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पुरानी हिन्दी की मशहूर कहनियाँ
फिर में उसके लंड के ऊपर झुक गई और मैंने तुरंत ही उसका पूरा लंड अपने मुँह में ले लिया, करीब दस मिनट तक उसके लंड को चूसने के बाद में उसके ऊपर लेट गई और उसको पागलों की तरह चूमने लगी। अब उसने मुझे अपनी बाहों में भरकर पल्टी मारी और अब वो मेरे ऊपर आ गया, उसके बाद मुझे चूमते हुए उसने मेरे कपड़े निकालना शुरू किया। अब में कुछ ही देर में उसके सामने बिल्कुल नंगी लेटी हुई थी, उसने नीचे से ऊपर तक मुझे चूमा और मैंने भी पूरे जोश के साथ उसका साथ दिया। दोस्तों हम दोनों उस समय इतने उत्तेजित हो चुके थे कि पूरे बिस्तर पर एक दूसरे से नाग-नागिन की तरह लिपट रहे थे और यहाँ वहाँ पल्टी मार रहे थे, कभी में उसके ऊपर, तो कभी वो मेरे ऊपर आ जाता। अब हम दोनों भूखे शेर की तरह एक दूसरे को खा जाने के लिए बेताब थे, उसी समय मैंने उसको कहा कि बस तुम मुझे और मत तरसाओ, प्लीज अब डाल भी दो इसको अंदर और यह कहते हुए मैंने बड़ी ही बेरहमी से उसका लंड पकड़कर अपनी चूत में बहुत ज़ोर से रगड़ दिया। फिर वो उस दर्द की वजह से कराह उठा, उसके लंड के साथ-साथ उसके आंड भी उस समय मेरी मुठ्ठी में आ चुके थे। फिर उसने मेरे हाथ से अपना लंड छुड़ाया और मेरे दोनों पैर अपने दोनों हाथों से पकड़कर मेरे सर की तरफ मोड़ दिए, जिसकी वजह से नीचे से मेरी गांड ऊपर उठ चुकी थी
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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अब वो घुटनों के बल बैठा हुआ था और उसने अपनी जांघो पर मेरी गांड को रखकर अपने लंड की सीध में मेरी चूत को लाकर मेरी चूत में अपना लंड डाल दिया और एक ही जोरदार झटके में पूरा अंदर कर दिया। अब में उस तेज प्रहार की वजह से चीख पड़ी, उस समय मेरी आंखे बंद थी और मैंने अपने दोनों हाथों से उसके बाजु पकड़े हुए थे। दोस्तों उस दर्द कि वजह से अब उसका लंड अंदर जाते ही मेरे नाख़ून उसकी बाहों पर गड़ गये थे और उसकी बाहों से खून निकलने लगा था, लेकिन उसने उसकी बिल्कुल भी परवाह नहीं कि और उसने अपनी गति को पहले से ज्यादा बढ़ा दिया था। फिर करीब दस मिनट तक एक ही गति में वो मुझे चोदता रहा, मुझे कुछ परेशानी होने लगी थी और इसलिए मैंने उसको कुछ देर रुकने के लिए कहा। अब वो रुक गया और मैंने अपने दोनों पैर उसके हाथों से छुड़ाकर सीधे कर लिए, पैर सीधे होते ही मुझे कुछ राहत मिली। फिर कुछ देर रुककर मैंने थोड़ा ऊपर उठकर उसकी गर्दन को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया और एक ही झटके से उठकर उसकी गोद में बैठ गई। दोस्तों उसका लंड अभी भी मेरी चूत में था, मैंने उसको पीछे की तरफ धक्का दिया जिसकी वजह से वो लेट गया। अब में उसके ऊपर थी और में उसको चोद रही थी और बहुत ज़ोर-ज़ोर से अपनी कमर को आगे पीछे कर रही थी कि तभी आचनक से मैंने अपनी गति को बढ़ा दिया
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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अब मेरे मुँह से चीख निकल रही थी और अब में ज़ोर-ज़ोर से अपनी कमर को हिलाते हुए पागलों की तरह चिल्लाने लगी थी और अपनी कमर को ज़ोर-ज़ोर से हिलाती रही, हिलाती रही और हिलाती ही रही और फिर एक ज़ोरदार झटके के साथ में चिल्ला पड़ी और फिर एकदम से रुक गई। फिर कुछ देर के बाद में एकदम निढाल होकर उसके ऊपर धड़ाम से गिर गई और अब मेरी साँसे बहुत तेज गति से चल रही थी। अब उसके लंड की हालत तो खराब हो चुकी थी, उसने प्यार से मेरे सर पर अपना हाथ फैरा और मुझे चूमा, में उस समय बिल्कुल लाश की तरह उसके ऊपर करीब पांच मिनट तक वैसे ही पड़ी रही। फिर थोड़ी देर के बाद में सामान्य हुई तब अपने हाथों के सहारे थोड़ा ऊपर उठी, में बहुत खुश थी और मुस्कुरा रही थी। अब मैंने उसको प्यार से चूमा, लेकिन उसकी आग अभी शांत होना बाकी थी और मैंने देखा कि उसका लंड खंबे की तरह मेरी चूत के अंदर अभी भी आग को उगल रहा था। तभी में एकदम से खड़ी हो गई, मेरी चूत का बहुत सारा पानी उसके लंड के चारों तरफ फैल गया था। अब वो मेरे दोनों पैरों के बीच में पड़ा था, में बिस्तर से नीचे आ गई और बाथरूम में चली गई और वो वैसे ही पलंग पर पड़ा रहा।
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फिर बाथरूम से वापस बाहर आकर मैंने अपनी साड़ी के पल्लू से उसका लंड और आसपास की जगह को साफ किया, उस समय हम दोनों ही पसीने में तर हो चुके थे। फिर वो भी उठकर बैठ गया और अब हम दोनों ही कूलर के बिल्कुल पास जाकर खड़े हो गये, मैंने उसकी छाती पर अपना एक हाथ रखा और फिर उसकी छाती को चूमते हुए अपना सर रखकर चिपककर खड़ी हो गई। अब उसने भी मुझे प्यार किया और अपनी बाहों में भरकर खड़ा रहा, कुछ देर के बाद हमारी गरमी कुछ कम हुई और तब हम लोग दोबारा से बिस्तर पर आ गये। अब तक में एक बार फिर से चुदने के लिए तैयार हो चुकी थी, उसने इस बार मुझे कुतिया की तरह होने को कहा और मैंने खुश होकर तुरंत ही अपनी गांड को उसकी तरफ कर दिया। अब उसने मेरी गांड में अपना लंड डालना चाहा, लेकिन मैंने उसको ऐसा करने से साफ मना कर दिया। फिर मैंने नीचे से अपना एक हाथ डालकर उसका लंड पकड़ा और अपनी चूत में डाल लिया, तब उसने मुझे चोदना शुरू किया और फिर अपने धक्कों की गति को बढ़ा दिया और गति को इतना बढ़ाया कि उसको वजह से पलंग आवाज करने लगा था। अब में दर्द उन तेज धक्कों की वजह से चिल्लाने लगी थी, लेकिन अब वो कहाँ मेरी बात को मानने वाला था? वो बहुत देर से अपने पर काबू करके बैठा था।
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फिर करीब बीस मिनट तक एक ही गति से वो मुझे चोदता रहा और मेरी बड़ी गांड जो अब भी उसके सामने थी, जिसको देखकर उसको अब और भी जोश आ रहा था। अब में उसको बोली कि प्लीज अब तुम छोड़ दो, प्लीज क्या आज तुम मेरी जान ही निकाल दोगे? वो कहने लगा कि हाँ ठीक है और अपनी तेज गति से धक्के मार मारकर उसने मेरी चूत में अपना वीर्य छोड़ दिया था। अब मेरा मन तो कर रहा था कि सूरज रातभर मुझे ऐसे ही चोदता रहे, लेकिन मुझे दर्द की वजह से बड़ी परेशानी हो रही थी। अब मेरी चूत बड़े दिनों की उस चुदाई की वजह से सूज चुकी थी, वो मेरे ऊपर ही ढेर हो गया। फिर कुछ देर के बाद हम दोनों उठे और बाथरूम से वापस आकर हम दोनों ने अपने अपने कपड़े पहने और अब में बड़ी खुश थी। फिर मैंने उसको कहा कि आज पहली बार मुझे इतना मज़ा आया है, में तुम्हें कभी नहीं भूल पाऊँगी और फिर मैंने उसका माथा चूमा, लेकिन अब सूरज कुछ गुमसुम सा था। अब मैंने उसको पूछा कि क्या हुआ? तब वो बोला कि मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा है दीदी, आप और में बहन-भाई है और हमारे बीच यह सब।



