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फिर से नहीं
#1
फिर से नहीं

Heart Heart Heart




















banana banana banana
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#2
1








मुझे पार्किंग से औफिस की तरफ जाते हुए ‘हाय’ की आवाज सुनाई दी, तो मैं ने उस दिशा में देखा जहां से वह आवाज आई थी. लेकिन उधर कोई नहीं दिखा तो मैं मुड़ कर वापस चलने लगी. फिर मुझे ‘हाय प्लाक्षा’ सुनाई दिया तो मैं रुक गई. पीछे मुड़ कर देखा तो विवान था. वह हाथ हिलाते हुए मेरी तरफ आ रहा था. ‘ये यहां क्या कर रहा है?’ मैं ने सोचा. फिर फीकी सी मुसकान के बाद उस से पूछा, ‘‘हाय, कैसे हो?’’

‘‘मैं ठीक हूं. तुम यहां दिल्ली में क्या कर रही हो?’’ उस ने जिज्ञासा से पूछा.

‘‘मैं यहां काम करती हूं,’’ मैं ने जवाब दिया.

‘‘क्या सच में? कब से?’’ उस की आवाज में उत्साह था.

‘‘2 हफ्ते हो गए. क्या तुम्हारा औफिस भी इसी बिल्डिंग में है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं, मैं तो यहां औफिस के काम से किसी से मिलने आया था,’’ उस ने जवाब दिया.

‘‘अच्छा चलो हम बाद में बात करते हैं. मुझे देर हो रही है,’’ यह कह कर मैं आगे बढ़ने लगी. जबकि आज मैं थोड़ा जल्दी आ गई थी, क्योंकि घर पर कुछ करने को ही नहीं था. औफिस में रोज सुबह 10 बजे मीटिंग होती थी. अभी उस में आधा घंटा बाकी था. मैं तो बस जल्दी से जल्दी उस से दूर जाना चाहती थी.

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‘‘चलो चलतेचलते बात करते हैं,’’ उस ने आगे बढ़ते हुए कहा.

‘‘तो तुम किस कंपनी में काम करती हो?’’ लिफ्ट में उस ने फिर से बात शुरू की.

‘‘द न्यूज ग्रुप में.’’

‘‘तो तुम टीवी पर आती हो?’’ उस ने आंखें बड़ी कर के पूछा. मुझे मन ही मन हंसी आ गई. पता नहीं क्यों सब को ऐसा लगता है कि न्यूज चैनल में काम करने वाले सभी लोग टीवी पर आते हैं.

‘‘नहीं, मैं अभी डैस्क पर काम करती हूं.’’ मैं ने उस की तरफ देखे बिना कहा.

मैं बेसब्री से अपना फ्लोर आने का इंतजार कर रही थी. लिफ्ट खुलते ही जल्दी से उसे ‘बाय’ कह कर मैं बाहर निकल गई. ऐसा नहीं था कि मैं उस से चिढ़ती थी, बल्कि एक वक्त तो ऐसा था जब मैं उस से मिलने, बात करने के लिए घंटों इंतजार करती थी. मेरी जिंदगी में उस के अलावा और कुछ नहीं था. दूसरे शब्दों में कहूं तो वही मेरी जिंदगी था.

विवान मेरा ऐक्स बौयफ्रैंड है. हम इंजीनियरिंग में एक ही क्लास में थे और उन 4 साल के बाद भी हम साथ थे. लेकिन धीरेधीरे सब फीका पड़ गया. मुझे लगने लगा कि मैं अकेली ही इस रिश्ते को संवारने में लगी हूं. उस वक्त विवान ने मुझे काफी हद तक बदल दिया था और एक बार मैं डिप्रैशन में चली गई थी. तब मैं ने निश्चय किया कि अब मुझे इस रिश्ते से बाहर आने की जरूरत है और हम अलग हो गए.

आज हम 2 साल बाद मिले थे. मेरे लिए आगे बढ़ना आसान नहीं था. लेकिन मैं ने कोशिश की और आज मुझे खुद पर गर्व था कि मैं ऐसा कर पाई. लेकिन आज जब मैं ने उसे इतने वक्त बाद देखा तो ऐसा लगा जैसे कुछ देर के लिए मेरा दिल धड़कना भूल गया हो.

औफिस में आई तो देखा कि वह लगभग खाली था. वैसे तो किसी न्यूज चैनल का औफिस कभी भी बिलकुल खाली नहीं होता पर सुबह की शिफ्ट के लोग 10 बजने पर ही आते थे. अपने लिए कौफी ले कर मैं कुरसी पर बैठ गई. दिमाग में फिर वही पुरानी बातें घूमने लगीं…

‘‘क्या हम हमेशा ऐसे दोस्त ही रहेंगे?’’ उस ने पूछा था.

‘‘हां, क्यों? क्या तुम नहीं चाहते?’’ मैं जानती थी कि उस के मन में क्या चल रहा था पर मैं उस के मुंह से सुनना चाहती थी.

‘‘नहीं, मेरा मतलब है कि कभी उस से ज्यादा नहीं?’’ उस ने झिझकते हुए कहा.

‘‘तुम क्या चाहते हो?’’ मैं ने पूछा.

‘‘तुम जानती हो कि मैं क्या चाहता हूं पर मैं कभी तुम्हें प्रपोज नहीं कर पाऊंगा,’’ वह कुछ ज्यादा ही अंतर्मुखी था. लेकिन मैं भी वही चाहती थी, इसलिए मैं ने ही प्रपोज करने की रस्म पूरी कर डाली. बचपन से ही मुंहफट जो थी.
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खैर, वक्त के साथ हम एकदूसरे के आदी हो गए. कालेज में तो 8 घंटे साथ रहते ही थे, आतेजाते भी साथ थे. इस के अलावा मोबाइल पर सारा दिन मैसेज होते रहते थे. कहते हैं, कभीकभी रिश्तों में ज्यादा नजदीकियां भी घातक हो जाती हैं. हम शायद जरूरत से ज्यादा ही साथ रहते थे. धीरेधीरे झगड़े बढ़ने लगे. वह मेरे लिए कुछ ज्यादा ही पजैसिव था.

