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Adultery स्लीपर बस में मां के साथ एक सफर (complete)
#1
एक घटना जो मेरी आंखों के पलकों के सामने हमेशा तैरती रहती है। में हमेशा सोचता रहता था की क्या ये मेरी बुरी यादें है या अच्छी क्यू की उस याद में मेरा भी कुछ था ऐसा जो में निर्णय नही कर पाया । 



में लाडग्राम से संबंधित रखता था । ना शहर ना गांव एक भीड़ भाड़ वाली जगह । जिसमे सब्जी मंडी हो रेशन की बाजार लोगो के पेड़ रखने की भी जगह नहीं होती थी । में उस गली महोल्लों में चेल चपाती कर के बड़ा हुआ था । हमारे घर के पास एक पड़ोसी था । जिसने एक खूबसूरत लड़की थी नैना । हम साथ साथ स्कूल में पढ़े लेकिन हमारा कॉलेज अलग अलग हो गई वो चली गई कानून पढ़ने और चला हमारी कला विभाग में । लेकिन फिर भी मैंने उसका पीछा नही छोड़ा उसको पता के ही दम लिया । दिल से ईश्क हो गया था तो उसके साथ शादी बच्चे एक सुखी संसार बनाने का सपना देखा था । वो भी मुझे चाहती थी पटाते पटाते वो भी मेरे प्यार में पट गई थी । अब जवानी में लड़को की सलामी देना और लड़कियों की किट किट होती ही है। एक दिन उसी सक्कर में मेरी लगभग कफन निकल ही चुकी थी । 



उसके घर में वो और उसकी पिताजी थे जो बाजार में अच्छा खासी बिक्री की होलसेल दुकान चलाता था । उसकी मां बचपन में ही मर गई थी । हा कुछ दो साल पहले उसकी बीन बियाही मासी उसके घर पे पनाह ले रह रही थी । ऐसे तो उसके घर में जब चाहे आना जाना था लेकिन एक दिन दोपहर को नैना की रूम में डांडिया खेल रहे थे । पता नही उसके बाप को कैसे पता चला हमे पकड़ लिया और मेरी जो पिटाई हुई चार टांगो पे किसी तरह घर पर आया दर्द से कराहते कराहते। मुझे तो लगा था की अब मेरी बलि चढ़ने वाली हैं लेकिन नैना की पिताजी ने किसी को कुछ नही बताया लेकिन नैना को पिता बोहोत । 




खेर कहानी ये नही कहानी ये है। एक दिन फोन आया की मम्मी को उसके मायके मे दोनो मामा यानी मम्मी के एक छोटे और एक बड़े भाई जमीन के लिए लड़ रहे हे। तो मम्मी को तुरंत जाना था अपनी मायके । मेरे बाबा जो कोई बार मेरी मम्मी के दोनो भाई से लड़ाई कर के आए थे । तो बाबा तो मम्मी के साथ जा नही सकता एक दादी थी जो चारपाई पे ही हमेशा लेटा था । आखिर में मुझे ही जाना पड़ा मम्मी के साथ । 




शाम को बास की दो टिकते बुक की अगले सुबह हम बस्टेंट से मम्मी की मायके मालारंग जाने की लिए हमने बस पकड़ी । 800 किलोमीटर दूर देर दो दिन का सफर होने वाला था । हमने लास्ट में टिकेत ली तो हमे सबसे लास्ट वाला केबिन मिला । जिसमे ट्रेनों की तरह ही चार बर्थ यानी चार लंबी सीट मिलती थी दो ऊपर और दो नीचे । हमारी सीट एक साइट थी एक ऊपर एक नीचे । हम दोनो बैठे बस चलने के लिए हॉर्न बजाने लगे । 



मम्मी बोली " अरे लगता है सामने वाली सीट पर कोई नही आने वाला हे। अच्छा पेड़ लंबी कर के चलूंगी "



" हां अच्छा है में इस सीट पर बैठता हूं मुझे भी ऊपर चढ़ना नहीं पड़ेगा ।" में भी सामने वाली सीट पर बैठ गया 



लेकिन तभी एक आदमी केबिन का दरवाजा खोल के अंदर आया मम्मी और में सोक गए । मेरे मन में आया ये यहां क्या कर रहा हे।



लेकिन मम्मी के होठों पे मुस्कुराहट थी " अरे राशन भाई साहब आप " 




सामने नैना के पिताजी खड़े थे । लग गए मेरे अब में पूरी सफर चूहा बंद के मुंह छुपाता चलना पड़ेगा । कहा से आ गए  ये श्राप। नैना की पिताजी को देखते ही मुझे लाठी की पिटाई याद आ जाती है। 




"अरे रीता भाभी आप । ओह साथ में लोद्दु भी हैं " नैना की पिताजी रोशन अंकल ने सरप्राईज रिएक्शन दिया । 



