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Adultery मजबूर (Completed)
#1
मजबूर (एक औरत की दास्तान)

लेखक: तुषार ©

****************************************

रुखसाना की पहली शादी बी-ए खतम करते ही एक्कीस साल की उम्र में हुई थी... पर शादी के कुछ ही महीनों बाद उसके शौहर की मौत एक हादसे में हो गयी। रुखसाना बेवा हो लखनऊ में अपने माँ-बाप के घर आ गयी। उनका मिडल-क्लास घर था। रुखसाना के वालिद की रेडिमेड गार्मेंट्स की दुकान थी। रुखसाना माँ-बाप पर बोझ नहीं बनना चाहती थी इसलिये वो शहर के एक बड़े अपस्केल लेडिज़ बुटीक में असिस्टेंट के तौर पे काम करने लगी। बुटीक में ही ब्यूटी पार्लर भी था तो रुखसाना के लिये ये अच्छा तजुर्बा था... कपड़े-लत्ते पहनने और बनने संवरने के सलीके सीखने का। इस दौरान उसके माँ-बाप रूकसाना की दूसरी शादी के लिये बहोत कोशिश कर रहे थे। रुखसाना बेहद गोरी और खूबसूरत और स्मार्ट थी लेकिन इसके बावजूद कहीं अच्छा और मुनासिब रिश्ता नहीं मिल रहा था। फिर साल भर बाद एक दिन उसके मामा ने उसकी शादी फ़ारूक नाम के आदमी से तय कर दी। तब फ़ारूक की उम्र अढ़तीस साल थी और रुखसाना की तेईस साल। फ़ारूक की पहली बीवी का इंतकाल शादी के तेरह साल बाद हुआ था और उसकी एक नौ साल की बेटी भी थी। फ़ारूक रेलवे में जॉब करता था। इसलिये घर वालों ने सोचा कि सरकारी नौकरी है... और किसी चीज़ की कमी भी नहीं... इसलिये रुखसाना की शादी फ़ारूक के साथ हो गयी। फ़ारूक की पोस्टिंग शुरू से ही बिहार के छोटे शहर में थी जहाँ उसका खुद का घर भी था।

शादी कहिये या समझौता... पर सच तो यही था कि शादी के बाद रुखसाना को किसी तरह की खुशी नसीब ना हुई.... ना ही वो कोई अपना बच्चा पैदा कर सकी और ना ही उसे शौहर का प्यार मिला। बस यही था कि समाज में शादीशुदा होने का दर्ज़ा और अच्छा माकूल रहन-सहन। शादी के डेढ़-दो साल बाद उसे अपने शौहर पर उसके बड़े भाई की बीवी अज़रा के साथ कुछ नाजायज़ चक्कर का शक होने लगा और उसका ये शक ठीक भी निकला। एक दिन जब फ़ारूक के भाई के बीवी उनके यहाँ आयी हुई थी, तब रुखसाना ने उन्हें ऊपर वाले कमरे में रंगरलियाँ मनाते... ऐय्याशी करते हुए देख लिया।

जब रुखसाना ने इसके बारे में फ़ारूक से बात की तो वो उल्टा उस पर ही बरस उठा। पता नहीं अज़रा ने फ़ारूक पर क्या जादू किया था कि फ़ारूक ने रुखसाना को साफ़-साफ़ बोल दिया कि अगर ये बात किसी को पता चली तो वो रुखसाना को तलाक़ दे देगा... और उसकी बुरी हालत कर देगा। रुखसाना ये सब चुपचाप बर्दाश्त कर गयी। जितने दिन अज़रा उनके यहाँ रुकती... फ़ारूक और अज़रा दोनों खुल्ले आम शराब के नशे में धुत्त होकर हवस का नंगा खेल घर में खेलते। उन दोनों को अब रुखसाना की जैसे कोई परवाह ही नहीं थी.... कभी-कभी तो रुखसाना के बगल में ही बेड पर फ़ारूक और अज़रा चुदाई करने लगते। ये सब देख कर रुखसाना भी गरम हो जाती थी पर अपनी ख्वाहिशों को अपने सीने में दबाये रखती और ज़िल्लत बर्दाश्त करती रहती। रुखसाना के पास और कोई चारा भी नहीं था। बेशक अज़रा बेहद खूबसूरत और सेक्सी थी लेकिन रुखसाना भी खूबसूरती और बनने-संवरने में उससे ज़रा भी कम नहीं थी। अज़रा ने फ़ारूक की ज़िंदगी इस क़दर तबाह कर दी थी कि वो जो कभी-कभार रुखसाना के साथ सैक्स करता भी था.... वो भी करना छोड़ दिया। धीरे-धीरे उसकी मर्दाना ताकत शराब में डूबती चली गयी। कोई दिन ऐसा नहीं होता जब वो नशे में धुत्त गिरते पड़ते घर ना आया हो। इस सबके बावजूद फ़ारूक चुदक्कड़ नहीं था कि कहीं भी मूँह मारता फिरे। उसका जिस्मानी रिश्ता सिर्फ़ अज़रा के साथ ही था जिसे वो दिलो-जान से चाहता था।

रुखसाना ने शुरू-शुरू में अपने हुस्न और खूबसूरती और अदाओं से फ़ारूक को रिझाने और सुधारने की बेहद कोशिश की... लेकिन उसे नाकामयाबी ही हासिल हुई। फिर रुखसाना ने सानिया... जो कि फ़ारूक की पहली बीवी से बेटी थी... उसकी परवरिश में और घर संभालने में ध्यान लगाना शुरू कर दिया। अपनी जिस्मानी तस्कीन के लिये रुखसाना हफ़्ते में एक-दो दफ़ा खुद-लज़्ज़ती का सहारा लेने लगी। इसी तरह वक़्त गुज़रने लगा और रुखसाना और फ़ारूक की शादी को दस-ग्यारह साल गुज़र गये। रुखसाना चौंतीस साल की हो गयी और सानिया भी बीस साल की हो चुकी थी और कॉलेज में फ़ायनल इयर में थी। रुखसाना कभी सोचती थी कि सानिया ही इस दुनिया में उसके आने की वजह है... उसका दुनिया में होना ना होना एक बराबर है.... पर कर भी क्या सकती थी... जैसे तैसे ज़िंदगी कट रही थी। इस दौरान रुखसाना ने खुद को भी मेन्टेन करके रखा था लेकिन फ़ारूक़ ने उसकी तारीफ़ में कभी एक अल्फ़ाज़ भी नहीं कहा। शौहर की नज़र अंदाज़गी और सर्द महरी के बावजूद अपनी खुद की खुशी और तसल्ली के लिये हमेशा मेक-अप करके... नये फैशन के सलवार-कमीज़ और सैंडल पहने... सलीके से बन-संवर कर हमेशा तैयार रहती थी। वो उन गिनी चुनी औरतों में से थी जिसे शायद ही कभी किसी ने बे-तरतीब हालत में देखा हो। चाहे शाम के पाँच बजे हों या सुबह के पाँच बजे.... वो हमेशा बनी संवरी रहती थी।

फिर एक दिन वो हुआ जिसने उसकी पूरी ज़िंदगी ही बदल दी। उसने कभी सोचा भी ना था कि ये बेरंग दिखने वाली दुनिया इतनी हसीन भी हो सकती है... पर रुखसाना को इसका एहसास तब हुआ जब उन सब की ज़िंदगी में सुनील आया।
 
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#2
सुनील की उम्र बीस-इक्कीस साल की थी। बीस साल का होते-होते ही उसने ग्रैजूएशन कर लिया था। उसके घर पर सिर्फ़ सुनील और उसकी माँ ही रहते थे। बचपन में ही पिता की मौत के बाद माँ ने सुनील को पाला पोसा पढ़ाया लिखाया। उसके पापा के गुज़रने के बाद माँ को उनकी जगह रेलवे में नौकरी मिल गये थी। सिर्फ़ दो जने थे... इसलिये पैसो की कभी तंगी महसूस नहीं हुई। सुनील की पढ़ायी लिखायी भी एक साधारण से स्कूल और फिर सरकारी कॉलेज से हुई थी... इसलिये सुनील की माँ को उसकी पढ़ायी लिखायी का ज्यादा खर्च नहीं उठाना पढ़ा। सुनील पढ़ायी लिखायी में बेहद होशियार भी था। ग्रैजूएशन करते ही सुनील ने रेलवे में नौकरी के लिये फ़ॉर्म भर दिये थे। उसके बाद परिक्षायें हुई और सुनील का चयन हो गया और जल्दी ही सुनील को पोस्टिंग भी मिल गयी। सुनील बेहद खुश था पर एक दुख भी था क्योंकि सुनील की पोस्टिंग बिहार में हुई थी। सुनील पंजाब का रहने वाला था। इसलिये वहाँ नहीं जाना चाहता था कि पता नहीं कैसे लोग होंगे वहाँ के... कैसी उनकी भाषा होगी... बस यही सब ख्याल सुनील के दिमाग में थे।

सुनील की माँ भी उदास थी पर सुनील के लिये सुकून की बात ये थी कि दस दिन बाद ही सुनील की माँ का रिटायरमेंट होने वाला था। इसलिये वो अब सुकून के साथ बिना किसी टेंशन के सुनील के मामा यानी अपने भाई के घर रह सकती थी। जिस दिन माँ को नौकरी से रिटायरमेंट मिला... उसके अगले ही दिन सुनील बिहार के लिये रवाना हो गया। वहाँ एक छोटे शहर के स्टेशन पर उसे क्लर्क नियुक्त किया गया था। जब सुनील वहाँ पहुँचा और स्टेशन मास्टर को रिपोर्ट किया तो उन्होंने स्टेशन के बाहर ही बने हुए स्टाफ़ हाऊज़ में से एक फ़्लैट सुनील को दे दिया।

जब सुनील फ़्लैट के अंदर गया तो अंदर का हाल देख कर परेशान हो गया। फ़र्श जगह -जगह से टूटा हुआ था... दीवारों पर सीलन के निशान थे... बिजली की फ़िटिंग जगह-जगह से उखड़ी हुई थी। जब सुनील ने स्टेशन मास्टर से इसकी शिकायत की तो उसने सुनील से कहा कि उसके पास और कोई फ़्लैट खाली नहीं है... एडजस्ट कर लो यार! स्टेशन मास्टर की उम्र उस वक़्त पैंतालीस के करीब थी और उसका नाम अज़मल था।

अज़मल: "यार सुनील कुछ दिन गुजारा कर लो... फिर मैं कुछ इंतज़ाम करता हूँ!"

सुनील: "ठीक है सर!"

उसके बाद अज़मल ने सुनील को उसका काम और जिम्मेदारियाँ समझायीं! सुनील की ड्यूटी नौ बजे से शाम पाँच बजे तक ही थी। धीरे-धीरे सुनील की जान पहचान स्टेशन पर बाकी के कर्मचारियों से भी होने लगी। जब कभी सुनील फ़्री होता तो ऑफ़िस से बाहर निकल कर प्लेटफ़ोर्म पर घूमने लगता... सब कुछ बहुत अच्छा था। सिर्फ़ सुनील के फ़्लैट को लेकर अज़मल भी अभी तक कुछ नहीं कर पाया था। सुनील उससे बार-बार शिकायत नहीं करना चाहता था। एक दिन सुनील दोपहर को जब फ़्री था तो वो ऑफ़िस से निकल कर बाहर आया तो देखा अज़मल भी प्लैटफ़ोर्म पर कुर्सी पर बैठे हुए थे। सुनील को देख कर उन्होंने उसे अपने पास बुला लिया।

अज़मल: "सॉरी सुनील यार... तुम्हारे फ़्लैट का कुछ कर नहीं पा रहा हूँ!"

सुनील: "कोई बात नहीं सर... अब सब कुछ तो आपके हाथ में नहीं है... ये मुझे भी पता है!"

अज़मल: "और बताओ मैं तुम्हारे लिये क्या कर सकता हूँ... अगर किसी भी चीज़ की जरूरत हो तो बेझिझक बोल देना!"

सुनील: "सर जब तक मेरे फ़्लैट का इंतज़ाम नहीं हो जाता... आप मुझे पास में ही कहीं हो सके तो किराये पर ही रूम दिलवा दें!"

अज़मल (थोड़ी देर सोचने के बाद): "अच्छा देखता हूँ!"

तभी अज़मल की नज़र प्लैटफ़ोर्म पे थोड़ी सी दूर फ़ारूक पर पड़ी। फ़ारूक रेल यातायात सेवा महकमे में ऑफिसर था। उसका ऑफिस प्लैटफ़ोर्म के दूसरी तरफ़ की बिल्डिंग में था। उसे देख कर अज़मल ने फ़ारूक को आवाज़ लगायी।

अज़मल: "अरे फ़ारूक यार ज़रा सुनो तो!"

फ़ारूक: "हुक्म कीजिये अज़मल साहब!" फ़ारूक उन दोनों के पास आकर खड़ा हो गया। फ़ारूक और अज़मल दुआ सलाम के बाद बात करने लगे।

अज़मल: "फ़ारूक यार! ये सुनील है... अभी नया जॉइन हुआ है इसके लिये कोई किराये पर रूम ढूँढना है... तुम तो यहाँ करीब ही रहते हो कोई कमरा अवैलबल हो तो बताओ!"

फ़ारूक: "जरूर... कमरा मिलने में तो कोई मुश्किल नहीं होनी चाहिये...! कितना बजट है सुनील तुम्हारा?"

सुनील : "अगर दो-तीन हज़ार किराया भी होगा तो भी चलेगा!"

अज़मल: "और हाँ... रूम के आसपास कोई अच्छा सा ढाबा भी हो तो मुनासिब रहेगा ताकि इसे खाने पीने की तकलीफ़ ना हो!"

फ़ारूक (थोड़ी देर सोचने के बाद बोला): "सुनील अगर तुम चाहो तो मेरे घर में भी एक रूम खाली है ऊपर छत पर... बाथरूम टॉयलेट सब अलग है ऊपर... बस सीढ़ियाँ बाहर की बजाय घर के अंदर से हैं... अगर तुम्हें प्रॉब्लम ना हो तो... और रही खाने के बात तो तुम्हें मेरे घर पर घर का बना खाना भी मिल जायेगा... पीने की भी कोई प्रॉब्लम नहीं... है क्या कहते हो?"

सुनील: "जी आपका ऑफर तो बहुत अच्छा है... आपको ऐतराज़ ना हो तो शाम तक बता दूँ आपको?"

फ़ारूक के जाने के बाद सुनील ने अज़मल से पूछा कि क्या फ़ारूक के घर पर रहना ठीक होगा... तो उसने हंसते हुए कहा, "यार सुनील तू आराम से वहाँ रह सकता है... वैसे तुझे पता है कि ये जो फ़ारूक है ना बड़ा पियक्कड़ किस्म का आदमी है... रोज रात को दारू पिये बिना नहीं सोता... वैसे तुझे कोई तकलीफ़ नहीं होगी वहाँ पर... बहुत अच्छी फ़ैमिली है और तुझे घर का बना खाना भी मिल जायेगा!"

शाम को सुनील अपने ऑफिस से निकल कर फ़ारूक के ऑफ़िस में गया जो प्लैटफ़ोर्म के दूसरी तरफ़ था और फ़ारूक को अपनी रज़ामंदी दे दी। फ़ारूक बोला, "तो चलो मेरे घर पर... रूम देख लेना और अगर तुम्हें पसंद आये तो आज से ही रह लेना वहाँ पर!"

सुनील ने फ़ारूक की बात मान ली और उसके साथ उसके घर की तरफ़ चल पढ़ा। वो दोनों फ़ारूक के स्कूटर पर बैठ के उसके घर पहुँचे तो फ़ारूक ने डोर-बेल बजायी। थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला तो फ़ारूक ने थोड़ा गुस्से से दरवाजा खोलने वाले को कहा, "क्या हुआ इतनी देर क्यों लगा दी!" सुनील बाहर से घर का मुआयना कर रहा था। घर बहुत बड़ा नहीं था लेकिन बहोत अच्छी हालत में था। अच्छे रंग-रोगन के साथ गमलों में खूबसूरत फूल-पौधे लगे हुए थे। फ़ारूक की आवाज़ सुन कर सुनील ने दरवाजे पर नज़र डाली।

सामने बीस-इक्कीस साल की बेहद ही खूबसूरत गोरे रंग की लड़की खड़ी थी... उसके बाल खुले हुए थे और उसके हाथ में बाल संवारने का ब्रश था... उसने सफ़ेद कलर का सलवार कमीज़ पहना हुआ था जिसमें उसका जिस्म कयामत ढा रहा था। सुनील को अपनी तरफ़ यूँ घूरता देख वो लड़की मार्बल के फर्श पे अपनी हील वाली चप्पल खटखटाती हुई अंदर चली गयी। तभी फ़ारूक ने सुनील से कहा, "सुनील ये मेरी बेटी सानिया है... आओ अंदर चलते हैं...!"

सुनील उसके साथ अंदर चला गया। अंदर जाकर उसने सुनील को ड्राइंग रूम में सोफ़े पर बिठाया और अंदर जाकर आवाज़ दी, "रुखसाना... ओ रुखसाना! कहा चली गयी... जल्दी इधर आ!" और फिर फ़ारूक सुनील के पास जाकर बैठ गया।
 
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#3
रुखसाना जैसे ही रूम मैं पहुँची तो फ़ारूक उसे देख कर बोला, "ये सुनील है... हमारे स्टेशन पर नये क्लर्क हैं... इनको ऊपर वाला कमरा दिखाने लाया था... अगर इनको रूम पसंद आया तो कल से ये ऊपर वाले रूम में रहेंगे... जा कुछ चाय नाश्ते का इंतज़ाम कर!"

सुनील: "अरे नहीं फ़ारूक भाई... इसकी कोई जरूरत नहीं है!"

फ़ारूक: "चलो यार चाय ना सही... एक-एक पेग हो जाये!"

सुनील: "नहीं फ़ारूक भाई... मैं पीता नहीं... मुझे बस रूम दिखा दो!" सुनील ने फ़ारूक से झूठ बोला था कि वो ड्रिंक नहीं करता पर असल में वो भी कभी-कभी ड्रिंक कर लिया करता था।

रुखसाना ने बड़ी खुशमिजाज़ी से सुनील को सलाम कहा तो उसने एक बार रुखसाना की तरफ़ देखा। वो सर झुकाये हुए उनकी बातें सुन रही थी। रुखसाना ने कढ़ाई वाला गहरे नीले रंग का सलवार- कमीज़ पहना हुआ था और बड़ी शालीनता से दुपट्टा अपने सीने पे लिया हुआ था। खुले लहराते लंबे बाल और चेहरे पे सौम्य मेक-अप था और पैरों में ऊँची हील की चप्पल पहनी हुई थी। रुखसाना की आकर्षक शख्सियत से सुनील काफ़ी इंप्रेस हुआ। रुखसाना को भी सुनील शरीफ़ और माकूल लड़का लगा। सुनील भी अच्छी पर्सनैलिटी वाला लड़का था। हट्टा-कट्टा कसरती जिस्म था और उसके चिकने चेहरे पे कम्सिनी और मासूमियत की झलक थी। दिखने में वो बारहवीं क्लास या कॉलेज के स्टूडेंट जैसा लगता था।

फ़ारूक बोले, "चलो तुम्हें रूम दिखा देता हूँ!" फिर सुनील फ़ारूक के साथ छत पर चला गया। सुनील को घर और ऊपर वाला रूम बेहद पसंद आया। अंदर बेड, दो कुर्सियाँ और स्टडी टेबल मौजूद थी। बाथरूम और टॉयलेट छत के दूसरी तरफ़ थे लेकिन वो भी साफ़-सुथरे थे। रूम देखने के बाद सुनील ने फ़ारूक से पूछा, "बताइये फ़ारूक भाई... कितना किराया लेंगे आप...?" फ़ारूक ने सुनील की तरफ़ देखते हुए कहा, "अरे यार जो भी तुम्हारा बजट हो दे देना!"

रूम का और खाने-पीने का मिला कर साढ़े तीन हज़ार महीने का किराया तय करने के बाद फिर सुनील ने फ़ारूक से रुखसाना और उसके रिश्ते के बारे में पूछा तो फ़ारूक ने बताया कि रुखसाना उसकी बीवी है। सुनील को लगा था कि रुखसाना फ़ारूक की बड़ी बेटी है शायद।

फ़ारूक: "वो दर असल सुनील बात ये है कि, रुखसाना मेरे दूसरी बीवी है। जब मैं चौबीस साल का था तब मेरी पहली शादी हुई थी और पहली बीवी से सानिया हुई थी... शादी के तेरह साल बाद मेरी पहली बीवी की मौत हो गयी... फिर मैंने अपनी बीवी की मौत के बाद अढ़तीस साल की उम्र में रुखसाना से शादी की। रुखसाना की भी पहले शादी हुई थी... लेकिन उसके शौहर की भी मौत हो गयी और बाद में जब रुखसाना तेईस साल की थी तब मेरी और रुखसाना की शादी हुई!"

अब सारा मसला सुनील के सामने था। थोड़ी देर बाद सुनील वापस चला गया। अगले दिन शाम को सुनील फ़ारूक के साथ ऑटो से अपना सामान ले कर आ गया और फिर अपना सामन ऊपर वाले रूम में सेट करने लगा।

फ़ारूक: "अच्छा सुनील... गरमी बहुत है... तुम नहा धो लो... फिर रात के खाने पर मिलते हैं!" उसके बाद नीचे आने के बाद फ़ारूक ने रुखसाना से बोला, "जल्दी से रात का खाना तैयार कर दो... मैं थोड़ी देर बाहर टहल कर आता हूँ!" ये कह कर फ़ारूक बाहर चला गया। रुखसाना जानती थी कि फ़ारूक अब कहीं जाकर दारू पीने बैठ जायेगा और पता नहीं कब नशे में धुत्त वापस आयेगा। इसलिये उसने खाना तैयार करना शुरू कर दिया। आधे घंटे में रुखसाना और सानिया ने मिल कर खाना तैयार कर लिया। अभी वो खाना डॉयनिंग टेबल पे लगा ही रही थी कि लाइट चली गयी। ऊपर से इतनी गरमी थी कि नीचे तो साँस लेना भी मुश्किल हो रहा था।

रुखसाना ने सोचा कि क्यों ना सुनील को ऊपर ही खाना दे आये। इसलिये उसने खाना थाली में डाला और ऊपर ले गयी। जैसे ही वो ऊपर पहुँची तो लाइट भी आ गयी। सुनील के रूम की तरफ़ बढ़ते हुए उसके ज़हन में अजीब सा डर उमड़ रहा था। रूम का दरवाजा खुला हुआ था। रुखसाना सिर को झुकाये हुए रूम में दाखिल हुई तो उसके सैंडलों की आहट सुन कर सुनील ने पीछे पलट कर उसकी तरफ़ देखा।

"हाय तौबा..." रुखसाना ने मन में ही आह भरी क्योंकि सुनील सिर्फ़ ट्रैक सूट का लोअर पहने खड़ा था उसने ऊपर बनियान वगैरह कुछ नहीं पहना हुआ था। रुखसाना की नज़रें उसकी चौड़ी छाती पर ही जम गयीं... एक दम चौड़ा सीना माँसल बाहें... एक दम कसरती जिस्म! रुखसाना ने अपनी नज़रों को बहुत हटाने की कोशिश की... पर पता नहीं क्यों बार-बार उसकी नज़रें सुनील की चौड़ी छाती पर जाकर टिक जाती।

रुखसाना: "जी वो मैं आपके लिये खाना लायी थी!"

अभी सुनील कुछ बोलने ही वाला था कि एक बार फिर से लाइट चली गयी और रूम में एक दम से घुप्प अंधेरा छा गया। एक जवान लड़के के साथ अपने आप को अंधेरे रूम में पा कर रुखसाना एक दम से घबरा गयी। उसने हड़बड़ाते हुए कहा, "मैं नीचे से एमर्जेंसी लाइट ला देती हूँ!" पर सुनील ने उसे रोक दिया, "अरे नहीं आप वहीं खड़ी रहिये... आप मुझे बता दो एमर्जेंसी लाइट कहाँ रखी है... मैं ले कर आता हूँ!" रुखसाना ने उसे बता दिया कि एमर्जेंसी लाइट नीचे डॉयनिंग टेबल पे ही रखी है तो सुनील अंधेरे में नीचे चला गया और फिर थोड़ी देर बाद सुनील एमर्जेंसी लाइट ले कर आ गया और उसे टेबल पर रख दिया।

जैसे ही एमर्जेंसी लाइट की रोशनी रूम में फैली तो रुखसाना की नज़र एक बार फिर उसके गठीले जिस्म पर जा ठहरी। पसीने से भीगा हुआ उसका कसरती जिस्म एमर्जेंसी लाइट की रोशनी में ऐसे चमक रहा था मानो जैसे सोना हो। रुखसाना को सबसे अच्छी बात ये लगी कि सुनील के सीने या पेट पर एक भी बाल नहीं था। बिल्कुल चीकना सीना था उसका। रुखसाना को खुद आपने जिस्म पे भी बाल पसंद नहीं थे और वो बाकायदा वेक्सिंग करती थी। यहाँ तक कि अपनी चूत भी एक दम साफ़ रखती थी जबकि उसे चोदने वाला या उसकी चूत की कद्र करने वाला कोई नहीं था। तभी सुनील उसकी तरफ़ बढ़ा और रुखसाना की आँखों में झाँकते हुए उसके हाथ से खाने की थाली पकड़ ली। रुखसाना ने शरमा कर नज़रें झुका ली और हड़बड़ाते हुए बोली, "मैं बाहर चारपाई बिछा देती हूँ... आप बाहर बैठ कर आराम से खाना खा लीजिये...!"

रूखसाना बाहर आयी और बाहर चारपाई बिछा दी। सुनील भी खाने की थाली लेकर चारपाई पर बैठ गया।

"फ़ारूक भाई कहाँ हैं...?" सुनील ने खाने की थाली अपने सामने रखते हुए पूछा पर रुखसाना ने सुनील की आवाज़ नही सुनी... वो तो अभी भी उसके बाइसेप्स देख रही थी। जब रुखसाना ने उसकी बात का जवाब नहीं दिया तो वो उसकी और देखते हुए दोबारा फ़ारूक के बारे में पूछने लगा। सुनील की आवाज़ सुन कर रुखसाना होश में आयी और एक दम से झेंप गयी और सिर झुका कर बोली "पता नहीं कहीं पी रहे होंगे... रात को देर से ही घर आते हैं!"

सुनील: "अच्छा कोई बात नहीं... उफ़्फ़ ये गरमी... इतनी गरमी में खाना खाना भी मुश्किल हो जाता है!"

रुखसाना सुनील की बात सुन कर रूम में चली गयी और हाथ से हिलाने वाला पंखा लेकर बाहर आ गयी और सुनील के पास जाकर बोली, "आप खाना खा लीजिये... मैं हवा कर देती हूँ...!"

सुनील: "अरे नहीं-नहीं... मैं खा लुँगा आप क्यों तकलीफ़ कर रही हैं!"

रुखसाना: "इसमें तकलीफ़ की क्या बात है... आप खाना खा लीजिये!"

सुनील चारपाई पर बैठ कर खाना खाने लगा और रुखसाना सुनील के करीब चारपाई के बगल में दीवार के सहारे खड़ी होकर खुद को और सुनील को पंखे से हवा करने लगी। "अरे आप खड़ी क्यों हैं... बैठिये ना!" सुनील ने उसे यूँ खड़ा हुआ देख कर कहा।

"नहीं कोई बात नहीं... मैं ठीक हूँ...!" रुखसाना ने अपने सर को झुकाये हुए कहा।

सुनील: "नहीं रुखसाना जी! ऐसे अच्छा नहीं लगता मुझे कि मैं आराम से खाना खाऊँ और आप खड़ी होकर मुझे पंखे से हवा दें... मुझे अच्छा नहीं लगता... आप बैठिये ना!" अंजाने में ही उसने रुखसाना का नाम बोल दिया था पर उसे जल्दी ही एहसास हो गया। "सॉरी मैंने आप का नाम लेकर बुलाया... वो जल्दबाजी में बोल गया!"

रुखसाना: "कोई बात नहीं...!"

सुनील: "अच्छा ठीक है... अगर आपको ऐतराज़ ना हो तो आज से मैं आपको भाभी कहुँगा क्योंकि मैं फ़ारूक साहब को भाई बुलाता हूँ... अगर आपको बुरा ना लगे।"

रुखसाना: "जी मुझे क्यों बुरा लगेगा!"

सुनील: "अच्छा भाभी जी... अब ज़रा आप बैठने की तकलीफ़ करेंगी!"

सुनील की बात सुन कर रुखसाना को हंसी आ गयी और फिर सामने चारपाई पे पैर नीचे लटका कर बैठ गयी और पंखा हिलाने लगी। सुनील फिर बोला, "भाभी जी एक और गुज़ारिश है आपसे... प्लीज़ आप भी मुझे 'आप-आप' कह कर ना बुलायें... उम्र में मैं बहुत छोटा हूँ आपसे... मुझे नाम से बुलायें प्लीज़!"

"ठीक है सुनील अब चुपचाप खाना खाओ तुम!" रुखसाना हंसते हुए बोली। उसे सुनील का हंसमुख मिजाज़ बहोत अच्छा लगा।

सुनील खाना खाते हुए बार-बार रुखसाना को चोर नज़रों से देख रहा था। एमर्जेंसी लाइट की रोशनी में रुखसाना का हुस्न भी दमक रहा था। बड़ी- बड़ी भूरे रंग की आँखें... तीखे नयन नक्श... गुलाब जैसे रसीले होंठ... लंबे खुले हुए बाल... सुराही दार गर्दन... रुखसाना का हुस्न किसी हूर से कम नहीं था।

रुखसाना ने गौर किया कि सुनील की नज़र बार-बार या तो ऊँची हील वाली चप्पल में उसके गोरे-गोरे पैरों पर या फिर उसकी चूचियों पर रुक जाती। गहरे नीले रंग की कमीज़ में रुखसाना की गोरे रंग की चूचियाँ गजब ढा रही थी... बड़ी-बड़ी और गोल-गोल गुदाज चूचियाँ। इसका एहसास रुखसाना को तब हुआ जब उसने सुनील की पतली ट्रैक पैंट में तने हुए लंड की हल चल को देखा। खैर सुनील ने जैसे तैसे खाना खाया और हाथ धोने के लिये बाथरूम में चला गया। इतने में लाइट भी आ गयी थी। जब वो बाथरूम में गया तो रुखसाना ने बर्तन उठाये और नीचे आ गयी। नीचे आकर उसने बर्तन किचन में रखे और अपने बेड पर आकर लेट गयी, "ओहहहह आज ना जाने मुझे क्या हो रहा है....?" अजीब सी बेचैनी महसूस हो रही थी उसे। बेड पर लेटे हुए उसने जैसे ही अपनी आँखें बंद की तो सुनील का चिकना चेहरा और उसकी चौड़ी छाती और मजबूत बाइसेप्स उसकी आँखों के सामने आ गये। पेट के निचले हिस्से में कुछ अजीब सा महसूस होने लगा था... रह-रह कर इक्कीस साल के नौजवान सुनील की तस्वीर आँखों के सामने से घूम जाती।

रुखसाना पेट के बल लेटी हुई अपनी टाँगों के बीच में अपना हाथ चूत पर दबा कर अपने से पंद्रह साल छोटे लड़के का तसव्वुर कर कर रही थी... किस तरह सुनील उसकी चूचियों को निहार रहा था... कैसे उसकी ऊँची हील की चप्पल में उसके गोरे-गोरे पैरों को देखते हुए सुनील का लंड ट्रैक पैंट में उछल रहा था। रुखसाना का हाथ अब उसकी सलवार में दाखिल हुआ ही था कि तभी वो ख्वाबों की दुनिया से बाहर आयी जब सानिया रूम में अंदर दाखिल होते हुए बोली... "अम्मी क्या हुआ खाना नहीं खाना क्या?"

रुखसाना एक दम से बेड पर उठ कर बैठ गयी और अपनी साँसें संभालते हुए अपने बिखरे हुए बालों को ठीक करने लगी। सानिया उसके पास आकर बेड पर बैठ गयी और उसके माथे पर हाथ लगा कर देखते हुए बोली, "अम्मी आप ठीक तो हो ना?"

रुखसाना: "हाँ... हाँ ठीक हूँ... मुझे क्या हुआ है?"

सानिया: "आपका जिस्म बहोत गरम है... और ऊपर से आपका चेहरा भी एक दम लाल है!"

रुखसाना: "नहीं कुछ नहीं हुआ... वो शायद गरमी के वजह से है... तू चल मैं खाना लगाती हूँ!"

फिर रुखसाना और सानिया ने मिल कर खाना खाया और किचन संभालने लगी। तभी फ़ारूक भी आ गया। जब रुखसाना ने उससे खाने का पूछा तो उसने कहा कि वो बाहर से ही खाना खा कर आया है। फ़ारूक शराब के नशे में एक दम धुत्त बेड पर जाकर लेट गया और बेड पर लेटते ही सो गया। रुखसाना ने भी अपना काम खतम किया और वो लेट गयी। करवटें बदलते हुए कब उसे नींद आयी उसे पता ही नहीं चला। सुबह- सुबह फ़ारूक ने ऊपर जाकर सुनील के रूम का दरवाजा खटकटाया। सुनील ने दरवाजा खोला तो फ़ारूक सुनील को देखते हुए बोला "अरे यार सुनील... मुझे माफ़ कर दो... कल तुम्हारा यहाँ पहला दिन था... और मेरी वजह से..."

सुनील: "अरे फ़ारूक भाई कोई बात नहीं... अब जबकि मैं आपके घर में रह रहा हूँ तो मुझे बेगाना ना समझें..!"

फ़ारूक: "अच्छा तुम तैयार होकर आ जाओ... आज नाश्ता नीचे मेरे साथ करना!"

सुनील: "अच्छा ठीक है मैं तैयार होकर आता हूँ!"

फ़ारूक नीचे आ गया और रुखसाना को जल्दी नाश्ता तैयार करने को कहा। थोड़ी देर बाद सुनील तैयार होकर नीचे आ गया। रुखसाना ने नाश्ता टेबल पर रखते हुए सुनील के जानिब देखा तो उसने रुखसाना को सलाम कहा। रुखसाना ने भी मुस्कुरा कर उसे जवाब दिया और नाश्ता रख कर फिर से किचन में आ गयी। नाश्ते के बाद सुनील और फ़ारूक स्टेशन पर चले गये।
 
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#4
इसी तरह दो हफ़्ते गुज़र गये। फ़ारूक और सुनील हर रोज़ नाश्ता करने के बाद साथ-साथ स्टेशन जाते। फिर शाम को छः-सात बजे के करीब कभी दोनों साथ में वापस आते और कभी सुनील अकेला ही वापस आता। फ़ारूक जब सुनील के साथ वापस आता तो भी थोड़ी देर बाद फिर शराब पीने कहीं चला जाता और देर रात नशे की हालत में लौटता। सुनील ज्यादातर शाम को ऊपर अपने कमरे में या छत पे ही गुज़ारता था। रुखसाना उसे ऊपर ही खाना दे आती थी। सुनील की खुशमिजाज़ी और अच्छे रवैये से रुखसाना के दिल में उसके लिये उल्फ़त पैदा होने लगी थी। उसे सुनील से बात करना अच्छा लगता था लेकिन उसे थोड़ा-बहोत मौका तब ही मिलता था जब वो उसे खाना देने ऊपर जाती थी। सुनील खाने की या उसकी तारीफ़ करता तो उसे बहोत अच्छा लगता था। रुखसाना ने नोट किया था कि सुनील भी कईं दफ़ा उसे चोर नज़रों से निहारता था लेकिन रुखसाना को बुरा नहीं लगता था क्योंकि सुनील ने कभी कोई ओछी हर्कत या बात नहीं की थी। उसे तो बल्कि खुशी होती थी कि कोई उसे तारीफ़-अमेज़ नज़रों से देखता है।

एक दिन शाम के छः बजे डोर-बेल बजी तो रुखसाना ने सोचा कि सुनील और फ़ारूख आ गये हैं। उसने सानिया को आवाज़ लगा कर कहा कि, "तुम्हारे अब्बू आ गये है, जाकर डोर खोल दो!"

सानिया बाहर दरवाजा खोलने चली गयी। सानिया ने उस दिन गुलाबी रंग का सलवार कमीज़ पहना हुआ था जो उसके गोरे रंग पर क़हर ढा रहा था। गरमी होने की वजह से वो अभी थोड़ी देर पहले ही नहा कर आयी थी। उसके बाल भी खुले हुए थे और बला की क़यामत लग रही थी सानिया उस दिन। रुखसाना को अचानक महसूस हुआ कि जब सुनील देखेगा तो उसके दिल पर भी सानिया का हुस्न जरूर क़हर बरपायेगा।

सानिया दरवाजा खोलने चली गयी। रुखसाना बेडरूम में बैठी सब्जी काट रही थी और आँखें कमरे के दरवाजे के बाहर लगी हुई थी। तभी उसे बाहर से सुनील की हल्की सी आवाज़ सुनायी दी। वो शायद सानिया को कुछ कह रहा था। रुखसाना को पता नहीं क्यों सानिया का इतनी देर तक सुनील के साथ बातें करना खलने लगा। वो उठ कर बाहर जाने ही वाली थी कि सुनील बेडरूम के सामने से गुजरा और ऊपर चला गया। उसके पीछे सानिया भी आ गयी और सीधे रुखसाना के बेडरूम में चली आयी।

इससे पहले कि रुख्सना सानिया से कुछ पूछ पाती वो खुद ही बोल पड़ी, "अम्मी आज रात अब्बू घर नहीं आयेंगे... वो सुनील बोल रहा था कि आज उनकी नाइट ड्यूटी है...!" सानिया सब्जी काटने में रुखसाना की मदद करने लगी। रुखसाना सोच में पड़ गयी कि आखिर उसे हो क्या गया है... सुनील तो शायद इसलिये सानिया से बात कर रहा था कि आज फ़ारूक घर पर नहीं आयेगा... यही बताना होगा उसे... पर उसे क्या हुआ था को वो इस कदर बेचैन हो उठी... अगर वैसे भी सानिया और सुनील आपस में कुछ बात कर भी लेते है तो इसमें हर्ज ही क्या है... वो दोनों तो हम उम्र हैं... कुंवारे हैं और वो एक शादीशुदा औरत है उम्र में भी उन दोनों से चौदह-पंद्रह साल बड़ी।

रुखसाना को सानिया और सुनील का बात करना इस लिये भी अच्छा नहीं लगा था कि जब से सुनील उनके यहाँ रहने आया था तब से सानिया के तेवर बदले-बदले लग रहे थे... कहाँ तो हर रोज़ सानिया को ढंग से कपड़े पहनने और सजने संवरने के लिये जोर देना पड़ता था और कहाँ वो इन दिनों नहा-धो कर बिना कहे शाम को कॉलेज से लौट कर तैयार होती और आइने के सामने बैठ कर अच्छे से मेक-अप तक करने लगी थी। इन दो हफ़्तों में उसका पहनावा भी बदल गया था। यही सब महसूस करके रुखसाना को सानिया के ऊपर शक सा होने लगा।

फिर रुखसाना ने सोचा कि अगर सानिया सुनील को पसंद करती भी है तो उसमें सानिया की क्या गल्ती है... सुनील था ही इतना हैंडसम और चार्मिंग लड़का कि जो भी लड़की उसे देखे उस पर फ़िदा हो जाये। रुखसाना खुद भी तो इस उम्र में सुनील पे फ़िदा सी हो गयी थी और अपने कपड़ों और मेक-अप पे पहले से ज्यादा तवज्जो देने लगी थी। रुखसाना उठी और सानिया को सब्जी काट कर किचन में रखने के लिये कहा। फिर आईने के सामने एक दफ़ा अपने खुले बाल संवारे और थोड़ा मेक-अप दुरुस्त किया। रुखसाना घर के अंदर भी ज्यादातर ऊँची हील वाली चप्पल पहने रहती थी लेकिन अब मेक-अप दुरुस्त करके उसने अलमारी में से और भी ज्यादा ऊँची पेंसिल हील वाली सैंडल निकाल कर पहन ली क्योंकि इन दो हफ़्तों में सुनील की नज़रों से रुखसाना को उसकी पसंद का अंदाज़ा हो गया था। सुनील की नज़र अक्सर हील वाली चप्पलों में रुखसाना के पैरों पे अटक जाया करती थी। सैंडलों के बकल बंद करके वो एक गिलास में ठंडा पानी लेकर ऊपर चली गयी। सोचा कि सुनील को प्यास लगी होगी तो गरमी में उसे फ़्रिज का ठंडा पानी दे आये लेकिन इसमें उसका खुद का मकसद भी छुपा था। जैसे ही रुखसाना सुनील के कमरे के दरवाजे पर पहुँची तो सुनील अचानक से बाहर आ गया। उसके जिस्म पर सिर्फ़ एक तौलिया था... जो उसने कमर पर लपेट रखा था। शायद वो नहाने के लिये बाथरूम में जा रहा था।

रुखसाना ने उसकी तरफ़ पानी का गिलास बढ़ाया तो सुनील ने शुक्रिया कह कर पानी का गिलास लेते हुए पानी पीना शुरू कर दिया। रुखसाना की नज़र फिर से सुनील की चौड़ी छाती पर अटक गयी। पसीने की कुछ बूँदें उसकी छाती से उसके पेट की तरफ़ बह रही थीं जिसे देख कर रुखसाना के होंठ थरथराने लगे। सुनील ने पानी खतम किया और रुखसाना की तरफ़ गिलास बढ़ाते हुए बोला, "थैंक यू भाभी जी... लेकिन आप ने क्यों तकलीफ़ उठायी... मैं खुद ही नीचे आ कर पानी ले लेता!" रुखसाना ने नोटिस क्या कि सुनील उसके काँप रहे होंठों को बड़ी ही हसरत भरी निगाहों से देख रहा था। सुनील उसे निहारते हुए बोला, "भाभी जी कहीं बाहर जा रही हैं क्या...?"

रुखसाना चौंकते हुए बोली, "नहीं तो क्यों!"

"नहीं बस वो आपको इतने अच्छे से तैयार हुआ देख कर मुझे ऐसा लगा... एक बात कहूँ भाभी जी... आप खूबसूरत तो हैं ही और आपके कपड़ों की चॉईस... मतलब आपका ड्रेसिंग सेंस भी बहुत अच्छा है... जैसे कि अब ये सैंडल आपकी खूबसूरती कईं गुना बढ़ा रहे हैं। सुनील से इस तरह अपनी तारीफ़ सुनकर रुखसाना के गाल शर्म से लाल हो गये। फ़रूक से तो कभी उसने अपनी तारीफ़ में दो अल्फ़ाज़ भी नहीं सुने थे। सिर झुका कर शरमाते हुए वो धीरे से बोली, :बस ऐसे ही सजने-संवरने का थोड़ा शौक है मुझे!" फिर वो गिलास लेकर जोर-जोर से धड़कते दिल के साथ नीचे आ गयी।

जब रुखसाना नीचे पहुँची तो सानिया खाना तैयार कर रही थी। सानिया को पहले कभी इतनी लगन और प्यार से खाना बनाते रुखसाना कभी नहीं देखा था। थोड़ी देर में ही खाना तैयार हो गया। रुखसाना ने सुनील के लिये खाना थाली में डाला और उसने सोचा क्यों ना आज सुनील को खाने के लिये नीचे ही बुला लूँ। उसने सानिया से कहा कि वो खाना टेबल पर लगा दे जब तक वो खुद ऊपर से सुनील को बुला कर लाती है। रुखसाना की बात सुन कर सानिया एक दम चहक से उठी।

सानिया: "अम्मी सुनील आज खाना नीचे खायेगा?"

रुखसाना: "हाँ! मैं बुला कर लाती हूँ..!"

रुखसाना ऊपर की तरफ़ गयी। ऊपर सन्नाटा पसरा हुआ था। बस ऊँची पेंसिल हील वाले सैंडलों में रुखसाना के कदमों की आवाज़ और सुनील के रूम से उसके गुनगुनाने की आवाज़ सुनायी दी रही थी। रुखसाना धीरे-धीरे कदमों के साथ सुनील के कमरे की तरफ़ बढ़ी और जैसे ही वो सुनील के कमरे के दरवाजे पर पहुँची तो अंदर का नज़ारा देख कर उसकी तो साँसें ही अटक गयीं। सुनील बेड के सामने एक दम नंगा खड़ा हुआ था। उसका जिस्म बॉडी लोशन की वजह से एक दम चमक रहा था और वो अपने लंड को बॉडी लोशन लगा कर मुठ मारने वाले अंदाज़ में हिला रहा था। सुनील का आठ इंच लंबा और मोटा अनकटा लंड देख कर रुखसाना की साँसें अटक गयी। उसके लंड का सुपाड़ा अपनी चमड़ी में से निकल कर किसी साँप की तरह फुंफकार रहा था।

क्या सुपाड़ा था उसके लंड का... एक दम लाल टमाटर के तरह इतना मोटा सुपाड़ा... उफ़्फ़ हाय रुखसाना की चूत तो जैसे उसी पल मूत देती। रुखसाना बुत्त सी बनी सुनील के अनकटे लंड को हवा में झटके खाते हुए देखने लगी... इस बात से अंजान कि वो एक पराये जवान लड़के के सामने उसके कमरे में खड़ी है... वो लड़का जो इस वक़्त एक दम नंगा खड़ा है। तभी सुनील एक दम उसकी तरफ़ पलटा और उसके हाथ से लोशन के बोतल नीचे गिर गयी। एक पल के लिये वो भी सकते में आ गया। फिर जैसे ही उसे होश आया तो उसने बेड पर पड़ा तौलिया उठा कर जल्दी से कमर पर लपेट लिया और बोला, "सॉरी वो मैं... मैं डोर बंद करना भूल गया था...!" अभी तक रुखसाना यूँ बुत्त बन कर खड़ी थी। सुनील की आवाज़ सुन कर वो इस दुनिया में वापस लौटी। "हाय अल्लाह!" उसके मुँह से निकला और वो तेजी से बाहर की तरफ़ भागी और वापस नीचे आ गयी।

रुखसाना नीचे आकर कुर्सी पर बैठ गयी और तेजी से साँसें लेने लगी। जो कुछ उसने थोड़ी देर पहले देखा था... उसे यकीन नहीं हो रहा था। जिस तरह से वो अपने लंड को हिला रहा था... उसे देख कर तो रुखसाना के रोंगटे ही खड़े हो गये थे... उसकी चुत में हलचल मच गयी थी और गीलापन भर गया था। तभी सानिया अंदर आयी और उसके साथ वाली कुर्सी पर बैठते हुए बोली, "अम्मी सुनील नहीं आया क्या?"

रुखसाना: "नहीं! वो कह रहा है कि वो ऊपर ही खाना खायेगा!"

सानिया: "ठीक है अम्मी... मैं खाना डाल देती हूँ... आप खाना दे आओ...!"

रुखसाना: "सानिया तुम खुद ही देकर आ जाओ... मेरी तबियत ठीक नहीं है...!" सुनील के सामने जाने की रुखसाना की हिम्मत नहीं हुई। उसे यकीन था कि अब तक सुनील ने भी कपड़े पहन लिये होंगे... इसलिये उसने सानिया से खाना ले जाने को कह दिया।

सानिया बिना कुछ कहे खाना थाली में डाल कर ऊपर चली गयी और सुनील को खाना देकर वापस आ गयी और रुखसाना से बोली, "अम्मी सुनील पूछ रहा था कि आप खाना देने ऊपर नहीं आयीं... आप ठीक तो है ना...?" रुखसाना ने एक बार सानिया की तरफ़ देखा और फिर बोली, "बस थोड़ी थकान सी लग रही है... मैं सोने जा रही हूँ तू भी खाना खा कर किचन का काम निपटा कर सो जाना!" सानिया को हिदायत दे कर रुखसाना अपने बेडरूम में जा कर दरवाजा बंद करके बेड पर लेट गयी। उसके दिल-ओ-दिमाग पे सुनील का लौड़ा छाया हुआ था और वो इस कदर मदहोश सी थी कि उसने कपड़े बदलना तो दूर बल्कि सैंडल तक नहीं उतारे थे। ऐसे ही सुनील के लंड का तसव्वुर करते हुए बेड पर लेट कर अपनी टाँगों के बीच तकिया दबा लिया हल्के-हल्के उस पर अपनी चूत रगड़ने लगी। फिर अपना हाथ सलवार में डाल कर चूत सहलाते हुए उंगलियों से अपनी चूत चोदने लगी। आमतौर पे फिर जब वो हफ़्ते में एक-दो दफ़ा खुद-लज़्ज़ती करती थी तो इतने में उसे तस्क़ीन हासिल हो जाती थी लेकिन आज तो उसकी चूत को करार मिल ही नहीं रहा था।

थोड़ी देर बाद वो उठी और बेडरूम का दरवाजा खोल कर धीरे बाहर निकली। अब तक सानिया अपने कमरे में जा कर सो चुकी थी। घर में अंधेरा था... बस एक नाइट-लैम्प की हल्की सी रोशनी थी। रुखसाना किचन में गयी और एक छोटा सा खीरा ले कर वापस बेडरूम में आ गयी। दरवाजा बंद करके उसने आनन फ़ानन अपनी सलवार और पैंटी उतार दी और फिर वो बेड पर घुटने मोड़ कर लेटते हुए खीरा अपनी चूत में डाल कर अंदर बाहर करने लगी। उसकी बंद आँखों में अभी भी सूनील के नंगे जिस्म और उसके तने हुए अनकटे लौड़े का नज़ारा था। करीब आठ-दस मिनट चूत को खीरे से खोदने के बाद उसका जिस्म झटके खाने लगा और उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया। उसके बाद रुखसाना आसूदा होकर सो गयी।

अगले दिन सुबह सुबह जब रुखसाना की आँख खुली तो खुद को बिस्तर पे सिर्फ़ कमीज़ पहने हुए नंगी हालत में पाया। सुनील के लिये जो पेंसिल हील के सैंडल पिछली शाम को पहने थे वो अब भी पैरों में मौजूद थे। बिस्तर पे पास ही वो खीरा भी पड़ा हुआ था जिसे देख कर रुखसाना का चेहरा शर्म से लाल हो गया। उसकी सलवार और पैंटी भी फर्श पर पड़े हुई थी। उसने कमरे और बिस्तर की हालत ठीक की और फिर नहाने के लिये बाथरूम में घुस गयी। इतने में फ़ारूक वापिस आ गया और सानिया और रुखसाना से बोला कि सानिया की मामी की तबियत खराब है और इसलिये वो सानिया को कुछ दिनो के लिये अपने पास बुलाना चाहती है। फ़ारूक ने सानिया को तैयार होने के लिये कहा। रुखसाना ने जल्दी से नाश्ता तैयार किया और नाश्ते की ट्रे लगाकर सानिया से कहा कि वो ऊपर सुनील को नाश्ता दे आये। आज सानिया और भी ज्यादा कहर ढा रही थी।
 
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#5
रुखसाना ने गौर किया कि सानिया ने मरून रंग का सलवार कमीज़ पहना हुआ था। उसका गोरा रंग उस मरून जोड़े में और खिल रहा था और पैरों में सफ़ेद सैंडल बेहद सूट कर रहे थे। रुखसाना ने सोचा कि आज तो जरूर सुनील सानिया की खूबसूरती को देख कर घायल हो गया होगा। सानिया नाश्ता देकर वापस आयी तो उसके चेहरे पर बहुत ही प्यारी सी मुस्कान थी। फिर थोड़ी देर बाद सुनील भी नीचे आ गया। रुखसाना किचन में ही काम कर रही थी कि फ़ारूक किचन मैं आकर बोला, "रुखसाना! मैं शाम तक वापस आ जाऊँगा... और हाँ आज अज़रा भाभीजान आने वाली हैं... उनकी अच्छे से मेहमान नवाज़ी करना!"

ये कह कर सानिया और फ़ारूक चले गये। रूखसाना ने मन ही मन में सोचा कि "अच्छा तो इसलिये फ़ारूक सानिया को उसकी मामी के घर छोड़ने जा रहा था ताकि वो अपनी भाभी अज़रा के साथ खुल कर रंगरलियाँ मना सके।" सानिया समझदार हो चुकी थी और घर में उसकी मौजूदगी की वजह से फ़ारूक और अज़रा को एहतियात बरतनी पड़ती थी। रुखसाना की तो उन्हें कोई परवाह थी नहीं।

फ़ारूक के बड़े भाई उन लोगों के मुकाबले ज्यादा पैसे वाले थे। वो एक प्राइवेट कंपनी में ऊँचे ओहदे पर थे। उनका बड़ा लड़का इंजिनियरिंग कर रहा था और दो बच्चे बोर्डिंग स्कूल में थे। उन्हें भी अक्सर दूसरे शहरों में दौरों पे जाना पड़ता था इसलिये अज़रा भाभी हर महीने दो-चार दिन के लिये फ़ारूक के साथ ऐयाशी करने आ ही जाती थी। कभी-कभार फ़ारूक को भी अपने पास बुला लेती थी। अज़रा वैसे तो फ़ारूक के बड़े भाई की बीवी थी पर उम्र में फ़ारूक से छोटी थी। अज़रा की उम्र करीब बयालीस साल थी लेकिन पैंतीस-छत्तीस से ज्यादा की नहीं लगती थी। रुखसाना की तरह खुदा ने उसे भी बेपनाह हुस्न से नवाज़ा था और अज़रा को तो रुपये-पैसों की भी कमी नहीं थी। फ़रूक को तो उसने अपने हुस्न का गुलाम बना रखा था जबकि रुखसाना हुस्न और खूबसूरती में अज़रा से बढ़कर ही थी।

अभी कुछ ही वक़्त गुजरा था कि डोर-बेल बजी। जब रुखसाना ने दरवाजा खोला तो बाहर उसकी सौतन अज़रा खड़ी थी। रुखसाना को देख कर उसने एक कमीनी मुस्कान के साथ सलाम कहा और अंदर चली आयी। रुखसाना ने दरवाजा बंद किया और ड्राइंग रूम में आकर अज़रा को सोफ़े पर बिठाया। "और सुनाइये अज़रा भाभी-जान कैसी है आप!" रुखसाना किचन से पानी लाकर अज़रा को देते हुए तकल्लुफ़ निभाते हुए पूछा।

अज़रा: "मैं ठीक हूँ... तू सुना तू कैसी है?"

रुखसाना: "मैं भी ठीक हूँ भाभी जान... कट रही है... अच्छा क्या लेंगी आप चाय या शर्बत?"

अज़रा: "तौबा रुखसाना! इतनी गरमी में चाय! तू एक काम कर शर्बत ही बना ले!"

रुखसाना किचन में गयी और शर्बत बना कर ले आयी और शर्बत अज़रा को देकर बोली, "भाभी आप बैठिये, मैं ऊपर से कपड़े उतार लाती हूँ...!" रुखसाना ऊपर छत पर गयी और कपड़े ले कर जब नीचे आ रही थी तो कुछ ही सीढ़ियाँ बची थी कि अचानक से उसका बैलेंस बिगड़ गया और वो सीढ़ियों से नीचे गिर गयी। गिरने की आवाज़ सुनते ही अज़रा दौड़ कर आयी और रुखसाना को यूँ नीचे गिरी देख कर उसने रुखसाना को जल्दी से सहारा देकर उठाया और रूम में ले जाकर बेड पर लिटा दिया। "हाय अल्लाह! ज्यादा चोट तो नहीं लगी रुखसाना! अगर सलाहियत नहीं है तो क्यों पहनती हो ऊँची हील वाली चप्पलें... मेरी नकल करना जरूरी है क्या!"

अज़रा का ताना सुनकर रुखसाना को गुस्सा तो बहोत आया लेकिन दर्द से कराहते हुए वो बोली, "आहहह हाय बहोत दर्द हो रहा है भाभी जान! आप जल्दी से डॉक्टर बुला लाइये!" ये बात सही थी कि रुखसाना की तरह अज़रा को भी आम तौर पे ज्यादातर ऊँची ऐड़ी वाले सैंडल पहनने का शौक लेकिन रुखसाना उसकी नकल या उससे कोई मुकाबला नहीं करती थी।

अज़रा फ़ौरन बाहर चली गयी! और गली के नुक्कड़ पर डॉक्टर के क्लीनिक था... वहाँ से डॉक्टर को बुला लायी। डॉक्टर ने चेक अप किया और कहा, "घबराने की बात नहीं है... कमर के नीचे हल्की सी मोच है... आप ये दर्द की दवाई लो और ये बाम दिन में तीन-चार दफ़ा लगा कर मालिश करो... आपकी चोट जल्दी ही ठीक हो जायेगी!"

डॉक्टर के जाने के बाद अज़रा ने रुखसाना को दवाई दी और बाम से मालिश भी की। शाम को फ़ारूक और सुनील घर वापस आये तो अज़रा ने डोर खोला। फ़ारूक बाहर से ही भड़क उठा। रुखसाना को बेडरूम में उसकी आवाज़ सुनायी दे रही थी, "भाभी जान! आपने क्यों तकलीफ़ की... वो रुखसाना कहाँ मर गयी... वो दरवाजा नहीं खोल सकती थी क्या?"

अज़रा: "अरे फ़ारूक मियाँ! इतना क्यों भड़क रहे हो... वो बेचारी तो सीढ़ियों से गिर गयी थी... चोट आयी है... उसे डॉक्टर ने आराम करने को कहा है!"

सुनील ऊपर जाने से पहले रुखसाना के कमरे में हालचाल पूछ कर गया। सुनील का अपने लिये इस तरह फ़िक्र ज़ाहिर करना रुखसाना को बहोत अच्छा लगा। रुखसाना ने सोचा कि एक उसका शौहर था जिसने कि उसका हालचाल भी पूछना जरूरी नहीं समझा। रात का खाना अज़रा ने तैयार किया और फ़ारूक सुनील को ऊपर खाना दे आया। फ़ारूक आज मटन लाया था जिसे अज़रा ने बनाया था।

उसके बाद फ़ारूक और अज़रा दोनों शराब पीने बैठ गये और अपनी रंगरलियों में मशगूल हो गये। थोड़ी देर बाद दोनों नशे की हालत में बेडरूम में आये जहाँ रुखसाना आँखें बंद किये लेटी थी और चूमाचाटी शुरू कर दी। रुखसाना बेड पर लेटी उनकी ये सब हर्कतें देख कर खून के आँसू पी रही थी। उन दोनों को लगा कि रुखसाना सो चुकी है जबकि असल में वो जाग रही थी। वैसे उन दोनों पे रुखसाना के जागने या ना जागने से कोई फर्क़ नहीं पड़ता था।

"फ़ारूक मियाँ! अब आप में वो बात नहीं रही!" अज़रा ने फ़ारूक का लंड को चूसते हुए शरारत भरे लहज़े में कहा।

फ़ारूक: "क्या हुआ जानेमन... किस बात की कमी है?"

अज़रा: "हम्म देखो ना... पहले तो ये मेरी फुद्दी देखते ही खड़ा हो जाता था और अब देखो दस मिनट हो गये इसके चुप्पे लगाते हुए... अभी तक सही से खड़ा नहीं हुआ है!"

फ़ारूक: "आहह तो जल्दी किसे है मेरी जान! थोड़ी देर और चूस ले फिर मैं तेरी चूत और गाँड दोनों का कीमा बनाता हूँ!"

"अरे फ़ारूक़ मियाँ अब रहने भी दो... खुदा के वास्ते चूत या गाँड मे से किसी एक को ही ठीक से चोद लो तो गनिमत है...!" अज़रा ने तंज़ किया और फिर उसका लंड चूसने लगी।

थोड़ी देर बाद अज़रा फ़ारूक के लंड पर सवार हो गयी और ऊपर नीचे होने लगी। उसकी मस्ती भरी कराहें कमरे में गुँज रही थी। रुखसाना के लिये ये कोई नयी बात नहीं थी लेकिन हर बार जब भी वो अज़रा को फ़ारूक़ के साथ इस तरह चुदाई के मज़े लेते देखती थी तो उसके सीने पे जैसे कट्टारें चल जाती थी। थोड़ी देर बाद उन दोनों के मुतमाइन होने के बाद रुखसना को अज़रा के बोलने की आवाज़ आयी, "फ़ारूक मैं कल घर वापस जा रही हूँ!"

फ़ारूक: "क्यों अब क्या हो गया..?"

अज़रा: "मैं यहाँ तुम्हारे घर का काम करने नहीं आयी... ये तुम्हारी बीवी जो अपनी कमर तुड़वा कर बेड पर पसर गयी है... मुझे इसकी चाकरी नहीं करनी... मैं घर जा रही हूँ कल!"

रुखसाना को बेहद खुशी महसूस हुई कि चलो सीढ़ियों से गिरने का कुछ तो फ़ायदा हुआ। वैसे भी उसे इतना दर्द नहीं हुआ था जितना की वो ज़ाहिर कर रही थी। उसे गिरने से कमर में चोट जरूर लगी थी लेकिन शाम तक दवाई और बाम से मालिश करने कि वजह से उसका दर्द बिल्कुल दूर हो चुका था लेकिन वो अज़रा को परेशान करने के लिये दर्द होने का नाटक ज़ारी रखे हुए थी।

फ़ारूक: "अज़रा मेरे जान... कल मत जाना...!"

अज़रा: "क्यों... मैंने कहा नहीं था तुम्हें कि तुम मेरे घर आ जाओ... तुम्हें तो पता है तुम्हारे भाई जान दिल्ली गये हैं... दस दिनों के लिये घर पर कोई नहीं है!"

फ़ारूक: "तो ठीक है ना कल तक रुक जओ... मैं कल स्टेशान पे बात करके छुट्टी ले लेता हूँ... फिर परसों साथ में चलेंगे!"

उसके बाद दोनों सो गये। रुखसाना भी करवटें बदलते-बदलते सो गयी। अगली सुबह जब उठी तो देखा अज़रा ने नाश्ता तैयार किया हुआ था और फ़ारूक डॉयनिंग टेबल पर बैठा नाश्ता कर रहा था। फ़ारूक ने अज़रा से कहा कि ऊपर सुनील को थोड़ी देर बाद नाश्ता दे आये। दर असल उस दिन सुनील ने छुट्टी ले रखी थी क्योंकि सुनील को कुछ जरूरी सामान खरीदना था। फ़ारूक के जाने के बाद अज़रा ने नाश्ता ट्रे में रखा और ऊपर चली गयी। थोड़ी देर बाद जब अज़रा नीचे आयी तो रुखसाना ने नोटिस किया कि उसके होंठों पर कमीनी मुस्कान थी। पता नहीं क्यों पर रुखसाना को अज़रा के नियत ठीक नहीं लग रही थी।
 
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#6
रुखसाना की कमर का दर्द आज बिल्कुल ठीक हो चुका था लेकिन वो नाटक ज़ारी रखे हुए बिस्तर पे लेटी रही। अज़रा से उसने एक-दो बार बाम से मालिश भी करवायी। इस दौरान रुखसाना ने फिर नोटिस किया कि अज़रा सज-धज के ग्यारह बजे तक बार-बार किसी ना किसी बहाने से चार पाँच बार ऊपर जा चुकी थी। रुखसाना को कुछ गड़बड़ लग रही थी। फिर सुनील नीचे आया और रुखसाना के रूम में जाकर उसका हाल चल पूछा। रुखसाना बेड से उठने लगी तो उसने रुखसाना को लेटे रहने को कहा और कहा कि वो बाज़ार जा रहा है... अगर किसी चीज़ के जरूरत हो तो बता दे... वो साथ में लेता आयेगा। रुखसाना ने कहा कि किसी चीज़ की जरूरत नहीं है। सुनील बाहर चला गया और दोपहर के करीब डेढ़-दो बजे वो वापस आया।

उसके बाद रुखसाना की भी बेड पे लेटे-लेटे आँख लग गयी। अभी उसे सोये हुए बीस मिनट ही गुजरे थे कि तेज प्यास लगने से उसकी आँख खुली। उसने अज़रा को आवाज़ लगायी पर वो आयी नहीं। फिर वो खुद ही खड़ी हुई और किचन में जाकर पानी पिया। फिर बाकी कमरों में देखा पर अज़रा नज़र नहीं आयी। बाहर मेन-डोर भी अंदर से बंद था तो फिर अज़रा गयी कहाँ! तभी उसे अज़रा के सुबह वाली हर्कतें याद आ गयी... हो ना हो दाल में जरूर कुछ काला है... कहीं वो सुनील पर तो डोरे नहीं डाल रही? ये सोचते ही पता नहीं क्यों रुखसाना का खून खौल उठा। वो धड़कते दिल से सीढ़ियाँ चढ़ के ऊपर आ गयी। जैसे ही वो सुनील के दरवाजे के पास पहुँची तो उसे अंदर से अज़रा की मस्ती भरी कराहें सुनायी दी, "आहहह आआहहह धीरे सुनील डर्लिंग... आहहह तू तो बड़ा दमदार निकला... मैं तो तुझे बच्चा समझ रही थी.... आहहह ऊहहह हायऽऽऽ मेरी फुद्दी फाड़ दीईई रे.... आआहहहह मेरी चूत... सुनीललल!"

