17-10-2019, 08:52 AM
(This post was last modified: 11-01-2021, 01:25 PM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
मज़ा पिछवाड़े का
अब मंजू बाई के खूब भारी बड़े बड़े ४० + चूतड़ एकदम उनके पास
और मंजू बाई की बुर के नीचे दबी गीता ने मदद की गुहार लगाई।
" भैया आओ न मेरा साथ दो ,चल हम दोनों मिल के माँ को झाड़ देते है। ये छिनार अभी झड़ी है इत्ता जल्दी नहीं झड़ेगी ,आओ न भईया "
वो बोली।
और गीता ने उनका हाथ पकड़ कर सीधे उनकी ऊँगली मंजू बाई की बुर में ,एक साथ दो उँगलियाँ ,
अब वो मंजू बाई की बुर में ऊँगली कर रहे थे और गीता मंजू बाई की बुर को पूरी ताकत से चूस रही थी।
डबल अटैक।
उंगलिया उनकी मंजू बाई की बुर में घसर घसर अंदर बाहर हो रही थीं ,
लेकिन निगाहे उनकी मंजू बाई के गदराये भरे भरे मोटे नितम्बो से ही चिपकी थी ,ललचाती ,ललकती।
एकदम परफेक्ट , परफेक्ट ४० +
खूब बड़े बड़े , भरे हुए लेकिन एक इंच भी एक्स्ट्रा फ्लेश नहीं , सब मसल्स , टाट और फर्म , कड़े शेपली
मंजू बाई की खूब रसीली चिकनी मांसल जाँघे जहां नितम्बो के रूप में उभरती थी , बस लगता था किसी मैदान के ठीक बाद दो पहाड़ियां,
मंजू बाई के पिछवाड़े की फोटो किसी भी एक्सट्रीम बूटी या ४० + बूटी वाले साइट में जगह पा सकती थी। मैक्सिमम हिट भी मिलते ,
और उन दोनों मांसल पहाड़ियों के बीच वो पतली सी दरार एक दर्रे ऐसी ,जिसकी तलाश में लोग भटकते हों ,
एक बहुत छोटा सा भूरा छेद ,कसा कसा ,
जिसके चारो ओर हलकी हल्की बहुत छोटी छोटी कुछ सिलवटें सी पड़ीं,...
उनकी निगाहें वहीँ अटकी।
उनका एक हाथ बहुत प्यार से उन मस्त नितंबों को सहला रहा था ,
दूसरे हाथ की दो उंगलिया ,जड़ तक मंजू बाई की बुर में धंसी घसर घसर
गीता की शरारतें कम होने को नहीं आ रही थीं।
मंजू बाई की बुर चूसना रोक कर ,
गीता ने अपने दोनों हाथों से मंजू बाई की बुर के बड़े बड़े भगोष्ठों को पूरी ताकत से चियार दिया, जैसे किसी बुलबुल ने अपनी चोंच चियार दी हो।
" देखो न भैया ,माँ के भोसड़े का अंदर का नजारा,,"
अंदर की मांसल दीवालें , रस से भीगी ,गीली , लाल गुलाबी
" हैं न मस्त "
गीता ने मुंह उठा के उससे पुछा।
" हाँ एकदम "
मस्ती में चूर वो बोले।
" तो चोदो न घचाघच माँ की बुर ,इत्ती आसानी से वो नहीं झड़ने वाली "
और गीता ने मंजू के लैबिया को छोड़ दिया।
एकबार फिर कचकचा के मंजू बाई की बुर ने उनकी उँगलियों को दबोच लिया जैसे कोई मखमली पकड़ हो जबरदस्त ,
जो उँगलियों को बाहर निकलने से रोक रही हो।
जोर जोर से पूरी ताकत से वो गपागप ,कलाई के पूरे जोर से
और ऊपर से मंजू बाई भी लपलप लपलप गीता की चूत चाटते ,चूसते रुक रुक के बोलती ,
" पेल साले देखतीं हूँ तेरी ताकत लगता है बचपन में खूब अपनी माँ के भोसड़े में ऊँगली की थी ,मादरचोद। बचपन से ही ऊँगली करने में एक्सपर्ट थे ,मादरचोद। गीता चूस कस के ,देखती हूँ कितनी ताकत है ,भाई बहन में "
और साथ में मंजू बाई की बुर कस के उनकी उँगलियों को सिकोड़ कर निचोड़ भी रही थीं।
"भैया, दिखा दो माँ को अपनी ताकत , चल हम दोनों मिल के,..."