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फिर मैंने उसको कहा कि तो क्या हुआ सूरज? हम भाई-बहन होने के पहले एक औरत और मर्द भी है और यह सेक्स सभी की एक बहुत बड़ी जरूरत होती है और जहाँ तक मेरी बात है, सूरज मेरे भाई तुझे तो तेरे जीजाजी की बीमारी के बारे में तो पता ही है, वो मुझे सेक्स का पूरा सुख नहीं दे सकते है, वो कुछ देर करते है और ढेर हो जाते है जिसकी वजह से मेरी यह आग ज्यादा ही भड़क उठती है। अब तुम ही बताओ कि में इस आग को कहाँ जाकर बुझाऊँ? में पिछले आठ सालों से सेक्स के लिए तड़प रही थी और अब यदि में अपनी इस सेक्स की आग को बुझाने के लिए कहीं बाहर किसी पराए मर्द का सहारा लूँ, तो उसकी वजह से बदनामी का डर और बीमारी का भी डर रहेगा और फिर इससे तो अच्छा है कि में अपने इस भाई से ही अपनी इस सेक्स की प्यास को बुझा लूँ। अब मुझे कोई बदनामी का भी डर नहीं रहेगा और घर की बात घर में ही रहेगी और अब तू ही मुझे बता कि तुझे यह क्या अच्छा लगेगा कि में बाहर किसी पराए मर्द के साथ सेक्स करूँ बोलो? फिर वो कुछ देर तक तो खामोश ही रहा और फिर मुस्कुराकर वो मुझसे लिपट गया। दोस्तों यह थी मेरी सच्ची चुदाई की घटना अपने ही भाई के साथ जिसका हम दोनों ने पूरा पूरा साथ देकर बड़ा मज़ा उठाया ।
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Heart दीदी और मेरी चुदाई कि दास्तान Heart
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banana दीदी और मेरी चुदाई कि दास्तान banana