ये सब सुन कर रुखसाना तो जैसे साँस लेना ही भूल गयी। क्या वो जो सुन रही थी वो हकीकत थी! रुखसाना सुनील के कमरे के दरवाजे की तरफ़ बढ़ी जो थोड़ा सा खुला हुआ था। अभी वो दरवाजे की तरफ़ धीरे से बढ़ ही रही थी कि उसे सुनील की आवाज़ सुनायी दी, "साली तू तो मुझे नामर्द कह रही थी... आहहह आआह ये ले और ले... ले मेरा लौड़ा अपनी चूत में साली... अगर रुखसाना भाभी घर पर ना होती तो आज तेरी चूत में लौड़ा घुसा-घुसा कर सुजा देता!"

अज़रा: "हुम्म्म्म हायऽऽऽ तो सुजा दे ना मेरे शेर... ओहहह तेरी ही चूत है... और तू उस गश्ती रुखसाना की फ़िक्र ना कर मेरे सनम... वो ऊपर चढ़ कर नहीं आ सकती.... और अगर आ भी गयी तो क्या उखाड़ लेगी साली!"

रुखसाना धीरे- धीरे काँपते हुए कदमों के साथ दरवाजे के पास पहुँची और अंदर झाँका तो अंदर का नज़ारा देख कर उसके होश ही उड़ गये। अंदर अज़रा सिर्फ़ ऊँची हील के सैंडल पहने बिल्कुल नंगी बेड पर घोड़ी बनी हुई झुकी हुई थी और सुनील भी बिल्कुल नंगा उसके पीछे से अपना मूसल जैसा लौड़ा तेजी से अज़रा की चूत के अंदर-बाहर कर रहा था। अज़रा ने अपना चेहरा बिस्तर में दबाया हुआ था। उसका पूरा जिस्म सुनील के झटकों से हिल रहा था। "आहहह सुनील मेरी जान... मैंने तो सारा जहान पा लिया... आहहह ऐसा लौड़ा आज तक नहीं देखा... आहहह एक दम जड़ तक अंदर घुसता है तेरा लौड़ा... आहहह मेरी चूत के अंदर इस कदर गहरायी पर ठोकर मार रहा है जहाँ पहले किसी का लौड़ा नहीं गया... आहहह चोद मुझे फाड़ दे मेरी चूत को मेरी जान!"

रुखसाना ने देखा दोनों के कपड़े फ़र्श पर तितर-बितर पड़े हुए थे। टेबल पे शराब की बोतल और दो गिलास मौजूद थे जिससे रुखसाना को साफ़ ज़ाहिर हो गया कि सुनील और अज़रा ने शराब भी पी रखी थी। इतने में सुनील ने अपना लंड अज़रा की चूत से बाहर निकला और बेड पर लेट गया और अज़रा फ़ौरन सुनील के ऊपर चढ़ गयी। अज़रा ने ऊपर आते ही सुनील का लंड अपने हाथ में थाम लिया और उसके लंड के सुपाड़े को अपनी चूत के छेद पर लगा कर उसके लंड पर बैठ गयी... और तेजी से अपनी गाँड ऊपर नीचे उछलते हुए चुदाने लगी। सुनील का चेहरा दरवाजे की तरफ़ था। तभी उसकी नज़र अचानक बाहर खड़ी रुखसाना पर पड़ी और दोनों की नज़रें एक दूसरे से मिली। रुखसाना को लगा कि अब गड़बड़ हो गयी है पर सुनील ने ना तो कुछ किया और ना ही कुछ बोला। उसने रुखसाना की तरफ़ देखते हुए अज़रा के नंगे चूतड़ों को दोनों हाथों से पकड़ कर दोनों तरफ़ फ़ैला दिया।
 
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#7
अज़रा की गाँड का छेद रुखसाना की आँखों के सामने नुमाया हो गया जो अज़रा की चूत से निकले पानी से एक दम गीला हुआ था। सुनील ने रुखसाना की तरफ़ देखते हुए अपनी कमर को ऊपर की तरफ़ उछालना शुरू कर दिया। सुनील का आठ इंच का लंड अज़रा की गीली चूत के अंदर बाहर होना शुरू हो गया। सुनील बार-बार अज़रा की गाँड के छेद को फैला कर रुखसाना को दिखा रहा था। रुखसाना के पैर तो जैसे वहीं जम गये थे। वो कभी अज़रा की चूत में सुनील के लंड को अंदर-बाहर होता देखती तो कभी सुनील की आँखों में!

सुनील: "बोल साली... मज़ा आ रहा है ना?"

अज़रा: "हाँ सुनील मेरी जान! बहोत मज़ा आ रहा है.... आहहह दिल कर रहा है कि मैं सारा दिन तुझसे अपनी चूत ऐसे ही पिलवाती रहूँ... आहहहह सच में बहोत मज़ा आ रहा है...!"

सुनील अभी भी रुखसाना की आँखों में देख रहा था। फिर रुखसाना को अचानक से एहसास हुआ कि ये वो क्या कर रही है और वहाँ से हट कर नीचे आ गयी। उसकी सलवार में उसकी पैंटी अंदर से एक दम गीली हो चुकी थी। उसे ऐसा लग रहा था कि जिस्म का सारा खून और गरमी चूत की तरफ़ सिमटते जा रहे हों! वो बेड पर निढाल सी होकर गिर पड़ी और अपनी टाँगों के बीच तकिया दबा लिया और अपनी चूत को तकिये पर रगड़ने लगी पर चूत में सरसराहट और बढ़ती जा रहा थी। रुखसाना की खुली हुई आँखों के सामने अज़रा की चूत में अंदर-बाहर होता सुनील का आठ इंच लंबा और बेहद मोटा लंड अभी भी था। अपनी सलवार का नाड़ा ढीला करके उसका हाथ अंदर पैंटी में घुस गया। वो तब तक अपनी चूत को उंगलियों से चोदती रही जब तक कि उसकी चूत के अंदर से लावा नहीं उगल पढ़ा। रुखसाना का पूरा जिस्म थरथरा गया और उसकी कमर झटके खाने लगी। झड़ने के बाद रुखसाना एक दम निढाल सी हो गयी और करीब पंद्रह मिनट तक बेसुध लेटी रही। फिर वो उठ कर बाथरूम में गयी और अपने कपड़े उतारने शुरू किये। उसने अपनी सलवार कमीज़ उतार कर टाँग दी और फिर ब्रा भी उतार कर कपड़े धोने की बाल्टी में डाल दी और फिर जैसे ही उसने अपनी पैंटी को नीचे सरकाने की कोशिश की पर उसकी पैंटी नीचे से बेहद गीली थी और गीलेपन के वजह से वो चूत की फ़ाँकों पर चिपक सी गयी थी। रुखसाना ने फिर से अपनी पैंटी को नीचे सरकाया और फिर किसी तरह उसे उतार कर देखा। उसकी पैंटी उसकी चूत के लेसदार पानी से एक दम सनी हुई थी। उसने पैंटी को भी बाल्टी में डाल दिया और फिर नहाने लगी। नहाने से उसे बहुत सुकून मिला। नहाने के बाद उसने दूसरे कपड़े पहने और बाथरूम का दरवाज़ा खोला तो उसने देखा कि अज़रा बेड पर लेटी हुई थी और धीरे-धीरे अपनी चूत को सहला रही थी।

रुखसाना को बाथरूम से निकलते देख कर अज़रा ने अपनी चूत से हाथ हटा लिया। रुखसाना आइने के सामने अपने बाल संवारने लगी तो अज़रा ने उससे कहा, "रुखसाना मैं कल घर वापस जाने की सोच रही थी लेकिन अब सोच रही हूँ कि तुम्हारी कमर का दर्द ठीक होने तक कुछ दिन और रुक जाऊँ!" रुखसाना के दिल में तो आया कि अज़रा का मुँह नोच डाले। बदकार कुत्तिया साली पहले तो उसके शौहर को अपने बस में करके उसकी शादीशुदा ज़िंदगी नरक बना दी और ज़िंदगी में अब जो उसे थोड़ी सी इज़्ज़त और खुशी उसे सुनील से मिल रही थी तो अज़ारा सुनील को भी अपने चंगुल में फंसा रही थी। रुखसाना ने कुछ नहीं कहा। कमर में दर्द का नाटक जो उसने अज़रा को जल्दी वापस भेजने के लिये किया था अब अज़रा उसे ही यहाँ रुकने का सबब बना रही थी। अब उसे यहाँ पर तगड़ा जवान लंड जो मिल रहा था।

रात को फ़ारूक घर वापस आया तो वो बहुत खुश लग रहा था... शायद उसे छुट्टी मिल गयी थी। रात को फ़ारूक ही सुनील का खाना उसे ऊपर दे आया। जब फ़ारूक ने अज़रा को बताया कि उसे एक हफ़्ते की छुट्टी मिल गयी है तो अज़रा ने उसे यह कहकर अगले दिन जाने से मना कर दिया कि रुखसाना की तबियत अभी ठीक नहीं है। लेकिन शायद किस्मत अज़रा के साथ नहीं थी। दिल्ली से उसके शौहर का फ़ोन आ गया कि उनके बेटे की बोर्डिंग स्कूल में तबियत खराब हो गयी है और वो जल्दी से जल्दी घर पहुँचे। अज़रा को बेदिल से अगले दिन फ़ारूक के साथ अपने घर जाना ही पड़ा लेकिन उस रात फिर अज़रा और फ़ारूक ने शराब के नशे में चूर होकर खूब चुदाई की। हसद की आग में जलती हुई रुखसाना कुछ देर तक चोर नज़रों से उनकी ऐयाशी देखते-देखते ही सो गयी।

अगली सुबह सुनील भी फ़ारूक और अज़रा के साथ ही स्टेशन पर चला गया था। रुखसाना को सुनील पे भी गुस्सा आ रहा था। उसने कभी सोचा नहीं था कि वो मासूम सा दिखाने वाला सुनील इस हद तक गिर सकता है कि अपने से दुगुनी उम्र से भी ज्यादा उम्र की औरत के साथ ऐसी गिरी हुई हर्कत कर सकता है। उसका सुनील से कोई ज़ाती या जिस्मानी रिश्ता भी नहीं था लेकिन रुखसाना को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कि अज़रा और सुनील ने मिल कर उसके साथ धोखा किया है। हालांकि सुनील से कोई जिस्मानी रिश्ता कायम करने का रुखासाना का कोई इरादा बिल्कुल था भी नहीं लेकिन उसे ऐसा क्यों लग रहा था जैसे अज़रा ने सुनील को उससे छीन लिया था। अज़रा तो थी ही बदकार-बेहया औरत लेकिन सुनील ने उसके साथ धोखा क्यों किया। रुखसाना को बिल्कुल वैसा महसूस हो रहा था जैसा पहली दफ़ा अपने शौहर फ़ारूक के अज़रा के साथ जिस्मानी रिश्तों के मालूम होने के वक़्त हुआ था बल्कि उससे भी ज्यादा बदहाली महसूस हो रही थी उसे।

शाम को जब सुनील के आने का वक़्त हुआ तो रुखसाना ने पहले से ही मेन-डोर को खुला छोड़ दिया था ताकि उसे सुनील की शक़्ल ना देखनी पड़े। वो अपने कमरे में आकर लेट गयी। थोड़ी देर बाद उसे बाहर के गेट के खुलने की आवाज़ आयी और फिर अंदर मेन-डोर बंद होने की। रुखसाना को अपने कमरे में लेटे हुए अंदाज़ा हो गया कि सुनील घर पर आ चुका है और थोड़ी देर बाद सुनील ने उसके कमरे के खुले दरवाजे पे दस्तक दी। जैसे ही दरवाजे पे दस्तक हुई तो रुखसाना उठ कर बैठ गयी और उसे अंदर आने को कहा। सुनील पास आकर कुर्सी पर बैठ गया और बोला, "आपका दर्द अब कैसा है..?"

रुखसाना ने थोड़ा रूखेपन से जवाब दिया, "अब पहले से बेहतर है!"

सुनील: "आप दवाई तो समय से ले रही हैं ना?"

रुखसाना: "हाँ ले रही हूँ!"

सुनील: "अच्छा मैं अभी फ्रेश होकर बाहर से खाना ले आता हूँ... आप प्लीज़ खाना बनाने का तकल्लुफ़ मत कीजियेगा... क्या खायेंगी आप...?"

सुनील के दिल में अपने लिये परवाह और फ़िक्र देख कर रुखसाना का गुस्सा कम हो गया और उसने थोड़ा नरमी से जवाब दिया, "कुछ भी ले आ सुनील!"

सुनील उठ कर बाहर जाने लगा तो न जाने रुखसाना के दिमाग में क्या आया और वो सुनील से पूछ बैठी, "तूने ऐसी हर्कत क्यों की सुनील?"

उसकी बात सुन कर सुनील फिर से कुर्सी पर बैठ गया और सिर को झुकाते हुए शर्मसार लहज़े में बोला, "मुझे माफ़ कर दीजिये भाभी... मुझसे बहुत बड़ी गल्ती हो गयी... ये सब अंजाने में हो गया!" उसने एक बार रुखसाना की आँखों में देखा और फिर से नज़रें झुका ली।

"अंजाने में गल्ती हो गयी...? तू तो पढ़ा लिखा है... समझदार है अच्छे घराने से है... तू उस बेहया-बदज़ात अज़रा की बातों में कैसे आ गया...?" सुनील ने एक बार फिर से रुखसाना की आँखों में देखा। इस दफ़ा रुखसाना की आँखों में शिकायत नहीं बल्कि सुनील के लिये फ़िक्रमंदी थी।
 
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#8
सुनील नज़रें नीचे करके बोला, "भाभी सच कहूँ तो आप नहीं मानेंगी... पर सच ये है कि इसमें मेरी कोई गल्ती नहीं है... दर असल कल अज़रा भाभी बार-बार ऊपर आकर मुझे उक्सा रही थी... मैं इन सब बातों से अपना दिमाग हटाने के लिये बाहर बज़ार चला गया... बज़ार में अपने काम निपटा कर मैं लौटते हुए व्हिस्की की बोतल भी साथ लाया था। दोपहर में मैंने सोचा आप दोनों खाने के बाद शायद सो गयी होंगी तो मैं अपने कमरे में ड्रिंक करने लगा। इतने में अचानक अज़रा भाभी ऊपर मेरे कमरे में आ गयीं और बैठते हुए बोली कि अकेले-अकेले शौक फ़र्मा रहे हो सुनील मियाँ हमें नहीं पूछोगे... पीने का मज़ा तो किसी के साथ पीने में आता है... उनकी बात सुनकर मैं सकपका गया और इससे पहले कि मैं कुछ कहता वो खुद ही एक गिलास में अपने लिये ड्रिंक बनाने लगी। फिर ड्रिंक करते -करते वो फिर मुझे अपनी हर्कतों से उक्साने लगीं। मुझे ये सब अटपटा लग रहा था लेकिन अज़रा भाभी तेजी से ड्रिंक कर रही थीं और उन्हें नशा चढ़ने लगा तो उनकी हर्कतें और भी बोल्ड होने लगीं। उन्होंने अपनी कमीज़ के हुक खोल दिये और मेरी टाँगों के बीच में अपना हाथ रख कर दबाते हुए गंदी-गंदी बातें बोलने लगीं। मैंने उन्हें वहाँ से जाने को कहा और आपका वास्ता भी दिया कि रुखसाना भाभी आ जायेंगी लेकिन अज़रा भाभी ने एक नहीं मानी और मुझे नामर्द बोली... मैं फिर भी चुप रहा तो उन्होंने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिये और मेरे सामने नंगी होते हुए मुझे गंदी-गंदी गालियाँ देकर उक्साने लगी कि तू हिजड़ा है क्या जो एक खूबसूरत हसीन औरत तेरे सामने नंगी होके खड़ी है और तू मना कर रहा है... भाभी मैंने भी ड्रिंक की हुई थी और आप यकीन करें कि अज़रा भाभी की उकसाने वाली गंदी-गंदी बातों से और उन्हें अपने सामने इस तरह बिल्कुल नंगी खड़ी देख कर खासतौर पे सिर्फ़ हाई हील के सैंडल पहने बिल्कुल नंगी... मैं कमज़ोर पड़ गया और मैं इतना उत्तेजित हो गया था कि मुझसे और रुका नहीं गया....!" ये कहते हुए सुनील चुप हो गया।

रुखसाना अब उसकी हालत समझ सकती थी। आखिर एक जवान लड़के के सामने अगर एक औरत नंगी होकर उक्साये तो उसका नतीजा वही होना था जो उसने अपनी आँखों से देखा था। "भाभी मैं सच कह रहा हूँ... मेरा ये पहला मौका था... इससे पहले मैंने कभी ऐसा नहीं किया था... हो सके तो आप मुझे माफ़ कर दें भाभी..!" ये कह कर सुनील ऊपर चला गया। सुनील ने बिल्कुल सच बयान किया था और वाकय में ये उसका चुदाई करने का पहला मौका था। फिर वो थोड़ी देर में फ्रेश होकर नीचे आया तो अभी भी शर्मसार नज़र आ रहा था। रुखसाना ने उसे ढाढस बंधाते हुए कहा कि उसे शर्मिंदा होने की बिल्कुल जरूरत नहीं है क्योंकि उसकी कोई गल्ती नहीं है। फिर सुनील खुश होकर ढाबे से खाना लेने चला गया। रुखसाना भी उठी और तैयार होकर थोड़ा मेक अप किया और फिर टेबल पर प्लेट और पानी वगैरह रखने लगी। थोड़ी देर में सुनील भी खाना लेकर आ गया। हालांकि सुबह का नाश्ता तो सुनील ने कईं दफ़ा फ़ारूक के साथ नीचे किया था लेकिन आज पहली बार सुनील रात का खाना रुखसाना के साथ नीचे खाना खा रहा था। रुखसाना ने नोटिस किया कि हमेशा खुशमिजाज़ रहने वाला सुनील इस वक़्त काफ़ी संजीदा था और कुछ बोल नहीं रहा था। इसी बीच रुखसाना ने बड़े प्यार और नरमी से पूछा, "सुनील एक और बात बता... वो अज़रा भाभी उस दिन रात को दोबारा भी आयी थी क्या तेरे कमरे में... तेरे साथ.... हमबिस्तर...?"

"जी भाभी वो आयी थीं रात को करीब तीन-साढ़े तीन बजे... मैं गहरी नींद सोया हुआ था... गरमी की वजह से कमरा खुला रखा हुआ था मैंने... जब मेरी आँख खुली तो वो पहले से ही मेरे ऊपर सवार थीं... मैंने फिर एक बार उन्हें संतुष्ट किया और फिर वो नीचे चली गयीं... काफी नशे में लग रही थीं वो!" सुनील ने काफ़ी संजीदगी से जवाब दिया।

खाना खतम करने के बाद जब रुखसाना बर्तन उठाने के लिये उठी तो सुनील ने उसे रोक दिया और बोला, "रहने दें भाभी! मैं कर देता हूँ...!" रुखसाना ने कहा कि नहीं वो कर लेगी पर सुनील ने उसकी एक ना सुनी और उसे बेड पर आराम करने को कह कर खुद बर्तन लेकर किचन में चला गया और बर्तन साफ़ करके सारा काम खतम कर दिया। सुनील फिर से रुखसाना के बेडरूम में आया तो वो बेड पर पीछे कमर टिकाये हुई थी। सुनील ने एक गिलास पानी रुखसाना को दिया और बोला "भाभी जी... बताइये कौन सी दवाई लेनी है आपको!" रुखसाना ने उसे बताया कि उसका दर्द अब काफ़ी ठीक है और अब किसी दवाई की जरूरत नहीं है। तभी सुनील के नज़र साइड-टेबल पे रखी हुई बाम पर गयी तो वो बोला, "चलिये आप लेट जाइये... मैं आपकी कमर पर बाम लगा कर मालिश कर देता हूँ... आपका जो थोड़ा बहुत दर्द है वो भी ठीक हो जायेगा!"

वो सुनील को मना करते हुए बोली, "नहीं रहने दे सुनील... मैं खुद कर लुँगी...!"

सुनील: "आप लगा तो खुद लेंगी पर मालिश नहीं कर पायेंगी... मैं आपकी मालिश कर देता हूँ... आप का रहा सहा दर्द भी ठीक हो जायेगा!" ये कह कर सुनील कुर्सी से उठ कर बेड पर आकर रुखसाना के करीब बैठ गया और उसे लेटने को बोला, "चलिये भाभी जी बताइये कहाँ लगाना है...!" अपने लिये सुनील की इतनी हमदर्दी और फ़िक्र देख कर रुखसाना उसे और मना नहीं कर सकी और ये हकीकत भी बता नहीं पायी कि उसे दर्द तो कभी हुआ ही नहीं था और ये दर्द का तो सिर्फ़ बहाना था अज़रा को परेशान करने का। रुखसाना शर्माते हुए पेट के बल लेट गयी और अपनी कमीज़ को कमर से ज़रा ऊपर उठा लिया और बोली यहाँ कमर पर! सुनील ने थोड़ा सा बाम अपनी उंगलियों पर लगाया और फिर रुखसाना की कमर पर मलने लगा। जैसे ही उसके हाथ का लम्स रुखसाना ने अपनी नंगी कमर पर महसूस किया तो उसका पूरा जिस्म काँप गया। उसकी सिस्करी निकलते-निकलते रह गयी। सुनील ने धीरे-धीरे दोनों हाथों से उसकी कमर की मालिश करनी शुरू कर दी। उसके हाथों का लम्स उसे बेहद अच्छा लग रहा था। कईं दफ़ा उसके हाथों की उंगलियाँ रुखसाना की सलवार के जबर से टकरा जाती तो उसका दिल जोरों से धड़कने लगता। वो मदहोश सी हो गयी थी।

"भाभी ज्यादा दर्द कहाँ पर है?" सुनील ने पूछा तो बिना सोचे ही रुखसाना के मुँह से मदहोशी में खुद बखुद निकल गया कि थोड़ा सा नीचे है!

सुनील ने फिर थोड़ा और नीचे बाम लगाना शुरू कर दिया। भले ही उस मालिश से कोई फ़ायदा नहीं होने वाला था क्योंकि चोट तो कहीं लगी ही नहीं थी पर फिर भी रुखसाना को उसके हाथों के लम्स से जो सुकून मिल रहा था उसे वो बयान नहीं कर सकती थी। "भाभी जी थोड़ी सलवार नीचे सरका दो ताकि अच्छे से बाम लग सके...!" सुनील की बात सुन कर रुखसाना के ज़हन में उसका वजूद काँप उठा पर उसे सुनील के हाथों का लम्स अच्छा लग रहा था और उसे सुकून भी मिल रहा था। रुखसाना ने तुनकते हुए अपनी सलवार को थोड़ा नीचे के तरफ़ सरकाया। उसने नाड़ा बाँधा हुआ था इसलिये सलवार पूरी नीचे नहीं हो सकती थी पर फिर भी काफ़ी हद तक नीचे हो गयी। "भाभी जी आप तो बहुत गोरी हो... मैंने इतना गोरा जिस्म आज तक नहीं देखा..!" सुनील की बात सुनकर रुखसाना के गाल शर्म के मारे लाल हो गये। वो तो अच्छा था कि रुखसाना उल्टी लेटी हुई थी। रुखसाना को यकीन था कि अकेले कमरे में वो उसे इस तरह अपने पास पाकर पागल हो गया होगा। सुनील ने थोड़ी देर और मालिश की और रुखसाना ने जब उसे कहा कि अब बस करे तो वो चुपचप उठ कर ऊपर चला गया। रुखसाना को आज बहुत सुकून मिल रहा था। आज कईं सालो बाद उसके जिस्म को ऐसे हाथों ने छुआ था जिसके लम्स में हमदर्दी और प्यार मिला हुआ था। सुनील के बारे में सोचते हुए रुखसाना को कब नींद आ गयी उसे पता ही नहीं चला। अगली सुबह जब वो उठी तो बेहद तरो तज़ा महसूस कर रही थी।

नहाने के बाद रुखसाना बहुत अच्छे से तैयार हुई... आसमानी रंग का सफ़ेद कढ़ाई वाला जोड़ा पहना और सफ़ेद रंग के ऊँची हील के सैंडल भी पहने। फिर हल्का सा मेक-अप करने के बाद वो किचन में गयी और नाश्ता तैयार करने लगी। नाश्ता तैयार करते हुए वो बार-बार किचन के दरवाजे पर आकर सीढ़ियों की तरफ़ देख रही थी। सुनील के काम पर जाने का वक़्त भी हो गया था। जैसे ही वो नाश्ता तैयार करके बाहर आयी तो सुनील सीढ़ियों से नीचे उतरा। "आज तो आपकी तबियत काफ़ी बेहतर लग रही है भाभी जी... लगता है कल की मालिश ने काफ़ी असर किया!" उसने रुखसाना के लिबास और फिर उसके पैरों में हाई पेंसिल हील के सैंडलों की तरफ़ देखते हुए अपने होंठों पर दिलकश मुस्कान लाते हुए कहा। बदले में रुखसाना ने भी मुस्कुराते हुए कहा, "असर तो जरूर हुआ पर तुझे कैसे पता?" तो सुनील थोड़ा झेंपते हुए बोला कि "भाभी जी वो आज आपने फिर हमेशा की तरह हाई हील के सैंडल जो पहने हैं... तो मुझे लगा कि कमर का दर्द अब बेहतर है!"

रुखसाना: "बिल्कुल ठीक पहचना तूने... अब डायनिंग टेबल पे बैठ... मैं नाश्ता लेकर आती हूँ!" फिर दोनों साथ बैठ कर नाश्ता करने लगे। इसी बीच में सुनील ने रुखसाना से पूछा कि, "भाभी जी... आप कभी साड़ी नहीं पहनती क्या?"

रुखसाना: "पहनती हूँ लेकिन बहोत कम... साल में एक-आध दफ़ा अगर कोई खास मौका हो तो... क्यों!"

सुनील: "नहीं बस वो इसलिये कि कभी देखा नहीं आपको साड़ी में... मेरा ख्याल है आप पे साड़ी भी काफ़ी सूट करेगी!"

फिर सुनील जाते हुए रुखसाना से बोला, "भाभी जी, रात का खाना मैं बाहर से ही ले आऊँगा... आप बनाना नहीं..!"

रुखसाना ने मुस्कुराते हुए कहा कि ठीक है तो सुनील ने फिर कहा, "अगर किसी और चीज़ के जरूरत हो तो बता दीजिये... मैं आते हुए लेता आऊँगा!"

रुखसाना ने कहा कि किसी और चीज़ के जरूरत नहीं है और फिर सुनील के जाने के बाद वो घर के छोटे-मोटे कामों में लग गयी। फिर ऊपर आकर सुनील के कमरे को भी ठीकठाक करने लगी। इसी दौरान रुखसाना को उसके बेड के नीचे कुछ पड़ा हुआ नज़र आया। उसने नीचे झुक कर उसे बाहर निकाला तो उसकी आँखें एक दम से फैल गयीं। वो एक लाल रंग की रेशमी पैंटी थी। अब इस डिज़ाइन की पैंटी ना तो रुखसाना के पास थी और ना ही सानिया के पास। तभी रुखसाना को दो दिन पहले का शाम वाला वाक़्या याद आ गया जब सुनील ने अज़रा को इसी कमरे में चोदा था। ये जरूर अज़रा की ही पैंटी थी।

उस पैंटी पर जगह- जगह-जगह चूत से निकले पानी और शायद सुनील के लंड से निकली मनी के धब्बे थे। पैंटी का कोई भी हिस्सा ऐसा नहीं था जिस पर उस दिन हुई घमासान चुदाई के निशान ना हों। रुखसाना ने पैंटी को अपने दोनों हाथों में लेकर नाक के पास ले जाकर सूँघा तो मदहोश कर देने वाली खुश्बू उसके जिस्म को झिनझोड़ गयी। वो पैंटी को लेकर बेड पर बैठ गयी और उसे देखते हुए उस दिन के मंज़रों को याद करने लगी। सुनील का मूसल जैसा लंड अज़रा की चूत में अंदर-बाहर हो रहा था। रुखसाना एक बार फिर से अपना आपा खोने लगी पर तभी बाहर मेन-गेट पर दस्तक हुई तो उसने उस पैंटी को वहीं बेड के नीचे फेंक दिया और बाहर आकर छत से नीचे गेट की तरफ़ झाँका तो देखा कि पड़ोस में रहने वाली नज़ीला खड़ी थी। "अरे नज़ीला भाभी आप..! मैं अभी नीचे आती हूँ.!" रुखसाना ने जल्दी से सुनील का कमरा बंद किया और नीचे आकर दरवाजा खोला। नज़ीला उसके पड़ोस में रहती थी। उसकी उम्र चालीस साल थी और वो अपने घर में ही ब्यूटी पार्लर चलाती थी। वो दोपहर में कईं बार रुखसाना के घर आ जाया करती थी या उसे अपने यहाँ बुला लेती थी और दोनों इधर-उधर की बातें किया करती थी। उस दिन भी रुखसाना और नज़ीला ने गली मोहल्ले की ढेरों बातें की।

नज़ीला के जाने के बाद वो फिर नहाने चली गयी। सुबह सुनील ने साड़ी का ज़िक्र किया था इसलिये रुखसाना ने नहा कर फिरोज़ा नीले रंग की प्रिंटेड साड़ी पहन ली और साथ में सिल्वर रंग के हाई पेंसिल हील वाले खूबसुरत सैंडल भी पहने। सुनील के आने का समय भी हो चला था। सुनील आज पाँच बजे ही आ गया। जब रुखसाना ने दरवाजा खोला तो वो उसे बड़े गौर से देखने लगा। उसे यूँ अपनी तरफ़ ऐसे घूरता देख कर रुखसाना शरमाते हुए लेकिन अदा से बोली, "ऐसे क्या देख रहा है सुनील!" तो वो मुस्कुराता हुआ बोला, "वॉव भाभी! आज तो आप बहुत ही ज्यादा खूबसूरत लग रही हो इस साड़ी में..!" ये कह कर वो अंदर आ गया। वो साथ में रात का खाना भी ले आया था। "भाभी ये खाना लाया हूँ... आप बाद में रात को गरम कर लेना... मैं ऊपर जा रहा हूँ फ्रेश होने के लिये... आप एक गिलास शर्बत बना देंगी प्लीज़?"

रुखसाना उसकी तरफ़ देख कर मुस्कुराते हुए बोली, "हाँ क्यों नहीं..!"

फिर सुनील ऊपर चला गया और फ्रेश होकर जब वो नीचे आया तो उसने एक ढीली सी टी-शर्ट और शॉर्ट्स पहना हुआ था। रुखसाना ने शर्बत बनाया और उसे अपने बेड रूम में ले गयी क्योंकि वहाँ पे कूलर लगा हुआ था। सुनील रूम में आकर बेड के सामने कुर्सी पर बैठ गया और रुखसाना भी बेड पर टाँगें नीचे लटका कर बैठ गयी। दोनों ने इधर उधर की बात की। इस दौरान सुनील ने रुख्सना से पूछा, "भाभी अब आपकी कमर का दर्द कैसा है?"

रुखसाना मुस्कुराते हुए बोली, "अरे अब तो मैं बिल्कुल ठीक हूँ... कल तूने इतनी अच्छी मालिश जो की थी!"

अपना शर्बत का खाली गिलास साइड टेबल पे रखते हुए सुनील उससे बोला, "भाभी आप उल्टी लेट जाओ... मैं एक बार और बाम से आपकी मालिश कर देता हूँ...!"

रुखसाना मना किया कि, "नहीं सुनील! मैं अब बिल्कुल ठीक हूँ..!" लेकिन सुनील भी फिर इसरार करते हुए बोला, "भाभी आप मेरे लिये इतना कुछ करती है... मैं क्या आपके लिये इतना भी नहीं कर सकता... चलिये लेट जाइये!"

रुखसाना सुनील के बात टाल ना सकी और अपना खाली गिलास टेबल पे रखते हुए बोली, "अच्छा बाबा... तू मानेगा नहीं... लेटती हूँ... पहले सैंडल तो खोल के उतार दूँ!"

"सैंडल खोलने की जरूरत नहीं है भाभी... इतने खूबसूरत सैंडल आपके हसीन गोरे पैरों की खूबसूरती और ज्यादा बढ़ा रहे हैं... आप ऐसे ही लेट जाइये!" सुनील किसी बच्चे की तरह मचलते हुए बोला तो रुखसान को हंसी आ गयी और वो उसकी बात मान कर बेड पर लेट गयी। क्योंकि आज उसने साड़ी पहनी हुई थी इसलिये उसकी कमर पीछे से सुनील की आँखों के सामने थी। सुनील ने बाम को पहले अपनी उंगलियों पर लगाया और रुखसाना की कमर को दोनों हाथों से मालिश करना शुरू कर दिया। "एक बात बता सुनील! तुझे मेरा ऊँची हील वाले सैंडल काफ़ी पसंद है ना?" रुखसाना ने पूछा तो इस बार सुनील का चेहरा शरम से लाल हो गया। वो झेंपते हुए बोला, "जी... जी भाभी आप सही कह रही हैं... आपको अजीब लगेगा लेकिन मुझे लेडिज़ के पैरों में हाई हील वाले सैडल बेहद अट्रैक्टिव लगते हैं... और संयोग से आप तो हमेशा हाई हील की सैंडल या चप्पल पहने रहती हैं!"

"अरे इसमें शर्माने वाली क्या बात है... और मुझे बिल्कुल अजीब नहीं लगा... मैं तेरे जज़्बात समझती हूँ... कुछ कूछ होता है... है ना?" रुखसाना हंसते हुए हुए बोली। सुनील के हाथों की मालिश से पिछले दिन की तरह ही बेहद मज़ा आ रहा था। सुनील के हाथ अब धीरे-धीरे नीचे की तरफ़ बढ़ने लगे। रुखसाना को मज़ाक के मूड में देख कर सुनील भी हिम्मत करते हुए बोला, "भाभी... आपकी स्किन कितनी सॉफ्ट है एक दम मुलायम... भाभी आप अपनी साड़ी थोड़ा नीचे सरका दो... पूरी कमर पे नीचे तक अच्छे से मालिश हो जायेगी और साड़ी भी गंदी नहीं होगी।" रुखसाना ने थोड़ा शर्माते हुए अपनी साड़ी में हाथ डाला और पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया और पेटीकोट और साड़ी ढीली कर दी। रुखसाना को पिछली रात मालिश से बहुत सुकून मिला था और बहुत अच्छी नींद भी आयी थी इसलिये उसने ना-नुक्कर नहीं की। जैसे ही रुखसाना की साड़ी ढीली हुई तो सुनील ने उसकी साड़ी और पेटीकोट के अंदर अपनी उंगलियों को डाल कर उसे नीचे सरका दिया पर रुखसाना को तभी एहसास हुआ कि उसने बहुत बड़ी गलती कर दी है। रुखसाना ने नीचे पैंटी ही नहीं पहनी हुई थी... पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उसके आधे से ज्यादा चूतड़ अब सुनील की नज़रों के सामने थे।

सुनील ने कोई रीऐक्शन नहीं दिखाया और धीरे-धीरे कमर से मालिश करते हुए अपने हाथों को रुखसाना के चूतड़ों की ओर बढ़ाना शुरू कर दिया। उसके हाथों का लम्स रुखसाना के जिस्म के हर हिस्से को ऐसा सुकून पहुँचा रहा था जैसे बरसों के प्यासे को पानी पीने के बाद सुकून मिलता है। वो चाहते हुए भी एतराज नहीं कर पा रही थी। वो बस लेटी हुई उसके छुने के एहसास का मज़ा ले रही थी। रुखसाना की तरफ़ से कोई ऐतराज़ ना देख कर सुनील की हिम्मत बढ़ी और अब उसने रुखसाना के आधे से ज्यादा नंगे हो चुके गुदाज़ चूतड़ों को जोर-जोर से मसलना शुरू कर दिया। रुखसाना की साड़ी और पेटीकोट सुनील के हाथ से टकराते हुए थोड़ा-थोड़ा और नीचे सरक जाते। रुखसाना को एहसास हो रहा था कि अब सुनील को उसके चूतड़ों के बीच की दरार भी दिखायी दे रही होगी। उसने शरम के मारे अपने चेहरे को तकिये में छुपा लिया और अपने होंठों को अपने दाँतों में भींच लिया ताकि कहीं वो मस्ती में आकर सिसक ना पड़े और उसकी बढ़ती हुई शहवत और मस्ती का एहसास सुनील को हो। सुनील उसके दोनों गोरे-गोरे गोल-गोल चूतड़ों को बाम लगाने के बहाने से सहला रहा था। रुखसाना को भी एहसास हो रहा था कि सुनील बाम कम लगा रहा था और सहला ज्यादा रहा था। जब रुखसाना ने फिर भी ऐतराज ना किया तो सुनील और नीचे बढ़ा और चूतड़ों को जोर-जोर से मसलने लगा। थोड़ी देर बाद उसके हाथों की उंगलियाँ रुखसाना की गाँड की दरार में थी। फिर उसने अचानक से रुखसाना के दोनों चूतड़ों को हाथों से चौड़ा करते हुए फैला कर बीच की जगह देखी तो रुखसाना साँस लेना ही भूल गयी। रुखसाना को एहसास हुआ की शायद सुनील ने उसके चूतड़ों के फैला कर उसकी गाँड का छेद और चूत तक देख ली होगी लेकिन रुखसाना अब तक सुनील हाथों के सहलाने और मसलने से बहुत ज्यादा मस्त हो गयी थी और उसकी चूत गीली और गीली होती चली जा रही थी। वो ये सोच कर और शरमा गयी कि सुनील उसकी बिल्कुल मुलायम और चिकनी चूत को देख रहा होगा जिसे उसने आज सुबह ही शेव किया था। उसकी चिकनी चूत को देखने वाला आज तक था ही कौन लेकिन उसके घर में रहने वाला किरायेदार आज उसके चूतड़... उसकी गाँड और उसकी चिकनी चूत को देख रहा था और वो भी पड़े-पड़े नुमाईश कर रही थी। ये सोच कर उसका दिल जोर-जोर से धक-धक करने लगा कि कहीं सुनील को उसकी चूत के गीलेपन का एहसास ना हो जाये।
 
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#9
पर थोड़ी देर में जब सुनील ने जानबूझकर या अंजाने में रुखसाना की गाँड के छेद को अपनी उंगली से छुआ तो वो एक दम से उचक पड़ी। उसके जिस्म में जैसे करंट लग गया हो... जैसे तन-बदन में आग लग गयी हो। रुखसाना ने एक दम से सुनील का हाथ पकड़ कर झटक दिया और उसके मुँह से निकल पड़ा, "हाय आल्लाह ये क्या कर रहा है तू...?" रुखसाना उससे दूर होते हुए उठ कर बैठ गयी। रुखसाना एक दम से घबरा गये थी और सुनील तो उससे भी ज्यादा घबरा गया था। रुखसाना को उसका इरादा ठीक नहीं लगा और घबराहट में वो एक दम से बेड से नीचे उतर कर खड़ी हो गयी। पर उसके खड़े होने का नतीजा ये हुआ कि गजब हो गया... उसकी साड़ी और पेटीकोट कमर से खुले हुए थे... जब वो खड़ी हुई तो साड़ी और पेटीकोट दोनों सरक कर उसके पैरों में जा गिरे। रुखसाना नीचे से एक दम नंगी हो गयी। इस तरह से अपने किरायेदार और बीस साल के जवान लड़के के सामने नंगी होने में उसकी शरम की कोई इंतेहा ना रही। उसे कुछ नहीं सूझा... दिमाग ने काम करना बंद कर दिया... साँस जैसे अटक गयी थी! वो घबराहट में वहीं जमीन पर बैठ गयी। इससे पहले कि रुखसाना को कुछ समझ आता... तब तक सुनील ने उसे गोद में उठा कर बेड पर डाल दिया और अगले ही पल वो हुआ जिसका रुखसाना ने तसव्वुर तक नहीं किया था कि आज उसके साथ ये सब होगा।

रुखसाना को पलंग पर पटकते ही सुनील खुद रुखसाना पर चढ़ गया। अगले ही पल रुखसाना उसके नीचे थी और वो रुखसाना के ऊपर था। उसके बाद अगले ही पल सुनील ने रुखसाना की टाँगों को हवा में उठा दिया। रुखसाना को वो कुछ भी सोचने समझने का मौका नहीं दे रहा था। अगले ही पल वो रुखसाना की टाँगों के बीच में जगह बना चुका था और पाँचवे सेकेंड में ही उसका शॉर्ट्स और अंडरवियर उसके जिस्म से अलग हो गये और उसके अगले ही पल उसने अपने लंड को हाथ में लेकर अपने लुंड का मोटा सुपाड़ा रुखसाना की चूत के छेद पर लगा दिया। एक मोटी सी गरम सी कड़क सी चीज़ रुखसाना को अपनी चूत के अंदर जाती हुई महसूस हुई।

बस फिर क्या था... शाम के वक़्त में रुखसाना के अपने कमरे में एक बीस-इक्कीस साल का किरायेदार और चौंतीस-पैंतीस साल की मकान माल्किन औरत और मर्द बन गये थे! रुखसाना की तो मस्ती में साँसें उखड़ने लगी थीं... जिस्म ऐंठ गया था... आँखें झपकना भूल गयी थी... और ज़ुबान सूखने लगी थी। उसे कुछ होश नहीं था कि क्या हो रहा है. सुनील कर रहा था... और वो चुपचप उसे करने दे रही थी... वो ना तो उसे रोक रही थी और ना ही उसे उक्सा रही थी। वो बिना कुछ बोले अपनी टाँगें उठाये और सुनील की कमर में हाथ डाले लेटी रही और सुनील का मोटा मूसल जैसा लंड उसकी चूत को रौंदता रहा रगड़ता रहा... पता नहीं कब तक रुखसाना को चोदता रहा। ऐसा नहीं था कि रुखसाना को मज़ा नहीं आ रहा था पर वो जैसे कि सक्ते की हालत में थी। जिस्म तो चुदाई के मज़े ले रहा था लेकिन दिमाग सुन्न था। फिर उसकी चूत को सुनील ने अपने गाढ़े वीर्य से भर दिया। रुखसाना अपने गैर-मज़हब वाले इक्कीस साल के किरायेदार के लंड के पानी से तरबर्तर हो चुकी थी।

जैसे ही सुनील रुखसाना के ऊपर से उठा तो वो भी काँपती हुई बिस्तर से उठी और सिर्फ़ ब्लाउज़ और सैंडल पहने नंगी हालत में ही बाथरूम में चली गयी। उसके दिल में उलझने बढ़ने लगीं कि हाय ये मैंने क्या कर दिया... शादीशुदा होकर दूसरे मर्द से चुदवा लाया... वो भी सानिया की उम्र के लड़के से... खुद से पंद्रह साल छोटे लड़के से गैर मज़हब वाले लड़के से... नहीं ये गलत है... सरासर गलत है... जो हुआ नहीं होना चाहिये था... मैं कैसे बहक गयी... अब क्या होगा...! रुखसाना बाथरूम में कमोड पे बैठ कर मूतने लगी। उसे बहोत तेज पेशाब लगी थी। उसने झुक कर देखा तो उसकी रानें और चूत उसकी चूत के पानी और सुनील के वीर्य से चिपचिपा रही थी। मूतने के बाद रुखसाना खड़ी हुई और टाँगें थोड़ी चौड़ी करके उसने अपनी चूत की फ़ाँकों को फैलाते हुए चूत की माँसपेशियों पर जोर लगाया तो सुनील का वीर्य उसकी चूत से बाहर टपकने लगा। एक के बाद एक वीर्य की कईं बड़ी-बड़ी बूँदें उसकी चूत से बाहर नीचे गिरती रही। फिर उसने अपनी चूत और रानों को पानी से साफ़ किया। उसने सोचा कि कल सुबह -सुबह केमिस्ट की दुकान से बच्चा ना ठहरने की दवाई ले आयेगी। फिर वो अपना ब्लाऊज़ और सैंडल निकाल कर नहाने लगी। फिर तौलिया लपेट कर वो बाथरूम से निकल कर बाहर आयी। सुनील ऊपर जा चुका था। रुखसाना ने अलमारी में से सलवार सूट निकाल कर पहन लिया और बाल संवार कर आदतन थोड़ा मेक-अप किया और अपने बेड पर जाकर गिर पड़ी। शाम के छः बज रहे थे। खुमारी में उसे नींद आ गयी। वो आज कईं सालों बाद चुदी थी... चुदाई अंजाने में अचानक हुई थी पर चुदाई तो चुदाई है! रुखसाना मुतमाईन होकर ऐसे मीठी नींद सोयी कि रात के नौ बजे बाहर डोर-बेल बजने की आवाज़ से ही उठी। उसने घड़ी में वक़्त देखा तो नौ बज रहे थे। उसके मुँह से निकला, "हाय अल्लाह ये क्या नौ बज गये...!" वो जल्दी से उठी और बाहर जाकर दरवाजा खोला तो बाहर नज़ीला खड़ी थी और उसके साथ में उसका छोटा बेटा सलील था जो महज आठ साल का था।

"नज़ीला भाभी आप इस वक़्त... खैरियत तो है ना?" रुखसाना ने पूछा तो नज़ीला बोली, "रुखसाना मेरे अब्बू की तबियत बहुत ज्यादा खराब हो गयी है... अभी फ़ोन आया है... मैं और अकरम साहब अभी वहाँ के लिये रवाना हो रहे है... तुम सलील को दो दिन के लिये अपने पास रख लो प्लीज़ हम दो दिन बाद वापस आ जायेंगे!"

रुखसाना ने कहा कि, "कोई बात नहीं भाभी जान ये भी तो आपका अपना ही घर है... आप इसे छोड़ कर बेफ़िक्र होकर जायें!"

उसके बाद नज़ीला सलील को रुखसाना के पास छोड़ कर चली गयी। रुखसाना ने दरवाजा बंद किया और सलील के साथ अंदर आ गयी। उसने एक बार फिर से घड़ी की तरफ़ नज़र डाली तो नौ बज के पाँच मिनट हो रहे थे। उसने टीवी चालू किया और सलील से पूछा कि उसने खाना खाया है कि नहीं तो वो बोला, "नहीं आँटी अभी नहीं खाया!" रुखसाना ने उसे कहा कि, "तुम टीवी देखो... मैं खाना गरम कर के लाती हूँ..!" वो किचन में गयी और खाना गरम करने लगी। खाना काफ़ी था इसलिये किसी बात की परेशानी नहीं थी। उसने खाना गरम किया और फिर डायनिंग टेबल पर लगा दिया और सलील को खाना परोस कर उसके साथ कुर्सी पर बैठ गयी।

सुनील अभी तक खाना खाने नहीं आया था। रुखसाना उसे ऊपर जाकर भी नहीं बुलाना चाहती थी क्योंकि उसकी तो सुनील से आँखें मिलाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि जो कुछ भी हुआ उसके पीछे कसूर किसका है... उसका खुद का या सुनील का। वो अभी यही सोच रही थी कि सुनील के कदमों की आहट सुन कर सुनकर उसका ध्यान टूटा। रुखसाना उसकी तरफ़ देखे बिना बोली, "खाना खा ले सुनील... गरम कर दिया है!" सुनील उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठ कर खाना खाने लगा। रुखसाना भी खाना खा रही थी। वो अपनी नज़रें भी नहीं उठा पा रही थी। बार-बार उसके जहन में यही ख्याल आ रहा था कि शादीशुदा होते हुए भी उसने ये कैसा गुनाह कर डाला। खाना खाते हुए सुनील ने पूछा, "ये साहब कौन हैं भाभी?"

रुखसाना ने नज़रें झुकाये हुए ही जवाब दिया, "ये पड़ोस की नज़ीला भाभी का बेटा है... उनके वालिद की तबियत खराब हो गयी अचानक तो वो उनके यहाँ गये हैं!" फिर ना वो कुछ बोला और ना ही रुखसाना। सुनील ने खाना खाया और उसे गुड नाइट बोल कर ऊपर चला गया। उसने बर्तन उठा कर किचन में रखे और अपने रूम में आकर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। रुखसाना सलील के साथ जाकर बेड पर लेट गयी। सलील तो बेचारा मासूम सा बच्चा था... जल्द ही सो गया। रुखसाना अभी तक जाग रही थी। शाम को तीन घंटे तक सोने की वजह से नींद भी नहीं आ रही थी और आज तो उसकी ज़िंदगी ही बदल गयी थी। वो दो हिस्सों में बट गयी थी... दिल और दिमाग! दिल कह रहा था कि जो हुआ ठीक हुआ और दिमाग गलत करार दे रहा था। दिल कह रहा था कि शादीशुदा होते हुए भी अपने शौहर के होते हुए भी वो एक बेवा जैसी ज़िंदगी जी रही थी... और अगर अल्लाह तआला ने उसकी सुन कर उसके लिये एक लंड का इंतज़ाम कर दिया है तो क्या बुराई है। रुखसाना यही सब सोच रही थी कि दरवाजे पर दस्तक हुई। घर में उसके और सलील और सुनील के अलावा कोई नहीं था तो ज़ाहिर है सुनील ही होगा। रुखसाना ने सोचा कि अब वो क्यों आया है। उसका दिल फिर जोर से धड़कने लगा। वो चुपचाप लेटी रही पर फिर से दस्तक हुई।

सलील कहीं उठ ना जाये... भले ही वो मासूम था पर कहीं उसे किसी तरह का शक हो गया तो यही सोचकर रुखसाना उठी और धीरे से जाकर दरवाजा खोला। सामने सुनील ही था। उसे देख कर रुखसाना झेंप गयी, "अब क्या है क्यों आये हो यहाँ पर...?"

"भाभी जी मैं अंदर आ जाऊँ?" सुनील ने पूछा तो रुखसाना ने उसे मना करते हुए कहा कि, "नहीं तू जा अभी यहाँ से..!" ये कह कर रुखसाना ने दरवाजा बंद कर दिया। उसकी साँसें तेज हो गयी थी। वो सोचने लगी कि "ये तो अंदर आने को कह रहा है... क्या करेगा अंदर आकर... मुझे फिर से चोदेग...? हाय अल्लाह सलील भी तो कमरे में है... दोबारा चुदाई... तौबा मेरी तौबा एक दफ़ा गल्ती कर दी अब नहीं..!" तभी उसके दिल के कोने से आवाज़ आयी, "तो क्या हो गया इसमें सब करते हैं... अब एक बार तो तू कर चुकी है... एक बार और कर लिया तो क्या है? अगर दोबारा भी करवा लिया तो क्या बिगड़ जायेगा... अल्लाहा तआला ने मौका दिया है इसे ज़ाया ना जाने दे... बार-बार ऐसे मौके नहीं आने वाले ज़िंदगी में... पिछले दस सालों से तरसी है इसके लिये..!" रुखसाना बेड पर बैठी सोचती रही, "मौका मिला है तो रुखसाना इसका फ़ायदा उठा... आधी से ज्यादा जवानी तो यूँ ही निकल गयी... बाकी भी ऐसे ही निकल जायेगी... अच्छा भला आया था बेचारा... उसे तो कोई और मिल जायेंगी... वो तो अभी-अभी जवान हुआ है... शादी भी होगी... तेरा कौन है... वो फ़ारूक जिसने तुझे कभी प्यार से छुआ तक नहीं... ये सब गुनाह ये गलत है... वो गलत है... इन ही सब में ज़िंदगी निकल गयी... उधर अज़रा को देख ज़िंदगी के मज़े ले रही है... तू तो उससे कहीं ज्यादा हसीन है तुझे हक नहीं है क्या ज़िंदगी के लुत्फ़ उठाने का!" यही सब सोचते-सोचते थोड़ी देर गुज़रने के बाद रुखसाना के दिल और दिमाग की जंग में आखिरकार दिमाग की शिकस्त हुई।

रुखसाना को अब सुनील के साथ अपने रवैय्ये के लिये बुरा महसूस होने लगा। फिर वो कुछ सोचकर मुस्कुराते हुए उठी और अलमारी में से एक बेहद दिलकश सुर्ख रंग का जोड़ा निकाल कर बाथरूम में जा कर कपड़े बदले। फिर कमरे में आकर अच्छा सा मेक-अप किया और लाल रंग के ही ऊँची पेन्सिल हील वाले कातिलाना सैंडल पहने। ये सोच कर रुखसाना के होंठों पे मुस्कुराहट आ गयी कि अगर सुनील उससे खफ़ा भी होगा तो और कुछ नहीं तो उसे ये कातिलाना सैंडल पहने देख कर तो जरूर घायल होकर उसके कदमों में गिर पड़ेगा। फिर उसने पर्फ्यूम लगाया और एक दफ़ा तसल्ली करी कि सलील गहरी नींद सो रहा है और फिर लाइट बंद करके बेडरूम से बाहर निकल कर दरवाजा बाहर से बंद कर दिया। रुखसाना आहिस्ता-आहिस्ता सीढ़ियाँ चढ़ कर ऊपर जाने लगी। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। जब वो ऊपर पहुँची तो सुनील के कमरे का दरवाजा खुला हुआ था और कमरे में नाईट लैम्प की हल्की सी रोशनी थी। जब वो उसके दरवाजे तक पहुँची तो उसे हैरानी हुई कि सुनील तो अंदर था ही नहीं। तभी उसे अपने पीछे सुनील के कदमों आहट आयी तो वो पलटी। उसने देखा सुनील के हाथ में शराब का गिलास था। शायद वो इतनी देर से छत पर शराब पी रहा था। सुनील उसके करीब आया तो रुखसाना झिझकते हुए बोली, "तू सोया नहीं अब तक...?"

सुनील ने आगे बढ़ कर रुखसाना के एक हाथ को अपने हाथ में थाम लिया। उसके मर्दाना हाथ का एहसास पाते ही रुखसाना पे नशा सा होने लगा। "मुझे यकीन था आप जरूर आओगी..!" ये कह कर सुनील ने उसे अपनी तरफ़ खींचा और वो उसकी तरफ़ खिंचती चली गयी... बिना किसी मुज़ाहिमत किये। सुनील ने उसे अपनी बाहों में भर लिया। उसके चौड़े सीने से लग कर रुखसाना को जवानी का अनोखा सुकून मिलने लगा। रुखसाना ने उसके चौड़े सीने में अपना चेहरा छुपा लिया और बोल पड़ी, "सुनील मुझे डर लगता है..!" सुनील ने उसकी कमर को अपनी बाहों में और जकड़ लिया। "डर... कैसा डर भाभी?"

रुखसाना उसकी बाहों में कसमसायी। अपने जवान जिस्म को सुनील की जवान बाहों की गिरफ़्त में उसे बहुत अच्छा लग रहा था। रुखसाना फुसफुसाते हुए बोली, "कोई देख लेगा!"

सुनील बोला, "यहाँ और कौन है जो देख लेगा..!"

रुखसाना: "नीचे सलील है वो..."

सुनील: "अरे वो तो अभी छोटा है... उसे क्या समझ..!"

रुखसाना: "और अगर कुछ ठहर गया तो..?"

सुनील: "क्या...?" सुनील को शायद समझ में नहीं आया था। रुखसाना एक दम से शरमा गयी। वो थोड़ी देर रुक कर बोली, "अगर मैं पेट से हो गयी तो?" सुनील के ज़रिये प्रेग्नेन्ट होने की बात से रुखसाना के जिस्म में झुरझुरी सी दौड़ गयी। सुनील उसकी पीठ को सहलाते हुए बोला, "ऐसा कुछ नहीं होगा..!" रुखसाना ने उसकी आँखों में सवालिया नज़रों से देखा तो वो मुस्कुराते हुए बोला, "मैं कल बज़ार से आपके लिये बच्चा ना ठहरने वाली दवाई ला दुँगा... वैसे मुझे लगता है कि अब आपको रोज़ाना ये गोलियाँ लेने की जरूरत पड़ने वाली है..!" रुखसाना उसकी बात सुन कर सिर झुका कर मुस्कुराने लगी। सुनील ने उसे अपनी बाहों में और जोर से भींच लिया। रुखसाना की चूचियाँ उसके सीने में दब गयीं। सुनील ने उसके चूतड़ों को जैसे ही हाथ लगाया तो रुखसाना एक दम से मचल उठी और बोली, "सुनील यहाँ नहीं..!"

सुनील उसका इशारा समझ गया और उसका हाथ पकड़ कर खींचते हुए अपने कमरे में ले गया। जैसे ही रुखसाना उसके कमरे में दाखिल हुई तो उसकी धड़कनें बढ़ गयी। शाम को तो सब इतनी जल्दी हुआ था कि उसे कुछ समझ में ही नहीं आया था।

कमरे में आते ही सुनील ने लाइट जला दी और रुखसाना को पीछे से बाहों में भर लिया। रुखसाना ने धीरे से अपनी पीठ उसके सीने से सटा ली। सुनील के हाथ में शराब का आधा भरा गिलास अभी भी मौजूद था। उसने अपने होंठों को रुखसाना की गर्दन पर रखा तो रुखसाना का तो रोम-रोम काँप गया। "रुखसाना भाभी आज तो आपका हुस्न कुछ ज्यादा ही कहर ढा रहा है..!" सुनील बुदबुदाते हुए बोला। सुनील ने आज दूसरी बार उसे नाम से पुकारा था। सुनील के होंठ रुखसाना की गर्दन पे और उसका एक हाथ रुखसाना के स्लिम पेट और नाभि के आसपास थिरक रहा था। सुनील के हाथ के सहलाने और अपनी गर्दन पे सुनील के होंठों और गर्म साँसों का एहसास रुखसाना को बहुत अच्छा लग रहा था... वो मदहोश हुई जा रही थी। दो दफ़ा शादीशुदा होने के बावजूद पहली बार उसे ऐसा मज़ा और इशरत नसीब हो रही थी।

"घायल करके रख दिया भाभी आपके हुस्न ने मुझे!" रुख्साना की गर्दन को चूमते हुए सुनील बोला और फिर अपना शराब का गिलास रुखसाना के होंठों से लगा दिया। रुख्सना उसकी गिरफ़्त में कसमसाते हुए शराब का गिलास अपने होंठों से ज़रा दूर करते हुए बोली, "नहीं सुनील... मैं नहीं... पी नहीं कभी!"

"थोड़ी सी तो पी कर देखो भाभी आपके इन सुर्ख होंठों में जब ये शराब थिरकेगी तो शराब और आपके हुस्न का नशा मिलने से ऐसा नशा तैयार होगा कि कयामत आ जायेगी..!" सुनील रुखसाना की गर्दन पे अपने होंठ फिराते हुए बोला। रुखसाना तो पहले ही सुनील के आगोश में मदहोश हुई जा रही थी और सुनील की शायराना बातों से वो बिल्कुल बहक गयी और उसकी तमाम ज़हनी हिचकिचाहट काफ़ूर हो गयी। सुनील ने जैसे ही गिलास फिर से उसके होंठों से लगाया तो रुखसाना फ़ौरन अपने सुर्ख होंठ खोलकर शराब पीने लगी। शुरू-शुरू में तो रुखसाना को ज़ायका ज़रा सा कड़वा जरूर लगा लेकिन फिर दो-तीन घूँट पीने के बाद उसे ज़ायका भाने लगा। इसी तरह एक हाथ से रुखसाना के जिस्म को सहलाते हुए और उसकी गर्दन पे अपनी नाक रगड़ते और उसे चूमते हुए सुनील ने गिलास में मौजूद सारी शराब रुखसाना को पिलाने के बाद ही उसके होंठों से गिलास हटाया।

उसके बाद सुनील ने रुखसाना को अपनी तरफ़ घुमाया और उसे ऊपर से नीचे तक निहारते हुए बोला, "रुखसाना भाभी इतनी हॉट लग रही हो आज कि बस ज्या कहूँ... और इन हाई हील सैंडलों में आपके ये खूबसूरत पैर तो मुझे पागल कर रहे हैं... दिल कर रहा है कि चूम लूँ इन्हें!" रुखसाना पे शराब की हल्की-हल्की खुमारी छाने लगी थी। अपनी तारीफें सुनकर पहले तो वो थोड़ी शर्मा गयी लेकिन फिर शरारत भरी नज़रों से उसे देखते हुए बोली, "तो कर ले ना अपनी हसरत पूरी... रोका किस ने है!"

इतना सुनते ही सुनील फ़ौरन रुखसाना के कदमों पे झुक गया और उसके गोरे-गोरे नर्म पैरों और सैंडलों कि तनियों को कुत्ते की तरह चूमने-चाटने लगा। रुखसाना को यकीन ही नहीं हो रहा थी कि कोई उसे इस कदर भी चाहता है कि इस तरह उसके पैरों को उसके सैंडलों को चूम रहा है। उसके जिस्म में मस्ती भरी सनसनी सी दौड़ गयी। उसके दोनों पैर चूमने के बाद सुनील ने उठ कर फिर रुखसाना को अपने आगोश में ले कर उसके जिस्म पे हाथ फिराता हुआ उसकी गर्दन पे चूमने लगा।

रुखसाना भी सुनील के मर्दाना आगोश में मस्ती में कसमसा रही थी। शराब की खुमारी उसकी मस्ती को और ज्यादा बढ़ा रही थी। उसने भी अपनी बाँहें सुनील की कमर में डाल राखी थी। जब उसे लगा कि सुनील शायद अब उसके कपड़े उतारने शुरू करेगा तो रुखसाना ने धीरे से सुनील को कमरे का दरावाजा बंद करने को कहा तो सुनिल बोला, "यहाँ कौन आ जायेगा इस वक़्त?"

लेकिन रुखसाना इसरार करते हुए बोली, "हुम्म्म तू दरवाजा लॉक कर दे ना प्लीज़?"

सुनील ने उसे छोड़ा और दरवाजा लॉक कर दिया और फिर से रुखसाना को पीछे से जकड़ लिया तो वो उसकी बाहों में कसमसाते हुए फिर फुसफुसाते हुए बोली, "सुनील लाइट भी..!"

