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25-08-2020, 01:13 PM
फ्रेंड्स एक और कहानी जो मुझे अच्छी लगी आपके लिए पोस्ट कर रहा हूँ इस कहानी का मूल लेखक कोई और है आइ होप ये कहानी आपको ज़रूर पसंद आएगी । यह कहानी को इसके पुराने लेखक ने अधूरा छोड़ दिया था। फ्रेंड्स मैं इस कहानी को पूरा करूँगा। धन्यवाद । आप स्टोरी को पढ़ते रहीये।
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दोपहर की कड़ी धूप मे मिसेस. काव्या शर्मा एक देहाती गाओं के कच्चे रास्ते पे अपनी एक सामान की ब्याग लेकर खड़ी थी. मई का महीना था तो छुटियो के दिन थे. हर दम देल्ही रहने वाली एक हाइ प्रोफाइल महिला डॉ. काव्या अपनी यह छुटिया बिताने के लिए अपने नानी के गाओं मे जाने का प्रोग्राम बना चुकी थी.
डॉ काव्या के बारे मे बताए तो यू समझ लीजिए के जिसका जनम ही सिर्फ़ लोगो के अंदर वासना उभारकर उनको तड़पाना था. काव्या एक 28 साल की शादी शुदा औरत थी. वो एक अच्छे घर की पधिलिखी लड़की थी. उसने अपना एजुकेशन डोक्टोरी पेशे में किया था. वैसे तो समाज मे उसका नाम बहुत शरीफ लहजे मे था, पर अंदर मे थी उसके संभोग की देवी. उसकी शादी एके बिज़्नेसमन से हुई थी. मिस्टर रमण शर्मा जो 3५ साल के बड़े आदमी थे. शादी अरेंज थी और रमण जो हमेशा अपने काम मे बीज़ी होने के कारण अपने खूबसूरत बीवी को ज़्यादा वक़्त नही दे पाते थे. इसीलिए शायद शादी के 5 साल बाद भी उनको कोई संतान नही थी. दूसरी तरफ काव्या जो बहुत मादक राजसी महिला थी. उसका चेहरा बहुत खूबसूरत था लेकिन उसको देखके मादकता के भाव ज़्यादा जाग जाते थे. 34-25-36 का बदन मानो जैसे सिर्फ़ मर्दो का मज़ाक उडाने के लिए ही बना हो. उसका बदन इतना कसा हुवा था के हर एक औरत को अंदर से जलन और हर मर्द का पानी देखते ही निकल जाए. गोरा दूध जैसा बदन और उसमे से आती मादक खुश्बू जिसको छुने की चाहत हर मर्द मे थी.
ऐसी शहर की वासना परी आज एक देहाती गाओं के कचे सड़के पे अकेली खड़ी थी. उसका प्लान कही दिनों के बाद अपने गाव जाने का था. पर उसको ये पता न था के यहा एक ही समय बस आती हैं और वो अब निकल गयी थी. उसका मोबाइल जिसपे सिग्नल आना बंद हो गया था उसको गुस्से से अपनी हाथ मे लिए वो कड़ी धूप मे खड़ी थी. धूप इतनी ज़्यादा थी के पसीने से उसकी हालत खराब हो रही थी. देहाती जगह और उपर से गर्मी के दिन थे इसलिए हर समय ए.सी. मे रहने वाली शहरी डॉक्टर को शायद ये धूप हद से ज़्यादा लग रही थी.
काव्या के बालो से और गले से पसीना टार हो के बह रहा था. हल्का सा मेकअप और मलाई जैसे लाल होठो पे भी पसीने की हलकी बूंदे जमा होने लगी थी. उनको बार बार वो अपने दसताने से साफ कर रही थी. वैसे उस समय भी काव्या को देख ऐसा लग रहा था के उसको वही चिपक के दबाया जाए. उसने एक स्लीव्लेस ब्लाउस पहना था जिसका गला आगे से और पीछे से बहुत गहरा था. उसको इस्ससे ज़रा रहत तो मिल रही थी. अंदर महंगी ब्रसियर पहनी थी जो उसको उसके जन्मदिन पे रमण ने गिफट में परदेस से लाके दी थी वो उसके पसीने से साफ दिख रही थी. शिफोन सारी उसके बदन से इस कदर चिपकी थी की जैसे वो अब उसको कभी नही छोड़ने वाली. साडी कमर के निचे पहनी हुयी यही. जिससे उसकी नाभि चमक उठ रही थी. हाइ-हील्स से उसका पिछवाड़ा और उभरा था जो जाने कितने मर्दो का अंतरंग का सपना था. शहर में कभी कबार वो बस से सफ़र करती तो भीड़ में जाने कितने लोग उसके पिछवाड़े को मसलते थे. जाने कीतने बार उसकी गदेदार मुलायम उभरी गांड पे कित्नोने अपने लंड रगड़े थे ये तो उसको भी नहीं पता था. उसकी गांड थी ही इतनी टाइट और उभरी के बुढा लंड भी फुल जाये.उस समय भी डॉक्टर होने की वजह से हद से जादा साफ रहनेवाली काव्या को पसीना आ तो रहा था पर उसमे भी उसके बदन की कामुक खुश्बू और उसका फेवरेट पर्फ्यूम अपना गजब ढा रहा था उसके वजह से पूरा समा जैसे रंगीन हो गया हो.
तभी अचानक उसने अपने ब्रांडेड सनग्लासेस अपने कातिल निगाहों से उपर किए तो देखा उसकी और एक देहाती ऑटो रिक्षा चले आ रहा था. शायद उसको एक आशा की किरण दिख गयी पर उसको नही पता था ये आशा उसकी ज़िंदगी बदलने वाली राह की हैं. सामने से एक ऑटो उसके पास आ रहा था. ऑटो की स्पीड धीरे धीरे कम हो रही थी और काव्या को ऑटो मे कुछ लोग बैठेवाले दिख रहे थे....
चंपकलाल जिसका ऑटो था उसमे सुलेमान और सत्तू दोनो गाओं के दो कमीने और निकम्मे इंसान बैठे थे. और उनके साथ थी एक १९ साल की देहाती जवान लड़की सलमा. ये दोनो भी एक दूसरे के जिगरी दोस्त थे पर इनकी दोस्ती भी थोड़ी अजीब थी. सुलेमान एक ३३ साल का निकम्माँ आवारा किस्म का आदमी था. जिसकी पहली बीवी उसके तीन बच्चे लेकर के उसको छोड़ गयी थी. उसके बाद उसकी दूसरी बीवी उसके रोज के जुवा खेलने की आदत से उससे झगड़े कर के अपने माइके चली गयी थी. जाते समय वो भी पेट से थी. जुवे में हमेशा अपना दिमाग लगाने वाला सुलेमान चुदाई के मामले में कहा कम था. बीवियों के जाने के बाद अब वो शहर की सस्ती रंडियो को चोदके कभी कबार अपनी राते बिताता था. और जो राते बच जाती उनमे वो चोरी या मजदूरी की कामे करके अपनी ज़िन्दगी को चला रहा था . वही दूसरी तरफ सत्तू एक २७ साल का ऑटो चालक था. उसको सुलेमान ने अपने साथ रहकर के जुवे की गन्दी आदत लगवा दी थी. जिससे वो एकदूसरे के मुरीद बन गए थे. शायद किसीने सच कहा हैं जिसके साथ रहोगे ठीक वैसा ही बनोगे. सत्तू इसका सरल उदहारण था.
सत्तू उसके मालिक सेठ चम्पकलाल का ऑटो चलाता था. सत्तू को उसके बदले में चम्पकलाल थोड़ी मजूरी भी देता था. पर सत्तू था एक मामले में बड़ा ही किस्मतवाला. उसको चम्पकलाल का ऑटो तो मिला ही साथ में ही उसकी बीवी मंगलादेवी को टटोलने का मौका भी. मंगला देवी बड़ी ठाकुरों की तरह रॉब चलाती थी. चम्पक लाल की एक न चलती उसके सामने. ४१ की उम्र में भी उसकी जवानी थी के उसको संभाले ही नहीं जाती. सत्तू हर इतवार जब चम्पक लाल के घर जाता तब तब वो उसके घर के सारे काम भी करता था और साथ ही मंगलादेवी की सेवा. कभी कबार चम्पकलाल काम के मामले में शहर जाता तो इतवार में मंगलादेवी सत्तू से न जाने क्या क्या नहीं करवा लेती थी. उसी बहाने सत्तू उसको पूरी तरह से निहारके उसकी भरपूर भरे हुए देहाती भरपूर बदन का जमकर मजा लेता था. कभी मालिश करके तो कभी उसका बदन दबवाके.
सुलेमान और सत्तू की दोस्ती गहरी तब हुयी जब एक दिन वो दोनों सुलेमान के चाचा सलीम की बेटी सलमा को ज़बरदस्ती चोदते टाइम एके दूसरे से मिले थे. वही जो ऑटो में उनके साथ बैठी थी. किस्सा यु था के सुलेमान रंडियों को चोदते उकसा हो गया था तो उसने अपनी गन्दी नज़र अपनी ही भतीजी पे रखी. एक दिन गाँव के कच्ची गली में जब वो सलमा को जबरदस्ती चोद रहा था तभी सत्तू ने वो देख लिया. दोनो ने अपनी मिली भगत च्छुपाने के लिए ये बात आपस मे ही बाट ली. बेचारी सलमा जिसको लगा था शायद सत्तू के आने से उसको मदद मिले पर हुआ उल्टा. उस कमसिन को फिर बारी बारी दोनो ने पेल दिया. उसके बाद मानो दोनों एक दुसरे के जिगरी बन गए हो ऐसे हर बात साथ साथ करते थे. सुलेमान को एक और साथी मिल गया था जो उसको उसके आवारा कामो में साथ दे सके.
अभी अभी एक घंटे पहले ही उन्होने सलमा को बारी बारी गन्ने के खेत मे चोदा था और उन कलूटो की किस्मत देखो आज उनको ऐसी राजसी युवती दिख गयी कि उनके चुदाई के अरमान फिर से सिर चढ़कर बोल उठे.
सत्तू जो सामने की सिट पे ऑटो चलाते बैठा था उसने सुलेमान से कहा “आबे मादरजाद सुलेमान, देख तो सामने...क्या माल खड़ा हैं देख,,”
सुलेमान जो पिछे सलमा के साथ बैठा था उसने नज़र दौड़ाई और वो बी सुन्न हो के रह गया.
सुलेमान: “अरी ह...तेरे मा की कमीने ..साली कौन छिनाल है रे यह..?”
सत्तू : “वही तो, चल पूछते हैं शहर की दिख रही हैं”
पीछे बैठी सलमा भी गौर से देख रही थी पर चुप चाप से. उसके मन में दोनों के प्रति बहुत क्रोध था. पर फिर भी इसबार वो खुद भी काव्या को देख के चौंक गयी. और पहली बार उसको ऐसा एहसास हुआ के दोनों कलुटो ने मानो उसका पल भर के लिए बहिष्कार कर दिया हो. सच में स्त्री की भी अलग विडंबना होती हैं जो दुसरे स्त्री के सुन्दरता को देख कभी खुश हो जाती हैं तो कभी जलन के भाव में गिर जाती हैं. ऐसा ही कुछ सलमा के साथ हो रहा था.
ऑटो ठीक काव्या के सामने रुक गया. दोनो के दोनो कलूटे काव्या को देखकर होश मे ही नही रहे. उन्होने उसको जब देखा तब उनको वो किसी परी से कम नही लगी. उसकी साडी का पल्लू ब्लाउज के ऊपर थोडा सरक गया था. गर्मी के कारण शायद ऐसा हो गया. काव्या के इस मादक रूप को देखके दोनों भौचक्के हो गए थे. सलमा जिसकी जवानी का रस वो कुछ ही वक़्त पहले पिकर उठ चुके थे वो काव्या को ऐसे देख रहे थे जैसे सदियों से वो उसी रस के प्यासे हो.
वो इस कदर काव्या पर अपनी नज़ारे गाढ़ रहे थे मानो आँखो से उसके साथ सुहागरात मना रहे हो. तभी अपने सनग्लासेस वापस अपनी निगाहों पे रखके सुनसान बने माहोल मे काव्या ने चुप्पी तोड़ी....
“..हेलोव.........”अचानक से हुए बात ने दोनो कलूटो को होश आ गया
“जी,,जी.. बीबी जी...”? हिछक हिछक के अपनी थूक गटक के सत्तू ने पुछा.
काव्या: “सुनो..ये बरवाडी कहा हो कर गुज़रता हैं?”
बरवाडी सुनते ही दोनो कलूटो को जैसे लगा आज सच मे खुदा भी हैवानो पे मेहरबान हैं. क्योंकि वो सब उसी गाओं के रहने वाले थे.
“जी बीबीजी बरवाडी..यहा से 15-१७ किमी दूर हैं...हम वही जा रहे हैं..”
सत्तू की नज़रे काव्या के गोरे गोर मखमल जैसे बाजुओं से लेकर उसके स्तनों के उभार पे जैसे झंडा रोन के खड़ी थी.
काव्या ने इन सब बातो से नज़र हटाके अपने बातो पे ध्यान केन्द्रित किया “ओके ओके...मुझे वही जाना हैं..कितना ऑटो भाडा लगेगा बोलो?”
इसपे पीछे बैठा सुलेमान झट से बोला ”अरे बीबीजी..पैसा ज़्यादा नही लेते हम,..तोहा मर्ज़ी हो जितना देना हैं दे दो”.
ऐसा कहते हुए उसने काव्या की गहरी गोरी नाभि की तरफ देख के अपने गंदे काले होंठो पे अपनी खुद्तरी जबान फेर दी.
काव्या इन सभी हरकतों से अब ज़रा अनकंफर्टबल फील कर रही थी दोनो की नज़रे उसको जाने नोच रही थी. उसको ऑटो में बैठी सलमा को देख थोडा अच्छा महसूस हुआ. चलो दो मर्दों के साथ कोई औरत भी थी उसके साथ. इस खयाल को देख के उसको थोड़ी संतुष्टि हुई. गर्मी और उपर से हो रही देरी को देख उसने सब भुलाकर कहा...”चलो ठीक हैं..२०० रुपय दूँगी, डन . इतना चलेगा?”
सत्तू जो 2 रुपय के लिए हिसाब का पक्का था उसने झटसे गर्दन हिलाई. और काव्या को बैठने के लिए इशारा किया. मौके का फायदा उठाते हुए सुलेमान ने सलमा को एक जगह सरका दिया और ऑटो के बाहर जैसे कूद ही गया.
“चलिए बीबी जी..ऑटो अपना ही हैं समझिये..आपको कोई शिकायत का मौका नहीं देंगे. आपका सामान भरी हैं उठाके रख देते हैं. ”
सुलेमान ने बड़ी कामुक अंदाज़ में 'सामान' शब्द का इस्तेमाल किया. उसकी नज़रे काव्या के सुडोल गोरे दूध जैसे बदन पर ऐसी चल रही थी जैसे वो कोई कारागिरी करनेवाला हो और काव्या उसकी मूरत. निचे झुक के उसने काव्या का सामान उठा के ऑटो के अंदर रख दिया. झुकने पर कोई भी चांस ना गवाए उसने काव्या की गोरे पेट के तरफ मूह लेकर एक लम्बी सांस भर ली. और उसका सामान जो के बस एक ब्याग में था उसको ऑटो के अन्दर रख दिया. खुद बीच मे बैठ कर उसने काव्या को बैठने को कहा.
“आइये बीबी जी आपका सामान रख दिया..आप भी आ जाओ अब....”
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काव्या को उसका मदत करने का तरीका देख अच्छा लगा. काव्या के बारे में बताये तो वो भले ही योवन सुंदरी राजसी महिला थी पर वो दिमाग से ज्यादा शातिर नहीं थी. उसको इंसान पहचानने में उतनी महारत नहीं थी. इसलिए जब कोई भीड़ में उसकी गद्देदार पृष्ठभाग को मसलता तो उसको लगता शायद उसीकी गलती होगी या भीड़ की वजह. इसका कारन था क्योंकि वो जिस परिवार से थी वहां सब शरीफ लहजे के ही लोग थे. कभी तो वो अपने मरीजो का इलाज भी बिना कोई फीस लेते कर देती. अपने पेशे से ज्यादा प्यार करने वाली काव्या हर इंसान की आदतों को एक बीमारी का रूप दे कर उसको निहारती थी ना के शक के नज़रो से.
ऐसी मन से नादान और तन से सुन्दर महिला इन शातिर लोगो के साथ ऑटो में बैठ गयी थी. ना जाने उसके जीवन में अब कौनसा बदलाव आनेवाला था. शायद शहर की डोक्टोरिन साहिबा को ये बदलाव नये रोमांचिक अनुभवों का उपहार देने वाले थे जो उसको हमेशा याद में रहेंगे.
सत्तू ने ऑटो स्टार्ट कर दिया....और ऑटो चालू हो गया. उसने सामने के मिरर मे देखा..और मुस्कुराया सुलेमान की इस हरकत पे.
“तो चले बीबीजी बरवाड़ी? देखिये गा बहुत मजा आएगा आपको कोई शिकायत का मौका नहीं देंगे.”
और ऑटो गाँव के तरफ रवाना हो गया. गाँव की कच्ची सड़को पे हिलता डुलता ऑटो, अनजान लोग और पुराणी गाँव की यादे सब मिल जुल के काव्या को बचपन के वो पल याद दिला रहे थे जहा वो खेली थी पर साथ ही अब जवानी का ये मोड़ उसको बहुत नयी यादे अब दिलाने वाला था और नए नए खेल का खिलाडी बनाने वाला था .
ऑटो मे काव्या और सलमा के बीच सुलेमान बैठा था. एक ३३ साल का अधेड़ काला आदमी जिसने लूँगी पहनि थी और एक जालीदार बनियान. मूह मे तंबाकू की गंध और बदन मे पसीने की बदबू. उसको मानो ऐसा लग रहा था के किसी परी के साथ सैर पे निकला हो. उसने ऐसी हुस्न की देवी को पहली बार जीवन में इतने करीब से देखा था. जब वो शहर जाता तब वो अक्सर एक कोठे पे जाता, वहा पर कुछ महंगी रंडिया भी होती थी. जो अमीर कस्टमर के साथ जाती थी. उनको देख आहे भर अपनी कडकी जेब का गुस्सा वो सस्ती रंडियों पे निकालता. सत्तु का हाल भी कहा अलग था. आज उसके ऑटो की सही मायने में इज्जत बढ गयी थी. जाने क्यों उसको आज खुदपर और चम्पकलाल पर बहुत फक्र महसूस हो रहा था. सच में वो समा ही कुछ अलग बन गया. औटो में काव्या की खुश्बू और सुलेमान की बदबू दोनो भी अपना अपना गजब ढा रहे थे.
तभी सुलेमान के शैतानी दिमाग़ मे कुछ आया उसने जान बुज़के अपना मूह सलमा की तरफ़ फेर दिया. सलमा जो के एक सलवार कमीज़ मे बैठी थी. सावले रंग की एक कसी हुई 1९ साल की देहाती जवान लड़की जिसको ये दो कलूटे अपने हवस के लिए इस्तेमाल किए जा रहे थे वो अभी अभी हुयी चुदाई से चुप हो बैठी थी. उसके भोली शकल को देख सुलेमान को आज बड़ा अच्छा लगा. उसके गले पर का निशान ने सुलेमान को अभी हुयी चुदाई की याद दिलादी. उसके दातो के लव बाइट्स उसको निशानि के उपहार में सलमा को मिले थे. सच में हवस से भरी चुम्बन को अंग्रेजी ने आज एक बड़ा स्थान दे दिया हैं ‘लव बाइट्स’.
सुलेमान ने ख़ुशी के मारे उसको कस के अपने पास खीचा और ज़ोर से उसके दाए गाल पे एक जोर की पप्पी ले ली और साथ ही उसके पेट पे चिकोटी काट ली.
“आआ..आम्मी ....ओऊ”….अचानक से हुए हमले से सलमा चीलाई....सो काव्या का ध्यान उसके पास चला गया और सामने से सत्तू ने भी पीछे कान दिए.
“अरे..मेरी मौधी..मेरी बेगम...मेरी लाडो..अब तक नाराज़ हो क्या...अपने मिया से ज़्यादा नाराज़ नही रहते..तू तो मेरी बीवी हैं ना...” सुलेमान ने जान बुज़के काव्या के सामने सलमा को अपनी बीवी कहा था. बल्कि सलमा उसके सगे बुड्ढे चाचा की औलाद थी. सलमा खुद हक्की बक्की रह गयी, जाने सुलेमान के दिमाग चल रहा था उसको ही पता.
उसने देखा काव्या चौक गयी हैं बस सुलेमान ने उसकी तरफ़ बिना कोई वक़्त जाया करे तुरंत मूह किया..और कहा..
“देखी ये न बीबीजी...ये हमारी बेगम हमसे नाराज़ हो गइ हैं..कुछ बोलिए ना आप पढ़ी लिखी लग रही हो”
काव्या थोड़ी हैरत से बोली...”व्हाट..आई मीन , म..मैं क्या बोलू? ये आपके आपस का मामला हैं..और ना ही मैं आपको जानती भी हूँ”
इसपे सुलेमान बोला ”अरे बीबीजी..खाक आपस का मामला हैं..अब हम बरवाडी के ही हैं ना और आप भी तो वह ही जा रही हो..तो हुए ना हम एक ही मामले मे..”
काव्या बोली ,”नो नो,.आई मीन.. हाँ मैं पढ़ीलिखी हूँ. अक्चुअली मैं एक डॉक्टर हूँ और गाओं में कुछ दिन रहने के लिए आई हु और कुछ दिनों के बाद वापस जाऊंगी..”
सत्तू झट से सामने से बोला..”.ऊऊओ...तो आप डॉक्टोरिया हैं बीबीजी...”
सुलेमान : अरे बीबीजी ..हमारे गाओं मे एक डॉक्टोरिया आने वाली थी ..कब से इंतज़ार था हमको..चलो फिर वो आप ही हैं. अब समझा”
काव्या इन बातो से अनजान थी. उसने इस गलत फैमि को दूर करने के लिए कहा “ अरे नहीं..वो मैं नहीं हूँ..वो कोई और होगा. मैं यहाँ अपने नाना के यहाँ रहने आई हूँ..किशोरीलाल अग्रवाल”
सत्तू जो सब गाँव की खबर रखता था उसने झट से पुछा “अच्छा मतलब आप ठाकुर किशोरीलाल की पोती हैं?...बड़े ही नेक आदमी थे चल बसे
इसपे काव्या बोली “हाँ..वो तो हैं ..बस नानी से मिलने आई हूँ.बहुत दिनों के बाद पुराना मकान देखने को भी मिलेंगा”
“अच्छा मतलब वो बड़ा बंगला वही जाना हैं न आपको बीबीजी...हम छोड़ देंगे आपको वहा तक. हमारा घर भी उसके थोडा आगे ही हैं नदी किनारे” ” मंगला देवी के घर का काम करते समय उसके लिए कुछ काम वो किशोरीलाल के घर भी रहते थे. जैसे कोई सामान राशन या व्यापार का लेन देन. सो मंगलादेवी उसको ही वहा भेजती थी इसी कारन उसको काव्या को जानने में कोइ देरी नहीं हुयी.
