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Adultery Isi Ka Naam Zindagi
#36
Update 29



रात के करीब 9 बज रहे थे. कृष्णा और राधिका एक दूसरे की बाहों में बेख़बर सो रहे थे. राधिका के मन में हर बार की तरह राहुल के लिए आत्म-ग्लानि थी. वो तो खुद ऐसे मज़धार में फँसी हुई थी कि उसको कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे.

उधेर बिहारी के घर पर...................

बिहारी की तो वैसे भी फटी पड़ी थी राहुल की वजह से. और वो जान गया था कि अगर अब वो अपना हुकुम का इक्का नहीं खोला तो अब बहुत देर हो जाएगी और कल तक राहुल उसकी गर्दन मरोड़ चुका होगा. ये सोचकर वो अपनी अगली चाल चलता हैं..

बिहारी- बिरजू मुझे तुमसे एक बहुत ज़रूरी बात करनी थी. पर मुझे समझ में नही आ रहा कि मैं ये बात तुमसे कैसे कहूँ.??

बिरजू तो पहले बिहारी की बातें सोचने पर मज़बूर हो जाता हैं कि आख़िर बिहारी उससे कौन सी बात करना चाहता हैं पर वो अपने मालिक को निराश भी तो नहीं करना चाहता था. इसलिए वो इशारे में अपना सिर हां में हिला देता हैं.

बिरजू- कहिए मलिक. ऐसी कौन सी बात हैं जो आप इतना सोच रहे हैं??

बिहारी- क्या करें बिरजू बात ही कुछ ऐसी हैं. अगर नहीं कहा तो तेरे साथ ना-इंसाफी होगी और अगर कह दिया तो तू बुरा मान जाएगा.

बिरजू- आप तो मेरे मालिक हैं और मैं आपका वफ़ादार नौकर. मालिक की बातों का भला मैं कौन होता हूँ बुरा मानने वाला. आप बे-झीजक कहिए.

बिहारी कुछ देर सोचता हैं फिर कहना शुरू करता हैं- देख बिरजू बात बहुत ही गंभीर हैं. मैं नहीं चाहता कि तेरा परिवार बिखर जाए. मुझे तेरे बेटे कृष्णा की हरकतें कुछ ठीक नहीं लग रही.

बिरजू- क्या हुआ मलिक. कृष्णा ने कुछ कहा क्या आप से.

बिहारी- नहीं बिरजू हर बात कोई ज़रूरी थोड़ी ना हैं कि कहा ही जाए. तुझे पता भी हैं आज कल तेरे घर में क्या चल रहा हैं. तू तो दिन भर घर से गायब ही रहता हैं. और कृष्णा तेरी पीठ पीछे तेरी बेटी के साथ......................इतना बोलकर बिहारी खामोश हो जाता हैं.

बिरजू के चेहरे का रंग फीका पड़ जाता हैं- ऐसा क्या किया हैं कृष्णा ने मेरी बेटी के साथ. वो तो उसकी बहुत ख्याल रखता हैं. और आब तो कृष्णा राधिका को दिल-ओ-जान से चाहता हैं आख़िर वो उसकी एक-लौति बेहन जो हैं.

बिहारी- यही तो तू समझने की भूल कर रहा हैं. मैं ये नहीं कह रहा कि कृष्णा राधिका को दिल-ओ-जान से नहीं चाहता हैं मगर एक भाई बेहन के रूप में नहीं बल्कि अपनी प्रेमिका के रूप में.. अब तेरी बेटी हर रात कृष्णा का बिस्तेर गरम करती हैं और अब वो कृष्णा की रखैल बन चुकी हैं.

बिरजू- मालिक ज़ुबान संभाल का बात कीजिए. आप मालिक हैं इसका मतलब ये नहीं कि आप मेरी बेटी पर इतना गंदा इल्ज़ाम लगाएँगे. मैं ये कभी बर्दास्त नहीं करूँगा. बस आप चुप हो जाइए. मैं अब और अपनी बेटी के बारे में ये सब नहीं सुन सकता.

बिहारी- सच हमेशा कड़वा होता हैं बिरजू. मुझे पता था कि तुझे मेरी बातों का यकीन बिल्कुल नहीं होगा. पर मुझे क्या मिलेगा तुझसे झूट बोलकर. ये 100 आना सच हैं.

