20-09-2019, 12:17 PM
Update 37
शंकर- बेटी तुम मुझे ग़लत समझ रही हो. मेरा इरादा तुम्हारे बारे में ऐसा कुछ नहीं हैं. आख़िर तुम मेरी बेटी जैसी हो..
राधिका- बेटी जैसी हूँ पर आपकी बेटी तो नहीं... काका बहुत फ़र्क होता हैं अपनों में और गैरों में. इंसान चाहे लाख कोशिश क्यों ना कर ले फिर भी वो दूसरों की बहू बेटी को बुरी नज़र से देखने से अपने आप को नहीं रोक सकता..ये जिस्म का नशा और ये हवस में इंसान सब कुछ भूल जाता हैं.
शंकर- मैं जानता हूँ बेटी कि जो कुछ तुम्हारे साथ हुआ वो बहुत ग़लत हुआ. और बिहारी ने तुम्हारी हँसती खेलती ज़िंदगी तबाह कर दी. उसकी तरफ से मैं तुमसे माफी माँगता हूँ. वो जैसा दिखता हैं वो ऐसा हैं नहीं.. बस उसकी संगत ग़लत हैं इस वजह से वो आज सच झूट में फ़ैसला नहीं कर पा रहा ...मैं उससे इस बारे में बात करूँगा वो मेरी बात कभी नहीं टालेगा.. क्यों कि वो मुझे आपने बाप के समान मानता हैं.
राधिका- नहीं काका अब शायद बहुत देर हो चुकी हैं. मैं अब इस बारे में कोई भी बात नहीं करना चाहती... आप हो सके तो यहाँ से चले जाइए. मेरा अब इंसानियत से भरोसा उठ गया हैं. ज़िंदगी में मेरे भावनाओं के साथ बहुत खिलवाड़ किया गया. आब मुझ में ताक़त नहीं कि मैं और कोई भी सदमा बर्दास्त कर पाऊ..आब शायद मेरे दिल में भरोसे नाम की अब कोई जगह नहीं...
शंकर राधिका के कंधे पर अपने हाथ रख देता हैं - बेटी एक बार बस मुझपर भरोसा करके देखलो मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि मैं तुम्हारा भरोसा कभी नहीं तोड़ूँगा.
राधिका- काका मैं इन सब की वजह जान सकती हूँ कि आप मुझपर इतनी दया क्यों दिखा रहे हैं..भला आपसे मेरा क्या संबंध हैं???
शंकर- संबंध...........वही संबंद हैं बेटी जो एक बाप का अपनी बेटी से होता है. तुझमें मुझे अपनी बेटी नज़र आती हैं. वो भी तेरी ही तरह थी मासूम.... मगर उसकी मासूमियत इस दुनिया को देखी नहीं गयी इसलिए शायद अब वो भी मुझे छोड़ कर हमेशा हमेशा के लिए मुझसे दूर चली गयी...
राधिका- दूर चली गयी ..........कहाँ ???
शंकर- वहीं जहाँ से कोई दुबारा लौट कर नहीं आता... और इतना कहते कहते शंकर की आँखों में आँसू निकल पड़ते हैं..
राधिका- क्या हुआ काका आपकी आँखों में आँसू... क्या हुआ आपकी बेटी को..और ये सब कैसे???
शंकर- रहने दे बेटा जो अब इस दुनिया में हैं ही नहीं भला उस के बारे में जानकार क्या हासिल होगा...
राधिका- अगर आप मुझे अपनी बेटी समझते हैं तो बताइए मुझे कि आपकी बेटी के साथ क्या हुआ था??
शंकर कुछ देर सोचता हैं फिर बोलना शुरू करता हैं- बात 4 साल पहले की हैं मेरी बेटी का नाम पूजा था. वो भी करीब 20 साल की थी बिल्कुल तेरे जैसी. खूबसूरत और चुलबुली. हमेशा जब देखो तब बक बक करती रहती थी. जब वो 19 साल की हुई तो उसने इंटर पास की. पूजा की मा तो उसे आगे पढ़ाना नहीं चाहती थी मगर मेरी ज़िद्द की वजह से उसे झुकना पड़ा. फिर मैने बिहारी से कुछ पैसे उधार लिए और उसकी फीस भरी और उसका दाखिला कॉलेज में करवा दिया. कुछ दिन तक तो सब ठीक से चलता रहा मगर एक दिन उसको कुछ बदमाशों ने उसके साथ बदतमीज़ी कर दी. बस वो भी चुप नहीं बैठने वाली थी और सीधा जाकर पोलीस में उनके खिलाफ कंप्लेंट कर दी. बस उन बदमाशों को दो दिन की सज़ा मिली और तीसरे दिन उन्हें जमानत पर छोड़ दिया गया.
ऐसे ही कुछ दिन और बीते और एक दिन वही हुआ जिसका मुझे डर था. एक दिन उन सब लोगो ने मेरी बेटी को कॉलेज से ही उठवा लिया और उसको एक सहर के बाहर फार्म हाउस पर लेजा कर उन चारों ने उसके साथ ................मेरी बेटी को कहीं का नहीं छोड़ा. और वो बहुत देर तक वहीं पड़ी रोती रही और अपनी रहम की भीख मांगती रही मगर उन दरिंदों को ज़रा भी उसपर दया नहीं आई..आख़िरकार उसने अपने आप को ख़तम कर दिया..मैं उस दिन बहुत रोया था मगर मैने भी उन लोगों को सज़ा दिलवाने का फ़ैसला कर लिया. मैं कितनी बार क़ानून और वकीलों के चक्कर काटता रहा मगर किसी ने मेरी एक ना सुनी. फिर मैने ये सारी बातें बिहारी से कही और दूसरे ही दिन बिहारी ने उन चारों को मेरे कदमों में उनकी लाशें बिछवा दी. उस दिन से मेरे दिल में बिहारी के लिए इज़्ज़त और बढ़ गयी. बस इस वजह से बिहारी भी मुझे अपने बाप की तरह मानता हैं और मेरी बात को वो कभी मना नहीं करता..
राधिका - जो कुछ हुआ पूजा के साथ वो ठीक नहीं हुआ काका. ये दुनिया ऐसी ही हैं..
शंकर- हां बेटी किस्मेत की लकीरों को कौन बदल सकता हैं. बस उसी दिन के बाद से मेरे अंदर का आदमी हमेशा हमेशा के लिए मर गया और आज मेरे दिल में किसी भी लड़की या औरत के प्रति कोई बुरा ख्याल नहीं आता और ना ही मैं इन सब के बाते में कभी सोचता हूँ. क्यों कि हर मासूम लड़की में मुझे अपनी बेटी की तस्वीर नज़र आती हैं..तुम्हें भी मैने आज बिन कपड़ों के देखा मगर एक भी पल के लिए मुझे तुम्हारे प्रति कोई ग़लत भावना नहीं आई. और तुम में मेरी बेटी की छवि मुझे दिखाई देती हैं.