सुलेमान जो अब तक सत्तू की बाते सुन रहा था उसने बात काटते कहा “ अरे सत्तू तू भी क्या बिबिजो को परेशां कर रहा हैं..हमरे गाँव की मेहमान हैं और अपने ही गाँव की हैं...तू कुछ मत बोल..बीबीजी पर सुना हैं वहा इतने बड़े बंगले में सिर्फ दो तिन ही जन रह्ते हैं..अगर आप को कोई मदत लगे तो हमको ज़रूर याद कर लीजिये गा बीबी जी..”
सुलेमान की इस मदत करने की बार बार होते बात की काव्या पे दिमाग पे एक जवाब बना रहा था, उसको ये बात अच्छी लगी के गाँव के लोग बहुत खुले मन के हैं. पर उसको सुलेमान की इसके पिच्छे का मकसद नहीं पता था.
अपनी और एक गन्दी मुस्कुराहट दे कर सुलेमान सलमा की तरफ़ और एक बार मूह करके देखता हैं और उसको फिर से एक जम के चुम्मा जड़ देता हैं. लेकिन इस बार हमला कसे हुए देहाती होठों पे था.
“आईइ वाअ..देख सलमा, मेरी बेगम देख...हमारे गाओं मे अब डॉक्टोरीं साहिबा आ गइ हैं. अब हम सब का इलाज हो जाएगा..
सुलेमान इश्स कदर सलमा को चुम्मे दे रहा था वो देखकर काव्या शर्म पानी हो कर से नज़रे झुका के हा मे हा भर रही थी. वो करती भी क्या मिया बीवी समझ के वो उनको शर्माते इगनोर कर रही थी. और खुद शर्म से पानी पानी होती थी.
ये सब शीशे आगे से देख रहे सत्तू को सुलेमान पे इतनी जलन हो रही थी के उसको लगा ऑटो से उतर जाये और खुद उसकी जगह लेले.
सुलेमान ने कहा...”अरी डॉक्टर साहिबा..आपका स्वागत हैं फिर से हमारे गाओं मे..हम कब से किसी डॉक्टर साहिबा का इंतेज़ार कर रहे थे..आज आपके दर्शन हो गये..ऐसा लगा रा के मानो पुण्य का काम किया हो...” उसकी नज़रे काव्या के गले से दिखती हुई स्लीव्लेस ब्लाउस के दूध के चीरो की तरफ मानो डेरा डाल के बैठी थी.
ऑटो जैसे ही ख़राब सड़क पे आ जाता वो ज़रा हिलता उसके साथ काव्या के दूध उछल जाते और सुलेमान के लंड मे कोहराम मच जाता जिसका बराबर का हिसाब वो पड़ोस के सलमा पे निकालता था. सुलेमान का बाया हाथ सलमा के कंधो पे था और मूह काव्या के तरफ़. उसकी नज़रे भूके भेड़िए की तरह काव्या के उभरे और तने हुए गोर सीने पे जमी हुई थी. उसकी हिरनी जैसी गर्दन और नीचे उछलते भरे हुए ३४ के स्तन मानो किसी प्यासे की प्यास बुझाने की दो टंकिया हो. ये सब देखते उसके मूह मे पानी आ गया था काव्या थी ही इतनी सुंदर और उसके दूध तो बहुत सुडोल थे. उसको ऐसा लगा के वही काव्या का ब्लाउस खोलके उसके दूध को मसल मसल कर पी जाये.
अपनी आँखों से वो काव्य के दूध को नंगा कर रहा था और इसी कामुक इरादे मे अपनी सारी वासना की भड़ास वो बाजू सलमा पे निकाल रहा था.बीच बीच मे वो सलमा को छेड़ता था. काव्या के दूध को आँखो से नंगा करके उसको दबोचने की चाहत मे डूबे हुए सुलेमान ने अचानक से एक दम कसके सलमा का बया दूध मसल दिया.
"अया.........आअह्ह...." अचानक के हुए इस दबाव से सलमा चहक उठी.
उसकी चहक की अवाज में दर्द तो था पर वो मादक स्वरुप का था. काव्या को ऐसी आवाजे सुनके समझने में देरी ना लगी के सुलेमान और सलमा जरा ज्यादा ही ओपन दम्पती हैं. जिस तरह से सुलेमान सलमा को छेड़ रहा था काव्या शर्म के साथ अब थोडा रोमांचित भी हो रही थी.
तभी फिरसे सुलेमान अपनी नज़रे काव्या के दूध पे रखके कसमसाते हुए बोलता हैं,
"आह..स्स्स्स..,डॉक्टोरीं साहिबा,,,वैसे आप आई अब तो सब ठीक हो ही जाएगा..तनिक आपसे एक बात कहु..?"
काव्या थोड़े धीरे से बोली,,"हा बोलिए ना.क्या हैं?"
उसने इतने कोमल आवाज से सुलेमान से ये बोला था के उसके होश ही उड गए. उसको अभीतक किसीने इतनी इज्जत से बात नहीं की थी. यहाँ तक उसकी बीविया भी उसको गुस्से में गाली गलोच से ही बात करती थी. काव्या उसके खुलेपन से और सलमा के प्रति दिखाए गए प्रेम से उसको थोडा धीरे और शरमाते हुए नज़रे बचाते बात कर रही थी. और वो इसका पूरा इस्तेमाल अपनी नज़रे उसके बदन के कोने कोने पे चलाके ले रहा था.
सूलेमान काव्या के गोरी चिकनी बघलो से गर्मी के वजह से आती हुई पसीने की गंध को सूंघते हुए बोला..”...वैसे आप डॉक्टोरीन लग ही नही रहे हो..”
उसके लिए वो गंध किसी खुशबू से कम नहीं थी. उसमे काव्या की खूबसूरती और परफ्यूम की भीनी गंध भी आ रही थी. हद से ज्यादा साफ़ रहने वाली काव्या अपने अंग अंग का ख्याल रखती थी. रमण के साथ जब भी वो क्लब में जाती या किसी पार्टी में जाती तो सब उसके खूबसूरती के चर्चे करते थे. कुछ ठरकी मरीज़ तो बस उसको देखने के लिए ही उसके क्लिनिक के चक्कर काटते रहते. नियमित योग, वॉक, और हेल्दी फ़ूड खाके उसकी बॉडी फिट थी. उसके बदन पे बाल आते ही नहीं थे फिर भी वो महीने में कभी वैक्स और कही और नुस्के इस्तेमाल करती थी. जिसके कारन उसकी त्वचा बहुत मूलायम और तेजदर हो गयी थी.
काव्या ने पहली बार सुलेमान की आखो में देखा और चौक हो के बोली...”ओह?? ऐसा क्यों?”
पढ़िलिखी काव्या को लगा शायद वो उसको अनपढ़ तो नहीं समज रहा लेकिन उसको ये नही पता था के ये बोलने के पिछे उसका शातिर दिमाग़ हैं. सुलेमान भी झट से बोला..”मतलब आप तो किसी हेरोइन की माफिक लगती हो” और ज़ूत मूठ के शर्माके अपने गंदे दात दिखाते रहा.
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काव्या इस बात पे ज़रा शर्मा गयी और थोड़ा सा हस दी. स्वाभाविक हैं स्त्री को अपने सौदर्य की स्तुति पसंद होती हैं और वो इसका जवाब शरमाके देती हैं. काव्य भी शरमाके सुलेमान से बात टालते हुए बोली ..."हे हे...आप भी ना सब बस, कुछ भी" . हालाकि उसको ये बात पसंद आई थी.
उसकी हसी को देख के सत्तू ने कहा..."हा सुलेमान भाई..वो अपनी अमीशा पटेल की माफिक..."
अमीशा पटेल का नाम सुनते ही काव्या शर्म से और लाल हो गयी. उस ऑटो मे अमीशा का फोटो लगा था वो भी सिर्फ़ बिकिनी वाला. सुलेमान ने अपना हाथ उस फोटो पे फेरते कहा “ हम्म..बात तो ठीक कही सत्तू तूने..बीबीजी है बिलकुल इस हेरोइनी माफिक..कितनी खुबसूरत हैं”
“बिबिजी हम गलत नाही कहत..आप सच में उस जैसी हो..बल्कि मैं तो कहू उससे भी आगे”
काव्या शर्म से लाल हो रही थी. और वो एक मुस्कराहट से बोली..”अब बस हां..इतनी तारीफ..कहा वो अदाकारा और कहा मैं जिसको एक्टिंग भी नहीं आती.. आप दोनों भी न”
काव्या की चेहरे पे हसी देख सुलेमान को अब ये विश्वास होने लगा क मछली जाल में फस तो गयी हैं. बस उसको डिब्बे में उतारना हैं. और वैसे भी सुलेमान अपनी बातो में कही औरतो को फसाता था. औरतो की जूठ मूठ तारीफ़ भी कोई उससे सीखे. और अब तो सामने तारीफ़ की जैसी योवन सुंदरी हो तब ये कहा चुप रहनेवाला था.
“अरे...क्या बात करे हो बीबीजी...मैं आपकी खूबसूरती की तारीफ हमरी बेगम के सामने कर रहा हु..फिर भी नहीं हिचकिच कर रहा ..और आप हैं के हमको जूठा मान रहे..”
इसपे काव्या बोली, “अरे ..वैसा नहीं...इ आई मीन चलो आप ही बताओ मैं ऐसी कैसे हो सकती हु?”
ऐसा सुनेहरा मौका सुलेमान कैसा जाने देता? उसने झट से दबे स्वर में काव्या के आँखों में आँखे डालके बोल दिया,
“अरे बीबीजी गलत मत समझिएगा...आपको बताऊ, हमरी बेगम को भी ये पसंद हैं. पर पसंद होने से तनिक कोई होता हैं..इसको ऐसे कपडे पहना दिए तो बावली को कैसे लगेंगे...मगर.....आप को अगर ऐसे कपडे पहना दिए न तो ये सत्तू इसकी फोटो निकाल के आपकी फोटो लगा न दू तो बोलना. आप इससे कही अच्छी लगोगी.”
अमीषा पटेल की पोस्टर पे हाथ फिरते सुलेमान जो बात की उससे काव्या को ४४० वाल्ट ज़टका लगा. पर अपनी इतनी तारीफ़ सुनके वो गर्व महसूस कर बैठी और अपने मुस्कराहट से बयां करती रही. काव्या की हर कातिल हसी पे सुलेमान अपनी ज़िज़क बाजू के सलमा पे निकालता था और वो भी शायद अब उसके हमले के मज़े ले रही थी.
सत्तू ने अचानक एक सुनसान मोड़ पे ऑटो रोक दिया. वहा एक मोड़ था और कच्ची सड़क और बहुत सारी झाडीया. वो शायद किसी के खेतो का रास्ता था.
आधे घंटे से चल रहा ऑटो अचानक से एक मोड़ पे रुक गया. सड़क सुनसान थी और कच्ची. काव्या को लगा कही गाँव तो नहीं आ गया. उसने अपने मोबाइल में देखा तो अभी तक उसपर कोई सिग्नल नहीं बता रहा था. वो कुछ बोले उसके पहले ही सुलेमान बोल पड़ा,
”अरे सत्तू आधे रास्ते में ही कहा ऑटो खड़ा कर दिया रे. बहुत कामचोर हो गया हैं रे तू ”
“अबे सुलेमान. तू बीबीजी से बाते कर बैठत तबसे, तुझे क्या मालूम? काम क्या होता हैं? बात कर रहा”
सत्तु तभी ऑटो से उतरा. उसने एक जोर की अंगडाई ली. उसको देख ऐसा लग रहा था के कितने दिनों से वो लगातार ऑटो ही चला रहा हैं. कामचोर सत्तू को काम करना जी पे आता था. वो तो बस जुवे के खर्चे के लिए और मंगलादेवी की चापलूसी के लिए ऐसे काम करता था. अपने गंदे दस्ताने से खुदका मूह साफ़ करके काव्या के तरफ़ होके वो बोला..
"अरे बीबीजी..आप इस सुलेमान भाई के बातो में मत आओ..बड़े मेहनती हैं हम, काम के बिच में किसीको नहीं आने देते पर का हैं के हमरि भी एक मजबूरी हैं..बस 5 मीनट ज़रा रुकियेगा, बहुत ज़ोर से हमको लगी हैं..तनिक जरा धार मार लेते हैं.."
काव्या के सीने की तरफ़ दिखते हुए भरे भरे गोर क्लेवेज पे नजर गडाते हुए उसने अपना एक हाथ अपने पजामे के उपर रखा और वही अपने लंड को बड़ी बेशर्मी से ऊपर से मसलते हुए गंदी तरीके से हसते हुए बोल पड़ा,
"बस थोड़ा टाइम लगेगा बीबीजी ..बहुत देर से रोक के रखी थी..मादरचोद मान नही रहा."
काव्या उसकी गंदी गाली और धार की बात सुनके शर्म से पानी हो गयी. वहा सुलेमान कहाँ चुप रहने वाला था उसने झट से मौके का फायदा उठाते हुए कहा,
"अरी ओ मादरजाद..जल्दी करो ओये..वरना शाम लगवा दोगे गये टाइम की तरह.." और हमेशा की तरह अपनी गन्दी मुस्कान दिखादी.
भरी दोपहर में उस कच्ची सड़क पे सत्तू मुश्किल से बस ४ कदम चला होगा ऑटो से और फिर उसने अपनी पजामे की ज़िप खोल के अपने काले बदबूदार ७ इंच के लंड को आज़ाद कर दिया. कमीना जान बुझके ऐसा खड़ा था जहा से ऑटो मे से उसका लंड एकदम साफ नज़र आए.
काव्या की नज़र जैसे ही सत्तू के आज़ाद काले लंड पे गिरी वो तो सन्न रह गयी. जब उसने सत्तू का लंड देखा. उसने शर्म और रोमांच के मारे नज़रे नीचे कर दी. इतना मूसल लंड उसने जीवन में पहली बार देखा था. सत्तू का मादरजाद खड़ा लंड देख काव्या ने अपनी आँखे थोड़े देर के लिए मूँद ली.
“स्रर्र्र्र्र्र्र्रररर्र्र्रर्र्र्रर्र्र......” आवाज़ ने माहोल की शांति भंग कर दी.
शायद बदबूदार पेशाब की धार मादरज़ाद सत्तू छ्चोड़े जा रहा था. भरी धुप में भी सुनसान गली में उसकी आवाज़ मानो सब के कानो में गूंज रही थी.
“अरीय हो मेरी..लैला तेरा चूमा लय लू,,,एक चूमा लयलू...”
सत्तू पेशाब करते समय गाना गाने की आदत रखता था. वहा भी वो जोर जोर से देहाती गाने गा रहा था. गानो में वो इतना मश्गुल हो जाता था के आँखे बंद करके अपने बेसुरे आवाज में और उचे टेम्पो में गाना गाने की कोशिश करता था. ठीक वैसा ही गाना उसने शुरू किया. और गाने की धुन के साथ अपना लंड भी हवा में चलाना शुरू कर दीया. जिससे उसके धार कभी दाए तो कभी बाए उड़ जाती. मानो कोई पौधों को पानी डाल रहा हो वो भी नाचते गाते.
सच मे काम वासना की आग भी अजीब होती हैं. काव्या भी कहा उसको रोक पा रही थी. उसकी नज़रे ना चाहते हुए भी सत्तू के लंड पे फिर से चली गयी. शायद इसकी वजह उसका पढाकू दिमाग़ और उसका लाचार पति था. उसका पति महीनो मे कभी कबार उसके साथ सेक्स करता था वो भी उसके ५ इंच के लिंग से. उसको आज भी पता था कैसे उसके शादी के पहले दिन सुहागरात में रमण के साथ उसने रात बितायी थी. उसकी उम्मीदों पे रमण उतना खरा तो नहीं उतरा पर काव्या ने उस रात जीवन में पहली बार पुरुष का खड़ा लिंग पास से देखा था. तबसे उसने रमण को ही अपने काम जीवन की कड़ी मान ली थी. उसके लिए वही सबसे आकर्षक चीज थी. लेकिन रमण का लंड सत्तू के सामने मानो ऐसा था जैसे कद्दू के मुकाबले ककड़ी रख दी जाये. यहा देहाती मुसल लंड जैसे कोई साप सा दिख रहा था, जो किसी बिल में जाने के खुरत में बैठा हो. भले ही काव्या के विचार उसको शर्म में बांध दे रहे थे लेकिन काव्या की जवानी जो के उफान पे थी वो जालिम जवानी भला इस कामुक दृश्य को देखने की लालसा कैसे जाने देती?
उसकी नज़रे बाजू में बैठे सुलेमान ने ताड़ ली. उसको पक्का लगने लगा काव्या की निगाहे क्या बया कर रही हैं. तभी सुलेमान ज़ोर से बोला..
"अरी ओ सत्तू, आराम से करो... कही बाढ़ ना आ जाए गर्मी मे भी इस जंगल मे".
क्या जाने इस बात से काव्या अचानक हस पड़ी. उस्की मीठी मुस्कान देख के सुलेमान ने झट से बोल दिया...
"आई हाई...देखो मिया..बीबीजी को भी बाढ़ पसंद नही हैं..कैसे खिलके हस पड़ी देखो..".
सुलेमान ने तभी धीरे से काव्या के करीब आके उसके दूध पे नज़र गिडाते हुए हलके से कान मे कहा...
"मैं भी ज़रा धार मार ले आता हूँ बीबीजी..हौला मान ही नहीं रहा. कब से खुला होने का मन कर रहा हैं."
वो इस कदर पुछ रहा था जैसे काव्या से कोई इजाजत माँग रहा हो. और सलमा की तरफ़ देख के बोला..
"मेरी बेगम ज़रा काम करके आता हूँ, तुम भी धार मार लो...वरना रात को फिर से झगडा करोगी.."
और उसने कसके सलमा का बाया दूध दबा डाला. इस बार काव्या ने ये सब देख लिया था. अभी तक काव्या के सामने ज़बरदस्ती वो दोहरे शब्दो का इस्तेमाल करे जा रहा था और हर शब्दो से काव्या सहर उठ रही थी. अब तो उसने सलमा को काव्या की नज़रो के सामने ही दबा डाला. ये देख काव्या तो शर्म से पानी पानी हो गयी और उसने नज़रे बाजू कर दी. और वो करती ही क्या हमेशा की तरह मिया बीवी का रिश्ता बोलके वो अपने आप को समझा रही थी. बाजु में भी तो कुछ अलग नहीं था सत्तू तो अपन ही धुन में हवा में अपना लंड फिराने में मगन था, ये दोनों दृश्य देख काव्या को हसी भी आ रही थी और और शर्म भी पर धीरे धीरे अब उसके मन मे भी कही न कही काम वासना की चिंगारी जल रही थी.
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एक तरफ सत्तू का मुसल हथियार और दूसरी तरफ उसके बाजू में ही सुलेमान की कामुक हरकते देख वो जैसे अन्दर से मोम की तरह पिघल रही थी. सुलेमान ये जान बुज़के कर रहा था. एक और बार काव्या के तरफ अपनी गंदे मूह से मुस्कान दिखाके उसने गहरी सांस भरी. इलायची जैसे खुशबु काव्य के मूह से आरही थी. सुलेमान को वो नशा किसी भांग से कम नहीं था. उसको काव्या के जिस्म की हर एक कोने की खुशबू बहुत पसंद आ रही थी. और वो हर मौके का हिसाब बराबरी का उठा रहा था.
सुलेमान भी अब ऑटो से उतरने लगा. तभी जान बुज़कर उसने काव्या के साइड से उतरने का प्रयास किया और उतरते टाइम उसने वो किया जो काव्या ने शायद कभी सोचा न था.
उसने उतरते समय अपना दाया हाथ काव्या के लेफ्ट थाइस पे रखा और ऑटो से उतर गया. उसके मजबूत हाथो ने कुछ सेकेंड के लिए काव्या की मुलायम थाइस को जैसे कुचल ही दिया था. इस अचानक हुए हमले से काव्या डर के मारे चौक सी गयी. उसको जैसे लगा के किसीने उसको दबा दिया हो. उसके मन मे एक जैसे भूचाल आ गया पर साथ ही बहुत महीनो के बाद, वो भी किसी अंजान पर पुरुष के ऐसे सख़्त हाथो का स्पर्श उसके भी मन को भा लिया. सुलेमान की मजबूत पकड़ शायद एकदम सही जगह बैठी थी और कौन जाने उसने इसी वजह से उसका कोई विरोध नही किया. सुलेमान का स्पर्ष इतना कठोर था के काव्या को छोटी सी सनसनी अपनी योनी में आती हुयी महसूस हुयी.
सुलेमान भी सत्तू के पास जाके खड़ा हुवा और ठीक उसके बाजू में ही बेशर्मी से अपना ७.५ इंच का काला मुसल लंड निकाल के चालू हो गया. उसका लंड तो सत्तू जैसा ही बड़ा था पर उसपे कही सारे बाल थे. सुलेमान बड़ी मुश्किल से अपने चेहरे की दाढ़ी साफ़ करता था ये तो बात बहुत दूर की थी.
वो इतना बेशरम था के उसने पलट के भी देखा और वैसे ही अपना खुला लंड हाथ मे पकड़े हुए काव्या की तरफ शैतानी मुस्कान दे के सलमा से बोला...
"अरी ओ सलमा रानी..जाओ जल्दी वरना आऊ क्या गोदी मे उठाने?"
अपने सख़्त हाथों मे खुदका साप जैसा लंड लिए वो ऐसे बोल रा था जैसे उसने नुमाइश रखी हैं उसकी. खुद के लंड से पेशाब के फवारे वो उड़ा रहा था. जो यहाँ तो कभी वह गिर रहे थे. दोनों कलुटो ने जैसे पेशाब के झरने बहाने चालू किया था जैसे कोई कॉम्पटीशन लगी हो.
यहा ये सब देखकरके काव्या का हाल हद से ज्यादा बेहाल हो रहा था उन दोनो के लंड देख के अब काव्या तो जैसे शर्म से मरी जा रही थी. रमण के प्रति उसका आदर अब कम हो रह था. जिसके लिंग को वो अपनी संतुष्टि समझती थी वो असल में नकली नोटों की माफिक उसके सामने फीका गिर रहा था. उसके दिल में भले ही रमण के लिए बहुत ज्यादा प्रेम था लेकिन उसकी शारीरिक भूक उसको कही और लेके जा रही थी. इतने बड़े दो मुसल लंड देखके उसकी हालत पतली हो रही थी. जिस लिंग को वो अपनी जिंदगी समझ बैठी थी वो तो इनके सामने जैसे किसी पंक्चर हुए टायर के जैसा था. उसका मन उसे टटोल रहा था. पर उसका आत्मसम्मान उसे ये देखने से रोक रहा था. लालसा और नियमोके बिच फासी काव्या ने तभी अपने आखो पे हाथ रख दिए और मूह निचे छुपा दिया.
