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जमींदार का अत्याचार
#1
दोस्तों

मैंने xossipy पर कई बेहतरीन कहानियां पढ़ी हैं और उनसे inspired होकर कुछ लिखने जा रहा हूं.

एक नई शुरुआत करने वाला हूं पर उससे पहले एक जरूरी बात पूछनी है>>>>

"क्या मैं ऐसी कहानी लिख सकता हूं जिसमें बलात्कार का सीन हो?"

अगर एडमिन मना कर देंगे तो ये कहानी मैं नहीं लिखुंगा।

कहानी के सारे किरदार 18 साल से ऊपर के ही हैं, कहानी काल्पनिक है और पहले कहीं पोस्ट नहीं हुई है।

अगर सब ठीक रहा तो मैं कल से यह कहानी पोस्ट करना शुरु कर दूंगा।
पढ़िये मेरी कहानी जमींदार का अत्याचार सिर्फ xossipy पर Namaskar  
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#2
लिखिए ब्रो.
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#3
Update
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#4
पहली पोस्ट डाले लगभग 24 घंटे हो गये हैं और किसी एडमिन का कोई जवाब नहीं आया, तो इसे मैं उनकी स्वीकृति समझते हुए कहानी शुरु कर रहा हूं --->


जमींदार का अत्याचार

एपिसोड 1


आज मैं बिल्लू के चाचा के खेत पर काम कर रहा था। बिल्लू का परिवार हमेशा से मेरे परिवार का सुखदुख का साथी रहा था, तो उसके चाचा के खेत में कम पैसे में भी काम कर सकता था। ऊपर से सुमन के बाबा का खेत। उन्ही की फसल की कटाई करनी थी। मेरे खेत का काम तो दो दिन में ही हो गया, खेत कितना बड़ा है ही? बिल्लू के चाचा के खेत में कई दिन से काम चल रहा था और अभी मेरे आने के बाद भी तीन दिन और चलना था।


'बिल्लू भैया, खाना लाई हूं। तुम और तुम्हारे दोस्त खा लो इसे।' कानों में सुमन की खनकती आवाज पड़ी। 'तुम्हारे दोस्त' का लहजा इस तरह से था की मैं साफ साफ सुन सकूं। 'हां, आता हूं' बिल्लू ने बोला, और फिर अपनी दराती किनारे रखकर फसल से उठ गया। उसने मुझे पीछे से कंधे पर छूकर कहा, 'चल मुन्ना'। मैने भी अपनी दराती वहीं रख दी और उठकर बिल्लू के साथ खेत में लगे पंप पर आ गये, जो बंद था पर उसकी टंकी में पानी भरा हुआ था। उसी पानी से हमने हाथ पैर धोए और नीम के पेड़ के पास आ गये जहां सुमन चारपाई बिछा कर खाना रखे बैठी थी।

दो डिब्बे थे। एक उसने बिल्लू को दिया, दूसरा मेरी ओर बढ़ाया। मुझे पहले से कुछ अंदाजा हो गया की सुमन खाना लेकर इतनी देर तक शायद इसलिए खड़ी रही की हम दोनो के डिब्बे हम दोनो को दे सके… यानि एक डिब्बे में कुछ खास था, जो मुझे तभी मिल सकता था जब मेरे पास वही डिब्बा आये जो मेरे लिए था।

सुमन बिल्लू की चचेरी बहन थी, और हम दोनो एक दूसरे को प्यार करते थे। बिल्लू का परिवार जान पहचान का भी है, सु्मन सुंदर है, इंटर तक पढ़ी भी है, जवान है, मेरी बहन कविता की सबसे खास सहेली भी है। आड़े बस मेरी गरीबी आ जाती है, वरना उससे कबका ब्याह कर चुका होता। बापू के अचानक चले जाने से आगे पढ़ने की चाहत तो अधूरी रह गई, पर अब मैं फौज में भर्ती होना चाहता हूं ताकि कविता का गौना धूम धाम से कर सकूं और फिर सुमन से ब्याह कर सकूं। अगले महीने ही भर्ती की दौड़ है, उसी की तैयारी कर रहा हूं।

मेरा डिब्बा मेरे हाथ में देकर सुमन चुपचाप लौट गई, पर मैं उस जैसी तेजतर्रार लड़की के चुपचाप लौट जाने के इशारे को समझ गया। मैने बिल्लू से नजर बचाते हुए डिब्बा संभालकर खोला। जैसा उम्मीद थी, रोटियों के ऊपर एक कागज रखा था। मैने चुपके से कागज निकाल कर अपनी जांघ के नीचे दबा लिया और फिर बिल्लू से आगे की कटाई की बातें करते हुए खाना खाने लगा। खाने के बाद जब बिल्लू सुस्ताने के लिए चारपाई पर लेटा तो मैं हाथ मुंह धोने के बहाने उससे दूर आया और कागज को खोलकर देखा।

