15-01-2019, 06:30 PM
जोरू का गुलाम पोस्ट ३
अब तक
लेकिन मैं पीछे हटने वाली नहीं थी , " ये मेरे गले का हार देख रही हो पूरे ४५ हजार का है। अगर तुम जीत गयी तो तुम्हारा ,वरना बोलो क्या लगाती हो बाजी तुम ,"
तब तक मेरी जेठानी भी आगयी और उसे चिढ़ाती बोलीं ,
" अरे इसके पास तो एक ही चीज है देने के लिए। "
पर मेरी छुटकी ननद , एकदम पक्की श्योर बोली।
" आप हार जाइयेगा। "
जेठानी फिर बोलीं , मेरी ननद से " अरे अगर इतना श्योर है तो लगा ले न बाजी क्यों फट रही है तेरी। "
और ऑफर मैंने पेश किया ,
"ठीक है तू जीत गयी तो हार तेरा और मैं जीत गयी तो बस सिर्फ चार घंटे तक जो मैं कहूँगी ,मानना पडेगा। "
पहली बार वो थोड़ा डाउट में थी।
" अरे मेरे सीधे साधे भैया को जबरन पकड़ के उसके मुंह में डाल दीजियेगा आप लोग , फिर कहियेगा ,जीत गयीं "
बोली गुड्डी।
" एकदम नहीं वो अपने हाथ से खाएंगे , बल्कि तुझसे कहेंगे ,तेरे हाथ से खुद खाएंगे अब तो मंजूर।
और तुझे भी अपने हाथ से खिलायंगे। एक साल के अंदर। अब मंजूर। "
मैंने शर्त साफ कीऔर वो मान गयी।
मेरी जेठानी ने मेरे कान में कहा , सुन तेरा हार तो अब गया।
आगे
अब मेरी बारी
और कुछ ही दिन में उनका ट्रांसफर हो गया , घर से काफी दूर। और मैं भी उनकी जॉब वाली जगह पे आ गयी।
और एक दिन मैं सोच रही थी उनके बारे में।
ढेर सारी अच्छाइयां है उनमें , बहुत ही पोलाइट ,केयरिंग ,इंटेलिजेंट ,वेल रेड , लेकिन, जैसे मन में गांठे ही गांठे हों। फिर उनके मायकेवालों के बारें में और,....मुझे लगा ,
बात ये ही की ये बहुत ही इंट्रोवर्ट हैं। वहां तक तब भी गनीमत थी , लेकिन एक इमेज ,' अच्छे बच्चे ' की इनके मन में बचपन से बैठा दिया गया है , और बस वोउसी के हिसाब से, जबकि अब वो बच्चे नहीं रहे, फिर भी।
और अब अपनी उसी इमेज में वो ट्रैप हो चुके हैं। इसी लिए कभी भी , वो खुल कर , यहाँ तक की 'उस समय ' भी , … अच्छे बच्चे की तरह , इसलिए वो न मस्ती कर पाते थे न , ....एकसेन्स आफ गिल्ट सा ,… लेकिन अब उस कैद से उन्हें छुड़ाने का काम मेरा ही था।
जैसा परी कथाओ में होता है न किसी शापित राजकुमार को तिलस्म तोड़कर कोई राजकुमारी आजादकराती है , तो बस इस घुटन भरे तहखाने से उन्हें बाहर निकालने का काम , मुझे ही करना था।
कैसे , ये सोचना मेरा काम था लेकिन मम्मी की सलाह के बिना तो , इतना बड़ा आपरेशन हाथ में लेना , … उन्होंने न सिर्फ सुना बल्कि सलाह भी दी।
फिर मम्मी को मैंने अपनी छुटकी ननदसे लगी बाजी के बारे में भी बत्ताया और हंसकर कहा ,
अगले मौसम में मैं सोचती उस गुड्डी के रसीले गदराये आमों की ही उन्हें दावत करा दूँ।
" एकदम " मम्मी ने हंस के कहा ,और जोड़ा और उसके बाद उस छिनाल ननद को मेरे पास भेज देना न ,पूरे गाँव की पंगत जिमा दूंगी।
बस मैंने तय कर लिया था ,अब क्या करना है।
एक बात और मैंने नोटिस की 'उनके ' बारे में , लेकिन वो राज बाद में खोलूंगी.
