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Thriller कुछ अनसुनी कहानियाँ और संस्मरण...
#1
Heart 
****************

welcome
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Do not mention / post any under age /rape content. If found Please use REPORT button.
#2
Tongue 
********************
I am not the original writer, this thread is copy & pasted from old link's of XOSSIP... 

All credit goes to Original writer Chulbul.pandey 

********************
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#3
आदरणीय गुरु जी,
और मेरे मित्रगणों को मेरा सादर प्रणाम,

मैं कुछ पुराने समय की घटनायें,कहानियाँ,जीवनी,संस्मरणों को अपने द्वारा लिखें हुए शब्दों में कलमबद्ध करने की कोशिश कर रहा हूँ, जो किसी की आप बीती, किसी की सत्य घटना और कोई जन श्रुति पर आधारित है, जिसका एक मात्र उद्देश्य उन व्यक्तियों से सम्बन्धित उनकी जीवनी को जीवंत रखना है, इसमे मैंने किसी धर्म विशेष का समर्थन नहीं किया और न ही अन्धविश्वास को बढ़ावा देने की कोशिश की है ,इन कहानियों को (यदि मैं सभी लिख पाया तो) मैं गुरु जी के चरणों में समर्पित करता हूँ । मेरी त्रुटियों को छोटा भाई समझकर माफ़ कर करियेगा ! पाठकों से अनुरोध है कि वे व्यर्थ की टीका टिप्पणी न करें ।
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#4
......दोहरी ज़िन्दगी......

छिबरामऊ ( उत्तर प्रदेश ,कन्नौज जिले का एक शहर ) के पास की घटना..

{ ये कहानी एक सत्य घटना है जो मेरे चाचा जी ने स्वयं प्रीतम (ज्योतिषी ) से सुनी थी ,उनके सिद्धांत एवं फ़र्ज़ का कायल होकर मैंने इसे कलमबद्ध करने का प्रयास किया , अब तो वह ज्योतिषी ७ वर्ष पूर्व परलोक सिधार चुके हैं, मैं उनको सच्चे मन से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ ! }
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#5
आज प्रीतम बसंत के समान बढ़ते एवं खिलता हुआ ठीक १८ वर्ष की उम्र की देहरी लांघ रहा था,


ऐसा जानकर उसकी माँ राजेश्वरी,उसकी पत्नी बसंती देवी और उसका पुत्र शेखू अत्यधिक प्रसन्न थे ,पिता जसराम इस समय कही बाहर गए हुए थे ..

पिता ने अपने पुत्र की शादी अपने समाज की परम्पराओं एवं रीतियों के अनुसार लगभग ५ वर्ष पूर्व ही कर दी थी ,
उन वृद्ध माता पिता का ढलती उम्र में एक ये ही सहारा था ,क्योंकि प्रीतम उनकी अकेली संतान था,प्रीतम के पिता ने उसकी शादी इतनी जल्दी यह सोचकर कर दी थी अगर कल को उसकी आँखें बंद हो गयी तो मेरे बच्चे का कल को कोई सहारा बनें या ना बने ,कम से कम अपनी पत्नी के साथ अपना जीवन गुजार तो सकेगा, और बेचारी उसकी बूढी माँ कहाँ मारी मारी फिरेगी ,

प्रीतम की शादी के कुछ समय बाद एक बच्चे का जन्म हुआ , उसके जन्म पर राजेश्वरी ,जसराम और बसंती देवी ने बड़ी ख़ुशी के साथ अपने रिश्तेदारों ,पड़ोसियों ,को भोजन कराया और साथ में नेग भी दिया . सभी ने उस नवजात शिशु को शुभकामनाएं दी ,उसका नाम शेखू रख लिया , दादा ,दादी माता,पिता को शेखू से बहुत लगाव था, इस तरह उसका बहुत लाड़ प्यार से पालन पोषण हो रहा था, अब शेखू २ वर्ष का हो गया था ,

उसके पिता प्रीतम का अभी ठीक से बालकपन भी व्यतीत नहीं हुआ था, वह अभी भी अपने साथियों के साथ गिल्ली डंडा तथा छिपाछिपी जैसे बच्चों के खेल आज भी खेलता था, आज भी वह अपने साथियों के साथ लकड़ी का खेल ( इसको देहाती भाषा में लभा कहते हैं) खेल रहा था , इसमें एक बच्चे को वृक्ष पर बैठे किसी एक लड़के को छूना होता है और साथ में उस लकड़ी को ( उसको एक गोल घेरे के अन्दर रखा जाता है) भी सुरक्षित रखना होता है,

सभी बच्चे वृक्षों की शाखाओं पर कौये की तरह बैठे थे जबकि नीचे खड़ा प्रीतम लोमड़ी की तरह उनको तांक रहा था
वह उनको बार बार छूने का प्रयत्न कर रहा था लेकिन वे लोग गूलर के फूल की तरह उसके हाथ नहीं आ रहे थे ,वो बेचारा असहाय इधर से उधर घूम रहा था,तभी उसके साथी ने लकड़ी को छू लिया,उस लकड़ी को पुनः दूर फ़ेंक दिया गया ,अबकी बार वह लकड़ी दूर घास में पड़ी थी जिसको उठाने के लिए प्रीतम को वहां जाना पड़ा ! उसके साथियों को क्या पता था कि उनका ये खेल अपने प्रिय साथी से बिछड़वा देगा. ! 