राधिका- लेकिन काका अब तो बहुत देर हो चुकी हैं. अब मेरा वापस लौटना दुबारा ना-मुमकिन हैं. मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए. मैं यू ही ठीक हूँ..
शंकर उठकर दूसरे कमरे में जाता हैं और थोड़ी देर के बाद वो वापस आता हैं. उसके हाथ में गरम पानी और साथ में कॉटन का एक कपड़ा था. फिर वो आकर वहीं राधिका को ज़मीन पर बैठने का इशारा करता हैं.
शंकर- बेटी मैं जानता हूँ कि इन सब लोगो ने तेरे साथ रात भर तेरे जिस्म को नोचा हैं. और मैने तेरी चीखने की आवाज़ रात भर सुनी हैं. तू भले ही कितना मुझसे छुपा ले मगर मैं जानता हूँ कि तेरे बदन में तकलीफ़ हैं. अगर तुम्हें बुरा ना लगे तो मैं तुम्हारे बदन की सिकाई कर देता हूँ जिससे तुम्हें बहुत आराम मिल जाएगा ..अगर मुझपर भरोसा हो तो..
राधिका एक नज़र शंकर की ओर देखती हैं फिर वो अपने जिस्म से शॉल अलग कर देती हैं. फिर से वो पूरी नंगी हालत में शंकर के सामने वहीं फर्श पर अपनी आँखें बंद कर लेट जाती हैं. शंकर भी अपनी आँखें बंद कर लेता हैं और थोड़ी देर तक वो राधिका के बदन की सिकाई करता हैं. और गरम पानी से उसके बदन को पोछता हैं. राधिका को उससे काफ़ी राहत मिलती हैं. फिर वो वहीं रखा शॉल अपने जिस्म पर ओढ़ लेती हैं. और शंकर उसे एक पेन किल्लर दवाई देता हैं. और साथ में दूध में हल्दी मिलाकर उसे पीने को कहता हैं.
शंकर- तू बहुत थक गयी होगी बेटी. तू थोड़ी देर आराम कर ले मैं तेरे लिए जाकर खाना बना देता हूँ फिर जब तेरी नींद खुलेगी तो तू उठ कर खाना खा लेना. और फिर शंकर वहाँ से उठ कर कमरे के बाहर निकल जाता हैं...
राधिका बड़े गौर से उस बूढ़े शंकर को जाता हुआ देख रही थी..आज राधिका के दिल में उस शंकर काका के प्रति प्यार उमड़ पड़ा था. आज उसे एक सच्ची इंसानियत का उदाहरण के रूप में उसे शंकर काका मिले थे.. अब देखना ये था कि वो वहाँ पर राधिका की उन सब से कैसे उसकी रक्षा करते हैं.
थोड़ी देर के बाद राधिका फ्रेश होकर वहीं बिस्तेर पर सो जाती हैं और करीब शाम 4 बजे उसकी नींद खुलती हैं. तभी शंकर काका फिर से कमरे में आते हैं और उसके लिए खाना लेकर आते हैं. राधिका बिना कुछ कहें चुप चाप खाना खाने लगती हैं और कुछ देर के बाद शंकर काका वो बर्तन उठा कर किचन में ले जाता हैं..बर्तन धोने के बाद शंकर काका फिर से राधिका के पास आते हैं ..
शंकर- बेटी अब तुम्हें कैसा लग रहा हैं..
राधिका एक टक शंकर की ओर देखती हैं और धीरे से मुस्कुरा देती हैं- मैं ठीक हूँ काका..
शंकर- ठीक हैं बेटी मुझे और भी काम हैं शाम को मालिक आएँगे तो मैं उनसे तुम्हारे बारे में बात करूँगा. मुझे यकीन हैं कि वो मेरी बात कभी नहीं टालेंगे.. राधिका कुछ नहीं कहती और बस बड़े प्यार से शंकर काका को देखने लगती हैं. थोड़ी देर के बाद वो अपना बॅग खोलती हैं और उसमें अपनी डायरी निकाल कर लिखने बैठ जाती हैं. ये उसकी रोज़ की हॅबिट थी डायरी लिखना. वो सारी बातें जो कुछ भी उसके साथ हुई थी वो सब चीज़ उस डायरी में लिखती हैं. करीब 5.30 बजे के आस पास वो अपनी डायरी ख़तम करती हैं और फिर कमरे में बिहारी, जग्गा और विजय अंदर आते हैं.
बिहारी- कैसी हैं मेरी जान. नींद पूरी हुई कि नहीं. आज भी तुझे पूरी रात जागना हैं. अगर नहीं सोई है तो जा कर थोड़ी देर सो ले.. फिर हम तुझे रात भर सोने नहीं देंगे.. राधिका कुछ नहीं कहती और फिर बिहारी और वो दोनो कमरे से बाहर निकल जाते हैं.
बिहारी सीधे शंकर काका के पास जाता हैं- काका राधिका ने कुछ खाया हैं कि नहीं.
शंकर- मलिक अभी थोड़ी देर पहले मैने उसे खाना दिया था.
बिहारी- ठीक हैं आज भी खाने में चिकन ही बनाना हैं आपको....
शंकर- मालिक मुझे आपसे कुछ बात कहनी थी.. अगर आप बुरा ना माने तो मैं कहूँ????
बिहारी- हां शंकर काका बोलो क्या बात हैं..
शंकर- मालिक मैं आपकी बहुत इज़्ज़त करता हूँ पर कहना तो नहीं चाहता मगर बड़ी हिम्मत जुटा कर आपसे ये बात कह रहा हूँ..ये आप ठीक नहीं कर रहें हैं. उस मासूम लड़की के साथ बहुत ग़लत हो रहा हैं. बस मुझे आपसे यही गुज़ारिश हैं कि आप उसे यहाँ से आज़ाद कर दें. वो तो आपकी बेटी समान हैं.
बिहारी- तुम किसकी बात कर रहे हो काका. मैं कुछ समझा नहीं???
शंकर- मालिक मैं राधिका की बात कर रहा हूँ जो इस वक़्त आपके पास हैं.
बिहारी- काका आपको कोई हक़ नहीं बनता कि आप मेरे निज़ी मामले में दखलअंदाजी करें. मैं उस लड़की के साथ कुछ भी करूँ इसी आपको कोई लेना देना नहीं हैं. ये मत भूलिए कि आप इस घर के नौकर हैं और मैं आपका मालिक.. मुझे तुम्हारे सलाह मशवरे की ज़रूरत नहीं हैं. और आपके लिए भी ये अच्छा होगा कि आप अपने काम से काम रखें.
शंकर- छोटा मूह और बड़ी बात मगर इसमें मेरा कोई स्वार्थ नहीं हैं मालिक. मैं जो कुछ भी कह रहा हूँ वो आपकी भलाई के लिए कह रहा हूँ. कहीं ऐसा ना हो कि उस लड़की की वजह से आपका वजूद मिट जाए. इतिहास गवाह हैं .......सदियों से इस संसार में जितने भी धर्म युद्ध हुए हैं उन सब की वजह औरत ही रही हैं..सतयुग में रावण ने सीता का हरण किया था तो भगवान राम ने रावण की लंका जलाकर राख की थी. उसी तरह महाभारत भी होने के पीछे औरत ही वजह थी ना द्रौपदी का चीर हरण होता और ना ही कौरवों का विनाश होता... जो बरसों से चली आ रही अधर्म पर धर्म की जीत .मालिक उसे तो नहीं बदला जा सकता..