Heart

















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Heart दीदी और मेरी चुदाई कि दास्तान Heart


यह मेरी आज की कहानी मेरे और मेरी बहन के बीच की एक सच्ची घटना है जिसमे आज में आप सभी को बताने जा रहा हूँ कि कैसे मैंने अपनी बहन को चोदा? और ना सिर्फ चोदा, बल्कि उनको एक अनमोल उपहार भी दिया, वो अनमोल उपहार है एक बेटी, जो कि मेरी है और में अपनी बेटी से बहुत प्यार करता हूँ। मेरी बहन का नाम सपना है, उसकी उम्र 26 साल है, वो दिखने में एक बहुत सुंदर लगती है और अब उसकी शादी हो चुकी है। दोस्तों वैसे तो मेरी बहन पर मेरी बुरी नियत शुरू से ही थी, मेरा उस पर मन कैसे खराब हुआ? यह आज में आप भी को बताने जा रहा हूँ। दोस्तों उन दिनों में 12वीं क्लास में था, तो किसी कारण से उस दिन मेरे स्कूल में जल्दी छुट्टी हो गई और उस दिन में अपने घर जल्दी आ गया। फिर जब में अपने घर पहुँचा तब मैंने देखा कि मेरे पापा ऑफिस जा चुके थे और माँ भी घर में नहीं थी।


फिर मैंने अपनी दीदी से पूछा कि माँ कहाँ है? तब दीदी मुझसे कहने लगी कि माँ पड़ोस में गई है, उनके यहाँ कोई पूजा है जिसकी वजह से वो देर से घर आएगी। फिर मैंने उनको कहा कि ठीक है और फिर में अपने कमरे में बैठकर पढ़ाई करने लगा था। दोस्तों हमारे घर में बाथरूम नहीं था और उन दिनों हम सभी लोग बाहर आंगन में हेडपंप के पास ही बैठकर नहाते थे। फिर जब माँ और दीदी नहाने जाती थी, तब वो कमरे का दरवाज़ा बाहर से बंद कर देती थी। फिर जब में उस दिन पढ़ाई कर रहा था, तब दीदी मुझसे कहने लगी कि राज में नहाने जा रही हूँ, तुम पढ़ाई करो में तब तक दरवाज़ा बाहर से बंद कर देती हूँ। अब मैंने उनको कहा कि हाँ ठीक है और फिर दीदी इतना मुझसे कहकर बाहर चली गई और उन्होंने मेरे कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया, लेकिन उस दिन गलती से कमरे का दरवाजा ठीक से बंद नहीं हुआ था। फिर उनके बंद करते ही दरवाज़ा थोड़ा सा खुल गया था, लेकिन उसके ऊपर दीदी ने ध्यान नहीं दिया। अब दीदी नहाने के लिए बैठ गई, तभी अचानक से मेरी नजर उन पर पड़ी तो मैंने देखा कि दीदी नहाने के लिए अपने कपड़े उतार रही है। अब में दीदी को देखकर एकदम चकित रह गया था और में अपनी चकित नजरों से लगातार उन्हें घूरकर देखता ही रहा।

दोस्तों ज्यादातर समय दीदी घर में टॉप और स्कर्ट ही पहनती है। फिर मैंने दीदी को देखा, तो वो उस समय अपना टॉप उतार रही थी और अब मेरे देखते देखते उन्होंने अपनी स्कर्ट को भी उतार दिया था। अब उस वजह से दीदी सिर्फ ब्रा-पेंटी में थी, में तो दीदी को पहली बार उस हालत में देखता ही रह गया था और में बड़ा चकित था क्योंकि मैंने उनका वो रूप पहली बार देखा था। फिर दीदी ने कुछ देर बाद अपनी ब्रा-पेंटी को भी उतार दिया और नहाने लगी और वो पूरी तरह से नंगी होकर अब नहाने लगी थी और अपने बदन पर साबुन लगाते हुए अपने बूब्स को दबा रही थी। अब में वो सब देखकर बड़ा ही गरम उत्तेजित हो गया, दीदी करीब दस मिनट तक वैसे ही अपने बदन को दबाकर रगड़ते हुए नहाती रही और में उनके नंगे बदन को घूरकर देखता रहा और फिर उसके बाद दीदी कपड़े पहनकर कमरे में आ गई। दोस्तों उस दिन वो द्रश्य देखने के बाद से मेरी नियत दीदी के लिए बड़ी खराब हो चुकी थी और फिर जब भी मुझे कोई अच्छा मौका मिलता, तब में उन्हें नंगा देखने की कोशिश करने लगा था। दोस्तों हमारे घर में बस दो ही कमरे है तो एक कमरे में मेरी माँ-पापा सोते थे और दूसरे कमरे में मेरी दीदी और में सोता था। अब मेरे कमरे में बड़ा पलंग होने की वजह से हम दोनों एक साथ ही उसी पर सोते थे।

