24-09-2019, 09:34 AM
(This post was last modified: 23-12-2020, 09:15 AM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
गीता
और फिर एक खिलखिलाहट ,जैसे चांदी की हजार घण्टियाँ एक साथ बज उठी हों।
और उन्होंने मुड़ कर देखा तो जैसे कोई सपना हो , एक खूबसूरत परछाईं , एक साया सा ,
बस वो जड़ से होगये जैसे उन्हें किसी ने मूठ मार दी हो।
झिलमिलाती दीपशिखा सी , और एक बार फिर वही हजार चांदी के घंटियों की खनखनाहट ,
' भइया क्या हुआ , क्या देख रहे हो , मैं ही तो हूँ "
उस जादू की जादुई आवाज ने , वो जादू तोडा.
" माँ ने कहा था तुम आओगे ,अरे ताला बाहर से मैंने ही बंद किया है। ये रही ताली। "
चूड़ियों की खनखनाहट के साथ कलाई हिला के उसने चाभी दिखाई.
बुरा हो दीवार का , अमिताभ बच्चन का,।
एकदम फ़िल्मी स्टाइल ,
और लग भी रही थी वो एक फ़िल्मी गाँव की छोरी की तरह ,
लेकिन निगाह उनकी बस वहीँ चिपकी थी जहां चाभी छुपी थी ,
छल छलाते ,छलकते हुए गोरे गोरे दूध से ,
दूध से भरे दोनों थन।
एकदम जोबन से चिपका एकदम पतले कपडे का ब्लाउज , बहुत ही लो कट ,
ब्रा का तो सवाल ही नहीं था ,
अपनी माँ की तरह वो भी नहीं पहनती थी और आँचल कब का सरक कर, ढलक कर ,...
गोल गोल गोलाइयाँ।
"भइया क्या देख रहे हो ,... " शरारत से खिलखिलाते उसने पूछा।
मालुम तो उसे भी था की उनकी निगाहें कहाँ चिपकी है। ,
चम्पई गोरा रंग , छरहरी देह ,खूब चिकनी,
माखन सा तन दूध सा जोबन ,और दूध से भरा छोटे से ब्लाउज से बाहर छलकता।
साडी भी खूब नीचे कस के बाँधी ,न सिर्फ गोरा पान के पत्ते सा चिकना पेट , गहरी नाभी ,कटीली पतली कमरिया खुल के दिख रही थी ,ललचा रही थी , बल्कि भरे भरे कूल्हे की हड्डियां भी जहन पर साडी बस अटकी थी।
और खूब भरे भरे नितम्ब।
पैरों में चांदी की घुँघुरु वाली पायल ,घुंघरू वाले बिछुए , कामदेव की रण दुंदुभि और उन का साथ देती ,
खनखनाती ,चुरमुर चुरमुर करती लाल लाल चूड़ियां ,कलाई में , पूरे हाथ में , कुहनी तक।
गले में एक मंगल सूत्र ,गले से एकदम चिपका और ठुड्डी पर एक बड़ा सा काला तिल ,
एक दम फ़िल्मी गोरियों की तरह , लेकिन मेकअप वाला नहीं एकदम असली।
हंसती तो गालों में गड्ढे पड़ जाते।
और एक बार फिर हंस के ,खिलखलाते हुए उसने वही सवाल दुहराया , एकदम उनके पास आके , अपने एक हाथ से अपनी लम्बी चोटी लहराते ,उसमें लगा लाल परांदा जब उनके गालों निकल गया तो बस ४४० वोल्ट का करेंट उन्हें मार गया।
" भैया क्या देख रहे हो , बैठो न ,पहली बार तो आये हो। "
और गीता ने उनकी और एक मोढ़ा बढ़ा दिया। और खुद घस्स से पास में ही फर्श पर बैठ गयी।
मोढ़े पर बैठ कर उन्होंने उस जादू बंध से निकलने की कोशिश की , बोलना शुरू किया ,
" असल में मैं आया था ये कहने की ,... लेकिन दरवाजा खुला था इसलिए अंदर आ गया ,... "
लेकिन नए नए आये जोबन के जादू से निकलना आसान है क्या ,और ऊपर से जब वो दूध से छलछला रहा हो ,नयी बियाई का थन वैसे ही खूब गदरा जाता है और गीता के तो पहले से ही गद्दर जोबन ,...
