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पुरानी हिन्दी की मशहूर कहनियाँ
'


रस की प्यास 



,
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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उड़ा जा रहा था, तभी अचानक तीन-चार सुरक्षा अधिकारियों ने डर से विजय की बायक को हाथ देकर रोक लिया और विजय ने अपनी बायक की रफ्तार से काम करके एक तरफ खड़ी कर ली, विजय- क्या हुआ साहब सुरक्षा अधिकारी- गाड़ी के पेपर और लाइसेंस दिखाओ, विजय ने अपनी जेब से लाइसेंस निकल कर दिया तब सुरक्षा अधिकारी वाले ने पेपर मांगे तब विजय ने कहा गाड़ी के पेपर तो उसके घर पर ही रह गए हैं, सुरक्षा अधिकारी वालो ने विजय को गाड़ी एक और लगाने को कहा और तभी एक सिपाही जिसका नाम लाखन सिंह ने साहेब से कहा अरे साहेब या हमारे गांव का है इसे जाने दो, और साहेब आप कहो तो मैं भी गांव तक इसके साथ चला जाउ बड़ा जरूरी काम है।

 विजय- धन्यवाद लाखन तुम ना आते तो पता नहीं मुझे कितनी देर परेशान होना पड़ता लाखन- अरे नहीं विजय भैया हमरे रहते आप कैसे परेशान होंगे, पर ये बताओ आज गांव की तरफ कैसे चल दिए विजय- अरे लाखन भैया मेरी नौकरी शहर में है और वहां से 50-60 किमी दूर जाना पड़ता है तो मैं हर रविवार गांव आ जाता हूं आखिर मां और गुड़िया से भी तो मिलना पड़ता है ना। लाखन-अच्छा चलो मुझे भी गाँव  तक चलना है, मैं तुम्हारे साथ ही चलता हूं साहेब से भी छुट्टी मांग ली है विजय- क्यों नहीं लाखन बैठो विजय लाखन को लेकर गांव की और चल देता है, विजय एक 30 साल का हट्टा-कट्टा जवान था और शहर में सरकारी नौकरी करता था और अपना पूरा नाम विजय सिंह ठाकुर लिखता था, गांव में उसकी माँ रुक्मणि और बहन गुड़िया रहते थे, रुक्मणी करीब 48 साल की एक भरे बदन की औरत थी और करीब 10 साल पहले ही उसके पति की मौत हो चुकी थी उसके इस्तेमाल के लोग गाँव  में ठकुराइन के नाम से ही पुकारते थे, विजय की बहन गुड़िया अब 25 बरस की हो चली थी, लेकिन अभी तक दोनों भाई बहन माई से किसी की शादी नहीं हुई थी, लेकिन सभी की कामनाएं दबी हुई थी, लाखन- विजय भैया कहो तो आज थोड़ा मदिरापान हो जाए, कहो तो एक बोतल ले लू गाव के हरेभरे पेड़ो के नीचे बैठ कर पीने  का मजा ही कुछ और आता है। विजय जनता था कि लाखन एक रंगीन मिजाज का आदमी है और विजय एक दो बार पहले भी लाखन और एक दो लोगो के साथ मिलकर काम कर चुका था, उसने सोचा चलो अब शाम भी हो रही है और गांव भी 10 किमी होगा थोड़ा मूड फ्रेश कर  लिया जाए लाखन और विजय गांव से 3-4 किमी दूर एक तालाब के किनारे लगे पेड़ो के नीचे बेथ कर पीना शुरू कर देते हैं, लाखन- अच्छा विजय भैया कोई माल वगैहरा पटाया है कि नहीं शहर में हां ऐसे ही नीरस जिंदगी जी रहे हो, विजय- बिना औरत के क्या जिंदगी नीरस रहती है, लाखन- अरे और नहीं तो क्या, अब हमको ही देख लो तुमसे 2 साल छूटे हैं पर जबसे हमारी शादी हुई है तब से हमको अपनी औरत को छोड़े बिना नींद ही नहीं आती है, विजय को लाखन की बातो में बड़ा मजा आ रहा था और उसका नशा चढ़ता ही जा रहा था, उधर लाखन की यह कामजोरी थी की वाह पीने के बाद सिर्फ और सिर्फ चूत और चुदाई की ही बात करता था, - तो क्या तुम अपनी औरत को रोज चोदते हो लाखन- शराब का बड़ा सा घूंट गटकते हुए, हा भैया मुझे तो बिना अपनी औरत की चूत मारे नींद ही नहीं आती है,



 विजय- लगता है तेरी बीबी बहुत सुंदर है लाखन- सुंदर तो है भैया, लेकिन जैसा माल कि हमें चाहत थी वैसा माल नहीं है, विजय- क्यों तुझे कैसी माल की चाहत थी लाखन- अब क्या बताउ भैया मुझे लंडियो को चोदने में उतना मजा नहीं आता है जितना मजा बड़ी उमर की औरत को चोदने में आता है, विजय- बड़ी उमर का मतलब, किस तरह की औरत लाखन- भैया मुझे तो अपनी माँ की उमर की औरत को चोदने में मजा आता है, विजय- क्यों माँ की उमर की औरत में कुछ खास बात होती है क्या लाखन- अच्छा पहले ये बताओ तुमने कभी अपनी माँ की उमर की औरत को पूरी नंगी देखा है, विजय- नहीं देखा क्यों लाखन- अगर देखा होता तो जानता, मैं तो शादी के पहले ऐसी ही औरत को सोच-सोच कर खूब अपना लैंड हिलाता था, विजय- अच्छा, तो क्या तूने किसी को पूरी नंगी भी देखा था लाखन- नशे में मुस्कुराए हुए, देखो भैया तुमसे बता रहा हूं कि तुम मेरे भाई जैसे हो पर ये बात कहीं और ना करना, विजय- लाखन क्या तुझे मुझ पर भरोसा नहीं है लाखन- भरोसा है तभी तो बता रहा हूं भैया, एक बार मैंने अपनी अम्मा को पूरी नंगी देखा था, क्या बताउ भैया इतने सारे बदन की है मेरी अम्मा की उसकी गदराई उफान खाती जवानी देख कर मेरा लंड किसी डंडे की तरह तन गया था, बस तब से हाय भैया मुझे अपनी अम्मा जैसी औरत हाय अच्छी लगती है और जब भी मैं अपनी औरत को चोदता हूँ तो मुझे ऐसा लगता है जैसे मैं अपनी अम्मा को पूरी नंगी करके चोद रहा हूँ, विजय- लाखन की बात सुन कर हेयरन रह जाता है लेकिन उसका लैंड उसके पेंट में पूरी तरह तन हुआ था, विजय- पर तूने अपनी अम्मा को पूरी नंगी कैसे देख लिया लाखन- क्या विजय भैया तुम औरतों को नहीं जानते, उनकी उम्र जितनी बढ़ती है, उनकी जवानी और उतनी लगती है, मेरी अम्मा को चूत में  खूब खुल्ली मची होगी इसीलिये वह पूरी नंगी होकर घर के आंगन में नहा रही थी और मैं चुपचप चुप कर उसकी गदराई जवानी देख रहा था, विजय- तब तो तू रोज अपनी अम्मा को नंगी देखता होगा, लाखन- अब भैया घर में ऐसा चोदने लायक माल हो तो पूरी नंगी देखे बिना रहा भी तो नहीं जाता, पता नहीं तुम 30 बरस के हो चले ।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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भैया मुझे तो अपनी माँ की उमर की औरत को चोदने में मज़ा आता है, विजय- क्यों माँ की उमर की औरत में कुछ खास बात होती है क्या लाखन- अच्छा पहले ये बताओ तुमने कभी अपनी माँ की उमर की औरत को पूरी नंगी देखा है,
विजय- नहीं देखा क्यों
लाखन- अगर देखा होता तो जानता, मैं तो शादी के पहले ऐसी ही औरत को सोच-सोच कर खूब अपना लैंड हिलाता था,
विजय- अच्छा, तो क्या तूने किसी को पूरी नंगी भी देखा था लाखन- नशे में मुस्कुराए हुए, देखो भैया तुमसे बता रहा हूं कि तुम मेरे भाई जैसे हो पर ये बात कहीं और ना करना,
विजय- लाखन क्या तुझे मुझ पर भरोसा नहीं है
लाखन- भरोसा है तभी तो बता रहा हूं भैया, एक बार मैंने अपनी अम्मा को पूरी नंगी देखा था, क्या बताउ भैया इतने सारे बदन की है मेरी अम्मा की उसकी गदराई उफान खाती जवानी देख कर मेरा लंड किसी डंडे की तरह तन गया था, बस तब से हाय भैया मुझे अपनी अम्मा जैसी औरत हाय अच्छी लगती है और जब भी मैं अपनी औरत को चोदता हूँ तो मुझे ऐसा लगता है जैसे मैं अपनी अम्मा को पूरी नंगी करके चोद रहा हूँ,

विजय- लाखन की बात सुन कर हेयरन रह जाता है लेकिन उसका लैंड उसके पेंट में पूरी तरह तन हुआ था,
विजय- पर तूने अपनी अम्मा को पूरी नंगी कैसे देख लिया
लाखन- क्या विजय भैया तुम औरतों को नहीं जानते, उनकी उम्र जितनी बढ़ती है, उनकी जवानी और उतनी लगती है, मेरी अम्मा को चूत में खूब खुल्ली मची होगी इसीलिये वह पूरी नंगी होकर घर के आंगन में नहा रही थी और मैं चुपचप चुप कर उसकी गदराई जवानी देख रहा था,
विजय- तब तो तू रोज अपनी अम्मा को नंगी देखता होगा,

लाखन- अब भैया घर में ऐसा चोदने लायक माल हो तो पूरी नंगी देखे बिना रहा भी तो नहीं जाता, पता नहीं तुम 30 बरस के हो चले हो और तुम्हारा आदमी क्यों नहीं होता, जब तुम्हारी माँ तो.........
.. विजय-बोल-बोल क्या कह रहा था
लाखन- माफ करना भैया गलती से मुंह से निकल गया
विजय- उसकी बात लेकर एक सांस में तीन-चार घूंट खिचते हुए, अरे बोल ना क्या कह रहा था मेरी मां के बारे में, जब मैं तेरी मां के बारे में बताऊं, मैं भी सुन सकता हूं तो अपनी मां के बारे में, मैं भी सुन सकता हूं, बोल तू क्या कहना चाहता है, तू मेरा दोस्त है मैं तेरी बात का बुरा नहीं मानूंगा और अगर मुझे बात बुरी लगी तो मैं तुझे करने के लिए मना कर दूंगा, अब बोल भी दे

लाखन- विजय की बात सुन कर थोड़ा जोश में आ चूका था और भैया मा मैं तो यह कह रहा था कि यह पूरे गांव में , सबसे गदराया बदन और नशीली जवानी अगर किसी की है तो वाह है आपकी मां ठकुराइन की, क्या आपका लंड आपकी मां को देख कर खड़ा नहीं होता है जब कि आप तो हमेशा उनके साथ घर पर ही रहते हैं, ठकुराइन जब गाव में चलती है तो अच्छा - अच्छा के लंड खड़े हो जाते हैं,

विजय- नशे में बहुत मस्त हो रहा था और जब उसने लाखन के मुंह से अपनी मां की गदराई जवानी की बात सुनी तो उसका मोटा लंड झटके खाने लगा, क्या इतनी मस्त लगती है मेरी माँ ।
लाखन- सच कहु विजय भैया अगर तुम्हारी जगह माई ठकुराइन का बेटा होता तो दिन रात ठकुराइन को खूब कस-कस कर चोदता, सच विजय भैया आपकी माँ बहुत मालदार औरत है, कितने सालो से उनको कोई लंड भी नहीं मिला है उनकी चूत तो पूरी कुंवारी लौंडियो जैसी हो गई होगी, ।
विजय- अच्छा तो एक बात बता लाखन तूने कभी अपनी अम्मा को चोदने की कोशिश नहीं की,

लाखन- अरे नहीं विजय भैया मेरी मां बहुत गरम मिजाज की औरत है और इसलिए मेरी गांड फटती है सब कम्मो से,
विजय- तूने ठीक ही किया है, कोई माँ अपने बेटे से अपनी चूत थोड़े ही चुदवा लेगी,

लाखन- हा वो तो है भैया पर जिस औरत को लंबे समय से लंड ना मिला हो वो औरत अगर किसी जवान लंड का मस्त लंड देख ले तो उसकी चूत पिगल सकती है और जब औरत खूब चुदासी हो जाती है तो फिर वहां किसी का भी लंड ले सकती है, विजय बात लाखन से कर रहा था लेकिन लाखन की बातों के करण उसके दिमाग में सिर्फ उसकी मां रुक्मणी का ही ख्याल आ रहा था था और उसका उपयोग कभी रुक्मणी की मोटी लहराती गांड कभी उसके मोटे-मोटे कासे हुए दूध और कभी उसके रसीले होंठ और उबरा हुआ पेट ही नजर आ रहा था,

विजय- अच्छा ये बता लाखन और कौन औरत गाव में सबसे पटाखा लगती है तुझे।

लाखन- अरे भैया हमें लगने से क्या होता है सच कहूं तो असली माल तुम्हारे घर में है और तुम हो कि एक दम नीरस आदमी हो
, विजय- तो मुझे क्या करना चाहिए लाखन


लाखन- भैया औरत की दबी हुई अगर भड़का दो तो फिर तुम्हें कुछ करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी औरत खुद ही सब कुछ कर लेगी,

विजय- तूने अपनी बीबी को अपनी अम्मा को नंगी देखने वाली बात बताई है की नहीं

लाखन- अरे वाह तो सब जानती है, कई बार तो वह खुद कहती भैया मुझे तो अपनी माँ की उमर की औरत को चोदने में मज़ा आता है,

विजय- क्यों माँ की उमर की औरत में कुछ खास बात होती है क्या लाखन- अच्छा पहले ये बताओ तुमने कभी अपनी माँ की उमर की औरत को पूरी नंगी देखा है,
विजय- नहीं देखा क्यों लाखन- अगर देखा होता तो जानता, मैं तो शादी के पहले ऐसी ही औरत को सोच-सोच कर खूब अपना लैंड हिलाता था,




विजय- अच्छा, तो क्या तूने किसी को पूरी नंगी भी देखा था लाखन- नशे में मुस्कुराए हुए, देखो भैया तुमसे बता रहा हूं कि तुम मेरे भाई जैसे हो पर ये बात कहीं और ना करना, विजय- लाखन क्या तुझे मुझ पर भरोसा नहीं है लाखन- भरोसा है तभी तो बता रहा हूं भैया, एक बार मैंने अपनी अम्मा को पूरी नंगी देखा था, क्या बताउ भैया इतने सारे बदन की है मेरी अम्मा की उसकी गदराई उफान खाती जवानी देख कर मेरा लंड किसी डंडे की तरह तन गया था, बस तब से हाय भैया मुझे अपनी अम्मा जैसी औरत हाय अच्छी लगती है और जब भी मैं अपनी औरत को चोदता हूँ तो मुझे ऐसा लगता है जैसे मैं अपनी अम्मा को पूरी नंगी करके चोद रहा हूँ, विजय- लाखन की बात सुन कर हेयरन रह जाता है लेकिन उसका लैंड उसके पेंट में पूरी तरह तन हुआ था, विजय- पर तूने अपनी अम्मा को पूरी नंगी कैसे देख लिया लाखन- क्या विजय भैया तुम औरतों को नहीं जानते, उनकी उम्र जितनी बढ़ती है, उनकी जवानी और उतनी लगती है, मेरी अम्मा को छुट माई खूब खुल्ली मची होगी इसीलिये वह पूरी नंगी होकर घर के आंगन में नहा रही थी और मैं चुपचप चुप कर उसकी गदराई जवानी देख रहा था, विजय- तब तो तू रोज अपनी अम्मा को नंगी देखता होगा, लाखन- अब भैया घर में ऐसा चोदने लायक माल हो तो पूरी नंगी देखे बिना रहा भी तो नहीं जाता, पता नहीं तुम 30 बरस के हो चले हो और तुम्हारा आदमी क्यों नहीं होता, जब तुम्हारी माँ तो........... विजय-बोल-बोल क्या कह रहा था लाखन- माफ करना भैया गलती से मुंह से निकल गया विजय- उसकी बात लेकर एक सांस में तीन-चार घूंट खिचते हुए, अरे बोल ना क्या कह रहा था मेरी मां के बारे में, जब मैं तेरी मां के बारे में बताऊं, मैं भी सुन सकता हूं तो अपनी मां के बारे में, मैं भी सुन सकता हूं, बोल तू क्या कहना चाहता है, तू मेरा दोस्त है मैं तेरी बात का बुरा नहीं मानूंगा और अगर मुझे बात बुरी लगी तो मैं तुझे करने के लिए मना कर दूंगा, अब बोल भी डे लाखन- विजय की बात सुन कर थोड़ा जोश में आ चूका था और भैया माई तो यह कह रहा था कि यह प्योर गनव माई अगर है सबसे गदराया बदन और नशीली जवानी अगर किसी की है तो वाह है आपकी मां ठकुराइन की, क्या आपका लंड आपकी मां को देख कर खड़ा नहीं होता है जब कि आप तो हमेशा उनके साथ घर पर ही रहते हैं, ठकुराइन जब गनव माई चलती है तो अच्छा - अच्छा के लंड खड़े हो जाते हैं, विजय- नशे में बहुत मस्त हो रहा था और जब उसने लाखन के मुंह से अपनी मां की गदराई जवानी की बात सुनी तो उसका मोटा लंड झटके खाने लगा, क्या इतनी मस्त लगती है मेरी माँ लाखन- सच कहु विजय भैया अगर तुम्हारी जगह माई ठकुराइन का बेटा होता तो दिन रात ठकुराइन को खूब कस-कस कर चोदता, सच विजय भैया आपकी माँ बहुत मालदार औरत है, कितने सालो से उनको कोई लंड भी नहीं मिला है उनकी चूत तो पूरी कुंवारी लौंडियो जैसी हो गई होगी, विजय- अच्छा तो एक बात बता लाखन तूने कभी अपनी अम्मा को चोदने की कोशिश नहीं की, लाखन- अरे नहीं विजय भैया मेरी मां बहुत गरम मिजाज की औरत है और इसलिए मेरी गांड फटती है सब कम्मो से, विजय- तूने ठीक ही किया है, कोई माँ अपने बेटे से अपनी चूत थोड़े ही चुदवा लेगी, लाखन- हा वो तो है भैया पर जिस औरत को लंबे समय से लंड ना मिला हो वो औरत अगर किसी जवान लंड का मस्त लंड देख ले तो उसकी चूत पिगल सकती है और जब औरत खूब चुदासी हो जाती है तो फिर वहां किसी का भी लंड ले सकती है, विजय बात लाखन से कर रहा था लेकिन लाखन की बातों के करण उसके दिमाग में सिर्फ उसकी मां रुक्मणी का ही ख्याल आ रहा था था और उसका उपयोग कभी रुक्मणी की मोती लहराती गांड कभी उसके मोटे-मोटे कासे हुए दूध और कभी उसके रसीले होंठ और उबरा हुआ पेट ही नजर आ रहा था, विजय- अच्छा ये बता लाखन और कौन औरत गनव में सबसे पटाखा लगती है तुझे। लाखन- अरे भैया हमें लगने से क्या होता है सच कहूं तो असली माल तुम्हारे घर में है और तुम हो कि एक दम नीरस आदमी हो, विजय- तो मुझे क्या करना चाहिए लाखन






लाखन- भैया औरत की दबी हुई अगर भड़का दो तो फिर तुम्हें कुछ करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी औरत खुद ही सब कुछ कर लेगी, विजय- तूने अपनी बीबी को अपनी अम्मा को नंगी देखने वाली बात बताई है की नहीं

लाखन- अरे वाह तो सब जानती है, कई बार तो वह खुद कहती है कि मुझे अपनी अम्मा समझ कर चोदो ।जब तुम मुझे अपनी अम्मा समझ कर चोदते हो तो बहुत अच्छे से चोदते हो,

विजय- मुस्कुराता हुआ, सेल अपनी औरत को भी पता लगा लिया है तूने

विजय- चल अब चलते हैं बहुत देर हो रही है, लाखन- फिर कभी साथ का मूड हो भैया तो उसी नाके पर आ जाना जहां तुम्हारी गाड़ी रोकी थी मेरी ड्यूटी उसकी चौकी पर रहती है,

विजय- क्यों नहीं लाखन अब तो तेरे साथ बेथना ही पड़ेगा, तेरी बाते पूरा मूड फ्रेश कर देती है, लाखन- अगर ऐसी बात है भैया तो अगली बार जब हम साथ बैठेंगे तब मैं तुम्हें और भी मस्त बताऊंगा














जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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विजय- क्यों नहीं लाखन अब तो तेरे साथ बैठना ही पड़ेगा, तेरी बाते पूरा मूड फ्रेश कर देती है, लाखन- अगर ऐसी बात है भैया तो अगली बार जब हम साथ बैठेंगे तब मैं तुम्हें और भी मस्त बताऊंगा,

विजय- मुस्कुराते हुए किसके नंगे में अपनी अम्मा के नंगे में या मेरी माँ के नंगे में
लाखन- तुम जिसके बारे में सुनना चाहोगे भैया उसके बारे में मैं बता दूंगा, सुरक्षा अधिकारी हूं सबकी खबर रखता हूं, और हा भैया आपसे एक बात कहना भूल गया, बुरा मत मानना पर मेरी सलाह है अपनी बहन गुड़िया को अपने साथ शहर में रखो यहाँ गांव का माहौल बड़ा ख़राब रहता है, किसी दिन कुछ ऊंच नीच ना हो जाए,
विजय- तू कुछ छुपा रहा है लाखन, साफ-साफ बता क्या बात है ।
लाखन- भैया बुरा मत मानना पर एक दिन मैंने देखा कि मनोहर काका अपना लैंड निकाल कर मूत रहा था और गुड़िया,,,,,,,,,,,,
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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लाखन- भैया बुरा मत मानना पर एक दिन मैंने देखा कि मनोहर काका अपना लैंड निकाल कर मूत रहा था और गुड़िया ,झड़ियों के पीछे छुप कर उसका मोटा लंड देख रही थी, अब वह बड़ी हो गई है, उसका भी मन अब इन चीज़ों की तरफ जाने लगा है,
विजय- अरे लाखन तूने बहुत अच्छा किया जो मुझे पहले से ही इन बातों के बारे में बताया मैंने कल ही गुड़िया को यहाँ के माहोल से शहर ले जाता हूं वहां कुछ सिलाई बुनई सीख लेगी तो ससुराल में उसके काम आएगी, दोनों बातें करते हुए गांव पाहुच जाते हैं और फिर लाखन अपने और विजय अपने घर की और आ जाता है
, विजय का लैंड अभी-अभी बैठा ही था कि घाघरा चोली पहनकर गुड़िया दौड़ कर आती है और विजय के सीने से लग जाती है, विजय के सीने में गुड़िया की पपीते जैसी बड़ी-बड़ी, वह छतिया पूरी तरह से छूने लगती है, विजय गुड़िया को पहली बार इस तरह से कर रहा था और वह गुड़िया को अपने सीने से पूरी तरह कस कर उसके गालों को चूम लेता है, गुड़िया उसके सीने से अलग होकर उसके सीने पर मुक्के मार कर जल्दबाजी हुई, गुड़िया- क्या भैया आपने तो कहा था कि दिन में ही आ जाओगे और आप आधी रात को आ रहे हो मैं कब से आपका रास्ता देखूंगा राही थी. विजय शराब के नशे में पूरी तरह मदहोश था और गुड़िया की गदराई जवानी को पहली बार इतनी गौर से देख रहा था था, गुड़िया के मोटे-मोटे दूध मस्त कर रहे थे कि वाह अपनी नज़र अपनी बहन के दूध से हटा ही नहीं पा रहा था,
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(08-01-2021, 03:26 PM)neerathemall Wrote: [Image: 93249671_007_73a0.jpg]
बचपन की भाभी को जवानी में चोदा

  1. [Image: 1.jpg?1480051741]

    मन ही मन उसको चोदा करता था। लेकिन उसके तरफ़ से कभी कोई इशारा नहीं मिला था। हां सिर्फ़ इतना था कि वो अक्सर मेरे सामने और दूसरों के सामने मेरी तारीफ़ किया करती थी। तो मैं जब उसके घर पहुंचा तो वो बहुत परेशान थी और उसके पति भी दो तीन दिनो के लिये कहीं बाहर गये हुए थे। मैने पूछा तो पूनम ने कहा कि उसके सर में बहुत दर्द हो रहा है। मैने कहा मैं आप को मेरी मोटरसाइकिल मैं डाक्टर के पास ले चलता हूं।