बिरजू- ऐसा कभी नहीं हो सकता. मेरी बेटी ऐसा घिनौना काम कभी नहीं कर सकती. और कृष्णा उसका भाई हैं भला वो कृष्णा के साथ ऐसा नीच काम कैसे कर सकती हैं. ये सरासर ग़लत हैं.

बिहारी- झूट बोलने का शौक मुझे भी नहीं है बिरजू. तुझे क्या लगता हैं कि मैं झूट बोल रहा हूँ. अगर तुझे मेरी बातों पर यकीन नहीं है तो जा इसी वक़्त अपने घर और जाकर अपनी आँखों से देख कि इस वक़्त कृष्णा तेरी भोली भाली बेटी की गान्ड मार रहा हैं कि नहीं. अगर मेरी बात झूट निकले तो बिहारी अपनी ज़ुबान कटवा देगा. ये बिहारी की ज़ुबान हैं.

बिरजू के चेहरे पूरा पीला पड़ गया था. वो ये बात आच्छे से जानता था कि बिहारी उससे ऐसा घिनोना मज़ाक कभी नहीं कर सकता. तो क्या ये सब सच हैं. क्या मेरी बेटी इस वक़्त कृष्णा के साथ ऐसा गंदा काम कर रही होगी................नहीं नहीं ये सच नहीं हो सकता. राधिका को मैं आच्छे से जानता हूँ. वो मर जाना पसंद करेगी मगर इतना गंदा काम कभी नहीं कर सकती.. बिरजू को ऐसे सोच में डूबा देखकर बिहारी मन ही मन बहुत खुस होता हैं..

बिहारी- देख बिरजू अब भी कुछ नहीं बिगाड़ा हैं. जा कर अपनी बेटी को समझा और अगर ये बात समाज़ में फैल गयी तो तू किसी को मूह दिखाने के लायक नहीं रहेगा. समझाना मेरा फ़र्ज़ था आगे तेरी मर्ज़ी.

बिरजू- ठीक हैं मालिक ईश्वार से मैं यही दुआ करूँगा कि आपकी बात सच ना हो. अगर ऐसा हुआ तो मैं आज के बाद आपके चौखट पर कभी अपना कदम नहीं रखूँगा. और अगर आपकी बात सच हुई तो मैं अपने इन्ही हाथों से अपनी बेटी का गला घोंट दूँगा.

बिहारी- तो फिर देर किस बात की हैं. इसी वक़्त घर जाकर देख ले कि तेरी बेटी कृष्णा की रातें रंगीन कर रही हैं कि नहीं. अगर मेरी बात ग़लत हुई तो तू बेशक़ मेरे चौखट पर अपने कदम मत रखना. और अगर मेरी बात सच हुई तो तू जो चाहे अपनी बेटी के साथ कर सकता हैं.

बिरजू वहाँ से थिरकते कदमों से वो अपने घर की तरफ़ निकल पड़ता हैं. बारिश आभी भी हल्की हल्की हो रही थी. आज बिरजू के माँ में हज़ार तरह के सवाल उठ रहे थे. उसे तो बिल्कुल याकीन नहीं हो रहा था कि उसकी अपनी बेटी अपने ही भाई से ऐसा गंदा काम भी कर सकती हैं. आख़िर राधिका की क्या मज़बूरी रही होगी क्या हवस में आदमी इतना नीचे भी गिर जाता हैं कि कौन उसका भाई हैं ये तक उसे दिखाई नहीं देता. ऐसे ही हज़ार तरह के सवाल इस वक़्त बिरजू के मन में उठ रहे थे.

बिरजू तो रास्ते भर ये मना रहा था कि ये सब बातें जो बिहारी ने उससे कही थी वो सब ग़लत हो. उसके कदम भारी होते जा रहे थे जैसे जैसे उसका घर नज़दीक आ रहा था. थोड़े देर के बाद वो अपने घर के दरवाज़े के पास खड़ा होता हैं. वो भी इस वक़्त पूरा भीग चुका था. वैसे तो कितने सालों के बाद वो आज रात में अपने घर आया था. रात को तो वो कभी भी घर नहीं आता था. इस वजह से कृष्णा और राधिका बिरजू की तरफ से पूरी तरह बेख़बर थे. उन्हें क्या मालूम था की इस वक़्त बिरजू अपने घर के चौखट पर खड़ा है. इस वक़्त कृष्णा और राधिका एक दूसरे की बाहों में नंगे सोए हुए थे..