फिर जिस तरह से वो मोढ़े पर बैठे थे और वो नीचे फर्श पर बैठी थी , बिन ढंके ब्लाउज से उसकी गहराई , उभार और कटाव सब एकदम साफ़ साफ़ दिख रहा था।
एक बार फिर आँख और जुबान की जंग में आँखों की जीत हो गयी थी ,उनकी बोलती बंद हो गयी थी।
" हाँ भैया बोल न ,... "
उसने फिर उकसाया।
वह उठ कर जाना चाहते थे लेकिन उनके पैर जमीन से चिपक गए थे। दस दस मन के।
और फिर ताला भी बाहर से बंद था और चाभी गीता की ,
हिम्मत कर के उन्होंने फिर बोलना शुरू किया ,
" असल में ,असल में ,... मैं ये कहने आया था न की तेरी माँ से की,... की ,... कल ,... "
एक बार फिर चांदी के घुंघरुओं ने उनकी आवाज को डुबो दिया।
गीता बड़े जोर से खिलखिलाई।
" अरे भैय्या , वो मैंने माँ को बोल दिया है। यही कहना था की न भौजी कल सबेरे खूब देर में आएँगी , वो और उनकी माँ कही बाहर गयी है ,यही न "
चंपा के फूल झड रहे थे। बेला महक रही थी।
उनकी निगाहें तो बस उसके गोल गोल चन्दा से चेहरे पर , लरजते रसीले होंठों पर चिपकी थी।
" अब तुम कहोगे की मुझे कैसे मालुम हो गया ये सब तो भैया हुआ ये ,की मैं बनिया के यहाँ कुछ सौदा सुलुफ लेने गयी थी , बस निकली तो भौजी दिख गयीं। गाडी चला रही थी.एकदम मस्त लग रही थी गाडी चलाते। बस ,मुझे देख के गाडी रोक लिया। "
गीता दोनों हाथों से स्टियरिंग व्हील घुमाने की एक्टिंग कर रही थी और उनकी निगाह उसकी कोमल कोमल कलाइयों पर ,लम्बी लम्बी उँगलियों से चिपकी हुयी थी।
जब इतना कुछ देखने को हो तो सुनता कौन है। गीता चालू रही
" भौजी बहुत अच्छी है , मुझसे बहुत देर तक बातें की फिर बोली की वो लोग रात भर बाहर रहेंगी ,कल सबेरे भी बहुत देर में आएँगी। घर पे आप अकेले है , इसलिए मैं माँ को बोल दूँ की सबेरे जाने की जरुरत नहीं है बस दुपहरिया को आये। और मैंने माँ को बोल भी दिया। वो भी बाहर गयी है , मुझसे रास्ते में मिली थी , तो बस आप का काम मैंने कर दिया ,ठीक न। "
और एक बार फिर दूध खील बिखेरती हंसी ,उस हंसिनी की।
और अब जब वो तन्वंगी उठी तो बस उसके उभार उनकी देह से रगड़ते , छीलते , ,... ऊपर से कटार मारती काजर से भरी कजरारी निगाहें ,
बरछी की नोक सी ब्लाउज फाड़ते जुबना की नोक।
" भैया कुछ खाओगे ,पियोगे? "
अब वो खड़ी थी तो उनकी निगाह गीता के चिकने चम्पई पेट पर ,गहरी नाभी पर थी।
गीता के सवाल ने उन्हें जैसे जगा दिया और अचानक कही से उनके मन में मंजू बाई की बात कौंध गयी ,
" ,... लेकिन तुझे पहले खाना पीना पडेगा ,गीता का , सब कुछ ,... लेकिन घबड़ाओ मत हम दोनों रहेंगे न ,एकदम हाथ पैर बाँध के , जबरदस्ती ,... "
और वो घबड़ा के बोले ,
" नहीं नहीं कुछ नहीं मैं खा पी के आया हूँ ,बस चलता हूँ। " उन्होंने मोढ़े पर से उठने की कोशिश की।
पर झुक कर गीता ने उनके दोनों कंधे पकड़ के रोक लिया।
पहली बार गीता का स्पर्श उनकी देह से हुआ था ,और वो जैसे झुकी थी , गहरे कटे ब्लाउज से झांकते गीता के कड़े कड़े गोरे गुलाबी उभार उनके कांपते प्यासे होंठों से इंच भर भी दूर नहीं थे।
" वाह वाह ऐसे कैसे जाओगे , मैं जाने थोड़े ही दूंगी। भले आये हो अपनी मर्जी से लेकिन अब जाओगे मेरी मर्जी से , फिर वहां कौन है ,भौजी तो देर सबेरे लौंटेगी न। बैठे रहो चुपचाप ,चलो मैं चाय बनाती हूँ आये हो तो कम से कम मेरे हाथ की चाय तो पी के जाओ न भइया। "
वो बोली और पास ही चूल्हे पर चाय का बर्तन चढ़ा दिया।
चूल्हे की आग की रोशनी में उसका चम्पई रंग ,खुली गोलाइयाँ और दहक़ रही थी।
……चाय बनाते समय भी वो टुकुर टुकुर , अपनी बड़ी बड़ी कजरारी आँखों से ,उन्हें देख रही थी।
आँचल अभी भी ढलका हुआ था.
