16-10-2019, 04:56 PM
(This post was last modified: 16-10-2019, 05:39 PM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
चुम्बन की बारिश
जैसे चुम्बन की बारिश उनकी चौड़ी छाती पर
और जैसे मेरे निप्स में चुंबक लगे थे , उनकी आँखे , होंठ हाथ सब वहीँ खिंच कर पहुँच जाते ,
बस मेरे होंठो के लिए उनके निप्स भी
अब मुझे मालूम पड़ गया था , कित्ते सेंसेटिव थे वो , उनकी हालत ख़राब हो जाती थी , जब मैं वहां छूती थी ,
हालत खराब होनी है तो हो , मुझे क्या ,...
मेरी क्या कम हालत खराब करते थे वो ,
बस पहले जीभ से , बल्कि जीभ की टिप से हल्के हल्के फ्लिक , फिर होंठों से कस कस के सक ,
उनकी देह काँप रही थी
और जब मैंने एक हलकी सी बाइट ली तो बस उनकी सिसकी निकल गयी ,
और मेरी निगाह दक्षिण दिशा की ओर ,
उनकी ब्रीफ , फटने के कगार पर थी , मूसलचंद एकदम बावरे खूब तन्नाये , एकदम कड़क ,
मुझसे रुका नहीं गया , ... और थोड़ी बेईमानी मैने की , उनके निप्स मैंने अपने होंठों के हवाले किये और मेरे लिप्स सीधे उनके ब्रीफ के ऊपरमोटे बौराये मूसलचंद के ऊपर ,
मन तो मेरा कर रहा था खोल कर सीधे गप्प कर लूँ , कित्ते दिन हो गए थे ,...
सुहागरात के अगले दिन बल्कि अगली रात ही तो ,
दिन में मंझली ननद और दुलारी ने अपने किस्से सुना सुना के , कैसे नन्दोई जी ने उन्हें अगली रात ही चमचम चुसाया था
और मैंने भी चमचम चूस लिया , ....
अगली सुबह जब मैं ननदों के बीच गयी तो मंझली ननद ने पहला सवाल यही पूछा चूसा की नहीं ,
और मेरी मुस्कराहट ने उन्हें जवाब दे दिया।
लेकिन आज ,
मैं ऊपर से ही ,...
ब्रीफ के ऊपर से पहले तो मैंने 'उसे ' सिर्फ एक चुम्मी दी , वो भी छोटी सी ,
लेकिन जब मुंझसे नहीं रहा गया तो उस मुस्टंडे के मोटे मुंह को अपने मुंह में भर कर , पहले हलके , हलके , फिर जोर से ,
अब उनसे नहीं रहा जा रहा था , कसमसा रहे थे , सिसक रहे थे , चूतड़ पटक रहे थे , पर तड़पे तो तड़पें , मैं भी तो सात दिन से ,........
लेकिन मुझे भी दया आ गयी , बिचारे आँखे मूंदे , हाथ दोनों सर के नीचे ,...
मेरी नाइटी भी अब उन के कपड़ो के साथ थी ,
वो एक छोटे से ब्रीफ में थे ,
तो मैं भी बस एक पतली सी थांग में , ...
माना की उनके मूसलचंद तड़प रहे थे पर मेरी गुलाबो भी तो गीली हो रही थी , जोर जोर से चींटी काट रही थी
और जिस दिन पांच दिन की छुट्टी ख़तम होती है उस दिन तो किसी भी लड़की से पूछिए ऐसी आग लगी रहती है की बस ,...
तो मैंने उनकी एक सजा ख़तम कर दी , मेरे होंठों ने एक बार फिर से पलकों को चूम कर सांकल को खोल दिया और मैं उस समय उन के ऊपर चढ़ी , बैठी
और उन्हें अपने जोबना दिखाती ललचाती ,
वो लड़का एकदम पागल रहता था मेरे जोबन के लिए ब्लाउज के ऊपर से भी देख कर उसकी हालत खराब रहती थी ,
यह तो दोनों चाँद निरावृत्त
सिर्फ मेरे हाथों से ढंके , ...