  2.  फिर घर बंद करके मैने उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बैठाया और होस्पीटल की तरफ़ चल पड़ा। इतने दिनो में आज पहली बार वो मेरे इतने करीब थी। उसका चूची मेरी पीठ पर पूरी तरह से चिपकी हुई थी। मैने पूनम से कहा तुम्हारे सर में दर्द है तुम्हें चक्कर भी आ सकता है इसलिये तुम मुझे अच्छे से पकड़ लो।पूनम एक हाथ को दाहिने तरफ़ से घुमा कर मेरे दायें जांघ पर रख दिया। मेरी सांसे तेज तेज चल रही थी। मोटरसाइकिल भी तेज चल रही थी। तभी पूनम मुझसे पूछी कि दूसरे हाथ से भी किया वो मुझे पकड़ ले। मैने कहा हां पकड़ लो। अब वो दोनो हाथों से मुझे दोनो तरफ़ से पकड़े हुए थी। उसकी दोनो चूचियों को अब मैं पूरी तरह से अपनी पीठ पेर महसूस कर रहा। मोटरसाइकिल मेरी तेज चल रही थी। जिसके कारण उसकी साड़ी हवा से ऊपर उठ रही थी। मैने अपने हाथ उसके जांघ पर रख कर उसकी साड़ी को दोनो जांघों के बीच में घुसा दी। तभी उसने अपनी जांघों को दबा कर मेरे हाथ को फंसा लिया और मुझे पीछे से और जोर से पकड़ लिया। मैं पीछे मुड़ कर पूनम को देखा तो वो मुस्कुरा दी। मैने उससे कहा आप को डाक्टर के सुई की ज़रूरत नहीं है। आप को कुछ और की ज़रूरत है।/इतना कह कर मैने अपनी गाड़ी वापस मोड़ ली। और इस बार दुगनी तेज़ी से वापस पूनम के घर पहुंचा। घर पहुंचते ही मैने घर के दरवाज़े बंद किये और पूनम की साड़ी उतार कर उसे ले जाकर सीधा बेड पर पटक दिया और उसकी चूचियों को ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा और अपने होंठ से उसे होंठ को ज़ोर ज़ोर से चूसने लगा। फिर मैने उसके ब्लाउज़, ब्रा और पेटीकोट को उतार कर फेंक दिया। अब वो बिल्कुल नंगी बिस्तर पर पड़ी थी। मैने कई बार उसे सपनो में चोदा था। लेकिन पूनम अन्दर से इतनी खूबसुरत है यह कभी सपने में भी नहीं सोचा था। उसकी गोरी गोरी तांगें पतली कमर बड़ी बड़ी चूची और उस पर पिंक कलर का निप्पल। मेरे सामने जैसे कोई परी नंगी लेटी हो और मैं उसे चोदने जा रहा हूं। मैं सपने को सच होता देख इतना उत्तेजित था कि मैं जल्द से जल्द अपनी गरमी का अहसास उसे करा देना चाहता था। मैं अपनी पैंट और टी शर्ट उतार दी और उसके सर के पास बैठ गया और अपने लंड को उसके मुँह में डाल दिया। फिर मैं अपने मुँह से उसकी चिकनी बुर को चाटने लगा।पूनम भी शायद मुझे इतना करीब पाकर इतनी उत्तेजित हो रही थी कि उसकी चूत से बुरी तरह से पानी निकल रहा था और वो कमर उठा उठा कर अपने बुर को चटवा रही थी। अचानक उसने अपने दोनो जांघों से और अपने हाठों से मेरे सर को पूरी ताकत से अपनी बुर पर दबाने लगी। मैं समझ गया कि उसकी चूत से पानी झड़ने वाला है। मैं भी उसके मुँह पे लंड ज़ोर ज़ोर से मारना शुरु कर दिया। 


  3. और फिर अचानक लंड की गरमी और बुर की गरमी एक साथ बाहर निकलने लगी। मेरे लंड के पानी से उसका पूरा मुँह भर गया था जो उसने बड़े प्यार से पी लिया। लंड से पानी गिरने के बाद मैने पूनम को उल्टा लेटने को कहा तो वो उल्टा लेट गयी। उसकी गांड बिल्कुल मेरे सामने थी। मैं पहली बार उसकी गांड देख रहा। उसकी गांड इतनी चिकनी थी कि मेरा लंड गांड दर्शन करके फिर से तैयार हो गया था चुदाई के लिये।मैने अपने लंड को पूनम की चूत के पास ले जा कर रख दिया फिर अपने दोनो हाथों से उसकी गांड को फैला दिया। उसकी पिंक पिंक बुर और गांड मुझे चोदने के लिये आमन्त्रित कर रहे थे। मैने अपने लंड को उसकी बुर पर रक कर ज़ोर का एक धक्का मारा और पूरा को पूरा लंड पूनम की चूत में घुस गया। पूनम भी पूरे रांड की तरह मुझसे चुदवा रही थी। मैं ५ मिनट तक उसकी चूत को चोदता रहा। मैं अपने लंड को पूरा बाहर निकालता फिर अंदर करता। इससे पूनम को काफ़ी मज़ा आ रहा था वो गांड उठा उठा के मेरा साथ दे रही थी। फिर मैने अपना लंड निकाल कर बिस्तर पर लेट गया। अब पूनम की बारी थी। वो मेरे ऊपर आ कर मेरे लंड को अपने हाथ से अपनी बुर में डाल कर मेरे ऊपर बैठ गयी और ऊपर नीचे होने लगी। उसकी चूचियां उसके साथ साथ ऊपर नीचे हो रही थी। मेरे हाथ कभी उसकी चूचियों पर जाते तो कभी उसके पेट पर फिर अचानक वो थोड़ा आगे झुक गयी और ज़ोर ज़ोर से चोदने लगी। मैं भी अब लंड का पानी उसकी चूत में छोड़ने के लिये तैयार था।


  4.  मैं भी नीचे से ज़ोर ज़ोर से उसकी बुर में लंड घुसाने लगा। कमरे में लंड और बुर के टकराने की आवाज़ बिल्कुल साफ़ सुनायी दे रही थी। हम दोनो अब पूरी तेज़ी से एक दूसरे को चोद रहे थे फिर मैं उसे पटक कर उसके ऊपर आ गया और उसके दोनो पैरों को फैला कर फ़ुल स्पीड से पूनम की चुदाई शुरु कर दी। २०-२५ झटके के बाद लंड से पानी निकाल कर पूनम की बुर को भर दिया।पूनम की आंखों में अब संतुष्टि थी। उसके सर का दर्द भी जा चुका था। फिर मैने उससे पूछा कि मैं इतने दिनो से आपके घर पे आता हू लेकिन आपने कभी बताया क्यों नहीं कि आप मुझसे चुदवाना चाहती हैं। तो उसने कहा कि उसके पति पहले उसे हफ़्ते में एक बार तो ज़रूर चोदते थे लेकिन अब महीना गुजर जाता है तो भी उनका चोदने का मूड नहीं होता है।फिर मैने उनको पूछा आज जो कुछ हुआ वो पहले से आपने ऐसा सोच रखा था या ये जो कुछ हुआ वो अचानक हुआ। तो उसने कहा जो भी हुआ वो बिल्कुल अचानक हुआ। लेकिन जो हुआ वो अच्छा हुआ।और दोस्तों शायद आप लोगों को यकीन न हो लेकिन आज भी मैं साल में एक दो बार जब उस कोलोनी में जाता हूं तो पूनम को चोद कर ही आता हूं। क्योंकि दिन में उनके पति ओफ़िस में होते है और अचानक कभी आ भी गये तो वो बुरा नहीं मानते कि मैं उनके घर में क्यों हूं क्योंकि मैं तो बहुत छोटे से उनके घर पे आता रहा हूं।
  5. Jul
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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मेरी बचपन की प्रेमिका की चुत चुदाई
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Quote:मेरी नानी के घर के पास एक लड़की से मेरी दोस्ती थी. हम साथ साथ रहते थे, खेलते थे. वो जब एक बार मेरे शहर में आयी तो मुझसे मिली. तो हमारे बीच क्या क्या हुआ?

मेरा नाम सैम है, मैं दिल्ली का रहने वाला हूँ. आज मैं आप लोगों अपनी पहली सेक्स कहानी सुनाने जा रहा हूँ.

ये बात उस टाइम की है, जब मैं छोटा था और वो भी मुझसे छोटी थी. वो मेरी नानी के यहां रहती थी. जब भी मैं नानी के घर जाता था, तो उसे देखकर मुझे एक अलग ही खुशी होती थी. उस वक्त मुझे नहीं पता था कि ये प्यार है या कुछ और है. पर जब भी वो मेरे पास आती, मेरा दिल जोरों से धड़कने लगता था.

उसका नाम जैमिमा था मगर प्यार से सब उसे जैम कहते थे. मुझे उसे उसी उम्र से ही प्यार हो गया था और वो भी मुझे प्यार करती थी. मगर न वो कभी मुझसे कह पायी . और न मैंने कभी उससे अपने प्यार का इजहार किया.

हम लोग ऐसे ही मिलते, बात करते बड़े हो गए. आज मैं 23 साल का गबरू जवान हो गया हूँ और वो 20 की हो गई है. जैम बला की खूबसूरत लगती है. जो भी उसे देखता, बस देखता ही रह जाता. जैम के 32 साइज़ के बूब्स उसकी खूबसूरत जवानी के दीदार कराते थे. जैम की 28 इंच की बलखाती कमर, गांड 34 इंच की तोप सी उठी हुई थी. सच में क्या बताऊं कितनी मस्त लगती थी वो.

जवानी के अहसास के बाद जब हमारा पहली बार मिलना हुआ. तब वो मेरे शहर में अपनी बुआ के घर आई थी.

उसने मुझे मैसेज किया कि मैं आपके यहां आ गयी हूँ.

उसका मैसेज पढ़ कर मेरी तो ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा. मैं भी उससे मिलने के लिए एक अरसे से बेताब था.

मैंने उससे कहा- मुझसे मिलने हमारे घर आ जाओ.
वो बोली- कल आती हूँ.

मैं कल का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था. फिर वो पल आ ही गया, जब वो मेरे सामने खड़ी थी. मैं तो उसे देख कर बस खो सा गया था. आह वो ब्लू जीन्स ओर वाइट शर्ट में क्या गजब की लग रही थी.

तभी अचानक से मेरे कानों में आवाज आयी- देखते ही रहोगे या बैठने को भी बोलोगे.
मैंने उससे बैठने को बोला और पूछा- क्या खाओगी?
वो बोली- अरे तुम बैठो न . टाइम आने पर बता दूंगी कि क्या खाऊंगी.

फिर हम दोनों बैठ कर बातों में खो गए, पुरानी यादें एक एक करके सामने आने लगीं. कैसे मैं जब नानी के घर जाता था, तो हम मिलते थे. जब वो सो रही होती, तो मैं बस उसके चेहरे को ही देखता रहता था और उसके हाथ को अपने हाथों में लेकर सहलाता रहता था. वो बिना कुछ जाने बस यूं ही सोती रहती थी.

फिर बातों बातों में हम दोनों एक दूसरे के बिल्कुल क़रीब आ गए थे. उसका पैर मेरे पैर से टच हो रहा था और मुझे पता ही नहीं चला कि कब मेरा हाथ उसके हाथों में आ गया था. ये ठीक वैसा ही हो रहा था, जैसे पहले हुआ करता था.

फिर हम दोनों बात करते करते अचानक रुक गए और एक दूसरे को देखने लगे. मेरा चेहरा उसके चेहरे की तरफ था और धीरे धीरे हम दोनों के चेहरे एक दूसरे के बिल्कुल सामने आ गए थे. हम दोनों एक दूसरे की आती जाती सांसों को आसानी से फील कर रहे थे.

तभी अचानक मैंने उसके होंठों को अपने होंठों में दबा लिया और चूसना चालू कर दिया. मेरा एक हाथ उसके बालों को पकड़े हुए था और एक हाथ उसकी कमर पर था.

मैं उसके होंठों को चूसे जा रहा था, वो भी बराबर मुझे चूमे जा रही थी. उसका हाथ भी मेरी कमर पर रखा था.

ऐसे ही लगभग 10 मिनट की धुंआधार किस के बाद हम लोग थोड़े रिलैक्स हुए और एक दूसरे को देखकर मुस्कराने लगे.

अभी इससे ज्यादा हम दोनों कुछ नहीं कर सकते थे क्योंकि मेरी मम्मी आने ही वाली थीं.

मैंने उससे बोला- मुझे एक पूरी रात तेरे साथ चाहिए.
उसने बोला- हम्म . मैं देखती हूँ कि क्या कुछ हो सकता है.

फिर हम दोनों ने एक दूसरे को गले लगाया. गले लगाने पर मुझे उसके तने हुए मम्मों का अपनी छाती में एहसास हुआ. उसके मम्मे किस करने की वजह से और भी ज्यादा तन गए थे.

फिर वो अपनी बुआ के घर चली गयी, उनका घर मेरे पड़ोस में ही था.

अब हम जल्द ही पूरी रात के लिए मिलने वाले थे.

दूसरे दिन उसका मैसेज आया- बुआ घर पर नहीं है, वो शहर से कहीं बाहर गयी हैं. तुम आ जाओ . मैं ब्यूटी पार्लर में बैठी हूँ.
उसकी बुआ की ब्यूटी पार्लर की दुकान है. मैं भी जल्दी से नहा धोकर 11 बजे निकल गया.

मैंने पहले उसे कॉल किया और पूछा कि मुझे मेन गेट से आना है या पार्लर वाले गेट से आना है.
वो बोली- शॉप से आ जाओ, मैं उधर ही हूँ.

कुछ ही देर बाद हम दोनों अब आराम से शॉप में बैठे थे. मैंने कोई पहला लेडीज ब्यूटी पार्लर अन्दर से देखा था. बढ़िया मस्त इंटीरियर था. एक चेयर रखी थी. मैं जाकर उस चेयर पर आराम से बैठ गया. वो मेरे से थोड़ा दूर बैठी थी.

मैंने उससे बोला- मेरे पास आओ.

वो मेरे पास आ गयी. मैंने उसे गोद में बिठा कर गले से लगा लिया. आज उसने क्रॉप टॉप और घुटनों तक की स्कर्ट पहन रखी थी. वो बला की खूबसूरत लग रही थी. उसकी चिकनी ओर गोरी टांगें एकदम मलाई की तरह मेरी कमर से लिपड़ी थीं. मेरा मन कर रहा था कि अभी के अभी सारी मलाई बस चाट जाऊं.

मैंने उसे किस करना चालू किया. उसके ऊपर वाले होंठ को अपने दोनों होंठों के बीच में दबा कर कसके चूमा. फिर नीचे वाले होंठ को भी ऐसे ही चूसा. मुझे लग रहा था कि पता नहीं कितने टेस्टी होंठ हैं.

उसके होंठों का सारा रस चूसने के बाद मैंने उससे बोला- जीभ बाहर निकालो न . मुझे तेरी जीभ चूसना है.
तभी उसने कहा- आज नहीं पूछोगे कि क्या खाना है?

मैं कल की बात याद करने लगा, जब मैंने उससे खाने के लिए पूछा था और उसने कहा था कि टाइम आने पर बता दूंगी कि क्या खाऊंगी.

मैंने पूछा कि बताओ मेरी जान क्या खाओगी?
वो बोली- केला.

मैं समझ गया कि जैम को लंड लेना है. मैंने उसका हाथ अपने लौड़े पर रख दिया और कहा- ये वाला?
उसने मुझे चूमते हुए हां कह दिया.

इसी के साथ उसने अपने होंठों को खोल दिया और उसी समय मेरी जीभ ने उसके मुँह में हमला कर दिया. मैंने उसकी जीभ को अपने दोनों होंठों में लेकर चूसना चालू कर दिया. उसे किस करते करते ही मैंने उसका टॉप उतार दिया.

आह . नशा सा छा गया. उसने लाल रंग की ब्रा पहनी थी. इसमें वो एकदम परी लग रही थी. मैं अब भी उसे किस कर रहा था और मेरा एक हाथ उसकी ब्रा के हुक पर पहुंच गया था. हुक खुल गया और ब्रा ने उसको मम्मों को आजादी दे दी. अब मैंने अपना एक हाथ उसकी स्कर्ट के अन्दर पेंटी के ऊपर रख दिया. मैं अब उसकी पैंटी में फूली हुई चूत का उभार महसूस कर सकता था. फिर मैंने उसकी ब्रा को हटा कर उसे उठाया और वहीं डेस्क पर लिटा दिया.

इस समय मैं उसके पैरों की तरफ था और वो मेरे सामने डेस्क पर लेटी हुई अपनी में जल रही थी. उसकी नशीली आंखें जैसे कह रही थीं कि आ जाओ . अब देर न करो . मेरे जिस्म को ठंडक दे दो.

मैंने उसकी दोनों टांगों को उठा कर अपने कंधों पर रख लीं और उसके मम्मों को सहलाने लगा. फिर उसके ऊपर होकर मैंने उसके मम्मों को चूसना शुरू किया. वो तो एकदम से तड़पने लगी. मेरी जीभ का टच होते ही जैम बहुत तेज से सिसकारियां लेने लगी.

उसकी लाल कलर की चैरी (निप्पल) को मैंने अपने दांतों से मसला, तो वो मचल उठी.

[Image: premika-ki-chut-chudai-192x300.jpg]Premika

फिर मैं धीरे धीरे उसके पेट पर अपने जीभ की नोक फिराने लगा. उसका पेट एकदम सपाट था . एक भी सिलवट नहीं थी. मैं उसका सारा पेट चाट गया. अब में पेट से होते हुए उसकी कमर के चारों ओर अपनी जीभ की नोक फिरा रहा था और वो तड़प रही थी.

फिर मैंने उसकी स्कर्ट ऊपर करके उसकी पैंटी को निकाल कर एक बार उसकी पैंटी को सूंघा . आह क्या गजब की खुशबू थी उसकी पैंटी में से . थोड़ी सी पेशाब और थोड़ी उसकी कच्ची बुर का रस . दोनों आपस में मिलकर जो महक आ रही थी, वो मुझे किसी परफ़्यूम की खुशबू से कहीं ज्यादा अच्छी लग रही थी.

मैंने उसकी दोनों टांगों को ऊपर करके स्कर्ट के अन्दर सर डाल दिया. अपने दोनों होंठ उसके चुत पर रख दिए.

होंठ रखते ही वो एक बहुत तेज सिसकारी लेकर मेरा सर पर हाथ रख कर दबाने लगी. मैंने भी उसकी चूत में सीधी जीभ डाल दी और कसके चूसने लगा. उसकी चूत के होंठों को चूस चूस कर सारा रस चाट लिया.

जीभ को चुत के अन्दर बाहर करके मैंने उसका माल निकलवा लिया. उसका सारा माल में अपनी जीभ से चाट गया.

फिर मैंने उससे बोला- अब तू नीचे आ जा और मुझे डेस्क पर आने दे.
वो हां में सर हिलाते हुए उठने लगी.

मैं उससे बोला- अब मेरा लंड चूस कर गीला कर दे, ताकि ये आसानी से अन्दर जा सके.
उसने मेरा पेंट खोल के अंडरवियर जैसे ही नीचे किया, मेरा तना हुए लंड सीधे उसके मुँह पर लगा.

वो एकदम से डर गई. फिर उसने हंसते हुए मेरे लंड को एक हाथ से पकड़ लिया. एक पल वो लंड देखती रही और इसके बाद उसने मेरा लंड चूसना चालू कर दिया.

थोड़ी देर लंड चूसने के बाद मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था तो मैंने बोला- जल्दी से टेबल पर आ जा . मुझे लंड अन्दर डालने दे.

वो झट से मेरे नीचे आ गई. मैंने उसकी दोनों टांगों को हाथ में पकड़ कर लंड को चूत के मुँह पर रख दिया. मैंने निशाना तुक कर कसके धक्का मारा, तो मेरा आधा लंड अन्दर चला गया.

उसकी आंखों से आंसू आ गए. वो दर्द से चिल्लाने लगी- हटाओ जल्दी से निकालो . मेरी फट गई . आह बाहर निकाल लो.

पर मुझे तो तब और जोश आता है, जब लड़की दर्द से चिल्लाए. मैंने उसकी नेक न सुनी और एक जोर का धक्का दे दिया. मेरा पूरा लंड चुत में अन्दर जा चुका था.

वो तड़फ कर बोली- उम्म्ह. अहह. हय. याह. उई मां . रूक जाओ ना.

मैं नहीं रुका और उसके दर्द में ही लंड को अन्दर बाहर करने लगा. लगभग एक ही पोजीशन में मैं दस मिनट तक लंड अन्दर बाहर करता रहा.

इसके बाद उसका दर्द भी मजा में बदल गया था. उसकी 'अअह .' अब 'आह .' में बदल गयी थी. वो नीचे से गांड हिला हिला कर मजे ले रही थी.

मैंने उससे कहा- अब यहां शॉप के शीशे के गेट से मुँह करके चिपक कर खड़ी हो जाओ और अपना एक पैर स्टूल पर रख लो.

वो आधी घोड़ी सी बन गई. उसकी मदमस्त गांड का उभार मुझे बड़ा ही दिलकश लग रहा था. मैं उसके चूतड़ों पर हाथ फेरते हुए उसकी गांड मारने की सोचने लगा.

मैंने अपने दोनों हाथों को उसके हाथों को ऊपर की और किये और उसे अपने नीचे दबा लिया. फिर मैंने उसके पीछे से उसकी गांड में लंड पेल दिया.

वो एकदम से चीख उठी. मगर मुझे उसकी चीखों से से ही मजा मिलता था. मैंने रुका ही न नहीं और उसकी गांड बजाता रहा.

इस समय मुझे बाहर सड़क का सब दिख रहा था. मुझे सड़क पर आते जाते लोगों को देखकर ऐसी फीलिंग आ रही थी कि हम पब्लिक प्लेस में सेक्स कर रहे हैं.

कोई 5 मिनट तक गांड में लंड करने के बाद मैंने उससे बोला- चल अब तू 69 पोजीशन बना कर मेरे मुँह पर बैठ जा.

वो अपनी चूत मेरे मुँह पर रख कर बैठ गयी, जिससे मेरी जीभ उसकी चुत में अन्दर तक घुस गई. मैं जीभ अन्दर बाहर करने लगा था, उधर वो मेरा लंड चूस रही थी.

थोड़ी देर चुत लंड की चुसाई के बाद उसने सारा पानी मेरी मुँह के ऊपर ही निकाल दिया.
मैंने उससे उठने को कहा और उठ कर मैं अपने मुँह पर लगे हुए उसकी चूत के पानी को उसकी जीभ से चटवाने लगा.

अब मैंने उससे बोला- चल अब कुतिया बन जा.

वो झट से डॉगी बन गई. मैंने उसकी गांड ऊपर करके कस कस के 20 मिनट तक धकापेल चुदायी की और इसके बाद सारा माल उसकी चूत में ही निकाल दिया. हम दोनों फर्श पर ऐसे ही नंगे ही लेट गए.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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bhabhi ko massage deke garam karne ki

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P

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Hello doston mera naam Rahul hai, aur main Mumbai ka rehne wala hu. Umeed hai aap sab log theek honge, aur sex stories padh kar zindagi ka maza le rahe honge. Meri age 26 hai, aur meri height 5’10” hai, aur mera lund 6 inch ka hai.
Ye story meri bhabhi ki hai, jo hamare sath waale ghar mein hi rehti hai. Mumbai mein ghar jude hue hi hote hai, to hamara terrace ek hi sath tha. Chaliye ab main unki details batata hu.
Mere mamu ka ladka Mumbai mein job karta hai. Aur wo yaha hamare sath waale ghar mein  apni wife ke sath rehta hai, jisse uski shaadi 2 saal pehle hi hui thi. Wo zyada time office mein hi rehta hai, aur Sapna bhabhi ek housewife hai, to wo poora time ghar mein hoti hai.
Unka figure 34-30-36. Aisa mast figure ki koi bhi dekh ke pagal ho jaye, aur unka rang bahut gora hai. Hamara ek-doosre ke ghar aana-jana laga rehta hai. Ye baat pichle saal november ki hai. Main ek din terrace pe khada tha, aur mausam ko enjoy kar raha tha, ki tabhi achanak se bhabhi ke ghar se unke chillane ki awaaz aayi.
Ek-dum se unki cheekh sun kar main hairaan ho gaya. Maine socha na-jaane kya ho gaya tha. Mujhe laga shayad neeche se unke ghar jaane mein kahi der na ho jaye. To main terrace se unke ghar kood gaya, ye dekhne ke liye, ki unko kya hua tha.
Main neeche gaya to dekha ki wo safayi karte hue kisi table se neeche gir gayi thi, aur unhe chot bhi aayi thi. Fir maine unhe uthaya, aur poocha-
Main: Bhabhi kya hua aapko?
Pehle to wo mujhe dekh kar hairan hui, fir unhone bataya ki wo safayi karte hue gir gayi thi, aur isse unki peeth pe chot bhi aayi thi. Ab wo ache se chal bhi nahi paa rahi thi. To main unhe sahara deke unke room mein le gaya. Fir room mein jaa kar wo bed pe let gayi. Ab wo bahut dard mein thi, to maine kaha-
Main: Bhabhi agar aap kahe, to main massage kar du chot pe?
Pehle to wo mana karne lagi. Lekin mere insist karne pe wo maan gayi. Fir Sapna bhabhi ne drawer se tel nikaal kar mujhe diya. Wo shirt aur pajama pehle hue thi, to maine shirt thodi upar ki, aur massage shuru kar di.
Aisa gora jism dekh kar meri neeyat kharaab hone lagi. Unhe massage se acha feel hone laga, to main dheere se upar badhta jaa raha tha. Unhone meri massage ki tareef ki, to maine mauka dekhte hue upar back pe massage karne ka kaha, aur wo maan bhi gayi.
Main unki naram si body ko bade pyar se massage kar raha tha. Mujhe bhi ab maza aane laga tha. Tab maine kaha-
Main: Bhabhi ye shirt ko oil lag raha hai, to aap utaar do isko.
Wo thoda sharma rahi thi, par fir bhi unhone utaar hi di. Ab wo mere saamne sirf bra mein thi. Unhone purple color ki bra pehni thi. Main maze le le kar massage kar raha tha, aur Sapna ko bhi acha feel ho raha tha. Unka dard bhi kam ho raha tha.
Main bra strap ke aas-paas massage kar raha tha, to strap beech mein aane laga. Fir maine jhat se strap khol diya, to wo darr gayi. Unhone mujhse kaha-
Sapna bhabhi: Rahul ye kya kar rahe ho?
Maine kaha: Bhabhi wo strap beech mein disturb kar raha tha, isliye khol diya.
To wo meri baat maan gayi. Fir main unki poori peeth pe massage kar raha tha, aur maze le raha tha. Massage karte-karte meri nazar side mein gayi, to mujhe unke bade-bade boobs dikh rahe the. Haye kya nazara tha, ek-dum qayamat. Dil to kar raha tha ki masal-masal ke choosne lag jau.
Kya gore aur bade-bade boobs the. Main dekh ke pagal ho raha tha, aur control nahi kar paa raha tha. Ab main sochne laga ke bhabhi ki chudai kaise karu, aur kaise unke mazedaar boobs choosu. Fir maine bhabhi se kaha-
Main: Bhabhi aap kaafi dino se mujhe thaki hui lag rahi hai. Kyun na main aapko full body massage de du? Isse aapki poori body active ho jayegi, aur aap fresh feel karengi.
Meri ye baat sun kar wo sochne lag gayi, aur fir thoda sochne ke baad wo maan gayi. Unki haa sun kar main bahut khush hua, aur massage karni shuru kar di. Maine pairon se massage shuru ki, aur oil laga ke unke naram se pairon ko massage karta gaya.
Ab wo bhi bahut acha feel kar rahi thi, kyunki wo aahen bharne lagi thi. Main unke pajame ko upar karta gaya, aur massage karta raha. Unke ghutno se unka pajama upar nahi jaa raha tha, to maine unse kaha-
Main: Bhabhi ab ye utaarna padega aapko, ye isse upar nahi jaa sakta.
Unko meri massage se maza aa raha tha, to unhone pajama utaar diya, aur fir mere saamne let gayi. Ab wo mere saamne sirf panty mein leti thi. Dil to kar raha tha ki unpe chadh jau, aur lund ghusa ke unhe chodne lag jau.
Ab maine unke gore aur soft legs ko touch kiya to wo machal uthi. Maine thoda oil nikala, aur unke legs pe massage karna shuru kiya. Ab wo thoda garam hone lagi thi, kyunki wo aaahh aaahhh ki awaaze kar rahi thi dheere se.
Main upar jata jaa raha tha, aur unke chootadon tak aa gaya tha. Itne naram chootad the bhabhi ke, jaise pillow ho koi. Main chootadon ko zor-zor se daba ke massage karne laga, aur wo bhi mere aise karne se horny ho rahi thi.
Aage kaise main unki massage karte-karte chudai tak gaya, padhe is kahani ke Part-2 mein. Doston agar aapko kahani padh kar maza aaya ho, to isko apne friends ke sath bhi zaroor share kare. Jitna aapka response acha aayega, agla part utni hi jaldi aapke saamne aayega. Kahani ko read karne ke liye aap sab readers ka dhanyawad.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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सगी बहन को पटाकर चूत चुदाई
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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मेरे घर में मम्मी पापा मैं और मुझसे एक साल छोटी जवान बहन रहते हैं.
मेरी छोटी बहन का नाम मीशू है. उसकी जवानी भरपूर खिल चुकी है.
वह अपनी मतवाली चाल से हर लड़के का ईमान खराब करती रहती है. 

