10-10-2019, 09:18 PM
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ठीक १ बजे ऋतू का फ़ोन आया और मैंने उसे बता दिया की उसके कॉलेज और हॉस्टल दोनों जगह बात हो गई है| ये सुन कर वो बहुत खुश हो गई और पूछने लगी की सब लोग कहाँ है? तो मैंने उसे बता दिया की वो सब बस में बैठे हैं और 5 बजे तक घर पहुँचेंगे| इसके बाद वही प्यार भरी बातें हुई और फिर मेरे बॉस ने आवाज दे दी तो मुझे जल्दी ही जाना पड़ा|
रात के ग्यारह बजे मेरा फ़ोन बजा तो मैंने घडी देखि, चिंता हुई की सब ठीक तो है?
ऋतू: ये मोहिनी कौन है? (उसने बहुत गुस्से में कहा|)
मैं: क्या...? (अभी भी नींद से ऊंघते हुए|)
ऋतू: वही छमक छल्लो जो आपसे गले लगी थी आज?
मैं: (उबासी लेते हुए) वो... दोस्त ... है|
ऋतू: दोस्त है तो दोस्त की तरह रहे! गले लगने की क्या जर्रूरत है उसे?
मैं: अरे बाबा! वो इतने साल बाद मिले ना तो ....
ऋतू: (बीच में बात काटते हुए) ऐसी भी क्या दोस्ती है की होश तक नहीं उसे की आपके साथ घर के बड़े लोग भी हैं! और आप को भी बहुत मज़ा आ रहा था जो उसे अपने सीने से चिपकाये हुए थे!
मैं: अरे मेरी बात तो सुनो! वो दरअसल थोड़ा मुँहफट है!
ऋतू: (बीच में बात काटते हुए) वो सब मैं नहीं जानती, आप उससे दूर रहो वरना मैं उसका मुँह नोच लुंगी!
इतना कह के ऋतू ने फ़ोन काट दिया, तो मैंने दुबारा फ़ोन घुमाया पर उसने फिर काट दिया| तीसरी बार... चौथी बार... पाँचवी बार... छठी बार...सातवीं बार...आठवीं बार...नौंवी बार... इस बार उसने फ़ोन उठाया|
मैं: ऋतू... मेरी बात तो सुन लो एक बार?
ऋतू: (सुबकते हुए) हम्म...
मैं: जैसा तू सोच रही है वैसे कुछ नहीं है| कॉलेज के दिनों में मैं उसे पढ़ाया करता था वो भी उसके घर जा कर| बस इसके अलावा कुछ नहीं है!
ऋतू: घरवाले... आपकी शादी की बात कर रहे हैं! (उसने सुबकते हुए कहा|)
मैं: अरे तो करने दे ... मैं कौन सा शादी कर रहा हूँ! तू चिंता मत कर!
ऋतू: मैं.... आपसे अलग... नहीं रह सकती!.... मैं जान दे दूँगी!
मैं: SHUT UP!!! दुबारा ऐसी कोई बात कही तो मैं तुझसे कभी बात नहीं करूँगा| अब बेधड़क आराम से सो जा... मैं कोशिश करता हूँ की घर एक चक्कर लगा लूँ|
ये सुन कर उसका सुबकना बंद हुआ और उसने I LOVE YOU कह के फ़ोन काटा| अब मुझे उससे कैसे भी मिलने जाना था पर जाऊँ कैसे? बॉस छुट्टी देगा नहीं! पर उन दिनों किस्मत मुझ पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान थी, जो चाह रहा था वो मिल रहा था| इसलिए जब घर जाने का मौका चाहने लगा तो अगले दिन वो भी मिल गया| बॉस ने कुछ फाइल पहुँचाने के लिए मुझे कहा| बीच रस्ते में मेरा गाँव था और बॉस जानते थे की मैं घर जर्रूर जाऊँगा इसलिए मेरी ख़ुशी पढ़ते हुए बोले; "कल लंच तक आ जाना|" मैंने ख़ुशी से हाँ कहा और तुरंत निकल पड़ा, पहले फाइल पहुँचाई और फिर वापसी में घर पहुँचा| बुलेट की आवाज सुनते ही ऋतू भागती हुई बाहर आई और मुझे देखते ही उसकी आँखें चमक उठी| उसने आगे बढ़ के मुझे गले लगना चाहा पर बाहर पिताजी और ताऊ जी बैठे थे इसलिए अपना मन मार के चुपचाप खड़ी हो कर मुझे उनसे बात करता हुआ देखने लगी| जब तक मेरी बात खत्म नहीं हुई वो वहाँ से हिली नहीं, शायद उसे डर था की मैं कहीं बहार से ही ना चला जाऊँ| जैसे ही मेरी बात खत्म हुई वो भागती हुई अंदर चली गई पर जब मैंने अंदर घुस के देखा तो वो मुझे कहीं नहीं मिली| आंगन में माँ, ताई जी और भाभी बैठी सब्जी काट रही थी| "अचानक कैसे आना हुआ?" भाभी ने पूछा|
"कुछ काम से पास के गाँव आना हुआ था|" मैंने रुखा सा जवाब दिया और अपने कमरे की तरफ चल दिया| जैसे ही सीढ़ी चढ़ के ऊपर पहुँचा तो ऋतू अपने कमरे में घुस गई और इशारे से मुझे अंदर आने को कहा| मैं उसके कमरे में घुसा और उसने मेरा हाथ पकड़ के मुझे अपने पलंग पर बिठा दिया, फिर अपने दुपट्टे से मेरा पसीना पोछने लगी| उसकी ख़ुशी उसके चेहरे से साफ़ झलक रही थी, वो मुड़ी और टेबल से पानी की गिलास और गुड़ उठा के मुझे दिया| मैंने गुड़ खाया और फिर पानी पिया और उसकी तरफ प्यार से देखने लगा| "आपको भूख लगी होगी?| उसने मुस्कुरा कर कहा और मुड के जाने लगी तो मैंने उसकी कलाई थाम ली और बैग से गुलाब निकाल के अपने घुटनों पर आते हुए कहा; "मेरी जान के लिए!" ऋतू ने मेरे हाथ से गुलाब ले लिया और फिर उसे अपने होठों से चूमा| फिर वो मेरी तरफ देख कर मुस्कुराई और झुक कर मेरे माथे को चूमा| मैं खड़ा हुआ और उसे अपने सीने से जकड़ लिया| इससे पहले की आगे कुछ बात हो पाती नीचे से मेरा बुलावा आ गया और मुझे ऋतू को छोड़ के नीचे जाना पड़ा| खेर वो शाम मुझे नीचे सब के बीच बैठ के बितानी पड़ी पर रात को खाने के समय ताऊ जी ने मेरी शादी की बात छेड़ी;
ताऊ जी: तो बरखुरदार! शादी के बारे में क्या विचार है?