‘‘वह लड़का तुम्हारी तरफ देख कर मुसकरा क्यों रहा है?’’ वह पूछता.

‘‘मुझे क्या पता,’’ मैं हैरान हो कर कहती.

‘‘मुझे बताओ तुम जानती हो उसे?’’ वह गुस्से से पूछता.

‘‘अरे हद है. मैं थोड़े ही देख रही हूं उसे. वह देख रहा है. पृछ लो जा कर उस से,’’ मैं तुनक कर कहती तो वह मुंह फुला कर चुप बैठ जाता.

मेरी जिंदगी मेरी रही ही नहीं थी और मुझे एहसास भी नहीं हुआ था कि कब और कैसे मैं उसे खुश करने के लिए अपनी जिंदगी से इनसानों और चीजों को बाहर निकालने लगी थी. मेरे जितने भी दोस्त लड़के थे, उन से तो बात करना छुड़वा ही दिया था, उस पर मजेदार बात यह थी कि जब मैं लड़कियों से बात करती तब भी न जाने क्यों उसे चिढ़ होती. इस तरह मैं एक कवच में चली गई. किसी से कोई मेलजोल नहीं, कोई बात नहीं. उस ने मेरे लिए कुछ नहीं छोड़ा था. न दोस्त, न जिम, न बाइक राइड्स.

जब वह इन सब में व्यस्त होता तब मैं अकेली बैठी यही सोचती रहती कि मैं क्या कर रही हूं खुद के साथ? मेरा आत्मविश्वास बिलकुल गिर चुका था. बहुत से लोगों के सामने बोलने में मुझे हिचक होती थी. शुरुआत में जब मैं क्लास में भी सब के सामने बोलती तो वह टोक देता. उसे लगता कि मैं ऐसा लोगों का ध्यान खींचने के लिए करती हूं.

उस की ऐसी बातें मुझ में खीज पैदा करने लगीं और मैं उस का विरोध करने लगी. बस वही वक्त था, जब हमारे बीच दूरियां बढ़ने लगीं. मैं ने उस के जासूसी भरे सवालों का जवाब देना बंद कर दिया. उसे अपना फोन चैक करने के लिए भी रोकने लगी. मुझे कभी समझ नहीं आया कि लोग रिश्तों में हमेशा शंकित क्यों रहते हैं. अगर कोई आप से प्यार करता है, तो वह आप के साथ धोखा करेगा ही नहीं और यदि वह धोखा करता है तो इस का मतलब वह आप के प्यार के काबिल ही नहीं था. यह बात विवान को कभी समझ नहीं आई और इसी चीज ने हमें अलग कर दिया.

अगले 2-3 दिन तक मैं औफिस आतेजाते इधरउधर देखती रहती कि कहीं वह है तो नहीं. पता नहीं उस से बचने के लिए या फिर उसे एक बार फिर से देखने के लिए. ठीक 1 हफ्ते के बाद फिर से सुबह के वक्त वह पार्किंग में मुझ से मिला.

‘‘गुड मौर्निंग,’’ उस ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘गुड मौर्निंग,’’ मैं ने नजरें चुराते हुए कहा.

‘‘मुझे देर हो रही है,’’ कह कर मैं चलने लगी.

‘‘सुनो प्लाक्षा…पाशी सुनो,’’ उस ने पीछे से पुकारा तो मेरे कदम रुक गए. आज मुझे सच में देर हो रही थी, लेकिन उस के मुंह से पाशी सुन कर मेरे कदम आगे बढ़ ही नहीं पाए.

‘‘मुझे तुम से कुछ बात करनी है,’’ वह पास आ कर बोला.

‘‘बाद में विवान, अभी मुझे सच में बहुत देर हो रही है,’’ मैं ने जल्दी से कहा.

‘‘ओके, ओके. शाम को कब फ्री होगी?’’ उस ने पूछा.

‘‘6 बजे,’’ मैं ने धीमी आवाज में कहा.

‘‘ठीक है, फिर डिनर साथ में करते हैं.’’

‘‘पर.’’

‘‘कोई परवर नहीं. मुझे शाम को यहीं मिलना. मैं इंतजार करूंगा,’’ उस ने दृढ़ स्वर में कहा.

मैं ने चुपचाप सिर हिला दिया और खड़ी रही.

‘‘अरे अब खड़ी क्यों हो? देर नहीं हो रही?’’ उस ने हलकी सी मुसकान के साथ कहा. मैं चल दी यह सोचते हुए कि अब भी क्यों मैं उस के सामने इतनी कमजोर हूं? क्या मैं अब भी उस से..? नहींनहीं, फिर से नहीं… मैं ने अपना सिर झटक दिया.

सिर झटकने से विचार नहीं रुके. पूरा दिन मैं उसी के बारे में सोचती रही. क्यों मिलना चाहता है मुझ से? क्या बात करनी होगी? क्या वह भी मुझ से? नहींनहीं… इसी पसोपेश में सारा दिन निकल गया. शाम को मैं जानबूझ कर 6 बजने के बाद भी औफिस में बैठी रही. सवा 6 बजे शिखा ने चलने के लिए कहा तो उस को जाने को कह कर खुद बैठी रही. जब साढ़े 6 बजे तो सोचने लगी कि जाऊं? घर जाने के लिए तो निकलना ही पड़ेगा और यह भी तो हो सकता है वह अभी तक इंतजार ही न कर रहा हो. अगर कर भी रहा हो तो कोई जबरदस्ती थोड़े ही है, मना कर दूंगी. खुद को यही समझातेसमझाते मैं नीचे तक चली आई. वह वहीं था. इंतजार कर रहा था.

‘‘क्या हुआ, क्यों देर हो गई?’’ उस ने पूछा.

‘‘काम ज्यादा था इसलिए…’’ मैं इतना ही कह पाई.

‘‘ओके. कोई बात नहीं, चलें?’’ यह कह कर वह अपनी गाड़ी की तरफ चलने लगा.