वहां वो प्रीतम जैसे ही उस घास में से लकड़ी उठाने गया उसको एक काले सर्प ने काट लिया .. कुछ ही पल में प्रीतम बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा,उसके साथियों ने ये देखा तो घबरा कर उसके पास पहुंचे , अपने उस अजीज साथी को इस हालत में देखकर सभी उसको उठाने का प्रयत्न करने लगे लेकिन उसका शरीर शिथिल और शिथिल होने लगा , उसकी साँसें धीमी गति से लगातार और धीमी होती जा रही थीं, जैसे जैसे समय बीत रहा था वो मौत के निकट जा रहा था, जब साथियों के उठाने पर भी वह नहीं उठा, तभी किसी ने पास में जाते हुए उस सर्प को देख लिया, उनको यकीन हो गया कि निश्चित ही इसे सर्प ने डंस लिया है. सभी बुरी तरह से चीखने चिल्लाने लगे, उनकी चीख पुकार गाँव वालों ने सुनी तो दौड़ पड़े उसी तरफ , धीरे-धीरे गाँव के सैंकड़ों स्त्री पुरुष का हुजूम इकठ्ठा हो गया , घरवालों ने सुना कि प्रीतम को एक सर्प ने काट लिया है तो घर में कोहराम मच गया , जैसे थे उसी हालत में दौड़ पड़े 

अपने उस लाड़ले प्रीतम की ओर, गाँव के बड़े बुज़ुर्ग सभी अपने अपने तरीके से प्राथमिक देसी उपचार बताने लगे ,लेकिन प्रीतम की हालत लगातार में कोई सुधार नहीं हो रहा था, सारे गाँव में मातम सा छा गया था, उसका पुत्र शेखू अपने आप में मगन था , वह अपनी माँ के अंचल से लिपटा हुआ कभी इधर बैठी स्त्रीओं को देखता कभी उस ओर, उस मासूम को क्या पता उसका पिता पल हर पल उससे दूर बहुत दूर होता जा रहा है, तभी किसी ने सलाह दी क्यों ना प्रीतम के शरीर को नीम के पत्ते में दबाकर रख दिया जाए आखिरकार यही सुनिश्चित हुआ और उसके शरीर को नीम के पत्तों के बीच ढक दिया गया , उसकी माँ और पत्नी का बुरा हाल था , रो रो कर अपनी आँखें सुजा रखी थी ,कभी अपने बाल नोंचती ,कभी छाती पीटती ,उनकी शक्लें पागल महिलाओं सी हो गयी थीं,स्त्रीयों का हुजूम उनको समझा रहा था और संभाल रहा था , लेकिन कभी कभी वे उन्हें भी दुत्कार देती थीं, उनकी यह हालत देख पिता भी अपनी आँखों में निकलते आंसुओं के सैलाब का ना रोक सके, समय भी अपनी 
निर्बाध गति से बढ़ा जा रहा था, और कोई भी उसको पकड़ने का साहस तक नहीं दिखा पा रहा था,

आखिरकार धीरे-धीरे भगत एवं बायगीर उनके निवास स्थान पर इकठ्ठा होने लगे, उन्होंने अपने झाड़ फूँक, तंत्र मंत्र करने शुरू किये किये लेकिन सफलता ना मिल सकी ,यह कार्य दो-तीन दिन चलता रहा लेकिन इसका कोई लाभ नहीं मिला, अपनी अपनी तरह से सभी ने काफी प्रयास किये लेकिन इसी बीच प्रीतम के शरीर से बदबू आने लगी , तो वहां बैठे भगतों ,बायगीरों और स्त्री पुरुषों ने उसको मुर्दा समझना शुरू कर दिया ! फिर भी उसे उसकी माँ की ममता उसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी, 

लेकिन जब इसके कुछ घंटों के बाद प्रीतम के शरीर से अधिक बदबू आने लगी तो लोगों ने कहा , भाई जसवंत जो ईश्वर को मंजूर था वो हो चुका ,इसलिए अब इसकी अंतिम क्रिया का बदोबस्त करो , सबकी सहमती से प्रीतम के पिता ने अंतिम क्रिया के लिए हाँ कह दी , और गांव के वृद्ध जानकार लोग उसकी अंतिम क्रिया की तैयारी करने लगे! 

वैसे यह आम धारणा है कि सर्प के काटे को कभी जलाया नहीं जाता है ! उसको या तो जल में प्रवाहित करते हैं या मिट्टी के बर्तन में (नाद में ) सीधा बिठाकर समाधि दे दी जाती है !

