10-10-2019, 05:46 PM
update 8
नीचे से भाभी की आवाज आई तो मैंने उसका हाथ छोड़ दिया और वो मुस्कुराते हुए नीचे जाने लगी| वो नीचे पहुँची ही थी की मैंने अपने फोन पर गाना फुल आवाज में चला दिया और खुद भी उसी गाने के अल्फाज गाने लगा;
"हसता रहता हूँ तुझसे मिलकर क्यूँ आजकल....
बदले बदले हैं मेरे तेवर क्यूँ आजकल....
आखें मेरी हर जगह ....
ढूंढे तुझे बेवजह...
ये मैं हूँ या कोई और है मेरी तरह..
कैसे हुआ.. कैसे हुआ..
तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ
कैसे हुआ.. कैसे हुआ..
तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ ....
मैं बारिश की बोली समझता नहीं था
हवाओं से मैं यूँ उलझता नहीं था..
है सीने में दिल भी कहाँ थी मुझे ये खबर
कहीं पे हो रातें कहीं पे सवेरा
आवारगी ही रही साथ मेरे
ठहर जा ठहर जा ये कहती है तेरी नज़र
क्या हाल हो गया है ये मेरा..
आखें मेरी हर जगह ढूंढे तुझे बेवजह
ये मैं हूँ या कोई और है मेरी तरह..
कैसे हुआ.. कैसे हुआ..
तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ
कैसे हुआ.. कैसे हुआ.. तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ| हम्म्म ममममम मममम… "
जब ये गाना खत्म हुआ तो मैं अपने कपडे ल कर नीचे आया तो सभी के सभी आंगन में बैठे चाय पी रहे थे और मेरा गाना सुन रहे थे| मैं जब नीचे आया तो पिताजी बोले; "हो गया तेरा गाना?" मैं बुरी तरह झेंप गया और ऋतू की तरफ देखने लगा और उम्मीद करने लगा की वो मेरे गाने का मतलब समझ गई हो| वो मुझे देख के मंद-मंद मुस्कुरा रही थी जो ये संकेत था की वो समझ चुकी है| मैं सीधा बाथरूम में घुस के नहाने लगा पर गाना अब भी गुनगुना रहा था| नाहा धो के, चाय नाश्ता कर के मैं निकलने को हुआ तो बहार ना जाके ऊपर गया, ये बहाना कर के की मैं कुछ भूल गया हूँ| दो मिनट बाद ऋतू भी ऊपर आ गई और कमरे की चौखट पर कंधे के सहारे खड़ी हो गई|
ऋतू: क्या भूल गए?
मैं: वो....वो.... कुछ तो भूल गया हूँ!
ऋतू चल के आगे आई और मेरे दिल पर अपनी ऊँगली रखते हुए बोली;
ऋतू: ये तो नहीं?
मैं: नहीं... ये तो तुम्हारे पास है!
ये सुन के रितिका मुस्कुराने लगी और मेरे सीने से लग गई|
ऋतू: तो अब कब भेंट होगी आपसे?
मैं: अब शहर में ही मिलेंगे|
ऋतू: हाय! उसमें तो कम से कम एक महीना लगेगा!
मैं: 'बिरहा' के बाद मिलन का दोहरा मजा होता है|
ये सुन कर आँसूं के दो कतरे ऋतू की आँखों से छलक आये और मेरी कमीज को भीगोने लगे|
ऋतू: तो क्या बीच में एक भी दिन नहीं आ सकते मुझे मिलने?
मैं: कोशिश करूँगा पर वादा नहीं कर सकता| बॉस बहुत नाराज है मेरी छुटियों को लेकर!
ऋतू: ठीक है ... पर मैं फिर भी इंतजार करुँगी आपका!