लोद्दू मेरा निक नेम है वैसे मेरा नाम आयुष हे। लेकिन बचपन में गोलमोटोल था तो पड़ गया लोद्दू नाम । 




" आप यहां कैसे " मम्मी भी सरप्राईज थी ।


" अरे वो में मालारांग जा रहा हूं । वोहा मेरा ससुराल है कुछ काम के लिए जाना पड़ रहा हे " रोशन अंकल बोला ।



फिर क्या था मम्मी की पड़ोसी से अच्छी जमती थी । लग भाग रोज आना जाना ही रहता था । अच्छी घर वालों जैसा ही माहोल था । मम्मी को भी गप्पे लड़ाने में कोई मिल गया । लेकिन में चूहा बंद कर रह गया । 



रोशन अंकल मेरा पीठ थपथपा के बोला " और लोद्दु पढ़ाई कैसी चल रही हे। कुछ दिनों से हमारे घर आए नही । " 



में फीकी मुस्कान देता हूं और मेरी जवाब मम्मी देती है " मत पूछो भाई साहब इस नालायक को । पढ़ाई में मन नहीं इसका कंप्यूटर गेम और घूमने फिरने में मन हे इसका । बिगड़ गया है " 



रोशन अंकल हस के बोला " अरे भाभी यही तो उम्र होती हे बच्चो की मस्ती करने की " और मेरे कान में बोला " पिटाई की चोट ठीक हुए की नही । अब भी दर्द करता है क्या बेटा " 



रोशन अंकल की कुटिल मुस्कान ने मेरा अंतरिया जला रहा था । सफर शुरू हो चुकी थी मम्मी और रोशन अंकल बातों में मगन हसी मजाक चल रही थी । कुछ देर खामोश भी हो जाते दोनो फिर चालू करते बाते । ऐसे ही चल रहा था लेकिन मेरा हर एक पल बड़ी बेचैनी से काट रहा था ।




दोपहर 3 बजे बास एक घंटे के लिए रुकी एक बड़ी ढाबे पे। तब रोशन अंकल ने हमे अच्छी खाना खिलाया । और जब हम बास पर चढ़ रहे थे तो रोशन अंकल बहाने से मुझे बास के पीछे ले गया । में दर गया साला यहां भी मुझे कूट ना दे । 




लेकिन रोशन अंकल इधर उधर देख कर मुझसे बोला " बेटा तू इतना बुरा लड़का भी नहीं हे। लेकिन बाप हूं एक बेटी का । उस दिन के लिए मुझे माफ कर देना "



इससे ज्यादा खुशी और मुझे क्या हो सकती है। फिर भी में शर्मा कर बोला " कोई बात नही अंकल ने समझता हूं "



रोशन अंकल बोले " लेकिन बेटा कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है । तू चाहता हे ना में तेरी शादी अपनी बेटी नैना से करवाऊं । हा चाहता हे ना "


अब इतना भी गधा नही था । में समझ गया की ये व्यापारी दिमाग वाला आदमी कुछ ले दे के ही मामला सुलताएगा लेकिन में इस सोच में पड़ गया की हम तो लड़के वाले है और ये हमसे दहेज लेगा । 



रोशन अंकल फिर पूछा " चाहता हे की नहीं"


" हा " और में सर हिलाया ।


तो रोशन अंकल एकदम गंभीर हो गए " देख बेटा मेरी बीवी को मरे हुए 10 साल हो गए हे। तू भी एक मर्द हे तू समझ सकता है ना की में कैसे अकेले जी रहा हूं । कितने दुख में जी रहा हूं " 


में समझ नही पा रहा था की रोशन अंकल ये सब मुझे क्यू बोल रहे हे और उसकी आखों में नसमझने वाली नजरों से देख रहा था । 


" देख बेटा तू समझ रहा हे ना में क्या कह रहा हूं " रोशन अंकल बड़े बेचैन लग रहे थे । 


मे ना में सर हिलाया । 


रोशन अंकल थोड़ा झुलझुलाता हुआ मेरा बाल पकड़ के जकड़ दिया " नालायक मेरी बेटी की कमरे में घुस सकता है लेकिन एक रोंडुवा की आपबीती समझ नही आती तुझे "


में दर के मारे " सॉरी सॉरी अंकल सॉरी " 



रोशन अंकल शांत हो कर बोले " अच्छा सॉरी । साफ साफ सुन । में तेरी शादी नैना से करवाऊंगा वादा करता हूं लेकिन बदले में मुझे तेरी मम्मी चाहिए " 



" मम्मी " में समझ नही पाया 



" हां। में तेरी मम्मी के साथ संबंध बनानूंगा इसलिए तो यहां तुम लोगो के साथ आया हूं । बास की दो टिकट ली ताकि चौथा कोई हमारे साथ ना हो " रोशन अंकल बोले 