तभी उनके घर पर दस्तक होती हैं. दरवाज़े की खट-खटाहट सुनकर राधिका और कृष्णा की आँखें खुल जाती हैं और दोनो चौक कर उठ बैठते हैं.

कृष्णा- इस वक़्त कौन आ गया रात के 10 बजे. ऐसा कर राधिका फटा फट अपने कपड़े पहन ले मैं जाकर दरवाजा खोलता हूँ और कृष्णा अपने बदन पर लूँगी और बनियान डालकर वो दरवाज़े की तरफ बढ़ता हैं. उसके मन में भी कई तरह के सवाल थे. आख़िर इतनी रात में कौन आ सकता हैं. बापू तो नहीं होंगे उसे पूरा विश्वास था क्यों कि वो कितने सालों से उसके बापू रात में घर नहीं आते थे.

कृष्णा अपने ही सोच में डूबा हुआ वो दरवाजे की तरफ पल पल बढ़ रहा था और उधेर राधिका के दिल में भी दर जनम ले चुका था. वो भी फटाफट अपने कपड़े पहनती हैं मगर उसके कपड़े तो पूरे गीले थे. वो झट से अलमारी में से अपने सूट और सलवार निकाल कर जल्दी से पहनने लगती हैं. आख़िर कार कृष्णा दरवाजे के पास पहुँच जाता हैं और अपने बढ़ते कदमों को वहीं रोककर अपना एक हाथ आगे बढ़कर दरवाज़ा खोलने लगता हैं. उधेर बिरजू के मन में भी इसी तरह के सवाल चल रहे थे.

अंत में कृष्णा दरवाज़ा खोल देता हैं और जैसे ही दरवाज़े खुलता हैं कृष्णा की नज़र जब बिरजू पर पड़ती हैं तो कृष्णा के होश उड़ जाते हैं. कृष्णा ने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि इस वक़्त उसका बाप दरवाज़े पर खड़ा होगा.

कृष्णा अभी भी हैरत से अपने बाप को देख रहा था. मानो एक पल के लिए तो उसके दिमाग़ का काम करना बंद हो गया हो.

कृष्णा- बापू.............त..अयू....तुम.

बिरजू- क्यों नहीं आ सकता क्या मैं इस वक़्त अपने घर पर. तू तो ऐसे देख रहा है जैसे मैं तेरा बाप नहीं कोई और हूँ.

कृष्णा- लेकिन....इतनी रात को........इस वक़्त..कैसे आना....हुआ. सब ......ठीक तो ...........हैं ना.

बिरजू- ये तेरी आवाज़ को क्या हुआ. तू इतना हकला क्यों रहा हैं. सब ठीक तो हैं ना. चल अंदर चलते हैं. और बिरजू अंदर आने के लिए अपने कदम बढ़ाता हैं और कृष्णा की मानो साँस अटक जाती हैं.

कृष्णा- नहीं..बापू.. मेरा मतलब......आप. थोड़ा सा......नहीं नहीं... नहीं बापू........आप ऐसे.....अंदर .....नहीं जा .सकते.

बिरजू- ये तू क्या अनाप-सनाप बके जा रहा हैं. तेरा दिमाग़ तो नहीं खराब हो गया ना. मुझे क्या मेरे ही घर में क्या तेरी इजाज़त लेनी पड़ेगी अंदर जाने की .और बिरजू झट से घर के अंदर आ जाता हैं.

बिरजू- राधिका कहाँ हैं इस वक़्त कृष्णा..कहीं दिखाई नहीं दे रही.

कृष्णा- होगी .....अपने कमरे में. ..शायद......सो रही होगी.

बिरजू फिर अपने कदम बढ़ाते हुए सीधा राधिका के कमरे में चला जाता हैं और राधिका इस वक़्त अपने कपड़े पहन चुकी थी. उसको भी बड़ा झटका लगता है अपने बापू को ऐसे अचानक घर आया देखकर.