मेरे मुंह से चूं तक नहीं निकली. शायद मैं भी उस के साथ जाना चाहती थी. रास्ते में मैं पूरे वक्त खिड़की से बाहर ही देखती रही. उस की नजरें मुझे अपने चेहरे पर महसूस हो रही थीं, लेकिन मैं ने उस की ओर नहीं देखा.

‘‘क्या लोगी?’’ रैस्टोरैंट में मेन्यू बढ़ाते हुए उस ने पूछा.

‘‘कुछ भी…तुम देख लो,’’ मैं ने बिना मेन्यू देखे कहा. बैरे को और्डर देने के बाद हम चुपचाप खाने का इंतजार करने लगे. जब काफी देर तक वह कुछ नहीं बोला तो मैं ने ही चुप्पी तोड़ी.

‘‘क्या बात करनी है विवान? क्यों ले कर आए हो मुझे यहां?’’

‘‘मुझे तुम्हारी एक मदद चाहिए,’’ वह झिझकते हुए बोला.

‘‘कैसी मदद?’’

‘‘तुम मेरे मम्मीपापा से मिल सकती हो?’’ वह बोला.

‘‘क्या? पर क्यों? मुझे नहीं लगता कि वे मुझे जानते हैं,’’ मैं ने असमंजस में कहा.

‘‘यार देखो मुझे समझ में नहीं आ रहा कि मैं तुम्हें कैसे समझाऊं,’’ वह अचानक परेशान नजर आने लगा.

‘‘बोलो क्या बात है?’’

‘‘वे मेरी शादी के पीछे पड़े हैं. मैं अभी शादी नहीं कर सकता.’’

‘‘तो तुम मुझ से क्या चाहते हो?’’ मैं ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैं चाहता हूं कि तुम उन से मेरी गर्लफ्रैंड की तरह मिलो. मैं उन से कहने वाला हूं कि तुम अभी 6 महीने शादी नहीं कर सकतीं और मैं सिर्फ और सिर्फ तुम से शादी करूंगा,’’ वह समझाते हुए बोला.

‘‘तुम पागल हो गए हो? मैं ऐसा क्यों करूंगी? और तुम ऐसा क्यों कर रहे हो? कभी न कभी किसी न किसी से तो शादी करनी है न. प्रौब्लम क्या है?’’ मैं ने तीखे स्वर में पूछा.

‘‘प्लाक्षा, तुम करोगी या नहीं?’’

‘‘नहीं, और जब तक तुम कारण नहीं बताते तब तक तो बिलकुल भी नहीं.’’ वह कुछ देर तक चुपचाप मेरी तरफ देखता रहा. खाना आ चुका था. हम बिना कुछ बोले खाना खाने लगे.

‘‘प्लाक्षा, तुम सच में मेरी मदद नहीं करोगी?’’ खामोशी तोड़ कर उस ने कहा.

‘‘तुम मुझे कारण भी नहीं बता रहे हो, विवान. क्या उम्मीद करते हो मुझ से? और मैं तुम्हारे लिए कुछ भी क्यों करूंगी? इतना सब होने के बाद भी?’’ मेरी आवाज में चिढ़ थी. पता नहीं क्यों हर कोई मुझ से इतनी उम्मीदें रखता है. कभीकभी लगता है कि इनसान को इतना भी कमजोर नहीं होना चाहिए कि सब उस का फायदा ही उठाते रहें.

मेरा घर आ चुका था. ‘‘डिनर के लिए थैंक्स,’’ कह कर मैं कार का दरवाजा खोलने लगी.

‘‘प्लाक्षा सुनो, रुको.’’ मैं रुक गई.

‘‘प्लीज मेरी हैल्प कर दो. मैं तुम्हें सब कुछ बताता हूं.’’ उस के बाद उस ने जो कहानी बताई वह कुछ इस तरह थी-

उस की एक गर्लफ्रैंड थी, साक्षी. उसे कंपनी की तरफ से अमेरिका जाने का मौका मिला था और वह 6 महीने से पहले वापस नहीं आ सकती थी. विवान उसी से शादी करना चाहता था और मुझे उस के घर वालों से साक्षी बन कर मिलना था. उस के घर वाले उस पर शादी का बहुत ज्यादा दबाव बना रहे थे और उसे इस के अलावा कोई और विकल्प नहीं दिख रहा था.

‘‘पर मैं ही क्यों विवान? तुम तो किसी भी लड़की को ले जा सकते हो,’’ मैं ने उस से कहा.

‘‘एक तो और कोई है ही नहीं. फिर कोई लड़की सच में गले पड़ गई तो?’’

‘‘अच्छा. और मैं ने ऐसा कुछ किया तो?’’

‘‘नहीं करोगी. मुझे विश्वास है तुम पर.’’

मैं व्यंग्य से हंस पड़ी. ‘‘तुम्हें मुझ पर विश्वास है? अच्छा लगा सुन कर.’’

वह असहज हो गया. कुछ देर की शांति के बाद बोला, ‘‘तो तुम करोगी?’’

‘‘सोच कर बताऊंगी,’’ कह कर मैं कार से उतर गई. मुझे पता था उस की नजरें मेरा पीछा कर रही थीं पर मैं ने मुड़ कर नहीं देखा.

सारी रात उस की बातें मेरे दिमाग में घूमती रहीं. कितनी कोशिश की थी मैं ने उन सब बातों और यादों से खुद को दूर रखने की, लेकिन आज जब फिर से वह मेरे सामने खड़ा था तो खुद को कमजोर ही पा रही थी मैं. मुझे ब्रेकअप के कुछ महीने बाद उस से हुई आखिरी मुलाकात याद आ गई.

‘‘तुम्हें मेरी याद आती है?’’ मैं ने उस से पूछा था.

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं,’’ वह मेरी ओर देखे बिना बोला था. फिर पूरे वक्त वह अपनी जौब, कुलीग्स, घूमनेफिरने की ही बातें करता रहा. हालांकि मैं ने ही उसे मिलने के लिए बुलाया था, लेकिन मैं बिलकुल खामोश थी. बस, अलविदा कहते वक्त उस से पूछा था, ‘‘तुम क्या चाहते हो विवान मुझ से?’’

‘‘मतलब?’’ उस ने अचकचा कर पूछा.