उसके साथ सड़क पर चलते समय मुझे लड़कों द्वारा उसकी जवानी को पाने के लिए न जाने कितनी अजीब अजीब बात सुनने को मिलती हैं.
यही सब सुनकर मैंने खुद ही अपनी बहन की जवानी का रस चूसने के लिए प्लान बना लिया था. 

यह हॉट यंग सिस्टर सेक्स कहानी इसी बारे में है.
मैं बहुत बार कोशिश कर चुका था कि बहन की चूत और बूब्स मिल जाएं!
पर मिलना तो दूर की बात थी, कभी उसकी नंगी चूचियों तक के दर्शन तक नहीं हुए थे. 

फिर मैंने उसकी कुछ ऐसी हरकतें देख ली थीं जिससे समझ आ गया था कि ये मुझसे चुद जाएगी.
अब बस मुझे उसे अकेले में सैट करना रह गया था.

एक दिन की बात है, मम्मी पापा को शादी में मामा के यहां जाना था.
मम्मी तो 6 दिन पहले ही चली गई थीं पर पापा को शादी से दो दिन पहले ही जाना था. 

वे लोग चार दिन बाद वापस आने वाले थे.
घर में हम भाई बहन ही रहने वाले थे. 

मेरे तो मन में लड्डू फूट रहे थे कि इस दौरान काम बन सकता है.
बस लग रहा था कि जल्दी से पापा घर से जाएं और मैं इधर अपनी कमसिन बहन की चूत को मसल कर उसका भोसड़ा बना दूँ.

फिर इंतजार भी खत्म हो चुका था.
पापा चले गए. 

हम दोनों शाम को खाना खाने बैठे.
उस दिन गर्मी इतनी भयानक थी कि मैंने अपनी शर्ट और पैंट उतार कर गमछा पहन लिया. 

मेरी बहन ने भी एक छोटी सी फ्राक पहन ली, जिसमें से उसकी चूचियां साफ साफ दिखाई दे रही थीं. 
उसके बूब्स देख कर ही मेरे लंड ने पानी छोड़ दिया था.
मेरी बहन ने नीचे एक पैंट पहनी हुई थी. 
मुझसे और बर्दाश्त नहीं हो रहा था. 
मैं और वह टीवी देख रहे थे.
सामने टीवी पर लव वाला गर्म सीन चल रहा था. 

मैंने उससे पूछा- तूने किसी से लव किया है?
तो उसका जवाब ना में था. 

फिर उसने भी पूछा- आपने किया है?
मैंने भी किसी से लव नहीं किया था तो मैंने भी बोल दिया- ना. 

फिर मैंने पूछा- तुम अकेली कैसे रह लेती हो, मुझसे तो रहा ही नहीं जाता है.
इस पर वह बोली- वही तो बात है भाई … पर क्या करूं. मैं तो ज्यादा बाहर जाती नहीं हूँ तो मुझे कोई मिला ही नहीं बाकी मैं भी तो लड़की हूँ तो अन्दर से तो कुछ लगता ही है.

अब मैंने देर ना करते हुए पूछा- क्या मुझसे लव करोगी?
वह बोली- करती तो हूँ. 

शायद वह मेरी भावना को नहीं समझ पायी थी.
मैं बोला कि मैं तुमसे भी प्यार करना चाहता हूँ.
वह बोली- कैसे?

मैं बोला- पहले बताओ किसी को बताओगी तो नहीं ना?
वह बोली- नहीं, पहले बताओ कैसे करोगे?

मैंने आगे बढ़ कर सबसे पहले उसकी गर्दन पर किस किया.
वह सिहर गई पर उसका कोई विरोध नहीं था. 

फिर मैंने उसके होंठों पर किस किया और धीरे धीरे उसके बूब्स दबाने लगा.
वह मेरे साथ सहयोग नहीं कर रही थी पर मना भी नहीं कर रही थी.
मैंने अपनी सगी बहन के दूध दबा कर और मसल कर उसको बेहद गर्म कर दिया. 
वह भी अब धीरे धीरे कामुक होने लगी और मेरा साथ देने लगी.
उसने मेरा गमछा हटा दिया और मुझे नंगा कर दिया. 

मैंने भी उसकी फ्राक को उतार दिया और उसे ऊपर से नंगी कर दिया.
बहन की नंगी चूचियां अब एकदम तनी हुई मुझे पागल गए रही थीं.

उसकी आंखों में भी वासना के लाल डोरे तैर रहे थे.
मेरे हाथ उसकी चूत की तरफ बढ़ने लगे.

वह लगातार मेरी आंखों में देख रही थी और मेरे हाथ को अपनी चूत पर जाते हुए भी देख रही थी.
अचानक से मैंने अपनी बहन की चूत को छू लिया. 

वह पागल सी हो गई और सिसकारियां निकालने वाली मशीन बन गई.
धीरे धीरे हम दोनों पूरे नंगे हो गए. 

मैं उसका पूरा शरीर चूसने चूमने लगा और बाल सहलाने लगा. 
हम दोनों ही किसी जौंक की तरह एक दूसरे से लिपटे हुए एक दूसरे को चूम और चूस रहे थे.
मेरी जीभ मेरी बहन के मुँह में चली गई थी और वह मेरी जीभ को अपनी जीभ से रगड़ती हुई चूस रही थी.
उसका थूक मेरे मुँह में आ रहा था और मेरा थूक उसके मुँह में आ रहा था.
मेरे हाथों में मेरी बहन की गांड थी जिसे मैं पूरी ताकत से मसल कर अपने लौड़े की तरफ उसे खींच रहा था.
उसकी चूत मेरे लंड से रगड़ खा रही थी.
इसी बीच उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया था और मेरे लौड़े ने उसकी चूत के पानी से स्नान कर लिया था.
इसी तरह से हम दोनों का ये नंगे बदन एक दूसरे से लिपटना और चिपकना चलता रहा.
मैंने उसे बेहद कामुक कर दिया था जिस वजह से मेरी बहन अब तक एक बार झड़ चुकी थी, वह अपनी चूत रस से वह मेरे लौड़े को नहला चुकी थी.
मैंने भी गोल सैट किया और एक करारे शॉट के साथ लौड़े को चूत के अन्दर पेल दिया. 
उसकी कुंवारी चूत एकदम संकरी थी.
मेरे मोटे लंड के झटके से घुसने से वह चिल्लाने लगी. 

मैंने झपट कर उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए और उसे किस करने लगा.
उसकी आवाज दब गई तो मैं नीचे से अपनी कमर उठा उठा कर धक्का देने लगा. 

वह बेहद कसमसा रही थी और मुझे छूटने की कोशिश कर रही थी. 
कुछ ही देर में मैंने पूरा लंड अपनी बहन की चूत में अन्दर तक पेल दिया और सटासट अन्दर बाहर करने लगा. 
उसकी चूत ने भी लंड की मोटाई के अनुसार खुद को फैला दिया था तो उसका दर्द भी कम हो गया था.
अब उसकी आवाजें निकलना बंद हो गई थीं और जिस्म की छटपटाहट भी खत्म हो गई थी. 
मैंने महसूस किया था कि अब मेरी बहन अपनी गांड उठाने लगी थी. 
तब मैंने उसके मुँह से मुँह हटाया और दोनों हाथ उसके दोनों तरफ टिका कर चूत में लंड पेलना चालू कर दिया. 
वह मेरी आंखों में देखती हुई ‘उन्ह उन्ह …’ कर रही थी और उसके चेहरे पर एक अजीब सी कसमसाहट थी.
उसकी कमर भी मेरे झटकों के साथ ऊपर नीचे हो रही थी.

फिर अचानक से उसका जिस्म ऐंठने लगा और उसकी उन्ह उन्ह की आवाज तेज हो गई.
मैं समझ गया कि अब मेरी बहन झड़ने वाली है. 

यही हुआ भी … वह अगले कुछ ही पलों में एक तेज आवाज के साथ झड़ने लगी और एकदम लाश जैसी निढाल हो गई.
मैं भी अपने लौड़े पर उसके गर्म पानी का अहसास करने लगा और रुक गया.
उसने अपने दोनों हाथ पैर फैला दिए थे और उसकी आंखें मुंद गई थीं.
उसी समय मुझे कुछ याद आया और मैं उसकी चूत से लंड निकाल कर उसकी टांगों के बीच में आ गया.
वह लंड निकाल लेने से एक बार सिसकी और उसने आंखें खोल कर मेरी तरफ देखा.

मैंने उसकी चूत को देखा तो उसमें से खून निकल रहा था. 
उसकी चूत को मैंने बिस्तर की चादर से पौंछा और वह कुछ समझ पाती, उससे पहले ही अपना मुँह उसकी चूत पर लगा दिया.

उसकी कमर एकदम से हिली और शरीर ने झुरझुरी सी ली.
मैं लगा रहा और जीभ को चूत के अन्दर डाल कर चूत रस को चाटने लगा. 
वह कुछ पल तक तो सहयोग नहीं कर रही थी पर जब उसे जीभ से चाटे जाने से चैन मिलने लगा … तब उसने अपनी टांगें खोल दीं और मैं पूरी मस्ती से उसकी चूत को चाटने लगा. 
इससे हम दोनों को मजा आने लगा.
उसकी चूत वापस गर्म होने लगी थी.

कुछ ही देर बाद मैंने अपने लौड़े को सहलाया और उसकी इस विजय का फल देने के लिए अपनी बहन की चूत में वापस लंड सैट कर दिया. 
इस बार उसने खुद से आंखों से इशारा किया कि ‘जल्दी से अन्दर पेलो’ और इसी के साथ उसने अपनी कमर उठा दी.
मैंने फिर से लंड चूत में पेल दिया और अपनी बहन की चुदाई करने लगा.
करीब दस मिनट बाद वह फिर से झड़ गई और उसी के साथ मैं भी अपनी बहन की चूत में झड़ जाने के लिए एकदम से तेज हो गया.
अब मेरे लंड से भी माल आने की खबर लगने लगी थी.
मैं और जोर जोर से अपनी बहन को चोदने लगा.

और मैंने अपने लंड का सारा माल अन्दर ही छोड़ दिया.
वह रोने लगी- ये क्या किया … अब तो मैं प्रेग्नेंट हो जाऊंगी और माँ पापा तो मेरी जान ही ले लेंगे. 

मैंने कहा- अरे पगली, मैं कल दवा ला दूँगा, खा लेना. सब ठीक हो जाएगी. 
दवा का नाम सुनते ही वह खुश हो गई और फिर से लंड लेने के लिए रेडी हो गई. 
उस रात मैंने अपनी बहन को 4 बार चोदा.
मैंने हॉट यंग सिस्टर सेक्स करके चारों बार अपने लंड का माल उसकी चूत में ही डाला था. 

अब चूंकि मम्मी पापा को 4 दिन तक वापस नहीं आना था तो लगातार चारों दिन और रात बहन की चूत में मेरे लंड की पेलम पेली चली. 
चार दिन बाद जब मम्मी पापा घर आ गए तो हमारा खेल बंद हो गया था. 
मम्मी पापा के वापस आ जाने के एक महीने बाद की बात है.
उस दिन कुछ ज्यादा ही बरसात हो रही थी. 

उस वजह से मौसम काफी ठंडा हो गया था और ठण्ड भी लगने लगी थी.
पापा मम्मी रात को अपने कमरे में लेटे थे. हम दोनों अलग कमरे में सोने चले गए थे.
हालांकि मेरी बहन मम्मी के साथ सोती है और पापा मेरे साथ बाहर वाले कमरे में सोते हैं.
चूंकि पापा अभी भी मम्मी को पेलते हैं तो वे कभी कभी मम्मी के साथ सो जाते हैं और मम्मी भी अभी तक पापा के लौड़े का मज़ा लेती रहती हैं.
उस दिन भी यही हुआ.
पापा मम्मी के साथ कमरे में चले गए और हम दोनों बाहर वाले कमरे में आ गए.

हम दोनों एक दूसरे से चिपक कर मजा ले रहे थे.
तभी पापा मम्मी के रूम से सेक्सी आवाजें आने लगीं.
इतने में मेरी बहन गर्म हो गई और उसने मेरे लंड को पकड़ लिया.

मैंने कहा- अन्दर प्रोग्राम फुल स्पीड पर है.
वह बोली- तो तुम क्यों रुके हुए हो? तुम भी शुरू हो जाओ.

उसकी बात सुनकर मैं भी उत्तेजित हो गया.
बाहर मौसम भी सुहाना था, ठण्ड भी हो गई थी … तो हम दोनों कम्बल में घुस गए और लौड़े को चूत में पेलने की विधि शुरू करने लगे.
उधर पापा चालू थे.

मेरी बहन मुझसे अपनी चूत में लंड डलवाने के लिए टांगें फैला रही थी.
मैंने भी सट से लौड़े को बहन की चूत में सरका दिया.

अब मेरी बहन मेरे लौड़े को बड़े आराम से अन्दर लेने लगी थी.
हम दोनों का चुदाई का कार्यक्रम शुरू हो गया.

उस दिन पापा मम्मी चुदाई के बाद सो गए और हम दोनों पेलम पेली का खेल खेलते रहे.
रात को 2 बजे तक हम दोनों ने खूब चुदाई की और मैं अपना लंड बहन की चूत में ही डालकर सो गया. 
थकान के कारण नींद इतनी गहरी लगी कि कब सुबह हुई, पता ही नहीं चला. 
जब मेरा नींद खुली, तो मेरा लंड मेरी बहन की चूत में ही घुसा था.
सुबह के समय लंड खड़ा हो जाता है, तो मेरे देखते ही लौड़े में तनाव आ गया मैंने अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया.
बहन को सूखी चूत में दर्द होने लगा तो वह जाग गई और बोली- रात भर में मन ही नहीं भरा क्या … जो सुबह होते ही चालू हो गए. मेरी सूखी चूत में कितना ज्यादा दर्द हो रहा है, जरा ख्याल करो!
मैंने हाथ से थूक लेकर उसकी चूत में मल दिया और उसकी चूत के दाने को मसल दिया.
तो वह भी गर्म हो गई और सिसकारियां लेने लगी- ऊ आ आह ओह माइ गॉड इतना करोगे तो मर ही जाऊंगी … लगता है शादी से पहले ही मेरी चूत को भोसड़ा बना दोगे!

अब वह भी किस करने लगी. 
इस बार मैं उसे इतना जोर जोर से पेल रहा था कि पूरे कमरे में आवाज जा रही थी. 
हम लोग चुदाई करने के बाद उठे और मुँह धोने के लिए ब्रश लेकर छत पर चले गए. 
मैं बैटरी वाला ब्रश यूज करता हूँ जो मुँह में अपने आप चलता है.
उसका हैंडल लंड के जैसे गोल होता है. 

मैं उसको अपनी बहन की चूत में डाल के हिलाने लगा.
मैंने बैटरी चालू कर दी तो वह किसी डिल्डो की तरह बहन की चूत को मजा देने लगा. 

मैं उसकी चूत में ब्रश घुसेड़ कर उसकी क्लिट को मसलने लगा.
उसको भी मेरी यह हरकत पसंद आ रही थी. 

कुछ ही देर में बहन की चूत ने झाग फैंक दिया तो मैं कोलगेट और ब्रश से उसकी चूत को साफ करने लगा. 
फिर पानी से चूत को धोया और उसे देखने लगा.
वह हंस रही थी.

मैंने अगली शरारत की.
छत पर पानी मोटर लगी थी, मैंने उसे चालू कर दिया और मोटर का पाइप बहन की चूत में घुसा कर एकदम से बाहर निकाल दिया. 

वह भी एकदम से ठंडे पानी की मोटी धार के चूत में प्रेशर से घुसने से सकपका गई थी. 
मैंने उसकी चूत से पाइप बाहर निकाल कर देखा कि तो उसकी चूत से पानी की धार बह रही थी और उसकी चूत से माल के कतरे भी साथ में बाहर आ रहे थे.
हम दोनों हंसने लगे. 
फिर हम दोनों नीचे आ गए और खाना खाकर दिन में ही सो गए.
मम्मी भी रात की चुदाई से थकी हुई थीं तो वे भी सो रही थीं.
अब अपनी बहन की चुदाई करना मेरी आदत हो गई थी.
उसकी चूत पेलने का जब भी मन करता था तो मैं उसको बोल देता था और वह मान जाती थी. 

इसी तरह जब भी उसका मन करता तो वह भी बोल देती थी कि मुझे आज लंड लेना है.
मैं भी उसकी चूत चुदाई कर देता था.

हम दोनों ही समय और मौका देख कर अपनी जवानी को चुदाई का सुख दे देते हैं. 
मैं अब कभी भी उसकी चूत में उंगली कर देता हूँ या बूब्स को दबाता रहता हूँ.
पापा काम पर चले जाते हैं और मम्मी सो जाती हैं तो मैं दिन में ही अपनी सगी बहन की चूत में लंड भी घुसा देता हूँ.

इस तरह से बहन के मुँह और चूत में जब तब मेरा लंड चलने लगा था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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चचेरी बहन को पटा कर उसकी सील तोड़ी
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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हमारे परिवार में मेरे अलावा मेरे पिताजी माताजी, दो छोटे भाई बहन ही रहते हैं.
मेरे चाचा चाची की फैमिली में उनकी बड़ी लड़की प्रिया, अन्नू और छोटा भाई नितिन थे.

यह फर्स्ट सेक्स विद सिस्टर मेरी चाचा की लड़की अन्नू के साथ है.
अन्नू ग्यारहवीं क्लास की पढ़ाई कर रही थी.

मैं अन्नू के बारे मैं बता दूं.
उसके बदन का आकार बड़ा ही कामुक है.
उसके चूतड़ 34 इंच के, कमर 30 की और बूब्स 32 साइज के हैं जो उसने खुद ही मुझे बताया था.

पहले पहल अन्नू को मैं बहन की नजर से ही देखता था.
फिर मैंने जबसे अन्तर्वासना की एक सेक्स कहानी में भाई बहन की चुदाई की कहानी पढ़ी, तब से मेरा अन्नू को देखने का नजरिया बदल गया.
मैं अब उसके पास ज्यादा रहने लगा और उसके साथ ज्यादा नजदीकी बढ़ाने लगा.

उन दिनों ठंड का टाइम था तो सभी लोग छत पर खुली धूप में आने लगे थे.
जब वह छत पर बने बाथरूम में नहाने जाती तो सबको बोल देती- मैं नहाने जा रही हूँ, जब तक मैं आ नहीं जाऊं कोई छत पर नहीं आना.

उसकी इसी बात का फायदा उठाकर मैं अपने कमरे से छत पर चला जाता और जब वह बाथरूम में नहाती, तो मैं दरवाजे की झिरी से उसके नंगे जिस्म के दर्शन करता.

एक दिन जब वह नहा रही थी तो उसने बाथरूम के दरवाजे नहीं लगाए थे.
वह कपड़े लेने के लिए बाहर धूप में आकर खड़ी हो गई.
उस वक्त वह एक तौलिया भर लपेटी हुई थी.

मैं उस दिन दूर एक आड़ में खड़ा होकर उसे देख रहा था.

बाहर आते ही उसकी नजर मुझ पर पड़ गई.
उसने मुझे देखा तो झट से बाथरूम में चली गई और उधर से ही आवाज देकर बोली- तुम नीचे जाओ.

उसके देख लेने भर से मेरी तो डर के मारे जैसे जान ही निकल गई.
मैं नीचे भाग आया और अपने कमरे में जाकर अपनी सुताई होने का इंतजार करने लगा.

वह नीचे आई और उसने किसी से कुछ नहीं कहा.
मुझे जरा देर के लिए शांति मिली कि अभी तो बच गए.

फिर मैं दो दिन तक उसके आस पास भी नहीं गया.
जब मुझे पता चल गया कि उसने ये बात घर में किसी को नहीं बताई, तो मैं सहज हो गया.

अब मैं उसको काम करते देखता और वह भी मुझे देखती.
उसकी समझ में ये बात आ गई थी कि मैं उसको किस नजर से देखता हूँ.

एक दिन वह अन्दर कमरे में थी और कपड़े प्रेस कर रही थी.
मैं बाहर छत से उसको देख रहा था.

उसकी नजर मुझसे मिली तो वह हल्की हल्की मुस्करा रही थी.

यह मेरे लिए ग्रीन सिग्नल जैसा था.
अब तो मैंने सोच लिया था कि कैसे भी करके अन्नू को चोदना है.

फिर एक दिन हम दोनों छत पर बैठे थे.
मैं मोबाइल चला रहा था.

वह बोली- भाई मुझे भी बताओ, क्या देख रहे हो?
मैं बोला- कुछ नहीं.

फिर मैंने उससे पूछा- वैसे तुझे क्या देखना है?
वह बोली- जो तुम दिखाओ.

मैंने पूछा- तब भी बताओ तो कि क्या देखना है?
वह बोली- कुछ अच्छा सा दिखाओ.

मैं अपनी तरफ से कुछ रिस्क नहीं लेना चाहता था तो मैंने पूछा- अब मुझे क्या मालूम कि तुझे क्या अच्छा लगता है. तू खुद ही बता कि तुझे क्या अच्छा देखना है?
उसने कहा- ओके, मैं बाद में बताऊंगी.

मैं समझ गया अन्नू चुदाने को तैयार है, बस किसी को पहल करने की जरूरत है.

फिर एक दिन मेरी मम्मी और चाची मार्केट गई थीं.
पापा चाचा भी घर पर नहीं थे.
बस मैं, भाई और मेरी बहन थे.

मेरे भाई और बहन नीचे टीवी देख रहे थे.
मैं और अन्नू ऊपर कमरे में थे.

अन्नू को कपड़े बदलने थे तो वह बोली- भाई, बाहर जाओ मुझे कपड़े बदलने हैं.

मैंने उससे कहा- मैं यही हूँ, मुँह उधर कर लेता हूँ. तुम कपड़े बदल लो.

वह एक पल रुक कर बोली- ओके, लेकिन तुम देखना नहीं!
मैंने कहा- हां.

फिर उसने मेरे सामने ही अपना टॉप निकाला.

मैंने चोरी से उसे देखा तो सच में दोस्तो, मैं देखता ही रह गया.
क्या मस्त बूब्स थे.

उसको भी पता था कि मैंने उसको कपड़े बदलते देख लिया है.

उसने कहा- भाई अपने सही नहीं किया, मुझे ऐसे देख लिया!
मैंने कहा- अन्नू, तू मेरी प्यारी बहन भी तो है! क्या हो गया कि मैंने तेरे बूब्स देख लिए?
उसने कहा- हां भाई, लेकिन आप प्रॉमिस करो कि किसी को बताओगे नहीं.

मैंने कहा- नहीं पगली, तू तो मेरी प्यारी बहन है.

इतना सुनकर वह मेरे गले से लग गई.
मैंने भी उसको कसकर पकड़ लिया और गर्दन पर किस कर लिया.

मैंने उससे बोल दिया कि अन्नू मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ.

उसने बोला- हां भाई, मैं भी आपसे बहुत प्यार करती हूं. लेकिन डरती हूं कि किसी को कुछ पता चल गया तो मैं मर जाऊंगी.
मैंने कहा- बताएगा कौन … तुम?
वह बोली- नहीं.
तो मैंने बोला- मैं भी नहीं बताऊंगा.

अब मैं उसको किस करने लगा, धीरे धीरे उसके बूब्स को टॉप के ऊपर से दबाने लगा.
इतने मैं नीचे किसी के आने की आवाज सुनाई थी.
हम दोनों अलग हो गए.

फिर जब भी मौका मिलता, मैं कभी उसको किस कर लेता … कभी बूब्स दबा देता.

उससे ज्यादा मौका नहीं मिल पा रहा था.

ऐसे ही ऐसे दो महीने गुजर गए.



फिर मैंने अन्नू से कहा- अन्नू घर पर सब लोग रहते हैं. मुझे तुमसे प्यार करना है. कहीं बाहर चलें?
वह बोली- कहां?

मैंने कहा- तुम कल ट्यूशन मत जाना. मैं आ जाऊंगा. ट्यूशन के बहाने तुमको लेने आ जाऊंगा.
उसने कहा- ओके.

अगले दिन मैं सुबह आठ बजे उसे लेने चला गया क्योंकि उसकी ट्यूशन आठ से ग्यारह बजे तक की होती थी.
हमारे पास तीन घंटे थे.