सुनील बोला, "रहने दो ना भाभी.. मैं आज आपके हुस्न का दीदार करना चाहता हूँ..!" और रुखसाना के पेट से होते हुए उसके हाथ रुखसाना की चूचियों के तरफ़ बढ़ने लगे।

"मुझे शरम आती है सुनील... लाईट ऑफ कर दे ना... नाईट लैम्प की रोशनी काफ़ी होगी!" अपनी चूचियों पे सुनील के हाथों का दबाव महसूस होने से रुखसाना सिसकते हुए बोली। सुनील ने एक बार फिर से उसे छोड़ा और थोड़े बेमन से लाइट ऑफ़ कर दी। लेकिन सुनील ने देखा कि वाकय में नाईट लैम्प की काफी रोशनी थी और खुली खिड़कियों से कमरे में चाँद की भी काफी रोशनी आ रही थी। इतनी रोशनी रुखसाना के हुस्न का दीदार करने के लिये काफ़ी थी। अब उससे और सब्र नहीं हो रहा था और वो रुखसाना को लेकर बेड पर आ गया।

एक बार फिर से रुखसाना की चुदने की घड़ी आ गयी थी। बेड पर आते ही सुनील उसके साथ गुथमगुथा हो गया। उसके हाथ कभी रुखस्ना की पीठ पर तो कभी उसके चूतड़ों पर घूम रहे थे। रुखसाना उससे और वो रुखसाना से चिपकने लगा। रुखसाना की चूचियाँ बार-बार सुनील के सीने से दबी जा रही थी। रुखसाना का इतने सालों में और सुनील के साथ भी चुदाई का दूसरा ही मौका था इसलिये रुखसाना ज़रा शरम रही थी... शराब की खुमारी के बावजूद वो बहोत ज्यादा खुल कर साथ नहीं दे रही थी।

सुनील ने पहले उसकी कमीज़ उतारी और फिर सलवार और फिर उसकी पैंटी भी खींच कर निकाल दी। रुखसाना के जिस्म पे अब सिर्फ़ काली ब्रा बची थी और पैरों में ऊँची हील वाले लाल सैन्डल। सुनील उसकी बड़ी-बड़ी गुदाज़ चूचियाँ ब्रा के ऊपर से ही दबाने और मसलने लगा जो रुखसाना को बहुत अच्छा लग रहा था। दस सालों में पहली बार उसकी चूचियों को मर्दाना हाथों का मसलना नसीब हुआ था। रुखसाना की हालत खराब हो गयी थी और उसके होंठों से बे-इख़्तियार सिसकियाँ निकल रही थीं। जब सुनील ने उसकी ब्रा को खोला तो रुखसाना की साँस बहोत तेज चल रही थी और दिल ज़ोर-ज़ोर से धक-धक कर रहा था। जिस्म का सारा खून उसे अपनी चूत की तरफ़ सिमटता हुआ महसूस हो रहा था। अब रुखसाना उस बिस्तर पर सिर्फ़ सैंडल पहने एक दम नंगी पड़ी थी... वो भी अपने किरायेदार के साथ। सोच कर ही रुखसाना की चूत मचलने लगी कि वो अपने से पंद्रह साल छोटे जवान लड़के के साथ उसके ही बिस्तर पे एक दम नंगी लेटी हुई थी।

इतने में सुनील ने भी अपने कपड़े उतार दिये और अगले ही पल वो रुखसाना के ऊपर आ चुका था। उसने रुखसाना की टाँगों को उठा कर उसके पैर अपने कंधों पे रखे और अपना मूसल जैसा सख्त अनकटा लंड रुखसाना की चूत के छेद पर लगा दिया और फिर धीरे-धीरे दबाते हुए लंड को अंदर घुसेड़ने लगा। वो घुसेड़ता गया और रुखसाना उसके लंड को अंदर समेटती गयी। जैसे ही उसका लंड रुखसाना की चूत के गहराइयों में पहुँचा, तो वो एक दम मस्त हो गयी। सुनील एक पल भी ना रुका, और अपने लंड को रुखसाना की चूत के अंदर बाहर करने लगा। रुखसाना को लग जैसे कि वो जन्नत की हसीन वादियों में उड़ रही हो। ऐसा सुकून और लुत्फ़ उसे आज तक नहीं मिला था। जैसे ही वो अगला शॉट लगाने के लिये अपना लौड़ा रुखसान की फुद्दी से बाहर निकालता तो रुखसाना की कमर उसके लौड़े को अपनी फुद्दी मैं लेने के लिये बे-इख़्तियार ऊपर की तरफ़ उठ जाती और सुनील का लंड फिर से चूत की गहराइयों में उतर जाता।

सुनील एक स्पीड से बिना रुके अपने लौड़े को अंदर-बाहर करता रहा। इस तरह चोदते हुए ना ही वो रुखसाना के मम्मों से खेला और ना ही कोई चूमा चाटी की चुदाई का आखिर था तो वो भी नया खिलाड़ी। दो बार अज़रा को चोदा था और आज रुखसाना को दूसरी बार चोद रहा था। करीब दस मिनट बाद रुखसाना को ऐसा लगा जैसे उसकी चूत के नसें ऐंठने लगी हों। रुखसाना को अपनी चूत की दीवारें सुनील के लंड के इर्द गिर्द कसती हुई महसूस होने लगी और फिर उसकी चूत से पानी का दरिया बह निकला। रुखसाना झड़ कर बेहाल हो गयी। "ओहहह सुनीईईल मेरीईईई जाआआआन आँहहहह...!" रुखसाना ने जोर से चींखते हुए सुनील को अपनी बाहों में कस लिया। सुनील ने उसकी चूत में अपना लंड पेलते हुए पूछा, "क्या कहा भाभी आपने?" रुखसाना अभी भी झड़ रही थी और चूत में अभी भी जकड़ाव हो रहा था। रुखसाना मस्ती की बुलंदी पर थी। रुखसाना ने मस्ती में आकर सुनील होंठों को चूम लिया। "मेरी जान... मेरे दिलबर..." कहते हुए रुखसाना सुनील के सीने में सिमटती चली गयी। सुनील ने फिर तेजी से धक्के मारने शुरू कर दिये और रुखसाना की चूत के अंदर अपने वीर्य की बौछार करने लगा। झड़ते हुए उसने झुक कर रुखसाना के एक मम्मे को मुँह में भर लिया। सुनील के मुँह और जीभ का लम्स अपने मम्मे और अंगूर के दाने जितने बड़े निप्पल पर महसूस हुआ तो एक बार फिर से रुखसाना की चूत ने झड़ना शुरू कर दिया। उसकी चूत ने पता नहीं सुनील के लंड पर कितना पानी बहाया।

वो दोनों उसी तरह ना जाने कितनी देर लेटे रहे। सुनील रुखसाना के नंगे मुलायम जिस्म को सहलाता रहा और रुखसाना भी इसका लुत्फ़ उठाती रही। रुखसाना को लग रहा था कि ये हसीन पल कभी खत्म ना हों लेकिन फिर वो बिस्तर से उठी और अपने कपड़े ढूँढे और सिर्फ़ कमीज़ पहनने के बाद लाइट ऑन की। सुनील बेड से उठा और रुखसाना का हाथ पकड़ कर बोला, "क्या हुआ?" रुखसाना ने उसकी तरफ़ देखा और फिर शरमा कर नज़रें झुका ली, "सलील अकेला है मुझे जाने दे!"

सुनील बोला, "थोड़ी देर और रुको ना!" तो रुखसाना एक सुनील के नंगे लंड पे एक नज़र डालते हुए बोली, "जाना तो मैं भी नहीं चाहती... लेकिन अभी मुझे जाने दे... अगर वो उठ गया तो मसला हो जायेगा!"

सुनील कुछ नहीं बोला और मुस्कुरा कर उसे जाने दिया। रुखसाना ने अपने बाकी कपड़े उठाये और सिर्फ़ कमीज़ पहने हुए सुनील के कमरे से बहार निकली और सीढ़ियाँ उतर कर नीचे चली गयी। शराब और ज़ोरदार चुदाई के लुत्फ़ की खुमारी से वो खुद को हवा में उड़ता हुआ महसूस कर रही थी। अपने बेडरूम का दरवाजा खोल कर अंदर झाँका तो सलील अभी भी सो रहा था। बेडरूम में आकर उसने दरवाजा बंद किया और रात के कपड़े पहन कर लेट गयी। रात कब नींद आयी उसे पता नहीं चला। सुबह उठ कर नहा-धो कर तैयार होने के बाद उसने नाश्ता तैयार किया । सुनील नाश्ता करने नीचे आया तो रुखसाना के चेहरे पर अभी भी लाली थी... वो अभी भी उसके साथ नज़रें नहीं मिला पा रही थी। सलील की मौजूदगी में दोनों कुछ बोले नहीं। नाश्ता करते हुए सुनील ने टेबल के नीचे रुखसाना का हाथ पकड़ा तो वो अचानक से हड़बड़ा गयी लेकिन सुनील ने उसका हाथ छोड़ा नहीं बल्कि रुखसाना का हाथ अपनी गोद में खींच कर पैंट के ऊपर से लंड पे रख के दबाने लगा। इस सबसे बेखबर सलील सामने बैठा चुपचाप नाश्ता कर रहा था लेकिन रुखसाना की तो धड़कनें तेज़ हो गयीं और चेहरा शर्म से सुर्ख हो गया। फिर नाश्ता करके सुनील तो चला गया लेकिन रुखसाना के जज़बातों को भड़का गया।

सारा दिन रूकसाना का दिल खिला-खिला रहा। सलील की बचकानी बातें सुन कर हंसते-खेलते दिन निकला। आज रुखसाना के खुश होने की वजह और भी थी। उसे नहीं पता था कि उसका ये उठाया हुआ कदम उसे किस मुक़ाम की ओर ले जायेगा या आने वाले वक़्त में उसकी तक़दीर में क्या लिखा हुआ था। पर अभी तो वो सातवें आसमान पे थी और ज़िंदगी में पहली बार इतनी खुशी मीली थी उसे।
 
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#10
शाम को किसी ने गेट के सामने हॉर्न बजाया तो रुखसाना ने सोचा कि ये कौन है जो उनके घर गाड़ी ले कर आया। जब उसने बाहर जाकर गेट खोला तो देखा कि बाहर सुनील बाइक पर बैठा था। वो रुखसाना की तरफ़ देख कर मुस्कुराया और उसने बाइक गेट के अंदर ला कर स्टैंड पर लगा दी। फिर दोनों घर के अंदर दाखिल हुए और रुखसाना अभी कुंडी लगा ही रही थी कि सुनील ने उसे पीछे से बाहों में दबोच लिया। "आहहह हाय अल्लाह क्या करते हो कोई देख लेगा....!" रुखसाना कसमसाते हुए बोली।

"कौन देखेगा भाभी हमें यहाँ..?" सुनील ने उससे अलग होते हुए कहा।

"सलील है ना घर पर...!" रुखसाना ने कहा तो सुनील बोला, "उसे क्या समझ वो तो बच्चा है...!"

"नहीं मुझे डर लगता है... कुछ गड़बड़ ना हो जाये!" रुखसाना बोली।

"अच्छा रात को तो आओगी ना... ऊपर मेरे कमरे में..!" सुनील ने पूछा तो रुखसाना ने मुस्कुराते हुए गर्दन हिला कर आँखों के इशारे से रज़ामंदी बता दी। फिर उसने सुनील से पूछा कि "ये बाइक किसकी है?" तो सुनील ने कहा, "मेरी है... आज ही खरीदी है... नयी है!"

"हाँ वो तो देख ही रही हूँ!" रुखसाना बोली। उसने देखा कि सुनील ने हाथ में खाने का पैकेट पकड़ा हुआ था जो वो ढाब्बे से लेकर आया था। "अब मैं ठीक हूँ सुनील... घर पर बना लेती... इसकी क्या जरूरत थी!" रुखसाना ने सुनील के हाथों से खाने के पैकेट लेते हुए कहा तो सुनील शरारत भरे अंदाज़ में बोला, "आप बना तो लेती... पर मैं आपको काम करके थकाना नहीं चाहता था... रात को आपको काफ़ी मेहनत करनी पड़ेगी..!" ये सुनते ही रुखसाना के गाल शरम से लाल होकर दहकने लगे। सुनील ने दूसरे हाथ में एक और बैग पकड़ा हुआ था। उसने रुखसाना को दिखाया कि उसमें एक पैकेट में खूब सारी गुलाब के फूलों की पंखुड़ियाँ और चमेली के फूल थे। उसी बैग में रॉयल स्टैग व्हिस्की की एक बोतल भी थी। रुखसाना ने सवालिया नज़रों से देखते हुए पूछा तो सुनील बड़े प्यारे अंदाज़ में बोला, "भाभी ये सब तो आज की रात आपके लिये खास बनाने के लिये है... आओगी ना आप?" अब तो रुखसाना ऐसे शर्मा गयी जैसे नयी नवेली दुल्हन हो। वो अपने होंठ दाँतों मे दबा कर दौड़ती हुई किचन में चली गयी। सलील टीवी पर कॉर्टून देख रहा था। सुनील सीधा ऊपर अपने कमरे में चला गया। वो तीन-चार घंटे ऊपर ही रहा और रात के करीब नौ बजे वो नीचे आया तो रुखसाना ने खाना गरम करके टेबल पर लगाया। सुनील सलील के साथ वाली कुर्सी पर बैठा था। "आज बड़ी देर कर दी नीचे आने में...!" रुखसाना सुनील की ओर देखते हुए मुस्कुरायी तो सुनील आँख मारते हुए बोला, "वो रात को जागना है तो सोचा कि कुछ देर सो लेता हूँ!"

फिर कुछ खास बात नहीं हुई। सुनील खाना खा कर ऊपर चला गया। रुखसाना सलील के साथ अपने बेडरूम में आकर सलील के साथ लेट गयी। सलील थोड़ी देर मैं ही सो गहरी नींद सो गया। उसके बाद रुखसाना उठ कर बाथरूम में गयी और उस दिन वो ये तीसरी बार नहा रही थी। सुनील ने रात के लिये काफ़ी तैयारी की थी तो रुखसाना भी अपनी तरफ़ से कोई कमी नहीं रखना चाहती थी। वो भी आज रात को होने वाली चुदाई को लेकर काफ़ी इक्साइटिड थी। नहाने के बाद उसने पूरे जिस्म पे पर्फ्यूम छिड़का। उसकी चूत और जिस्म तो पहले ही बिल्कुल मुलायम और चिकने थे... एक रोंआँ तक भी मौजूद नहीं था। उसके बाद उसने अलमारी में सालों से रखा शरारा सूट निकाला जो उसने फ़ारूख़ के साथ निकाह के वक़्त पहना था। रुखसाना को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे आज उसकी सुनील के साथ सुहाग रात थी। ज़री वाला हरे रंग का शरारा-सूट पहनने के बाद उसने अच्छे से मेक-अप किया। फिर अलमारी की सेफ़ में से ज़ेवर निकाल कर पहने जैसे कि गले का हार... कंगन कानों के बूंदे और बालों में झुमर भी पहना। फिर आखिर में उसने सुनहरी गोल्डन रंग के बेहद ऊँची पेंसिल हील के सैंडल पहने। उसने खड़े होकर सिर पे दुपट्टा ओढ़ कर जब आइने में देखा तो खुद का हुस्नो-शबाब देख कर शर्मा गयी... बिल्कुल नयी नवेली दुल्हन की तरह बेहद खूबसूरत लग रही थी वो।

रुखसाना ने एक बार तस्ल्ली की कि सलील गहरी नींद सो रहा है और फिर लाइट बंद करके आहिस्ता से कमरे से निकली और दरवाजा बंद करके धड़कते दिल के साथ आहिस्ता-आहिस्ता सीढ़ियाँ चढ़ने लगी। जब वो ऊपर पहुँची तो सुनील के कमरे में लाईट जल रही थी। तभी उसे एहसास हुआ की सीढ़ियों से सुनील के कमरे तक रास्ते में फूलों की पंखुड़ियाँ बिछी हुई थीं। सुनील का ये अमल रुखसाना के दिल को छू गया। उसने कभी तसाव्वुर भी नहीं किया था कि कोई उसके कदमों में फूल तक बिछा सकता है। रुखसाना उन फूलों पे बड़ी नफ़ासत से ऊँची पेंसिल हील वाले सैडल पहने पैरों से आहिस्ता-आहिस्ता कदम रखती हुई सुनील के कमरे में दाखिल हुई तो अचानक उसके ऊपर ढेर सारे फूलों की बारिश हो गयी। इतने में अचानक सुनील ने रुखसाना को बाहों में भर लिया। रुखसाना की तनी हुई चूचियाँ सुनील के सीने में दबने लगीं।

"हाय भाभी आप तो मेरी जान निकाल कर ही रहोगी... कल तो इतनी बुरी तरह घायल किया था और आज तो लगता है मेरा कत्ल ही करोगी आप... वाओ!" रुखसाना को दुल्हन के लिबास में देख कर सुनील उत्तेजित होते हुए बोला। रुखसाना ने देखा कि बिस्तर पे भी गुलाब और चमेली के फूलों की चादर मौजूद थी।

"वेलकम भाभी... मेरे कमरे में और मेरी ज़िंदगी में... मैं कितना खुशनसीब हूँ बता नहीं सकता!" सुनील चहकते हुए बोला और उसने टेबल पे पहले से रखे हुए शराब के दो गिलास उठाये और एक गिलास रूकसाना को पक्ड़ाते हुए बोला, "ये लीजिये भाभी... आज का पहला जाम आपके बेमिसाल हुस्न के नाम!" रुखसाना के दिल में थोड़ी हिचकिचाहट तो हुई लेकिन उसने ज़ाहिर नहीं होने दी। जैसे ही वो अपना गिलास होंठों से लगाने लगी तो सुनील ने उसके गिलास से अपन गिलास टकराते हुए 'चियर्स' कहा और फिर रुख्साना की बाँह में अपनी बाँह लपेट कर बोला, "अब पियो भाभी एक ही घूँट में!"

सुनील की तरह रुखसाना ने भी एक ही घूँट में गिलास खाली कर दिया। आज उसे शराब पिछली रात से थोड़ी ज्यादा स्ट्रॉंग और तीखी लगी क्योंकि आज सुनील ने दोनों गिलासों में नीट व्हिस्की डाल राखी थी। फिर सुनील ने कामरे की लाइट ऑफ करके नाइट लैम्प ऑन कर दिया और अपने फोन पे कम वल्यूम पे पुराना गाना चला दिया, "आओ मानायें जश्न-ए-मोहब्बत... जाम उठायें जाम के बाद...!" और रुखसाना को बाहों में भर कर धीरे-धीरे थिरकने लगा। नाइट लैम्प की मद्दिम सी नीली रोशनी के साथ-साथ कमरे में खुली खिड़कियों से चाँद की चाँदनी भी बिखरी हुई थी । गर्मी का मौसम था लेकिन बाहर से हल्की-हल्की ठंडी पूर्वा हवा बह रही थी। रुखसाना को सुनील का तैयार किया हुआ ये रंगीन और रुमानी समाँ बेहद दिलकश लग रहा था और वो भी सुनील के सीने में चेहरा छुपाये और उसकी कमर में बांहें डाल कर उससे चिपक कर गाने की धुन पे धीरे-धीरे थिरकने लगी। सुनील के हाथ में व्हिस्की की बोतल थी और दोनों एक दूसरे के आगोश में थिरकते-थिरकते बीच-बीच में उस बोतल से व्हिस्की के छोटे-छोटे घूँट पी रहे थे। वही गाना बार-बार लूप में चल रहा था।

थिरकते हुए सुनील के हाथ रुखसाना की कमर से चूतड़ों तक हर हिस्से को सहला रहे थे। एक पराये मर्द... वो भी उम्र में उससे पंद्रह साल छोटा... उससे इतनी तवज्जो... इतनी मोहब्बत.... इतना सुकून उसे मिलेगा... रुखसाना ने ज़िंदगी में कभी सोचा नहीं था। जल्दी ही रुखसाना पे शराब का नशा भी सवार होने लगा था और इतने रोमांटिक माहौल में वो सुरूर में मस्त हो चुकी थी और उसे इस वक़्त दीन-दुनिया की कोई खबर नहीं थी। वो आज इस सुरूर-ओ-मस्ती के समंदर में डूब जाना चाहती थी। इसी बीच कब व्हिस्की की बोतल उसने सुनील के हाथ से अपने हाथ में ले ली उसे पता हा नहीं चला। नशे की खुमारी में सुनील के कंधे पे सिर टिकाये उससे लिपट कर थिरकती हुई वो बीच-बीच में व्हिस्की के छोटे-छोटे सिप ले रही थी।

सुनील ने अब रुखसाना के कपड़े उतारने शुरू कर दिये... वहीं थिरकते-थिरकते खड़े-खड़े ही। मदहोशी में रुखसाना ने ज़रा भी मुखालिफ़त नहीं की बल्कि वो तो नंगी होने में सुनील का साथ दे रही थी जब वो धीरे-धीरे उसके कपड़े खोल रहा था। थोड़ी ही देर में उसका शरारा सूट उसके जिस्म से अलग हो चुका था! नाइट लैंप और चाँदनी रात की मद्दिम सी रोशनी में अब वो बिल्कुल नंगी आँखें बंद किये सुनील के कंधे पे सिर रख कर उससे लिपटी हुई नाच रही थी। फिर सुनील उससे थोड़ा अलग हुआ और रुखसाना को कुछ सरसराहट सुनायी दी। उसका दिल ये सोच कर धोंकनी की तरह बजने लगा कि सुनील भी अपने कपड़े उतर रहा है। फिर एक सख्त सी गरम चीज़ रुखसाना को अपनी रानों पर चुभती हुई महसूस हुई तो उसका जिस्म एक दम से थरथरा गया ये सोच कर कि सुनील का तना हुआ लंड उसकी रानों से रगड़ खा रहा था।

फिर अचानक से पता नहीं क्या हुआ... सुनील उससे बिल्कुल अलग हो गया। रुखसाना को नशे की खुमारी में समझ में नहीं आया कि आखिर हुआ क्या... लेकिन तभी अचानक कमरे की ट्यूब- लाइट ऑन हो गयी और कमरा पुरी तरह रोशन हो गया। अचानक तेज़ रोशनी से रुखसाना की आँखें चौंधिया गयीं। रुखसाना कमरे के ठीक बीचोबीच शराब की बोतल हाथ में पकड़े और सिर्फ़ ज़ेवर और सुनहरे रंग के हाई पेन्सिल हील के सैंडल पहने एक दम मादरजात नंगी खड़ी थी। सुनील लाइट के स्विच के पास खड़ा रुखसाना के तराशे हुए संगमरमर जैसे गोरे नंगे जिस्म को निहारते हुए अपने मूसल जैसे लंड को हाथ में लेकर सहला रहा था। नशे की हालत में भी रुखसाना शरमा गयी लेकिन उसने अपना नंगापन छुपाने की कोशिश नहीं की। "सुनील! ये क्या... प्लीज़ बंद कर दे ना मुझे शर्म आती है... कितना शैतान है तू!" रुखसाना कुनमुनाते हुए नशे में लरज़ती आवाज़ में बोली। वो हाई हील के सैंडल पहने नशे में ठीक से एक जगह खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। "ऑफ़ कर दे और मेरे करीब आ ना... जानू!" वो कुनमुनाते हुए सुनील के लौड़े की तरफ़ देखते हुए बोली और नशे में झूमती हुई अचानक धम्म से फ़र्श पे टाँगें फ़ैला कर बैठ गयी। उसने अपनी पीठ पीछे बेड से टिका रखी थी। सुनील लाइट बंद किये बगैर रुखसाना की तरफ़ बढ़ा। सुनील का तना हुआ लौड़ा हवा में लहरा रहा था जिसे देख कर रुखसाना की चूत फड़फड़ाने लगी। सुनील उसके पास आया और उसके चेहरे के बिल्कुल सामने अपना लौड़ा लहराते हुए खड़ा हो गया।

"वॉव भाभी इस वक़्त आप जन्नत की हूरों से भी ज्यादा हसीन लग रही हो... आपको इस तरह देख कर तो मुर्दों के लंड भी खड़े हो जायें!" सुनील अपना लौड़ा उसके चेहरे को छुआते हुए बोला तो रुखसाना ने मुस्कुराते हुए नज़रें झुका लीं। रुखसाना की तारीफ़ सुनील ज़रा भी बढ़ा चढ़ा कर नहीं कर रहा था बल्कि हकीकत बयान कर रहा था। ट्यूब-लाइट की रोशनी में घुटने मोड़ कर टाँगें फैलाये बैठी रूखसाना का दमकता हुआ चिकना नंगा जिस्म... बालों में झूमर... गले में सोने का नेकलेस... कानों में लटकते हुए सोने के बूँदे... दोनों हाथों में एक-एक चौड़ा कंगन और पैरों में बेहद ऊँची और पतली हील वाले कातिलाना सुनहरी सैंडल... होंठों पे लाल लिपस्टिक.... गालों पे लाली... बेशक रुखसाना क़यामत ढा रही थी। उसकी नशीली आँखों में शरम भी थी और शरारत भी थी... थोड़ी घबराहट के साथ-साथ बेकरारी और प्यास भी मौजूद थी। सुनील का लंड तो बिल्कुल लोहे के रॉड जैसा सख्त हो गया था। फिर अपने लौड़े का सुपाड़ा रुखसाना के लरज़ते लबों पे लगाते हुए सुनील बोला, "लो भाभी इसे अपने नर्म होंठों से प्यार कर दो ना!" इससे पहले सुनील को लंड चुसवाने का एक ही बार तजुर्बा था... जब अज़रा ने उसका लंड चूस-चूस कर उसका पानी निकाल कर पिया था। सुनील को बेहद मज़ा आया था। रुखसाना को भी खास तजुर्बा नहीं था लंड चूसने का। दास साल पहले शादी के बाद शुरू-शुरू में फ़ारूक़ उससे लंड चुसवाता था। उसके बाद तो उसने सिर्फ़ अज़रा को ही फ़ारूक लंड चूसते और उसकी मनी पीते हुए देखा था।

सुनील का जवान बिला-कटा लंबा-मोटा लंड रुखसाना को अपने चेहरे के सामने सख्त हो कर लहराता हुआ बेहद हसीन लग रहा था और उसने धीरे से अपने होंठ सुनील के लंड के चिकने सुपाड़े पे रख दिये और चूमने लगी और फिर एक हाथ से उसे पकड़ कर एक बार उसे आगे से पीछे तक सहलाने के बाद अपने होंठ खोल कर सुपाड़ा अपने मुँह में ले लिया और अपनी ज़ुबान उसके इर्द-गिर्द फिराने लगी। सुनील की मस्ती में आँखें मूँद गयी और होठों से सिसकरी निकल पड़ी, "ऊउहहह भाआआआभी...! रुखसाना को भी अपनी मुट्ठी और होंठों और ज़ुबान पे सुनील के सख्त गरम लौड़े का एहसास दीवाना बना रहा था। सुनील के लंड की गर्मी रुखसाना की मुट्ठी और होंठों से उसके जिस्म में समाती हुई सीधी उसकी चूत तक जा रही थी। फिर रुखसाना ने मज़े से चुप्पे लगाने शुरू कर दिये। जल्दी ही रुखसाना उसका आधे से ज्यादा लंड मूँह में अंदर-बाहर लेते हुए चूस रही थी। सुनील इतना उत्तेजित हो गया कि उसने रुखसाना का सिर पकड़ के अचानक जोर से धक्का मारते हुए अपना पूरा लौड़ा रुखसाना के हलक तक ठेल दिया। रुखसाना की तो साँस ही घुट गयी और वो तड़प उठी। सुनील ने अपना लौड़ा फ़ौरन बाहर खींच लिया तो रुखसाना खाँसते हुए जोर-जोर से साँसें लेने लगीं। "सॉरी भाभी... मैं रोक नहीं पाया खुद को!" सुनील बोला। रुखसाना की साँसें बहाल हुई तो उसने मुस्कुराते हुए सुनील को तसल्ली दी कि कोई बात नहीं। रुखसाना ने फिर अपने थूक से सना हुआ लौड़ा मुट्ठी में ले लिया और सहलाते हुए दूसरे हाथ में अपनी बगल में फर्श पे ही रखी व्हिस्की की बोतल लेकर एक छोटा सा घूँट पी लिया। उसके बाद उसने फिर सुनील के लंड के सुपाड़े को मुँह में ले कर चुप्पा लगाया तो सुनील को अलग ही मज़ा आया।

सुनील के दिमाग में कुछ विचार आया और उसने रुखसाना को ज़रा सा रुकने को कहा और फिर टेबल से काँच का एक छोटा सा गिलास ले कर उसे आधे तक व्हिस्की से भर दिया। फिर रुखसाना के चेहरे के सामने खड़े होकर अपना लौड़ा उस गिलास में डाल कर व्हिस्की में डुबो कर रुखसाना के होंठों पे रख दिया। रुखसाना फ़ौरन अपने लब खोल कर शराब में भीगा सुपाड़ा मुँह में ले कर फिर चुप्पे लगाने लगी। ऐसे ही सुनील बार-बार अपना लौड़ा शराब में भिगो-भिगो कर रुखसाना से चुसवा रहा था और रुखसाना को भी इस तरह शराब में भीगा लंड चूसने में बेहद मज़ा आ रहा था। इतने में सुनील का सब्र जवाब दे गया और उसकी टाँगें काँपने लगीं वो जोर से सिसकते हुए रुखसाना के मुँह में ही झड़ने लगा। रुखसाना बेझिझक उसकी मनी का ज़ायका ले रही थी। इतने मोटा लंड मुँह में भरे होने की वजह से सुनील का वीर्य रुखसाना के होंठों के किनारों से बाहर बहाने लगा तो सुनील ने अपना झड़ता हुआ लंड उसके मुँह से बाहर निकाल लिया और वीर्य की बाकी पिचकारियाँ शराब के गिलास में निकाल दीं। रूकसाना तो मस्ती में अपने होंठों के किनारों से बाहर निकली हुई मनी भी उंगलियों से पोंछ कर चाट गयी और होंठों पे ज़ुबान फिराने लगी।

जैसे ही सुनील ने शराब का गिलास जिसमें उसका वीर्य मलाई की तरह व्हिस्की में तैर रहा था... उसे टेबल पे रखने के इरादे से हाथ आगे बढ़ाया तो रुखसाना ने उसका हाथ पकड़ के रोक दिया और गिलास अपने हाथ में लेकर और उसे हिलाते हुए हिर्सना नज़रों से शराब में तैरती मनी देखने लगी। सुनील तो झड़ने के बाद के लम्हों की मस्ती में था और इससे पहले वो कुछ समझ पाता रुखसाना ने अपने थरथराते होंठ गिलास पे लगा दिये और गिलास को बिना होंठों से हटाये हुए धीरे-धीरे व्हिस्की और उसमें तैरती हुई मनी बड़े मज़े से पी गयी। सुनील आँखें फाड़े देखता रहा गया। वो सपने में भी सोच नहीं सकता था किरुखसाना जैसी शर्मिली औरत ऐसी अश्लील हर्कत भी कर सकती। लेकिन हवस का तुफ़ान सारी शर्म और हया खतम कर देता है।

ये देखकर सुनील में नया जोश आ गया और उसने रुखसाना को गोद में उठा कर बिस्तर पे लिटा दिया। रुखसाना ने जो मज़ा और खुशी उसे दी थी तो अब सुनील की बारी थी बदला चुकाने की। सुनील रुखसाना के ऊपर छा गया और उसके होंठों को अपने होंठों में ले कर चूसने लगा। फिर धीरे-धीरे रुखसाना के गालों और गर्दन को चूमते और अपनी जीभ फिराते हुए नीचे सरका। रुखसाना के दोनों मम्मों को मसलते हुए उसके निप्पलों को मुँह में ले कर चुभलाया तो रुखसाने की सिसकारियाँ शुरू हो गयीं। इसके बाद सुनील अचानक बेड से उतरा और व्हिस्की की बोतल ले कर वापस आ गया। रुखसाना के पैरों के नज़दीक बैठ कर उसने रुखसाना का एक पैर उठा के सैंडल के स्ट्रैप के बीच में उसके पैर को चूम लिया। फिर रुखसाना को उस पैर पे कुछ ठंडा बहता हुआ महसूस हुआ तो उसने देखा सुनील उसके पैर और सैंडल पे शराब डाल-डाल के चाट रहा था। सुनील ने एक-एक करके दोनों पैरों और सुनहरी सैंडलों के हर हिस्से को शराब में भिगो-भिगो कर चाटा। सैंडलों के तलवे और हील तक उसने शराब में भिगो कर अपनी जीभ से चाट कर साफ़ किये। सुनील की इस हरकत से रुखसाना के जिस्म में हवस की बिजलियाँ कड़कने लगीं। ऐसे ही धीरे-धीरे उसकी दोनों सुडौल चिकनी टाँगों और जाँघों पे थोड़ी-थोड़ी शराब डाल कर चाटते हुए ऊपर बढ़ा। रुखसाना मस्ती में छटपटाने लगी थी और उसकी सिसकारियाँ लगातार निकल रही थीं, "ओहहह मेरी जान ऊँऊँहह सुनीईईल जानू.... आँआआहहह!" उसके सिर के नीचे तकिया था तो वो नशीली आँखों से सुनील को ये सब करते देख भी रही थी। जब सुनील का चेहरा उसकी चूत के करीब आया तो पहले ही मचल उठी लेकिन सुनील उसकी चूत को नज़र-अंदाज़ करता हुआ ऊपर उसके पेट और नाभि की तरफ़ गया और उसके पेट पर शराब उड़ेल कर चाटने लगा। रुखसाना को अपने जिस्म पे जहाँ-जहाँ सुनील के चाटने का एहसास होता उन-उन हिस्सों में उसे हवस की चिंगरियाँ भड़कती महसूस होने लगती। जब उसकी नाफ़ में सुनील ने जाम की तरह शराब भर के उसे अपने होंठों से सुड़का तो रुखसाना सिसकते हुए मस्ती में जोर से किलकारी मार उठी। इसके बाद सुनील ने उसकी चूचियों और चूचियों के बीच की घाटी में भी शराब डाल कर फिर से उन्हें मसलते हुए चूमा-चाटा। फिर सुनील ने शराब का एक घूँट अपने मुँह में भरा और झुक कर रुखसाना के होंठों पे होंठ रख दिये और अपने मुँह में भरी शराब रुखसाना के मुँह में उतार दी।

रुखसाना को सुनील की इन हरकतों में बेहद मज़ा आ रहा था और उसकी हवस परवान चढ़ती जा रही थी। आखिर में जब सुनील उसकी चूत को शराब में नहला कर चूत के ऊपर और अंदर अपनी जीभ डाल-डाल कर चाटने लगा तो रुखसाना मस्ती में छटपटाते हुए अपनी टाँगें बिस्तर पे पटकने लगी और जोर-जोर से मस्ती में कराहते हुए अपना सिर दांये-बांये पटकने लगी और कुछ ही देर में उसकी चूत ने सुनील के मुँह में और चेहरे पे पानी छोड़ दिया। ज़िंदगी में अपनी चूत चटवाने का रुखसाना का ये पहला मौका था और उसे बेपनाह मज़ा आया था। दो ही दिन में सुनील ने रुखसाना की बरसों से बियाबान ज़िंदगी को ऐश-ओ-इशरत की बहारों से खिला दिया था। आज तक रुखसाना को इतना मज़ा कभी नहीं आया था। सैक्स सिर्फ़ लंड के चूत में अंदर-बाहर चोदने तक महदूद नहीं होता ये बात रुखसाना को अब पता चल रही थी।

अब तक सुनील का लंड फिर से खड़ा होकर सख्त हो चुका था। वो एक बार फिर रुखसाना के ऊपर छाता चला गया और कुछ ही पलों में वो रुखसाना की टाँगों के बीच में था और रुखसाना की टाँगें सुनील की जाँघों के ऊपर थी। सुनील ने अपनी हथेली रुखसाना की हसास चूत पर रखी तो उसके मुँह से आह निकल गयी। उसकी हथेली का एहसास इतना भड़कीला था कि रुखसाना ने बिस्तर की चादर को दोनों हाथों में थाम लिया। नीचे से उसकी चूत फिर से मचलते हुए पानी-पानी हो रही थी। सुनील का लंड उसकी चूत की फ़ाँकों पर रगड़ खा रहा था। "रुखसाना भाभी आपकी चूत बहुत खूबसूरत है..!" सुनील ने रुखसाना की चूत की फ़ाँकों को हाथों से फैलाया तो रुखसाना की मस्ती सातवें आसमान पर पहुँच गयी। हालाँकि रुखसाना ने 'चूत-चुदाई' जैसे अल्फ़ाज़ अकसर अज़रा और फ़ारुख के मुँह से सुने थे और वो इस तरह के लफ़ज़ों और गालियों से अंजान नहीं थी लेकिन रुखसाना के साथ कभी किसी ने ऐसे अल्फ़ाज़ों में बात नहीं की थी और ना ही कभी रुख्सआना ने ऐसे अल्फ़ाज़ों का इस्तेमाल किया था। रुखसाना को बिल्कुल भी बुरा या अजीब नहीं लगा बल्कि सुनील के मुँह से अपनी चूत की इस तरह तारीफ़ सुनकर वो गुदगुदा गयी थी। "ऊँम्म... खुदा के लिये ऐसी बातें ना कर सुनील!" रुखसाना मस्ती में बंद आँखें किये हुए लड़खड़ाती ज़ुबान में बोली।

"क्यों ना करूँ भाभी... ऐसी बातें सुन कर ही तो चुदाई का मज़ा आता है..!" सुनील ने अपने लंड के सुपाड़ा से रुखसाना की चूत की फ़ाँकों के बीच में रगड़ा तो रुखसाना को ऐसा लगा जैसे उसका दिल अभी धड़कना बंद कर देगा। "उफ़्फ़्फ़...!" सुनील के मुँह से निकला और उसने अपने लंड के सुपाड़े को ठीक रुखसाना की चूत के ऊपर रखा और उसके ऊपर झुकते हुए उसके गालों को चूमा। "सीईईई...." रुखसाना के तो रोम-रोम में मस्ती की लहर दौड़ गयी। फिर सुनील उसके गालों को चूमते हुए रुखसाना के होंठों पर आ गया। सुनील उसके होंठों को एक बार फिर से अपने होंठों में लेकर चूमने वाला था... ये सोचते ही रुखसाना की चूत फुदकने लगी... लंड को जैसे अंदर लेने के लिये मचल रही हो। फिर तो जैसे सुनील उसके होंठों पर टूट पड़ा और उसके होंठों को चूसने लगा। सुनील से अपने होंठ चुसवाने में और उसकी ज़ुबान के अपनी ज़ुबान के साथ गुथमगुथा होने से रुखसाना को इस कदर लुत्फ़ मिल रहा था कि वो बेहाल होकर सुनील से लिपटती चली गयी। इसी दौरान सुनील का लंड भी धीरे-धीरे रुख़साना की चूत की गहराइयों में उतरता चला गया। जैसे ही सुनील का लंड रुखसाना की चूत के गहराइयों में उतरा तो उसने रुखसाना के होंठों को छोड़ दिया और झुक कर उसके दांये मम्मे के निप्पल को मुँह में भर लिया और जोर-जोर से चूसने लगा। रुखसाना एक दम मस्त हो गयी और उसकी बाँहें सुनील की पीठ पर थिरकने लगी। सुनील पिछली रात की तरह जल्दबाज़ी में नहीं था। वो कभी रुखसाना के होंठों को चूसता तो कभी उसके मम्मों को! उसने रुखसाना के निप्पलों को निचोड़-निचोड़ कर लाल कर दिया।

रुखसाना के होंठों में भी सरसराहट होने लगी थी और जब सुनील उसके होंठों को चूसना छोड़ता तो खून का दौरा उसके होंठों में तेज हो जाता और तेज सरसराहट होने लगती। रुखसाना का दिल करता कि सुनील उसके होंठों को चूमता ही रहे... उसकी ज़ुबान को अपने मुँह में ले कर सुनील चूसता ही रहे..! रुक़साना की दोनों चूचियों और निप्पलों का भी यही हाल था लेकिन सुनील के लिये उसके होंठों और दोनों चूचियों और निप्पलों को एक वक़्त में एक साथ चूसना तो मुमकिन नहीं था। नीचे रुखसाना की फुद्दी भी फुदफुदा रही थी। रुखसाना इतनी मस्त हो गयी थी कि उसकी फुद्दी सुनील के लंड पे ऐंठने लगी जबकि अभी तक सुनील ने एक भी बार अपने मूसल लंड से उसकी चूत में वार नहीं किया था। वो रुखसाना की चूत में लंड घुसाये हुए उसके मम्मों और होंठों को बारी-बारी चूस रहा था और रुखसाना मस्ती में आँखें बंद किये हुए सिसकती रही और फिर उसकी चूत के सब्र का बाँध टूट गया। रुखसाना काँपते हुए झड़ने लगी पर सुनील तो अभी भी उसके मम्मों और होंठों का स्वाद लेने में ही मगन था। सुनील को भी एहसास हो गया था कि रुखसाना फिर झड़ चुकी है।

फिर सुनील उठा और घुटनों के बल बैठ गया और अपने लंड को सुपाड़े तक रुखसाना की चूत से बाहर निकाल-निकाल कर अंदर बाहर करने लगा। लंड चूत के पानी से चिकना होकर ऐसे अंदर जाने लगा जैसे मक्खन में गरम छुरी। "भाभी देखो ना आपकी चूत मेरे लंड को कैसे चूस रही है..... आहहह देखो ना..!" रुकसाना उसके मुँह से फिर ऐसे अल्फ़ाज़ सुनकर फिर मस्ती में भर गयी। वो पूरी रोशनी में सुनील के सामने अपनी टाँगें फैलाये हुए एक दम नंगी होकर उसका लंड अपनी चूत में ले रही थी और सुनील उसकी चूत में अपने लंड को अंदर-बाहर कर रहा था। "आहहह देखो ना भाभी... आपकी चूत कैसे मेरे लंड को चूम रही है... देखो आहहह सच भाभी आपकी चूत बहुत गरम है!" सुनील झटके मारते हुए बोले जा रहा था।

रुखसाना की पहाड़ की चोटियों की तरह तनी हुई गुदाज़ चूचियाँ सुनील के धक्कों के साथ ऊपर-नीचे हो रही थी। "ऊँऊँहह सुनील... मेरे दिलबर ऐसी बातें ना कर... मुझे शर्म आती है!" रुखसाना की बात सुनकर सुनील ने दो तीन जोरदार झटके मारे और अपना लंड चूत से बाहर निकाल लिया। "देखो ना भाभी... आपकी चूत की गरमी ने मेरे लंड के टोपे को लाल कर दिया है!" सुनील की ये बात सुनकर रुखसाना मस्ती में और मचल गयी। रुखसाना ने अपनी मस्ती और नशे से भरी हुई आँखों से नीचे सुनील की रानों की तरफ़ नज़र डाली तो उसे सुनील के लंड का सुपाड़ा नज़र आया जो किसी टमाटर की तरह फूला हुआ एक दम लाल हो रखा था। रुखसाना मन ही मन सोचने लगी कि सच में चूत के गरमी से उसके लंड का टोपा लाल हो सकता है..!
 
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#11
"आप भी कुछ कहो ना भाभी प्लीज़ एक बार... आपको भी ज्यादा मज़ा आयेगा!" सुनील ने ज़ोर दिया तो रुखसाना फुसफुसा कर बोली, "हाय अल्लाहा मुझे शरम आती है..!"

"ये शरम छोड़ कर करो ना चुदाई की बातें... भाभी आपको मेरी कसम!" सुनील की बात ने तो जैसे रुखसाना के दिल पर ही छुरी चला दी हो। "मुझसे नहीं होगा सुनील... अपनी कसम तो ना दे... प्लीज़ अब ऐसे तड़पा नहीं और जल्दी अंदर कर... मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा!"

रुखसाना की चूत की फ़ाँकों पर अपने लंड को रगड़ते सुनील फिर बोला, "लेकिन ये तो बताओ कि क्या अंदर करूँ?" रुखसाना अपनी नशे और चुदास में बोझल आँखों से सुनील के लंड के सुपाड़ा को देखते हुए बेकरार होके बड़ी मुश्किल से बोली, "ये... अपना ल...लंड... कर ना प्लीज़!" सुनील अभी भी उसकी चूत के बाहर अपने लंड का सुपाड़ा रगड़ रहा था। सुनील ने फिर रुखसाना को तड़पाते हुए पूछा, "कहाँ डालूँ अपना लंड भाभी... और क्या करूँ खुल के बताओ ना।" अब रुकसाना का सब्र जवाब दे गया और वो तमाम शर्म और हया छोड़ कर नशे में लरजती आवाज़ में गुस्से से कड़ाक्ते बोली, "अरे मादरचोद क्यों तड़पा रहा है मुझे... ले अब तो डाल अपना लंड... मेरी चूत में और चोद मुझे..!"

"ये हुई ना बात भाभी... अब आपको रंडी बना के चोदने में मज़ा आयेगा!" कहते हुए सुनील ने अपने लंड को हाथ से पकड़ कर रुखसाना की आँखों में झाँका और फिर लंड को उसकी चूत के छेद पर टिकाते हुए ज़ोरदार झटका मारा। "हाआआआय अल्लाआहहह!" रुखसाना की फुद्दी की दीवारें जैसे मस्ती में झूम उठी हों.., मर्द क्या होता है... ये आज उसे एहसास हो रहा था। रुखसाना ने सुनील को कसकर अपने आगोश में लेते हुए अपने ऊपर खींचा और उसके आँखों में आँखें डाल कर बोली, "सुनील मेरी जान! चोद मुझे... इतना चोद मुझे कि मेरा जिस्म पिघल जाये... बना ले मुझे अपनी रंडी...!" ये कहते हुए उसके होंठ थरथराये और चूत ऐंठी... जैसे कि आज उसकी चूत ने अपने अंदर समाये लंड को अपना दिलबर मान लिया हो..!

रुखसाना की आरज़ू थी कि सुनील उसके होंठों को फिर बुरी तरह से चूमे... उसकी ज़ुबान को अपने मुँह में लेकर चूसे... और ये सोच कर ही रुखसाना के होंठ काँप रहे थे...! शायद सुनील भी उसके दिल के बात समझ गया था। वो रुखसाना के होंठों पर टूट पड़ा और अपने दाँतों से चबाने लगा... हल्के-हल्के धीरे से कभी उसके होंठ चूसता तो कभी होंठों को काटता... मीठा सा दर्द होंठों पर होता और मज़े के लहर उसकी चूत में दौड़ जाती। रुखसाना उससे चिपकी हुई उसके जिस्म में घुसती जा रही थी। रुखसाना का दिल कर रहा था कि दोनों जिस्म एक हो जायें... एक होकर फिर कभी दो ना हों....! सुनील का लंड फिर उसकी चूत की गहराइयों को नापने लगा था और अनकटे मोटे लंड के घस्से चूत में कितने मज़ेदार होते हैं... ये रुखसाना ने पहले कभी महसूस नहीं किया था। उसकी मस्ती भरी सिस्कारियाँ और बढ़ने लगीं और पूरे कमरे में गूँजने लगीं।

रुखसाना अब खुद अपनी टाँगों को उठाये हुए सुनील से चुदवा रही थी। मस्ती के पल एक के बाद एक आते जा रहे थे। सुनील के धक्कों से उसका पूरा जिस्म हिल रहा था और फिर से वही मुक़ाम... चूत ने लंड को चारों ओर से कस लिया... और अपना प्यार भरा रस सुनील के लंड की नज़र करने लगी। सुनील के वीर्य ने भी मानो उसकी प्यासी बियाबान चूत की जमीन पर बारिश कर दी हो । रुखसाणा का पूरा जिस्म झटके खाने लगा। उसे सुनील की मनी अपनी चूत की गहराइयों में बहती हुई महसूस होने लगी। बेइंतेहा लुत्फ़-अंदोज़ तजुर्बा था... रुखसाना सोचने लगी कि क्यों उसने अब तक अपनी जवानी ज़ाया की।

रुखसाना कमज़ कम तीन बार झड़ चुकी थी। सुनील अब उसकी बगल में लेटा हुआ रुखसाना के जिस्म को सहला रहा था। रुखसाना अचानक बिस्तर से उठने लगी तो सुनील ने उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया। "कहाँ जा रही हो भाभी... एक बार और करने दो ना?" उसने रुखसाना को अपनी तरफ़ खींचते हुए कहा।

"उफ़्फ़्फ़ मुझे पेशाब लगी है... पेशाब तो करके आने दे ना... फिर कर लेना... वैसे खुल कर बोल कि क्या करना है!" रुखसाना हंसते हुए बोली तो सुनील भी उसके साथ हंस पड़ा। रुखसाना पे अभी भी शराब का नशा हावी था। जब वो झूमती हुई बिस्तर से उठ के नंगी ही टॉयलेट जाने लगी तो हाई हील के सैंडल में चलते हुए उसके कदम नशे में लड़खड़ा रहे थे। नशे में लड़खड़ाती हुई मादरजात नंगी रुखसाना के बलखाते हुस्न को सुनील ने पीछे से देखा तो उसके लंड में सनसनी लहर दौड़ गयी लेकिन फिर वो रुखसाना को सहारा देने के लिये उठा कि कहीं वो गिर ना पड़े... क्योंकि बाथरूम और टॉयलेट कमरे से थोड़ा हट के छत के दूसरी तरफ़ थे। जब सुनील लड़खड़ाती रुखसाना को सहारा दे कर कमरे से बाहर निकल कर छत पर आया तो पास ही छत की परनाली देख कर रुख्सना से बोला, "भाभी इस नाली पे ही मूत लो ना!"

"हाय अल्लाह... यहाँ तेरे सामने मैं... कैसे?" रुखसाना लरजती आवाज़ में नखरा करते हुए बोली तो सुनील मुस्कुराते हुए बोला, "अब मुझसे शर्माने के लिये बचा ही क्या है... यहीं कर लो ना?" रुखसाना को बहुत तेज पेशाब आया था और नशे की हालत में उसने और ना-नुक्कर नहीं की। सुनील ने सहारा दे कर रुखसाना को परनाली के पास मूतने के लिये बिठा दिया। जैसे ही उसकी चूत से मूत की धार निकली तो बहुत तेज आवाज़ हुई। नशे में भी रुखसाना के चेहरे पे शर्म की लाली आ गयी। सुनील बड़े गौर से रुखसाणा को मूतते देख रहा था। चाँदनी रात में रुखसाना का नंगा जिस्म दमक रहा था। उसके बाल थोड़े बिखर गये थे लेकिन बालों में झुमर अभी भी मौजूद था। सोने के झूमर... गले का हार... कंगन और सुनहरी सैंडल भी चाँदनी में चमक रहे थे। करीब एक मिनट तक रुखसाना की चूत से मूत की धार बाहती रही और वो होंठों पे शर्मीली सी मुस्कान लिये सुनील की नज़रों के सामने मूतती रही। ये नज़ारा देख कर सुनील का लंड फिर टनटनाने लगा। रुखसाना का मूतना बंद होने के बाद सुनील उसका हाथ पकड़ के उसे खड़ा करते हुए बोला, "भाभी मुझे भी मूतना है... अब आप मेरी भी तो मदद कर दो ना!"

"तो मूत ले ना... मैं क्या मदद करूँगी इसमें!" रुखसाना बोली तो सुनील उसे छत की मुंडेर के सहारे खड़ा करके उसकी आँखों में झाँकते हुए शरारत से बोला, "मेरा लंड पकड़ कर करवा दो ना भाभी!" फिर सुनील के लंड को अपनी काँपती उंगलियों में पकड़ कर रुखसाना ने उसे मोरी की तरफ़ करते हुए झटका दिया और मुस्कुराते हुए बोली, "हाय अल्लाह बड़ा बेशर्म और शरारती है तू... ले कर अब....!" सुनील के लंड से पेशाब की धार निकली तो रुखसाना का पूरा जिस्म काँप गया और उसकी नज़रें सुनील के लंड और उसमें से निकलती पेशाब की धार पे जम गयीं और साँसें भी फिर से तेज हो गयी।

मूतने के बाद दोनों वापस कमरे में आये और बिस्तर पे लेटते ही सुनील ने रुखसाना का हाथ पकड़ कर उसे अपने ऊपर खींच लिया। उस रात उसने रुखसाना को फिर से चोदा। इस बार रुखसाना के कहने पे सुनील ने उसे घोड़ी बना कर पीछे से चोदा क्योंकि रुखसाना भी वैसे ही चुदना चाहती थी जैसे उसने अज़रा को सुनील से चुदते देखा था। करीब एक बजे दोनों थक कर एक दूसरे के आगोश में नंगे ही सो गये। सुबह सढ़े चार बजे रुखसाना की आँख खुली तो उसने सुनील को जगा कर कहा कि वो उसे नीचे उसके बेडरूम तक छोड़ आये। सुनील नंगी रुखसाना को ही सहारा दे कर नीचे ले गया क्योंकि इस वक़्त इस हालत में शरारा पहनने की तो रुखसाना की सलाहियत थी नहीं। अपने बेडरूम में आकर उसने एक नाइटी पहनी और सलील की बगल में लेट कर सो गयी। सुबह वो देर से उठी। उसके जिस्म में मीठा-मीठा सा दर्द हो रहा था। गनिमत थी कि सलील अभी भी सोया हुआ था।

सुनील हर रोज़ आठ बजे तक नाश्ता करके स्टेशन चला जाता था। वो भी आज नौ बजे नीचे आया और तीनों नाश्ता करने लगे। आज रुखसाना बिल्कुल नहीं शर्मा रही थी बल्कि सलील की मौजूदगी में नाश्ता करते हुए उसने सुनील के साथ आँखों-आँखों में इशारों से ही काफ़ी बातें की। नाश्ते के बाद किचन में बर्तन रखते वक़्त जब दोनों अकेले थे तो सुनील ने रुखसाना को अपने आगोश में भर कर उसके होंठों को चूम लिया। रुक़साना भी उससे लिपटते हुए बोली, "सुनील... आज छुट्टी ले ले ना प्लीज़... नज़ीला भाभी तो बारह बजे तक आकर सलील को ले जायेंगी... उसके बाद तू और मैं...!"

"हाय भाभी... चाहता तो मैं भी हूँ लेकिन आज छुट्टी नहीं ले सकुँगा... लेकिन इतना वादा करता हूँ कि शाम को जल्दी आ जाऊँगा और फिर तो पूरी शाम और पूरी रात जब तक आप कहोगी आपकी सेवा करुँगा!" सुनील उसका गाल सहलाते हुए बोला। "ठीक है... मुझे अपने दिलबर का इंतज़ार रहेगा... इसका ख्याल रखना!" रुखसाना पैंट के ऊपर से ही सुनील का लंड दबाते हुए बोली। एक रात में वो बेशर्म होकर बिल्कुल खुल गयी थी। उसके बाद सुनील ये कह कर चला गया कि वो आज शाम का खाना ना बनाये। उसके बाद नज़ीला भी आकर सलील को ले गयी। रुखसाना ने घर का काम निपटाया और ऊपर जा कर सुनील का कमरा भी ठीकठाक किया और फिर बेसब्री से शाम का इंतज़ार करने लगी। रुखसाना को एक-एक पल बरसों जैसा लग रहा था। फ़ारूक पाँच दिन बाद आने वाला था और सानिया भी अपने मामा के घर से जल्दी ही वापिस आने वाली थी।

सुनील ने जल्दी आने का वादा किया था लेकिन फिर भी उसे आते-आते पाँच बज गये। रुखसाना तब तक सज-संवर कर तैयार हो चुकी थी और थोड़ी-थोड़ी देर में बाहर गेट तक जा-जा कर देख रही थी। सुनील के घर में दाखिल होते ही दोनों एक दूसरे से लिपट गये। फिर सुनील फ्रेश होने के लिये ऊपर जाने लगा तो खाने के पैकेट टेबल से उठाते हुए रुखसाना ने ज़रा मायूस से लहज़े में पूछा, "सुनील आज तू वो बोतल... मतलब व्हिस्की नहीं लाया?" रुखसाना की बात सुनकर सुनील को यकीन नहीं हुआ। आज रुखसाना का खुलापन और ये बदला हुआ अंदाज़ देख कर सुनील को बेहद खुशी हुई। "क्या बात है भाभी जान.... कल तो आप नखरे कर रही थीं और आज खुद ही?" सुनील उसे छेडते हुए बोला। "कल से पहले कभी पी नहीं थी ना... मुझे अंदाज़ा नहीं था कि शराब के नशे की खुमारी इतनी मस्ती और सुकून अमेज़ होती है!" रुकसाना ने कहा तो सुनील ने अपने बैग में से रॉयल- स्टैग व्हिस्की की बोतल निकाल कर रुखसाना के सामने टेबल पे रख दी।

फिर अगले तीन दिनों तक हर रोज़ शाम को सुनील के घर आते ही दोनों शराब के नशे में चूर नंगे होकर रंगरलियों में डुब जाते। देर रात तक रुखसाना के बेडरूम में खूब चुदाई और ऐश करते। रुखसाना तो जैसे इतने सालों का चुदाई की कमी पूरा कर लेना चाहती थी और पुरजोश खुल-कर उसने सुनील के जवान लंड से चुदाई का खूब मज़ा लिया।

फिर चार दिन बाद सुनील के स्टेशान जाने के बाद डोर-बेल बजी। रुखसाना ने जाकर दरवाजा खोला तो बाहर सानिया और उसके मामा खड़े थे। रुखसाणा ने सलाम किया और उनको अंदर आने को कहा। सानिया के मामा और उनके घर का हालचाल पूछने के बाद रुखसाना ने उनके लिये चाय नाश्ते के इंतज़ाम किया। चाय नाश्ते के बाद सानिया के मामा ने वापस जाने का कहा तो रुखसाना ने फ़ॉर्मैलिटी के तौर पे उन्हें थोड़ा और रुकने को कहा पर वो नहीं माने। उन्होंने कहा कि वो सिर्फ़ सानिया को छोड़ने की खातिर ही आये थे क्योंकि सानिया के कॉलेज की छुट्टीयाँ खतम हो रही थीं और कल से उसकी क्लासें भी शुरू होने वाली थी।

सानिया के आने से घर में रौनक जरूर आ गयी थी पर रुकसाना को एक गम ये था कि अब उसे और सुनील को मौका आसानी से नहीं मिलेगा। पिछले पाँच दिनों में हर रोज़ शाम से देर रातों तक बार-बार चुदने के बाद रुखसाना को तो जैसे सुनील के लंड की आदत सी लग गयी थी। उस दिन शाम को जब बाहर डोर-बेल बजी तो सानिया ने जाकर दरवाजा खोला। सानिया ने सुनील को सलाम कहा और सुनील अंदर आकर चुपचाप ऊपर चला गया। उस दिन कुछ खास नहीं हुआ।

सानिया का कॉलेज घर से काफ़ी दूर था और उसे बस से जाना पड़ता था। कईं बार उसे देर भी हो जाती थी। अगले दिन सुनील सुबह जब नाश्ता करने नीचे आया तो रुखसाना ने गौर किया कि सानिया बार-बार चोर नज़रों से सुनील को देख रही थी। सानिया उस वक़्त कॉलेज जाने के लिये तैयार हो चुकी थी। उसने सफ़ेद रंग की कुर्ती के साथ नीले रंग की बेहद टाइट स्किनी-जींस पहनी हुई थी जिसमें उसका सैक्सी फिगर साफ़ नुमाया हो रहा था। उसने सफ़ेद रंग के करीब तीन इंच ऊँची हील वाले सैंडल भी पहने हुए थे जिससे टाइट जींस में उसके चूतड़ और ज्यादा बाहर उभड़ रहे थे।

उस दिन सानिया कुछ ज्यादा ही सुनील की तरफ़ देख रही थी। इस दौरान कभी जब सुनील सानिया की तरफ़ देखता तो वो नज़रें झुका कर मुस्कुराने लग जाती। सुनील ने पहले अज़रा की चुदी चुदाई फुद्दी मारी थी और फिर बाद में रुखसाना की बरसों से बिना चुदी चूत। सुनील ने उससे पहले कभी चुदाई नहीं करी थी लेकिन उसे जानकारी तो पूरी थी। इस बात का तो उसे पता चल गया था कि औरत जिसके बच्चे ना हो और जो कम चुदी हो उसकी चूत ज्यादा टाइट होती है। और फिर जब एक जवान लड़के को चुदाई की लत्त लग जाती है तो वो कहीं नहीं रुकती... खासतौर पर उन लड़कों के लिये जिन्होंने ऐसी औरतों से जिस्मानी रिश्ते बनाये हों... जो उम्र में उनसे बड़ी हों और जो उन्हें किसी तरह के बंधन में ना बाँध सकती हों... जैसे की रुखसाना। वो जानता था कि रुखसाना उसे किसी तरह अपने साथ बाँध कर नहीं रख सकती। अब वो उस आवारा साँड कि तरह हो गया था जिसे सिफ़ चूत चाहिये थी... हर बार नयी और बिना किसी बंधन की!

रुखसाना ने उस दिन सानिया के बर्ताव पे ज्यादा तवज्जो नहीं दी क्योंकि वो तो खुद सानिया की नज़र बचा कर सुनील के साथ नज़रें मिला रही थी। सुनील ने नाश्ता किया और बाइक बाहर निकालने लगा तो सानिया दौड़ी हुई किचन में आयी और रुखसाना से बोली, "अम्मी सुनील से कहो ना कि वो मुझे कॉलेज छोड़ आये!" रुखसाना ने बाहर आकर सुनील से पूछा कि क्या वो सानिया को कॉलेज छोड़ सकता है तो सुनील ने भी हाँ कर दी। सुनील ने बाइक स्टार्ट की और सानिया उसके पीछे बैठ गयी। सुनील के पीछे बैठी सानिया बेहद खुश थी। भले ही दोनों में अभी कुछ नहीं था पर सानिया सुनील की पर्सनैलिटी से उसकी तरफ़ बेहद आकर्षित थी। दोनों में कोई भी बातचीत नहीं हो रही थी। सानिया का कॉलेज घर से काफ़ी दूर था और कॉलेज से घर तक के रास्ते में बहुत सी ऐसी जगह भी आती थी जहाँ पर एक दम विराना सा होता था। थोड़ी देर बाद कॉलेज पहुँचे तो सानिया बाइक से नीचे उतरी और अपने बैक-पैक को अपने कपड़े पर लटकाते हुए सुनील को थैंक्स कहा। सुनील ने सानिया की तरफ़ नज़र डाली। उसकी सुडौल लम्बी टाँगें और माँसल जाँघें स्कीनी जींस में कसी हुई नज़र आ रही थी... उसके मम्मे उसकी कुर्ती के अंदर ब्रा में एक दम कसे हुए पहाड़ की चोटियों की तरह तने हुए थे। सुनील की हम-उम्र सानिया अपनी ज़िंदगी के बेहद नज़ुक मोड़ पर थी।

जब उसने सुनील को अपनी तरफ़ यूँ घूरते देखा तो वो सिर झुका कर मुस्कुराने लगी और फिर पलट कर कॉलेज की तरफ़ जाने लगी। सुनील वहाँ खड़ा सानिया को अंदर जाते हुए देख रहा था... दर असल वो पीछे सानिया के चूतड़ों को घूर रहा था। सानिया ने अंदर जाते हुए तीन-चार बार पलट कर सुनील को देखा और हर बार वो शर्मा कर मुस्कुरा देती। तभी सानिया के सामने से दो लड़के गुजरे और कॉलेज से बाहर आये। दोनों आपस में बात कर रहे थे। उन्हें नहीं पता था कि सुनील सानिया के साथ आया है। वो दोनों सुनील के करीब ही खड़े थे जब उनमें से एक लड़का बोला, "यार ये सानिया तो एक दम पटाखा होती जा रही है... साली के मम्मे देख कैसे गोल-गोल और बड़े हो गये हैं..!" तो दूसरा लड़का बोला, "हाँ यार साली की गाँड पर भी अब बहुत चर्बी चढ़ने लगी है... देखा नहीं साली जब हाई हील वाली सैंडल पहन के चलती है तो कैसे इसकी गाँड मटकती है... बस एक बार बात बन जाये तो इसकी गाँड ही सबसे पहले मारुँगा!"