" लो भैया चाय " एक कांच की ग्लास में गीता ने चाय ढाल कर उन्हें पकड़ा दिया और दूसरे ग्लास में उड़ेलकर खुद सुड़ुक सुड़ुक पीने लगी।
वास्तव में चाय ने उनकी सारी थकान एक झटके में दूर कर दी। गरम ,कड़क ,... और कुछ और भी था उसमें। या शायद जो उन्होंने बीयर पी थी ,उसका असर रहा होगा।
आँख नचाकर ,शरारत से मुस्कराते हुए गीता ने पूछा ,
" क्यों भैय्या ,चाय मस्त है ना , कड़क। "
और न चाहते हुए भी उनके मुंह से निकल गया ,
" हाँ एकदम तेरी तरह। "
और जिस शोख निगाह से गीता ने मेरी ओर देखा और अदा से बोली ,
" भैया ,आप भी न "
न जाने मुझे क्या हो रहा था , चाय में कुछ था या बीयर का नशा ,
" हे आप नहीं तुम बोलो। " मैं बोल पड़ा।
" धत्त , आप बड़े हो न " खिस्स से हंस पड़ी वो और दूर बादलों में बिजली चमक गयी।
" तो क्या हुआ ,बोल न ,... तुम। " मैंने जिद की।
" ठीक है ,तुम ,...लेकिन तुम को मेरी सारी बातें माननी पड़ेगीं। " उठती हुयी वो बोलीं ,और जब उसने मेरे हाथ से ग्लास लिया तो पता नहीं जाने अनजाने देर तक उसकी उँगलियाँ ,मेरी उँगलियों से रगडती रहीं।
देह में तो मेरी मस्ती छा रही थी पर सर में कुछ कुछ , अजीब सा ,... "
और मैंने उससे बोल ही दिया ,
" मेरे सर में कुछ दर्द सा ,... "
" अरे अभी ठीक कर देती हूँ ,मैं हूँ न आपकी छोटी बहना। "
और उसने एक कटोरी में तेल लेके आग पे रख दिया गरम होने और मेरे पास आके मुझे भी उठा दिया। मेरे नीचे से मोढा हटा के उसने चटाई बिछा दी।
और फिर एक दम मुझसे सट के ,मेरी छाती पे अपना सीना रगड़ते , उसने बिना कुछ कहे सुने मेरी शर्ट उतार कर वही खूंटी पे टांग दी,
फिर बोली ,
" तुम लेट जाओ ,मैं तेल लगा देती हूँ। "
फिर बोली "नहीं नहीं रुको , आपकी , तेरी पैंट गन्दी हो जाएगी। आप ये मेरी साडी लुंगी बना के पहन लो न। "
और जब तक मैं मना करूँ ,कुछ समझूँ ,सर्र से सरकती हुयी उसकी साडी उसकी देह से अलग हो गयी और बस उसने मेरी कमर के चारो ओर बाँध के मेरी पैंट उतार दी। पेंट भी अब शर्ट के साथ खूंटी पे
और मैं उसकी साडी लुंगी की तरह लपेटे ,
लेकिन मैं उसे पेटीकोट ब्लाउज में देख नहीं पाया ज्यादा ,
उसने मुझे चटाई पर लिटा दिया , पेट के बल ,बोला आँखे बंद क्र लूँ।
और फिर एक खिलखिलाहट ,जैसे चांदी की हजार घण्टियाँ एक साथ बज उठी हों।
और उन्होंने मुड़ कर देखा तो जैसे कोई सपना हो , एक खूबसूरत परछाईं , एक साया सा ,
बस वो जड़ से होगये जैसे उन्हें किसी ने मूठ मार दी हो।
झिलमिलाती दीपशिखा सी , और एक बार फिर वही हजार चांदी के घंटियों की खनखनाहट ,
' भइया क्या हुआ , क्या देख रहे हो , मैं ही तो हूँ "
उस जादू की जादुई आवाज ने , वो जादू तोडा.