मैंने ऋतू को खुद से अलग किया और वो अपने आँसू पोछने लगी| मैंने उसके चेहरे को अपने हथेलियों में लिया और उसके दाएँ गाल पर अपने होंठ रख दिए| मेरे होठों के स्पर्श से जैसे वो सिंहर उठी और पंजों पर खड़ी होके मेरे होठों को चूमना चाहा| पर मैंने उसके होठों पर ऊँगली रख के उसे रोक दिया; "अभी नहीं! कोई आ जाएगा|" ये सुन कर वो झूठ-मूठ का गुस्सा दिखाने लगी| मैंने पुनः उसके चेहरे को अपने हाथों में लिया और उसके बाएँ गाल को चूम लिया| तब जाके उसका गुस्सा शांत हुआ और वो मेरे सीने से फिर लग गई| इसी मीठी याद को लिए मैं घर से निकला और ऑफिस पहुँचा, बॉस अगले दिन की आधी छुट्टी दे दे इसलिए देर रात तक मैं ऑफिस में बैठा काम निपटाता रहा| अगले दिन पिताजी, ताऊजी और चन्दर सब मुझे बस स्टैंड पर मिले| वहाँ से कॉलेज करीब आधा घंटा दूर था तो हम ऑटो से कॉलेज पहुँचे| कॉलेज के गेट पर ही कल्लू भैया मिल गए और मुझे देखते ही सलाम करने लगे| कॉलेज के दिनों में मैंने उनकी थोड़ी मदद की थी तो वो तब से मेरी बहुत इज्जत किया करते थे| मुझे सलाम करता देख सभी हैरान थे| कल्लू भैया से दुआ-सलाम कर के जब हम अंदर आये तो पिताजी बोले; "तेरा तो बड़ा रुतबा है यहाँ? पढ़ाई करता था की दंगाई!" मैंने उनकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और उन्हें कॉलेज दिखाने लगा| चूँकि सुबह का टाइम था तो विद्यार्थी क्लास में थे, अगर सब बाहर मटर गश्ती करते दिख जाते तो ऋतू का कॉलेज में पढ़ने का सपना तोड़ दिया जाता| आखिर में मैं पिताजी को हेडमास्टर साहब के पास ले गया तो मुझे देख वो फूले नहीं समाय और तुरंत गले से लगा लिया आखिर उनके कॉलेज का टॉपर जो था| फिर जब उन्हें पता चला की ऋतू भी मेरी तरह जिले की टॉपर है तो वो बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने सभी को अपने पैसों से मिठाई मंगवा के खिलाई! मंत्री का नाम लेने की जर्रूरत ही नहीं पड़ी और कॉलेज में रितिका एडमिशन पक्का हो गया| हेडमास्टर साहब ने जबरदस्ती चाय-नाश्ता कराया और फिर हमने वहाँ से विदा ली और १० मिनट पैदल चल के हॉस्टल के बाहर पहुँचे| हॉस्टल के गार्ड ने मुझे देखते ही सलाम ठोका और ये देख के तो सभी अचरज करने लगे| गार्ड हमें अंदर ले के आया और मोहिनी मैडम को बुलाया| ये मोहिनी मैडम वहीँ तो जो कॉलेज में मेरे साथ पढ़ती थी| नाम बिलकुल रंग-रूप से मेल खाता था उसी की माँ ये हॉस्टल चलाती थी|
मोहिनी मुझे देखते ही मुस्कुराती हुई आई; "अरे मानु जी! इतने सालों बाद कैसे याद आई हमारी?" पिताजी समेत सभी हैरान था क्यों की आजतक उनके सामने मुझे कभी किसी ने 'मानु जी' कह के नहीं बुलाया था| "हाँ वो दरसल मेरे भाई की लड़की रितिका...." आगे मेरे कुछ बोलने से पहले ही वो बोल पड़ी; "मुबारक हो जी आपको! चाचा की तरह उसने भी टॉप मारा!" इतना कहते हुए वो मेरे गले लग गई, पर मैंने उसे अभी तक छुआ नहीं था और ये नजारा देख