शायद अब सूरज भी सर चढ़ के बोल रहा था और काव्या के चूत मे भी हौले से कही सिरहन दौड़ रही थी. अब तो शर्म और आत्मसम्मान से उसकी हालत इतनी ख़राब हो गइ थी के उन दोनो को छोड़ वो बाजू बैठी सलमा से भी अपनी नज़रे नही मिला पा रही थी. लेकिन उसे ये कहा पता था? जो वो सलमा से छुपा रही हैं, वो काम वासना की अंगारे सलमा अब भाप गयी थी.
दूसरी और सलमा करती भी क्या उन कलुटो को वो अभी अभी झेल चुकी थी इसिलिये वो शर्मा तो नही रही थी पर थोड़ा झुठ मूठ का गुस्सा दिखा के अपने नाराज़गी के भाव बता रही थी. उन कलूटो के मुसंडे लंडो ने उसकी कमसिन सावली चूत का चोद चोद के भोसड़ा बना दिया था. उसकी अन् छुई कमसिन चूत को पहली बार सुलेमान ने जब चोदा था तब उसको पता था दर्द के मारे वो दो दिन ठीक से खड़ी तक नहीं हुयी थी. बाद में तो जाने कैसे कैसे दोनों निकम्मोने अपने अरमान उससे पुरे किये थे. अब वो भी इन सबसे जानी पहचानी हो गयी थी. इसीलिए गन्ने के खेतो में हुई चुदाई में उसने भी अब की बार खुद होके मजा लिया था. आखिर गन्ने के खेतो में उसीका तो रस निचोड़ के पिया था दोनों ने और उसने भी पिलाया था. शायद इसी कारण से उसको भी बड़ी देर से पेशाब लगी थी.
और उसने थोडासा साहस करके काव्या की बाहों पे हाथ रख के कुछ कहना चाहा. वो पहली बार काव्या की तरफ मूह कर के बोली .."ब,बीबीजी.."
काव्या ने अपना चहरे पर से अपने हाथ हटाके हटाके सलमा की और देखा और हिचकिचाते हुए बोली.."हा ब्ब,,बोलो..स,,सलमा"
पढ़िलिखी शहर की मॉडर्न हाई प्रोफाइल काव्या की बोली भी जैसे अटके अटके रह गयी थी दोनो कलूटो के मुसल लंड देखके. हालाकी काव्या पेशे से डॉक्टर थी पर इस कदर उसने कभी सीधी देहाती जिंदगी देखि नहीं थी. शादी के ४ महीने बाद से ही रमण के बिजनेस में बीजी हो जाने से उसके सेक्स लाइफ मे मानो सूखा गिर गया था. सो अब इन दो गैर लंडो को देख उसके काम जीवन मे नयी वर्षा की तरह प्रतीत हो रहा था.
सलमा बहुत धीरे स्वरों में आगे बोली, "बीबीजी मैं भी ज़रा कर लेती हु. और बुरा न मानियेगा पर लगा तो आप भी कर लो ..गाओं मे जाने तक वक़्त लगेगा थोडा. अगर आपको लगे तो..."
उसकी सहमी बाते सुन के काव्या जरा अपने होश में आ रही थी. काव्या ने जरा धीरता से कहा, “अरे इसमें बुरा मानने की क्या बात? ये तो नेचुरल हैं. तुम्हे आई है न वैसे मुझे भी आती हैं.”
काव्या ने भी सोचा उसको भी पेशाब लगी हैं. पूरी धूप मे वो अपनी इकलोती बिसलेरी की बॉटल ख़त्म कर चुकी थी. पर वो ज़रा अकड़ रही थी क्योंकि अपने शानदार बाथरूम और बड़े बड़े होटेल के कामोड पे मूतने वाली काव्या को खुले आसमान के नीचे पेशाब करने का कोई अनुभव नही था. पर सलमा को देख उसने भी आख़िर हा मे हा भर ही दी. और दोनो एक साथ ही ऑटो मे से उतर गये.
वहा दोनो कलूटे अपनी धारो मे व्यस्त थे तभी उन्होने देखा सलमा और उसके पिछे काव्या जो अपने हाइ हील्स से अटक अटक के कच्ची सड़को से झाड़ियो के अन्दर चली जा रही हैं उनको देख सुलेमान जोर से बोला
"अरी ओ सलमा रानी..बीबीजी को संभाल के लेके जाओ..और ज़्यादा अंदर मत जाना साप वाप होते हैं यहा. अगर कही घुस गया तो हमको रात मे हमें ही निकालना पड़ेगा..हा...."
दोनों निकम्मे इस बात पे जोर जोर से हस पड़े. जैसे कोई हैवान अपनी हैवानियत पे हसे.
सलमा ने उसकी तरफ़ मूह टेडा करते हुए गुस्से वाले इशारे में जवाब दिया और बिना कुछ बोले आगे चल दी. उसको अपनी हाई हील्स से बहुत प्यार था. हर ड्रेस पे म्याचिंग हील्स पहननेवाली काव्या को पहली बार देहाती कच्ची सडक पर चलते समय वही हील्स सरदर्द जैसा प्रतीत हो रही थी. वो जरा रुकी और अपने हील्स को थोडा एडजस्ट करने लगी सीधी होने के बाद ज़दियो से ठंडी हवा का एक झोंका उसकी तरफ आया. उस गर्मी में उसको इतना सुकून मिला के उसका स्वागत उसने अपनी गोरी मुलायम बाहे फैलाके किया. पल भर के लिए ऐसा लगा के सुनसान जंगले में कोई मोरनी जैसे सुंदरी ने अपने पंख बाहर निकाले हो और कोई नृत्य करने के लिए. एक अंगडाई देने के बाद, काव्या सलमा के पिच्छे धीरे धीरे से जाने लगी.
उन दोनों के थोड़ी दूर जाने के बाद झट से सुलेमान ने सत्तू से धीरे से कहा “अबे बहनचोद, अब क्या दिन यहाँ पे ही डाल देगा,चल तुझे जन्नत की फिल्म दिखाता हु".
तब तक सत्तू जो अपना पेशाब कर चूका था सो वो दोनो भी मौके का फायदा उठाके उन् दोनो के पीछे चुप चाप चल धीरे कदम चल दिए.
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बस थोडा सा आगे जाके दो तीन झाड़ियो के बाद एक जगह सलमा रुक गयी. वो जगह थोड़ी साफ़ थी और वहा बस थोड़ी सी घास उगोई हुई थी. काव्या भी अपनी हील्स से अटक अटक के चलके कैसे तो उसके बाजु खड़ी हो गयी.
सलमा जो के इन सब हालात जुदा नही थी उसने बडी आदरता से काव्या से कहा,
"बीबीजी..यहा ठीक रहेगा. कर लो आप यहा."
काव्या ने पहले आसपास एक नज़र दौड़ाई. सचमुच उसको वहा बहुत नयी जैसी अनकही फीलिंग आ रही थी. उसने कभी खुदको वैसे हालात में नहीं पाया था. चारो तरफ झाडिया, दोपहर की धुप और सुनसान इलाका ये सब बाते उसको नयी थी. कहा एक तरफ आलिशान बंगले में मेहन्गे विलायती कमोड पे बैठके अपने सबसे अनमोल अंग से पेशाब की धार छोड़ने वाली काव्या आज, वही धार एक देहाती कच्ची जगह पे छोड़ने वाली थी. बात तो तब और बिगड़ जाती जब कभीकबार उन्ही झाड़ियों से कोई हवा का झोका उसके कमसिन बदनको छू के निकल जाता और उसमे एक रोमांचभरी सिरहन उठा देता.
उसने थोडासा हिचक के सलमा से कहा, "अरे.. नही तुम भी करो यही ,और मैं..?”और वो बोलते बोलते रूक गयी.
सलमा समझ गयी शहर की डोक्टोरिन को ऐसे जगह की आदत नहीं होगी इसलिए शायद वो शर्मा रही हैं. उसपे सलमा ने कहा “ बीबीजी..मुझे पता हैं आप बड़े लोगो को इसकी आदत नहीं होगी पर हम गाँव वाले ऐसे ही सब करते हैं, खुले में”
काव्या ने उसकी बाते सुनके सिर्फ गर्दन हाँ में हिलाकर रेस्पोंसे दिया. और फिर से नज़रे आस पास दौड़ा दी.
सलमा ने उसकी इस हरकत पे जरा हस के चुटकी लेते कहा “ बीबीजी..भला आप भी इतना क्यों शर्मा रहे हो?”
काव्या को ये बात ज़रा लग गयी. उसको लगा सलमा उसको कही शर्मीली तो नहीं समझ रही. काव्या के बारे में एक बात थी. वो बहुत प्रोफेशनल किस्म की महिला थी. उसके सहेलियोके ग्रुप में भी कोई अगर उसको कुछ चिडाता या चैलेंज देता तो उसको ये बात बिलकुल हजम नहीं होती थी. उसको कभी ये पसंद नहीं था के कोई उसको किसी बात पे कम समझे. बस सलमा की मंद हसी को देख अपना ईगो सम्भालाते काव्या ने थोड़े उचे स्वर में कहा “ अरे, वो बात नहीं हैं. अक्चुअली, मुझे न ऐसे आदत नहीं हैं इसलिए लग रहा था कैसे करते हो तुम सब ऐसे, कोई आता तो नहीं न बिचमे ही?”
सलमा काव्या के इस बात पे और ज़रा हस दी. उसने इस बार ज़रा खुलके बात की.
“अरे नही बीबीजी..आप ऐसा मत समझो..बस आप कर लो तनिक, कोई नही आएगा इधर देखिएगा..”
खुद में विश्वास भर के अपने ईगो को बिना हर्ट करके के काव्या और देहाती कमसिन सलमा दोनों एक बार अपने आस पास नज़र डालके अपने आपको पेशाब करने के लिए तय्यार कर रही थी. तब तक सत्तू और सुलेमान जो उनको टटोल रहे थे वो दोनों वहा नज़दीक एक पेड़ के पीछे छुप गये. वहा से उनको उन दोनो के पिछेका का पूरा हिस्सा जैसे 'सीधा' दिख रहा था. दोनों को वैसा देख के, पिछे कलुटो के मन में तो जैसे दावत के बाँध फुल रहे थे.
तभी सलमा अपना सलवार का नाडा खोलते खोलते काव्या से बोली,“बीबीजी, डरो नही साडी कर लो उपर..यहा कोई नही आएगा"
जैसे ही काव्या ने उसकी तरफ़ हा मे इशारा करते देखा वो जैसे चौक ही गयी.
सलमा जिसने अपना सलवार के नाड़े की गाथ ढीली कर दी थी जिसके कारन उसका सलवार उसके जवान पैरो से नीचे सटक कर ज़मीन पे गिर गया था. और उसके पिंडलिया नग्न हो गयी थी. जैसे ही नीचे पेशाब करने के लिए उकड़ू बैठी उसकी खुली चुत काव्या के नज़रो के सामने आ गयी. उसकी चूत उसके ही जैसी सावली थी और उसके उपर बालो का घना साया था. अभी अभी हुयी चुदाई के वजह से उसकी चूत थोड़ी सुज़ भी गयी थी.
क्योंकि पेशे से डॉक्टर होने से उसके इस हालत पे देख काव्या ने एकदम सब भूलके अपनी चुप्पी तोड़ के सलमा से पुछा,
"ओह माय गॉड, डिअर...एक बात पुछू?"
सलमा थोडा शर्मांके वैसे ही अपनी कमीज को अपने हाथ मे पकड़ते हुई बोली "अरे बोलिए ना बीबीजी..क्या हुआ?.."
काव्या उसके चूत पे नज़र टीकाके बोली, "वही जो दिख रहा हैं..डिअर तुम कभी शेव नही करती नीचे?"
सलमा इस बात पे शर्म से पानी हो गयी. उसने अपनी तिर्छी नज़रो से नीचे देखा तो सच मे बालो का जंजाल बन चुका था. शायद जवानी मे जब से कदम रखा था उसने वहा कभी रेज़र लगाई ही नही थी. देहाती सलमा को यह सवाल अजीब लगना स्वाभिविक था. शरमाते हुए वो झिजकते हुए काव्या से बोली "जी वो न..नही बीबीजी.."
काव्या जो एक डॉक्टर थी, उसके लिए ऐसी बातों पे शरमाने की कोई वजह ही नही थी. वो इसपे और खुलके बोली, "अरे...ऐसे कैसे..तुमको ये जगह बिलकुल साफ रखनी चाहिए. इसको ऐसे नहीं रखना कभी. तुम्हे किसीने नहीं बताया क्या? तुम्हारे हज़्बेंड को कुछ नहीं लगा क्या इसका ?"
काव्या ने और बात चलाते हुए बोला, "और तो और तुम उसको ढक कर भी नही रखती? कुछ अंदर पहना भी नही हैं तुमने तो..?"
भले ही काव्या एक डॉक्टर की तरह सीधे उसको सवाल पे सवाल पूछ रही थी पर सलमा ये सब बाते सुनके शर्म से लाल हुए जा रही थी. ठीक वैसे जैसे कुछ समय पहले काव्या को ये माहोल देख के लग रहा था. लेकिन काव्या के इन सवालों का उसके पास कोई जवाब नही था.
सलमा जिसको ये पता था के सुलेमान उसका पति नहीं हैं वो सिर्फ काव्या के सामने ये सब नाटक कर रहा हैं. उसका मकसद सलमा को पता नहीं था पर उसको काव्या को बताने के लिए कोई शब्द भी नहीं थे. वैसे सलमा बोले तो क्या बोले? के 1 घंटे पहले ही सुलेमान ने खुद सलमा की कच्छी उतार के अपने पास रख दी थी जो शायद उस वक़्त उसके जेब मे ही ठुसी हुई थी. बस सलमा कुछ ना बोलते निचे देखते हुए चुप रही और कुछ ही पल मे उसके चूत मे से पेशाब की धार स्रर्र्र्ररर्र्र्रर्र्र्रर्र्र...........हो के निकलने लगी.
पिछे झाड़ी के बगल खड़े हुए सत्तू और सुलेमान तो जैसे इस सबका मज़ा लेने मे मगन थे. सत्तू ने धीरे से सुलेमान के कानो मे बोला " क्यो बे हरामी..सलमा की चूत चोदने के बाद तूने उसकी कच्छी कहा डाल दी?"
सुलेमान अपनी गन्दि शैतानी मुस्कान देके धीरे से बोला, "अबे मादरचोद..मैने वो अपने जेब मे रखी हैं. उसको तेरे ऑटो मे और चोदने का प्लान था मेरा. पर मा की लोडी बच गयी"
उसपे सत्तू बोला " चल जाने दे..अब तो इसको इस डोक्टोरिन के साथ चोदेगे.."
और इस बात पर दोनों कलूटे अपनी गन्दी हंसी हंस रहे थे. उन् दोनो से अंजान यहा सलमा और काव्या अपने काम मे व्यस्त थे. स्रर्र्र्र्ररर.......धार की आवाज से वहा की शांति थोड़ी ख़त्म हुई. काव्या ने यहा वहा एक और बार देखा और अब वहा वो होने वाला था जो शायद सत्तू और सुलेमान को कोई जन्नत के दरवाजो से कम नही था.
सलमा अपनी धार छोड़ने में व्यस्त थी अब काव्या को भी पेशाब संभाली नहीं जा रही थी. सो काव्या थोड़ासा आगे बढ़ी और सलमा के थोडा बाजू में ही खड़ी हो गयी.
वो ज़रा नीचे बेंड होके अपनी साडी दोनो हाथो से उठाने लगी. धीरे धीरे करते हुए उसकी महंगी शिफोन की साड़ी उसके पैरो से लेके पिंडलीओ तक पूरी गांड के उपर चढ़ जैसे गयी, और वहा वो उसको दोनो हातो से समेट कर खड़ी हो गयी.
यह देख पीछे खड़े दोनो कलूटो के लिंग मे तो जैसे भुचाल आ गया. वो दृश्य ही कुछ ऐसा था के अच्छे अच्छो का पानी निकल जाए. काव्या ने उसकी की साडी कमर तक पकड़ी हुई थी, जिससे उसका पिछवाडा पूरी तरह से साडी से बाहर नग्न हो गया था उसके कारण उसकी महंगी प्यांटी जो के कोटन मटीरियल की पिंक आउटलाइन की एक विलायती ब्रांड कंपनी की थी वो साफ दिख रही थी. उसके पिछवाड़े को वो चिपक के लगी हुयी थी. काव्या की टांगे दूध जैसी गोरी थी के जो किसी भी लंड को पिघला दे. गोरी, दूध जैसे एकदम चिकनी टांगे और उसपे पिच्छेसे भरी उभरी हुई गद्देदार गोल मटोल सुडोल गांड को देखके दोनो कलूटो के मूह मे पानी आ गया.
अप्सरा जैसी सुंदरी काव्या को देख के सामने बैठी सलमा भी चौक गयी. उसने काव्या की खूबसूरती का नज़ारा देख कर उसके प्रति सहिष्णुता दिखाई. अब बारी सलमा की थी जो सवालो के घेरो में बंध रही थी. वैसे ही अपना पेशाब चालू रखते भोली देहाती सलमा ने काव्या से बिना शर्माके पूछा,
"बीबीजी..आपके टाँगो पे तो एके भी बाल नही हैं?"
काव्या उसके इस नादान सवाल पे थोड़ी मुस्कुराते हुए बोली, "अरे, वो वॅक्स किया हैं मैने.”
देहाती सलमा को भले इन चीजो से क्या वास्ता वो चौकके बोली, “क्या?..’वकास’, ...वो क्या होता हैं, कोई इंजेक्शन या तनिक कोणी ओपरेशन होता क्या बीबीजी?”
काव्या को उसके भोलेपन पे मन से हंसी आई. सच में क्या दृश्य था, मेनका जैसी राजसी महिला एक मीठी मुस्कान के साथ साडी कमर तक पकडे हुए अपने हाई हील्स पे कच्ची देहाती जगह खड़ी थी. और उसके बाजू में ही एक देहाती कमसिन जवान लड़की अपने योनी से मूत्र की धार छोड़े जा रही थी. भला कामदेव भी ऐसे चित्र को देख खुदको संभाल न पाएं.
“तुमको भी बताऊगी मैं ओके, हें हें.." काव्या ने उसको मीठी मुस्कान के साथ कवाब दिया.
सलमा को उसके जवाब से संतुष्टि तो नहीं हुयी पर असमझ में गिरी सलमा ने निचे देख अपने काम पे ध्यान केन्द्रित किया. अब आगे जो होने वाला था वो देख के जैसे काम देव भी सत्तू और सुलेमान की किसमत पे जलन महसूस करते होगे.
तभी काव्या ने साडी को एक हाथ से पकड़ा और अपने दूसरे हाथ की नाजुक उंगलिया अपने ब्रांडेड प्यान्ति के अन्दर डलवा दी. आह... अपने नाजुक अंगो से प्यांटी की इलास्टिक को उसने धीरे धीरे नीचे कर दिया.
जैसे ही प्यांटी उसके नाज़ुके अंगो से घुटनों पे अटकी, सप बोलके वो खिसक के निचे गिर गयी. और उसकी साफ सपाट चिकनी दूध जैसी गोरी भरी भरी चूत सलमा के नज़रो के सामने आ गयी.
काव्या वही पे उकड़ू बैठ गयी और साडी को हाथो मे समेट लिया. अंत में वो क्षण आया और खुले आसमान मे अपनी चूत के फाको से बहती पेशाब को काव्या ने देहाती ज़मीन पे छोड़ दिया...
स्रर्र्र्र्रररर्र्रर्र्रर्र्र........
ये सब देखकर वह सत्तू और सुलमन होश खो बैठे थे. एक बार भी उन्होंने अपनी पलके तक नहीं झुकाई थी. एक जैसे वो ये सब देखे जा रहे थे. और काव्या की पिछवाड़े का आँखों से ही स्वाद ले जा रहे थे. जब वो उकडू बैठके पेशाब करने लगी तन उसके योनी से निकली हर वो बूँद उनको किसी अमृत से कम नहीं लग रहा था. उनके मूह में जैसे पानी की बाढ़ आगई थी. किसी बूत की तरह वो उसी जगह पे जकड गए थे.
"आहह....मा कसम..सत्तू इस मादरज़ाद की गांड तो देख. साला कितनी कसी हुई, कितनी गोरी, भरी भरी हैं. इसकी गांड तो मैं पहले मूह से चोदुंगा और फिर इसको हवा अपने गोदी में उठाके मेरे लवडे से दना दन ठोकुंगा."
सुलेमान जो कई बार शहर की सस्ती रंडियो को चोदे हुए था और एक बार एक की गांड भी मार चुका था उसके लिए काव्या जैसे राजसी युवती की गांड मानो जैसे ज़िंदगी का मकसद हो.
दोनों निकम्मे अपने लंड को मल रहे थे. सत्तू ने तो वहा पे ही अपने लंड को निकल के हाथ में पकड़ लिया और वैसे ही मूठ मारते हुए बोल पड़ा, "बहनचोद..इस की गांड देख के तो लवडा पागल बन गया हैं.. कसम जुवे की, लग रा के अभी लंड कही घुसाऊ और मूठ मारू....बोल डालु क्या तेरी गांड मे ही?"
उसकी बाते सुनके दोनो कलूटे शैतानो की तरह हस दिए
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वहा सलमा अपनी निगाहे काव्या के साफ गोरी चूत से हटा ही नही पा रही थी. क्यों जाने उसको उस समय काव्या पे बहुत ज़्यादा जलन आने लगी थी. उसकी चूत जो के जवानी के चरम पे थी काव्या के सामने मानो फीकी गिर गयी थी. अब वो काव्या से दूरी नही बल्कि नज़दीकिया बढ़ाना चाहती थी शायद उसको भी स्त्री के सौंदर्य की पहचान हो रही थी.
उसने वैसे ही काव्य के योनी पे नज़ारे गड़ाकर कहा, "जी ज़रूर बीबीजी. मैं आपकी हर बात मानूँगी वो ‘वाकस’ करना आप मेरा भी."
वॅक्स को वाकस बोलने वाली सलमा को काव्य हर बारी की तरह थोडा हंस के हा मे जवाब दे दिया. उसके पेशाब से निकली हर बूँद मानो एक खुश्बू लेके निकल रही थी जिससे पूरा समां मादक बन गया था. तभी अचानक झाड़ियो से एक हल्का हवा का झोंका भागा चला आया. दोनों के पैरो के नीचे वो बह के निकल गया.
“आह....स्सीई....”
एक बहुत हलकी सी सिसकारी काव्या ने छोड़ दी. पहली बार खुले में पेशाब करने वाली काव्या को ये अनुभव एक ऐसी भेट दे दिया के उसके योनी में सिरहन की लाट आ गयी. वो आवारा हवा का झोंका उसके नाजुक कमसिन योनी के फाको को छु कर जो गुजरा था. जो उसको भरी गर्मी में भी ठंडी की राहत दे बैठा.