‘‘हमारा ब्रेकअप हो चुका है न. फिर भी तुम जबतब मुझ से बात करने लगते हो और जब मैं बात करना चाहूं तो मुझे झिड़क देते हो. क्या चाहते हो? फिर से रिलेशनशिप में आना या फिर सच में बे्रकअप?’’ मैं ने उस से पूछा, क्योंकि पिछले कुछ महीनों से बहुत टैंशन में थी मैं. वह न तो मुझे खुद से जुड़े रहने देता और न ही पूरी तरह अलग करना चाहता था.

‘‘देखो, अब हम साथ तो नहीं रह सकते,’’ इतना ही बोला उस ने.

‘‘तो फिर मुझ से बात करना बिलकुल बंद कर दो. मुझे अकेला छोड़ दो. यह औनऔफ मुझ से बरदाश्त नहीं होता,’’ रो पड़ी थी मैं.

उस के बाद से अकेली ही थी मैं. कमजोर थी इसलिए कई लोगों ने भावनात्मक रूप से फायदा उठाने की कोशिश भी की. पर इन सब चीजों ने मुझे और मजबूत बना दिया. लोगों की थोड़ीबहुत पहचान भी मैं करने लगी थी अब. किसी पर आसानी से विश्वास नहीं करती थी. कुल मिला कर अपनी छोटी सी दुनिया में खुद को बचाए किसी तरह चैन से जी रही थी मैं. पर अब फिर से… नहीं. मैं अब किसी को अपनी अच्छाई का फायदा नहीं उठाने दूंगी. मैं मदद करूंगी लेकिन एक शर्त पर.

हम अगली बार एक कौफी शौप में बैठे थे. मेरे ‘हां’ कहने पर विवान बहुत खुश था. लेकिन मेरी शर्त की बात सुन कर वह थोड़ा परेशान हो गया.

‘‘क्या?’’ उस ने पूछा तो मैं ने कौफी पीते हुए कहा, ‘‘वह तुम्हें 6 महीने बाद बताऊंगी.’’

‘‘अरे, प्लीज बताओ न, तुम्हें पता है मुझे सस्पैंस बिलकुल पसंद नहीं है,’’ वह मेरा हाथ पकड़ कर जिद करने लगा. मैं ने झटके से अपना हाथ छुड़ा लिया. उस की छुअन से अब भी…नहींनहीं, फिर से नहीं.

‘‘सौरी,’’ वह डरते हुए बोला, ‘‘बताओ न प्लीज.’’

‘‘विवान, तुम चाहते हो न कि मैं तुम्हारी हैल्प करूं?’’ मैं ने तल्ख स्वर में पूछा. ‘‘हां, लेकिन…’’ उस की बात पूरी होने से पहले ही मैं बोली, ‘‘बस तो फिर अब कुछ काम मेरी पसंद के भी करो और मुझे बताओ कि कब कैसे क्या करना है.’’

‘‘अगले दिन हम दोनों उस के घर के ड्राइंगरूम में बैठे थे. मैं उस के कहे अनुसार सलवारकमीज में थी और हमेशा की तरह उस ने असहज महसूस कर रही थी. उस में मम्मीपापा सामने बैठे मुझे ऊपर से नीचे तक देख रहे थे.










सलवारकमीज
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‘‘तुमतो काफी छोटी लगती हो विवान से,’’ उस की मम्मी ने कहा.

‘‘नहीं आंटी, हम तो एक ही…’’ मेरी बात काट कर विवान बीच में ही बोला, ‘‘एक ही औफिस में काम करते हैं, एक ही बैच के हैं.’’ अच्छा हुआ उस ने संभाल लिया. मेरे मुंह से निकलने वाला था कि हम एक ही क्लास में थे.

‘‘फिर भी छोटी लगती है,’’ कह कर वे फुसफुसा कर उस के पापा के कान में कुछ कहने लगीं. मुझे पता था कि वे मेरी हाइट के बारे में बात कर रही होंगी. बचपन से सुनती आई थी ऐसी बातें लोगों के मुंह से, अब तो आदत हो चुकी थी. उन की बात भी सही थी. विवान मुझ से एक फीट से भी ज्यादा लंबा था.

‘‘तो बेटा, तुम यहां अकेली रहती हो?’’ उस के पापा ने पूछा.

‘‘जी. जौब यहीं है और मम्मापापा का जयपुर में अपनाअपना काम है, इसलिए अकेली ही रहती हूं,’’ मैं ने जवाब दिया.

‘‘शादी की बात करने तो वे आएंगे न?’’ उन्होंने आगे पूछा.

‘‘जी…’’ मैं ने झिझक कर विवान की ओर देखा.

‘‘पापा, अभी जयपुर में इन के घर का काम चल रहा है और फिर उन की जौब भी है, तो अभी नहीं आ सकते,’’ उस ने कहा.

‘‘तो हम जयपुर चले चलते हैं,’’ अंकलआंटी दोनों ने एक स्वर में कहा.

‘‘अरे इतनी भी क्या जल्दी है? वैसे भी अगले महीने मुझे प्रमोशन मिलने वाली है. तब तक अंकलआंटी भी फ्री हो जाएंगे,’’ विवान जल्दी से बोला.

‘‘अभी अगर सगाई ही हो जाती तो…’’ आंटी ने उम्मीद भरे स्वर में कहा.

‘‘मां मुझे पता है आप को मेरी शादी की बहुत जल्दी है. इतने दिन रुकी हो, तो अब थोड़े दिन और रुक जाओ,’’ उस ने मां को समझाते हुए कहा.

घर से बाहर आ कर कार में बैठ कर मैं ने चैन की सांस ली. विवान ने कार स्टार्ट की ही

थी कि मेरे दिमाग में एक विचार कौंधा, ‘‘मुझे एक बात बताओ विवान. तुम ने अपने घर वालों को सीधासीधा यह क्यों नहीं बता दिया कि साक्षी अभी यहां नहीं है, 6 महीने बाद आएगी?’’