मैंने उसे बाइक पर बैठाया और उसको लेकर होटल चला गया.
वह डर रही थी कि कहीं कोई प्राब्लम न हो जाए.
मैंने उसको समझाया तो वह मान गई.

मैं उसको लेकर होटल के कमरे में पहुंच गया.
कमरे में पहुंचते ही मैंने गेट बंद कर दिया और उसको लगे से लगा लिया.
वह भी मेरे गले से लग गई और किस करने लगी.

मैंने उसका बैग उसके कंधे से उतार दिया और उसको बेड पर उठाकर ले गया.
मैं धीरे धीरे उसको किस करने लगा और उसका टॉप निकाल दिया।

वह अपने बूब्स को छुपाने की कोशिश करने लगी.
मैंने उसके हाथों को हटा दिया और बूब्स को दबाने लगा.

अभी उसकी ब्रा ने उसके मम्मों को छिपाया हुआ था तो मैंने उसकी ब्रा को भी उतार दिया.
उसके बूब्स एकदम संगमरमर की तरह सफेद, चमक रहे थे.

फिर अपने एक हाथ को नीचे ले जाकर मैंने उसकी जींस के बटन को खोला और नीचे को सरका दिया.
उसने खुद ही अपनी जींस को उतार दिया.

अब वह मेरे सामने केवल पैंटी में रह गई थी.
मैं उसको किस करने लगा और अपने एक हाथ को उसकी पैंटी में डाल दिया.

उसकी चूत गीली हो चुकी थी.
वह मेरे हाथ को रोकने लगी लेकिन मैं नहीं माना.

कुछ देर चूत को सहलाने के बाद अब मैंने अपने कपड़े उतार दिए और अपना लंड उसके हाथ में दे दिया.

वह मेरे लंड को देख कर डर गई, बोली- भाई इतना मोटा कैसे जाएगा?
मैंने प्यार से कहा- तू टेंशन मत ले. ये तुम्हारी चूत में आसानी से घुस जाएगा. बनाने वाले ने चूत को रबर जैसा बनाया होता है. शुरू शुरू में थोड़ा दर्द होगा, लेकिन लंड घुस जाएगा.

वह बोली- मैंने अभी तक कभी किया नहीं है.
मैंने कहा- हां तो क्या हुआ, कभी न कभी तो किसी न किसी के साथ करोगी ही. आज ही शुभ मुहूर्त है. तुम्हारा काम हो जाएगा.

वह मेरी बात से संतुष्ट हो गई और उसने मन पक्का कर लिया कि आज ही अपने भाई के लौड़े से चूत की सील तुड़वानी है.

अब मैंने भी देर करना ठीक न समझा, उसको चित लिटा दिया और उसकी कमर के नीचे तकिया लगा दिया.

उसकी चूत पाव रोटी सी फूली हुई एकदम लिसलिसी हुई पड़ी थी.
मैंने उसकी चूत पर अपनी जीभ टिका दी और चूत को चाटने लगा.

वह मचलने लगी और कुछ ही पलों में उसकी गांड उठने लगी.
यह एक इशारा था कि चूत में आग लग गई है और अब ये आग लौड़े से ही बुझेगी.

मैंने लौड़े को चूत पर टिका दिया.
वह बोली- कुछ चिकनाई लगा लो.

मैंने इधर उधर देख कर उसी से कहा- तेरे बैग में वैसलीन होगी?
वह बोली- हां है.

मैंने उसके बैग से वैसलीन निकाली और अपने लौड़े पर वैसलीन लगाकर उसको चिकना कर दिया.

फिर मैं वापस लौड़े को हाथ में लेकर चूत के पास आ गया.
उसने भी अपनी चूत को फैला दिया.

मैं उसकी चूत पर लंड लगाकर धीरे धीरे अन्दर डालने लगा.

जैसे ही लंड का टोपा उसकी चूत के अन्दर गया, उसकी आंखें फैल गईं और वह बस चिल्लाने वाली थी कि मैंने उसके मुँह को मुँह से किस करते हुए बंद कर दिया था.

लंड का सुपारा चूत में फँसा का मैं एक मिनट के लिए रूक गया.

फिर मैंने धीरे धीरे आधा लंड उसकी चूत में पेल दिया.
उसकी चीख निकल गयी और चूत से खून निकलने लगा.

वह रोने लगी और बोलने लगी- भाई मुझसे नहीं होगा, प्लीज बाहर निकाल लो.
मैंने उसको समझाया और किस करने लगा.

जब उसका दर्द कम हुआ तो मैंने एक झटके में पूरा लवड़ा अन्दर डाल दिया.
वह बेहोश सी हो गई.

फिर जब वह धीरे धीरे सही होने लगी तो मैं लंड अन्दर बाहर करने लगा.

धीरे धीरे चुदाई के कारण होने वाला दर्द खत्म हो गया और मेरी बहन को मजा आने लगा.
अब मैं खुलकर उसको चोदने लगा.
उसको भी मजा आने लगा.

वह मुझे अपने सीने से चिपका कर मुझे चूमने लगी और मेरे मुँह में अपना मुँह लगा कर सेक्स का मजा लेने लगी.

दस मिनट तक मैंने उसको बिना रुके चोदा, फिर मैं झड़ने वाला हो गया था.
मैंने उससे पूछा- अन्नू कहां निकालूँ?
उसने कहा- भाई मुझे अन्दर ही लेना है.

मैंने तीन चार जोर से झटके दिए और मेरा रस उसकी चूत में ही निकल गया.
फर्स्ट सेक्स विद सिस्टर करने के बाद हम दोनों चिपक कर लेटे रहे.

कुछ देर बाद हम दोनों उठे और बाथरूम में जाकर साफ होकर आ गए.
उस दिन हम दोनों ने तीन बार सेक्स किया.

उससे सही से चला नहीं जा रहा था.
मैं उसे अपने साथ ले गया और घर पर बोल दिया कि टेबल से टकरा कर चोट आई है.

एक दो दिन में अन्नू सही हो गई.

और उसके बाद हम दोनों को जब भी मौका मिलता, हम होटल जाकर या एक दूसरे के घर में जाकर कर चुदाई लेते थे.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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भाई बहन का पवित्र रिश्ता
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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मेरा नाम रवि है और मैं 21 साल का एक युवक हूँ, मेरी दीदी का नाम संगीता है। उसकी उमर क़रीब 26 साल है। दीदी मुझसे 5 साल बड़ी हैं। हम लोग एक मिडल-कलास फ़ैमिली है और एक छोटे से फ्लैट में मुंबई में रहते हैं।
हमारा घर में एक छोटा सा हाल, डायनिंग रूम दो बेडरूम और एक किचन है। बाथरूम एक ही था और उसको सभी लोग इस्तेमाल करते थे। हमारे पिताजी और माँ दोनों नौकरी करते हैं।
दीदी मुझको रवि कह कर पुकारती हैं और मैं उनको दीदी कह कर पुकारता हूँ।
शुरू शुरू में मुझे सेक्स के बारे कुछ नहीं मालूम था क्योंकि मैं हाई स्कूल में पढ़ता था और हमारे बिल्डिंग में भी अच्छी मेरे उमर की कोई लड़की नहीं थी। इसलिए मैंने अभी तक सेक्स का मज़ा नहीं लिया था और ना ही मैंने अब तक कोई नंगी लड़की देखी थी। हाँ मैं कभी कभी पॉर्न मैगजीन में नंगी तस्वीर देख लिया करता था।
जब मुझे लड़कियों के तरफ़ और सेक्स के लिए इंटेरेस्ट होना शुरू हुआ। मेरे नज़रों के आसपास अगर कोई लड़की थी तो वो संगीता दीदी ही थी। दीदी की लंबाई क़रीब क़रीब मेरे तरह ही थी, उनका रंग बहुत गोरा था और उनका चेहरा और बोडी स्ट्रक्चर हिंदी सिनेमा के जीनत अमान जैसा था। हाँ उनकी चूचियाँ जीनत अमान जैसे बड़ी बड़ी नहीं थी।
मुझे अभी तक याद है कि मैंने अपना पहला मुठ मेरी दीदी के लिए ही मारा था। एक सन्डे सुबह सुबह जैसे ही मेरी दीदी बाथरूम से निकली मैं बाथरूम में घुस गया। मैंने बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया और अपने कपड़े खोलने शुरू किए। मुझे जोरो की पेशाब लगी थी। पेशाब करने के बाद मैं अपने लंड से खेलने लगा।
एकाएक मेरी नज़र बाथरूम के किनारे दीदी के उतरे हुए कपड़ों पर पड़ी। वहाँ पर दीदी अपनी नाइटगाऊन उतार कर छोड़ गई थी। जैसे ही मैंने दीदी का नाइटगाऊन उठाया तो देखा कि नाइटगाऊन के नीचे दीदी की ब्रा पड़ी थी।
जैसे ही मैंने दीदी की काले रंग की ब्रा उठाई तो मेरा लंड अपने आप खड़ा होने लगा। मैंने दीदी का नाइटगाऊन उठाया तो उसमें से दीदी के नीले रंग का पैंटी भी नीचे गिर गई। मैंने पैंटी भी उठा ली। अब मेरे एक हाथ में दीदी की पैंटी थी और दूसरे हाथ में दीदी की ब्रा थी।
ओह भगवान ! दीदी के अन्दर वाले कपड़े चूमने से ही कितना मज़ा आ रहा है यह वही ब्रा है जिसमें कुछ देर पहले दीदी की चूचियाँ जकड़ी हुई और यह वही पैंटी हैं जो कुछ देर पहले तक दीदी की चूत से लिपटी थी। यह सोच सोच करके मैं हैरान हो रहा था और अंदर ही अंदर गरमा रहा था। मैं सोच नहीं पा रहा था कि मैं दीदी की ब्रा और पैंटी को लेकर क्या करूँ।
मैंने दीदी की ब्रा और पैँटी को लेकर हर तरफ़ से छुआ, सूंघा, चाटा और पता नहीं क्या क्या किया। मैंने उन कपड़ों को अपने लंड पर मला, ब्रा को अपने छाती पर रखा। मैं अपने खड़े लंड के ऊपर दीदी की पैंटी को पहना और वो लंड के ऊपर तना हुआ था। फिर बाद में मैं दीदी की नाइटगाऊन को बाथरूम के दीवार के पास एक हैंगर पर टांग दिया। फिर कपड़े टांगने वाला पिन लेकर ब्रा को नाइटगाऊन के ऊपरी भाग में फँसा दिया और पैँटी को नाइटगाऊन के कमर के पास फँसा दिया।
अब ऐसा लग रहा था की दीदी बाथरूम में दीवार के सहारे ख़ड़ी हैं और मुझे अपनी ब्रा और पैँटी दिखा रही हैं। मैं झट जाकर दीदी के नाइटगाऊन से चिपक गया और उनकी ब्रा को चूसने लगा और मन ही मन सोचने लगा कि मैं दीदी की चुची चूस रहा हूँ। मैं अपना लंड को दीदी की पैँटी पर रगड़ने लगा और सोचने लगा कि मैं दीदी को चोद रहा हूँ।
मैं इतना गरम हो गया था कि मेरा लंड फूल कर पूरा का पूरा टनटना गया था और थोड़ी देर के बाद मेरे लंड ने पानी छोड़ दिया और मैं झड़ गया। मेरे लंड ने पहली बार अपना पानी छोड़ा था और मेरे पानी से दीदी की पैंटी और नाइटगाऊन भीग गया था। मुझे पता नहीं कि मेरे लंड ने कितना वीरज़ निकाला था लेकिन जो कुछ निकला था वो मेरे दीदी के नाम पर निकला था।
मेरा पहले पहले बार झड़ना इतना तेज़ था कि मेरे पैर जवाब दे गए, मैं पैरों पर ख़ड़ा नहीं हो पा रहा था और मैं चुपचाप बाथरूम के फ़र्श पर बैठ गया। थोड़ी देर के बाद मुझे होश आया तो मैं उठ कर नहाने लगा। शोवर के नीचे नहा कर मुझे कुछ ताज़गी महसूस हुई और मैं फ़्रेश हो गया। नहाने बाद मैं दीवार से दीदी की नाइटगाऊन, ब्रा और पैंटी उतारा और उसमें से अपना वीरज़ धोकर साफ़ किया और नीचे रख दिया।
उस दिन के बाद से मेरा यह मुठ मारने का तरीक़ा मेरा सबसे फ़ेवरेट हो गया। हाँ, मुझे इस तरह से मैं मारने का मौक़ा सिर्फ़ इतवार को ही मिलता था क्योंकि इतवार के दिन ही मैं दीदी के नहाने के बाद नहाता था। इतवार के दिन चुपचाप अपने बिस्तर पर पड़ा देखा करता था कि कब दीदी बाथरूम में घुसे और दीदी के बाथरूम में घुसते ही मैं उठ जाया करता था और जब दीदी बाथरूम से निकलती तो मैं बाथरूम में घुस जाया करता था।
मेरे मां और पिताजी सुबह सुबह उठ जाया करते थे और जब मैं उठता था तो मां रसोई के नाश्ता बनाती होती और पिताजी बाहर बाल्कोनी में बैठ कर अख़बार पढ़ते होते या बाज़ार गये होते कुछ ना कुछ समान ख़रीदने।
इतवार को छोड़ कर मैं जब भी मैं मारता तो तब यही सोचता कि मैं अपना लंड दीदी की रस भरी चूत में पेल रहा हूँ। शुरू शुरू में मैं यह सोचता था कि दीदी जब नंगी होंगी तो कैसा दिखेंगी? फिर मैं यह सोचने लगा कि दीदी की चूत चोदने में कैसा लगेगा। मैं कभी कभी सपने ने दीदी को नंगी करके चोदता था और जब मेरी आँख खुलती तो मेरा शॉर्ट भीगा हुआ होता था।
मैंने कभी भी अपना सोच और अपना सपने के बारे में किसी को भी नहीं बताया था और न ही दीदी को भी इसके बारे में जानने दिया.
मैं अपनी स्कूल की पढाई ख़त्म करके कालेज जाने लगा। कॉलेज में मेरी कुछ गर्ल फ़रेंड भी हो गई। उन गर्ल फ़रेंड में से मैंने दो चार के साथ सेक्स का मज़ा भी लिया। मैं जब कोई गर्ल फ़रेंड के साथ चुदाई करता तो मैं उसको अपने दीदी के साथ कम्पेयर करता और मुझे कोई भी गर्ल फ़रेंड दीदी के बराबर नहीं लगती।
मैं बार बार यह कोशिश करता था मेरा दिमाग़ दीदी पर से हट जाए, लेकिन मेरा दिमाग़ घूम फिर कर दीदी पर ही आ जाता। मैं हमेशा 24 घंटे दीदी के बारे में और उसको चोदने के बारे में ही सोचता रहता।
मैं जब भी घर पर होता तो दीदी तो ही देखता रहता, लेकिन इसकी जानकारी दीदी की नहीं थी। दीदी जब भी अपने कपड़े बदलती थी या मां के साथ घर के काम में हाथ बटाती थी तो मैं चुपके चुपके उन्हे देखा करता था और कभी कभी मुझे सुडोल चुची देखने को मिल जाती (ब्लाउज़ के ऊपर से) थी।
दीदी के साथ अपने छोटे से घर में रहने से मुझे कभी कभी बहुत फ़ायदा हुआ करता था। कभी मेरा हाथ उनके शरीर से टकरा जाता था। मैं दीदी के दो भरे भरे चुची और गोल गोल चूतड़ों को छूने के लिए मरा जा रहा था.
मेरा सबसे अच्छा पास टाइम था अपने बालकोनी में खड़े हो कर सड़क पर देखना और जब दीदी पास होती तो धीरे धीरे उनकी चुचियों को छूना। हमारे घर की बाल्कोनी कुछ ऐसी थी की उसकी लम्बाई घर के सामने गली के बराबर में था और उसकी संकरी सी चौड़ाई के सहारे खड़े हो कर हम सड़क देख सकते थे। मैं जब भी बालकोनी पर खड़े होकर सड़क को देखता तो अपने हाथों को अपने सीने पर मोड़ कर बालकोनी की रेल्लिंग के सहारे ख़ड़ा रहता था।
कभी कभी दीदी आती तो मैं थोड़ा हट कर दीदी के लिए जगह बना देता और दीदी आकर अपने बगल ख़ड़ी हो जाती। मैं ऐसे घूम कर ख़ड़ा होता की दीदी को बिलकुल सट कर खड़ा होना पड़ता। दीदी की भारी भारी चुन्ची मेरे सीने से सट जाता था। मेरे हाथों की उंगलियाँ, जो की बाल्कोनी के रेल्लिंग के सहारे रहती वे दीदी के चूचियों से छु जाती थी।
मैं अपने उंगलियों को धीरे धीरे दीदी की चूचियों पर हल्के हल्के चलत था और दीदी को यह बात नहीं मालूम था। मैं उँगलियों से दीदी की चुन्ची को छू कर देखा की उनकी चूची कितना नरम और मुआयम है लेकिन फिर भी तनी तनी रहा करती हैं कभी कभी मैं दीदी के चूतड़ों को भी धीरे धीरे अपने हाथों से छूता था। मैं हमेशा ही दीदी की सेक्सी शरीर को इसी तरह से छू्ता था.
मैं समझता था की दीदी मेरे हाक्तों और मेरे इरादो से अनजान हैं दीदी इस बात का पता भी नहीं था की उनका छोटा भाई उनके नंगे शरीर को चाहता है और उनकी नंगी शरीर से खेलना चाहता है लेकिन मैं ग़लत था। फिर एक दीदी ने मुझे पकड़ लिया।
उस दिन दीदी किचन में जा कर अपने कपरे बदल रही थी। हाल और किचन के बीच का पर्दा थोड़ा खुला हुआ था। दीदी दूसरी तरफ़ देख रही थी और अपनी कुर्ता उतार रही थी और उसकी ब्रा में छुपा हुआ चुची मेरे नज़रों के सामने था। फ़िर रोज़ के तरह मैं टी वी देख रहा था और दीदी को भी कंखिओं से देख रहा था।
दीदी ने तब एकाएक सामने वाले दीवार पर टंगा शीशे को देखा और मुझे आँखे फ़िरा फ़िरा कर घूरते हुए पाया। दीदी ने देखा की मैं उनकी चूचियों को घूर रहा हूँ। फिर एकाएक मेरे और दीदी की आँखे मिरर में टकरा गयी मैं शर्मा गया और अपने आँखे टी वी तरफ़ कर लिया।
मेरा दिल क्या धड़क रहा था। मैं समझ गया की दीदी जान गयी हैं की मैं उनकी चूचियों को घूर रहा था। अब दीदी क्या करेंगी? क्या दीदी मां और पिताजी को बता देंगी? क्या दीदी मुझसे नाराज़ होंगी? इसी तरह से हज़ारों प्रश्ना मेरे दिमाग़ में घूम रहा था। मैं दीदी के तरफ़ फिर से देखने का साहस जुटा नहीं पाया।
उस दिन सारा दिन और उसके बाद 2-3 दीनो तक मैं दीदी से दूर रहा, उनके तरफ़ नहीं देखा। इन 2-3 दीनो में कुछ नहीं हुआ। मैं ख़ुश हो गया और दीदी को फिर से घुरना चालू कर दिया। दीदी में मुझे 2-3 बार फिर घुरते हुए पकड़ लिया, लेकिन फिर भी कुछ नहीं बोली। मैं समझ गया की दीदी को मालूम हो चुका है मैं क्या चाहता हूँ ।
ख़ैर जब तक दीदी को कोई एतराज़ नहीं तो मुझे क्या लेना देना और मैं मज़े से दीदी को घुरने लगा.
एक दिन मैं और दीदी अपने घर के बालकोनी में पहले जैसे खड़े थे। दीदी मेरे हाथों से सट कर ख़ड़ी थी और मैं अपने उँगलियों को दीदी के चूची पर हल्के हल्के चला रहा था।
मुझे लगा की दीदी को शायद यह बात नहीं मालूम की मैं उनकी चूचियों पर अपनी उँगलियों को चला रहा हूँ। मुझे इस लिए लगा क्योंकी दीदी मुझसे फिर भी सट कर ख़ड़ी थी। लेकिन मैं यह तो समझ रहा थी क्योंकी दीदी ने पहले भी नहीं टोका था, तो अब भी कुछ नहीं बोलेंगी और मैं आराम से दीदी की चूचियों को छू सकता हूँ.
हमलोग अपने बालकोनी में खड़े थे और आपस में बातें कर रहे थे, हमलोग कालेज और स्पोर्ट्स के बारे में बाते कर रहे थे। हमारा बालकोनी के सामने एक गली था तो हमलोगों की बालकोनी में कुछ अंधेरा था.
बाते करते करते दीदी मेरे उँगलियों को, जो उनकी चूची पर घूम रहा था, अपने हाथों से पकड़कर अपने चूची से हटा दिया। दीदी को अपने चूची पर मेरे उंगली का एहसास हो गया था और वो थोड़ी देर के लिए बात करना बंद कर दिया और उनकी शरीर कुछ अकड़ गयी लेकिन, दीदी अपने जगह से हिली नहीं और मेरे हाथो से सट कर खड़ी रही।
दीदी ने मुझे से कुछ नहीं बोली तो मेरा हिम्मत बढ गया और मैं अपना पूरा का पूरा पंजा दीदी की एक मुलायम और गोल गोल चूची पर रख दिया।
मैं बहुत डर रहा था। पता नहीं दीदी क्या बोलेंगी? मेरा पूरा का पूरा शरीर कांप रहा था। लेकिन दीदी कुछ नहीं बोली। दीदी सिर्फ़ एक बार मुझे देखी और फिर सड़क पर देखने लगी। मैं भी दीदी की तरफ़ डर के मारे नहीं देख रहा था। मैं भी सड़क पर देख रहा था और अपना हाथ से दीदी की एक चूची को धीरे धीरे सहला रहा था। मैं पहले धीरे धीरे दीदी की एक चूची को सहला रहा था और फिर थोड़ी देर के बाद दीदी की एक मुलायम गोल गोल, नरम लेकिन तनी चूची को अपने हाथ से ज़ोर ज़ोर से मसलने लगा। दीदी की चूची काफ़ी बड़ी थे और मेरे पंजे में नहीं समा रही थी।
थोड़ी देर बाद मुझे दीदी की कुर्ता और ब्रा के उपर से लगा की चूची के निपपले तन गयी और मैं समझ गया की मेरे चूची मसलने से दीदी गरमा गयी हैं दीदी की कुर्ता और ब्रा के कपड़े बहुत ही महीन और मुलायम थी और उनके ऊपेर से मुझे दीदी की निपपले तनने के बाद दीदी की चूची छूने से मुझे जैसे स्वर्ग मिल गया था।
किसी जवान लड़की के चूची छूने का मेरा यह पहला अवसर था। मुझे पता ही नहीं चला की मैं कब तक दीदी की चूचियों को मसलता रहा। और दीदी ने भी मुझे एक बार के लिए मना नहीं किया। दीदी चुपचाप ख़ड़ी हो कर मुझसे अपना चूची मसलवाती रही।
दीदी की चूची मसलते मसलते मेरा लंड धीरे धीरे ख़ड़ा होने लगा था। मुझे बहुत मज़ा आ रहा था लेकिन एकाएक मां की आवाज़ सुनाई दी। मां की आवाज़ सुनते ही दीदी ने धीरे से मेरा हाथ अपने चूची से हटा दिया और मां के पास चली गयी उस रात मैं सो नहीं पाया, मैं सारी रात दीदी की मुलायम मुलायम चूची के बारे में सोचता रहा.
दूसरे दिन शाम को मैं रोज़ की तरह अपने बालकोनी में खड़ा था। थोड़ी देर के बाद दीदी बालकोनी में आई और मेरे बगल में ख़ड़ी हो गयी मैं 2-3 मिनट तक चुपचाप ख़ड़ा दीदी की तरफ़ देखता रहा। दीदी ने मेरे तरफ़ देखी। मैं धीरे से मुस्कुरा दिया, लेकिन दीदी नहीं मुस्कुराई और चुपचाप सड़क पर देखने लगी।
मैं दीदी से धीरे से बोला- छूना है, मैं साफ़ साफ़ दीदी से कुछ नहीं कह पा रहा था। और पास आ दीदी ने पूछा – क्या छूना चाहते हो रवि? साफ़ साफ़ दीदी ने फिर मुझसे पूछी।
तब मैं धीरे से दीदी से बोला, तुम्हारी दूध छूना दीदी ने तब मुझसे तपाक से बोली, क्या छूना है साफ़ साफ़ मैं तब दीदी से मुस्कुरा कर बोला, तुम्हारी चूची छूना है उनको मसलना है। अभी मां आ सकती है रवि,
दीदी ने तब मुस्कुरा कर बोली।