मैं: जी अभी नहीं!
पिताजी: क्यों भला? लड़की तो तूने पहले ही पसंद कर रखी है ना?!
मैं: कौनसी लड़की?
चन्दर: अरे वही जो शहर में मिली थी, जिसने तुम्हें देखते ही गले लगा लिया था?
मैं: (खीजते हुए) वो खुद गले लग गई थी, मैंने उसे गले नहीं लगाया था| और आप सब से किसने कहा की मैं उससे शादी करना चाहता हूँ? मैं बस उसे कॉलेज टाइम में पढ़ाया करता था इससे ज्यादा और कुछ नहीं है!
ताऊ जी: अरे हम अंधे-बहरे थोड़े ही हैं जो हमें उसकी माँ का बार बार 'अपना' कहना सुनाई नहीं देता! कितनी बार उन्होंने तुझे घर आने को कहा था?
मैं: वो सब इसलिए कह रही थी क्योंकि मैं उनकी बेटी को मुफ्त में पढ़ाता था, हॉस्टल का खाना कितना वाहियात होता था इसलिए वो बदले में मुझे घर का खाना खिलाया करती थी और इसी कारन उनका अपनापन मेरे प्रति थोड़ा ज्यादा है| इससे ज्यादा उन्होंने कभी कुछ नहीं कहा|
पिताजी: तो कब करेगा तू शादी?
मैं: पिताजी एक बार नौकरी पक्की हो जाये, पैसा अच्छा कमाने लगूँ तो मैं शादी कर लूँगा|
ताऊ जी: तुझे पैसे की क्यों चिंता है? इतना बड़ा खेत.....
मैं: (उनकी बात काटते हुए) मुझे अपने पाँव पर खड़ा होना है| जब मुझे लगेगा की मैं अपने पाँव पर खड़ा हो गया हूँ तो मैं आपको खुद बता दूँगा और शायद आप भूल रहे हैं की आपने वादा किया था!
मेरा इतना कहना था की उन्हें अपना वादा याद आ गया और उन्होंने आगे कुछ नहीं कहा बस गुस्से से मुझे एक बार देखा और फिर खाना खाने लगे| खाने के बाद मैं ऊपर आ गया और छत पर चक्कर लगाने लगा| घंटे भर बाद ऋतू भी खाना खा के ऊपर आ गई और मुझे इस तरह गुम-सुम छत पर टहलते हुए देखने लगी| जब मेरी नजर उस पर पड़ी तो मैं ने पाया की वो बड़ी गौर से मुझे देख रही थी और मन ही मन कुछ सोच रही थी| "क्या हुआ जान?" मेरी आवाज सुन कर वो होश में आते हुई बोली; "कुछ नहीं... बस ऐसे ही आपको देख रही थी| आपके जितना प्यार करने वाले को पा कर आज मुझे खुद पर बहुत गर्व हो रहा है|” आगे कुछ बोलने से पहले ही भाभी आ गई और उन्होंने ऋतू को बिस्तर लाने को कहा| आज सभी औरतें छत पर सोने वाली थीं सो मैं उतर के अपने कमरे में लेट गया| अगली सुबह मुझे जल्दी जाना था तो मैं बिना नाश्ता किये जाने लगा तो ऋतू भाग के मेरे पास आई और परांठे जो की उसने पैक कर दिए थे मुझे दे दिए और नीचे चली गई|
कुछ दिन बीते और आखिर वो दिन आ ही गया जब ऋतू को कॉलेज ज्वाइन करना था| शनिवार को घर आते-आते रात हो गई, घर के सभी लोग खाना खा चुके थे| मुझे देखते ही ऋतू ने तुरंत खाना परोस के मुझे दे दिया और खुद अपने कमरे में चली गई| मैं खाना खा के ऊपर आया तो देखा उसने अपने कमरे में सारा सामान समेट रखा था| एक बैग जिसमें उसके कपडे थे वो तैयार रखा था, पूरे कमरे को उसने अच्छे से साफ़ किया था| जब उसकी नजर मुझ पर पड़ी तो उसके चेहरे ने उसकी सारी खुशियों को बयान कर दिया| उसने मुझे गले लगाना चाहा पर तभी पीछे से ताई जी आ गई और कमरे को देखते हुए ऋतू को ताना मारते हुए बोली; "चलो शुक्र है तू ने अपने कमरे को साफ़ कर दिया वरना ये भी हमें ही करना पड़ता|"
"समझदार है!" मैंने उनके ताने का जवाब दिया और फिर अपने कमरे में आ कर लेट गया| मेरे जाते ही ताई जी ऋतू को ज्ञान देने लगी की शहर में उसे किन-किन बातों का ध्यान रखना है| मैं अपने कमरे से उनकी सारी बातें सुन रहा था, ये ज्ञान कम और ताने ज्यादा थे! मैं चुप-चाप करवट लेके लेट गया और सुबह पाँच बजे के अलार्म के साथ उठ बैठा| मैं बाहर आया और अंगड़ाई लेने लगा तो देखा ऋतू नीचे घर के काम कर रही है| मुझे देखते ही वो मुस्कुरा दी और फिर अपने काम में लग गई| मैं जल्दी से नाहा-धो के तैयार हुआ और फिर सभी ने नाश्ता किया|
ताऊ जी: देख ऋतू शहर जा के कहीं मटर-गश्ती शुरू न कर देना! तेरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई में रहना चाहिए और हर शनिवार-इतवार को दोनों घर आते रहना|
मैं; जी ... आप तो जानते ही हैं की मुझे दूसरे और आखरी शनिवार की छुट्टी मिलती है..... तो....
पिताजी: ठीक है... पर ख्याल रखिओ ऋतू का और हमें तुम दोनों की कोई शिकायत नहीं आनी चाहिए!
मैं: जी... वैसे भी हमारा मिलना कहाँ हो पायेगा?
ताई जी: क्यों?
मैं: मेरे पास समय ही नहीं होता! एक संडे मिलता है तो उसमें भी कपडे धो ना और खाना बनाने में समय निकल जाता है| शाम को फ्री होता हूँ पर हॉस्टल में 6 बजे के बाद मनाही है|
ताई जी: तो इसे (ऋतू) कोई दिक्कत हुई तो?
