05-10-2019, 04:54 PM
(This post was last modified: 30-12-2020, 01:03 PM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
मंजू बाई
" अरे भाई बहन मिलकर अकेले अकेले खूब मस्ती कर रहे हो "
मंजू बाई थी ,पीछे का दरवाजा उसने न सिर्फ बंद कर दिया था ,बल्कि ताला भी लगा दिया था।
मैं और गीता दोनों उसे देख के खड़े हो गए ,लेकिन गीता के हाथ में अभी भी मेरा खूँटा था ,खड़ा ,एकदम खुला। और मंजू बाई की आँखे वहीँ अटकी पड़ी थीं।
" झंडा तो खूब मस्त खड़ा किया है " मंजू बाई बोली।
"आया न पसंद मेरे भैया का ,देख कितना लंबा है कितना मोटा और कड़ा भी कैसा ,एकदम लोहे का खम्बा है। "
गीता खिलखिलाती ,मेरे लन्ड को मुठियाती ,मंजू बाई को ललचाती बोली।
" नम्बरी बहनचोद लगता है , अपनी बहन से लन्ड ,... "
मंजू बाई ने बोलना शुरू किया था की गीता बीच में बोल पड़ी।
" लगता नहीं है , है नम्बरी बहनचोद। लेकिन मेरा इत्ता प्यारा भैया है , मक्खन सा चिकना , फिर भाई बहन को नहीं चोदेगा तो कौन चोदेगा। लेकिन तेरी काहे को सुलग रही है माँ , मेरा भइया नम्बरी मादरचोद भी है। अभी देखना तेरे भोंसडे को ऐसा कूटेगा न ,की बचपन की भी चुदाई तू भूल जायेगी , जो मेरे मामा के साथ ,... लेकिन ये बता तू इतनी देर गायब कहाँ थी। "
तबतक आसमान में बदलियों ने चाँद को आजाद कर दिया और चाँद आसमान से टुकुर टुकुर देख रहा था , एकदम मेरी तरह , जैसे मैं मंजू बाई को देख रहा था।
बल्कि उसके स्तन ,खूब बड़े बड़े कड़े , अभी आँचल में थोड़ा छिपे ढके थे ,लेकिन न उनकी ऊंचाई छिप पा रही थी , न उनका कड़ापन।
शाम को इन्ही जोबनों ने कितना ललचाया तड़पाया था मुझे।
मंजू बाई जिस तरह से बोल रही थी ,लग रहा था कुछ है उसके मुंह में और उसके जवाब से उसकी बात साफ़ भी हो गयी।
" अरे अपने मुन्ने के लिए पलंग तोड़ पान लाने के लिए गयी थी। डबल जोड़ा ,दो घंटे से मुंह में रचा रही हूँ। "
डबल जोड़ा ,मतलब चार पान ,और पलँग तोड़ पान एक ही काफी होता है झुमा देने के लिए।
सुना मैंने भी बहुत था इसके बारे में की ननदें सुहाग रात के दिन अपनी भाभी को ये पान खिला देती हैं और एक पान में ही इतनी मस्ती छाती है की वो खुद टाँगे फैला देती है।
और मरद के ऊपर भी ऐसा असर होता है की , एक पान में ही रात भर सांड बन जाता है वो ,
लेकिन पान मैं खाता नहीं था , शादी में
कोहबर में भी मैंने पान खाने से साफ़ मना कर दिया था। और अभी भी , आज तक कभी भी नहीं ...
लेकिन न मुझे ज्यादा बोलने का मौक़ा मिला न सोचने का ,
गीता ने मुझे छोड़ दिया और मंजू बाई ने दबोच लिया जैसे कोई अजगर ,खरगोश को दबोच ले , बिना किसी कोशिश के , और सीधे मंजू बाई के पान के रंग से रंगे ,रचे बसे होंठ सीधे मेरे होंठों पर।
बिना किसी संकोच के वो अपने होंठ मेरे होंठों पे रगड़ रही थी और साथ में उसकी बड़ी बड़ी छातियाँ भी मेरे खुले नंगे सीने पर।
इस रगड़ा रगड़ी में उसका आँचल खुल कर नीचे ढलक गया और वो वही ब्लाउज पहने थी जो शाम को , एकदम देह से चिपका , पारभासी ,खूब लो कट।
गोलाइयाँ गहराइयाँ सब कुछ चटक चांदनी में साफ दिख रही थीं।
जानबूझ कर अब वो अपनी छाती मेरे खुले सीने से जोर जोर से रगड़ रही थी।
मंजू बाई को मालूम था उसके जोबन का जादू , और मेरे ऊपर उस जादू का असर।
लेकिन उस रगड़घिस में दो चुटपुटिया बटन चट चट कर खुल गयी और उसकी गोलाइयों का ऊपरी भाग पूरी तरह अनावृत्त हो गया।
मैं उस जादूगरनी की जादू भरी गोलाइयों में खो गया था और मौके का फायदा उठा के उसने मेरे होंठो को नहीं नहीं चूमा नहीं ,सीधे कचकचा के काट लिया।
मेरा होंठ अब मंजू बाई के दोनों होंठों के बीच कैद कभी वो चूसती चुभलाती तो कभी कस के अपने दांत गड़ा देती।
दर्द का भी अपना एक मजा होता है।