मैं भी तब मुस्कुरा कर अपनी दीदी से बोला, जब मां आएगी हमें पता चल जायेगा मेरे बातों को सुन कर दीदी कुछ नहीं बोली और चुपचाप नज़दीक आ कर ख़ड़ी हो गयी, लेकिन उनकी चूची कल की तरह मेरे हाथों से नहीं छू रहा था।
मैं समझ गया की दीदी आज मेरे से सट कर ख़ड़ी होने से कुछ शर्मा रही है अबतक दीदी अनजाने में मुझसे सट कर ख़ड़ी होती थी। लेकिन आज जान बुझ कर मुझसे सात कर ख़ड़ी होने से वो शर्मा रही है क्योंकी आज दीदी को मालूम था की सट कर ख़ड़ी होने से क्या होगा।
जैसे दीदी पास आ गयी और अपने हाथों से दीदी को और पास खीच लिया। अब दीदी की चूची मेरे हाथों को कल की तरह छू रही थी। मैंने अपना हाथ दीदी की चूची पर टिका दिया। दीदी के चूची छूने के साथ ही मैं मानो स्वर्ग पर पहुँच गया। मैं दीदी की चूची को पहले धीरे धीरे छुआ, फिर उन्हे कस कस कर मसला। कल की तरह, आज भी दीदी का कुर्ता और उसके नीचे ब्रा बहुत महीन कपड़े का था, और उनमे से मुझे दीदी की निपपले तन कर खड़े होना मालूम चल रहा था। मैं तब अपने एक उंगली और अंगूठे से दीदी की निपपले को ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा।
मैं जितने बार दीदी की निपपले को दबा रहा था, उतने बार दीदी कसमसा रही थी और दीदी का मुँह शरम के मारे लाल हो रहा था। तब दीदी ने मुझसे धीरे से बोली, रवि धीरे दबा, लगता है मैं तब धीरे धीरे करने लगा.
मैं और दीदी ऐसे ही फाल्तू बातें कर रहे थे और देखने वाले को एही दिखता की मैं और दीदी कुछ गंभीर बातों पर बहस कर रहे रथे। लेकिन असल में मैं दीदी की चुचियोंको अपने हाथों से कभी धीरे धीरे और कभी ज़ोर ज़ोर से मसल रहा था। थोड़ी देर मां ने दीदी को बुला लिया और दीदी चली गयी ऐसे ही 2-3 दिन तक चलता रहा।
मैं रोज़ दीदी की सिर्फ़ एक चूची को मसल पाता था। लेकिन असल में मैं दीदी को दोनो चुचियों को अपने दोनो हाथों से पाकर कर मसलना चाहता था। लेकिन बालकोनी में खड़े हो कर यह मुमकिन नहीं था। मैं दो दिन तक इसके बारे में सोचता रहा.
एक दिन शाम को मैं हाल में बैठ कर टी वी देख रहा था। मां और दीदी किचन में डिनर की तैयारी कर रही थी। कुछ देर के बाद दीदी काम ख़तम करके हाल में आ कर बिस्तर पर बैठ गयी दीदी ने थॉरी देर तक टी वी देखी और फिर अख़बार उठा कर पढने लगी। दीदी बिस्तर पर पालथी मार कर बैठी थी और अख़बार अपने सामने उठा कर पढ रही थी। मेरा पैर दीदी को छू रहा था। मैंने अपना पैरों को और थोड़ा सा आगे खिसका दिया और और अब मेरा पैर दीदी की जांघो को छू रहा था।
मैं दीदी की पीठ को देख रहा था। दीदी आज एक काले रंग का झीना टी शर्ट पहने हुई थी और मुझे दीदी की काले रंग का ब्रा भी दिख रहा था। मैं धीरे से अपना एक हाथ दीदी की पीठ पर रखा और टी शर्ट के उपर से दीदी की पीठ पर चलाने लगा। जैसे मेरा हाथ दीदी की पीठ को छुआ दीदी की शरीर अकड़ गया।
दीदी ने तब दबी जवान से मुझसे पूछी, यह तुम क्या कर रहे हो तुम पागल तो नहीं हो गये मां अभी हम दोनो तो किचन से देख लेगी”, दीदी ने दबी जवान से फिर मुझसे बोली। “मा कैसे देख लेगी?” मैंने दीदी से कहा। “क्या मतलब है तुम्हारा? दीदी ने पूछी। “मेरा मतलब यह है की तुम्हारे सामने अख़बार खुली हुई है अगर मां हमारी तरफ़ देखेगी तो उनको अख़बार दिखलाई देगी.” मैंने दीदी से धीरे से कहा। “तू बहुत स्मार्ट और शैतान है दीदी ने धीरे से मुझसे बोली.
फिर दीदी चुप हो गयी और अपने सामने अख़बार को फैला कर अख़बार पढने लगी। मैं भी चुपचाप अपना हाथ दीदी के दाहिने बगल के ऊपेर नीचे किया और फिर थोड़ा सा झुक कर मैं अपना हाथ दीदी की दाहिने चूची पर रख दिया। जैसे ही मैं अपना हाथ दीदी के दाहिने चूची पर रखा दीदी कांप गयी मैं भी तब इत्मिनान से दीदी की दाहिने वाली चूची अपने हाथ से मसलने लगा।