ताऊ जी: अरे कुछ दिक्कत नहीं होगी| सब देखा है हमने, तू चिंता मत कर|
मैंने आगे कुछ और नहीं कहा और फटाफट नाश्ता किया और अपनी बुलेट रानी को कपडा मारने बाहर चला गया| सब कुछ अच्छे से साफ़ कर के जब मैंने पीछे पलट के देखा तो ऋतू अपना बैग कंधे में टाँगे खड़ी थी| मैंने आगे बढ़ कर उससे बैग लिया और बाइक पर बैठ गया और बैग को पेट्रोल की टंकी पर रख लिया| एक स्टाइल वाली किक मारी और भड़भड़ करती हुई बुलेट स्टार्ट हुई, मैंने पलट के ऋतू को पीछे बैठने को कहा| तो वो सम्भल के बैठ गई और अपना दायाँ हाथ मेरे कंधे पर रख लिया| सारे घर वाले बाहर आ कर खड़े हो चुके थे और ऋतू की कुछ सहेलियां भी बुलेट की आवाज सुन कर वहाँ आ कर खड़ी हो गईं और हाथ हिला कर उसे बाय कहने लगी| ताऊ जी ने फिर से कहा; "सम्भल के जाना और वहाँ जा के हमें फ़ोन करना|" अब उन्हें भी तो थोड़ा बहुत दिखावा तो करना था ना! गाँव से करीब दो किलोमीटर दूर पहुंचे होंगे की मैंने बाइक रोक दी और ऋतू से दोनों तरफ टांग कर के बैठने को कहा| उसने ठीक वैसे ही किया और अपने दोनों हाथों को मेरी बगल से ले कर सामने की तरफ लाइ और मेरी छाती को कस के पकड़ लिया| उसका सर मेरी पीठ में धंसा हुआ था और आँखें बंद थी| ऋतू की गर्म सांसें मुझे मेरी पीठ पर महसूस हो रही थी, मैं बाइक को 40 की स्पीड में ही चला रहा था ताकि इस सफर का जितना हो सके उतना आनंद ले सकूँ|
दो घंटे की ड्राइव के बाद अब थकावट होने लगी तो मैंने बाइक एक ढाबे की तरफ मोड़ दी जहाँ की मैं अक्सर रुका करता था, जब भी घर जाता या आता था| बाइक रुकते ही ऋतू जैसे अपने ख्यालों की दुनिया से बाहर आई| "चलो चाय पीते हैं|" मैंने उसे कहा तो वो बाइक से उतरी और मैंने बाइक पार्क की और हम दोनों ढाबे में घुसे| मुझे देखते ही वेटर ने तपाक से नमस्ते की और ऋतू को मेरे साथ देखते ही वो समझ गया की वो प्रियतमा है और उसने नमस्ते दीदी कहा! ऋतू ने उसकी नमस्ते का जवाब दिया और फिर हम खिड़की के पास वाले टेबल पर बैठ गए| "आपको पता है मैं क्या सोच रही थी?" ऋतू ने मुझसे पुछा तो मैंने ना में सर हिला दिया| "मुझे ऐसा लग रहा था जैसे हम दोनों इस नर्क से भाग के कहीं अपनी छोटी सी दुनिया बसाने जा रहे हैं| इन दो घंटों में मैं जो कुछ भी सोच सकती थी वो सब सोच लिया की हमारा घर कैसा होगा, बच्चे कितने होंगे!" ऋतू ने बड़े भोलेपन से कहा और मैंने सोचा की मुझे उसे अब अपने प्लान से अवगत करा देना चाहिए|
मैं: घर से भागना इतना आसान नहीं है जितना तुम सोच रही हो| जैसे ही हम घर से भागेंगे उसके कुछ घंटों में ही लठैतों को बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन भेजा जायेगा हमें रोकने के लिए| हर बस को रोक कर चेकिंग की जाएगी और हमें पकड़ के मौत के घात उतार दिया जायेगा| इसलिए हमें जो कुछ भी करना है वो बहुत सोच समझ कर करना होगा और किसी भी हालात में घर पर या किसी भी इंसान को हमारे इस रिश्ते के बारे में कुछ पता नहीं चलना चाहिए! सबसे जर्रूरी चीज जो हमें चाहिए वो है पैसा| इस साल डेढ़ साल की नौकरी में मैं कुछ 10 हजार ही जोड़ पाया हूँ| मेरी नौकरी के बारे में घर में सब जानते हैं और मुझे भी कुछ पैसे घर भेजने पड़ते हैं| पर अब तुम चूँकि शहर आ चुकी हो तो अगले साल से तुम्हें भी कुछ पार्ट टाइम नौकरी करनी होगी| ये वही पैसे हैं जिससे हम बचा सकते हैं और जिनकी मदद से दूसरे शहर में हमें घर किराये पर लेना, बर्तन-भांडे आदि खरीदने में मदद करेंगे|
ऋतू: और हम भागेंगे कैसे?
मैं: तुम्हारे थर्ड ईयर के पेपर होने के अगले दिन ही हम भागेंगे| मैं घर पर फ़ोन कर दूँगा की हम घर आ रहे हैं, अब चूँकि घर पहुँचने में 4 घंटे लगते हैं और घर वाले कम से कम 6 से 8 घंटे तक हमें नहीं ढूंढेंगे तो हमारे पास इतना टाइम गैप होगा की हम ज्यादा से ज्यादा दूरी तय कर सकें| यहाँ से हम सीधा बनारस जायेंगे और वहाँ से बैंगलोर!
ऋतू: बैंगलोर?
मैं: हाँ... वो बड़ा शहर है और वहाँ तक हमें ढूँढना इतना आसान नहीं होगा| मोबाइल फेंकना होगा, बैंक अकाउंट बंद करना होगा और तुम्हारे नए कागज बनवाने होंगे|
ऋतू: कागज?