और एक ही एक बार जब उसने कस के कचकचा के काटा , तो मेरा मुंह दर्द से खुल गया, बस मंजू बाई की जीभ मेरे मुंह के अंदर , और साथ में पान के अधखाये ,कुचले ,चूसे थूक में लिपटे लिथड़े टुकड़े मेरे मुंह में।
मैं बिना कुछ सोचे समझे , मंजू बाई की रसीली जीभ को पागल की तरह चूस रहा था , और मंजू अब खुल के अपने जोबन मेरे सीने पे रगड़ रही थी। उसका एक हाथ मेरे सर पे था ,कुछ देर बाद मंजू बाई ने मुझे थोड़ा पीछे की ओर झुका दिया , दूसरे हाथ से मेरे गाल दबा के मेरा मुंह पूरी तरह खोल दिया और
मेरे खुले मुंह के ठीक ऊपर , आधा इंच ऊपर उसके होंठ और उसने होंठ खोल दिए ,
मंजू बाई के मुंह में दो घंटे से रस रच रहे पान की ,
एक तार की तरह लाल ,धीरे धीरे उसके मुंह से मेरे खुले मुंह में।
मैं हिल डुल भी नहीं सकता था ,न हिलना डुलना चाहता था।
धीमे धीमे मंजू बाई के मुंह से पान का सारा रस , उसकेथूक में लिथड़ा ,लिपटा सीधे मेरे मुंह में
और अब मंजू बाई ने अपने होंठ मेरे होंठों से चिपका कर एकदम सील कर दिया।
मंजू बाई की जीभ मेरे मुंह के अंदर उन खाये हुए पान के टुकड़ों को ठेल रही थी ,धकेल रही थी अंदर। जब तक पलंग तोड़ पान का रस मेरे मुंह के अंदर , मेरे पेट के भीतर नहीं घुस गया , मंजू के होंठ मेरे होंठों को सील किये हुए थे।
वो तो गीता ने टोका ,
" अरी माँ सब रस क्या अपने बेटे को ही खिला दोगी ,बेटे के आगे बिटिया को भूल गयी क्या। "
मंजू बाई ने मुझे छोड़ दिया और गीता को उसी की तरह जवाब दिया।
" अरी छिनार, अभी तो भैया भैया कर रही थी ,ले लो न अपने भैया से।"
" अरे भाई बहन मिलकर अकेले अकेले खूब मस्ती कर रहे हो "
मंजू बाई थी ,पीछे का दरवाजा उसने न सिर्फ बंद कर दिया था ,बल्कि ताला भी लगा दिया था।
मैं और गीता दोनों उसे देख के खड़े हो गए ,लेकिन गीता के हाथ में अभी भी मेरा खूँटा था ,खड़ा ,एकदम खुला। और मंजू बाई की आँखे वहीँ अटकी पड़ी थीं।
" झंडा तो खूब मस्त खड़ा किया है " मंजू बाई बोली।
"आया न पसंद मेरे भैया का ,देख कितना लंबा है कितना मोटा और कड़ा भी कैसा ,एकदम लोहे का खम्बा है। "
गीता खिलखिलाती ,मेरे लन्ड को मुठियाती ,मंजू बाई को ललचाती बोली।
" नम्बरी बहनचोद लगता है , अपनी बहन से लन्ड ,... "
मंजू बाई ने बोलना शुरू किया था की गीता बीच में बोल पड़ी।
" लगता नहीं है , है नम्बरी बहनचोद। लेकिन मेरा इत्ता प्यारा भैया है , मक्खन सा चिकना , फिर भाई बहन को नहीं चोदेगा तो कौन चोदेगा। लेकिन तेरी काहे को सुलग रही है माँ , मेरा भइया नम्बरी मादरचोद भी है। अभी देखना तेरे भोंसडे को ऐसा कूटेगा न ,की बचपन की भी चुदाई तू भूल जायेगी , जो मेरे मामा के साथ ,... लेकिन ये बता तू इतनी देर गायब कहाँ थी। "
तबतक आसमान में बदलियों ने चाँद को आजाद कर दिया और चाँद आसमान से टुकुर टुकुर देख रहा था , एकदम मेरी तरह , जैसे मैं मंजू बाई को देख रहा था।
बल्कि उसके स्तन ,खूब बड़े बड़े कड़े , अभी आँचल में थोड़ा छिपे ढके थे ,लेकिन न उनकी ऊंचाई छिप पा रही थी , न उनका कड़ापन।
शाम को इन्ही जोबनों ने कितना ललचाया तड़पाया था मुझे।
मंजू बाई जिस तरह से बोल रही थी ,लग रहा था कुछ है उसके मुंह में और उसके जवाब से उसकी बात साफ़ भी हो गयी।
" अरे अपने मुन्ने के लिए पलंग तोड़ पान लाने के लिए गयी थी। डबल जोड़ा ,दो घंटे से मुंह में रचा रही हूँ। "
डबल जोड़ा ,मतलब चार पान ,और पलँग तोड़ पान एक ही काफी होता है झुमा देने के लिए।
सुना मैंने भी बहुत था इसके बारे में की ननदें सुहाग रात के दिन अपनी भाभी को ये पान खिला देती हैं और एक पान में ही इतनी मस्ती छाती है की वो खुद टाँगे फैला देती है।
और मरद के ऊपर भी ऐसा असर होता है की , एक पान में ही रात भर सांड बन जाता है वो ,
लेकिन पान मैं खाता नहीं था , शादी में
कोहबर में भी मैंने पान खाने से साफ़ मना कर दिया था। और अभी भी , आज तक कभी भी नहीं ...