सुनील खड़ा उन दोनों की बातें सुन रहा था पर सुनील कुछ बोला नहीं। उसने बाइक स्टार्ट की और काम पर चला गया। सुनील के दिमाग में उन लड़कों की बातें घूम रही थी और उनकी बातें याद करते हुए उसका लंड उसकी पैंट में अकड़ने लगा था। सुनील ने करीब एक बजे तक काम किया और फिर लंच किया। सुबह से उसका लंड बैठने का नाम ही नहीं ले रहा था। सुनील ने एक बार घड़ी की तरफ़ नज़र डाली और फिर अज़मल से किसी जरूरी काम का बहाना बना कर दो घंटे की छुट्टी लेकर बाहर आ गया। उसने अपनी बाइक स्टार्ट की और घर के तरफ़ चल पढ़ा। उन लड़कों की बातों ने सुनील का दिमाग सुबह से खराब कर रखा था... वो जानता था कि रुखसाना इस समय घर पे अकेली होगी। सुनील की बाइक हवा से बातें कर रही थी और पंद्रह मिनट में वो घर के बाहर था। उसने घर के गेट के बाहर सड़क पे ही बाइक लगायी और अंदर जाकर डोर-बेल बजायी। सुनील ने रुखसाना को निकलने से पहले ही फोन कर दिया था इसलिये वो भी तैयार होकर बेकरारी से सुनील के आने का इंतज़ार कर रही थी। घंटी की आवाज सुनते ही उसने फ़ौरन दरवाजा खोल दिया।

अंदर दाखिल होते ही सुनील ने रुखसाना को पीछे से अपनी बाहों में भर लिया। "आहहह दरवाजा तो बंद कर लेने दे!" रुखसाना मचलते हुए बोली। फिर सुनील ने रुखसाना को अपनी बाहों में उठा लिया और उसे उठा कर ड्राइंग रूम में ले आया। फिर उसे सोफ़े के सामने खड़ी करते हुए रुखसाना को पीछे से बाहों में भर लिया और मेरे उसकी गर्दन पर अपने होंठों को रगड़ने लगा। रुकसाना ने मस्ती में आकर अपनी आँखें बंद कर लीं। "हाय सुनील मेरी जान... अच्छा है तू आ गया... मैं तो कल पूरी रात अपने इस दिलबर की याद में तड़पती रही!" रुखसाना उसके लंड को पैंट के ऊपर से दबाते हुए बोली। सुनील कुछ नहीं बोला। वो शायद किसी और ही धुन में था। उसने रुखसाना की गर्दन पर अपने होंठों को रगड़ना ज़ारी रखा और फिर एक हाथ से रुखसाना की गाँड को पकड़ कर मसलने लगा।

जैसे ही सुनील ने अपने हाथों से रुखसाना के चूतड़ों को दबोच कर मसला तो रुखसाना की तो साँसें ही उखड़ गयी। आज वो बड़ी बेदर्दी से रुखसाना के दोनों चूतड़ों को अलग करके फैला रहा था और मसल रहा था। उसके कड़क मर्दाना हाथों से अपनी गाँड को यूँ मसलवाते हुए रुखसाना एक दम हवस ज़दा हो गयी उसकी आँखें बंद होने लगी... दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। फिर अचानक ही सुनील के दोनों हाथ रुखसाना की सलवार के आगे जबरदन तक पहुँच गये। रुकसाना ने आज इलास्टिक वाली सलवार पहनी हुई थी। जैसे ही सुनील को एहसास हुआ कि रुखसाना ने इलास्टिक वाली सलवार पहनी हुई है तो उसने दोनों तरफ़ सलवार में अपनी उंगलियों को फंसा कर रुखसाना की सलवार नीचे सरका दी। रुखसाना ने नीचे पैंटी भी नहीं पहनी थी और जैसे ही सलवार नीचे हुई तो सुनील ने उसे सोफ़े की ओर ढकेला। रुखसाना ने हमेशा की तरह ऊँची पेंसिल हील की सैंडल पहनी हुई थी तो सुनील के धकेलने से उसका बैलेंस बिगड़ गया और सोफ़े की और लुढ़क गयी। रुखसाना ने सोफ़े की बैक पर अपने दोनों हाथ जमाते हुए दोनों घुटनों को सोफ़े पर रख लिया।

रुखसाना सोचने लगी कि, "हाय आज क्या सुनील यहाँ ड्राइंग रूम में ही मुझे नंगी करके इस तरह मुझे चोदेगा!" ये सोच कर रुखसाना के चेहरे पर शर्म से सुर्खी छा गयी। "ओहहहह सुनील यहाँ मत करो ना... बेडरूम में चलते हैं...!" रुकसाना ने सिसकते हुए मस्ती में लड़खड़ाती हुई ज़ुबान में सुनील को कहा। पर सुनील नहीं माना और उसने पीछे से रुखसाना की कमीज़ का पल्ला उठा कर उसकी कमर पर चढ़ा दिया। रुखसाना की सलवार पहले से ही उसकी रानों में अटकी हुई थी। फिर रुखसाना को कुछ सरसराहट की आवाज़ आयी तो उसने गर्दन घुमा कर पीछे देखा कि सुनील अपनी पैंट की जेब में से कोई ट्यूब सी निकाल रहा है जिसपे "ड्यूरेक्स के-वॉय जैली" लिखा था। सुनील ने ये अभी घर आते हुए रास्ते में केमिस्ट की दुकान से खरीदी थी। फिर सुनील ने अपनी पैंट और अंडरवियर नीचे किया और धीरे से काफ़ी सारी के-वॉय जैली अपने लंड पर गिरा कर उसे मलने लगा। रुखसाना अपने चेहरे को पीछे घुमा कर अपनी नशीली आँखों से उसे ये सब करता हुआ देख रही थी। फिर सुनील ने जैली की उस ट्यूब को वहीं सोफ़े पर एक तरफ़ उछाल दिया फिर वो रुखसाना के पीछे आकर खड़ा हुआ और अपने घुटनों को थोड़ा सा मोड़ कर झुका और अगले ही पल उसके लंड का मोटा गरम सुपाड़ा रुकसाना की चूत की फ़ाँकों को फ़ैलाता हुआ उसकी चूत के छेद पर आ लगा।

रुखसाना को ऐसा लगा मानो चूत पर किसी ने सुलगती हुई सलाख रख दी हो। उसने सोफ़े की बैक को कसके पकड़ लिया। सुनील ने रुखसाना के दोनों चूतड़ों को पकड़ कर जोर से फैलाते हुए एक जोरदार धक्का मारा और सुनील का लंड उसकी चूत को चीरता हुआ अंदर घुसता चला गया। रुखसाना एक दम से सिसक उठी, "हाआआआय अल्लाआआआहहह .. मैं मरीईईईई!" सुनील ने अपना लंड जड़ तक उसकी चूत में घुसेड़ा हुआ था। सुनील ने वैसे ही झुक कर फिर से सोफ़े पे पड़ी के-वॉय जैली की वो ट्यूब उठायी और रुखसाना की गाँड के ऊपर करते हुए के-वॉय जैली को गिराने लगा। जैसे ही जैली की पिचकारी रुखसाना की गाँड के छेद पर पड़ी तो वो बुरी तरह से मचल उठी। सुनील ने ट्यूब को नीचे रखा और फिर अपना लंड धीरे-धीरे रुखसाना की चूत में अंदर-बाहर करने लगा।

गाँड से बहती हुई जैली नीचे सुनील के लंड और रुखसाना की चूत पर आने लगी। तभी सुनील ने वो किया जिससे रुखसाना एक दम से उचक सी गयी पर सुनील ने उसे उसकी कमर से कसके पकड़ लिया। दर असल सुनील ने अपनी उंगली को रुखसाना की गाँड के छेद पर रगड़ना शुरू कर दिया। रुखसाना की कमर को पकड़ते ही सुनील ने तीन चार जबरदस्त वार उसकी चूत पर किये तो चूत बेहाल हो उठी और मस्ती आलम में रुखसाना में मुज़ाहिमत करने की ताकत नहीं बची थी। सुनील ने फिर से रुखसाना की गाँड को दोनों हाथों से दबोच कर फैलाया और फिर अपने दांये हाथ के अंगूठे से रुखसाना की गाँड के छेद को कुरेदने लगा।

रुखसाना की कमर उसके अंगूठे की हर्कत के साथ एक के बाद एक झटके खाने लगी। सुनील का लंड एक रफ़्तार से रुखसाना की चूत के अंदर बाहर हो रहा था और उसका अंगूठा अब रुखसाना की गाँड के छेद को और जोर से कुरेदने लगा था। रुखसाना इतनी गरम हो चुकी थी कि अब वो सुनील की मुखालिफ़त करने की हालत में नहीं थी। वो जो भी कर रहा था रुखसाना मज़े से सिसकते हुए उसका लंड अपनी चूत में लेते हुए करवा रही थी। सुनील ने उसकी गाँड के छेद को अब उंगली से दबाना शुरू कर दिया। के-वॉय जैली की वजह से और सुनील की उंगली की रगड़ की वजह से रुखसाना की गाँड का कुंवारा छेद नरम होने लगा और उसे अपनी गाँड के छेद पर लज़्ज़त-अमेज़ गुदगुदी होने लगी थी जिसे महसूस करके उसकी चूत और ज्यादा पानी बहा रही थी। बेहद मस्ती के आलम में रुखसाना को इस वक़्त कहीं ना कहीं शराब की तलब हो रही थी क्योंकि चार-पाँच दिन उसने शराब के नशे की खुमारी में ही सुनील के साथ चुदाई का खूब मज़ा लूटा था और चुदाई के लुत्फ़ और मस्ती में शराब के नशे की मस्ती की अमेज़िश से रुखसाना को जन्नत का मज़ा मिलता था। फिर सुनील ने अपनी उंगली को धीरे-धीरे से रुखसाना की गाँड के छेद पर दबाया और उंगली का अगला हिस्सा रुखसाना की गाँड के छेद में उतरता चला गया। पहले तो रुखसाना को कुछ खास महसूस नहीं हुआ पर जैसे ही सुनील की आधे से थोड़ी कम उंगली उसकी गाँड के छेद में घुसी तो रुखसाना को तेज दर्द महसूस हुआ। "आआहहह सुनीईईल मत कर.... दर्द हो रहा है!" रुखसाना चींखी तो सुनील शायद समझ गया कि रुखसाना की गाँड का छेद एक दम कोरा है। वो कुछ पलों के लिये रुका और फिर उतनी ही उंगली रुखसाना की गाँड के छेद के अंदर बाहर करने लगा।

सुनील ने रुखसाना की चूत से अपने लंड को बाहर निकाला और फिर गाँड के छेद से उंगली को निकाल कर चूत में पेल दिया और चूत में अंदर-बाहर करते हुए घुमाने लगा। "हाआआय मेरे जानू ये क्या कर रहे हो तुम ओहहह... अपना लंड... मेरा प्यारा दिलबर... उसे मेरी चूत में वापस डाल ना...!" अपनी चूत में अचानक से मोटे लंड की जगह पतली सी उंगली महसूस हुई तो रुखसाना तड़पते हुए बोली। सुनील ने फिर से उसकी चूत में से उंगली बाहर निकाली और चूत में अपना मूसल लंड घुसेड़ कर धक्के लगाने शुरू कर दिये। उसकी उंगली रुखसाना की चूत के पानी से एक दम तरबतर हो चुकी थी। उसने फिर उसी उंगली को रुखसाना की गाँड के छेद पर लगाया और रुखसाना की चूत के पानी को गाँड के छेद पर लगाते हुए तर करने लगा। रुखसाना को ये सब थोड़ा अजीब सा तो लग रहा था लेकिन मस्ती में उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। सुनील ने फिर से अपनी उंगली रुखसाना की गाँड के छेद में घुसेड़ दी लेकिन इस बार सुनील ने कुछ ज्यादा ही जल्दबाजी दिखायी और अगले ही पल उसकी पूरी उंगली रुखसाना की गाँड के छेद में थी।

रुखसाना दर्द से एक दम कराह उठी। भले ही दर्द बहोत ज्यादा नहीं था पर रुखसाना को अब तक सुनील के इरादे का अंदाज़ा हो चुका था और वो सुनील के इरादे से घबरा कर वो कराहते हुए बोली, "हाय सुनील... ये... ये क्या कर रहा है जानू... वहाँ से उंगली निकाल ले... बहोत दर्द हो रहा है!" पर सुनील ने उसकी कहाँ सुननी थी। सुनील अब उस उंगली को रुखसाना की गाँड के छेद में अंदर बाहर करने लगा। रुखसाना को थोड़ा दर्द हो रहा था पर कुछ ही पलों में उसकी गाँड का छेद नरम और फिर और ज्यादा नरम पड़ता गया। उसकी चूत के पानी और के-वॉय जैली ने गाँड के छेद के छाले की सख्ती बेहद कम कर दी थी। अब तो सुनील बिना किसी दुश्वारी के रुखसाना की गाँड को अपनी उंगली से चोद रहा था। रुखसाना भी अब फिर से एक दम मस्त हो गयी। हवस और मस्ती के आलम में रुखसाना को ये भी एहसास नहीं हुआ कि कब सुनील की दो उंगलियाँ उसकी गाँड के छेद के अंदर-बाहर होने लगी। कभी दर्द तो कभी मज़ा... कैसा अजीब था ये चुदाई का मज़ा। फिर सुनील ने अपना लंड रुखसाना की चूत से बाहर निकला और उसकी गाँड के छेद पर टिका दिया। उसकी इस हर्कत से रुखसाना एक दम दहल गयी, "नहीं सुनील.... खुदा के लिये... ऐसा ना कर... मैं दर्द बर्दाश्त नहीं कर सकुँगी..!"
 
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#12
लेकिन सुनील तो जैसे रुखसाना की बात सुनने को तैयार ही नहीं था। उसने दो तीन बार अपने लंड का सुपाड़ा रुखसाना की गाँड के छेद पर रगड़ा और फिर धीरे-धीरे उसकी गाँड के छेद पर दबाता चला गया। जैसे ही उसके सुपाड़े का अगला हिस्सा उसकी गाँड के छेद में उतरा तो रुखसाना बिदक कर आगे हो गयी... दर्द बहद तेज था।" नहीं सुनील नहीं... मेरे जानू मुझसे नहीं होगा... प्लीज़ तुझे हो क्या गया है...?" रुख्साना अपने चूतड़ों को एक हाथ से सहलाते हुए रिरिया कर बोली। रुखसाना ने अज़रा को कईं दफ़ा फ़ारूक से अपनी गाँड मरवाते हुए देखा था लेकिन रुखसाना को इस बात का डर था कि एक तो उसकी गाँड बिल्कुल कुंवारी थी और फिर फ़ारूक और सुनील के लंड का कोई मुकाबला नहीं था। सुनील का तगड़ा-मोटा आठ इंच लंबा मूसल जैसा लंड वो कैसे बर्दाश्त करेगी अपनी कोरी गाँड में!

"भाभी जान कुछ भी हो... मुझे आज आपकी गाँड मारनी ही है...!" ये कह कर उसने रुखसाना को सोफ़े से खड़ा किया और उसकी रानों में फंसी सलवार खींच कर उतार दी। फिर उसने रुखसाना को खींचते हुए सामने बेडरूम में ले जाकर बेड पर पटक दिया। फिर रुखसाना की टाँगों को पकड़ कर उसने उठाया और अपने कंधों पर रख लिया और एक हाथ से अपने लंड को पकड़ कर उसकी गाँड के छेद पर टिका दिया। रुखसाना समझ चुकी थी कि अब सुनील उसकी एक नहीं सुनने वाला। "आहिस्ता से करना जानू!" रुखसाना ने अपने हाथों में बिस्तर की चादर को दबोचते हुए कहा और अगले ही पल गच्च की एक तेज आवाज़ के साथ सुनील का लौड़ा रुखसाना की गाँड के छेद को चीरता हुआ आधे से ज्यादा अंदर घुस गया। दर्द के मारे रुखसाना का पूरा जिस्म ऐंठ गया... आँखें जैसे पत्थरा गयीं... मुँह खुल गया... और वो साँस लेने के लिये तड़पने लगी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि सुनील उसके साथ इतनी वहशियत से पेश आयेगा।

"बस भाभी हो गया.. बसऽऽऽ हो गया..!" और सुनील ने उतने ही आधे लंड को रुखसाना की गाँड के अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया। उसके हर धक्के के साथ रुखसाना को अपनी गाँड के छेद का छल्ला भी अंदर-बाहर खिंचता हुआ महसूस हो रहा था पर सुनील का लंड के-वॉय जैली और रुखसाना की चूत के पानी से एक दम भीगा हुआ था। इसलिये गाँड का छेद थोड़ा नरम हो गया था और फिर एक मिनट बीता... दो मिनट बीते... फिर तीन मिनट किसी तरह बीते और रुखसाना की गाँड में उठा दर्द अब ना के बराबर रह गया था। अब सुनील के लंड के सुपाड़े की रगड़ से रुखसाना को अपनी गाँड के अंदर की दीवारों पर मज़ेदार एहसास होने लगा था। रुखसाना ज़ोर-ज़ोर से "आआहह ओहह" करती हुई दर्द और मस्ती में सिसकने लगी।

"अभी भी दर्द हो रहा है क्या भाभी!" सुनील ने अपने लंड को और अंदर की ओर ढकेलते हुए पूछा। "आँआँहहह हाँ थोड़ा सा हो रहा है... ऊँऊँहहह लेकिन अब मज़ाआआ भी आआआँ रहा है आआआहहह...!" रुखसाना सिसकते हुए बोली। धीरे-धीरे अब सुनील का पूरा का पूरा लंड रुखसाना की गाँड के अंदर-बाहर होने लगा और दर्द और मस्ती की तेज़-तेज़ लहरें अब रुखसाना के जिस्म में दौड़ रही थी। काले रंग के ऊँची हील वाले सैंडल में रुखसाना के गोरे-गोरे पैर जो सुनील के कंधों पर थे उन्हें रूकसाना ने मस्ती में सुनील की गर्दन के पीछे कैंची बना कर कस लिया। रुखसाना का एक हाथ उसकी खुद की चूत के अंगूर को रगड़ रहा था। धीरे-धीरे सुनील के धक्कों की रफ़्तार बढ़ने लगी और फिर वो रुखसाना की गाँड के अंदर झड़ने लगा। उसके साथ ही रुखसाना की चूत ने भी धड़धड़ाते हुए पानी छोड़ दिया। सुनील ने अपना लंड बाहर निकाला और रुखसाना की कमीज़ के पल्ले से उसे पोंछ कर उसने आगे झुक कर रुखसाना के होंठों पे चूमा और फिर ये बोल कर कमरे से बाहर चला गया कि उसे जल्दी से वापस स्टेशन पहुँचना है। रुखसाना थोड़ी देर लेटी रही और सुनील भी वापस चला गया। थोड़ी देर बाद रुखसाना उठी और बाथरूम में जाकर अपनी चूत और गाँड को अच्छे से साफ़ किया और बाहर आकर अपनी सलवार पहन कर फिर लेट गयी। उसकी गाँड में मीठी-मीठी सी कसक अभी भी उठ रही थी।

शाम को सुनील घर वापस आया तो सानिया भी कॉलेज से वापस आ चुकी थी। सुनील ऊपर चला गया। शाम के साढ़े पाँच बज रहे थे और लाइट एक बार फिर से गुल थी। सानिया पढ़ने के बहाने ऊपर छत पर आकर कुर्सी पर बैठ गयी। रुखसाना नीचे काम में मसरूफ़ थी। जब सुनील ने सानिया को बाहर छत पर देखा तो वो भी रूम से निकल कर बाहर आ गया और हवा खाने के लिये इधर उधर टहलने लगा। सानिया चोर नज़रों से बार-बार सुनील की ओर देख रही थी।

"कैसा रहा आज कॉलेज में?" सुनील ने सानिया के पास से गुज़रते हुए पूछा तो सानिया उसकी के आवाज़ सुन कर एक दम चौंकी और फिर मुस्कुराते हुए बोली, "अच्छा रहा...!"

सुनील फिर से सानिया के पास से गुज़रते हुए बोला, "एक बात पूछूँ?" सानिया ने अपनी नज़रें किताब में गड़ाये हुए कहा, "पूछो!"

"क्या कॉलेज में ऐसे टाइट कपड़े पहन कर जाना जरूरी है... सलवार कमीज़ पहन कर नहीं जा सकते?" सानिया को सुनील के ये सवाल अजीब सा लगा तो वो बोली, "क्यों... सभी लड़कियाँ ऐसे ही कपड़े पहनती हैं इसमें क्या गलत है?"

"नहीं गलत तो नहीं है पर वो बस जब तुम कॉलेज के अंदर जा रही थी तो सामने से दो लड़के आ रहे थे बाहर की तरफ़ और तुम्हारे बारे में कुछ गलत कह रहे थे!" सुनील बोला।

"क्या बोल रहे थे वो?" सानिया ने पूछा तो सुनील बोला, "छोड़ो तुम... मैं तुम्हे नहीं बता सकता कि कैसे-कैसे गंदे कमेंट कर रहे थे तुम्हारे बारे में!" ये सुनकर सानिया बीच में ही बोली, "वो लड़के हैं ही ऐसे आवारा... उनके तो कोई मुँह भी नहीं लगता!"

सुनील ने आगे कहा, "वैसे वो जो भी बोल रहे थे तुम्हारे बारे में... है तो वो सच!" सुनील की बात सुन कर सानिया हैरान-परेशान रह गयी और उसके मुँह से निकला, "क्या?"

"हाँ सच कह रहा हूँ अगर समय आया तो तुम्हें जरूर बताऊँगा कभी!" ये कह कर सुनील अपने कमरे में चला गया। सानिया ऐसी बातों से अंजान नहीं थी। बीस साल की कॉलेज में पढ़ने वाली आज़ाद ख्यालों वाली काफ़ी तेज तर्रार लड़की थी। पंद्रह-सोलह साल की उम्र में ही उसने खुद-लज़्ज़ती करनी शुरू कर दी थी। कॉलेज में अपनी सहेलियों से उनके बॉय-फ्रेंड्स के साथ चुडाई के किस्से भी सुनती थी तो दिल तो उसका भी बेहद मचलता था लेकिन खुद को अभी तक उसने किसी लड़के को छूने नहीं दिया था। उसे रोमांटिक और सैक्सी कहानियाँ-किस्से पढ़ने का बेहद शौक था और हर रोज़ रात को केले ये मोमबत्ती से खुद-लज़्ज़ती करके अपनी चूत का पानी निकालने के बाद ही सोती थी। भले ही उसकी चूत में आज तक कोई लंड नहीं घुसा था लेकिन वो मोमबत्ती या बैंगन जैसी बेज़ान चीज़ों से अपनी सील पता नहीं कब की तोड़ चुकी थी॥

खैर उस रात कुछ खास नहीं हुआ। सानिया की मौजूदगी में सुनील और रुखसाना दूर-दूर ही रहे। रुखसाना की गाँड में वैसे अभी तक दर्द की मीठी-मीठी लहरें रह-रह कर उठ जाती थीं और वो अपनी गाँड सहलाते हुए उस रात खूब सोयी। अगले दिन फ़ारूक भी वापस आ गया। फ़ारूक के आने से वैसे ज्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ा क्योंकि वो तो अपनी बीवी पे ज़रा भी ध्यान देता नहीं था और रात को शराब के नशे में इतनी गहरी नींद सोता था कि अगर रुकसाना उसकी बगल में भी सुनील से चुदवा लेती तो फ़रूक को पता नहीं चलता। सबसे बड़ा खतरा सानिया से था क्योंकि वो शाम को कॉलेज से घर आने के बाद ज्यादातर घर पे ही रहती थी और उसकी खुद की भी नज़र सुनील पे थी। अब तो सुनील और रुखसाना को कभी चार-पाँच मिनट के लिये भी मौका मिलता तो दोनों आपस में लिपट कर चूमते हुए एक दूसरे के जिस्म सहला लेते या कभी रुखसाना खाना देने के बहाने ऊपर जाकर सुनील के कमरे में कभी उससे लिपट कर उसके साथ खूब चूमा-चाटी करती और कभी उसका लंड चूस लेती या कभी मुमकिन होता तो दोनों जल्दबाजी में चुदाई भी कर लेते लेकिन पहले की तरह इससे ज्यादा मौका उन्हें नहीं मिल रहा था। रुखसाना तो सुनील के लंड की बेहद दीवानी हो चुकी थी। अगले दो-तीन हफ़्तों में एक-दो बार तो फ़ारूक को बेडरूम में गहरी नींद सोता छोड़कर रात के दो बजे रुखसाना ने सुनील के कमरे में जाकर उससे चुदवाया लेकिन खौफ़ की वजह से रुखसाना बार-बार ऐसी हिम्मत नहीं कर सकती थी। चुदाई का सबसे अच्छा मौका दोनों को तब मिलता जब हफ़्ते में एक-दो बार सुनील मौका देखकर दोपहर को स्टेशन पे कोई बहाना बना कर थोड़ी के लिये घर आ जाता और फिर दोनों अकेले में मज़े से चुदाई कर लेते। सुनील का मन होता तो रुखसाना खुशी-खुशी उससे अपनी गाँड भी मरवा लेती। अब तो रुखसाना के जिस्म में हवस ऐसे जाग गयी थी की सुनील का तसव्वुर करते हुए उसे रोज़ाना कमज़ कम एक-दो दफ़ा किसी बेजान चीज़ के ज़रिये खुद-लज़्ज़ती करनी पड़ती थी।

एक दिन ऐसे ही रुखसाना को दोपहर में चोदने के बाद सुनील वापस स्टेशान पहुँचा और अपनी टेबल पे जा कर काम में मसरूफ़ हो गया। जिस कमरे में सुनील का टेबल था उस कमरे में तीन बड़े कैबिन भी बने हुए थे जो ऊपर से खुले थे। एक तरफ़ स्टेशन मास्टर अज़मल का कैबिन था और सुनील के पीछे की तरफ़ दो और कैबिन थे जिनमें रशीदा और नफ़ीसा नाम की औरतें बैठती थीं। सुनील का अपना कैबिन नहीं था और उस कमरे में एक खिड़की के पास थोड़ी सी जगह में सुनील की टेबल थी। जब भी कोई उन तीन कैबिन में आता-जाता तो सुनील के पीछे से गुज़र कर जाता था।

रशीदा और नफ़ीसा दोनों ही रेलवे में काफ़ी सीनियर ऑफ़िसर थीं और दोनों सीधे डिविज़नल ऑफिस में रिपोर्ट करती थीं। रशीदा की उम्र चवालीस-पैंतालीस के करीब थी और उसके बच्चे अमरीका में पढ़ाई कर रहे थे और उसके शौहर कोलकाता में एक बड़ी मल्टीनेश्नल कंपनी में काफ़ी ऊँची पोस्ट पे काम करते थे। रशीदा अपनी बुजुर्ग सास के साथ तीन बेडरूम के बड़े फ्लैट में रहती थी उसके शौहर महीने में एक-दो बार आते थे। रशीदा ने कोलकाता के लिये अपने ट्राँसफ़र की अर्ज़ी भी रेलवे में लगा रखी थी। रशीदा अपने शौहर के साथ कईं दूसरे मुल्कों की सैर भी कर चुकी थी। रशीदा काफ़ी पढ़ी लिखी और आज़ाद खयालों वाली औरत थी... और बेहद रंगीन मिजाज़ थी। शादीशुदा ज़िंदगी के बीस-इक्कीस सालों में वो करीब डेढ़-दो दर्जन लंड तो ले ही चुकी थी पर वो हर किसी ऐरे-गैरे के साथ ऐसे ही रिश्ता नहीं बना लेती थी।

नफ़ीसा भी रशीदा की हम-उम्र थी और उसी की तरह काफ़ी पढ़ी लिखी और आज़ाद खयालों वाली रंगीन औरत थी। नफ़ीसा का एक ही बेटा था जो अलीगढ़ युनीवर्सिटी में पढ़ रहा था। उसके शौहर का तीन साल पहले बहुत बुरा हादसा हो गया था जिसकी वजह से उसके शौहर को लक़वा मार गया था और वो बिस्तर पर ही पड़े रहते थे। उनकी देखभाल के लिये उन्होंने एक कामवाली को रखा हुआ था जो उनके सरे काम करती थी। नफ़ीसा के शौहर हादसे से पहले इंकम टैक्स कमीश्नर थे और अब उन्हें अच्छी पेंशन मिलती थी और पहले भी नम्बर-दो का खूब पैसा कमाया हुआ था। उनकी माली हालत बेहद अच्छी थी। नफ़ीसा शहर से थोड़ा सा बाहर अपने खुद के बड़े बंगले में रहती थी जो उसके शौहर का पुश्तैनी घर था। घर काफ़ी बड़ा था जिसमें छः बेडरूम थे... तीन नीचे और तीन पहली मंजिल पर और इसके अलवा बड़ा लॉन और स्विमिंग पूल भी था। नफ़ीसा कद-काठी और शक़्ल-सूरत में बिल्कुल बॉलीवुड की हिरोइन ज़रीन खान की तरह दिखती थी। जहाँ तक उसकी रंगीन मिजाज़ी का सवाल है तो नफ़ीसा अपनी सहेली रशीदा से भी बहुत आगे थी। शादी से पहले भी और शादी के बाद अब तक नफ़ीसा अनगिनत लंड ले चुकी थी और वो अमीर-गरीब... जान-अंजान... कमिस्न लड़कों से बूढ़ों तक हर तरह के लोगों से चुदवा चुकी थी। चुदाई के मामले में नफ़ीसा किसी तरह का कोई गुरेज़ नहीं करती थी। हकीकत में चाहे कभी अमल न किया हो लेकिन तसव्वुर में तो अक्सर जानवरों से भी चुदवा लेती थी।

तो दोनों औरतें में काफ़ी बातें एक जैसी थीं। दोनों ही खूभ पढ़ी-लीखी और अच्छे पैसे वाले घरों से होने के साथ-साथ खुद भी ऊँची पोस्ट पे काम करती थीं। दोनों ही काफी खूबसूरत और सैक्सी फिगर वाली चुदैल औरतें थीं और दोनों खूब बन-ठन कर अपनी-अपनी कारों से काम पे आती थीं। इसके अलावा दोनों सिर्फ़ गहरी सहेलियाँ ही नहीं थी बल्कि उनका आपस में जिस्मानी लेस्बियन रिश्ता भी था।

शाम के वक़्त अपना काम निपता कर सुनील अपनी कुर्सी पर आँखें मूँद कर बैठ गया और स्टेशन मास्टर अज़मल भी बाहर निकल गया था। अज़मल बाहर गया तो उधर दोनों औरतें शुरू हो गयी। नफ़ीसा अपने कैबिन में से निकल कर सुनील के सामने रशीदा के कैबिन में जा कर बैठ गयी। "और रशीदा कल तो तेरे हस्बैंड आये हुए थे... खूब चुदाई की होगी तुम लोगों ने...!" नफ़ीसा चहकते हुए बोली तो रशीदा ने उसे खबरदार करते हुए कहा, "शशशऽऽऽ अरे धीरे बोल... वो नया लड़का सुनील भी है... अगर उसने सुन लिया तो..!"

नफ़ीसा बोली, "अरे सुन लेगा तो क्या होगा... उसके पास भी तो लंड है... और सारी दुनिया करती है ये काम हम क्यों किसी से डरें..!"

"अरे नहीं यार अच्छा नहीं लगता... अगर सुन लेगा तो क्या सोचेगा बेचारा..!" रशीदा ने कहा तो नफ़ीसा उसे टालते हुए बोली, "तू वो छोड़.. बता ना... कल तो जरूर तेरी गाँड का बैंड बजाया होगा खुर्शीद साहब ने..!"

रशीदा मायूस से लहज़े में बोली, "अब उनमें वो बात नहीं रही यार... ऊपर से इतनी तोंद बाहर निकल लायी है.. दो तीन धक्कों में ही उनकी साँस फूलने लगती है..!"

"तो मतल्ब कुछ नहीं हुआ हाऽऽ...?" नफ़ीसा ने पूछा तो रशीदा बोली, "अरे नहीं वो बात नहीं है... पर अब वो मज़ा नहीं रहा... एक तो उनका मोटापा और अब उम्र का असर भी होने लगा है... कितनी बार कह चुकी हूँ कि जिम जाया करें... कसरत वसरत करने... पर मेरी सुनते ही कहाँ है वो..!"

"मतलब तेरी गाँड का बैंड नहीं बजा इस बार हेहेहे!" नफ़ीसा हंसते हुए बोली। "अरे कहाँ यार... चूत और गाँड दोनों मारी... पर बड़ी मुश्किल से चार पाँच धक्के में उनका पानी निकल जाता है... अब तो काफ़ी वक़्त से लंड भी ढीला पड़ने लगा है... तुझे तो मालूम ही है... जब तक लौड़ा इंजन के पिस्टन की तरह चूत को चोद-चोद कर पानी नहीं निकाले और गाँड मराते हुए से पुर्रर्र- पुर्रर्र की आवाज़ ना आये तो मज़ा कहाँ आता है और उसके लिये मोटा सख्त लंड चाहिये.... तू सुना तेरी कैसी चल रही है... तेरा भतीजा तो तेरी गाँड की बैंड तो बजा ही रहा होगा..!"

नफ़ीसा मायूस होकर बोली, "हम्म्म क्या यार... क्यों दुखती रग़ पर हाथ रखती हो यार... उसकी अम्मी ने एक दिन देख लिया था तब से वो घर नहीं आया...!"

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"चल पहले तो काफी ऐश कर ली तूने उसके साथ... देख कितनी मोटी गाँड हो गयी है तेरी..." रशिदा बोली।

"यार चूत तक तो ठीक था लड़का पर साले का पाँच इंच का लंड क्या खाक मेरी गाँड की बैंड बजाता... सिर्फ़ दो इंच ही अंदर जाता था... बाकी दो-तीन इंच तो चूतड़ों में ही फँस कर रह जाता था...!" नफ़ीसा की ये बात सुनकर रशीदा खिलखिला कर जोर से हंसने लगी। "रशीदा तुझे वो आदमी याद है... जो उस दिन इस स्टेशन पर गल्ती से उतर गया था..." नफ़ीसा की बात सुनते ही रशीदा की चूत से पानी बाहर बह कर उसकी पैंटी को भिगोने लगा और वो आह भरते हुए बोली, "यार मत याद दिला उसकी... साले का क्या लंड था... एक दम मूसल था मूसल..!"

"हाँ यार... मर्द हो तो वैसा... साले ने हम दोनों की गाँड रात भर बजायी थी... गाँड और चूत दोनों का ढोल बजा दिया था... कैसे गाँड से पुर्रर्र-पुर्रर्र की आवाज़ें निकल रही थी तेरी..." नफ़ीसा बोली तो रशीदा ने भी पलट कर हंसते हुए कहा, "और तेरी गाँड ने क्या कम पाद मारे थे... साले के धक्के थे ही इतने जबरदस्त कि साली गाँड हवा छोड़ ही देती थी पर हम दोनों ने भी मिलकर सुबह तक उसे गन्ने की तरह चूस डाला था।"

"हाँ रशीदा यार! मेरी तो अभी से गाँड और चूत में खुजली होने लगी है... कुछ कर ना यार... कहीं से लंड का इंतज़ाम कर!" नफ़ीसा ने आह भरते हुए कहा तो रशीदा बोली, "यार वैसे लौंडे तो बहोत पीछे है पर साला काम का कौन सा है... पता नहीं चलता!"

ये सुनकर नफ़ीसा भी बोली, "यार मेरा भी यही हाल है... कितनों के साथ कोशिश करके देख चुकी हूँ लेकिन वो मज़ा नहीं आया! पर मैं नज़रें जमाये हुए हूँ... तू भी देख शायद कोई काम का लौंडा मिल जाये... वैसे हम दोनों तो हैं ही एक-दूसरे के लिये..... आजा मेरे घर आज रात को...!"

उधर कैबिन के बाहर अपनी कुर्सी पे बैठा सुनील उनकी बातों को सुन कर एक दम हैरान था। उनकी बातें सुन कर उसका लंड एक दम तन चुका था और अब दर्द भी करने लगा था। सुनील इतना तो जान ही गया था कि ये साली दोनों हाई-क्लॉस और शरीफ़ दिखाने वाली औरतें कितनी चुदैल हैं और उसे अब उनकी दुखती रग का भी पता था। नफ़ीसा और रशीदा दोनों बेहद सैक्सी जिस्म वाली खूबसूरत औरतें थीं। दोनों करीब साढ़े पाँच फुट लंबी थीं। दोनों ज्यादातर सलवार-कमीज़ ही पहनती थीं और ऊँची पेन्सिल हील वाली सेन्डल पहनने से उनकी बड़ी-बड़ी गाँड बाहर की ओर निकली हुई होती थी। सुनील पहले भी अक्सर चोर नज़रों से इन दोनों औरतों को देखा करता था... खासतौर पर इसलिये कि उसे ऊँची हील के सैंडल पहनने वाली औरतें खास पसंद आती थीं। लेकिन ये दोनों औरतें काफी रोबदार और सीनियर ऑफ़िसर थीं और वो महज़ नया-नया कलर्क लगा था... इसलिये रोज़ सुबह की औपचारिक सलाम-नमस्ते के अलावा कभी उनसे कोई बात तक करने की हिम्मत नहीं हुई थी। डिपार्टमेंट भी अलग होने की वजह से सुनील का उनसे कोई काम भी नहीं पड़ता था कि कोई काम को लेकर ही बात हो पाती। लेकिन अब वो उन दोनों की असलियत जान गया था।

अगले दिन सुनील सिर्फ़ ट्रैक सूट का लोअर और टी-शर्ट पहन कर ही स्टेशन पर गया। ये सुनील ने पहले से प्लैन कर रखा था। जब सुनील स्टेशन पर पहुँचा तो अज़मल ने सुनील से पूछा, "अरे यार क्या बात है... आज नाइट सूट में ही चले आये हो... खैरियत तो है..?"

"हाँ सर सब ठीक है.. बस थोड़ी सी तबियत खराब थी... इसलिये नहाने और तैयार होने का मन नहीं किया... ऐसे ही चला आया..!" सुनील ने सफ़ाई पेश की तो अज़मल बोला, "यार अगर तबियत खराब थी तो फ़ोन कर देते... और आज घर पर आराम कर लेते..!"

सुनील बोला, "सर घर में पड़ा-पड़ा भी बोर हो जाता.. और वैसे भी यहाँ काम होता ही कितना है..!"

अज़मल ने कहा कि "हाँ वो तो है... वैसे दवाई तो ली है ना?"

"जी सर ले ली है..!" ये कहकर सुनील जाकर अपनी कुर्सी पर बैठ गया और फाइल खोलकर अपने काम में लग गया। थोड़ी देर बाद नफ़ीसा और रशीदा भी आ गयीं और सुनील से 'गुड मोर्निंग' के बाद वो भी अपने-अपने कैबिन में जा कर अपने कामों में मसरूफ़ हो गयीं।

थोड़ी देर बाद अज़मल प्लैटफ़ोर्म पर राउँड पे चला गया और उसके थोड़ी देर बाद रशीदा अपने कैबिन से बाहर निकली कर टॉयलेट की तरफ़ गयी तो मार्बल चिप वाले सिमेंट के पर्श पे सैंडल खटखटाती हुई वो सुनील के पीछे से गुजरी। दो छोटे-छोटे टॉयलेट उसी रूम में पीछे की तरफ़ थे जिनमें एक लेडीज़ था और एक जेंट्स का। सुनील की नज़र जैसे ही तंग कमीज़ और चुड़ीदार सलवार में कैद रशीदा की गाँड पर पड़ी तो उसका लंड तुनक उठा और उसका लंड ट्रैक-सूट के पजामे में कुलांचें मारने लगा। सुनील ने जो प्लैन सोचा था अब उसको काम में लाने का समय आ गया था। "आहह कैसी दिखती होगी रशीदा की गाँड... कितनी मोटी गाँड है साली की... एक बार मिल जाये तो आहहह.!" ये सोचते हुए सुनील का लंड पूरी औकात में आ गया। सुनील का लंड उसके ट्रैक-सूट के पजामे में तन कर तम्बू सा बन गया जो बाहर से देखने से साफ़ पता चल रहा था। थोड़ी देर बाद जब रशीदा के ऊँची हील के सैंडलों की फर्श पे खटखटा कर चलने की आवाज़ आयी तो सुनील अपनी पीठ पीछे टिका कर कुर्सी पर लेट सा गया और अपने पायजामे के ऊपर से अपने लंड को जड़ से पकड़ लिया ताकि वो ज्यादा से ज्यादा बड़ा दिख सके। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं और वही हुआ जो सुनील चाहता था। जब रशीदा वापस आयी और सुनील के पीछे से गुज़रने लगी तो उसकी नज़र सुनील पर पड़ी जो अपने हाथ से अपने लंड को पायजामे के ऊपर से पकड़े हुए था। रशीदा एक दम धीरे-धीरे चलने लगी और सुनील के लंड का मुआयना करने लगी पर वो रुक नहीं सकती थी और वो वापस अपने कैबिन में गयी और कुर्सी पर बैठ कर सोचने लगी। थोड़ी देर सोचने के बाद उसने नफ़ीसा को धीरे से बुलाया और अपने कैबिन में आने को कहा। नफ़ीसा अपने कैबिन से निकल कर रशीदा के कैबिन में गयी और एक कुर्सी रशीदा के करीब सरका कर बैठ गयी।

रशीदा धीरे से बोली, "अरे यार नफ़ीसा! लगता है आज सुनील का लंड उसे तंग कर रहा है... देख साला बाहर कैसे अपने लंड को पकड़ कर बैठा है!"

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नफ़ीसा ने पूछा, "तूने देखा क्या उसे अपना पकड़े हुए...?"

रशीदा बोली, "हाँ अभी देखा है... जब मैं टॉयलेट से वापस आ रही थी... यार देख तो सही!"

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नफ़ीसा उठी और रशीदा के कैबिन से निकल कर बाथरूम की तरफ़ जाने लगी। जब वो सुनील के पीछे से गुजरी तो उसने तिरछी नज़रों से सुनील की तरफ़ देखा जो अभी भी अपने आँखें बंद किये हुए कुर्सी पे आधा लेटा हुआ था। सुनील ने अभी भी अपना लंड हाथ में पायजामे के ऊपर से थाम रखा था। नफ़ीसा अच्छे से तो नहीं देख पायी और वो टॉयलेट में चली गयी। नफ़ीसा के जाने के बाद सुनील उठा और टॉयलेट की तरफ़ चला गया। वो जेंट्स टॉयलेट में घुसा और जानबूझ कर कुछ "आहह आहहह" की आवाज़ की और अपने पजामे को नीचे सरका दिया।

सुनील को पता था कि अज़मल जल्दी वापस नहीं आने वाला था। सुनील ने अपने टॉयलेट का दरवाजा थोड़ा सा खोल रखा था और दीवार की तरफ़ देखते हुए अपने लंड को हाथ से सहलाने लगा। नफ़ीसा बगल वाले टॉयलेट में बैठी हुई सुनील की आवाज़ सुन कर चौंक गयी। वो टॉयलेट से बाहर आयी तो उसने देखा कि साथ वाले जेंट्स टॉयलेट का दरवाजा ज़रा सा खुला हुआ था। अंदर लाइट जल रही थी जिससे अंदर का नज़ारा साफ़ दिखायी दे रहा था। नफ़ीसा धीरे से थोड़ा आगे बढ़ी और दीवार से सटते हुए उसने अंदर झाँका। उसके ऊँची हील वाले सैंडल की आवाज़ ने सुनील को उसकी मौजूदगी से आगाह करवा दिया। सुनील ने अपने लंड को जड़ से पकड़ कर दबाया और उसका लंड और लंबा हो गया। जैसे ही नफ़ीसा ने अंदर देखा तो उसका केलजा मुँह को आ गया।

अंदर सुनील अपने मूसल जैसे लंड को हिला रहा था। सुनील के अनकटे लंड की लंबाई और मोटाई देख कर नफ़ीसा की चूत कुलबुलाने लगी और गाँड का छेद फुदकने लगा। सुनील ने थोड़ी देर अपने लंड का दीदार नफ़ीसा को करवाया और ट्रैक सूट का पायजामा ऊपर करने लगा। नफ़ीसा जल्दी से वापस रशीदा के कैबिन में गयी और रशीदा के पास आकर बैठ गयी। उसकी साँसें उखड़ी हुई थी और आँखों में जैसे हवस का नशा भरा हो। "क्या हुआ नफ़ीसा... तेरी साँस क्यों फूली है...?" रशीदा ने नफ़ीसा के सुर्ख चेहरे और उखड़ी हुई साँसों को देख कर पूछा। "पूछ मत यार... क्या लौड़ा है साले अपने नये हीरो का... माशाल्लह... इतना बड़ा और मूसल जैसा लंड... साला जैसे गाधे का लंड हो...!"

रशीदा: "क्या बोल रही है यार तू...?"

नफ़ीसा: "सच कह रही हूँ यार... तू भी अगर एक दफ़ा देख लेती तो तेरी चूत में भी बिजलियाँ कड़कने लगती... साले का ये लंबा लंड है... और इतना मोटा...!" नफ़ीसा ने हाथ से इशारा करते हुए दिखाया।

रशीदा: "सच कह रही है तू?"

नफ़ीसा: "हाँ सच में तेरी इस मोटी गाँड की कसम...!"

रशीदा: "चुप कर रंडी... साली जब देखो मेरी गाँड के पीछे ही पड़ी रहती है...!"

नफ़ीसा: "तो क्या बोलती है... साले चिकने को फंसाया जाये...?"

रशीदा: "पता नहीं यार... हमारे साथ जॉब करता है और बहोत जुनियर भी है... और जवान खून है... अगर साले ने बाहर किसी के सामने कुछ बक दिया तो खामाखाँ मसला हो जायेगा!"

नफ़ीसा: "अरे यार कुछ नहीं होता... तू तो हमेशा ऐसे ही ऐसे ही बेकार में घबराती है... साले को साफ़-साफ़ बोल देंगे कि मज़ा लो और अपना-अपना रास्ता नापो... बोल तू बात करेगी या मैं करूँ उससे बात!"

रशीदा: "अच्छा-अच्छा मैं देखती हूँ... पहले ये तो मालूम हो कि साले का लौड़ा चूत और गाँड मारने के लिये बेकरार है भी या नहीं...!"

नफ़ीसा: "यार कुछ भी कर पर जल्दी कर... मेरी चूत और गाँड दोनों छेदों में खुजली हो रही है... जब से उसका लंड देखा है..!"

रशीदा: "हाँ-हाँ पता है... इसी लिये तुझे बात करने नहीं भेज रही... तू तो वहीं सलवार खोल के खड़ी हो जायेगी उसके सामने... अब तू अपने कैबिन में जा कर बैठ... मैं देखती हूँ कि अपना चिकना हाथ आने वाला है कि नहीं...!"

नफ़ीसा अपने कैबिन में वापस चली गयी और रशीदा उठ कर सुनील के पास गयी और सुनील के पास जाकर कुर्सी पर बैठते हुए हंस कर बोली, "और सुनील कैसे हो... क्या बात है आज बड़े फ़ॉर्मल कपड़ों में जोब पर चले आये..!"

नफ़ीसा के इस तरह अचानक अपनी टेबल पे बैठ कर उससे बात करने से सुनील पहले तो थोड़ा घबरा गया लेकिन जल्दी ही संभल गया। उसे उम्मीद तो थी ही कि दोनों औरतों में कोई तो पहल करेगी। सुनील संभलते हुए बोला, "वो मैडम बस ऐसे ही... आज तबियत थोड़ी खराब थी... नहाने और तैयार होने का मन नहीं किया तो ऐसे ही चला आया..!"
 
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#13
रशीदा थोड़ा सा झुक कर अपना दुपट्टा गर्दन में ऊपर खींच कर सुनील को अपनी कमीज़ के गहरे गले से अंदर कैद दोनों खरबूजों के बीच की घाटी का दीदार करवाती हुई बोली, "उफ़्फ़ ये गरमी भी ना... और कहाँ पर रह रहे हो!"

सुनील: "ये वो जो ट्रेफ़िक डिपार्ट्मेंट में ऑफ़िसर हैं ना फ़ारूक साहब... उन्ही के घर पर पेईंग गेस्ट रह रहा हूँ!"

रशीदा: "अच्छा वो फ़ारूक... कितना किराया ले रहा है वो तुमसे?"

सुनील: "ये खाने का मिला कर साढ़े-तीन हज़ार रुपये दे रहा हूँ..!"

रशीदा: "ये तो बहोत ज्यादा है... पहले बताया होता तो तुम्हें नफ़ीसा के घर में रूम दिलवा देती... उसका इतना बड़ा बंगला है... और रहने वाले सिर्फ़ दो जने हैं... बेटा उनका बाहर अलीगढ़ में पढ़ रहा है...!"

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सुनील: "कोई बात नहीं मैडम मैं ठीक हूँ... कोई दिक्कत नहीं है वहाँ!"

रशीदा: "और कभी हमारे साथ भी बैठ कर बातें वातें कर लिया करो... यूँ अकेले बैठे-बैठे बोर नहीं हो जाते?"

सुनील: "जी मैडम जरूर... वो बस मैं सोचता था कि आप दोनों इतनी सीनियर हैं तो शायद आप दोनों को बुरा ना लगे कि मैं आपको परेशान कर रहा हूँ!"

रशीदा: "अरे सीनियर्स के साथ क्या बातें करने की कोई पाबंदी है.. हम क्या खा जायेंगी तुम्हें!"

सुनील: "ओहह सॉरी मैडम मेरा मतलब वो नहीं था... वैसे मैं भी बोर हो जाता हूँ... घर जाकर भी अकेले रूम में बैठा-बैठा उकता जाता हूँ..!"

रशीदा: "तुम्हारे कोई दोस्त या कोई गर्ल-फ़्रेंड नहीं है क्या..!"

सुनील: "जी नहीं मैडम वैसे भी नया हूँ यहाँ पे...!"

रशीदा: "इसी लिये तो कह रही हूँ... ज़रा मिलोजुलो लोगों से... बातचीत करो... तुम हैंडसम हो... अच्छी शक़्ल सूरत है... बॉडी भी अच्छी बनायी हुई है... क्या प्रॉब्लम हो सकती है!"

सुनील: "पर मैडम आप तो जानती है ना... आज कल की लड़कियों को बस महंगे-महंगे गिफ़्ट चाहिये और बदले में क्या... बस पैसे बर्बाद..!"

रशीदा: "अच्छा शाम को क्या कर रहे हो..?"

सुनील: "जी मैडम... कुछ खास नहीं!"

रशीदा: "तो चलो आज नफ़ीसा के घर में पार्टी करते हैं... ड्रिंक तो कर ही लेते हो ना?"

सुनील: "जी कभी-कभी!"

रशीदा: "और कोई शौक भी है तो बता दो... उसका अरेंजमेंट भी कर लेंगे..!"

सुनील: "जी शौक तो बहुत हैं... जैसे-जैसे जान पहचान बढ़ेगी... आपको पता चल जायेगा...!"

रशीदा: "अच्छा ऐसी बात है... चलो देखते हैं..!"

इस दौरान सुनील बार-बार रशीदा की बड़ी- बड़ी चूचियों को उसकी कमीज़ के गहरे गले में से देख रहा था और रशीदा टाँग पर टाँग चढ़ा कर बैठी हुई अपनी टाँग हिला रही थी तो सुनीळ की नज़रें उसके ऊँची हील वाले कातिलाना सैंडल से भी नहीं हट रही थी। रशीदा भी सुनील के लंड को ट्रैक-पैंट में झटके खाता हुआ साफ़ देख रही थी। फिर रशीदा उठी और अपनी मोटी गाँड मटकाते हुए जाने लगी। "भूलना नहीं आज शाम नफ़ीसा के घर पर... नफ़ीसा से घर का अड्रेस समझ लेना..." रशीदा ने जाते हुए कहा।

थोड़ी देर बाद नफ़ीसा उसके पास आयी, "तो क्या इरादा है सुनील!" सुनील ने चौंक कर नफ़ीसा की तरफ़ देखा... "जी मैडम इरादा तो नेक है बस आपके हुक्म का इंतज़ार है...!" नफ़ीसा अपने होंठों को दाँतों में दबाते हुए बोली, "अच्छा ये लो इसमें मेरा अड्रेस लिखा है और मोबाइल नम्बर भी... अगर रास्ता ढूँढने में तकलीफ़ हो तो फ़ोन कर देना!"

सुनील: "जी मैडम ठीक है... वैसे आपके घर वाले मतलब आपके हस्बैंड को कोई ऐतराज़ तो नहीं होगा?"

नफ़ीसा: "अरे नहीं... वो तो बिल्कुल पेरलाइज़्ड हैं... बिस्तर से उठ तक नहीं सकते हैं!" ये कह कर नफ़ीसा भी चली गयी।

दोनों औरतें शाम को एक घंटा पहले ही निकल गयीं। दोनों पहले रशीदा के फ़्लैट में गयी और वहाँ पर रशीदा ने अपनी एक सलवार-कमीज़... नाइटी... सैंडल वगैरह और कुछ समान लिया। रशीदा ने अपनी सास को भी बताया कि वो आज रात को नफ़ीसा के घर पर ही रहेगी। ये कोई नयी बात नहीं थी क्योंकि वो अक्सर नफ़ीसा के घर रात बिताया करती थी। रशिदा ने अपनी कार नहीं ली और दोनों नफ़ीसा की कार में ही उसके घर की तरफ़ रवाना हो गयीं। नफ़ीसा ने रस्ते में से खाने पीने की कुछ चीज़ें खरीदीं और फिर घर पहुँची।

घर आकर उसने अपनी नौकरानी ज़ोहरा को बुलाया। उसने ज़ोहरा को रात का खाना तैयार करने के लिये कहा और उसे कहा कि वो गोल्ड-फ्लेक सिगरेट के दो पैकेट और ऑफिसर चाइस व्हिस्की की दो बोतलें अपने शौहर से मंगवा दे। ये भी कोई नयी बात नहीं थी क्योंकि नफ़ीसा अक्सर ज़ोहरा के शौहर के ज़रिये शराब और सिगरेट खरीदवाया करती थी। नफ़ीसा ने उसे पैसे दिये और ज़ोहरा पास ही अपने घर चली गयी। उसका शौहर जाकर सिगरेट के पैकेट और व्हिस्की की बोतलें ले आया और ज़ोहरा ने वो नफ़ीसा को लाकर दे दी। रात के चुदाई की पार्टी का इंतज़ाम हो चुका था और दोनों चुदैल औरतें नया बकरा हलाल करने के लिये बेकरार थीं।

दूसरी तरफ़ सुनील ने भी अपना काम खतम किया और स्टेशन से बाहर आकर अपना मोबाइल निकाल कर घर पर फ़ोन किया। फ़ोन सानिया ने उठाया तो सुनील ने उसे कहा कि आज रात कुछ जरूरी काम से उसे स्टेशन पर ही रुकना पड़ेगा। सुनील कुछ देर बज़ार में घूमता रहा। जब अंधेरा होने लगा तो उसका फ़ोन बजने लगा। फ़ोन रशीदा का था, "हैलो सुनील... कहाँ रह गये?"

"जी अभी आ रहा हूँ... थोड़ी ही देर में पहुँच जाऊँगा!" सुनील ने कहा तो रशीदा ने "ठीक है... जल्दी आओ..." कह कर फ़ोन काट दिया। सुनील ने बाइक नफ़ीसा के घर की तरफ़ घुमा दी। सुनील जानता था कि आज रात बहुत लंबी होने वाली है और दोनों औरतें बेहद चुदैल हैं... इसलिये वो एक दवाई की दुकान पर रुका और एक दो गोली वायग्रा की ले ली। वैसे तो सुनील के जिस्म और लंड में इतनी जान थी कि वो एक साथ नफ़ीसा और रशीदा की चुदाई तसल्ली से कर सकता था पर सुनील आज उन दोनों की गाँड और चूत पर अपने लंड की ऐसी छाप छोड़ना चाहता था कि वो दोनों उसके लंड की गुलाम हो जाये। सुनील ये भी जानता था कि नफ़ीसा और रशीदा दोनों मालदार औरतें है और दोनों के पास बहुत पैसा है। वो वक़्त आने पर सुनील की कोई भी जरूरत पूरी कर सकती थीं। लेकिन उसके लिये सुनील को पहले उन दोनों को अपने लंड का आदी बनाना था जैसे उसने रुखसाना को अपने लंड की लत्त लगा दी थी। यही सोच कर उसने वायग्रा खरीद ली और नफ़ीसा के घर के तरफ़ चल पड़ा। थोड़ी ही देर में वो नफ़ीसा के घर के पास पहुँच गया और उसने रशीदा को फ़ोन किया।

"हाँ बोलो सुनील... कहा पहुँचे?" रशीदा ने फोन उठाते ही पूछा। "मैडम मैं उस गली में पहुँच गया हूँ पर यहाँ सभी इतने बड़े-बड़े बंगले हैं कि समझ में नहीं आ रहा कि नफ़ीसा मैडम का घर कौन सा है!" सुनील ने पूछा तो रशीदा ने उसे समझाया, "देखो तुम सीधे गली के एंड में आ जाओ... राइट साइड पर सबसे आखिरी घर है... उसके सामने खाली प्लॉट है..!"

"ठीक है समझ गया मैडम!" सुनील ने फ़ोन काटा। "रशीदा क्या हुआ... पहुँचा कि नहीं अभी तक..." नफ़ीसा ने पूछा तो रशीदा अपने होंठों पे बेहद कमीनी मुस्कान के साथ बोली, "हाँ पहुँच गया है... तू जाकर गेट खोल और उसकी बाइक अंदर करवा ले... बहोत दिनों बाद साला आज तगड़ा बकरा हाथ में आया है... खूब मजे से उसे हलाल करके अपनी हसरतें पूरी करेंगी दोनों मिलकर!"

नफ़ीसा ने बाहर जाकर गेट खोला और इतने में सुनील की बाइक उसके घर के सामने थी। सुनील ने अपनी बाइक अंदर कर ली और नफ़ीसा ने अंदर से गेट बंद करते हुए पूछा, "ज्यादा तकलीफ़ तो नहीं हुई तुम्हें घर ढूँढने में...?"

"जी नहीं!" नफ़ीसा ने कॉटन का पतला सा हल्के सब्ज़ रंग का स्लीवलेस और तंग कमीज़ और नीचे सफ़ेद चुड़ीदार सलवार पहनी हुई थी। उसने दुपट्टा भी नहीं लिया हुआ था और उसकी कमीज़ का गला कुछ ज्यादा ही लो-कट था जिसमें से उसकी बड़ी-बड़ी चूचियाँ करीब-करीब आधी नंगी थीं और बाहर आने को उतावली हो रही थी। इसके अलावा नफिसा ने पाँच इंच ऊँची पेंसिल हील के बेहद सैक्सी सैंडल पहन रखे थे। ये सब देखते ही सुनील के लंड में सरसराहट होने लगी।

तजुर्बेकार नफ़ीसा भी सुनील की नज़र को फ़ौरन ताड़ गयी और मुस्कुराते हुए बोली, "चलो अंदर चलो... यहीं खड़े- खड़े देखते रहोगे क्या?" नफ़ीसा पहचान गयी थी कि उन दोनों को सुनील को अपने हुस्न ओर अदाओं से पटाने में ज्यादा वक़्त नहीं लगेगा। नफ़ीसा उसे साथ लेकर हाल में पहुँची। नफ़ीसा का घर सच में बहुत बड़ा था। घर के सामने एक बड़ा लॉन था और पीछे की तरफ़ स्विमिंग पूल था... नफ़ीसा के ससुर बहुत बड़े जागीरदार हुआ करते थे और अपनी ढेर सारी दौलत और जायदाद वो नफ़ीसा के शौहर के नाम छोड़ गये थे।

नफ़ीसा ने उसे सोफ़े पर बिठाया और बोली कि वो आराम से बैठे और वो अभी आती है! सुनील ने ऐसा शानदार सजा हुआ ड्राइंग रूम और फ़र्निचर सिर्फ़ फ़िल्मों में ही देखा था। "जी वो रशीदा मैडम कहाँ हैं?" सुनील ने नफ़ीसा से पूछा। "रशीदा चेंज करने गयी है... अभी आती है..!" ये कह कर नफ़ीसा किचन में चली गयी और फिर एक गिलास में कोल्ड ड्रिंक ले आयी और सुनील को देने के बाद बोली, "तुम बैठो मैं भी चेंज करके आती हूँ..!"

जैसे ही नफ़ीसा गयी तो सुनील ने वायग्रा की एक गोली निकाली और कोल्ड-ड्रिंक के साथ निगल ली। थोड़ी देर बाद नफ़ीसा बाहर आयी तो सुनील के मुँह से सीटी निकल गयी और धड़कनें तेज़ हो गयीं। नफ़ीसा ने सिर्फ़ मैरून रंग का छोटा सा मखमली बाथरोब पहना हुआ था और पैरों में मेल खाते मैरून रंग के ही पहले जैसे पाँच-छः इंच ऊँची पेंसिल हील के बारीक स्ट्रैप वाले सैंडल। नसीफ़ा की लंबी-लंबी और सुडौल टाँगें और गोरी माँसल जाँघें बिल्कुल नंगी सुनील की नज़रों के सामने थीं। उसका लंड तो उसी वक़्त टनटना गया। उसे ये तो पता था कि आज रात दोनों औरतों ने उसे चुदाई के मक़सद से ही बुलाया है लेकिन ये नहीं सोचा था कि इतनी जल्दी बेधड़क नंगी हो जायेगी। ये औरतें उसकी उम्मीद से काफ़ी ज्यादा ही फ़ॉर्वर्ड और बोल्ड थीं।

नफ़ीसा ने ज़रा इतराते हुए पूछा, "ऐसे क्या देख रहे हो...?"

सुनील खुद को संभालते हुए बोला, "वो... वो कुछ नहीं.. वो आप आप बहुत खूबसूरत लग रही हैं!"

"अच्छा! वैसे तुम्हे मुझ में क्या खूबसूरत लगता है...?" नफ़ीसा ने पूछा तो सुनील बोला, "जी सब कुछ...!" नफ़ीसा मुस्कुराते हुए बोली, "फिर तो सब कुछ देखना भी चाहते होगे...!"

सुनील: "जी अगर आप मौका दें तो!"

नफ़ीसा ने सुनील के पास आकर अपना एक पैर उठा कर सोफ़े पे सुनील की जाँघों के बीच मे रखा दिया और बोली, "मौके तो आज तुम्हें ऐसे-ऐसे मिलेंगे कि तुमने सोचा भी नहीं होगा... ज़रा मेरी सैंडल का बकल तो कस दो... थोड़ा लूज़ लग रहा है!"

सुनील को ऐसी आशा नहीं थी... ये तो खुला-खुला आमंत्रण था। सुनील थोड़ा नरवस हो गया। उसने काँपते हुए हाथों से नफ़ीसा के सैंडल की बकल खोल कर उसकी सुईं अगले छेद में डाल कर बकल फिर बंद कर दिया। नफ़ीसा ने फिर दूसरा पैर वैसे ही सुनील की जाँघों के बीच में रख दिया... इस बार उसके सैंडल का पंजा और पैर की उंगलियाँ सीधे उसके टट्टों और लंड को छू रहे थे। सुनील का लंड उसके ट्रैक-पैंट में कुलांचे मारने लगा। सुनील ने उस सैंडल की बकल भी काँपते हुए हाथों से कस दी। नफ़ीसा के सैंडल इतने सैक्सी थे कि सुनील का मन हुआ कि झुक कर उसके सैंडल और नरम-नरम गोरे पैर चूम ले। नफ़ीसा के पैरों के उंगलियों में नेल-पॉलिश भी मैरूण ही थी।

"घबरा नहीं सुनील आज की रात तुम्हारे लिये यादगार होने वाली है... अभी तो कईं सर्प्राइज़ मिलने हैं... चल आजा!" ये कह कर नफ़ीसा आगे चलने लगी। सुनील खड़ा होकर नफ़ीसा के पीछे जाने लगा। नफ़ीसा उसे घर के पीछे स्विमिंग पूल की तरफ़ ले गयी। अंधेरा हो चुका था लेकिन स्विमिंग पूल के चारों तरफ़ बहुत खूबसूरत रंगबिरंगी रोशनी की हुई थी। वहाँ एक लंबी सी कुर्सी पर रशीदा आधी लेटी हुई थी। उसने भी नफ़ीसा की तरह मैरून रंग का मखमली बाथरोब पहना हुआ था और पैरों में काले रंग के ऊँची पेंसिल हील वाले बेहद कातिलाना सैंडल मौजूद थे। रशीदा ने अपनी एक टाँग लंबी कर बिछायी हुई थी और दूसरी को घुटने से मोड़ा हुआ था। उसके एक हाथ में शराब का गिलास और सिगरेट थी। "ओहह सुनील आओ... कब से हम तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहे थे... यहाँ बैठो..." रशीदा ने उसे अपने पास बिठा लिया और उसकी जाँघ को सहलाते हुए बोली "सुनील क्या लोगे..!"

"जी आप जो भी प्यार से पिला दें वो मैं पी लुँगा!" सुनील ने जवाब दिया। सुनील को एहसास हो गया था कि वो शिकार करने आया था लेकिन यहाँ तो उसका ही शिकार होने वाला था।

"माशाल्लह... यार तुम तो बहोत चंट हो बातें बनाने में!" रशीदा बोली तो सुनील फिर तपाक से बोला, "जी बनाने में ही नहीं... करने में भी चंट हूँ..!" ये सुनकर रशिदा सिगरेट का धुआं उड़ाते हुए बोली, "क्यों नफ़ीसा.... लगता है आज की रात यादगार होने वाली है..!"