" माँ ने कहा था तुम आओगे ,अरे ताला बाहर से मैंने ही बंद किया है। ये रही ताली। "
चूड़ियों की खनखनाहट के साथ कलाई हिला के उसने चाभी दिखाई.
बुरा हो दीवार का , अमिताभ बच्चन का,।
एकदम फ़िल्मी स्टाइल ,
और लग भी रही थी वो एक फ़िल्मी गाँव की छोरी की तरह ,
लेकिन निगाह उनकी बस वहीँ चिपकी थी जहां चाभी छुपी थी ,
छल छलाते ,छलकते हुए गोरे गोरे दूध से ,
दूध से भरे दोनों थन।
एकदम जोबन से चिपका एकदम पतले कपडे का ब्लाउज , बहुत ही लो कट ,
ब्रा का तो सवाल ही नहीं था ,
अपनी माँ की तरह वो भी नहीं पहनती थी और आँचल कब का सरक कर, ढलक कर ,...
गोल गोल गोलाइयाँ।
"भइया क्या देख रहे हो ,... " शरारत से खिलखिलाते उसने पूछा।
मालुम तो उसे भी था की उनकी निगाहें कहाँ चिपकी है। ,
चम्पई गोरा रंग , छरहरी देह ,खूब चिकनी,
माखन सा तन दूध सा जोबन ,और दूध से भरा छोटे से ब्लाउज से बाहर छलकता।
साडी भी खूब नीचे कस के बाँधी ,न सिर्फ गोरा पान के पत्ते सा चिकना पेट , गहरी नाभी ,कटीली पतली कमरिया खुल के दिख रही थी ,ललचा रही थी , बल्कि भरे भरे कूल्हे की हड्डियां भी जहन पर साडी बस अटकी थी।
और खूब भरे भरे नितम्ब।
पैरों में चांदी की घुँघुरु वाली पायल ,घुंघरू वाले बिछुए , कामदेव की रण दुंदुभि और उन का साथ देती ,
खनखनाती ,चुरमुर चुरमुर करती लाल लाल चूड़ियां ,कलाई में , पूरे हाथ में , कुहनी तक।
गले में एक मंगल सूत्र ,गले से एकदम चिपका और ठुड्डी पर एक बड़ा सा काला तिल ,
एक दम फ़िल्मी गोरियों की तरह , लेकिन मेकअप वाला नहीं एकदम असली।
हंसती तो गालों में गड्ढे पड़ जाते।
और एक बार फिर हंस के ,खिलखलाते हुए उसने वही सवाल दुहराया , एकदम उनके पास आके , अपने एक हाथ से अपनी लम्बी चोटी लहराते ,उसमें लगा लाल परांदा जब उनके गालों निकल गया तो बस ४४० वोल्ट का करेंट उन्हें मार गया।
" भैया क्या देख रहे हो , बैठो न ,पहली बार तो आये हो। "
और गीता ने उनकी और एक मोढ़ा बढ़ा दिया। और खुद घस्स से पास में ही फर्श पर बैठ गयी।
मोढ़े पर बैठ कर उन्होंने उस जादू बंध से निकलने की कोशिश की , बोलना शुरू किया ,
" असल में मैं आया था ये कहने की ,... लेकिन दरवाजा खुला था इसलिए अंदर आ गया ,... "
लेकिन नए नए आये जोबन के जादू से निकलना आसान है क्या ,और ऊपर से जब वो दूध से छलछला रहा हो ,नयी बियाई का थन वैसे ही खूब गदरा जाता है और गीता के तो पहले से ही गद्दर जोबन ,...