मैं: आधार कार्ड और PAN कार्ड|
ऋतू: वो तो घर में कभी बनाने नहीं दिए|
मैं: जानता हूँ और वही हमारे काम आएगा| नए कागजों का कोई पेपर ट्रेल नहीं होगा|
ऋतू मेरी सारी बातें हैरानी से सुन रही थी की मैंने इतनी सारी प्लानिंग कर रखी है| इतने में मोहिनी का फ़ोन आ गया, जिसे देख कर ऋतू को बहुत गुस्सा आया| उसने दरअसल पूछने के लिए फ़ोन किया था की हम दोनों कब तक पहुँच रहे हैं| "ये क्यों फोन कर रही थी आपको?" उसने गुस्सा दिखते हुए पूछा| "जान, वो पूछ रही थी कब तक हम दोनों हॉस्टल पहुंचेंगे| अब गुस्सा छोडो और चाय पियो और हाँ याद रहे उसे भूले से भी हमारे बारे में शक़ नहीं होना चाहिए|" ये सुन कर ऋतू कुछ बुदबुदाई और फिर चाय पीने लगी| उसकी इस अदा पर मुझे हँसी आ गई जिसे देख के वो भी थोड़ा मुस्कुरा दी| खेर हम चाय पी कर निकले और दो घंटे बाद शहर पहुँच गए| रास्ते भर ऋतू मुझसे उसी तरह चिपकी रही जैसे मुझे छोड़ना ही ना चाहती हो| खेर जैसे ही हम शहर में दाखिल हुए मैंने ऋतू को ढंग से बैठने को कहा और वो पहले की तरह बायीं तरफ दोनों पैर कर के बैठ गई और उसका दाहिना हाथ मेरे दाएं कंधे पर था| बुलेट रानी हॉस्टल की गेट पर रुकी तो गार्ड ने आगे आ कर मुझे नमस्ते की और ऋतू का बैग लेना चाहा तो मैंने उसे मन कर दिया और बाइक पार्क कर मैं ऋतू के साथ अंदर आया| दरवाजे पर नॉक की तो दरवाजा मोहिनी ने खोला और उसके चेहरे पर हमेशा की तरह ख़ुशी साफ़ झलक रही थी| "अरे हमारी टॉपर ऋतू भी आई है!" उसने ऋतू को छेड़ते हुए कहा| ऋतू ने मोहिनी को नमस्ते कहा और फिर हम बैठक में बैठ गए और तभी आंटी जी भी आ गईं तो माने आगे बढ़ कर उनके पाँव छुए और मेरे पीछे-पीछे ऋतू ने भी उसके पैर छुए| आंटी जी ने मोहिनी ख़ास हिदायत दी की वो ऋतू का अच्छे से ख्याल रखे और इसी के साथ मेरे जाने का समय हो गया तो मैं उठ के खड़ा हुआ और नमस्ते कर के जैसे ही बाहर जाने को मुड़ा की ऋतू रोने लगी और मेरे सीने से लग गई| उस पगली ने ये भी नहीं देखा की वहाँ मोहिनी और आंटी जी भी हैं| "वो दरअसल पहली बार घर से बाहर कहीं रुकी है, इसलिए घबरा रही है|" मैंने जैसे तैसे बात को सँभालने की कोशिश की| "अरे बेटी रोने की क्या बात है? ये भी तो तेरे घर जैसा ही है| मोहिनी अंदर ले जा ऋतू को|" आंटी जी ने ऋतू के सर पर हाथ फेरते हुए कहा| जैसे-तैसे मैंने ऋतू के हाथों को जो मेरी पीठ पर कस चुके थे उन्हें खोला और ऋतू के आँसू पोछे; "बस अब रोना नहीं है! मैं कल सुबह 09:30 आऊँगा तैयार रहना| तब जा कर उसका रोना बंद हुआ और फिर मोहिनी ऋतू का हाथ पकड़ के अंदर ले गई| "अरे बेटा तुम क्यों तकलीफ करते हो? मोहिनी कल छोड़ आएगी इसे कॉलेज|" आंटी ने कहा|
"आंटी जी वो पहला दिन है और मैं साथ रहूँगा तो इसे डर कम लगेगा|" मेरी बात सुन के आंटी ने और कुछ नहीं कहा और मैं उनसे विदा ले कर घर आ गया| मेरा घर और ऑफिस हॉस्टल से 1 घंटे दूर था| घर लौट कर कपडे वगैरह धो कर, खाना खाया और जल्दी सो गया| सुबह फटाफट तैयार हो कर मैं हॉस्टल पहुँच गया और मेरी बुलेट रानी की आवाज सुनते ही ऋतू भागती हुई बाहर आई और उसके पीछे-पीछे मोहिनी भी आई और ऋतू की इस भागने की हरकत पर मुस्कुराने लगी| "चलो भाई Best of Luck पहले दिन के लिए| अगर कोई तकलीफ हो तो मुझे बताना|" मोहिनी ने मुस्कुराते हुए कहा| "हाँ ... ये कॉलेज की गुंडी थी, आज भी बहुत चलती है इनकी|" मैंने हँसते हुए कहा और फिर हम कॉलेज के लिए चल पड़े| मुझे कॉलेज गेट पर देखते ही कल्लू भैया दौड़ कर आये और सलाम किया| मेरे साथ ऋतू को देख वो समझ गए की वो मेरी प्रियतमा है| हम दोनों को देख कर कोई नहीं कह सकता था की मैं ऋतू का चाचा हूँ, 5 साल का अंतर् तो कोई पकड़ ही नहीं सकता था| खुद को मैं अच्छे से मेन्टेन रखता था, एक दम क्लीन-शैवेन रहता था, कपडे ब्रांडेड जिससे की लगे ही ना की मैं गाँव-देहात का रहने वाला हूँ|
"अगर कोई भी परेशानी हो तो कल्लू भैया को कह देना|" मैंने ऋतू से कहा ताकि उसके मन का डर कम हो| कॉलेज पूरा घुमा के उसे उसकी क्लास की तरफ छोड़ने जा रहा था की उसकी नजर उस दिवार पर पड़ी जहाँ मेरी तस्वीर लगी थी और वो मुझे खींच के उस तरफ ले जाने लगी| मेरी तस्वीर देख कर उसे काफी गर्व महसूस हो रहा था| "मैं चाहता हूँ तुम्हारी भी तस्वीर मेरी बगल में लगे|" मेरी बात सुन कर ऋतू का आत्मविश्वास लौट आया और उसने हाँ में सर हिलाया| "शाम को 5 बजे मुझे गेट पर मिलना, इतना कह के मैंने उसे उसकी क्लास में भेज दिया| ऑफिस आने में घंटा भर लग गया और बॉस बहुत गुस्सा हो गए, पर मुझे तो शाम को जल्दी जाना था और ये बात कैसे कहूँ उनको?! मैंने उनकी डाँट का जरा भी विरोध नहीं किया और सर झुकाये सुनता रहा| एक कंपनी का पूरा फाइनेंसियल डाटा मेरे पास पेंडिंग पड़ा था इसलिए उनकी डाँट खत्म होते ही मैं सिस्टम पर बैठ गया और काम करने लगा| लंच के समय भी सभी कहते रहे पर मैं नहीं गया और बड़ी मुश्किल से केशबूक कम्पलीट की| बॉस ने जब देखा तो खुद ही मुझे खाने के लिए बोलने लगे तब मैंने उनसे जल्दी जाने की बात कही तो वो भड़क गए| "गर्लफ्रेंड का चक्कर है ना?" उन्होंने डाँटते हुए कहा| "जी मेरे भाई की लड़की का आज कॉलेज में पहला दिन है वो कहीं इधर-उधर न चली जाए इसलिए उसे हॉस्टल छोड़ के मैं वापस आ जाऊँगा|" मैंने उनसे आखरी बार विनती की तो थोड़ी ना-नुकुर के बाद मान गए और बोल दिया की कल सुबह तक सारा डाटा उन्हें किसी भी हालत में कम्पलीट चाहिए| जैसे ही चार बजे मैं फ़टाफ़ट अपनी बुलेट रानी को ले के कॉलेज के लिए निकला और ठीक पाँच बजे मैं कॉलेज गेट पर रुका, मुझे देखते ही ऋतू रोती हुई भाग के मेरे पास आई|
ठीक १ बजे ऋतू का फ़ोन आया और मैंने उसे बता दिया की उसके कॉलेज और हॉस्टल दोनों जगह बात हो गई है| ये सुन कर वो बहुत खुश हो गई और पूछने लगी की सब लोग कहाँ है? तो मैंने उसे बता दिया की वो सब बस में बैठे हैं और 5 बजे तक घर पहुँचेंगे| इसके बाद वही प्यार भरी बातें हुई और फिर मेरे बॉस ने आवाज दे दी तो मुझे जल्दी ही जाना पड़ा|
रात के ग्यारह बजे मेरा फ़ोन बजा तो मैंने घडी देखि, चिंता हुई की सब ठीक तो है?