फिर एक रात को मैंने सही मौका पाकर देर रात को सोते हुए दीदी के जिस्म से खेलना शुरू कर दिया, लेकिन उनकी तरफ से मुझे कोई भी हलचल महसूस नहीं हुई जिसकी वजह से मेरी हिम्मत पहले से भी ज्यादा अब बढ़ चुकी थी। अब जब भी वो रात में सोती थी, तब में मौका पाकर उनके बूब्स को दबाता और उसकी स्कर्ट के अंदर अपना एक हाथ डालकर उनकी पेंटी के ऊपर से ही दीदी की चूत से खेलने लगा था। फिर कुछ दिन जब कुछ नहीं हुआ तो मेरी हिम्मत अब ज्यादा ही बढ़ गई और में अपना हाथ उनके कपड़ो के अंदर डालने लगा था और उनके बूब्स और चूत से खेलने लगा था, लेकिन दीदी को कभी ना कभी तो पता चलना ही था। एक दिन में पकड़ा गया, में उस समय बहुत डर गया था और में अपनी दीदी के आगे बड़ा गिड़गिड़ाया उनको कहने लगा कि प्लीज दीदी आप माँ-पापा से कुछ भी मत कहना। अब वो मेरा कहा मान तो गई, लेकिन साथ में उन्होंने मुझे धमकी भी दे दी कि अगर अगली बार से मैंने ऐसा कुछ किया, तो वो मेरी कोई भी बात नहीं सुनेगी और माँ-पापा को मेरी सभी हरकतों के बारे में जरुर बता देगी। फिर मैंने उनको कहा कि हाँ ठीक है मुझे आपकी हर बात मंजूर है, ऐसा दोबारा कभी नहीं होगा, लेकिन इस बार आप मेरी गलती को माफ कर दो।
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फिर दिन ऐसे ही बीतने लगे थे, अब मैंने वो सब काम तो छोड़ दिए थे, लेकिन उनको चोदने की इच्छा तो मेरे मन अब भी थी और वो मेरे मन से बिना चुदाई किए नहीं जाने वाली थी। फिर जब वो 24 साल की हुई तब उनकी शादी हो गई और वो अपने ससुराल चली गई और फिर उसके बाद से ही मेरे अच्छे दिन शुरू हो गये। फिर शादी के बाद जब पहली बार दीदी मेरे घर आई, तब दीदी बहुत सुंदर लग रही थी। फिर रात को जब हम सोने गये, तब पता नहीं मेरे मन में क्या हुआ? मैंने फिर से उनके बदन को छूना शुरू किया। अब वो उस साड़ी में ही सो रही थी, तब मेरा हाथ उनकी पतली गोरी चिकनी कमर पर चला गया। फिर उसी समय मैंने दीदी के मुँह से हल्की सी आह की आवाज सुनी और मुझे थोड़ा अजीब सा लगा, लेकिन फिर मेरी उससे आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं हुई। फिर अगली सुबह मेरी कुछ जल्दी ही आंख खुल गई, तब मैंने पाया कि दीदी मुझसे चिपकी हुई थी और उनका पैर मेरे ऊपर था और उनकी साड़ी घुटनों तक ऊपर उठी हुई थी और उनका हाथ मेरी पेंट के ऊपर से मेरे लंड को पकड़े हुए था।

अब मुझे यह सब देखकर बहुत अच्छा लगा, तब मैंने भी अपनी तरफ से थोड़ी बदमाशी करने का विचार बना लिया और फिर मैंने उनका हाथ पहले तो अपने लंड पर से हटा दिया और फिर मैंने अपनी पेंट को खोला और थोड़ी नीचे करके और अपना अंडरवियर भी थोड़ा सा नीचे सरका लिया जिसकी वजह से मेरा लंड अब बिल्कुल फ्री होकर आजाद हो गया था। फिर मैंने दीदी का हाथ अपने नंगे लंड पर रखा और धीरे-धीरे दीदी के ब्लाउज के सारे बटन खोल दिए, तब मैंने देखा कि वो अंदर काले रंग की ब्रा पहने हुए थी। अब में वैसे ही लेटा रहा, जब थोड़ी देर के बाद दीदी की आँख खुली तब शायद वो एकदम चकित रह गई। फिर मैंने डर की वजह से अपनी आंख नहीं खोली, लेकिन मुझे इतना जरूर लगा था कि वो थोड़ी सी हड़बड़ा जरुर गई है। फिर मैंने कुछ देर बाद अपनी आँख थोड़ी सी खोली तब मैंने देखा कि दीदी अपने ब्लाउज के बटन बंद कर रही थी, मैंने फिर से अपनी आँख को बंद कर लिया। अब दीदी ने मेरे लंड को मेरे अंडरवियर में छुपाया और वो तुरंत उठकर कमरे से बाहर चली गई। दोस्तों हम हर रात को सोते समय अंदर से कमरे का दरवाजा बंद करके सोते है इस वजह से किसी को कुछ पता नहीं चला था।
फिर थोड़ी देर के बाद में भी उठा, लेकिन अब मुझे बहुत डर लग रहा था कि बाहर पता नहीं क्या हो रहा होगा? कहीं दीदी माँ से तो वो सभी बातें नहीं बोल देगी? फिर थोड़ी देर तक में वैसे ही बैठा सोचता रहा। फिर थोड़ी देर के बाद दीदी मेरे लिए चाय लेकर मेरे कमरे में आ गई और उन्होंने मुझे चाय दे दी, वो मुझसे कुछ नहीं बोली थी, लेकिन उस समय वो बहुत शांत ना जाने किस सोचा विचारी में लगी हुई थी। अब मेरी तो हालत धीरे धीरे खराब हो रही थी और में चाय पीने के बाद अपने कमरे से बाहर आ गया, मैंने देखा कि पापा अपने ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रहे थे और माँ अपने कामों में लगी थी और दीदी भी शांत लगने की कोशिश कर रही थी, लेकिन शायद उसके दिमाग में वही सब घूम रहा था। फिर उन्होंने किसी से इस बात को नहीं कहा और वो दिन ऐसे ही निकल गया। फिर उस रात को जब हम सोने गये, तब दीदी अपनी उसी पुराने कपड़ो में थी जिसको वो शादी से पहले हमेशा पहना करती थी, वो टॉप-स्कर्ट में मेरे सामने थी। अब मुझे यह देखकर बहुत अच्छा लगा कि चलो आज शायद बहुत दिनों के बाद मज़े करने का मौका मिलेगा।
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फिर रात इसी तरह से गुज़रने लगी थी और थोड़ी देर के बाद में अचानक से उठा, दीदी ने मुझसे पूछा क्या हुआ? तब मैंने कहा कि कुछ नहीं, में जरा पेंट बदलकर अभी आता हूँ, में थोड़ा अजीब सा महसूस कर रहा हूँ। अब दीदी ने कहा कि रोज तो तुम ऐसे ही सोते हो, तो आज क्या समस्या है?

