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Romance जियें तो जियें कैसे-बिन आपके"
#3
"मेरा मज़हब और में"


जिस तरीके से मेरे वालिदैन ने मेरी परवरिश की तो आप मज़हबी तौर पर मुझ को इंसान कह सकते हो हम बनारस बाले खुद को इंसान और गंगा का बेटा और गंगा की बेटी ही मानते हे.में खुद को भी "डॉटर ऑफ गंगा" ही मानती हु.

हमारा परिवार नवाब सिराजुद्दौला से ताल्लुक रखता है अब्बू डॉक्टर है. हमलोग नवावो के खानदान से है. मोश्की और गायकी बनारसी खून जैसे रागों में बहती है.हमारे घर में सुबह की शुरुआत भजनो से शाम शुरू मुशायरो की महफ़िल से होती है.

तरीक थी 15 अगस्त 1998 सारा हुन्दुस्तान आज़ादी के जश्न में डूबा था लेकिन इस दिन मुझे दुहरी ख़ुशी होती हे क्यों की 15 अगस्त को हे मेरा जन्म दिन भी होता है.
लेकिन आज जो मेरे साथ होने वाला था वो मेरे जीवन में अनमोल खुशियो का खजाना लेकर आने वाला था.
सारा दिन सहेलियों के साथ मस्ती करते चाट पकोड़ी खाते समय कब गुजर गया पता ही न चला शाम आ गई मेरे जीवन की सब से हसीन शाम.
आज दरभंगा घाट पर जयपुर घराने के अहमद हुसैन और मोहम्मद हुसैन साहेब की भजन संध्या थी.काशी को आज पंख लग गए थे सारा काशी उड़ा जा रहा था दरभंगा घाट की और में भी अपने परिवार के साथ दुहरी खुसियो को दामन में समेटे जा पहुँची.
क्या रूहानी आवाज़ थी राग रंगनियो की बारिस हो रही थी जलती चिताओं से उठ था धुआँ मुक्ति मार्ग को जाती आत्माए सभी झूम रहे थे. लगता जैसे है कल की ही बात हो दोनों भाई एक से बढ़ कर एक राग खींचे जा रहे थे. मानो वक़्त रुक सा गया हो आज माँ गंगा भी शांत थी मानो वो भी सुन रही हो.


कितने सुन्दर बोल थे भजन के


गाइये गणपति जगवंदन 

शंकर सुवन भवानी के नंदन.



सिद्धि सदन गजवदन विनायक 

कृपा सिंधु सुंदर सब लायक.



मोदक प्रिय मुद मंगल दाता 

विद्या बारिधि बुद्धि विधाता.
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RE: "जियें तो जियें कैसे-बिन आपके" - by SOFIYA AALAM NAKVI - 17-11-2018, 01:42 PM



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