नफ़ीसा ने पास में टेबल पर रखी व्हिस्की की बोतल से एक गिलास में व्हिस्की और सोडा डाल कर सुनील को दी और फिर रशीदा के गिलास में भी एक और नया पैग बना कर दिया और अपने लिये भी एक पैग बनाया। फिर उसने अपने लिये सिगरेट सुलगायी और सुनील को भी सिगरेट पेश की तो सुनील ने मना कर दिया। तीनों साथ में बैठ कर व्हिस्की पीने लगे। सुनील खुद तो सिगरेट नहीं पीता था लेकिन ये दोनों औरतें सिगरेट पीती हुई बेहद सैक्सी और कातिल लग रही थीं उसे। रशीदा ने अपनी सिगरेट और पैग खतम किया और अपने गिलास को टेबल पर रख कर खड़ी हो गयी, "चलो पूल में चलते हैं... उफ्फ बहोत गरमी है यहाँ पर..!" ये कहते हुए उसने अपने बाथरोब की बेल्ट को खोला और बाथरोब उतार दिया। सुनील की आँखें एक दम से चौंधिया गयी। रशीदा का फिगर देखते ही सुनील को सन्नी लियॉन की याद आ गयी।

रत्ति भर भी कम नहीं था रशीदा का जिस्म... वैसे ही अढ़तीस साइज़ के बड़े-बड़े तने हुए मम्मे और वैसे ही बाहर की तरफ़ निकली हुई गाँड... लाल रंग की छोटी सी लेस की ब्रा के साथ जी-स्ट्रिंग की चिंदी सी लाल पैंटी और ऊँची हील के सैंडल में क़हर ढा रहा था। अब रशीदा अगर सन्नी लियॉन थी तो नफ़ीसा तो कहाँ कम थी... फिगर के साथ-साथ शक़्ल-सूरत में भी हुबहु बॉलीवुड हिरोइन ज़रीन खान लगती थी। नफ़ीसा ने भी अपना पैग खतम किया और सिगरेट का आखिरी कश लगा कर ऐशट्रे में बुझा दी और अपना बाथरोब उतार दिया। उसने नीचे काले रंग की ब्रा और काले रंग की ही जी-स्ट्रिंग पैंटी पहनी हुई थी। अपने आप को इन दोनों गज़ब की सैक्सी औरतों के बीच पाकर सुनील का लंड उसके ट्रैक सूट के पायजामे में कुलांचे मारने लगा। वैसे तो रुखसाना भी रशीदा और नफ़ीसा से फिगर और खूबसूरती में कम नहीं थी लेकिन ये दोनों बेहद तेजतर्रार... डॉमिनेटिंग और बेतकल्लुफ़ थीं और रुखसाना थोड़ी शर्मिली और नरम थी।

"अब तुम किसका इंतज़ार कर रहे हो... चलो कपड़े उतारो..!" नफ़ीसा ने कहा तो सुनील ने एक दम चौंकते हुए खड़े होकर अपनी टी-शर्ट उतार दी। फिर उसे याद आया कि आज तो उसने जानबूझ कर सुबह ट्रैक-पैंट के नीचे अंडरवियर पहना ही नहीं था तो वो एक दम से रुक गया। "क्या हुआ सुनील... कोई प्रोब्लेम है..?" कहते हुए रशीदा अपने सैंडल पहने हुए ही पूल में उतर गयी।

"जी मैडम वो मैंने नीचे अंडरवियर नहीं पहना!" सुनील झेंपते हुए बोला तो रशीदा हंसते हुए बोली, "तो यहाँ कौन सा कोई तुम्हें देख रहा है.... सिर्फ़ हमारे अलावा... यार कोई बात नहीं... आजा..!" नफ़ीसा ने अपने और रशीदा के लिये एक-एक पैग और बनाया और दोनों गिलास लेकर वो भी सैंडल पहने हुए ही स्विमिंग पूल मैं उतर गयी। स्विमिंग पूल ज्यादा गहरा नहीं था और सिर्फ़ कमर तक ही पानी था। सुनील ने सोचा कि साला ये तो सीधे चुदाई का आमंत्रण है... ऐसा मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहिये। सुनील ने अपना ट्रैक-सूट वाला पायजामा भी उतार दिया। नर्वस होने के कारण उसका लंड लटक सा गया था। सुनील का पहला पैग अभी खतम नहीं हुआ था। उसने अपना गिलास पूल के किनारे पे रखा और अपने झूलते हुए लंड को लेकर स्विमिंग पूल में उतर गया। जैसे ही सुनील पूल के अंदर आया तो नफ़ीसा उसके करीब आ गयी और उसके होंठों पर अपना गिलास लगाते हुए बोली, "एक जाम इस नयी दोस्ती के नाम!" सुनील ने एक सिप लिया और मुस्कुरा कर नफ़ीसा की तरफ़ देखा। रशीदा भी सुनील के करीब आयी और उसने भी अपने गिलास को सुनील के होंठों की तरफ़ बढ़ा दिया। नफ़ीसा सुनील की चौड़ी छाती को अपने एक हाथ से सहला रही थी। सुनील ने रशीदा के गिलास से भी एक सिप लिया।

सुनील ने पूल के किनारे रखा हुआ अपना गिलास उठा लिया और फिर तीनों धीरे-धीरे सिप करने लगे। रशीदा और नफ़ीसा दोनों अपने एक-एक हाथ से सुनील के चौड़े सीने को सहला रही थी। सुनील का लंड अब फिर खड़ा होने लगा था। आखिर वो बिल्कुल नंगा दो-दो इतनी सैक्सी और करीब-करीब नंगी हसीनाओं से घिरा हुआ स्विमिंग पूल में मौजूद था और ऊपर से दोनों हुस्न की मल्लिकाओं ने पूल के अंदर भी हाई हील वाले सैंडल पहने हुए थे। सुनील को तो अपनी किस्मत पे विश्वास ही नहीं हो रहा था। रशीदा बीच-बीच में अपना हाथ नीचे सुनील के पेट की ओर ले जाती तो कभी नफ़ीसा उसकी जाँघों को अपने हाथ से सहलाने लग जाती। सुनील का लंड अब धीरे-धीरे फिर से अपनी औकात में आने लगा था। सुनील भी उन दोनों के जिस्म छुना उनके मम्मे और गाँड दबाना चाहता था लेकिन उन दोनों का दबदबा ही ऐसा था कि सुनील की खुद से हिम्मत नहीं हुई। रशीदा ने जब सुनील के लंड को खड़ा होते देखा तो उसकी आँखों में चमक आ गयी और टाँगें थरथराने लगी। सुनील के खड़े होते हुए लंड का साइज़ देख कर रशीदा को समझ आया कि क्यों नफ़ीसा सुबह सुनील का लंड देख कर इतनी बेकरार हो रही थी। उसने इशारे से नफ़ीसा को नीचे की और देखने को कहा तो नफ़ीसा की चूत भी सुनील के अकड़ते हुए लंड को देख कर फुदफुदाने लगी।

रशीदा ने गटक कर अपना पैग खतम करते हुए कहा, "नफ़ीसा चलो ना अब खाना खाते हैं... बहुत हो गया..!" ये सुनकर सुनील के तो खड़े लंड पे जैसे धोखा हो गया। उसे लग रहा था कि अभी बात शायद आगे बढ़ेगी। दोनों औरतें उसे इस तरह क्यों तड़पा रही थीं। दो-दो रसगुल्ले उसके सामने थे... उसे तरसा रहे थे लेकिन वो खा नहीं पा रहा था।

तीनों पूल से बाहर आये और नफ़ीसा ने सुनील को एक तौलिया दिया। सुनील ने अपनी कमर पर तौलिया लपेटा और फिर अपने कपड़े उठा लिये। नफ़ीसा और रशीदा ने वहाँ पर बने हुए बाथरूम में जाकर अपनी गीली पैंटी और ब्रा उतार दीं लेकिन सैंडल अभी भी नहीं उतारे। फिर तौलिये से अपने जिस्म और सैंडल वाले पैर सुखा कर दोनों ने अपने-अपने बाथरोब पहने और तीनों घर के अंदर आ गये। अंदर आकर तीनों ने वैसे ही खाना खाया और फिर शराब पीने लगे। शराब और शबाब का नशा अब तीनों पर हावी होने लगा था। दोनों औरतें खुल कर बाथरोब में छुपे हुए अपने हुस्न का दीदार सुनील को कराने लगी थीं। सुनील जानबूझ कर सावधानी से थोड़ी-थोड़ी ही शराब पी रहा था लेकिन दोनों औरतें बे-रोक पैग लगा रही थीं और एक के बाद एक सिगरेट फूँक रही थीं और नशे में झूमने लगी थीं। सुनील का तो बुरा हाल हो चुका था। तौलिये के अंदर उसका लंड धड़क-धड़क कर फुफकारें मार रहा था। "तो सुनील तू कह रहा था कि तेरी कोई गर्ल फ्रेंड नहीं है..!" रशीदा ने नफ़ीसा की ओर देखते हुए कहा। दोनों औरतें अब तुम से तू पे आ गयी थीं।

"जी नहीं है!" सुनील ने भी नफ़ीसा के ओर देखते हुए कहा तो नफ़ीसा बोली, "तो इश्क़ के खेल में अभी अनाड़ी हो..?"

"जी हाँ! इश्क़ के खेल में शायद अनाड़ी हूँ पर मस्ती के खेल में नहीं..!" सुनील ने जवाब दिया। रशीदा बोली, "ओहो... तू तो फिर बड़ा छुपा रुस्तम निकला... यार नफ़ीसा मैंने कहा था ना अपना सुनील जितना मासूम दिखता है... उतना है नहीं..!"

नफ़ीसा सिगरेट का कश लगाते हुए आँखें नचाते हुए बोली, "तो तू मस्ती करने में अनाड़ी नहीं है... हमें भी तो पता चले कि तूने कहाँ और किसके साथ और कितनी मस्ती की है..!"

सुनील का सब्र टूटा जा रहा था। "छोड़िये ना मैडम... वो सब पुराने किस्से हैं...!" सुनील बोला तो नफ़ीसा अपनी कुर्सी से उठी और बड़ी ही अदा के साथ चलते हुए सुनील के करीब आयी और अपनी एक बाँह सुनील की गर्दन में डाल कर सुनील के गोद में बैठ गयी और रशीदा की तरफ़ देख कर मुस्कुराते हुए बोली, "अच्छा... चाहे तो आज मस्ती के नये किस्से बना ले... क्या ख्याल है..?"

"ख्याल तो बहुत बढ़िया है...!" सुनील बोला। सुनील के कुलांचे मार रहे लंड की नफ़ीसा चुभन अपनी गाँड के नीचे महसूस कर रही थी। वो हंसते हुए बोली, "हाँ खूब पता चल रहा है कि तू क्या चाहता है!" "वो कैसे...?" सुनील ने पूछा तो नफ़ीसा बोली, "वो ऐसे कि तेरा हथियार जो बार-बार मेरे चूतड़ों पर जोर-जोर से ठोकरें मार रहा है..!"

सुनील बोला, "लेकिन मेरे अकेले के चाहने से क्या होगा..?"

"ओह हो... अब तू इतना नादान तो नहीं है... तू भी समझ तो गया ही होगा कि हम दोनों भी यही चाहती हैं!" ये कहते हुए नफ़ीसा सुनील की गोद से खड़ी हुई और सुनील का हाथ पकड़ कर झूमती हुई चलती हुई उसे बेडरूम की तरफ़ ले जाने लगी। रशीदा भी नशे में झूमती हुई उनके पीछे चल पड़ी। नफ़ीसा के मुकाबले रशीदा कुछ ज्यादा नशे में थी जबकी शराब दोनों ने तकरीबन बराबार ही पी थी... शायद इसलिये कि नफ़ीसा अक्सर शराब पीने की आदी थी जबकि रशिदा को कभी-कभार ही मौका मिलता था। नफ़ीसा की सोहबत में ही उसने शराब और सिगरेट पीना शुरू की थी।

बेडरूम में पहुँच कर नफ़ीसा ने सुनील को धक्का दे कर बेड पर गिरा दिया और रशीदा ने भी अंदर आकर पीछे से कमरे के दरवाजा को लॉक कर दिया। नफ़ीसा बेड पर चढ़ी और सुनील के ऊपर झुकते हुए बोली तो "बर्खुरदार... ज़रा हमें भी तो बता कि तू क्या-क्या जानता है!" दूसरी तरफ़ रशीदा भी बेड पर सुनील के दूसरी तरफ़ करवट के बल लेट गयी और सुनील के चौड़े सीने को एक हाथ से सहलाते हुए अपनी एक टाँग उठा कर सुनील के टाँगों पर रख दी। "जी बहुत कुछ जानता हूँ..!" सुनील ने अपने दोनों तरफ़ लेटी हुई मस्त चुदैल औरतों को देख कर कहा जो उम्र में उससे दुगुनी से ज्यादा बड़ी थीं। "रशीदा तुझे स्ट्राबेरी फ्लेवर बहोत पसंद है ना..?" नफ़ीसा की ये बात सुन कर सुनील चौंक गया कि अब साला स्ट्राबेरी फ्लेवर बीच में कहाँ से आ गया। "हाँ यार बेहद पसंद है..!" रशीदा बोली तो नफ़ीसा ने उसे कहा कि "तो उस मिनी-फ्रिज में तेरे लिये कुछ है... जा निकाल कर ले आ!"

रशीदा उठी और बेडरूम के एक कोने में मेज के नीचे रखे छोटे से फ़्रिज को खोला। उसमें एक काँच के बड़े से गिलास में स्ट्राबेरी फ़्लेवर की क्रीम मौजूद थी। उसे देख कर रशीदा की आँखों में चमक आ गयी। रशीदा वो क्रीम भरा गिलास लेकर बेड पर आकर बैठ गयी। उसने एक बार नफ़ीसा की तरफ मुस्कुराते हुए देखा तो नफ़ीसा ने सुनील के तौलिये को पकड़ कर खींचा पर तौलिया सुनील के वजन से दबा हुआ था। सुनील ने खुद ही अपने चूतड़ उचका कर तौलिया अपने जिस्म से अलग करके फेंक दिया। सुनील का आठ इंच से लंबा और खूब मोटा मूसल जैसा लंड झटके खाते हुए फुफकारने लगा जिसे देख कर दोनों चुदैल राँडों के मुँह से सिसकरी निकल गयी!। "याल्लाहा ऊँऊँहह नफ़ीसा... ये तो बहोत तगड़ा... घोड़े जैसा है..!" रशीदा ने सुनील के लंड को खा जाने वाली नज़रों से घूरते हुए कहा। "मैंने तो सुबह ही तुझे बता दिया था... साले ऐसे घोड़े की ही तो सवारी करने में मज़ा है.. आज तो हमारी किस्मत खुल गयी... यार सुनील पहले मालूम होता कि तू अपनी टाँगों के दर्मियान इस कदर लंबा और मोटा लौड़ा छुपाये हुए है तो आल्लाह कसम पहले दिन ही तेरे से चुदवा लेती..!" ये कहते हुए नफ़ीसा ने हाथ बढ़ा कर सुनील के लंड को अपने हाथ में पकड़ लिया और उसके लंड के आगे की चमड़ी पीछे की तरफ़ सरकायी तो सुनील के लंड का सुपाड़ा लाल टमाटर की तरह चमकने लगा जिसे देख कर दोनों की चूत कुलबुलाने लगी। रशीदा जल्दी से स्ट्राबेरी क्रीम का गिलास सुनील के लंड के ठीक ऊपर ले जाकर उस पर ठंडी क्रीम टपकाने लगी। ठंडी क्रीम को अपने लंड पर गिरता महसूस करके सुनील एक दम से सिसक उठा। "क्या हुआ बर्खुरदार?" नफ़ीसा ने सुनील को सिसकते हुए देख कर पूछा। "आहहह बहुत ठंडा है मैडम!" सुनील ने सिसकते हुए कहा।

"थोड़ा सा इंतज़ार कर... अभी देखना तेरे इस लंड को कितनी गरमी मिलने वाली है!" नसीफ़ा बोली। सुनील का लंड पूरी तरह से क्रीम से भीग गया। रशीदा ने गिलास नीचे रखा और सुनील की जाँघों के पास मुँह करके पेट के बल लेट गयी। दूसरी तरफ़ ठीक वैसे ही नफ़ीसा भी लेट गयी। रशीदा लंड पर झुकी और अपने होंठों को सुनील के लंड के मोटे सुपाड़े पर लगा दिया। सुनील मस्ती से सिसक उठा और उसने रशीदा के खुले हुए बालों को कसके पकड़ लिया। रशीदा ने इस बात का बुरा नहीं माना और अपने होंठों को सुनील के लंड के सुपाड़ा के चारों तरफ़ कसती चली गयी। थोड़ी ही देर में सुनील के लंड का सुपाड़ा रशीदा के मुँह में था और वो उसे अपने होंठों से दबा-दबा कर चूसने लगी। दूसरी तरफ़ से नफ़ीसा ने भी देर ना की और अपनी ज़ुबान और होंठों से सुनील के लंड के निचले हिस्सों और टट्टों को चाटने लगी। सुनील के लंड को अब दोहरी मार पड़ रही थी और ऊपर से वायग्रा का भी असर था। सुनील का लंड एक दम अकड़ गया था। सुनील ने अपने दूसरे हाथ से नफ़ीसा के खुले हुए बालों को पकड़ लिया। दोनों औरतें सुनील के लंड पर कुत्तियों की तरह टूट पड़ी। रशीदा तो सुनील के लंड को चूसने में मश्गूल थी और नफ़ीसा कभी सुनील के लंड की लंबाई पर अपनी ज़ुबान फिराती तो कभी सुनील की गोटियों को पकड़ कर मुँह में भर कर चूसने लगती।
 
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#14
सुनील आँखें बंद किये हुए जन्नत सा मज़ा ले रहा था। नफ़ीसा और रशीदा जिस जोशीले अंदाज़ में सुनील के लंड को चूस और चाट रही थीं... देखने से लग रहा था कि जैसे सामने किसी पोर्न मूवी का मंज़र चल रहा हो। थोड़ी ही देर में सुनील के लंड से क्रीम बिल्कुल सफ़ाचट हो चुकी थी और लंड उन दोनों के थूक से पुरी तरह सन गया। जैसे ही रशीदा ने सुनील के लंड को अपने मुँह से बाहर निकला तो नफ़ीसा ने लपक कर उसे अपने मुँह में भर लिया। 'पक-पक' 'गलप --गलप' जैसी आवाज़ें पूरे कमरे में गूँजने लगीं। "नफ़ीसा यार बे-इंतेहा मज़ा आ रहा है... एक मुद्दत से ऐसे जवान लंड का ज़ायका नहीं चखा था..." रशीदा बोली। नफ़ीसा ने सुनील के लंड को मुँह से बाहर निकाल कर अपने हाथ से हिलते हुए कहा, "हाँ सच रशिदा... मैंने कईं जवान लौड़े चूसे हैं लेकिन ऐसा कमाल का लंड कभी नहीं चूसा... अलाह कसम मज़ा आ गया यार.. दिल करता है रोज़ इस लंड के चुप्पे लगाऊँ!" ये कहते हुए उसने फिर से सुनील के लंड को मुँह में भर कर चूसना शुरू कर दिया।

नफ़ीसा का बेडरूम चुसाई की आवाज़ों से भर गया था। रशीदा बोल "यार... पहले तू इस लौड़े की सवारी करेगी क्या?" नफ़ीसा ने सुनील का लंड मुँह से बाहर निकाल कर अपने हाथ से मुठियाते हुए पूछा तो रशीदा बिना कुछ बोले उठ कर बैठ गयी उसने अपना बाथरोब निकाल कर फेंक दिया। दूसरी तरफ़ नफ़ीसा ने भी अपना बाथरोब उतार कर फेंक दिया और अब दोनों ऊँची हील के सैंडलों के अलावा सुनील की तरह मादरजात नंगी हो गयीं। दोनों सुनील के अगल-बगल में लेट कर उसके ऊपर झुक गयीं। दोनों की बड़ी-बड़ी गुदाज़ चूचियाँ सुनील के चेहरे के ऊपर झूलने लगीं जिसे देख सुनील की आँखों में चमक आ गयी। नफ़ीसा के निप्पल कुछ ज्यादा ही लंबे और मोटे थे जिन्हें देख कर ऐसा लग रहा था जैसे चींख-चींख कर कह रहे हों कि आओ हमें मुँह में भर कर निचोड़ लो! सुनील ने भी एक पल की देर नहीं की और अपने सिर को थोड़ा सा ऊपर उठा कर नफ़ीसा की चूंची के निप्पल को मुँह में भर लिया। नफ़ीसा सुनील के ऊपर झुक गयी और अपनी चूंची को सुनील के मुँह में और ज्यादा ठेल दिया। सुनील ने भी उसकी चूंची और निप्पल को अपने होंठों में दबा-दबा कर चूसना शुरू कर दिया। "आहहहह हाँआँऽऽ चूस सुनील.... आहहहह बहोत अच्छा लग रहा है..!" और उसने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर सुनील के लंड को पकड़ कर मुठियाना शुरू कर दिया। दूसरी तरफ़ लेटी रशीदा सुनील के टट्टों के साथ खेलने लगी। सुनील ने कभी सोचा नहीं था कि ये दोनों औरतें उसे इतना मज़ा देंगी। नफ़ीसा की चूंची को थोड़ी देर चूसने के बाद उसने चूंची को मुँह से बाहर निकला और रशीदा के तरफ़ देखा।

रशीदा ने अपनी एक चूंची को हाथ में पकड़ कर अपने निप्पल की ओर नोकदार बनते हुए उसे सुनील के मुँह से सटा दिया। सुनील ने भी फौरन मुँह खोल कर रशीदा की चूंची को मुँह में भर लिया और चूसना शुरू कर दिया। रशीदा की मस्ती में आँखें बंद होने लगी। उसका हाथ सुनील के चौड़े सीने पर तेजी से घूमने लगा। दूसरी तरफ़ लेटी नफ़ीसा उठ कर सुनील के ऊपर आ गयी और अपने घुटनों को सुनील की कमर के दोनों तरफ़ रख कर बैठते हुए सुनील के लंड को हाथ से पकड़ लिया। अपनी चूत की फ़ाँकों पर जैसे ही उसने सुनील के लंड का सुपाड़ा रगड़ा तो वो एक दम से सिसक उठी, "आहहहह सुनील... तेरा लंड तो बेहद गरम है साले..!" नफ़ीसा की आवाज़ सुन कर रशीदा ने भी अपने मम्मे को सुनील के मुँह से बाहर निकला और नसीफ़ा को फटकारते हुए बोली, "साली नसीफ़ा चूतमरानी... तूने ही तो मुझे पहले सवारी करने को कहा था और अब खुद मौका मिलते ही इसके लंड पे सवार हो गयी तू!"

"अरे यार नाराज़ क्यों होती है गुदमरानी... तू भी सवार हो जा... हम दोनों एक साथ बारी-बारी से जगह बदल- बदल कर पूरी रात सवारी करेंगी इस घोड़े की!" नफ़ीसा बोली तो रशीदा ने सुनील के सिर के दोनों तरफ़ अपने घुटनों को बेड पर रखा जिससे रशीदा की गंजी चिकनी चूत ठीक सुनील के चेहरे के ऊपर आ गयी। रशीदा और नफ़ीसा दोनों एक दूसरे के तरफ़ मुँह करके सुनील के ऊपर बैठी हुई थीं और उनके घूटने एक दूसरे के घुटनों से सटे हुए थे। रशीदा ने अपनी चूत के होंठों को फैलाते हुए अपनी चूत के दाने (क्लिट) को दिखाते हुए कहा, "देख सुनील ये है औरतों का ट्रिगर... मालूम है ये औरतों का सबसे सेन्सिटिव हिस्सा होता है!" सुनील आँखें फ़ाड़े रशीदा की गुलाबी चूत के छेद और दाने को अपने आँखों के तीन-चार इंच के फ़ासले पर देख रहा था। "चल अब तेरी बारी है हमें मज़ा देने की... इसे चूस..!" नफ़ीसा भी मस्ती में बोली, "हाँ सुनील चाट ले... इस रस का ज़ायका हासिल करने के लिये तो मर्द तरसते रह जाते है..!"

रशीदा ने अपने चूतड़ हिलाते हुए अपनी चूत के दाने को दो उंगलियों के दर्मियान दबाते हुए रगड़ा तो वो छोटे से बच्चे के लंड की तरह फूल गया। रशीदा सिसकते हुए बोली, "ये वो चीज़ है सुनील जिससे हर लड़की और औरत पिघल जाती है... एक बार अगर तूने किसी की चूत या दाने को चूस लिया... तो वो खुद ब-खुद तेरे लंड के नीचे आ जायेगी... मेरी बात याद रखना!" और ये कहते हुए रशीदा ने अपनी चूत सुनील के होंठों के और करीब कर दी। सुनील ने फ़ौरन रशीदा की चूत के छेद पर अपने होंठों को लगा दिया कुछ पलों के लिये सुनील की नाक और साँसों में चूत की तेज़ महक समा गयी। जैसे ही उसने रशीदा के चूत के छेद पर अपने होंठों लगाया तो रशीदा का पूरा जिस्म काँप उठा... उसकी कमर झटके खाने लगी। "आआहहह सुनील ओहहहह आँहहहह सीईईऽऽऽ आँहहह ऊऊईईईईं आआहहहल्लाआआह सुनीईईल येस्सऽऽऽ सक मीईईई... आआहहह!" सुनील को समझते देर नहीं लगी कि रशीदा जो कह रही है... वो एक दम सच है अपने ऊपर रशीदा को यूँ तड़पते देख कर उसने रशीदा की चूत के दाने को अपने होंठों में भर कर और जोर-जोर से चूसना शुरू कर दिया। रशीदा एक दम से मचल उठी, "ओहहहह सुनीईईल आहहहह आँहहह रियली में बेहद अच्छा आआआह लग रहा है..हाय अल्लाआआहाआआ मेरी फुद्दी आहहह ओहहहह सीईईईई!"

दूसरी तरफ़ सुनील को अपना लंड किसी गीली और गरम चीज़ में घुसता हुआ महसूस हुआ। "आहहह सुनील... तेरा लंड तो सच में बहोत मोटाआआ है... आहहहह मेरी फुद्दी ओहहहह आहहहहह..!" नफ़ीसा धीरे-धीरे सुनील के लंड पर अपनी चूत को दबाती जा रही थी और सुनील के लंड का मोटा सुपाड़ा नफ़ीसा की चूत के अंदर उसकी दीवारों से रगड़ खाता हुआ अंदर जाने लगा। नफ़ीसा के जिस्म अपनी चूत की दीवारों पर सुनील के लंड के रगड़ को महसूस करके थरथराने लगा। उसने अपने आप को किसी तरह से संभालते हुए अपने सामने रशीदा के कंधों पर हाथ रख दिये जो उस वक़्त सुनील के मुँह के ऊपर बैठी उससे अपनी चूत चुसवाते हुई बेहद मस्त हो चुकी थी। "हाय रशीदा ये लौड़ा तो नाफ़ तक अंदर जा रहा है!"

रशीदा भी मस्ती में सिसकते हुए बोली, "आहहहह तो साली ले ले ना पूरा का पूरा अंदर... मज़ा आ जायेगा... आहहह मेरी चूत तो बुरी तरह से फ़ुदक रही है... आहहहह सुनील चूस्स्स्स नाआआ ज़ोर-ज़ोर से!" नफ़ीसा ने अब धीरे-धीरे अपनी गाँड को ऊपर-नीचे करते हुए सुनील के लंड पर अपनी चूत को चोदना शुरू कर दिया था। सुनील का लंड कुछ ही पलों में नफ़ीसा की चूत के चिकने पानी से भीग कर चिकना हो गया और तेजी से अंदर-बाहर होने लगा। "आहहह साले ऐसा लौड़ा रोज़-रोज़ नहीं मिलता चुदवाने के लिये... आआआहहहहह ओहहह ऊहहहह रशीदा मेरी चूत... आहहह कब से घोड़ों और गधों के लौड़ों से चुदने के ख्वाब देखती थी.... आहहह आआआज आआआल्लाआआहह ने मेरी दुआआआ कुबूल कर ली..!" सुनील भी अब तेजी से अपने लंड को ऊपर के तरफ़ उछालने लगा। नफ़ीसा की चूत में सुनील का लंड 'फच्च-फच्च' की आवाज़ करते हुए अंदर-बाहर होने लगा।

नफ़ीसा ने अपने सामने सुनील के चेहरे के ऊपर बैठी रशीदा को अपनी बांहों में जकड़ लिया और रशीदा के होंठों को अपने होंठों में लेकर चूसना शुरू कर दिया। रशीदा भी पूरी तरह गर्म हो चुकी थी। दोनों पागलों की तरह एक दूसरे के होंठों को चूसते हुए एक दूसरे के मुँह में अपनी ज़ुबाने घुसेड़ने लगीं। सुनील ये देख तो नहीं सकता था क्योंकि उसकी आँखें रशीदा के चूतड़ों के पीछे थी लेकिन उसे समझ आ गया था कि दोनों औरतें एक दूसरे से चिपकी हुई चूमा-चाटी में शरीक हैं। सुनील ने रशीदा की चूत के दाने को अपने होंठों में और जोर-जोर से दबा कर चूसना शुरू कर दिया और रशीदा एक दम से मचल उठी। उसका जिस्म अचानक अकड़ कर जोर-जोर से झटके खने लगा। उसने नफ़ीसा को कस के जकड़ किया और अपने होंठों को उसके होंठों से अलग करके जोर-जोर से सिसकते हुए चींखने लगी, "ओहहहह सुनीईईईल आहहहह सुनील मेरी फुद्दी आहहहह हायऽऽऽऽ ओहहहह सीईईईईईई ऊँहहहह सुनीईईईल लेऽऽऽऽ मेरीईईईई फुद्दी के पानी का ज़ायक़ा चख आहहहह ओहहहह!"

रशीदा की चूत से पानी बह निकला और वो काँपते हुए झड़ने लगी और थोड़ी देर बाद निढाल होकर सुनील के बगल में लुढ़क गयी। सुनील का पूरा चेहरा रशीदा की चूत के पानी से भीग गया था। नफ़ीसा ने भी अपनी गाँड को सुनील के लंड पर तेजी से ऊपर-नीचे उछालना शुरू कर दिया और सुनील भी पूरे जोश में अपने चूतड़ उठा-उठा कर नीचे से नफ़ीसा की चूत में अपना लौड़ा ठोकने लगा। थोड़ी देर बाद ही नफ़ीसा की चूत ने भी सुनील के लंड पर पानी छोड़ना शुरू कर दिया और नफ़ीसा भी सुनील के ऊपर लुढ़क गयी। तीनों आपस में लिपटे हुए थोड़ी देर तक अपनी साँसें दुरस्त करते रहे। इस दौरान दोनों औरतों ने सुनील के चेहरे को चाट-चाट कर साफ़ कर दिया जो कि रसीदा की चूत के पानी से सना हुआ था। "ओहहह सुनील तूने तो कमल ही कर दिया..!" रशीदा उसके लंड को हवस ज़दा नज़रों से घूरते हुए बोली। रशीदा को नसीफ़ा आँखों से कुछ इशारा करते हुए बोली, "अरे यार सुनील के लौड़े की सवारी करने से पहले अपनी स्पेशल शेंपेन तो पिला दे!" ये सुनकर रशीदा के होंठों पे कुटिल मुस्कान फैल गयी। सुनील फिर चकरा गया कि अब ये कौनसा नया ट्विस्ट है। "जरूर मेरी जान मुझे वैसे भी लगी हुई थी... बाथरूम में चलेगी मेरे साथ या यहीं ले आऊँ... सुनील भी लेगा क्या?" रशीदा बेड से उठते हुए बोली। "तू यहीं ले आ यार... क्यों सुनील तू भी लेगा ना रशीदा की बनायी हुई स्पेशल शेम्पेन!" सुनील ने पहले कभी शेम्पेन नहीं पी थी और इन दोनों चुदैल औरतों की बातों से उसे शक सा हो रहा था कि कुछ तो गड़बड़ है। इसलिये जब उसने पूछा कि वो दोनों कैसी शेम्पेन की बात कर रही हैं तो दोनों जोर-जोर से हंसने लगी। फिर नफ़ीसा ने हंसी रोकते हुए बताया कि वो दर असल रशीदा के पेशाब की बात कर रही हैं तो ना चाहते हुए भी सुनील को बेहद अजीब लगा और वो फ़ौरन अजीब सा मुँह बनाते हुए बोला, "नहीं नहीं... मुझे नहीं चाहिये!" रशिदा हंसते हुए बोली, "कोई बात नहीं यार... कोई जबर्दस्ती नहीं है!" ये कह कर रशीदा ने मेज पर से दो बड़े-बड़े गिलास उठाये और नशे में झूमती हुई बाथरूम में चली गयी।

रशीदा बाथरूम में कमोड पर बैठ कर गिलासों में मूतने लगी। उसने अभी एक गिलास अपने मूत से भर कर नीचे रखने के बाद दूसरे गिलास में मूतना शुरू ही किया था कि उसे बाहर से नफ़ीसा के तेज सिसकने और कराहने की आवाज़ आयी। "साली राँड चूतमरनी कहीं की... लगता है फिर से उसका लंड चूत में ले कर चुदवाना शुरू कर दिया.... भोंसड़ी की... मुझे भी चुदवाने देगी कि नहीं!" रशीदा बड़बड़ायी। दोनों गिलास अपने मूत से भरने के बाद बाकी उसने कमोड में मूत दिया। जब वो मूत से भरे गिलास लेकर बाहर आयी तो उसने देखा कि नफ़ीसा बेड पर कुत्तिया की तरह अपनी गाँड पीछे की और निकाल कर अपनी कोहनियाँ बिस्तर पर टिकाये हुए झुकी हुई थी। सुनील बिस्तर पर अपने घुटनों को मोड़ कर कुत्तिया बनी नफ़ीसा के ऊपर चढ़ा हुआ था और सुनील का लंड नफ़ीसा की गाँड के छेद में बुरी तरह फंसा हुआ था। "आहहह सुनील आराम सेऽऽऽ ओहहहह तेरा लौड़ा तो मेरी गाँड ही फाड़ देगा.. हाय अल्लाहऽऽ.. मर गयी मैं...!" पीछे खड़ी रशीदा ने एक गिलास बेड की साइड टेबल पे रखा और अपनी सहेली को इस तरह चींखते देख कर मुस्कुरायी और एक गिलास अपने हाथ में पकड़े हुए बेड पर चढ़ गयी। फिर गिलास में से अपने ही मूत के दो तीन घूँट पी कर सुनील के पीठ को सहलाते हुए बोली, "बहोत खूब सुनील... सुभानल्लाह... बजा दे इस गाँडमरी की गाँड का ढोल... पूरे घर में इसकी गाँड का ढोल बजता हुआ सुनायी देना चाहिये..!"

नफ़ीसा सिसकते हुए बोली, "आअहहह चुप कर साली ओहहह हाय अल्लाह आँहहह गाँड मरवाने का असली मज़ा तो ऐसे मूसल जैसे लंड से ही आता है... इस दर्द में भी लज़्ज़त है मेरी जान... अभी थोड़ी देर में मेरी गाँड का ढोल नहीं... पियानो बजता सुनायी देगा तुझे कुत्तिया!" सुनील का अभी आधा लंड ही नफ़ीसा की गाँड में उतरा था और नफ़ीसा को मस्ती और दर्द की तेज लहर अपनी गाँड में महसूस होने लगी थी। सुनील धीरे-धीरे अपना आधा लंड ही नफ़ीसा की गाँड के अंदर बाहर करने लगा। "सुनील यार... ऐसे मज़ा नहीं आयेगा हमारी नफ़ीसा को.. एक नंबर की गाँडमरी है ये... जोर से चाँप साली की गाँड को... फिर देख कैसे इसकी गाँड से पादने की आवाज़ें आती हैं!" रशिदा गिलास में से अपना मूत सिप करते हुए बोली। नफ़ीसा रशीदा की तरफ़ देखते हुए थोड़ा चिढ़ कर बोली, "तू क्यों फ़िक्र कर रही है कुत्तिया... तेरी गाँड का ढोल भी आज फटेगा सुनील के लंड से..!"

"ओहहह भोंसड़ी की... तू इसका लौड़ा छोड़े तब ना... तू ही मरवा ले पहले अपनी गाँड!" रशीदा बोली और गिलास में बचा अपना मूत गतक-गटक पी कर खाली गिलास साइड में रख दिया। सुनील अब नॉर्मल स्पीड से नफ़ीसा की गाँड के छेद में अपना लंड अंदर-बाहर कर रहा था। नफ़ीसा की गाँड अब सुनील के मोटे लंड के मुताबिक एडजस्ट हो गयी थी और उसका दर्द का एहसास बिल्कुल खतम हो चुका था। नफ़ीसा ने भी अपनी गाँड को पीछे की तरफ़ ढकेलना शुरू कर दिया। "आहहहहह ओहहहह येस्स्सऽऽऽ सुनील... और तेज़ मार मेरी गाँड... पूरा का पूरा घुसा दे अपना लौड़ा.... ओहहहह... मैं भी देखूँ कि कितनी अकड़ है तेरे लौड़े में... आहहह आँआहहहहहह...!" सुनील अब पूरी ताकत के साथ अपना मोटा मूसल जैसा लंड नफ़ीसा की गाँड के छेद में अंदर तक पेलने लगा और नफ़ीसा भी किसी मंझी हुई रंडी की तरह अपनी गाँड को पीछे की तरफ़ सुनील के लंड पर ढकेलने लगी।

सुनील ने नफ़ीसा की गाँड को चोदते हुए एक दम से अपने लंड को पूरा बाहर निकला तो उसने देखा कि नफ़ीसा की गाँड का छेद और आसपास का हिस्सा एक दम सुर्ख हो चुका था और अगले ही पल उसने फिर से अपने लंड को एक ही बार में नफ़ीसा की गाँड के छेद में पेल दिया। जैसे ही सुनील के लंड का मोटा सुपाड़ा नफ़ीसा की गाँड के छेद के अंदर की तरफ़ हवा को दबाते हुए बढ़ा और जड़ तक अंदर घुसा तो हवा गाँड के छेद से पुर्रर्र की आवाज़ करते हुए बाहर निकली जिसे सुनते ही नफ़ीसा की गाँड और फुद्दी में सरसराहट दौड़ गयी। "ऊऊऊहहह आआओहहह सुनीईईल तूने तो कमाल ही कर दिया... आहहह मार मेरी गाँड और जोर-जोर से... आँआँहहह ओंओंओंहहहह हाँआआआ ऐसे ही... शाबाश मेरे शेर ओअहहह और तेज... पाद निकाल दे... सुनील... फक मॉय ऐस ओहहहह ओंओंहहह!"

सुनील अब बिना किसी परवाह के नफ़ीसा की गाँड में अपना लंड तेजी से अंदर-बाहर कर रहा था और बीच-बीच में नफ़ीसा की गाँड में से हवा बाहर निकल कर पुर्रर्र-पुर्रर्र की आवाज़ करती और सुनील की जाँघें नफ़ीसा के मोटे चूतड़ों के साथ टकराते हुए ठप-ठप की आवाज़ करती जो कमरे के अंदर नफ़ीसा की मस्ती भरी सिसकियों के साथ गूँजने लगी। थोड़ी ही देर में नफ़ीसा को अपनी गाँड और चूत के छेद में सरसराहट बढ़ती हुई महसूस हुई और फिर नफ़ीसा की चूत ने अपना लावा उगलना शुरू कर दिया। नफ़ीसा आगे की तरफ़ लुढ़क गयी और सुनील का गंदा सना हुआ लंड नफ़ीसा की गाँड से बाहर आकर हवा में झटके खाने लगा।

इस दौरान रशीदा ये सब देखते हुए अपनी चूत को रगड़ रही थी और जैसे ही उसने नफ़ीसा का काम होते देखा तो उसने नफ़ीसा की गाँड में से निकला और गंदगी से सना हुआ लंड लपक कर अपने मुँह में भर लिया और बड़े मज़े से उसे चूस कर साफ़ करने लगी। रशीदा की ये हरकत देखकर सुनील भौंचक्का रह गया लेकिन सुनील ने सोचा कि ये चुदैल औरतें जब पेशाब पी सकती हैं तो फिर ये हर्कत भी उनसे अप्रत्याशित तो नहीं है। चार-पाँच मिनट में ही रशीदा ने उसका लंड चूस-चूस कर और चाटते हुए बिल्कुल साफ़ कर दिया। जितने मज़े और बेसाख्तगी से रशिदा ने नफ़ीसा की गाँड में से निकला गंदा लंड चूस कर साफ़ किया था उससे साफ़ ज़हिर था कि ये उसके लिये कोई नयी बात नहीं थी। सुनील का लंड वायग्रा के असर के कारण अभी भी अकड़ा हुआ था। सुनील पीठ के बल लेटा हुआ था और रशीदा भूखी कुत्तिया की तरह सुनील के ऊपर चढ़ गयी और जोशीले अंदाज़ में सुनील के लंड को पकड़ कर अपनी चूत के छेद पर टिका दिया और गप्प से सुनील के लंड पर अपनी चूत को दबाते हुए बैठ गयी। एक ही पल में सुनील का लंड नफ़ीसा के चूत की गहराइयों में समा चुका था।

"ओहहहह हाऽऽय अलाहऽऽ तेरा लौड़ा तो सच में बहोत बड़ा है सुनील... कमीना नाफ़ तक पहुँच गया महसूस हो रहा है!" रशीदा जोर से सिसकते हुए बोली। "क्यों आपको अच्छा नहीं लगा..." सुनील ने पूछा तो रशीदा उसकी आँखों में झाँकती हुई बोली, "ओहहहह सुनील... ऐसा लौड़ा हासिल करने के लिये ना जाने कितनी मुद्दत से तरस रही थी... काश कि तू दस साल पहले ही मेरी जवानी में मिला होता... ओहहह सुनील... तेरे जैसे लंड वाले लड़के से चुदने का मज़ा ही कुछ और है...!"

"तो अब आप कौन सा बुड्ढी हो गयी हो... एक दम सैक्सी और हॉट हो आप!" सुनील बोला तो रशीदा ने कहा, "अरे मेरी जान... तेरी उम्र का मेरा बेटा है...!" रशीदा ने अपने हाथों को सुनील की चौड़ी छाती पर रखा और अपनी गाँड को ऊपर नीचे करना शुरू कर दिया। सुनील का लंड रशीदा की पनियाई हुई चूत में रगड़ खाता हुआ अंदर-बाहर होने लगा। अपनी चूत और गाँड दोनों चुदवा चुकी नफ़ीसा अपनी सहेली रशीदा के पेशाब से भरा गिलास होंठों से लगा कर सिप करती हुई अपनी नशीली आँखों से उन दोनों को देख कर फिर से सुरूर और मस्ती में आने लगी थी। सुनील रशीदा की चूत में अपना लंड पेलते हुए उसकी गाँड को अपने हाथों से दबा-दबा कर मसलने लगा। नफ़ीसा ने गिलास में भरा रशीदा का सारा मूत पीने के बाद खाली गिलास साइड-टेबल पे रखा और अपने होंठों पे ज़ुबान फिराती हुई वो रशीदा के पीछे आ गयी और बोली, "सुनील चल इस साली राँड की गाँड को खोल दे तो मैं इसकी गाँड को नरम कर दूँ... फिर इसकी गाँड का ढोल भी तो बजाना है..!"

सुनील ने रशीदा की गाँड को दोनों तरफ़ से पकड़ कर फैला दिया। जैसे ही रशीदा की गाँड का छेद नफ़ीसा की हवस ज़दा आँखों के सामने आया तो नफ़ीसा ने झुक कर अपनी ज़ुबान रशीदा की गाँड के छेद पर लगा दी। "ऊँऊँहहहह याल्लाहऽऽऽ... आहहहह ओहहह नफ़ीसाऽऽऽ मेरीईईई जान क्या कर रही है.... ओहहहह सक मीईईई ओहहह येस्स्स्स.!" सुनील के लौड़े पर ऊपर-नीचे कूदती हुई रशीदा अपनी गाँड के छेद पर नफ़ीसा की ज़ुबान महसूस करती हुई मचल कर जोर से सिसक उठी। नीचे लेटा सुनील रशीदा की मस्ती भरी सिसकारियाँ सुन कर और ज्यादा जोश में आ गया और अपनी कमर को तेजी से ऊपर की ओर उछालने लगा। सुनील का लंड रेल-इंजन के पिस्टन की तरह रशीदा की चूत के अंदर बाहर होने लगा। "ओहहहह सुनील आहहहह ऐसे ही... और तेज़ तेज़ ऊऊऊँऊँहहह ऊऊऊहहहह ओहहहह सुनील मेरी जान...!" रशीदा अब एक दम मस्त हो चुकी थी। उसने झुक कर सुनील के होंठों को अपने होंठों में भर कर चूसना शुरू कर दिया। उधर नफ़ीसा पीछे से रशीदा की गाँड में अपनी ज़ुबान घुसेड़-घुसेड़ कर चूसती हुई रशीदा की मस्ती में इज़ाफ़ा कर रही थी। लेस्बियन चुदाई के वक़्त दोनों औरतें अक्सर एक दूसरी की गाँड ज़ुबान से चाटने के साथ-साथ गाँड में अंदर तक उंगलियाँ घुसेड़-घुसेड़ कर गंदगी से सनी हुई उंगलियाँ खूब मज़े से चाट जाती थीं और एक-दूसरे के पाद सूँघने में भी उन्हें बेहद मज़ा आता था।

रशीदा के मुँह से "ऊँहहह ऊँहहह" जैसी सिसकारियों के आवाज़ें आने लगी और फिर उसका जिस्म एक दम ऐंठने लगा। जिस्म का सारा लहू उसे अपनी चूत की तरफ़ दौड़ता हुआ महसूस हुआ और अगले ही पल रशीदा की चूत से गाढ़े लेसदार पानी की धार बह निकाली। रशीदा बुरी तरह काँपते हुए झड़ने लगी और फिर सुनील के ऊपर निढाल होकर गिर पढ़ी। रूम में एक दम से सन्नाटा सा छा गया। थोड़ी देर बाद साँसें बहाल होने पर रशीदा सुनील के ऊपर से उतर कर बेड पे लेट गयी सुनील ने नफ़ीसा के कहने पर रशीदा की गाँड के नीचे एक तकिया लगा कर उसकी गाँड ऊपर उठा दी। नफ़ीसा ने पहले ही उसकी गाँड के छेद को अपनी जीभ और उंगलियों से चोद कर नरम कर दिया था। सुनील ने जैसे ही अपने लंड का सुपाड़ा रशीदा की गाँड के छेद पर रख कर दबाया तो सुनील के लंड का सुपाड़ा रशीदा की गाँड के छेद को फैलाता हुआ अंदर की ओर फिसल गया। सुनील के लंड का सुपाड़ा जैसे ही रशीदा की गाँड के छेद में घुसा तो रशीदा की आँखें फैल गयी और साँसें जैसे अटक गयी हों। "सुनील... फ़िक्र करने के जरूरत नहीं है... शाबाश मेरे शेर... फाड़ दे इस राँड की गाँड भी...!" नफ़ीसा ने नीचे झुक कर सुनील के टट्टों को सहलाते हुए कहा। रशीदा पत्थरायी हुई आँखों से सुनील को देख रही थी और अगले ही पल सुनील ने एक ज़ोरदार झटका मारा। "हाआआआयल्लाआआआआह.. फाआआड़ दी ना मेरी गाँड ओहहहहह.. ऊँऊँहहह.!"

"अभी तो शुरुआत है मेरी जान... आगे-आगे देख कितना मज़ा आता है... देख तेरी गाँड के आज कैसे चिथड़े उड़ते हैं..!" नफ़ीसा ने कहा और फिर सुनील से बोली, "सुनील कोई रहम मत करना इस राँड पे... खूब गाँड मरवायी हुई है इसने... कुछ नहीं होगा इसे!" ये सुनते ही सुनील ने एक बार और करारा झटका मार कर अपना पूरा का पूरा लंड रशीदा की गाँड के छेद में चाँप दिया। रशीदा के चेहरे पर दर्द के आसार देख कर नफ़ीसा का दिल उसके लिये पिघल गया। उसने झुक कर पहले रशीदा की चूत की फ़ाँकों को फैलाया और उसकी चूत के मोटे अंगूर जैसे दाने को बाहर निकला कर अपने मुँह में भर लिया। जैसे ही रशीदा के चूत का दाना नफ़ीसा के मुँह में गया तो रशीदा एक बार फिर से सिसक उठी, "आआहहहह चूस साआलीईईई... मेरीईईई चूत ओहहह नफ़ीसाआआआ... चाट ले मेरे चूत ओहहहह देख तेरे सहेली की चूत ने आज कितना रस बहाया है..!"

नफ़ीसा ने भी रशीदा की बात सुनते हुए उसकी चूत के छेद पर अपना मुँह लगा दिया और उसकी चूत की फ़ाँकों और छेद को चाटते हुए उसकी चूत से निकल रहे गाढ़े लेसदार पानी को चाटने लगी। उसने रशीदा की चूत चाटते हुए सुनील की जाँघ पे चपत लगा कर धक्के लगाने का इशारा किया और सुनील ने धीरे-धीरे अपना लंड बाहर निकाल कर अंदर पेलना शुरू कर दिया। सुनील का लंड पुरी तरह फंसता हुआ रशीदा की गाँड के छेद के अंदर-बाहर हो रहा था। रशीदा की चूत चाटते हुए नफ़ीसा की नाक सुनील के लंड की जड़ में टकरा रही थी। कुछ ही पलों में रशीदा भी अपने रंग में आ गयी। सुनील का लंड जब उसकी गाँड के छेद में अंदर-बाहर होता तो उसके जिस्म में मस्ती की लहरें दौड़ जातीं। "ओहहहह सुनील येस्स्स फक मॉय ऐस ओहहहहहह फाड़ दे मेरी गाँड... ओहह आहहहह ऊँहहहह आहहहहह.!"

सुनील ने भी ऐसे कस-कस के शॉट्स लगाये कि रशीदा की गाँड में सुरसुरी दौड़ने लगी। अब सुनील अपना पूरा लंड बाहर निकाल-निकाल कर रशीदा की गाँड में पेल रहा था और रशीदा की चूत का पानी और नफ़ीसा का थूक बह कर सुनील के लंड गीला कर रहा था। एक बार फिर से वही पुर्रर्र-पुर्रर्र की आवाज़ें रशीदा की सिसकारियों के साथ मिलकर पूरे कमरे में गूँजने लगी। रशीदा और नफ़िसा दोनों की चूत की धुनकी बज उठी... खासतौर पर रशीदा की चूत बुरी तरह कुलबुलाने लगी और वो "आहहहह ओहहहह सुनील... आहहहहह ऊँहहह आआईईई" करते हुए झड़ने लगी। सुनील ने भी अपनी रफ़्तार को चरम तक पहुँचा दिया जिससे बेड भी चरमराने लगा। "ओहहहह सुनील इसकी गाँड के अंदर नहीं झड़ना... हमें तेरे लंड के पानी का ज़ायक़ा चखना है...!" नफ़ीसा बोली तो सुनील ने जल्दी से अपना लंड बाहर निकाल लिया। नफ़ीसा ने जल्दी से घुटनों के बल बैठते हुए सुनील के लंड को अपने हाथ में ली लिया और उसके लंड के सुपाड़ा पर अपनी जीभ फेरते हुए उसपे अपनी सहेली की गाँड की गंदगी चाटने लगी। रशीदा भी भी रंडी की तरह सुनील के टट्टों को अपने मुँह मैं भर कर चूसने लगी और अपनी ही गाँड का ज़ायक़ा लेने लगी। कुछ ही पलों में सुनील के लंड की नसें फूलने लगी और फिर जैसे ही दोनों रंडियों को अंदाज़ा हुआ कि सुनील के लंड से अब मनी इखराज़ होने वाली है... दोनों ने अपने मुँह खोल लिये और फिर सुनील के लंड से वीर्य की लंबी-लंबी पिचकारियाँ निकलने लगी जो सीधा जाकर दोनों के मुँह और मम्मों पर गिरने लगी। सुनील के लंड इतना पानी निकला कि दोनों के चेहरे और मम्मे पूरी तरह से सन गये। फिर सुनील झड़ने के बाद बेड पर लेट गया और दोनों औरतें एक दूसरे का चेहरे और मम्मे चाटते हुए सुनील की मनी का ज़ायका लेने लगीं। तीनों सुबह तीन बजे तक चुदाई का खेल खेलते रहे और सुबह तीन बजे सोये।
 
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#15
फिर सुबह नफ़ीसा ने सुनील और रशीदा को आठ बजे उठाया। सुनील ने अपने कपड़े पहने और घर की तरफ़ चला गया। जैसे ही उसने घर पहुँच कर डोर-बेल बजायी तो रुखसाना ने दरवाजा खोला और सुनील दुआ-सलाम के बाद ऊपर चला गया। ऊपर जाने के बाद सुनील फ्रेश हुआ और नाश्ता करके फिर से स्टेशन पर पहुँच गया। जब सुनील वहाँ पहुँचा तो नफ़ीसा और रशीदा भी आ चुकी थी। तीनों ने एक दूसरे के तरफ़ देखा और मुस्कुरा पड़े।

उस दिन जब सुनील रात को घर आया तो रुखसाना घर पे अकेली थी सानिया को नज़ीला अपने साथ अपने घर ले गयी थी क्योंकि उसका शौहर और बेटा नज़ीला के ससुर के पास गये हुए थे। इसलिये वो सानिया को अपने साथ ले गयी थी और सानिया को आज रात वहीं सोना था। इधर फ़ारूक़ भी दो-तीन दिनों के लिये अपने डिपार्टमेंट के काम से हाजीपुर हेडक्वार्टर ऑफ़िस गया हुआ था। इसलिये रुखसाना बेहद खुश थी कि आज तो पूरी रात वो सुनील के साथ खुल कर मज़े कर सकेगी। सानिया और नज़ीला के जाने के बाद रुखसाना बहुत अच्छे से तैयार हुई थी। उसने दो दिन पहले ही खरीदा नया जोड़ा पहना था... बेहद गहरे सब्ज़ रंग की सिल्क की स्लीवलेस कमीज़ जिसपे सुनहरे धागे और क्रिस्टल की कढ़ाई थी और झीनी जारजेट की प्रिंटिड काली सलवार जिस्में नीचे लाइनिंग लगी थी... सिर्फ़ एक हाथ में हरी चूड़ियाँ और पैरों में मेल खाते गोल्डन रंग के बेहद ऊँची पेंसिल हील वाले खूबसूरत प्लेटफॉर्म सैंडल। सुनील ने घर में दाखिल होते ही हर रोज़ की तरह रुखसाना की खूबसूरती और उसके लिबास की तारीफ़ की और घर में कोई और नज़र नहीं आया तो रुखसाना को आगोश में लेकर उसके होंठों पे एक चुम्मी देकर फ्रेश होने ऊपर चला गया।

फ्रेश होकर थोड़ी देर के बाद नीचे खाने के लिये आया तो रुख्साना ने मानी-खेज़ मुस्कुराहट के साथ उसे बताया कि आज सानिया नज़ीला भाभी के घर पर है और रात को भी वहीं सोयेगी... और फ़ारूक भी टूर पे गया है... तो ये सुन कर सुनील का कोई खास रीऐक्शन ना देख कर रुखसाना को बेहद हैरानी हुई। जब से सानिया नज़ीला के घर गयी थी तब से ये सोच-सोच कर कि आज वो और सुनील फिर से घर में बिल्कुल अकेले हैं और सुनील जरूर उसे शराब पिलाकर फ़ुर्सत से उसकी फुद्दी और गाँड मारेगा और जन्नत की सैर करवायेगा... रुखसाना का बुरा हाल था। चूत शाम से चुलचुला रही थी पर सुनील आज जैसे किसी और ही दुनिया में था। सुनील ने चुपचाप खाना खाया और रुखसाना को बस आगोश में लेकर चूमते हुए गुड-नाईट कह कर ऊपर चला गया। दर असल सुनील थका हुआ था क्योंकि पिछली रात मुश्किल से चार-पाँच घंटे ही सोया था और नफ़ीसा और रशिदा ने उसे पूरी रात बिल्कुल निचोड़ कर रख दिया था। लेकिन रुखसाना तो इस बात से अंजान थी। उसने सोचा था कि जब सुनील को पता चलेगा कि आज वो दोनों अकेले हैं तो वो खुद को रोक नहीं पायेगा और उसे अपनी बाहों में कसके पूरी रात खूब प्यार करेगा... खूब चोदेगा... पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।

सुनील के ऊपर जाने के बाद रुखसाना ने मायूस होकर किचन संभाली और अपने बेडरूम में चली गयी। पर रुखसाना का बुरा हाल था... उसका पूरा जिस्म सुलग रहा था... दिल चाह रहा था कि सुनील अभी आकर उसे बाहों में जकड़ कर उसके जिस्म को पीस दे... और चूत तो कब से बिलबिला रही थी। रुखसाना को बड़ी मुश्किल से आज मौका मिला था जो उसे ज़ाया होता नज़र आ रहा था। वो सोच रही थी सुनील तो खुद हमेशा ज़रा सा भी मौका देखते ही उसे अपने आगोश में भर कर चूमने और दबोचने लगता था... उसकी चूत या गाँड मारने के लिये बेकरार रहता था तो आज इतने दिन बाद अच्छा मौका मिलने पर भी उसे क्या हो गया.... शायद कल सारी रात स्टेशन पे नाइट-ड्यूटी के बाद आज फिर सारा दिन काम करने की वजह से थका होगा। रुखसाना से बर्दाश्त नहीं हो रहा था तो उसने खुद ऊपर जाने का फैसला किया... प्यासे को ही कुंए के पास जाना पड़ता है... और इस वक़्त उसके जिस्म की प्यास सिर्फ़ सुनील और उसका लंड ही बुझा सकता था। उसने सोचा कि अगर सुनील थका भी है तो वो उसे अपने हुस्न और प्यार की बारिश में नहला कर उसकी थकान दूर कर देगी।

ये सब सोच कर वो खड़ी हुई एक बार आइने के सामने अपना मेक-अप दुरुस्त किया और खुद अपनी फुद्दी चुदवाने ऊपर की तरफ़ चल दी। वो ऊपर पहुँची, तो उसे छत के दूसरी तरफ़ बने हुए बाथरूम में कुछ आवाज़ सुनायी दी। सुनील बाथरूम में नहा रहा था। रुखसाना सुनील के कमरे में चली गयी। कमरे में सिर्फ़ टेबल लैम्प जल रहा था। उसे मालूम था कि सुनील की अलमारी में व्हिस्की की बोतल होगी तो उसने अलमारी खोल कर बोतल निकाल ली और दो गिलासों में पैग तैयार लिये। फिर अपना गिलास लेकर वो सुनील के बेड पर पैर नीचे लटका कर बैठ गयी और सुनील के आने का इंतज़ार करते हुए सिप करने लगी। वो आज मदहोश होकर बेफ़िक्र होकर चुदवाने के मूड में थी। थोड़ी देर बाद सुनील के कदमों की आहट कमरे की तरफ़ बढ़ती हुई सुनायी दी तो रुखसाना का दिल धड़कने लगा। थोड़ी देर बाद सुनील अंदर आया तो रुखसाना ने नशीली नज़रों से मुस्कुराते हुए उसकी तरफ़ देखा। सुनील सिर्फ़ अंडरवियर पहने हुए था। सुनील भी रुखसाना को अपने बेड पर बैठ कर व्हिस्की पीते हुए देख कर समझ गया था कि रुखसाना उसके कमरे में क्यों आयी है। सुनील कुछ बोला नहीं और उसने कमरे की ट्यूब लाइट भी ऑन कर दी। फिर टेबल पर से अपना गिलास और साथ ही व्हिस्की की बोतल भी लेकर रुखसाना के सामने आकर खड़ा हो गया। रुखसाना का गिलास तकरीबन खाली हो चुका था तो सुनील ने उसका गिलास आधे से ज्यादा व्हिस्की से भर दिया और फिर उसके गिलास से अपना गिलास टकरा कर मुस्कुराते हुए बोला, "चियर्स भाभी... अब फटाफट खींच दो..!" य़े कहकर सुनील अपना पैग एक साँस में गटक गया और रुखसाना ने भी तीन-चार घूँट में ही तीन-चौथाई भरा गिलास खाली कर दिया जो कि तीन-चार पैग के बराबर था।

सुनील ने अपना और रुखसाना का गिलास टेबल पर रख दिया फिर उसके सामने आकर खड़ा हो गया और अंडरवियर के ऊपर से अपना लंद मसलते हुए बोला, "कसम से भाभी... कुछ ज्यादा ही गज़ब लग रही हो आज तो... कि इतनी थकान के बाद भी आपका दिल तो रखना ही पड़ेगा... ये लो अपका दिलबर!" और ये कहते हुए उसने एक झटके में अपना अंडरवियर उतार फेंका। उसका आधा खड़ा लंड रुखसाना के चेहरे के सामने लहराने लगा। सुनील के लंड को रुखसाना प्यार से अपना दिलबर बुलाती थी। अपनी आँखों के सामने सुनील का लौड़ा लहराते देख उसकी आँखें हवस से चमक उठीं और उसने फ़ौरन उसे अपने हाठों में लेकर सहलाते हुए उसके सुपाड़े पर अपने होंठ रख दिये और फिर चुप्पे लगाने लगी। शराब के नशे की खुमारी धीरे-धीरे रुखसाना पे छाने लगी थी। सुनील का लौड़ा जल्दी ही फूल कर बिल्कुल सख्त हो गया। रुखसाना की राल से उसका लंड बेहद सन गया था। सुनील ने सिसकते हुए रुखसाना का सिर पीछे से कस कर पकड़ लिया और अपना लौड़ा उसके मुँह में ठेलने लगा। जैसे ही सुनील का लौड़ा उसके हलक में पहुँचा तो रुखसाना का दम घुटने लगा और उसने पीछे हटने की कोशिश की लेकिन सुनील ने उसका सिर कस के पकड़े रखा और जितना मुमकिन हो सकता था अपना लंड उसके हलक में ठूँस दिया। रुखसाना की आँखों में पानी भर आया और वो बाहर को निकल आयीं। वो नाक से लंबी-लंबी साँसें लेने लगी।

सुनील ने इसी तरह वहशियाना ढंग से रुखसाना का मुँह अपने लौड़े से चोदना शुरू कर दिया। वो बीच-बीच में धक्के ज़रा धीमे कर देता ताकि रुखसाना साँस ले सके और फिर ज़ोर-ज़ोर से रुखसाना के हलक तक धक्के मारने लगता। रुखसाना के मुँह से ठुड्डी तक लार बह कर नीचे टपकने लगी। रुखसाना को सुनील का लंड अपने हलक के नीचे उतरता हुआ महसूस हो रहा था और बार-बार साँस घुटने से उसके मुँह से गों-गों की आवाज़ें आ रही थीं लेकिन फिर भी सुनील का वहशियानापन कहीं ना कहीं रुखसाना की हवस भड़का रहा था। फिर सुनील अचानक अपना लौड़ा रुखसाना के होंठों से हटाते हुए बोला, "उतारो... भाभी!" रुखसाना ने राहत की साँस लेते हुए चौंक कर उसकी तरफ़ देखा तो सुनील ने हल्की सी मुस्कुराहट के साथ फिर से कहा, "अपनी सलवार उतारो..!" रुखसाना तो शराब के नशे की खुमारी और चुदासी मस्ती के आलम में थी... उसकी भीगी चूत लंड लेने के लिये मचमचा रही थी। रुखसाना ने वैसे ही बैठे-बैठे अपनी कमीज़ के नीचे हाथ डाल कर अपनी सलवार का नाड़ा खोलना शुरू कर दिया। रुखसाना ने सलवार का नाड़ा खोलते हुए एक बार नज़र उठा कर सुनील की आँखों में देखा और फिर अपनी सलवार उतार कर बेड के एक तरफ़ रख दी। उसने जानबूझ कर पैंटी नहीं पहनी हुई थी। सुनील ने नीचे झुक कर उसकी टाँगों को पकड़ कर ऊपर उठा दिया जिसकी वजह से रुखसाना बेड पर पीछे की तरफ़ लुढ़क गयी। सुनील ने फिर उसे टाँगों से घसीट कर्र बेड पर सीधा लिटा दिया और उसकी टाँगों को खोल कर जाँघों के बीच में आ गया। उसने अपने लंड को एक हाथ से पकड़ा और रुखसाना की चूत की फ़ाँकों पर रगड़ते हुए अपनी एक उंगली को उसकी चूत के छेद के बीच में घुसा कर बोला, "भाभी आपकी चूत तो पहले से ही लार टपका रही है!"