मेरी बात सुन कर वह कुछ परेशान हो गया. फिर बोला, ‘‘मेरी मौसी की बेटी की सगाई एक लड़के से हुई थी. उस के बाद वह विदेश चला गया. उन लोगों ने 1 साल तक उस का इंतजार किया, लेकिन वह वापस नहीं आया. यहां उस के परिवार को भी उस की कोई खबर नहीं थी. बाद में छानबीन करने पर पता चला कि वह वहां आराम से लिव इन में रह रहा था. उस के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज हुई, लेकिन सगाई में हुए खर्चे और परिवार की इज्जत को हुए नुकसान की तो कोई भरपाई नहीं हुई.’’

‘‘लेकिन साक्षी तो कंपनी की तरफ से गई है न, उसे तो वापस आना ही पड़ेगा 6 महीने बाद?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हां, लेकिन मां यह बात नहीं समझ सकतीं न. उन्हें तो लगता है कि विदेश जाने वाला हर इनसान धोखेबाज हो जाता है,’’ उस ने मेरी तरफ देखते हुए कहा.

‘‘और जब साक्षी वापस आ जाएगी तब उन से क्या कहोगे? अपने ही बेटे से मिले धोखे को वे बरदाश्त कर पाएंगी?’’ मुझे सब कुछ बिलकुल घालमेल सा लग रहा था.

‘‘मैं इस बारे में नहीं सोचना चाहता पाशी. वह जब होगा तब मैं संभाल लूंगा. अभी बस मुझे मम्मीपापा को किसी तरह 6 महीने तक रोकना है. इस के अलावा मुझे अभी कुछ नहीं सूझ रहा.’’ उस ने कार रोक दी. मेरा घर आ चुका था.

‘‘तुम्हें लगता है कि तुम सही कर रहे हो विवान?’’ मैं ने इन दिनों में पहली बार उस की आंखों में देखते हुए पूछा.

‘‘नहीं, लेकिन मेरे पास और कोई रास्ता भी नहीं है अपने प्यार को पाने का,’’ उस ने मेरी आंखों में आंखें डालते हुए कहा. एक पल को लगा जैसे दुनिया ठहर गई हो पर फिर ध्यान आया उस का प्यार यानी साक्षी. मैं चुपचाप कार से उतर गई. वह चला गया.

अगले कुछ दिनों तक न तो उस का कोई काल आया और न ही वह कहीं नजर आया. मैं जानती थी कि वह मेरे पास सिर्फ काम से आया था पर फिर भी मुझे बुरा लगा. ऐसा नहीं था कि मैं ने उस से कोई उम्मीद की थी, लेकिन शायद फिर से उसे सामने देख कर दिल एक बार फिर ख्वाब संजोने लगा था. कई बार काफी दुखी हो जाती, उसे काल करने की भी सोचती. कई बार जी में आया कि मना कर दूं कि मुझे नहीं करनी किसी भी तरह की कोई भी मदद. लेकिन उस से जो मांगना था, उस के लालच में खुद को मना लेती. इस बार मैं कुछ भी भावनाओं में बह कर नहीं कर रही थी. इस में मेरा भी स्वार्थ था. एक रात इन्हीं विचारों में डूबी मैं बिस्तर पर लेटी करवटें बदल रही थी, तभी दरवाजे की घंटी बजी. मैं चौंक कर उठ बैठी. इतनी रात को कौन हो सकता है? घड़ी में देखा, पौने 12 बज रहे थे. वैसे तो जिस प्रोफैशन में मैं थी मुझे डरना नहीं चाहिए था, लेकिन इतने बड़े शहर में अकेली लड़की का फ्लैट में रहना आसान नहीं था. आज तक कोई खास परेशानी तो नहीं हुई थी पर आज इस घंटी की आवाज सुन कर दिल जोरजोर से धड़कने लगा. पिछले कुछ समय में लड़कियों के साथ हुए सारे हादसे याद आने लगे.

पलंग से उतर कर धीमे कदमों से मैं दरवाजे तक पहुंची. डोर व्यूवर में देखा तो बाहर विवान खड़ा था.

‘‘तुम इतनी रात को यहां क्या कर रहे हो?’’ दरवाजा खोलते ही मैं ने पूछा.

उस ने जवाब दिए बिना ही कहा, ‘‘अंदर आ जाऊं? मैं किनारे हो गई. अंदर जा कर वह कुरसी पर बैठ गया. मैं भी दरवाजा बंद कर के अंदर आ गई.

‘‘एक गिलास पानी पिलाओगी?’’ वह बोला, तो पानी पिला कर उस के पास ही कुरसी पर बैठ कर मैं उस के बोलने का इंतजार करने लगी. मुझे अपनी तरफ घूरते देख वह बोला,  ‘‘सौरी, तुम्हें इतनी रात को परेशान किया. मैं अपने घर की चाबी न जाने कहां भूल गया. मम्मीपापा जयपुर गए हैं, तो समझ नहीं आया क्या करूं. इसलिए यहां आ गया.’’

‘‘जयपुर क्यों?’’ मैं ने परेशान हो कर पूछा.

‘‘अरे ऐसे ही कुछ काम था. तुम क्यों इतनी परेशान हो रही हो?’’

‘‘नहीं, मुझे लगा कि…’’

‘‘कि?’’

‘‘कुछ नहीं…’’ लेकिन मेरे बिना बोले ही वह समझ गया.

‘‘चिंता मत करो. मैं ने मम्मीपापा को मना कर दिया है कि वे तुम्हारे मम्मीपापा से न मिलें,’’ उस ने तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘अच्छा 1 कप कौफी पिलाओगी?’’ उस की बात सुन कर मेरा ध्यान टूटा.

‘‘हां क्यों नहीं. अभी लाती हूं,’’ कह कर मैं उठ कर किचन में चली गयी. 2 मिनट बाद ही बाहर से विवान जोरजोर से आवाज लगाने लगा. मैं दौड़ कर बाहर आई तो देखा हौल में बिलकुल अंधेरा था, विवान वहां नहीं था. तभी फिर से उस की आवाज आई, ‘‘हैपी बर्थडे टू यू…हैपी बर्थडे टू यू…हैपी बर्थडे टू डियर पाशी…,’’ वह हाथ में केक लिए मेरे पास आ रहा था. उसे याद था पर कैसे और क्यों? इस बार तो मुझे भी याद नहीं था.

