09-10-2019, 12:36 PM
update 5
खैर दिन बीतने लगे और ऑफिस में मुझे एक सुंदरी पसंद आई, परन्तु कभी हिम्मत नहीं हुई की उससे कुछ बात करूँ! बस काम के सिलसिले में जो बात होती वो होती| इसी तरह एक साल और निकला, और अब रितिका बारहवीं कक्षा में थी और इसी साल उसके बोर्ड के पेपर थे| सेंटर घर से काफी दूर था और इस बार भी मुझे रितिका को पेपर के लिए लेके जाना था| मैं आज जब उसे सेंटर छोड़ने गया तो उसकी सहेलियां मुझे देख के कुछ खुस-फुसाने लगी और हँसने लगी| मैंने उस समय कुछ नहीं कहा और निकल गया और वापस दो घंटे बाद पहुँचा और बहार उसका इंतजार करने लगा| जब वो वापस आई तो हमने पहले पेपर डिसकस किया और फिर मैंने उससे सुबह हुई घटना के बारे में पूछा| तब उसने बताय की उसकी सहेलियों को लगा की मैं उसका बॉयफ्रेंड हूँ! "क्या? और तूने क्या कहा?" मैंने चौंकते हुए पूछा| "मैंने उन्हें बताया की आप मेरे चाचू हो और ये सुनके उनके होश उड़ गए!" और ये कहते हुए वो हँसने लगी| मैंने आगे कुछ नहीं कहा और उसे घर वापस छोड़ा और मैं फिर से दफ्तर निकल गया| दफ्तर पहुँचते-पहुँचते देर हो गई और बॉस ने मेरी एक छुट्टी काट ली! खेर मुझे इस बात का इतना अफ़सोस नहीं था| आज रितिका का आखरी पेपर था और मैं जानता था की उसके सारे पेपर जबरदस्त गए हैं! पर आज जब वो पेपर दे कर निकली तो उसने सर झुका के एक ख्वाइश पेश की; "चाचू.... आज मेरा पिक्चर देखने का मन है!" अब चूँकि मैं उसका दिल तोडना नहीं चाहता था सो मैंने उससे कहा; "आज तो देखना मुश्किल है क्योंकि अगर हम समय से घर नहीं पहुंचे तो आज बवाल होना तय है! तू ऐसा कर कल का प्रोग्राम रख, कल दूसरा शनिवार भी है और मेरी ऑफिस की भी छुट्टी है|"
"पर कल तो कोई पेपर ही नहीं है?" उसने बड़े भोलेपन से कहा| "अरे बुधु! ये तू जानती है, मैं जानता हूँ पर घर पर तो कोई नहीं जानता ना?" मेरी बात सुन के वो खुश हो गई| हम घर पहुँचे तो रितिका बहुत चहक रही थी और आज रात की रसोई उसी ने पकाई| मुझे उसके हाथ का बना खाना बहुत पसंद था क्योंकि उसे पता था की मुझे किस तरह का खाना पसंद है| इसलिए जब भी मैं घर आता था तो वो बड़े चाव से खाना बनाती थी और मैं उसे खुश हो के 'बक्शीश' दिया करता था! अगले दिन दुबारा कॉलेज ड्रेस पहन के नीचे आई तो भाभी ने उससे पूछा; "कहाँ जा रही है?" इससे पहले की वो कुछ बोलती मैं खुद ही बोल पड़ा; "पेपर देने और कहाँ?" मेरा जवाब बहुत रुखा था जिसे सुन के भाभी आगे कुछ नहीं बोली| हम दोनों घर से बहार निकले और बुलेट पर बैठ के सुबह का शो देखने चल दिए| थिएटर पहुँच के मैंने उसे पिक्चर दिखाई और फिर हमने आराम से बैठ के नाश्ता किया| फिर वो कहने लगी की मंदिर चलते हैं तो मैं उसे एक मंदिर ले आया | दिन के बारह बजे थे और मंदिर में कोई था नहीं, यहाँ तक की पुजारी भी नहीं था| हम अंदर से दर्शन कर के बहार आये और रितिका मंदिर की सीढ़ियों पर बैठने की जिद्द करने लगी| तो उसकी ख़ुशी के लिए हम थोड़ी देर वहीँ बैठ गए, तभी अचानक से रितिका ने अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया और मेरा हाथ अपने दोनों हाथों के बीच दबा दिया| मैंने कुछ नहीं कहा पर मन ही मन मुझे अजीब लग रहा था, पर मैं फिर भी चुप रहा और इधर-उधर देखने लगा की हमें इस तरह कोई देख ना ले| तभी मुझे कोई आता हुआ दिखाई दिया तो मैंने हड़बड़ा के रितिका को हिला दिया और मैं अचानक से खड़ा हो गया| मैं जल्दी से नीचे उतरा और बुलेट स्टार्ट की और रितिका को बैठने को कहा पर ऐसा लगा मानो वो वहाँ से जाना ही ना चाहती हो| वो अपना बस्ता कंधे पर टंगे कड़ी मुझे देख रही थी| "क्या देख रही है? जल्दी बैठ घर नहीं जाना?" मैंने फिर से उसे कहा तो जवाब में उसने सर ना में हिलाया तो मैंने जबरदस्ती उसका हाथ पकड़ा और बैठने को कहा और वो बैठ ही गई| हम वहाँ से चल पड़े इधर रितिका ने पीछे बैठे हुए अपना सर मेरी पीठ पर रख दिया| शुरू के पंद्रह मिनट तो मैं कुछ नहीं बोला पर अंदर ही अंदर मुझे अजीब लगने लगा| घर करीब २० मिनट दूर होगा की मैंने बाइक रोक दी और रितिका से पूछा:
मैं: क्या हुआ पगली? तू कुछ परेशान लग रही है?
रितिका: हम्म
मैं: क्या हुआ? बता ना मुझे?
वो बाइक से उत्तरी और मेरे सामने सर झुका के खड़ी हो गई| मैं अभी भी बाइक पर बैठा था और बाइक स्टैंड पर नहीं थी|
रितिका: मुझे आपसे एक बात कहनी है|
मैं: हाँ-हाँ बोल|
रितिका: वो... वो.... मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ!
मैं: अरे पगली मैं जानता हूँ तू मुझसे प्यार करती है| इसमें तू ऐसे परेशान क्यों हो रही है?
रितिका: नहीं-नहीं आप समझे नहीं! मैं आपसे सच-मुच् में दिलों जान से प्यार करती हूँ!
मेरा ये सुनना था की मैंने एक जोरदार थप्पड़ उसके बाएँ गाल पर रख दिया| मैं सोच रहा था की ये मुझसे चाचा-भतीजी वाले प्यार के बारे में बात कर रही है पर इसके ऊपर तो इश्क़ का भूत सवार हो गया था!
"तेरा दिमाग ख़राब है क्या? जानती भी है तू क्या कह रही है? और किसे कह रही है? मैं तेरा चाचा हूँ! चाचा! तेरे मन में ऐसा गन्दा ख्याल आया भी कैसे? नशा-वषा तो नहीं करने लगी तू कहीं?" मैंने गरजते हुए कहा|
रितिका की आँखें भर आईं थी पर वो अपने आँसू पोंछते हुए बोली; "प्यार करना कोई गन्दी बात है? आपसे सच्चा प्यार करती हूँ! प्यार उम्र, रिश्ते-नाते कुछ नहीं देखता! प्यार तो प्यार होता है!" रितिका की आवाज जो अभी कुछ देर पहले डरी हुई थी अब उसमें जैसे आत्मविश्वास भर आया हो| उसका ये आत्मविश्वास मेरे दिमाग में गुस्से को निमंत्रण दे चूका था इसलिए मैं चिल्लाते हुए बाइक से उतरा और बाइक छोड़ दी और वो जाके धड़ाम से सड़क पर गिरी| मैंने एक और थप्पड़ रितिका के दाएँ गाल पर दे मारा और जोर से चिल्ला के बोला; "कहाँ से सीखा तूने ये सब? हाँ?.... बोल? इसीलिए तुझे पढ़ाया लिखाया जाता है की तू ये ऊल-जुलूल बातें करे? तुझे पता भी है प्यार क्या होता है?" रितिका की आँखों से आंसुओं की धरा बहे जा रही थी पर वो उसका आत्मविश्वास आज पूरे जोश पर था इसलिए वो भी मेरे सामने तन के जवाब देने लगी; "प्यार या प्रेम एक अहसास है। प्यार अनेक भावनाओं का, रवैयों का मिश्रण है जो पारस्परिक