मैंने कहा कि सुबह मेरे पैर में चोट लगी थी, फिर दीदी बोली कि हाँ ठीक है, तुम जाकर लुंगी पहन लो में उनकी वो बात सुनकर बड़ा खुश हो गया और तुरंत ही कपड़े बदलकर आ गया। अब मैंने अपनी पेंट के साथ-साथ अपनी अंडरवियर को भी उतार दिया था और फिर हम दोनों सो गये। फिर रात में मैंने महसूस किया कि दीदी का हाथ एक मेरी लुंगी के ऊपर से ही मेरे लंड पर था, तब मैंने अपनी लुंगी को पूरी खोलकर अलग कर दिया और में नीचे से पूरा नंगा हो गया। अब मेरा लंड कुतुबमीनार की तरह खड़ा हो गया था, मैंने ऊपर भी कुछ नहीं पहना था और अब में पूरी तरह से नंगा था। फिर मैंने दीदी का एक हाथ अपने लंड पर रखा और उसके टॉप के बटन खोलने लगा। तभी दीदी थोड़ी हिली और मेरा लंड ज़ोर से पकड़ लिया उसके बाद वो मुझसे और भी ज्यादा चिपक गई अपने होंठ मेरे बहुत पास ले आई ।
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उस समय में बहुत जोश में आकर गरम हो चुका था, लेकिन में फिर भी बहुत काबू कर रहा था, मैंने किसी तरह दीदी के टॉप का बटन खोल दिया। अब उस वजह से मेरे सामने उनकी ब्रा में कैद उनके वो गोलमटोल गोरे बूब्स तुरंत बाहर आ गए और उनके बूब्स ब्रा में बहुत मस्त लग रहे थे। फिर मैंने किसी तरह से उनका स्कर्ट ऊपर किया, जिसकी वजह से मुझे उनकी पेंटी दिखने लगी थी और में उसी हालत में सो गया। फिर सुबह मेरी आँख देर से खुली तब मैंने देखा कि दीदी जाग चुकी थी और कमरे से बाहर चली गई, उन्होंने कमरे का दरवाज़ा लगाया हुआ था और मै नंगा ही सोया हुआ था। फिर उस दिन भी कुछ नहीं हुआ और वो दिन भी ऐसे ही निकल गया और उस रात को जब में सोने आया, तब दीदी मुझे बड़ी ही अजीब सी नजरों से देख रही थी, शायद उन्हें शक हो गया था कि रात को वो सब में करता हूँ। फिर उस रात को मैंने कुछ नहीं करने की बात अपने मन में सोची, उस दिन भी में सिर्फ लुंगी में था और जैसा कि मैंने सोचा था कि दीदी सोने का नाटक करने लगी थी, लेकिन उस रात को मैंने कुछ नहीं किया, लेकिन में सारी रात सो भी नहीं सका था।
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फिर किसी तरह से रात कट गई और अगली सुबह मुझे दीदी शांत लगी, शायद उन्हें शक था कि उनके साथ रात में वो सब में करता हूँ, जो अब उनके मन से दूर हो गया था। फिर उस दिन पापा के ऑफिस चले जाने के बाद माँ भी पड़ोस में चली गई और उस समय घर में मेरे और दीदी के अलावा और कोई नहीं था। अब दीदी ने मुझसे कहा कि राज तुम जाकर नहा लो, मैंने उनसे कहा कि दीदी अभी नहीं पहले आप नहा लो, उसके बाद में नहा लूँगा। तभी दीदी ने अचानक से मुझसे कहा कि ठीक है चलो, आज हम दोनों साथ में ही नहाते है। अब में उनके मुहं से यह बात सुनकर तो में बहुत चकित होने के साथ ही बड़ा खुश भी हुआ, लेकिन मैंने भाव खाते हुए उनसे कहा कि दीदी यह आप क्या बोल रही हो? आप मेरी दीदी हो, में आपके साथ कैसे नहा सकता हूँ? तभी दीदी कहने लगी क्यों? नहाने में क्या बुराई है? तब मैंने कहा कि कुछ नहीं। अब दीदी बोली कि देखो माँ आ जाएगी तो उनके आने से पहले चलो नहा लिया जाए, नहीं तो हमे यह मौका दोबारा नहीं मिलने वाला। फिर मैंने उनको कहा कि हाँ ठीक है चलो हम आज साथ में नहा ही लेते है। अब में और दीदी आंगन में हेडपंप के पास जाकर बैठ गये, दीदी ने मुझसे कहा कि तुम अपनी लुंगी को उतार दो।


