14-10-2019, 06:11 PM
(This post was last modified: 06-01-2021, 12:58 PM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
चुसम चुसाई
लेकिन बात गीता ने ही शुरू की अपनी माँ को छेड़ते
" क्यों माँ बहुत मजा आया ,मेरे भैया से चुसवाने में न "
" अरे छिनाल तू भी तो मजे ले ले के मेरे मुन्ने का अगवाड़ा पिछवाड़ा चूस रही थी पूरी ताकत से."
मंजू बाई ने गीता को चिढाया।
गीता और मंजू खिलखिलाने लगे और गीता बोलीं ,
" माँ तेरा रस कितना ज्यादा भैया के मुंह पर लगा है , देख तो। ज़रा मुझे भी चटा दे न ,बहुत दिन से रस नहीं चखा तेरी चूत का। "
" अरे तो चाट काहे नहीं लेती अपने भैया के मुंह पर से , बड़ी भैया वाली बनी फिरती है "
मंजू बाई ने गीता को चढाया , और गीता झट से मेरे पास सीधे मेरी गोद में।
गीता के होंठ मेरे होंठों पर और फिर सिर्फ होंठों पर से नही
बल्कि पूरे चेहरे पर से उसकी लपलपाती जीभ ने जो रस चाटा और साथ में गीता के बोल भी ,
" भैया ,मैं कह रही थी न माँ के भोंसडे में बहुत रस है , खूब मीठा गाढ़ा। "
बात गीता की एकदम सही थी पर अब मेरे होंठ ,पूरा चेहरा सिर्फ मंजू बाई के रस से ही नहीं
बल्कि गीता के मुंह का रस भी पूरा लिथड़ गया था।
" अच्छा चल बहूत चूम चाट लिया मेरे मुन्ने को , अब अपने होंठ इधर कर देखूं मेरे बेटे के खजाने से क्या रस निकाला है , "
मंजू बाई भी अब उन दोनों से सट के बैठ गयी थीं।
गीता ने अपने होंठ अपनी माँ की ओर बढ़ाते बोला ,
" सच में माँ बहुत मजा छिपा है तेरे बेटे के पिछवाड़े मस्त रस भरा है , "
लेकिन फिर मुंह बना के बोली "
लेकिन तेरे बेटे का पिछवाड़ा अभी तक कोरा है ,कच्ची कली है बिचारी। "
मंजू बाई के होंठों ने गीता के होंठों को गड़प कर ,गीता का मुंह बंद कर दिया।
लेकिन मंजू बाई की ऊँगली पहले तो जैसे खड़े झंडे पे ,जैसे गलती से लग गयी ही ,टकरा गयी , और मंजू बाई का मुंह उसके कड़ेपन का अहसास कर चमक गया।
फिर वो खोज बिन करती उंगलिया सीधे पिछवाड़े , गोलकुंडा के दरवाजे पे।
थोड़ी देर छेद की जांच पड़ताल करने के बाद चूतड़ थपथपाते मंजू बाई ने अपना फैसला सुना दिया ,
" बात तो तेरी एकदम सही है , ये अभी एकदम कोरी है ,लेकिन माँ का आशीर्वाद है ,
बहुत जल्द एक से एक मोटे लन्ड ,... अरे जिस लन्ड को घोंटने में चार बच्चे जनने वाली जनाना को ,
भोंसड़ी वाली को पसीना छूट जाये , वैसे गदहा छाप लन्ड ये हँसते मुस्कराते घोंट जाएगा।
नम्बरी गांडू बनेगा ,मरवाने में अपनी माँ बहन का भी नंबर डकायेगा ये। "
गीता क्यों छोड़ती टुकड़ा लगाने से , बोली ,
" भैया ,इत्ते चिकने हो आप ,बच कैसे गए। एक बात बोल देती हूँ मैं ,
जब घुसेगा न लन्ड पहली बार बहुत दर्द होगा , खूब गांड पटकोगे , लेकिन गांड का मरवैया भी न ,
फिर जब गांड का छल्ला पार होगा न इत्ता परपरायेगा , की ....
लेकिन जब दो चार लन्ड घोंट लोगे तो खुद ही गांड में कीड़े काटेंगे ,गांड मरवाने के लिए
अरे माँ का आशीर्वाद है गलत थोड़े ही होगा। "
मंजू बाई ने तोप का रुख अपनी बेटी की ओर मोड़ दिया ,
" अरे तू काहे नहीं मरवा लेती गांड मेरे बेटे से ,तेरी कौन सी कोरी है। "
" एकदंम मरवाउंगी माँ ,मेरा प्यारा भैया है ,लेकिन बस एक छोटी सी शर्त है मेरी जब मेरा भइया मरवा लेगा न उसके बाद "
मेरे गाल सहलाते गीता ने अपना इरादा जाहिर कर दिया।
गनीमत था अब गीता और मंजू बाई एकदूसरे से संवाद में मगन हो गयीं थीं।
लेकिन बात गीता ने ही शुरू की अपनी माँ को छेड़ते
" क्यों माँ बहुत मजा आया ,मेरे भैया से चुसवाने में न "
" अरे छिनाल तू भी तो मजे ले ले के मेरे मुन्ने का अगवाड़ा पिछवाड़ा चूस रही थी पूरी ताकत से."