कुछ देर बाद दोनो का मूतना बंद हो गया. काव्या ने अपने पास से एक टिश्यू पेपर निकाला और अपनी चूत को साफ़ करने लगी. उसपे कुछ एंटीबायोटिक भी था जिससे कोई इन्फेक्शन न हो. ये सब सलमा को कहा पता. उसको देख के काव्य ने तीन-चार पेपर निकाले और सलमा को देते हुए कहा, "ये लो, तुम भी. पेशाब के बाद वहा इससे साफ करती जाओ"
सलमा जो ये सब बाते पहली बार देख रही थी उसने हैरत से पेपर लिया और ठीक काव्या को देख वैसे ही खुदकी चूत को साफ करना आरंभ किया. उसके बाद जैसे ही दोनो खड़ी हुई उनको देख दोनो कलूटे धीरे से वहा से निकल गये और वापस ऑटो की तरफ भागने लगे. वहा सलमा अपनी सलवार फिर से चढ़ा रही थी और काव्या भी अपनी प्यांटी वापस अपने कोमल अंगो पे खिसका रही थी. महंगी साड़ी ठीक करके उसने साड़ी को निचे कर दिया. जाने कितनो का दिल जैसे उसने तोड़ दिया हो. अचानक से उसकी जवानी फिर से ढक जो गयी थी. देर तक हवा में रहने से उसका पिछवाड़े को ठंडक महसूस हो रही थी. न जाने क्यों उसको अब ये सब अच्छा लगने लग रहा था.
शहर की डोक्टोरिन साहिबा को देहाती जीवन में रूचि आने लगी थी शायद ये दिलचस्पी उसको आगे और कही नए रोमांच का किरदार बनाने वाली थी. दोनों ने पेपर बाजू में फेक दिये और वापस ऑटो की तरफ चल पड़ी.
यहा सुलेमान और सत्तू जो अभी अभी काव्या के अप्सरा जैसे बदनको उसके सुनहरी नंगे पिछवाड़े के साथ देखके आ रहे थे वो दोनों जल्दी से ऑटो मे जाके बैठ गये. दोनो के दिमाग़ मे से वो तस्वीर जाने का नाम नहीं ले रह थी.
सत्तू अपने पजामे के ऊपर हाथ मलते हुए सुलेमान से बोलता हैं," सुलेमान मिया...क्या माँदरज़ाद गांड हैं इस डोक्टोरनी की...बड़ा मज़ा आ गया.. बेहनचोद पहली बार अखी ज़िन्दगी में ऐसी माल औरत देखि हैं. साला लवडा है के तम्बू के माफिक खड़ा हो गया"
जब उसने सुलेमान की तरफ देखा तो उसने उसको खोया खोया पाया. सुलेमान जो अपने शैतानी दिमाग़ के सोच मे जो डूबा था.
सत्तू ने उसको जोर का धक्का मारा और बोला, "अरे ..भाई किधर खो गये तुम? हमरी बात तनिक सुने हो के नाहीं?"
उसपे सुलेमान बोला, "अबे चुतिए..इतना जोर का धक्का क्यों मारा? सोया नही मैं सोच रहा था.."
“क्या गुरु? मुझे भी बताओ आखिर क्या सोच रहे हो?”
सत्तू ने बड़े गौर से और सुलेमान की चापलूसी करते कहा. सत्तू को पता था सुलेमान का दिमाग इन बातो में कैसे तेज तर्रार चलता हैं. सत्तू को उसने अपने तौरतरीके जो सिखाये थे. मानो वो उसका चेला हो और ये गुरु. और वो सच भी था. सुलेमान ने सत्तु को अपने झोली से बहुत कुछ दिया था. जैसे शहर की रंडियों से मिलवाना, जुवा सिखाना, और खुबसूरत औरतो के अंतरिम अंगों के नजारों के दर्शन करवाना.
सुलेमान और सत्तू थे तो मजदूर उच्चके पर अपने शोक को वो शान से पालते. खासकर चिंधी चोर सुलेमान को शहर में घूमना, औरतो को टटोलना, किसी साहब की तरह रहना बड़ा पसंद था. जब पहली बार सत्तू सुलेमान के साथ बड़े शहर गया था, तब कोठे पे जाने के बाद वो एक बड़े से शौपिंग मॉल के अन्दर गए थे. वहा के नज़ारे देख के दोनों को ऐसा प्रतीत हुवा मानो वो किसी स्वर्ग में आ गये हो. चारो तरफ सुन्दर और जवानी से भरपूर मॉडर्न औरते और लडकिया. सत्तू वो बात कभी भूलनेवाला नहीं था, के कैसे सुलेमान ने वहा पे एक हाई प्रोफाइल औरत के पिछवाड़े को भीड़ में कस-कस के मसला था. सत्तू की हिम्मत तो नहीं हो पायी पर, इसके बाद सुलेमान उसके लिए किसी गुरु के माफिक बन गया था.
जब आशावादी होकर सत्तू ने सुलेमान से पुछा तब सुलेमान अपने खड़े नंगे लंड पे जो लुंगी के आधा बाहर था उसपे हाथ मलते हुए बोला, "अबे भूतनी के, यही के इस डॉक्टोरिनिया को नंगी कैसे किया जाये, चोदा कैसे जाए....साली क्या माल हैं..अंगार हैं..आज तक मैने ऐसी गांड नहीं देखा ...साली को अपना लंड खिलवाना ही पड़ेगा.आह...हरामी लंड"
सुलेमान को शायद काव्या की सुनहरी मखमली भरा हुआ पिछवाडा देख याद आया के कैसे एक बार उसने ज़बरदस्ती रजनी नाम के धन्देवाली की गांड मरवा दी थी. उसको उसमे बड़ा मज़ा आया था. रजनी जिसकी गांड उसने धोके से मार दि थी, उसको सुलेमान के मुसल लंड से बहुत दर्द हुआ था उसके बाद उसने सुलेमान को अपने आस-पास भी आने नही दिया. सस्ती रंडिया 200 से 500 रुपयो तक पैसा मांगती थी. उसके लिए तो वही सस्ती रंडिया चोदने के लिए नसीब में रहती.
सलमा उन रंडियों से कही ज़्यादा सुंदर और कमसिन थी उसी कारण उस मादरजादने उसको ढंग से पेल दिया था. इंसान जब चोदने पे उतर जाता हैं तब रिश्तो की अहमियत भी मिट्टी मे मिल जाती हैं. वासना सभी बातो पे हावी हो जाती हैं फिर कौन क्या हैं ये भूल कर बस मनुष्य भूक मिटने को देखता है. सुलेमान इसका प्रत्यक्ष उदहारण हैं. अपनी चाचा की लड़की सलमा की कमसिन सील उसने अपने पहले ही चुदाई मे तोड़ दी थी. दो दिन तक चलन मुनासिफ नहीं हुआ बेचारी को. पर उसकी गांड माँरने का मौका उसे कभी नही मिला था. आज काव्या जो के उसके लिए मानो किसी सपनो की अप्सरा जैसी थी अब वो ये मौका भले हाथ से कैसे जाने दे.
सत्तू ने सुलेमान की इस बात पे अपना सवाल रखा, "सुलेमान भाई..बात तो सही हैं..माल तो बढ़िया हैं..वू शोपिंग मौल में देखे थे वैसे ही. आज तक नाही भूले हम गुरु. पर तनिक ये बताओ. इसको कैसे पटाओगे..साली शहर की डॉक्टोरीं हैं. ऐसे सीधे सीधे हाथ तो नही आने वाली.."
इसपे सुलेमान बोला, "इसकी सारी अकड़ निकाल दूँगा मैं. बहनचोद तू सिर्फ़ देखते जा. इसके गांड मे मेरा लंड जाता हैं के नही .अल्लाह कसम साली की गांड को तो मैं फाड़ के रहूँगा मेरे हथियार से.." और दोनो कलूटे हसने लगे.
तभी सामने से काव्या और सलमा को आते हुए देख सत्तू झट से सीधा हो गया और सुलेमान भी अपने जगह जाके बैठा. उसके शैतानी दिमाग़ मे जाने क्या सूझा के उसने अपनि लुंगी में से लंड जरा बाहर दिखे ऐसे अपनी लुंगी सेट की. बस थोडा सा अगर वो लुंगी को सरकाता तो उसका मुसल लिंग पूरा का पूरा सप बोलके बाहर निकल जाता. और वैसे ही अपने जालीदार बनियान और गंदे दस्ताने को गले में डाल के पीछे जाके बैठ गया.
"ओह हो...आ गयी बेगम..कुछ तकल्लूफ तो नही हुई ना करने मे?"
सलमा जो अभी अभी काव्या को बेज़िज़क बोल रही थी उसने अपना मूह फिर से गुस्से जैसा बना दिया. कोई जवाब ना देते हुए वो ऑटो मे आके बैठ गयी. काव्या सलमा के बाजू आके बैठ गयी. तभी सुलेमान झट से उठा और सलमा को खींच के फिर से वही पहले के कॉर्नर मे सरका दिया और खुद उनके बीच मे जाके बैठ गया.
"आहा...बेगम..हम भी बच्चे हैं.. अपनी जगह नही जाने देते.."
बचकानी बातो से अपने खेल खेलने वाला सुलेमान ने और एक बार अपनी गंदी मुस्कान ली. ये देखके के दोनो कलूटे जोर जोर से हसने लगे. सत्तू ने ऑटो स्टार्ट किया और फिर से सफ़र चालू हो गया.
थोड़ी देर बाद सत्तू आगे के शीशे में देख के बोला, "अरे सुलेमान मिया..आप भी क्या बच्चो जैसे करते हैं..भाभी को हमेशा तंग करते हो, अब बीबीजी के सामने तो तंग मत करियो"
सुलेमान बोला "अरे सत्तू मिया, आप शादी कर लो फिर समझेगा..इसमे कितना मज़ा होता. हैं ना बेगम?"
और उसने अपने गंदे होठ सलमा की गाल पे रख के एक चुम्मी ले ली.
सलमा ने गुस्से से मूह फेर लिया तो सुलेमान हस के बोला "अरे बेगम रानी, लगता हैं अभी भी नाराज़ हो मेरे पे. पता हैं? मैं तुम्हारे हर बात का ध्यान रखता हूँ और तुम नाराज़ हो हम से"
इसपे सत्तू बोला" क्या कह रहे हो मिया..भाभी फिर नाराज़ क्यों हैं"
सुलेमान ने काव्या की तरफ़ मूह किया और बोला, "बीबीजी..अब तुमसे क्या छुपाए..डॉक्टोरीं हो तो बोलिए ना. किसी बेगम को अपने मिया से ऐसा रूठना ठीक हैं क्या? और वो भी इतनी छोटी बात पे?"
काव्या के मन मे वो अपनी बाते इस तरह बिठा रहा था के काव्या की उन बातों में दिलचस्पी और बढ़े. काव्या ठीक दिलचस्पी से बोली, "ह्ममम्म..वैसे देखे तो नो..नहीं...वाइफ को मीन्स आपके बेगम को ऐसे रूठना तो नही चाहिए पर डोंट माइंड आप वो वजह बोल सकेते हो तो शायद मैं समझ लू के वो क्यों रूठी हैं?"
झूठ मूठ का दुखी चेहरा बनके बड़ी गंभीरता से उसने काव्या की आखो में देख के कहा,
"ठीक हैं बीबीजी..अगर आप कहे तो बता ही देते हैं हमारी बेगम की बीमारी"
"वॉट? बीमारी?" काव्या शॉक होके पूछने लगी.
इसपे असलम झुठ मूठ का दुखी चेहरा करके अपने सर पे हाथ रखके बोला," हा बीबीजी..सलमा रानी को एक बीमारी हैं शादी से ही हमको समझ आ गया था.."
काव्या एक डॉक्टर थी. वो अपने प्रोफेशन से बहुत प्यार करती थी. वो तुरंत बोली, "अरे....प्लीज़ बोलो आई विल हेल्प यु..मैं मदत करूँगी..कौनसी बीमारी हैं सलमा को?"
इसपे सत्तू जो बडे ध्यान से बाते सुन रहा था उसने भी थोड़ी आग सेक ली और बोला, "बता भी दो सुलेमान मिया..मेडम जी मदत करने को तयार हैं..बोल भी दो..मुझे बोला वैसा इनको भी बोल दो"
काव्या बड़ी डेस्पेरेट हो गयी थी, भोली सी काव्या का हाथ ढोंग करने वाले सुलेमान के कंधो पे न चाहते हुए चला गया और पुरे भरे स्वर में उसने पूछा, ”प्लीज् सुलेमान, आप बताइए क्या हुआ सलमा को?”
बस सुलेमान को यही तो पाना था. मछली जाल मे फँस गयी सोचके सुलेमान बड़ा खुश हुआ. वो अपना हर पेंतरा फूँक फूँक के डाल रहा था. और अपनि मनचली बातो से काव्या को अपनी तरफ खींचे जा रहा था. काव्य का मदद भरा हाथ अब वो अपने हाथो से कहा जाने देने वाला था
काव्या का हाथ अपने बाहों पे पाके सुलेमान तो जैसे परलोक सिद्ध हो गया. बस उसको यकीन हो रहा था बहुत जल्दी वो हाथ उसके मुसल लिंग पे होगा सिर्फ उसको वो पल आने तक का इंतज़ार करना था.
सुलेमान झुठमूठ के दुखी स्वर मे थोडा नौटंकी करते हुए बोला "बीबीजी..वो ..उसको.."
बिच बिच में बात काटके वो खुदको ऐसा प्रतीत करवा रहा था जैसे उसको बहुत दर्द हो रहा हो बताने के लिए. सच में नौटंकी का कोई पदक उसको देना उचित रहता. और दूसरी तरफ पधिलिखी काव्या तो, मानो उसके जवाबो में ऐसी धसती जा रही थी के वो उसके लिए कोई जिम्मेदारी बन गयी हो. उसकी बैचैनी देख काव्या भी अब बैचैन हो रही थी. उसके चेहरे पे तनाव के भाव स्पष्ट झलक रहे थे .
काव्याने भी बड़ी बैचिने से सुलेमान पुछा, “प्लीज बोलो...क्या हुआ सलमा को...हाँ बोलो सुलेमान..प्लीज्”
सुलेमान इस गहरी बात पे और ज्यादा नौटंकी करते बडी बैचेनी दिखाते हुए बोला “बीबीजी..वो..उसको..”
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काव्या को अब बिलकुल संभला नहीं जा रह था. उसको कैसे भी करके सुलेमान से इसका जवाब निकलवाना था. उसने थोडा अपने हाथो का भार उसके कंधे पे और बढाया और धीरे मधुर स्वर में पुछा, “हाँ..बोलो न प्लीज्”..
बस और क्या सुलेमान के लिए तो ये कोइ सिग्नल से कम नहीं था. काव्या के बदन की आग के साथ अब उसके मधुर आवाज ने सुलेमान को जैसे और उकसा दिया. शैतानी दिमाग सुलेमान ने, कोई वक्त जाया ना करते उसका हाथ अपने हाथो में ऐसे भींच लिया जैसे डाली से कोई फूल को तोड़ लिया जाये. उसने वैसे ही बहुत मजबूती से काव्या की नाजुक हतेली अपने सख्त काले हाथो में पकड़ के बड़े ही नौटंकी अंदाज़ में रोती सूरत बनाकर कहा, “बीबीजी...हमरी सलमा को भूलने की बीमारी हैं"..
“क्या? भूलने की बीमारी,.ओह गोड..कब से?” काव्या एकदम से शॉक होकर बोली.
इसपे अपने मन ही मन में खुश होकर साथ ही साथ चेहरे पे अफ़सोस के भाव जताते हुए सुलेमान ने काव्या का हाथ वैसे ही भिन्च्के बोला, “हा बीबीजी...वो शादी से ही वैसी हैं...बाते भूल जाती हैं”
काव्या उसके जवाबो से नया सवाल बनाती. ठीक उसने वैसा ही किया. सुलेमान के इस जवाब पे उसने उसको पुछा, ”बाते भूल जाती हैं?...लाइक कैसी? किस प्रकार की बाते?”
सुलेमान ने उसको हर बार की तरह घुमा घुमा के जवाब दिया, “हां न बीबीजी..हर दिन कुछ कुछ ना कुछ भूल जाती हैं. एक दिन गहने, कभी पैसे, कभी कपड़े और कभी कभी तो ये भी भूल जाती हैं के मैं उसका शोहर हूँ"
काव्या इसमे इंटरेस्ट लेने लगी थी. उसको अन्दर की डोक्टोरिन को नया केस जो मिल गया था. उसके अन्दर का डॉक्टर अब इस देहाती गाँव में जाग गया था. वो खुलके इस बात पर बोल रही थी.
"ओह,,,आई सी...ये तो मुश्किल हैं. पर तुम मायूस मत हो इसका इलाज भी हैं. ओके"
सुलेमान दुखी चेहरा बनाते हुए उसके स्लीवलेस ब्लाउज के दीखते हुए दूध के नजारो की तरफ अपनि नज़रे गिडाते हुए बोला, "नही बीबीजी..हमरे पास इतने पैसे नही. शहर के डॉक्टर तो बस पैसे लेते हैं. हमरा बिसवास नही उनपे..हम ऐसे ही ज़िंदगी काट लेंगे, गरीबो का कोनो नाही दुनिया में.."
सुलेमान का भोला चेहरा देख काव्या को उसपे बहुत दया आई और खास कर के उसके गरीब शब्द पर. जैसा का काव्य के बारे में कहा था वो भोली थी. कही जानो को वो फीस भी नहीं लेती थी. बस फिर क्या अन्दर से करुना से पिघल्के वो उसको बड़ी सादगी से बोल पड़ी,
"ओह हो.... सुलेमान.. ऐसा नही हैं तुम मुझपे ट्रस्ट करो ओके. चलो मैं पैसे नही लूँगी जब तक सलमा ठीक ना हो जाए"
"सच काव्या???? हमरी बेगम ठीक हो जाएगी????"
एकदम से चेहरे के भाव बदलकर, एक ख़ुशी की मुस्कान ले के सुलेमान ने बीबीजी से काव्या पे ऐसी करवट ली के काव्या के साथ ही सलमा और सत्तू भी सन्न रह गए. सत्तू को उस टाइम सुलेमान को पकड़ के गले लगाने का मन किया. जिस तरह से उसकी स्पीड थी लग रहा था काव्या को जल्द ही वो अपने गोदी में खिलायेगा. काव्या भी उसके इस बात पे शॉक तो बहुत हुयी लेकिन पर वो उसकी ख़ुशी को देखके कुछ नहीं बोली. उसने उल्टा उसको और दिलासा देने की कोशिश की.
"हा हाँ ज़रूर..मैं करूँगी तुमको मदत अब तो विश्वास हैं?"
काव्य की तरफ से कोई विरोध ना देख सुलेमान ने अपनी बाते जारे रखी. उसका हात और कास के पकड़ कर उसने कहा, "अरे काव्या...आप पे तो बहुत भरोसा हैं हमरा. अब हम खुश हुए...आप तो महान हैं..बड़ी प्यारी है "
तभी सत्तू जो के ये सब बाते देखे जा रहा था. न जाने उसको कौनसी अचानक से जलन हुयी उसने बात काटते हुए बिच में ही कुछ बोल दिया,
"अरे सुलेमान भाई, भाभी के इलाज मे गुम तुम मेडम जी को नाम से पुकारे हो..पागल हो गये क्या? "
सुलेमान ज़रा ढोंग करते हुए बोला, "अरे हन..काव्या ग..ब्ब..बीबीजी..हमसे ग़लती हो गयी माफ़ कीजिए गा..
वो हुम गरीब हैं न इसलिए बहक गए"
उसने फिर से काव्या की कमजोर नस पे वार किया था. गरिबी की हालात को बार बार वो उसके सामने बता रहा था. और काव्य भी उसको ढील पे ढील डे जा रही थी. उसने तुरंत अपना मूह दुखी बना दिया.
बस काव्या को और चाहिये ही क्या था उसने फिर से सुलेमानको दिलासा देना चाहा. यही भूल वो बार बार किये जा रही थी.
उसने सत्तु की तरफ मूह करके बोला, “"अरे..उसमे क्या? मेरा नाम ही काव्या हैं. ईटस ओके. आई डोंट माइंड..तुम मुझे नाम से पुकार सकते हो, आई मीन आप सुलेमान. अब सलमा मेरी ज़िम्मेदारी है ओके. और वो ठीक नहीं होती तब तक मैं उसकी जांच करुँगी. बट प्लीज, खुदको गरीब बोलके उदास मत करना"
सुलेमान ने काव्य की इतनी ढील का नदाजा नहीं लगाया था. उसने इसका पूरा फायदा उठाया. और जोर से कहा, "सच काव्या...तुम कितनी अच्छी हो..जी कर रहा हैं तुमको उठाके झूम लू"
इस्पे भी काव्य ने कोई गुस्से वाला रिअक्शन नहीं दिया. वो सिर्फ शरमाके शरमाके हस दी.
बीबीजी से...काव्या जी..और अब काव्या जी से सीधे काव्या पे आने वाले सुलेमान के खेल को काव्या बिलकुल समझ ही नही पा रही थी. शायद उसको अपने मरीज़ के लिए सब ठीक ही लग रहा था और वो सुलेमान की जाल मे फसे जा रही थी. दूसरी तरफ़ सलमा ये सब बाते सुनके हैरान और चुपचाप बैठी थी.
कहते हैं अन्होनी और हादसे बता के नहीं आते. वही काव्या के साथ हो. जाने क्या सुझा वक़्त ने पूरी तरह से बाजी सुलेमान को जैसे दे दी. सुलेमान उसी पल मौका गरमा देख काव्या का हाथ छोड़ तो दिया. पर सामने रास्ते पे जैसा एक मोड़ आया वैसे ही अब एक और मोड़ काव्या के लिए उसने ला दिया. वहां ऑटो ने करवट ली और यहाँ सुलेमान ने पूरे हाथो से काव्या को अपने बाहों में भींच लिया. उसके सख्त बदन ने काव्या को को पलक झपकते ही दबोच लिया. अचानक से हुए इस बदलाव से काव्या को ज़रा असमंजसता हुयी. वो उसकी पकड़ में अकड गयी. लेकिन उससे ज्यादा बड़ा करंट उसको तब लगा जब उसका हाथ इस पूरी गड़बड़ में कही और जाके टिक गया.
“नहीं काव्या....तुम महान हो..,मै आजसे तुम्हारा मुरीद बन गया..आह..”
सुलेमान काव्या को अपनी बाहो में जकड़े हुय ये सब बात कर रहा था. सत्तू के तो आँखों पे पट्टी बंध गयी हो, उसका मूह खुला का खुला ही रह गया. ऑटो की स्पीड इतनी कम हो गयी, के मानो वो लगभग बंद ही गिरने वाला हो. क्योंकि असलम ने काव्या को अपनी बाहों में भींच लिया था उसके कारण काव्या का मूह सलमा की और था. सो सलमा भी काव्या को देख के आँखे चुरा रही थी.
“ओह...काव्या...तुम बहुत अच्छी हो..” अपने हाथ काव्या के गोरी और मुलायम पीठ पे चलाते हुए देहाती सुलेमान हर पल का मजा ले रहा था.
