24-09-2019, 09:46 AM
(This post was last modified: 24-12-2020, 01:23 PM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
मालिश,...तेल मालिश
तेल अब उसके पास था और मेरा सर , ...
.ये साफ़ था गीता का पेटीकोट सरक के जाँघों के एकदम ऊपरी हिस्से तक पहुंच गया था ,क्योंकि मेरा सर उसने अपनी खुली मखमली जाँघों पर रखा था और धीरे धीरे अपनी उँगलियों से मेरे सर में ,माथे पर ,कनपटी पर तेल लगा रही थी।
थोड़ी ही देर में आराम हो गया।
सब कुछ भूल कर बस उसके मांसल जंघाओं के स्पर्श का अहसास हो रहा था।
और पता भी नहीं चला की कब गीता की जादुई उँगलियाँ सर से पैर पर पहुँच गयीं।
जादू था बस।
एक एक मसल्स , एक एक रग , कभी धीरे धीरे कभी पूरी ताकत से ,
उनके तलुओं को पहले दोनों हाथों से , फिर मुट्ठी से हलके हलके मुक्कों से मार के , उँगलियों को तोड़ के ,
सारी थकान ,सब दर्द काफूर।
और धीरे धीरे वो मुलायम जादुई उँगलियाँ पिण्डलियों की ओर बढ़ी,धीमे धीमे जो साडी लुंगी की तरह ;लपेटी गयी थी , वो ऊपर और ऊपर होती गयी।
पहले जो उँगलियाँ पिंडलियों से घुटनों तक सहला रही थीं , अब जोर जोर से दबा रही थीं ,अंदर की ओर प्रेस कर रही थी।
वो पेट के बल लेटे हुए थे ,
रात भर का रतजगा ,दिन भर के काम की थकान ,सारा तनाव ,दर्द सब धीमेधीमे बूंदबूंद कर बह रहा था।
और गीता की मुलायम रस भरी उँगलियाँ एकदम नीचे से ऊपर तक , उसके नितम्बो को भी कभी कभी छू लेती थी।
लेकिन थोड़ी देर में दोनों रेशमी हथेलियां सीधे नितंबों पर कभी हलके हलके तो कभी कस के , कभी दबाती ,कभी मसलती तो बस हलके हलके सहला देती।
,
लुंगी बनी साडी अब पतला सा छल्ला बना उनके कमर में बस ज़रा सा अटका था बाकी देह , गीता की भूखी उँगलियों के हवाले ,
" अरे अरे भैय्या तुम्हारे सर पर तो एकदम कडा कड़ा लग रहा हो , उफ़ , चलो मेरे ब्लाउज की ,देती हूँ अभी ,... हाँ ज़रा सा सर उठाओ , बस ठीक है अभी , हां ये लो। "
जब तक वो हाँ ना करते गीता का ब्लाउज उनके सर के नीचे तकिया बना कर रख दिया था।
गीता भी अब सिर्फ पेटीकोट में और पेटीकोट भी ऊपर , जाँघों तक चढ़ा हुआ।
और एक बार फिर गीता की उंगलियां उनके नितंबों पर ,
पहले तो गीता ने उलटे हाथ से हलके हलके ,कभी धीमे कभी तेजी से नितंबों पर सहलाया ,
जैसे उँगलियाँ उसके पिछवाड़े डांस कर रही हों ,
तबले पर ,मृदंग पर थिरक रही हों।
अब उन्हें सिर्फ वो उँगलियाँ महसूस हो रहीं थीं ,उनकी छुअन कभी सिहरा देने वाली थरथरा देने वाली तो कभी लगता
जैसे हजार बिच्छू उनके पिछवाड़े की पहाड़ियों पर चल रहे हों।
एक ऐसी फीलिंग जो आज तक उन्होंने कभी महसूस नहीं की हो।
खूँटा उनका खड़ा था लेकिन वो जिस तरह लेटे थे , तन्नाया फनफनाता उनकी जांघ और चटाई के बीच दबा कसमसाता।
और वो थिरकती उँगलियाँ कभी कभार नितम्ब के बीच से सरक कर , ' वहां ' भी उत्थित शिश्न को भी छू देतीं लेकिन ऐसे की जैसे बस यूँ हीं ,गलती से।