लेकिन न मुझे ज्यादा बोलने का मौक़ा मिला न सोचने का ,
गीता ने मुझे छोड़ दिया और मंजू बाई ने दबोच लिया जैसे कोई अजगर ,खरगोश को दबोच ले , बिना किसी कोशिश के , और सीधे मंजू बाई के पान के रंग से रंगे ,रचे बसे होंठ सीधे मेरे होंठों पर।
बिना किसी संकोच के वो अपने होंठ मेरे होंठों पे रगड़ रही थी और साथ में उसकी बड़ी बड़ी छातियाँ भी मेरे खुले नंगे सीने पर।
इस रगड़ा रगड़ी में उसका आँचल खुल कर नीचे ढलक गया और वो वही ब्लाउज पहने थी जो शाम को , एकदम देह से चिपका , पारभासी ,खूब लो कट।
गोलाइयाँ गहराइयाँ सब कुछ चटक चांदनी में साफ दिख रही थीं।
जानबूझ कर अब वो अपनी छाती मेरे खुले सीने से जोर जोर से रगड़ रही थी।
मंजू बाई को मालूम था उसके जोबन का जादू , और मेरे ऊपर उस जादू का असर।
लेकिन उस रगड़घिस में दो चुटपुटिया बटन चट चट कर खुल गयी और उसकी गोलाइयों का ऊपरी भाग पूरी तरह अनावृत्त हो गया।
मैं उस जादूगरनी की जादू भरी गोलाइयों में खो गया था और मौके का फायदा उठा के उसने मेरे होंठो को नहीं नहीं चूमा नहीं ,सीधे कचकचा के काट लिया।
मेरा होंठ अब मंजू बाई के दोनों होंठों के बीच कैद कभी वो चूसती चुभलाती तो कभी कस के अपने दांत गड़ा देती।
दर्द का भी अपना एक मजा होता है।
और एक ही एक बार जब उसने कस के कचकचा के काटा , तो मेरा मुंह दर्द से खुल गया, बस मंजू बाई की जीभ मेरे मुंह के अंदर , और साथ में पान के अधखाये ,कुचले ,चूसे थूक में लिपटे लिथड़े टुकड़े मेरे मुंह में।
मैं बिना कुछ सोचे समझे , मंजू बाई की रसीली जीभ को पागल की तरह चूस रहा था , और मंजू अब खुल के अपने जोबन मेरे सीने पे रगड़ रही थी। उसका एक हाथ मेरे सर पे था ,कुछ देर बाद मंजू बाई ने मुझे थोड़ा पीछे की ओर झुका दिया , दूसरे हाथ से मेरे गाल दबा के मेरा मुंह पूरी तरह खोल दिया और
मेरे खुले मुंह के ठीक ऊपर , आधा इंच ऊपर उसके होंठ और उसने होंठ खोल दिए ,
मंजू बाई के मुंह में दो घंटे से रस रच रहे पान की ,
एक तार की तरह लाल ,धीरे धीरे उसके मुंह से मेरे खुले मुंह में।
मैं हिल डुल भी नहीं सकता था ,न हिलना डुलना चाहता था।
धीमे धीमे मंजू बाई के मुंह से पान का सारा रस , उसकेथूक में लिथड़ा ,लिपटा सीधे मेरे मुंह में
और अब मंजू बाई ने अपने होंठ मेरे होंठों से चिपका कर एकदम सील कर दिया।
मंजू बाई की जीभ मेरे मुंह के अंदर उन खाये हुए पान के टुकड़ों को ठेल रही थी ,धकेल रही थी अंदर। जब तक पलंग तोड़ पान का रस मेरे मुंह के अंदर , मेरे पेट के भीतर नहीं घुस गया , मंजू के होंठ मेरे होंठों को सील किये हुए थे।
वो तो गीता ने टोका ,
" अरी माँ सब रस क्या अपने बेटे को ही खिला दोगी ,बेटे के आगे बिटिया को भूल गयी क्या। "
मंजू बाई ने मुझे छोड़ दिया और गीता को उसी की तरह जवाब दिया।
" अरी छिनार, अभी तो भैया भैया कर रही थी ,ले लो न अपने भैया से।"