जारी है......
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#6
आखिरकार प्रीतम के जलप्रवाह की तैयारी की जाने लगी ! इस परिवार का भविष्य और वर्तमान का आसरा वह आज दुनिया छोड़ चुका था,राजेश्वरी,बसंती देवी और जसराम की तो दुनिया ही उजड़ गयी ! उनकी लाल आँखें और उससे निकलते निरंतर आंसू इसकी गवाही दे रहे थे ! प्रीतम के सभी साथी अपने अपने तरीके से उसको याद कर रहे थे ! जसराम उसके पिता का तो अब बहुत बुरा हाल हो चुका था उनको अब होश नहीं था ! चारों तरफ उस करुण क्रंदन की चीखे उस आकाश को भी गुन्जाय मान कर रही थी जैसे वो भी बेचारा आंसुओं के सागर में गोते लगा रहा हो, एक आंसू की बूँद आँखों से निकलकर ठुड्डी तक ना आ पाती , तब तक दूसरी बूँद वही रास्ता खोज लेती ,जैसे होता है ना कि मनुष्य अपना शरीर त्यागने के बाद सीधा परमात्मा को खोज में निकल पड़ता है, पता नहीं उसे ये रास्ता कैसे पता रहता है, और यह सभी ८४ लाख योनियों द्वारा ये अनवरत चलता रहता है वो किसी एक ऐसी कड़ी से जुडा रहता है जिसका छोर सबको पता है लेकिन पता नहीं क्यों वो उसको नकारने में लगा रहता हैं , चारों तरफ का वातावरण बस हाहाकार और चीत्कार की ध्वनि से गूंज रहा था, और उसे वो नभधारी ऐसे फिल्मानें में लगा था जैसे उसके लिए ये चीखना चिल्लाना सब व्यर्थ हैं, तभी भीड़ में किसी की आवाज आई, भईया इस प्रीतम की लाश को ईशन नदी में (यह नदी अलीगढ़ से दक्षिण- पूर्व दिशा सेनिकलती है तथा एटा मैनपूरी जिलोंसे बहती हुई फर्रूखाबाद में प्रवेश करती है। फिर कानपुर देहात के बिल्हौर तहसील के अंतर्गत महगवां से दक्षिण- पूर्वदिशा में बहती हुई अंतः गंगा में मिल जाती है) प्रवाहित कर दें तो कैसा रहे रहेगा,पास में खड़े सभी स्त्री पुरुषों ने अपने अपने सर हां में हला दिए,इसके बाद विधि विधान से लाश को सफ़ेद चादर में लपेटकर ईशन नदी में प्रवाहित करने के लिए लाया गया , अंतिम बार पिता ने अपने लाड़ले बेटे प्रीतम का मुंह देखा , तो आंसुओं की अविरल धारा सारे बंधन तोड़ती हुई फिर से आँखों से आजाद हो गयी ,प्रीतम के पुत्र शेखू को अपने पिता का चेहरा दिखाया गया वो बेचारा उसकी अर्थी (लाश जिस पर लिटाई जाती है) पर ही खेलने लगा उसको क्या मालूम कि अपने मृत पिता के साथ वो अंतिम बार खेल रहा है ,धीरे धीरे उसकी अर्थी से प्रीतम को उठाया गया और नए वस्त्रादि पहनाकर अर्थी सहित ईशन नदी में प्रवाहित कर दिया गया , सभी लोगों ने उस बहती लाश को अंतिम बार प्रणाम किया और शोकाकुल परिवार के साथ घर की ओर लौट पड़े , इसके बाद शोक संतृप्त परिवार ने लौटकर हवन,शुद्धिकरण और सामजिक क्रियायें विधि विधान के साथ संपन्न की ,अब जसराज के परिवार में २ वर्षीय शेखू के अलावा कोई ख़ुशी का आसरा ना बचा था, माँ और पत्नी दिन रात रोती रहती थीं और अपने अपने भाग्य को कोसती रहती थीं जिससे वह चहल पहल वाला घर अब सूना सूना सा लगता था,