सभी मुँह बाय हैरान थे| दरअसल मोहिनी बहुत ही मुँहफट और अल्हड सवभाव की थी| जब वो बात करती थी तो उसे दुनियादारी की कतई चिंता नहीं होती थी और वो अपने मन की बात बोलने से कभी नहीं हिचकती थी| खेर मुझे उसे रोकना था की कहीं वो कुछ और ना बक दे; "ये मेरे पिताजी, ताऊ जी और चन्दर भैया हैं! वैसे आंटी जी कहाँ हैं?" मैंने उससे पूछा तो उसे मेरे परिवार वालों का ध्यान आया और उसने पहले सब को हाथ जोड़ कर नमस्ते की फिर शर्मा कर अंदर भाग गई| उसके जाते ही मैं ने सब की तरफ देखा तो वो सब अब भी हैरान थे की उनका सीधा साधा लड़का जो कभी किसी लड़की से बात नहीं करता था वो इतना बड़ा हो चूका है की एक लड़की उसके गले लग रही है वो भी उसके परिवार के सामने| "जी वो..." मेरे कुछ कहने से पहले ही आंटी जी आ गईं| "अरे भाईसाहब आप सब खड़े क्यों हैं? बैठिये-बैठिये! ये लड़की भी न बिलकुल बुधु है!" मैंने आगे बढ़ कर आंटी जी के पाँव छुए तो उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया और फिर हम सभी उनके घर की बैठक में बैठ गए| मैंने उनका परिचय सब से कराया और हमारे आने का कारन भी बताया तो उन्हें सुन के बड़ी ख़ुशी हुई और उन्होंने तुरंत मोहिनी को आवाज दे कर चाय-नाश्ता मँगवाया| ताऊ जी और पिता जी ने बड़ी ना-नुकुर की पर आंटी जी नहीं मानी; "अरे भाई साहब आज पहली बार तो आप सभी से मुलाकात हुई है और ये तो घर की बात है! आपका लड़का मानु बहुत मन लगा कर पढता था, और इसी की वजह से मेरी बुधु लड़की पास हुई है| आप रितिका की कतई चिंता ना करो ये उसके लिए उसका दूसरा घर है, यहाँ उसे किसी चीज की कोई दिक्कत नहीं होगी! मेरी बेटी की तरह रहेगी वो यहाँ!" तभी वहाँ मोहिनी चाय-नाश्ता ले कर आ गई और सब को परोस कर खुद अपनी माँ की बगल में हाथ बंधे खड़ी हो गई| "सुन लड़की तेरे कमरे में एक अलग से पलंग डलवा और कल से रितिका भी तेरे ही कमरे में रहेगी|" आंटी की बात सुन उसने बस 'जी' कहा| "बहनजी ... वो ... पैसे....." ताऊ जी ने बस इतना ही कहा था की वो बोल पड़ी; "भाई साहब मैं अब क्या बोलूं...घर की बात है!" इस पर पिताजी भी तपाक से बोले; "देखिये बहनजी, एक-आध दिन की बात होती तो बात कुछ और थी! पर उसे तीन साल यहाँ रहना है| जो पैसे आप बाकी सभी लड़कियों के घरवालों से ले रही हैं वो हम भी दे देंगे|" तभी चन्दर भी बोल पड़ा; "बाकी लड़कियों के घरवाले आपको कितने पैसे देते हैं?" ये सुन के मुझे, पिताजी और ताऊ जी को बहुत गुस्सा आया और ताऊ जी चन्दर को घूर के देखने लगे पर तभी मेरी नजर दिवार पर लगे बोर्ड पर पड़ी जिस पर सब कुछ लिखा था| मैंने इशारे से पिताजी को वहाँ देखने को कहा और उन्होंने ताऊ जी को कहा| "चलिए जी ये लीजिये 6,०००/-" उन्होंने अपनी जेब में हाथ डाला और 2,000 के नोट निकाले और आंटी जी को देने लगे पर आंटी जी ने मना कर दिया| वो समझ चुकी थी को हम सबने बोर्ड पढ़ लिया है| "मैं आपकी बात