ऋतू: ये मोहिनी कौन है? (उसने बहुत गुस्से में कहा|)
मैं: क्या...? (अभी भी नींद से ऊंघते हुए|)
ऋतू: वही छमक छल्लो जो आपसे गले लगी थी आज?
मैं: (उबासी लेते हुए) वो... दोस्त ... है|
ऋतू: दोस्त है तो दोस्त की तरह रहे! गले लगने की क्या जर्रूरत है उसे?
मैं: अरे बाबा! वो इतने साल बाद मिले ना तो ....
ऋतू: (बीच में बात काटते हुए) ऐसी भी क्या दोस्ती है की होश तक नहीं उसे की आपके साथ घर के बड़े लोग भी हैं! और आप को भी बहुत मज़ा आ रहा था जो उसे अपने सीने से चिपकाये हुए थे!
मैं: अरे मेरी बात तो सुनो! वो दरअसल थोड़ा मुँहफट है!
ऋतू: (बीच में बात काटते हुए) वो सब मैं नहीं जानती, आप उससे दूर रहो वरना मैं उसका मुँह नोच लुंगी!
इतना कह के ऋतू ने फ़ोन काट दिया, तो मैंने दुबारा फ़ोन घुमाया पर उसने फिर काट दिया| तीसरी बार... चौथी बार... पाँचवी बार... छठी बार...सातवीं बार...आठवीं बार...नौंवी बार... इस बार उसने फ़ोन उठाया|
मैं: ऋतू... मेरी बात तो सुन लो एक बार?
ऋतू: (सुबकते हुए) हम्म...
मैं: जैसा तू सोच रही है वैसे कुछ नहीं है| कॉलेज के दिनों में मैं उसे पढ़ाया करता था वो भी उसके घर जा कर| बस इसके अलावा कुछ नहीं है!
ऋतू: घरवाले... आपकी शादी की बात कर रहे हैं! (उसने सुबकते हुए कहा|)
मैं: अरे तो करने दे ... मैं कौन सा शादी कर रहा हूँ! तू चिंता मत कर!
ऋतू: मैं.... आपसे अलग... नहीं रह सकती!.... मैं जान दे दूँगी!
मैं: SHUT UP!!! दुबारा ऐसी कोई बात कही तो मैं तुझसे कभी बात नहीं करूँगा| अब बेधड़क आराम से सो जा... मैं कोशिश करता हूँ की घर एक चक्कर लगा लूँ|
ये सुन कर उसका सुबकना बंद हुआ और उसने I LOVE YOU कह के फ़ोन काटा| अब मुझे उससे कैसे भी मिलने जाना था पर जाऊँ कैसे? बॉस छुट्टी देगा नहीं! पर उन दिनों किस्मत मुझ पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान थी, जो चाह रहा था वो मिल रहा था| इसलिए जब घर जाने का मौका चाहने लगा तो अगले दिन वो भी मिल गया| बॉस ने कुछ फाइल पहुँचाने के लिए मुझे कहा| बीच रस्ते में मेरा गाँव था और बॉस जानते थे की मैं घर जर्रूर जाऊँगा इसलिए मेरी ख़ुशी पढ़ते हुए बोले; "कल लंच तक आ जाना|" मैंने ख़ुशी से हाँ कहा और तुरंत निकल पड़ा, पहले फाइल पहुँचाई और फिर वापसी में घर पहुँचा| बुलेट की आवाज सुनते ही ऋतू भागती हुई बाहर आई और मुझे देखते ही उसकी आँखें चमक उठी| उसने आगे बढ़ के मुझे गले लगना चाहा पर बाहर पिताजी और ताऊ जी बैठे थे इसलिए अपना मन मार के चुपचाप खड़ी हो कर मुझे उनसे बात करता हुआ देखने लगी| जब तक मेरी बात खत्म नहीं हुई वो वहाँ से हिली नहीं, शायद उसे डर था की मैं कहीं बहार से ही ना चला जाऊँ| जैसे ही मेरी बात खत्म हुई वो भागती हुई अंदर चली गई पर जब मैंने अंदर घुस के देखा तो वो मुझे कहीं नहीं मिली| आंगन में माँ, ताई जी और भाभी बैठी सब्जी काट रही थी| "अचानक कैसे आना हुआ?" भाभी ने पूछा|
"कुछ काम से पास के गाँव आना हुआ था|" मैंने रुखा सा जवाब दिया और अपने कमरे की तरफ चल दिया| जैसे ही सीढ़ी चढ़ के ऊपर पहुँचा तो ऋतू अपने कमरे में घुस गई और इशारे से मुझे अंदर आने को कहा| मैं उसके कमरे में घुसा और उसने मेरा हाथ पकड़ के मुझे अपने पलंग पर बिठा दिया, फिर अपने दुपट्टे से मेरा पसीना पोछने लगी| उसकी ख़ुशी उसके चेहरे से साफ़ झलक रही थी, वो मुड़ी और टेबल से पानी की गिलास और गुड़ उठा के मुझे दिया| मैंने गुड़ खाया और फिर पानी पिया और उसकी तरफ प्यार से देखने लगा| "आपको भूख लगी होगी?| उसने मुस्कुरा कर कहा और मुड के जाने लगी तो मैंने उसकी कलाई थाम ली और बैग से गुलाब निकाल के अपने घुटनों पर आते हुए कहा; "मेरी जान के लिए!" ऋतू ने मेरे हाथ से गुलाब ले लिया और फिर उसे अपने होठों से चूमा| फिर वो मेरी तरफ देख कर मुस्कुराई और झुक कर मेरे माथे को चूमा| मैं खड़ा हुआ और उसे अपने सीने से जकड़ लिया| इससे पहले की आगे कुछ बात हो पाती नीचे से मेरा बुलावा आ गया और मुझे ऋतू को छोड़ के नीचे जाना पड़ा| खेर वो शाम मुझे नीचे सब के बीच बैठ के बितानी पड़ी पर रात को खाने के समय ताऊ जी ने मेरी शादी की बात छेड़ी;
ताऊ जी: तो बरखुरदार! शादी के बारे में क्या विचार है?