2
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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थोड़ी देर दाहिना चूची मसलने के बाद मैं अपना दूसरा हाथ से दीदी बाईं तरफ़ वाली चूची पाकर लिया और दोनो हाथों से दीदी की दोनो चूचियों को एक साथ मसलने लगा। दीदी कुछ नहीं बोली और वो चुप चाप अपने सामने अख़बार फैलाए अख़बार पढ्ती रही। मैं दीदी की टी शर्ट को पीछे से उठाने लगा। दीदी की टी शर्ट दीदी के चूतड़ों के नीचे दबी थी और इसलिए वो ऊपेर नहीं उठ रही थी। मैं ज़ोर लगाया लेकिन कोई फ़ैदा नहीं हुआ। दीदी को मेरे दिमाग़ की बात पता चल गया। दीदी झुक कर के अपना चूतड़ को उठा दिया और मैंने उनका टी शर्ट धीरे से उठा दिया। अब मैं फिर से दीदी के पीठ पर अपना ऊपेर नीचे घूमना शुरू कर दिया और फिर अपना हाथ टी शर्ट के अंदर कर दिया। वो! क्या चिकना पीठ था दीदी का।
मैं धीरे धीरे दीदी की पीठ पर से उनका टी शर्ट पूरा का पूरा उठ दिया और दीदी की पीठ नंगी कर दिया। अब अपने हाथ को दीदी की पीठ पर ब्रा के ऊपेर घूमना शुरू किया। जैसे ही मैंने ब्रा को छुआ दीदी कांपने लगी।
फिर मैं धीरे से अपने हाथ को ब्रा के सहारे सहारे बगल के नीचे से आगे की तरफ़ बढा दिया। फिर मैं दीदी की दोनो चुचियों को अपने हाथ में पकड़ लिया और ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा। दीदी की निपपले इस समय तनी तनी थी और मुझे उसे अपने उँगलेओं से दबाने में मज़ा आ रहा था। मैं तब आराम से दीदी की दोनो चूचियों को अपने हाथों से दबाने लगा और कभी कभी निपपल खिचने लगा.
मा अभी भी किचन में खाना पका रही थी। हम लोगों को मां साफ़ साफ़ किचन में काम करते दिखलाई दे रही थी। मैं यह सोच सोच कर खुश हो रहा की दीदी कैसे मुझे अपनी चुचियों से खेलने दे रही है और वो भी तब जब मां घर में मौजूद हैं। मैं तब अपना एक हाथ फिर से दीदी के पीठ पर ब्रा के हूक तक ले आया और धीरे धीरे दीदी की ब्रा की हूक को खोलने लगा।
दीदी की ब्रा बहुत टाईट थी और इसलिए ब्रा का हूक आसानी से नहीं खुल रहा था। लेकिन जब तक दीदी को यह पता चलता मैं उनकी ब्रा की हूक खोल रहा हूँ, ब्रा की हूक खुल गया और ब्रा की स्ट्रप उनकी बगल तक पहुँच गया।
दीदी अपना सर घुमा कर मुझसे कुछ कहने वाली थी की मां किचन में से हाल में आ गयी मैं जल्दी से अपना हाथ खींच कर दीदी की टी शर्ट नीचे कर दिया और हाथ से टी शर्ट को ठीक कर दिया। मां हल में आ कर कुछ ले रही थी और दीदी से बातें कर रही थी। दीदी भी बिना सर उठाए अपनी नज़र अख़बार पर रखते हुए मां से बाते कर रही थी। मां को हमारे कारनामो का पता नहीं चला और फिर से किचन में चली गयी
जब मां चली गयी तो दीदी ने दबी ज़बान से मुझसे बोली, सोनू, मेरी ब्रा की हूक को लगा “क्या? मैं यह हूक नहीं लगा पाउंगा,” मैं दीदी से बोला
“क्यों, तू हूक खोल सकता है और लगा नहीं सकता? दीदी मुझे झिड़कते हुए बोली। “नही, यह बात नहीं है दीदी। तुम्हारा ब्रा बहुत टाईट है !” मैं फिर दीदी से कहा।
दीदी अख़बार पढते हुए बोली, मुझे कुछ नहीं पता, तुमने ब्रा खोला है और अब तुम ही इसे लगाओगे.” दीदी नाराज़ होती बोली।
“लेकिन दीदी, ब्रा की हूक को तुम भी तो लगा सकती हो?” मैं दीदी से पूछा। ” बुधू, मैं नहीं लगा सकता, मुझे हूक लगाने के लिए अपने हाथ पीछे करने पड़ेंगे और मां देख लेंगी तो उन्हे पता चल जाएगा की हम लोग क्या कर रहे थी, दीदी मुझसे बोली.
मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था की मैं क्या करूँ। मैं अपना हाथ दीदी के टी शर्ट नीचे से दोनो बगल से बढा दिया और ब्रा के स्ट्रप को खीचने लगा। जब स्ट्रप थोड़ा आगे आया तो मैंने हूक लगाने की कोशिश करने लगा। लेकिन ब्रा बहुत ही टाईट था और मुझसे हूक नहीं लग रहा था। मैं बार बार कोशिश कर रहा था और बार बार मां की तरफ़ देख रहा था।
मां ने रात का खाना क़रीब क़रीब पका लिया था और वो कभी भी किचन से आ सकती थी। दीदी मुझसे बोली, यह अख़बार पकड़। अब मुझे ही ब्रा के स्ट्रप को लगाना परेगा.” मैं बगल से हाथ निकल कर दीदी के सामने अख़बार पाकर लिया और दीदी अपनी हाथ पीछे करके ब्रा की हूक को लगाने लगी.
मैं पीछे से ब्रा का हूक लगाना देख रहा था। ब्रा इतनी टाईट थी की दीदी को भी हूक लगाने में दिक्कत हो रही थी। आख़िर कर दीदी ने अपनी ब्रा की हूक को लगा लिया। जैसे ही दीदी ने ब्रा की हूक लगा कर अपने हाथ सामने किया मां कमरे में फिर से आ गयी मां बिस्तर पर बैठ कर दीदी से बातें करने लगी। मैं उठ कर टोइलेट की तरफ़ चल दिया, क्योंकी मेरा लंड बहुत गरम हो चुका था और मुझे उसे ठंडा करना था.
दूसरे दिन जब मैं और दीदी बालकोनी पर खड़े थे तो दीदी मुझसे बोली, हम कल रत क़रीब क़रीब पकड़ लिए गये थे। मुझे बहुत शरम आ रही मुझे पता है और मैं कल रात की बात से शर्मिंदा हूँ। तुम्हारी ब्रा इतना टाईट थी की मुझसे उसकी हूक नहीं लगा” मैंने दीदी से कहा।
दीदी तब मुझसे बोली, मुझे भी बहुत दिक्कत हो रही थी और मुझे अपने हाथ पीछे करके ब्रा की स्ट्रप लगाने में बहुत शरम आ रही दीदी, तुम अपनी ब्रा रोज़ कैसे लगती मैंने दीदी से धीरे से पूछा। दीदी बोली, हूमलोग फिर दीदी समझ गयी की मैं दीदी से मज़ाक कर रहा हूँ तब बोली, तू बाद में अपने आप समझ जाएगा.
फिर मैंने दीदी से धीरे से कहा, मैं तुमसे एक बात कहूं? हाँ -दीदी तपाक से बोली.
“दीदी तुम सामने हूक वाले ब्रा क्यों नहीं पहनती, मैंने दीदी से पूछा। दीदी तब मुस्कुरा कर बोली, सामने हूक वाले ब्रा बहुत महंगी है। मैं तपाक से दीदी से कहा, कोइ बात नही। तुम पैसे के लिए मत घबराओ, मैं तुम्हे पैसे दे दूंगा।
मेरे बातों को सुनकर दीदी मुस्कुराते हुए बोली, तेरे पास इतने सारे पैसे हैं चल मुझे एक 100 का नोट दे। मैं भी अपना पर्स निकाल कर दीदी से बोला, तुम मुझसे 100 का नोट ले लो दीदी मेरे हाथ में 100 का नोट देख कर बोली, नही, मुझे रुपया नहीं चाहिए। मैं तो यूँही ही मज़ाक कर रही “लेकिन मैं मज़ाक नहीं कर रहा हूँ। दीदी तुम ना मत करो और यह रुपये तुम मुझसे ले और मैं ज़बरदस्ती दीदी के हाथ में वो 100 का नोट थमा दिया।
दीदी कुछ देर तक सोचती रही और वो नोट ले लिया और बोली, मैं तुम्हे उदास नहीं देख सकती और मैं यह रुपया ले रही हूँ। लेकिन याद रखना सिर्फ़ इस बार ही रुपये ले रही हूँ। मैं भी दीदी से बोला, सिर्फ़ काले रंग की ब्रा ख़रीदना। मुझे काले रंग की ब्रा बहुत पसंद है और एक बात याद रखना, काले रंग के ब्रा के साथ काले रंग की पैँटी भी ख़रीदना दीदी। दीदी शर्मा गयी और मुझे मारने के लिए दौड़ी लेकिन मैं अंदर भाग गया.
अगले दिन शाम को मैं दीदी को अपने किसी सहेली के साथ फ़ोन पर बातें करते हुए सुना। मैं सुना की दीदी अपने सहेली को मार्केटिंग करने के लिए साथ चलने के लिए बोल रही है।
मैं दीदी को अकेला पा कर बोला, मैं भी तुम्हारे साथ मार्केटिंग करने के लिए जाना चाहता हूँ। क्या मैं तुम्हारे साथ जा सकता हूं दीदी कुछ सोचती रही और फिर बोली, सोनू, मैं अपनी सहेली से बात कर चुकी हूँ और वो शाम को घर पर आ रही है और फिर मैंने मां से भी अभी नहीं कही है की मैं शोपिन्ग के लिए जा रही हूं।
मैं दीदी से कहा, तुम जाकर मां से बोलो कि तुम मेरे साथ मार्केट जा रही हो और देखना मां तुम्हे जाने देंगी। फिर हम लोग बाहर से तुम्हारी सहेली को फ़ोने कर देंगे की मार्केटिंग का प्रोग्राम कँसेल हो गया है और उसे आने की ज़रूरत नहीं है ठीक है ना, “हाँ, यह बात मुझे भी ठीक लगती है मैं जा कर मां से बात करती हूं और यह कह कर दीदी मां से बात करने अंदर चली गयी मां ने तुरंत दीदी को मेरे साथ मार्केट जाने के लिए हाँ कह दी.
उस दिन कपड़े की मार्केट में बहुत भीड़ थी और मैं ठीक दीदी के पीछे ख़ड़ा हुआ था और दीदी के चुतड़ मेरे जांघों से टकरा रहा था। मैं दीदी के पीछे चल रहा था जिससे की दीदी को कोई धक्का ना मार दे। हम जब भी कोई फूटपाथ के दुकान में खड़े हो कर कपड़े देखते तो दी मुझसे चिपक कर ख़ड़ी होती और उनकी चूची और जांघे मुझसे छू रहा होता। अगर दीदी कोई दुकान पर कपड़े देखती तो मैं भी उनसे सट कर ख़ड़ा होता और अपना लंड कपड़ों के ऊपर से उनके चुतड़ से भिड़ा देता और कभी कभी मैं उनके चूतड़ों को अपने हाथों से सहला देता। हम दोनो ऐसा कर रहे थे और बहाना मार्केट में भीड़ का था। मुझे लगा कि मेरे इन सब हरकतों दीदी कुछ समझ नहीं पा रही थी क्योंकि मार्केट में बहुत भीड़ थी.
मैंने एक जीन्स का पैंट और टी-शर्ट खरीदा और दीदी ने एक गुलाबी रंग की पंजाबी ड्रेस, एक गर्मी के लिए स्कर्ट और टॉप और 2-3 टी-शर्ट खरीदी। हम लोग मार्केट में और थोड़ी तक घूमते रहे। अब क़रीब 7.30 बज गए थे।
दीदी ने मुझे सारे शॉपिंग बैग थमा दिए और बोली- आगे जा कर मेरा इंतज़ार करो, मैं अभी आती हूँ।
वो एक दुकान में जा कर खड़ी हो गई। मैंने दुकान को देखा, वो महिलाओं के अंडरगारमेंट की दुकान थी। मैं मुस्कुरा कर आगे बढ़ गया।
मैं देखा कि दीदी का चेहरा शर्म के मारे लाल हो चुका है, और वो मेरी तरफ़ मुस्कुरा कर देखते हुए दुकानदार से बातें करने लगी।
कुछ देर के बाद दीदी दुकान पर से चल कर मेरे पास आई। दीदी के हाथ में एक बैग था।
मैं दीदी को देख कर मुस्कुरा दिया और कुछ बोलने ही वाला था कि दीदी बोली- अभी कुछ मत बोल और चुपचाप चल।
हम लोग चुपचाप चल रहे थे। मैं अभी घर नहीं जाना चाहता था और आज मैं दीदी के साथ अकेला था और मैं दीदी के साथ और कुछ समय बिताने के लिए बेचैन था।
मैंने दीदी से बोला- चलो कुछ देर हम लोग समुंदर के किनारे पर बैठते हैं और भेलपुरी खाते हैं।
“नहीं, देर हो जाएगी !” दीदी मुझसे बोली।
लेकिन मैंने फिर दीदी से कहा- चलो भी दीदी। अभी सिर्फ़ 7.30 बजे हैं और हम लोग थोड़ी देर बैठ कर घर चल देंगे और माँ जानती हैं कि हम दोनों साथ-साथ हैं, इसलिए वो चिंता भी नहीं करेंगी।
दीदी थोड़ी सोच कर बोली- चल समुंदर के किनारे चलते हैं।
दीदी के राज़ी होने से मैं बहुत खुश हुआ और हम दोनों समुंदर के किनारे, जो कि मार्केट से सिर्फ़ 10 मिनट का पैदल रास्ता था, चल दिए। हमने पहले एक भेलपुरी वाले से भेलपुरी ली और एक मिनरल वाटर की बोतल ली और जाकर समुंदर के किनारे बैठ गए।
हम लोग समुंदर के किनारे पास-पास पैर फैला कर बैठ गए। अभी समुंदर का पानी पीछे था और हमारे चारों तरफ़ बड़े-बड़े पत्थर पड़े हुए थे। वहाँ खूब ज़ोरों की हवा चल रही थी और समुंदर की लहरें भी तेज़ थी। इस समय बहुत सुहाना मौसम था।
हम लोग भेलपुरी खा रहे थे और बातें कर रहे थे। दीदी मुझ से सट कर बैठी थी और मैं कभी-कभी दीदी के चेहरे को देख रहा था। दीदी आज काले रंग की एक स्कर्ट और ग्रे रंग का ढीला सा टॉप पहनी हुई थी।
एक बार ऐसा मौका आया जब दीदी भेलपुरी खा रही थी, तो एक हवा का झोंका आया और दीदी की स्कर्ट उनकी जाँघ के ऊपर तक उठ गई और दीदी की जांघें नंगी हो गई। दीदी ने अपने जाँघों को ढकने की कोई जल्दी नहीं की। उनने पहले भेलपुरी खाई और आराम से रूमाल से हाथ पोंछ कर फिर अपनी स्कर्ट को जाँघों के नीचे किया और स्कर्ट को पैरों से दबा लिया।
वैसे तो हम लोग जहाँ बैठे थे वहाँ अंधेरा था, फिर भी चाँदनी की रोशनी में मुझे दीदी के गोरी-गोरी जाँघों का पूरा नज़ारा मिला। दीदी की जाँघों को देख कर मैं कुछ गर्म हो गया।
जब दीदी ने अपनी भेलपुरी खा चुकी तो मैं दीदी से पूछा- दीदी, क्या हम उन बड़े-बड़े पत्थरों के पीछे चलें?
दीदी ने फ़ौरन मुझसे पूछा- क्यों?
मैंने दीदी से कहा- वहाँ हम लोग और आराम से बैठ सकते हैं।
दीदी ने मुझसे मुस्कुराते हुए पूछा- यहाँ क्या हम लोग आराम से नहीं बैठे हैं?
“लेकिन वहाँ हमें कोई नहीं देखेगा !” मैंने दीदी की आँखों में झाँकते हुए धीरे से बोला।
तब दीदी शरारत भरी मुस्कान के साथ बोली- तुझे लोगों के नज़रों से दूर क्यों बैठना है?
मैंने दीदी को आँख मारते हुए बोला- तुम्हें मालूम है कि मुझे क्यों लोगों से दूर बैठना है।
दीदी मुस्कुरा कर बोली- हाँ मालूम तो है, लेकिन सिर्फ़ थोड़ी देर के लिए बैठेंगे। हम लोग को वैसे ही काफ़ी देर हो चुकी है। और दीदी उठ कर पत्थरों के पीछे चल पड़ी।
मैं भी झट से उठ कर पहले अपने बैग संभाला और दीदी पीछे-पीछे चल पड़ा। वहाँ पर दो बड़े-बड़े पत्थरों के बीच एक अच्छी सी जगह थी। मुझे लगा वहाँ से हमें कोई देख नहीं पाएगा।
मैंने जा कर वहीं पहले अपने बैग को रखा और फिर बैठ गया। दीदी भी आकर मेरे पास बैठ गई। दीदी मुझसे क़रीब एक फ़ुट की दूरी पर बैठी थी। मैंने दीदी से और पास आ कर बैठने के लिए कहा। दीदी थोड़ा सा सरक कर मेरे पास आ गई और अब दीदी के कंधे मेरे कंधों से छू रहे थे।
मैंने दीदी के गले बाहें डाल कर उनको और पास खींच लिया। मैं थोड़ी देर चुपचाप बैठा रहा और फ़िर दीदी के कान के पास अपना मुँह ले जाकर धीरे से कहा- तुम बहुत सुंदर हो।
“सोनू, क्या तुम सही बोल रहे हो?” दीदी ने मेरे आँखों में आँखें डाल कर मुझे चिढ़ाते हुए बोली।
मैंने दीदी के कानों पर अपना होंठ रगड़ते हुए बोला- मैं मज़ाक नहीं कर रहा हूँ। मैं तुम्हारे लिए पागल हूँ।
दीदी धीरे से बोली- मेरे लिए?
मैंने फिर दीदी से धीरे से पूछा- मैं तुम्हें क़िस कर सकता हूँ?
दीदी कुछ नहीं बोली और अपनी सर मेरे कंधों पर टिका कर आँखें बंद कर लीं। मैंने दीदी की ठोड़ी पकड़ कर उनका चेहरा अपनी तरफ़ घुमाया। तो दीदी ने एक मेरी आँखों में झाँका और फिर से अपनी आँखें बंद कर लीं।
मैं अब तक दीदी को पकड़े-पकड़े गर्म हो चुका था और मैंने अपने होंठ दीदी के होंठों पर रख दिए। ओह ! भगवान दीदी के होंठ बहुत ही रसीले और गर्म थे।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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जैसे ही मैंने अपना होंठ दीदी के होंठ पर रखे। दीदी की गले से एक घुटी-सी आवाज़ निकल गई। मैं दीदी को कुछ देर तक चूमता रहा। चूमने से मैं तो गर्म हो ही गया और मुझे लगा कि दीदी भी गर्मा गई है।
दीदी मेरे दाहिने तरफ़ बैठी थी। अब मैं अपने हाथ से दीदी की एक चूची पकड़ कर दबाने लगा। मैं इत्मीनान से दीदी की चूची से खेल रहा था क्योंकि यहाँ माँ के आने का डर नहीं था।
मैं थोड़ी देर तक दीदी की एक चूची कपड़ों के ऊपर से दबाने के बाद मैंने अपना दूसरा हाथ दीदी की टॉप के अंदर घुसा दिया और उनकी ब्रा के ऊपर से उनकी चूची मींज़ने लगा।
मुझे हाथ घुसा कर दीदी की चूची दबाने में थोड़ा अटपटा सा लग रहा था और इसलिए मैंने अपने हाथों को दीदी के टॉप में से निकाल कर अपने दोनों हाथों को उनकी कमर के पास रखा और धीरे-धीरे दीदी के टॉप को उठाने लगा और फिर अपने दोनों हाथों से दीदी की दोनों चूचियों को पकड़ कर ज़ोर-ज़ोर से मसलने लगा।
दीदी मुझे रोक नहीं रही थी और मुझे कुछ भी करने का अच्छा मौक़ा था। मैं अपने दोनों हाथों से दीदी की दोनों चूचियों को पकड़ कर ज़ोर-ज़ोर से मसल रहा था। दीदी बस अपने गले से घुटी-घुटी मस्त सिसकारियाँ निकाल रही थी।
मैं अपने दोनों हाथों को दीदी के पीछे ले गया और उनकी ब्रा के हुक खोलने लगा। जैसे ही मैंने दीदी की ब्रा का हुक खोला तो ब्रा गिर कर उनके मम्मों पर लटक गई। दीदी कुछ नहीं बोली।
मैं फिर से अपने हाथों को सामने लाया और दीदी की चूचियों पर से ब्रा हटा कर उनकी चूचियों को नंगा कर दिया। मैंने पहली बार दीदी की नंगी चूची पर अपना हाथ रखा। जैसे ही मैं दीदी की नंगी चूचियों को अपने हाथों से पकड़ा।
दीदी कुछ कांप सी गई और मेरे दोनों हाथों को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया। मैं अब तक बहुत गर्मा गया था और मेरा लौड़ा खड़ा हो चुका था। मुझे बहुत ही उत्तेजना चढ़ गई थी।
मैं सोच रहा था झट से अपने पैंट में से अपना लौड़ा निकालूँ और दीदी के सामने ही मुट्ठ मार लूँ। लेकिन मैं अभी मुट्ठ नहीं मार सकता था। मैं अब ज़ोर-ज़ोर से दीदी की नंगी चूचियों को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर मसल रहा था।
मैं दीदी की चूची को दबा रहा था, रगड़-रगड़ कर मसल रहा था और कभी-कभी उनके निप्पलों को अपने उँगलियों में पकड़ कर मसल रहा था। दीदी के निप्पल इस वक़्त अकड़ कर कड़े हो गए थे। जब-जब मैं निप्पलों को अपने उँगलियों में पकड़ कर उमेठता था, तो दीदी छटपटा उठती।
मैंने बहुत देर तक चूचियों को पकड़ कर मसलने के बाद, अपना मुँह नीचे करके दीदी के एक निप्पल को अपने मुँह में ले लिया। दीदी ने अभी भी अपनी आँखें बंद कर रखी थी।
जब दीदी की चूची पर मेरा मुँह लगा तो दीदी ने अपनी आँखें खोल दी और देखा कि मैं उनके एक निप्पल को अपने मुँह में भर कर चूस रहा हूँ, वो भी गर्मा गई। दीदी की साँसे ज़ोर-ज़ोर से चलने लगीं और उनका बदन उत्तेजना से काँपने लगा। दीदी ने मेरे हाथों को कस कर पकड़ लिया।
इस वक़्त मैं उनकी दोनों दुद्दुओं को बारी-बारी से चूस रहा था। अब दीदी के गले से अजीब-अजीब सी आवाजें निकलने लगीं। उन्होंने मुझे कस कर अपनी छाती से चिपटा लिया और थोड़ी देर के बाद शांत हो गई।
मेरा चेहरा नीचे की तरफ़ था और दीदी की चूचियों को ज़ोर-ज़ोर से चूस रहा था। मुझे पर दीदी के पानी की खुशबू आई। ओह माय गॉड! मैंने अपनी दीदी की चूत की पानी सिर्फ़ उनकी चूची चूस-चूस कर निकाल दिया था?
मैं अपना हाथ दीदी की चूची पर से हटा कर उनकी चूचियों को हल्के से पकड़ते हुए उनके होंठों को चूम लिया। मैंने अपना हाथ दीदी के पेट पर रख कर नीचे की तरफ़ ले जाने लगा और धीरे-धीरे मेरा हाथ दीदी की स्कर्ट के हुक तक पहुँच गया।
दीदी मेरा हाथ पकड़ कर बोली- अब और नीचे मत ले।
मैंने दीदी से पूछा- क्यों?
दीदी तब मेरे हाथों को और ज़ोर से पकड़ते हुए बोली- नीचे अपना हाथ मत ले जाओ, अभी उधर बहुत गंदा है।
मैंने झट से दीदी को चूम कर बोला- गंदा क्यों हैं? क्या तुम झड़ गईं।
दीदी ने बहुत धीमी आवाज़ में कहा- हाँ, मैं झड़ गई हूँ।
मैंने फिर दीदी से पूछा- दीदी मेरी वजह से तुम झड़ गईं हो?
“हाँ रवि, तुम्हारी वजह से ही मैं झड़ गई हूँ। तुम इतना उतावले थे कि मैं अपने आप को संभाल ही नहीं पाई।” दीदी ने मुस्कुरा कर मुझसे कहा।
मैंने भी मुस्कुरा कर दीदी से पूछा- क्या तुम्हें अच्छा लगा?
दीदी मुझे पकड़ कर चूमते हुए बोली- मुझे तुम्हारी चूची चुसाई बहुत अच्छी लगी, और उसके बाद मुझे झड़ना और भी अच्छा लगा।
दीदी ने आज पहली बार मुझे चूमा था।
दीदी अपने कपड़ों को ठीक करके उठ खड़ी हो गई और मुझसे बोली- रवि, आज के लिए इतना सब काफ़ी है, और हम लोगों को घर भी लौटना है।
मैंने दीदी को एक बार फिर से पकड़ चुम्मा लिया और सड़क की तरफ़ चलने लगे। मैंने सारे बैग फिर से उठा लिए और दीदी के पीछे-पीछे चलने लगा।
थोड़ी दूर चलने के बाद वे मुझसे बोली- मुझे चलने में बहुत परेशानी हो रही है।
मैंने फ़ौरन पूछा- क्यों?
दीदी मेरी आँखों में देखती हुई बोली- नीचे बहुत गीला हो गया है। मेरी पैन्टी बुरी तरह से भीग गई है। मुझे चलने में बहुत अटपटा लग रहा है।
मैंने मुस्कुराते हुए बोला- दीदी मेरी वजह से तुम्हें परेशानी हो गई है न?
दीदी ने मेरी एक बाँह पकड़ कर कहा- रवि, यह ग़लती सिर्फ़ तुम्हारी अकेले की नहीं है, मैं भी उसमें शामिल हूँ।
हम लोग चुपाचाप चलते रहे और मैं सोच रहा था की दीदी की समस्या को कैसे दूर करूँ? एकाएक मेरे दिमाग़ में एक बात सूझी।
मैंने फ़ौरन दीदी से बोला- एक काम करते हैं। वहाँ पर एक पब्लिक टॉयलेट है, तुम वहाँ जाओ और अपने पैन्टी को बदल लो। अरे तुमने अभी-अभी जो पैन्टी खरीदी है, वहाँ जा कर उसको पहन लो और गन्दी हो चुकी पैन्टी को निकाल दो।
दीदी मुझे देखते हुए बोली- तेरा आईडिया तो बहुत अच्छा है। मैं जाती हूँ और अपने पैन्टी बदल कर आती हूँ।
हम लोग टॉयलेट के पास पहुँचे और दीदी ने मुझसे अपनी ब्रा और पैन्टी वाला बैग ले लिया और टॉयलेट की तरफ़ चल दीं।
जैसे ही दीदी टॉयलेट जाने लगी, मैंने दीदी से धीरे से बोला- तुम अपनी पैन्टी चेंज कर लेना तो साथ ही अपनी ब्रा भी चेंज कर लेना। इससे तुम्हें यह पता लग जाएगा कि ब्रा ठीक साइज़ की हैं या नहीं !!
दीदी मेरी बातों को सुन कर हँस पड़ी और मुझसे बोली- बहुत शैतान हो गए हो और स्मार्ट भी।
दीदी शर्मा कर टॉयलेट चली गई।
क़रीब 15 मिनट के बाद दीदी टॉयलेट से लौट कर आईं। हम लोग बस स्टॉप तक चल दिए हम लोगों को बस जल्दी ही मिल गई और बस में भीड़ भी बिल्कुल नहीं थी।
बस क़रीब-क़रीब ख़ाली थी। हमने टिकट लिया और बस के पीछे जा कर बैठ गए।
सीट पर बैठने के बाद मैंने दीदी से पूछा- तुमने अपनी ब्रा भी चेंज कर ली न?
दीदी मेरी तरफ़ देख कर हँस पड़ी।
मैंने फिर दीदी से पूछा- बताओ ना दीदी। क्या तुमने अपनी ब्रा भी चेंज कर ली है?
तब दीदी ने धीरे से बोला- हाँ रवि, मैंने अपनी ब्रा चेंज कर ली है।
मैं फिर दीदी से बोला- मैं तुमसे एक रिक्वेस्ट कर सकता हूँ?
दीदी ने मेरी तरफ देखा और कहा- हाँ बोल।
“मैं तुम्हें तुम्हारे नये पैन्टी और ब्रा में देखना चाहता हूँ।” मैंने दीदी से कहा।
दीदी फ़ौरन घबरा कर बोली- यहाँ? तुम मुझे यहाँ मुझे ब्रा और पैन्टी में देखना चाहते हो?
मैंने दीदी को समझाते हुए बोला- नहीं, यहाँ नहीं, मैं घर पर तुम्हें ब्रा और पैन्टी में देखना चाहता हूँ।
दीदी फिर मुझसे बोली- पर घर पर कैसे होगा। माँ घर पर होगी। घर पर यह संभव नहीं हैं।
“कोई समस्या नहीं हैं, माँ घर पर खाना बना रही होगी और रसोई में जाकर अपने कपड़े चेंज करोगी। जैसे तुम रोज़ करती हो। लेकिन जब तुम कपड़े बदलो। रसोई का पर्दा थोड़ा सा खुला छोड़ देना। मैं हॉल में बैठ कर तुम्हें ब्रा और पैन्टी में देख लूँगा।”
दीदी मेरी बात सुन कर बोली- नहीं रवि, फिर भी देखते हैं।
फिर हम लोग चुप हो गए और अपने घर पहुँच गए। हमने घर पहुँच कर देखा कि माँ रसोई में खाना बना रही हैं।
हम लोगों ने पहले 5 मिनट तक रेस्ट किया और फिर दीदी अपनी मैक्सी उठा कर रसोई में कपड़े बदलने चली गई। मैं हॉल में ही बैठा रहा।
रसोई में पहुँच कर दीदी ने पर्दा खींचा और पर्दा खींचते समय उसको थोड़ा सा छोड़ दिया और मेरी तरफ़ देख कर मुस्कुरा दी और हल्के से आँख मार दी।
मैं चुपचाप अपनी जगह से उठ कर पर्दे के पास जा कर खड़ा हो गया। दीदी मुझे सिर्फ़ 5 फ़ीट की दूरी पर खड़ी थी और माँ हम लोग की तरफ़ पीठ करके खाना बना रही थी।
माँ दीदी से कुछ बातें कर रही थी।
दीदी माँ की तरफ़ मुड़ कर माँ से बातें करने लगी फिर दीदी ने धीरे-धीरे अपनी टी-शर्ट को उठा कर अपने सर के ऊपर ले जाकर धीरे-धीरे अपनी टी-शर्ट को उतार दी।
टी-शर्ट के उतरते ही मुझे आज की खरीदी हुई ब्रा दिखने लगी। वाह क्या ब्रा थी। फिर दीदी ने फ़ौरन अपने हाथों से अपनी स्कर्ट की इलास्टिक को ढीला किया और अपनी स्कर्ट भी उतार दी। अब दीदी मेरे सामने सिर्फ़ अपनी ब्रा और पैन्टी में थी।
दीदी ने क्या मस्त ब्रा और मैचिंग की पैन्टी खरीदी है। मेरे पैसे तो पूरे वसूल हो गए। दीदी ने एक बहुत सुंदर नेट की ब्रा खरीदी थी और उसके साथ पैन्टी में भी खूब लेस लगा हुआ था।
मुझे दीदी की ब्रा से दीदी की चूचियों के आधे-आधे दर्शन भी हो रहे थे। फिर मेरी आँखें दीदी के पेट और उनकी दिलकश नाभि पर जा टिकीं। दीदी की पैन्टी इतनी टाइट थी कि मुझे उनके पैरों के बीच उनकी चूत की दरार साफ़-साफ़ दिख रही थी। उसके साथ-साथ दीदी की चूत के होंठ भी दिख रहे थे।
मुझे पता नहीं कि मैं कितनी देर तक अपनी दीदी को ब्रा और पैन्टी में अपनी आँखें फाड़-फाड़ कर देखता रहा। मैंने दीदी को सिर्फ़ एक या दो मिनट ही देखा होगा। लेकिन मुझे लगा कि मैं कई घंटो से दीदी को देख रहा हूँ।
दीदी को देखते-देखते मेरा लौड़ा पैंट के अंदर खड़ा हो गया और उसमें से लार निकलने लगी। मेरे पैर कामुकता से कांपने लगे।
सारे वक़्त दीदी मुझसे आँखें चुरा रही थी। शायद दीदी को अपने छोटे भाई के सामने ब्रा और पैन्टी में खड़ी होना कुछ अटपटा सा लग रहा था।
जैसे ही दीदी ने मुझे देखा, तो मैंने इशारे से दीदी पीछे घूम जाने के लिए इशारा किया। दीदी धीरे-धीरे पीछे मुड़ गई लेकिन अपना चेहरा माँ की तरफ़ ही रखा। मैं दीदी को अब पीछे से देख रहा था। दीदी की पैन्टी उनके चूतड़ों में चिपकी हुई थी। मैं दीदी के मस्त चूतड़ देख रहा था और मन ही मन सोच रहा था कि अगर मैं दीदी को पूरी नंगी देखूँगा तो शायद मैं अपने पैंट के अंदर ही झड़ जाउँगा।
थोड़ी देर के बाद दीदी मेरी तरफ़ फिर मुड़ कर खड़ी हो गई और अपनी मैक्सी उठा ली और मुझे इशारा किया कि मैं वहाँ से हट जाऊँ। मैंने दीदी को इशारा किया कि अपनी ब्रा उतारो और मुझे नंगी चूची दिखाओ। दीदी बस मुस्कुरा दी और अपनी मैक्सी पहन ली।
मैं फिर भी इशारा करता रहा लेकिन दीदी ने मेरी बातों को नहीं माना। मैं समझ गया कि अब बात नहीं बनेगी और मैं पर्दे के पास से हट कर हॉल में बिस्तर पर बैठ गया।
दीदी भी अपने कपड़ों को लेकर हॉल में आ गई। अपने कपड़ों को अल्मारी में रखने के बाद दीदी बाथरूम चली गई।
मैं समझ गया कि अब बात नहीं बनेगी और मैं पर्दे के पास से हट कर हॉल में बिस्तर पर बैठ गया। दीदी भी अपने कपड़ों को लेकर हॉल में आ गई। अपने कपड़ों को अल्मारी में रखने के बाद दीदी बाथरूम चली गई।
मैं दीदी को सिर्फ़ ब्रा और पैन्टी में देख कर इतना गर्मा गया था कि अब मुझको भी बाथरूम जाना था और मुट्ठ मारना था। मेरे दिमाग़ में आज शाम की हर घटना बार-बार घूम रही थी।
पहले हम लोग शॉपिंग करने मार्केट गए, फिर हम लोग समुंदर के किनारे गए, फिर हम लोग एक पत्थर के पीछे बैठे थे। फिर मैंने दीदी की चूचियों को पकड़ कर मसला था और दीदी चूची मसलवा कर झड़ गई, फिर दीदी एक पब्लिक टॉयलेट में जाकर अपनी पैन्टी और ब्रा चेंज की थी।