स्नेह से लेकर खुशी की ओर विस्तारित है। ये एक मज़बूत आकर्षण और निजी जुड़ाव की भावना है। किसी इन्सान के प्रति स्नेहपूर्वक कार्य करने या जताने को प्यार कहते हैं। प्यार वह होता है जो आपके दुख में साथ दें सुख में तो कोई भी साथ देता है| प्यार होता है तो हमारी ज़िन्दगी बदल जाती है| प्यार तो एक-दूसरे से दूर रहने पर भी खत्म नहीं होता। जब किसी इंसान के बिना आपको अपना जीवन नीरस लगे! एक दिन वह दिखाई न दे तो दिल बुरी तरह से घबराने लगे। आपको भूख कम लगने लगे या खाने-पीने की सुध न रहे। अखबार में पहले उसकी, फिर अपनी राशि देखें। जब भी वह उठकर कहीं जाए तो आपकी निगाहें उसका पीछा करती रहें। मेरे लिए तो यही प्यार है!" उसने खुद पर गर्व करते हुए जवाब दिया| इधर रितिका के प्रेम की परिभाषा सुन के मेरे तो होश ही उड़ गए! "तुझे किसने कहा मैं तुझसे प्यार करता हूँ?" मेरे पास उसकी परिभाषा का कोई जवाब नहीं था तो मैंने उससे सवाल करना ही बेहतर समझा| "बचपन से ले के आज तक ऐसा क्या है जो आपने मेरे लिए नहीं किया? मेरा कॉलेज जाना, मुझे पढ़ाना, मेरे लिए नए कपडे लाना, मेरा जन्मदिन मनाना वो भी तब घर में कोई मेरा जन्मदिन नहीं मनाता| मुझे अनगिनत दफा आपने डाँट खाने से बचाया, जब जब मैं रोइ तो आप होते थे मेरे आँसूं पोछने! और भी उद्धरण दूँ?" उसने फ़टाक से अपना जवाब दिया| "मैंने ये सब इसलिए किया क्योंकि मुझे तुझ पर तरस आता था| घर में हर कोई तुझे झिड़कता रहता था और तुझे उन्हीं झिड़कियों से बचाना चाहता था|" मेरा जवाब सुन वो जरा भी हैरान नहीं लगी| "प्यार किसी की दया, भावना और स्नेह प्रस्तुत करने का तरीका भी है। किसी इन्सान के प्रति स्नेहपूर्वक कार्य करने या जताने को भी प्यार कहते हैं। ये आपका प्यार ही था जो हमेशा मेरा हित और भला चाहता था, आप बस इस सब से अनजान हो!" साफ़ था की रितिका के ऊपर मेरी किसी भी बात का असर नहीं पड़ने वाला था तो मैंने सोच लिया की इसे अब सब सच बता दूँगा| "ये सभी किताबें बातें हैं! तुझे नहीं पता की असल जिंदगी में प्यार करने वालों के साथ क्या होता है?!" ये कहते हुए मैंने उसे उसकी माँ और उनके प्रेमी के साथ गाँव वालों ने क्या किया था सब सुना दिया और इसे सुनने के बाद वो एक दम सन्न रह गई और उसके चेहरे से साफ़ पता चल गया था की उसके पास इसका कोई भी जवाब नहीं है| अगले दस मिनट तक वो बूत बनी खड़ी रही और इधर मेरी नजर मेरी बाइक पर गई जो नीचे पड़ी थी और उसकी इंडिकेटर लाइट टूट गई थी जिसे देख मुझे और गुस्सा आने लगा| मैंने गुस्से से रितिका को बाइक पर बैठने को कहा और इस बार उसने एक ही बार में मेरी बात सुनी और डरी-सहमी सी वो पीछे आ कर बैठ गई| मैंने फटा-फ़ट बाइक दौड़ाई और घर के दरवाजे पर उसे छोड़ा और वहीँ से बाइक घुमा के वापस शहर लौट आया| शहर आते-आते शाम हो गई और जैसे ही घर में घुसा पिताजी का फोन आया तो मैंने उन्हें झूठ बोल दिया की बॉस ने कुछ जर्रूरी काम दिया था इसलिए जल्दी वापस आ गया| उस रात दो बजे तक माल फूँका और दिमाग में रह-रह के रितिका की बातें गूँज रही थी!