उधर ईशन नदी कल कल करती हुई अपनी मस्त चाल में चली जा रही थी जैसे वह अभी अपने प्रेमी से मिलेगी और प्रेमालाप में व्यस्त हो जायेगी , प्रातः कालीन वेला सूर्य का आगमन बस होने ही वाला है जिसकी सूचना पहले ही उसकी लालिमा दे रही है , नदी के किनारे के वृक्षों पर पक्षी अपनी प्यारी प्यारी आवाज़ में कलरव करना प्रारम्भ हो गए हैं, जिसमें एक पक्षी की धवनि उस गीत की तरह लग रही है (एक है तू .......) साफ़ साफ़ सुनाई दे रही है, जिसको सुनकर आभास होता है कि पक्षी भी ईश्वर भजन करते हैं, पश्चिमी तट से थोड़ी दूरी पर गाँव के नज़दीक एक बंगाली परिवार ने अपना निवास एक कुटिया में बना लिया था उस परिवार का मुखिया अभी कुछ समय पूर्व अपनी उम्र पूरी करने के बाद चल बसा था , अब उसकी मुखिया एक बुढ़िया थी , जो उस कुटिया में अब अकेले ही जीवन को गुज़ारने का प्रयत्न कर रही थी , बुढ़िया रोज सुबह सुबह ईशन नदी में स्नान तथा कपड़े धोने के लिए जाती थी , उस रोज भी वह सुबह सुबह लकड़ी टेकती हुई ईशन नदी पर चली जा रह थी ,लेकिन उस रोज़ का सुभावना मौसम नदी की कल कल की आवाज को अत्यधिक लुभावना बना रहा था, धीरे धीरे वह नदी पर पहुंची, स्नान आदि के लिए नदी में प्रवेश किया ,स्नान करने के पश्चात वह नदी के किनारे कपड़े धोने लगी , लेकिन कपड़े धोते धोते उसकी दृष्टि नदी के बीचों बीच उस सफ़ेद चादर में लिपटी अर्थी पर पड़ी , जो शायद कहीं दूर से बही चली आ रही थी, पहले तो बुढ़िया चौंकी लेकिन अगले ही पल वो संयत हो गयी क्योंकि यह यहां की नदियों में सामान्य सी बात होती है, अब वो उस अर्थी की तरफ ध्यान लगाकर देखने लगी, तो उसने ऐसा लगा कि उस अर्थी में लिपटी लाश से कुछ बुलबुले धीरे धीरे उठ रहे हैं , अब तो वो घबरा गयी और इधर उधर देखने लगी, कि काश कोई मदद के लिए मिल जाए और वो उसकी मदद से अर्थी को नदी से निकाल सके, ये कार्य अधिक शीघ्रता से करना था क्योंकि पानी के बहाव में यदि अर्थी बह कर आगे निकल जाती ,तो उसके लिए मुश्किल खड़ी हो जाती, अब उस बुढ़िया ने जल्दी से लाठी उठाई और तेज तेज क़दमों के साथ वापस गाँव की ओर मदद लेने चलने लगी , आज उसकी रफ़्तार पहले से कहीं अधिक थी, उसे उम्मीद सी जगी थी कि उसकी जिंदगी का सूरज अभी शायद अस्त नहीं हुआ है, खैर, बस वो थोड़ा ही आगे चली थी कि दो किसान सुबह सुबह खेती का काम करने में व्यस्त थे, उसने आवाज लगाई तो उन किसानों ने सोचा कि आज ये बुढ़िया इतनी घबराई हुई क्यों है, वो उसके पास आये और उससे पूछा तो, उस बुढ़िया ने सारा हाल कह सुनाया ,लेकिन उन किसानों ने कहा कि काकी तू उस अर्थी के पीछे इतना क्यों परेशान है, जा अपने घर जा, किसी की लाश को उसके घरवालों ने यूहीं थोड़ी बहा दिया होगा,लेकिन बूढ़ी काकी अपनी जिद पर अड़ी रही, अब उन किसानों ने सोचा बस अर्थी को पानी में से ही तो निकालना है इसके बाद ये जानें और इसका काम, ये सोचकर वे दोनों किसान इसके लिए राजी हो गए और बूढ़ी काकी के साथ चल दिए , नदी के समीप आकर देखा वो नदी के बीचोंबीच बह रही थी और बुढ़िया के कपड़े धोने के स्थान से थोड़ा आगे निकल चुकी थी,वे दोनों थोड़ा सा नदी में घुसकर दो बड़ी बड़ी डंडियों की सहायता से अर्थी को निकालने का प्रयास करने लगे ,जैसे ही अर्थी नदी के बिल्कुल किनारे पर आई तो उस बूढ़ी काकी ने गौर से देखा कि हकीकत में उसमें से कुछ बुलबुले उठ और गिर रहे हैं,पेट भी सांस के कारण मंद मंद सी हरकत कर रहा है ,उसे ऐसा लगा, अब उन दोनों किसानों ने अर्थी को नदी के किनारे सूखी जमीन पर रख दिया और वहां से चले गए ,अब उसने धीरे से सिर की तरफ से कफ़न उठाकर देखा तो उस अपरिचित बालक को देखकर उसकी ख़ुशी का ठिकाना ना रहा, उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे वो लेटा लेटा मद्धम मद्धम सांसे ले रहा हो , वो बुढ़िया बंगालिन थी, सर्प,बिच्छू और ज्योतिष के मामले में वो विशेष योग्यता रखती थी ,वह तुरंत समझ गयी कि इसको किसी सर्प ने काटा है जिसको जल प्रवाह कर दिया गया है, बुढ़िया ने अर्थी के ऊपर से पूरा कफ़न का कपड़ा हटा दिया. और उस मृतप्राय बालक के बन्धनों को उस अर्थी से आजाद कर दिया और उसका सिर अपनी गोद में रखकर बैठ गयी, अब उसके मस्तिष्क में यही बात आ रही थी कि ....