'मठ के पीछे वाला बरगद' इतना ही लिखा था, काफी था। वहीं के वहीं उस कागज के छोटे छोटे टुकड़े करके नाली में बहा दिये। सुमन मेरा इंतजार मठ के पीछे वाले बरगद पर करेगी, शाम के समय जब मैं खेत के काम से खाली हो चुका हुंगा। कुछ जरूरी ही होगा, क्योंकी आज सुमन के बर्ताव में वह बेतकल्लुफी नहीं थी जो हमेशा से रहती है। आज वह गुमसुम सी थी।

कुछ देर तक बगल की चारपाई पर नीम की छांव में सुस्ताने के बाद मैं और बिल्लू फिर से कटाई में जुट गये।

जब दिन का काम खत्म हुआ तो अगले दिन की रूपरेखा तैयार करने के बाद बिल्लू और मैं अपने घरों की ओर बढ़ चले। मठ के पास आकर मैने बिल्लू को बोला की वो घर चला जाए, मुझे मठ के पुरोहित से कुछ बात करनी है है। बिल्लू घर चला गया और मैं उसके आगे बढ़ने के बाद मठ के पीछे की तरफ चला गया। बरगद के पेड़ के पास सुमन खड़ी थी। वैसे वह छुपी रहती है और मेरे आने पर अचानक सामने कूद पड़ती है और लिपट जाती है, और हमारे बीच जो खेल शुरु होता है वो बबूल की झाड़ियों के पीछे जाकर खत्म होता है, पर आज वह बरगद के नीचे चबूतरे पर गुमसुम सी बैठी मेरा इंतजार कर रही थी। आज वह पक्का दुखी थी।

'क्या हुआ?' मैने चारों ओर एक बार ध्यान से देखते हुए उससे पूछा, तो उसने कहा, 'कल नेनाई से मुझे देखने लड़के वाले आ रहे हैं"
"हां तो आने दे ना उन्हे, तू कौन सा उन्हे पसंद आएगी?' मैने माहौल को मजाकिया बनाने की कोशिश की, पर आज सुमन बिल्कुल मजाक के मूड में नहीं थी।

'तुम तो मुंह में दही जमाकर रखे रहोगे?' उसने कहा, 'कबसे कह रही हूं एक बार बाबा से बात कर लो।'

'फिर से वही बात...' मैने कहा। सुमन पिछली कई मुलाकातों में मुझसे अपने घर आकर शादी की बात चलाने की बात कह चुकी है। मैने ही टाला है उसे '...तू जानती है ना मेरे घर की हालत? पिछली बरसात में बरामदे की छत गिर गई थी, उसे ठीक करने के भी पैसे नहीं हैं मेरे पास।' मैने उसके कंधे पर प्यार से पकड़ बनाते हुए कहा, 'जब तक फौज में नौकरी नहीं लग जाती तब तक मेरी शादी क्या, कविता के गौने की बात भी नहीं कर सकता।'

'मैं भी तो तुमसे यही कह रही हूं, मेरे घर बात कर लो, सगाई कर लो, फिर बाबा से पैसे लेकर घर बनवा लेना, कविता का गौना करा देना।' वह धीरे धीरे मेरी बाहों में समा रही थी, 'तुम तो जानते हो मेरे बाबा के पास पैसे की कोई कमी नहीं है, मेरे लिए दहेज भी तो अच्छा खासा रखा होगा ना।'

'वही तो बात है यार' मैने उसे अपनी बाहों में भरते हुए कहा, 'जितना दहेज तुम्हारे बाबा ने तुम्हारे लिए रखा है, उतने में तो कोई अच्छा खासा खानदानी परिवार मिल जाएगा, पढ़ा - लिखा शहरी लड़का मिल जाएगा। तेरा बाबा मुझे क्यों पसंद करेगा।'


अगला अपडेट जल्दी ही आएगा। तब तक कृपया comments  देते रहें और इस नये लेखक का उत्साह बढ़ाते रहें
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#5
Nice plot.
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#6
Nice yaar, update thoda bada do
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#7
superb
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#8
Nice start
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#9
good start.
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#10
(29-11-2019, 07:26 AM)Bandabia007 Wrote: Nice plot.

