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Thriller भुत-प्रेत / तंत्र-मंत्र-यन्त्र / रहस्य - रोमांच
#19
वहां पहुँचने पर लाल जी के पसीने छूटने लगे थे। आखिरकर लाल जी और उसका सामना हो गया।

 
"कौन हो भाई और क्यों मेरे नाम का शोर करके कर रहे हो ?" लाल जी ने उससे पूछा।
 
"मुझे बस अपने हाथ हमेशा की तरह दारू पिला दो में चला जाऊंगा।" उस आदमी ने लाल जी के सामने हाथ जोड़ कर कहा। वहां मौजूद ऐसे द्रश्य को सब आंखें फाड़ फाड़ कर देख रहे थे। एक प्रेत कैसे बिना सिद्धि वाले आम आदमी के सामने हाथ जोड़ कर बात कर रहा है।
 
"हमेशा की तरह? अबे मैंने कब तुझे इससे पहले दारू पिलाया है?" लाल जी अब उससे बिना डरे बात करने लगे थे।
 
"लाल जी, मजाक करो। हर हफ्ते मुझे दारू का भोग देते हो उससे मेरी प्यास मिट जाती है। थोड़ी सी दारू देदो चला जाऊंगा।" वो फिर से विनती करने लगा।
 
अब लाल जी को झल्लाहट होने लगी और वो थोडा तेज़ आवाज़ में बोलने लगे। "अबे क्यों झूठ बोलता है, मैं तो जनता भी नहीं तू कौन है मैं तुझे क्यों दारू देने लगा?"
 
"हर हफ्ते तो मुझे दारू देते हो, अपने घर के पीछे आकर। और पूछते हो की कब दारू दी?" वो हस्ते हुए बोला। वो लाल जी हर बात ध्यान से सुनता और जवाब देता। और उनके झल्लाने पर हँसता। जेसे की कोई आम आदमी अपने किसी प्रियजन के साथ व्यव्हार करता है।
 
ये बात सुनकर लाल जी के माथे पर चिंता की लकीरे उभर आयी। ये भोग तो पहलवान बाबा को देते थे, ये भोग इसे कैसे मिलने लगा?
"वो भोग तो ये अर्थान वाले पहलवान बाबा को देता था तू बीच में कहाँ से गया?" उन्होंने अपनी परेशानी का हल ढूंढते हुए ये प्रश्न किया।
 
"तुम्ही तो भोग देते हुए कहते थे पहलवान बाबा भोग स्वीकार करो। अब उनके अर्थान से पहले वहां रेल की पटरी में मैं ही तो रहता हूँ और मैं भी पहलवान ही हूँ। मुझे आदत है तुमसे भोग लेने की।" उसने लाल जी ये सारी बात कही और फिर रोने लगा। और रोते रोते कहने लगा "जबसे वहां हूँ, कभी किसी ने एक गिलास पानी तक नहीं दिया था, बस लाल जी तुमने ही मुझे दारू दिया और मेरी प्यास बुझाई। मैं तो बस तुम्हे ही जनता हूँ।"
 
ये बात सुनते ही लाल जी और वहां खड़े उनके बड़े भाई की पैरो से जैसे जमीं सरक गयी हो, उनका पहलवान बाबा को दिया जाने वाला भोग कोई पहलवान नाम का प्रेत ले रहा था।
 
"क्या! तू वो भोग ले रहा था। अर्थान वाले पहलवान बाबा ने तुझे कुछ नहीं कहा?" असमंजस में फंसे लाल जी अपने सरे प्रश्नों के उत्तर जानने में लग गए। उधर उस आदमी का परिवार चाह रहा था की जल्दी से जल्दी ये प्रेत उसका शरीर छोड़ दे और वो ठीक हो जाए।
 
"बाबा क्या कहेंगे? तुम भोग दे रहे थे मेरा नाम लेकर। और मैं ले रहा था। इसमें मेरी गलती तुम्हारी गलती तो बाबा क्यों कुछ कहेंगे? अब तुम जो कुछ भी दोगे वो सबसे आगे वाला ही लेगा , समंदर पार वाला तो नहीं।" उसने लाल जी के असमंजस के इस प्रश्न का उत्तर दे दिया था वो भी सटीक।
 
मतलब वो दुसरे गाँव वाले व्यक्ति से भोग अर्थान वाले पहलवान बाबा इसलिए लेते थे क्योकि उनके बीच कोई और पहलवान नहीं था।
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RE: भुत-प्रेत / तंत्र-मंत्र-यन्त्र / रहस्य - रोमांच - by usaiha2 - 28-09-2019, 02:53 PM



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