फिर जिस तरह से वो मोढ़े पर बैठे थे और वो नीचे फर्श पर बैठी थी , बिन ढंके ब्लाउज से उसकी गहराई , उभार और कटाव सब एकदम साफ़ साफ़ दिख रहा था।
एक बार फिर आँख और जुबान की जंग में आँखों की जीत हो गयी थी ,उनकी बोलती बंद हो गयी थी।
" हाँ भैया बोल न ,... "
उसने फिर उकसाया।
वह उठ कर जाना चाहते थे लेकिन उनके पैर जमीन से चिपक गए थे। दस दस मन के।
और फिर ताला भी बाहर से बंद था और चाभी गीता की ,
हिम्मत कर के उन्होंने फिर बोलना शुरू किया ,
" असल में ,असल में ,... मैं ये कहने आया था न की तेरी माँ से की,... की ,... कल ,... "
एक बार फिर चांदी के घुंघरुओं ने उनकी आवाज को डुबो दिया।
गीता बड़े जोर से खिलखिलाई।
" अरे भैय्या , वो मैंने माँ को बोल दिया है। यही कहना था की न भौजी कल सबेरे खूब देर में आएँगी , वो और उनकी माँ कही बाहर गयी है ,यही न "
चंपा के फूल झड रहे थे। बेला महक रही थी।
उनकी निगाहें तो बस उसके गोल गोल चन्दा से चेहरे पर , लरजते रसीले होंठों पर चिपकी थी।
" अब तुम कहोगे की मुझे कैसे मालुम हो गया ये सब तो भैया हुआ ये ,की मैं बनिया के यहाँ कुछ सौदा सुलुफ लेने गयी थी , बस निकली तो भौजी दिख गयीं। गाडी चला रही थी.एकदम मस्त लग रही थी गाडी चलाते। बस ,मुझे देख के गाडी रोक लिया। "
गीता दोनों हाथों से स्टियरिंग व्हील घुमाने की एक्टिंग कर रही थी और उनकी निगाह उसकी कोमल कोमल कलाइयों पर ,लम्बी लम्बी उँगलियों से चिपकी हुयी थी।
जब इतना कुछ देखने को हो तो सुनता कौन है। गीता चालू रही
" भौजी बहुत अच्छी है , मुझसे बहुत देर तक बातें की फिर बोली की वो लोग रात भर बाहर रहेंगी ,कल सबेरे भी बहुत देर में आएँगी। घर पे आप अकेले है , इसलिए मैं माँ को बोल दूँ की सबेरे जाने की जरुरत नहीं है बस दुपहरिया को आये। और मैंने माँ को बोल भी दिया। वो भी बाहर गयी है , मुझसे रास्ते में मिली थी , तो बस आप का काम मैंने कर दिया ,ठीक न। "
और एक बार फिर दूध खील बिखेरती हंसी ,उस हंसिनी की।
और अब जब वो तन्वंगी उठी तो बस उसके उभार उनकी देह से रगड़ते , छीलते , ,... ऊपर से कटार मारती काजर से भरी कजरारी निगाहें ,
बरछी की नोक सी ब्लाउज फाड़ते जुबना की नोक।
" भैया कुछ खाओगे ,पियोगे? "
अब वो खड़ी थी तो उनकी निगाह गीता के चिकने चम्पई पेट पर ,गहरी नाभी पर थी।
गीता के सवाल ने उन्हें जैसे जगा दिया और अचानक कही से उनके मन में मंजू बाई की बात कौंध गयी ,
" ,... लेकिन तुझे पहले खाना पीना पडेगा ,गीता का , सब कुछ ,... लेकिन घबड़ाओ मत हम दोनों रहेंगे न ,एकदम हाथ पैर बाँध के , जबरदस्ती ,... "
और वो घबड़ा के बोले ,
" नहीं नहीं कुछ नहीं मैं खा पी के आया हूँ ,बस चलता हूँ। " उन्होंने मोढ़े पर से उठने की कोशिश की।
पर झुक कर गीता ने उनके दोनों कंधे पकड़ के रोक लिया।
पहली बार गीता का स्पर्श उनकी देह से हुआ था ,और वो जैसे झुकी थी , गहरे कटे ब्लाउज से झांकते गीता के कड़े कड़े गोरे गुलाबी उभार उनके कांपते प्यासे होंठों से इंच भर भी दूर नहीं थे।
" वाह वाह ऐसे कैसे जाओगे , मैं जाने थोड़े ही दूंगी। भले आये हो अपनी मर्जी से लेकिन अब जाओगे मेरी मर्जी से , फिर वहां कौन है ,भौजी तो देर सबेरे लौंटेगी न। बैठे रहो चुपचाप ,चलो मैं चाय बनाती हूँ आये हो तो कम से कम मेरे हाथ की चाय तो पी के जाओ न भइया। "
वो बोली और पास ही चूल्हे पर चाय का बर्तन चढ़ा दिया।
चूल्हे की आग की रोशनी में उसका चम्पई रंग ,खुली गोलाइयाँ और दहक़ रही थी।
……चाय बनाते समय भी वो टुकुर टुकुर , अपनी बड़ी बड़ी कजरारी आँखों से ,उन्हें देख रही थी।
आँचल अभी भी ढलका हुआ था.