मंजू बाई ने गीता को चिढाया।
गीता और मंजू खिलखिलाने लगे और गीता बोलीं ,
" माँ तेरा रस कितना ज्यादा भैया के मुंह पर लगा है , देख तो। ज़रा मुझे भी चटा दे न ,बहुत दिन से रस नहीं चखा तेरी चूत का। "
" अरे तो चाट काहे नहीं लेती अपने भैया के मुंह पर से , बड़ी भैया वाली बनी फिरती है "
मंजू बाई ने गीता को चढाया , और गीता झट से मेरे पास सीधे मेरी गोद में।
गीता के होंठ मेरे होंठों पर और फिर सिर्फ होंठों पर से नही
बल्कि पूरे चेहरे पर से उसकी लपलपाती जीभ ने जो रस चाटा और साथ में गीता के बोल भी ,
" भैया ,मैं कह रही थी न माँ के भोंसडे में बहुत रस है , खूब मीठा गाढ़ा। "
बात गीता की एकदम सही थी पर अब मेरे होंठ ,पूरा चेहरा सिर्फ मंजू बाई के रस से ही नहीं
बल्कि गीता के मुंह का रस भी पूरा लिथड़ गया था।
" अच्छा चल बहूत चूम चाट लिया मेरे मुन्ने को , अब अपने होंठ इधर कर देखूं मेरे बेटे के खजाने से क्या रस निकाला है , "
मंजू बाई भी अब उन दोनों से सट के बैठ गयी थीं।
गीता ने अपने होंठ अपनी माँ की ओर बढ़ाते बोला ,
" सच में माँ बहुत मजा छिपा है तेरे बेटे के पिछवाड़े मस्त रस भरा है , "
लेकिन फिर मुंह बना के बोली "
लेकिन तेरे बेटे का पिछवाड़ा अभी तक कोरा है ,कच्ची कली है बिचारी। "
मंजू बाई के होंठों ने गीता के होंठों को गड़प कर ,गीता का मुंह बंद कर दिया।
लेकिन मंजू बाई की ऊँगली पहले तो जैसे खड़े झंडे पे ,जैसे गलती से लग गयी ही ,टकरा गयी , और मंजू बाई का मुंह उसके कड़ेपन का अहसास कर चमक गया।
फिर वो खोज बिन करती उंगलिया सीधे पिछवाड़े , गोलकुंडा के दरवाजे पे।
थोड़ी देर छेद की जांच पड़ताल करने के बाद चूतड़ थपथपाते मंजू बाई ने अपना फैसला सुना दिया ,
" बात तो तेरी एकदम सही है , ये अभी एकदम कोरी है ,लेकिन माँ का आशीर्वाद है ,
बहुत जल्द एक से एक मोटे लन्ड ,... अरे जिस लन्ड को घोंटने में चार बच्चे जनने वाली जनाना को ,
भोंसड़ी वाली को पसीना छूट जाये , वैसे गदहा छाप लन्ड ये हँसते मुस्कराते घोंट जाएगा।
नम्बरी गांडू बनेगा ,मरवाने में अपनी माँ बहन का भी नंबर डकायेगा ये। "
गीता क्यों छोड़ती टुकड़ा लगाने से , बोली ,
" भैया ,इत्ते चिकने हो आप ,बच कैसे गए। एक बात बोल देती हूँ मैं ,
जब घुसेगा न लन्ड पहली बार बहुत दर्द होगा , खूब गांड पटकोगे , लेकिन गांड का मरवैया भी न ,
फिर जब गांड का छल्ला पार होगा न इत्ता परपरायेगा , की ....
लेकिन जब दो चार लन्ड घोंट लोगे तो खुद ही गांड में कीड़े काटेंगे ,गांड मरवाने के लिए
अरे माँ का आशीर्वाद है गलत थोड़े ही होगा। "
मंजू बाई ने तोप का रुख अपनी बेटी की ओर मोड़ दिया ,
" अरे तू काहे नहीं मरवा लेती गांड मेरे बेटे से ,तेरी कौन सी कोरी है। "
" एकदंम मरवाउंगी माँ ,मेरा प्यारा भैया है ,लेकिन बस एक छोटी सी शर्त है मेरी जब मेरा भइया मरवा लेगा न उसके बाद "
मेरे गाल सहलाते गीता ने अपना इरादा जाहिर कर दिया।
गनीमत था अब गीता और मंजू बाई एकदूसरे से संवाद में मगन हो गयीं थीं।