और मुझे सारा माजरा समझ आ गया और ये भी समझ आ गया की रोशन अंकल किस किस्म का इंसान है। साला हरामी मेरी मम्मी के साथ सोने के लिए अपनी बेटी को मेरे साथ शादी करने को तैयार है जो कुछ दिन पहले अपने बेटी की आशिक को पीट पीट कर अधमरा कर दिया था । लेकिन मेरे मन में भी लालच थी । आखिर नैना से में सच्चा प्यार करता था मुझे पता था उसकी जैसी पढ़ी लिखी और नेहायती खूबसूरत लड़की दूसरी मिलेगी नही मुझे । भले ही में अमीर खानदान से था लेकिन में कोई डॉक्टर इंजीनियर तो बनने नही वाला था जो मुझे परी मिलती । और जिस जगह पर में रहता था हम जैसे थर्डक्लास के पढ़े लोगो को खूबसूरत पढ़ी लिखी मिलती भी नही। में सोच में पड़ गया एक तरफ मेरी जन्म देने वाली मम्मी की आबरू और एक तरफ मेरा प्यार जो मेरी जिंदगी खुशाल कर देगी ।



" क्या सोच रहा हे जल्दी बोल बेटा । वरना नैना कभी नही मिलेगी " रोशन अंकल ने मुझे लालच दिया ।



और पूरी तरह सोच विचार नही कर पाया लेकिन जुबान पे आया की " क्या गारंटी है की आप नैना से मेरी शादी करवाओगे "



रोशन अंकल हस के बोला " तू अभी नैना से पूछ की में तुम दोनो की शादी के लिए राज़ी हुआ की नही" 



में भी नैना से तुरंत फोन लगाता हूं और नैना से पूछा तो नैना भी खुशी खुशी बता देती है उसके पापा मान गए है। लेकिन नैना को नही पता था की उसके पापा क्यू मान गए हे। 


में फोन रख के रोशन अंकल की तरफ देखने लगा और में फैसला नही ले पा रहा था की क्या करू अब में । अगर नैना का बाप नही होता तो यहीं साले की दात तोड़ देता । लेकिन नैना । वोही अब फसाद की जड़ बन गई ।



रोशन अंकल एक कागज की बैग से एक बॉक्स निकाल कर मुझे देता हे और फिर दूसरा बॉक्स निकाल कर देता है " ले ये आईफोन और ये हेड फोन और भी कुछ चाहिए तो मांग दिल खोल के । वैसे भी मेरी एक लौटी बेटी हे शादी के बाद मेरी दौलत तो सब तुम्हारे ही होने वाले है" 



अब भाई इंसान हूं थोड़ी लालच तो थी । नैना के पिताजी के एक मिडिल क्लास आदमी की तरह धन दौलत के मालिक थे । मेरे बाबा थे आयुर्वेद का डॉक्टर तो हम भी मिडिल क्लास टिप तोप लोग थे लेकिन अगर नैना के पिताजी की दौलत मिल जाए तो मुझे इतनी अच्छी नौकरी की मारा मारी नही करना पड़ेगा । 



" जल्दी बोल बेटा बस जाने वाली हे" रोशन अंकल उतावला हो रहा था । 


" फिर भी अगर आप मुकर गए तो " में बोला 


रोशन अंकल एक गोरा कागज निकल कर उसपे अपना सिग्नेचर और अंगूठा शाप दे कर मुझे कागज दे कर बोला " ये ले ब्लैक पेपर पे मेरा सिग्नेचर और स्टांप भी । तू इसमें जो चाहे एग्रीमेंट कर लेना अब ठीक । " 



पता नही क्यू मेरा मुंडी हा में हिल गया । और रोशन के पापा मुझे गेले लगा खुशी से मेरा माथा भी चूम लिया ", मेरा प्यारा दामाद। और सुन कानो में हेडफोन लगा के रखना और रात को ऊपर की बर्थ पर चढ़ जाना ठीक है" 



रोशन अंकल मेरा गाल ठप ठपा के बास पे चढ़ गया । और में कागज और आईफोन की बॉक्स और हेड फोन की बॉक्स ले कर धीमी कदम से बास पर चढ़ गया ।




में सोच में पागल सा हो गया था क्या मैने सही किया । दिल की धड़कन तेज हो रहे थे की मैने ये सही नही किया हाला की मेरे पास अब भी वक्त था ये सब रोकने का । बास फिर से चल पड़ी थी । 



और रोशन अंकल मम्मी के पास बैठ कर यूट्यूब पर फिल्म दिखा रहा था । मम्मी भी अब तक रोशन अंकल को शरीफ आदमी समझ रही थी और में भी समझता था । लेकिन आज पता चला कितना ठरकी के हे और अपने थरक के लिए कितना नीचे गिर सकता है।
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स्लीपर बस में मां के साथ एक सफर (complete) - by Youngsters - 24-12-2022, 10:59 PM



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