शंकर की बातो को सुनकर बिहारी गुस्से से चीख पड़ता हैं- शंकर तुम अपनी हद्द भूल रहे हो. तुम्हें पता भी हैं तुम किससे बात कर रहे हो. मैं इस सहर का एमएलए हूँ. आज मेरे हाथ में पॉवर हैं दौलत हैं रुतबा हैं.. मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता. तुम्हें क्या लगता हैं कि वो दो टके की लौंडिया मेरा वजूद को मिट्टी में मिला पाएगी. और उसका वो आशिक़ राहुल भले ही वो आज एसीपी बन गया हो मगर रहेगा तो मेरी ही अंडर में ना. और रही बात सतयुग और द्वापर्युग की तो उस समय की बात अलग थी. देवताओं ने भी चाल से ही रक्षासों पर जीत हासिल किया था. और आज कलयुग हैं. जीत यहाँ पर हिंसा और अधर्म की होती हैं. ना की ईमानदारी और सत्य की..
इस युग में मैं आज का रावण हूँ और मैने इस राधिका नाम की सीता को पूरी तरह से गंदा कर दिया हैं. अब तो वो बेचारी उस राम की होने से रही. और वैसे भी अब उसका आशिक़ उसे किसी भी हाल में नहीं अपनाएगा.. तुम चिंता मत करो काका इस युग में जीत मेरी ही होगी. ये बिहारी पूरे दावे से कह सकता हैं...
शंकर- मालिक ठंडे दिमाग़ से एक बार मेरी बातो को सोचकर देखिएगा. शायद आपको मेरी बातो में थोड़ी सी भी सच्चाई नज़र आयें...तो मैं उन सब से आपके किए की माफी माँग लूँगा.
बिहारी- तेरा दिमाग़ फिर गया हैं काका. अब तू भी बूढ़ा हो चुका हैं. ऐसा कर दो चार दिन की छुट्टी लेकर अपने घर चल जा.. जब थोड़ा तेरा दिमाग़ सही हो जाए तो फिर वापस आ जाना. फिर बिहारी तेज़ी से कमरे के बाहर निकल जाता हैं और शंकर चुप चाप बिहारी को देखने लगता हैं..
मालिक आप मानो या ना मानो पर मैने उस मासूम के आँखों में दर्द और तड़प देखी हैं. अगर किसी औरत की हाय लगती हैं तो उसका विनाश होना तय हैं. पर आपको कौन समझायें. आप खुद अपनी बर्बादी की राह पर जा रहें हैं..मैं तो ईश्वार से यही दुवा करूँगा कि आपको समय रहते आप सम्भल जायें... इसी तरह के विचार इस वक़्त शंकर के मन में आ रहें थे...
उधेर आभी भी बिहारी इस वक़्त गुस्से में था वो तुरंत राधिका के पास जाता हैं और उसके सिर के बाल को कसकर पकड़कर अपनी मुट्ठी में ज़ोर से भींच लेता हैं और एक ही झटके में उसके बदन से लिपटा शॉल खींच कर अलग कर देता हैं. राधिका के मूह से दर्द भरी चीख निकल पड़ती हैं. फिर बिहारी राधिका के गाल पर दो तीन थप्पड़ कस कर जड़ देता हैं... राधिका की आँखों से आँसू आ जाते हैं. बिहारी के बदले तेवर को वो बिल्कुल समझ नहीं पाती कि क्यों बिहारी उसके साथ ऐसे पेश आ रहा हैं.
बिहारी- अब तक मैं तेरे साथ नर्मी से पेश आ रहा था क्यों कि मैं तुझे कोई तकलीफ़ नहीं पहुँचाना चाहता था. मगर आज तूने मुझे मज़बूर कर दिया हैं मुझे दरिन्दा बनने के लिए. देख आज मैं तेरा क्या हाल करता हूँ.
राधिका- आख़िर मेरा कसूर क्या हैं. मैने क्या बिगाड़ा हैं तुम्हारा जो तुम मेरे साथ ऐसे पेश आ रहे हो.
बिहारी- रंडी कहीं की..... अगर तुझे मेरी शर्त मंज़ूर नहीं थी तो तूने शंकर काका से मुझसे सिफारिश क्यों करवाई. कल तो तू मुझसे कह रही थी कि मैं तुम्हारी हर बात मानूँगी तो फिर एक ही रात में तेरा सारा नशा कैसे उतर गया. अभी चिंता मत कर अभी पूरे 6 दिन बचे हैं इन 6 दिनों में तेरा वो हाल करूँगा कि तू हर रोज़ अपनी मौत की मुझसे भीख माँगेगी...मगर तू चाह कर भी नहीं मर सकेगी. फिर बिहारी झट से अपने कपड़े निकालने लगता हैं और एक एक कर अपने पूरे कपड़े उतार देता हैं. फिर वो राधिका के पास आता हैं और फिर से उसके सिर के बाल को अपनी मुट्ठी में कसकर भीच लेता हैं. राधिका दर्द से फिर से चीख पड़ती हैं. तभी बिहारी अपना पूरा लंड एक ही झटके में राधिका के मूह में डाल देता हैं और बिना रुके अपने लंड पर प्रेशर बनाए रखता हैं.
बिहारी का लंड करीब पूरा राधिका के हलक में समा गया था और बिहारी बहुत तेज़ गति से अपने लंड को अंदर बाहर कर रहा था और साथ ही साथ उसके बालो को भी अपनी मुट्ठी में जकड़ा हुआ था. राधिका की आँखो में आँसू थे मगर वो इस वक़्त पूरी तरह बेबस थी. इसी तरह बिहारी एक झटके में अपना लंड बाहर निकालता हैं और उतनी ही तेज़ी से फिर से राधिका के हलक में फिर से पूरा लंड डाल देता हैं और इस बार तब तक पीछे नहीं हटता जब तक उसका कम राधिका के गले ने नीचे नहीं उतर जाता. फिर से राधिका एक बार तड़प उठती हैं.
फिर वो झट से राधिका से दूर हो जाता हैं और वहीं रखा टवल लपेटकर बाथरूम में घुस जाता हैं.. राधिका की आँखों में इस वक़्त भी आँसू थे. वो तो ये भी नहीं जानती थी कि शंकर काका और बिहारी में ऐसी क्या बातें हुई हैं जो बिहारी आज इतने गुस्से में हैं. और उसने तो कोई सिपराश नहीं की थी बिहारी से ...तो फिर क्या शंकर काका ने ही उसकी रिहाई की बात उससे की थी. इसी तरह सवालों में उलझी राधिका ना जाने कितनी देर तक रोती रहती हैं. आज उसका दर्द समझने वाला कोई नहीं था.आज वो इन सब दरोंदों के बीच बिल्कुल अकेली थी.........................एक दम अकेली.........