मैं: जी अभी नहीं!
पिताजी: क्यों भला? लड़की तो तूने पहले ही पसंद कर रखी है ना?!
मैं: कौनसी लड़की?
चन्दर: अरे वही जो शहर में मिली थी, जिसने तुम्हें देखते ही गले लगा लिया था?
मैं: (खीजते हुए) वो खुद गले लग गई थी, मैंने उसे गले नहीं लगाया था| और आप सब से किसने कहा की मैं उससे शादी करना चाहता हूँ? मैं बस उसे कॉलेज टाइम में पढ़ाया करता था इससे ज्यादा और कुछ नहीं है!
ताऊ जी: अरे हम अंधे-बहरे थोड़े ही हैं जो हमें उसकी माँ का बार बार 'अपना' कहना सुनाई नहीं देता! कितनी बार उन्होंने तुझे घर आने को कहा था?
मैं: वो सब इसलिए कह रही थी क्योंकि मैं उनकी बेटी को मुफ्त में पढ़ाता था, हॉस्टल का खाना कितना वाहियात होता था इसलिए वो बदले में मुझे घर का खाना खिलाया करती थी और इसी कारन उनका अपनापन मेरे प्रति थोड़ा ज्यादा है| इससे ज्यादा उन्होंने कभी कुछ नहीं कहा|
पिताजी: तो कब करेगा तू शादी?
मैं: पिताजी एक बार नौकरी पक्की हो जाये, पैसा अच्छा कमाने लगूँ तो मैं शादी कर लूँगा|
ताऊ जी: तुझे पैसे की क्यों चिंता है? इतना बड़ा खेत.....
मैं: (उनकी बात काटते हुए) मुझे अपने पाँव पर खड़ा होना है| जब मुझे लगेगा की मैं अपने पाँव पर खड़ा हो गया हूँ तो मैं आपको खुद बता दूँगा और शायद आप भूल रहे हैं की आपने वादा किया था!
मेरा इतना कहना था की उन्हें अपना वादा याद आ गया और उन्होंने आगे कुछ नहीं कहा बस गुस्से से मुझे एक बार देखा और फिर खाना खाने लगे| खाने के बाद मैं ऊपर आ गया और छत पर चक्कर लगाने लगा| घंटे भर बाद ऋतू भी खाना खा के ऊपर आ गई और मुझे इस तरह गुम-सुम छत पर टहलते हुए देखने लगी| जब मेरी नजर उस पर पड़ी तो मैं ने पाया की वो बड़ी गौर से मुझे देख रही थी और मन ही मन कुछ सोच रही थी| "क्या हुआ जान?" मेरी आवाज सुन कर वो होश में आते हुई बोली; "कुछ नहीं... बस ऐसे ही आपको देख रही थी| आपके जितना प्यार करने वाले को पा कर आज मुझे खुद पर बहुत गर्व हो रहा है|” आगे कुछ बोलने से पहले ही भाभी आ गई और उन्होंने ऋतू को बिस्तर लाने को कहा| आज सभी औरतें छत पर सोने वाली थीं सो मैं उतर के अपने कमरे में लेट गया| अगली सुबह मुझे जल्दी जाना था तो मैं बिना नाश्ता किये जाने लगा तो ऋतू भाग के मेरे पास आई और परांठे जो की उसने पैक कर दिए थे मुझे दे दिए और नीचे चली गई|
कुछ दिन बीते और आखिर वो दिन आ ही गया जब ऋतू को कॉलेज ज्वाइन करना था| शनिवार को घर आते-आते रात हो गई, घर के सभी लोग खाना खा चुके थे| मुझे देखते ही ऋतू ने तुरंत खाना परोस के मुझे दे दिया और खुद अपने कमरे में चली गई| मैं खाना खा के ऊपर आया तो देखा उसने अपने कमरे में सारा सामान समेट रखा था| एक बैग जिसमें उसके कपडे थे वो तैयार रखा था, पूरे कमरे को उसने अच्छे से साफ़ किया था| जब उसकी नजर मुझ पर पड़ी तो उसके चेहरे ने उसकी सारी खुशियों को बयान कर दिया| उसने मुझे गले लगाना चाहा पर तभी पीछे से ताई जी आ गई और कमरे को देखते हुए ऋतू को ताना मारते हुए बोली; "चलो शुक्र है तू ने अपने कमरे को साफ़ कर दिया वरना ये भी हमें ही करना पड़ता|"
"समझदार है!" मैंने उनके ताने का जवाब दिया और फिर अपने कमरे में आ कर लेट गया| मेरे जाते ही ताई जी ऋतू को ज्ञान देने लगी की शहर में उसे किन-किन बातों का ध्यान रखना है| मैं अपने कमरे से उनकी सारी बातें सुन रहा था, ये ज्ञान कम और ताने ज्यादा थे! मैं चुप-चाप करवट लेके लेट गया और सुबह पाँच बजे के अलार्म के साथ उठ बैठा| मैं बाहर आया और अंगड़ाई लेने लगा तो देखा ऋतू नीचे घर के काम कर रही है| मुझे देखते ही वो मुस्कुरा दी और फिर अपने काम में लग गई| मैं जल्दी से नाहा-धो के तैयार हुआ और फिर सभी ने नाश्ता किया|
ताऊ जी: देख ऋतू शहर जा के कहीं मटर-गश्ती शुरू न कर देना! तेरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई में रहना चाहिए और हर शनिवार-इतवार को दोनों घर आते रहना|
मैं; जी ... आप तो जानते ही हैं की मुझे दूसरे और आखरी शनिवार की छुट्टी मिलती है..... तो....
पिताजी: ठीक है... पर ख्याल रखिओ ऋतू का और हमें तुम दोनों की कोई शिकायत नहीं आनी चाहिए!
मैं: जी... वैसे भी हमारा मिलना कहाँ हो पायेगा?
ताई जी: क्यों?
मैं: मेरे पास समय ही नहीं होता! एक संडे मिलता है तो उसमें भी कपडे धो ना और खाना बनाने में समय निकल जाता है| शाम को फ्री होता हूँ पर हॉस्टल में 6 बजे के बाद मनाही है|
ताई जी: तो इसे (ऋतू) कोई दिक्कत हुई तो?
