13-10-2019, 10:44 PM
update 12
मैंने फिर से ऋतू को अपने आगोश में ले लिया और हम दोनों लेट गए| मैं पीठ के बल लेटा था और ऋतू मेरी तरफ करवट किये हुए थी, उसका बायाँ हाथ मेरी छाती पर था और वो मेरी शेव की हुई छाती पर अपनी उँगलियाँ चला रही थी| तभी उसने अपनी बायीं टांग उठा कर मेरे लंड पर रख दी और अचानक ही उसके मुँह से दर्द भरी 'आह' निकल गई| "क्या हुआ जान?!" मैंने चिंता जताते हुए उससे पूछा तो उसने मुस्कुरा कर ना में गर्दन हिला दी| मैं उठ बैठा और लाइट जला कर उसकी बुर की तरफ देखा तो पाया की वो बहार से सूज गई है| उसके कोमल पट सूजे हुए दिखे| जिस लड़की से मैं इतना प्यार करता हूँ, आज उसी को मैंने इतना दर्द दे दिया वो भी सिर्फ अपनी वासना में जल कर? ग्लानि से मेरा सर झुक गया तो ऋतू उठ बैठी और मेरे सर को अपने दोनों हाथों में थाम के ऊपर उठाया और बोली; "आपको क्या हुआ?"
"सॉरी! मेरी वजह से तुम्हें इतना दर्द हो रहा है|" इतना कह के मैंने शर्म से सर फिर झुका लिया| उसने फिर से मेरा सर ऊपर किया और मेरी आँखों में आँखें डाले बोलने लगी;"जानू! ये तो बस १-२ दिन में ठीक हो जायेगा, आप खामखा अपने को दोष ना दो|"
"ठीक है! अब तुम्हें दर्द दिया है तो दवा भी मैं ही करूँगा|" इतना कह कर मैं उठा और किचन में पानी गर्म करने लगा|
ऋतू: आप क्या कर रहे हो?
मैं: पानी गर्म कर रहा हूँ, उससे सेक देने से आराम मिलेगा|
ऋतू: रहने दो ना,आप मेरे पास लेटो|
मैं: आ रहा हूँ|
पानी थोड़ा गर्म हो चूका था, मैंने एक छोटा तौलिया लिया और रुई का एक टुकड़ा ले कर मैं वापस पलंग पर लौट आया| तौलिये को मैंने ऋतू की कमर के नीचे रख दिया ताकि पानी से बिस्तर गिला न हो जाये और फिर रुई को गर्म पानी में भिगो कर ऋतू के बुर की सिकाई करने लगा| इस सिकाई से उसे बहुत आराम मिला और उसने की बार मुझे रोका, ये कह के की उसे आराम मिल गया पर मैं फिर भी करीब दस मिनट तक उसकी बुर की सिकाई करता रहा| "बस बहुत हो गई सिकाई, अब मेरे पास आओ|" ये कहते हुए ऋतू ने अपनी बाहें खोल दीं और मैंने बर्तन नीचे रखा, उसे अपनी बाहों में भर कर लेट गया| हम इसी तरह सो गए पर रात के ग्यारह बजे होंगे की ऋतू चौंक कर उठ गई और हाँफने लगी| "क्या हुआ जान? कोई बुरा सपना देखा?" मैंने ऋतू से पूछा तो जवाब में वो कुछ नहीं बोली बल्कि अपने दोनों हाथों से अपने चेहरे को ढक कर रोने लगी| मैंने उसके दोनों हाथों को उसके चेहरे से हटाया और उसके माथे पर चूमा और उसे अपने सीने से लगा लिया| करीब दो मिनट बाद उसका रोना बंद हुआ और उसने सुबकते हुए जो कहा उसे सुन मेरे होश उड़ गए; "आप.... मैंने ... बहुत बुरा....सपना...." ऋतू ने सुबकते हुए कहा| मैं तुरंत उससे अलग हुआ, कमरे की लाइट जलाई और उसके लिए पानी ले कर आया| पानी पीने के बाद उसने एक गहरी साँस ली और बोली;
ऋतू: मैंने सपना देखा की माँ मुझसे बदला लेने के लिए आपके साथ सेक्स कर रही है|
मैं: (चौंकते हुए) क्या? क्या बकवास कर रही है? तेरी माँ मतलब मेरी भाभी और भला हम दोनों ऐसा!? छी!
ऋतू: आपको नहीं पता पर एक रात मैं और माँ छत पर सो रहे थे| वो नींद में आपका नाम बड़बड़ा रही थी और तकिये को अपने से चिपकाए हुए कसमसा रही थी|
मैं: ये नहीं हो सकता?! पर .... पर ... हमारे बीच तो सीधे मुँह बात भी नहीं होती| तो सेक्स......
