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Romance जियें तो जियें कैसे-बिन आपके"
#6
"आज वो आने वाला था"


जागते जागते जैसे तैसे रात कटी शरीर टूट रहा था किसे से बात करने का मन नहीं हो रहा था सो जल्दी से कॉफी लेकर बोझिल पलकों के साथ छत पर भागी. माँ गंगे की आरती हो रही थी. 
आसमान मै उड़ते सारे परिंदे जाने क्यों आज नए से लग रहे थे नाचने का मन कर रहा था जोर जोर से चिल्लाने का मन कर रहा था सूरज की लालामी माँ गंगे पर पड़ने लगी थी. माँ गंगे प्रवल बेग से मुझे चिढ़ाती हुई बह रही थी बगुलों के झुण्ड मड़रा रहे थे चिड़िया चहक रही थी और में सोफिया मन ही मन मुस्कुरा रही थी. बाबरी हुई जा रही थी .
आज वो आने वाला था मेरा हिन्द मेरा महबूब आज शाम को मेरे घर आने वाला था 
कैसे सामना कर पाऊंगी उस का क्या काहूगी उससे क्या कपडे पहनू जाने कितने ख्याल दिल दिमाक मै मचल रहे थे उस जमाने मै लड़कियों को काफी तहजीव में रहना होता था जरा गड़बड़ भी की सीधा डोली उठवा दीजाती थी और एक कायदा और लागु होता था आज जैसे कोई नहीं पूछता था लड़की की उम्र क्या है १८ से काम तो नहीं उस समय १६ में लड़की की शादी बड़ी आम बात थी. सो बंदी ऐसी काफी दुर्घटनाय देख चुकी थी.और एक बात शादी क़े एक साल बाद बच्चा न होने पर मर्दो क़े लिए बिना बुरखा पहने शाही दवाखाना जाना ऑफिस जाने से ज्यादा जरुरी था और औरतो की क्या कहुँ क्या जिल्लत और रुस्वाई होती थी वो भी विथ फैमिली. यहाँ बंदी का मरकज़ अभी इश्क लड़ाने तक ही सीमीत था डोली उठने वाली बात क़े लिए दिल्ली दूर थी
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RE: "जियें तो जियें कैसे-बिन आपके" - by SOFIYA AALAM NAKVI - 17-11-2018, 01:45 PM



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