काव्या के गर्दन पे उसकी नाक थी और वो उसके बदन की हर आती मादक खुशबू सूंघे जा रहा था. मुलायम, गद्देदार, राजसी महिला को ऐसे बाहों में ले कर के, उसको अपने से चिपका कर उसमे वासना के शोले उमढ पड़े.
यहाँ काव्या का चेहरा आश्चर्यता से भरा हुआ था. पर वो सब नॉर्मल समझकर सुलेमान की ख़ुशी की खातिर चुप थी. लेकिन जैसे ही सुलेमान ने धीरे धीरे अपना हाथ उसके पीठ पे चलाना शुरू किया उसके कारण उसको अब थोडा अजीब लगने लगा. सुलेमान अपनी गरम सासे काव्या की गर्दन पे छोड़े जा रहा था और उसको हर पल जोर-जोर से अपने पास भींछे जा रहा था. अचानक से हुए इस बदलाव से काव्या को ज़रा असमंजसता हुयी. वो उसकी पकड़ में अकडसी गयी. लेकिन उससे ज्यादा बड़ा करंट उसको तब लगा जब उसका हाथ इस पूरी गड़बड़ में कही और जाके टिक गया. वो था सुलेमान का मुसल लिंग.
उसका मुसल काला लिंग फुल के कद्दू जैसा बन गया था. और उस पुरे हलबल में वो फुला हुआ कद्दू उसके लुंगी के उपरी कोने में से ठीक जैसे उसने सोचा था वैसे ही सपाक बोलके पूरा का पूरा बाहर किसी रोंकेट की तरह कूद पड़ा. काव्या का हाथ न जाने उसके ऊपर आ गया. गरम और एकदम तना हुआ काला मुसल लंड काव्या के नाजुक कोमल हथेली के निचे आ गया. काव्या की नज़रे सलमा की तरफ थी सो उसको इसकी भनक नहीं लगी के उसका हाथ सुलेमान की लिंग पे जकड़ा था.
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काव्या का हाथ अपने लंड पे छूते ही सुलेमान को एक तगड़ा झटका लग गया. उसका एक सपना जो पूरा हो गया था. बस फिर क्या? उसके साथ ही उसने काव्या को और जोर से अपने बाहो में भीच लिया. जिसके कारण उसका ब्लाउज उसकी जालीदार बनियान की छाती से सट गया. उसको काव्या के उभारो का स्पर्ष प्रतीत हुआ. उसके सख्त छाती से वो दबे जा रहे थे. क्या एहसास था जिस सुन्दरता को वो कितने देर घुर रहा था अब वो उसके छाती से सट हो गए दबे जा रहे थे. उसका मन तो किया वही उन उभारो को मसल कर उनका अमृतपान किया जाए. पर उसने खुदपे लगाम लगा दी. इस मामले में संयमता कोई इस निकम्मे से सीखे. पर उसने बाकी के सभी मौको का भरपूर फायदा उठाया. भागते को लंगोटी सही, सुलेमान ने अपना नाक काव्या के घने खुशबूदार बालो में सटाके एक लम्बी आह भरी. जिससे उसके लिंग में और तनाव आया और उसने भी काव्या कि नाजुक हथेली में एक तगड़ा झटका मार ही दिया.
क्या तकदीर पायी थी आज उस कलुटे ने. वो दृश्य ही इतना कामुक था के देखने वाले के होश उड जाए. ३३ साल का अधेड़ देहाती कलूटे ने २८ साल की शहर की सुन्दर राजसी डोक्टोरिन साहिबा को अपने बाहों में कस के जकड़ा हुआ था. उसके गन्दी लुंगी के कोने में से उसका मुसल लिंग पुरे गर्व से बाहर झूम रहा था. जो के इस राजसी महिला के नाजुक हथेली में लपका गया. जिससे वो पूरी तरह अनजान थी.
सत्तू जो के कही समय से ये सब देखे जा रह था. उसकी आँखों में जैसे अँधेरा छा गया. वो पूरी तरह से पिछे की और गर्दन करके ये सब नज़ारा देखे जा रहा था. वही सलमा अपनी नज़रे निचे की और करके बूत बन गयी थी जैसे मानो सच में उसको कोई सौतन मिल गयी हो. ये रंगीन नज़ारा देखके पूरा ऑटो जैसे मादकता का मंच को दर्शा रहा था.
सुलेमान की स्पीड शायद इस नज़ारे को कही ज्यादा आगे ले जाती पर उसको रोकने का काम किया एक कच्ची सड़क ने. अचानक से रास्ते पे गड्डा आ गया और ऑटो थोडा धपाक से हिल के एकदम से रुक गया. इसके साथ ही दोनों की बाहों की जकड टूट गयी और काव्या सुलेमान की बाहों से आज़ाद हो गयी.
अपना पूरा मजा कीरकिरा होने के कारण सुलेमान गुस्से से आग बबूला हो गया. वो सत्तू की तरफ मूह करके
जोर से चिल्लाया,“क्या हुआ बे मादरचोद.. सरफिरे लवडे..तेरी गांड क्यों फट गयी. क्या डंडा घुस गया तेरी गांड में..ऑटो क्यों रुक गया”
सत्तू को सुलेमान की गलियों की आदत थी. बस काव्या के सामने सुनके उसको खुदका अपमान लगा. पर वो करता भी क्या? उसको भी काव्या को अपने बाहों में भींचना था जो सिर्फ सुलेमान ही उसके लिए करवा सकता था. वो चुप चाप से बोल पड़ा, “सुलेमान भाई...वो रास्ता कच्चा था इसलिए हुआ..मेरी गलती नाही थी”
“अबे मादरचोद..फिर आगे देख के चलाना ऑटो पीछे क्या अपनी अम्मा को देखे जा रहा था तबसे?”
बार-बार गालिया सुनकर सत्तू ने भी इस बार एक चुटकी सुलेमान पे डाल दी, “भाई ..तुम बिबीजी को ऐसे प्यार कर रहे थे न तो हमरी भी नज़र वैसे ही अटक गयी. गलती तो तुम्हारी हुयी न ”
“अबे चूतिये..मैं तो बस काव्या का शुक्रिया कर रहा था. अब हमरी बेगम अच्छी हो जाएगी तुझे क्या मालुम भडवे? बीवी क्या होती हैं. तू रंडियों को चोदते बैठ सिर्फ ”
सुलेमान के मूह से इतनी सारि गालिया और चोदने चुदाने की बाते सुन काव्या के गाल लाल हो गए. अभी अभी उसके सख्त जिस्म से छुठ के वो खुदसे आझाद फील कर रही थी. पर साथी ही उसको गैर आदमी का ऐसा कसा हुआ बदन उसके मुलायम बदन को एक नयी उर्जा दे गया था.
सुलेमान ने काव्या के और बड़े प्यार से देखा और बोला, “ बोलो न काव्या...मैंने गलत किया? तुम्हारा शुक्रिया मानके..क्या तुमको हम गरीबो को गले लगाना पसंद नहीं ?”
काव्या के नाजुक भावनाओं पे तीर चलाते सुलेमान ने अपना चेहरा फिर से दुखी बना दिया. बस हमेशा की तरह काव्या पिघल गयी. और उसने कहा,
“ अरे..नहीं मैंने कुछ कहा क्या? आई डोंट माइंड..इट्स ओके” और अपने गले से पसीना पोंछ लिया.
“ देख भड़वे, कमीने इसे कहते डोक्टोरिन साहिबा. इनके पैर धो के पि ले तू ”, सुलेमान ने सत्तू को गुस्से से कहा और फिर से अपनी शैतानी मुस्कान काव्या की और बढाई.
“ क्यों काव्या पिलाओगी न ?”
बड़े ही मादक स्वर में उसने काव्या को पुछा. काव्या को बात समझी नहीं उसने बस थोड़ी स्माइल दे कर अपनी नज़रे बाजू कर दी.
“आई.हाई...काव्या शर्मा गयी..अब तो पिलाना ही पड़ेगा बीबीजी..”
और अपनी गन्दी मुस्कान के साथ सुलेमान ने इस बार सलमा को अपनों बाहों में जकड लिया.
स्त्री की अजीब विडम्बना होटी हैं. सलमा को काव्या सौतन लग रही थी अब ठीक काव्या को वैसा लगने लगा. सलमा को सुलेमान की बाहों में देख उसने ना चाहते हुए भी अपने चेहरे पे इर्षा वाले भाव बना दिए. पर तभी वो हुआ जो काव्या के जज्बातों को किसी सुनामी की तरह बहा ले गया.
जैसे ही काव्या ने सलमा की और इर्षा से देखा काव्या की मानो सासे रुक गयी उसके सामने अँधेरा जैसा छा गया. उसकी आँखे इस बार जम गयी. कारण था सुलेमान का मुसल लंड. जो कबसे पूरा लुंगी के बाहर झूम था, बस काव्या की नजर उसपे अभी चली गयी थी. काव्या तब सिहर गयी जब उसके पढ़ाकू दिमाग को दो पल में ही समझ गया के उसकी हथेली ने कुछ देर पहले किस चीज को अपने में समेटा हुआ था.
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काला बदबूदार मुसल ८ इंच का सुलेमान का तगड़ा नन्गा मादरजाद लंड काव्या के ठीक नजदीक था. एकदम तना हुआ साप जैसा डुलता हुआ लंड को इतने करीब से देखके काव्या के गाल लाल-लाल हो गए. वो अपने होशो आवाज में नहीं रही. सुलेमान को तो ये सब पता ही था. वो जान बूझकर सब कर रहा था. दूसरी और सलमा को वो उसी समय सरे आम रगड़े भी जा रहा था. जहा सुलेमान अपने मादरजाद लंड को सरे आम खुला करके बैठा था उस समय भले उसका चेहरा सलमा की और था पर ध्यान था काव्या की और. उसका मुसल लंड एक दम तन गया था. घने काले झाटो के ऊपर तना हुआ हथियार बहुत आकर्षक दिख रहा था. जिसने सुन्दर काव्या की आखे चमका दी.
उसने सलमा को अपनी और जोर से खीच और उसके कमीज़ के ऊपर से उसके दूध मसल दिए. जैसे ही उसने उसने सलमा के दूध मसले तुरंत उसके लंड ने एक अंगड़ाई ली. वो सप बोलके तन गया जैसे वो किसीको सलामी दे रहा हो. काव्या की आंखे मानो ऊपर जम से गयी थी. वो बिना किसी सोच से एक दम से लंड को गौर से देख रही थी. लंड जब जब सलामी देता उसके छाती में ‘धस’ हो जाता. शहर की डोक्टोरिन साहिबा की धड़कन धक् धक् गर्ल की तरह भाग रही थी. डर और वासना काव्या के मन पे हावी हो रहें थे. बस ये देखना था के जीत किसकी होती हैं.
सत्तू जो ऑटो बहुत धीरे चलाकर सामने वाले शीशे में पूरा ध्यान लगाके सब मजे देख रहा था, उसने भी काव्या की नज़रे ताड़ ली. जो गए २-३ मिनट से एक जैसे सुलेमान के लंड को निहार रही थी. उसने सुलेमान से कहा,
“अरे सुलेमान भाई ..तनिक बस भी करियो. क्या पूरा प्यार यहाँ पर ही कर लोगे भाभी से?..हा हा हा”
सुलेमान सलमा को अपनी बाहों पे पकडे हुए बोला,
“अरे सत्तू मादरचोद, क्या बताए हम कितना खुश हु आज ..लगता है बेगम को उठा के नाच दू. बहुत प्यार करू.”
“मिया, पर जरा संभलके. वरना गए टाइम की तरह हमको ऑटो कही रुकवा कर बाहर निकलना होगा. तुम शुरू होने के बाद नहीं रुकते. तुम तो मजे करोगे भाभी जान के साथ हमरी तो जाने दो पर बीबीजी क्या करेगे फिर...?”
तभी सुलेमान ने अपना गन्दा चेहरा काव्या की तरफ किया. जैसे ही उसने काव्या की और देखा काव्या ने अपनी निगाहें दूसरी और कर दी. उसको लगा कही सुलेमान को ऐसा प्रतीत न हो के वो उसके लिंग को देह रही थी. भले उसके लिए ये सब अनजाने में हो रहा था किन्तु सुलेमान के लिए तो ये सब सोची समझी करतूत की तरह था.
“अबे हाँ..मैं भूल ही गया था बीबीजी..काव्या हमरी बाजू में हैं”, काव्या की तेज़ धडकनों को सुलेमान समझ गया था.
सत्तू ने सुलेमान से कहा, ”अरे सुलेमान भाई, भाभी के लिए तनिक काव्याजी को भी धन्यवाद् करियो”
“अरे हां...सत्तू, मादरचोद पहले बार अकल की बात की तूने. भाई, सच में काव्या ही तो है वो, जिसके कारण आज इतनी ख़ुशी हो रही हैं हमको”
ऐसा बोलते समय उसने अपना बाया हाथ सीधे काव्या की दाए (थाइस) जांघ पे रख दिया. काव्या जो पहले ही उसके मुसल खुले लंड से सदमे में थी अब तो उसके योनी में भी सिरहन आ गयी. सुलेमान ने बिना किसी खौफ से उसके जांघो पे अपना सख्त हाथ रख दिया. उसने उसको और ऊपर की और सहलाते हुए धीरे से काव्या की कानो में कहा,
“काव्या..शुक्रिया..जी तनिक इधर तो देखिये ”
काव्या के पुरे बदन में सनसनी आ गयी. उसके माथे पे पसीना आ गया. खुला मुसल लंड, जांघो पे सख्त हाथ और कानो में आती हुयी गर्म सासे इन सबसे उसका बदन अकड़ने लगा. सुलेमान का लंड उसके जैसा ही निकम्मा था. जैसे वो कोई भैंसा हो और तमाम चूत उसके लिए भैंसिया. शायद जिस तरह सुलेमान को काव्या चाहिए थी, ठीक वैसेही उसके लंडको घुसने के लिए उसकी राजसी चूत चाहिए थी जो के नयी दुल्हन की तरह अभी भी छुपी हुयी थी. वो और तन-तन के सलामिया देने लगा. काव्या ने अपनी आँखे मूँद ली. अपनी हथेलियों को कसके अपने हैण्ड बैग पे रोंद दिया. उसकी साँसे रुक सी गयी.
“काव्या...देखोगी नहीं..बताओ न..”, अपने हाथ काव्या के गद्देदार जान्घो पे उसकी महंगी शिफोन सारी के ऊपर से चलाते हुए सुलेमान ने बड़े ही कामुक अंदाज़ में कहा.
“जी..जी....वो....” हडबड़ाती काव्या कापते स्वर में बोल पड़ी.
“हाँ बोलो न...क्या हुआ?”
“जी मैं कैसे कहूँ..?”मैं नहीं देख सकती आपकी और...”
“क्यों बीबीजी..क्या हम गरीब हैं इसिलिये? हम समझ गए...” अपना चेहरा दुखी करके सुलेमान अपने हाथो को काव्या के पेट पे लेके जाते हुए बोल पड़ा.
“बात वो नहीं हैं....” कस्म्कसते हुए काव्या ने अपना हाथ सुलेमान के हाथ पर रख दिया. शायद वो उसको आगे जाने से रोक रही थी.
“फिर का हैं? बोलो न..” बड़े ही कामुक अंदाज़ में सुलेमान काव्या की हाथो की पर्व न करता अपने हाथ की बिचवाली ऊँगली काव्या किए गोरी सुन्हेरी नाभि में डालते हुए बोल पड़ा.
काव्या इन सभी हरकतों से पिघल रही थी. उसने सुलेमान के हाथ को पकड़ते हुए थोड़े जोर से कहा, “आप प्लीज निचे देखिये” पर उसने उसका हाथ हटाया नहीं.
“कहा नीचे...कुछ भी तो नहीं हैं “ अपनी उसके नाभि के निचे सरकाते उसने कहा. शायद वो खुदके निचे नहीं काव्या के निचे देख रहा था.
अब काव्या ने उसके हाथ को और निचे जाने से रोक कर खुद उसकी और हिम्मत कर के देखा और जरा डांटते स्वर में कहा,
“अरे.. अब कैसे बताऊ ,, आप का वो प्लीज् आप नीचे देखो न ज़रा”
सुलेमान ने मौके को समझ कर अपना हाथ वह से हटा दिया. उसको अपने इतने देर से चलते हुए खेल पे पानी नहीं चलाना था. उसने अपने निचे की और देखा और नार्मल समझते हुए ऐसा रिएक्शन दिया जो उसके लिए कोई आम बात हो.
“अबे इसकी मा का..तो ये मा का लोडा हैं, अरे काव्या, गलती से बाहर आ गया ससुरा. रुको इसको हम अभी अन्दर डलवा देते हैं. तुम फिकर ना करो. इस ससुरे को चैन ही नहीं हैं जब भी हम भावुक हो जाते न इ ससुरा ऐसे बिच में आ जाता हैं..चल हट मादरचोद अन्दर ”
काव्या को उसकी बाते सुनके हंसी बी आ रही थी और शर्म भी आ रही थी. उसको समझ नही आ रहा था करू तो क्या करू.
अपना मुसल ताना हुआ लं लुंगी अन्दर डालके सुलेमा ने काव्या पे एक और चुटकी ले ली,
“लो डाल दिया इसको अन्दर काव्या. अब नाही आएगा बाहर. बस तुम पे भावुक हो गए थे हम ज़रासा”
काव्या ने अपने सुन्ग्लासेस आँखों पे दाल दिए. और ओने मूह हें हाथ रख दिया. वो अपनी हंसी दबा रही थी. पर वो थोड़े ही ऐसे छुपने वाली थी.
१ घंटे से चल रहा ये ऑटो का सफ़र का ठिकाना आखिरकर आ गया. १८ साल के बाद काव्या ने अपने गाँव को देखा. बरवाड़ी की ताज़ी ताज़ी हवाओने ने उसका पुरे जोश के साथ स्वागत किया.
सत्तू ने जोर से सुलेमान को कहा “लो सुलेमान भाई गाओ आ गया अब ज्यादा भावुक मत होना. वरना ऑटो वापस मोड़ना पड़ेगा” और दोनों कलूटे जोर से हसने लगे.
गाओ में काव्या का आगमन हो गया था. सुलेमान का शातिर दिमाग बस वो दिन का इंतज़ार कर रहा था के कब वो काव्य को अपने निचे सुलाएगा. मानो न मनो कही पे जुदाई का गम उसको सता रहा था. ऑटो का सफ़र आज उसके लिए बहुत छोटा लग रहा था. पर गाँव का सफ़र अभि भी उसके लिए आगे की परिकल्पना के लिय सशक्त किये जा रह था.
शहर की डोक्टोरिन साहिबा काव्या के नाना जी के बंगले की तरफ औटो ने रुख मोड़ लिया. बस १०-१५ मीनट में ही काच्ची सडको पे से हिलते डुलते देहाती ऑटो काव्या के घर पे रुकने वाला था. जहा पे कोई और उसका स्वागत करने के लिए इंतेज़ार में खड़ा था. बस समझ लो काव्या अब अपनी छुटिया में इतना सारा अनुभव प्राप्त करने वाली थी जो उसके जीवन को नयी नयी बातो से अवगत करने वाली थी.
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“वो देखो बीबी जी आपका बंगला आ गया” सत्तू ने एक दम खुश होके पुरे दम से काव्या को बोला.
काव्य ने ख़ुशी से नज़र दौड़ाई तो उसको वही १८ साल पुराना किशोरीलाल अग्रवाल भवन दिख गया. वही जिसमे वो बचपन में लुका छुपी खेलती थी, दौड़ती थी, अपनी गुडिया संग खेलती थी, नाना के साथ सैर पे जाती थी, नानी से कहानिया सुनती थी. उसका ख़ुशी का कोई किनारा न रहा. वो ख़ुशी से फुले नहीं समां रही थी. उसके घर के गेट से ही अंदर की पौधों फुलोकी बगिया दिख रही थी. बचपन में वो उन पौधों को पानी डालती थी. आज वही बगिया अब बहुत खुबसूरत हो गयी बिलकुल काव्या की तरह. पर्यावरण का देखभाल करो तो वो भी तुम्हारा देखभाल करेगा ये विचार यहाँ पे हमें मिलता हैं. उस बगिया से आने वाली फूलो की महक बाहर तक आ रही थी. पूरा वातावरण जैसे महक गया था और साथ ही वो भव्य बंगला उसमे जैसे किसी राज महल जैसे प्रतीत हो रहा था. मानो वो अपनी राजकुमारी के स्वागत में सज धज के खड़ा हो.
जैसे तैसे देहाती ऑटो बंगले के गेट के पास रुक गया. काव्या ने अपने पैर ऑटो के बाहर रख दिए. अपने घर को इतने सालो के बाद देख वो बहुत ज्यादा खुश नज़र आ रही थी. फूलों की महक उसको और सकारात्मक हवा प्रदान कर रही थी. उसने वही बड़े ही आराम से खड़े-खड़े एक लम्बी आह भरी और भारी अंगडाई ली. जिससे उसके दोनों हाथ ऊपर हो गए और आखे बंद हो गयी. होठो पे सतुष्टि से भरी मुस्कान आ गयी.
“हम्म....आई लव माय होम..आव....”
जैसे ही उसको ऐसे खड़े मुद्रा में सबने देखा, सुलेमान झट से ऑटो से उतर गया. उसने बिना कोई देरी किये काव्या के नजदीक जाकर अपनी नाक उसके गोरी चिकनी खुली बघलों में घुसा दी. और एक लम्बी सांस भरी.
“स......आह.....”
अपनी बघलो में अचानक कुछ गुदगुदी महसूस हुए काव्या ने अपनी आखे खोली और एकदम से दोनों हाथ निचे करके थोडा पिच्छे हट गयी. सुलेमान अपने इतने करीब खड़ा देख के वो चौक गयी.
“ये क्या कर रह थे तुम?” उसने बड़े आश्चर्यता से और जोर से सुलेमान से कहा.
“जी...मैं बीबीजी..काव्या मैं तो बस फूलो की खुशबू ले रहा था....” ऐसा बोलके और उसने यहाँ वहा देखा जैसे वो उसको दिखा रहा हो, फूल उसको कितने पसंद हैं.
काव्या ने थोडा मूह टेढा किया. पर उसका ध्यान फिलहाल सुलेमान से हटकर अपनी पुराणी यादो पे था. सो उसने खुद ही उसकी बात को इग्नोर किया.
“अछ्छा,...ओके..”
“हा काव्या..मुझे तो फूलो को सूंघना पसंद हैं. मैं तो उसको चाटता भी हूँ कभी कभी..” अपने भद्दे होठो पे अपनी जुबान फिरते उसने काव्या की बघलो की तरफ देखके बड़े ही कामुक अंदाज़ में ये बोल दिया.
काव्या उसके हर बात को इगनोर करके बस अपने घर की और देख रही थी. तभी उसने कहा ,”अच्छा ये लो पैसे”
उसने अपनी पर्स से २००० की नोट निकाल के उसको दे दी. उसको देख के सत्तू बोला “अरे बीबीजी..हमारे पास इतना पैसा कहा होगा..इसका छूटटा नहीं हैं हमरे पास.”