और वो १००० वाट का करेंट ' वहां ' लगाने के लिए काफी था।
अचानक उन दोनों हाथों ने कस के ,पूरी ताकत से उसके दोनों नितंबों को फैला दिया।
और गीता उस पिछवाड़े के भूरे भूरे छेद को फैलाये रही।
वो कसा दर्रा ,जिसके अंदर अभी तक कोई भी नहीं गया था।
क्या करेगी वो , क्या करेगी वो ,... बस वो सोच रहे थे ,तड़प रहे थे।
और तेल की चार पांच बूंदे बैकबोन के एकदम आखिरी हिस्से से , सरकती ,लुढ़कती पुढकती,
धीमे धीमे उस दरार के अंदर ,
गीता ने पूरी ताकत से दरार को फैला रखा था ,खोल रखा था , अपने कोमल कोमल हाथों से नितंबों को थोड़ा उचका भी दिया।
और सब की सब तेल की बूंदे अंदर।
बस अगले ही पल जैसे कोई खजाने के दरवाजे को बंद कर दे गीता के दोनों हाथों ने दबोच कर दोनों नितंबों को एकदम पास पास सटा दिया ,और आधे तरबूज के कटे दो गोलार्द्धों की तरह आपस में उन्हें रगड़ने लगी।
जैसे कोई चकमक पत्थर को रगड़ कर आग लगाने की कॊशिश कर रहा हो।
नितम्बो की रगड़ , और अंदर जाती ,सरसराती चिकनी तेल की बूंदे।
अंदर तक , एककदम नए तरह का अहसास हो रहा था उन्हें।
और फिर अचानक एक बार फिर गीता ने , नितंबों को फैला दिया और गीता की तेल लगी मंझली ऊँगली , दरार के बीच ,बार बार रगड़ घिस करने लगी।
मन तो कर था की बस वो , ... लेकिन गीता बजाय ऊँगली की टिप से प्रेशर लगाने के पूरी ऊँगली दरार में दरेरती ,रगड़ घिस करती ,
मन तो उनका ये कर रहा था की अब बस वो ,.... लेकिन गीता बस रगड़ रही थी , और अचानक
पूरी कलाई के जोर से
गचाक ,
दो तीन धक्के और ,
गचाक गचाक
और पूरी ऊँगली अंदर , वो उसे गोल गोल घुमा रही थी। ठेल रही थी।
फिर कुछ गड़ा उन्हें अंदर , उफ़ दर्द ,... और एक अलग तरह का मज़ा।
किताबों में पढ़ा था उन्होंने था इसके बारे में ,... प्रोस्ट्रेट पर प्रेशर ,...
शायद गीता के ऊँगली की अंगूठी गड रही थी अंदर,पर उसका असर ,सीधे खूंटे पर लग रहा था की कहीं ,...
झटके से खुद धनुषाकार उनकी देह हो गयी और जैसे गीता इसी मौके का इन्तजार कर रही थी ,
बस झट से खूंटे को उसने गचाक से अपनी कोमल गोरी गोरी मुट्ठी में दबोच लिया झटके में जो झटका दिया ,
सुपाड़ा घप्प से खुल गया।
एक हाथ लन्ड मुठिया रहा था तो दूसरे की मंझली ऊँगली गांड में धंसी,
अब गए , अब गए ,... उन्हें लग रहा था ,
कल रात से भूखा था ,पहले सास ने तड़पाया ,आज शाम को मंजू बाई ने।
और अगले पल गीता की चूड़ियों की खनखनाहट भी बंद हो गयी।
दोनो हाथ अलग और अब दोनों हाथ सीधे शोल्डर ब्लेड्स पर फिर मालिश शुरू।
तेल की मालिश कंधो से शुरू होकर बैकबोन के अन्त में ,
एक बार फिर से एक नया नशा तारी होने लगा , सारी थकान गायब और एक नयी ताकत नया जोश ,
लेकिन जैसे ही मालिश शुरू हुयी थी , वैसे ही रुक गयी , और अब गीता की देह का कोई भी अंग उनके देह को छू नहीं रहा था।
मन कर रहा था की गीता कुछ करे , गीता कुछ करे।
और अचानक उनके कान दहक़ उठे , फागुन में दहकते पलाश वन की तरह।
तेल अब उसके पास था और मेरा सर , ...