गीता ने जोश दिलाया।
फिर क्या था , उनकी दोनों उँगलियाँ ,
नक़ल से मोड़ कर उन्होंने चम्मच की तरह बना लिया और वो नकल मंजू बाई के भोंसडे की अंदरूनी मखमली दीवाल पर रगड़घिस्स
साथ में गीता भी अब कस के कभी मंजू बाई के दोनों रसीले मोटे मोटे लेबिया चूसती तो कभी जीभ से क्लीट को छेड़ती।
मंजू बाई की बुर रस की फुहार बरसा रही थी ,इनकी उँगलियों को भिगो रही थी। एकदम कीचड़ हो रही थी उसकी बुर और उसी में इनकी उँगलियाँ सटासट सटासट ,
पर निगाहें उनकी अभी भी मंजू बाई के गोल गोल चूतड़ों पर अटकी हुयी थी ,खूब कड़े भरे भरे ,
और बीच में एक छोटा सा कसा भूरा छेद ,उन्हें ललचाता ,उकसाता , उनका मन तो कर रहा था की,...
और उनके मन की बात गीता ने ताड़ ली , एक पल के लिए भोंसडे की चुसाई रोक के वो बोली ,
" भैया ,माँ पक्की छिनार है ,इत्ती आसानी से नहीं झड़ेगी। मैं अगवाड़े और तू पिछवाड़े , माँ का असली रस तो उस की ,... "
और जब तो वो कुछ सोचते समझते ,गीता की मजबूत कलाई ने उनके हाथ को पकड़ कर , उनकी बुर में रगड़घिस कर रही उँगलियों को निकाल के सीधे पिछवाड़े के छेद पर सटा दिया।
बहुत ताकत थी गीता की कलाई में ,
उनकी कलायी पकड़ के जो गीता ने पुश किया था एक ऊँगली के दो नक्कल सीधे मंजू बाई की गांड के अंदर।
और फिर जैसे कोई बोतल का ढक्कन घुमाये , बस उसी तरह घुमाते थोड़ी देर में आधी से ज्यादा ऊँगली गांड ने खा ली।
मंजू बाई की गांड भी जैसे कोई बिछुड़े प्रेमी को भेंटे ,उसी तरह बहुत कस के उनकी ऊँगली को दबोच रही थी ,सिकोड़ रही थी।
एकदम एक नया मजा मिल रहा था उन्हें और एक बार फिर उन्होंने ऊँगली को चम्मच की तरह मोड़ा और गांड की अंदरूनी दीवारों को करोचते हुए ,रगड़ते हुए
अब मंजू बाई के खूब भारी बड़े बड़े ४० + चूतड़ एकदम उनके पास
और मंजू बाई की बुर के नीचे दबी गीता ने मदद की गुहार लगाई।
" भैया आओ न मेरा साथ दो ,चल हम दोनों मिल के माँ को झाड़ देते है। ये छिनार अभी झड़ी है इत्ता जल्दी नहीं झड़ेगी ,आओ न भईया "
वो बोली।
और गीता ने उनका हाथ पकड़ कर सीधे उनकी ऊँगली मंजू बाई की बुर में ,एक साथ दो उँगलियाँ ,
अब वो मंजू बाई की बुर में ऊँगली कर रहे थे और गीता मंजू बाई की बुर को पूरी ताकत से चूस रही थी।
डबल अटैक।
उंगलिया उनकी मंजू बाई की बुर में घसर घसर अंदर बाहर हो रही थीं ,
लेकिन निगाहे उनकी मंजू बाई के गदराये भरे भरे मोटे नितम्बो से ही चिपकी थी ,ललचाती ,ललकती।
एकदम परफेक्ट , परफेक्ट ४० +
खूब बड़े बड़े , भरे हुए लेकिन एक इंच भी एक्स्ट्रा फ्लेश नहीं , सब मसल्स , टाट और फर्म , कड़े शेपली
मंजू बाई की खूब रसीली चिकनी मांसल जाँघे जहां नितम्बो के रूप में उभरती थी , बस लगता था किसी मैदान के ठीक बाद दो पहाड़ियां,
मंजू बाई के पिछवाड़े की फोटो किसी भी एक्सट्रीम बूटी या ४० + बूटी वाले साइट में जगह पा सकती थी। मैक्सिमम हिट भी मिलते ,
और उन दोनों मांसल पहाड़ियों के बीच वो पतली सी दरार एक दर्रे ऐसी ,जिसकी तलाश में लोग भटकते हों ,
एक बहुत छोटा सा भूरा छेद ,कसा कसा ,
जिसके चारो ओर हलकी हल्की बहुत छोटी छोटी कुछ सिलवटें सी पड़ीं,...
