15-10-2019, 06:44 PM
update 14
ऋतू बहुत उदास हो गई थी और इधर मैं भी मजबूर था की उसे इतने दिन उससे नहीं मिल पाउँगा| मैं आ कर अपने डेस्क पर बैठ गया और मायूसी मेरे चेहरे से साफ़ झलक रही थी| थोड़ी देर बाद जब अनु मैडम मेरे पास फाइल लेने आईं तो मेरी मायूसी को ताड़ गईं| "क्या हुआ मानु?" अब मैं उठ के खड़ा हुआ और नकली मुस्कराहट अपने चेहरे पर लाके उनसे बोला; "वो मैडम ... दरअसल सर ने अचानक जाने का प्लान बना दिया| अब घर वाले ..." आगे मेरे कुछ बोलने से पहले ही मैडम बोल पड़ीं; "चलो इस बार चले जाओ, अगली बार से मैं इन्हें बोल दूँगी की तुम्हें एडवांस में बता दें| अच्छा आज तुम घर जल्दी चले जाना और अपने कपडे-लत्ते ले कर सीधा स्टेशन आ जाना|" तभी पीछे से सर बोल पड़े; "अरे पहले ही ये जल्दी निकल जाता है और कितना जल्दी भेजोगे?" सर ने ताना मारा| "सर क्या करें इतनी सैलरी में गुजरा नहीं होता| इसलिए पार्ट टाइम टूशन देता हूँ|" ये सुनते ही मैडम और सर का मुँह खुला का खुला रह गया| सर अपना इतना सा मुँह ले कर वापस चले गए और मैडम भी उनके पीछे-पीछे सर झुकाये चली गईं| खेर जैसे ही 3 बजे मैं सर के कमरे में घुसा और उनसे जाने की अनुमति माँगी| "इतना जल्दी क्यों? अभी तो तीन ही बजे हैं?" सर ने टोका पर मेरा जवाब पहले से ही तैयार था| "सर कपडे-लत्ते धोने हैं, गंदे छोड़ कर गया तो वापस आ कर क्या पहनूँगा?" ये सुनते ही मैडम मुस्कुराने लगी क्योंकि सर को मेरे इस जवाब की जरा भी उम्मीद नहीं थी| "ठीक है...तीन दिन के कपडे पैक कर लेना और गाडी 8 बजे की है, लेट मत होना|" मैंने हाँ में सर हिलाया और बाहर आ कर सीधा ऋतू को फ़ोन मिलाया पर उसने उठाया नहीं क्योंकि उसका लेक्चर चल रहा था| मैं सीधा उसके कॉलेज की तरफ चल दिया और रेड लाइट पर बाइक रोक कर उसे कॉल करने लगा| जैसे ही उसने उठाया मैंने उसे तुरंत बाहर मिलने बुलाया और वो दौड़ती हुई रेड लाइट तक आ गई|
बिना देर किये उसने रेड लाइट पर खड़ी सभी गाडी वालों के सामने मुझे गले लगा लिया और फूट-फूट के रोने लगी| मैंने अब भी हेलमेट लगा रखा था और मैं उसकी पीठ सहलाते हुए उसे चुप कराने लगा| "जान... मैं कुछ दिन के लिए जा रहा हूँ| सरहद पर थोड़े ही जा रहा हूँ की वापस नहीं आऊँगा?! मैं इस संडे आ रहा हूँ... फिर हम दोनों पिक्चर जायेंगे?" मेरे इस सवाल का जवाब उसने बीएस 'हम्म' कर के दिया| मैंने उसे पीछे बैठने को कहा और उसे अपने घर ले आया, वो थोड़ा हैरान थी की मैं उसे घर क्यों ले आया पर मैंने सोचा की कम से कम मेरे साथ अकेली रहेगी तो खुल कर बात करेगी| वो कमरे में उसी खिड़की के पास जा कर बैठ गई और मैं उसके सामने घुटनों के बल बैठ गया और उसकी गोद में सर रख दिया| ऋतू ने मेरे सर को सहलाना शुरू कर दिया और बोली;
ऋतू: संडे पक्का आओगे ना?
मैं: हाँ ... अब ये बताओ क्या लाऊँ अपनी जानेमन के लिए?