का मान रखती हूँ पर आपको भी मेरी बात का मान रखना होगा| ये पैसे जो बोर्ड पर लिखे हैं वो औरों के लिए है और आप सब तो अपने हैं इसलिए आप मुझे केवल 4,०००/- दीजिये|" उन्होंने केवल 2,000 के दो नोट लिए और मोहिनी को रजिस्ट्रेशन की किताब लाने को कहा| मोहिनी ने तुरंत वो किताब और बिल बुक उन्हें ला के दी| आंटी जी ने रजिस्ट्रेशन की किताब मुझे दे दी और खुद 4,०००/- के बिल बनाने लगी| "पर बहन जी आप हमारे लिए 2,०००/- का नुक्सान क्यों सह रही हैं?" ताऊ जी ने कहा|
"नुक्सान कैसा जी? अब आपका लड़का मेरी बेटी को पढ़ाता था तब तो उसने कभी नहीं कहा की उसका नुक्सान हो रहा है?" आंटी ने बिल की कॉपी ताऊ जी को देते हुए कहा| "पर आंटी जी उसमें मेरा नुक्सान थोड़े ही था? मेरा भी तो रिविशन हो जाता था!" मैंने उनकी बात का उत्तर दिया| "अब बताइये बहनजी?" पिताजी ने मेरी बात का समर्थन किया| "भाई साहब जिस २,०००/- की बात आप कर रहे हैं वो हमारा मुनाफा होता है| अब आप बताइये की कोई अपनों से मुनाफा कमाता है?" आंटी की इस बात का किसी के पास भी जवाब नहीं था इसलिए उनकी बात मान कर ताऊ जी ने उनसे वो बिल ले लिया और इधर मैंने रजिस्ट्रेशन वाली बुक में रितिका की सभी जानकारी लिख दी बस मोबाइल नंबर की जगह कुछ नहीं लिखा| जब आंटी जी ने मोबाइल नंबर माँगा तो ताऊ जी ने कहा; "बहन जी रितिका के पास मोबाइल नहीं है| उसे इन सब चीजों का कोई शौक नहीं है|" ये सुन के आंटी जी ने मोहिनी को ताना मारा; "सीख इनकी लड़की से कुछ? ये तो सारा दिन मोबाइल में घुसी रहती है|" ये सुन कर उस बेचारी का सर शर्म से झुक गया अब उसे बचाने के लिए मैंने चलने की इजाजत माँगी तो सारे उठ खड़े हुए और आंटी हमें बाहर छोड़ने आई और मुझसे बोली; "अरे मानु बेटा तुम क्या कर रहे हो आज कल?" तभी मोहिनी बीच में बोल पड़ी; "शादी-वादी कर ली होगी!" "नहीं आंटी जी वो मैं फिलहाल बाईपास के पास जो बड़ी सी बिल्डिंग हूँ वहाँ जॉब कर रहा हूँ|"
"कमाल है? इतने सालों से तुम यहीं पर जॉब कर रहे हो पर हमें कभी मिलने नहीं आये!?" उन्होंने थोड़ा गुस्सा दिखते हुए कहा| "जी वो... समय नहीं मिलता ... शनिवार और इतवार मैं घर चला जाता हूँ... इसलिए...." मैंने सफाई दी|
"ये सब मैं नहीं जानती ... एक शहर में हो कर कभी तो आ जाया करो! ये तो तुम्हारा अपना घर है|" उन्होंने मेरे कान पकड़ते हुए कहा| "जी ....ठीक... है... आऊँगा....आऊँगा!!!" मैंने हँसते हुए कहा जैसे की वो मेरा कान मरोड़ रही हों और ये देख के सभी खिल-खिला के हंस पड़े| खेर हँसी-ख़ुशी मैंने सब को बस स्टैंड छोड़ा और मैं विदा ले कर अपने ऑफिस आ गया|
नीचे से भाभी की आवाज आई तो मैंने उसका हाथ छोड़ दिया और वो मुस्कुराते हुए नीचे जाने लगी| वो नीचे पहुँची ही थी की मैंने अपने फोन पर गाना फुल आवाज में चला दिया और खुद भी उसी गाने के अल्फाज गाने लगा;
"हसता रहता हूँ तुझसे मिलकर क्यूँ आजकल....