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#7
अगर यह बालक किसी प्रकार से जीवित हो गया तो मेरा सूना घर आबाद हो जायेगा ,
मुझे बुढ़ापे का एक सहारा मिल जायेगा ,
अचानक से वो अपनी पिछली जिंदगी के बारे में सोचने लगी , कितनी हंसती खेलती दुनिया थी उसकी, उसका एक प्रीतम जितना बड़ा लड़का था और अपने पति के साथ जिंदगी कुल मिलाकर अच्छी कट रही थी ,
लेकिन एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि जिसकी कल्पना उसने सपने में भी नहीं की थी ,
उसका लड़का मदन खेतों की तरफ गया था, फसल को पानी वगैरह देना था,
वैसे, बड़े बुज़ुर्ग कहते हैं कि यदि आप ,
अपने खेतों की तरफ रोज़ चक्कर लगाते हैं तो खड़ी फसल भी अपने मालिक को देखकर बहुत प्रसन्न होती है और पैदावार में वृद्धि भी अधिक होती है,
खैर जी, मदन खेतों में पानी लगाने लगा ,
अचानक जिस नाले से पानी आ रहा था,
उस नाले की मिट्टी कट गयी और पानी का फव्वारा फूट पड़ा , खेतों में पानी आना कम हो गया था,
अब मदन उस पूरे नाले को देखता हुआ जा रहा था, देखें कहाँ से पानी कट गया है,
अचानक उसकी नज़र वहां पड़ी ,जहाँ से पानी फूटा था,
वह तुरंत फावड़े से मिट्टी काटकर उस नाले को रोकने का प्रयास करने लगा ,
लेकिन वहां नाले में ही सटी हुई किसी सर्प की बामी थी , ये उसे मालूम ना था,
जल्दी जल्दी मिट्टी उठाने के चक्कर में वो अंधाधुन्द फावड़ा चला रहा था ,
एकाएक वो फावड़ा उस बामी में पड़ा ,
और उस फावड़े के वार से उस बामी में बैठे सर्प की पूंछ कट गयी और तुरंत उस सर्प ने मदन के पैर में काट लिया,
अब मदन का भी वही हाल होने लगा जो प्रीतम का हुआ था,
सर्प के काटने पर, वो शिथिल होकर जमीन पर गिर पड़ा ,
जब गाँव वालों को पता लगा भाग लिए वो उसी तरफ,
मदन का उपचार तरह तरह से होने लगा ,
लेकिन कोई लाभ ना हुआ और वो इस दुनिया को छोड़ कर सदा के लिए चला गया,
उस बूढी काकी की तो दुनिया ही उजड़ गयी,
वाह रे ! ऊपर वाले तुझे जरा भी दया नहीं आई कि तू उसका बुढ़ापे का सहारा छीन रहा है....,
मित्रों , वक्त हर जख्म को भरने का मलहम है ,
आज वो मलहम बूढ़ी काकी के जख्म भरने में लगा था,
उसके आंसू भी वक्त की गोद में कहीं सिमटकर रह गए,
तभी से काकी ने सौगंध खाई कि वह सर्प विद्या सीखेगी और अपने जीते जी किसी का घर नहीं उजड़ने देगी.....
अचानक से वो बुढ़िया अपनी सोच से बाहर निकली .... वो वर्तमान में लौट आई थी,
उसको अपने स्वर्गवासी पति का ध्यान आने पर आंसू निकल पड़े,
जिनके जीते जी हमेशा अपने बुढ़ापे की चिंता लगी रहती और उसी चिंता ने उनकी यह लीला समाप्त कर दी,
बुढ़ापा भी अटल सत्य है, इससे कोई अछूता नहीं....हां इसको वक्त में पीछे ढकेला जा सकता है,
लेकिन टाला बिल्कुल भी नहीं जा सकता.........
इतना सोचते सोचते सूर्योदय होने लगा,
जिससे घाट पर स्त्री पुरुषों का आना प्रारम्भ हो गया ,
अब तो साहब जिसने भी बूढी काकी को इस हालत में देखा ,
वो उधर ही चल पड़ा ,
उनमें से एक बोला ...... अरे ! काकी तू इस लाश के सर को गोद में रखे क्यों बैठी है, अरे ! इसमें से तो बदबू सी आ रही है, उसने थोड़ा गुस्से से कहा,
बुढ़िया ने कहा : बेटा कोई तो मदद करो इसको मेरी कुटिया तक ले जाने में ,इतना कहते कहते वो रुआंसा सी हो आई....
वो आदमी : इसके लिए तू खामखाँ परेशान है, इसके घरवाले क्या बेवकूफ है, अरे ! मरा होगा तभी तो इसे नदी में बहा दिया है, जाने दे छोड़ दे इसकी अर्थी को नदी में ,
बुढ़िया : तुम लोग समझने की कोशिश करो ,मैंने महसूस किया कि इसकी साँसे हल्की हल्की चल रही है...
दूसरा आदमी : देख ये पूरी तरह नीला से पड़ चुका है, मुंह से झाग भी निकल रहा है, क्यों तू इसके पीछे पड़ी है ....
बुढ़िया : अब तुम लोग चाहे जो कहो , लेकिन मैं इसे नहीं छोड़ सकती ,मैं तुम लोगों के आगे हाथ जोड़ती हूँ, मेरी मदद करो....
एक दो स्त्रियाँ मदद के लिए आगे बढ़ी तो उन आदमियों के सर शर्म से झुक गए,
आँखों के इशारे से मदद के लिए एक दुसरे की आँखों में झाँका,
निश्चय किया और उन्होंने अर्थी को हाथ लगाते हुए दुबारा से लाश को उस पर लिटा दिया,
अर्थी को अपने कन्धों पर लेकर गाँव की तरफ चल पड़े ...
वाह री ! किस्मत उस प्रीतम की , कैसा अजब दृश्य .....
जो घरवाले, उसकी अर्थी को कन्धा देकर नदी तक लाये थे, वही अर्थी नदी से दुबारा घर की तरफ चल दी थी, बस अर्थी को उठाने वाले कंधे अलग थे,
कैसी कैसी लीला रचाता है वो ,
एक अर्थी दो बार कन्धों पर चल चुकी थी जिनके कंधे नदी तक आ कर रुक गए थे, वहीँ दुसरे कंधे उसे लगातार सहारा दिए जा रहे थे, खैर......
तेरी लीला तू ही जाने.....
पल में कर दे अपनों को बेगाने....
एक तरफ उम्मीद टूट चुकी थी,
और दूसरी तरफ उम्मीद की एक किरण जगमगा उठी थी,
उस अर्थी को उन लोगों ने उसकी कुटिया पर रख दिया ,और वहां से चले तो वह बुढ़िया बोली :


जारी है............