‘‘थैंक्यू विवान. पर यह सब किसलिए?’’ मेरे स्वर में हैरानी थी.

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उस ने मेरे होंठों पर उंगली रख कर कहा, ‘‘आओ पहले केक काटो. बाद में तुम्हारे परवर का जवाब दूंगा.’’

केक मेरा फेवरेट था यानी चौकलेट केक. उस पर लिखा था, ‘हैपी बर्थडे पाशी.’

आज कई सालों बाद मैं ने केक काटा था. विवान ने रिलेशनशिप के 5 सालों में मेरे बर्थडे पर कभी कुछ स्पैशल नहीं किया था. हर साल हमारा एक ही प्लान होता था मूवी और लंच. मैं हर साल उत्साहित होती कि शायद इस बार वह कुछ करेगा. लेकिन जब 2-3 साल यही सिलसिला चला, तो मैं ने उम्मीद करना ही छोड़ दिया.

कुछ जलने की बदबू आ रही थी. कौफी…मेरे मुंह से निकला. फिर मैं केक का टुकड़ा उस के हाथ में थमा कर किचन की तरफ भागी. गैस स्टोव खुला पड़ा था. पानी उबलउबल कर खत्म हो गया था और कौफी जलने की बदबू आ रही थी. मैं ने जल्दी से नौब बंद किया. विवान भी अंदर आ गया. यह सब देख कर वह बोला, ‘‘कोई बात नहीं. मैं कोल्ड ड्रिंक्स लाया हूं और खाने का सामान भी. मैं ने डिनर भी नहीं किया. चलो बाहर चलें.’’

वह बैग से एकएक कर के चीजें निकाल रहा था. पिज्जा, कोल्ड ड्रिंक और तोहफा.

‘‘ये लो तुम्हारा गिफ्ट,’’ उस ने तोहफा मुझे थमा दिया जो एक बहुत खूबसूरत कोलाज था. बचपन से ले कर आज तक की मेरी सारी तसवीरें. उन में से अधिकतर वे थीं, जो विवान ने मुझ से ली थीं. कुछ तो उन्हीं दिनों की थीं. मुझे पता ही नहीं चला उस ने कब खींची थीं.

‘‘विवान,’’ मैं ने उसे अपनी ओर घुमाते हुए कहा.

‘‘हां गोरी मेम.’’

एक सैकंड को मेरे चेहरे पर मुसकान आ गई. वह हमेशा मुझे प्यार से ऐसे ही बुलाता था. अपनी भावनाओं पर काबू करते हुए मैं ने उस से पूछा, ‘‘तुम यह सब क्यों कर रहे हो विवान?’’

‘‘मैं ने क्या किया?’’ उस ने मासूम बन कर पूछा.

‘‘यही सब…मेरा बर्थडे मना रहे हो रात के 12 बजे. 5 साल के रिलेशनशिप में कभी भी मेरे लिए कुछ स्पैशल नहीं किया. अब यह सब किसलिए?’’ मेरी आंखों में आंसू थे.

‘‘अरे तुम रो क्यों रही हो…तुम मेरी इतनी हैल्प कर सकती हो तो क्या मैं तुम्हारा बर्थडे भी नहीं मना सकता? क्यों इतना भी हक नहीं है मुझे?’’ वह मेरे गाल थपथपाते हुए बोला.

‘‘नहीं है. मुझे यह सब नहीं चाहिए विवान. मैं ने बहुत प्यार ले लिया सब से. अब और नहीं चाहिए. बेहतर होगा कि तुम यह सब न करो,’’ मेरे स्वर में दृढ़ता थी.

‘‘आगे से ध्यान रखूंगा पर अभी जो प्लान किया है वह तो करने दो प्लीज.’’

हम दोनों खामोशी से बैठ कर खाते रहे. अपना पसंदीदा पिज्जा खा कर मेरे मूड में कुछ सुधार हुआ. अब हम आराम से बैठ कर कोल्ड ड्रिंक पी रहे थे.

‘‘तुम्हारे पास साक्षी का कोई फोटो है?’’ मैं ने विवान से पूछा.

‘‘हां, क्यों?’’

मैं ने उस से दिखाने को कहा. साक्षी सुंदर थी. मुझ से ज्यादा सुंदर. मैं तो वैसे भी खुद को कभी सुंदर नहीं मानती थी. मैं ने विवान से कह भी दिया कि साक्षी बहुत सुंदर है, उस के लायक है. विवान खुद भी बहुत स्मार्ट था. अच्छीखासी कदकाठी, आकर्षक चेहरा. मैं तो उस के सामने कुछ भी नहीं थी.

‘‘तुम से ज्यादा क्यूट नहीं है,’’ उस ने शरारती अंदाज में कहा.

‘‘मजाक मत करो विवान,’’ मैं ने उसे हंस कर टाल दिया.

वह मुझे एकटक देख रहा था. मैं नजरें चुरा कर दूसरी ओर देखने लगी. यह देख कर उस ने भी अपनी नजरें हटा लीं और सहज हो कर कहा,  ‘‘चलो डांस करते हैं.’’

‘‘डांस? विवान तुम मजाक कर रहे हो. तुम और डांस?’’

‘‘हां, आजकल खूब डिस्को जा रहा हूं. चलो उठो.’’

‘‘अरे नहीं, मन नहीं है,’’ मैं ने आनाकानी करने की कोशिश की, लेकिन उस ने एक ही झटके में मुझे उठा लिया.

काफी वक्त बाद हम इतने करीब थे. विवान सहज था पर मैं असहज महसूस कर रही थी. उस का स्पर्श उस के पास होने का एहसास मुझे विचलित कर रहा था. कहीं अब भी मैं उस से…? नहींनहीं फिर से नहीं. उस का चेहरा मेरे चेहरे के बिलकुल नजदीक था. उस की सांसों को मैं अपनी गरदन पर महसूस कर रही थी. मन कर रहा था कि उस से लिपट जाऊं और जी भर के रोऊं. नहींनहीं…

मैं छिटक कर उस से अलग हो गई. उस की आंखों में ग्लानि और हैरानी का मिलाजुला भाव था. ‘‘तुम अब जाओ विवान,’’ मैं ने उस से नजरें मिलाए बिना कहा. वह बिना कुछ कहे चला गया.