एकाएक मेरे दिमाग़ यह बात आई कि दीदी की उतरी हुई पैन्टी अभी भी बैग में ही होगी। मैंने रसोई में झाँक कर देखा कि माँ अभी खाना पका रही हैं और झट से उठ कर गया और बैग में से दीदी उतरी हुई पैन्टी निकाल कर अपनी जेब में रख ली।
मैंने जल्दी से जाकर के बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया और अपना जीन्स का पैंट उतार दिया और साथ-साथ अपना अंडरवियर भी उतार दिया। फिर मैंने दीदी की गीली पैन्टी को खोला और और उसे उल्टा किया। मैंने देखा कि जहाँ पर दीदी की चूत का छेद था वहाँ पर सफ़ेद-सफ़ेद गाढ़ा-गाढ़ा चूत का पानी लगा हुआ है, जब मैंने वो जगह छुई तो मुझे चिपचिपा सा लगा।
मैंने पैन्टी अपने नाक के पास ले जाकर उस जगह को सूंघा। मैं धीरे-धीरे अपने दूसरे हाथ को अपने लौड़े पर फेरने लगा। दीदी की चूत से निकली पानी की महक मेरे नाक में जा रही थी, और मैं पागल हुआ जा रहा था।
मैं दीदी की पैन्टी की चूत वाली जगह को चाटने लगा। वाह दीदी की चूत के पानी का क्या स्वाद है, मज़ा आ गया। मैं दीदी की पैन्टी को चाटता ही रहा और यह सोच रहा था कि मैं अपनी दीदी की चूत चाट रहा हूँ।
मैं यह सोचते-सोचते झड़ गया। मैं अपना लंड हिला-हिला कर अपना लंड साफ़ किया और फिर पेशाब की और फिर दीदी की पैन्टी और ब्रा अपने जेब में रख कर वापस हॉल में पहुँच गया।
थोड़ी देर के बाद जब दीदी को अपनी भीगी पैन्टी का याद आई तो वो उसको बैग में ढूँढने लगी। शायद दीदी को उसे साफ़ करना था। दीदी को उनकी पैन्टी और ब्रा बैग में नहीं मिली।
थोड़ी देर के बाद दीदी ने मुझे कुछ अकेला पाया तो मुझ से पूछा- मुझे अपनी पुरानी पैन्टी और ब्रा बैग में नहीं मिल रही है।
मैंने दीदी से कुछ नहीं कहा और मुस्कुराता रहा।
“तू हँस क्यों रहा हैं? इसमें हँसने की क्या बात है।” दीदी ने मुझसे पूछा।
मैंने दीदी से पूछा- तुम्हें अपनी पुरानी पैन्टी और ब्रा क्यों चाहिए? तुम्हें तो नई ब्रा और पैन्टी मिल गई।
तब कुछ-कुछ समझ कर मुझसे पूछा- उनको तुमने लिया है?
मैं भी कह दिया- हाँ, मैंने लिया है। वो दोनों अपने पास रखना है, तुम्हारी गिफ़्ट समझ कर।
तब दीदी बोली- रवि, वो गंदे हैं।
मैं मुस्कुरा कर दीदी से बोला- मैंने उनको साफ़ कर लिया।
लेकिन दीदी ने परेशान हो कर मुझसे पूछा- क्यों?
मैंने दीदी से कहा- मैं बाद में दे दूंगा।
अब माँ कमरे आ गई थीं। इसलिए दीदी ने और कुछ नहीं पूछा।
अगले सुबह मैंने दीदी से पूछा- क्या वो मेरे साथ दोपहर के शो में सिनेमा जाना चाहेंगी?
दीदी ने हँसते हुए पूछा- कौन दिखायेगा?
मैं भी हँस के बोला- मैं।
दीदी बोली- मुझे क्या पता तेरे को कौन सा सिनेमा देखने जाना है।
मैंने दीदी से बोला- हम लोग न्यू थियेटर चलें?
वो सिनेमा हॉल थोड़ा सा शहर से बाहर है।
“ठीक है, चल चलें।” दीदी मुझसे बोली।
असल में दीदी के साथ सिनेमा देखने का सिर्फ़ एक बहाना था। मेरे दिमाग़ में और कुछ घूम रहा था। सिनेमा के बाद मैं दीदी को और कहीं ले जाना चाहता था।
पिछले कई दिनों से मैंने दीदी की मुसम्मियों को कई बार दबाया था और मसला था और दो तीन-बार चूसा भी था। अब मुझे और कुछ चाहिए था और इसीलिए मैं दीदी को और कहीं ले जाना चाहता था। मुझे दीदी को छूने का अच्छा मौक़ा सिनेमा हॉल में मिल सकता था, या फिर सिनेमा के बाद और कहीं ले जाने के बाद मिल सकता था।
जब दीदी सिनेमा जाने के लिए तैयार होने लगी तो मैं धीरे से दीदी से कहा- आज तुम स्कर्ट पहन कर चलो।
दीदी बस थोड़ा सा मुस्कुरा दी और स्कर्ट पहनने के लिए राज़ी हो गई।
ठंड का मौसम था इसलिए मैं और दीदी ने ऊपर से जैकेट भी ले लिया था।
मैंने आज यह सिनेमा हॉल जान बूझ कर चुना था क्योंकि यह हॉल शहर से थोड़ा सा बाहर था और वहाँ जो सिनेमा चल रहा था। वो दो हफ़्ते पुरानी हो गया था।
मुझे मालूम था कि हॉल में ज्यादा भीड़ भर नहीं होगी। हम लोग वहाँ पहुँच कर टिकट ले लिया और हॉल में जब घुसे तो किसी और सिनेमा का ट्रेलर चल रहा था। इसलिए हॉल के अंदर अंधेरा था।
जब अंदर जा कर मेरे आँखें अंधेरे में देखने में कुछ अभ्यस्त हो गईं, तो मैंने देखा कि हॉल में कुछ लोग ही बैठे हुए हैं और मैं एक किनारे वाली सीट पर दीदी को ले जाकर बैठ गया। हम लोग जहाँ बैठे थे उसके आस पास और कोई नहीं था। और जो भी हॉल में बैठे थे वो सब किनारे वाली सीट पर बैठे हुए थे।
हम लोग भी बैठ गए सिनेमा देखने लगे। मैं सिनेमा देख रहा था और दिमाग़ में सोच रहा था मैं पहले दीदी की चूची को दबाऊंगा, मसलूँगा और अगर दीदी मान गई तो फिर दीदी की स्कर्ट के अंदर अपना हाथ डालूँगा।
मैंने क़रीब 15 मिनट तक इंतज़ार किया और फिर अपनी सीट पर मैं आराम से पैर फैला कर बैठ गया। संगीता दीदी मेरे दाहिने तरफ़ बैठी थी।
मैं धीरे से अपना दाहिना हाथ बढ़ा कर दीदी की जाँघों पर रख दिया। फिर मैं धीरे-धीरे दीदी की जाँघों पर स्कर्ट के ऊपर से हाथ फेरने लगा। दीदी कुछ नहीं बोली।
दीदी बस चुपचाप बैठी रही और मैं उनकी जाँघों पर हाथ फेरने लगा। अब मैं धीरे-धीरे दीदी की स्कर्ट को पैरों से ऊपर उठाने लगा जिससे कि मैं अपना हाथ स्कर्ट के अंदर डाल सकूँ।
दीदी ने मुझको रोका नहीं और ऊपर से मेरे कानों के पास अपनी मुँह लेकर के बोली- कोई देख ना ले।
इधर-उधर देख कर मैंने भी धीरे से बोला- नहीं कोई नहीं देख पाएगा।
दीदी फिर से बोली- स्क्रीन की लाइट काफ़ी ज़्यादा है और इसमें कोई भी हमें देख सकता है।
मैंने दीदी से कहा- अपना जैकेट उतार कर अपनी गोद में रख लो।
दीदी ने थोड़ी देर रुक कर अपनी जैकेट उतार कर अपनी गोद में रख ली। और इससे उनकी जाँघ और मेरा हाथ दोनों जैकेट के अंदर छुप गया।
मैं अब अपना हाथ दीदी के स्कर्ट के अंदर डाल कर के उनके पैरों और जाँघों को सहलाने लगा।
दीदी फिर फुसफुसा कर बोली- कोई हमें देख ना ले।
मैंने दीदी को समझाते हुए कहा- हमें कोई नहीं देख पाएगा। आप चुपचाप बैठी रहो।
मैंने अपना हाथ अब दीदी के जाँघों के अंदर तक ले जाकर उनकी जाँघ के अंदरूनी भाग को सहलाने लगा और धीर-धीरे अपना हाथ दीदी की पैन्टी की तरफ़ बढ़ाने लगा। मेरा हाथ इतना घूम गया की दीदी की पैन्टी तक नहीं पहुँच रहा था।
मैंने फिर हल्के से दीदी के कानों में कहा- थोड़ा नीचे खिसक कर बैठो न।
दीदी ने हँसते हुए पूछा- क्या तुम्हारा हाथ वहाँ तक नहीं पहुँच रहा है।
“हाँ” मैंने दबी जुबान से दीदी को बोला।
दीदी धीरे से हँसते हुए बोली- तुमको अपना हाथ कहाँ तक पहुँचाना है?
मैं शर्माते हुए बोला- तुमको मालूम तो है।
दीदी मेरी बातों को समझ गई और नीचे खिसक कर बैठी। मेरा हाथ शुरू से दीदी के स्कर्ट के अंदर ही घुसा हुआ था और जैसे ही दीदी नीचे खिसकी मेरा हाथ जा करा अपने आप दीदी की पैन्टी से लग गया। फिर मैं अपने हाथ को उठा कर पैन्टी के ऊपर से दीदी की चूत पर रखा और ज़ोर से दीदी की चूत को छू लिया।
यह पहली बार था की अपने दीदी की चूत को छू रहा था। दीदी की चूत बहुत गर्म थी। मैं अपनी उंगली को दीदी की चूत के छेद के ऊपर चलाने लगा।
थोड़ी देर के बाद दीदी फुसफुसा कर बोली- रुक जाओ, नहीं तो फिर से मेरी पैन्टी गीली हो जायेगी।
लेकिन मैंने दीदी की बात को अनसुनी कर दी और दीदी की चूत के छेद को पैन्टी के ऊपर से सहलाता रहा।
दीदी फिर से बोली- प्लीज़, अब मत करो, नहीं तो मेरी पैन्टी और स्कर्ट दोनों गंदी हो जायेगीं।
मैं समझ गया कि दीदी बहुत गर्मा गई हैं। लेकिन मैं यह भी नहीं चाहता था कि जब हम लोग सिनेमा से निकलें तो लोगों को दीदी गंदी स्कर्ट दिखे। इसलिए मैं रुक गया।
मैंने अपना हाथ चूत पर से हटा कर दीदी की जाँघों को सहलाने लगा। थोड़ी देर के इंटरवल हो गया। इंटरवल होते ही मैं और दीदी अलग-अलग बैठ गए और मैं उठ कर पॉपकॉर्न और पेप्सी ले आया।
मैंने दीदी से धीरे से कहा- तुम टॉयलेट जाकर अपनी पैन्टी निकाल कर नंगी होकर आ जाओ।
दीदी ने आँखें फाड़ कर मुझसे पूछा- मैं अपनी पैन्टी क्यों निकालूँ?
मैं हँस कर बोला- निकाल लेने से पैन्टी गीली नहीं होगी।
दीदी ने तपाक से पूछा- और स्कर्ट का क्या करें? क्या उसे भी उतार कर आऊँ?
“सिंपल सी बात है जब टॉयलेट से लौट कर आओगी तो बैठने से पहले अपनी स्कर्ट उठा कर बैठ जाना” मैंने दीदी को आँख मारते हुए बोला।
दीदी मुस्कुरा कर बोली- तुम बहुत शैतान हो और तुम्हारे पास हर बात का जबाब है।
जैसा मैंने कहा था, दीदी टॉयलेट में गई और थोड़ी देर के बाद लौट आई। जब मैं दीदी को देख कर मुस्कुराया तो दीदी शर्मा गई और अपनी गर्दन झुका ली।
हम लोग फिर से हॉल में चले गए जब बैठने लगी तो अपनी स्कर्ट ऊपर उठा ली, लेकिन पूरी नहीं। हम लोगों के जैकेट अपने-अपने गोद में थी और हम लोग पॉपकॉर्न खाना शुरू किया। थोड़ी देर के बाद हम लोगों ने पॉपकॉर्न खत्म किए और फिर पेप्सी भी खत्म कर लिया।
फिर हम लोग अपनी-अपनी सीट पर नीचे हो कर पर फैला कर आराम से बैठ गए थोड़ी देर के बाद मैंने अपना हाथ बढ़ा कर दीदी की गोद पर रखी हुई जैकेट के नीचे से ले जाकर के दीदी की जाँघों पर रख दिया।
मेरे हाथों को दीदी की जाँघों से छूते ही दीदी ने अपने जाँघों को और फैला दिया। फिर दीदी ने अपने चूतड़ थोड़ा ऊपर उठा करके अपने नीचे से अपनी स्कर्ट को खींच करके निकाल दिया और फिर से बैठ गए अब दीदी हॉल के सीट पर अपनी नंगी चूतड़ों के सहारे बैठी थी।
सीट की रेग्जीन से दीदी को कुछ ठंड लगी पर वो आराम से सीट पर नीचे होकर के बैठ गई। मैं फिर से अपने हाथ को दीदी की स्कर्ट के अंदर डाल दिया। मैं सीधे दीदी की चूत पर अपना हाथ ले गया।
जैसे ही मैं दीदी की नंगी चूत को छुआ, दीदी झुक गई जैसे कि वो मुझे रोक रही हो। मुझे दीदी की नंगी चूत में हाथ फेरना बहुत अच्छा लग रहा था। मुझे चूत पर हाथ फेरते-फेरते चूत के ऊपरी भाग पर कुछ बाल का होना महसूस हुआ।
मैं दीदी की नंगी चूत और उसके बालों को धीरे धीरे सहलाने लगा। मैं दीदी की चूत को कभी अपने हाथ में पकड़ कर कस कर दबा रहा था, कभी अपने हाथ उसके ऊपर रगड़ रहा था और कभी-कभी उनकी क्लिट को भी अपने उँगलियों से रगड़ रहा था।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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मैं जब दीदी की क्लिट को छेड़ रहा था तब दीदी का शरीर कांप सा जाता था। उनको एक झुरझुरी सी होती थी। मैंने अपनी एक उंगली दीदी की चूत के छेद में घुसेड़ दी। ओह भगवान चूत अंदर से बहुत गर्म थी और मुलायम भी थी। चूत अंदर से पूरी रस से भरी हुई थी।
मैं अपनी उंगली को धीरे-धीरे चूत के अंदर और बाहर करने लगा। थोड़ी देर के बाद मैंने अपनी दूसरी उंगली भी चूत में डाल दी। ये तो और भी आसानी से चूत में समा गई। मैंने दोनों उँगलियों से दीदी चूत को चोदना शुरू किया।
दीदी की तेज सांसों की आवाज मझे साफ़-साफ़ सुनाई दे रही थी। थोड़ी देर के दीदी का शरीर अकड़ गया, कुछ ही देर के बाद दीदी शांत हो कर सीट पर बैठ गई। अब दीदी की चूत में से ढेर सारा पानी निकलने लगा। चूत की पानी से मेरा पूरा हाथ गीला हो गया।
मैं थोड़ी देर रुक कर फिर से दीदी की चूत में अपनी उंगली चलाने लगा। थोड़ी देर के दीदी दोबारा झड़ी। फिर मुझे जब लगा कि सिनेमा अब खत्म होने वाला है, तो मैंने अपना हाथ दीदी की चूत पर से हटा लिया। जैसे ही सिनेमा खत्म हुआ, मैं और दीदी उठ कर बाहर निकल आए।
बाहर आने के बाद मैंने दीदी से कहा- अगले शो में जो भी उस सीट पर बैठेगा उसका पैंट या उसकी साड़ी भीग जाएगी।
दीदी मेरे बातों को सुन कर बहुत शर्मा गई और मुझसे नज़र हटा ली। दीदी टॉयलेट चली गई हो सकता अपनी चूत और जाँघों को धो कर साफ़ करने के लिए और अपनी पैन्टी फिर से पहनने के लिए गई हों।
अभी सिर्फ़ तीन बजे थे और मैंने दीदी से बोला- तो बहुत टाइम है और माँ भी घर पर सो रही होंगी। क्या तुम अभी घर जाना चाहती हो? वैसे मुझे कुछ प्राइवेट में चलने का इच्छा हैं। क्या तुम मेरे साथ चलोगी?
दीदी मेरी आँखों में झाँकती हुई बोली- प्राइवेट में चलने की क्या बात हैं? वैसे मैं भी अभी घर नहीं जाना चाहती।
मैं बोला- प्राइवेट का मतलब है कि किसी होटल में जाना हैं?
दीदी बोली- सिर्फ़ होटल? या और कुछ?
मैं दीदी से बोला- सिर्फ़ होटल या और कुछ! मतलब?
दीदी बोली- तेरा मतलब होटल के कमरा से है?
“हाँ मेरा मतलब होटल के कमरे से ही है।” मैंने कहा।
दीदी ने तब मुझसे फिर पूछा- होटल के कमरे में ही क्यों?
मैंने दीदी की बातों को सुन कर यह समझा कि दीदी ने अभी भी होटल चलने के लिए ना नहीं किया हैं।
मैंने दीदी की आँखों में झाँकते हुए बोला- अभी तक मैंने कई बार तुम्हारी चूची को छुआ, दबाया, मसला और चूसा है, फिर मैंने तुम्हारी चूत को भी छुआ और उसके अंदर अपनी उंगली भी डाली। और तुमने कभी भी मना नहीं किया। मैं आगे बढ़ने से रुका तो इस बात से कि हमारे पास पूरी प्राइवेसी नहीं थी। इस बात के डर से कि कोई आ ना जाए, या हमें देख न ले। इसलिए मैं चाहता हूँ कि अब होटल के कमरे में जाकर हम लोगों को पूरी प्राइवेसी मिले।
मैं इतना कह कर रुक गया और दीदी की तरफ़ देखने लगा की अब दीदी भी कुछ बोले। जब दीदी कुछ नहीं बोली तो मैंने फिर उनसे कहा- तुम क्या चाहती हो?
दीदी मुझसे बोली- मतलब यह हुआ कि तुम इसलिए मेरे साथ होटल जाना चाहते हो ताकि वहाँ जा कर तू मुझे अच्छी तरफ़ से छू सके। मेरे दूध को चूस सके और मेरे पैरों के बीच अपना हाथ डाल कर मज़ा ले सके?
“ठीक कह रही हो, दीदी। मैं जब भी तुम्हें छूता हूँ तो हम लोगों के पास प्राइवेसी ना होने की वजह से रुकना पड़ता है, जैसे आज सिनेमा हॉल में ही देख लो” मैंने दीदी से कहा।
“तो तू मुझे ठीक से और बिना डर के छूना चाहता है। मेरी चूची पीना चाहता है, और मेरी टांगो के बीच हाथ डाल कर अपनी उंगली डाल कर देखना चाहता है?” दीदी ने मुझसे पूछा।
मैंने तब थोड़ा झल्ला कर दीदी से कहा- तुम बिल्कुल सही कह रही हो। और मुझे लगता हैं कि तुम भी यही चाहती हो।
दीदी कुछ नहीं बोली और मैं उनकी चुप्पी को उनकी हाँ समझ रहा था। फिर दीदी थोड़ी देर तक सोचने के बाद बोली- कमरे में जाने का मतलब होता है कि हम वो सब भी???
मैंने तब दीदी को समझाते हुए कहा- लेकिन तुम चाहोगी तभी। नहीं तो कुछ नहीं।
दीदी फिर भी बोली- पता नहीं रवि, यह बहुत बड़ा क़दम है।
मैंने तब फिर से दीदी को समझाते हुए बोला- बाबा, अगर तुम नहीं चाहोगी तो वो सब काम नहीं होगा और वही होगा जो जो तुम चाहोगी। लेकिन मुझे तुम्हारी दोनों मुसम्मियाँ बिना किसी के डर के साथ पीना है बस !
मैं समझ रहा था कि दीदी मन ही मन चाह तो रही थी कि मैं उनकी चूची को बिना किसी डर के चूसूं और उनकी चूत से खेलूँ।
दीदी बोली- बात कुछ समझ में नहीं आ रही है। लेकिन यह बात तो तय है कि मैं अभी घर नहीं जाना चाहती हूँ।
इसका मतलब साफ़ था कि दीदी मेरे साथ होटल में और होटल के कमरे में जाना चाहती हैं।
इसलिए मैंने पूछा- तो होटल चलें? दीदी मेरे साथ चल पडीं। मैं बहुत खुश हो गया। दीदी मेरे होटल में चलने के लिए राज़ी हो गई है।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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मैं खुशी-खुशी होटल की तरफ़ चल पड़ा। मैं इतना समझ गया था कि शायद दीदी मुझे खुल कर अपनी चूची और चूत मुझसे छुआना चाहती हैं और हो सकता हैं कि वो बाद में मुझसे अपनी चूत भी चुदवाना भी चाहती हों।
यह सब सोच-सोच कर मेरा लंड खड़ा होने लगा। मैं सोच रहा था कि आज मैं अपनी दीदी को ज़रूर चोदूंगा। मैं बहुत खुश था और गर्म हो रहा था।
मुझे यह मालूम था कि उस सिनेमा हॉल के पास दो-तीन ऐसे होटल हैं जहाँ पर कमरे घंटे के हिसाब से मिलते हैं। मैं एक दो बार उन होटलों में अपने गर्ल-फ्रेंड के साथ आ चुका हूँ।
मैं वैसे ही एक होटल में अपनी दीदी को लेकर गया और वहाँ बात करके एक कमरा तय और कमरे का किराया भी दे दिया। होटल का वेटर हम लोगों को एक कमरे में ले गया।
मैं वैसे ही एक होटल में अपनी दीदी को लेकर गया और वहाँ बात करके एक कमरा तय और कमरे का किराया भी दे दिया। होटल का वेटर हम लोगों को एक कमरे में ले गया।
जैसे ही वेटर वापस गया, मैंने कमरे के दरवाज़े को अच्छी तरह से बंद किया। मैंने कमरे की खिड़की को भी चेक किया और उनमें पर्दा डाल दिया। तब तक दीदी कमरे में घुस कर कमरे के बीच में खड़ी हो गई।
दीदी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था और वो चुपचाप खड़ी थी। मैं तब बाथरूम में गया और बाथरूम की लाइट को जला करके बाथरूम का दरवाज़ा आधा बंद कर दिया, जिससे कि कमरे में बाथरूम से थोड़ी बहुत रोशनी आती रहे। फिर मैंने कमरे की रोशनी को बंद कर दिया।
दीदी आराम से बिस्तर के एक किनारे पर बैठ गई। कमरे में रोशनी बहुत कम थी, लेकिन हम लोग एक दूसरे को देख पा रहे थे। मैं अपनी शर्ट के बटन खोलने लगा और दीदी से बोला- तुम भी अपने कपड़े उतार दो। दीदी ने भी कपड़े उतारने शुरू कर दिए। जैसे ही अपना पैंट खोला तो मैंने देखा की दीदी भी अपनी ब्रा और पैन्टी उतार रही हैं। अब दीदी मेरे सामने बिल्कुल नंगी हो चुकी थी। मैं समझ गया कि दीदी भी आज अपनी चूत चुदवाना चाहती हैं। अब मैं धीरे-धीरे बिस्तर की तरफ़ बढ़ा और जा कर दीदी के बगल में बैठ गया। पलंग पर बैठ कर मैंने दीदी को अपनी बाहों में भर लिया और उनको अपने पैरों के बीच खड़ा कर दिया।
कमरे की हल्की रोशनी में भी मुझे अपनी दीदी की नंगी जवानी और मादक बदन साफ़-साफ़ दिख रहा था और मुझे उनकी नंगी चूचियों को पहली बार देख कर मज़ा आ रहा था। मैंने अब तक दीदी को सिर्फ़ कपड़ों के ऊपर से देखा था और मुझे पता था की दीदी का बदन बहुत सुडौल और भरा हुआ होगा, लेकिन इतनी अच्छी फिगर होगी ये नहीं पता था। दीदी की गोल संतरे सी चूची, पतली सी कमर और गोल-गोल सुंदर से चूतड़ों को देख कर मैं तो जैसे पागल ही हो गया। मैं धीरे से अपने हाथों में दीदी की चूचियों को लेकर के धीरे-धीरे बड़े प्यार से दबाने लगा।
“दीदी तुम्हारी चूचियाँ बहुत प्यारी हैं बहुत ही सुंदर और ठोस हैं।” मैंने दीदी से कहा और दीदी ने मुस्कुरा कर अपने हाथ मेरे कंधों पर रख दिए।
मैंने झुक करके अपने होंठ उनकी चूचियों पर रख दिए। मैं दीदी की चूचियों के निप्पलों को चूसने लगा और दीदी सिहर उठी। मैं अपने मुँह को और खोल करके दीदी की एक चूची को और मेरे मुँह में भर लिया और चूसने लगा।
मेरा दूसरा हाथ दीदी की दूसरी चूची पर था और उसको धीरे-धीरे दबा रहा था। फिर मैं अपना मुँह जितना खुल सकता खोल करके दीदी की चूची को अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगा।
अपने दूसरे हाथ को मैं धीरे से नीचे लाकर के दीदी चूत को पहले सहलाया और फिर धीरे से अपनी एक उंगली चूत के अंदर कर घुसेड़ दी। मैं कुछ देर तक अपने मुँह से दीदी की मुसम्मी चचोरता रहा और अपने दूसरे हाथ की उंगली दीदी की चूत के अंदर-बाहर करता रहा। मुझे लगा रहा था कि दीदी आज अपनी चूत मुझसे ज़रूर चुदवायेंगी।
थोड़ी देर के ब्द मैंने अपना मुँह दीदी की चूची पर से हटा कर दीदी को इशारे से पलंग पर लेटने के लिए बोला। दीदी चुपचाप पलंग पर लेट गई और मैं भी उनके पास लेट गया। फिर मैं दीदी को अपने बाहों में भर कर उनकी होठों को चूमने और फिर चूसने लगा।
मेरा हाथ फिर से दीदी की चूचियों पर चला गया और दीदी की बड़ी-बड़ी चूचियों को अपने हाथों ले कर बड़े आराम से मसलने लगा। इस वक़्त दीदी की चूचियों को मसलने में मुझे किसी का डर नहीं था और बड़े आराम से दीदी की चूचियों को मसल रहा था।
चूची मसलते हुए मैंने दीदी से बोला- तुम्हारी चूचियों का जबाब नहीं, बड़ी मस्त मुस्म्मियाँ हैं। मन करता है कि मैं इन्हें खा जाऊँ।
मैंने अपना मुँह नीचे करके दीदी की चूची के एक निप्पलों को अपने मुँह में भर कर धीरे-धीरे चूसने लगा। थोड़ी देर के बाद मैंने अपना एक हाथ नीचे करके दीदी की चूत पर ले गया और उनकी चूत से खेलने लगा, और थोड़ी देर के बाद अपनी एक उंगली चूत में घुसेड़ कर अंदर-बाहर करने लगा। दीदी के मुँह से मादक सिसकारियाँ निकलने लगीं।
थोड़ी देर के बाद दीदी की चूत ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया। मैं समझ गया की दीदी अब चुदवाने के लिए तैयार हैं। मैं भी दीदी के ऊपर चढ़ कर उनको चोदने के लिए बेताब हो रहा था। थोड़ी देर तक मैं दीदी की चूची और चूत से खेलता रहा और फिर उनसे सट गया।
मैंने दीदी के ऊपर झुकते हुए दीदी से पूछा- तुम तैयार हो? बोलो ना दीदी क्या तुम अपनी छोटे भाई का लौड़ा अपनी चूत के अंदर लेने के लिए तैयार हो?
उस समय मैं मन ही मन जानता था कि दीदी की चूत मेरा लंड खाने के लिए बिल्कुल तैयार है। और दीदी मुझे चोदने से ना नहीं करेंगी।
दीदी तब मेरी आँखों में झाँकते हुए बोली- रवि, क्या मैं इस वक़्त ना कर सकती हूँ? इस समय तू मेरे ऊपर चढ़ा हुआ है और हम दोनों नंगे हैं।
दीदी ने अपना हाथ बढ़ा कर मेरे लंड को पकड़ लिया और उसे सहलाने लगी। तब मैंने अपने लंड को अपने हाथ में लेकर दीदी की चूत से भिड़ा दिया।
चूत पर लंड लगते ही दीदी “आह! अहह्ह्ह ! रवि ओहह्ह्ह्ह!” करने लगी।
मैंने हल्के से अपने कमर हिला कर दीदी की चूत में अपने लंड का सुपाड़ा फँसा दिया। दीदी की चूत बहुत टाइट थी लेकिन वो इतना रस छोड़ रही थी कि चूत का रास्ता बिल्कुल चिकना हो चुका था।
जैसे ही मेरा लंड का सुपाड़ा दीदी की चूत में घुसा, दीदी उछल पड़ीं और चीखने लगीं- “मेरिई चूऊत फटीईईए जा रहिईई हैंईई निकाल अपना लंड रवि मेरी चूऊऊत से ईईए है मैं मर गईई मेरिईई चूऊऊओत फआआट गईई”
मैंने दीदी के होठों को चूमते हुए बोला- दीदी, बस हो गया और थोड़ी देर तक तकलीफ़ होगी और फिर मज़ा ही मजा है। लेकिन दीदी फिर भी गिड़गिड़ाती रही।
मैंने दीदी की कोई बात नहीं सुनी और उनकी चूचियों को अपने हाथों से मज़बूती से पकड़ते हुए एक और ज़ोरदार धक्का मारा और मेरा पूरा का पूरा लंड दीदी की चूत की में घुस गया। दीदी की चूत से खून की कुछ बूँद निकल पड़ीं।
मैं अपना पूरा लंड डालने के बाद चुपचाप दीदी के ऊपर लेटा रहा और दीदी की चूचियों को मसलता रहा। थोड़ी देर के बाद दीदी ने मेरे नीचे से अपनी कमर उठाना शुरू कर दी। मैं समझ गया कि दीदी की चूत का दर्द खत्म हो गया है और वो अब मुझसे खुल कर चुदवाना चाहती हैं।
मैंने भी धीरे से अपना लौड़ा थोड़ा सा बाहर खींचा और उसे फिर दीदी की चूत में हल्के झटके के साथ घुसेड़ दिया। दीदी की चूत ने मेरा लंड कस कर पकड़ रखा था और मुझे लंड को अंदर-बाहर करने में थोड़ी सी मेहनत करनी पड़ रही थी। लेकिन मैं भी नहीं रुका और धीरे-धीरे अपनी स्पीड बढ़ाना शुरू कर दी।
दीदी भी मेरे साथ-साथ अपनी कमर उठा-उठा कर मेरे हर धक्कों का जबाब बदस्तूर दे रही थी। मैं जान गया कि दीदी की चूत रगड़-रगड़ कर लंड खाना चाहती है। मैंने भी दीदी को अपनी बाहों में भर कर उनकी चूचियों को अपने मुँह में भर कर धीरे-धीरे लंड उठा-उठा करके धक्के मारना शुरू किया। अब मेरा लंड आसानी से दीदी की चूत में आ-जा रहा था।
दीदी भी अब मुझे अपने बाहों में भर करके चूमते हुए अपनी कमर उचका रही थी और बोल रही थी, “भाई, बहुत अच्छा लग रहा है और ज़ोर-ज़ोर से चोदो मुझे। मेरी चूत में कुछ चींटियाँ सी रेंग रही हैं। अपने लंड की रगड़ से मेरी खाज दूर कर दो। चोदो और ज़ोर-ज़ोर से चोदो मुझे।
मैं अब अपना लंड दीदी की चूत के अंदर डाल कर कुछ सुस्ताने लगा।
दीदी तबा मुझे चूमते हुए बोली- क्या हुआ, तू रुक क्यों गया? अब मेरी चूत की चुदाई पूरी कर और मुझे रगड़-रगड़ कर चोद करके मेरी चूत की प्यास बुझा रवि, मेरे जालिम भाई।
मैं बोला- चोदता हूँ दीदी। थोड़ा मुझे आपकी चूत में फँसे लौड़े का आनंद तो उठा लेने दो। अभी मैं तुम्हारी चूत चोद-चोद कर फाड़ता हूँ।
मेरी दीदी बोली- साले तुझे मजा लेने की पड़ी है, अभी तो तू मुझे जल्दी-जल्दी चोद। रवि, मैं मरी जा रही हूँ।
मैं उनकी बात सुन कर ज़ोर-ज़ोर से धक्के लगाने लगा और दीदी भी मुझे अपने हाथ और पैरों से जकड़ कर अपने चूतड़ उछाल-उछाल कर अपनी चूत चुदवाने लगी।
मैंने थोड़ी देर तक दीदी की चूत में अपना लंड पेलने के बाद दीदी से पूछा- कैसा लग रहा है, अपने छोटे भाई का लंड अपनी चूत में डलवा कर?
मैं अब दीदी से बिल्कुल खुल कर बातें कर रहा था। और उन्हें अपने लंड से छेड़ रहा था।
“रवि, यह काम हम लोगों ने बहुत ही बुरा किया। लेकिन मुझे अब बहुत अच्छा लग रहा है।” दीदी मुझे अपने सीने से चिपकाते हुए बोली।
थोड़ी देर के बाद मैं फिर से दीदी की चूत में अपना लंड तेज़ी से पेलने लगा। कुछ देर के बाद मुझे लग रहा था कि मैं अब झड़ने वाला हूँ। इसलिए मैंने अपना लंड दीदी की चूत से निकाल कर अपने हाथ से पकड़ लिया और पकड़े रखा।
मैंने दीदी से कहा- अपने मुँह में लोगी?
दीदी ने पहले कुछ सोचा फिर अपना मुँह खोल दिया। मैंने लौड़ा उनके मुँह में दे दिया और अपना वीर्य उनके मुँह में छोड़ दिया। दीदी ने मेरा माल अपने मुँह में भर लिया और उसको गुटक लिया। दीदी ने आसक्त भाव से मेरी तरफ देखा और मैंने अपने होंठ उनके होंठों से लगा दिए।
भाई बहन की इस चुदाई ने भले ही समाज की मर्यादाओं को भंग कर दिया हो, पर मेरी और मेरी दीदी की कामनाओं को तृप्त कर दिया था। अब दीदी मेरी दीवानी हो चुकी थी हम दोनों में कोई पर्दा नहीं था
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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मेरी दीदी का नाम संगीता है।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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(10-01-2019, 09:37 PM)neerathemall Wrote: [Image: 6gjw0H2s_o.jpg]