“ऊप्स..मेरे पास तो यही सब नोट हैं. बाकि १०-२० के हैं थोड़े ”
बस सुलेमान को यही चांस मिल गया उसने झट से कहा,
“अरे काव्या तुम क्यों सोच रही हो इतना..पैसे रहने दो हम ले लेगे तुमसे बाद में. सलमा की इलाज के लिए आना ही हैं न तुमको तब दे देना..जो देना हैं वो”
“अरे हाँ...थैंक्स ..मैं भूल ही गयी थी”, काव्या ने एक मुस्कान के साथ जवाब दिया.
एक बार फिर से काव्या के बदन पर नज़र फिराते हुए सुलेमान के बड़े कामुक स्वर में धीरे से कहा,
“ऐसे भूल मत जाना बीबीजी..हमरे पैसे हैं आप के पास..सूद के साथ वापस लेंगे फिर तो..और हिसाब के पक्के हैं हम आप से तो ले कर रहेंगे“
और इस बात पे सब हसने लगे. काव्या भी उन सब के साथ ताल में ताल मिला कर हस गयी.
“ओके बाबा..ओके..मैं दूंगी तुमको पैसे”, हस्ते हुए अपनी बैग ले कर वो गेट के अंदर आ गयी.
“बाय..सी यू,....” सबको बाय बोलते हुए वो जब मूडी तब वो नज़ारा सच में देखने लायक था. जैसे कोई रानी अपने महल में जा रही हो. मटक मटक के उसका पिचवाडा घुमे जा रहा था. दोनों कलूटे आखरी मंजील तक उसके पिछवाड़े को निहारते रहे.
फिर एक बार काव्या ने घर के मैं दरवाजे के पास जाके वापस मुडके अपनी हाथो से सबको बाय बोला. यहाँ दोनों कलूटे भी जोर से बोल पड़े ”मिलना बिबीजी..हम आयेंगे वापस..” और काव्या ने दरवाजे की बेल बजायी और अपने घर के अन्दर प्रवेश किया.
जैसे ही वो अन्दर गयी यहाँ सुलेमान सत्तू से बोल पड़ा,
” मादरचोद..इस डोक्टोरनी ने आग लगा दी हैं मेरे लवडे में”
सत्तू बोला” बात तो ठीक हैं गुरु, मेरा भी हाल वैसा ही हैं जैसा तुम्हारा..”
“कुछ भी बोल माल हाथ से नहीं जाने देना हैं सत्तू...”
“वो बात तो सही हैं गुरु पर अपनी तो हालत अभी भी ख़राब हो गयी हैं,.इसको ठंडा करना होगा..”
“तो फिर सोच क्या रहा हैं गांडू..भगा ऑटो अपने झोपडी की तरफ”
और दोनों कलूटे हस कर ऑटो में बैठ गए. ऑटो चालू करके सत्तू ने उसको खेतो की और मोड़ा सलमा को समझ में देरी नहीं लगी के ने उसको वक़्त ने फिर से एक घंटा पिच्छे की और मोड़ दीया था.
जैसे ही काव्या ने डोर बेल बजाई नानी ने दरवाजा खोला. वो पहले अपनी नानी से मिली. उनके पैर छुए. और उनको गले लगा लिया. अपनी पोती को देख नानी बड़ी खुश हुयी. काव्या जब १० साल की थी तब वह आई थी. तब उसने खेल खेल के पूरा घर सर पे रख दिया था. नानी को वो दिन याद आये. लेकिन अब उसको क्या पता के २८ साल की काव्या अब जो खेल यहाँ खेलने वाली हैं शायद उससे पूरा समा, सर चढ़ना हैं. काव्या ने नानी को एक जोर से ज़प्पी दी.
“जुग जुग जियो बेटी. बड़ी लेट आई हो गाडी सब खैरियत से मिली न?”
“ओह नानी वो सब ठीक मिला. पता हैं यहाँ के लोग भी काफी अच्छे हैं, एक औटोवाला था उसने यहाँ तक लाके छोड़ा मुझे”
“हाँ बेटी वो तो हैं, इसीलिए मुझे गाँव से शहर आने का कभि मन नहीं करता. तेऋ मा हर बार बोलती हैं पर मैं नहीं सुनती उसकी कभी...हा हा ” और नानी हसने लगी.
“सच नानी. कितनी ताज़ी हवा हैं यहाँ. कितने अच्छे लोग हैं यहाँ. अब तो मैं फुल आराम करुँगी देखो”
“अरे क्यों नहीं बेटी जब तक रहो तब तक सिर्फ आराम करो कोई बात लगे तो बता देना. तेरे नाना की आत्मा को शान्ति मिलेगी आज कितने दिन के बाद पोती घर आई हैं”
दोनों हॉल में लगी हुयी किशोरीलाल के बड़े तस्वीर के सामने आ गए.
“सच नानी, नाना जी की बहुत याद आती हैं मुझे भी.”
“हा बेटी. पर सब उसके हाथ में हैं. हम क्या कर सकते हैं.”
और सब तरफ एक दम शांति छा गयी. तभी खिड़की से ठंडी हवा का झोका आया और नानाजी के तस्वीर से एक फूल निचे गिर गया.
“अरे बीटा लो. नाना भी खुश हुए देखो प्रकृति का सन्देश”
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सच में भारत देश की महिमा भी काफी अलग हैं. यहाँ लोग एकदूसरे के साथ प्रकृति, जानवर और चीजो को भी जोड़ लेते हैं. कितना एक हैं हम सब फिर भी लड़ते रहते हैं. प्रकृति तो अच्छी हैं पर मानव बदल गया हैं.
वो फूल ओने हाथो से उठाकर के अपनी पोती की तरफ देख कर नानी ने कहा, “जाओ काव्या, तुम आराम करो. थक गयी होगी. फिर शाम नजमा आएगी तब खाना खा लेते हैं”
“ओह सच नानी .. नजमा फूफा अभी भी हैं यहाँ “
“हां बेटी वो बेचारी कहा जायगी और अब ऐसे लोग मिलते भी नहीं “काव्या ने नानी को एक जोर की झप्पी दे दी और सीधे अपने रूम की तरफ निकल पड़ी.
“कमरा याद हैं न बेटी”
“हा दादी मैं कैसे भूलूंगी कितना खेलती थी मैं वहां बचपन में. आप आराम करो मैं खुद जाती हु”
“ओके बेटी. कुछ लगे तो आवाज दे न. घर में नौकर हैं मैं भी हैं वो नजमा का बेटा हैं आने वाला था शायद उसने साफ़ करके राखी होगी तुम्हारी खोली”
काव्या सीडिया चढ़ते हुए बोली “ओके नानी.. आप फ़िक्र मत करो मैं देखती हूँ”
उसका घर सबसे पुराना और बड़ा था उस गाँव में. उसके नाना जी को सब पहचानते थे. बड़ा रुतबा था उनका. पर उनके गुज़र जाने के बाद मकान सुना हो गया. अब वह सिर्फ नानी और नौकरानी नजमाँ और उसका बेटा रहते थे. नजमाँ एक पुराणी नौकरानी थी वो काव्या को बचपन से जानती थी.
जब काव्या २ साल की थी तबसे वो वह काम करती थी. वैसे तो नजमा पे काव्या के नाना का बहुत सारे उपकार थे. उसका पति शराब में गिरा हुआ था और वो किसी औरत के साथ भाग गया.. तबसे वो वापस नहीं आया था. उसके पति को एक बेटा था रफ़ीक. फिर उसीने उसको पला पोसा अपने बेटे की तरह रखा. उसके बाद यही सब वो काम कर लेती थी. कहा जाता हैं के वो जवानी में बहुत भरी हरी भरी थी. और रफ़ीक के बाप के भाग जाने के बाद काव्या के नाना ने भी उसको चोदा था. शायद उसी काम के लिए उन्होंने उसको काम पे रख लिया.
काव्या को वो अपने हाथो से खाना खिलाती थी, नेहलाती थी और सुलाया करती थी. अब वो ४२ साल की हो चुकी थी. पर आज भी वो गरम थी. उसका बदन भरा हुवा था. आज भी वो उसके पडोसी रहीम चाचा से चुदवाया करती हैं. रहीम चाचा जो ६० साल का अधेड़ बुजुर्ग आदमी हैं. वो उसके पड़ोस में ही एक जुग्गी में रहता था. रफ़ीक के साथ उसकी बहुत जमती थी. बुढा बड़ा ठरकी था. उसने नजमा को बेटी बेटी बोल के एक रात उसपे हाथ मार ही दिया. दिखने में तो वो ६० साल का था पर चुदाई करते टाइम उसने ४२ साल की विधवा नजमा की नस नस तोड़ दी थी.
उस रात के बाद नजमा उससे हफ्ते में एक बार तो चुदवा ही लेती थी. जब भी रफ़ीक दोस्तों के साथ रात-रात बाहर रहता यहाँ उसकी सौतेली माँ अपना बदन रहीम चाचा से सेक लेती थी. रहीम चाचा की भी बीवी नहीं थी. दोनों का हाल एक जैसा ही था. वो शहर में ब्रा-पेंटी बेचने का धंदा करता था. उसका मालिक उसको इस काम के बदले छोटी मोठी रकम देता था. उससे उसका गुज़ारा चल जाता था. देसी शराब और मुर्गी खाके सोना और अपने दमदार लंड से नजमा की कस कर चुदाई करना जैसा उसके जीवन का एक अंग हो गया था.
दादी से मुलाकात करके काव्या अपने रूम में चली गयी. वो बहुत सालो बाद वह आई थी. रूम साफ़ तो नहीं थी. शायद रफ़ीक ने वो साफ़ नहीं की थी. उसने काव्या को बचपन में देखा था. वो काव्या से ८ साल छोटा था. काव्या उसको ज़र्ता पहचानती थी पर वो भी अब भूल गयी थी. खैर अपनी बैग बीएड पे डालके उसने रूम की विंडो खोली. एक बड़ी विंडो थी. जिसको खोलते ही सूरज की रौशनी अन्दर आ गयी और गाँव की ताज़ी हवा के साथ. और काव्या ने चैन की एक लम्बी आह भरी.
वो बहुत सालो बाद वह आई थी. रूम साफ़ तो नहीं थी. शायद रफ़ीक ने वो साफ़ नहीं की थी. उसने काव्या को बचपन में देखा था. वो काव्या से ८ साल छोटा था. काव्या उसको जादा पहचानती थी पर वो भी अब भूल गयी थी. रफीक के बारे में बताया जाए तो, रफ़ीक एक २० साल का युवक था. उसको पता था के उसकी माँ किसी गैर मर्द से चुद्वाती हैं. उसने कही बार उसके कच्छी पे सफ़ेद दाग देखे थे. और जब वो छोटा था तबसे उसको भनक लगी थी के रात में उसकी माँ कहराति क्यों हैं. इन सभी बातो से उसके मन में बचपन से ही सेक्स से भरी बाते बैठ गयी थी. वो बहुत उसमे रूचि लेता था.
उसके मवाली दोस्त उसको गन्दी गन्दी चुदाई की किताबे देते थे. पर वो था बड़ा शर्मीला वो उनके सामने उसको देखता भी नहीं था. पर उसको खुद पता नहीं चला कब वो उनको पढके अपनि मूठ मारने लगा था. रफ़ीक का लंड भी बड़ा मजेदर था. ७ इंच का एकदम कोरा लंड था उसका. वो हर बार फिल्मी किताबे देखता था उसमे सुन्दर अभिनेत्रिओं के फोटो देखके अपनी मुठ मारता था. उसने कही बार ब्लू फिल्मे भी देखि थी. इन सब से वो एकदम मर्द बन गया था. ये उसे तब पता चला जब उसका लंड रात में अपनी माँ के गांड को देखे फूलने लगा था.भले ही नजमाँ की वो सौतेली संतान थी पर सलमा उसका ख्याल बहुत रखती थी.
बचपन से नजमा उसको अपने साथ ही रखके सब काम करती थी जैसे खाना पकाना, कपडे धोना, नहाना, सोना. बात तो इतनी ज्यादा थी के आज भी वो रफ़ीक को एक बच्चे की तरह समझती थी. आज भी रफ़ीक अपनी हरी भरी माँ को अगर मन चाहे तो उसके ३८ के बड़े बड़े मम्मो को चुसकर सोता था. और वो भी उसको बच्चे की तरह पिलाती थी. शायद उसको वो बच्चा ही लगता था पर फर्क था के रफ़ीक अब जरा बड़ा हो गया था और वो उसपे ज्यादा जोर लगाया करता था.
मर्द सम्भोग में मादी पे हावी हो ही जाता हैं. वो उसको भोगना चाहता हैं. भले ही आधुनिक युग में नारी को पूर्ण रूप से भोग विलास में किरदार निभाये दिखाते हैं फिर भी अंतिम सत्य यही हैं के सौंदर्य और नाजुकता नारी का प्रतिक हैं. और मर्द उसका भूका. ये नियम से रफीक भला कहा बचने वाला था. अब रात में सोते वक़्त रफ़ीक के अन्दर का मर्द उसको ललकार रहा था. दिन भर दिन उसके हरकते बढती जा रही थी. शायद उसको वो नहीं समझ रहा था पर नजमा भले भाति सब समझ रही थी. उसकी नज़रे नजमा के मम्मो से हटकर अब उसके साडी के अन्दर जाने लगी थी. और नजमा भी उस बात को अच्छी खासी जान चुकी थी. रात में रफ़ीक कभी उसको चिपक के सोता था तो अपना हाथ उसके साडी के अन्दर डालने की कोशिश करता था पर वो उसके हातो को भिन्च्के अपने सिने से लगा लेती थी. और उसको सुलाने के सब उपाय करती थी. बिना बाप के और गरीबी की वजह से उसके कदम कही बहक न जाये इसलिए उसको आज भी वो बच्चे की तरह संभालती थी. उसके शादी तक उसको कही गलत लत न लगे इसकी वो पूरी कोशिश करती थी. सौतेली संतान को इतना प्यार देने वाली नज्म को बचपन की तरह अब उसको सुलाना इतना आसान नहीं रह गया था.
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यहाँ काव्या अपने रूम की खिड़की खोलती हैं. बाहर की ताज़ी ताज़ी हवा से उसके रेशम जैसे बाल उड़ने लगते हैं. उसको बहुत सुकून का एहसास होता हैं. उसके रूम में एयर कन्दिश्नर था पर उसको उसकी ज़रूरत ही नहीं लगी. उसने चारो और नज़र दौड़ाई उसको सब तरफ बस खेत और खली सडके ही नज़र आये. उसका घर उस इलाके में बहुत शांत और सुनसान जगह पे था और मुश्किल से १ या २ मकान थोड़ी दुरी पे होगे. उसने एक गहरी सांस ली उसकी नज़र ठीक एक जगह गयी. उसके घर के ठीक सामने कुछ दुरी पे कुछ जुगिया थी. शायद वो मजदूर लोगो के लिए बनायीं गयी थी . वह पे कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा था. पर फ़िलहाल वह काम बंद था. सो उस इलाके में पूरा वीराना भरा पड़ा था.
खिड़की वैसे ही खुली छोडके वो वापस अपने बेड की तरफ चल दी. उसके बेड के सामने एक बड़ा शीशा था. और उसके बाजू में उसका वार्डोब. शीशे के ठीक सामने ही रूम का दरवाज़ा था. दरवाजे से कोई भी शीशे में से अन्दर का झांक सके ऐसी कुछ बनावट थी रूम की. खैर काव्या ने अपने आप को शीशे में निहारा वो इतनी सुन्दर थी के उस वक़्त भी उसका बदन गजब ढा रह था. जाने क्यूँ उसके मन में अचानक ऑटो का सीन आ गया और सुलेमान का लंड ... और अचानक से खिड़की से आती हुई ठंडी हवा के साथ काव्या के होठों पे एक हसी झलक गयी.
“हा..हा...पागल कही का “काव्य उस समय को याद करके खुदे बड बड़ाई. और शीशी में देख के शर्मा गयी.
वो उठी अपने बाल सवारे. दिन भर की थकान से वो थक गयी थी. उसने अपना बैग बेड पे ही डाल दिया और उसमे से एक तोवेल निकाला और ब्रा प्यांति निकाली. उसकी इम्पोर्टेड ब्रा और प्यान्ति उसके पति ने उसको गिफ्ट दी थी. उसने अपनी शिफोन की साडी निकाल के निचे फेकी और अपना ब्लाउज निकाल के बाजु कुर्सी पे दाल दिया. क्या नज़ारा था, ब्रा और पेटीकोट में एक राजसी महिला खड़ी थी. ठीक वैसे ही वो बेड पे बैठती हैं.
उसको मोबाइल देख रमण की याद आई. उसने मोबाइल उठाया और रमण का नंबर डायल किया.
काव्या: “हेलो..जाणू”
रमण: “ओह..ही..डिअर.कहा हो पहुच गयी?”
काव्या: “हा..जस्ट..नानी से मिली और तुम्हारी याद आई..”
अपने ब्रा की straps को सीधा करते हुए वो रमण से बात कर रही थी.
रमण: “ओह हनी आई मिस यू टू”
काव्या: “मुझे बहुत मनन कर रहा हैं तुमसे बात करने का..जानू”
रमण: “ओह डिअर..अभी नहीं मैं मीटिंग में हूँ. मैं शाम में फ़ोन लगाता हु”
काव्या: “जाओ तुमको मेरे लिए हमेशा वक़्त ही नहीं रहता..जाओ मैं नहीं बात करती”
रमण: “ओह डिअर वेट“
और गुस्से से काव्या फ़ोन कट कर देती हैं. रमण हमेशा अपने काम में बीजी रहने से उसको वक़्त नहीं दे पाता. सो उसकी कमी अब काव्या को बहुत खल रही थी. उसने गुस्से से मोबाइल लिया और कुछ चाट निकाला. उसमे कुछ फोटोस और चाट वो पढ़ते बैठी. अपनी ब्रांडेड ब्रा और पेतिकोट में बेड पे बैठी काव्या को, मोबाइल से पुराणी यादे पढ़ते पढ़ते और ठंडी ठंडी खिड़की से आती हुयी हवा से कब आँख लग गयी समझा ही नहीं. और वो वही नींद के मारे ढेर हो गयी.
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आह,,,याह फ़क मी...उम्म्म्म..”
यहा नजमा का सौतेला बेटा रफीक अपने दोस्त बीजू के घर टीवी पे पोर्न देखते बैठा था. उसमे एक जवान नौकर अपने मालकिन को चोदते हुए सीन चल रहा था. जिसमे मालकिन बड़ी उछाल उछाल के नौकर का लंड अपने योनी में ले रही हैं.
“आह...साले रफीक..क्या माल हैं रे..ऐसा मिले न मैं तो दिन रात चोदु..” आवारा बीजू रफीक से बोला.
रफीक थोडा शर्मीला किस्म का लड़का रहने से ज्यादा खुलके बात नहीं करता था. बड़ी एकाग्रता से वो हर एक सीन देखे जा रहा था. उसका जवान लंड वो सब देख के तम्बु बन गया था. बीजू जहा एक आवारा लड़का था. पढ़ाई कम और मस्ती जादा करना उसको पसंद था. न जाने कैसे रफीक उसके चक्कर में गिर गया. वो उसको अलग अलग सेक्स की किताबे, फिल्मे देखने देता था. उसके पास कही पोर्न फिल्मो की CD और किताबे थी. उसकी PHD उसमे ही शायद उसको करनी थी. दोनों की इम्तेहान १ महिने पे लटकी थी पर सब भूलकर दोनों नवाबो की तरह पोर्न देखते बैठे थे.
बीजू अपना लंड बाहर निकाल के उसे मलते हुए बोला,” रफीक. लाइफ हो तो ऐसी देख. रोज सिर्फ आराम हो और चुदाई को नए नये माल”
रफीक थोडा शर्मीला था उसने कच्छे के अन्दर ही अपना लंड मलते हुए चुपचाप टीवी पे नज़रे रखी.
“अच्छा रफीक, साले तू तो तेरा लंड छुपाके रख बस. मैंने तो इसको बहुतो को दिखाया हैं.”
“अच्छा किसको?” रफीक ने बड़ी विलोभनीय अंदाज़ में पुछा.
“अपने क्लास की लडकि हैं देख वो माल मीनू, उसकी छोटी बहन मंजू परसों दोपहर खेत में घूम रही थी. मैंने उसको लपक लिया”
“फेक मत बीजू..कुछ भी”
“अबे साले, तेरे जैसा समझ रहा क्या? सुन..उसका हाथ मरोड़ के उसको वही मसल दिया”
“फिर..आगे ? क्या किया”
“आगे उसके आम दबाये पर साली मेरा नंगा लंड देखके भाग गयी”
“अबे भागे गे ही न, वो तो दसवी कक्षा में हैं सिर्फ”
“माल हैं माल..कैसे आम हैं साली के .. दबा के देख गांडू फिर बोल मीनू से भी आगे हैं“
“तुझे क्या काम हैं बे दूसरा?”
काम से रफीक एकदम चौक गया. उसको याद आया उसको आज काव्या का कमरा साफ़ रखना था. जो वो भूल गया था. अब उसको पक्क्का लगने लगा आज तो गाली पडनी हैं. बुढहीया भी और उसकी मा , दोनों तरफ से. वो अचानक से उठ के बाहर जाने लगा.
“अबे डरपोक..कहा भाग रहा ? उसका बाप आया क्या?”
“अबे नहीं..मुझे काम याद आ गया वो करने जा रह हु”
“कौनसा वो तेरी बुध्हिया मालकिन का काम या तेरी मस्त मा का काम”
“देख बीजू. मा के बारे में ऐसा वैसा मत बोल मैंने पहले ही कहा हैं तुझसे “
“अबे साले, तारीफ़ की और क्या किया ? सुना हैं तेरा पडोसी वो बुढह रफीक बड़ा तारीफ़ करता हैं तेरे मा की. मैंने की तो क्या हुवा बे हरामी “
“ देख बीजू बस हो गया. मुझे जाना हैं इसलिए जाने दे रहा हु”
“ अबे मर कमीने..गांड मरवा अपनी मालकिन से “
रफीक सब भुला के अपनी साइकिल पे काव्या के घर भाग पड़ा. साइकिल चलाने में मशहूर आज उसको किसि फरारी के जैसे भगा रहा था. सर पे टोपी, एक शर्ट और गाओ वाला कछा पहन के वो किसी सुपरमैन जैसा साइकिल भगा रहा था. गाँव में वो वैसा ही रहता था. २० साल का होकर भी उसके कछे की आदत नहीं गयी थी. जाने कितनी बार गाँव की लडकिया उसके जवान लंड को घुर के आहे भर लेती. नदी किनारे जब वो नहाने जाता तब उसका जवान लंड देख कितनी औरते अपनी चुचिया मसल लेती. नजमा ने उसको उसको बच्चे की परवरिश की थी उसका असर अभी भी चल रहा था. पर हर कोई उसको उस नज़र से थोड़ी देखेगा. अपना ताना हुआ लंड लेकर वो ऐसे भाग रहा था जैसे कोई रेस लगी हो.