बिरजू की नज़र जब राधिका पर पड़ती हैं तब बिरजू बड़े गौर से राधिका को सिर से लेकर पाँव तक घूर घूर कर देखने लगता हैं. तभी पीछे से कृष्णा भी वहाँ आ जाता हैं. इस वक़्त राधिका भी अपने कपड़े सही ढंग से नहीं पहन पाई थी. उपर से उसकी जुल्फें खुली हुई थी और बिस्तेर भी अस्त-व्यस्त था. बिरजू कमरे को बड़े गौर से एक एक चीज़ देखने लगता हैं. और कमरे का नज़ारा देखकर उसको समझ में आ जाता हैं कि अभी थोड़े देर पहले यहाँ पर क्या चल रहा था. फिर वो कमरे से बाहर निकल कर अपने घर के एक एक चीज़ को गौर से देखने लगता हैं फिर वो पीछे बरामदे में जाता हैं और जब राधिका और कृष्णा के कपड़े उसे वहाँ मिलते हैं तब उसका शक़ पूरे यकीन में बदल जाता हैं और वो उन कपड़ों को उठा कर राधिका और कृष्णा के बीच लाकर रख देता हैं.

जब कृष्णा और राधिका की नज़र अपने कपड़ों पर पड़ती हैं तो उन्दोनो के होश उड़ जाते हैं.

बिरजू- ये सब क्या हैं राधिका. तेरे कपड़े और कृष्णा के कपड़े बाहर कैसे पड़े हुए हैं.

राधिका- वो मैं शाम को आई थी तो बारिश में मैं पूरी भीग गयी थी तो मैने वो कपड़े ...............................राधिका आगे कुछ बोल पाती इसी पहले बिरजू राधिका की बात काट देता हैं.

बिरजू- और तू क्या कहना चाहता हैं क्या तू भी वही कहेगा जो राधिका अभी अभी कही हैं. कृष्णा कुछ नहीं बोलता और हां में अपनी गर्दन हिला देता हैं.

बिरजू- चलो मान लिया कि तुम दोनो भीग गये थे तो तुम्हारे कपड़े तो बाथरूम में होने चाहिए थे ना. तो वो बाहर बरामदे में क्या कर रहे थे.

राधिका- वो मैं .........बाथरूम में रखने ही वाली थी.................इसी पहले राधिका आगे अपना शब्द पूरा कर पति बिरजू का एक ज़ोरदार थप्पड़ उसके गाल पर पड़ता हैं. और राधिका के आँख से आँसू छलक पड़ते हैं.

बिरजू- झूट.................झूट बोल रही हैं तू राधिका. ................सरसार झूट. सच तो ये हैं कि तू कृष्णा के साथ बारिश में उसका साथ अपनी हवस शांत करवा रही थी.

कृष्णा- बापू..ये तुम...........क्या बोल रहे हो.....ये झूट हैं....

बिरजू का एक ज़ोरदार थप्पड़ अब कृष्णा के गाल पर पड़ता हैं और कृष्णा अपना सिर झुका कर नीचे देखने लगता हैं.

बिरजू-क्यों मैं सही बोल रहा हूँ ना. राधिका तू इतना नीचे गिर जाएगी मैं कभी सपने में भी नहीं सोचा था. तुझे और कोई नहीं मिला अपनी हवस शांत करवाने के लिए. मिला भी तो तेरा अपना ही भाई.

राधिका नज़रें नीचे झुकाए अभी भी बिरजू के सामने खड़ी थी.

बिरजू- मैं तुझसे कुछ पूछ रहा हूँ राधिका. मेरे सवालों का जवाब मुझे चाहिए. इसी वक़्त.

राधिका- हां बापू आप जो समझ रहे हैं वो बिल्कुल सच हैं. मैं हर रात अपने भैया के साथ सोती हूँ.

बिरजू का एक और करारा थप्पड़ राधिका के गाल पर पड़ता हैं और इस बार राधिका के होंठों से खून निकल जाता हैं.