फिर मैंने उनसे कहा कि मैंने अंदर कुछ नहीं पहना है, वो मुस्कुराने लगी और बोली कि जा अंदर जाकर अपनी अंडरवियर पहन ले। फिर में अंदर गया और अपनी अंडरवियर को पहनकर वापस आ गया और उस समय में दीदी के सामने सिर्फ अंडरवियर में ही था। फिर मैंने भी दीदी से कहा कि दीदी आप भी अपने कपड़े उतार दो, दीदी मुस्कुराते हुए बोली कि नहीं, में ऐसे ही नहाऊँगी। अब में उनको कुछ नहीं बोला, और हम दोनों नहाने लगे, दीदी अब मेरे ऊपर पानी डालकर मुझे साबुन लगाने लगी थी, जिसकी वजह से मुझे अब बहुत मज़ा आ रहा था। फिर मैंने भी उन पर पानी डाल दिया, तभी दीदी मेरे ऊपर बड़े ही प्यार से चिल्लाई, राज क्या कर रहे हो? मैंने कहा कि अपनी दीदी से प्यार। अब दीदी के गीले होने की वजह से उनकी ब्रा मुझे साफ-साफ नजर आ रही थी। फिर उस दिन उससे ज्यादा कुछ नहीं हुआ। फिर शाम को पापा आए और बोले कि उन्हें ऑफिस के काम से हमारे शहर से कहीं बाहर जाना है और उसी समय मैंने कहा कि माँ आप भी पापा के साथ जाकर घूम आए।
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अब पापा मेरी वो बात मान गये, लेकिन माँ बोली कि तो घर पर कौन रहेगा? तब मैंने कहा कि में और दीदी है ना और बस 15 दिन की ही तो बात है, उसी में क्या हो जाएगा? आखरी में माँ भी मान गई और फिर माँ-पापा चले गये।