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#8
एक एहसान और कर दो , इसके शरीर को नीम के पत्तों के दबा दो फिर मैं अपना इलाज शुरू करुँगी ,
अब तो साहब एक और त्रिया हठ , चलो ,
वह भी उन आदमियों ने पूरी कर दी और सभी वहां से ऐसे भागे जैसे जेल से छूटे कैदी हों,
उन सबका ज़ी मचला गया था,
अब ये खबर गाँव में जंगल में आग की तरह फ़ैल गई,
गाँव के सभी बच्चे बूढ़े सभी कुटिया की तरफ इकठ्ठे होने लगे ,उधर उस बुढ़िया ने अपनी तरह से इलाज़ करना शुरू किया,
थोड़ी ही देर में उसकी कुटिया पर गांव वासियों का हुजूम इकठ्ठा हो गया ,
देखते देखते मेला सा लग गया ...
अब तो जितने मुंह उतनी बातें ,
कोई कहे, बुढ़िया सठिया गयी है जो मुर्दे को लाकर घर में रख लिया है ,
कोई कहे, बुढ़िया की तो बिल्कुल अक्ल ही मारी गयी है जो ऐसा अशुभ कार्य करने लगी है
बुढ़िया ने किसी के तानों का कोई उत्तर नहीं दिया,
आखिरकार थक हार कर वे लोग वहां से चले गए,
लेकिन बुढ़िया अपने कार्य ,झाड फूंक में लगी रही,
उसे अपनी सीखी हुई विद्या पर पूरा भरोसा था,
देसी जड़ी बूटियों से उपचार में लगी रही, कब दिन गया ,कब रात, उसे कोई सुध नहीं थी,
गाँव वालों ने उसे उसके हाल पर छोड़ दिया था,
अब एक बूढी माँ के दिल का दर्द कौन जाने,
उसकी ममता का आँचल उन लोगों की सोच से शायद कहीं ऊपर था,
जड़ी बूटियाँ पीसकर खिलाने के लिए वो उसका मुंह खोलती, लेकिन उसका जबड़ा तो कसकर भिंच गया था,वो जड़ी बूटियों को बिल्कुल पनीला कर उसे पिलाने की कोशिश करती,
वो सोचती थी,यदि दो बूँद भी पेट में गयी तो बहुत राहत मिलेगी,
समय तो अपनी गति से लगातार घूम रहा था,
इसी बीच दो दिन और गुज़र गए,
उसे ऐसा लगा जैसे उसकी हालत में सुधार होने लगा है, इलाज़ में उसने कोताही नहीं बरती थी ,
पहले से कहीं तेज़ उपचार शुरू कर दिया था,
तीसरे दिन प्रीतम ने आँखें खोल दी, उसकी आँखें खुलते ही बुढ़िया की आँखों से झर झर आंसुओं की धारा बह निकली,
ये उसकी ख़ुशी के आंसू थे,
उसकी निश्वार्थ सेवा ने प्रीतम को जीने पर मजबूर कर दिया था , और उधर यमराज के सिपहसालारों ने हार का बिगुल बजा दिया था,
धीरे धीरे वो पूरी तरह से होश में आने लगा ,
अब वो बुढ़िया थोड़ा संयत हुई और अपने आंसुओं को अपने आँचल से पोंछने लगी,
उसने मन में सोचा,
इसके साथ परिवार के सदस्य की तरह व्यवहार किया जाए या बेटे की तरह या ठीक करने वाले हकीम वैद्य की तरह ,
वो प्रीतम के पास पहुंची और उसके सर पर हाथ फेरा, और उससे पूछा : बेटा ,अब कैसी तबियत है, प्रीतम बिना कुछ कहे इधर उधर देख रहा था,
उसे समझ नहीं आ रहा था, ये मैं कहाँ आ गया,
मुझे तो सर्प ने काटा था, लेकिन उसके बाद का मुझे कुछ याद क्यों नहीं आ रहा ,
लेकिन तभी बुढ़िया ने फिर पूछा : बेटा कुछ तो बोलो ,कैसा लग रहा है........