ताऊ जी: अरे कुछ दिक्कत नहीं होगी| सब देखा है हमने, तू चिंता मत कर|
मैंने आगे कुछ और नहीं कहा और फटाफट नाश्ता किया और अपनी बुलेट रानी को कपडा मारने बाहर चला गया| सब कुछ अच्छे से साफ़ कर के जब मैंने पीछे पलट के देखा तो ऋतू अपना बैग कंधे में टाँगे खड़ी थी| मैंने आगे बढ़ कर उससे बैग लिया और बाइक पर बैठ गया और बैग को पेट्रोल की टंकी पर रख लिया| एक स्टाइल वाली किक मारी और भड़भड़ करती हुई बुलेट स्टार्ट हुई, मैंने पलट के ऋतू को पीछे बैठने को कहा| तो वो सम्भल के बैठ गई और अपना दायाँ हाथ मेरे कंधे पर रख लिया| सारे घर वाले बाहर आ कर खड़े हो चुके थे और ऋतू की कुछ सहेलियां भी बुलेट की आवाज सुन कर वहाँ आ कर खड़ी हो गईं और हाथ हिला कर उसे बाय कहने लगी| ताऊ जी ने फिर से कहा; "सम्भल के जाना और वहाँ जा के हमें फ़ोन करना|" अब उन्हें भी तो थोड़ा बहुत दिखावा तो करना था ना! गाँव से करीब दो किलोमीटर दूर पहुंचे होंगे की मैंने बाइक रोक दी और ऋतू से दोनों तरफ टांग कर के बैठने को कहा| उसने ठीक वैसे ही किया और अपने दोनों हाथों को मेरी बगल से ले कर सामने की तरफ लाइ और मेरी छाती को कस के पकड़ लिया| उसका सर मेरी पीठ में धंसा हुआ था और आँखें बंद थी| ऋतू की गर्म सांसें मुझे मेरी पीठ पर महसूस हो रही थी, मैं बाइक को 40 की स्पीड में ही चला रहा था ताकि इस सफर का जितना हो सके उतना आनंद ले सकूँ|
दो घंटे की ड्राइव के बाद अब थकावट होने लगी तो मैंने बाइक एक ढाबे की तरफ मोड़ दी जहाँ की मैं अक्सर रुका करता था, जब भी घर जाता या आता था| बाइक रुकते ही ऋतू जैसे अपने ख्यालों की दुनिया से बाहर आई| "चलो चाय पीते हैं|" मैंने उसे कहा तो वो बाइक से उतरी और मैंने बाइक पार्क की और हम दोनों ढाबे में घुसे| मुझे देखते ही वेटर ने तपाक से नमस्ते की और ऋतू को मेरे साथ देखते ही वो समझ गया की वो प्रियतमा है और उसने नमस्ते दीदी कहा! ऋतू ने उसकी नमस्ते का जवाब दिया और फिर हम खिड़की के पास वाले टेबल पर बैठ गए| "आपको पता है मैं क्या सोच रही थी?" ऋतू ने मुझसे पुछा तो मैंने ना में सर हिला दिया| "मुझे ऐसा लग रहा था जैसे हम दोनों इस नर्क से भाग के कहीं अपनी छोटी सी दुनिया बसाने जा रहे हैं| इन दो घंटों में मैं जो कुछ भी सोच सकती थी वो सब सोच लिया की हमारा घर कैसा होगा, बच्चे कितने होंगे!" ऋतू ने बड़े भोलेपन से कहा और मैंने सोचा की मुझे उसे अब अपने प्लान से अवगत करा देना चाहिए|
मैं: घर से भागना इतना आसान नहीं है जितना तुम सोच रही हो| जैसे ही हम घर से भागेंगे उसके कुछ घंटों में ही लठैतों को बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन भेजा जायेगा हमें रोकने के लिए| हर बस को रोक कर चेकिंग की जाएगी और हमें पकड़ के मौत के घात उतार दिया जायेगा| इसलिए हमें जो कुछ भी करना है वो बहुत सोच समझ कर करना होगा और किसी भी हालात में घर पर या किसी भी इंसान को हमारे इस रिश्ते के बारे में कुछ पता नहीं चलना चाहिए! सबसे जर्रूरी चीज जो हमें चाहिए वो है पैसा| इस साल डेढ़ साल की नौकरी में मैं कुछ 10 हजार ही जोड़ पाया हूँ| मेरी नौकरी के बारे में घर में सब जानते हैं और मुझे भी कुछ पैसे घर भेजने पड़ते हैं| पर अब तुम चूँकि शहर आ चुकी हो तो अगले साल से तुम्हें भी कुछ पार्ट टाइम नौकरी करनी होगी| ये वही पैसे हैं जिससे हम बचा सकते हैं और जिनकी मदद से दूसरे शहर में हमें घर किराये पर लेना, बर्तन-भांडे आदि खरीदने में मदद करेंगे|
ऋतू: और हम भागेंगे कैसे?
मैं: तुम्हारे थर्ड ईयर के पेपर होने के अगले दिन ही हम भागेंगे| मैं घर पर फ़ोन कर दूँगा की हम घर आ रहे हैं, अब चूँकि घर पहुँचने में 4 घंटे लगते हैं और घर वाले कम से कम 6 से 8 घंटे तक हमें नहीं ढूंढेंगे तो हमारे पास इतना टाइम गैप होगा की हम ज्यादा से ज्यादा दूरी तय कर सकें| यहाँ से हम सीधा बनारस जायेंगे और वहाँ से बैंगलोर!
ऋतू: बैंगलोर?
मैं: हाँ... वो बड़ा शहर है और वहाँ तक हमें ढूँढना इतना आसान नहीं होगा| मोबाइल फेंकना होगा, बैंक अकाउंट बंद करना होगा और तुम्हारे नए कागज बनवाने होंगे|
ऋतू: कागज?