फिर उस रात को जब दीदी और में सो रहे थे तब मैंने महसूस किया कि दीदी मेरे लंड से खेल रही है, मुझे बहुत अच्छा लगा। फिर थोड़ी देर तक खेलने के बाद दीदी ने मेरी पेंट के अंदर अपना एक हाथ डाल दिया और वो मुझसे चिपक गई। अब मैंने भी अच्छा मौका देखकर अपने होंठ दीदी के होंठो से लगा दिए और में चूसने लगा। फिर दीदी ने भी कुछ नहीं कहा और फिर हम दोनों पागलों की तरह एक दूसरे को प्यार करते रहे और करीब 15 मिनट तक हम एक दूसरे को पागलों की तरह चूमते रहे और फिर थोड़ी देर के बाद हम अलग हुए, तब हमने पहली बार एक दूसरे को देखा और बड़ी ज़ोर से हँसे। दोस्तों तब मैंने एक बार फिर से बड़ी ज़ोर से दीदी के होंठो को चूसा और उनसे कहा कि दीदी में आपको बहुत प्यार करता हूँ। तभी दीदी भी मुझसे बोली कि हाँ राज में भी तुमसे बहुत प्यार करती हूँ। फिर दीदी मुझसे बोली कि राज तुम खुश तो हो ना?
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अब मैंने कहा कि हाँ दीदी में बहुत खुश हूँ, लेकिन दीदी क्या में आपको? तो दीदी बोली कि बोलना पागल, शरमाता क्या है? तब मैंने कहा कि दीदी क्या में आपको एक बार नंगी देख सकता हूँ। अब दीदी ने मेरे होंठो पर एक मस्त जबरदस्त चुम्मा किया और वो बोली कि मेरे भाई आज हमारी सुहागरात शुरू होने वाली है, मुझे नंगा देखना तो क्या? तुम जितना जी चाहे मुझे चोदना, लेकिन तुम नहाकर तैयार हो जाओ में कुछ कपड़े देती हूँ तुम वो पहन लो और में भी थोड़ी देर में तैयार होकर अभी आती हूँ, लेकिन तब तक इंतजार करो। फिर मैंने कहा कि हाँ ठीक है, दीदी नहाने चली गई और नहाकर माँ के कमरे में घुस गई, में भी नहाकर कमरे में आया, देखा वहाँ कुर्ता पजामा रखा हुआ था, जिसको अब मैंने पहन लिया था। फिर थोड़ी देर के बाद दीदी ने मुझे माँ के कमरे में पुकारा, फिर जब में वहाँ गया तब मैंने देखा कि दीदी पलंग पर बैठी हुई थी। फिर मैंने वो कमरा अंदर से बंद किया और में उनके पास चला गया, दीदी ने मुझे पीने के लिए एक दूध का गिलास दिया और वो मेरे कान में बोली कि आज में सिर्फ तुम्हारी हूँ, तुम मेरे साथ जो भी करना चाहो करो, में कुछ नहीं बोलूँगी।
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अब में दीदी के पास बैठ गया और , उसके बाद मैंने उनकी साड़ी को भी उतार दिया और अब दीदी शरमाकर अपना सर झुकाकर खड़ी थी। फिर मैंने दीदी के शरीर से उनके ब्लाउज और पेटीकोट को अलग किया, जिसकी वजह से दीदी सिर्फ ब्रा-पेंटी में थी। अब दीदी ने कहा कि सिर्फ मेरे कपड़े ही खोलोगे, अपने भी तो उतारो, तब मैंने उनको कहा कि क्यों? तुम खुद ही निकाल लो। फिर दीदी ने मुझे भी नंगा किया और मैंने उनके बदन से बाकी बचे हुए कपड़े भी अलग कर दिए। अब हम दोनों भाई-बहन बिल्कुल नंगे एक दूसरे के सामने खड़े थे, हम दोनों एक दूसरे से चिपक गये और अब हमारे सारे अंग एक दूसर से चिपके हुए थे हमारे होंठ छाती मेरा लंड और उनकी चूत सब कुछ। फिर थोड़ी देर तक चूमने के बाद हम अलग हुए और फिर मैंने दीदी को अपनी गोद में उठाया और पलंग पर लेटा दिया और में उनके बूब्स को चूसने लगा। अब दीदी सिसकियाँ लेने लगी थी वो आहह्ह्ह ऊफ्फ्फ्फ़ राज चूसो और ज़ोर से ऊफफफ्फ चूस भाई चूस ऊहह्ह्ह माँ। फिर करीब बीस मिनट तक उनके एक बूब्स को चूसने के बाद मैंने उनके दूसरे बूब्स पर अटैक किया और उसको भी बहुत मज़े से चूसा ।
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फिर मेरा अगला निशाना मेरी दीदी की चूत बनी और मैंने जैसे ही अपने होंठ दीदी की रसीली चूत पर रखे तभी उसी समय दीदी चिल्ला उठी आहह्ह्ह। अब में उसको चाटने लगा था और उनकी चूत के अंदर अपनी जीभ को डालने लगा था, अब दीदी भी मेरा सर पकड़कर अपनी चूत पर दबाने लगी थी और अपना सर इधर उधर पटक रही थी और चिल्ला रही थी आह्ह्ह हाँ चाट ऊह्ह्ह बहनचोद और ज़ोर से चाट बिल्कुल रंडी बना दे अपनी बहन को। फिर करीब बीस मिनट तक चाटने के बाद दीदी का अमृत निकल गया और मैंने जीवन में पहली बार यह अमृत पीया है और वो भी अपनी दीदी का। फिर दीदी बहुत खुश हुई और मुझे ऊपर खींचकर मेरे होंठो को चूसने लगी और बोली कि कैसा लगा अपनी बहन की चूत को चाटकर और उसका अमृत पीकर? मैंने कहा कि में यह अमृत रोज पीना चाहता हूँ। अब दीदी ने कहा कि हाँ-हाँ यह तुम्हारे लिए ही तो है, जब दिल करे इसको पी लेना। फिर दीदी ने मुझसे कहा कि अब तुम लेट जाओ मुझे भी आईसक्रीम खानी है, मैंने कहा कि हाँ-हाँ क्यों नहीं? फिर दीदी ने मेरे लंड को अपने मुँह में ले लिया। अब मैंने कहा कि आह्ह्ह चूसो और चूसो फिर करीब 15-20 मिनट तक अपने लंड को चुसवाने के बाद मैंने कहा कि आह्ह्ह दीदी में आ रहा हूँ उह्ह्ह्ह और फिर मेरा भी अमृत दीदी के मुँह में ही निकल गया।