(30-11-2019, 02:13 AM)xxx123123123 Wrote: superb

(30-11-2019, 02:33 AM)Artigupta Wrote: Nice start

(01-12-2019, 09:34 PM)kaamakathaa Wrote: good start.

आपलोग इसी तरह उत्साहवर्धन करते रहें तो मैं ज्यादा से ज्यादा लिखने को तत्पर रहूंगा।
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#11
(29-11-2019, 12:24 PM)baba27030 Wrote: Nice yaar, update thoda bada do

जी कोशिश करुंगा की ज्यादा से ज्यादा लिख सकूं और जल्दी से जल्दी पोस्ट कर सकूं
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#12
nice start.......
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#13
(02-12-2019, 12:06 PM)duttluka Wrote: nice start.......

Thanks.
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#14
वही तो बात है यार' मैने उसे अपनी बाहों में भरते हुए कहा, 'जितना दहेज तुम्हारे बाबा ने तुम्हारे लिए रखा है, उतने में तो कोई अच्छा खासा खानदानी परिवार मिल जाएगा, शहरी लड़का मिल जाएगा। तेरा बाबा मुझे क्यों पसंद करेगा?'

'क्योंकि मैं तुमसे प्यार करती हूं" सुमन ने कहा, 'और मैं  किसी और के पास नहीं जाने वाली, तुम खुद भी मारपीट के भगाओगे, तब भी नहीं" सुमन ने अब मुझे अपनी बाहों में भर लिया।

कितना अच्छा लगता है जब दिन भर की मेहनत के बाद ये नाजुक बाहें मिलती हैं, जैसे मखमल की चादर पर बिछे रजनीगंधा के फूल हों। काश की जिंदगी की हर धूप भरे दिन के बाद यही नाजुक बाहें मिलें शाम बिताने को… पर मुझे रुकना होगा… शायद किस्मत में ये ख्वाब ख्वाब रह जाना ही लिखा हो।

पर सुमन रुकना नहीं चाहती थी। वह मेरे सिर को अपनी गद्देदार छातियों पर दबा रही थी। मेरी सांसों में उसके बदन की खुश्बू भर रही थी। मै मदहोश हो रहा था और सुमन भी होश खोने को बेकरार थी। पर यहां नहीं... मठ में कभी भी, कोई भी आ सकता था, और बरगद की तरफ उसकी नजरें पड़ सकती थीं। अभी इतना अंधेरा ना हुआ था की किसी को कुछ नज़र ना आए और दो जवान लड़के लड़की की हरकतों पर तो हर किसी की नजर खुदब खुद पहुंच जाती है।

'यहां नही सुमन' मैने खुद को उससे परे हटाते हुए कहा। उसकी आखों में वह गुलाबीपन नजर आने लगा था जो मुझसे मिलने पर उसकी आखों में आता था।

"ठाकुरसाब के गन्ने के खेतों में चलें?' सुमन ने कहा। मठ से सबसे पास वही ऐसी जगह थी जहां हम आराम से सबकुछ कर सकते थे, बिना दिखे जाने के डर से। पर वो ठाकुरसाब की जमीन थी और मैं उस तरफ जाने से थोड़ा कतराता था।
'दो दिन पहले मोनी कलुआ के साथ वहीं करके आई। कह रही थी की एकदम मजेदार जगह है।' सुमन ने कहा। उसे उसकी सहेलियों से पता चल जाता है की कौन सी जगह ठीक है।  मेरी मौन स्वीकृति पाकर सुमन आगे चल पड़ी। मैं भी उससे थोड़ी दूरी बनाकर आस पास देखते हुए चलने लगा। रास्ता लंबा ना था पर मै कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहता था। कोई भी हमे साथ देख लेता तो बदनामी हो जाती।
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#15
मेड़ से होकर जाते हुए हमें गन्ने की क्यारियों के बीच एक पगडंडी मिल गई। सुमन आगे चलती रही और मैं पीछे पीछे। जब तक हम वहां पहुंचे, सूरज ढलने को गया था। लंबे हो चुके गन्नों के परछांई से अब खेत में अंधेरा सा होने लगा था। वैसे देखा जाए तो ये जगह बबूल की उन झाड़ियों से बेहतर थी जहां हम मिला करते थे।

जब हम उस जगह पर पहुंचे तो लगा की शायद खेत में काम करने वाले किसी लड़के ने ये जगह खास तौर पर चुदाई करने के लिए बनाई थी। रास्ता ऐसे घूम घूम कर था की हाथ भर की दूरी से भी यह जगह बिल्कुल नजर नहीं आती। वहां पहुंचते ही सुमन अपने उसी रंग में आ गई जिसकी मुझे आदत थी।