ऋतू: मुझे नहीं पता|
इतना कह कर ऋतू फिर से रोने लगी| "ऐसा कभी नहीं होगा! मैं तुझसे प्यार करता हूँ और भाभी मेरे साथ कभी भी वो सब करने में कामयाब नहीं होगी|" मैंने ऋतू को फिर से अपने गले लगा लिया और उसकी पीठ सहला कर उसे चुप कराने लगा|ऋतू का सुबकना कम हुआ तो हम दोनों लेट गए पर अगले ही पल वो मुझसे कस के चिपक गई, जैसे की उसे डर हो के सच में कोई मुझे उससे चुरा लेगा| इधर मेरे दिमाग में उथल-पुथल मची हुई थी की भाभी भला मेरे बारे में ऐसा कैसे सोच सकती हैं? मैंने तो कभी भाभी को इस नजर से नहीं देखा? हम दोनों के बीच तो कभी सीधे मुँह बात भी नहीं हुई? तभी मुझे संकेत की बात याद आई जब उसने भाभी को 'माल' कहा था| क्या भाभी के गैर मर्दों के साथ रिश्ते हैं? ये सभी सोचते-सोचते दिमाग जोर से चलने लगा था, अब अगर ऋतू नहीं होती तो मैं गांजा पीता और इस टेंशन से बाहर निकल जाता| पर अब तो उसे वादा कर चूका था तो तोड़ता कैसे? इसलिए ऐसे ही चुप-चाप बिस्तर पर पड़ा रहा| न जाने कैसे शायद ऋतू ने मेरी चिंता भाँप ली और उसने अपनी गर्दन मेरे बाजू पर से उठाई और मेरे होठों को चूम लिया| उसके इस चुंबन से मेरा ध्यान भाभी से हटा, पर ये बहुत छोटा सा चुंबन था| शायद आज की दमदार सेक्स के बाद वो काफी तक चुकी थी| मेरे आगोश में आते ही उसकी आँख लग गई और वो चैन की नींद सो गई| इधर ऋतू के जिस्म की भीनी खुशबु और उसे आज सकूँ से प्यार करने के बाद मैं भी सो गया|
मैंने फिर से ऋतू को अपने आगोश में ले लिया और हम दोनों लेट गए| मैं पीठ के बल लेटा था और ऋतू मेरी तरफ करवट किये हुए थी, उसका बायाँ हाथ मेरी छाती पर था और वो मेरी शेव की हुई छाती पर अपनी उँगलियाँ चला रही थी| तभी उसने अपनी बायीं टांग उठा कर मेरे लंड पर रख दी और अचानक ही उसके मुँह से दर्द भरी 'आह' निकल गई| "क्या हुआ जान?!" मैंने चिंता जताते हुए उससे पूछा तो उसने मुस्कुरा कर ना में गर्दन हिला दी| मैं उठ बैठा और लाइट जला कर उसकी बुर की तरफ देखा तो पाया की वो बहार से सूज गई है| उसके कोमल पट सूजे हुए दिखे| जिस लड़की से मैं इतना प्यार करता हूँ, आज उसी को मैंने इतना दर्द दे दिया वो भी सिर्फ अपनी वासना में जल कर? ग्लानि से मेरा सर झुक गया तो ऋतू उठ बैठी और मेरे सर को अपने दोनों हाथों में थाम के ऊपर उठाया और बोली; "आपको क्या हुआ?"
"सॉरी! मेरी वजह से तुम्हें इतना दर्द हो रहा है|" इतना कह के मैंने शर्म से सर फिर झुका लिया| उसने फिर से मेरा सर ऊपर किया और मेरी आँखों में आँखें डाले बोलने लगी;"जानू! ये तो बस १-२ दिन में ठीक हो जायेगा, आप खामखा अपने को दोष ना दो|"
"ठीक है! अब तुम्हें दर्द दिया है तो दवा भी मैं ही करूँगा|" इतना कह कर मैं उठा और किचन में पानी गर्म करने लगा|
ऋतू: आप क्या कर रहे हो?