और उसको दिखाते ललचाते मैंने दोनों हाथ हटा दिए ,
बस वो पागल नहीं हुआ ,
मेरे हाथ मेरे उभारों पर सरक रहे थे , उन्हें सहला रहे थे , मेरे निप्स को गोल गोल ,...
उनके आँखों की प्यास , ...
बस लग रहा था की वो नहीं रुक पाएंगे की मैंने हुक्म सुना दिया
नहीं नहीं , सिर्फ देखने के लिए छूने के लिए नहीं , ...
लेकिन में खुद झुक कर अपने उभार उनके होंठों के पास , ... जैसे वो चेहरा उठाते , उचकाते मैं अपने उरोज दूर कर लेती , ज्यादा नहीं बस इंच भर , और वो और
लेकिन मेरी देह अब कौन सी मेरी रह गयी थी ,
किसी शाख की तरह मेरी देह झुकी और जैसे कोई तितली पल भर के लिए किसी फूल पर बैठे और फिर फुर्र् हो जाए उसी तरह उनके होंठों पर
मेरे निप्स ,
जस्ट टच ,
और जब तक उनके होंठ खुले , मेरे उभार हलके हलके उनकी छाती को रगड़ रहे थे ,
और मेरी उँगलियाँ , ... जी सही समझा आपने ,...
बस वो भी हलके हलके ब्रीफ के ऊपर से , मूसलचंद को ,... सहला रही थीं , सुबह की हवा की तरह कभी एक ऊँगली , कभी दो ऊँगली
और मूसलचंद पर असली हमला तो बाकी था ,
मेरे जोबन का छाती से टहलते हुए दोनों नीचे और सीधे उनकी तनी ब्रीफ के ऊपर से पहले हलके हलके फिर कस के
मुझे मालूम था इस लड़के को टिट फक कितना पसंद है , तो , और
जब मेरी दोनों गदरायी रसीली भरी चूँचियाँ , उनके मोटे पागल लंड को और पागल कर रही थीं ,
मेरे हाथ उनके सीने के ऊपर , मेरी उँगलियाँ , लम्बे नाख़ून उनके निप्स को फ्लिक कर रहे थे स्क्रैच कर रहे थे ,
लेकिन मेरी गुलाबो भले ही वो छिपी ढकी थी , लेकिन वो क्यों इस खेल में अलग रहती ,
तो बस अब जैसे सावन भादों में बादल धरती पर छा जाते हैं मेरी देह उनके ऊपर ,
सिर्फ मेरी हथेलियां उनके कन्धों को पकडे थीं , बस देह का कोई भी हिस्सा उनकी देह को छू नहीं रहा था ,
फिर जैसे बादल का कोई टुकड़ा सीधे धान के खेतों में उतर पड़े , ...
मेरी गुलाबो थांग में ढंकी छुपी , सीधे अपने मूसलचंद के ऊपर ( वो भी ब्रीफ के ढक्कन में बंद )
जबरदस्त ग्राइंड , ब्रीफ के ऊपर से जोर जोर से रगड़ घिस्स ,
घडी देखके पांच मिनट से ज्यादा ,
मुझे लगा की अब बेचारे की ब्रीफ फट जायेगी , तो मुझे दया आ गयी।
और एक बार फिर मेरे होंठ , ... होंठों से पकड़ कर , ...हलके हलके मैंने उनकी ब्रीफ उतार दी
जैसे सपेरे की टोकरी से कड़ियल नाग भूखा बावरा , फन उठाये अचानक निकल पड़े , ... बस उसी तरह से बित्ते भर का वो
मोटा , कड़ा , तगड़ा और एकदम पागल
उनकी ब्रीफ उनके बाकी कपड़ों के साथ फर्श पर ,
जैसे चुम्बन की बारिश उनकी चौड़ी छाती पर
और जैसे मेरे निप्स में चुंबक लगे थे , उनकी आँखे , होंठ हाथ सब वहीँ खिंच कर पहुँच जाते ,
बस मेरे होंठो के लिए उनके निप्स भी
अब मुझे मालूम पड़ गया था , कित्ते सेंसेटिव थे वो , उनकी हालत ख़राब हो जाती थी , जब मैं वहां छूती थी ,
हालत खराब होनी है तो हो , मुझे क्या ,...
