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Misc. Erotica काजल, दीवाली और जुए का खेल (completed)
#1
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ये कहानी किसी और की लिखी हुई है और मेरी पसंदीदा कहानियो में से एक है ।
मुझे उस लेखक का नाम तो नहीं पता मगर फिर भी उस लेखक का बहुत शुक्रिया ।

ये कहानी एक लड़की कि है की कैसे उसकी ज़िंदगी बस पत्तो के या यूँ कहें की जुए के खेल से बदल गयी ।

Update 1


[img][Image: 93478568_slide1.jpg][/img]
काजल को जैसे ही उसके भाई का फोन आया, वो उसी वक़्त अपने ऑफीस से निकल पड़ी..उसकी माँ पिछले 20 दिनों से हॉस्पिटल में है..उन्हें हार्ट अटॅक आया था..पर अब धीरे-2 सुधार हो रहा है..पर फिर भी डॉक्टर्स कह रहे हैं की 10 दिन और लगेंगे..

काजल एक प्राइवेट फर्म मे नौकरी करती थी और हॉस्पिटल मे उसका छोटा भाई केशव रहता था..वो एक आवारा किस्म का लड़का था और अपनी डील -डोल की वजह से गुंडागर्दी भी सीख गया था वो..इसलिए उसकी दोस्ती भी ऐसे लड़को के साथ ही थी..पर जब से उनकी माँ हॉस्पिटल मे थी वो आवारगार्दी कर ही नही पाता था..इसलिए 5:30 होते ही वो अपनी बहन को फोन खड़का देता और उसके आते ही अपने दोस्तो के साथ निकल जाता..ज़िम्मेदारी का ज़रा भी एहसास नही था उसमे..

दिल्ली में रोहिणी की एक डी डी कॉलोनी मे घर था उनका..बस यही 2 मंज़िला घर था जो उनके पिताजी छोड़ गये थे...उपर वाले हिस्से में दो बेडरूम और नीचे किचन और ड्रॉयिंग रूम.

काजल की उम्र तो शादी के लायक हो चुकी थी पर घर की पूरी ज़िम्मेदारी उसके उपर थी...इसलिए वो अभी शादी के बारे मे दूर -2 तक सोच भी नही सकती थी..

वो थी तो काफ़ी सुंदर पर लड़को को वो खुद ही अपने पास फटकने नही देती थी..क्योंकि प्यार-व्यार के चक्कर मे पड़कर वो अपनी ज़िम्मेदारियो से दूर नही होना चाहती थी. और ज्यादातर सादे कपड़ो में ही रहती थी मगर सादे कपड़ो में भी उसकी खूबसूरती का कोई जवाब नहीं


[img][Image: 93436233_201295899dd5fb0ced2ea49cd21f1f7e.jpg][/img]

कुल मिलाकर काफ़ी समझदार और घरेलू किस्म की सुंदर सी लड़की थी काजल..

कुल मिलाकर काफ़ी समझदार और घरेलू किस्म की सुंदर सी लड़की थी काजल....

और उसका भाई केशव, शक्ल से ही गुंडा टाइप का..हल्की दादी मूँछ मे रहता था हमेशा..बिखरे हुए बाल..सिगरेट की लत्त भी थी उसको...इसलिए होंठ भी चेहरे की तरह काले हुए पड़े थे..पर अपने मोहल्ले मे काफ़ी दबदबा था उसका..और वो अपने कसरती बदन को बुरे कामो मे इस्तेमाल करके थोड़ी बहुत कमाई भी कर लेता था...पर वो पैसे वो अपने दोस्तो और शराब मे ही उड़ाता..


घर का खर्चा चलाने की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ और सिर्फ़ काजल की ही थी.

उनके घर का खर्चा वैसे ही बड़ी तंगी मे चल रहा था.. उपर से माँ की बीमारी ने भी काफ़ी पैसे ख़त्म कर दिए..