फिर जब मेरा अमृत इतना ज्यादा निकला था कि दीदी का मुँह पूरा भर गया और कुछ बाहर उनके बूब्स पर भी गिरा था, जिसको वो उठाकर पी गई थी। फिर हम एक दूसरे को चूमने लगे थे और करीब 25-30 मिनट तक हम ऐसे ही लेटे रहे, थोड़ी देर के बाद दीदी बोली कि चलो अब घोड़े दौड़ाने का वक़्त आ गया है। अब मैंने कहा कि हाँ मैदान भी गीला है, बड़ा मज़ा आएगा और फिर हम दोनों हँसने लगे थे। फिर में उठा और दीदी की चूत को निशाना बनाकर अपना लंड उसमें डालने लगा, दीदी की चूत बहुत टाईट थी। अब मुझे यह थोड़ा सा अजीब लगा, मैंने दीदी से कहा कि दीदी जीजाजी से चुदने के बाद भी तुम्हारी चूत इतनी टाईट कैसे है? तब दीदी ने बताया कि उनका लंड बहुत छोटा है और फिर मैंने अपने लंड को उनकी चूत पर रखकर एक ज़ोरदार धक्का लगा दिया जिसकी वजह से मेरा आधा लंड अब उनकी चूत में जा चुका था। अब दीदी दर्द की वजह से चिल्ला उठी, तब मैंने अपने होंठ उनके होंठो पर रखे और फिर थोड़ी देर के बाद उनसे पूछा कि क्या हुआ? क्या में रुक जाऊं?
अब मैंने देखा कि दीदी की चूत से खून आ रहा था, लेकिन तब भी उन्होंने मुझसे कहा कि मैंने रुकने को कहा क्या? अब मैंने फिर से एक धक्का लगा दिया, जिसकी वजह से मेरा पूरा लंड उनकी चूत में चला गया और अब दीदी आहहह ऊहहहहह कर रही थी। फिर मैंने धक्के देना शुरू किया और फिर में करीब बीस मिनट तक उन्हें वैसे ही धक्के देकर चोदता रहा। अब इस दौरान दीदी तीन बार झड़ चुकी थी, मैंने कहा कि दीदी में भी आ रहा हूँ, दीदी ने कहा कि अंदर ही निकाल दो, थोड़ी देर के बाद में भी उनकी चूत में ही झड़ गया। अब जब में झड़ रहा था, तब दीदी मुझे ज़ोर से पकड़े हुए थी और बोली कि आह्ह्ह क्या मस्त एहसास है अपने भाई का अमृत लेने का? वाह मज़ा आ गया तुमने आज मुझे एक पूरी औरत बनने का सुख वो मज़ा आज पहली बार दिया है, जिसके लिए में कितनी और ना जाने कितने दिनों से तरस रही थी। इसी तरह से हमारे दिन निकलते चले गये और में उन्हें हर समय जब भी हमे मौका मिलता में उनकी चुदाई करने लगा था।
अब में दीदी को रोजाना दिन में दो बार चोदता और हर बार वो भी मेरा पूरा पूरा साथ देकर मेरे साथ बड़े मज़े करती फिर कुछ दिनों के बाद माँ-पापा आ गये, तब हम रात में चुदाई करते थे। फिर कुछ दिनों के बाद दीदी भी अपने ससुराल चली गई, एक महीने के बाद दीदी का फोन आया। अब वो मुझसे बोली कि राज तुम बाप बनने वाले हो और यह बात सुनकर में बहुत खुश हुआ। फिर कुछ महीने निकल जाने के बाद दीदी ने एक बेटी जो जन्म दिया, जो बिल्कुल मेरे जैसी है।


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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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banana मुँह बोली बहन की चुदाई banana






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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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ये आज से लगभग 2 साल पहले की बात है, मेरे गावं (इंदौर शहर से 120 किलोमीटर की दूरी पर है) में मेरे घर के सामने एक घर है, जहाँ 6 फेमिली मेम्बर्स रहते है, उस घर में लगभग एक 50 साल की औरत है, जो घर की मुखिया है, जिन्हें हम सभी बुआजी कहते है। उनके एक बेटी और एक बेटा है, उनके बेटे के दो लड़के है एक 4 साल का और एक 9 साल का है। बुआजी की बेटी का नाम सुनीता है, उसकी उम्र 26 साल थी और में तब 21 साल का था। सुनीता की शादी हो चुकी थी, लेकिन एक बदनामी के कारण उसके पति ने उसे छोड़ दिया था।


अब वो अपनी माँ के घर ही रहती थी, हमारा घर आमने सामने था, तो वो हमारे घर आती जाती रहती थी। में उसे सुन्नी दीदी कहकर बुलाता था, मेरे मन में उसके लिए कभी कोई ग़लत विचार नहीं थे, हम आपस में फ्रेंक बातें करते थे। लेकिन मैंने कभी सोचा नहीं था कि ऐसा भी हो जाएगा,


अब में बताता हूँ कि कैसे हम दोनों में सेक्स हुआ? एक दिन की बात है में बुआजी के घर था और उनके छोटे पोते के साथ मस्ती कर रहा था, इतने में सुन्नी भी वहाँ आ गई और हमारे साथ मस्ती करने लगी। अब मस्ती करते-करते में खंबे के पीछे छुप गया, तो वो भी मेरे पीछे छुपने आ गई। अब मैंने खंबे को सामने से पकड़ा हुआ था, तो वो उल्टी आकर उसने मेरी पीठ से अपनी पीठ लगाकर खड़ी हो गई, जिससे उसके दोनों बड़े-बड़े नितंब मेरे कूल्हों को टच कर रहे थे और वो मस्ती में अपने चूतड़ो को मेरे कूल्हों पर रब कर रही थी। अब मुझे अजीब सी फिलिंग होने लगी थी, अब में समझ गया था कि ये मुझसे चुदवाना चाहती है, लेकिन में बहुत शर्मीला था तो में कुछ कर नहीं पाया।
अब मेरा उसे देखने का नज़रिया बदलने लगा था, अब में उसके बारे में सोच-सोचकर रोज मुठ मारने लगा था। अब सुन्नी भी मुझे अलग नज़र से देखती थी, लेकिन में डरपोक था अब मेरी उससे कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई थी। फिर एक दिन शाम के तकरीबन 8 बजे की बात है में, मेरे अंकल का लड़का, और सुनीता तीनों पड़ोस की एक भाभी के घर पर बैठे थे, जब सर्दियों का मौसम था तो सोने के लिए भाभी ने पहले से ही बिस्तर लगा रखे थे। अब में और मेरे अंकल का लड़का एक पलंग पर बैठे थे और सुनीता दूसरे पलंग पर लेटी हुई थी। क्योंकि हम लोग एक दूसरे से काफ़ी फ्रेंक थे, तो में उठकर सुनीता के पलंग पर चला गया। अब हम दोनों चादर ओढ़कर लेटे-लेटे बातें करने लगे थे।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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