बदले बदले हैं मेरे तेवर क्यूँ आजकल....
आखें मेरी हर जगह ....
ढूंढे तुझे बेवजह...
ये मैं हूँ या कोई और है मेरी तरह..
कैसे हुआ.. कैसे हुआ..
तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ
कैसे हुआ.. कैसे हुआ..
तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ ....
मैं बारिश की बोली समझता नहीं था
हवाओं से मैं यूँ उलझता नहीं था..
है सीने में दिल भी कहाँ थी मुझे ये खबर
कहीं पे हो रातें कहीं पे सवेरा
आवारगी ही रही साथ मेरे
ठहर जा ठहर जा ये कहती है तेरी नज़र
क्या हाल हो गया है ये मेरा..
आखें मेरी हर जगह ढूंढे तुझे बेवजह
ये मैं हूँ या कोई और है मेरी तरह..
कैसे हुआ.. कैसे हुआ..
तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ
कैसे हुआ.. कैसे हुआ.. तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ| हम्म्म ममममम मममम… "
जब ये गाना खत्म हुआ तो मैं अपने कपडे ल कर नीचे आया तो सभी के सभी आंगन में बैठे चाय पी रहे थे और मेरा गाना सुन रहे थे| मैं जब नीचे आया तो पिताजी बोले; "हो गया तेरा गाना?" मैं बुरी तरह झेंप गया और ऋतू की तरफ देखने लगा और उम्मीद करने लगा की वो मेरे गाने का मतलब समझ गई हो| वो मुझे देख के मंद-मंद मुस्कुरा रही थी जो ये संकेत था की वो समझ चुकी है| मैं सीधा बाथरूम में घुस के नहाने लगा पर गाना अब भी गुनगुना रहा था| नाहा धो के, चाय नाश्ता कर के मैं निकलने को हुआ तो बहार ना जाके ऊपर गया, ये बहाना कर के की मैं कुछ भूल गया हूँ| दो मिनट बाद ऋतू भी ऊपर आ गई और कमरे की चौखट पर कंधे के सहारे खड़ी हो गई|
ऋतू: क्या भूल गए?
मैं: वो....वो.... कुछ तो भूल गया हूँ!
ऋतू चल के आगे आई और मेरे दिल पर अपनी ऊँगली रखते हुए बोली;
ऋतू: ये तो नहीं?
मैं: नहीं... ये तो तुम्हारे पास है!
ये सुन के रितिका मुस्कुराने लगी और मेरे सीने से लग गई|
ऋतू: तो अब कब भेंट होगी आपसे?
मैं: अब शहर में ही मिलेंगे|
ऋतू: हाय! उसमें तो कम से कम एक महीना लगेगा!
मैं: 'बिरहा' के बाद मिलन का दोहरा मजा होता है|
ये सुन कर आँसूं के दो कतरे ऋतू की आँखों से छलक आये और मेरी कमीज को भीगोने लगे|
ऋतू: तो क्या बीच में एक भी दिन नहीं आ सकते मुझे मिलने?
मैं: कोशिश करूँगा पर वादा नहीं कर सकता| बॉस बहुत नाराज है मेरी छुटियों को लेकर!
ऋतू: ठीक है ... पर मैं फिर भी इंतजार करुँगी आपका!