सुबहसुबह मां के फोन से आंखें खुलीं. जन्मदिन की बधाई देने के बाद वे घर आने के कार्यक्रम के बारे में पूछने लगीं. वे जानती थीं कि नईनई नौकरी में छुट्टी मिलना आसान नहीं होता इसलिए कभी ज्यादा जोर नहीं देती थीं. लेकिन मैं पहली बार घर से दूर अकेली रह रही थी इसलिए उन्हें याद भी आती थी और फिक्र भी होती थी. मैं ने उन्हें तसल्ली दी कि राखी पर पक्का आ जाऊंगी. इसी बहाने भाई से भी मिलना हो जाएगा.

मां ने संतुष्ट हो कर फोन पापा को दे दिया. पापा ने बधाई दे कर और हालचाल पूछ कर फोन वापस मां को थमा दिया. इस बार मां के स्वर में उत्साह था,  ‘‘अच्छा सुन तेरे लिए एक रिश्ता आया है. तेरे पापा को तो पसंद भी आ गया.’’

‘‘मम्मा, आप को पता है न मुझे शादी नहीं करनी, फिर भी आप…’’ मैं ने चिढ़ कर कहा.

‘‘अरे कभी न कभी तो करनी है न. वे लोग इंतजार करने को तैयार हैं.’’

‘‘जरूर कोई कमी होगी लड़के में. ऐसे कौन इंतजार करता है.’’

‘‘कोई कमी नहीं है. मैं ने देखा है. अच्छाखासा दिखता है. इंजीनियर है, कमाई भी ठीकठाक है. तुझे भी जरूर पसंद आएगा.’’

अच्छा तो बात यहां तक पहुंच चुकी है. मुझ से पूछे बिना मेरी शादी की बातें हो रही हैं. लड़के देखे जा रहे हैं और पसंद भी किए जा रहे हैं. मुझे अब बहुत चिढ़ होने लगी तो मैं गुस्से से बोली, ‘‘इंजीनियर होने से क्या होता है मम्मा, वह तो मैं भी थी. आजकल तो हर दूसरा बंदा इंजीनियर है.’’

मेरा जीवन भर शादी करने का कोई इरादा नहीं था. लगता था जैसे दुनिया भर की परेशानियां पिछले कुछ सालों में झेल ली थीं और लड़कों को तो मैं बरदाश्त भी नहीं कर सकती थी. विवान की बात अलग थी. मैं उस की एकएक आदत जानती थी और वह मेरी. मुझे पता था उसे किस स्थिति में कैसे संभालना है. बाकी तो आज तक सब लड़कों ने मुझे बेवकूफ ही बनाया था चाहे वे दोस्त हों या कुछ और.

‘‘एक बार मिलने में क्या हरज है बेटा? हम कौन सा जबरदस्ती तेरी शादी करा देंगे,’’ मां ने मनुहार करते हुए कहा.

‘‘पर मुझे शादी करनी ही नहीं है मां,’’ मैं किसी कीमत पर नहीं मानने वाली थी. ये सब घर वालों की साजिश होती है. पहले मिलने में क्या हरज है, फिर रिश्ता ही तो पक्का हुआ है, फिर सगाई भी कर ही देते हैं और आखिर में शादी करा के ही मानते हैं. मुझे इस जाल में नहीं फंसना था.

‘‘क्यों नहीं करनी? मुझे कारण तो बता. कोई है क्या? हो तो बता दे. तू तो जानती है हमें कोई प्रौब्लम नहीं होगी.’’

‘‘हां मां, कोई है.’’ मैं ने हकलाते हुए कहा. मां से झूठ बोलना बहुत बड़ी बात थी. हम दोनों मां बेटी होने से ज्यादा दोस्त थीं, लेकिन अभी मुझे कुछ और सूझ ही नहीं रहा था.

‘‘कौन है, क्या करता है? वहीं का ही है क्या? बताया क्यों नहीं?’’ मां ने एक के बाद एक सवाल दागने शुरू कर दिए.

‘‘मम्मा, आप उस को जानती हो. मेरे साथ कालेज में था. इंजीनियरिंग में. आजकल यहीं है.’’

‘‘कौन, विवान?’’

मां भी न मां ही होती है. मैं हंस पड़ी,  ‘‘हां मां, आप को कैसे पता?’’

‘‘बेटा मैं आप की मां हूं. तू जिस तरीके से उस के बारे में बात करती थी, उस से मुझे लगता तो था कि कुछ न कुछ तो है.’’ मैं कुछ नहीं बोली. मां ही आगे बोलने लगीं, ‘‘तो घर कब ला रही है उसे? पापा से भी तो मिलवाना पड़ेगा न.’’

‘‘नहीं मां, पापा को मत बताना प्लीज. वे पता नहीं क्या सोचेंगे.’’

पापा से मेरा रिश्ता थोड़ा अलग किस्म का था. वह न तो दोस्ती जितना खुला था और न ही पारंपरिक पितापुत्री जैसा दकियानूसी. हम दोनों दुनिया के किसी भी बौद्धिक मुद्दे पर बात कर सकते थे, लेकिन बायफ्रैंड, शादी वगैरह पर कभी नहीं.

‘‘क्या सोचेंगे? वे जानते हैं कि उन की बेटी समझदार है. जो भी फैसला लेगी सोचसमझ कर ही लेगी,’’ मां मेरी बात को समझ ही नहीं रही थीं और मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे रोकूं मां को?

‘‘मां, लेकिन…’’ मैं ने बोलने की कोशिश की.

‘‘अब कुछ लेकिनवेकिन नहीं. तू जब राखी पर आएगी उसे भी साथ ले आना. सब मिल लेंगे,’’ मां ने अंतिम फैसला सुनाते हुए कहा.