बिरजू- समझ में नहीं आता कि मैं तुझे क्या कहूँ.....एक रखैल........... या इस हरामी को ......बेहन्चोद. जिसे और कोई नहीं मिली चोदने के लिए. मिली भी तो अपनी ही बेहन. तुमने तो भाई बेहन के रिश्ते के मायने ही बदल कर रख दिए. कितना भरोसा था मुझे तुझ पर. मैं तो यही सोचता था कि मेरी बेटी कभी भी कोई ग़लत काम नहीं करेगी. मगर तूने तो मेरे विश्वास की धज़ियाँ उड़ा डाली. शरम आती हैं मुझे तुम जैसे औलाद को अपना औलाद कहते हुए. इससे अच्छा तो मैं तेरे पैदा होते ही तेरा गला घोंट देता. कम से कम आज तो ये दिन मुझे नहीं देखना पड़ता.

राधिका आगे बढ़कर बिरजू के दोनो हाथों को अपनी गर्दन पर रख देती हैं- लो बापू घोंट दो मेरा गला. कम से कम आपको मुझसे तो छुटकारा मिल ही जाएगा. मैं तो वैसे भी जीना नहीं चाहती.

कृष्णा आगे बढ़कर अपने बापू का हाथ छुड़ाता हैं- बापू मुझे जितना मारना हैं मार लो. मैं एक शब्द कुछ नहीं कहूँगा. जो कहना हैं मुझे कह लो. राधिका बिल्कुल बे-कसूर हैं.

बिरजू- तुझे क्या कहूँ एक बेहन का आशिक़ ...........या बेहन्चोद. इतना समझ ले मैं तेरी तरह बेहन्चोद नहीं हूँ जो अपनी ही बेहन चोद्ता हो. और ना ही मुझे शौक हैं कि तेरी तरह अपनी बेटी को चोदु. और मैं तेरी तरह बेटी चोद नहीं बनना चाहता. मैं मर जाना पसंद करूँगा मगर ऐसा नीच काम कभी नहीं करूँगा.

राधिका- बस कीजिए बापू. अब मुझसे ये सब और नहीं सुना जाएगा.

बिरजू फिर आगे बढ़कर राधिका के गाल पर तीन चार थप्पड़ जड़ देता हैं फिर उसके बालों को कसकर अपनी मुट्ठी में पकड़ लेता हैं- क्यों भाई के साथ रातें रंगीन करने पर शरम नहीं आई और अब ये सब सुनने में शरम आ रही हैं. और फिर से तीन चार थप्पड़ राधिका के गाल पर जड़ देता हैं. राधिका के चेहरे पर बिरजू के हाथों के निशान सॉफ दिखाई दे रहे थे. उसका चेहरा पूरी तरह से लाल पड़ गया था. और होंठो से खून भी बह रहा था. तभी कृष्णा आगे बढ़कर राधिका को छुड़ाता हैं.

कृष्णा- बस करो बापू. आज मार डालोगे क्या राधिका को.

बिरजू- जी तो कर रहा हैं कि इसकी आज जान ले लूँ. और बिरजू आकर वहीं फर्श पर बैठ जाता हैं.

राधिका आगे बढ़कर अपने बापू के पास जाती हैं- रुक क्यों गये बापू. मेरे लिए ये सौभाग्य की बात होगी कि मेरी मौत आपके हाथों हो. हां मैं मानती हूँ कि मैने भाई बेहन के रिश्ते को कलंकित किया हैं. मैं इन सब की कसूरवार हूँ. इसमें मेरे भैया का कोई दोष नहीं. मैने ही इन्हें मज़बूर किया था ये सब करने के लिए. मैं ही बहक गयी थी. मगर इन सब के पीछे वजह थी. आप ने तो बड़ी आसानी से मुझे ना जाने क्या क्या कह दिया पर मैं आपसे पूछ सकती हूँ कि आज तक आपने मेरे लिए क्या किया. आज तक आपने कभी भी अपने बाप होने का कोई भी फ़र्ज़ निभाया. क्या हमारी ज़रूरतें होती हैं कभी आपने सोचने की कोशिश की.

सिर्फ़ औलाद पैदा कर देने से वो बाप या मा नहीं कहलाता. बाप या मा का ये भी फ़र्ज़ होता हैं कि वो अपने औलाद का पालन पोषण करें. उसकी हर ज़रूरतो को पूरा करें. उसकी हर सुख दुख में बराबर का हिस्सेदार बने. मगर आपने तो मुझे पैदा करके छोड़ दिया. क्या मैं पूछ सकती हूँ कि आज तक आपने मेरे लिए क्या किया हैं. आप सिर्फ़ बाप कहलाने के हक़दार हो बाप नहीं हो............