(10-12-2023, 08:22 PM)neerathemall Wrote:
मेरी दीदी का नाम संगीता है।

मेरी दीदी का नाम संगीता है। उसकी उमर क़रीब 26 साल है। दीदी मुझसे 5 साल बड़ी हैं। हम लोग एक मिडल-कलास फ़ैमिली है और एक छोटे से फ्लैट में मुंबई में रहते हैं।
हमारा घर में एक छोटा सा हाल, डायनिंग रूम दो बेडरूम और एक किचन है। बाथरूम एक ही था और उसको सभी लोग इस्तेमाल करते थे। हमारे पिताजी और माँ दोनों नौकरी करते हैं। दीदी मुझको रवि कह कर पुकारती हैं और मैं उनको दीदी कह कर पुकारता हूँ।
शुरू शुरू में मुझे सेक्स के बारे कुछ नहीं मालूम था क्योंकि मैं हाई स्कूल में पढ़ता था और हमारे बिल्डिंग में भी अच्छी मेरे उमर की कोई लड़की नहीं थी। इसलिए मैंने अभी तक सेक्स का मज़ा नहीं लिया था और ना ही मैंने अब तक कोई नंगी लड़की देखी थी। हाँ मैं कभी कभी पॉर्न मैगजीन में नंगी तस्वीर देख लिया करता था।
जब मुझे लड़कियों के तरफ़ और सेक्स के लिए इंटेरेस्ट होना शुरू हुआ। मेरे नज़रों के आसपास अगर कोई लड़की थी तो वो संगीता दीदी ही थी। दीदी की लंबाई क़रीब क़रीब मेरे तरह ही थी, उनका रंग बहुत गोरा था और उनका चेहरा और बोडी स्ट्रक्चर हिंदी सिनेमा के जीनत अमान जैसा था। हाँ उनकी चूचियाँ जीनत अमान जैसे बड़ी बड़ी नहीं थी।
मुझे अभी तक याद है कि मैंने अपना पहला मुठ मेरी दीदी के लिए ही मारा था। एक सन्डे सुबह सुबह जैसे ही मेरी दीदी बाथरूम से निकली मैं बाथरूम में घुस गया। मैंने बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया और अपने कपड़े खोलने शुरू किए। मुझे जोरो की पेशाब लगी थी। पेशाब करने के बाद मैं अपने लंड से खेलने लगा। एकाएक मेरी नज़र बाथरूम के किनारे दीदी के उतरे हुए कपड़ों पर पड़ी। वहाँ पर दीदी अपनी नाइटगाऊन उतार कर छोड़ गई थी। जैसे ही मैंने दीदी का नाइटगाऊन उठाया तो देखा कि नाइटगाऊन के नीचे दीदी की ब्रा पड़ी थी।
जैसे ही मैंने दीदी की काले रंग की ब्रा उठाई तो मेरा लंड अपने आप टाइट होने लगा। मैंने दीदी का नाइटगाऊन उठाया तो उसमें से दीदी के नीले रंग का पैंटी भी नीचे गिर गई। मैंने पैंटी भी उठा ली। अब मेरे एक हाथ में दीदी की पैंटी थी और दूसरे हाथ में दीदी की ब्रा थी।
ओह भगवान ! दीदी के अन्दर वाले कपड़े चूमने से ही कितना मज़ा आ रहा है यह वही ब्रा है जिसमें कुछ देर पहले दीदी की चूचियाँ जकड़ी हुई और यह वही पैंटी हैं जो कुछ देर पहले तक दीदी की चूत से लिपटी थी। यह सोच सोच करके मैं हैरान हो रहा था और अंदर ही अंदर गरमा रहा था। मैं सोच नहीं पा रहा था कि मैं दीदी की ब्रा और पैंटी को लेकर क्या करूँ।
मैंने दीदी की ब्रा और पैँटी को लेकर हर तरफ़ से छुआ, सूंघा, चाटा और पता नहीं क्या क्या किया। मैंने उन कपड़ों को अपने लंड पर मला, ब्रा को अपने छाती पर रखा। मैं अपने खड़े लंड के ऊपर दीदी की पैंटी को पहना और वो लंड के ऊपर तना हुआ था। फिर बाद में मैं दीदी की नाइटगाऊन को बाथरूम के दीवार के पास एक हैंगर पर टांग दिया। फिर कपड़े टांगने वाला पिन लेकर ब्रा को नाइटगाऊन के ऊपरी भाग में फँसा दिया और पैँटी को नाइटगाऊन के कमर के पास फँसा दिया।
अब ऐसा लग रहा था की दीदी बाथरूम में दीवार के सहारे ख़ड़ी हैं और मुझे अपनी ब्रा और पैँटी दिखा रही हैं। मैं झट जाकर दीदी के नाइटगाऊन से चिपक गया और उनकी ब्रा को चूसने लगा और मन ही मन सोचने लगा कि मैं दीदी की चुची चूस रहा हूँ। मैं अपना लंड को दीदी की पैँटी पर रगड़ने लगा और सोचने लगा कि मैं दीदी को चोद रहा हूँ।
मैं इतना गरम हो गया था कि मेरा लंड फूल कर पूरा का पूरा टनटना गया था और थोड़ी देर के बाद मेरे लंड ने पानी छोड़ दिया और मैं झड़ गया। मेरे लंड ने पहली बार अपना पानी छोड़ा था और मेरे पानी से दीदी की पैंटी और नाइटगाऊन भीग गया था। मुझे पता नहीं कि मेरे लंड ने कितना वीरज़ निकाला था लेकिन जो कुछ निकला था वो मेरे दीदी के नाम पर निकला था।
मेरा पहले पहले बार झड़ना इतना तेज़ था कि मेरे पैर जवाब दे गए, मैं पैरों पर ख़ड़ा नहीं हो पा रहा था और मैं चुपचाप बाथरूम के फ़र्श पर बैठ गया। थोड़ी देर के बाद मुझे होश आया तो मैं उठ कर नहाने लगा। शोवर के नीचे नहा कर मुझे कुछ ताज़गी महसूस हुई और मैं फ़्रेश हो गया। नहाने बाद मैं दीवार से दीदी की नाइटगाऊन, ब्रा और पैंटी उतारा और उसमें से अपना वीरज़ धोकर साफ़ किया और नीचे रख दिया।
उस दिन के बाद से मेरा यह मुठ मारने का तरीक़ा मेरा सबसे फ़ेवरेट हो गया। हाँ, मुझे इस तरह से मैं मारने का मौक़ा सिर्फ़ इतवार को ही मिलता था क्योंकि इतवार के दिन ही मैं दीदी के नहाने के बाद नहाता था। इतवार के दिन चुपचाप अपने बिस्तर पर पड़ा देखा करता था कि कब दीदी बाथरूम में घुसे और दीदी के बाथरूम में घुसते ही मैं उठ जाया करता था और जब दीदी बाथरूम से निकलती तो मैं बाथरूम में घुस जाया करता था।
मेरे मां और पिताजी सुबह सुबह उठ जाया करते थे और जब मैं उठता था तो मां रसोई के नाश्ता बनाती होती और पिताजी बाहर बाल्कोनी में बैठ कर अख़बार पढ़ते होते या बाज़ार गये होते कुछ ना कुछ समान ख़रीदने।
इतवार को छोड़ कर मैं जब भी मैं मारता तो तब यही सोचता कि मैं अपना लंड दीदी की रस भरी चूत में पेल रहा हूँ। शुरू शुरू में मैं यह सोचता था कि दीदी जब नंगी होंगी तो कैसा दिखेंगी? फिर मैं यह सोचने लगा कि दीदी की चूत चोदने में कैसा लगेगा। मैं कभी कभी सपने ने दीदी को नंगी करके चोदता था और जब मेरी आँख खुलती तो मेरा शॉर्ट भीगा हुआ होता था।
मैंने कभी भी अपना सोच और अपना सपने के बारे में किसी को भी नहीं बताया था और न ही दीदी को भी इसके बारे में जानने दिया. मैं अपनी स्कूल की पढाई ख़त्म करके कालेज जाने लगा। कॉलेज में मेरी कुछ गर्ल फ़रेंड भी हो गई। उन गर्ल फ़रेंड में से मैंने दो चार के साथ सेक्स का मज़ा भी लिया। मैं जब कोई गर्ल फ़रेंड के साथ चुदाई करता तो मैं उसको अपने दीदी के साथ कम्पेयर करता और मुझे कोई भी गर्ल फ़रेंड दीदी के बराबर नहीं लगती।
मैं बार बार यह कोशिश करता था मेरा दिमाग़ दीदी पर से हट जाए, लेकिन मेरा दिमाग़ घूम फिर कर दीदी पर ही आ जाता। मैं हमेशा 24 घंटे दीदी के बारे में और उसको चोदने के बारे में ही सोचता रहता। मैं जब भी घर पर होता तो दीदी तो ही देखता रहता, लेकिन इसकी जानकारी दीदी की नहीं थी। दीदी जब भी अपने कपड़े बदलती थी या मां के साथ घर के काम में हाथ बटाती थी तो मैं चुपके चुपके उन्हे देखा करता था और कभी कभी मुझे सुडोल भरे भरे चुची देखने को मिल जाती (ब्लाउज़ के ऊपर से) थी।
दीदी के साथ अपने छोटे से घर में रहने से मुझे कभी कभी बहुत फ़ायदा हुआ करता था। कभी मेरा हाथ उनके शरीर से टकरा जाता था। मैं दीदी के दो भरे भरे चुची और गोल गोल चूतड़ों को छूने के लिए मरा जा रहा था. मेरा सबसे अच्छा पास टाइम था अपने बालकोनी में खड़े हो कर सड़क पर देखना और जब दीदी पास होती तो धीरे धीरे उनकी चुचियों को छूना। हमारे घर की बाल्कोनी कुछ ऐसी थी की उसकी लम्बाई घर के सामने गली के बराबर में था और उसकी संकरी सी चौड़ाई के सहारे खड़े हो कर हम सड़क देख सकते थे। मैं जब भी बालकोनी पर खड़े होकर सड़क को देखता तो अपने हाथों को अपने सीने पर मोड़ कर बालकोनी की रेल्लिंग के सहारे ख़ड़ा रहता था।
कभी कभी दीदी आती तो मैं थोड़ा हट कर दीदी के लिए जगह बना देता और दीदी आकर अपने बगल ख़ड़ी हो जाती। मैं ऐसे घूम कर ख़ड़ा होता की दीदी को बिलकुल सट कर खड़ा होना पड़ता। दीदी की भारी भारी चुन्ची मेरे सीने से सट जाता था। मेरे हाथों की उंगलियाँ, जो की बाल्कोनी के रेल्लिंग के सहारे रहती वे दीदी के चूचियों से छु जाती थी।
मैं अपने उंगलियों को धीरे धीरे दीदी की चूचियों पर हल्के हल्के चलत था और दीदी को यह बात नहीं मालूम था। मैं उँगलियों से दीदी की चुन्ची को छू कर देखा की उनकी चूची कितना नरम और मुआयम है लेकिन फिर भी तनी तनी रहा करती हैं कभी कभी मैं दीदी के चूतड़ों को भी धीरे धीरे अपने हाथों से छूता था। मैं हमेशा ही दीदी की सेक्सी शरीर को इसी तरह से छू्ता था.
मैं समझता था की दीदी मेरे हाक्तों और मेरे इरादो से अनजान हैं दीदी इस बात का पता भी नहीं था की उनका छोटा भाई उनके नंगे शरीर को चाहता है और उनकी नंगी शरीर से खेलना चाहता है लेकिन मैं ग़लत था। फिर एक दीदी ने मुझे पकड़ लिया। उस दिन दीदी किचन में जा कर अपने कपरे बदल रही थी। हाल और किचन के बीच का पर्दा थोड़ा खुला हुआ था। दीदी दूसरी तरफ़ देख रही थी और अपनी कुर्ता उतार रही थी और उसकी ब्रा में छुपा हुआ चुची मेरे नज़रों के सामने था। फ़िर रोज़ के तरह मैं टी वी देख रहा था और दीदी को भी कंखिओं से देख रहा था।
दीदी ने तब एकाएक सामने वाले दीवार पर टंगा शीशे को देखा और मुझे आँखे फ़िरा फ़िरा कर घूरते हुए पाया। दीदी ने देखा की मैं उनकी चूचियों को घूर रहा हूँ। फिर एकाएक मेरे और दीदी की आँखे मिरर में टकरा गयी मैं शर्मा गया और अपने आँखे टी वी तरफ़ कर लिया।
मेरा दिल क्या धड़क रहा था। मैं समझ गया की दीदी जान गयी हैं की मैं उनकी चूचियों को घूर रहा था। अब दीदी क्या करेंगी? क्या दीदी मां और पिताजी को बता देंगी? क्या दीदी मुझसे नाराज़ होंगी? इसी तरह से हज़ारों प्रश्ना मेरे दिमाग़ में घूम रहा था। मैं दीदी के तरफ़ फिर से देखने का साहस जुटा नहीं पाया।
उस दिन सारा दिन और उसके बाद 2-3 दीनो तक मैं दीदी से दूर रहा, उनके तरफ़ नहीं देखा। इन 2-3 दीनो में कुछ नहीं हुआ। मैं ख़ुश हो गया और दीदी को फिर से घुरना चालू कर दिया। दीदी में मुझे 2-3 बार फिर घुरते हुए पकड़ लिया, लेकिन फिर भी कुछ नहीं बोली। मैं समझ गया की दीदी को मालूम हो चुका है मैं क्या चाहता हूँ ।ख़ैर जब तक दीदी को कोई एतराज़ नहीं तो मुझे क्या लेना देना और मैं मज़े से दीदी को घुरने लगा.
एक दिन मैं और दीदी अपने घर के बालकोनी में पहले जैसे खड़े थे। दीदी मेरे हाथों से सट कर ख़ड़ी थी और मैं अपने उँगलियों को दीदी के चूची पर हल्के हल्के चला रहा था। मुझे लगा की दीदी को शायद यह बात नहीं मालूम की मैं उनकी चूचियों पर अपनी उँगलियों को चला रहा हूँ। मुझे इस लिए लगा क्योंकी दीदी मुझसे फिर भी सट कर ख़ड़ी थी। लेकिन मैं यह तो समझ रहा थी क्योंकी दीदी ने पहले भी नहीं टोका था, तो अब भी कुछ नहीं बोलेंगी और मैं आराम से दीदी की चूचियों को छू सकता हूँ.
हमलोग अपने बालकोनी में खड़े थे और आपस में बातें कर रहे थे, हमलोग कालेज और स्पोर्ट्स के बारे में बाते कर रहे थे। हमारा बालकोनी के सामने एक गली था तो हमलोगों की बालकोनी में कुछ अंधेरा था. बाते करते करते दीदी मेरे उँगलियों को, जो उनकी चूची पर घूम रहा था, अपने हाथों से पकड़कर अपने चूची से हटा दिया। दीदी को अपने चूची पर मेरे उंगली का एहसास हो गया था और वो थोड़ी देर के लिए बात करना बंद कर दिया और उनकी शरीर कुछ अकड़ गयी लेकिन, दीदी अपने जगह से हिली नहीं और मेरे हाथो से सट कर खड़ी रही। दीदी ने मुझे से कुछ नहीं बोली तो मेरा हिम्मत बढ गया और मैं अपना पूरा का पूरा पंजा दीदी की एक मुलायम और गोल गोल चूची पर रख दिया।
मैं बहुत डर रहा था। पता नहीं दीदी क्या बोलेंगी? मेरा पूरा का पूरा शरीर कांप रहा था। लेकिन दीदी कुछ नहीं बोली। दीदी सिर्फ़ एक बार मुझे देखी और फिर सड़क पर देखने लगी। मैं भी दीदी की तरफ़ डर के मारे नहीं देख रहा था। मैं भी सड़क पर देख रहा था और अपना हाथ से दीदी की एक चूची को धीरे धीरे सहला रहा था। मैं पहले धीरे धीरे दीदी की एक चूची को सहला रहा था और फिर थोड़ी देर के बाद दीदी की एक मुलायम गोल गोल, नरम लेकिन तनी चूची को अपने हाथ से ज़ोर ज़ोर से मसलने लगा। दीदी की चूची काफ़ी बड़ी थे और मेरे पंजे में नहीं समा रही थी।
थोड़ी देर बाद मुझे दीदी की कुर्ता और ब्रा के उपर से लगा की चूची के निपपले तन गयी और मैं समझ गया की मेरे चूची मसलने से दीदी गरमा गयी हैं दीदी की कुर्ता और ब्रा के कपड़े बहुत ही महीन और मुलायम थी और उनके ऊपेर से मुझे दीदी की निपपले तनने के बाद दीदी की चूची छूने से मुझे जैसे स्वर्ग मिल गया था।
किसी जवान लड़की के चूची छूने का मेरा यह पहला अवसर था। मुझे पता ही नहीं चला की मैं कब तक दीदी की चूचियों को मसलता रहा। और दीदी ने भी मुझे एक बार के लिए मना नहीं किया। दीदी चुपचाप ख़ड़ी हो कर मुझसे अपना चूची मसलवाती रही। मेरे लंड का बुरा हाल था. वो तानकर स्टील की रोड जैसा हो चूका था.
दीदी की चूची मसलते मसलते मेरा लंड धीरे धीरे ख़ड़ा होने लगा था। मुझे बहुत मज़ा आ रहा था लेकिन एकाएक मां की आवाज़ सुनाई दी। मां की आवाज़ सुनते ही दीदी ने धीरे से मेरा हाथ अपने चूची से हटा दिया और मां के पास चली गयी उस रात मैं सो नहीं पाया, मैं सारी रात दीदी की मुलायम मुलायम चूची के बारे में सोचता रहा.
दूसरे दिन शाम को मैं रोज़ की तरह अपने बालकोनी में खड़ा था। थोड़ी देर के बाद दीदी बालकोनी में आई और मेरे बगल में ख़ड़ी हो गयी मैं 2-3 मिनट तक चुपचाप ख़ड़ा दीदी की तरफ़ देखता रहा। दीदी ने मेरे तरफ़ देखी। मैं धीरे से मुस्कुरा दिया, लेकिन दीदी नहीं मुस्कुराई और चुपचाप सड़क पर देखने लगी।
मैं दीदी से धीरे से बोला- छूना है, मैं साफ़ साफ़ दीदी से कुछ नहीं कह पा रहा था। और पास आ दीदी ने पूछा – क्या छूना चाहते हो? साफ़ साफ़ दीदी ने फिर मुझसे पूछी।
तब मैं धीरे से दीदी से बोला, तुम्हारी दूध छूना दीदी ने तब मुझसे तपाक से बोली, क्या छूना है साफ़ साफ़ बोल... मैं तब दीदी से मुस्कुरा कर बोला, तुम्हारी चूची छूना है उनको मसलना है। अभी मां आ सकती है दीदी ने तब मुस्कुरा कर बोली।
मैं भी तब मुस्कुरा कर अपनी दीदी से बोला, जब मां आएगी हमें पता चल जायेगा मेरे बातों को सुन कर दीदी कुछ नहीं बोली और चुपचाप नज़दीक आ कर ख़ड़ी हो गयी, लेकिन उनकी चूची कल की तरह मेरे हाथों से नहीं छू रहा था।
मैं समझ गया की दीदी आज मेरे से सट कर ख़ड़ी होने से कुछ शर्मा रही है अबतक दीदी अनजाने में मुझसे सट कर ख़ड़ी होती थी। लेकिन आज जान बुझ कर मुझसे सट कर ख़ड़ी होने से वो शर्मा रही है क्योंकी आज दीदी को मालूम था की सट कर ख़ड़ी होने से क्या होगा।
जैसे दीदी पास आ गयी और अपने हाथों से दीदी को और पास खीच लिया। अब दीदी की चूची मेरे हाथों को कल की तरह छू रही थी। मैंने अपना हाथ दीदी की चूची पर टिका दिया। दीदी के चूची छूने के साथ ही मैं मानो स्वर्ग पर पहुँच गया। मैं दीदी की चूची को पहले धीरे धीरे छुआ, फिर उन्हे कस कस कर मसला। कल की तरह, आज भी दीदी का कुर्ता और उसके नीचे ब्रा बहुत महीन कपड़े का था, और उनमे से मुझे दीदी की निपपले तन कर खड़े होना मालूम चल रहा था। मैं तब अपने एक उंगली और अंगूठे से दीदी की निपपले को ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा।
मैं जितने बार दीदी की निपपले को दबा रहा था, उतने बार दीदी कसमसा रही थी और दीदी का मुँह शरम के मारे लाल हो रहा था। तब दीदी ने मुझसे धीरे से बोली, धीरे दबा, लगता मैं तब धीरे धीरे करने लगा.
मैं और दीदी ऐसे ही फाल्तू बातें कर रहे थे और देखने वाले को एही दिखता की मैं और दीदी कुछ गंभीर बातों पर बहस कर रहे रथे। लेकिन असल में मैं दीदी की चुचियोंको अपने हाथों से कभी धीरे धीरे और कभी ज़ोर ज़ोर से मसल रहा था। थोड़ी देर मां ने दीदी को बुला लिया और दीदी चली गयी ऐसे ही 2-3 दिन तक चलता रहा।
मैं रोज़ दीदी की सिर्फ़ एक चूची को मसल पाता था। लेकिन असल में मैं दीदी को दोनो चुचियों को अपने दोनो हाथों से पाकर कर मसलना चाहता था। लेकिन बालकोनी में खड़े हो कर यह मुमकिन नहीं था। मैं दो दिन तक इसके बारे में सोचता रहा.
एक दिन शाम को मैं हाल में बैठ कर टी वी देख रहा था। मां और दीदी किचन में डिनर की तैयारी कर रही थी। कुछ देर के बाद दीदी काम ख़तम करके हाल में आ कर बिस्तर पर बैठ गयी दीदी ने थॉरी देर तक टी वी देखी और फिर अख़बार उठा कर पढने लगी। दीदी बिस्तर पर पालथी मार कर बैठी थी और अख़बार अपने सामने उठा कर पढ रही थी। मेरा पैर दीदी को छू रहा था। मैंने अपना पैरों को और थोड़ा सा आगे खिसका दिया और और अब मेरा पैर दीदी की जांघो को छू रहा था।
मैं दीदी की पीठ को देख रहा था। दीदी आज एक काले रंग का झीना टी शर्ट पहने हुई थी और मुझे दीदी की काले रंग का ब्रा भी दिख रहा था। मैं धीरे से अपना एक हाथ दीदी की पीठ पर रखा और टी शर्ट के उपर से दीदी की पीठ पर चलाने लगा। जैसे मेरा हाथ दीदी की पीठ को छुआ दीदी की शरीर अकड़ गया।
दीदी ने तब दबी जवान से मुझसे पूछी, यह तुम क्या कर रहे हो तुम पागल तो नहीं हो गये मां अभी हम दोनो तो किचन से देख लेगी”, दीदी ने दबी जवान से फिर मुझसे बोली। “मा कैसे देख लेगी?” मैंने दीदी से कहा। “क्या मतलब है तुम्हारा? दीदी ने पूछी। “मेरा मतलब यह है की तुम्हारे सामने अख़बार खुली हुई है अगर मां हमारी तरफ़ देखेगी तो उनको अख़बार दिखलाई देगी.” मैंने दीदी से धीरे से कहा। “तू बहुत स्मार्ट और शैतान है दीदी ने धीरे से मुझसे बोली.
फिर दीदी चुप हो गयी और अपने सामने अख़बार को फैला कर अख़बार पढने लगी। मैं भी चुपचाप अपना हाथ दीदी के दाहिने बगल के ऊपेर नीचे किया और फिर थोड़ा सा झुक कर मैं अपना हाथ दीदी की दाहिने चूची पर रख दिया। जैसे ही मैं अपना हाथ दीदी के दाहिने चूची पर रखा दीदी कांप गयी मैं भी तब इत्मिनान से दीदी की दाहिने वाली चूची अपने हाथ से मसलने लगा।
थॉरी देर दाहिना चूची मसलने के बाद मैं अपना दूसरा हाथ से दीदी बाईं तरफ़ वाली चूची पाकर लिया और दोनो हाथों से दीदी की दोनो चूचियों को एक साथ मसलने लगा। दीदी कुछ नहीं बोली और वो चुप चाप अपने सामने अख़बार फैलाए अख़बार पढ्ती रही। मैं दीदी की टी शर्ट को पीछे से उठाने लगा। दीदी की टी शर्ट दीदी के चूतड़ों के नीचे दबी थी और इसलिए वो ऊपेर नहीं उठ रही थी। मैं ज़ोर लगाया लेकिन कोई फ़ैदा नहीं हुआ। दीदी को मेरे दिमाग़ की बात पता चल गया। दीदी झुक कर के अपना चूतड़ को उठा दिया और मैंने उनका टी शर्ट धीरे से उठा दिया। अब मैं फिर से दीदी के पीठ पर अपना ऊपेर नीचे घूमना शुरू कर दिया और फिर अपना हाथ टी शर्ट के अंदर कर दिया। वो! क्या चिकना पीठ था दीदी का।
मैं धीरे धीरे दीदी की पीठ पर से उनका टी शर्ट पूरा का पूरा उठ दिया और दीदी की पीठ नंगी कर दिया। अब अपने हाथ को दीदी की पीठ पर ब्रा के ऊपेर घूमना शुरू किया। जैसे ही मैंने ब्रा को छुआ दीदी कांपने लगी।
फिर मैं धीरे से अपने हाथ को ब्रा के सहारे सहारे बगल के नीचे से आगे की तरफ़ बढा दिया। फिर मैं दीदी की दोनो चुचियों को अपने हाथ में पकड़ लिया और ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा। दीदी की निपपले इस समय तनी तनी थी और मुझे उसे अपने उँगलेओं से दबाने में मज़ा आ रहा था। मैं तब आराम से दीदी की दोनो चूचियों को अपने हाथों से दबाने लगा और कभी कभी निपपल खिचने लगा.
मा अभी भी किचन में खाना पका रही थी। हम लोगों को मां साफ़ साफ़ किचन में काम करते दिखलाई दे रही थी। मैं यह सोच सोच कर खुश हो रहा की दीदी कैसे मुझे अपनी चुचियों से खेलने दे रही है और वो भी तब जब मां घर में मौजूद हैं। मैं तब अपना एक हाथ फिर से दीदी के पीठ पर ब्रा के हूक तक ले आया और धीरे धीरे दीदी की ब्रा की हूक को खोलने लगा।
दीदी की ब्रा बहुत टाईट थी और इसलिए ब्रा का हूक आसानी से नहीं खुल रहा था। लेकिन जब तक दीदी को यह पता चलता मैं उनकी ब्रा की हूक खोल रहा हूँ, ब्रा की हूक खुल गया और ब्रा की स्ट्रप उनकी बगल तक पहुँच गया।
दीदी अपना सर घुमा कर मुझसे कुछ कहने वाली थी की मां किचन में से हाल में आ गयी मैं जल्दी से अपना हाथ खींच कर दीदी की टी शर्ट नीचे कर दिया और हाथ से टी शर्ट को ठीक कर दिया। मां हल में आ कर कुछ ले रही थी और दीदी से बातें कर रही थी। दीदी भी बिना सर उठाए अपनी नज़र अख़बार पर रखते हुए मां से बाते कर रही थी। मां को हमारे कारनामो का पता नहीं चला और फिर से किचन में चली गयी
जब मां चली गयी तो दीदी ने दबी ज़बान से मुझसे बोली, सोनू, मेरी ब्रा की हूक को लगा “क्या? मैं यह हूक नहीं लगा पाउंगा,” मैं दीदी से बोला
। “क्यों, तू हूक खोल सकता है और लगा नहीं सकता? दीदी मुझे झिड़कते हुए बोली। “नही, यह बात नहीं है दीदी। तुम्हारा ब्रा बहुत टाईट है !” मैं फिर दीदी से कहा।
दीदी अख़बार पढते हुए बोली, मुझे कुछ नहीं पता, तुमने ब्रा खोला है और अब तुम ही इसे लगाओगे.” दीदी नाराज़ होती बोली।
“लेकिन दीदी, ब्रा की हूक को तुम भी तो लगा सकती हो?” मैं दीदी से पूछा। ” बुधू, मैं नहीं लगा सकता, मुझे हूक लगाने के लिए अपने हाथ पीछे करने पड़ेंगे और मां देख लेंगी तो उन्हे पता चल जाएगा की हम लोग क्या कर रहे थी, दीदी मुझसे बोली.
मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था की मैं क्या करूँ। मैं अपना हाथ दीदी के टी शर्ट नीचे से दोनो बगल से बढा दिया और ब्रा के स्ट्रप को खीचने लगा। जब स्ट्रप थोड़ा आगे आया तो मैंने हूक लगाने की कोशिश करने लगा। लेकिन ब्रा बहुत ही टाईट था और मुझसे हूक नहीं लग रहा था। मैं बार बार कोशिश कर रहा था और बार बार मां की तरफ़ देख रहा था।
मां ने रात का खाना क़रीब क़रीब पका लिया था और वो कभी भी किचन से आ सकती थी। दीदी मुझसे बोली, यह अख़बार पकड़। अब मुझे ही ब्रा के स्ट्रप को लगाना परेगा.” मैं बगल से हाथ निकल कर दीदी के सामने अख़बार पाकर लिया और दीदी अपनी हाथ पीछे करके ब्रा की हूक को लगाने लगी.
मैं पीछे से ब्रा का हूक लगाना देख रहा था। ब्रा इतनी टाईट थी की दीदी को भी हूक लगाने में दिक्कत हो रही थी। आख़िर कर दीदी ने अपनी ब्रा की हूक को लगा लिया। जैसे ही दीदी ने ब्रा की हूक लगा कर अपने हाथ सामने किया मां कमरे में फिर से आ गयी मां बिस्तर पर बैठ कर दीदी से बातें करने लगी। मैं उठ कर टोइलेट की तरफ़ चल दिया, क्योंकी मेरा लंड बहुत गरम हो चुका था और मुझे उसे ठंडा करना था.
दूसरे दिन जब मैं और दीदी बालकोनी पर खड़े थे तो दीदी मुझसे बोली, हम कल रत क़रीब क़रीब पकड़ लिए गये थे। मुझे बहुत शरम आ रही मुझे पता है और मैं कल रात की बात से शर्मिंदा हूँ। तुम्हारी ब्रा इतना टाईट थी की मुझसे उसकी हूक नहीं लगा” मैंने दीदी से कहा।
दीदी तब मुझसे बोली, मुझे भी बहुत दिक्कत हो रही थी और मुझे अपने हाथ पीछे करके ब्रा की स्ट्रप लगाने में बहुत शरम आ रही दीदी, तुम अपनी ब्रा रोज़ कैसे लगती मैंने दीदी से धीरे से पूछा। दीदी बोली, हूमलोग फिर दीदी समझ गयी की मैं दीदी से मज़ाक कर रहा हूँ तब बोली, तू बाद में अपने आप समझ जाएगा.
फिर मैंने दीदी से धीरे से कहा, मैं तुमसे एक बात कहूं? हाँ -दीदी तपाक से बोली.


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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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