" लो भैया चाय " एक कांच की ग्लास में गीता ने चाय ढाल कर उन्हें पकड़ा दिया और दूसरे ग्लास में उड़ेलकर खुद सुड़ुक सुड़ुक पीने लगी।
वास्तव में चाय ने उनकी सारी थकान एक झटके में दूर कर दी। गरम ,कड़क ,... और कुछ और भी था उसमें। या शायद जो उन्होंने बीयर पी थी ,उसका असर रहा होगा।
आँख नचाकर ,शरारत से मुस्कराते हुए गीता ने पूछा ,
" क्यों भैय्या ,चाय मस्त है ना , कड़क। "
और न चाहते हुए भी उनके मुंह से निकल गया ,
" हाँ एकदम तेरी तरह। "
और जिस शोख निगाह से गीता ने मेरी ओर देखा और अदा से बोली ,
" भैया ,आप भी न "
न जाने मुझे क्या हो रहा था , चाय में कुछ था या बीयर का नशा ,
" हे आप नहीं तुम बोलो। " मैं बोल पड़ा।
" धत्त , आप बड़े हो न " खिस्स से हंस पड़ी वो और दूर बादलों में बिजली चमक गयी।
" तो क्या हुआ ,बोल न ,... तुम। " मैंने जिद की।
" ठीक है ,तुम ,...लेकिन तुम को मेरी सारी बातें माननी पड़ेगीं। " उठती हुयी वो बोलीं ,और जब उसने मेरे हाथ से ग्लास लिया तो पता नहीं जाने अनजाने देर तक उसकी उँगलियाँ ,मेरी उँगलियों से रगडती रहीं।
देह में तो मेरी मस्ती छा रही थी पर सर में कुछ कुछ , अजीब सा ,... "
और मैंने उससे बोल ही दिया ,
" मेरे सर में कुछ दर्द सा ,... "
" अरे अभी ठीक कर देती हूँ ,मैं हूँ न आपकी छोटी बहना। "
और उसने एक कटोरी में तेल लेके आग पे रख दिया गरम होने और मेरे पास आके मुझे भी उठा दिया। मेरे नीचे से मोढा हटा के उसने चटाई बिछा दी।
और फिर एक दम मुझसे सट के ,मेरी छाती पे अपना सीना रगड़ते , उसने बिना कुछ कहे सुने मेरी शर्ट उतार कर वही खूंटी पे टांग दी,
फिर बोली ,
" तुम लेट जाओ ,मैं तेल लगा देती हूँ। "
फिर बोली "नहीं नहीं रुको , आपकी , तेरी पैंट गन्दी हो जाएगी। आप ये मेरी साडी लुंगी बना के पहन लो न। "
और जब तक मैं मना करूँ ,कुछ समझूँ ,सर्र से सरकती हुयी उसकी साडी उसकी देह से अलग हो गयी और बस उसने मेरी कमर के चारो ओर बाँध के मेरी पैंट उतार दी। पेंट भी अब शर्ट के साथ खूंटी पे
और मैं उसकी साडी लुंगी की तरह लपेटे ,
लेकिन मैं उसे पेटीकोट ब्लाउज में देख नहीं पाया ज्यादा ,
उसने मुझे चटाई पर लिटा दिया , पेट के बल ,बोला आँखे बंद क्र लूँ।