राधिका की आँखों में अब भी आँसू थे..तभी कमरे में जग्गा और विजय आते हैं.
विजय- क्या हुआ मेरी जान आज तेरी आँखों में आँसू. विजय की बातो को सुनकर राधिका नफ़रत से अपना मूह दूसरी तरफ फेर लेती हैं. तभी बिहारी भी कमरे में आता हैं.
बिहारी- आज तुम सब इसे जैसा चाहो वैसा रगाडो और इसकी बदन की सारी गर्मी निकालो.. साली पर कोई रहम मत करना. तब तक इसे चोदना जब तक तुम सब के लंड का आखरी कतरा ना निकल जायें. आज इसे भी तो पता चलना चाहिए कि ये एक पेशावॉर रंडी से कम बिल्कुल नहीं हैं. बिहारी की बातो को सुनकर विजय और जग्गा हैरत से बिहारी की ओर देखने लगते हैं.
जग्गा- क्या बात हैं बिहारी. कल तक तो तुझे इससे बड़ा प्यार था. आज क्या हुवा ऐसा लगता हैं अब तेरा मन इससे भर गया हैं. खैर इस लौंडिया से तो हमारा दिल कभी नहीं भर सकता..फिर जग्गा राधिका के पास जाता हैं और उसके दोनो बूब्स को कसकर अपनी मुट्ठी में ज़ोर से भीच देता हैं. राधिका के मूह से फिर से सिसकारी निकल पड़ती हैं..
विजय वहीं ड्रॉयर के पास जाता हैं और फिर से एक ड्रग्स का इंजेक्षन री-फिल करता हैं. आज ड्रग्स की क्वांटिटी कल से ज़्यादा थी. वो तुरंत राधिका के पास आता हैं और वो इंजेक्षन राधिका के हाथों में लगाता हैं. राधिका बिना किसी सवाल जवाब के अपने हाथ आगे बढ़ा देती हैं. थोड़ी देर के बाद राधिका वहीं फर्श पर बैठ जाती हैं धीरे धीरे वो ज़हर उसकी रगों में घुलना शुरू हो जाता हैं और उसपर फिर से नशा छाने लगता हैं.
बिहारी जग्गा और विजय फिर से अपने सारे कपड़े एक एक कर निकाल देते हैं और कुछ देर में वो तीनों पूरी तरह नंगे हो जाते हैं और फिर से राधिका की दर्दनाक चुदाई का सिलसिला शुरू हो जाता हैं. सबसे पहले विजय अपना लंड धीरे धीरे राधिका के मूह में पेलता हैं और तब तक नहीं रुकता जब तक उसका लंड राधिका के हलक में नहीं पहुँच जाता. विजय तो पहले से ही वाइल्ड सेक्स करता था. आज उसे पूरा छूट मिल गयी थी इसलिए वो आज अपने वहशीपने पर उतर जाता हैं..इधेर जग्गा भी उसके बूब्स और निपल्स को बुरी तरह से मसल रहा था और उधेर बिहारी बड़े गौर से उन दोनो के एक एक हरकतों को देख रहा था. राधिका भी अब धीरे धीरे गरम होने लगी थी और फिर जग्गा नीचे झुक कर उसकी चूत को चाटना शुरू कर देता हैं. और आज फिर उस कंडीशन पर रुक जाता हैं जहाँ राधिका ऑर्गॅनिसम के बहुत करीब थी. जग्गा के तुरंत हटने से एक बार फिर राधिका तड़प उठती हैं. तभी बिहारी उसके पास आता हैं और फिर से उसके सिर के बाल को कसकर अपनी मुट्ठी में ज़ोर से भीच लेता है..राधिका के मूह से फिर से दर्द भरी सिसकारी निकलती हैं मगर विजय का लंड उसके मूह में होने की वजह से उसकी आवाज़ अंदर ही घुट जाती हैं..
थोड़ी देर के बाद विजय अपना पूरा लंड उसके हलक से बाहर निकलता हैं..और राधिका ज़ोर ज़ोर से अपनी साँसें लेती हैं. आज उसे पता था कि ये सब रात भर उसपर रहम नहीं करेंगे..खास तौर से बिहारी...
राधिका- बिहारी मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूँ प्लीज़ मुझे कहीं से ज़हर लाकर दे दो. सच में अब मैं जीना नहीं चाहती ...
बिहारी- अरे मेरी जान सुना हैं कि तू बड़ी हिम्मत वाली लड़की हैं और आज इतनी जल्दी हिम्मत हार गयी. अभी तो पूरे 6 दिन बचे हैं यहाँ गुजारने के लिए .. अभी से तू ऐसे हिम्मत हारेगी तो कैसे काम चलेगा...राधिका कुछ नहीं कहती और बस अपनी नज़रें नीची कर लेती हैं वो अब समझ चुकी थी की इन दरिंदों के बीच उसकी फरियाद सुनने वाला आज कोई नहीं हैं. वो भी चुप चाप अपने आप को उन सब के आगे पूरा समर्पण कर देती हैं. फिर से राधिका का जिस्म उन तीनों बरी बारी नोचते हैं और एक के बाद ...एक एक कर उसकी चूत गान्ड की छुदाई करते हैं. फिर बाद में तीनों एक साथ एक ही समय पर राधिका की तीनों मिलकर चुदाई करते हैं. अब राधिका भी धीरे धीरे इन सब की आदि होती जा रही थी. उपर से ड्रग्स का नशा उसकी रही सही सोचने और समझने की शक्ति को ख़तम कर रही थी. इसी तरह फिर से राधिका के साथ वाइल्ड सेक्स होता हैं ...मगर अब राधिका किसी भी चीज़ का विरोध नहीं करती थी..
रात रात भर जग्गा ,विजय और बिहारी तीनों वियाग्रा की गोली खा खा कर राधिका की चूत और गान्ड की ठुकाइ करते और उसके साथ नन्गपन का खेल खेलते. राधिका के अंदर की अब शरम लगभग ख़तम हो चुकी थी. वक़्त बीतता जा रहा था और दिन गुज़रते जा रहे थे. इधेर राधिका की हालत दिन ब-दिन बुरी और बुरी होती जा रही थी. हर पल वो मर रही थी. ना जाने कितनी तकलीफ़ वो चुप चाप सहती मगर वो किसी से कुछ नहीं कहती. ज़हर का हर घुट वो बस अपने चाहने वालों के लिए हर पल पी रही थी.. हर शाम को राहुल का फोन आता और राधिका राहुल को इस बात का बिल्कुल एहसास नहीं होने देती कि वो आज किस हालत में हैं. बस चुप चाप दो चार बातें करके वो फोन रख देती.. कभी कभी निशा का भी फोन आता निशा भी कई दिनों से उसके घर नहीं आ पा रही थी. वजह थी उसकी मम्मी की कुछ दिनों से तबीयत खराब और दूसरी बात निशा का एग्ज़ॅम्स भी नज़दीक आने वाला था.