वह लपक कर मेरे ऊपर चढ़ गई और अपने होंठ मेरे होठों पर रख दिये। मैंने उसे पकड़ पर गोद में उठा लिया। उसने अपने पैर मेरी कमर पर बांध लिये। हम दोनो पूरे कपड़ो में थे पर मेरा लंड उसकी चूत से टकरा कर फूलने लगा था। मैं जानता था की कपड़ों के भीतर उसकी चूत गीली हो चुकी होगी।

होंठ हम दोनो के जुड़े हुए थे। सुमन मुझे हमेशा इतनी जोर से चूमती की मानों मेरे होठों को निगल लेना चाहती हो। उसे मेरे साथ थोड़ी भी नरमी करना पसंद ना था, और वह चाहती थी की मैं उसके नाजुक बदन को भी मसलने में जरा भी नरमी ना करुं पर मैं ऐसा नहीं करता था। मुझे हमेशा यही डर लगा रहता था की अगर हम दोनो का ब्याह ना हो पाया और सुमन का पति उसे संतुष्ट ना कर पाया तो वह किसी से गलत संबंध के दलदल में गिरने से जरा भी नहीं हिचकेगी।

सुमन से पहली बार उसके खेत पर ही किया था, लगभग एक बरस पहले। खेत का पंप बिगड़ गया था, शहर से मैकेनिक बुलाना पड़ा था। मैं और बिल्लू उस मैकेनिक की मदद कर रहे थे, क्योंकि उस बूढ़े मैकेनिक के लिए भारी पंप को उठाना मुश्किल था। जब पंप बन गया तो बिल्लू और मैने उसे उसकी जगह पर रखकर जैसे ही आन किया, पंप की पाइप का पानी फव्वारे की तरह निकल पड़ा। पंप को खोलने लगाने में कहीं पाइप ढीला हो गया था। और पंप का पानी पड़ा किसके ऊपर? चाय लेकर आई सुमन के ऊपर। जबतक हम समझते, सुमन पानी से तर हो चुकी थी, और उस पाइप को ठीक से जोड़ने में मैं और बिल्लू भी पूरी तरह भीग गये थे। पर खेत पर एक भी ऐसा कपड़ा ना था जिससे अपना बदन पोंछ सकें इसलिए पैदल चलकर घर तक आना पड़ा। सुमन और बिल्लू आगे चल रहे थे, मैं पीछे। भीगे कपड़ों में सुमन के जिस्म का हर उभार, हर गहराई बिल्कुल साफ पता चल रही थी। पीछे चलते हुए मेरी नजर उसकी गोलाइयों पर टिक सी गई थी, जो हर कदम के साथ और दिलकश हुई जा रही थींमेरा शर्ट भी बिल्कुल मेरे जिस्म से चिपक गया था और सुमन को भी वह सब दिख रहा था जिसे वह देखना चाहती थी।

मठ के मोड़ तक आते आते हम दोनो के जिस्म एक दूसरे के लिए प्यासे हो चुके थे। हम दोनो की नजरें एक नहीं कई बार मिलीं और जिस जगह से मेरे और सुमन के घर के रास्ते अलग होते हैं, वहां तक आते आते जैसे एक मौन निमंत्रण भेजा और स्वीकार किया जा चुका था।

अगली सुबह सुमन मेरे घर खुद पैसे लेकर आई थी। उसके बाबा ने कल के काम का मेहनताना भेजा था। नोटों के बीच एक कागज भी था - जैसे आज मिला था रोटियों के बीच। तब रात के अंधेरे में सुमन अपने घर से चुपके से निकल कर बगेदू मामा के खेत से सटे तालाब के पास आई थी, जहां मैं पहले ही पहुंच चुका था। उस रात सुमन के आगोश में मैने जाना की क्यों बचपन में हमें डराया जाता था की रात में तालाब के पास चुड़ैल घूमती है। इस तरह गांव के जवान लड़के लड़कियां खुलकर मजे कर सकते थे, किसी के अचानक चले आने की फिक्र के बिना। खासकर बच्चों के, जो जानते कुछ नहीं पर बताते सबको हैं।
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#16
आज उतना अंधेरा तो ना हुआ था, पर ऊंचे गन्नों के बीच बहुत कम रौशनी आ रही थी। लेकिन ना तो सुमन का बदन मेरे हाथों के लिए अन्जान था, ना उसके हाथों के लिए मेरा बदन। मैं उसकी कुर्ती के पीछे के बटन खोल रहा था और सुमन मेरे शर्ट के बटन खोल चुकी थी। कुर्ती को उसके बदन से हटाने के बाद मैने सुमन के सलवार का नाड़ा खींचकर उसकी सलवार नीचे सरका दी, इतनी देर में वह मेरी पैंट को भी उतार चुकी थी और मेरे कच्छे को भी। मेरा लंड उसके हाथ में था और वह उसे जोर जोर से रगड़ कर खड़ा कर रही थी। सुमन ने एक टाइट पैंटी पहन रखी थी, मैने कोशिश की उसे उतारने की पर उसने इस तरह मेरी कमर पर अपने पैर बांध रखे थे की उसकी पैंटी ऐसे नहीं उतारी जा सकती थी।