सुनील की बात सुन कर रुखसाना ने मुस्कुराते हुए उसकी चौड़ी छाती में मुक्का झड़ दिया, "इसका तो शाम से ही ये हाल है... पर तुझे क्या फ़र्क पड़ता है... हरजाई कहीं का!" रुखसाना के जवाब में सुनील बोला, "तो ये लो भाभी मेरी जान!" और अपना लंड रुखसाना की चूत में एक धक्के के साथ पेल दिया। "आआआऊऊऊहहहह याल्लाआआहहहह ऊऊहहहह आहहहहह" रुखसाना जोर से सिसकते हुए सुनील से चिपक गयी। सुनील ने झुक कर उसके होंठों को अपने होंठों में भर लिया और तेजी से अपने लंड को अंदर-बाहर करते हुए रुखसाना के होंठों को चूसने लगा। रुखसाना मस्ती के समंदर में गोते खाते हुए सुनील के नीचे मचल रही थी और वो लगातार अपना मूसल उसकी चूत में चला रहा था। रुखसना को अपनी चूत की दीवारों पे सुनील के लंड की रगड़ इंतेहाई लज़्ज़त दे रही थी। रुखसाना के हाथ खुद-ब-खुद सुनील की पीठ पर कसते चले गये। उसने अपनी टाँगें उठा कर सुनील की गाँड के नीचे लपेट कर कैंची की तरह कस दीं और उसकी खुद की गाँड बेकाबू होकर अपने आप ऊपर की और उछलने लगी। करीब दस मिनट की धुंआधार चुदाई में ही रुखसाना मस्ती के सातवें आसमान पे उड़ने लगी और फिर उसकी चूत में तेज सिकुड़न होने लगी और उसकी चूत ने सुनील के लंड के टोपे को चूमते हुए उस पर अपना प्यार भरा रस लुटाना शुरू कर दिया। सुनील भी चंद और झटकों के बाद रुखसाना की चूत में ही झड़ने लगा। झड़ने के बाद रुखसाना को बेहद सकुन मिल रहा था। शाम से जिसके लिये वो तड़प रही थी... उस लौड़े ने दस मिनट में रुकसाना को दुनिया भर की जन्नत की सैर करवा दी थी।

उसके बाद देर रात तक दोनों चुदाई के मज़े लूटते रहे। सुनील ने रुखसाना की गाँड भी मारी और फिर पहली दफ़ा सुनील ने रुखसाना की गाँड में से निकला गंदा लंड उससे चुसवाया। दरसल सुनील ने उसकी गाँड मारने के फ़ौरन बाद अपना गंदा लंड अचानक ही रुखसाना के मुँह में दे दिया। नशे और मस्ती के आलम में पहले तो रुखसाना को एहसास नहीं हुआ और जब उसे एहसास हुआ तब तक काफ़ी देर हो चुकी थी और वो अपने मुँह में चूसते हुए उसपे ज़ुबान फिरा कर चुप्पे लगाते उसका गंदा लंड पुरी तरह चाट चुकी थी। आखिर में दोनों बिल्कुल नंगे एक दूसरे के आगोश में लेट कर सो गये। रात के तीन बजे के करीब रुखसाना की आँख खुली तो उसने देखा कि सुनील गहरी नींद में सोया हुआ था। कमेरे में ट्यूब लाइट अभी भी चालू थी। रुखसाना को पेशाब भी लगी थी तो उसने बिस्तर से उतर कर सिर्फ़ अपनी कमीज़ पहन ली। फिर सुनील के नंगे जिस्म और मुर्झाये हुए लंड को उसने एक बार प्यार भरी नज़र से देखा और फिर लाईट बंद करके कमरे से बाहर निकल गयी। शराब के नशे की खुमारी अभी भी छायी हुई थी तो रुखसाना झूमती हुई हाई पेन्सिल हील के सैंडलों में आहिस्ता-आहिस्ता सीढ़ियाँ उतर कर अपने कमरे में आयी और बाथरूम में जा कर पेशाब करने के बाद उसी हालत में अपने बेड पर आकर लेट गयी। भले ही वो हवस के नशे में और जिस्मानी सुकून के लिये ये सब कुछ कर रही थी पर दिल के एक कोने में उसे ये ख्याल आ रहा था कि यही उसका वजूद है... वो जिस्मानी रिश्ते के साथ-साथ कहीं ना कहीं सुनील में अपनी मोहब्बत भी ढूँढ रही थी पर उसे एहसास हो गया था कि सुनील के लिये शायद वो सिर्फ़ सैक्स और मौज मस्ती करने की जरूरत है। वो सोच रही थी कि क्या सुनील उसे सिर्फ़ उसके हसीन जिस्म के लिये चाहता है... और वो खुद भी क्या से क्या बन गयी है.... वो खुद भी तो सुनील के ज़रिये अपनी हवस की आग बुझा रही है... एक शादीशुदा औरत होकर भी वो आधी रात को अपने से आधी उम्र से भी कम जवान लड़के के कमरे में जाकर खुद अपने कपड़े उतार के नंगी होके अपनी टाँगें और चूत खोल कर शराब के नशे में उससे चुदवाती है... उससे गाँड मरवाती है... अपनी गाँड में से निकला उसका गंदा लंड चाट कर चुप्पे लगाती है... बेहयाई से खुल कर गंदी- गंदी अश्लील बातें और गालियाँ बोलती है...! लेकिन इसमें गलत भी क्या है... उसका शौहर तो उसे छोड़ कर अपनी भाभी का गुलाम बना हुआ है... इतने सालों से वो अपनी हसरतों का गला घोंटती रही थी पर जब से सुनील से रिश्ता बना है उसकी ज़िंदगी कितनी खुशगवार हो गयी है... यही सब उधेड़बुन उसके दिमाग में चल रही थी कि पता नहीं कब उसे नींद आ गयी।

सुबह सात बजे रुखसाना उठी और खुद तैयार होकर नाश्ता तैयार करने लगी। इतने में सानिया भी आ गयी और वो भी कॉलेज जाने के लिये जल्दी से तैयार हुई। फिर तीनों ने एक साथ नाश्ता किया। जैसे ही सुनील नाश्ता करके उठा तो उसने सानिया से पूछा, "तुम्हें कॉलेज जाना हो तो छोड़ दूँ..?" सानिया ने सुनील की बात सुनते ही रुखसाना की तरफ़ देखा तो रुखसाना ने रज़ामंदी में सिर हिला दिया। सानिया ने अपना बैक-पैक कंधे पे लटकाया और फिर वो सुनील की बाइक के पीछे बैठ कर चली गयी। दर असल अब सुनील सानिया को अपने नीचे लिटाने की फ़िराक़ में था जिसका रुखसाना को अंदाज़ा नहीं था।

उस दिन जब दोनों बाइक पर निकले तो सानिया के दिमाग में उस शाम की बातें घूम रही थी जब सुनील ने उसे कहा था कि उसके कॉलेज के लड़के उसे देख कर गंदे-गंदे कमेंट्स कर रहे थे। सानिया जवान थी और उसकी चूत में खूब चुलचुलाहट होती थी। सानिया ने सुनील के बाइक पीछे बैठे हुए पूछा, "उस दिन तुमने ये क्यों कहा था कि वो लड़के जो भी मेरे बारे में गंदे कमेंट्स कर रहे थे... वो सही है... क्या मैं तुम्हें ऐसी लड़की लगती हूँ...?"

सुनील बोला, "नहीं-नहीं... मेरा मतलब वो नहीं था...!"

"तो फिर तुम्हारा मतलब क्या था... अगर कोई बोले कि मैं चालू लड़की हूँ तो तुम सच मान लोगे..?" सानिया ने नाराज़गी ज़ाहिर की तो सुनील बोला, "नहीं बिल्कुल नहीं... मैं किसी की कही हुई बातों पर यकीन नहीं करता..!"

"फिर तुमने क्यों कहा कि वो लड़के जो भी कह रहे थे सच कह रहे थे...?" सनिया बोली। "हाँ सच कह रहे थे... वो तुम्हारे जिस्म के बारे में कुछ गलत शब्द इस्तेमाल कर रहे थे... पर उन्होंने जो भी तुम्हारे फ़िगर के बारे में कहा... एक दम सच कहा था..!" सुनील ने कहा तो सानिया उसकी बात सुन कर थोड़ा शरमा गयी। दोनों में से कुछ देर कोई भी कुछ ना बोला। सानिया का दिल जोरों से धड़क रहा था। उसका दिल बार-बार गुदगुदा रहा था। "वैसे क्या बोल रहे थे वो कमीने मेरे बारे में...?" सानिया का दिल अब सुनील से अपने बारे में सुनने को बेचैन होता जा रहा था। "वो कमीने जो भी बोल रहे थे उसे छोड़ो... मैं नहीं बता सकता!" सुनील बोला। "क्यों..?" सानिया ने पूछा तो सुनील बोला, "क्योंकि इस तरह तो मैं भी कमीना हुआ ना?"

"तुम क्यों? मैंने तुम्हें थोड़ा ना कहा है!" सानिया ने कहा। "कहा तो नहीं पर मुझे उनकी बातें सही लगी... अगर तुम सुनोगी तो तुम्हें लगेगा कि मैं भी उनकी तरह ही कमीना हूँ क्योंकि मैं भी उनके बातों से सहमत हूँ..!" सुनील की ये बात सुन कर सानिया बोली, "अरे तौबा मैं तुम्हें ऐसा नहीं कह सकती..!"

"चलो छोड़ो सब... तुम बेकार ही परेशान हो गयी!" सुनील ने कहा लेकिन सानिया बोली, "नहीं एक बार पता तो चले वो हरामजादे कह क्या रहे थे..!" सानिया बेझिझक कमीने और हरामजादे जैसे अल्फ़ाज़ बोल रही थी। सुनील ने कहा, "अभी नहीं... अभी तुम्हारा कॉलेज आने वाला है!" थोड़ी देर बाद सानिया का कॉलेज आ गया। सानिया सुनील की तरफ़ देख कर एक बार मुस्कुरायी और फिर कॉलेज की तरफ़ जाने लगी। "सानिया तुम्हारा कॉलेज कितने बजे खतम होता है..?" सानिया ने सुनील की तरफ़ मुड़ कर देखा और बोली, "साढ़े तीन बजे... क्यों?" सुनील ने एक बार गहरी साँस ली और फिर हिम्मत करते हुए बोला, "मेरे साथ घूमने चलोगी..?" जैसे ही सुनील ने सानिया से ये बात कही तो सानिया के दिल धड़कन बढ़ गयी। आज तक सानिया किसी लड़के के साथ डेट पर नहीं गयी थी। "बोला ना... चलोगी..?" सुनील ने फिर पूछा तो सानिया बोली, "अगर अम्मी को पता चला तो..!" सुनील बोला, "नहीं पता चलेगा... तुम बारह बजे छुट्टी लेकर आ सकती हो?" सानिया ने हाँ में सर हिला दिया और बोली, "पक्का ना... घर पर तो किसी को पता नहीं चलेगा..?" सानिया तो खुद ही सुनील के साथ वक़्त बिताने को बेताब थी पर थोड़ी शरम-हया और घर वालों का डर अभी तक उसे बाँधे हुए थे। अब जब कि उसके ख्वाबों का शहज़ादा उसे खुद साथ में चलने को कह रहा था तो वो भला कैसे इंकार कर सकती थी! "ठीक है मैं बारह बजे आ जाऊँगी!" सानिया ने मुस्कुराते हुए कहा।

उसके बाद सुनील स्टेशन पर आ गया। सुनील ने ग्यारह बजे तक वहाँ काम किया और फिर वो उठ कर रशीदा के कैबिन में चला गया। "आओ सुनील... बैठो... कैसे हो?" रशीदा ने कहा तो सुनील बैठते हुए बोला, "मैं ठीक हूँ मैडम... मेरा एक काम करेंगी..?" ये सुनकर रशीदा कमीनगी से मुस्कुराते हुए बोली, "हाय मैं तो हमेशा तैयार हूँ... चल आजा टॉयलेट में?"

"नहीं-नहीं... वो काम नहीं... दर असल एक और जरूरी काम है... मुझे थोड़ी देर बाद निकलना है और आज अज़मल साहब भी नहीं हैं पर्मिशन लेने के लिये... अगर कोई और पूछे या अज़मल साहब कॉल करें तो क्या आप संभाल लोगी?" सुनील ने कहा तो रशीदा बोली, "हाँ-हाँ क्यों नहीं... ये भी कोई बात है.. अरे तुम जान माँग लो तो वो भी हम हंसते हुए दे देंगे..!"

उसके बाद सुनील साढ़े ग्यारह सानिया के कॉलेज के लिये निकल गया। सुनील ठीक बारह बजे सानिया के कॉलेज के बाहर पहुँच गया। थोड़ी देर इंतज़ार करने के बाद उसे सानिया कॉलेज के गेट से बाहर आती हुई नज़र आयी। सानिया बेहद खूबसूरत और सैक्सी लग रही थी। उसने बेबी पिंक कुर्ती-टॉप के साथ सफ़ेद कैप्री और बेबी पिंक रंग की ही ऊँची वेज हील वाली सैंडल पहनी हुई थी। अपने बाल उसने पीछे पोनी टेल में बाँधे हुए थे और होंठों पे हल्की गुलाबी लिपस्टिक थी। कॉलेज के गेट से बाहर आकर सानिया बिना कुछ बोले सुनील के पीछे बाइक पर दोनों तरफ़ पैर करके बैठ गयी। सुनील बाइक चलाने लगा पर उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो सानिया को लेकर कहाँ जाये। "कहाँ चलें...?" सुनील ने आगे रास्ते पर देखते हुए पूछा तो सानिया उसके दोनों कंधों पे अपने हाथ रखते हुए बोली, "कहीं भी... जहाँ तुम्हारा दिल करे वहाँ ले चलो!"

"तुम्हें कोई ऐसी जगह पता है जहाँ पर हम दोनों अकेले कुछ देर तक बातें कर सकें?" सुनील ने पूछा। सानिया का दिल सुनील की बातें सुन कर मचलने लगा। सानिया की कईं सहेलियाँ अपने बॉय फ्रेंड्स के किस्से उसे सुनाया करती थीं कि कैसे उनके बॉय फ़्रेंड ने उन्हें बाँहों में भरा... कैसे किस किया... कहाँ-कहाँ हाथ लगाया... एक दो सहेलियों ने तो अपने बॉय फ्रेंड के लौड़े चूसने और चुदने के किस्से भी बयान किये थे। ये सब बातें सुन-सुन कर सानिया का दिल भी मचलने लगता था पर सानिया अपने खूंसठ बाप फ़ारूक से डरती थी और खासतौर पर बदनामी के डर से भी उसने खुद पे काबू रखा हुआ था और रोज़ाना खुद-लज़्ज़ती करके अपनी हवस की आग बुझानी पड़ती थी। सानिया बोली, "मालूम नहीं पर मेरी एक सहेली ने बताया था कि शहर के बाहर हाईवे पर एक बहोत बड़ा नेश्नल पार्क है... जंगल सा है... पर काफ़ी लोग वहाँ घूमने जाते हैं!"

उन्होंने वहीं जाने का फ़ैसला किया। दोनों थोड़ी देर में ही शहर से बाहर आ चुके थे। रास्ता एक दम विराना था और कुछ अगे जाने पर वो उस जंगल में पहुँच गये। जैसे ही वो उस जंगल में पहुँचे, तो वहाँ सुनील को एक बाइक स्टैंड नज़र आया। उसने सानिया को नीचे उतरने के लिये कहा और उसे उतार कर वो बाइक पार्क करने के लिये स्टैंड में चला गया। जैसे ही वो बाइक स्टैंड पर पहुँचा तो उसे वहाँ उसका कॉलेज का एक पुराना दोस्त मिल गया। उसने सुनील को देखते ही पहचान लिया। उसका नाम रवि था। रवि ने सुनील को पीछे से आवाज़ लगायी, "अरे सुनील तुम यहाँ?" तो सुनील ने घूम कर रवि को देखते हुए कहा, "अरे रवि तुम यहाँ पर क्या कर रहे हो?"

"कुछ नहीं यार... मुझे यहाँ पर पार्किंग का ठेका मिला है... बस यही अपनी रोजी रोटी है... और तू सुना... तू यहाँ क्या कर रहा है...?" रवि ने कहा। सुनील ने कहा, "यार मुझे रेलवे में जॉब मिल गयी है... और मेरी पोस्टिंग यहीं हुई है...!"

रवि ने कहा, "यार ये तो बहुत अच्छी बात है कि तुझे गवर्न्मम्ट जॉब मिल गयी है... और फिर पार्क में घूमने आये हो... अकेले हो या कोई और भी साथ मैं है?" सुनील मुस्कुराते हुए बोला, "हाँ यार मेरी फ्रेंड है साथ में..!" रवि बोला, "ओह हो... नौकरी और छोकरी... यार तुझे ये दोनों बड़ी जल्दी मिल गयी... भाई यहाँ पर घूमने तक तो ठीक है... पर ध्यान रखना यार... "पार्क में हर समय गार्ड गश्त करते रहते हैं.. यहाँ पर फैमिलीज़ आती हैं... इसलिये यहाँ पर वो बहुत सख्ती बरतते हैं!" ये सुनकर सुनील बोला, "ओह अच्छा... यार फिर तू किस दिन काम आयेगा!"

रवि हंसते हुए बोला, "हुम्म बेटा... मैं तेरा इरादा समझ गया... चल तू भी क्या याद करेगा... तू इस पार्किंग के पीछे वाले रास्ते से चले जाना... यहाँ से और कोई नहीं जाता... आगे जाकर काफ़ी घना जंगल है... वहाँ पर कोई नहीं होता...!" सुनील ने उसे धन्यवाद किया और उसके बाद बाइक पार्क की और सानिया को इशारे से आने के लिये कहा। फिर वो सानिया को लेकर रवि के बताये हुए रास्ते पर जाने लगा। उसके पीछे चलते हुए सानिया का दिल ज़ोर से धड़क रहा था वो इस तरह पहली बार किसी लड़के के साथ अकेली थी... वो भी कॉलेज बंक करके आयी थी। एक तरफ़ उसके दिल में सुनील के साथ वक़्त बिताने की लालसा भरी हुई थी और दूसरी तरफ़ उसे थोड़ा डर भी लग रहा था।

दोनों दस मिनट तक बिना कुछ बोले चलते रहे। अंदर की तरफ़ जंगल घना होता जा रहा था। थोड़ी दूर और चलने पर दोनों को एक बेंच दिखायी दी। दोनों उस पर जाकर बैठ गये। थोड़ी देर दोनों खमोश बैठे रहे... दोनों में से कोई बात नहीं कर रहा था। सानिया इधर-उधर देख रही थी जैसे अपना ज़हन किसी बात से हटाने की कोशिश कर रही हो पर एक जवान लड़की जब किसी जवान लड़के के साथ ऐसे सुनसान माहौल में हो तो उसके दिल में कुछ-कुछ होने लगता है! सानिया चुप्पी तोड़ते हुए बोली, "अब तो तुम बता ही सकते हो.!"

"क्या..?" सुनील ने पूछा तो बोली, "कि वो लड़के मेरे बारे में क्या कह रहे थे?" सुनील ने कहा, "छोड़ो तुम्हें बुरा लगेगा..!" सानिया बोली, "नहीं मैं बुरा नहीं मानती"! सुनील ने फिर एक बार उसे आगाह किया, "देख लो मुझसे बाद में नाराज़ मत होना...!" सानिया बोली, "नहीं होती नाराज़... अब बताओ भी!"

"वो कह रहे थे कि तुम्हारे वहाँ पर बहुत चर्बी चढ़ गयी है!" सुनील बताने लगा तो सानिया ने बीच में पूछा, "मेरे चर्बी... कहाँ?" सुनील ने कहा, "अब मैं तुम्हें कैसे कहूँ... तुम बुरा मान जओगी..!" सानिया बोली, "मैं क्यों तुम्हारा बुरा मानुँगी... तुमने थोड़े ना कुछ कहा...!" सुनील की बात सुन कर सानिया को कुछ अंदाज़ा तो हो ही गया था और उसका दिल धधक -धधक करने लगा था। "वो तुम्हारी गाँड पर!" सुनील ने जानबूझ कर झेंपने का नाटक करते हुए कहा। "क्या..?" सानिया एक दम से चौंक उठी... उसे नहीं मलूम था कि सुनील ऐसे अल्फ़ाज़ का इस्तेमाल करेगा। "हाँ वो कह रहे थे कि तुम्हारी गाँड पर बहुत चर्बी चढ़ गयी है!" ये बात सुनते ही सानिया का चेहरा सुर्ख लाल हो गया। उसने अपनी नज़रें झुकाते हुए सुनील को कहा, "तुम्हें तो ऐसे बोलने में शरम आनी चाहिये... वो तो है ही कमीने!"

सुनील बोला, "देखा मैंने कहा था ना कि तुम बुरा मान जाओगी... मैं इसी लिये तुम्हें नहीं बता रहा था... ठीक है अब मैं ऐसी बात नहीं करता!" सानिया थोड़ी देर चुप रहने के बाद बोली, "मैंने ये नहीं कहा कि तुम गलत बोल रहे हो... पर तुम ऐसे अल्फ़ाज़ तो इस्तेमाल ना करो..!" सुनील बोला, "अब मुझे जैसी वर्डिंग आती है वैसे ही बोलुँगा ना... अगर तुम नहीं सुनना चाहती तो मैं नहीं बोलता..!" सानिया सुनील की बात सुन कर चुप हो गयी। अपनी गाँड पर चर्बी चढ़ने की बात सुनकर उसका दिल गुदगुदा उठा था... दिल बार-बार सुनील के मुँह से अपने बारे में सुनने के लिये मचल रहा था। "अच्छा सॉरी.. मैं ही गलत हूँ..!" सानिया ने सुनील के गुस्से से भरे चेहरे को देखते हुए कहा। "अच्छा क्या तुम्हारी कोई गर्ल-फ्रेंड है...?" सानिया ने सुनील की ओर देखते हुए बड़ी बेकरारी से पूछा और धड़कते हुए दिल के साथ उसके जवाब का इंतज़ार करने लगी। सुनील भी अपने दिमाग के घोड़ों को तेजी से दौड़ा रहा था कि वो सानिया को क्या जवाब दे... ऐसा जवाब जिससे वो मुर्गी खुद ही कटने को तैयार हो जाये।
 
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#16
"क्या हुआ मैंने कुछ गलत पूछ लिया क्या?" सानिया बोली तो सुनील ने कहा, "नहीं ऐसी बात नहीं है... अब तुम्हें क्या बताऊँ... अगर मानो तो है भी और ना मानो तो नहीं है..!" सानिया बोली, "मतलब... मैं कुछ समझी नहीं...!" सुनील ने कहा, "हाँ मेरी गर्ल-फ्रेंड है पर वो सिर्फ़ मेरी नहीं है..!" सानिया हैरान होते हुए बोली, "तो क्या तुम्हारी गर्ल-फ्रेंड किसी और की भी गर्ल-फ्रेंड है?" सुनील बोला, "गर्ल-फ्रेंड नहीं... वो किसी की बीवी है..!"

सानिया ने पूछा, "क्या तुम्हारा चक्कर एक शादी शुदा औरत के साथ है..?" सुनील ने जवाब दिया, "हम दोनों के बीच में कोई कमिट्मेंट नहीं थी... और वैसे भी मैं अब उसे नहीं मिलता... अपने-अपने जिस्म की जरूरत पूरा करने का हम एक दूसरे के लिये ज़रिया भर थे... इससे से ज्यादा कुछ नहीं... तब मैं नादान था... इसलिये मैं बिना कुछ सोचे समझे इतना आगे बढ़ गया!" सानिया को तो जैसे अपनी ख्वाबों की दुनिया आग में जल कर खाक़ होती हुई नज़र आने लगी पर सुनील का जादू सानिया के सिर पर इस क़दर चढ़ा हुआ था कि वो सुनील को खोना नहीं चाहती थी। इसलिये उसने आखिर कोशिश करते हुए पूछा, "और अब उसे नहीं मिलते..?" "नहीं!" सुनील ने कहा तो सानिया ने पूछा, "और कोई गर्ल-फ्रेंड नहीं बनायी?" सुनील ने फिर कहा, "नहीं..!"

सानिया के दिल को सुनील की ये बात सुन कर थोड़ी तसल्ली हुई। इसका मतलब सुनील ने नादानी में सैक्स किया था... उसे उस औरत के साथ इश्क़-विश्क़ नहीं था। सानिया बोली, "अच्छा छोड़ो ये सब बातें... आब तुम ये बताओ कि वो कमीने मेरे बारे में और क्या कह रहे थे..!" सुनील ने सानिया की तरफ़ देखा और बोला, "अरे नहीं बाबा... अब नहीं बोलता मैं कुछ... तुम फिर भड़क जाओगी!" सानिया अब सुनील की चटपटी बातों का मज़ा लेना चाहती थी। "अरे नहीं तुम बोलो... मैं बिल्कुल नहीं भड़कुँगी!"

सुनील बोला, "अब मैं कैसे कहूँ... वो कह रहे थे कि तुम्हारे ये दोनों पहले से ज्यादा बड़े हो गये हैं!" सुनील ने अपनी आँखों से सानिया की टॉप में कैद... कसे हुए मम्मों की तरफ़ इशारा किया तो सानिया का चेहरा शरम से लाल हो गया। उसने अपनी नज़रें नीचे झुका ली। सुनील थोड़ी देर चुप रहा और फिर बोला, "और बताऊँ वो और क्या कह रहे थे...?" सानिया का दिल धक-धक करने लगा कि ना जाने अब सुनील उसे क्या बोल दे.... साथ ही चूत की धुनकी भी बजने लगी। "हाँ बताओ!" सानिया ने शर्माते हुए हाँ में सिर हिला दिया। सुनील को समझते देर ना लगी कि मुर्गी कटने के लिये बेताब हो रही है। सुनील खिसक कर सानिया के और करीब बैठ गया। उसकी जाँघें सानिया की जाँघों से सटने लगी तो सानिया के जिस्म में झुरझुरी सी दौड़ गयी। सुनील बोला, "पता है वो तुम्हारे बारे में और क्या कह रहे थे..!" फिर थोड़ी देर खामोश रहने के बाद वो बोला, "वो कह रहे थे कि जरूर तुम्हारी झाँटें भी आ गयी होंगी!"

ये सुनते ही सानिया का दिल जैसे धड़कना ही भूल गया हो... साँसें जैसे हलक में ही अटक गयी हो... शरम और हया की जैसे कोई इंतेहा नहीं थी... पर अब वो क्या बोलती। सुनील के मुँह से ऐसे अल्फ़ाज़ सुन कर उसका पूरा जिस्म काँप गया था। उसने खुद को नादान दिखने का नाटक करते हुए पूछा, "ये क्या होती है...?" सुनील ने जब पूछा कि "तुम्हें नहीं पता झाँटें क्या होती है..?" तो सानिया ने इंकार में सिर हिला दिया। सुनील बोला, "अब मैं तुम्हें कैसे बताऊँ... देखोगी?"

सानिया का दिल ज़ोरों से धड़कने लगा। सुनील भी जान चुका था कि ये लड़की भी मस्ती करने के मूड में आ चुकी है और नादान बनने का सिर्फ़ नाटक कर रही है। सानिया के जवाब का इंतज़ार किये बिना सुनील खड़ा हुआ और इधर-उधर देखते हुए अपनी पैंट की ज़िप खोल दी। सानिया का दिल तो पहले ही जोर-जोर से धक-धक कर रहा था और अब हाथ-पैर काँपने लगे थे। सुनील ने ज़िप खोल कर अपने अंडरवियर के छेद को खोल कर अपने लंड को बाहर निकल लिया। सानिया ने सिर झुका रखा था इसलिये वो सुनील का लंड नहीं देख पा रही थी। फिर सुनील ने अपनी कुछ झाँटों को बाहर निकाला और सानिया के पास आकर उसके ठीक सामने खड़ा हो गया और अपनी काली झाँटों को हाथ से पकड़ कर दिखाते हुए बोला, "ये देखो... इसे कहते हैं झाँट!" सानिया को ऐसी उम्मीद नहीं थी कि उसके ये कहने पर कि वो नहीं जानती कि झाँट क्या होती है... सुनील अपना लंड ही निकाल कर उसे दिखा देगा। जैसे ही सानिया ने सुनील की तरफ़ नज़र उठायी तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गयीं। उसकी आँखों के सामने सुनील का साढ़े-आठ इंच लंबा और बेहद मोटा लंड था। सुनील अपने लंड को अपनी मुट्ठी में भर कर हिलाते हुए बोला, "ये देखो... इसे कहते है लौड़ा... और ये बाल देख रही हो... इसे कहते झाँट!"

सानिया बोली, "हाय तौबा ये तुम क्या कर रहे हो..!" सानिया ने फिर से नज़रें झुका ली पर आठ इंच के तने हुए लौड़े को देख कर उसकी पैंटी के अंदर जवान चूत में धुनकी बजने लगी थी और चूत की फ़ाँकें फड़फड़ाने लगी थी। सुनील एक बार मुस्कराया और उसने अपने लंड को अंदर कर लिया। "क्यों अच्छा नहीं लगा?" सुनील ने फिर से सानिया के पास बैठते हुए पूछा। "तुम बहोत बेशर्म हो..." सानिया ने नज़रें झुकाये हुए शर्माते हुए कहा। सुनील ने पूछा, "क्यों क्या हुआ?" तो सानिया बोली, "ऐसे भी कोई करता है क्या..?" सुनील बोला, "तुमने ही तो कहा था कि तुम्हें नहीं पता झाँट किसे कहते हैं... वैसे एक बात कहूँ बुरा तो नहीं मानोगी..?" सानिया का दिल अब और गुदगुदा देने वाली जवानी के रस से भरपूर बातें सुनने का कर रहा था। "अभी तक मैंने तुम्हारी किसी बात का बुरा माना है क्या?" सानिया का जवाब सुन कर सुनील मुस्कुरा उठा, "वैसे तुम्हारी गाँड पर सच में बहुत माँस चढ़ा है... बहुत मस्त और मोटी है!" सानिया सुनील के मुँह से ऐसी बात सुन कर एक दम से चौंक गयी, "हाय तुम ऐसी बात ना करो मुझे शरम आती है... मैं ऐसी बातें नहीं करती..!"

सुनील बोला, "अच्छा वैसे तुम्हारी मस्त गाँड देख कर मुझे सुहाना की याद आ जाती है!" "ये सुहाना कौन?" सानिया ने पूछा। "वही जिसके बारे में थोड़ी देर पहले तुम्हें बताया था... क्या मस्त गाँड थी उसकी... बिल्कुल तुम्हारी तरह... बाहर को निकाली हुई... हाइ हील की सैंडल पहन कर जब वो गाँड निकाल कर चलती थी तो दिल करता था कि उसकी गाँड को पकड़ कर मसल दूँ... जब मैं उसकी मारता था तो साली की गाँड से पादने जैसी आवाज़ आने लगती थी..!" हालाँकि सानिया को सुनील की बातों में बेहद मज़ा आ रहा था लेकिन फिर भी शराफ़त का नाटक करती हुई बोली, "हाय अल्लह ये तुम क्या बोल रहे हो... तुम्हें तो किसी लड़की से बात करना ही नहीं आता... बहोत गंदा बोलते हो तुम..!" सुनील ने कहा, "अब ये क्या बात हुई... मैंने कहा तो था कि मुझे ऐसे ही बोलना आता है... और मैंने सच में आज तक किसी लड़की से बात नहीं की जो मुझे पता चलता कि किसी लड़की से कैसे बात करते हैं!" सानिया बोली, "पर ऐसे भी नहीं बोलना चाहिये तुम्हें!" उसकी बात पर ध्यान ना देते हुए सुनील बोला, "अच्छा एक बात कहूँ तो मानोगी?"

"क्या..?" सनिया ने पूछा तो सुनील बोला, "पहले बताओ कि मानोगी?" सानिया ने हाँ मैं सिर हिला दिया। सुनील का आठ इंच का तन्नाया हुआ मोटा लौड़ा देख कर उसकी चूत की तो पहले से धुनकी बज रही थी। "तुम भी मुझे अपनी झाँटें दिखाओ ना!" सुनील की ये बात सुनते ही सानिया के एक दम होश उड़ गये... वो बुत सी बनी उसको देखने लगी। "क्या हुआ सानिया... प्लीज़ दिखाओ ना... देखो अगर तुम मुझे अपना दोस्त मानती हो तो प्लीज़ दिखा दो ना... तुमने भी तो मेरी देख ली है... बोलो तुम मुझे अपना दोस्त नहीं मानती... मानती हो ना?" सानिया ने हाँ मैं सिर हिला दिया। सुनील बोला, "तो फिर दिखाओ ना..!" सानिया बोली, "अगर किसी को पता चल गया तो..?"

"नहीं चलता किसी को पता... तुमने मेरी देखी... किसी को पता चला... तुमने तो मेरा लौड़ा भी देख लिया है!" सानिया को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे और क्या ना करे। सुनील के लिये तो वो कितने दिनों से तड़प रही थी लेकिन उसे उम्मीद नहीं थी कि पहली ही डेट पे बात यहाँ तक पहुँच जायेगी। "अगर तुमने ने किसी को बता दिया तो..?" सानिया ने अपना शक ज़हिर करते हुए कहा तो सुनील बोला, "अब भला मैं क्यों बताने लगा... प्लीज़ दिखा दो ना... अपने दोस्त की इतनी सी भी बात नहीं मान सकती चलो मत दिखाओ... मैं आगे से तुम्हें कुछ नहीं कहुँगा...!" सुनील ने फिर से उसे जज़्बाती तौर पे ब्लैकमेल किया। "पक्का किसी को पता तो नहीं चलेगा ना?" सानिया बोली तो सुनील बेंच से खड़ा हो गया और इधर-उधर देखते हुए बोला, "मुझ पर भरोसा रखो... किसी को नहीं पता चलेगा..!"

"अगर इधर कोई आ गया तो?" सानिया ने पूछा तो इधर-उधर देखते हुए सुनील की नज़र थोड़ी आगे घनी झाड़ियों पर पड़ी। वो झाड़ियाँ कोई दस फीट ऊँची जंगली घास की थी। "तुम उन झाड़ियों के बीच में चली जाओ... वहाँ ऐसे बैठना जैसे पेशाब करते हुए बैठते हैं... मैं तुम्हारे पीछे आता हूँ..!" सुनील ने उसे समझाया। सानिया बिना कुछ बोले खड़ी हुई और झाड़ियों के तरफ़ जाने लगी। सुनील वहीं खड़ा इधर-उधर देख कर जायज़ा लेटा रहा। तभी उसकी नज़र दूसरी तरफ़ की झाड़ियों पर लटक रहे तिरपाल के टुकड़े पर पढ़ी। शायद किसी ट्रक के ऊपर रखे सामान को ढकने वाली तिरपाल का फटा हुआ टुकड़ा था। सुनील ने आगे बढ़ कर उस तिरपाल को उठाया और उसे लपेट कर इधर उधर देखने लगा। उसके दोस्त रवि ने बताया था कि इधर कोई नहीं आता। थोड़ी देर बाद वो भी झाड़ियों की तरफ़ बढ़ने लगा। झाड़ियाँ बहुत घनी और ऊँची थीं। सुनील जगह बनाता हुआ आगे बढ़ा। तभी उसे सानिया उकड़ू बैठी नज़र आयी। सुनील को देखते ही उसके चेहरे का रंग लाल सेब जैसा हो गया। सुनील उसके पास जाकर खड़ा हुआ और उसने वहाँ की झाड़ियों को जल्दी से हटा कर थोड़ी जगह बनायी और उस तिरपाल को बिछा दिया। सानिया अब खड़ी होकर ये सब देख रही थी।

आगे क्या होने वाला है ये सोच-सोच कर उसकी चूत में तेज सरसराहट होने लगी थी। सुनील तिरपाल पर घुटनों के बल बैठ गया और सानिया को पास आने का इशारा किया। सानिया धड़कते हुए दिल के साथ सुनील के करीब आ गयी। "पक्का सिर्फ़ देखोगे ना..? प्लीज़ कुछ और मत करना..!" उसने सुनील की तरफ देखते हुआ कहा। "हाँ-हाँ... कुछ नहीं करुँगा... सिर्फ़ देखुँगा... जल्दी करो उतारो अपनी कैप्री..!" सानिया फिर से बुरी तरह शरमा गयी। सानिया वैसे तो काफ़ी तेज तर्रार लड़की थी लेकिन इस तरह पब्लिक प्लेस में कपड़े उतारने में उसे घबराहट और शर्म महसूस हो रही थी। उसने अपनी कैप्री के आगे का बटन खोल कर धीरे से नीचे अपनी गोरी रानों तक कैप्री सरका दी और अपनी सफ़ेद रंग की लेस वाली पैंटी के इलास्टिक में उंगलियाँ फंसा कर धीरे-धीरे नीचे सरकाना शुरू कर दिया। सुनील ने उसे कैप्री और पैंटी बिल्कुल उतार देने को कहा तो सानिया ने झिझकते हुए दोनों निकाल दीं। सानिया की गोरी चिकनी टाँगें और जाँघें देख कर सुनील का लंड उसकी पैंट में कुलांचे भरने लगा। सानिया की चूत और चूतड़ उसके कुर्ती-टॉप से ढंके हुए थे। सुनील ने सानिया के हाथ से कैप्री और पैंटी को लेकर तिरपाल पर रख दिया और सनिया को कमर से पकड़ कर बैठने को कहा। सानिया थोड़ा डरी हुई सी नीचे अपने चूतड़ों के बल बैठ गयी। अब वो सिर्फ़ अपने गुलाबी कुर्ती-टॉप और ऊँची वेज हील वाली सैंडल पहने हुई थी। सुनील ने उसकी टाँगों को उसकी पिंडलियों से पकड़ कर फैला दिया और उसकी आँखों में झाँकते हुए बोला, "अब दिखाओ भी!" सानिया ने अपने काँपते हुए हाथ से अपनी कुर्ती को नीचे से पकड़ा और धीरे-धीरे ऊपर करने लगी और अगले ही पल सुनील का मुँह खुला का खुला रह गया। सानिया की गुलाबी चूत देखते ही सुनील का लंड झटके पे झटके खाना लगा। झाँट तो दूर... बाल का एक रोआँ भी नहीं था। एक दम चिकनी और गुलाबी चूत... बिल्कुल अपनी अम्मी रुखसाना की तरह। चूत की दोनों फाँकें आपस में कसी हुई थी। सुनील से रहा नहीं गया और उसने अपनी उंगली को उसकी चूत की फ़ाँकों के बीच रख कर फिरा दिया। "श्श्शहहह ऊँहहह... ये क्या कर रहे हो सुनील तुम..!" सानिया ने लड़खड़ाती हुई आवाज़ में कहा और सुनील का हाथ पकड़ कर उसका हाथ हटाने की कोशिश करने लगी। लेकिन सुनील ने धीरे-धीरे उसकी चूत की फ़ाँकों के दर्मियान अपनी उंगली रगड़ते हुए पूछा, "इस पर तो एक भी बाल नहीं है... कैसे साफ़ किया इसे?" सानिया को जवानी का ऐसा मज़ा पहली बार मिल रहा था। उसका पूरा जिस्म काँप रहा था और उसके हाथ में इतनी ताकत नहीं बची थी कि वो सुनील का हाथ हटा पाये। "आआहहह स्स्सीईई उईईईई... ऐसे ना करो आआहहह..." सुनील ने जैसे ही अपनी उंगली को उसकी चूत की फ़ाँकों के बीच में दबाया तो उसकी उंगली उसकी चूत के रस टपका रहे छेद पर जा लगी। सानिया का पूरा जिस्म थर्रा उठा। "बोलो ना कैसे साफ़ की तुमने अपनी झाँटें..." इस बार सुनील ने अपनी उंगली को सख्ती से रगड़ा तो सानिया की चूत पिघल उठी। "उईईईईई.... याल्लाहहह.... ऊँऊँहहह क्रीम से..!"

"क्यों?" सुनील ने पूछा तो सानिया मस्ती में आँखें बंद करके सिसकते हुए बोली, "हाइजीन के लिये... मुझे साफ़-सफ़ाई पसंद है इसलिये...! तभी सानिया को कुछ सरसराहट सुनायी दी तो उसने अपनी आँखें खोल कर देखा तो सुनील अपनी पैंट और अंडरवियर उतार रहा था। सानिया ये देख कर एक दम से घबरा गयी। "ये... ये तुम क्या कर रहे हो ऊँहहह!" वैसे तो कितने दिनों से वो सुनील से चुदने के ख्वाब देख रही थी लेकिन आज जब असल में उसका ख्वाब पूरा होने जा रहा था तो पता नहीं वो क्यों घबरा रही थी। "कुछ नहीं मेरी जान... तुम्हारी चूत का उदघाटन करने की तैयारी कर रहा हूँ!" सुनील ने कहा तो सानिया उसे रोकते हुए बोली, "नहीं ये ठीक नहीं है.... प्लीज़ मुझे जाने दो..!" लेकिन सानिया ने कोई मुज़ाहिमत नहीं की और उसकी आवाज़ में भी ज़रा सी भी मज़बूती नहीं थी।

"प्लीज़ सानिया एक बार!" सुनील ने कहा और घुटनों के बल नीचे झुक कर उसने सानिया की तमतमा रही सुर्ख चूत की फ़ाँकों पर अपने होंठ रख दिये। जवान सानिया को जैसे ही जवानी का मज़ा मिला वो एक दम से पिघल गयी। वो पीछे के तरफ़ लुड़क गयी और उसकी कुर्ती उसकी कमर पर इकट्ठी हो गयी। "नहीं ओहहहह येऐऐऐ तुम हायऽऽऽ आँहहह ऊँहहफ़्फ़्फ़..." सानिया जैसी जवान गरम लड़की के लिये ये सब बर्दाश्त से बाहर था। आज तक उसे किसी लड़के ने छुआ तक नहीं था और कहाँ आज वो अपनी जवानी के बेशकीमती खज़ाने को सुनील के सामने खोल कर बैठे थी। सानिया की आँखें मस्ती में बंद हो चुकी थी। उसने सिसकते हुए दोनों हाथों से सुनील के सिर को पकड़ लिया और उसके चेहरे को पीछे हटाने की हल्की सी कोशिश करने लगी। सानिया की चूत मैं तेज मचमचाहट और मस्ती की लहरें दौड़ने लगीं... चूत फक-फक करने लगी। आखिरकार उसने चूत की आग के आगे हथियार डाल दिये और बुरी तरह काँपते सिसकते हुए पीछे के तरफ़ लेट गयी। सानिया की कमर अब उसके काबू में नहीं थी। रह-रह कर उसकी कमर झटके खाती और उसकी गाँड ऊपर की ओर उछल जाती। चूत से चिपचिपा रसीला रस बह-बह कर बाहर आने लगा।

सुनील ने सानिया की चूत को चूसते हुए उसकी कुर्ती में कैद दोनों कबूतरों को पकड़ लिया और धीरे-धीरे मसलने लगा। सानिया ने एक दम से अपने हाथ सुनील के हाथों के ऊपर रख दिये पर सुनील नहीं रुका। उसने सानिया की कमर में हाथ डाल कर उसकी कुर्ती के हुक एक-एक करके खोलने शुरू कर दिये। "स्स्सीईईई ऊँऊँहहह स्स्सीईईई ना करो... नाआआ... मुझे कुछ हो रहा है...!" सानिया सिसकते हुए बोली और फिर सानिया की कुर्ती के हुक खोल कर उसे निकालते ही सुनील ने उसकी ब्रा के कपों को पकड़ कर ऊपर खिसका दिया और सानिया की मोटी और कसी हुई चूचियाँ उछल कर बाहर आ गयीं। एक दम सख्त और तनी हुई चूंचीयों पर हाथ लगते ही सानिया फिर से सिसकारियाँ भरने लगी। सुनील ने अपना मुँह सानिया की चूत से हटाया और ऊपर की ओर आते हुए सानिया के एक मम्मे को मुँह में भर लिया और उसके निप्पल को होंठों और जीभ से चुलबुलाने लगा। सानिया का बुरा हाल हो रहा था। सानिया का पूरा जिस्म आग की तरह तपने लगा था। सुनील अपने नीचे जवान लड़की के एक दम तने हुए मम्मों को देख कर पागल सा हो गया था। वो जितना अपने मुँह में उसकी चूचियों को भर सकता था उतना भर कर जोर-जोर से उसके मम्मों को चूसने लगा।

सुनील ने देखा कि अब सानिया पूरी तरह से गरम हो चुकी है तो उसने उसकी चूत से मुँह हटाया और सानिया की जाँघों के बीच में घुटनों के बल बैठ गया। उसने सानिया की चिकनी टाँगों को उठा कर हल्के गुलाबी सैंडलों में उसके गोरे-गोरे पैरों को एक-एक बार चूमा और फिर उसकी टाँगों को अपने कंधों पर रख के अपने लंड का मोटा सुपाड़ा उसकी चूत की फ़ाँकों के बीच में दो-तीन बार रगड़ा। जैसे ही सानिया को अपनी चूत के छेद पर सुनील के लंड के गरम सुपाड़े के छूने का एहसास हुआ तो सानिया बुरी तरह से मचल उठी। इससे पहले कि सानिया कुछ कर पाती सुनील ने अपने लंड को जोर से सानिया की चूत पर दबा दिया। गच की आवाज़ से सुनील के लंड का मोटा सुपाड़ा सानिया की जवान अनचुदी चूत को फाड़ता हुआ अंदर जा घुसा।

इससे पहले आज तक उसकी चूत में मोमबत्ती, हेयर-ब्रश का हैंडल, खीरा-बैंगन-केला वगैरह जैसी बेजान चीज़ें ही घुसी थीं लेकिन सुनील के इतने मोटे लंड का मोटा सुपाड़ा जैसे ही सानिया की चूत के अंदर घुसा तो दर्द के मारे सानिया एक दम से तड़प उठी। उसकी साँसें अटक गयीं और मुँह ऐसे खुल गया जैसे उसकी साँस बंद हो गयी हों... आँखें एक दम से पत्थरा गयीं। 'गच-गच' फिर से दो बार और ये आवाज़ आयी और साथ ही सुनील का पूरा का पूरा लंड सानिया की चूत की गहराइयों में उतर गया। "आअहहहह याआआलाहहहह ओहहहह..." सानिया एक दम से चिल्ला उठी। लेकिन अगले ही पल सुनील ने उसकी टाँगें अपने कंधों से उतार दीं और आगे झुक कर सानिया के रसीले गुलाब की पंखुड़ियों जैसे नाजुक होंठों को अपने होंठों में भर लिया और उसके होंठों को अपने दाँतों से हल्का सा चबाते हुए चूसना शुरू कर दिया। गरम जवान लड़की के होंठ और चूत दोनों पा कर सुनील एक दम मस्त हो चुका था। "बस मेरी जान बस हो गया..!" सुनील ने ये कहते हुए फिर से सानिया के होंठों को चूसना शुरू कर दिया... ताकि वो चींख भी ना सके और फिर अपने मोटे मूसल जैसे लंड को अंदर-बाहर करने लगा। सानिया ने दर्द के मारे सुनील के कंधों पर अपने नाखून गड़ा दिये पर सुनील को कोई फ़र्क़ नहीं पढ़ा। वो अपना मूसल जैसा लंड उस जवान लड़की की चूत में पागलों की तरह पेलने लगा। सुनील नहीं रुका पर सानिया का दर्द अब धीरे-धीरे कमतर होने लगा था। उसकी चूत अब फिर से पानी छोड़ने लगी थी। लंड के सुपाड़े की तंग चूत की दीवारों पर हर रगड़ सानिया को जन्नत की ओर ले जने लगी। पाँच मिनट बाद ही सानिया ने मस्ती में आकर सिसकना शुरू कर दिया और वो भी धीरे-धीरे अपनी गाँड को ऊपर की ओर उछालने लगी। ये देख कर सुनील ने अपना लंड बाहर निकल कर एक झटके में उसे कुत्तिया की तरह घुटनों पर कर दिया और फिर पीछे से अपना मूसल लंड उसकी चूत में पेल दिया। फिर क्या था सुनील के जबरदस्त झटकों से उसका लंड सानिया की चूत के अंदर-बाहर होने लगा।

सुनील की माँसल जाँघें सानिया के चूतड़ों से टकरा कर 'थप-थप' की आवाज़ करने लगी। सुनील ने अपना लंड अंदर-बाहर करते हुए सानिया के दोनों चूतड़ों को फैला दिया और उसकी चूत के पानी से भीगे उसकी गाँड के छेद को अपनी उंगली से कुरेदने लगा। सानिया का पूरा जिस्म एक दम से काँप गया। बेजान चीज़ों से खुद-लज़्ज़ती के मुकाबले असल लंड से चुदवाने में इतना मज़ा आता है... ये आज सानिया को एहसास हो रहा था और वो भी सिसकते हुए सुनील के लंड को अपनी चूत की गहराइयों में महसूस कर रही थी। सानिया का पूरा जिस्म ऐंठने लगा था। उसे अपने जिस्म का सारा लहू चूत में इकट्ठा होता हुआ महसूस होने लगा। "ओहहहह सुनील येऽऽऽ मुझेऽऽऽ क्याआआ कर दियाआआ तुमनेऽऽऽ ऊउहहह हाआआय मैं पागल.... ओहहहह सुनील!"

"क्यों क्या हुआ मेरी जान... मज़ा नहीं आ रहा क्या?" सुनील ने पूछा तो सानिया सिसकते हुए बोली, "आआआहहह ऊँऊँहहह बहोत आ रहा है..!" सुनील ने पूछा, "और मारूँ क्या?" "हुम्म्म्म्म!" सानिया सिसकी। सुनील ने अपने झटकों की रफ़्तार और बढ़ा दी। अब सुनील का लंड सानिया की तंग चूत में पूरी रफ़्तार से अंदर-बाहर हो रहा था और फिर सानिया का जिस्म एक दम अकड़ने लगा। चूत का सैलाब बाहर जलजला बन कर बह निकला और उसका पूरा जिस्म झटके खाते हुए झड़ने लगा। सुनील भी उसकी गरम तंग चूत में ज्यादा देर नहीं टिक पाया और उसके चूत के अंदर ही उसके लंड ने वीर्य के बौंछार कर दी।

सानिया झड़ने के बाद बुरी तरह हाँफ रही थी। सुनील ने जैसे ही अपना लंड सानिया की चूत से बाहर निकाला तो सानिया आगे के तरफ़ लुढ़क कर उस तिरपाल पर लेट गयी और गहरी साँसें लेने लगी। सुनील कुछ देर वैसे ही घुटनों के बल बैठा रहा और सानिया के नरम और माँसल चूतड़ों को सहलाता रहा। अपनी साँसें कुछ दुरुस्त होने के बाद जैसे ही उसे अपने चूतड़ों पर सुनील का हाथ फिरता हुआ महसूस हुआ तो वो उठ कर बैठ गयी। उसने शर्माते हुए एक बार सुनील के तरफ़ देखा और फिर नीचे अपनी रानों में देखा तो उसकी चूत की फ़ाँकें उसकी चूत के गाढ़े पानी और सुनील की मनी से सनी हुई थी। सानिया शर्माते हुए बोली, "ये तुमने ठीक नहीं किया सुनील... मैं भी तुम्हारी बातों से बहक गयी!"

सुनील बोला, "अरे क्यों घबरा रही हो मेरी जान... यही तो जवानी के मज़े लूटने के दिन हैं... मैं तुम्हारा ख्याल रखुँगा ना... चलो इसे साफ़ कर लो!" "किससे साफ़ करूँ...?" सानिया ने पूछा तो सुनील ने सानिया की पैंटी उठायी और उसी से अपना लंड साफ़ करने लगा। ये देखकर सानिया एक दम से बोल पढ़ी, "अब मैं क्या पहनुँगी..?" सुनील ने हंसते हुए अपने लंड को साफ़ किया और फिर वो पैंटी सानिया की तरफ़ बढ़ाते हुए बोला, "क्यों कैप्री तो है ना... किसी को नहीं पता चलता... मैं तुम्हें घर वाली गली के बाहर छोड़ दुँगा... वहाँ से तुम पैदल चली जाना!" सानिया ने सिर झुकाये हुए सुनील के हाथ से पैंटी ली और अपनी चूत और रानों को ठीक से साफ़ किया। सानिया उसके सामने बेहद शरमा रही थी। सानिया की गोरी चिकनी जाँघें और चूत देख कर एक बार फिर से सुनील का लंड झटके खाने लगा था। उसने अभी तक अंडरवियर और पैंट नहीं पहनी थी। सुनील का लंड फिर से खड़ा होने लगा था। तभी अचानक सानिया की नज़र सुनील के झटके खा रहे लंड पर गयी जिसे देखते ही उसके दिल की धड़कने फिर से बढ़ने लगी। सानिया एक दम से खड़ी हो गयी और थोड़ा आगे खड़ी हो कर अपनी कैप्री पहनने के बाद अपनी कुर्ती पहन कर उसके हुक बंद करने लगी। सुनील सानिया की कैप्री में मटकते हुई उसके गोलमटोल चूतड़ों को देख कर पगल हो उठा। उसने जल्दी से अपनी अंडरवियर और पैंट पहनी पर उसे जाँघों तक चढ़ा कर छोड़ दिया और फिर अपनी पैंट को पकड़ कर सानिया के ठीक पीछे आकर खड़ा हो गया। सुनील ने उसे पीछे से बाहों में भर लिया और उसकी लंबी सुराहीदार गर्दन पर अपने होंठों को लगा दिया। सानिया एक दम से चौंक गयी और सुनील की बाहों से निकलने की कोशिश करने लगी पर सुनील के होंठों की तपिश अपनी गर्दन पर महसूस करके वो एक दम से बेजान से हो गयी। "ऊँऊँहहह क्या क्या कर रहे हो तुम्म्म!"

"कुछ नहीं अपनी जान को प्यार कर रहा हूँ!" सुनील ने अपने होंठों को सानिया की गर्दन पर रगड़ते हुए कहा। "ऊँऊँहहह बस करो.. कोई देख लेगा आहहह...!" सानिया सिसकी तो उसकी कुर्ती के ऊपर से उसकी चूचियों को मसलते हुए सुनील बोला, "हुम्म्म यहाँ कोई नहीं देखेगा... प्लीज़ मेरी जान मुझसे रहा नहीं जा रहा आज... तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो... प्लीज़ एक बार और दे दो ना..?" सुनील लगातार सानिया की चूचियों को मसलते हुए उसकी गर्दन और गाल पर अपने होंठों को रगड़ रहा था और सानिया भी मस्त होती जा रही थी। "प्लीज़ जान एक बार और दे दो ना..!"

"क...क...क्या...?" सानिया ने लड़खड़ाती हुई आवाज़ में पूछा। "ऊम्म्म फुद्दी... तुम्हारी फुद्दी चाहिये!" सुनील बोला तो सानिया मस्ती में भर कर बोली, "हाय अल्लाहहहह... कैसी बातें करते हो तुम!" सुनील बोला, "प्लीज़ जान मेरे लिये इतना भी नहीं कर सकती... प्लीज़ एक बार... तुम्हें मज़ा नहीं आया क्या!" ये कहते हुए सुनील ने आगे की तरफ़ नीचे हाथ ले जाकर कैप्री का बटन खोल कर सानिया की कैप्री नीचे सरकानी शुरू कर दी। सानिया की कैप्री को उठा कर उसके घुटनों के नीचे सरका दिया और फिर अपनी टाँगों को फैला कर अपने घुटनों को मोड़ते हुए नीचे झुका और सानिया के कान में धीरे से बोला, "सानिया खोलो ना...!" सानिया ने लड़खड़ाती हुई आवाज़ में पूछा, "क्या?"
 
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#17
सुनील बोला, "अपनी टाँगें खोलो ना!" सानिया सिसकते हुए फुसफुसा कर धीरे से बोली, "ऊँम्म... कुछ हो गया तो..!" सुनील फिर उसकी गर्दन पे अपने होंठ रगड़ते हुए बोला, "मैं भला अपनी जान को कुछ होने दुँगा... प्लीज़ सानिया एक बार और कर लेना दो ना... तुम्हें मेरी कसम..!" सानिया सुनील की प्यार भरी चिकनी चुपड़ी बातें सुन कर एक दम से पिघल गयी। उसने लरजते हुए टाँगों में फंसी अपनी कैप्री को अपने पैरों मे गिरा दिया और फिर उसमें से एक पैर निकाल कर खड़े-खड़े अपनी टाँगें फैला दी। सुनील ने एक हाथ से अपने लंड को पकड़ कर सानिया की गाँड से नीचे ले जाते हुए उसकी चूत की फ़ाँकों पर रख कर अपने लंड के सुपाड़ा को सानिया के चूत के छेद पर टिकाने की कोशिश करने लगा पर खड़े-खड़े उसे सानिया की चूत के छेद तक अपना लंड पहुँचाने में परेशानी हो रही थी।

"सानिया तुम्हारी फुद्दी के छेद पर लंड लगा क्या?" सुनील ने पूछा। "ऊँम्म्म मुझे नहीं मालूम..!" सानिया बोली। "बताओ ना..!" सुनील ने फिर पूछा तो सानिया ने कसमसाते हुए कहा, "नहीं..!" सानिया की चूत की फ़ाँकों में अपने लंड को रगाड़ कर छेद को तलाशते हुए सुनील ने फिर पूछा, "अब..?" सानिया ने फिर से ना में गर्दन हिला दी और सुनील ने फिर से अपने लंड को एडजस्ट किया और जैसे ही सुनील के लंड का दहकता हुआ सुपाड़ा सानिया की चूत के छेद से टकराया तो सानिया के पूरे जिस्म ने एक तेज झटका खाया। उसके होंठों पर शर्मीली मुस्कान फैल गयी और उसने अपने सिर को झुका लिया। सुनील ने पुछा, "अब?" सानिया ने हाँ में सिर हिलाते हुआ कहा, "हुँम्म्म्म!"

सुनील ने धीरे-धीरे अपने मूसल लंड को ऊपर की ओर चूत के छेद पर दबाना शुरू कर दिया। सुनील का लंड सानिया की तंग चूत में धीरे-धीरे अंदर जाने लगा। लंड के सुपाड़े की रगड़ सानिया को अपनी चूत की दीवारों पर मदहोश करती जा रही थी। उसके पैर खड़े-खड़े काँपने लगे और आँखें मस्ती में बंद होने लगी थी। सुनील ने सानिया को थोड़ा सा धक्का देकर ठीक एक पेड़ के नीचे कर दिया और उसकी पीठ को दबाते हुए उसे झुकाना शुरू कर दिया। सानिया ने अपने हाथों को पेड़ के तने पर टिका दिया और झुक कर खड़ी हो गयी। सानिया की बाहर की तरफ़ निकाली गाँड देख कर सुनील एक दम से पागल हो गया। उसने ताबड़तोड़ धक्के लगाने शुरू कर दिये। सुनील की जाँघें सानिया के चूतड़ों से टकरा कर थप-थप कर रही थी और सानिया बहुत कम आवाज़ में सिसकारियाँ भरते हुए चुदाई का मज़ा ले रही थी। उसके पैर मस्ती के कारण काँपने लगे थे। सुनील ने सानिया की चूत से लंड बाहर निकाला और फिर से एक झटके के साथ सानिया की चूत में पेल दिया। सानिया एक दम से सिसक उठी। सुनील ने फिर से अपने लंड को रफ़्तार से सानिया की चूत के अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया। पाँच मिनट बाद सानिया और सुनील फिर से झड़ गये। सुनील ने अपना लंड सानिया की चूत से बाहर निकाला और तिरपाल पर पड़ी हुई पैंटी को फिर से उठा कर अपना लंड साफ़ करने लगा।

सानिया पेड़ के तने से अपना कंधा टिकाये हुए मदहोशी से भरी आँखों से ये सब देख रही थी। उसकी कैप्री अभी भी उसके एक पैर में फंसी हुई ज़मीन पे पड़ी हुई थी। सुनील ने अपना लंड साफ़ करने के बाद अपना अंडरवियर और पैंट पहनी और सानिया के पास आकर झुक कर बैठ गया और उसकी जाँघों को फैलाते हुए उसकी चूत को पैंटी से साफ़ करने लगा। सानिया बेहाल सी ये सब देख रही थी। फिर सानिया ने अपने कपड़े ठीक किये और दोनों घर वापस चल दिये।

सानिया की ताई अज़रा और उसकी सौतेली अम्मी रुखसाना ने जिस तरह सुनील को लड़के से मर्द बनाया था वैसे ही सुनील ने आज रुखसाना को कली से फूल बना दिया था। सुनील ने उसे घर से थोड़ा पहले ही उतार दिया। सफ़ेद कैप्री के नीचे बगैर पैंटी पहने सानिया धीरे-धीरे चलती हुई घर पहुँची। उसके मन में अजीब सा डर था। जब रुखसाना ने दरवाज़ा खोला तो सानिया को बाहर खड़ा देखा। सानिया की हालत कुछ बदतर सी नज़र आ रही थी। "क्या हुआ सानिया... तुम ठीक तो हो ना?" रुखसाना ने सानिया की ओर देखते हुए पूछा। "हाँ अम्मी... ठीक हूँ बस थोड़ा सिर में दर्द है..!" ये कहकर सानिया सीधे अपने कमरे में जाने लगी। "ठीक है... तुम फ्रेश होकर कपड़े चेंज कर लो.. मैं चाय बना देती हूँ!" रुखसाना ने कहा और उसके बाद सानिया अपने कमरे में चली गयी। वहाँ से अपने कपड़े लेकर वो बाथरूम में घुस गयी और नहाने के बाद सलवार कमीज़ पहन कर बाहर आ गयी।

रुखसाना को बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था कि उसकी जवान बेटी सानिया आज कली से फूल बन चुकी थी। सुनील घर नहीं आया था तो उन दोनों ने खाना खाया और सानिया अपने कमरे में जाकर सो गयी। वो कहते है ना कि सैक्स का नशा जो भी इंसान एक बार कर ले तो फिर तो जैसे उसे उसकी लत्त सी लग जाती है... सानिया भी जवान लड़की थी... घी में लिपटी हुई उस रुआनी की तरह जिसे आग दिखाओ तो जल उठे... सानिया भी अपनी उम्र के ऐसे ही मकाम पर खड़ी थी। दूसरी तरफ़ सुनील भी उम्र के उसी मोड़ पर था और अपने से दुगुनी उम्र की चार-चार चुदैल औरतों के साथ नाजायज़ संबंध बना के जवानी के नशे में इतनी बुरी तरह बिगड़ चुका था कि उसे कुछ होश नहीं था कि वो किस राह पर चल निकला है।

रुखसाना को खबर नहीं थी कि सानिया और सुनील के बीच इतना कुछ हो चुका है। सानिया ने भी कुछ ज़ाहिर नहीं होने दिया था और रुखसाना को पता चलता भी कैसे... वो तो खुद हर वक़्त सुनील के लंड से अपनी चूत की आग को मिटाने के लिये बेकरार रहती थी और उससे चुदवाने के मौकों की फ़िराक़ में रहती थी। पर सानिया की मौजूदगी और फिर फ़ारूक के भी वापस आ जाने के बाद मौका मिलना दुश्वार हो गया था... दरसल इसकी सबसे बड़ी वजह खुद सुनील था क्योंकि अब नफ़ीसा और रशीदा सुनील से बाकायदा तौर पे चुदवाती थीं। सुनील हफ़्ते में कम से कम तीन रातें नफ़ीसा और रशीदा के घर पे बिताता था। इसके अलावा दिन में स्टेशन पर भी कभी टॉयलेट में तो कभी किसी दूसरी मुनासिब जगहों पर और कभी-कभी तो अपनी कारों की पिछली सीट पे भी दोनों चुदक्कड़ औरतें सुनील से अपनी चूत और गाँड मरवाने से बाज़ नहीं आती थीं। रुखसाना को तो इस बात की बिल्कुल भी खबर नहीं थी और वो समझ रही थी कि सुनील की जॉब में मसरूफ़ियत बढ़ गयी है। अब तो सुनील ने पहले की तरह रुखसाना को चोदने के लिये दोपहर में भी घर आना बंद कर दिया था। अब तो तीन-तीन चार-चार दिन निकल जाते थे और रुखसाना को सुनील के साथ चुदवाना तो दूर उसके साथ लिपटने-चिपटने और चूमने-चाटने तक के लिये तरस जाती थी। रुखसाना का तो बुरा हाल था ही पर सानिया जैसी जवान लड़की जो एक बार लंड का मज़ा चख ले और वो भी सुनील जैसे जवान लड़के के लंड का मज़ा जो किसी भी औरत की चूत का पानी छुड़ा सकता हो... उसकी बुरी हालत थी। सानिया भी अक्सर सुनील को खा जाने वाली नज़रों से घुरती रहती और सुनील के करीब होने का मौका तलाशती रहती पर ना तो सानिया को मौका मिल पा रहा था और ना ही उसकी अम्मी को।

ढाई-तीन हफ़्ते बाद की बात है... एक दिन फ़ारूक और सुनील अपनी ड्यूटी पर जा चुके थे लेकिन सानिया की छुट्टी थी। उस दिन सानिया दोपहर में पड़ोस में नज़ीला के घर गयी हुई थी। उस दिन नज़ीला और उसके बीच में एक अजीब सा रिश्ता बनने वाला था। सानिया नज़ीला के कमरे में बैठी उसके साथ चाय पी रही थी और नज़ीला का बेटा सलील बाहर हाल में टीवी देख रहा था। नज़ीला ने चाय की चुसकी लेते हुए सानिया से कहा, "सानिया देख ना... क्या ज़माना आ गया है... आज कल किसी पर कोई ऐतबार नहीं क्या जा सकता..!"