शंकर- बेटी तुम मुझे ग़लत समझ रही हो. मेरा इरादा तुम्हारे बारे में ऐसा कुछ नहीं हैं. आख़िर तुम मेरी बेटी जैसी हो..
राधिका- बेटी जैसी हूँ पर आपकी बेटी तो नहीं... काका बहुत फ़र्क होता हैं अपनों में और गैरों में. इंसान चाहे लाख कोशिश क्यों ना कर ले फिर भी वो दूसरों की बहू बेटी को बुरी नज़र से देखने से अपने आप को नहीं रोक सकता..ये जिस्म का नशा और ये हवस में इंसान सब कुछ भूल जाता हैं.
शंकर- मैं जानता हूँ बेटी कि जो कुछ तुम्हारे साथ हुआ वो बहुत ग़लत हुआ. और बिहारी ने तुम्हारी हँसती खेलती ज़िंदगी तबाह कर दी. उसकी तरफ से मैं तुमसे माफी माँगता हूँ. वो जैसा दिखता हैं वो ऐसा हैं नहीं.. बस उसकी संगत ग़लत हैं इस वजह से वो आज सच झूट में फ़ैसला नहीं कर पा रहा ...मैं उससे इस बारे में बात करूँगा वो मेरी बात कभी नहीं टालेगा.. क्यों कि वो मुझे आपने बाप के समान मानता हैं.
राधिका- नहीं काका अब शायद बहुत देर हो चुकी हैं. मैं अब इस बारे में कोई भी बात नहीं करना चाहती... आप हो सके तो यहाँ से चले जाइए. मेरा अब इंसानियत से भरोसा उठ गया हैं. ज़िंदगी में मेरे भावनाओं के साथ बहुत खिलवाड़ किया गया. आब मुझ में ताक़त नहीं कि मैं और कोई भी सदमा बर्दास्त कर पाऊ..आब शायद मेरे दिल में भरोसे नाम की अब कोई जगह नहीं...
शंकर राधिका के कंधे पर अपने हाथ रख देता हैं - बेटी एक बार बस मुझपर भरोसा करके देखलो मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि मैं तुम्हारा भरोसा कभी नहीं तोड़ूँगा.
राधिका- काका मैं इन सब की वजह जान सकती हूँ कि आप मुझपर इतनी दया क्यों दिखा रहे हैं..भला आपसे मेरा क्या संबंध हैं???
शंकर- संबंध...........वही संबंद हैं बेटी जो एक बाप का अपनी बेटी से होता है. तुझमें मुझे अपनी बेटी नज़र आती हैं. वो भी तेरी ही तरह थी मासूम.... मगर उसकी मासूमियत इस दुनिया को देखी नहीं गयी इसलिए शायद अब वो भी मुझे छोड़ कर हमेशा हमेशा के लिए मुझसे दूर चली गयी...
राधिका- दूर चली गयी ..........कहाँ ???
शंकर- वहीं जहाँ से कोई दुबारा लौट कर नहीं आता... और इतना कहते कहते शंकर की आँखों में आँसू निकल पड़ते हैं..
राधिका- क्या हुआ काका आपकी आँखों में आँसू... क्या हुआ आपकी बेटी को..और ये सब कैसे???
शंकर- रहने दे बेटा जो अब इस दुनिया में हैं ही नहीं भला उस के बारे में जानकार क्या हासिल होगा...
राधिका- अगर आप मुझे अपनी बेटी समझते हैं तो बताइए मुझे कि आपकी बेटी के साथ क्या हुआ था??
शंकर कुछ देर सोचता हैं फिर बोलना शुरू करता हैं- बात 4 साल पहले की हैं मेरी बेटी का नाम पूजा था. वो भी करीब 20 साल की थी बिल्कुल तेरे जैसी. खूबसूरत और चुलबुली. हमेशा जब देखो तब बक बक करती रहती थी. जब वो 19 साल की हुई तो उसने इंटर पास की. पूजा की मा तो उसे आगे पढ़ाना नहीं चाहती थी मगर मेरी ज़िद्द की वजह से उसे झुकना पड़ा. फिर मैने बिहारी से कुछ पैसे उधार लिए और उसकी फीस भरी और उसका दाखिला कॉलेज में करवा दिया. कुछ दिन तक तो सब ठीक से चलता रहा मगर एक दिन उसको कुछ बदमाशों ने उसके साथ बदतमीज़ी कर दी. बस वो भी चुप नहीं बैठने वाली थी और सीधा जाकर पोलीस में उनके खिलाफ कंप्लेंट कर दी. बस उन बदमाशों को दो दिन की सज़ा मिली और तीसरे दिन उन्हें जमानत पर छोड़ दिया गया.
ऐसे ही कुछ दिन और बीते और एक दिन वही हुआ जिसका मुझे डर था. एक दिन उन सब लोगो ने मेरी बेटी को कॉलेज से ही उठवा लिया और उसको एक सहर के बाहर फार्म हाउस पर लेजा कर उन चारों ने उसके साथ ................मेरी बेटी को कहीं का नहीं छोड़ा. और वो बहुत देर तक वहीं पड़ी रोती रही और अपनी रहम की भीख मांगती रही मगर उन दरिंदों को ज़रा भी उसपर दया नहीं आई..आख़िरकार उसने अपने आप को ख़तम कर दिया..मैं उस दिन बहुत रोया था मगर मैने भी उन लोगों को सज़ा दिलवाने का फ़ैसला कर लिया. मैं कितनी बार क़ानून और वकीलों के चक्कर काटता रहा मगर किसी ने मेरी एक ना सुनी. फिर मैने ये सारी बातें बिहारी से कही और दूसरे ही दिन बिहारी ने उन चारों को मेरे कदमों में उनकी लाशें बिछवा दी. उस दिन से मेरे दिल में बिहारी के लिए इज़्ज़त और बढ़ गयी. बस इस वजह से बिहारी भी मुझे अपने बाप की तरह मानता हैं और मेरी बात को वो कभी मना नहीं करता..
राधिका - जो कुछ हुआ पूजा के साथ वो ठीक नहीं हुआ काका. ये दुनिया ऐसी ही हैं..
शंकर- हां बेटी किस्मेत की लकीरों को कौन बदल सकता हैं. बस उसी दिन के बाद से मेरे अंदर का आदमी हमेशा हमेशा के लिए मर गया और आज मेरे दिल में किसी भी लड़की या औरत के प्रति कोई बुरा ख्याल नहीं आता और ना ही मैं इन सब के बाते में कभी सोचता हूँ. क्यों कि हर मासूम लड़की में मुझे अपनी बेटी की तस्वीर नज़र आती हैं..तुम्हें भी मैने आज बिन कपड़ों के देखा मगर एक भी पल के लिए मुझे तुम्हारे प्रति कोई ग़लत भावना नहीं आई. और तुम में मेरी बेटी की छवि मुझे दिखाई देती हैं.
राधिका- लेकिन काका अब तो बहुत देर हो चुकी हैं. अब मेरा वापस लौटना दुबारा ना-मुमकिन हैं. मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए. मैं यू ही ठीक हूँ..