मैने उसकी पैंटी बस इतनी सी खिसका भर दी की उसकी चूत में लंड डाल सकूं. ना मैं इंतजार करना चाहता था, ना सुमन।
उसने खुद ही मेरा आधा खड़ा लंड अपनी गीली चूत पर टिकाया और मेरी आखों में देखते हुए कहा, 'डाल'

मैंने वही किया जो करने का आदी था। अपनी पूरी ताकत से लंड सुमन की चूत में पेल दिया। गीली चूत में लंड बिना रोकटोक अंदर तक सरकता चला गया।
'आह्ह… हा हा हा' ये सुमन की दर्द और चुदास भरी हंसी थी। उसे मेरा लंड बहुत पसंद था, पर हम दोनो को मिलने का मौका इतना कम मिलता था की सुमन की चूत मेरे लंड के हिसाब से फैल ना सकी थी। महीनों में कभी एक बार हमारा नसीब, सलवार और पैंट साथ खुल पाते थे। इस पूरे साल भर के दौरान मैने सुमन को कुल मिलाकर नौ बार ही चोदा था। पिछली बार लगभग बीस दिन पहले किया था, तो हम दोनो ही भरे पड़े थे।

कुछ पल रुककर जब लगा की सुमन की चूत अब तैयार है, तो मैने धक्का मारना शुरु किया। हमेशा की तरह, पहले पांच छह धक्के सुमन के लिए तकलीफदेह थे, पर तुरंत ही उसने अपने दर्द पर काबू कर लिया और उसे मजा आने लगा। अब वह अपनी कमर उचक उचका कर मेरा साथ देने लगी। उसकी चूत की गर्मी और कसावट से मेरा लंड और ज्यादा कड़ा होने लगा।

इस बीच धक्के मारने की वजह से मेरा बैलेंस बिगड़ने लगा तो मैने उसे नीचे पटक दिया और उसके ऊपर लेट गया। मैं धक्के और जारी रखना चाहता था पर उसकी नंगी पीठ में कंकड़ गड़ रहे थे।

'रुक जरा' उसने कहा। मैं हटा तो वह बैठ गई> पीठ को मोड़कर हाथ से झारने की कोशिश करने लगी पर अपनी ही पीठ तक हाथ कैसे पहुंचते। मैने अपने हाथ उसकी नंगी पीठ पर फिराए और उसमें चिपके कंकड़ और सुखे तिनके साफ कर दिये। पर यहां ऐसे नहीं कर सकते थे, इसलिए मैने कहा, 'तेरा दुपट्टा बिछा दे' तो उसने कहा, 'मां ने कल ही धोकर सुखाया था, गंदा हुआ तो उन्हे शक हो जाएग। तेरी शर्ट बिछा दे।'

पहले हमेशा मैं गमछा या धोती बिछा दिया करता था पर आज सीधा खेत से आ रहा था तो मेरे पास सिवाय मेरी गंदी शर्ट के कुछ ना था। मैने वही जमीन पर बिछा दी, पर वो इतनी बड़ी ना थी की सुमन के पूरे बदन को उन कंकड़ तिनकों से बचा सके।

'एक काम कर' उसने कहा, 'आज तू नीचे लेट जा, मैं ऊपर से आती हूं"

"ठीक है, पर दर्द तो नहीं होगा तुझे?' मैने पूछा तो उसने कहा, 'इतना तो झेल लुंगी।'

क्रमशः
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#17
दोस्तों

आपके उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

कृपया इसी तरह पढ़कर रिप्लाई देते रहें तो कहानी लिखने का समय निकालने का मन करता रहेगा।
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#18
Keep up the good work. Story is progressing in right direction.
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#19
बहुत ही शानदार अपडेट
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#20
Agle Update ka intezar
Super update
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