17-10-2019, 09:19 AM
(This post was last modified: 13-01-2021, 04:37 PM by komaalrani. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
एक नया मजा
मंजू बाई की गांड भी जैसे कोई बिछुड़े प्रेमी को भेंटे ,उसी तरह बहुत कस के उनकी ऊँगली को दबोच रही थी ,सिकोड़ रही थी।
एकदम एक नया मजा मिल रहा था उन्हें और एक बार फिर उन्होंने ऊँगली को चम्मच की तरह मोड़ा और गांड की अंदरूनी दीवारों को करोचते हुए ,रगड़ते हुए
पहले तो उनकी ऊँगली की टिप पे , फिर पुरी ऊँगली पे एक अजब सी फीलिंग ,जैसे कोई मखमली सी ,लसलसी लसलसी , गूई सी
एक पल के लिए तो झिझके , पता नहीं कैसा कैसा लग रहा था लेकिन जब जोश से मंजू बाई की गांड ने उनकी ऊँगली को प्यार दुलार से भींच कर रिस्पांड किया फिर तो सब कुछ भूल के
गांड के अंदरूनी दीवारों को रगड़ते , पुश करते , गांड का छल्ला तो गीता के जोर ने ही पार करा दिया था अब तो वो एकदम गांड के अंदरूनी हिस्से का मजा ले रहे थे।
हलके हलके मंजू बाई भी अपनी गांड को पुश कर के जता रही थी की उसे कितना मजा आ रहा है।
लेकिन लाख कोशिश करने पर भी उनकी ऊँगली जड़ तक नहीं घुस पा रही थी ,मंजू बाई की गांड इतनी कसी थी।
गीता नीचे से चूसने में लगी थी लेकिन उसे उनकी हालत का अहसास था ,
" ऐसे नहीं जायेगी ऊँगली पूरी भैया , ... "
वो बोली और जब तक वो कुछ समझपाते गीता की चिट्ठी कलाई ने उनका हाथ पकड़ा और ऊँगली गांड से बाहर निकाल दी।
और उसी ताकत से वो ऊँगली ने गीता ने उनके मुंह में घुसेड़ दी।
एक पल के लिए तो वो हिचकिचाए , वो ऊँगली तो अभी तक मंजू बाई की गांड में ,
कितना लिसलिसा गूई सा ,... लेकिन गीता के जोर के आगे कुछ चलता है क्या।
"अरे भैया , माँ की गांड का मक्खन है माँ का प्रसाद , अच्छी तरह से थूक लगा लो ,हाँ और अबकी दोनों ऊँगली। दोनों में थूक खूब लगा लेना। "
दोनों ऊँगली जो कुछ देर पहले मंजू बाई का बुर मंथन कर रही थी ,अब उनके थूक से लिसड़ी ,अबकी सीधे मंजू बाई की गांड में।
इस बार दोनों उंगलियां जड़ तक जा के ही रुकी और वो तूफानी चुदाई उन्होंने ऊँगली से की , उन्हें इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ रहा था की ऊँगली में क्या लिपट रहा है ,
और साथ में जिस तरह से मंजू बाई गांड सिकोड़ रही थी ,उनकी ऊँगली निचोड़ रही थी ,जवाब में धक्के लगा रही थी और सबसे बढ़ के ,एक गालिया दे रही थी
" अरे मादरचोद , तूझसे अपने सामने तेरी माँ का भोसड़ा मरवाउंगी , बचपन के गांडू ,
अभी तेरी गांड में कोहनी तक हाथ पेलुंगी बहनचोद। जो कसी कसी गांड लिए फिरता है न देखना , दस दिन के अंदर तुझे पक्का गांडू बना दूंगी। '
लेकिन बीच बीच में गीता पक्का बहन का रोल अदा कर रही थी उसका साथ दे के , बोली
" अरी माँ ,भैया को गांडू बनाएगी तो भइय्या को तो मजा ही आ जायेगा। वो तो खुद गांडू बनना चाहते है ,लेकिन ये बता तूझे मेरे भैया से गांड में ऊँगली करवाने में मजा आ रहा है न खूब ,बात क्यों बदलती है। "
" छिनार ,तेरा भाई है तो मेरा भी तो कुछ लगता है। मैं अपने बेटे से अपना भोसड़ा मरवाउं ,गांड मरवाऊं तुझे क्या। और बेटा गांड नहीं मारेगा तो क्या तेरी तरह अपने भाई से मरवाउंगी ,भाई चोद। "
मंजू बाई भी जवाब देने का मौका क्यों छोड़ती।
लेकिन गांड और बुर दोनों पर हमले का असर ये हुआ की अब मंजू बाई झड़ने के कगार पर बार बार पहुँच जाती ,
लेकिन झड़ नहीं रही थी।
उन्होंने अब एक बार अब अपनी दोनों उँगलियाँ मंजू बाई की गांड से बाहर निकाल के
दोनों हाथ से पूरी ताकत से मंजू बाई की गांड का छेद चियार दिया ,
" देख भैय्या , माँ की गांड में कितना माल है ,"
और जिस तरह गीता ने आँख मारी वो इशारा समझ गए।
नीचे गीता ने अपने दोनों होंठों के बीच मंजू बाई के बुर के दोनों होंठों को दबोचा और कस के चूसना शुरू किया ,
और उधर उनके होंठों ने पिछवाड़े के छेद को ,
ऐसा नहीं है पिछवाड़े के छेद को चाटने चूसने का ये उनका पहला मौका था ,
मैंने तो बर्थडे के ही दिन ,
और जबरदस्त अंदर जीभ डाल के उन्होंने चाटा चूसा भी था ,
फिर उनकी सास ने तो सारी हदें उस रात पर करवा दी थी ,जिस दिन उनकी नथ उतारी , लेकिन घर के बाहर ये पहली बार
और गीता और मंजू बाई मिल के जो उन्होंने अपनी सास के साथ किया था ,
उससे भी ज्यादा
जीभ उनकी अंदर उतर चुकी थी , पिछवाड़े की सुरंग में ,अँधेरी गीली गीली गली में , पूरे अंदर तक
सपड़ सपड़.