उनकी निगाहें वहीँ अटकी।
उनका एक हाथ बहुत प्यार से उन मस्त नितंबों को सहला रहा था ,
दूसरे हाथ की दो उंगलिया ,जड़ तक मंजू बाई की बुर में धंसी घसर घसर
गीता की शरारतें कम होने को नहीं आ रही थीं।
मंजू बाई की बुर चूसना रोक कर ,
गीता ने अपने दोनों हाथों से मंजू बाई की बुर के बड़े बड़े भगोष्ठों को पूरी ताकत से चियार दिया, जैसे किसी बुलबुल ने अपनी चोंच चियार दी हो।
" देखो न भैया ,माँ के भोसड़े का अंदर का नजारा,,"
अंदर की मांसल दीवालें , रस से भीगी ,गीली , लाल गुलाबी
" हैं न मस्त "
गीता ने मुंह उठा के उससे पुछा।
" हाँ एकदम "
मस्ती में चूर वो बोले।
" तो चोदो न घचाघच माँ की बुर ,इत्ती आसानी से वो नहीं झड़ने वाली "
और गीता ने मंजू के लैबिया को छोड़ दिया।
एकबार फिर कचकचा के मंजू बाई की बुर ने उनकी उँगलियों को दबोच लिया जैसे कोई मखमली पकड़ हो जबरदस्त ,
जो उँगलियों को बाहर निकलने से रोक रही हो।
जोर जोर से पूरी ताकत से वो गपागप ,कलाई के पूरे जोर से
और ऊपर से मंजू बाई भी लपलप लपलप गीता की चूत चाटते ,चूसते रुक रुक के बोलती ,
" पेल साले देखतीं हूँ तेरी ताकत लगता है बचपन में खूब अपनी माँ के भोसड़े में ऊँगली की थी ,मादरचोद। बचपन से ही ऊँगली करने में एक्सपर्ट थे ,मादरचोद। गीता चूस कस के ,देखती हूँ कितनी ताकत है ,भाई बहन में "
और साथ में मंजू बाई की बुर कस के उनकी उँगलियों को सिकोड़ कर निचोड़ भी रही थीं।
"भैया, दिखा दो माँ को अपनी ताकत , चल हम दोनों मिल के,..."
गीता ने जोश दिलाया।
फिर क्या था , उनकी दोनों उँगलियाँ ,
नक़ल से मोड़ कर उन्होंने चम्मच की तरह बना लिया और वो नकल मंजू बाई के भोंसडे की अंदरूनी मखमली दीवाल पर रगड़घिस्स
साथ में गीता भी अब कस के कभी मंजू बाई के दोनों रसीले मोटे मोटे लेबिया चूसती तो कभी जीभ से क्लीट को छेड़ती।
मंजू बाई की बुर रस की फुहार बरसा रही थी ,इनकी उँगलियों को भिगो रही थी। एकदम कीचड़ हो रही थी उसकी बुर और उसी में इनकी उँगलियाँ सटासट सटासट ,
पर निगाहें उनकी अभी भी मंजू बाई के गोल गोल चूतड़ों पर अटकी हुयी थी ,खूब कड़े भरे भरे ,
और बीच में एक छोटा सा कसा भूरा छेद ,उन्हें ललचाता ,उकसाता , उनका मन तो कर रहा था की,...
और उनके मन की बात गीता ने ताड़ ली , एक पल के लिए भोंसडे की चुसाई रोक के वो बोली ,
" भैया ,माँ पक्की छिनार है ,इत्ती आसानी से नहीं झड़ेगी। मैं अगवाड़े और तू पिछवाड़े , माँ का असली रस तो उस की ,... "
और जब तो वो कुछ सोचते समझते ,गीता की मजबूत कलाई ने उनके हाथ को पकड़ कर , उनकी बुर में रगड़घिस कर रही उँगलियों को निकाल के सीधे पिछवाड़े के छेद पर सटा दिया।
बहुत ताकत थी गीता की कलाई में ,
उनकी कलायी पकड़ के जो गीता ने पुश किया था एक ऊँगली के दो नक्कल सीधे मंजू बाई की गांड के अंदर।
और फिर जैसे कोई बोतल का ढक्कन घुमाये , बस उसी तरह घुमाते थोड़ी देर में आधी से ज्यादा ऊँगली गांड ने खा ली।
मंजू बाई की गांड भी जैसे कोई बिछुड़े प्रेमी को भेंटे ,उसी तरह बहुत कस के उनकी ऊँगली को दबोच रही थी ,सिकोड़ रही थी।
एकदम एक नया मजा मिल रहा था उन्हें और एक बार फिर उन्होंने ऊँगली को चम्मच की तरह मोड़ा और गांड की अंदरूनी दीवारों को करोचते हुए ,रगड़ते हुए