसके बाद दीदी ने एक बेटे को भी जन्म दिया. हम दोनों के बीच में अब चुदाई थोड़ी कम हो गई थी लेकिन बच्चे होने से पहले हम भाई-बहन ने इतनी चुदाई कर ली थी जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता.

दीदी मुझे राखी भी बांधती है और हम करवा चौथ भी मनाते हैं. रक्षा बंधन के दिन मैं दीदी को पूरी रात चोदता हूं. हम दोनों को ही ये भाई-बहन वाली चुदाई बहुत पसंद है.

आपको ये स्टोरी कैसी लगी इसके बारे में बताने की कोई जरूरत नहीं है. मेरा मन किया कि मैं आप लोगों को बताऊं इसलिए मैंने स्टोरी आप को बता दी. जिन लोगों को भी भाई-बहन की चुदाई पसंद है वो अपनी दीदी की चूत का मजा लो. जिस तरह से मैं ले रहा हूं.

मैंने अपनी दीदी की चूत को चोद कर उसको अपनी पत्नी ही बना लिया और मुझे अपने किये पर कोई पछतावा नहीं है. मैं अपनी बहन के बिना नहीं रह सकता था और मेरी बहन भी मेरे बिना नहीं रह सकती थी. इसलिए हम दोनों ने अपने घर वालों को भी छोड़ दिया था.

कई बार तो मुझे लगता है कि घर वाले भी हमारे इस रिश्ते को अपना लेते तो ज्यादा अच्छा होता लेकिन ये तो फिर संभव लगने वाली बात थी ही नहीं. इसलिए हम दोनों ने अपने को परिवार से अलग कर लिया.

वैसे भी बाहर जाकर क्या पता लगने वाला था कि हम भाई-बहन हैं. हम दोनों तो पति-पत्नी बन कर रह रहे थे. मेरी बहन भी मुझे पति के रूप में पाकर खुश थी और मैं भी अपनी बहन को अपनी पत्नी के रूप में देख कर खुश था. कुछ लोगों को ये बात अटपटी लगे लेकिन हम दोनों भाई-बहन ने तो ऐसा ही किया.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#14
1,664 Namaskar
(11-01-2021, 04:53 PM)neerathemall Wrote:
बहन के जिस्म का पहला स्पर्श
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#16
(11-01-2021, 04:53 PM)neerathemall Wrote:
ममेरी बहन की चूत में लंड का पहला मजा

जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#17
आज मैं आपको अपने जीवन में घटित एक सत्य घटना बताने जा रहा हूं. यह बात उस समय की है जब मैं 19 साल का था और बारहवी में पढ़ रहा था। उन दिनों मैं अपने मामा के घर पर रह रहा था. मुझे क्या पता था कि मामा के यहाँ मैं सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं जा रहा बल्कि एक ऐसे रिश्ते से जुड़ने जा रहा हूँ जो मेरे जीवन में एक नया मोड़ ले आएगा।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#18
मेरे मामा थोड़े गरीब हैं। उनके घर में केवल एक कमरा अपने बड़े बेटे और बहू के सोने के लिए और एक कमरा बाकी लड़कियों और मामा मामी के सोने के लिए है। उनकी 3 बेटियाँ हैं जिसमें से सबसे बड़ी का नाम पूनम था। वो मुझसे 4-5 साल बड़ी थी इसलिए मैं उनको दीदी कहता था। भगवान ने उनको बहुत सुंदर बनाया है।

मैंने हमेशा उनको दीदी ही तो माना था। आखिर मामा की लड़की भी तो बहन है। ऊपर से उम्र में 4-5 साल बड़ी मगर उनकी हंसने की अदा, उनके गोर चेहरे की मुस्कराहट, उनके गुलाबी होंठ, उनके तीखे नैन नक्श मुझे कम से कम उस समय तक तो नहीं भाये थे जब तक आस-पड़ोस के लडकों में उनको पाने की ललक न देखी थी।

अब एक साथ रहने के चलते हम सब भाई-बहनों का साथ-साथ उठाना बैठना, लूडो खेलना होता था। एक सादगी भरी हसीन अदा उनकी हर हरकत में दिखती थी।
पढ़ाई में लड़कियों से पाला बहुत पड़ा था लेकिन शायद उस समय तक एक लड़की के छूने पर जो अहसास अब हो पाया था वो पहले कभी नहीं हुआ था।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#19
मैं अक्सर उनको सताया करता था और वो भी मुझे छोटा भाई जानकर बहुत तंग किया करती थी और हम दोनों भाई-बहन ऐसे ही मस्ती करते रहते थे. हम दोनों के बीच में ऐसी ही हल्की-फुल्की शरारतें अक्सर चलती ही रहती थीं.

दीदी मेरा बहुत ख्याल भी रखती थी। लूडो खेलते समय जब एक दो बार उनका हाथ मेरे हाथ से छुआ तो पता चला कि इतना नर्म स्पर्श शायद कभी महसूस नहीं किया था मैंने। फिर मैं जान बूझकर खेल में चीटिंग करता था और पासा लेने के चक्कर में काफी देर तक उनके हाथों का स्पर्श महसूस करता था।

उनको मेरा शहरी पहनावा बहुत पसंद था। मेरी टाइट फिट टी-शर्ट्स और शर्ट्स उनको मेरी अच्छी फिटनेस दिखाती थी। मुझे भी उनका शहरी लड़कियों की तरह कुरता और लेग्गिंग का तालमेल गजब का लगता था।

धीरे-धीरे मेरा ध्यान उनके ऊपरी उभार पर जाने लगा। मेरी चोर नजरें अक्सर उनके उभारों को देखने की ताक में रहने लगी थीं। जब भी हम लोग लूडो खेलने बैठते तो मेरा ध्यान उनके उभारों और उनकी जांघों पर जाता था। जांघों का गदरायापन अक्सर मेरी उँगलियों को बुलाता था और मैं उनकी जाँघों पर अपनी उँगलियां चलाने के लिए मचल जाता था। मैं कई बार उनके हाथों का स्पर्श पाकर रोमांचित हो जाता था। उनके हर अंग से चिपका उनका कुर्ता और कसी लेग्गिंग मुझे आकर्षित करने लगी थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#20
एक दिन मैं मामा के अन्दर वाले कमरे में सो रहा था। दीदी भी शायद मुझे सोता हुआ जानकर बेफिक्र सी होकर नहा रही थी। मामा की आर्थिक स्थिति सही न होने की वजह से नहावन बस एक बंद दरवाजे के पीछे बना था जिसमें से होकर अन्दर वाले कमरे का रास्ता था जहाँ मैं सो रहा था.

गर्मियों के दिन थे इसलिए गर्मी की वजह से मेरी आँख खुली। मैं जैसे ही उठ कर बाहर निकला मेरी आँखें खुली रह गयीं। दीदी का पूरा यौवन मेरे सामने था। उनका पूरा गोरा नंगा जिस्म देख कर मेरे शरीर में करंट दौड़ने लगा।
दीदी के सिर से गिर रहा पानी उनके लबों को, गर्दन को, उनके मखमली बूब्स को, उनकी पतली कमर को भिगोता हुआ और उनकी जांघों से होता हुआ योनि के रास्ते अपना सफर तय कर रहा था।

कुछ समय के लिए मुझे पानी से जलन होने लगी। मैं भी पानी की तरह उनके नर्म गुलाबी लबों को, उनकी गर्दन को, उनके बूब्स को, उनकी कमर को, पेट पर बनी सुंदर सी नाभि को, उनकी मुलायम जाँघों को और उस योनि को छूना चाहता था।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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