मैं: आधार कार्ड और PAN कार्ड|
ऋतू: वो तो घर में कभी बनाने नहीं दिए|
मैं: जानता हूँ और वही हमारे काम आएगा| नए कागजों का कोई पेपर ट्रेल नहीं होगा|
ऋतू मेरी सारी बातें हैरानी से सुन रही थी की मैंने इतनी सारी प्लानिंग कर रखी है| इतने में मोहिनी का फ़ोन आ गया, जिसे देख कर ऋतू को बहुत गुस्सा आया| उसने दरअसल पूछने के लिए फ़ोन किया था की हम दोनों कब तक पहुँच रहे हैं| "ये क्यों फोन कर रही थी आपको?" उसने गुस्सा दिखते हुए पूछा| "जान, वो पूछ रही थी कब तक हम दोनों हॉस्टल पहुंचेंगे| अब गुस्सा छोडो और चाय पियो और हाँ याद रहे उसे भूले से भी हमारे बारे में शक़ नहीं होना चाहिए|" ये सुन कर ऋतू कुछ बुदबुदाई और फिर चाय पीने लगी| उसकी इस अदा पर मुझे हँसी आ गई जिसे देख के वो भी थोड़ा मुस्कुरा दी| खेर हम चाय पी कर निकले और दो घंटे बाद शहर पहुँच गए| रास्ते भर ऋतू मुझसे उसी तरह चिपकी रही जैसे मुझे छोड़ना ही ना चाहती हो| खेर जैसे ही हम शहर में दाखिल हुए मैंने ऋतू को ढंग से बैठने को कहा और वो पहले की तरह बायीं तरफ दोनों पैर कर के बैठ गई और उसका दाहिना हाथ मेरे दाएं कंधे पर था| बुलेट रानी हॉस्टल की गेट पर रुकी तो गार्ड ने आगे आ कर मुझे नमस्ते की और ऋतू का बैग लेना चाहा तो मैंने उसे मन कर दिया और बाइक पार्क कर मैं ऋतू के साथ अंदर आया| दरवाजे पर नॉक की तो दरवाजा मोहिनी ने खोला और उसके चेहरे पर हमेशा की तरह ख़ुशी साफ़ झलक रही थी| "अरे हमारी टॉपर ऋतू भी आई है!" उसने ऋतू को छेड़ते हुए कहा| ऋतू ने मोहिनी को नमस्ते कहा और फिर हम बैठक में बैठ गए और तभी आंटी जी भी आ गईं तो माने आगे बढ़ कर उनके पाँव छुए और मेरे पीछे-पीछे ऋतू ने भी उसके पैर छुए| आंटी जी ने मोहिनी ख़ास हिदायत दी की वो ऋतू का अच्छे से ख्याल रखे और इसी के साथ मेरे जाने का समय हो गया तो मैं उठ के खड़ा हुआ और नमस्ते कर के जैसे ही बाहर जाने को मुड़ा की ऋतू रोने लगी और मेरे सीने से लग गई| उस पगली ने ये भी नहीं देखा की वहाँ मोहिनी और आंटी जी भी हैं| "वो दरअसल पहली बार घर से बाहर कहीं रुकी है, इसलिए घबरा रही है|" मैंने जैसे तैसे बात को सँभालने की कोशिश की| "अरे बेटी रोने की क्या बात है? ये भी तो तेरे घर जैसा ही है| मोहिनी अंदर ले जा ऋतू को|" आंटी जी ने ऋतू के सर पर हाथ फेरते हुए कहा| जैसे-तैसे मैंने ऋतू के हाथों को जो मेरी पीठ पर कस चुके थे उन्हें खोला और ऋतू के आँसू पोछे; "बस अब रोना नहीं है! मैं कल सुबह 09:30 आऊँगा तैयार रहना| तब जा कर उसका रोना बंद हुआ और फिर मोहिनी ऋतू का हाथ पकड़ के अंदर ले गई| "अरे बेटा तुम क्यों तकलीफ करते हो? मोहिनी कल छोड़ आएगी इसे कॉलेज|" आंटी ने कहा|
"आंटी जी वो पहला दिन है और मैं साथ रहूँगा तो इसे डर कम लगेगा|" मेरी बात सुन के आंटी ने और कुछ नहीं कहा और मैं उनसे विदा ले कर घर आ गया| मेरा घर और ऑफिस हॉस्टल से 1 घंटे दूर था| घर लौट कर कपडे वगैरह धो कर, खाना खाया और जल्दी सो गया| सुबह फटाफट तैयार हो कर मैं हॉस्टल पहुँच गया और मेरी बुलेट रानी की आवाज सुनते ही ऋतू भागती हुई बाहर आई और उसके पीछे-पीछे मोहिनी भी आई और ऋतू की इस भागने की हरकत पर मुस्कुराने लगी| "चलो भाई Best of Luck पहले दिन के लिए| अगर कोई तकलीफ हो तो मुझे बताना|" मोहिनी ने मुस्कुराते हुए कहा| "हाँ ... ये कॉलेज की गुंडी थी, आज भी बहुत चलती है इनकी|" मैंने हँसते हुए कहा और फिर हम कॉलेज के लिए चल पड़े| मुझे कॉलेज गेट पर देखते ही कल्लू भैया दौड़ कर आये और सलाम किया| मेरे साथ ऋतू को देख वो समझ गए की वो मेरी प्रियतमा है| हम दोनों को देख कर कोई नहीं कह सकता था की मैं ऋतू का चाचा हूँ, 5 साल का अंतर् तो कोई पकड़ ही नहीं सकता था| खुद को मैं अच्छे से मेन्टेन रखता था, एक दम क्लीन-शैवेन रहता था, कपडे ब्रांडेड जिससे की लगे ही ना की मैं गाँव-देहात का रहने वाला हूँ|
"अगर कोई भी परेशानी हो तो कल्लू भैया को कह देना|" मैंने ऋतू से कहा ताकि उसके मन का डर कम हो| कॉलेज पूरा घुमा के उसे उसकी क्लास की तरफ छोड़ने जा रहा था की उसकी नजर उस दिवार पर पड़ी जहाँ मेरी तस्वीर लगी थी और वो मुझे खींच के उस तरफ ले जाने लगी| मेरी तस्वीर देख कर उसे काफी गर्व महसूस हो रहा था| "मैं चाहता हूँ तुम्हारी भी तस्वीर मेरी बगल में लगे|" मेरी बात सुन कर ऋतू का आत्मविश्वास लौट आया और उसने हाँ में सर हिलाया| "शाम को 5 बजे मुझे गेट पर मिलना, इतना कह के मैंने उसे उसकी क्लास में भेज दिया| ऑफिस आने में घंटा भर लग गया और बॉस बहुत गुस्सा हो गए, पर मुझे तो शाम को जल्दी जाना था और ये बात कैसे कहूँ उनको?! मैंने उनकी डाँट का जरा भी विरोध नहीं किया और सर झुकाये सुनता रहा| एक कंपनी का पूरा फाइनेंसियल डाटा मेरे पास पेंडिंग पड़ा था इसलिए उनकी डाँट खत्म होते ही मैं सिस्टम पर बैठ गया और काम करने लगा| लंच के समय भी सभी कहते रहे पर मैं नहीं गया और बड़ी मुश्किल से केशबूक कम्पलीट की| बॉस ने जब देखा तो खुद ही मुझे खाने के लिए बोलने लगे तब मैंने उनसे जल्दी जाने की बात कही तो वो भड़क गए| "गर्लफ्रेंड का चक्कर है ना?" उन्होंने डाँटते हुए कहा| "जी मेरे भाई की लड़की का आज कॉलेज में पहला दिन है वो कहीं इधर-उधर न चली जाए इसलिए उसे हॉस्टल छोड़ के मैं वापस आ जाऊँगा|" मैंने उनसे आखरी बार विनती की तो थोड़ी ना-नुकुर के बाद मान गए और बोल दिया की कल सुबह तक सारा डाटा उन्हें किसी भी हालत में कम्पलीट चाहिए| जैसे ही चार बजे मैं फ़टाफ़ट अपनी बुलेट रानी को ले के कॉलेज के लिए निकला और ठीक पाँच बजे मैं कॉलेज गेट पर रुका, मुझे देखते ही ऋतू रोती हुई भाग के मेरे पास आई|