सानिया: "क्यों क्या हुआ आँटी?"

नज़ीला: "अब देखो ना... ये जो हमारी पड़ोसन शहला है ना...?"

सानिया: "हाँ क्या हुआ उन्हें..?"

नज़ीला: "अरे होना क्या है उसे... दो दिन से घर से लापता है..!"

सानिया: "क्या?"

नज़ीला: "हाँ और नहीं तो क्या... मुझे तो पहले से ही मालूम था कि यही होने वाला है एक दिन!"

सानिया: "पर हुआ क्या शहला आँटी को? और आप को क्या मालूम था?"

नज़ीला: "अरे कुछ नहीं अपने आशिक़ के साथ भाग गयी है... अपने शौहर को छोड़ कर..!"

सानिया: "आप को कैसे पता..?"

नज़ीला: "सानिया बताना नहीं किसी को... मैंने एक बार पहले भी उसके शौहर आसिफ़ और उनकी सास ज़ोहरा को ये बात बतायी थी कि शहला का चाल-चलन ठीक नहीं है पर वो दोनों उल्टा मुझ पर ही बरस पड़े... बोले कि मुझे दूसरों के घरों में ताँक-झाँक करने की आदत है और मैं अपने काम से काम रखा करूँ... उनके घर में मुझे दखल देने की जरूरत नहीं है... अगर मेरी बात पहले मान लेते तो आज मोहल्ले वालों के सामने यूँ जलील तो ना होना पड़ता!"

सानिया: "पर आप को पहले कैसे पता चल गया आँटी?"

नज़ीला: "अरे क्या बताऊँ तुझे सानिया... एक दिन मैं दोपहर को अपनी छत पर सुखे कपड़े उतारने के लिये गयी थी... तब मैंने पहली बार उस लड़के को छत पर देखा था... जब मैंने शहला की सास से पूछा तो उसने कहा कि ऊपर के रूम में किराये पर रह रहा है... मैंने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया पर फिर एक दिन मैंने शहला को छुपते हुए उसके रूम में जाते हुए देखा तो मेरा दिमाग ठनक गया... मैंने उन दोनों पर नज़र रखनी शुरू कर दी... एक दिन मुझे याद है तब शायद आसिफ़ टूर पर गया हुआ था... और शहला की सास बाहर गयी हुई थी किसी काम से... तो मैंने उन दोनों को उस लड़के के कमरे के बाहर छत पे पानी की टंकी की पीछे रंग-रलियाँ मनाते हुए देख लिया था... अब तुझे क्या बताऊँ सानिया मैंने जो देखा... मुझे तो देखते ही शरम आ गयी...!"

सानिया के दिल के धड़कनें भी नज़ीला की बातें सुन कर बढ़ने लगी थी। उसने पूछा, "क्या... क्या देखा आप ने...?"

नज़ीला: "जाने दे तेरी उम्र नहीं है इन सब बातों को जानने की... कहीं गल्ती से तूने कहीं मुँह खोल दिया तो सारा मोहल्ला मेरा ही कसूर निकालने लग जायेगा...!"

सानिया: "नहीं आँटी मैं नहीं बताती किसी को.... मैं कोई बच्ची थोड़े ही हूँ... आप बताओ ना क्या देखा आप ने..!"

नज़ीला: "पक्का ना... नहीं बतायेगी ना...?"

सानिया: "हाँ नहीं बताऊँगी प्रॉमिस!"

नज़ीला: "तो उस दिन जब मैं ऊपर छत पर गयी तो मैंने देखा कि दोनों उस लड़के के रूम के बाहर पानी की टंकी के पीछे खड़े हुए थे... दोनों ने एक दूसरे को बाहों में कस रखा था... शहला ने उस वक़्त सिर्फ़ कमीज़ पहनी हुई थी और उसने अपनी सलवार उतार कर एक तर्फ फेंक रखी थी... उस लड़के ने शहला को अपनी बाहों में उठा रखा था.... और वो भी किसी रंडी की तरह उसकी कमर में अपनी दोनों नंगी टाँगें लपेटे हुए थी... हाय-हाय सानिया... मैंने आज तक किसी को ऐसे करते नहीं देखा... वो तो उसकी खड़े-खड़े ही ले रहा था... और वो कमीनी भी उसकी गोद में चढ़ी हुई अपनी कमर हिला-हिला कर उसे दे रही थी!

नज़ीला की बातें सुन कर सानिया का दिल जोरों से धड़कने लगा... चूत कुलबुलाने लगी और ऐसे धुनकने लगी जैसे उसकी चूत में ही उसका दिल धड़क रहा हो। "हाय आँटी क्या खड़े-खड़े ही... वो भी गोद में उठा कर..?" सानिया ने धड़कते हुए दिल के साथ कहा। "हाँ और नहीं तो क्या... आज कल ये सब नये पैशन हैं..." नज़ीला उठ कर सानिया के करीब आकर बेड पर बैठ गयी।

सानिया: "पर आँटी ऐसे खड़े होकर कैसे कर सकते हैं...?"

नज़ीला: "अरे तूने अभी तो कुछ देखा ही नहीं है... आज कल के लोग तो पता नहीं क्या-क्या करते हैं.. तुम देख लोगी तो तौबा कर उठोगी!"

सानिया: "क्या... पर आप ने ये सब कहाँ देखा... क्या अंकल भी आपके साथ..?"

नज़ीला: "चुप कर बदमाश एक मारुँगी हाँ...!"

सानिया: "फिर बताओ ना... अगर अंकल ऐसे नहीं करते तो आपको कैसे पता कि क्या-क्या करते हैं?"

नज़ीला: "हमारे नसीब में कहाँ ये सब... ये तो आज कल के लड़के-लड़कियाँ करते हैं... तेरे अंकल की तो कईं सालों से दिलचस्पी ही नहीं रही इन सब में... वैसे भी उनको देखा है ना कितने सुस्त से रहते हैं... जब से उन्हें ब्लड-प्रेशर और डॉयबटीज़ हुई है... थोड़ा सा काम करते ही थक जाते हैं... वो चाहें तो भी उनसे कुछ होने वाला नहीं!"

सानिया: "तो फिर आप ने किया नहीं तो कहाँ देखा...!"

नज़ीला: "अरे वो आती है ना ब्लू फ़िल्में... उनमें देखा है...!"

सानिया ने अंजान बनते हुए पूछा, "ब्लू फ़िल्म! वो क्या होता है..?"

नज़ीला: "अरे वही जिसमें औरतों और मर्दों को सैक्स करते दिखाते हैं... कमाल है तुझे नहीं मालूम... वर्ना आज कल के लड़के-लड़कियाँ तो तौबा... पैदा बाद में होते हैं और ये सब उनको पहले से ही मालूम होता है..!"

सानिया: "आपका मतलब पोर्न मूवीज़ आँटी?"

नज़ीला: "हाँ वही... तूने देखी है..?"

सानिया: "नहीं बस सुना है... कॉलेज में मेरी कईं फ्रेंड्स के घर पर कंप्यूटर और इंटरनेट लगा हुआ है... उनसे सुना है...!"

नज़ीला: "सिर्फ़ सहेलियाँ ही हैं... या अभी तक कोई बॉय फ्रेंड भी बनाया है...?"

सानिया शर्मते हुए बोली, "नहीं आँटी...!"

नज़ीला: "अरे तू तो ऐसे शर्मा रही है जैसे सच में तेरा कोई बॉय फ्रेंड हो... सच- सच बता ना... है क्या कोई..? देख मुझसे क्या छुपाना मैं भी तेरी सहेली जैसी हूँ...!"

सानिया: "नहीं आँटी सच में कोई नहीं है!"

नज़ीला: "अच्छा चल ठीक है... मैं तेरी बात मान लेटी हूँ... पर अगर कभी तेरा कोई बॉय फ्रेंड बने तो मुझे बताना... देख ज़माना बहोत खराब है... बाहर कुछ गलत मत कर देना... मुझे बताना... मैं तेरी मदद करुँगी..!"

सानिया: "रियली आँटी?"

नज़ीला को खटक गया कि सानिया उससे झूठ बोल रही है क्योंकि सानिया मुँह से कुछ और बोल रही थी पर उसका चेहरा कुछ और बोल रहा था। नज़ीला ने कहा, "हाँ और नहीं तो क्या... देख हम दोनों हमेशा सहेलियों की तरह रहे हैं और आगे भी ऐसे ही रहेंगे..!"

सानिया: "ठीक है आँटी... अगर मेरी लाइफ में कोई आया तो मैं आपको जरूर बताउँगी!"

नज़ीला: "वैसे सानिया जो तुम्हारे घर में किरायेदार आया है... क्या नाम है उसका?"

सानिया: "सुनील...!"

नज़ीला: "हाँ सुनील.... बहुत हैंडसम है तेरा क्या ख्याल है?"

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सानिया: "होगा मुझे उससे क्या...?"

नज़ीला: "नहीं मैं तो वैसे ही पूछ रही थी... वैसे तू तो इतनी खूबसूरत है... तेरा जिस्म तो क़यामत है... उसने तेरे साथ कभी ट्राई नहीं किया फ्रेंडशिप करने को?"

सानिया: "नहीं आँटी... मैंने उसकी तरफ़ कभी तवज्जो नहीं दी...!"

नज़ीला: "फिर तो तू बड़ी बेवकूफ़ है... घर में इतना जवान और हैंडसम लड़का है... और तू कह रही है कि तुझे उसमें कोई दिलचस्पी नहीं है... काश तेरे जगह मैं होती...!" नज़ीला ने एक ठंडी साँस लेते हुए कहा।

सानिया: "अच्छा आँटी एक बात पूछूँ...?"

नज़ीला: "हाँ पूछ ना...!"

सानिया: "अगर वो लड़का आपसे सैटिंग करना चाहता हो तो क्या आप कर लेंगी...?"

सानिया की बात सुन कर नज़ीला थोड़ा हैरान होकर बोली, "चुप कर... मैं तो वैसे ही बोल रही थी!"

सानिया: "नहीं आँटी प्लीज़ सच बताओ!"

नज़ीला: "पहली बात तो ये कि मेरी ऐसी किस्मत कहाँ कि वो मुझे लाइन मारे... और दूसरी बात ये कि जब वो तेरी जैसी लड़की पर नहीं लाइन मार रहा तो मुझे क्या खाक मरेगा...!"

सानिया: "ओहहो आँटी... क्यों आप में क्या कमी है.. आप तो हमारे मोहल्ले में सबसे खूबसूरत औरत हो!"

नज़ीला: "अरे खूबसूरती के मामले में तो तेरी अम्मी का इस मोहल्ले में तो क्या पूरे शहर में कोई मुकाबला नहीं कर सकती... मुझ पर क्यों लाइन मरने लगा वो लड़का... और अगर ऐसे हुआ तो सच कहती हूँ कि मैं तेरी जैसी बेवकूफ़ नहीं हूँ... मौका हाथ से नहीं जाने दुँगी हाहाहाहा!"

सानिया: "पर अभी तो आप कह रही थी कि मुझे उसके साथ फ्रेंडशिप कर लेनी चाहिये... बहोत चलाक हो आप आँटी... अब खुद की सैटिंग करने की जानिब सोचने लगी..!"

नज़ीला: "देख सानिया यार... ये ज़िंदगी है ना... बार-बार नहीं मिलती तो क्यों ना इसका ज्यादा से ज्यादा मज़ा लिया जाये... और वैसे भी क्या फ़र्क़ पड़ता है... अगर वो मेरे साथ भी कर लेगा...!"

सानिया ने काँपती हुई आवाज़ में पूछा, "क्या कर लेगा?"

नज़ीला: "सैक्स और क्या... उसका क्या बिगड़ जायेगा और तेरा भी क्या बिगड़ जायेगा... अरे मैंने ऐसी-ऐसी ब्लू फ़िल्में देखी हैं... जिसमें एक औरत अपनी सहेलियों के साथ अपने बॉय फ़्रेंड या शौहर को शेयर करती हैं... और अपनी आशिक़ से ही अपनी सहेलियों को चुदवाती हैं... फिर मैं भी तो तेरी सहेली ही हूँ और वैसे भी वो कौन सा तेरा शौहर है..!"

सानिया: "क्या सच में होता है ऐसे!"

नज़ीला: "चल तुझे मैं एक मूवी दिखाती हूँ!" ये कह कर नज़ीला ने अपनी अलमारी खोली और उसमें से एक डी-वी-डी निकाल कर सानिया की तरफ़ बढ़ायी।

सानिया: "ये... ये क्या है आँटी?"

नज़ीला: "वही जिसे तू पोर्न कहती है... देखनी है तो देख ले... मैं बाहर सलील का होमवर्क करवा कर आती हूँ..!" ये कह कर नज़ीला सानिया के हाथ में डी-वी-डी थमा कर बाहर चली गयी और हाल में सलील को उसके स्कूल का होमवर्क कराने लगी। सानिया ने काँपते हुए हाथों से उस डिस्क को डी-वी-डी प्लेयर में डाल कर ऑन कर दिया। सानिया ने पोर्न कहानियाँ-किस्से तो खूब पढ़े थे लेकिन पोर्न मूवी कभी नहीं देखी थी। उस डीवीडी में बहुत सारे थ्रीसम और फ़ोरसम सीन थे जिनमें दर्मियानी उम्र की दो या तीन औरतें मिलकर किसी जवान लड़के के साथ चुदाई के मज़े ले रही थीं। एक सीन में तो माँ और बेटी मिलकर एक लड़के से चुदवा रही थीं। सानिया की हालत ये सब देख कर खराब हो गयी। सानिया का अब सैक्स के जानिब नज़रिया बदल गया था। ना जाने क्यों उसके दिमाग में अजीब -अजीब तरह के ख्याल आने लगे... वो वहाँ से उठ कर अपने घर आ गयी और आते ही अपने कमरे में जाकर दरवाजा बंद करके नंगी हो गयी और बहोत देर तक मोमबत्ती अपनी चूत में डाल कर काफ़ी देर तक अपनी हवस की आग बुझाने की कोशिश करती रही।

उसके बाद ऐसे ही करीब एक महीना और गुज़र गया। सुनील तो अपना मन रशीदा और नफ़ीसा के साथ बाहर बहला रहा था लेकिन रुखसाना और सानिया का बुरा हाल था। दोनों के ज़हन में अब हर वक़्त चुदाई का नशा सवार रहता था। सुनील से चुदवाने के बाद अब सानिया को हर वक़्त अपनी चूत में खालीपन महसूस होता था और रुखसाना को तो पहले से ही सुनील के लंड का ऐसा चस्का लग चुका था कि उसके दिन और रात बड़ी मुश्किल से कट रहे थे। रुखसाना तो फिर भी कभी-कभार सुनील के साथ जल्दबज़ी वाली थोड़ी-बहुत चुदाई में कामयाब हो जाती थी लेकिन सानिया को तो सुनील के साथ थोडी छेड़छाड़ या चूमने-चाटने से ज्यादा मौका नहीं मिल पाता था। रुखसाना भले ही सानिया की हालत से अंजान थी पर अब उसे सानिया के चेहरे पर किसी चीज़ की कमी होने का एहसास होने लगा था।

इसी दौरान एक वाक़िया हुआ जिससे रुखसाना की ज़िंदगी में वापस बहारें लौटने लगीं। रशीदा की ट्राँसफ़र की अर्ज़ी रेलवे में मंज़ूर हो गयी और उसकी पोस्टिंग कोलकत्ता में हो गयी। रशीदा के जाने के बाद भी सुनील का नफ़ीसा के साथ रिश्ता पहले जैसा ही बना रहा। रुखसाना ने इन दिनों नोटिस किया कि सुनील अब पहले की तरह उसमें फिर से काफी दिलचस्पी लेने लगा था... अब वो खुद से कोई ऐसा मौका नहीं छोड़ता था। जब रुखसाना उसे दो-तीन मिनट के लिये भी अकेली दिख जाती तो वो मौका देख कर कभी उसे बाहों में जकड़ के चूम लेता तो कभी उसकी सलवार के ऊपर से उसकी फुद्दी को मसल देता।

तभी एक और वाक़िया हुआ जिसने रुखसाना के सोचने का नज़रिया ही बदल दिया। एक दिन रुखसाना नज़ीला के घर गयी। सुबह के ग्यारह बजे का वक़्त था। फ़ारूक और सुनील दोनों जॉब के लिये जा चुके थे और सानिया भी कॉलेज गयी हुई थी। रुखसाना को आइब्राउ बनवानी थी तो उसने सोचा कि नज़ीला भाभी से थ्रेडिंग के साथ-साथ फ़ेशियल भी करवा लेती हूँ। वैसे तो वो खुद ये सब करने में माहिर थी लेकिन आइब्राउ क्योंकि खासतौर पे खुद बनाना आसान नहीं होता इसलिये वो अक्सर नज़ीला से थ्रेडिंग करवाती थी। नज़ीला तो वैसे भी अपने घर में ही ब्यूटी पार्लर चलाती थी। रुखसाना ने घर का काम निपटाया और अपने घर को बाहर से लॉक करके नज़ीला के घर की तरफ़ गयी। जैसे ही वो नज़ीला के घर का गेट खोल कर अंदर गयी तो सामने गैराज का दरवाजा खुला हुआ था जिसमें नज़ीला का ब्यूटी-पार्लर था। रुखसाना ब्यूटी-पार्लर में घुसी तो वहाँ कोई नहीं था। रुखसाना ने देखा कि पार्लर में से घर के अंदर जाने वाला दरवाजा हल्का सा खुला हुआ था। रुखसाना और नज़ीला अच्छी सहेलियाँ थीं और वैसे भी नज़ीला इस वक़्त घर में अकेली होती थी तो रुखसाना बिना कुछ बोले अंदर चली गयी। अंदर एक दम सन्नाटा पसरा हुआ था लेकिन नज़ीला के बेडरूम से कुछ आवाज़ आ रही थी। नज़ीला की खुशनुमा आवाज़ सुन कर रुखसाना उसके बेडरूम के ओर बढ़ी... और जैसे ही वो बेडरूम के डोर के पास पहुँची तो रुखसाना की आँखें फटी की फटी रह गयीं।

नज़ीला ड्रेसिंग टेबल पर झुकी हुई थी और उसने ने अपनी कमीज़ को अपनी कमर तक उठा रखा था... उसकी सलवार उसकी टाँगों से निकली हुई उसके पैरों में ज़मीन पर थी और सफ़ेद रंग की पैंटी उसकी रानों तक उतारी हुई थी और एक लड़का जो मुश्किल से पंद्रह-सोलह साल का था... उसके पीछे खड़ा हुआ था। उस लड़के का लंड नज़ीला की गोरी फुद्दी के लबों के दर्मियान फुद्दी में अंदर-बाहर हो रहा था और उस लड़के ने नज़ीला के चूतड़ों को दोनों तरफ़ से पकड़ा हुआ था जिन्हें वो बुरी तरह से मसल रहा था। तभी नज़ीला की मस्ती से भरी आवाज़ पूरे कमरे में गूँज उठी।

नज़ीला: "आआहहहह आफ़्ताब ओहहह आहहह बाहर ब्यूटी-पार्लर खुला हुआ है... मेरी कस्टमर्स आकर लौट जायेंगी... एक बजे पार्लर बंद करने के बाद दोपहर में फिर आराम से कर लेना जो करना है!"

आफ़्ताब: "आआहह खाला... मुझे सब्र नहीं होता... मैं क्या करूँ... जब भी हाई हील वाली सैंडलों में आपकी मटकती गाँड देखता हूँ तो मेरा लौड़ा खड़ा हो जाता है और सलील भी दो बजे स्कूल से आ जायेगा.... मुझे आपकी फुद्दी मारने दो ना... आप ने तो कल खालू से चुदवा लिया होगा ना...!

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नज़ीला: "वो क्या खाक चोदता है मुझे.... तेरे खालू का लंड तो ठीक से खड़ा भी नहीं होता... मुझे तो तेरे जवान लंड की लत्त लग गयी है... बस मैं एक घंटे में पार्लर बंद कर दुँगी... फिर जितनी देर करना हो कर लेना!"

पूरे कमरे में फ़च-फ़च जैसी आवाज़ गूँज रही थी। रुखसाणा ने देखा कि नज़ीला सिर्फ़ ऊपर से मना कर रही थी... वो पूरी मस्ती में थी और अपनी गाँड को पीछे की तरफ़ धकेल-धकेल कर आफ़्ताब से चुदवा रही थी। तभी अचानक से रुकसाना हिली तो उसका सैंडल बेड रूम के दरवाजे से टकरा गया। आवाज़ सुनकर दोनों एक दम से चौंक गये। जैसे ही नज़ीला ने रुखसाना को डोर पर खड़े देखा तो उसके चेहरे का रंग एक दम से उड़ गया। उस लड़के की हालत और भी पत्तली हो गयी और उसने जल्दी से अपने लंड को बाहर निकाला और अटैच बाथरूम में घुस गया। नज़ीला ने जल्दी से अपनी पैंटी ऊपर की और फ़ौरन अपनी सलवार उठा कर पहनी और घबराते हुए काँपती हुई आवाज़ में बोली, "अरे रुखसाना... तुम तुम कब आयीं?" फिर वो रुकसाना के पास आयी और उसका हाथ पकड़ कर उसे ड्राइंग रूम में ले गयी और उसे सोफ़े पर बिठाया। वो कुछ कहना चाह रही थी पर शायद नज़ीला को समझ नहीं आ रहा था कि वो रुखसाना से क्या कहे.... कैसे अपनी सफ़ाई दे! "ये सब क्या है नज़ीला भाभी...?" रुखसाना ने नज़ीला के चेहरे की ओर देखते हुए पूछा।

नज़ीला गिड़गिड़ा कर मिन्नत करते हुए बोली, "रुखसाना यार किसी को बताना नहीं... तुझे अल्लाह का वास्ता... वर्ना मैं कहीं की नहीं रहुँगी... मेरा घर बर्बाद हो जायेगा... प्लीज़ किसी को बताना नहीं... मैं बर्बाद हो जाऊँगी अगर ये बात किसी को पता चल गयी तो!" नज़ीला के हाथ को अपने हाथों में लेकर तसल्ली देते हुए नज़ीला बोली, "भाभी आप घबरायें नहीं... मैं नहीं बताती किसी को... पर ये सब है क्या और वो लड़का कौन है..?"

नज़ीला बोली, "मैं बताती हूँ... तुझे सब बताती हूँ... पर ये बात किसी को बताना नहीं... तू अभी अपने घर जा... मैं थोड़ी देर में तेरे घर आती हूँ!" नज़ीला की बात सुनकर रुखसाना बिना कुछ बोले वहाँ से उठ कर अपने घर आ गयी और आते ही अपने रूम में बेड पर लेट गयी। थोड़ी देर पहले जो नज़ारा उसने देखा था वो बहुत ही गरम और भड़कीला था। एक पंद्रह-सोलह साल का लड़का एक पैंतीस साल की औरत को पीछे से उसके चूतड़ों से पकड़े हुए चोद रहा था... और नज़ीला भी मस्ती में अपनी गाँड उसके लंड पर धकेल रही थी। रुखसाना का बुरा हाल था... उसकी चूत में अंदर तक सनसनाहट हो रही थी और चूत से पानी बह कर उसकी पैंटी को भिगो रहा था। रुखसाना करीब आधे घंटे तक वैसे ही लेटी रही और सोच-सोच कर गरम होती रही और अपनी सलवार के अंदर हाथ डाल कर पैंटी के ऊपर से अपनी फुद्दी को मसलती रही। करीब आधे घंटे बाद बाहर डोर-बेल बजी तो रुखसाना बदहवास सी खड़ी हुई और बाहर जाकर दरवाजा खोला। सामने नज़ीला खड़ी थी और उसके चेहरे का रंग अभी भी उड़ा हुआ था। रुखसाना ने नज़ीला को अंदर आने के लिये कहा और फिर दरवाजा बंद करके उसे अपने कमरे में ले आयी। नज़ीला अंदर आकर रुखसाना के बेड पर नीचे पैर लटका कर बैठ गयी। खौफ़ उसके चेहरे पे साफ़ नज़र आ रहा था। रुखसाना ने उसे चाय पानी के लिये पूछा तो उसने मना कर दिया।
 
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#18
"नज़ीला भाभी जो हुआ उसे भूल जायें... आप समझ लें कि मैंने कुछ देखा ही नहीं है... मैं ये बात किसी को नहीं बताऊँगी... आप बेफ़िक्र रहें!" रुखसाना की बात सुनते ही नज़ीला की आँखें नम हो गयीं। रुखसाना समझ नहीं पा रही थी कि ये आँसू सच में पछतावे के थे या नज़ीला मगमच्छी आँसू बहा कर उसे जज़बाती करके ये मनवा लेना चाहती थी कि रुखसाना उसकी फ़ासिक़ हर्कत के बारे में किसी को ना बताये। "रुखसाना मैं जानती हूँ कि तू ये बात किसी को नहीं बतायेगी... पर फिर भी मेरे दिल में कहीं ना कहीं डर है... इसलिये मुझे घबराहट हो रही है...!" नज़ीला बोली।

रुखसाना ने उसे फिर तसल्ली देते हुए कहा, "नज़िला भाभी आप घबरायें नहीं... मैं नहीं बताती किसी को... पर ये सब है क्या... और वो लड़का तो आप को खाला बुला रहा था ना..? क्या वो सच में आपका भांजा है..?" थोड़ी देर चुप रहने के बाद नज़ीला बोली, "हाँ वो मेरी बड़ी बेहन का बेटा है...!" नज़ीला की बात सुन कर रुखसाना एक दम से हैरान हो गयी, "क्या... क्या सच कह रही हैं आप... पर ये सब आप ने.... ये सब कैसे... क्यों किया..?"

नज़ीला ने अपनी दास्तान बतानी शुरू की, "अब मैं तुझे क्या बताऊँ रुखसाना... तू इसे मेरी मजबूरी समझ ले या फिर मेरी जरूरत... हालात ही कुछ ऐसे हो गये थे कि मैं खुद को रोक ना सकी... शादी के बाद से ही हमारी सैक्स लाइफ़ बस सो-सो थी और फिर धीरे-धीरे हमारी सैक्स लाइफ़ कमतर होती गयी... इसीलिये सलील भी हमारी शादी के कईं सालों बाद पैदा हुआ... ऊपर से इन्हें ब्लडप्रेशर और डॉयबिटीस भी हो गयी... और सैक्स में इनकी दिलचस्पी बिल्कुल खतम हो गयी... हमारी सैक्स लाइफ़ बिल्कुल खतम हो चुकी थी... तुझे तो अच्छे से मालूम होगा कि बिना मर्द के प्यार के रहना कितना मुश्किल होता है... पर मैं अपनी सारी ख्वाहिशें मार के जीती रही। सलील की देखभाल और ब्यूटी पार्लर में दिन का वक़्त तो कट जाता था पर रातों को बिस्तर पे करवटें बदलती रहती थी... इन्हें तो जैसे मेरी कोई परवाह ही नहीं थी... फिर मुझे अपनी एक फ्रेंड से ब्लू-फ़िल्में मिल गयी तो उन्हें देख कर मेरे अंदर की आग और भड़कने लगी... मुझे खुद-लज़्ज़ती की लत्त लग गयी और अकेले में ब्लू-फिल्में देखते हुए मैं अपनी चूत को मसल कर और केले और दूसरी चीज़ों के ज़रिये अपनी चूत के आग को बुझाने की कोशिश करने लगी। पर खुद-लज़्ज़ती में असली सैक्स वाली तसल्ली कहाँ हो पाती है! फिर एक दिन मेरी ज़िंदगी तब बदल गयी जब आफ़्ताब हमारे यहाँ गर्मी की छुट्टियों में रहने आया... वो उस वक़्त नौवीं क्लास में था। अब्बास भी सुबह ही काम पर चले जाते थे या फिर वही उनके हफ़्ते-हफ़्ते के टूर पे.... सब कुछ नॉर्मल चल रहा था... सलील और आफ़्ताब के घर में होने से मेरा भी दिल लगा हुआ था... फर एक दिन सब कुछ बदल गया!"

रुखसाना बड़े गौर से नज़ीला की दास्तान सुन रही थी जो हूबहू उसकी खुद की ज़िंदगी की कहानी थी। नज़ीला ने आगे बताया, "वो दिन मुझे आज भी अच्छे से याद है... अब्बास ऑफिस जा चुके थे... सलील को नाश्ता देने के बाद मैं आफ़्ताब को उठने के लिये गयी... वो तब तक सो रहा था... मैं जैसे ही कमरे में गयी तो मैंने देखा कि आफ़्ताब बेड पर बेसुध सोया हुआ था और वो सिर्फ़ अंडरवियर में था। उसका अंडरवियर सामने से उठा हुआ था और उसका लंड उसके अंडरवियर में बुरी तरह तना हुआ था... मेरी तो साँसें ही अटक गयीं... उस दिन से पहले मैं आफ़्ताब को अपने बेटे जैसा ही समझती थी पर उसके अंडरवियर के ऊपर से उसका तना हुआ लंड देख कर मेरे जिस्म में झुरझुरी से दौड़ गयी... उसका लंड पूरी तरह तना हुआ अंडरवियर को ऊपर उठाये हुए था... मैं एक टक जवान हो रहे अपने भाँजे के लंड को देख कर गरम होने लगी... पता नहीं कब मेरा हाथ मेरी सलवार के ऊपर से मेरी चूत पर आ गया और मैं उसके अंडरवियर में बने हुए टेंट को देखते हुए अपनी चूत मसलने लगी... मेरी चूत बुरी तरह से पनिया गयी... मेरा बुरा हाल हो चुका था... तभी बाहर से सलील के पुकारने की आवाज़ आयी तो मैं होश में आयी और बाहर चली गयी। आफ़्ताब गर्मियों की वजह से शॉर्ट्स पहने रहते था।"

"मेरे जहन में बार-बार आफ़्ताब का वो अंडरवियर का उभरा हुआ हिस्सा आ रहा था... उसी दिन दोपहर की बात है... आफ़्ताब, मैं और सलील उस वक़्त मेरे ही बेडरूम में टिवी देख रहे थे क्योंकि हमारे बेडरूम में ही एयर कंडिशनर लगा हुआ है। टिवी देखते हुए हम तीनों बेड पर लेटे हुए थे। बाहर बहोत तेज धूप और गरमी थी और एक दम सन्नाटा पसरा हुआ था। बेडरूम में खिड़कियों पर पर्दे लगे हुए थे और डोर बंद था... बस सिर्फ़ टीवी की हल्की रोशनी आ रही थी जिस पर आफ़्ताब लो-वॉल्युम में कोई मूवी देख रहा था। मैं सबसे आखिर में दीवार वाली साइड पे लेटी हुई थी। इतने में टीवी पे एक रोमांटिक उत्तेजक गाना आने लगा जिसमें हीरो-हिरोइन बारिश में भीग कर गाना गाते हुए एक दूसरे से चिपक रहे थे। हिरोइन का व्लाऊज़ बेहद लो-कट था जिस्में से उसकी चूचियाँ बाहर झाँक रही थीं।"

"मैंने नोटिस किया कि आफ़्ताब चोर नज़रों से मेरी छाती की तरफ़ देख रहा था। मेरे पूरे जिस्म में झुरझुरी दौड़ गयी और मेरी चूत में फिर से कुलबुलाहट होने लगी। जब उसने फिर तिरछी नज़र से मेरी तरफ़ देखा तो मैंने मस्ती वाले अंदाज़ में आफ़्ताब को पूछा जो कि वो क्या देख रहा था तो शरमा गया और एक दम से टिवी की तरफ़ देखते हुए बोला कि कुछ नहीं! इस दौरान मैं जानबूझ कर अपनी लो-कट गले वाली कमीज़ के ऊपर से अपनी चूची सहलाने लगी। आफ़्ताब चोर नज़रों से फिर मेरी तरफ़ देखने लगा। मैं जानती थी कि उसकी नज़र मेरे चूचियों पर थी और वो कभी टीवी की ओर देखता तो कभी मेरी ओर! फिर मैंने बैठ कर सलील को दीवार वाली साइड पे खिसका दिया और खुद आफ़्ताब की तरफ़ करवट करके लेट गयी। लेकिन इस दौरान मैंने अपनी कमीज़ थोड़ी और खिसका दी जिससे मेरी ब्रा और एक चूची काफ़ी हद तक नुमाया होने लगी। आफ़्ताब की आँखें फटी रह गयीं। मैंने आफ़्ताब से पूछा कि मैं क्या उसे उस हिरोइन से ज्यादा हसीन लग रही हूँ जो वो टिवी छोड़ कर बार-बार मुझे ताक रहा है। आफ़्ताब मेरी बात सुन कर शरमा कर मुस्कुराने लगा तो मैंने फिर अपने मम्मे को मसलते हुए उससे पूछा कि मैं उसे हसीन लग रही हूँ कि नहीं। आफ़्ताब हसरत भरी नज़रों से मेरी जानिब देखने लगा तो मैंने इस बार कातिलाना अंदाज़ में मुस्कुराते हुए उसे अपने करीब आने का इशारा किया।

आफ़्ताब खिसक कर मेरे करीब आ गया तो मैं अपने चूंची अपनी कमीज़ और ब्रा में से बाहर निकाल कर दिखाते हुए बोली कि देखेगा मेरा हुस्न तो उसने अपने गले में थूक गटकते हुए हाँ में सिर हिला दिया। मैं अपना एक हाथ उसके सिर के पीछे ले गयी और उसके सिर को पकड़ कर अपनी चूंची के तरफ़ उसके चेहरे को खींचते हुए अपने दूसरे हाथ से अपनी चूंची को पकड़ कर अपना निप्पल उसके मुँह के पास कर दिया। उसने भी बिना कोई देर किये मेरी चूंची के निप्पल को मुँह में भर कर चूसना शुरू कर दिया। मैंने अपनी एक बाँह उसकी गर्दन के पीछे से निकाल कर अपना हाथ उसके सिर पर रखा और उसे अपने चूचियों पे दबा दिया। आफ़्ताब अब और खिसक कर मेरे साथ चिपक कर मेरी चूंची को चूसने लगा तो मेरी चूत फड़फड़ाने लगी और मेरी चूत से पानी बह कर बाहर आने लगा। मैं एक दम मस्त हो चुकी थी और मैंने अपने दूसरे हाथ से अपनी सलवार का नड़ा खोल दिया। मैं अपनी सलवार और पैंटी में नीचे हाथ डाल कर अपनी चूत को मसलने लगी और मेरे मुँह से से हल्की-हल्की सिसकारियों की आवाज़ आने लगी। मुझे एहसास भी नहीं हुआ कि कब आफ़्ताब ने मेरी उस चूंची को हाथ से पकड़ कर मसलना शुरू कर दिया जिसे वो साथ में चूस रहा था। जैसे ही मेरा ध्यान इस जानिब गया कि आफ़्ताब मेरी चूंची को किसी मर्द की तरह अपने हाथ से मसल रहा है तो मेरी चूत में तेज सरसराहट दौड़ गयी। मैंने उसके सिर को अपनी बाँह में और कस के जकड़ लाया और अपनी दो उंगलियाँ अपनी चूत के अंदर डाल दीं। मैं अपनी सिसकरी को रोक नहीं सकी.... आँआँहहहह आआआफ़्ताआआब ऊँऊँहहह.!"

"आफ़्ताब मेरे सिसकने की आवाज़ सुन कर एक दम चौंक गया। उसने मेरे निप्पल को मुँह से बाहर निकला जो उसके चूसने से एक दम तन कर फूला हुआ था... और मेरी हवस से भरी आँखों में देखते हुए बोला कि खाला क्या हुआ। मैं उसकी बात सुन कर एक पल के लिये होश में आयी कि मैं ये क्या कर रही हूँ अपने जिस्म की आग को ठंडा करने के लिये मैं अपनी ही कच्ची उम्र के भांजे के साथ ये काम कर रही हूँ... लेकिन मैं हवस की आग में अंधी हो चुकी थी कि मैंने उसका चेहरा अपने चूँची पे दबाते हुए उसे चूसते रहने को कहा। उसने फिर से मेरे निप्पल को मुँह में भर लिया और इस बार उसने मेरी चूंची के काफ़ी हिस्से को मुँह में भर लिया और मेरी चूंची को चूसते हुए बाहर की तरफ़ खींचने लगा। मेरा पूरा जिस्म थरथरा गया और मुँह से एक बार फिर से आआआहहह निकल गयी। इस बार उसने फिर से चूंची को मुँह से बाहर निकला और बोला कि बोलो ना खाला क्या हुआ तो मैंने काँपती हुई आवाज़ में सिसकते हुए उसे जवाब दिया कि कुछ नहीं आफ़्ताब... जल्दी कर मेरा बहुत बुरा हाल है! अचानक से मुझे उसका लंड शॉर्ट्स के ऊपर से अपनी नाफ़ में चुभता हुआ महसूस हुआ। तब तक वो फिर से मेरी चूंची को मुँह में भर कर चूसना शुरू कर चुका था। मैं इस क़दर मदहोश हो गये कि मुझे कुछ होश ना था। मैंने अपनी टाँगों को फैलाते हुए अपनी सलवार और पैंटी रानों पे खिसका कर आफ़्ताब का एक हाथ पकड़ के नीचे लेजाकर अपनी चूत पर रख दिया जो एक दम भीगी हुई थी। आफ़्ताब मेरी समझ से कहीं ज्यादा तेज था... जैसे ही मैंने उसका हाथ अपनी चूत के ऊपर रखा तो उसने मेरी चूत के फ़ाँकों के बीच अपनी उंगलियों को घुमाते हुए रगड़ना शुरू कर दिया। मेरा पूरा जिस्म एक दम से ऐंठ गया। फिर उसने धीरे-धीरे से अपनी एक उंगली मेरी चूत में घुसा दी और अंदर-बाहर करने लगा। मैं एक दम से मदहोश होती चली गयी। वो मेरी चूत में उंगली अंदर-बाहर करते हुए मेरे चूंची को चूस रहा था और वो धीरे-धीरे मेरे ऊपर आ चुका था।"

"तभी मेरा ध्यान सलील की तरफ़ गया कि वो भी मेरी बगल में सो रहा है। मैंने आफ़्ताब के सिर को दोनों हाथों से पकड़ कर पीछे की तरफ़ ढकेला तो मेरी चूंची उसके मुँह से बाहर आ गयी। मैंने आफ़्ताब को सलील की मौजूदगी की याद दिलायी तो आफ़्ताब ने सलील की तरफ़ देखा जो गहरी नींद में था और फिर मेरी तरफ़ देखने लगा। उसकी उंगली अभी भी मेरी चूत में थी। मैं नहीं चाहती थी कि सलील उठ जाये और हमें इस हालत में देख ले। इसलिये मैंने आफ़्ताब को धीरे से कहा कि वो दूसरे बेडरूम में जाये जहाँ वो रोज़ रात को सोता है और वहाँ कूलर ऑन कर ले... मैं अभी थोड़ी देर में आती हूँ...!

मेरी बात सुन कर आफ़्ताब खड़ा हुआ और अपने बेडरूम की तरफ़ चला गया। मैं धीरे से बेड से नीचे उतरी और अपनी सलवार का नाड़ा बाँधा और अपनी कमीज़ उतार दी । सिर्फ़ सलवार और खुली हुई ब्रा पहने मैं हाइ हील वाली चप्पल में गाँड मटकाती हुई अपने बेडरूम से निकल कर आफ़्ताब के बेडरूम की तरफ़ चली गयी। जैसे ही मैं दूसरे बेडरूम में पहुँची तो देखा के आफ़्ताब ने कूलर चालू कर दिया था और बेड पर पैर लटकाये मेरा इंतज़ार कर रहा था। मैंने अंदर आकर दरवाजा बंद किया तो इतने में आफ़्ताब खड़ा होकर मुझसे लिपट गया और पीछे दीवार के साथ सटा दिया। उसने मेरी ब्रा के बाहर झाँक रही चूचियों को हाथों में पकड़ कर मसलना शुरू कर दिया और फिर मेरी एक चूंची को मुँह में भर कर चूसने लगा। मैं मस्ती में सिसकने लगी कि ओहहहह आफ़्ताब हाँआआआ चूऊऊस ले अपनी खाला के मम्मों को... चूस ले मेरे बच्चे.... मैंने अपनी सलवार का नाड़ा खोल दिया और सलवार मेरे पैरों में गिर पड़ी। मैं आफ़्ताब का हाथ पकड़ कर फिर से अपनी चूत पर रखते हुए बोली कि... ओहहह आफ़्ताब देख ना मेरा कितना बुरा हाल है! आफ़्ताब ने मेरी चूत को मसलते हुए अपने मुँह से चूंची को बाहर निकाला और अपना निक्कर नीचे घुटनों तक सरका दिया और फिर मेरा हाथ पकड़ कर अपने तने हुए छ इंच के लंड पर रखते हुए बोला कि... खाला देखो ना मेरा भी बुरा हाल है...!"

"जैसे ही मेरे हाथ में जवान तना हुआ लंड आया तो मैं सब कुछ भूल गयी और फिर मैं नीचे झुकते हुए घुटनों के बल बैठी और आफ़्ताब के लंड को हाथ से पकड़ कर हिलाने लगी। उसके लंड का टोपा लाल होकर दहक रहा था। फिर मैंने आफ़्ताब का हाथ पकड़ कर उसे खींचते हुए पीछे बिस्तर पर लेटना शुरू कर दिया और आफ़्ताब को अपने ऊपर गिरा लिया। मैंने अपनी टाँगों को नीचे से पूरा फैला लिया और आफ़्ताब अब मेरी टाँगों के बीच में था। मैंने उसका लंड पकड़ कर अपनी दहकती हुई चूत के छेद पर लगा दिया और मस्ती में सिसकते हुए बोली कि ओहहहह आफ़्ताब अपनी खाला की फुद्दी मार कर इसकी आग को ठंडा कर दे मेरे बच्चे... और फिर उसका लंड अपनी चूत पर सटाये हुए ही अपनी टाँगों को उसकी कमर पर लपेट लिया। आफ़्ताब ने मेरे कहने पर धीरे-धीरे अपना लंड मेरी चूत के छेद पर दबाना शुरू कर दिया। बरसों की प्यासी चूत जो एक जवान और तने हुए लंड के लिये तरस रही थी... आफ़्ताब के तने हुए लंड की गरमी को महसूस करके कुलबुलाने लगी। मैंने अपनी गाँड को पूरी ताकत से ऊपर की ओर उछाला तो आफ़्ताब का लंड मेरी चूत की गहराइयों में उतरता चला गया। फिर तो आफ़्ताब ने भी बेकरारी में पुरजोश अपनी गाँड उठा-उठा कर मेरी चूत के अंदर अपने लंड को पेलना शुरू कर दिया। वो किसी जवान मर्द की तरह मेरे मम्मों को मसलते हुए अपने लंड को मेरे चूत के अंदर बाहर कर रहा था और फिर उसने मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये। चूत की दीवारों पर उसके लंड की रगड़ मदहोश कर देने वाली थी और मस्ती में मुझे कच्ची उम्र के अपने भांजे से अपने होंठ चुसवाने में ज़रा भी शरम नहीं आयी। बिल्कुल बेहयाई से मैंने उसका साथ देना शुरू कर दिया और अपनी गाँड ऊपर उछाल-उछाल कर उसके लंड को अपनी चूत की गहराइयों में लेने लगी। उसके पाँच मिनट के धक्कों ने ही मेरी चूत को पानी-पानी कर दिया... मैं झड़ कर एक दम बेहाल हो गयी थी... थोड़ी देर बाद उसने भी अपना सारा पानी मेरी चूत के अंदर उड़ेल दिया... रुखसाना अब मैंने तुझे सारी बात तफ़सील से बता दी है... प्लीज़ ये सब किसी से नहीं कहना और हाँ तुझे ज़िंदगी में कभी मेरी जरूरत पड़े तो मैं तेरे साथ हूँ... मुझसे एक बार कह कर देखना... मैं तेरे लिये कुछ भी कर सकती हूँ...!"

उसके बाद नज़ीला रुखसाना को अपनी चुदाई की दस्तान सुना कर चली तो गयी लेकिन जितनी तफ़सील और खुल्लेपन से उसने अपनी दास्तान सुनायी थी उससे नज़ीला रुखसाना की चूत में आग और ज्यादा भड़का गयी थी। पिछले कुछ महीनों में जिस रफ़्तार से उसकी ज़िंदगी में फ़ेरबदल हो रहे थे वो रुखसाना ने अपनी पूरी ज़िंदगी में कभी नहीं देखे थे। सुनील का उसके घर किरायेदार के तौर पे आना और फिर उसे अज़रा के साथ सैक्स करते देखना... और फिर खुद उससे नाजायज़ रिश्ता बनाना और उसके लंड की लत्त लगा कर उसकी गुलाम बन कर रह जाना और फिर नज़ीला का ये किस्सा। रुखसाना की ज़िंदगी में इतना सब कुछ चंद महीनों के अंदर हो चुका था और यही सब सोचती हुई वो ये अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रही थी कि आगे आने वाले दिनों में पता नहीं और क्या-क्या होगा...!

उस दिन के दो दिन बाद की बात है। सानिया सुबह कॉलेज चली गयी थी और फ़ारूक भी उस दिन घर से थोड़ा जल्दी निकल चुका था और सुनील भी काम पर जाने के लिये तैयार था। जैसे ही वो नीचे आया तो उसने रुकसाना से फ़ारूक के बारे में पूछा तो रुखसाना ने उसे बताया कि वो थोड़ी देर पहले ही निकल गया है। जैसे ही सुनील को पता चला कि फ़ारूक और सानिया घर पर नहीं है तो उसने हाल में ही उसे बाहों में भर लिया और उसके होंठों को चूसने लगा और साथ-साथ उसके चूतड़ों को सलवार के ऊपर से मसलने लगा। रुख्साना तो सुनील की बाहों में जाते ही पिघलने लगी और मस्ती में सिसकते हुए बोली, "ओहहह सुनील... मुझे कहीं भगा कर ले चल.... मुझे अब तुझसे एक पल भी दूर नहीं रहा जाता..!" सुनील ने उसकी आँखों में देखा और मुस्कुराते हुए बोला, "मेरी भाभी जान... चाहता तो मैं भी यही हूँ... पर मैं नहीं चाहता कि मेरे वजह से आपका घर बर्बाद हो... थोड़ा सब्र रखो... हमें जल्द ही मौका मिलेगा...!" ये कहते हुए उसने एक बार फिर से रुखसाना के होंठों को चूसते हुए उसकी चूत को सलवार के ऊपर से मसलने लगा। रुखसाना भी सुनील की पैंट के ऊपर से अपने दिलबर यानि सुनील के लंड को मसल रही थी। पाँच-छः मिनट दोनों सब भूल कर एक दूसरे के होंठ चूसते हुए ये सब करते रहे और फिर सुनील काम पे चला गया। रुखसाना ने दरवाजा बंद किया और घर के काम निपटाने लगी।

दो दिन से नज़ीला से उसकी बात नहीं हुई थी और उस दिन आई-ब्राऊ और फेशियल करवाना भी रह गया था... इसलिये रुखसाना अपने काम निपटा कर नज़ीला के घर जाने के लिये निकली। आज भी नज़ीला गेट खोल कर अंदर गयी तो मेन-डोर तो बंद था लेकिन ब्यूटी पार्लर का दरवाजा खुला हुआ था। वो पार्लर के अंदर गयी तो पार्लर के पीछे से घर के अंदर जाने का दरवाजा आज भी खुला हुआ था। रुखसाना ने इस दफ़ा वो दरवाजा खटखटाना ही ठीक समझा। रुख्साना ने दरवाजा नॉक किया तो नज़ीला ने आकर जब रुखसाना को पार्लर में खड़े देखा तो वो बोली, "अरे रुखसाना... तू वहाँ क्यों खड़ी है... अंदर आ जा ना!" नज़ीला घर के अंदर आ गयी तो नज़ीला ने उसे हाल में सोफ़े पर बिठाते हुआ पूछा, "रुखसाना आज क्या बात है... आज नॉक क्यों कर रही थी... सीधी अंदर आ जाती... तेरा ही घर है!" रुखसाना ने मुस्कुराते हुए नज़ीला की ओर देखते हुए कहा, "भाभी वो मैंने इस लिये दरवाजे पे नॉक किया था कि क्या मलूम आप किसी और ही काम में मसरूफ़ ना हों!"

नज़ीला भी उसकी बात सुन कर मुस्कुराने लगी और उसके पास आकर बैठते हुए बोली, "रुखसाना... आफ़्ताब तो उसी दिन चला गया था... मैं आज घर पर अकेली हूँ... वैसे तूने सही किया कि दरवाजे पे नॉक कर दिया... हमें दूसरों के घर में जाने से पहले डोर पे नॉक कर ही लेना चाहिये... पता नहीं अंदर क्या देखने को मिल जाये... और हमें भी ऐसे काम डोर बंद करके ही करने चाहिये... पर शायद तू आज हाल का दरवाजा बंद करना भूल गयी थी..!" रुखसाना थोड़ा सा हैरान होते हुए बोली, "क्यों क्या हुआ नजिला भाभी...?"

नज़ीला बोली, "अब इसमें मेरी कोई गल्ती नहीं है... देख मैं तेरे घर आयी थी सुबह... तब तू उस लड़के के आगोश में लिपटी हुई उससे अपनी गाँड मसलवा रही थी... तू तो बड़ी तेज निकाली रुखसाना... घर में ही इंतज़ाम कर लिया है!" नज़ीला की बात सुन कर रुखसाना का केलजा मुँह को आ गया। वो फटी आँखों से नज़ीला के चेहरे को देखने लगी जिसपे एक अजीब सी मुस्कान छायी हुई थी। "अरे रुखसाना घबराने की कोई बात नहीं है... अगर मुझे तेरे राज़ का पता चल गया तो क्या.. तुझे भी तो मेरे बारे में सब मालूम है... देख रुखसाना मैं सब जानती हूँ कि तूने ज़िंदगी में कभी खुशी नहीं देखी... तुझे अपने शौहर के साथ सैक्स लाइफ़ का लुत्फ़ शायद कभी नसीब नहीं हुआ और तुझे अपनी ज़िंदगी जीने का पूरा हक़ है... तू घबरा नहीं... हम दोनों एक दूसरे को कितने सालों से जानती हैं... हम दोनों ने एक दूसरे का अच्छे-बुरे वक़्त में साथ दिया है... और मैं यकीन से कहती हूँ कि हम दोनों के ये राज हम दोनों के बीच में ही रहेंगे... पर ये बाता कि तूने उस हैंडसम लड़के को पटाया कैसे..!"

रुखसाना: "अब मैं आपको कैसे बताऊँ भाभी... बस ऐसे ही एक दिन अचानक से सब कुछ हो गया!"

नज़ीला: "अरे बता ना कैसे हुआ... जैसे मैंने तुझे अपने और आफ़्ताब के बारे में बताया था... देख मैंने अपनी कोई बात नहीं छुपायी तुझसे... अब तू भी मुझे सब बता दे...!" फिर नज़ीला ने तब तक रुखसाना की जान नहीं छोड़ी जब तक रुखसाना ने उसे सब कुछ तफ़सील में नहीं बता दिया। रुखसाना ने भी काफ़ी तफ़सील से अपनी रंग रलियों की हर एक बात नज़िला को बतायी। रुखसाना की दास्तान सुनकर नज़ीला की हवस भी भड़क गयी। उसे रुखसाना की किस्मत पे रश्क़ होने लगा। "वाह रुखसाना... तू तो बड़ी किस्मत वाली है... वो लड़का अपनी ज़ुबान से तेरे पैर और सैंडल तक चाटता है... माशाल्लाह... और तू शराब भी पीती है उसके साथ...!" नज़ीला ने ताज्जुब जताते हुए कहा।

"पर नज़ीला भाभी... फ़ारूक से ज्यादा सानिया खासतौर पे हमेशा उस वक़्त घर पे होती है जब सुनील घर पर होता है... भाभी दो-दो तीन-तीन दिन निकल जाते हैं और मैं तड़पती रह जाती हूँ... समझ में नहीं आ रहा क्या करूँ!"

नज़ीला: "तो मैं किस रोज़ काम आऊँगी... तू ये बता कि वो घर वापस कब आता है...!"

रुखसाना: "भाभी वो शाम को पाँच बजे के करीब घर वापस आता है... लेकिन हफ़्ते में दो या तीन दिन उसकी नाइट ड्यूटी लगती है तो सिर्फ़ फ्रेश होने आता है थोड़ी देर के लिये!" रुखसाना को कहाँ मालूम था कि सुनील की नाइट ड्यूटी तो दर असल नफ़ीसा के बेडरूम में लगती है।

नज़ीला: "और फ़ारूक भाई...?"

रुखसाना: "आपको तो मालूम ही है कि उनका कोई पता नहीं... वैसे तो सात बजे आते हैं और फिर पीने बैठ जाते हैं... और अगर बाहर से अपने नशेड़ी दोस्तों के साथ पी कर आते हैं तो आने में नौ-दस बज जाते हैं... मुझे उनसे उतनी फ़िक्र नहीं जितना कि सानिया की नज़रों से होशियार रहना पड़ता है!"

नज़ीला: "अच्छा ठीक है... मैं आज शाम को तेरे घर आऊँगी... और सानिया को अपने साथ बातों में मसरूफ़ करके बैठी रहुँगी... तू मौका देख कर सुनील से चुदवा लेना!"

रुखसाना: "हाय तौबा नज़ीला भाभी.... आप कैसे बोल रही हैं ये सब..!" हालाँकि रुखसाना खुद सुनील के साथ खुलकर ऐसे अल्फ़ाज़ बोलती थी लेकिन नज़ीला के सामने अभी भी शराफ़त दिखा रही थी।

नज़ीला: "तो क्या हुआ यार... सैक्स में इन सब बातों से और मज़ा आता है..!"

रुखसाना: "पर नज़ीला भाभी... कहीं कोई गड़बड़ हो गयी तो?"

नज़ीला: "मैं हूँ ना.. तू फ़िक्र ना कर... मैं संभाल लुँगी...!"

उसके बाद नज़ीला से अपनी आई-ब्राऊज़ और फेशियल करवा कर रुखसाना घर आ गयी। करीब चार बजे सानिया कॉलेज से घर आ गयी। रुखसाना को आज काफी बेचैनी सी महसूस हो रही थी कि कहीं कोई गड़बड़ ना हो जाये... कहीं सानिया को शक़ ना हो जाये। जैसे-जैसे पाँच बजने को हो रहे थे रुखसाना का दिल रह-रह कर ज़ोर से धड़क उठता था। करीब साढ़े-चार बजे नज़ीला सलील को साथ लेकर रुखसाना के घर आ गयी और रुखसाना को सजी-धजी देखते ही बोली, "माशाल्लाह रुखसाना... सच में कहर ढा रही हो...!" फिर रुखसाना और नज़ीला सानिया के रूम में ही चली गयीं और तीनों बैठ कर बातें करने लगी।

करीब पाँच बजे सुनील घर आया तो रुखसाना ने जाकर दरवाजा खोला। रुखसाना ने सुनील को इशारे से बताया कि सानिया के साथ-साथ और भी कोई घर में है और ये कि वो थोड़ी देर में खुद ऊपर उसके पास आयेगी। सुनील सीधा ऊपर चला गया। रुखसाना फिर से सानिया और नज़ीला के पास आकर बैठ गयी। तीनों थोड़ी देर इधर-उधर के बातें करती रही। सानिया साथ-साथ सलील को उसका होमवर्क भी करवा रही थी। थोड़ी देर बाद नज़ीला ने रुखसाना को इशारे से जाने के लिये कहा।

"भाभी आप बैठो... मैं ऊपर से कपड़े उतार लाती हूँ..." ये कहते हुए रुखसाना ने एक बार ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़े होकर थोड़ा सा मेक-अप दुरुस्त किया और पाँच इंच ऊँची पेंसिल हील के सैंडल फर्श पे खटखटाती हुई कमरे से बाहर निकल गयी। ऊपर जाते हुए उसका दिल जोरों से धड़क रहा था कि कहीं सानिया ऊपर ना जाये... क्या पता नज़ीला भाभी सानिया को संभाल पायेंगी भी या नहीं। पर चूत में तीन दिनों से आग भी तो दहक रही थी। वो ऊपर सुनील के कमरे में आयी तो देखा कि सुनील वहाँ नहीं था। रुखसाना कमरे से बाहर आयी और बाथरूम की तरफ़ जाने लगी। बाथरूम का दरवाजा थोड़ा सा खुला हुआ था। रुखसाना ने करीब पहुँच कर सुनील को आवाज़ लगायी, "सुनील तू अंदर है क्या?" रुखसाना बाथरूम के दरवाजे के बिल्कुल करीब खड़ी थी। अंदर से कोई जवाब नहीं आया। बस पानी गिरने की आवाज़ आ रही थी। फिर अचानक से बाथरूम का दरवाजा खुला और सुनील ने बाहर हाथ निकाल कर रुखसाना को अंदर खींच लिया। रुक्खसाना पहले तो कुछ पलों के लिये एक दम से घबरा गयी। अंदर सुनील एक दम नंगा खड़ा था। उसका लंड हवा में झटके खा रहा था। उसके तने हुए आठ इंच के तगड़े लंड को देख कर रुखसाना की चूत में बिजलियाँ दौड़ने लगीं।

"कब से आपकी वेट कर रहा था... कितना इंतज़ार करवाती हो आप भाभी!" सुनील ने कहा तो रुखसाना बोली, "वो नीचे सानिया है... इस लिये ऐसे नहीं आ सकती थी ना!" सुनील ने उसकी तरफ़ देखते हुए रुखसाना का हाथ अपने फुंफकारते हुए लंड पर रख दिया। रुखसाना का पूरा जिस्म सुनील के गरम लंड को अपनी हथेली में महसूस करते ही काँप उठा। उसकी मुट्ठी अपने आप ही सुनील के लंड पर कसती चली गयी और उसके होंठ सुनील होंठों के करीब आते गये। फिर जैसे ही सुनील ने रुखसाना के होंठों को अपने होंठों में दबोचा तो वो पागलों की तरह रुखसाना के होंठों को चूसने लगा। रुखसाना की चूत उबाल मारने लगी और वो सुनील की बाहों में कसती चली गयी। रुखसाना की कमीज़ उतारने के बाद सुनील उसकी गर्दन और फिर उसकी चूचियों को चूमने लगा। फिर रुखसाना की सलवार का नाड़ा खोल कर उसकी सलवार भी निकाल दी और फिर नीचे उसके पैर और सैंडल चूमने के बाद टाँगों से होते हुए सुनील उसकी जाँघों को को चूमने लगा। फिर सुनील खड़ा हुआ और रुखसाना की एक टाँग के नीचे अपनी हाथ डाल कर ऊपर उठा दिया। रुक्खसाना का पूरा जिस्म जैसे ही थोड़ा सा ऊपर उठा तो उसने दूसरा हाथ भी रुखसाना की दूसरी टाँग के नीचे डालते हुए उसे हवा में उठा लिया और रुखसाना के कान में सरगोशी करते हुए बोला, "भाभी मेरी जान! अपने दिलबर लौड़े को पकड़ कर अपनी फुद्दी में डाल लो!" रुखसाना उससे लिपटी हुई उसकी गोद में हवा में उठी थी। उसे ये पोज़िशन बड़ी दिलचस्प लग रही थी। सुनील ने दोनों हाथों से उसके चूतड़ों को दबोच रखा था। रुखसाना ने एक हाथ नीचे ले जाकर उसके लंड को पकड़ कर अपनी चूत के छेद पर लगा दिया। सुनील ने बिना एक पल रुके उसके चूतड़ों को दबोचते हुए एक ज़ोरदार धक्का मारा और सुनील का लंड रुखसाना की फुद्दी की दीवारों को चीरता हुआ एक ही बार में पूरा का पूरा समा गया। "ऊऊऊईईईई सुनील तूने तो मार ही डाला... आअहहहल्लाह!" रुखसाना चिहुँकते हुए सिसक उठी। सुनील ने हंसते हुए उसके होंठों को चूमा और फिर अपने लंड को आधे से ज्यादा बाहर निकाल कर एक ज़ोरदार धक्का मारा। सुनील का लंड फ़च की आवाज़ से रुखसाना की चूत की दीवारों से रगड़ खाता हुआ फिर से अंदर जा घुसा। "आहह सुनील धीरे कर ना...!" रुखसाना ने अपनी बाहों को सुनील की गर्दन में कसते हुए कहा। उसकी चूचियाँ सुनील के चौड़े सीने में धंसी हुई थी और सुनील का मोटा मूसल जैसा लंड उसकी चूत की गहराइयों में समाया हुआ था। "क्या धीरे करूँ भाभी!" सुनील अब धीरे-धीरे रुखसाना की चूत में अपने लंड को अंदर बाहर करते हुए बोला।
 
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#19
रुखसाना समझ गयी कि सुनील क्या सुनना चाहता है। वो कसमसाते हुए बोली, "ऊँहहह... धीरे प्यार से चोद!" सुनील ने उसकी गाँड को दोनों तरफ़ से कस के पकड़ कर तेजी से अपने लंड को उसकी चूत में अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया... जब उसका लंड जड़ तक रुखसाना की चूत में समाता तो उसकी जाँघें रुखसाना के चूतड़ों पे नीचे से टकरा कर थप-थप की आवाज़ करने लगती। सुनील के ताबड़तोड़ धक्कों ने उसकी चूत की दीवारों को रगड़ कर रख दिया। रुखसाना की चूत से पानी बह कर सुनील के लंड को भिगो रहा था। "ओहहहह सुनील.... हाँ ऐसेऐऐऐ हीईई चोद मुझे मार मेरी फुद्दी.... आहहहह फाड़ दे मेरीईईई फुद्दी आज.... आहहहहहह चोद मेरी चूत को.... आआह भर दे इसे अपनी लंड के पानी से... ऊँईईईंईं!" रुखसाना चुदाई की मदहोशी में बिल्कुल बेपरवाह होकर सिसकते हुए बोले जा रही थी। उसकी टाँगें सुनील की कमर में कैंची की तरह कसी हुई थी।

सुनील अब पूरी ताकत से रुखसान को हवा में उठाये हुए चोद रहा था। रुखसाना उसके लंड के धक्के अपनी चूत की गहराइयों में महसूस करते हुए इस कदर मदहोश हो चुकी थी कि उसे इस बात की परवाह भी नहीं रही कि नीचे सानिया भी घर में है। रुखसाना भी अपनी गाँड को ऊपर-नीचे करने लगी थी। सुनील उसके होंठों को चूसते हुए अपने लंड को पूरी रफ़्तार से उसकी चूत की गहराइयों में पेल रहा था। "हाय सुनील मेरीईई फुद्दी तो गयीईईई... हाँ येऽऽऽ ले आआहह ऊँऊँहहह ऊऊऊईईईई ये ले मेरीईईईई फुद्दी ने पानी छोड़ा... आहह आँहहह..! रुखसाना का जिस्म झड़ते हुए बुरी तरह काँपने लगा। सुनील का लंड भी इतने में झड़ने लगा, "ओहहह रुखसानाआआहहहह भाआआभी येऽऽऽ लेऽऽऽ साली येऽऽऽ ले मेरेऽऽऽ लंड का पानी ऊँह ऊँह ऊँह!" दोनों झड़ कर हाँफने लगे और थोड़ी देर बाद सुनील का लंड सिकुड़ कर रुखसाना की चूत से बाहर आ गया तो सुनील ने रुखसाना को नीचे उतारा।

रुखसाना ने जल्दी से अपने कपड़े पहने और बाहर आ गयी। जैसे ही वो बाहर आयी तो उसे नज़ीला ऊपर आती हुई नज़र आयी। नज़ीला उसके पास आकर बोली, "यार वो सानिया पूछ रही थी कि अम्मी को इतना वक़्त क्यों लग गया ऊपर... और ऊपर आने को हो रही थी... मैंने उसे मुश्किल से रोका है सॉरी यार!"

रुखसाना मुस्कुराते हुए बोली, "कोई बात नहीं नज़ीला भाभी... आप जिस काम के लिये आयी थी वो तो हो गया!" नज़ीला ने पूछा, "क्या हो गया... पर तू तो अभी बाथरूम से बाहर आ रही है... इतनी जल्दी...?" नज़ीला के कान में फुसफुसाते हुए रुखसाणा बोली, "मैं जब ऊपर आयी थी तो सुनील अंदर नहा रहा था... उसने मुझे अंदर ही खींच लिया..!" नज़ीला ने शरारत भरी मुस्कुराहट के साथ पूछा, "तो बाथरूम में ही तेरी फुद्दी मार ली उसने... कैसे?" रुखसाना शर्माते हुए बोली, "वो मुझे अपनी गोद में ऊपर उठा कर!"