मैं: पानी गर्म कर रहा हूँ, उससे सेक देने से आराम मिलेगा|
ऋतू: रहने दो ना,आप मेरे पास लेटो|
मैं: आ रहा हूँ|
पानी थोड़ा गर्म हो चूका था, मैंने एक छोटा तौलिया लिया और रुई का एक टुकड़ा ले कर मैं वापस पलंग पर लौट आया| तौलिये को मैंने ऋतू की कमर के नीचे रख दिया ताकि पानी से बिस्तर गिला न हो जाये और फिर रुई को गर्म पानी में भिगो कर ऋतू के बुर की सिकाई करने लगा| इस सिकाई से उसे बहुत आराम मिला और उसने की बार मुझे रोका, ये कह के की उसे आराम मिल गया पर मैं फिर भी करीब दस मिनट तक उसकी बुर की सिकाई करता रहा| "बस बहुत हो गई सिकाई, अब मेरे पास आओ|" ये कहते हुए ऋतू ने अपनी बाहें खोल दीं और मैंने बर्तन नीचे रखा, उसे अपनी बाहों में भर कर लेट गया| हम इसी तरह सो गए पर रात के ग्यारह बजे होंगे की ऋतू चौंक कर उठ गई और हाँफने लगी| "क्या हुआ जान? कोई बुरा सपना देखा?" मैंने ऋतू से पूछा तो जवाब में वो कुछ नहीं बोली बल्कि अपने दोनों हाथों से अपने चेहरे को ढक कर रोने लगी| मैंने उसके दोनों हाथों को उसके चेहरे से हटाया और उसके माथे पर चूमा और उसे अपने सीने से लगा लिया| करीब दो मिनट बाद उसका रोना बंद हुआ और उसने सुबकते हुए जो कहा उसे सुन मेरे होश उड़ गए; "आप.... मैंने ... बहुत बुरा....सपना...." ऋतू ने सुबकते हुए कहा| मैं तुरंत उससे अलग हुआ, कमरे की लाइट जलाई और उसके लिए पानी ले कर आया| पानी पीने के बाद उसने एक गहरी साँस ली और बोली;
ऋतू: मैंने सपना देखा की माँ मुझसे बदला लेने के लिए आपके साथ सेक्स कर रही है|
मैं: (चौंकते हुए) क्या? क्या बकवास कर रही है? तेरी माँ मतलब मेरी भाभी और भला हम दोनों ऐसा!? छी!
ऋतू: आपको नहीं पता पर एक रात मैं और माँ छत पर सो रहे थे| वो नींद में आपका नाम बड़बड़ा रही थी और तकिये को अपने से चिपकाए हुए कसमसा रही थी|
मैं: ये नहीं हो सकता?! पर .... पर ... हमारे बीच तो सीधे मुँह बात भी नहीं होती| तो सेक्स......
ऋतू: मुझे नहीं पता|
इतना कह कर ऋतू फिर से रोने लगी| "ऐसा कभी नहीं होगा! मैं तुझसे प्यार करता हूँ और भाभी मेरे साथ कभी भी वो सब करने में कामयाब नहीं होगी|" मैंने ऋतू को फिर से अपने गले लगा लिया और उसकी पीठ सहला कर उसे चुप कराने लगा|ऋतू का सुबकना कम हुआ तो हम दोनों लेट गए पर अगले ही पल वो मुझसे कस के चिपक गई, जैसे की उसे डर हो के सच में कोई मुझे उससे चुरा लेगा| इधर मेरे दिमाग में उथल-पुथल मची हुई थी की भाभी भला मेरे बारे में ऐसा कैसे सोच सकती हैं? मैंने तो कभी भाभी को इस नजर से नहीं देखा? हम दोनों के बीच तो कभी सीधे मुँह बात भी नहीं हुई? तभी मुझे संकेत की बात याद आई जब उसने भाभी को 'माल' कहा था| क्या भाभी के गैर मर्दों के साथ रिश्ते हैं? ये सभी सोचते-सोचते दिमाग जोर से चलने लगा था, अब अगर ऋतू नहीं होती तो मैं गांजा पीता और इस टेंशन से बाहर निकल जाता| पर अब तो उसे वादा कर चूका था तो तोड़ता कैसे? इसलिए ऐसे ही चुप-चाप बिस्तर पर पड़ा रहा| न जाने कैसे शायद ऋतू ने मेरी चिंता भाँप ली और उसने अपनी गर्दन मेरे बाजू पर से उठाई और मेरे होठों को चूम लिया| उसके इस चुंबन से मेरा ध्यान भाभी से हटा, पर ये बहुत छोटा सा चुंबन था| शायद आज की दमदार सेक्स के बाद वो काफी तक चुकी थी| मेरे आगोश में आते ही उसकी आँख लग गई और वो चैन की नींद सो गई| इधर ऋतू के जिस्म की भीनी खुशबु और उसे आज सकूँ से प्यार करने के बाद मैं भी सो गया|