उसका असर जबरदस्त हुआ , और मंजू बाई ने गीता की कसी चूत चूसने के साथ उनकी गांड पर भी हमला बोल दिया।
मंजू बाई की जीभ गीता की रसीली चूत में धंसी हुयी थी , होंठ चूत के गुलाबी किशोर होंठ चूस रहे थे और अब मंजू बाई का मोटा अंगूठा , गीता की गांड की दरार पर।
थोड़ी देर तक मंजू बाई अपना अंगूठा गीता की गांड पर रगड़ती रही और फिर अचानक पूरी ताकत से गीता की कसी गांड में उसने अंगूठा पेल दिया।
गीता झड़ने लगी ,फिर तो जैसे तूफ़ान आ गया।
गीता का बदन तूफ़ान में पत्ते की तरह काँप रहा था फिर भी उसने मंजू बाई की चुसाई नहीं छोड़ी और कचकचा के गीता ने मंजू बाई की क्लीट काट ली /
और अब मंजू बाई भी ,
एक बार
बार बार
लगातार , दोनो झड़ रही थीं ,
और उनकी जीभ भी साथ साथ मंजू बाई की गांड में पूरी तेजी के साथ
कुछ देर में लस्त पस्त होकर तीनो वहीँ मिटटी के फर्श पर पड़े रहे।
न अपनी सुध थी न दूसरे की न वक्त की
चाँद जैसे कुछ देर के लिए रुक गया था , और फिर तेजी से डग भरते हुए अपने रस्ते चलने लगा।
मंजू बाई की गांड भी जैसे कोई बिछुड़े प्रेमी को भेंटे ,उसी तरह बहुत कस के उनकी ऊँगली को दबोच रही थी ,सिकोड़ रही थी।
एकदम एक नया मजा मिल रहा था उन्हें और एक बार फिर उन्होंने ऊँगली को चम्मच की तरह मोड़ा और गांड की अंदरूनी दीवारों को करोचते हुए ,रगड़ते हुए
पहले तो उनकी ऊँगली की टिप पे , फिर पुरी ऊँगली पे एक अजब सी फीलिंग ,जैसे कोई मखमली सी ,लसलसी लसलसी , गूई सी
एक पल के लिए तो झिझके , पता नहीं कैसा कैसा लग रहा था लेकिन जब जोश से मंजू बाई की गांड ने उनकी ऊँगली को प्यार दुलार से भींच कर रिस्पांड किया फिर तो सब कुछ भूल के
गांड के अंदरूनी दीवारों को रगड़ते , पुश करते , गांड का छल्ला तो गीता के जोर ने ही पार करा दिया था अब तो वो एकदम गांड के अंदरूनी हिस्से का मजा ले रहे थे।
हलके हलके मंजू बाई भी अपनी गांड को पुश कर के जता रही थी की उसे कितना मजा आ रहा है।
लेकिन लाख कोशिश करने पर भी उनकी ऊँगली जड़ तक नहीं घुस पा रही थी ,मंजू बाई की गांड इतनी कसी थी।
गीता नीचे से चूसने में लगी थी लेकिन उसे उनकी हालत का अहसास था ,
" ऐसे नहीं जायेगी ऊँगली पूरी भैया , ... "
वो बोली और जब तक वो कुछ समझपाते गीता की चिट्ठी कलाई ने उनका हाथ पकड़ा और ऊँगली गांड से बाहर निकाल दी।
और उसी ताकत से वो ऊँगली ने गीता ने उनके मुंह में घुसेड़ दी।
एक पल के लिए तो वो हिचकिचाए , वो ऊँगली तो अभी तक मंजू बाई की गांड में ,
कितना लिसलिसा गूई सा ,... लेकिन गीता के जोर के आगे कुछ चलता है क्या।
"अरे भैया , माँ की गांड का मक्खन है माँ का प्रसाद , अच्छी तरह से थूक लगा लो ,हाँ और अबकी दोनों ऊँगली। दोनों में थूक खूब लगा लेना। "
दोनों ऊँगली जो कुछ देर पहले मंजू बाई का बुर मंथन कर रही थी ,अब उनके थूक से लिसड़ी ,अबकी सीधे मंजू बाई की गांड में।
इस बार दोनों उंगलियां जड़ तक जा के ही रुकी और वो तूफानी चुदाई उन्होंने ऊँगली से की , उन्हें इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ रहा था की ऊँगली में क्या लिपट रहा है ,