शंकर उठकर दूसरे कमरे में जाता हैं और थोड़ी देर के बाद वो वापस आता हैं. उसके हाथ में गरम पानी और साथ में कॉटन का एक कपड़ा था. फिर वो आकर वहीं राधिका को ज़मीन पर बैठने का इशारा करता हैं.
शंकर- बेटी मैं जानता हूँ कि इन सब लोगो ने तेरे साथ रात भर तेरे जिस्म को नोचा हैं. और मैने तेरी चीखने की आवाज़ रात भर सुनी हैं. तू भले ही कितना मुझसे छुपा ले मगर मैं जानता हूँ कि तेरे बदन में तकलीफ़ हैं. अगर तुम्हें बुरा ना लगे तो मैं तुम्हारे बदन की सिकाई कर देता हूँ जिससे तुम्हें बहुत आराम मिल जाएगा ..अगर मुझपर भरोसा हो तो..
राधिका एक नज़र शंकर की ओर देखती हैं फिर वो अपने जिस्म से शॉल अलग कर देती हैं. फिर से वो पूरी नंगी हालत में शंकर के सामने वहीं फर्श पर अपनी आँखें बंद कर लेट जाती हैं. शंकर भी अपनी आँखें बंद कर लेता हैं और थोड़ी देर तक वो राधिका के बदन की सिकाई करता हैं. और गरम पानी से उसके बदन को पोछता हैं. राधिका को उससे काफ़ी राहत मिलती हैं. फिर वो वहीं रखा शॉल अपने जिस्म पर ओढ़ लेती हैं. और शंकर उसे एक पेन किल्लर दवाई देता हैं. और साथ में दूध में हल्दी मिलाकर उसे पीने को कहता हैं.
शंकर- तू बहुत थक गयी होगी बेटी. तू थोड़ी देर आराम कर ले मैं तेरे लिए जाकर खाना बना देता हूँ फिर जब तेरी नींद खुलेगी तो तू उठ कर खाना खा लेना. और फिर शंकर वहाँ से उठ कर कमरे के बाहर निकल जाता हैं...
राधिका बड़े गौर से उस बूढ़े शंकर को जाता हुआ देख रही थी..आज राधिका के दिल में उस शंकर काका के प्रति प्यार उमड़ पड़ा था. आज उसे एक सच्ची इंसानियत का उदाहरण के रूप में उसे शंकर काका मिले थे.. अब देखना ये था कि वो वहाँ पर राधिका की उन सब से कैसे उसकी रक्षा करते हैं.
थोड़ी देर के बाद राधिका फ्रेश होकर वहीं बिस्तेर पर सो जाती हैं और करीब शाम 4 बजे उसकी नींद खुलती हैं. तभी शंकर काका फिर से कमरे में आते हैं और उसके लिए खाना लेकर आते हैं. राधिका बिना कुछ कहें चुप चाप खाना खाने लगती हैं और कुछ देर के बाद शंकर काका वो बर्तन उठा कर किचन में ले जाता हैं..बर्तन धोने के बाद शंकर काका फिर से राधिका के पास आते हैं ..
शंकर- बेटी अब तुम्हें कैसा लग रहा हैं..
राधिका एक टक शंकर की ओर देखती हैं और धीरे से मुस्कुरा देती हैं- मैं ठीक हूँ काका..
शंकर- ठीक हैं बेटी मुझे और भी काम हैं शाम को मालिक आएँगे तो मैं उनसे तुम्हारे बारे में बात करूँगा. मुझे यकीन हैं कि वो मेरी बात कभी नहीं टालेंगे.. राधिका कुछ नहीं कहती और बस बड़े प्यार से शंकर काका को देखने लगती हैं. थोड़ी देर के बाद वो अपना बॅग खोलती हैं और उसमें अपनी डायरी निकाल कर लिखने बैठ जाती हैं. ये उसकी रोज़ की हॅबिट थी डायरी लिखना. वो सारी बातें जो कुछ भी उसके साथ हुई थी वो सब चीज़ उस डायरी में लिखती हैं. करीब 5.30 बजे के आस पास वो अपनी डायरी ख़तम करती हैं और फिर कमरे में बिहारी, जग्गा और विजय अंदर आते हैं.
बिहारी- कैसी हैं मेरी जान. नींद पूरी हुई कि नहीं. आज भी तुझे पूरी रात जागना हैं. अगर नहीं सोई है तो जा कर थोड़ी देर सो ले.. फिर हम तुझे रात भर सोने नहीं देंगे.. राधिका कुछ नहीं कहती और फिर बिहारी और वो दोनो कमरे से बाहर निकल जाते हैं.
बिहारी सीधे शंकर काका के पास जाता हैं- काका राधिका ने कुछ खाया हैं कि नहीं.
शंकर- मलिक अभी थोड़ी देर पहले मैने उसे खाना दिया था.
बिहारी- ठीक हैं आज भी खाने में चिकन ही बनाना हैं आपको....
शंकर- मालिक मुझे आपसे कुछ बात कहनी थी.. अगर आप बुरा ना माने तो मैं कहूँ????
बिहारी- हां शंकर काका बोलो क्या बात हैं..
शंकर- मालिक मैं आपकी बहुत इज़्ज़त करता हूँ पर कहना तो नहीं चाहता मगर बड़ी हिम्मत जुटा कर आपसे ये बात कह रहा हूँ..ये आप ठीक नहीं कर रहें हैं. उस मासूम लड़की के साथ बहुत ग़लत हो रहा हैं. बस मुझे आपसे यही गुज़ारिश हैं कि आप उसे यहाँ से आज़ाद कर दें. वो तो आपकी बेटी समान हैं.
बिहारी- तुम किसकी बात कर रहे हो काका. मैं कुछ समझा नहीं???
शंकर- मालिक मैं राधिका की बात कर रहा हूँ जो इस वक़्त आपके पास हैं.
बिहारी- काका आपको कोई हक़ नहीं बनता कि आप मेरे निज़ी मामले में दखलअंदाजी करें. मैं उस लड़की के साथ कुछ भी करूँ इसी आपको कोई लेना देना नहीं हैं. ये मत भूलिए कि आप इस घर के नौकर हैं और मैं आपका मालिक.. मुझे तुम्हारे सलाह मशवरे की ज़रूरत नहीं हैं. और आपके लिए भी ये अच्छा होगा कि आप अपने काम से काम रखें.
शंकर- छोटा मूह और बड़ी बात मगर इसमें मेरा कोई स्वार्थ नहीं हैं मालिक. मैं जो कुछ भी कह रहा हूँ वो आपकी भलाई के लिए कह रहा हूँ. कहीं ऐसा ना हो कि उस लड़की की वजह से आपका वजूद मिट जाए. इतिहास गवाह हैं .......सदियों से इस संसार में जितने भी धर्म युद्ध हुए हैं उन सब की वजह औरत ही रही हैं..सतयुग में रावण ने सीता का हरण किया था तो भगवान राम ने रावण की लंका जलाकर राख की थी. उसी तरह महाभारत भी होने के पीछे औरत ही वजह थी ना द्रौपदी का चीर हरण होता और ना ही कौरवों का विनाश होता... जो बरसों से चली आ रही अधर्म पर धर्म की जीत .मालिक उसे तो नहीं बदला जा सकता..