और साथ ही साथ दीवाली भी आने वाली थी..सिर्फ़ दस दिन बाद..ऐसी हालत मे काजल बस यही सोच रही थी की कैसे चलेगी ये जिंदगी..

पर उसे नही पता था की आने वाली दीवाली उसके लिए क्या-2 सर्प्राइज़ लाने वाली है..

काजल के हॉस्पिटल पहुँचते ही केशव फ़ौरन वहाँ से निकल गया...इतनी जल्दी मचाते हुए काजल ने उसे पहली बार देखा था..

रात के समय हॉस्पिटल मे किसी के भी रहने की मनाही थी..वैसे भी देखभाल के लिए नर्सेस रहती ही थी..इसलिए काजल भी घर जाती थी..

घर पहुंचकर उसने अपना लोवर और एक हल्की सी टी शर्ट पहनी और खाना बनाने मे लग गयी..वो रात के समय अपने अंडरगार्मेंट्स भी उतार देती थी..यही नीयम था उसका रोज का..10 बजे तक केशव भी जाता था और दोनों मिलकर खाना खाते थे...सुबह वो ऑफीस निकल जाती और केशव नहा धोकर हॉस्पिटल के लिए...पिछले दो महीने से यही नीयम चल रहा था..

पर आज 11 बजने को हो रहे थे और केशव का कहीं पता नही था...काजल को भी काफ़ी भूख लगी थी..उसने उसका नंबर कई बार ट्राइ किया पर हर बार वो काट देता...आख़िर मे जाकर जब उसने फोन उठाया तो सिर्फ़ इतना कहकर फोन रख दिया की 'दीदी , दस मिनिट मे आया बस...'

दस मिनिट के बाद जब केशव आया तो वो काफ़ी खुश लग रहा था...पर काजल के गुस्से वाले चेहरे को देखकर वो सहम सा गया और चुपचाप अपने कमरे मे जाकर चेंज करने लगा..और कपड़े बदल कर नीचे आया.

काजल : "ये हो क्या रहा है आजकल...ये जानते हुए भी की माँ हॉस्पिटल में है, तुम इतनी रात को मुझे अकेला छोड़कर बाहर रहते हो..आख़िर गये कहाँ थे..और मेरा फोन क्यो काट रहे थे..''

केशव : "वो...मैं ...जुआ खेलने गया था...''

वैसे तो जुआ खेलना उसका हमेशा का काम था, पर माँ हॉस्पिटल में है, ऐसी हालत मे भी वो जुआ खेलने से बाज नही रहा, ये काजल से बर्दाश्त नही हुआ..उसके मुँह मे जो भी आया, वो उसे कहती चली गयी..काफ़ी भला-बुरा सुनने के बाद अचानक केशव ने अपनी जेब से 500 के लगभग 20-30 नोट निकाल कर उसके सामने रख दिए..

और उन्हे देखते ही काजल की ज़ुबान पर एकदम से ताला सा लग गया..

केशव (मुस्कुराते हुए) : "ये जीते है मैने..दीदी, आपको पता है ना दीवाली आने वाली है...और इसी टाइम ऐसी बड़ी-2 गेम्स चलती है...और जब आप फोन पर फोन कर रहे थे,मेरी एक बड़ी सी गेम फंसी हुई थी...इसलिए फोन काट रहा था..और जैसे ही ये पैसे जीता, मैं वहाँ से निकल आया..''

इतने पैसे एकसाथ देखकर काजल हैरान थी...वो महीना भागा-दौड़ी करके सिर्फ़ 15000 कमाती थी...और उसके भाई ने लगभग उससे दुगने पैसे कुछ ही घंटो मे लाकर उसके सामने रख दिए थे..

वो जुए को हमेशा से बुरा मानती थी...पर उनके जो हालात थे, उसमे पैसे अगर जुआ खेलकर भी आए, तो उसे उसमे कोई प्राब्लम नज़र नही रही थी..


 Continue ....
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काजल, दीवाली और जुए का खेल (completed) - by Jyoti Singh - 10-01-2019, 12:00 PM



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