कैसे तो करके वो काव्या के घर पहुच गया. उसने पिच्छे के दरवाजे से अन्दर की और छलाँ मारी. उसको घर का कोना कोना पता था. उसको यह भी मालूम था के बुधिया अब सो गयी होगी. उसको बस अपना काम करके चुप चाप निकलना था. वो घर की छत पे आ गया. और वह से सीधे घर के अन्दर. बात जैसे सोची थी वैसे ही निकली. काव्या की नानी अपने रूम में सो गयी थी.
“हम्म...चलो अब आराम से खोली साफ़ कर लेता हूँ”
उसने थोडा रुक के सासे ली.उसकी धड़कन तेज़ भाग रही थी. २० मिनट से बिना रुके वो साइकिल भगा जो रहा था. घडी में देखा तो शाम के ४ बजे थे. उसने सोचा अब जल्दी से रूम साफ़ करके निकल जाता हु. शाम में नजमा आएगी तब तक निकलना होगा. शायद काव्या आइ नहीं अभी तक ऐसा उसने सोचा. सो बड़े सुकून से वो अब चल रहा था.
हॉल में एक सेब उठा के उसको खाते खाते अगले ही पल उसने झाड़ू हाथ में लिया और काव्या की रूम की तरफ अपने कदम बढ़ाये. खोली का दरवाजा जो पहले ही खुला था उसमे उसने प्रवेश किया. जवान शर्मीला रफीक के किस्मत के दरवाजा आज खुला होने वाला था. शायद वो उसकी पोर्न फिल्म को भी भूल जाए
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“उईईईइ अम्म्मी......मर गयी.......”
सलमा के मूह से चिख निकली. यहाँ सुलेमान अपना मुसल तना हुआ लंड सलमा के योनी में घुसेडता जा रहा था. जो सर सर करके साप के भांति उसके बिल में घुसे जा रहा था. सलमा को सुलेमान और सत्तु खेतो में सुलेमान के झोपडी में लाये हुए थे. काव्या के बंगले से ऑटो मोड़ उन्होंने सीधे वही अपना डेरा जमाया. जैसे ही ऑटो झोपडी के पास रुका. ऑटो में से सलमा को बाहों में उठाके दोनों कलुटे उसको अन्दर की खाट पे पटक के चालू हो गए. पलक झपकते ही सलमा के कमसिन योनी में सुलेमान ने अपना तना हुवा लंड घुसा दिया था. एक घंटे पहेले की चुदाई फिर से शुरू हो गयी थी. ये इतना तेज़ हुआ के सलमा को समझने का मौका ही नहीं मिला.
“आः....सलमा... रानी... इतना क्यों चीख रही हो?? अब तो इसकी आदत कर लो जान”
सलमा की चूत ने अपना मुसल लंड धसाते हुए सुलेमान सलमा के बदन पर टूट पड़ा. उसकी चुन्चियों को मसलते हुए वो उसकी योनी में कोहराम मचा रहा था. बाजू में सत्तू मादरजाद भी अपनि पतलून निकल के नंगा खड़ा हो गया. उसने अपना लंड हाथे में हिलाते कहा,
”अरे सुलेमान भाई..जरा तनिक जगह दियो..हमका भी सलमा के साथ खेलन खेलन हैं”
“अबे रुक..मादरचोद..पहले बाप को करने दे. पहले ही उस रंडी डोक्टोरनी ने लवडे में आग लगा दी हैं. साला कब से तना पड़ा हैं. इसको चूत खाने दे बहनचोद..आह...”
काव्या को अपने आँखों के सामने लाके सपाक बोलके सुलेमान ने अपना लंड पूरा का पूरा सलमा के योनी में बड़ी तेज़ी से और निर्दयता से भीच दिया.
“ आआआआआआआआ...... छोड...मार दिया कमीने.........”
सलमा के मूह से फिर से एक जोरदार आह निकली. उसकी चीख इतनी दमदार थी के सत्तू के कानो में भूचाल आ गया. आर उसके हाथ उसके लंड से सीधे उसके कान पे जा रुके.
“अबे साली, कान फाड़ देगी क्या? रुक, तेरा इलाज करना पड़ेगा..”
सत्तू ने यहाँ वह देखा. और नन्गा मादरजाद किसी रेडे के माफिक ज़मीन पे बैठ गया. खाट के नीचे रखी हुयि एक देसी शराब की बोतल उसको दिख गयी. उसने अपना हाथ खाट के निचे डाल दिया और वो बोतल निकाली. उसमे से थोड़ी शराब निकाल के बाजु पड़े एक गिलास में दाल दी. एक घूँट में ही उसने वो गिलास गटक लिया.
“आह....मजा आ गया ..तनिक अब अच्छा लग रहा मादरचोद..”
अपने गंदे मूह से सलमा की और देख के उसने कहा,
“हम्म..आई हाई..क्या मस्त ले गयी अन्दर तू तो ...चीलाती बहुत हो सलमा तनिक..पियोगी? मजा आएगा तुझे भी...”
और शराब गिलास में डालकर वो सलमा के पास आया. उसने वो कडवी शराब सलमा के मूह को लगाके बोला,
“इससे पियो सलमा...चिल्लाओगी नहीं..तनिक मजा लोगी“....
सलमा ने मूह दूसरी तरफ गुस्से से फेर लिया.
इसपे सुलेमान बोला ,“अबे चूतिये, ये ऐसे नहीं मानेगी..इसका इलाज हैं देख अब..”
सुलेमान ने उसकी नाक दबाई और अपना लंड एकदम से पूरा बाहर निकल के ज़पाक से एक और बार अन्दर चूत में भीच दिया. किसी सुनामी के प्रति उसने सलमा के चूत में हमला बोल दिया. वो दृश्य भी अजीब था ऐसा जैसे काऊबॉय की तरह सुलेमान सलमा को घोड़ी की तरह नचा रहा हो.
ना चाहते हुए भी सलमा का मूह खुल गया और तुरंत बाद सत्तू ने वो गिलास उसके मूह पे लगा दिया. कडवी देसी शराब उसके गले के अन्दर पूरी की पूरी उतर गयी. जैसे ही सुलेमान ने सलमा का नाक छोड़ा, सलमा ने धस करके अपनि सांस छोड़ी. और नीचे मूह में बची थोड़ी बहुत शराब थूक दी. दोनों कलूटे राक्षस की तरह हंस पड़े. देसी शराब का असर अब सलमा पर जो पड़ने वाला था. झोपडी में मानो शराब और शबाब का मौसम चालू हो गया. और दोनों कलूटे उसमे मन चाहे डूबकी लगा रहे थे.
इधर रफीक बड़े आराम से काव्या के कमरे की और बढा जा रह था. वो जैसे ही कमरे के चौकट पे आया..
उसके कच्छे में कुछ वायब्रेट हुआ. शायद उसका मोबाइल बज रहा था. उसने तुरंत कच्छे की जेब से वो अपना पुराना मोबाइल फ़ोन निकला तो देखा तो उसके दोस्त बीजू का फ़ोन था. वो कमरे से थोडा दूर गया और फ़ोन उठाके बोला:
रफीक: हां बोल बीजू क्या हैं?
बीजू: अबे कमीने कहा पर हैं?
रफीक: मैं मालकिन के पास हु काम पे क्यों फ़ोन कर के सता रहा हैं बे?
बीजू: अबे गांडू तू गांड मरवा वही. मैंने इसके लिए फ़ोन किया था तुझे कुछ बताना था..
रफीक: क्या हैं जल्दी बता दिमाग मत ख़राब कर पहले ही काम बहुत हैं
बीजू: अबे डिब्बे सुन..तेरी मा को अभी मैं रहीम बुढ्ढे के साथ देखा दोनों बडी हंस हंस के बाते कर रहे थे. शायद आज कुछ हैं..
रफीक: देख बिजु मैंने पहले ही बोला हैं मा के बाते में कुछ मत बोला कर. इसलिए फ़ोन किया क्या तूने
बीजू: अबे बीमार लंड तेरी मैं मदत कर रहा हु और तुम मुझे ही बोल रहा हैं.जा मा चुदा मुझे क्या? पर देखना आज तेरी मा रात में कैसे खिली खिली लगेगी,,हां,,
और उसने फ़ोन काट दिया. रफीक को उसके मा के बारे में कुछ सुनना ठीक नहीं लगता था. भले सौतेले थे दोनों, पर एक दुसरे के प्रति सम्मान की भावना रखे हुए थे. पर आज बीजू की बातो से उसको बहुत गुसा आया था उसने कुछ न कहते गुस्से से फ़ोन पटक दिया. और जेब में रख दिया. उसने कैसे तो खुदपे नियत्रण कर के झाड़ू उठा या और काव्य की खोली की और मुडा. नद्दान रफीक को नहीं पता था यह गुस्सा और अब जो उसको दिखने वाला था वो हकीकत उसको शायद बीजू की कामुक बातो पे गौर करने को मजबूर कर दे.
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बड़े आराम से रफीक काव्या के कमरे की तरफ बढ़ा. उसने जैसे ही कमरे में प्रवेश किया उसको एक अजीब सी गंध आ गयी. वो खुशबू थी काव्या के डियो और पाउडर की. उसने ज़िन्दगी में पहली बार ऐसी कड़क खुशबू ली थी. उसको वो इतनी पसंद आई के उसकी आँखे खुद बे खुद बंद हो गयी. और वो उस खुशबु में बहता चला गया. उसने उस खुशबू का पिछा लिया तो काव्या के ड्रेसिंग टेबल पे बड़े शीशे के सामने राखी हुई वो डियो की बोतल उसको दिख गयी. उसने वो हाथ में उठायी और नाक को लगा के सूंघी. जैसे ही वो बोतल के पास रखने गया उसकी नज़र शीशे पे चली गयी. उसने शीशे में देखा, तो उस नज़ारे के सामने उसकी वो खुशबू मानो कही दौड़ के चली गयी हो. उसके होश उड गए. आँखों पे अँधेरा छा गया. उसके हाथ पैर कापने लगे. और उसका मूह खुला का खुला ही रह गया.
सामने बेड पर एक योवन सुंदरी निद्रामय अवस्था में थी. उसके बाल बिखरे हुए थे, जो उसकी सुन्दरता को और निखार रहे थे. उसके चेहरे पे एकदम कामुक और सुकून के भाव देख कर जैसे किसीको भी ह्रदय से प्यार करने के और मन चाहा भोग भोगने के भाव एक ही समय पे आ जाये. और वो इन्सान पागल हो उसको पाने के लिए. अपने पेट के बल सोने के कारन उसकी गोरी दूध जैसी मखमली पीठ और विशाल उभरा हुआ सुडोल पिछवाडा उठकर दिख रहा था. गोरी गोरी पीठ पे उसकी ब्रा तो कहर मचा रही थी. गहरे नींद में होने कारन उसका पेटीकोट भी जांघो तक ऊपर उठ गया था. जिससे उसके ब्रांडेड प्यान्टी की झलक बाहर आ रही थी. चिकने गोर मुलायम पैर जैसे भोजन के लिए दावत दे रहे थे. उसकी सुन्दरता और उसका कामुक बदन देख के अच्छे अच्छो का मन डोल जाए. कोई अप्सरा निद्रा अवस्था में आज रफीक ने देख ली थी जिसके कारन २० साल का देहाती युवक होश के बाहर हो गया.
कुछ देर तक वैसे ही देखते रहने के बाद अचनक उसका ध्यान टूटा. उसका मोबाइल वायब्रेट हो रह था, उसने होश में आके फ़ोन देखा बीजू का कॉल देखकर उसने वो कॉल काट दिया. और मोबाइल अपने जेब में रख दिया.
जाने किस बात की उसमे ताकद आ गयी के हमेशा डरपोक किस्म का रफीक आज किसी योध्हा की तरह आगे बढ़ रहा था. उसको काव्या की खूबसूरती अपने तरफ खीच रही थी. और वो सम्मोहन की तरह उसके तरफ बढ़ते जा रहा था. उसका बदन तो डर के मारे काप रहा था पर उसका जवान कमसिन लंड ने उसपे दीमाक पे अपना ताबा कर रखा था. और उसकी गर्मी उसको मिल रही थी.
वो काव्या के ठीक सामने खड़ा हो गया. उसने गौर से अपनी नज़रे उसके सर से लेकर पाओ तक घुमाई. क्या लग रही थी वो. उसके मनन में डर और वासना दोनों हावी हो रहे थे. काव्या जैसी खुबसूरत और मादक महिला उसने सिर्फ फिल्मो में देखि थी. उसको वो पोर्न फिलम का सीन आँखों के सामने आया जिसमे विदेशी औरत अपने नौकर से उछाल उछाल के चुदवा लेती हैं.
उसके लंड ने झटका लिया. “आह”, उसके मूह से हलकी सिसक निकल गयी.
तुरंत उसने अपने मूह पे हाथ रख दिया और खुदको चुप किया. सन्नाटा पुरे खोली में छाया था. खिड़की से हवा की एक पहल अन्दर आई और सन्नाटे को थोडा कम कर के चली गयी. हवा से बदन को रहत तो मिली पर लंड को कहा कुछ हुआ. वो तो ललकार रह था. और रफिक पूरी तरह से उसके चुंगुल में बांध चूका था.
उसने यहाँ वह देखा. एक बार काव्य के चेहरे की और देखा जो घने रेशमी बालो में दबा हुआ था. सब तरफ सन्नाटा देख के उसकी हिमात उसने लंड ने बढ़ा दी. वो काव्य के नज्दिल सरका और बेड पे बैठ गया. काव्य के पैर उसकी तरफ थे. रफीक की नज़रे उसपे दौड़े जा रहे थे. पर साथ ही उसकी धड़कन जो राजधानी जैसे भाग रही थी. उसको डर भी था कही कोई देख न ले पर उत्सुकता भी थी के एक बार बस..दोनों बड़ी उल्ज़नो में फस रफीक अपने लंड की ही बात सुनता हैं और वो करने लगता हैं जिसका कुछ देर पहले शायद विचार भी उसने ना किया था.
यहाँ दूसरी तरफ सुलेमान कस कस के सलमा को चोदे जा रहा था. १५ मीनट हुए वो सलमा की चूत में अपने लंड को पेले हुए था. और देसी शराब का नशे का असर अब उसपे भी होने लगा.
“आह...मेरी रानी...रंडी ...चुदवा ले.....”
सुलेमान की इस गाली का जवाब भोली भली सलमा ने ऐसा दिया के दोनों कलूटो के पैरो निचे ज़मीन खिसक गयी.
“ हां.. भडवे..चोद..उम्...जितना चाहता हैं चोद..आन्न्न....तू तो, तेरी, आह....सगी बहन को भी न छोड़े... उम्..मैं तो भांजी हु...भडवे..आह..” दोनों मादरजाद उसकी ये बाते सुनके चौक तो गए पर जोर से हसने लगे.
सत्तू बोला, “ अरे वा... सलमा बोला था न शराब पीकर देखो मजा आएगा तुमको भी...देखी हमरी राय सुनने का फायदा..”
सुलेमान अपना लंड सलमा की चूत वैसे ही मार मार ते बोला, “ अबे बहनचोद...आह...साले शराब नहीं,, ये मेरे लंड का कमाल हैं...आह....मेरी सलमा...चुद...”
“बात तो सही हैं गुरु..हमें भी अपना हिस्सा खाने दो .कबसे अकेले ही खा रहे हो...”
सत्तू को अपने तरफ आते देख सलमा भी नशे से चूर बोल पड़ी, ““अबे भडवे...रुक..आआः....रुक तू ज़रा..इस कमीने का... होने दे..अम्मी....”
सलमा की इस बात पे और दोनों जोर से हंस पड़े. सुलेमान आज जादा ही जोश में चुदाई कर रहा था शायद उसको सलमा की बाते सुनके और नशा चढ़ रहा था. २० मिनट होने को थे, उसका लंड हैं के झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था. सलमा की शराब उसको इस कसी हुयी चुदाई का मजा लेना सिखा रही थी जिसका वो खुद होक मजा ले रही थी.
सच में शराब कैसी बुरी बला हैं जो मर्द तो मर्द , औरत को भी अपने जैसा बना देती हैं. भोली सलमा भी शराब के नशे धुत अनाब शनाब बके जा रही थी. भले ही उसने उनके तौर तरीको में ही पलटवार किया था पर ये उसका आत्मविशवास नहीं था बल्कि शराब का नशा बोल रहा था. पर क्या सिर्फ शराब ही यह साहस दे सकती ?हैं ऐसा नहीं. क्योंकि रफीक बिना शराब के साहस करने जा रहा था. कुछ भी हो दोष किसका भी हो, यह अंतिम सत्य हैं के मनुष्य भोग और नशे में खुदको भी भूल जाता हैं इसका सलमा और रफीक प्रत्यक्ष उदहारण हैं. बस फर्क था एक तरफ एक कमसिन औरत थी और एकतरफ नव युवक.
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यहाँ सुलेमान धक्के पे धक्के मार रहा था. २० मिनट होने को थे लेकिन वो तो झड़ने का नाम नहीं ले रहा था. चुदाई का जैसे कोई भूत उसपे सवार हो गया था. ये सब देख सत्तु नशे में धूत, बाजु में ही खुदका लंड हिलाते हुए खड़ा का खड़ा देख रहा था.
“गुरु...बस भी करो...हमका भी खाने दो माल...”
सुलेमान अपने धक्के चालू रखते हुए वैसे ही हाफ्ते हाफ्ते बोला, ”अबे मादरचोद...रुक ..आज साला मन नहीं कर रहा रुकने का..आआह्ह...आज खाने दे..डोक्टोरनी ने आग लगा दी हैं...आह..”
उसके मूह से डोक्टोरनी का नाम सुनते ही सलमा को थोडा समझने लगा. और उसका शक यकीन में बदल गया. दोनों कलूटो ने क्यों इतनी दरियादिली दिखाई थी काव्या के प्रति इसका राज उसको पता चल गया. ये सब बाते जानकार नशे में धूत सलमा गुस्से से आग बबूला हो गयी और उसने चुदते-चुदते ही सुलेमान की और देख बोला,
” आः....आ...कुत्ते..इसलिए ये सब चल रहा हैं...आःह्ह...तो बीबी जी की ले न...मेरी क्यों ले रहा हैं..आह...अम्मी......”
२० मिनट से लगातार धक्के खाती हुयी सलमा अटक अटक के बड़े कामुक अंदाज़ में गुस्से से सब बोल रही थी. पर इसका परिणाम होता उल्टा. उसकी ऐसी बाते सुनके असलम को और ज्यादा जोर आता. वो हर आगे का धक्का पिछेवाले से जोर से लगाता. और उसका हिसाब बराबर करता. उसने अपने धक्को की रफ़्तार बधाई और बोला,
“आह्ह,,,ये ले मेरी सलमा रानी...अब उस रंडी को भी चोदुंगा..पर पहले ..आः....तेरी चूत तो खाने दे..”
और एक जोर का धक्का लगाके उसने सलमा की चूत के कोने कोने में अपनी मौजूदगी दिखा दी. झोपडी में आहो की चीखों की आवाजे घूम रही थी. शराब की बदबू और शबाब की खुशबू से वो समा इतना मादक बन गया था के मत पूछो. सलमा भी अब खुद होके इन सब का मजा ले रही थी. उसको ये सब पसंद आने लग रहा था. जो नफरत उसको एक घंटे पहले आ रही थी अब वो नफरत वासना में परिवर्तित हो गयी थी. इसमें कारन सुलेमान था के काव्या थी ये बड़ी रोचक बात हैं. सुलेमान से हो रही चुदाई को देख उसको ये भी लगने लगा था के सुलेमान के इस रफ़्तार को रोकना हैं तो उसीको ही कुछ करना पड़ेगा.
झोपडी से ठीक उल्टा समा काव्या के रूम में था. एकदम सन्नाटा और ठंढी शीतल हवाओं से वह सब तरफ एक अलग ही रम्यता आई हुई थी. उस वक़्त अगर वह कोई चीज शोर कर रही थी तो वो थी रफीक के दिल की धड़कने. अपने धड़कने और कापते हाथो को संभाल के वो काव्या का रूप पूरी सयमता से निहार रहा था. उसकी पिंडलिया जांघो से लेकर पीठ तक की खूबसूरती उसके जवान लंड में उतर रही थी. पर ये सयमता का बाँध टूटने जा रहा था. उसके मूह में पानी तो आ रहा था लेकिन हाथ काप रहे थे.
उसने थोड़ी हिम्मत बढायी, चुपके से यहाँ वह देख वो काव्या के करीब गया. अपना एक हाथ उसने काव्या के पैर पे रखा. आह...क्या मुलायम पैर थे उसके. उसका हाथ थर थर काप रहा था. धड़कने इतनी तेज़ हो गयी थी के मानो वो दिल को चीर के बाहर आ जाये. काव्या के बदन की खुशबू उसको पागल बना रही थी और उकसाने का काम भी कर रही थी. उसने अपना हाथ वैसे ही उसके पिंडलियों पे थोड़ी देर के लिए रखा. और धीरे से उसके जांघो की तरफ उनका रूख मोड़ लिया.
थोडा आगे जाके वो थोडा और झुक गया. किसी सम्मोहन की तरह काव्या की जांघो को घूरता बैठा. काव्या की और से कोई हरकत ना देख उसकी हिम्मत और बढ़ी. और बड़े ही वीरता से उसने अपने दोनों हाथो से काव्या की जांघो को बहुत ही धीरे से पकड़ लिया. जसी उसने कोई किला जीत लिया हो. मुलायम, गोरी, दूध जैसे जाँघों को हाथ में लेते ही उसके लंड में बहुत ज्यादा तनाव आया गया. जीवन में पहली बार ऐसी रूप सुंदरी सामने देख और उसको छू कर उसकी हालत और ख़राब होने लगी जिसके कारण उसके मूह से सिसक निकल गयी.
”आह....”..
“आह....आह....सलमा...तेरी चूत की तो....आह....डोक्टोरनी.. आह...”
सुलेमान के धक्को को बर्दाश्त कर के सलमा भी अब चुदाई का भरपूर मजा ले रही थी. अचानक उसनके वो किया जो उन दोनों ने पहली बार देखा. उसने अपने दोनों पाँव उठा लिए और सुलेमान की पेट के ऊपर जकड दिये. सत्तू ये देखकर चौक गया. सलमा का ये रूप उसने कभी नहीं देखा था. सलमा वही नहीं रुकी तो उसने सुलेमान का सर अपने हाथो में भींच कर के उसको अपने सीने से रगड़ के रखा. इस कारन सुलेमान के लंड में तनाव आना शुरू हो गया. क्योंकि सलमा अपने चूत में खुद होकर उसका लंड निगल रही थी.
“चोद..भड़वे...चोद...मिटा दे अपनी भूक...आः.....”
सलमा की ये बाते और उसका रूप देख सत्तू हस पड़ा. अपने नशे में धूत वो सलमा के करीब आ के बोल पड़ा,
“भूक तो तुझे भी लगी हैं रानी... अब बर्दाश्त हमका भी नहीं हो रहा चल पकड़...”