मैंने ऋतू को खुद से अलग किया और वो अपने आँसू पोछने लगी| मैंने उसके चेहरे को अपने हथेलियों में लिया और उसके दाएँ गाल पर अपने होंठ रख दिए| मेरे होठों के स्पर्श से जैसे वो सिंहर उठी और पंजों पर खड़ी होके मेरे होठों को चूमना चाहा| पर मैंने उसके होठों पर ऊँगली रख के उसे रोक दिया; "अभी नहीं! कोई आ जाएगा|" ये सुन कर वो झूठ-मूठ का गुस्सा दिखाने लगी| मैंने पुनः उसके चेहरे को अपने हाथों में लिया और उसके बाएँ गाल को चूम लिया| तब जाके उसका गुस्सा शांत हुआ और वो मेरे सीने से फिर लग गई| इसी मीठी याद को लिए मैं घर से निकला और ऑफिस पहुँचा, बॉस अगले दिन की आधी छुट्टी दे दे इसलिए देर रात तक मैं ऑफिस में बैठा काम निपटाता रहा| अगले दिन पिताजी, ताऊजी और चन्दर सब मुझे बस स्टैंड पर मिले| वहाँ से कॉलेज करीब आधा घंटा दूर था तो हम ऑटो से कॉलेज पहुँचे| कॉलेज के गेट पर ही कल्लू भैया मिल गए और मुझे देखते ही सलाम करने लगे| कॉलेज के दिनों में मैंने उनकी थोड़ी मदद की थी तो वो तब से मेरी बहुत इज्जत किया करते थे| मुझे सलाम करता देख सभी हैरान थे| कल्लू भैया से दुआ-सलाम कर के जब हम अंदर आये तो पिताजी बोले; "तेरा तो बड़ा रुतबा है यहाँ? पढ़ाई करता था की दंगाई!" मैंने उनकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और उन्हें कॉलेज दिखाने लगा| चूँकि सुबह का टाइम था तो विद्यार्थी क्लास में थे, अगर सब बाहर मटर गश्ती करते दिख जाते तो ऋतू का कॉलेज में पढ़ने का सपना तोड़ दिया जाता| आखिर में मैं पिताजी को हेडमास्टर साहब के पास ले गया तो मुझे देख वो फूले नहीं समाय और तुरंत गले से लगा लिया आखिर उनके कॉलेज का टॉपर जो था| फिर जब उन्हें पता चला की ऋतू भी मेरी तरह जिले की टॉपर है तो वो बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने सभी को अपने पैसों से मिठाई मंगवा के खिलाई! मंत्री का नाम लेने की जर्रूरत ही नहीं पड़ी और कॉलेज में रितिका एडमिशन पक्का हो गया| हेडमास्टर साहब ने जबरदस्ती चाय-नाश्ता कराया और फिर हमने वहाँ से विदा ली और १० मिनट पैदल चल के हॉस्टल के बाहर पहुँचे| हॉस्टल के गार्ड ने मुझे देखते ही सलाम ठोका और ये देख के तो सभी अचरज करने लगे| गार्ड हमें अंदर ले के आया और मोहिनी मैडम को बुलाया| ये मोहिनी मैडम वहीँ तो जो कॉलेज में मेरे साथ पढ़ती थी| नाम बिलकुल रंग-रूप से मेल खाता था उसी की माँ ये हॉस्टल चलाती थी|