बिरजू अब लगभग शांत हो चुका था और वो राधिका की बातें बड़े ध्यान से सुन रहा था.

राधिका- अगर बचपन से लेकर अब तक आपने बाप होने का फ़र्ज़ निभाया होता तो आज ये सब नौबत नहीं आती. कृष्णा भैया भी आपकी ही राहों पर चल रहें थे. दिन रात शराब सिग्रेट और रंडी बाज़ी ये सब इनका रोज़ का काम था. अगर मैने इन्हें सुधारने के लिए अपने आप को इनके हवाले किया तो क्या ग़लत किया.

अगर आज ये सब कुछ छोड़ कर एक अच्छा इंसान बन रहे हैं तो मेरा भी फ़र्ज़ बनता हैं कि मैं इनकी खुशी के लिए इनका हर इच्छा पूरी करूँ चाहे वो इच्छा बीवी की क्यों ना हो. मैं तन मन से इनकी सेवा करूँ. क्या ये सब करके मैने ग़लत किया.

अगर बचपन में आपने मेरा दामन थाम लिया होता तो आज ये सब कभी नहीं होता. आज आपके अंदर भी ज़िमेदारी नाम की कोई चीज़ होती. अगर आपने इस घर की ज़िम्मेदारी नहीं उठाई और इस घर की पूरी ज़िम्मेदारी मैने अपने उपर ली तो क्या मैने ग़लत किया. मुझे जवाब दो क्या इन सब सवलों जवाब हैं आपके पास.

राधिका की ऐसी बातें सुनकर तो आज बिरजू की भी बोलती बंद हो गयी थी वो भी सोच में डूब जाता हैं और राधिका के एक एक शब्दों का जवाब ढूँढने की कोशिश करता हैं.

कमरे में तीनों एक दम खामोश थे. अंत में बिरजू अपनी चुप्पी तोड़ता हैं.

बिरजू- राधिका तूने जो कहा हैं हो सकता हैं कि वो सारी बातें सच हो. मगर तुमने जो तरीका अपनाया हैं वो बिल्कुल ग़लत हैं. तूने तो ये भी नहीं सोचा कि ये सब करने से हमारे समाज में हमारी क्या इज़्ज़त रह जाएगा जब ये बात दुनियावालों को पता चलेगी. सब लोग हमपर हसेन्गे.

राधिका- मैं जानती हूँ बापू कि मैने जो किया हैं वो ग़लत हैं लेकिन मुझे इसका कोई पछतावा नहीं हैं. मुझे अपने भैया की ज़िंदगी ज़्यादा प्यारी हैं. अगर दुनिया हँसती हैं तो हँसे मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता. समझ का काम ही हैं हमेशा उंगली उठना.

बिरजू- या तो तेरा दिमाग़ खराब हो गया हैं या तो तू हवस में बिल्कुल आँधी हो चुकी हैं जो इतना भी नहीं समझती कि हम इसी समाज़ के ही इंसान हैं. अरे पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर. ये तो वही बात हो गयी ना.

राधिका- मुझे माफ़ कर दीजिए बापू मैं इस सिस्टम को अकेले नहीं बदल सकती. मैं इस समाज़ के चक्कर में अपने भैया की ज़िंदगी बर्बाद होता हुआ नहीं देख सकती. और राधिका उठ कर बाथरूम में चली जाती हैं. फिर कृष्णा आकर वही सोफे पर सो जाता हैं और बिरजू भी आकर कृष्णा के बिस्तेर पर सो जाता हैं. बिरजू जैसे ही वो बिस्तेर पर आकर लेट ता हैं उसके मन में राधिका की कही हुई सारी बातें घूमने लगती हैं. मगर बहुत सोचने के बाद भी वो कोई फ़ैसला नहीं ले पता हैं.