.ये साफ़ था गीता का पेटीकोट सरक के जाँघों के एकदम ऊपरी हिस्से तक पहुंच गया था ,क्योंकि मेरा सर उसने अपनी खुली मखमली जाँघों पर रखा था और धीरे धीरे अपनी उँगलियों से मेरे सर में ,माथे पर ,कनपटी पर तेल लगा रही थी।
थोड़ी ही देर में आराम हो गया।
सब कुछ भूल कर बस उसके मांसल जंघाओं के स्पर्श का अहसास हो रहा था।
और पता भी नहीं चला की कब गीता की जादुई उँगलियाँ सर से पैर पर पहुँच गयीं।
जादू था बस।
एक एक मसल्स , एक एक रग , कभी धीरे धीरे कभी पूरी ताकत से ,
उनके तलुओं को पहले दोनों हाथों से , फिर मुट्ठी से हलके हलके मुक्कों से मार के , उँगलियों को तोड़ के ,
सारी थकान ,सब दर्द काफूर।
और धीरे धीरे वो मुलायम जादुई उँगलियाँ पिण्डलियों की ओर बढ़ी,धीमे धीमे जो साडी लुंगी की तरह ;लपेटी गयी थी , वो ऊपर और ऊपर होती गयी।
पहले जो उँगलियाँ पिंडलियों से घुटनों तक सहला रही थीं , अब जोर जोर से दबा रही थीं ,अंदर की ओर प्रेस कर रही थी।
वो पेट के बल लेटे हुए थे ,
रात भर का रतजगा ,दिन भर के काम की थकान ,सारा तनाव ,दर्द सब धीमेधीमे बूंदबूंद कर बह रहा था।
और गीता की मुलायम रस भरी उँगलियाँ एकदम नीचे से ऊपर तक , उसके नितम्बो को भी कभी कभी छू लेती थी।
लेकिन थोड़ी देर में दोनों रेशमी हथेलियां सीधे नितंबों पर कभी हलके हलके तो कभी कस के , कभी दबाती ,कभी मसलती तो बस हलके हलके सहला देती।
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लुंगी बनी साडी अब पतला सा छल्ला बना उनके कमर में बस ज़रा सा अटका था बाकी देह , गीता की भूखी उँगलियों के हवाले ,
" अरे अरे भैय्या तुम्हारे सर पर तो एकदम कडा कड़ा लग रहा हो , उफ़ , चलो मेरे ब्लाउज की ,देती हूँ अभी ,... हाँ ज़रा सा सर उठाओ , बस ठीक है अभी , हां ये लो। "
जब तक वो हाँ ना करते गीता का ब्लाउज उनके सर के नीचे तकिया बना कर रख दिया था।
गीता भी अब सिर्फ पेटीकोट में और पेटीकोट भी ऊपर , जाँघों तक चढ़ा हुआ।
और एक बार फिर गीता की उंगलियां उनके नितंबों पर ,
पहले तो गीता ने उलटे हाथ से हलके हलके ,कभी धीमे कभी तेजी से नितंबों पर सहलाया ,
जैसे उँगलियाँ उसके पिछवाड़े डांस कर रही हों ,
तबले पर ,मृदंग पर थिरक रही हों।
अब उन्हें सिर्फ वो उँगलियाँ महसूस हो रहीं थीं ,उनकी छुअन कभी सिहरा देने वाली थरथरा देने वाली तो कभी लगता
जैसे हजार बिच्छू उनके पिछवाड़े की पहाड़ियों पर चल रहे हों।
एक ऐसी फीलिंग जो आज तक उन्होंने कभी महसूस नहीं की हो।
खूँटा उनका खड़ा था लेकिन वो जिस तरह लेटे थे , तन्नाया फनफनाता उनकी जांघ और चटाई के बीच दबा कसमसाता।
और वो थिरकती उँगलियाँ कभी कभार नितम्ब के बीच से सरक कर , ' वहां ' भी उत्थित शिश्न को भी छू देतीं लेकिन ऐसे की जैसे बस यूँ हीं ,गलती से।
और वो १००० वाट का करेंट ' वहां ' लगाने के लिए काफी था।