मोहिनी मुझे देखते ही मुस्कुराती हुई आई; "अरे मानु जी! इतने सालों बाद कैसे याद आई हमारी?" पिताजी समेत सभी हैरान था क्यों की आजतक उनके सामने मुझे कभी किसी ने 'मानु जी' कह के नहीं बुलाया था| "हाँ वो दरसल मेरे भाई की लड़की रितिका...." आगे मेरे कुछ बोलने से पहले ही वो बोल पड़ी; "मुबारक हो जी आपको! चाचा की तरह उसने भी टॉप मारा!" इतना कहते हुए वो मेरे गले लग गई, पर मैंने उसे अभी तक छुआ नहीं था और ये नजारा देख सभी मुँह बाय हैरान थे| दरअसल मोहिनी बहुत ही मुँहफट और अल्हड सवभाव की थी| जब वो बात करती थी तो उसे दुनियादारी की कतई चिंता नहीं होती थी और वो अपने मन की बात बोलने से कभी नहीं हिचकती थी| खेर मुझे उसे रोकना था की कहीं वो कुछ और ना बक दे; "ये मेरे पिताजी, ताऊ जी और चन्दर भैया हैं! वैसे आंटी जी कहाँ हैं?" मैंने उससे पूछा तो उसे मेरे परिवार वालों का ध्यान आया और उसने पहले सब को हाथ जोड़ कर नमस्ते की फिर शर्मा कर अंदर भाग गई| उसके जाते ही मैं ने सब की तरफ देखा तो वो सब अब भी हैरान थे की उनका सीधा साधा लड़का जो कभी किसी लड़की से बात नहीं करता था वो इतना बड़ा हो चूका है की एक लड़की उसके गले लग रही है वो भी उसके परिवार के सामने| "जी वो..." मेरे कुछ कहने से पहले ही आंटी जी आ गईं| "अरे भाईसाहब आप सब खड़े क्यों हैं? बैठिये-बैठिये! ये लड़की भी न बिलकुल बुधु है!" मैंने आगे बढ़ कर आंटी जी के पाँव छुए तो उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया और फिर हम सभी उनके घर की बैठक में बैठ गए| मैंने उनका परिचय सब से कराया और हमारे आने का कारन भी बताया तो उन्हें सुन के बड़ी ख़ुशी हुई और उन्होंने तुरंत मोहिनी को आवाज दे कर चाय-नाश्ता मँगवाया| ताऊ जी और पिता जी ने बड़ी ना-नुकुर की पर आंटी जी नहीं मानी; "अरे भाई साहब आज पहली बार तो आप सभी से मुलाकात हुई है और ये तो घर की बात है! आपका लड़का मानु बहुत मन लगा कर पढता था, और इसी की वजह से मेरी बुधु लड़की पास हुई है| आप रितिका की कतई चिंता ना करो ये उसके लिए उसका दूसरा घर है, यहाँ उसे किसी चीज की कोई दिक्कत नहीं होगी! मेरी बेटी की तरह रहेगी वो यहाँ!" तभी वहाँ मोहिनी चाय-नाश्ता ले कर आ गई और सब को परोस कर खुद अपनी माँ की बगल में हाथ बंधे खड़ी हो गई| "सुन लड़की तेरे कमरे में एक अलग से पलंग डलवा और कल से रितिका भी तेरे ही कमरे में रहेगी|" आंटी की बात सुन उसने बस 'जी' कहा| "बहनजी ... वो ... पैसे....." ताऊ जी ने बस इतना ही कहा था की वो बोल पड़ी; "भाई साहब मैं अब क्या बोलूं...घर की बात है!" इस पर पिताजी भी तपाक से बोले; "देखिये बहनजी, एक-आध दिन की बात होती तो बात कुछ और थी! पर उसे तीन साल यहाँ रहना है| जो पैसे आप बाकी सभी लड़कियों के घरवालों से ले रही हैं वो हम भी दे देंगे|" तभी चन्दर भी बोल पड़ा; "बाकी लड़कियों के घरवाले आपको कितने पैसे देते हैं?" ये सुन के मुझे, पिताजी और ताऊ जी को बहुत गुस्सा आया और ताऊ जी चन्दर को घूर के देखने लगे पर तभी मेरी नजर दिवार पर लगे बोर्ड पर पड़ी जिस पर सब कुछ लिखा था| मैंने इशारे से पिताजी को वहाँ देखने को कहा और उन्होंने ताऊ जी को कहा| "चलिए जी ये लीजिये 6,०००/-" उन्होंने