मेरी क्या कम हालत खराब करते थे वो ,
बस पहले जीभ से , बल्कि जीभ की टिप से हल्के हल्के फ्लिक , फिर होंठों से कस कस के सक ,
उनकी देह काँप रही थी
और जब मैंने एक हलकी सी बाइट ली तो बस उनकी सिसकी निकल गयी ,
और मेरी निगाह दक्षिण दिशा की ओर ,
उनकी ब्रीफ , फटने के कगार पर थी , मूसलचंद एकदम बावरे खूब तन्नाये , एकदम कड़क ,
मुझसे रुका नहीं गया , ... और थोड़ी बेईमानी मैने की , उनके निप्स मैंने अपने होंठों के हवाले किये और मेरे लिप्स सीधे उनके ब्रीफ के ऊपरमोटे बौराये मूसलचंद के ऊपर ,
मन तो मेरा कर रहा था खोल कर सीधे गप्प कर लूँ , कित्ते दिन हो गए थे ,...
सुहागरात के अगले दिन बल्कि अगली रात ही तो ,
दिन में मंझली ननद और दुलारी ने अपने किस्से सुना सुना के , कैसे नन्दोई जी ने उन्हें अगली रात ही चमचम चुसाया था
और मैंने भी चमचम चूस लिया , ....
अगली सुबह जब मैं ननदों के बीच गयी तो मंझली ननद ने पहला सवाल यही पूछा चूसा की नहीं ,
और मेरी मुस्कराहट ने उन्हें जवाब दे दिया।
लेकिन आज ,
मैं ऊपर से ही ,...
ब्रीफ के ऊपर से पहले तो मैंने 'उसे ' सिर्फ एक चुम्मी दी , वो भी छोटी सी ,
लेकिन जब मुंझसे नहीं रहा गया तो उस मुस्टंडे के मोटे मुंह को अपने मुंह में भर कर , पहले हलके , हलके , फिर जोर से ,
अब उनसे नहीं रहा जा रहा था , कसमसा रहे थे , सिसक रहे थे , चूतड़ पटक रहे थे , पर तड़पे तो तड़पें , मैं भी तो सात दिन से ,........
लेकिन मुझे भी दया आ गयी , बिचारे आँखे मूंदे , हाथ दोनों सर के नीचे ,...
मेरी नाइटी भी अब उन के कपड़ो के साथ थी ,
वो एक छोटे से ब्रीफ में थे ,
तो मैं भी बस एक पतली सी थांग में , ...
माना की उनके मूसलचंद तड़प रहे थे पर मेरी गुलाबो भी तो गीली हो रही थी , जोर जोर से चींटी काट रही थी
और जिस दिन पांच दिन की छुट्टी ख़तम होती है उस दिन तो किसी भी लड़की से पूछिए ऐसी आग लगी रहती है की बस ,...
तो मैंने उनकी एक सजा ख़तम कर दी , मेरे होंठों ने एक बार फिर से पलकों को चूम कर सांकल को खोल दिया और मैं उस समय उन के ऊपर चढ़ी , बैठी
और उन्हें अपने जोबना दिखाती ललचाती ,
वो लड़का एकदम पागल रहता था मेरे जोबन के लिए ब्लाउज के ऊपर से भी देख कर उसकी हालत खराब रहती थी ,
यह तो दोनों चाँद निरावृत्त
सिर्फ मेरे हाथों से ढंके , ...