खैर दिन बीतने लगे और ऑफिस में मुझे एक सुंदरी पसंद आई, परन्तु कभी हिम्मत नहीं हुई की उससे कुछ बात करूँ! बस काम के सिलसिले में जो बात होती वो होती| इसी तरह एक साल और निकला, और अब रितिका बारहवीं कक्षा में थी और इसी साल उसके बोर्ड के पेपर थे| सेंटर घर से काफी दूर था और इस बार भी मुझे रितिका को पेपर के लिए लेके जाना था| मैं आज जब उसे सेंटर छोड़ने गया तो उसकी सहेलियां मुझे देख के कुछ खुस-फुसाने लगी और हँसने लगी| मैंने उस समय कुछ नहीं कहा और निकल गया और वापस दो घंटे बाद पहुँचा और बहार उसका इंतजार करने लगा| जब वो वापस आई तो हमने पहले पेपर डिसकस किया और फिर मैंने उससे सुबह हुई घटना के बारे में पूछा| तब उसने बताय की उसकी सहेलियों को लगा की मैं उसका बॉयफ्रेंड हूँ! "क्या? और तूने क्या कहा?" मैंने चौंकते हुए पूछा| "मैंने उन्हें बताया की आप मेरे चाचू हो और ये सुनके उनके होश उड़ गए!" और ये कहते हुए वो हँसने लगी| मैंने आगे कुछ नहीं कहा और उसे घर वापस छोड़ा और मैं फिर से दफ्तर निकल गया| दफ्तर पहुँचते-पहुँचते देर हो गई और बॉस ने मेरी एक छुट्टी काट ली! खेर मुझे इस बात का इतना अफ़सोस नहीं था| आज रितिका का आखरी पेपर था और मैं जानता था की उसके सारे पेपर जबरदस्त गए हैं! पर आज जब वो पेपर दे कर निकली तो उसने सर झुका के एक ख्वाइश पेश की; "चाचू.... आज मेरा पिक्चर देखने का मन है!" अब चूँकि मैं उसका दिल तोडना नहीं चाहता था सो मैंने उससे कहा; "आज तो देखना मुश्किल है क्योंकि अगर हम समय से घर नहीं पहुंचे तो आज बवाल होना तय है! तू ऐसा कर कल का प्रोग्राम रख, कल दूसरा शनिवार भी है और मेरी ऑफिस की भी छुट्टी है|"
"पर कल तो कोई पेपर ही नहीं है?" उसने बड़े भोलेपन से कहा| "अरे बुधु! ये तू जानती है, मैं जानता हूँ पर घर पर तो कोई नहीं जानता ना?" मेरी बात सुन के वो खुश हो गई| हम घर पहुँचे तो रितिका बहुत चहक रही थी और आज रात की रसोई उसी ने पकाई| मुझे उसके हाथ का बना खाना बहुत पसंद था क्योंकि उसे पता था की मुझे किस तरह का खाना पसंद है| इसलिए जब भी मैं घर आता था तो वो बड़े चाव से खाना बनाती थी और मैं उसे खुश हो के 'बक्शीश' दिया करता था! अगले दिन दुबारा कॉलेज ड्रेस पहन के नीचे आई तो भाभी ने उससे पूछा; "कहाँ जा रही है?" इससे पहले की वो कुछ बोलती मैं खुद ही बोल पड़ा; "पेपर देने और कहाँ?" मेरा जवाब बहुत रुखा था जिसे सुन के भाभी आगे कुछ नहीं बोली| हम दोनों घर से बहार निकले और बुलेट पर बैठ के सुबह का शो देखने चल दिए| थिएटर पहुँच के मैंने उसे पिक्चर दिखाई और फिर हमने आराम से बैठ के नाश्ता किया| फिर वो कहने लगी की मंदिर चलते हैं तो मैं उसे एक मंदिर ले आया | दिन के बारह बजे थे और मंदिर में कोई था नहीं, यहाँ तक की पुजारी भी नहीं था| हम अंदर से दर्शन कर के बहार आये और रितिका मंदिर की सीढ़ियों पर बैठने की जिद्द करने लगी| तो उसकी ख़ुशी के लिए हम थोड़ी देर वहीँ बैठ गए, तभी अचानक से रितिका ने अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया और मेरा हाथ अपने दोनों हाथों के बीच दबा दिया| मैंने कुछ नहीं कहा पर मन ही मन मुझे अजीब लग रहा था, पर मैं फिर भी चुप रहा और इधर-उधर देखने लगा की हमें इस तरह कोई देख ना ले| तभी मुझे कोई आता हुआ दिखाई दिया तो मैंने हड़बड़ा के रितिका को हिला दिया और मैं अचानक से खड़ा हो गया| मैं जल्दी से नीचे उतरा और बुलेट स्टार्ट की और रितिका को बैठने को कहा पर ऐसा लगा मानो वो वहाँ से जाना ही ना चाहती हो| वो अपना बस्ता कंधे पर टंगे कड़ी मुझे देख रही थी| "क्या देख रही है? जल्दी बैठ घर नहीं जाना?" मैंने फिर से उसे कहा तो जवाब में उसने सर ना में हिलाया तो मैंने जबरदस्ती उसका हाथ पकड़ा और बैठने को कहा और वो बैठ ही गई| हम वहाँ से चल पड़े इधर रितिका ने पीछे बैठे हुए अपना सर मेरी पीठ पर रख दिया| शुरू के पंद्रह मिनट तो मैं कुछ नहीं बोला पर अंदर ही अंदर मुझे अजीब लगने लगा| घर करीब २० मिनट दूर होगा की मैंने बाइक रोक दी और रितिका से पूछा:
मैं: क्या हुआ पगली? तू कुछ परेशान लग रही है?
रितिका: हम्म
मैं: क्या हुआ? बता ना मुझे?
वो बाइक से उत्तरी और मेरे सामने सर झुका के खड़ी हो गई| मैं अभी भी बाइक पर बैठा था और बाइक स्टैंड पर नहीं थी|
रितिका: मुझे आपसे एक बात कहनी है|
मैं: हाँ-हाँ बोल|
रितिका: वो... वो.... मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ!
मैं: अरे पगली मैं जानता हूँ तू मुझसे प्यार करती है| इसमें तू ऐसे परेशान क्यों हो रही है?
रितिका: नहीं-नहीं आप समझे नहीं! मैं आपसे सच-मुच् में दिलों जान से प्यार करती हूँ!
मेरा ये सुनना था की मैंने एक जोरदार थप्पड़ उसके बाएँ गाल पर रख दिया| मैं सोच रहा था की ये मुझसे चाचा-भतीजी वाले प्यार के बारे में बात कर रही है पर इसके ऊपर तो इश्क़ का भूत सवार हो गया था!
"तेरा दिमाग ख़राब है क्या? जानती भी है तू क्या कह रही है? और किसे कह रही है? मैं तेरा चाचा हूँ! चाचा! तेरे मन में ऐसा गन्दा ख्याल आया भी कैसे? नशा-वषा तो नहीं करने लगी तू कहीं?" मैंने गरजते हुए कहा|
रितिका की आँखें भर आईं थी पर वो अपने आँसू पोंछते हुए बोली; "प्यार करना कोई गन्दी बात है? आपसे सच्चा प्यार करती हूँ! प्यार उम्र, रिश्ते-नाते कुछ नहीं देखता! प्यार तो प्यार होता है!" रितिका की आवाज जो अभी कुछ देर पहले डरी हुई थी अब उसमें जैसे आत्मविश्वास भर आया हो| उसका ये आत्मविश्वास मेरे दिमाग में गुस्से को निमंत्रण दे चूका था इसलिए मैं चिल्लाते हुए बाइक से उतरा और बाइक छोड़ दी और वो जाके धड़ाम से सड़क पर गिरी| मैंने एक और थप्पड़ रितिका के दाएँ गाल पर दे मारा और जोर से चिल्ला के बोला; "कहाँ से सीखा तूने ये सब? हाँ?.... बोल? इसीलिए तुझे पढ़ाया लिखाया जाता है की तू ये ऊल-जुलूल बातें करे? तुझे पता भी है प्यार क्या होता है?" रितिका की आँखों से आंसुओं की धरा बहे जा रही थी पर वो उसका आत्मविश्वास आज पूरे जोश पर था इसलिए वो भी मेरे सामने तन के जवाब देने लगी; "प्यार या प्रेम एक अहसास है। प्यार अनेक भावनाओं का, रवैयों का मिश्रण है जो पारस्परिक स्नेह से