राधिका भी आकर बिस्तेर पर सो जाती हैं मगर उसकी आँखों में नींद कहाँ थी. वो भी बहुत डर तक इन्ही सब बातो में खोई हुई थी. आख़िर बिहारी को कैसे पता चला कि मेरे और भैया के बीच जिस्मानी संबंध हैं. मेरे भैया के रिश्ते के बारे में तो बस निशा ही जानती थी. और निशा तो बिहारी को जानती भी नहीं फिर ये बात बिहारी को कैसे पता लगी. इतना तो मैं यकीन से कह सकती हूँ कि भैया भी कभी इस बात की जीकर उससे क्या किसी से नहीं करेंगे. फिर उसे कैसे ये बात मालूम हैं. बहुत देर तक वो इन सब सवालों के जवाब ढूँढने की कोशिश करती हैं मगर उसे कुछ समझ नहीं आता.

फिर वो ऐसे ही ना जाने कितनी देर तक ये सब सोचती है और कब उसकी आँख लग जाती हैं उसे पता भी नहीं चलता. राधिका इन सब से बेख़बर थी उसे क्या मालूम था कि ये तो बस तूफान की शुरूवात हैं. जो तूफान अब उसकी ज़िंदगी में आने वाला था वो उसकी ज़िंदगी को पूरी तरह से बदलने के लिए काफ़ी था. शायद भगवान भी उसका इम्तिहान ले रहा था. क्या था वो तूफान ये तो जल्दी ही पता चलने वाला था..

.......................................

सुबेह जब राधिका की आँख खुलती हैं तो बिरजू उसके पास बैठा मिलता हैं. वो उसे बड़े प्यार से देख रहा था. राधिका की जब आँख खुलती हैं तो वो चौंक कर अपने बाप को देखने लगती हैं.

राधिका- बापू आप इस वक़्त यहाँ क्या कर रहे हैं.

बिरजू- मुझे माफ़ कर दे बेटा मैने ना जाने तुझे क्या क्या कहा और तुझपर अपना हाथ उठाया. सच में तू अब बहुत बड़ी हो गयी है. तेरा दिल बहुत बड़ा हैं. आज के बाद इस घर की ज़िम्मेदारी तू नहीं बल्कि अब मैं इस घर को संभालूँगा. मेरी वजह से तूने बहुत दुख झेले हैं और आज के बाद मैं तुझे कोई तकलीफ़ नहीं दूँगा. और आज के बाद मैं उस बिहारी के पास भी नहीं जाउन्गा. बेटा हो सके तो तू मुझे माफ़ कर दे. वैसे तो मैं माफी के लायक नहीं हूँ अगर तू मुझे जो सज़ा देना चाहे दे सकती हैं. मैं खुशी खुशी तेरी हर सज़ा क़ुबूल कर लूँगा. और मेरी वजह से ही तो तेरा हँसता खेलता बचपन उजड़ गया. तेरी मा के मौत का भी मैं ही ज़िम्मेदार हूँ . जानता हूँ की मेरी ग़लती अब माफी के लायक नहीं हैं पर तू जो चाहे मुझे सज़ा दे सकती हैं. बिरजू राधिका के सामने अपने दोनो हाथ जोड़ते हुए बोला.

राधिका के आँखों से आँसू निकल पड़ते हैं खुशी के मारे- ये आप कैसी बातें कर रहे हैं बापू. जाने दीजिए जो हुआ वो मेरे बीता हुआ कल था. मैं उसे याद करना नहीं चाहती. मुझे अब आपसे कोई शिकवा गीला नहीं हैं. बस आप अब सिग्रेट शराब पीना छोड़ दीजिए. और अब एक अच्छे इंसान बन जाइए मुझे अब और कुछ नहीं चाहिए. बिरजू इतना सुनकर झट से राधिका को अपने सीने से लगा लेता हैं. ऐसे ही ना जाने कितनी देर तक दोनो बाप बेटी एक दूसरे के गले लगे रहते हैं. आज ज़िंदगी में पहली बार राधिका आपने बाप के गले मिली थी. आज राधिका बेहद खुश थी मगर इस खुशी को जल्दी ही ग्रहण लगने वाला था..

थोड़ी देर के बाद कृष्णा भी उठता हैं और जाकर अपने बाप के पास चुप चाप खड़ा हो जाता हैं.

कृष्णा- मुझे माफ़ कर दो बापू आगे से ऐसा नहीं होगा.

बिरजू- मैने तुझे कब का माफ़ कर दिया हैं.

तभी घर का बेल बजता हैं. कृष्णा चौन्कर दरवाज़े की तरफ देखने लगता हैं फिर वो जाकर दरवाज़ा खोलता हैं. जब दरवाज़ा खुलता हैं तो सामने जिस शक्श पर कृष्णा की नज़र पड़ती हैं उसे देखकर उसके पाँव तले ज़मीन खिसक जाती हैं. सामने बिहारी था और उसके साथ उसके दो चमचे भी थे. वो हैरत से बिहारी की ओर देखने लगता हैं.

बिहारी झट से अंदर आता हैं और आकर वही सोफे पर बैठ जाता हैं. तभी बिरजू और राधिका भी आ जाते हैं और बिहारी को ऐसे बैठा देखकर लगभग दोनो चौंक जाते हैं.

राधिका- अब क्या लेने आए हो बिहारी. चले जाओ यहाँ से. आज के बाद यहाँ तुम्हारा कोई काम नहीं.

बिहारी पहले तो राधिका को सिर से लेकर पाँव तक घूर कर देखता हैं फिर बोलता हैं- चला जाउन्गा इतनी भी क्या जल्दी हैं. घर आए मेहमान से क्या कोई इस तरह से पेश आता हैं . और मेहमान को तो भगवान का दर्ज़ा दिया जाता हैं.

राधिका- तू भगवान नहीं इंसान की खाल में छुपा शैतान हैं. हमे तुमसे कोई रिस्ता नहीं रखना हैं और अब कोई ज़रूरत नहीं हैं कि तुम यहाँ पर आओं. अच्छा होगा कि तुम यहाँ से चले जाओं.

तभी बिरजू बीच में बोल पड़ता हैं.

बिरजू- मालिक मैं आपके आगे हाथ जोड़ता हूँ आप यहाँ से चले जाइए. अब मैं आपके यहाँ काम नहीं करूँगा.

बिहारी- मुझे हैरत हो रही है कि तू ये बात बोल रहा हैं. बरसों से मेरी गुलामी किया और आज इस लड़की ने तुझे क्या पाठ पढ़ा दिया कि तूने भी कृष्णा की तरह आज मुझसे मूह फेर लिया खैर कोई बात नहीं आज कल वफ़ादार नौकर इतनी आसानी से कहाँ मिलते हैं और वो भी तेरे जैसा. कोई बात नहीं मैं तुझे निराश नहीं करूँगा. भाई ज़िंदगी तेरी हैं तू जैसे चाहे जी .........जा आज के बाद बिहारी तुझे आज़ाद करता हैं. मगर एक बात मुझे तेरी बेटी से कहनी हैं अगर तू इसकी इज़ाज़ात दे तो मैं कहूँ..

बिरजू- मालिक ये आप कैसी बातें कर रहें हैं भला मैं कौन होता हूँ आप को इज़ाज़ात देने वाला. आप बेशक़ राधिका से जो पूछना हैं पूछ सकते हैं.

बिहारी के चेहरे पर कुटिल मुस्कान तैर जाती हैं - राधिका सोच क्या तुझे एक बहुत बड़ा सच बता दूँ जिसको सुनकर तुझे झटका तो लगेगा मगर तुझे नहीं बताया तो मेरे दिल को चैन नहीं मिलेगा. फिर बिहारी अपनी जेब में से एक फोटो निकाल कर राधिका को थमा देता हैं और जब राधिका वो फोटो देखती हैं तो वो हैरत से उस फोटो को देखने लगती हैं..फिर वो सवालियों नज़र से बिहारी की ओर देखने लगती हैं.
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Messages In This Thread
Isi Ka Naam Zindagi - by thepirate18 - 19-09-2019, 08:59 PM
RE: वक़्त के हाथों मजबूर - by thepirate18 - 20-09-2019, 11:39 AM
RE: Isi Ka Naam Zindagi - by thepirate18 - 17-02-2020, 09:45 AM
RE: Isi Ka Naam Zindagi - by Abr Roy - 26-07-2021, 04:42 PM
RE: Isi Ka Naam Zindagi - by koolme98 - 21-09-2022, 06:28 PM



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