ऋतू: बस आप आ जाना, वही काफी है मेरे लिए|
उसने मुस्कुराते हुए कहा और फिर उठ के मेरे कपडे पैक करने लगी| मैंने पीछे से जा कर उसे अपनी बाँहों में जकड़ लिया| मेरे जिस्म का एहसास होते ही जैसे वो सिंहर उठी| मैंने ऋतू की नंगी गर्दन पर अपने होंठ रखे तो उसने अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन के पीछे ले जा कर जकड़ लिया| हालाँकि उसका मुँह अब भी सामने की तरफ था और उसकी पीठ मेरे सीने से चुपकी हुई थी| आगे कुछ करने से पहले ही मेरे फ़ोन की घंटी बज उठी और मैं ऋतू से थोड़ा दूर हो गया| जैसे ही मैं फ़ोन ले कर पलटा और 'हेल्लो' बोला की तभी ऋतू ने मुझे पीछे से आ कर जकड़ लिया| उसने मुझे इतनी जोर से जकड़ा की उसके जिस्म में जल रही आग मेरी पीठ सेंकने लगी| "सर मैं आपको अभी थोड़ी देर में फ़ोन करा हूँ, अभी मैं ड्राइव कर रहा हूँ|" इतना कह कर मैंने फ़ोन पलंग पर फेंक दिया और ऋतू की तरफ घूम गया| उसे बगलों से पकड़ कर मैंने उसे जैसे गोद में उठा लिया| ऋतू ने भी अपने दोनों पैरों को मेरी कमर के इर्द-गिर्द जकड़ लिया और मेरे होठों को चूसने लगी| मैंने अपने दोनों हाथों को उसके कूल्हों के ऊपर रख दिया ताकि वो फिसल कर नीचे न गिर जाए| ऋतू मुझे बेतहाशा चुम रही थी और मैं भी उसके इस प्यार का जवाब प्यार से ही दे रहा था| मैं ऋतू को इसी तरह गोद में उठाये कमरे में घूम रहा था और वो मेरे होठों को चूसे जा रही थी| शायद वो ये उम्मीद कर रही थी की मैं उसे अब पलंग पर लिताऊँगा, पर मेरा मन बस उसके साथ यही खेल खेलना चाहता था|
ऋतू: जानू...मैं आपसे कुछ माँगूँ तो मन तो नहीं करोगे ना? (ऋतू ने चूमना बंद किया और पलकें झुका कर मुझ से पूछा|)
मैं: जान! मेरी जान भी मांगोंगे तो भी मना नहीं करूँगा| हुक्म करो!
ऋतू: जाने से पहले आज एक बार... (इसके आगे वो बोल नहीं पाई और शर्म से उसने अपना मुँह मेरे सीने में छुपा लिया|)
मैं: अच्छा जी??? तो आपको एक बार और मेरा प्यार चाहिए???
ये सुन कर ऋतू बुरी तरह झेंप गई और अपने चेहरे को मेरी छाती में छुपा लिया| अब अपनी जानेमन को कैसे मना करूँ?
ऋतू बहुत उदास हो गई थी और इधर मैं भी मजबूर था की उसे इतने दिन उससे नहीं मिल पाउँगा| मैं आ कर अपने डेस्क पर बैठ गया और मायूसी मेरे चेहरे से साफ़ झलक रही थी| थोड़ी देर बाद जब अनु मैडम मेरे पास फाइल लेने आईं तो मेरी मायूसी को ताड़ गईं| "क्या हुआ मानु?" अब मैं उठ के खड़ा हुआ और नकली मुस्कराहट अपने चेहरे पर लाके उनसे बोला; "वो मैडम ... दरअसल सर ने अचानक जाने का प्लान बना दिया| अब घर वाले ..." आगे मेरे कुछ बोलने से पहले ही मैडम बोल पड़ीं; "चलो इस बार चले जाओ, अगली बार से मैं इन्हें बोल दूँगी की तुम्हें एडवांस में बता दें| अच्छा आज तुम घर जल्दी चले जाना और अपने कपडे-लत्ते ले कर सीधा स्टेशन आ जाना|" तभी पीछे से सर बोल पड़े; "अरे पहले ही ये जल्दी निकल जाता है और कितना जल्दी भेजोगे?" सर ने ताना मारा| "सर क्या करें इतनी सैलरी में गुजरा नहीं होता| इसलिए पार्ट टाइम टूशन देता हूँ|" ये सुनते ही मैडम और सर का मुँह खुला का खुला रह गया| सर अपना इतना सा मुँह ले कर वापस चले गए और मैडम भी उनके पीछे-पीछे सर झुकाये चली गईं| खेर जैसे ही 3 बजे मैं सर के कमरे में घुसा और उनसे जाने की अनुमति माँगी| "इतना जल्दी क्यों? अभी तो तीन ही बजे हैं?" सर ने टोका पर मेरा जवाब पहले से ही तैयार था| "सर कपडे-लत्ते धोने हैं, गंदे छोड़ कर गया तो वापस आ कर क्या पहनूँगा?" ये सुनते ही मैडम मुस्कुराने लगी क्योंकि सर को मेरे इस जवाब की जरा भी उम्मीद नहीं थी| "ठीक है...तीन दिन के कपडे पैक कर लेना और गाडी 8 बजे की है, लेट मत होना|" मैंने हाँ में सर हिलाया और बाहर आ कर सीधा ऋतू को फ़ोन मिलाया पर उसने उठाया नहीं क्योंकि उसका लेक्चर चल रहा था| मैं सीधा उसके कॉलेज की तरफ चल दिया और रेड लाइट पर बाइक रोक कर उसे कॉल करने लगा| जैसे ही उसने उठाया मैंने उसे तुरंत बाहर मिलने बुलाया और वो दौड़ती हुई रेड लाइट तक आ गई|