अपनी जेब में हाथ डाला और 2,000 के नोट निकाले और आंटी जी को देने लगे पर आंटी जी ने मना कर दिया| वो समझ चुकी थी को हम सबने बोर्ड पढ़ लिया है| "मैं आपकी बात का मान रखती हूँ पर आपको भी मेरी बात का मान रखना होगा| ये पैसे जो बोर्ड पर लिखे हैं वो औरों के लिए है और आप सब तो अपने हैं इसलिए आप मुझे केवल 4,०००/- दीजिये|" उन्होंने केवल 2,000 के दो नोट लिए और मोहिनी को रजिस्ट्रेशन की किताब लाने को कहा| मोहिनी ने तुरंत वो किताब और बिल बुक उन्हें ला के दी| आंटी जी ने रजिस्ट्रेशन की किताब मुझे दे दी और खुद 4,०००/- के बिल बनाने लगी| "पर बहन जी आप हमारे लिए 2,०००/- का नुक्सान क्यों सह रही हैं?" ताऊ जी ने कहा|
"नुक्सान कैसा जी? अब आपका लड़का मेरी बेटी को पढ़ाता था तब तो उसने कभी नहीं कहा की उसका नुक्सान हो रहा है?" आंटी ने बिल की कॉपी ताऊ जी को देते हुए कहा| "पर आंटी जी उसमें मेरा नुक्सान थोड़े ही था? मेरा भी तो रिविशन हो जाता था!" मैंने उनकी बात का उत्तर दिया| "अब बताइये बहनजी?" पिताजी ने मेरी बात का समर्थन किया| "भाई साहब जिस २,०००/- की बात आप कर रहे हैं वो हमारा मुनाफा होता है| अब आप बताइये की कोई अपनों से मुनाफा कमाता है?" आंटी की इस बात का किसी के पास भी जवाब नहीं था इसलिए उनकी बात मान कर ताऊ जी ने उनसे वो बिल ले लिया और इधर मैंने रजिस्ट्रेशन वाली बुक में रितिका की सभी जानकारी लिख दी बस मोबाइल नंबर की जगह कुछ नहीं लिखा| जब आंटी जी ने मोबाइल नंबर माँगा तो ताऊ जी ने कहा; "बहन जी रितिका के पास मोबाइल नहीं है| उसे इन सब चीजों का कोई शौक नहीं है|" ये सुन के आंटी जी ने मोहिनी को ताना मारा; "सीख इनकी लड़की से कुछ? ये तो सारा दिन मोबाइल में घुसी रहती है|" ये सुन कर उस बेचारी का सर शर्म से झुक गया अब उसे बचाने के लिए मैंने चलने की इजाजत माँगी तो सारे उठ खड़े हुए और आंटी हमें बाहर छोड़ने आई और मुझसे बोली; "अरे मानु बेटा तुम क्या कर रहे हो आज कल?" तभी मोहिनी बीच में बोल पड़ी; "शादी-वादी कर ली होगी!" "नहीं आंटी जी वो मैं फिलहाल बाईपास के पास जो बड़ी सी बिल्डिंग हूँ वहाँ जॉब कर रहा हूँ|"
"कमाल है? इतने सालों से तुम यहीं पर जॉब कर रहे हो पर हमें कभी मिलने नहीं आये!?" उन्होंने थोड़ा गुस्सा दिखते हुए कहा| "जी वो... समय नहीं मिलता ... शनिवार और इतवार मैं घर चला जाता हूँ... इसलिए...." मैंने सफाई दी|
"ये सब मैं नहीं जानती ... एक शहर में हो कर कभी तो आ जाया करो! ये तो तुम्हारा अपना घर है|" उन्होंने मेरे कान पकड़ते हुए कहा| "जी ....ठीक... है... आऊँगा....आऊँगा!!!" मैंने हँसते हुए कहा जैसे की वो मेरा कान मरोड़ रही हों और ये देख के सभी खिल-खिला के हंस पड़े| खेर हँसी-ख़ुशी मैंने सब को बस स्टैंड छोड़ा और मैं विदा ले कर अपने ऑफिस आ गया|