शंकर की बातो को सुनकर बिहारी गुस्से से चीख पड़ता हैं- शंकर तुम अपनी हद्द भूल रहे हो. तुम्हें पता भी हैं तुम किससे बात कर रहे हो. मैं इस सहर का एमएलए हूँ. आज मेरे हाथ में पॉवर हैं दौलत हैं रुतबा हैं.. मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता. तुम्हें क्या लगता हैं कि वो दो टके की लौंडिया मेरा वजूद को मिट्टी में मिला पाएगी. और उसका वो आशिक़ राहुल भले ही वो आज एसीपी बन गया हो मगर रहेगा तो मेरी ही अंडर में ना. और रही बात सतयुग और द्वापर्युग की तो उस समय की बात अलग थी. देवताओं ने भी चाल से ही रक्षासों पर जीत हासिल किया था. और आज कलयुग हैं. जीत यहाँ पर हिंसा और अधर्म की होती हैं. ना की ईमानदारी और सत्य की..
इस युग में मैं आज का रावण हूँ और मैने इस राधिका नाम की सीता को पूरी तरह से गंदा कर दिया हैं. अब तो वो बेचारी उस राम की होने से रही. और वैसे भी अब उसका आशिक़ उसे किसी भी हाल में नहीं अपनाएगा.. तुम चिंता मत करो काका इस युग में जीत मेरी ही होगी. ये बिहारी पूरे दावे से कह सकता हैं...
शंकर- मालिक ठंडे दिमाग़ से एक बार मेरी बातो को सोचकर देखिएगा. शायद आपको मेरी बातो में थोड़ी सी भी सच्चाई नज़र आयें...तो मैं उन सब से आपके किए की माफी माँग लूँगा.
बिहारी- तेरा दिमाग़ फिर गया हैं काका. अब तू भी बूढ़ा हो चुका हैं. ऐसा कर दो चार दिन की छुट्टी लेकर अपने घर चल जा.. जब थोड़ा तेरा दिमाग़ सही हो जाए तो फिर वापस आ जाना. फिर बिहारी तेज़ी से कमरे के बाहर निकल जाता हैं और शंकर चुप चाप बिहारी को देखने लगता हैं..
मालिक आप मानो या ना मानो पर मैने उस मासूम के आँखों में दर्द और तड़प देखी हैं. अगर किसी औरत की हाय लगती हैं तो उसका विनाश होना तय हैं. पर आपको कौन समझायें. आप खुद अपनी बर्बादी की राह पर जा रहें हैं..मैं तो ईश्वार से यही दुवा करूँगा कि आपको समय रहते आप सम्भल जायें... इसी तरह के विचार इस वक़्त शंकर के मन में आ रहें थे...
उधेर आभी भी बिहारी इस वक़्त गुस्से में था वो तुरंत राधिका के पास जाता हैं और उसके सिर के बाल को कसकर पकड़कर अपनी मुट्ठी में ज़ोर से भींच लेता हैं और एक ही झटके में उसके बदन से लिपटा शॉल खींच कर अलग कर देता हैं. राधिका के मूह से दर्द भरी चीख निकल पड़ती हैं. फिर बिहारी राधिका के गाल पर दो तीन थप्पड़ कस कर जड़ देता हैं... राधिका की आँखों से आँसू आ जाते हैं. बिहारी के बदले तेवर को वो बिल्कुल समझ नहीं पाती कि क्यों बिहारी उसके साथ ऐसे पेश आ रहा हैं.
बिहारी- अब तक मैं तेरे साथ नर्मी से पेश आ रहा था क्यों कि मैं तुझे कोई तकलीफ़ नहीं पहुँचाना चाहता था. मगर आज तूने मुझे मज़बूर कर दिया हैं मुझे दरिन्दा बनने के लिए. देख आज मैं तेरा क्या हाल करता हूँ.
राधिका- आख़िर मेरा कसूर क्या हैं. मैने क्या बिगाड़ा हैं तुम्हारा जो तुम मेरे साथ ऐसे पेश आ रहे हो.
बिहारी- रंडी कहीं की..... अगर तुझे मेरी शर्त मंज़ूर नहीं थी तो तूने शंकर काका से मुझसे सिफारिश क्यों करवाई. कल तो तू मुझसे कह रही थी कि मैं तुम्हारी हर बात मानूँगी तो फिर एक ही रात में तेरा सारा नशा कैसे उतर गया. अभी चिंता मत कर अभी पूरे 6 दिन बचे हैं इन 6 दिनों में तेरा वो हाल करूँगा कि तू हर रोज़ अपनी मौत की मुझसे भीख माँगेगी...मगर तू चाह कर भी नहीं मर सकेगी. फिर बिहारी झट से अपने कपड़े निकालने लगता हैं और एक एक कर अपने पूरे कपड़े उतार देता हैं. फिर वो राधिका के पास आता हैं और फिर से उसके सिर के बाल को अपनी मुट्ठी में कसकर भीच लेता हैं. राधिका दर्द से फिर से चीख पड़ती हैं. तभी बिहारी अपना पूरा लंड एक ही झटके में राधिका के मूह में डाल देता हैं और बिना रुके अपने लंड पर प्रेशर बनाए रखता हैं.
बिहारी का लंड करीब पूरा राधिका के हलक में समा गया था और बिहारी बहुत तेज़ गति से अपने लंड को अंदर बाहर कर रहा था और साथ ही साथ उसके बालो को भी अपनी मुट्ठी में जकड़ा हुआ था. राधिका की आँखो में आँसू थे मगर वो इस वक़्त पूरी तरह बेबस थी. इसी तरह बिहारी एक झटके में अपना लंड बाहर निकालता हैं और उतनी ही तेज़ी से फिर से राधिका के हलक में फिर से पूरा लंड डाल देता हैं और इस बार तब तक पीछे नहीं हटता जब तक उसका कम राधिका के गले ने नीचे नहीं उतर जाता. फिर से राधिका एक बार तड़प उठती हैं.
फिर वो झट से राधिका से दूर हो जाता हैं और वहीं रखा टवल लपेटकर बाथरूम में घुस जाता हैं.. राधिका की आँखों में इस वक़्त भी आँसू थे. वो तो ये भी नहीं जानती थी कि शंकर काका और बिहारी में ऐसी क्या बातें हुई हैं जो बिहारी आज इतने गुस्से में हैं. और उसने तो कोई सिपराश नहीं की थी बिहारी से ...तो फिर क्या शंकर काका ने ही उसकी रिहाई की बात उससे की थी. इसी तरह सवालों में उलझी राधिका ना जाने कितनी देर तक रोती रहती हैं. आज उसका दर्द समझने वाला कोई नहीं था.आज वो इन सब दरोंदों के बीच बिल्कुल अकेली थी.........................एक दम अकेली.........