जारी है..........
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#9
प्रीतम उसकी आवाज़ सुनकर अपनी सोच से बाहर आया,

और बोला : आप कौन हैं , मुझे तो अपने घर जाना है ,
मेरा पुत्र शेखू और मेरी माँ.पत्नी, पिताजी सभी मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे ,
उसे अपनी पूरी यादाश्त थी ,उसने रोते हुए अपनी पूरी कहानी बता दी,
बुढ़िया के सारे सपने धरे के धरे रह गए,
उसने क्या सोचा था और क्या हो गया ,
वो असमंजस में फंस गयी कि जिसे अपनी जिंदगी का सहारा समझा था,
वो मेरे पास रहेगा या नहीं,
उसने अब सब कुछ वक्त के हाथों में छोड़ दिया,
उधर प्रीतम जिद करते करते बेहोश सा हो गया, कमजोरी जो थी,
उधर गाँव वाले सोच रहे थे कि तीसरा दिन होने को आया,
ये बुढ़िया कर क्या रही है उस मुर्दे के साथ ,
सभी हुजूम बनाकर उसकी कुटिया की तरफ चलने लगे ,
कुटिया के भीतर झाँका तो प्रीतम बेहोश ही था,
उसके चेहरे से नीलापन खत्म हो चुका था ,
और बुढ़िया उसके सहारे से बैठी थी,
ये देखकर तो एकबार को सभी चौंक गए ,
सभी उस बुढ़िया के पास आये और उससे पूछा,
तो उसने सारी कहानी कह सुनाई, सभी चकित थे,
अब तो उस बुढ़िया के प्रति सभी के मन में आदर भावना थी,
वे लोग वहीँ डेरा जमाकर बैठ गए,
ये चमत्कार उन्होंने अपने उस गाँव में होते देखा था,
जिसकी कल्पना उन्होंने कभी नहीं की थी,
खैर धीरे धीरे समय बीता प्रीतम अब पूरी तरह होश में आ चुका था,
उसने आँखें खोली और सामने स्त्री पुरुषों का हुजूम इकठ्ठा पाया, सब उससे उसकी पिछली जिन्दगी के बारे में पूछने लगे ,
प्रीतम ने अपनी पूरी कहानी सभी को बता दी,
सभी गाँव वालो ने उसको बता दिया कैसे उस बुढ़िया ने उसको जिन्दा किया है,
प्रीतम की आँखों से भी आंसू निकलने लगे, उसके मन में अब पिछली जिंदगी के कम ,
वर्तमान में उस बुढ़िया और अपनी आगे की जिन्दगी के बारे में ज्यादा विचार आने लगे,
अब वो उसे अपनी दूसरी माँ के रूप में देखने लगा, उधर वो बुढ़िया उसकी सेवा सुशुर्षा में लगी रही,
इलाज भी प्रतिदिन निरंतर चल रहा था,
प्रीतम अब स्वस्थ होने लगा था,
उसके जिन्दा होने की खबर आसपास के सभी गाँवों में फ़ैल गयी थी,
प्रीतम की कहानी सुनने केलिए दूर दूर से लोग आने लगे, उसने अपनी आप बीती सबको बताई,
इधर जब प्रीतम के विषय में उसकी माँ राजेश्वरी,पत्नी बसंती देवी ,
पिता जसराज को खबर लगी तो बहुत प्रसन्न हुए और अपने पुत्र से मिलने के लिए गाँव वालों के साथ प्रीतम से मिलने के लिए पहुँच गए,
प्रीतम बहुत ख़ुशी ख़ुशी उनसे मिला,
उसके माता पिता पत्नी सभी उससे घर जाने की विनती करने लगे, जब बुढ़िया को पता लगा तो उसने कहा : बेटा मेरे इस घर में एकदम से सूना पन पैदा मत करो ,
कुछ समय के बाद चले जाना ,
और बुढ़िया ने उसके घरवालों से कहा,
बाद में ये चला जाएगा तब तक मैं इसकी और दवाई आदि करुँगी ....
वे सभी इसी बात का विश्वास करके घर चले गए ,
उधर उन लोगों के जाने के बाद बुढ़िया उसको बंगाल ले जाने की सोचने लगी, एक दिन उसने प्रीतम से कहा, बेटा ,
मेरी जिन्दगी का कोई भरोसा नहीं ,कब ख़त्म हो जाए,
इसीलिए मैं तुम्हें अपनी विद्या सिखाना चाहती हूँ ,
जिसके लिए तुम्हें मेरे साथ बंगाल चलना होगा, यदि तुम हां कहो तो,
जिससे कोई भी इस कष्ट को ना झेल सके जो मैंने झेला है,
प्रीतम इसके लिए राज़ी हो गया, इसी दौरान वो उसे लेकर बंगाल चली गयी ,
वहां उसने सपेरों की कला,तांत्रिक कर्म और ज्योतिष विद्या में अपने गुरुओं से निपुण करवा दिया,
साथ ही साथ अपनी जाति की कन्या के साथ उसकी शादी भी करवा दी, हालांकि प्रीतम की इसके लिए मनाही थी , लेकिन उसकी इस जिंदगी पर अब उसका हक़ था, यही सोचकर उसने ज्यादा आना कानी नहीं की,
इसके बाद वह बंगाल से लौटकर इलाहाबाद चली आई ,
वह यहां दो वर्ष तक झोपड़ी बनाकर और भीख मांगकर ,तमाशा दिखाकर गुज़ारा करती रही,
इसी बीच उसके घरवाले गाँव उसकी खबर लेने आते तो ,
उन्हें खली हाथ लौटना पड़ता, क्योंकि वो कुटिया अब इंसान रहित थी,
इधर उसके दूसरी पत्नी से भी दो बच्चे हो गए थे,
और बुढ़िया , और अधिक वृद्ध हो चली थी,
अब उसने अपनी अंतिम इच्छा वही,
उसी कुटिया में रहने की जताई , प्रीतम ने हां कहा, और वे सब वहीँ उसी गाँव में आकर रहने लगे ,
बुढ़िया अब अपनी जिंदगी पर बहुत खुश थी ,
क्योंकि उसके घर में अब एक की जगह चार सदस्य हो गए थे, बच्चों की किलकारी से, उसकी छोटी सी पर्णकुटी मयूर नृत्य करने लगती थी,
प्रीतम अब तक पूर्ण सपेरा और ज्योतिषी बन चुका था,
उसका कभी कभी अपने घर जाने का मन करता तो,
बुढ़िया कोई न कोई बहाना बनाकर टाल देती,
अब प्रीतम के पास दोहरी जिन्दगी के अलावा कोई रास्ता न बचा था,
वो जिंदगी के उस दौराहे पर खड़ा था, जिसे निभाना इतना सरल भी ना था,