और अपना खड़ा लंड वही उसके हाथ में दे दिया. सलमा ने कोई देरी ना करते उसका लंड अपने हाथ में पकड़ लिया और उसको आगे पिच्छे करना चालू कर दिया. दृश्य बहुत ही विचित्र बन गया था. बड़े कामुकता से सलमा उसका लंड भी मसल रही थी और सुलेमान का लंड जकड भी रही थी. उसकी इस हरकत से दोनों कलूटो को असीम आनंद की प्राप्ति हो रही थी. ऐसा लग रहा था मनो दो नर एक मादी को भोगने चले हो लेकिन असल में मादी ही नरो का भोग करने बैठ जाए. ठीक ऐसे विलोभनीय कामुक अंदाज़ में काम वासना का चल चित्र वह प्रतीत हो रहा था. दोनों तरफ नारी ही अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रही थी. वो थी उसकी सुन्दरता और कामुकता.
काव्या के जांघो से आती हुई खुशबू रफीक को पागल बना रही थी. वो उसको महसूस कर रहा था. उसको और ज्यादा करीब से वह मखमली जिस्म महसूस करना था. लेकिन उसको डर था कही काव्या जाग न जाए. उसकी संयमता की दाद देनी पड़ेगी. वो वह से उठ गया और काव्या के चेहरे की तरफ चला गया. एक बार उसने काव्या को थोडा सा कंधे से हिलाया, या मानो, सीर्फ हलकासा स्पर्श किया के कही वो अगर जागी हो तो समझ जाए.
किन्तु दिनभर की थकान से ये युवती गहरी नींद में इस कदर डूब गयी थी के उसको अब किसी हाल की परवाह नहीं थी. रफीक की हिम्मत इससे बढ़ गयी. उसने अपना रुख फिर से काव्या के बदन की और मोड़ दिया.
उसके गोरे मुलायम पीठ पे जैसे ही उसने हाथ रखा. उसके अन्दर जकडन आने लगी. वो पागल हो गया क्या करू क्या नहीं. काव्या की सुन्दरता की और उसने घुटने टेक दिए. नौजवान युवक ने अपने होठ काव्या के पीठ पे लेके टिका दिए. वो तो उसको बाहों में भरना चाहता था पर उसकी हिम्मत उतनी ज्यादा नहीं थी. उस समय वो काप रहा था पर साथ ही काव्या के बदन से आती हर मादक खुशबू सूंघने में वो मशगुल भी था.
तभी एक हवा का झोका किसी बिन बुलाये मेहमान के भाति खिड़की से आया और काव्या ने अपना शरीर नींद में ही थोडा हिलाया.रफीक को मानो दिन में तारे दिख गए हो. वो वही जम कर अकड गया. पल भर के लिए उसको लगा के काव्या जाग ही गयी. वो हिल भी नहीं सकता था. वैसे ही काव्या की पीठ पे वो चिपक के वो चीपका रहा. कुछ समय के लिए उसने अपनी साँसे तक रोक ली, पर काव्या तो गहरी नींद में थि बस ये हवा का झोका शायद उसको नींद में छेड़ने के लिए आया हो. कोई हलचल न देख राहत से रफीक ने अपनी रुकी हुयी गरम सांसे काव्या की पीठ पर ही छोड़ दी. पर काव्या जब हिली थी तब उसका पेट ऊपर की और आ गया और उसका गोरा मुलायम पेट साथ ही भरे भरे स्तन ब्रांडेड ब्रा में कैद रफीक की नजरो के सामने आ गए.
“आह....ले रंडी...आह....और ले...”
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यहाँ दूसरी और सुलेमान के पलंगतोड हमलो से सलमा की योनी में सिरहन आने लगी. थोड़ी देर बाद सुलेमान ने अपना लंड निकाला और उसकी चूत में सपाक बोलके ऐसा भींच दिया मानो कोई तलवार। उसकी चूत इतनी गीली हो गयी थी कि लंड उसकी चूत में जड़ तक समा गया। उसने जोर से सिसकारी भरी और सुलेमान को अपनी बांहों में जकड़ लिया। सुलेमान ने और तेजी से धक्के मारना चालू कर दिया। हर धक्के पर उसकी सिसकारियाँ तेज होती जा रही थी। इस लम्बी हुई चुदाई से एकदम से उसका बदन थरथराया और उसने कस कर सुलेमान की पीठ पर नाख़ून गाड दिए. सत्तू का लंड अपने एक हाथ में मसलते हुए उसने अपनी आँखे बहुत जोर लगाके मीटा दी और अपने होठ चबाके एक आह भरी...
“आह....अम्मी....मई तो गयी......”
यहाँ सलमा ने अपना पानी छोड़ दिया था. वो झड गयी थी. उसके बुर में से उसका काम रस रिस होकर बह उठा जो सीधे सुलेमान के लंड के ऊपर से चलते होके खाट पे बह गया. वो निढाल होकर ढेर हो गयी. अब सुलेमान भी अपने चरम सीमा पर था. आधे घंटे से वो सलमा को चोदे जा रह था. उसका भीगा लंड अब अकड़ कर फुल रहा था. सलमा को उसके गरम फुलेहुये लंड की हलचल अपने योनि में महसूस हो गयी.
महसूस तो रफीक को भी बहुत कुछ हो रहा था सलमा की तरह. बस एकतरफ शोर का माहोल था और दूसरी तरफ वीराने का. एक तरफ बदन से बदन घिस रहा था तो दूसरी तरफ एक हल्का सा स्पर्श मिल रहा था. कितने अलग दृश्य थे दोनों भी. एक तरफ तूफ़ान था तो दूसरी तरफ पहल. एक तरफ अंत था तो एक तरफ प्रारंभ. जहा सुलेमान नोच-नोच के देहाती खाना खा रहा था और एक तरफ रफीक जो फुक-फुक के शाही दावत का लुफ्त उठा रहा था. पर दोनों में एक बात एक जैसी थी और वो थी “काम वासना” जो उस वक़्त अपने शिखर पर विराजमान थी.
रफीक अब ज़रासा निचे हटा काव्या के पेट को देख बैठा. उसकी लालसा और बढ़ गयी थी. वो हल्का सा निचे आया और अपने होठो से उसके पेट की एक चुम्मी ले ली. वो जैसे दूसरी दुनिया में चले गया. उसको कुछ होश नही रहा. भरपूर जवानी और खूबसूरती से भरी पड़ी राजसी शहर की महिला उसके लिए मानो एक ऐसे बला थी जिसको वो प्यार करना चाहता था, और शोषण भी. बड़े आराम से वो उसके बदन की खुशबू और गर्मी को सेक रहा था. उसके मुलायम बदन के कोने कोने को वो चाटना चाहता था. उसने वैसे ही काव्या के बदन से अपना बदन धीरे से लपेट लिया. और अपने कानो से उसकी धड़कन की आवाज को सुनने लगा.
उसके लिए ये सब अनुभव नए थे. वो नया खिलाडी था इसलिए खुद ही कभी हिम्मत दिखाता और कभी कमजोर गिर जाता. दोहरे परेशानी में उसको काव्या का बदन आत्मविशवास की शक्ति प्रदान कर रहा था. उसने काव्या के बदन से लिपटे हुए बहुत ज्यादा आनन्द प्राप्त हुआ. शायद ये बड़ा फर्क था सुलेमान और रफीक में. सुलेमान ने कभी किसी औरत को ऐसी नज़र से नहीं देखा था वो सिर्फ उनको चखना चाहता था. वहि रफीक उसका अराम से स्वाद लेना चाहता था. सुलेमान को काव्या एक रंडी की तरह लगती थी जिसको वो अपने निचे सुलाके उसको अपने लंड से तडपाना चाहता था ठीक जैसे वो सलमा को चोद रहा था, रगड़ रहा था. पर रफीक एक नवयुवक था उसके दिल में प्रेम के भाव जाग रहे थे. काव्या उसको किसी गुडिया की तरह लग रही थी. जिसके वो बाल बनाना चाहता था, श्रृंगार कराना चाहता था, उसको नेह्लाके उसको कपडे पह्नाके एक दम दुल्हन की तरह सजा धजा के प्यार करना चाहता था. उसके साथ मनपसंद भोजन करना चाहता था, खेलना चाहता था. उसको लिपट के सोना चाहता था. गहरी नींद में सोयी हुयी काव्या उसको उस मादक और खुबसूरत सेक्स डॉल की तरह लग रहि थी जिसके साथ वो अपनी हर तमन्ना पूरी कर सके.
अपने मन में प्रेम के असीम भाव जगाकर रफिक को बहुत सुकून मिल रहा था. उसके अंतर्मन में प्रेम के उच्त्तम भाव जग रहे थे. उसके लिए काव्या उस वक़्त सबसे नाजुक सुंदरी थी और उसके लिए बस उसको संभाल के रखना ही मानो जिम्मेवारी थी. ब्यूटी एंड बीस्ट के माफिक एक नाजुक रिश्ता उमढ रहा था. किन्तु मनुष्य को ये पता ही नहीं चलता के कब वो प्रेम के इस कोमल भाव से वासना के सख्त भाव पे परिवर्तित हो जाता हैं. प्रेम जहा राफिक को काव्या से ऊर्जा दे रहा था वहि वासना अब उसको उसी उर्जा से उकसा रही थी. और हुआ यही रफीक ने अपने आखे खोली और उसकी नज़रे काव्या की जान्घो पे फिर से आ गयी. काव्या सोयी भी ऐसी थी के उसके अंतरपटल साफ़ दिख रहे थे. जो रफीक के प्रेम का मजाक उड़ा रहे थे. उसकी हालात ऐसी हो गयी थी के मानो किसी भूके के सामने चिकन तंदूर रखा हो और उस दिन उपवास आ जाये. खैर काव्या की सुन्दरता और मादकता के सामने एक बार फिर उसने घुटने टेक दिए और उसने उस भूके इंसान के तरह अपना हाथ बड़ी निडरता से काव्या की जांघो की और फिर से मोड़ दिया.
बहुत धीरे से उसने उसका पेटीकोट और ऊपर की और ढकेला. उसकी धड़कने तेज़ हो गयि थी. फिर भी उसका तना हुआ लिंग उसको धीरज दे रहा था. उसका मूह और उसकी आखे जाने कितने समय से खुली थी. पेटीकोट पूरा ऊपर हो गया था उसकी मेहनत को फल मिल गया. काव्या की पूरी पयांटी उसके आँखो के सामने थी. गोरी दूध जैसे जांघो में उसकी ब्रांडेड निकर उसके खूबसरती को चार चाँद लगा रही थी. किसी सेक्सी मॉडल की तरह वो उस समय प्रतित हो रही थी. इतने सुडोल पैर, जांघे और निकर में उभरी हुई चूत देखके रफीक की तो किस्मत सवार गयी. पोर्न फिल्मो में उसने अभी तक ऐसे दृश्य देखे थे. आज बड़ा ही वो खुदको किस्मतवाला समझ रहा था. उसको छूने की लालसा जाग रही थी. कामूक किताबे. पिक्चरे देख के उसका मन हर उस बात से अवगत था जो पूर्ण रूप से आनंद दान दे सके.
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उसने उसी पोर्न फिल की तरह बहुत धीरे से अपने दोनों हाथ काव्या के पैरो के बाजु में रखे. और खुदको को झुकाके उसके जांघो की तरफ मूह ले लिया. बहुत ही धीरे धीरे वो ये सब किये जा रहा था. काव्या की जांघो से आती हुयी मादक खुशबू उसको करीब से सुंघनी थी. उसने ठीक वैसा ही किया अपनी नाक को उसके बड़ी कुशलता से उसके गद्देदार जांघो से सटा दिया.
“आह...रंडी....मेरा निकल रहा हैं...आह..”
वहां सुलेमान अब अपनी चरम सीमा पे खड़ा था. उसका लंड अब सलमा की चूत खा के तृप्त होने जा रहा था. सलमा जो बस कुछ ही पल के पहले अपना पानी छोड़ गयी थी. उसको भी ये अंदाजालग गया के सुलेमान अपनी पिचकारी कभि भी छोड़ सकता हैं. लेकिन उस भोली कमसिन को ये नहीं समझ रहा था के वो लंड और अन्दर की तरफ क्यों सरका रहा हैं. तभी सुलेमान अपने आखरी धक्के देते हुए बोल पड़ा,
”आह...मेरी रंडी..बोल हमारी मदत करेगी न...”
“किस बात में भड़वे...आह..”
लंड और चूत के अन्दर की और घुसाते वो बोला, “कल तू उस डोक्टोरनी से मिलने जाएगी,,आह...और..और उसको मेरे घर तक लाएगी..”
“आह,...तेरे पाप में मुझे क्यों मिला रहा हैं...नहीं करती मैं ऐसा कुछ...”
“रंडी..तेरी क्या जा रही हैं....आह...इतना नहीं कर सकती क्या ...लंड तो ले रही हैं गपा गप...”
“नही...आह...म्म...नहीं करुँगी...क्या करेगा तु...कमीने....”, गुस्से से और कसमसाते हुए सलमा ने जवाब दिया.
“साली तू ऐसी नहीं मानेगी..रुक तेरा इन्तेजाम हैं मेरे पास..”
ऐसा बोलकर सुलेमान ने सलमा को जोर से अपनी बाहों में भींच लिया और उसके होठो को अपने होठो में कैद कर डाला. उसकी पकड़ इतनी मजबूत थी के सलमा हिल भी नही पा रही थी. उसका नाक उसकी नाक से साँसे चुरा रहा था. होठ उसके होठो की गिरफ्त में थे. बड़े कस के वो उस्को चूस रहा था. अपना बदन फेविकोल की तरह चिपकाके दोनों भी पसीने से एकदम लदबद खाट पे पड़े थे. वैसे ही अंग से अंग रगडके सुलेमान ने वो किआ जो सलमाने कभी सोचा ही नहीं था. उसने सलमा के चूत में अन्दर तक घुसे अपने लंड से वीर्य की धार सर्रर्रर्र ... बोलके छोड़ डी.
उसका लिंग आधे घंटे से फुला हुआ था. मुसल लंड सलमा की चूत में ही अपना वीर्य थूक रहा था. एक बड़ी पिचकारी ऐसे निकली के वो सलमा के बच्चेदानी पे जा कर ही रुक गयी. गरम गरम लावा उसको महसूस हुआ. सलमा ने भी आह निकली, “हाअय्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य...हाआआआआआआ..गयीईईईई
ईईईईईईईईईईईईईईईईए....मीईईईईईईई,,,,हाआआआअ..कमीने.....कुत्ते”
पहली बार किसी ने कमसिन के चूत के अन्दर अपना पानी छोड़ा था. सलमा उस वक़्त सब चीजो से परे हो गयी. उसकी आवाज भी कमजोर गिरने लगी और उसकी आँखे संतुष्टि से बंद हो गयी और साथ ही नये अनुभव में उसका अंतर्मन लीन हो गया.
“आः.......रंडी.......ले साली.....आह...काव्या....”
सुलेमान वैसे हो दबोच के सलमा के चूत में अपने लंड की पिचकारी छोड़े जा रहा था. कुछ समय के बाद उसके लंड ने पिचकारी बंद कर दी. सलमा की चूत से उसका वीर्य निचे सर्र होक टपक रहा था. दोनों निढाल हो पड़े थे. सुलेमान वैसे ही उसके बदन पर चिपके हुए ढेर हो गया. काव्या का नाम अंतिम क्षण में लेके जैसे उसने आने वाले समय के संकेत दिए. पसीना शराब और वीर्य तीनो की खुशबू से झोपडी का समा रंगीन हो गया था. सत्तू बाजु में ही शराब में चूर अपना लंड हाथ में लिए अभी भी इंतज़ार में लगा हुआ था. शायद उसको आज इंतज़ार से ज्यादा कुछ नहीं मिलने वाला था. तभी मौसम ने भी रुख बदल दिया. शाम होने को थी गाँव क बादलो ने भी इस नज़ारे पे करवट बदल दी. आसमान में बादल आने लगे. और हलकी सी बूंदा बंदी शुरू हो गयी.
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बस फिर क्या? अब वो उसके वश में हो गया था. उसने अपनी हिम्मत बढाई और दायने हाथ की उँगलियों से काव्या की प्यांति को एक तरफ से उठा लिया और बाए हाथ से उसको बहुतही हल्का सा महसूस किया. प्यांति बाजु में करने के कारन काव्या की चूत पूरी बाहर आ गयी. कुछ भी हो आज काव्या की चूत का दर्शन बार बार मिल रहा था. कुछ घंटो के पहले ही झाड़ियो में उसकी चूत ने अपना पेशाब छोड़ा था तब सब ने उसका नयनसुख लिया. और अब तो इतने करीब से कोई उसके साथ अपनी उँगलियों से खेल रहा था. वक़्त इतना तेज़ी से करवट बदलेगा ये तो काव्या की खुबसूरत चूत को भी पता चल गया होगा.
रफीक ने एक टक से उसकी चूत पे नजर डाली. उसका लंड तो मानो चीख रहा था, कबका कच्छे के बाहर आकर दंगल मचा रहा था. बस उसको चाहिए था वो सुनहरा छेद जिसका मजा रफीक की आँखे उठा रही थी. रफीक थोडा नजदीक गया. उसने अपनी जुबान काव्या के अंगो पे बेहद धीरे से चलाई. बड़े कोमलता से वो उनको चाट रहा था. उसका रोम रोम उत्तेंजित हो रहा था.
उसने अपनी नाक काव्या के योनी पे टिकाई. उसकी मादक खुशबू लेकर के वो और बेकाबू हो गया. उसने अपने बाये हाथ की बिच वाली ऊँगली काव्या के चूत के ऊपर से नीचे की तरफ बहुत ही हलके से घुमाई. वो स्पर्श, वो एहसास, वो महक उसकी उत्तेजना को सीमा पार बढ़ा रही थी. अब प्रेम जो चरम सीमा पर था वो रफीक को अलग दुनिया में ले जा रहा था. उसी बहाव में बहते उसकी जबान उसके मूह से बाहर आ गयी. बिना कुछ देरी लगाते उसकी उँगलियों की जगह उसके जबान ने ले ली. और देहाती नवयुवक ने देखते ही देखते शहरी राजसी महिला के मखमली चूत पे अपनी जबान फिरा दी.
**************
यहाँ दूसरी और सलमा की जबान और मूह भी कहा खुले थे. सत्तु मादरजाद अपना मुसल लंड उसके मूह में दबाते जा रहा था. उसके बालों को पकड़ के वो लंड को पूरी तकाद से उसके मूह के अन्दर बाहर कर रहा था.
“आह...रंडी...सलमा....चूस....रंडी...”
उम..उ...ऊउम्मम्म...की आवाज के अलावा सलमा के पास कोई शब्द नहीं थे. मुसल लंड उसके मूह चोदे जा रह था. उसकी चीखे आवाज सब दब रही थी. ऊपर से सुलेमान का सांड जैसा बदन उसके ऊपर कहर बरसाके सो गया था.
गल्प गल्प.....कर कर के सलमा का मूह को अछि तरह चोद के सत्तू अपनी प्यास बुझा रहा था. उसने अपने एक हाथ से सलमा के दूध के ऊपर की घुंडी को चिकोटी काट ली.
“आई.....हाई.....चूस रंडी....जोर लगा..:”
सालमाँ की आँखों से पानी टपक गया. वो पानी रोने का नहीं था बस एक मीठा सा दर्द था. जो अब उसको सहने की आदत लग गयी थी. लंड का पसीना, खोली में शराब का असर उसका गला सुखा रही थी. बस राहत थी तो बाहर से आती हुई ठंडी हवा और मीट्टी की खुशबु. उसके मूह से निकलती थूक से सत्तू का लंड पूरा का पूरा भीग गया था. सलमा को भी ये पता था के दोनों कलुटो से पीछा छूडाना हैं तो उसको खुद खेल में उतरना ही होगा. ठीक जैसे सुलेमान के साथ उसने अपना सहयोग दिखाया. उसने वक़्त ना गवाते ठीक उसी समय अपने बाय हात मे सत्तू का लंड पकड़ा और मूह के अन्दर चलने दिया.
सत्तू ये देख के बहुत खुश हुआ और बोल पड़ा..”आज पक्की रंडी बन गयी हो सलमा...आः...मजा आ गया तुमको ऐसा देखके.,,...मेरी रंडी...चूस और चूस...“
वासना भी अजीबी होती हैं. हर वो शरीर का पुर्जा जो इसमें जुट जाए वो पूरी तरह से उसके आधीन हो जाता हैं. एक तरफ एक लंड और एक तरफ एक चूत दोनों को भी बड़ी तबियत से चूसा जा रहा था.
*************************
रफीक जो बेकाबू बन गया था उसने अपने होठ काव्या के चूत को लगा दिए. उसको कुछ खारा और मीठा मिक्स स्वाद आने लगा. वो बस उसको और चखना चाहता था. उसने बेकाबू में अपनी जीभ को थोडा अन्दर की और सरकाया..और काव्या के मूह से पहली बार सिसक निकल गयी....स्स्सीईईई.......
रफीक की मानो साँसे रुक गयी. वो वैसे ही प्यांति को पकड़ के जुबान अन्दर डालके अटक गया. बिलकुल किसी मूर्ति के माफिक. पर काव्या ने जो बडबडाया उसको देख के उसने चैन की सांस छोड़ी..
“ऊओम्म्म......रमण,,,,लव मी,...बेबी.....”
काव्या नींद में रमण के ख्वाब देख रही थी. उसके योनी में लगी आग उसके नींद को भड़का रही थी. उसका दीमाग समझ रहा था के वो पति रमण के साथ हैं और रमण उसको प्यार कर रहा हैं. खैर रमण की याद में खोयी काव्या को सपनो में देख रफीक को समझ गया वो अभी भी नींद में ही हैं. उसने अपना ध्यान फिर से काव्या की चूत पे ले लिया पर अपने नज़रे काव्या के चेहरे पे ही रखी.
अपना दबाव उसने बड़ी आहिस्ते से काव्या के चूत पे बढ़ाया. उसको अपनी जीभ से वो चाट रहा था. बहुत ही नाजुकता से और धीरे से वो ये सब कर रहा था. उसको हर वो सिन याद रहा था जिस पोर्न में वो लड़का उस महिला की योनी में अपन मूह दबाता हैं, उसको चाटता हैं. उसी तरह से वो कर रहा था.उसने मूह ऊपर किया और अपना थूक काव्या के योनी पे बड़े तरीके से थूक दिया. काव्य की चूत उससे लदबद भर गयी. बस फिर क्या उसने उसके चूत के समुन्दर में अपना मूहसे एक छलाग लागा दी. और जीभ को अन्दर की और सरकाने का प्रयास शुरू रखा.
यहाँ वो चाट रहा था वह काव्या सिसक रही थी काव्या की हर सिसक की तरफ ध्यान डे के वो सब कर रहा था. वही दूसरी तरफ सलमा जो के सत्तू का लंड चूस रही थी. जैसे सब तरफ वासना ने अपनि बाजी चलायी थी फरक था तो किसिकी आँखे खुली थी किसीकी बंद. कोई जाग रहा था तो कोई नींद में था.
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