राधिका की आँखों में अब भी आँसू थे..तभी कमरे में जग्गा और विजय आते हैं.
विजय- क्या हुआ मेरी जान आज तेरी आँखों में आँसू. विजय की बातो को सुनकर राधिका नफ़रत से अपना मूह दूसरी तरफ फेर लेती हैं. तभी बिहारी भी कमरे में आता हैं.
बिहारी- आज तुम सब इसे जैसा चाहो वैसा रगाडो और इसकी बदन की सारी गर्मी निकालो.. साली पर कोई रहम मत करना. तब तक इसे चोदना जब तक तुम सब के लंड का आखरी कतरा ना निकल जायें. आज इसे भी तो पता चलना चाहिए कि ये एक पेशावॉर रंडी से कम बिल्कुल नहीं हैं. बिहारी की बातो को सुनकर विजय और जग्गा हैरत से बिहारी की ओर देखने लगते हैं.
जग्गा- क्या बात हैं बिहारी. कल तक तो तुझे इससे बड़ा प्यार था. आज क्या हुवा ऐसा लगता हैं अब तेरा मन इससे भर गया हैं. खैर इस लौंडिया से तो हमारा दिल कभी नहीं भर सकता..फिर जग्गा राधिका के पास जाता हैं और उसके दोनो बूब्स को कसकर अपनी मुट्ठी में ज़ोर से भीच देता हैं. राधिका के मूह से फिर से सिसकारी निकल पड़ती हैं..
विजय वहीं ड्रॉयर के पास जाता हैं और फिर से एक ड्रग्स का इंजेक्षन री-फिल करता हैं. आज ड्रग्स की क्वांटिटी कल से ज़्यादा थी. वो तुरंत राधिका के पास आता हैं और वो इंजेक्षन राधिका के हाथों में लगाता हैं. राधिका बिना किसी सवाल जवाब के अपने हाथ आगे बढ़ा देती हैं. थोड़ी देर के बाद राधिका वहीं फर्श पर बैठ जाती हैं धीरे धीरे वो ज़हर उसकी रगों में घुलना शुरू हो जाता हैं और उसपर फिर से नशा छाने लगता हैं.
बिहारी जग्गा और विजय फिर से अपने सारे कपड़े एक एक कर निकाल देते हैं और कुछ देर में वो तीनों पूरी तरह नंगे हो जाते हैं और फिर से राधिका की दर्दनाक चुदाई का सिलसिला शुरू हो जाता हैं. सबसे पहले विजय अपना लंड धीरे धीरे राधिका के मूह में पेलता हैं और तब तक नहीं रुकता जब तक उसका लंड राधिका के हलक में नहीं पहुँच जाता. विजय तो पहले से ही वाइल्ड सेक्स करता था. आज उसे पूरा छूट मिल गयी थी इसलिए वो आज अपने वहशीपने पर उतर जाता हैं..इधेर जग्गा भी उसके बूब्स और निपल्स को बुरी तरह से मसल रहा था और उधेर बिहारी बड़े गौर से उन दोनो के एक एक हरकतों को देख रहा था. राधिका भी अब धीरे धीरे गरम होने लगी थी और फिर जग्गा नीचे झुक कर उसकी चूत को चाटना शुरू कर देता हैं. और आज फिर उस कंडीशन पर रुक जाता हैं जहाँ राधिका ऑर्गॅनिसम के बहुत करीब थी. जग्गा के तुरंत हटने से एक बार फिर राधिका तड़प उठती हैं. तभी बिहारी उसके पास आता हैं और फिर से उसके सिर के बाल को कसकर अपनी मुट्ठी में ज़ोर से भीच लेता है..राधिका के मूह से फिर से दर्द भरी सिसकारी निकलती हैं मगर विजय का लंड उसके मूह में होने की वजह से उसकी आवाज़ अंदर ही घुट जाती हैं..
थोड़ी देर के बाद विजय अपना पूरा लंड उसके हलक से बाहर निकलता हैं..और राधिका ज़ोर ज़ोर से अपनी साँसें लेती हैं. आज उसे पता था कि ये सब रात भर उसपर रहम नहीं करेंगे..खास तौर से बिहारी...
राधिका- बिहारी मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूँ प्लीज़ मुझे कहीं से ज़हर लाकर दे दो. सच में अब मैं जीना नहीं चाहती ...
बिहारी- अरे मेरी जान सुना हैं कि तू बड़ी हिम्मत वाली लड़की हैं और आज इतनी जल्दी हिम्मत हार गयी. अभी तो पूरे 6 दिन बचे हैं यहाँ गुजारने के लिए .. अभी से तू ऐसे हिम्मत हारेगी तो कैसे काम चलेगा...राधिका कुछ नहीं कहती और बस अपनी नज़रें नीची कर लेती हैं वो अब समझ चुकी थी की इन दरिंदों के बीच उसकी फरियाद सुनने वाला आज कोई नहीं हैं. वो भी चुप चाप अपने आप को उन सब के आगे पूरा समर्पण कर देती हैं. फिर से राधिका का जिस्म उन तीनों बरी बारी नोचते हैं और एक के बाद ...एक एक कर उसकी चूत गान्ड की छुदाई करते हैं. फिर बाद में तीनों एक साथ एक ही समय पर राधिका की तीनों मिलकर चुदाई करते हैं. अब राधिका भी धीरे धीरे इन सब की आदि होती जा रही थी. उपर से ड्रग्स का नशा उसकी रही सही सोचने और समझने की शक्ति को ख़तम कर रही थी. इसी तरह फिर से राधिका के साथ वाइल्ड सेक्स होता हैं ...मगर अब राधिका किसी भी चीज़ का विरोध नहीं करती थी..
रात रात भर जग्गा ,विजय और बिहारी तीनों वियाग्रा की गोली खा खा कर राधिका की चूत और गान्ड की ठुकाइ करते और उसके साथ नन्गपन का खेल खेलते. राधिका के अंदर की अब शरम लगभग ख़तम हो चुकी थी. वक़्त बीतता जा रहा था और दिन गुज़रते जा रहे थे. इधेर राधिका की हालत दिन ब-दिन बुरी और बुरी होती जा रही थी. हर पल वो मर रही थी. ना जाने कितनी तकलीफ़ वो चुप चाप सहती मगर वो किसी से कुछ नहीं कहती. ज़हर का हर घुट वो बस अपने चाहने वालों के लिए हर पल पी रही थी.. हर शाम को राहुल का फोन आता और राधिका राहुल को इस बात का बिल्कुल एहसास नहीं होने देती कि वो आज किस हालत में हैं. बस चुप चाप दो चार बातें करके वो फोन रख देती.. कभी कभी निशा का भी फोन आता निशा भी कई दिनों से उसके घर नहीं आ पा रही थी. वजह थी उसकी मम्मी की कुछ दिनों से तबीयत खराब और दूसरी बात निशा का एग्ज़ॅम्स भी नज़दीक आने वाला था.