अचानक उन दोनों हाथों ने कस के ,पूरी ताकत से उसके दोनों नितंबों को फैला दिया।
और गीता उस पिछवाड़े के भूरे भूरे छेद को फैलाये रही।
वो कसा दर्रा ,जिसके अंदर अभी तक कोई भी नहीं गया था।
क्या करेगी वो , क्या करेगी वो ,... बस वो सोच रहे थे ,तड़प रहे थे।
और तेल की चार पांच बूंदे बैकबोन के एकदम आखिरी हिस्से से , सरकती ,लुढ़कती पुढकती,
धीमे धीमे उस दरार के अंदर ,
गीता ने पूरी ताकत से दरार को फैला रखा था ,खोल रखा था , अपने कोमल कोमल हाथों से नितंबों को थोड़ा उचका भी दिया।
और सब की सब तेल की बूंदे अंदर।
बस अगले ही पल जैसे कोई खजाने के दरवाजे को बंद कर दे गीता के दोनों हाथों ने दबोच कर दोनों नितंबों को एकदम पास पास सटा दिया ,और आधे तरबूज के कटे दो गोलार्द्धों की तरह आपस में उन्हें रगड़ने लगी।
जैसे कोई चकमक पत्थर को रगड़ कर आग लगाने की कॊशिश कर रहा हो।
नितम्बो की रगड़ , और अंदर जाती ,सरसराती चिकनी तेल की बूंदे।
अंदर तक , एककदम नए तरह का अहसास हो रहा था उन्हें।
और फिर अचानक एक बार फिर गीता ने , नितंबों को फैला दिया और गीता की तेल लगी मंझली ऊँगली , दरार के बीच ,बार बार रगड़ घिस करने लगी।
मन तो कर था की बस वो , ... लेकिन गीता बजाय ऊँगली की टिप से प्रेशर लगाने के पूरी ऊँगली दरार में दरेरती ,रगड़ घिस करती ,
मन तो उनका ये कर रहा था की अब बस वो ,.... लेकिन गीता बस रगड़ रही थी , और अचानक
पूरी कलाई के जोर से
गचाक ,
दो तीन धक्के और ,
गचाक गचाक
और पूरी ऊँगली अंदर , वो उसे गोल गोल घुमा रही थी। ठेल रही थी।
फिर कुछ गड़ा उन्हें अंदर , उफ़ दर्द ,... और एक अलग तरह का मज़ा।
किताबों में पढ़ा था उन्होंने था इसके बारे में ,... प्रोस्ट्रेट पर प्रेशर ,...
शायद गीता के ऊँगली की अंगूठी गड रही थी अंदर,पर उसका असर ,सीधे खूंटे पर लग रहा था की कहीं ,...
झटके से खुद धनुषाकार उनकी देह हो गयी और जैसे गीता इसी मौके का इन्तजार कर रही थी ,
बस झट से खूंटे को उसने गचाक से अपनी कोमल गोरी गोरी मुट्ठी में दबोच लिया झटके में जो झटका दिया ,
सुपाड़ा घप्प से खुल गया।
एक हाथ लन्ड मुठिया रहा था तो दूसरे की मंझली ऊँगली गांड में धंसी,
अब गए , अब गए ,... उन्हें लग रहा था ,
कल रात से भूखा था ,पहले सास ने तड़पाया ,आज शाम को मंजू बाई ने।
और अगले पल गीता की चूड़ियों की खनखनाहट भी बंद हो गयी।
दोनो हाथ अलग और अब दोनों हाथ सीधे शोल्डर ब्लेड्स पर फिर मालिश शुरू।
तेल की मालिश कंधो से शुरू होकर बैकबोन के अन्त में ,
एक बार फिर से एक नया नशा तारी होने लगा , सारी थकान गायब और एक नयी ताकत नया जोश ,
लेकिन जैसे ही मालिश शुरू हुयी थी , वैसे ही रुक गयी , और अब गीता की देह का कोई भी अंग उनके देह को छू नहीं रहा था।
मन कर रहा था की गीता कुछ करे , गीता कुछ करे।
और अचानक उनके कान दहक़ उठे , फागुन में दहकते पलाश वन की तरह।