"क्या खड़े-खड़े ही तुझे उठा कर चोद दिया... वाह... काश हमारी भी किस्मत ऐसे होती... तू कहे तो मैं सानिया को अपने घर ले जाऊँ.!" नज़ीला ने पूछा तो रुखसाना ने कहा कि उसकी जरूरत नहीं क्योंकि सुनील नाइट-ड्यूटी पे जा रहा है जबकि सुनील तो नफ़ीसा के घर उसके साथ अपनी रात रंगीन करने जा रहा था। फिर दोनों नीचे आ गयी। नज़ीला कुछ और देर बैठी फिर वो अपने घर चली गयी। रुखसाना ने महसूस किया कि सानिया उसकी तरफ़ थोड़ा अजीब नज़रों से देख रही थी। रुखसाणा ने तो कुछ ज़ाहिर नहीं होने दिया लेकिन रुखसाना की लिपस्टिक मिट चुकी थी और उसकी सलवार- कमीज़ पे भी कईं जगहों पे भीगने के निशान सानिया के दिमाग में शक पैदा कर रहे थे।

दिन इसी तरह गुज़र रहे थे। उस दिन के बाद नज़ीला की बदौलत रुखसाना को अब अक्सर ऐसे मौके मिलने लगे जब शाम को नज़ीला सनिया को किसी बहाने से एक-दो घंटे के लिये अपने घर बुला लेती थी। पर रुखसाना को ऐसा कोई मौका नहीं मिला जब वो पुरी रात सुनील के साथ शराब के नशे में मदहोश होके चुदाई के मज़े ले सके। उधर सानिया को तो पहली बार सुनील से चुदने के बाद दूसरा मौका मिला ही नहीं था। इसके अलावा सानिया को रुखसाना पे भी थोड़ा शक तो होने लगा था पर वो भी श्योर नहीं थी। उसका रवैया वैसे रुखसाना के साथ नॉर्मल था। इस दौरान रुखसाना और नज़ीला आपस में कुछ ज्यादा ही फ्रेंक हो गयी थीं। जब भी नज़ीला उसके घर आती या रुखसाना उसके घर जाती तो दोनों सिर्फ़ सैक्स की ही बातें करतीं। रुखसाना और नज़ीला अक्सर दिन में नज़ीला के घर ब्लू फ़िल्में देखने के साथ-साथ शराब भी पीने लगीं। जब से रुखसाना ने उसे बताया था कि वो शराब के नशे में मदहोश होकर खूब मज़े से रात भर सुनील से चुदवाती है तब से ही नज़ीला को भी शराब पीने की ख्वाहिश थी।

रुखसाना किसी चुदैल राँड की तरह होती जा रही थी जिसे हर वक़्त अपनी चूत में लौड़ा लेने की मचमचाहट रहने लगी। शराब पी कर साथ में ब्लू फ़िल्में देखते हुए इस दौरान रुखसाना और नज़ीला के बीच इस क़दर नज़दीकियाँ बढ़ गयी कि दोनों लेस्बियन सैक्स करने लगी। दोनों ब्लू-फ़िल्में देखते हुए घंटों आपस में लिपट कर एक दूसरे के जिस्म सहलाती... चूत और गाँड चाटती। पर लंड तो लंड ही होता है और नज़ीला भी सुनील से चुदवाने के मौके की ताक में थी। एक दिन जब नज़ीला के घर रुखसाना और नज़ीला नंगी होकर लेस्बियन चुदाई का मज़ा ले रही थीं तो नज़ीला ने रुखसाना को बताया कि उसका शौहर अगले दिन टूर पर जा रहा है एक रात के लिये। "यार... रुखसाना कल रात मैं यहाँ अकेली रहुँगी... यार अच्छा मौका है... तू सुनील को कल रात यहाँ बुला ले... हम दोनों खूब मस्ती करेंगे...!" नज़ीला की बात सुन कर रुखसाना एक दम चौंकते हुए बोली, "क्या क्या कहा आपने भाभी...?"

नज़ीला बोली, "वही जो तूने सुना... देख यार मैं तेरी इतनी मदद करती हूँ ताकि तू उसके साथ मौज कर सके... तो बदले में मुझे भी तो कुछ मिलना चाहिये... और वैसे भी तेरा कौन सा उसके साथ कोई रिश्ता है... वो आज यहाँ तो कल कहीं और चला जायेगा...! रुखसना नज़ीला की बात सुन कर सोच मैं पड़ गयी कि क्या करूँ... इतने दिनों बाद ऐसा मौका हाथ आया था... रुखसाना उसे हाथ से जाने नहीं देना चाहती थी, "ठीक है भाभी मैं आपको आज शाम तक सोच कर बता दूँगी कि क्या करना है!" नज़ीला बोली कि, "चल सोच ले... रोज़-रोज़ ऐसे मौके नहीं आयेंगे!" उसके बाद रुखसाना अपने घर आ गयी। दिल और दिमाग दोनों में जंग चल रही थी। रुखसाना सोचने लगी कि नज़ीला भाभी कह तो ठीक रही हैं... जवान लड़का है.... क्या भरोसा वो कल कहाँ हो... कल को अगर उसका तबादला हो गया तो... ये दिन बार-बार नहीं आयेंगे... इन दिनों को जी भर कर के जी लेना चाहिये! शाम को जब सुनील वापस आया तो रुखसाना ने उसे सारी बात बतायी। रुखसाना के सामने सुनील शरीफ़ बनते हुए बोला कि वो ये काम किसी और के साथ नहीं करेगा पर रुखसाना के एक दो बार कहने पर ही वो मान गया। रुकसाना ने नज़ीला को फ़ोन करके खुशखबरी दे दी।

फ़ारूक ने उसी रात को रुखसाना को बताया कि उसके मामा की मौत हो गयी है और अगले दिन सुबह उन दोनों को उनके गाँव जाना है और शाम को चार-पाँच बजे तक वापस आ जायेंगे। एक पल के लिये रुखसाना को नज़ीला के साथ बनाया प्रोग्राम बेकार होता नज़र आया पर ये सोच कर दिल को तसल्ली मिली कि शाम को तो वो वापस आ ही जायेंगे। अब प्लैन के मुताबिक सुनील को सानिया और फ़ारूक के सामने नाइट-ड्यूटी का बहाना बनाना था और नज़ीला को रुखसाना को अपने घर सोने के लिये फ़ारूक को कहना था। अगले दिन सुबह की ट्रेन से फ़ारूख और रुखसाना उसके मामा के गाँव के लिये निकल गये। सुनील भी उनके साथ ही घर से निकल गया था स्टेशन जाने के लिये।

रुखसाना और फ़ारूक करीब ग्यारह बजे उसके मामा के घर पहुँचे पर उन्हें वहाँ देर हो गयी और और उनकी आखिरी ट्रेन छूट गयी। रुखसाना ने नज़ीला के साथ जो भी प्लैन बनाया था वो सब उसे मिट्टी में मिलता हुआ नज़र आ रहा था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। उधर सानिया घर पर अकेली थी। उन्होंने सानिया को कभी रात भर के लिये अकेला नहीं छोड़ा था। रुखसाना को उसकी चिंता सताने लगी थी। उसने फ़ारूक से कहा कि वो सानिया को घर पर फ़ोन करके उसे बता दें कि वो आज रात नहीं आ पायेंगे और कल सुबह आयेंगे और इसलिये वो नज़ीला भाभी के यहाँ सो जाये। रुखसाना के ज़हन में अजीब सा डर था... सुनील को लेकर... कहीं वो सानिया के साथ कुछ गलत ना कर दे। रुखसाना इस बात से अंजान थी कि सुनील और सानिया इतने करीब आ चुके हैं कि वो चुदाई भी कर चुके हैं।

उसके बाद रुखसाना ने नज़ीला को भी फ़ोन करके सारी बात बता दी और उसे कहा कि सानिया को आज रात अपने घर सुला ले और सुनील के आने पर उसे घर की चाबी देदे। नज़ीला ने उसे बेफ़िक्र रहने के लिये कहा तो रुखसा ना को राहत महसूस हुई कि चलो नज़ीला की वजह से उसे सानिया की फ़िक्र नहीं करनी पड़ेगी। पर जो वो सोच रही थी शायद उससे भी बदतर होने वाला था।

शाम के पाँच बजे के करीब नज़ीला जब सानिया को अपने घर ले आने के लिये अपने घर से बाहर निकली ही थी कि उसे बाइक पर सुनील आता हुआ नज़र आया। नज़ीला ने देखा कि सुनील ने बाइक गेट के अंदर कर दी और फिर उसने घंटी बजायी तो सानिया ने दरवाजा खोला और सुनील अंदर चला गया। अब नज़ीला तो थी है ऐसी जो हर बात में कुछ ना कुछ उल्टा जरूर सोचती थी। वो तेजी से चलते हुए रुकसाना के घर आयी और गेट खोलकर जैसे ही वो डोर-बेल बजाने वाली थी कि उसे हॉल की खिड़की से कुछ आवाज़ें सुनायी दीं। उसने देखा कि खिड़की खुली हुई थी लेकिन उसपे पर्दा पड़ा हुआ था। नज़ीला थोड़ा सा आगे होकर पर्दे के किनारे से अंदर झाँकने लगी। अंदर का नज़ारा देख कर नज़ीला के होंठों पर एक कमीनी मुस्कान फ़ैल गयी। अंदर सुनील ने सानिया को हॉल में ही अपनी बाहों में भरा हुआ था। सानिया और सुनील एक दूसरे के होंठों को चूस रहे थे। सानिया ने हाई-हील के सैंडल पहने होन के बावजूद अपनी ऐड़ियाँ और ज्यादा उठायी हुई थीं और सुनील से किसी बेल की तरह लिपटी हुई अपने होंठ चुसवा रही थी। सुनील का एक हाथ सानिया की सलवार के अंदर था और वो उसकी चूत को मसल रहा था।

सानिया: "ओहहहह सुनील... ये तुमने मुझे क्या कर दिया है!"

सुनील: "ऊँहह सानिया मेरी जान... बहुत दिनों बाद आज तुम मेरे हाथ आयी हो..!"

सानिया: "लेकिन सुनील... नज़ीला आँटी आने वाली होंगी.. अम्मी ने नज़ीला आँटी को फ़ोन करके कहा है कि वो मुझे अपने साथ अपने घर सुला लें!"

सुनील: "ओह ये क्या बात है... साला आज इतना अच्छा मौका था..!"

सानिया: "अब मैं क्या कर सकती हूँ... मैं तो खुद तुमसे मिलने के लिये तड़प रही थी...!"

तभी नज़ीला ने डोर-बेल बजा दी तो सुनील और सानिया दोनों हड़बड़ा गये। सुनील जल्दी से ऊपर चला गया। सानिया ने खुद को ठीक किया और दरवाजा खोला तो सामने नज़ीला खड़ी थी, "सानिया क्या कर रही थी?"

सानिया: "कुछ नहीं आँटी... पढ़ रही थी.!"

नज़ीला: "अच्छा वो लड़का जो ऊपर किराये पे रहता है आ गया क्या?"

सानिया: "हाँ आँटी!"

नज़ीला: कहाँ है वो?

सानिया: "ऊपर है... अपने कमरे में!"

नज़ीला: "अच्छा एक काम कर तू जल्दी से उसके लिये चाय बना दे... मैं उसे चाय दे आती हूँ... और उसे बता दूँगी कि आज तेरी अम्मी और अब्बू नहीं आयेंगे और तू मेरे साथ मेरे घर पर सोने जा रही है... खाना वो बाहर होटल में खा लेगा..!"

सानिया: "ठीक है आँटी!"

उसके बाद सानिया ने चाय बनायी और नज़ीला सुनील को चाय देने ऊपर चली गयी। सुनील अपने बेड पर बैठा कुछ सोच रहा था। नज़ीला ने उसकी तरफ़ देख कर मुस्कुराते हुए कहा, "चाय रखी है तुम्हारे लिये... पी लेना... वो आज रुखसाना और फ़ारूक भाई नहीं आ पायेंगे... इसलिये सानिया को मैं अपने साथ अपने घर ले जा रही हूँ... किसी चीज़ के जरूरत हो तो बे-तकल्लुफ़ बता दो...!"

सुनील: "जी कोई बात नहीं मैं मैनेज कर लुँगा..!"

नज़ीला पलट कर जाने लगी लेकिन फिर वो रुकी और सुनील की तरफ़ पलटी। "वैसे सुनील... रुखसाना ने जो आज प्लैन बनाया था... वो तो हाथ से गया... पर अगर तुम चाहो तो रात को नौ बजे आ सकते हो... मैं नौ बजे तक इंतज़ार करुँगी...!" नज़ीला ने कातिल मुस्कान के साथ सुनील की तरफ़ देखते हुए कहा।

सुनील: "पर सानिया... वो तो आपके घर ही जा रही है!"

नज़ीला: "तुम उसकी फ़िक्र ना करो... तुम ठीक नौ बजे मेरे घर आ जाना... गेट के बिल्कुल सामने मेरा पार्लर है... मैं उसका दरवाजा अंदर से खुला छोड़ दूँगी... पार्लर में आने के बाद अंदर से दरवाजा लॉक कर लेना और वहीं बैठे रहना... जब सानिया सो जायेगी तो मैं वहाँ आ जाऊँगी... और हाँ... तुम्हें कुछ लाने की जरूरत नहीं.... शराब और शबाब का सारा इंतज़ाम मैंने कर रखा है!"

उसके बाद नज़ीला सानिया को साथ लेकर अपने घर चली गयी। सानिया और नज़ीला और सलील रूम में बैठे थे। शाम के करीब साढ़े-छः बज चुके थे। "सानिया चल तेरा फेशियल और पेडिक्योर कर देती हूँ...!" नज़ीला ने सानिया को कहा। फिर सानिया और नज़ीला पार्लर में आ गये। सानिया ने अपनी सैंडल उतार दी और नज़ीला उसका पेडिक्योर करने लगी। "सानिया एक बात पूछूँ...?" नज़ीला ने सानिया की तरफ़ देखते हुए कहा।

सानिया: "हाँ आँटी.. पूछें!"

नज़ीला: "तुझे सुनील कैसा लगता है...!"

नज़ीला की बात सुन कर घबराते हुए सानिया बोली, "पर आँटी आप ये क्यों पूछ रही हो?"

नज़ीला: "चल अब नाटक करने से क्या फ़ायदा... मैं तुझे बता ही देती हूँ... जब मैं तेरे घर आयी थी... तब मैंने खिड़की सब देख लिया था... तू कैसे उससे अपने होंठ चुसवा रही थी... और वो तेरी फुद्दी को सलवार के अंदर हाथ डाल कर सहला रहा था...!"

ये बात सुनते ही सानिया के चेहरे का रंग एक दम से उड़ गया। उसका केलजा मुँह को आ गया। वो कभी अपने सामने नज़ीला की तरफ़ देखती जो उसके पैर की मालिश कर रही थी तो कभी नीचे फ़र्श की तरफ़। "तुझे ये सब करते हुए डर नहीं लगा... अगर तेरी अम्मी और अब्बू को पता चल गया कि तू उनके पीछे अपना मुँह काला करवाती फिरती है तो वो तुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे... बोल बताऊँ तेरी अम्मी को..?" नज़ीला की धमकी सुनकर सानिया की हालत रोने जैसी हो गयी थी। सानिया ने नज़ीला का हाथ पकड़ लिया और रुआँसी आवाज़ में बोली, "प्लीज़ आँटी... अम्मी-अब्बू को नहीं बताना... वो मुझे मार डालेंगे...!"

शिकार को अपने जाल में फंसते देख कर नज़ीला बोली, "तुझे क्या यही... दूसरे मज़हब का लड़का मिला था सानिया... क्यों क्या तूने उसके साथ ये सब!"

सानिया: "आँटी मैं सुनील से प्यार करती हूँ..!"

नज़ीला: "प्यार हुँम्म.... आने दे तेरे अम्मी और अब्बू को... सब प्यार-मोहब्बत भूल जायेगी!"

सानिया: "आँटी प्लीज़... आपको अल्लाह का वस्ता... प्लीज़ आप अम्मी और अब्बू से कुछ ना कहना!"

नज़ीला: "हम्म्म चल ठीक है... नहीं बताती... पर उसके बदले में मुझे क्या मिलेगा...?"

सानिया: "आँटी आप जो कहेंगी मैं वो करुँगी!"

नज़ीला: "सोच ले वरना फिर ना कहना कि मैंने तुझे मौका नहीं दिया और तेरी अम्मी से तेरी शिकायत कर दी...!"

सानिया: "नहीं आँटी ऐसी नौबत नहीं आयेगी... आप जो कहेंगी मैं वो ही करुँगी..!"

नज़ीला: "तो फिर मेरी बात का सही-सही जवाब देना... ये बता तूने सुनील के साथ सैक्स किया है क्या... देख सच बोलना वरना पता लगाने के मुझे और भी तरीके आते हैं...!"

नज़ीला की बात सुन कर सानिया खामोश हो गयी। वो कुछ नहीं बोल पायी। नज़ीला ने फिर से उसे पूछा, "इसका मतलब तू उससे चुदवा चुकी है ना? बता मुझे!" सानिया ने हाँ में सिर हिला दिया।

नज़ीला: "हाय मेरे अल्लाह... तो तू हक़ीकत में उसका लंड अपनी फुद्दी मैं ले चुकी है... कब चोदी उसने तेरी फुद्दी?"

सानिया: "वो आँटी एक दिन घर पर ही..!"

नज़ीला: "अरे तो इसमें इतना शरमाने या घबराने की क्या बात है... मैं तो तेरी सहेली जैसी हूँ... खैर चल मैं तेरा फेशियल कर देती हूँ पहले फिर तू जल्दी से घर जा और कोई और बढ़िया से कपड़े और सैंडल पहन कर आ... उसके बाद तेरा मेक-अप कर दुँगी ताकि रात को जब सुनील तुझे देखे तो बस दीवाना हो जाये!"

सानिया: "रात को सुनील... मैं समझी नहीं!"

नज़ीला: "चल ठीक है तो फिर सुन.... मैंने सुनील को आज रात यहाँ बुलाया है...!"

सानिया एक दम चौंकते हुए बोली, "क्या?"

नज़ीला: "हाँ मैंने उसे बुलाया है... वो रात को नौ बजे आयेगा.... अब मुद्दे की बात करते हैं... देख तुझे तो मालूम है कि तेरे अंकल तो मेरी चूत की प्यास नहीं बुझा पाते... इसलिये मुझे भी जवान लंड की ख्वाहिश है... आज मैं भी तेरे साथ उससे अपनी चूत की आग को ठंडा करवाउँगी!"

सानिया: "ये... ये आप क्या बोल रही हो आँटी!"

नज़ीला: "वही जो तू सुन रही है... अगर तुझे मेरी बात नहीं माननी तो ठीक है... मैं कल तेरी अम्मी को सब बता दुँगी...!"

सानिया: "नहीं नहीं... प्लीज़ आप अम्मी से कुछ नहीं कहना... आप जो बोलेंगी वो मैं करुँगी..!"

नज़ीला: "वेरी गुड... चल फिर रात के लिये तैयारी करते हैं!"

फिर नज़ीला ने सानिया का फेशियल किया और सानिया कपड़े बदलने अपने घर चली गयी। सुनील उस वक़्त घर पे नहीं था क्योंकि वो खाना खाने बाहर चला गया था। इतने में नज़ीला भी नहा कर बेहद सैक्सी सलवार कमीज़ पहन कर तैयार हो गयी। उसकी कमीज़ स्लीवलेस और बेहद गहरे गले वाली थी। रुखसाना से उसे सुनील की सब पसंद-नापसंद मालूम थी तो उसने बेहद ऊँची पेंसिल हील की कातिलाना सैंडल भी पहन ली। सानिया भी अपने घर से स्लीवलेस कुर्ती और पलाज़्ज़ो सलवार के साथ अपनी अम्मी की एक ऊँची हील वाली सेन्डल पहन कर आ गयी। फिर दोनों ने खाना खाया और उसके बाद नज़िला ने सानिया का और अपना अच्छे से मेक-अप किया। आठ बजे के करीब दोनों की फुद्दियाँ लंड लेने के मचलने लगी थीं।

रात के नौ बजे रहे थे। सलील नज़ीला के बेडरूम में सो चुका था और सानिया ड्राइंग रूम में टीवी देख रही थी। नज़ीला खिड़की के पास खड़ी होकर बार-बार बाहर झाँक रही थी... पर सुनील अभी तक नहीं आया था। नज़ीला की बेकरारी बढ़ती जा रही थी। साढ़े नौ बजे तक नज़ीला ने इंतज़ार किया और फिर मायूस होकर सानिया से कहा कि लगता है कि शायद सुनील नहीं आयेगा और फिर ये कह कर सानिया को दूसरे बेडरूम में भेज दिया कि अगर सुनील आया यो वो उसे वहीं ले आयेगी।

बेकरार और मायूस होकर नज़ीला कुद ड्राइंग रूम में ही अकेली बैठ कर शराब पीने लगी। उसने महंगी शराब की बोतल का खास इंतज़ाम किया था कि सुनील के साथ बैठ कर पियेगी लेकिन अब अकेले ही शराब पीते हुए वो अपने दिल में बार-बार सुनील को कोस रही थी। अगले आधे घंटे में नज़ीला दो स्ट्रॉंग पैग पी चुकी थी और तीसरा पैग पीते हुए उसके ज़हन में सानिया को आज रात अपने साथ लेस्बियन सैक्स में शरीक करने का मंसूबा बन रहा था। इतने में उसे बाहर गेट खुलने की आवाज़ आयी। उसने उठ कर खिड़की से झाँका तो उसे सुनील गेट के अंदर सामने पार्लर की तरफ़ जाता हुआ नज़र आया। नज़ीला को शराब पीने का ज्यादा तजुर्बा नहीं था और मायूसी में आज उसने आमतौर से ज़्यादा पी ली थी तो शराब का खासा नशा छाया हुआ था और वो हाई हील की सैंडल में झूमती हुई उस दरवाजे की तरफ़ बढ़ी जो उसके ब्यूटी पार्लर में खुलता था।

नज़ीला ने ब्यूटी पार्लर का दरवाजा खोला तो सुनील पार्लर में अंदर आ चुका था। नज़ीला ने उसे ब्यूटी पार्लर का मेन-डोर अंदर से लॉक करने को कहा और फिर उसे लेकर घर के अंदर ड्राइंग रूम में आ गयी। ब्यूटी पार्लर में तो हल्की सी नाइट-लैंप की रोशनी थी लेकिन ड्राइंग रूम की ट्यूब-लाइट की रोशनी में सामने का नज़ारा देख कर सुनील के होश उड़ गये। चालीस साल की एक गदरायी हुई औरत स्लीवलेस और बेहद गहरे गले की कमीज़ और सलवार पहने खड़ी थी... उसकी कमीज़ के गहरे गले में से उसका क्लीवेज और चूचियों का काफ़ी हिस्सा साफ़ झलक रहा था... शराब और हवस के नशे में चूर नज़ीला का हुस्न और उसके पैरों में हाइ हील के कातिलाना सैंडल देखते ही सुनील का लंड पैंट में झटके खाने लगा। वो नज़ीला के करीब गया और उसके चेहरे के करीब अपना चेहरा ले जाकर सरगोशी में बोला, "आप तो चुदने के लिये पूरी तैयारी करके बैठी हो..!"

नज़ीला उसे सोफ़े पर बिठा कर शराब का पैग देते हुए बड़ी अदा से मुस्कुराते हुए बोली, "यू लक्की बास्टर्ड क्या... किस्मत पायी है तुने.... अभी तो तुझे पता ही नहीं कि मैंने और क्या-क्या तैयारी की हुई है इस रात को यादगार बनने के लिये... मुझे तो लगा कि तू आयेगा ही नहीं..!" ये कह कर नज़ीला अपना शराब का पैग लेकर सुनील की गोद में उसकी जाँघ पर बैठ गयी और अपनी एक बाँह उसकी गर्दन में डाल दी। सुनील ने भी नज़ीला की कमर में एक बाँह डालते हुए उसकी गोलमटोल चूची को जोर से दबा दिया "आआहहहस्सीईई... जान लेगा क्या मेरी..." नज़ीला जोर से सिसकी। सुनील बोला, "मेरी बाइक पंक्चर हो गयी थी इसलिये देर हो गयी... वैसे मुझे भी तो पता चले कि आपने और क्या-क्या तैयारी कर रखी है... शराब और शराब के नशे में चूर शबाब तो मरे सामने है ही!"

नज़ीला शराब का घूँट पीते हुए अदा से बोली, "बताऊँ?" तो सुनील ने कहा कि "हाँ बताओ ना!" नज़ीला बेहद कातिलाना अंदाज़ में मुस्कुराते हुए बोली, "मेरी चूत के अलावा अंदर एक और चूत सज संवर कर तेरे लंड का इंतज़ार कर रही है..!"

"क्या.. कौन?" सुनील चौंकते हुए बोला। उसे लगा कि हो सकता है शायद रुखसाना वापस आ गयी है।

नज़ीला कमीनगी से मुस्कुराते हुए रसभरी आवाज़ में बोली, "सानिया और कौन... श्श्श अब तू सोच रहा होगा कि मुझे कैसे मालूम ये सब कैसे हुआ... है ना? तो चल मैं ही बता देती हूँ... आज जब तू घर आया था तब मैंने खिड़की से सब देख लिया था... कैसे तू उसकी चूत को मसल रहा था... फिर मैंने सानिया को ज़रा धमकाया कि मैं उसकी शिकायत रुखसाना से कर दुँगी... और उसे कबूल करने पर मजबूर कर दिया..!" नज़ीला की बात सुनकर सुनील समझ गया कि ये चुदक्कड़ औरत अपनी सहेली रुखसाना के विपरीत बिल्कुल बिंदास किस्म की है। "अच्छा... जितना मैं सोचता था... आप तो उससे कहीं ज्यादा चालाक हो... बहुत चालू चीज़ हो आप!" सुनील हंसते हुए बोला तो नज़िला ने कहा, "अरे चालू नहीं हूँ मैं... अब क्या करूँ मेरी ये चूत लंड के लिये तड़पती है... बस चूत के हाथों मजबूर हूँ... वैसे तू भी कम चालू नहीं है... दोनों माँ-बेटी को अपने लंड का दीवाना बना रखा है तूने... चल पैग खतम कर... अंदर चलते हैं.... सानिया भी तुझसे चुदने के लिये मरी जा रही है...!"

दोनों ने अपने पैग खतम किये और नज़ीला और सुनील दोनों सानिया वाले बेडरूम की तरफ़ जाने लगे। हाइ हील के सैंडल में चलते हुए नशे की हालत में नज़ीला के कदमों में लड़खड़ाहट नुमाया तौर पे मौजूद थी। पहले नज़ीला बेडरूम में दाखिल हुई। बेडरूम में ट्यूब-लाइट जल रही थी और सानिया बेड पर पैर नीचे लटका कर बैठी हुई कोई मैगज़ीन पढ़ रही थी। उसने अपने कपड़े नहीं बदले थे क्योंकि उसे भी उम्मीद थी कि शायद सुनी.ल आ जाये। नज़ीला को देख कर सानिया का दिल जोरों से धड़कने लगा। नज़ीला ने बाहर खड़े सुनील को अंदर आने का इशारा किया और जैसे ही सुनील अंदर आया तो सानिया के दिल की धड़कनें और तेज़ हो गयीं। अंदर आते ही नज़ीला ने सुनील को दीवार से सटा दिया और खुद उसके सामने घुटनों के बल नीचे कालीनदार फर्श पर बैठ गयी। उसने सुनील की ट्रैक-पैंट को पकड़ कर नीचे खींचा तो सुनील का आठ-इंच का लम्बा-मोटा अनकटा लंड बाहर आकर झटके खाने लगा। नज़ीला के पीछे बिस्तर पे बैठी हुई सानिया ये सब अपनी फटी आँखों से देख रही थी। नजीला ने सुनील के लौड़े को अपनी मुट्ठी में भर लिया और सानिया की तरफ़ सुनील के लंड को दिखाते हुए बोली, "हाय अल्लाह... देख कैसे शरमा रही है... जैसे पहली दफ़ा अपने आशिक़ का लंड देख रही हो..!" और फिर सानिया की तरफ़ देखते हुए सुनील के लंड को ज़ोर से हिलने लगी। नज़ीला ने एक हाथ सानिया की तरफ़ बढ़ाया जो उसके पीछे दो फुट की दूरी पर बेड पर नीचे पैर लटकाये बैठी थी।

नज़ीला ने उसका हाथ पकड़ कर उसे अपनी तरफ़ खींचा पर सानिया हिली नहीं। नज़ीला ने फिर से उसे जोर लगा कर अपनी तरफ़ खींचा तो सानिया उठ कर उसके करीब आ गयी और नज़ीला ने उसे अपने पास खींचते हुए बिठा लिया। "क्या हुआ सानिया... तू पहली दफ़ा तो नहीं देख रही है सुनील का लंड... इतना क्यों शरमा रही है... ले पकड़ इसे हाथ में... माशाल्लाह ऐसा लंड तो बस ब्लू-फ़िल्मों में ही देखा है!" नज़ीला ने सानिया का हाथ पकड़ कर सुनील के लंड पर रखना चाहा तो सानिया ने अपना हाथ पीछे कर लिया और ना में सिर हिलाने लगी। नज़ीला की मौजूदगी में उसे बहोत अजीब लग रहा था। "चल तेरी मर्ज़ी... फिर बैठ कर देखती रह...!"

नज़ीला ने सुनील के लंड को छोड़ा और अपनी कमिज़ को दोनों हाथों से पकड़ कर ऊपर उठाते हुए अपने गले से निकल कर सानिया की तरफ़ फेंक दिया। नज़ीला ने ब्रा नहीं पहनी हुई थी और उसकी छत्तीस-डी साइज़ के बड़ी-बड़ी चूचियाँ ट्यूब-लाइट की रोशनी में चमकने लगी। फिर नज़ीला ने सुनील के लंड को पकड़ा और अपनी दोनों चूचियों के बीच में लेकर उसके लंड को रगड़ने लगी। सुनील ने सानिया की तरफ़ देखा जो बड़ी दिलचस्पी से उनकी तरफ़ देख रही थी। सुनील ने नज़ीला के मम्मों को पकड़ कर अपने लंड को उसके मम्मों के बीच की गहरी घाटी में आगे-पीछे करते हुए रगड़ना शुरू कर दिया। दोनों के मुँह से 'आहह आहह ओहह' जैसी सिसकारियाँ निकल रही थी जिन्हें करीब बैठी सानिया सुन कर गरम होने लगी थी। सुनील पूरी मस्ती मैं नज़ीला की बड़ी-बड़ी गुदाज़ चूचियों के बीच अपने लंड को रगड़ रहा था और नज़ीला अपने सिर को नीचे के तरफ़ झुकाये हुए सुनील के लंड के सुपाड़ा को देख रही थी जो उसकी चूचियों के बीच से बाहर आता और फिर से अंदर छुप जाता। नज़ीला की चूत सुनील के लाल हो चुके लंड के सुपाड़ा को देख कर और चुलचुलाने लगी थी।
 
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#20
फिर नजीला ने अपने सिर को और झुका कर सुनील के लंड के सुपाड़े को अपने होंठों से चूम लिया तो सुनील के जिस्म ने एक तेज झटका खाया। उसने अपने लंड को उसकी चूचियों से बाहर निकाला और नजिला के सिर को पकड़ कर अपना लंड का सुपाड़ा उसके होंठों के तरफ़ बढ़ाते हुए बोला, "आहह भाभी... चुसो ना इसे..!" नज़ीला ने सुनील की आँखों में हवस से भरी नज़रों से देखा और फिर सानिया के तरफ़ देखते हुए बोली, "ओहहह सुनील.... तेरा लंड इतना शानदार है की इसका ज़ायका चखने के लिये मेरे मुँह में कब से पानी आ रहा है..!" ये कहते हुए नज़ीला ने सानिया की तरफ़ देखते हुए सुनील के लंड को अपने होंठों में भर लिया और अपने होंठों से सुनील के लंड के सुपाड़े को पूरे जोश के साथ चूसने लगी। सामने का नज़ारा देख कर सानिया की चूत फुदफुदाने लगी। उसने आज तक चुदाई की सैक्सी कहानियों किताबों में ही लंड चुसने के मुतालिक़ पढ़ा था या अपनी सहेलियों से उनके बॉय फ्रेंड्स के लंड चूसने के किस्से सुने थे। नज़ीला अब किसी राँड की तरह सुनील का लंड चूस रही थी। सुनील का आधे से ज्यादा लंड नजीला के मुँह के अंदर बाहर हो रहा था और उसका लंड नज़ीला के थूक से गीला होकर चमकने लगा था।

फिर नज़ीला ने सुनील के लंड को मुँह से बाहर निकला और अपने हाथ से हिलाते हुए सानिया की तरफ़ दिखाते हुए सुनील के लंड के सुपाड़े के छेद को अपनी ज़ुबान बाहर निकाल कर कुरेदते हुए सुपाड़े पर ज़ुबान फिराने लगी और आँखों ही आँखों में सानिया को अपने करीब आने का इशारा किया। सामने चल रहा गरम नज़ारा देख सानिया खुद-बखुद उसके करीब खिंचती चली गयी। अब सानिया नज़ीला के बिल्कुल करीब घुटनों के बल बैठी हुई थी। नज़ीला ने सुनील के लंड को हाथ में थामे हुए सानिया से कहा, "ले तू भी चूस ले अपने यार का लौड़ा... बेहद मज़ेदार है!" नज़ीला की बात सुन कर सानिया के दिल के धड़कनें बढ़ गयीं। सानिया भी सुनील का लंड चूसना तो चाह रही थी लेकिन नज़ीला के सामने उसे हिचकिचाहट हो रही थी और उसने ना में सिर हिलाते हुए मना कर दिया। नज़ीला ने मुस्कुराते हुए सुनील के लंड के सुपाड़े के चारों तरफ़ अपनी ज़ुबान रगड़ते हुए फिरायी और बोली, "सानिया देख ना सुनील का लौड़ा कितना मस्त है... तू बहोत खुशनसीब है कि तेरा यार है सुनील... देख सानिया मर्द के लंड को तू जितना प्यार करेगी उतना ही उसका लंड तेरी फुद्दी को ठंदक पहुँचायेगा... ले चूस ले..." और नशे में लहकती आवाज़ में ये कहते हुए नज़ीला ने सानिया का हाथ पकड़ सुनील के लंड पर रख दिया।

सानिया अब पूरी तरह हवस से तड़प रही थी। उसने सुनील के लंड को अपनी मुट्ठी में भर लिया और फिर ऊपर सुनील की आँखों में झाँकने लगी जैसे सुनील से पूछ रही हो कि अब क्या करूँ। सुनील ने उसकी तरफ़ मुस्कुराते हुए देखा और फिर उसके प्यारे से चेहरे को अपने दोनों हाथों में लेकर उसके होंठों को अपने लंड के सुपाड़े की तरफ़ झुकाने लगा। सानिया ने अपने होंठ खोल लिये और नज़ीला के थूक से सने हुए सुनील के लंड को अपने होंठों में भर लिया। "ओहहहह सानिया... आहहहह" सानिया के रसीले तपते होंठों का स्पर्श अपने लंड पर महसूस करते ही सुनील एक दम से सिसक उठा और सानिया के सिर को पकड़ कर अपने लंड को उसके मुँह में ढकेलने लगा। सानिया अब पूरी तरह गरम और चुदास हो गये थी। उसकी पैंटी सलवार के अंदर उसकी चूत से निकल रहे पानी से एक दम गीली हो चुकी थी। नज़ीला मौका देखते हुए उसके पीछे बैठ गयी और सानिया की कमीज़ को पकड़ कर धीरे-धीरे ऊपर उठाने लगी। जैसे ही सानिया को इस बात का एहसास हुआ कि नज़ीला उसकी कमीज़ उतारने जा रही है तो उसने दोनों हाथों से अपनी कमीज़ को पकड़ लिया। "क्या हुआ सानिया... शरमा क्यों रही है... यहाँ पर कोई गैर तो नहीं है.... तेरा बॉय फ्रेंड सुनील ही तो है... सुनील देख ना ये कैसे शरमा रही है!" नज़ीला बोली। दर असल सानिया सुनील से नहीं बल्कि नज़िला की मौजूदगी की वजह से हिचकिचा रही थी। नज़ीला नहीं होती तो सानिया खुद ही अब तक नंगी होकर सुनील का लंड अपनी चूत में ले चुकी होती।

सुनील ने सानिया के मुँह से लंड निकाला और नीचे बैठते हुए सानिया के हाथों को पकड़ कर कमीज़ से छुड़वा लिया। नज़ीला ने फ़ौरन सानिया की कमीज़ पकड़ कर ऊपर कर दी और फिर गले से निकाल कर नीचे फेंक दी। सुनील ने सानिया के होंठों पर अपने होंठ रख कर चूसना करना शुरू कर दिया और एक हाथ नीचे ले जाकर सलवार के ऊपर से सानिया की चूत पर रख दिया। अपनी चूत पर सुनील का हाथ पड़ते ही सानिया के जिस्म में करंट सा दौड़ गया और अपनी बाहों को सुनील की गर्दन में डालते हुए उसके जिस्म से चिपक गयी। पीछे नज़ीला ने अपना काम ज़ारी रखा और उसने सानिया की ब्रा के हुक खोल दिये और जैसे ही सानिया के जिस्म से ब्रा ढीली हुई तो सुनील ने ब्रा के स्ट्रैप को पकड़ उसके कंधों से सरकाते हुए उसकी ब्रा को भी उसके जिस्म से अलग कर दिया। फिर धीरे-धीरे सानिया को कालीन पे पीछे लिटाते हुए सुनील उस पर सवार हो गया और उसकी एक चूंची को मुँह में भर कर चूसने लगा। सान्या एक दम से सिसक उठी और उसकी चूत में ज़ोर से कुलबुलाहट होने लगी। ये नज़ारा कर देख नज़ीला की चूत भी और ज्यादा लार टपका रही थी। उसने फ़ौरन अपनी सलवार फेंकी। नज़ीला ने नीचे पैंटी भी नहीं पहनी हुई थी और अब वो हाइ पेन्सिल हील के सैंडलों के अलावा बिल्कुल नंगी थी।

सानिया की बगल में लेटते हुए नज़ीला ने सानिया के दूसरे मम्मे को अपने मुँह में भर लिया। अपने दोनों मम्मों को एक साथ चुसवाते हुए सानिया एक दम बेहाल हो गयी। उसके आँखें मस्ती में बंद होने लगी। नज़ीला ने सानिया की चूंची को मुँह से निकाला और सुनील को सानिया की सलवार उतारने के लिये कहा। सुनील ने भी सानिया की चूंची को मुँह से बाहर निकाला और सान्या की पलाज़्ज़ो सलवार का नाड़ा खोलने लगा। नज़ीला ने फिर सानिया की चूंची को मुँह में भर कर चूसना शुरू कर दिया और दूसरे हाथ से उसके दूसरी चूंची को मसलने लगी। स्स्सीईईई ऊँहहह आँटी प्लीज़. आहहह मत करो ना! सानिया ने मस्ती में सिसकते हुए नज़ीला भाभी के सिर को अपनी बाहों में जकड़ लिया। दूसरी तरफ़ सुनील सानिया की सलवार और पैंटी दोनों उतार चुका था। लोहा एक दम गरम था... सानिया की चूत अपने पानी से एक दम भीगी हुई थी। एक बार पहले चुदाई का मज़ा ले चुकी सानिया एक दम मदहोश हो चुकी थी और पिछले कईं दिनों से फिर चुदने के लिये तड़प रही थी।

सानिया की सलवार और पैंटी उतारने के बाद जैसे ही सुनील सानिया की टाँगों के बीच में आया तो पूरी तरह गरम और मदहोश हो चुकी सानिया ने अपनी टाँगों को घुटनों से मोड़ कर खुद ही ऊपर उठा लिया। सानिया भी अब नज़ीला की तरह सिर्फ़ ऊँची हील वाले सैंडल पहने बिल्कुल नंगी थी। सानिया को बेकरारी में अपनी टाँगें उठाते देख कर नज़ीला को एक तरकीब सूझी और उसने सानिया को पकड़ कर बिठाया और खुद उसके पीछे आकर बैठ गयी और अपनी टाँगों को सानिया की कमर के दोनों तरफ़ करके आगे की ओर सरकते हुए उसने सानिया को पकड़ कर अपने ऊपर लिटा लिया। अब नज़ीला नीचे लेटी हुई थी पीठ के बल और उसके ऊपर सानिया पीठ के बल लेटी हुई थी। सानिया नज़ीला आँटी की इस हर्कत से हैरान थी कि उसका मंसूबा क्या था। नज़ीला ने अपने हाथों को नीचे की तरफ़ ले जाते हुए सानिया की टाँगों को पकड़ कर ऊपर उठा कर फैला दिया जिससे सानिया की चूत का छेद खुल कर सुनील की आँखों के सामने आ गया। सानिया की टाँगें तो नज़ीला ने पकड़ कर ऊपर उठा रखी थीं और सुनील ने नज़ीला की टाँगों को फैला कर ऊपर उठाते हुए अपनी जाँघों पर रख लिया।

अब नीचे नज़ीला की चूत और ऊपर सानिया की चूत... दोनों ही चिकनी चूतें अपने-अपने निकले हुए रस से लबलबा रही थी। अपने सामने चुदवाने के लिये तैयार दो-दो चिकनी चूतों को देख कर सुनील से रहा नहीं गया। उसने अपने लंड के सुपाड़े को सानिया की चूत की फ़ाँकों के बीच रगड़ना शुरू कर दिया। "ऊँऊँऊँ स्स्सीईई आहहहह सुनील...!" सानिया ने सिसकते हुए अपने हाथों को अपने सिर के नीचे ले जाते हुए नज़ीला के सिर को कसके पकड़ लिया और नज़ीला ने सानिया की गर्दन पर अपने होंठों को रगड़ना शुरू कर दिया। सुनील ने सानिया की चूत के छेद पर अपना लंड टिकाते हुए धीरे-धीरे अपने लंड को आगे की ओर दबाना शुरू कर दिया। सुनील के लंड का मोटा सुपाड़ा जैसे ही सानिया की तंग चूत के छेद में घुसा तो सानिया का पूरा जिस्म काँप गया और वो मस्ती में मछली की तरह छटपटाने लगी। सुनील के लंड का सुपाड़ा सानिया की चूत को बुरी तरह फैलाये उसके अंदर फंसा हुआ था। "हाय सानिया... अपने यार का लौड़ा अपनी चूत में लेकर मज़ा आ रहा है ना...!" नज़ीला ने सानिया की चूचियों को मसलते हुए कहा।

सानिया मस्ती में सिसकते हुए बोली, "ऊँहहहहाँ आँटी.... बेहद मज़ा आ रहा है.... आहहहायऽऽ आँटी रोज सुनील को यहाँ बुलाया करो ना..!" नज़ीला ने सानिया को छेड़ते हुए शरारत भरे अंदाज़ में पूछा, "किस लिये बुलाया करूँ..?" सानिया ने तड़पते हुए कहा, "ऊँहहह जिसके लिये आज बुलाया है... आँटीईईई...!"

"ये तो बता दे कि आज किस लिये बुलाया है...?" नज़ीला ने उसे फिर छेड़ा तो सानिया चुदने के लिये बेकरार होते हुए बोली, "आआहह चुदने के लिये... चूत में लंड लेने के लिये... आँआहहह... सुनील डालो ना..!" नज़ीला रसभरी आवाज़ में बोली, "देख सुनील कैसे गिड़गिड़ा रही है बेचारी... आब डाल भी दी ने अपना लौड़ा साली के चूत में!" सुनील ने सानिया की टाँगों को पकड़ कर और फैलाते हुए एक जोरदार धक्का मारा और लंड सानिया की चूत की दीवारों को फैलाता हुआ अंदर जा घुसा। "आआआईईईई हाय सुनील.... ओहहहहह हाँ चोदो.... आहहह ऊँहहह ऊँईईईई ओहहहह ऊँहहह अम्म्म्म्म ओहोहोहोआआहहह बहोत मज़ा आ रहा है..!" सानिया मस्ती में जोर-जोर से सिसकने लगी। सुनील ने धीरे-धीरे अपने लंड को सानिया की चूत के अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया। सुनील के झटकों से सानिया और नज़ीला दोनों नीचे लेटी हुई हिल रही थीं। करीब पाँच मिनट सानिया की चूत में अपना लंड पेलने के बाद जब सानिया की चूत ने पानी छोड़ दिया तो सुनील ने अपना लंड सानिया की चूत से बाहर निकला और नज़ीला की टाँगों को उठा कर उसकी चूत के छेद पर लंड को टिका कर एक ज़ोरदार धक्का मारते हुए पूरा लौड़ा अंदर थोक दिया। "हायै..ऐऐऐ ऊँफ्फ सुनीईईईल.. आहिस्ता... आहहहह ओहहहहहह मर गयीईईई मैं.... याल्लाआआह... ओहहहह धीरेऽऽऽ आहहह आहहह हायेऐऐऐऐ सानिया... तेरे आशिक़ ने मेरी चूत का कचूमर बना दिया...!" कमरे में थप-थप की आवाज़ गूँजने लगी। सुनील पूरी रफ़्तार से नज़ीला की चूत की गहराइयों में अपना लंड जोर-जोर से ठोक रहा था। नज़ीला की चूत सुनील के जवान लौड़े के धक्कों के सामने ज्यादा देर टिक नहीं सकी और नज़ीला सिसकते हुए झड़ने लगी, "आहहह आँआँहह ऊहहह सुनीईईल मेरी फुद्दी... हाआआआयल्लाआआह मेरी चूत पानी छोड़ने वाली आहहह ओहहह गयीईई ओहहह मैं गयीईई आँआँहहह!"

सुनील भी नज़ीला की चूत में लगातार शॉट मारते हुए बोला, "आहहह भाभी आपकी भोंसड़ी सच में बहुत गरम है...!"

नज़ीला हाँफते हुए बोली, "बस रुक जा सुनील... थोड़ी देर सानिया की चूत में चोद दे अब!" सुनील ने अपने लंड को नज़ीला की चूत से बाहर निकला और सानिया की चूत पर रखते हुए एक जोरदार धक्का मार कर आधे से जयादा लंड सानिया की चूत में पेल दिया। दर्द और मज़े की वजह से सानिया का जिस्म एक दम से अकड़ गया। सुनील ने अपने लंड को पूरी रफ़्तार से सानिया की चूत के अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया। नज़ीला सानिया के नीचे से निकल कर बगल में लेट गयी और सानिया की चूंची को मुँह में भर कर चूसने लगी और दूसरी चूंची को सुनील ने अपने मुँह में भार लिया और हुमच-हुमच कर चोदते हुए चूसने लगा। दस मिनट बाद सानिया की चूत ने अपने आशिक़ के लंड पर अपना प्यार बहान शुरू कर दिया और अगले ही पल सुनील ने भी सानिया के चूत में अपने प्यार की बारिश कर दी। पूरी रात सानिया नज़ीला और सुनील की चुदाई का खेल चला।

दिन इसी तरह गुज़र रहे थे और अगले दो महीनों के दौरान जब भी नज़ीला का शौहर दौरे पर शहर के बाहर गया तो करीब छः-सात बार नज़ीला के घर पे नज़ीला और रुखसाना ने रात-रात भर सुनील के साथ ऐयाशियाँ की... हर तरह से खूब चुदवाया और थ्रीसम चुदाई का मज़ा लिया। इसके अलावा नज़ीला और रुखसाना को अलग-अलग भी जब मौका मिलता तो अकेले सुनील से चुदवा लेती। सुनील भी दूसरी तरफ़ नफ़ीसा के साथ भी ऐश कर रहा था पर सानिया को इन दो महीनों में सिर्फ़ दो बार ही सुनील से चुदवाने का मौका नसीब हुआ वो भी नज़ीला की ही मेहरबानी से। सानिया तो दिल ही दिल में सुनील से और भी ज्यादा मोहब्बत करने लगी थी। हालांकि सानिया और रुखसाना को सुनील के साथ एक दूसरे के रिश्ते के बारे में तो पता नहीं चला लेकिन सानिया को अपनी अम्मी पे शक पहले से ज्यादा बढ़ गया था।

फिर एक दिन की बात है... सानिया को अचानक से उल्टियाँ शुरू हो गयी और वो बेहोश होकर गिर पड़ी। रुखसाना ने उसके चेहरे पर पानी फेंका तो उसे थोड़ी देर बाद होश आया। रुखसाना उसे हास्पिटल लेकर गयी क्योंकि सानिया को कभी कोई बिमारी या शिकायत नहीं हुई थी। जब वहाँ पर एक लेडी डॉक्टर ने उसका चेक अप किया तो उसने रुखसाना बताया कि सानिया प्रेगनेंट है। रुखसाना के तो पैरों तले से जमीन खिसक गयी। उसने वहाँ तो सानिया को कुछ नहीं कहा और उसे लेकर घर आ गयी। घर आकर रुखसाना ने सानिया को जब सारी बात बतायी तो सानिया के चेहरे का रंग उड़ गया। रुखसाना के डाँटने और धमकाने पर सानिया ने सारा राज़ उगल दिया। रुकसाना बेहद परेशान थी... उसे यकीन नहीं हो रहा था कि सुनील उसके साथ इतना बड़ा दगा कर सकता है। फ़ारूक़ दो-तीन दिन की छुट्टी लेकर अपनी भाभी अज़रा के साथ रंगरलियाँ मनाने गया हुआ क्योंकि वो अकेली थी। शाम को जब सुनील घर वापस आने के बाद रुखसाना ऊपर सुनील के कमरे में गयी तो सुनील उठ कर उसे अपने आगोश में लेने के लिये उसकी तरफ़ बढ़ा। रुखसाना ने सुनील को वहीं रुकने के लिये कह दिया और फिर बोली, "सुनील तूने ये सब हमारे साथ ठीक नहीं किया..?" सुनील ने पूछा, "पर हुआ क्या है... मुझे पता तो चले..!"

"सुनील तू हमारे साथ इस तरह दगा करेगा.. अगर मुझे पहले मालूम होता तो मैं तुझे अपने घर में कभी रहने नहीं देती...!" सुनील को समझ नहीं आ रहा था कि अचानक रुखसाना को क्या हो गया। "साफ-साफ बोलो ना भाभी कि बात क्या है...?" सुनील ने पूछा तो रुखसाना बोली, "सानिया के पेट में तेरा बच्चा है... अब मैं क्या करूँ तू ही बता... तूने हम सब के साथ दगा किया है... मैं तुझे कभी माफ़ नहीं करुँगी... तूने सानिया की ज़िंदगी बर्बाद क्यों की...?" रुखसाना की बात सुन कर सुनील के चेहरे का रंग उड़ चुका था। "कोई बात नहीं... मैं पैसे देता हूँ... आप उसका अबोर्शन करवा दो!" सुनील ने ऐसा जताया जैसे उसे किसी की परवाह ही ना हो। "अबोर्शन करवा दो...? अबोर्शन से तूने जो गुनाह किया है वो तो छुप जायेगा... पर सानिया का क्या... जिसे तूने प्यार का झूठा ख्वाब दिखा कर उसके साथ इतना गलत किया है!"

सुनील बोला, "देखो भाभी ताली एक हाथ से नहीं बजती... अगर इस बात के लिये मैं कसूरवार हूँ... तो सानिया भी कम कसूरवार नहीं है और भाभी अबोर्शन के अलावा और कोई चारा है आपके पास...!" सुनील की बात सुनकर रुखसाना बोली, "ठीक है सुनील मैं सानिया का अबोर्शन करवा देती हूँ... पर एक बात बता कि क्या तू सच में सानिया से प्यार करता है..?" सुनील बोला, "नहीं मैं उसे कोई प्यार-व्यार नहीं करता... वो ही मेरे पीछे पढ़ी थी..!"

रुखसाना ने कहा, "देख सुनील अगर सानिया को ये सब पता चला तो वो टूट जायेगी... सानिया भले ही मेरी कोख से पैदा नहीं हुई पर मैंने उसे अपनी बेटी के तरह पाला है... तुझे उससे शादी करनी ही होगी!" ये सुनकर सुनील थोड़ा गुस्से से से बोला, "ख्वाब मत देखो रुख़साना भाभी... आपको भी मालूम कि ऐसा कभी नहीं होगा.... इस शादी के लिये मैं तो क्या आपके और मेरे घर वाले भी कभी तैयार नहीं होंगे... अगर आपको मेरा यहाँ रहना पसंद नहीं है तो मैं दो-तीन दिनों में किसी दूसरी जगह शिफ्ट हो जाउँगा!" ये कह कर सुनील बाहर चला गया।

रुखसाना उसी के कमरे में सिर पकड़ कर बैठ गयी। एक तरफ उसे सानिया की फ़िक्र थी और सुनील के घर छोड़ के जाने की बात सुनकर तो उसे अपनी दुनिया बिखरती हुई नज़र आने लगी। उसकी खुद की बियाबान ज़िंदगी में सुनील की वजह से इतने सालों बाद बहारें आयी थीं और पिछले कुछ महीनों में उसे सुनील के लंड की... उससे चुदवाने की ऐसी लत्त लग गयी थी कि वो सुनील को किसी भी कीमत पे खो नहीं सकती थी। अपनी सौतेली बेटी का दिल टूटने से ज्यादा उसे अब अपनी हवस... रोज़-रोज़ अपनी चुत की आग बुझाने का ज़रिया खतम होने की फ़िक्र सताने लगी। वो सोचने लगी कि सानिया तो फिर भी जल्दी ही वक़्त के साथ सुनील को भुल जायेगी और उसका निकाह भी एक ना एक दिन हो जायेगा... लेकिन वो खुद तो बिल्कुल तन्हा रह जायेगी... पहले की तरह तड़प-तड़प कर जीने के लिये मजबूर...! ये सब सोचते हुए रुकसाना का दिल डूबने लगा... उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे... अगर सुनील अभी घर छोड़ कर नहीं भी गया तो भी वो हमेशा तो यहाँ उसके घर पे वैसे भी नहीं रहेगा... उसकी भी तो कभी ना कभी शादी होगी... तब वो क्या करेगी। तभी रुखसाना की नज़र टेबल पर रखी हुई एक डायरी पर पड़ी। उसने वो डायरी उठा कर देखी तो उसमें सुनील के दोस्तों और कुछ रिश्तेदारों के पते और फोन नंबर लिखे हुए थे और रुखसाना को उसी डयरी में सुनील की मम्मी का फोन नंबर मिल गया। उसने पेन उठा कर उस नंबर को अपने हाथ पर लिखा और नीचे आ गयी। सुनील को हमेशा अपने करीब रखने की आखिरी तरकीब उसे नज़र आयी। फिर बाहर का दरवाजा लॉक करके उसने अपने बेडरूम में आकर सुनील के घर का नंबर मिलाया। थोड़ी देर बाद किसी आदमी ने फ़ोन उठाया, "हेल्लो कौन..!"

रुखसाना बोली, "जी मैं रुखसाना बोल रही हूँ... सुनील हमारा किरायेदार है... क्या मैं कवीता जी से बात कर सकती हूँ!" उस आदमी ने रुखसाना को दो मिनट होल्ड करने को कहा और फिर उसे फोन पे उस आदमी की आवाज़ सुनायी दी कि, "कवीता दीदी आपका फ़ोन है..!" फिर थोड़ी देर बाद रुख़साना को एक औरत की आवाज़ सुनायी दी, "हेल्लो कौन..?"

रुखसाना: "जी मैं रुखसना बोल रही हूँ..!"

कवीता: "रुखसाना कौन... सॉरी मैंने आपको पहचना नहीं..!"

रुखसाना: "जी सुनील हमारे घर पर किराये पे रहता है...!"

कवीता: "ओह अच्छा-अच्छा... सॉरी मैं भूल गयी थी.... हाँ एक बार सुनील ने बताया था.... जी कहिये कुछ काम था क्या...!"

रुखसाना: "जी क्या आप यहाँ आ सकती हैं..!"

कवीता: "क्यों... क्या हुआ... सब ठीक है ना... सुनील तो ठीक है ना...!"

रुखसाना: "जी सुनील बिल्कुल ठीक है..!"

कवीता: "तो फिर बात क्या है...?"

रुखसाना: "जी बहोत जरूरी बात है... फ़ोन पर नहीं बता सकती... बस आप यही समझ लें कि मेरी बेटी की लाइफ का सवाल है..!"

कवीता: "क्या आपकी बेटी... ओके-ओके मैं कल सुबह-सुबह ही अकाल-तख्त एक्सप्रेस से निकलती हूँ यहाँ से और फिर पटना से लोकल ट्रेन या बस लेकर पर्सों तक पहुँच जाऊँगी...!"

रुखसाना: "कवीता जी... प्लीज़ सुनील को नहीं बताना कि मैंने आपको फ़ोन किया है... और आपको यहाँ बुलाया है..!"

कवीता: "ठीक है तुम चिंता ना करो... मैं पर्सों तक वहाँ पर पहुँच जाऊँगी...!"

फिर रुखसाना ने कवीता को अपना पूरा पता समझाया और फ़ोन रख दिया। उस दिन और अगले दिन भी घर में मातम जैसा माहौल बना रहा। सुनील ने भी दोनों रातें नफ़ीसा के घर पर गुज़ारीं... बस अगले दिन शाम को कपड़े बदलने के लिये आया लेकिन रुखसाना या सानिया से कोई बात नहीं की । रुखसाना ने सानिया को कॉलेज नहीं जाने दिया। रुखसाना कवीता के आने का इंतज़ार कर रही थी और दो दिन बाद शाम को चार बजे के करीब बजे कवीता उनके घर पहुँची। रुखसाना और सानिया ने कविता की मेहमान नवाज़ी की और फिर रुखसाना कवीता को लेकर अपने कमरे में आ गयी।

कवीता: "हाँ रुखसाना... अब कहो क्या बात है..?"

रुखसाना: "कवीता जी दर असल बात ये है कि... आपके बेटे ने मेरी बेटी के साथ..." और ये बोलते-बोलते रुखसाना चुप हो गयी।

कवीता: "तुम सच कह रही हो... और तुम्हें पूरा विश्वास है कि मेरे बेटे ने...!"

रुखसाना: "जी... सानिया को दूसरा महीना चल रहा है..!"

कवीता एक दम से चौंकते हुए बोली, "क्या.... हे भगवान... उस नालायक ने... उसने तो मुझे कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं छोड़ा... पर आपकी बेटी भी तो समझदार है ना... उसने ये सब क्यों होने दिया...?"

रुखसाना: "जी मैं नहीं जानती.... पर दोनों ही बच्चे हैं अभी..!"

कवीता: "देखो मैं अभी कुछ नहीं कह सकती... और मेरा बेटा मुझसे कभी झूठ नहीं बोलता... तुम सानिया को यहाँ बुला कर लाओ...!"

रुखसाना ने सानिया को आवाज़ दी तो सानिया कमरे में आ गयी। "तुम मेरे बेटे से प्यार करती हो?" कवीता ने पूछा पर सानिया सहमी सी कभी रुखसाना की तरफ़ देखती तो कभी जमीन की तरफ़। "घबराओ नहीं.... जो सच है बताओ...!"

सानिया हाँ में सिर हिलाते हुए बोली, "जी..!"

कवीता: "और ये बच्चा..?"

सानिया: "जी..!"

कवीता: "हे भगवान... ये आज कल के बच्चे... माँ-बाप के लिये कहीं ना कहीं कोई ना कोई मुसीबत खड़ी कर ही देते हैं आने दो उस नालायक को..!"

अभी वो बात ही कर रहे थे कि बाहर डोर-बेल बजी। "सुनो अगर सुनील होगा तो उसे यहीं बुला लाना और सानिया तुम अपने कमरे में जाओ...!" कवीता की बात सुन कर रुखसाना ने हाँ में सिर हिलाया और बाहर आकर दरवाजा खोला तो देखा सामने सुनील ही खड़ा था। उसके अंदर आने के बाद रुखसाना ने डोर लॉक किया और सुनील के पीछे चलने लगी। जैसे ही सुनील ऊपर जाने लगा तो रुखसाना ने उसे रोक लिया, "तुम्हारी मम्मी आयी हैं... अंदर बेडरूम में बैठी हैं!"

सुनील ने रुखसाना की तरफ़ देखा। उसके चेहरे का रंग उड़ चुका था। वो तेजी से कमरे में गया और रुखसाना भी उसके पीछे रूम में चली गयी। सानिया पहले ही अपने कमरे में जा चुकी थी। सुनील ने जाते ही अपनी मम्मी के पैर छुये, "मम्मी आप यहाँ अचानक से...?"

कवीता: "जब बच्चे अपने आप को इतना बड़ा समझने लगें कि उनको किसी और की परवाह ना रहे तो माँ बाप को ही देखना पड़ता है... क्या इसलिये तुझे पढ़ा लिखा कर बड़ा किया था... इसलिये तुझे अपने से इतनी दूर भेजा था कि तुम बाहर जाकर अपने परिवार का नाम मिट्टी में मिलाओ... सुनील जो कुछ भी रुखसाना ने मुझे बताया है क्या वो सच है...?"

सुनील ने सिर झुका कर बोला, "जी!"

कवीता: "और जो बच्चा सानिया के पेट में है वो तेरा है... उसके साथ तूने गलत किया?"

सुनील: "जी..!"

कवीता: "शादी भी करना चाहता होगा तू अब उससे..?"

सुनील: "जी.. जी नहीं..!"

ये सुनकर कविता उठकर खड़ी हुई और एक ज़ोरदार थप्पड़ सुनील के गाल पर जमाते हुए बोली, "नालायक ये सब करने से पहले नहीं सोचा तूने... किसने हक दिया तुझे किसी की ज़िंदगी को बर्बाद करने का... हाँ बोल अब बुत्त बन कर क्यों खड़ा है..?"

सुनील: "मम्मी मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गयी... मुझे माफ़ कर दो भले ही मुझे जो मर्ज़ी सजा दो!"

कवीता: "गल्ती तो तूने की है... और गल्ती स्वीकार भी की है... अगर तेरी बहन होती और अगर सानिया के जगह तेरी बहन के साथ ऐसा होता... तो तुझ पर क्या बीतती... कभी सोचा भी है कि किसी की ज़िंदगी से ऐसे खिलवाड़ करने से पहले?"

फिर कवीता रुखसाना से बोली, "देखो रुखसाना बच्चों ने जो गल्ती करनी थी कर दी... पर अब हमें इनकी गल्ती को सुधाराना है... अगर तुम्हें और तुम्हारे हस्बैंड को स्वीकार हो तो मैं अभी इसके मामा जी को फ़ोन करके बुलाती हूँ... और जल्द से जल्द... इसी हफ़्ते दोनों की शादी करवा देते हैं... और सुनील तुझे भी कोई प्रॉब्लम तो नहीं है..!" कवीता ने बड़े कड़क लहजे में सुनील को कहा।

रुखसाना: "कवीता जी... मुझे क्या ऐतराज़ हो सकता है... बल्कि मैं तो आपका ये एहसान ज़िंदगी भर नहीं भूलुँगी और मेरे हस्बैंड भी राज़ी हो जायेंगे!"

उसके बाद सानिया और सुनील के शादी हो गयी। फ़ारूक़ ने पहले थोड़ा बवाल किया लेकिन उसके पास भी अपनी इज़्ज़त बचाने के लिये कोई और रास्ता नहीं था। शादी के बाद सानिया और सुनील दोनों उसी घर में रुखसाना और फ़ारूक़ के साथ रहते हैं। । सुनील अपनी बीवी सानिया के साथ-साथ अपनी सास रुखसाना की चूत और गाँड का भी पूरा ख्याल रखता है। दर असल रुखसाना और सुनील ने सानिया को समझा-बुझा कर अपने नाजायज़ रिश्ते से वाक़िफ़ करवा दिया और सानिया ने भी पहले-पहले थोड़ी नाराज़गी के बाद अपनी अम्मी को अपनी सौतन बनाना मंज़ूर कर लिया और अब तो तीनों अक्सर ठ्रीसम चुदाई का रात-रात भर मज़ा लेते हैं। रुखसाना की ज़िंदगी अब बेहद खुशगवार है क्योंकि अब उसे कभी ज़िंदगी में पहले की तरह अपनी जिस्मानी ख्वाहिशों का गला घोंट कर जीने के लिये मजबूर नहीं होना पड़ेगा।

रुखसाना मेरी जान

समाप्त
 
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