............
एक छोटे शहर के बड़े से होटल में हम दोनों थे।
वो आफिस के काम से आये और साथ में मैं भी लग ली।
देर सुबह , हम दोनों अलसाये और उनका 'वो' अंगड़ाई लेने लगा.
मैं मान गयी लेकिन बस एक छोटी सी शर्त पर ,
' जिसका पहले होगा , वो दूसरे की जिंदगी भर गुलामी करेगा ,सब कुछ मानना पड़ेगा। '
और वो मान गए।
मानते कैसे नहीं ,उनकी हिम्मत थी।
झुक के मैंने अपने गीले गुलाबी रसीले होंठ सीधे उनके होंठो पे लगा दिए और मेरी जीभ उनके मुंह के अंदर गोल गोल घूम रही थी। मेरे कड़े कड़े गोल उरोज हलके हलके उनके खुले सीने पेरगड़ रहे थे। हलके से उनके कानो को काटते .
मैंने एक शर्त और में फुसफुसा दी ,
" एक दम नो होल्ड्सबार्ड होगा , वो कुछ भी कर सकते हैं , कुछ भी बोल सकते हैं और मैं भी। "
वो मान गए।
मानते कैसे नहीं ,पाजामे में तम्बू पूरी तरह तना हुआ था और मेरी उँगलियाँ हलके हलके नाड़ा खोल रही थीं।
वह पूरी तरह कड़ा खड़ा था और मैं अच्छी तरह गीली।
मैंने तय कर लिया था इस बार 'विमेन आन टॉप ' ,… आखिर आज के बाद से तो मुझे इसी हालत में रहना था।
आलवेज आन टॉप।
अब तक
लेकिन मैं पीछे हटने वाली नहीं थी , " ये मेरे गले का हार देख रही हो पूरे ४५ हजार का है। अगर तुम जीत गयी तो तुम्हारा ,वरना बोलो क्या लगाती हो बाजी तुम ,"
तब तक मेरी जेठानी भी आगयी और उसे चिढ़ाती बोलीं ,
" अरे इसके पास तो एक ही चीज है देने के लिए। "
पर मेरी छुटकी ननद , एकदम पक्की श्योर बोली।
" आप हार जाइयेगा। "
जेठानी फिर बोलीं , मेरी ननद से " अरे अगर इतना श्योर है तो लगा ले न बाजी क्यों फट रही है तेरी। "
और ऑफर मैंने पेश किया ,
"ठीक है तू जीत गयी तो हार तेरा और मैं जीत गयी तो बस सिर्फ चार घंटे तक जो मैं कहूँगी ,मानना पडेगा। "
पहली बार वो थोड़ा डाउट में थी।
" अरे मेरे सीधे साधे भैया को जबरन पकड़ के उसके मुंह में डाल दीजियेगा आप लोग , फिर कहियेगा ,जीत गयीं "
बोली गुड्डी।
" एकदम नहीं वो अपने हाथ से खाएंगे , बल्कि तुझसे कहेंगे ,तेरे हाथ से खुद खाएंगे अब तो मंजूर।
और तुझे भी अपने हाथ से खिलायंगे। एक साल के अंदर। अब मंजूर। "
मैंने शर्त साफ कीऔर वो मान गयी।
मेरी जेठानी ने मेरे कान में कहा , सुन तेरा हार तो अब गया।
आगे
अब मेरी बारी
और कुछ ही दिन में उनका ट्रांसफर हो गया , घर से काफी दूर। और मैं भी उनकी जॉब वाली जगह पे आ गयी।
और एक दिन मैं सोच रही थी उनके बारे में।
ढेर सारी अच्छाइयां है उनमें , बहुत ही पोलाइट ,केयरिंग ,इंटेलिजेंट ,वेल रेड , लेकिन, जैसे मन में गांठे ही गांठे हों। फिर उनके मायकेवालों के बारें में और,....मुझे लगा ,