एक दिन बुढ़िया ..............

जारी है ..........
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#10
अंतिम भाग........


अपनी जिंदगी की यात्रा पूरी कर रही थी,
उसे लगा, अब इस शरीर में चाँद साँसे ही बची हैं,
उसने अपने बेटे , प्रीतम को बुलाया ,
और कंपकंपाते हुए होठों से बोली :  बेटा, तुमने मेरे बुढ़ापे में बहुत बड़ा सहारा दिया ,
मेरे वारिस बनकर रहे, मेरे पति की निशानी ना होते हुए भी तुमने अपने फ़र्ज़ का अब तक बखूबी निर्वाह किया है,
बेटे, मेरे मरने के बाद मेरा अंतिम संस्कार ,सामाजिक रीति रिवाज़ के साथ पूरा करना,
जिससे समाज के ठेकेदार, ये ना समझे कि मुझे,
दाग देने वाला कोई ना था, मैंने तुम्हे दिल से अपना बेटा माना है,
मैं तुम्हें इसलिए तुम्हारे घर नहीं जाने देती थी,
डर लगता था, कहीं तुम हमेशा के लिए मुझसे दूर ना हो जाओ,
मैं तुमसे वचन मांगती हूँ, साथ ही, इस कुटिया की जिम्मेदारी तुम्हें सौंपती हूँ, ये मेरे पति और तुम्हारे मुंह बोले पिता जी की अंतिम निशानी ,
और पहचान है,
इतना कहते कहते उस बूढी माँ की आँखें अपलक शून्य को ऐसे निहारती रह गयी,
जैसे अपनी अंतिम यात्रा का मार्ग देख रहीं हों, यमराज के दूतों को साक्षात् देख रहीं हो,
अब प्रीतम के शब्दों में..............
मैंने अपनी पत्नी,बच्चों और गांव वासियों के साथ मिलकर सामाजिक रीति रिवाजों तथा पूर्ण विधि विधान के साथ माँ का अंतिम संस्कार किया......
मैंने निश्चय किया कि,
मैं उसी कुटिया में अपनी दूसरी माँ के बसाए परिवार के साथ माँ की उम्मीदों को ताउम्र पूरा करूँगा,
इस दौरान मेरी जन्म देने वाली माँ राजेश्वरी, पत्नी बसन्ती देवी, पिता और मेरा पुत्र शेखू उस कुटिया में मिलने आते रहे,
घर जाने की जिद भी करते, लेकिन मैंने उनसे कहा,
पिता जी , जितने दिन उसने आपका पुत्र बनने का सौभाग्य दिया,
उसका मैं हमेशा ऋणीय रहूँगा, हमेशा आपका ही पुत्र रहूँगा, लेकिन जिस माँ ने मुझे जिलाया, एक नयी दिशा दी,उस फ़र्ज़ से मैं नहीं हट सकता, उसको दिया वचन मैं नहीं तोड़ सकता, हाँ आप जब चाहे मुझसे मिलने आ सकते हैं,
पिताजी ने रोने के साथ ही मुझे कस की सीने से लगा लिया,
मैंने अपने पुत्र शेखू को भी सीने सा लगा लिया, वो बहुत रोया,
लेकिन मैं विवश था,
इसके बाद मैं अपने गाँव कभी नहीं गया,
इतना कहते कहते प्रीतम रोने लगे, आंसू बहाने लगे,
कहने लगे साहब, अपनी अपनी किस्मत है,

मैंने उन्हें (मेरे चाचा जी ने) समझाया कि,
प्रीतम साहब, आपने अपनी मुंह बोली माँ के साथ जो फ़र्ज़ निभाया वो काबिले तारीफ़ है,
इस कलियुग में ख़ास रिश्तों के साथ भी बहुत से अपना फ़र्ज़ भी नहीं निभाते, कतराते हैं,
आपने, एक बूढी माँ का दर्द समझकर, उसका साथ देकर,
और आदेश मानकर एक अच्छे इंसान का प्रमाण दिया ,
ईश्वर आपको लम्बी उम्र से नवाज़े, ताकि उस माँ की याद चिर स्थाई रह सके,...............


............................समाप्त.....................
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#11
clps clps clps clps clps

बहुत सुंदर ...............आपकी आगामी कहानियों की प्रतीक्षा रहेगी
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#12
[Image: IMG-20210801-WA0032.jpg]
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