28-09-2019, 02:56 PM
करीब एक महीने तक सब कुछ ठीक ठाक चला मगर एक महीने के फिर से एक अजीब सी घटना घट गयी।
एक महीने बाद लाल जी के ही गाँव में शोर हुआ की "पहलवान ने किसी को पकड़ लिया है। बेचारा जिन्दगी से बहुत परेशान था और अब मरने के बाद लोगो को परेशान कर रहा है।"
जिसको पहलवान ने पकड़ा था वो आदमी गाँव के एक चौक पर जा बैठा था। और लोग उसे घेर कर खड़े थे। जब उससे पूछा गया की क्या चाहिए तो उसने साफ़ साफ़ कह दिया के "लाल जी से कह दो दारू पिला दें में चला जाऊंगा।" सब इस बात को जान चुके थे की वो लाल जी के हाथो से दारू क्यों पीना चाहता है? आखिर लाल जी उसके प्रिये जो हो चुके थे। सब उसे पकड़ कर वहीँ अर्थान पर ले जाने की कोशिश करने लगे तो उसने पहलवानी करनी शुरू कर दी। एक व्यक्ति को एक तरफ फेंका तो दुसरे को दूसरी तरफ और वापस चौक पर पलथी मर कर बैठ गया और कहने लगा "जब तक लाल जी के हाथ से दारू नहीं पी लेता में नहीं जाऊंगा।"
उसकी पहलवानी देख कर किसी की फिर हिम्मत न हुयी की वो उसे पकड़ते। अब शेष सिर्फ एक ही मार्ग था की लाल जी को बुलाया जाए। सबने जाकर लाल जी को बुलाया और लाल जी इस बार तुरंत तैयार हो गए शायद उन्हें कुछ प्रश्नों के उत्तर चाहिए थे।
वो तुरंत जाकर वहां पहुँच गए वो पहलवान उन्हें देख कर इसे खुश हुआ जैसे किसी अपने से वर्षों बाद मिल रहा हो।
"लाल जी आओ, देखो ये लोग मुझे मरने आ रहे थे।" उसने अपना झूठा सा दर्द बयाँ कर लाल जी की सांत्वना पानी चाहि।
"क्यों परेशान कर रहे हो? दारू लेनी है तो और किसी से भी ले लो मुझे क्यों पीड़ित कर रखा है?" लाल जी ने अपने दर्द की वजह उसी को बताते हुए अपना दर्द बयां कर दिया।
"नहीं, तुम्हारे हाथो से मुझे तृप्ति मिलती है।" उसने कहा। तब तक लाल जी ने चोटिल उन दोनों व्यक्तियों को देखा।
"क्यों मारा इन लोगों को? पहलवानी करनी है तो जाकर अखाड़े में करो।" लाल जी ने चोटिल उन लोगो की तरफ से कहा।
"इन लोगो ने मुझे मारा। और लाल जी अखाड़े में जिन्दा लोग जाते हैं। मैं वहां नहीं जा सकता।" उसने समझाने की तर्ज में लाल जी से कहा और लाल जी भी वजह समझ गए थे। वो वजह में यहाँ आप लोगों को नहीं बता सकता।
आस पास वाले कहने लगे की "दारू देकर इसको हटाओ लाल जी। आस पास कोई ओझा तांत्रिक भी नहीं है। तुम्ही इसे हटाओ।" लोगो के कहने पर लाल जी ने उसे थोड़ी सी दारू पिलाई और वो शुक्रिया अदा करके चलता बना।
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एक महीने बाद लाल जी के ही गाँव में शोर हुआ की "पहलवान ने किसी को पकड़ लिया है। बेचारा जिन्दगी से बहुत परेशान था और अब मरने के बाद लोगो को परेशान कर रहा है।"
जिसको पहलवान ने पकड़ा था वो आदमी गाँव के एक चौक पर जा बैठा था। और लोग उसे घेर कर खड़े थे। जब उससे पूछा गया की क्या चाहिए तो उसने साफ़ साफ़ कह दिया के "लाल जी से कह दो दारू पिला दें में चला जाऊंगा।" सब इस बात को जान चुके थे की वो लाल जी के हाथो से दारू क्यों पीना चाहता है? आखिर लाल जी उसके प्रिये जो हो चुके थे। सब उसे पकड़ कर वहीँ अर्थान पर ले जाने की कोशिश करने लगे तो उसने पहलवानी करनी शुरू कर दी। एक व्यक्ति को एक तरफ फेंका तो दुसरे को दूसरी तरफ और वापस चौक पर पलथी मर कर बैठ गया और कहने लगा "जब तक लाल जी के हाथ से दारू नहीं पी लेता में नहीं जाऊंगा।"
उसकी पहलवानी देख कर किसी की फिर हिम्मत न हुयी की वो उसे पकड़ते। अब शेष सिर्फ एक ही मार्ग था की लाल जी को बुलाया जाए। सबने जाकर लाल जी को बुलाया और लाल जी इस बार तुरंत तैयार हो गए शायद उन्हें कुछ प्रश्नों के उत्तर चाहिए थे।
वो तुरंत जाकर वहां पहुँच गए वो पहलवान उन्हें देख कर इसे खुश हुआ जैसे किसी अपने से वर्षों बाद मिल रहा हो।
"लाल जी आओ, देखो ये लोग मुझे मरने आ रहे थे।" उसने अपना झूठा सा दर्द बयाँ कर लाल जी की सांत्वना पानी चाहि।
"क्यों परेशान कर रहे हो? दारू लेनी है तो और किसी से भी ले लो मुझे क्यों पीड़ित कर रखा है?" लाल जी ने अपने दर्द की वजह उसी को बताते हुए अपना दर्द बयां कर दिया।
"नहीं, तुम्हारे हाथो से मुझे तृप्ति मिलती है।" उसने कहा। तब तक लाल जी ने चोटिल उन दोनों व्यक्तियों को देखा।
"क्यों मारा इन लोगों को? पहलवानी करनी है तो जाकर अखाड़े में करो।" लाल जी ने चोटिल उन लोगो की तरफ से कहा।
"इन लोगो ने मुझे मारा। और लाल जी अखाड़े में जिन्दा लोग जाते हैं। मैं वहां नहीं जा सकता।" उसने समझाने की तर्ज में लाल जी से कहा और लाल जी भी वजह समझ गए थे। वो वजह में यहाँ आप लोगों को नहीं बता सकता।
आस पास वाले कहने लगे की "दारू देकर इसको हटाओ लाल जी। आस पास कोई ओझा तांत्रिक भी नहीं है। तुम्ही इसे हटाओ।" लोगो के कहने पर लाल जी ने उसे थोड़ी सी दारू पिलाई और वो शुक्रिया अदा करके चलता बना।
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