और उसको दिखाते ललचाते मैंने दोनों हाथ हटा दिए ,
बस वो पागल नहीं हुआ ,
मेरे हाथ मेरे उभारों पर सरक रहे थे , उन्हें सहला रहे थे , मेरे निप्स को गोल गोल ,...
उनके आँखों की प्यास , ...
बस लग रहा था की वो नहीं रुक पाएंगे की मैंने हुक्म सुना दिया
नहीं नहीं , सिर्फ देखने के लिए छूने के लिए नहीं , ...
लेकिन में खुद झुक कर अपने उभार उनके होंठों के पास , ... जैसे वो चेहरा उठाते , उचकाते मैं अपने उरोज दूर कर लेती , ज्यादा नहीं बस इंच भर , और वो और
लेकिन मेरी देह अब कौन सी मेरी रह गयी थी ,
किसी शाख की तरह मेरी देह झुकी और जैसे कोई तितली पल भर के लिए किसी फूल पर बैठे और फिर फुर्र् हो जाए उसी तरह उनके होंठों पर
मेरे निप्स ,
जस्ट टच ,
और जब तक उनके होंठ खुले , मेरे उभार हलके हलके उनकी छाती को रगड़ रहे थे ,
और मेरी उँगलियाँ , ... जी सही समझा आपने ,...
बस वो भी हलके हलके ब्रीफ के ऊपर से , मूसलचंद को ,... सहला रही थीं , सुबह की हवा की तरह कभी एक ऊँगली , कभी दो ऊँगली
और मूसलचंद पर असली हमला तो बाकी था ,
मेरे जोबन का छाती से टहलते हुए दोनों नीचे और सीधे उनकी तनी ब्रीफ के ऊपर से पहले हलके हलके फिर कस के
मुझे मालूम था इस लड़के को टिट फक कितना पसंद है , तो , और
जब मेरी दोनों गदरायी रसीली भरी चूँचियाँ , उनके मोटे पागल लंड को और पागल कर रही थीं ,
मेरे हाथ उनके सीने के ऊपर , मेरी उँगलियाँ , लम्बे नाख़ून उनके निप्स को फ्लिक कर रहे थे स्क्रैच कर रहे थे ,
लेकिन मेरी गुलाबो भले ही वो छिपी ढकी थी , लेकिन वो क्यों इस खेल में अलग रहती ,
तो बस अब जैसे सावन भादों में बादल धरती पर छा जाते हैं मेरी देह उनके ऊपर ,
सिर्फ मेरी हथेलियां उनके कन्धों को पकडे थीं , बस देह का कोई भी हिस्सा उनकी देह को छू नहीं रहा था ,
फिर जैसे बादल का कोई टुकड़ा सीधे धान के खेतों में उतर पड़े , ...
मेरी गुलाबो थांग में ढंकी छुपी , सीधे अपने मूसलचंद के ऊपर ( वो भी ब्रीफ के ढक्कन में बंद )
जबरदस्त ग्राइंड , ब्रीफ के ऊपर से जोर जोर से रगड़ घिस्स ,
घडी देखके पांच मिनट से ज्यादा ,
मुझे लगा की अब बेचारे की ब्रीफ फट जायेगी , तो मुझे दया आ गयी।
और एक बार फिर मेरे होंठ , ... होंठों से पकड़ कर , ...हलके हलके मैंने उनकी ब्रीफ उतार दी
जैसे सपेरे की टोकरी से कड़ियल नाग भूखा बावरा , फन उठाये अचानक निकल पड़े , ... बस उसी तरह से बित्ते भर का वो
मोटा , कड़ा , तगड़ा और एकदम पागल
उनकी ब्रीफ उनके बाकी कपड़ों के साथ फर्श पर ,