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Romance जियें तो जियें कैसे-बिन आपके"
#4
"पहली नजर"

झूमते मन से हस्ते गाते घर जाने को चले ही थे की आवाज आई अरे नवाब साहब कहा जा रहे हो.
मुड़ कर देखा तो हकीम साहब अपनी बेगम के साथ थे हकीम साहब अब्बू के पुराने दोस्त थे कहा जाता था उन का ख़ानदान हकीम लुकमान से तालुक रखता था उन का कई पीढ़ियों पुराना देसी दवाखाना था वो अपनी बेगम के साथ कई बार मुशायरा सुनने हमारे यहाँ आते रहते थे अब्बू अम्मी भी उन के यहां जाते थे लेकिन कभी मेरा उन के घर जाना न हुआ 
अब्बू-अरे हकीम साहब आप भी आए हो 
हकीम साहब- क्यों भाई हम क्यों नही आते? मिया नहीं आते तो तुम काशी से न निकलवा दे ते हा हा हा और तो और आज तो हम अपने शर्मीले सहजादे को भी पकड़ लया. जनाव बाहर निकलने में लड़कियों से भी ज्यादा शर्माते है. कहने को हार्ड सर्जन बनने वाले है,और नवाब साहब क्या कहुँ नज़्मे सुन लोगे बरखुरदार की तो ग़ालिब को भूल जाओ गे. 
अब्बू- हा हा हा तो आज ले ही आये "हिन्द"को कहा है जनाव.
हकीम साहब- गाड़ी निकालने गए हे पार्किंग से लो वो आगे सहजादे गुलफाम.

पहली नजर- "हिन्द" बीस साल का शोख शर्मिला नीली आखों वाला नौजवान.



"निदा फ़ाज़ली"


देखके तुमको होश में आना भूल गये

याद रहे तुम और ज़माना भूल गये.



देख कर तुमको यकीं होता है

कोई इतना भी हसीं होता है.



भूल कर तुमको ना जी पाएँगे

साथ तुम होगी जहाँ जाएँगे.



हम कोई वक़्त नहीं हैं हमदम

जब बुलाओगे चले आएँगे.
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RE: "जियें तो जियें कैसे-बिन आपके" - by SOFIYA AALAM NAKVI - 17-11-2018, 01:43 PM



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