28-09-2019, 12:59 PM
महाराष्ट्र एवं मध्यप्रदेश की सीमा से लगे आदिवासी बाहुल्य बदनूर जिला मुख्यालय की जिला जेल में आजीवन कारावास की सजा काटने वाला कमलसिंह दरअसल में नागपुर – भोपाल रेल एवं सडक मार्ग पर स्थित ढोढरा-मोहर रेल्वे स्टेशन से बीस – बाइस कोस दूर पंक्षी – टोकरा नामक गांव का रहने वाला था। पंक्षी और टोकरा दो टोलो की मिली – जुली बस्ती में रहने वाले अधिकांश परिवारो में आदिवासी लोगो की संख्या सबसे अधिक थी।
सौ सवा सौ घरो के इस वनग्राम पंक्षी – टोकरा में गरीब आदीवासी कमलसिंह की आजीविका जंगलो से निकलने वाली वनो उपज पर आश्रीत थी। वह दिन भर जंगलो से जडी – बुटी एकत्र करता रहता था। उसे जंगली – जुडी बुटियो का अच्छा – खासा ज्ञान था। उसके पास से लाइलाज बीमारियों के उपयोग मे आने वाली जडी – बुटियो को औन – पौने दामो में खरीदने के लिए महिने में एक दो बार हरदा और हरसुद के वैद्य – हकीम आया करते थे ।
महिने में सौ – सवा सौ रूपये कमा लेने वाले कमलसिंह के पास अपने पुरखो की सवा एकड जमीन थी। जिसमें महुआ के पड लगे थे। बंजर पडी जमीन में किसी तरह अपने हाड – मास को तोड कर बरसाती फसल निकाल पाता था।