लेकर खुशी की ओर विस्तारित है। ये एक मज़बूत आकर्षण और निजी जुड़ाव की भावना है। किसी इन्सान के प्रति स्नेहपूर्वक कार्य करने या जताने को प्यार कहते हैं। प्यार वह होता है जो आपके दुख में साथ दें सुख में तो कोई भी साथ देता है| प्यार होता है तो हमारी ज़िन्दगी बदल जाती है| प्यार तो एक-दूसरे से दूर रहने पर भी खत्म नहीं होता। जब किसी इंसान के बिना आपको अपना जीवन नीरस लगे! एक दिन वह दिखाई न दे तो दिल बुरी तरह से घबराने लगे। आपको भूख कम लगने लगे या खाने-पीने की सुध न रहे। अखबार में पहले उसकी, फिर अपनी राशि देखें। जब भी वह उठकर कहीं जाए तो आपकी निगाहें उसका पीछा करती रहें। मेरे लिए तो यही प्यार है!" उसने खुद पर गर्व करते हुए जवाब दिया| इधर रितिका के प्रेम की परिभाषा सुन के मेरे तो होश ही उड़ गए! "तुझे किसने कहा मैं तुझसे प्यार करता हूँ?" मेरे पास उसकी परिभाषा का कोई जवाब नहीं था तो मैंने उससे सवाल करना ही बेहतर समझा| "बचपन से ले के आज तक ऐसा क्या है जो आपने मेरे लिए नहीं किया? मेरा कॉलेज जाना, मुझे पढ़ाना, मेरे लिए नए कपडे लाना, मेरा जन्मदिन मनाना वो भी तब घर में कोई मेरा जन्मदिन नहीं मनाता| मुझे अनगिनत दफा आपने डाँट खाने से बचाया, जब जब मैं रोइ तो आप होते थे मेरे आँसूं पोछने! और भी उद्धरण दूँ?" उसने फ़टाक से अपना जवाब दिया| "मैंने ये सब इसलिए किया क्योंकि मुझे तुझ पर तरस आता था| घर में हर कोई तुझे झिड़कता रहता था और तुझे उन्हीं झिड़कियों से बचाना चाहता था|" मेरा जवाब सुन वो जरा भी हैरान नहीं लगी| "प्यार किसी की दया, भावना और स्नेह प्रस्तुत करने का तरीका भी है। किसी इन्सान के प्रति स्नेहपूर्वक कार्य करने या जताने को भी प्यार कहते हैं। ये आपका प्यार ही था जो हमेशा मेरा हित और भला चाहता था, आप बस इस सब से अनजान हो!" साफ़ था की रितिका के ऊपर मेरी किसी भी बात का असर नहीं पड़ने वाला था तो मैंने सोच लिया की इसे अब सब सच बता दूँगा| "ये सभी किताबें बातें हैं! तुझे नहीं पता की असल जिंदगी में प्यार करने वालों के साथ क्या होता है?!" ये कहते हुए मैंने उसे उसकी माँ और उनके प्रेमी के साथ गाँव वालों ने क्या किया था सब सुना दिया और इसे सुनने के बाद वो एक दम सन्न रह गई और उसके चेहरे से साफ़ पता चल गया था की उसके पास इसका कोई भी जवाब नहीं है| अगले दस मिनट तक वो बूत बनी खड़ी रही और इधर मेरी नजर मेरी बाइक पर गई जो नीचे पड़ी थी और उसकी इंडिकेटर लाइट टूट गई थी जिसे देख मुझे और गुस्सा आने लगा| मैंने गुस्से से रितिका को बाइक पर बैठने को कहा और इस बार उसने एक ही बार में मेरी बात सुनी और डरी-सहमी सी वो पीछे आ कर बैठ गई| मैंने फटा-फ़ट बाइक दौड़ाई और घर के दरवाजे पर उसे छोड़ा और वहीँ से बाइक घुमा के वापस शहर लौट आया| शहर आते-आते शाम हो गई और जैसे ही घर में घुसा पिताजी का फोन आया तो मैंने उन्हें झूठ बोल दिया की बॉस ने कुछ जर्रूरी काम दिया था इसलिए जल्दी वापस आ गया| उस रात दो बजे तक माल फूँका और दिमाग में रह-रह के रितिका की बातें गूँज रही थी!