मैं ने फोन रख दिया. लेकिन सोच रही थी अब यह एक और नई परेशानी. विवान को मनाना पड़ेगा और कल जो हुआ उस के बाद पता नहीं विवान मानेगा या नहीं. फिर भी कोशिश तो करनी होगी. मैं ने उसे फोन लगाया. उस ने उठाया नहीं. 2-3 बार करने पर भी नहीं उठाया. क्या वह नाराज था या फिर शर्मिंदा?

औफिस भी जाना था. अब बचपन तो था नहीं कि सारा दिन जन्मदिन मनाती फिरूं. बड़े होने का यही नुकसान है. आप छोटीछोटी खुशियों को मनाना छोड़ देते हो. खैर, फटाफट तैयार हो कर औफिस के लिए निकल गई. विवान से बाद में भी बात हो सकती थी.

लंच टाइम के दौरान उस का काल आया,  ‘‘सौरी यार, मीटिंग में था इसलिए फोन नहीं उठा पाया. बोलो?’’

ओह तो यह बात थी. मैं बिना मतलब ही फालतू की बातें सोच रही थी. वह सामान्य रूप से ही बात कर रहा था. फिर भी मैं ने सावधानी से पूछा, ‘‘आज डिनर साथ करें? मुझे कुछ बात करनी है.’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं. यह भी कोई पूछने की बात है. मैं शाम को तुम्हें पिक कर लूंगा,’’ उस ने सहजता से कहा.

चलो एक बाधा तो पार हुई. अब सब से बड़ी मशक्कत तो उसे मनाने की थी. सारा दिन यही सोचती रही कि उस से कैसे और क्या कहना है. कभीकभी लगता है कितने झमेले हैं जिंदगी में. आधी से ज्यादा तो लोगों को मनाने में ही निकल जाती है और बाकी उन की बातें मान कर उन के अनुसार चलने में. शाम को मैं समय से पहले ही नीचे पहुंच गई. मेरे मन में जो उथलपुथल चल रही थी उसे मैं जल्दी से जल्दी शांत करना चाहती थी. कार में बैठ कर भी खुद को संयमित कर पाना मुश्किल हो रहा था.

‘‘विवान, मुझे तुम से एक फेवर चाहिए,’’ मैं ने झिझकते हुए कहा.

‘‘हां बोलो,’’ वह अपनी नजरें सड़क से हटाए बिना बोला.

‘‘क्या तुम मेरे लिए वही कर सकते हो जो मैं तुम्हारे लिए कर रही हूं?’’

‘‘मतलब?’’ उस ने हैरानी से मेरी तरफ देखा.

मैं ने उसे मां से सुबह हुई बात के बारे में बताया. यह भी बताया कि मैं ने मां से कहा है कि वह मेरा बौयफ्रैंड है और क्योंकि मां तुम्हें जानती हैं, इसलिए तुम्हें यह नाटक करना ही पड़ेगा.

‘‘तो यही था जो तुम बदले में मुझ से चाहती थीं?’’ उस ने पूछा.

‘‘नहीं. यह सब तो आज ही हुआ. उस बात को रहने दो. तुम बस मेरी इतनी हैल्प कर दो. मुझे और कुछ नहीं चाहिए,’’ मैं ने दयनीय स्वर में कहा.

वह हंसने लगा, ‘‘तुम पागल हो? तुम जो बोलो मैं वह करने को तैयार हूं. बस परेशानी यह है कि तुम कभी कुछ बोलतीं ही नहीं,’’ उस का हाथ मेरे हाथ पर था, आंखें मेरे चेहरे पर जमी हुई थीं. क्या उस की आंखों में मेरे लिए…? नहींनहीं…

‘‘राखी पर चलना है,’’ मैं ने गला खंखार कर कहा.

‘‘क्या?’’ इस से उस का ध्यान टूट गया,  ‘‘राखी पर तो नहीं उस के 1-2 दिन पहले या बाद में आ जाऊंगा, चलेगा?’’

‘‘थैंक्यू,’’ अब जा कर सांस में सांस आई. अब बस घर जा कर सब ठीक हो जाए.

एक बार फिर से हम मम्मीपापा के सामने बैठे थे. फर्क इतना था कि इस बार मम्मीपापा मेरे थे. घबराहट के मारे विवान के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था. मुझे बड़ा मजा आ रहा था उसे ऐसे देख कर. बड़ी मुश्किल से मैं अपनी हंसी रोक पा रही थी.

‘‘मैं ने शायद पहले तुम्हें कहीं देखा है,’’ पापा ने विवान को देखते हुए कहा. उस ने डर कर मेरी तरफ देखा.

‘‘हां पापा, कालेज में देखा होगा कभी,’’ मैं ने अपना चेहरा सामान्य रखते हुए कहा.

‘‘हो सकता है. अच्छा बेटा पैकेज कितना है तुम्हारा?’’ पापा ने इंटरव्यू शुरू किया.


...............4
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#5
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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#6
update plz
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#7
thanks
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भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#8
Please update
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#9
THANKS
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#10
Interesting story.... Keep updating fast.
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#11
Waiting for update
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#12
(13-06-2020, 10:46 PM)bhavna Wrote: Interesting story.... Keep updating fast.

(14-06-2020, 03:40 PM)harishgala Wrote: Waiting for update

Heart430 welcome
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thanks
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#13
neera dear......................ek ek karke complete hi karti jao.........kitni stories 1-2 updates dekar latka rakhi hain
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#14
तृष्णा.............................................................. से तुष्टि तक .......
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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thanks
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#15
welcome welcome Namaskar Namaskar Namaskar
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#16
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‘‘अगले दिन हम दोनों उस के घर के ड्राइंगरूम में बैठे थे. मैं उस के कहे अनुसार सलवार कमीज में थी और हमेशा की तरह उस ने असहज महसूस कर रही थी. उस में मम्मीपापा सामने बैठे मुझे ऊपर से नीचे तक देख रहे थे.












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thanks
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#17
aage bhi likho.................pichhle update dobara kyun post kar rahi ho
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#18
JAROOR
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thanks
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#19
3........................
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thanks
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#20
2 devil2
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