और साथ में जिस तरह से मंजू बाई गांड सिकोड़ रही थी ,उनकी ऊँगली निचोड़ रही थी ,जवाब में धक्के लगा रही थी और सबसे बढ़ के ,एक गालिया दे रही थी
" अरे मादरचोद , तूझसे अपने सामने तेरी माँ का भोसड़ा मरवाउंगी , बचपन के गांडू ,
अभी तेरी गांड में कोहनी तक हाथ पेलुंगी बहनचोद। जो कसी कसी गांड लिए फिरता है न देखना , दस दिन के अंदर तुझे पक्का गांडू बना दूंगी। '
लेकिन बीच बीच में गीता पक्का बहन का रोल अदा कर रही थी उसका साथ दे के , बोली
" अरी माँ ,भैया को गांडू बनाएगी तो भइय्या को तो मजा ही आ जायेगा। वो तो खुद गांडू बनना चाहते है ,लेकिन ये बता तूझे मेरे भैया से गांड में ऊँगली करवाने में मजा आ रहा है न खूब ,बात क्यों बदलती है। "
" छिनार ,तेरा भाई है तो मेरा भी तो कुछ लगता है। मैं अपने बेटे से अपना भोसड़ा मरवाउं ,गांड मरवाऊं तुझे क्या। और बेटा गांड नहीं मारेगा तो क्या तेरी तरह अपने भाई से मरवाउंगी ,भाई चोद। "
मंजू बाई भी जवाब देने का मौका क्यों छोड़ती।
लेकिन गांड और बुर दोनों पर हमले का असर ये हुआ की अब मंजू बाई झड़ने के कगार पर बार बार पहुँच जाती ,
लेकिन झड़ नहीं रही थी।
उन्होंने अब एक बार अब अपनी दोनों उँगलियाँ मंजू बाई की गांड से बाहर निकाल के
दोनों हाथ से पूरी ताकत से मंजू बाई की गांड का छेद चियार दिया ,
" देख भैय्या , माँ की गांड में कितना माल है ,"
और जिस तरह गीता ने आँख मारी वो इशारा समझ गए।
नीचे गीता ने अपने दोनों होंठों के बीच मंजू बाई के बुर के दोनों होंठों को दबोचा और कस के चूसना शुरू किया ,
और उधर उनके होंठों ने पिछवाड़े के छेद को ,
ऐसा नहीं है पिछवाड़े के छेद को चाटने चूसने का ये उनका पहला मौका था ,
मैंने तो बर्थडे के ही दिन ,
और जबरदस्त अंदर जीभ डाल के उन्होंने चाटा चूसा भी था ,
फिर उनकी सास ने तो सारी हदें उस रात पर करवा दी थी ,जिस दिन उनकी नथ उतारी , लेकिन घर के बाहर ये पहली बार
और गीता और मंजू बाई मिल के जो उन्होंने अपनी सास के साथ किया था ,
उससे भी ज्यादा
जीभ उनकी अंदर उतर चुकी थी , पिछवाड़े की सुरंग में ,अँधेरी गीली गीली गली में , पूरे अंदर तक
सपड़ सपड़.
उसका असर जबरदस्त हुआ , और मंजू बाई ने गीता की कसी चूत चूसने के साथ उनकी गांड पर भी हमला बोल दिया।
मंजू बाई की जीभ गीता की रसीली चूत में धंसी हुयी थी , होंठ चूत के गुलाबी किशोर होंठ चूस रहे थे और अब मंजू बाई का मोटा अंगूठा , गीता की गांड की दरार पर।
थोड़ी देर तक मंजू बाई अपना अंगूठा गीता की गांड पर रगड़ती रही और फिर अचानक पूरी ताकत से गीता की कसी गांड में उसने अंगूठा पेल दिया।
गीता झड़ने लगी ,फिर तो जैसे तूफ़ान आ गया।
गीता का बदन तूफ़ान में पत्ते की तरह काँप रहा था फिर भी उसने मंजू बाई की चुसाई नहीं छोड़ी और कचकचा के गीता ने मंजू बाई की क्लीट काट ली /
और अब मंजू बाई भी ,
एक बार
बार बार
लगातार , दोनो झड़ रही थीं ,
और उनकी जीभ भी साथ साथ मंजू बाई की गांड में पूरी तेजी के साथ
कुछ देर में लस्त पस्त होकर तीनो वहीँ मिटटी के फर्श पर पड़े रहे।
न अपनी सुध थी न दूसरे की न वक्त की
चाँद जैसे कुछ देर के लिए रुक गया था , और फिर तेजी से डग भरते हुए अपने रस्ते चलने लगा।