बात ये ही की ये बहुत ही इंट्रोवर्ट हैं। वहां तक तब भी गनीमत थी , लेकिन एक इमेज ,' अच्छे बच्चे ' की इनके मन में बचपन से बैठा दिया गया है , और बस वोउसी के हिसाब से, जबकि अब वो बच्चे नहीं रहे, फिर भी।
और अब अपनी उसी इमेज में वो ट्रैप हो चुके हैं। इसी लिए कभी भी , वो खुल कर , यहाँ तक की 'उस समय ' भी , … अच्छे बच्चे की तरह , इसलिए वो न मस्ती कर पाते थे न , ....एकसेन्स आफ गिल्ट सा ,… लेकिन अब उस कैद से उन्हें छुड़ाने का काम मेरा ही था।
जैसा परी कथाओ में होता है न किसी शापित राजकुमार को तिलस्म तोड़कर कोई राजकुमारी आजादकराती है , तो बस इस घुटन भरे तहखाने से उन्हें बाहर निकालने का काम , मुझे ही करना था।
कैसे , ये सोचना मेरा काम था लेकिन मम्मी की सलाह के बिना तो , इतना बड़ा आपरेशन हाथ में लेना , … उन्होंने न सिर्फ सुना बल्कि सलाह भी दी।
फिर मम्मी को मैंने अपनी छुटकी ननदसे लगी बाजी के बारे में भी बत्ताया और हंसकर कहा ,
अगले मौसम में मैं सोचती उस गुड्डी के रसीले गदराये आमों की ही उन्हें दावत करा दूँ।
" एकदम " मम्मी ने हंस के कहा ,और जोड़ा और उसके बाद उस छिनाल ननद को मेरे पास भेज देना न ,पूरे गाँव की पंगत जिमा दूंगी।
बस मैंने तय कर लिया था ,अब क्या करना है।
एक बात और मैंने नोटिस की 'उनके ' बारे में , लेकिन वो राज बाद में खोलूंगी.
............
एक छोटे शहर के बड़े से होटल में हम दोनों थे।
वो आफिस के काम से आये और साथ में मैं भी लग ली।
देर सुबह , हम दोनों अलसाये और उनका 'वो' अंगड़ाई लेने लगा.
मैं मान गयी लेकिन बस एक छोटी सी शर्त पर ,
' जिसका पहले होगा , वो दूसरे की जिंदगी भर गुलामी करेगा ,सब कुछ मानना पड़ेगा। '
और वो मान गए।
मानते कैसे नहीं ,उनकी हिम्मत थी।
झुक के मैंने अपने गीले गुलाबी रसीले होंठ सीधे उनके होंठो पे लगा दिए और मेरी जीभ उनके मुंह के अंदर गोल गोल घूम रही थी। मेरे कड़े कड़े गोल उरोज हलके हलके उनके खुले सीने पेरगड़ रहे थे। हलके से उनके कानो को काटते .
मैंने एक शर्त और में फुसफुसा दी ,
" एक दम नो होल्ड्सबार्ड होगा , वो कुछ भी कर सकते हैं , कुछ भी बोल सकते हैं और मैं भी। "
वो मान गए।
मानते कैसे नहीं ,पाजामे में तम्बू पूरी तरह तना हुआ था और मेरी उँगलियाँ हलके हलके नाड़ा खोल रही थीं।
वह पूरी तरह कड़ा खड़ा था और मैं अच्छी तरह गीली।
मैंने तय कर लिया था इस बार 'विमेन आन टॉप ' ,… आखिर आज के बाद से तो मुझे इसी हालत में रहना था।
आलवेज आन टॉप।