बिना देर किये उसने रेड लाइट पर खड़ी सभी गाडी वालों के सामने मुझे गले लगा लिया और फूट-फूट के रोने लगी| मैंने अब भी हेलमेट लगा रखा था और मैं उसकी पीठ सहलाते हुए उसे चुप कराने लगा| "जान... मैं कुछ दिन के लिए जा रहा हूँ| सरहद पर थोड़े ही जा रहा हूँ की वापस नहीं आऊँगा?! मैं इस संडे आ रहा हूँ... फिर हम दोनों पिक्चर जायेंगे?" मेरे इस सवाल का जवाब उसने बीएस 'हम्म' कर के दिया| मैंने उसे पीछे बैठने को कहा और उसे अपने घर ले आया, वो थोड़ा हैरान थी की मैं उसे घर क्यों ले आया पर मैंने सोचा की कम से कम मेरे साथ अकेली रहेगी तो खुल कर बात करेगी| वो कमरे में उसी खिड़की के पास जा कर बैठ गई और मैं उसके सामने घुटनों के बल बैठ गया और उसकी गोद में सर रख दिया| ऋतू ने मेरे सर को सहलाना शुरू कर दिया और बोली;
ऋतू: संडे पक्का आओगे ना?
मैं: हाँ ... अब ये बताओ क्या लाऊँ अपनी जानेमन के लिए?
ऋतू: बस आप आ जाना, वही काफी है मेरे लिए|
उसने मुस्कुराते हुए कहा और फिर उठ के मेरे कपडे पैक करने लगी| मैंने पीछे से जा कर उसे अपनी बाँहों में जकड़ लिया| मेरे जिस्म का एहसास होते ही जैसे वो सिंहर उठी| मैंने ऋतू की नंगी गर्दन पर अपने होंठ रखे तो उसने अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन के पीछे ले जा कर जकड़ लिया| हालाँकि उसका मुँह अब भी सामने की तरफ था और उसकी पीठ मेरे सीने से चुपकी हुई थी| आगे कुछ करने से पहले ही मेरे फ़ोन की घंटी बज उठी और मैं ऋतू से थोड़ा दूर हो गया| जैसे ही मैं फ़ोन ले कर पलटा और 'हेल्लो' बोला की तभी ऋतू ने मुझे पीछे से आ कर जकड़ लिया| उसने मुझे इतनी जोर से जकड़ा की उसके जिस्म में जल रही आग मेरी पीठ सेंकने लगी| "सर मैं आपको अभी थोड़ी देर में फ़ोन करा हूँ, अभी मैं ड्राइव कर रहा हूँ|" इतना कह कर मैंने फ़ोन पलंग पर फेंक दिया और ऋतू की तरफ घूम गया| उसे बगलों से पकड़ कर मैंने उसे जैसे गोद में उठा लिया| ऋतू ने भी अपने दोनों पैरों को मेरी कमर के इर्द-गिर्द जकड़ लिया और मेरे होठों को चूसने लगी| मैंने अपने दोनों हाथों को उसके कूल्हों के ऊपर रख दिया ताकि वो फिसल कर नीचे न गिर जाए| ऋतू मुझे बेतहाशा चुम रही थी और मैं भी उसके इस प्यार का जवाब प्यार से ही दे रहा था| मैं ऋतू को इसी तरह गोद में उठाये कमरे में घूम रहा था और वो मेरे होठों को चूसे जा रही थी| शायद वो ये उम्मीद कर रही थी की मैं उसे अब पलंग पर लिताऊँगा, पर मेरा मन बस उसके साथ यही खेल खेलना चाहता था|
ऋतू: जानू...मैं आपसे कुछ माँगूँ तो मन तो नहीं करोगे ना? (ऋतू ने चूमना बंद किया और पलकें झुका कर मुझ से पूछा|)
मैं: जान! मेरी जान भी मांगोंगे तो भी मना नहीं करूँगा| हुक्म करो!
ऋतू: जाने से पहले आज एक बार... (इसके आगे वो बोल नहीं पाई और शर्म से उसने अपना मुँह मेरे सीने में छुपा लिया|)
मैं: अच्छा जी??? तो आपको एक बार और मेरा प्यार चाहिए???
ये सुन कर ऋतू बुरी तरह झेंप गई और अपने चेहरे को मेरी छाती में छुपा लिया| अब अपनी जानेमन को कैसे मना करूँ?