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Adultery Isi Ka Naam Zindagi
#29
Update 22




राधिका के इस जवाब से लगभग निशा और राहुल भी हैरान थे.अब राहुल को ठीक नहीं लगता और वो ये बात को वही ख़तम कर देता हैं.

राहुल कुछ देर तक इधेर उधेर की बातें करता हैं फिर वो तीनों वापस लौट आते हैं. आज निशा भी कुछ खामोश लग रही थी. वो भी ज़्यादा उन्दोनो की मॅटर में इंटरफेर नहीं कर रही थी.

तभी राहुल राधिका का हाथ पकड़ लेता हैं और तुरंत उसे अपने सीने से चिपका लेता हैं और राधिका कुछ समझती उससे पहले राहुल राधिका के लब को चूम लेता हैं. ये नज़ारा देखकर निशा के तो होश ही उड़ जाते हैं और उसके सब्र का बाँध टूट जाता हैं और वो तुरंत वहाँ से जाने के लिए बोलती हैं. आज उसका दिल फिर से रोने को कर रहा था. वो कैसे भी करके आपने आँसू थामे हुए थी.

जैसे ही निशा वहाँ से निकलती हैं राधिका उसकी आँखों की नमी को पढ़ लेती हैं. वो जानती थी कि राहुल की इस हरकत से निशा के दिल पर क्या बीती होगी. और निशा की आँखों से तुरंत आँसू का सैलाब उमड़ पड़ता हैं...

थोड़ी देर के बाद वो भी राहुल से विदा लेती हैं और अपने घर ना जाकर वो सीधा निशा के घर जाने का फ़ैसला करती हैं. फिर वो एक ऑटो पकड़ कर निशा के घर की तरफ चल देती हैं. थोड़ी देर में वो निशा के घर पहुँच जाती हैं. राधिका फिर डोर बेल बजाती हैं और उसकी मम्मी सीता दरवाज़ा खोलती हैं.

सीता- आओ बेटा कैसे आना हुआ.

राधिका- आंटी जी निशा कहाँ पर हैं.

सीता- वो तो आभी घर नहीं आई. बोल कर गयी तो थी कि कॉलेज जा रही हूँ पर .............कोई बात हैं क्या.

राधिका- नहीं आंटी ऐसी कोई बात नहीं हैं. अभी मैने उससे बात की थी तो कह रही थी की मैं घर पर हूँ. इसलिए. पूछा.

सीता- एक काम करो बेटा तुम उसी के कमरे में जाकर बैठो. हो सकता हैं अभी दस मिनिट में वो आ जाए...

यहीं तो राधिका भी चाहती थी कि वो उसके कमरे में जाए. और वो भी तुरंत सीढ़ियों के रास्ते निशा के कमरे में चली जाती हैं.

जैसे ही वो वहाँ पर बैठती हैं उसकी आँखें सर्च एंजिन की तरह कमरे के हर कोने में कुछ तलाशने लगती हैं. और कुछ देर के बाद उसे वो चीज़ मिल जाती हैं जिसके लिए वो यहाँ पर आई थी.वहीं बेड के पास एक ड्रॉयर में लाल डायरी रखी हुई थी. वो उसे तुरंत उठा लेती हैं और उसके पन्ने पलटने लगती हैं. तभी सीता भी रूम में आ जाती हैं इसी पहले कि सीता की नज़र उस डायरी पर पड़ती वो उसे झट से अपने बॅग में रख लेती हैं.

सीता- लो बेटी चाइ पी लो. ये लड़की भी ना कुछ समझ नही आता इसका. पता नहीं कब मेच्यूर होगी.

तभी एक कबाड़ी वाला वहाँ से गुज़रता हैं और सीता दौड़ कर उसे आवाज़ देती हैं.

सीता- आरे भैया रूको घर पर बहुत सारे पुराने कापी किताबें रखी हैं ज़रा इसको लेते जाओ.

फिर सीता वो सारी पुरानी किताबें वहीं कबाड़ी वाले को दे देती हैं.

सीता- चलो घर का कचरा तो सॉफ हुआ. पता नहीं कितने महीनों से पड़ा हुआ था.

राधिका- अब मुझे चलना चाहिए आंटी. मैं बाद में आकर निशा से मिल लूँगी.

राधिका भी तुरंत अपने घर की ओर निकल पड़ती हैं. वो उस डायरी को जल्दी से जल्दी पढ़ना चाहती थी.और जानना चाहती थी क्या हैं निशा के दिल का राज़..

जैसे ही राधिका घर पहुँचती हैं उसकी धड़कनें वैसे वैसे बढ़ने लगती हैं. वो तुरंत घर का लॉक खोलती हैं और झट से अपने बेडरूम में आकर वो डायरी को अपने बॅग से बाहर निकालती है. फिर वही बेड पर लेटकर वो डायरी को पढ़ना शुरू करती हैं.

जैसे ही राधिका डायरी खोलती हैं डायरी के पहले पन्ने पर ही एक तारीख लिखी हुई थी 19-सेप-2008. ये वो तारीख थी जिस दिन राधिका और निशा का जग्गा नाम के गुंडे से बहस हुई थी और राधिका ने उस जग्गा का पूरा बॅंड बजाया था. मगर इसी दिन तो राहुल से भी उन्दोनो की पहली मुलाकात हुई थी. राधिका अपने दिमाग़ पर ज़्यादा ज़ोर डालते हुए इस तारीख के बारे में सोचने लगती है. थोड़े देर के बाद उसे भी कुछ धुन्दलि सी तस्वीर उसके आँखों के सामने याद आने लगती हैं.

फिर वो डायरी का दूसरा पन्ना पलट ती हैं और जो बात निशा ने राहुल के बारे में उससे मज़ाक में की थी कि ""पहली नज़र का प्यार"" वो सारी बातें उसकी सारी फीलिंग सब कुछ इसमें लिखा हुआ था. वो राहुल के बारे में क्या सोचती हैं उसकी पसंद ना पसंद सब कुछ. जैसे जैसे राधिका डायरी के एक एक पन्ने खोलती जाती हैं उसकी आँखों से आँसू फुट पड़ते हैं. करीब एक घंटे तक वो उस डायरी को पढ़ती हैं और लगातार उसकी आँखों नम ही रहती हैं. डायरी पढ़ लेने के बाद वो समझ जाती हैं कि निशा राहुल से किस कदर मुहब्बत करती हैं.


डायरी के आखरी पन्नो पर जब उसकी नज़र पड़ती हैं तो उसके होश उड़ जाते हैं. निशा ने लाल अक्षरों से सॉफ सॉफ लिखा था कि अगर राहुल मेरा नहीं हो सका तो मैं अपने आप को हमेशा हमेशा के लिए मिटा दूँगी.

राधिका जब पूरा डायरी पढ़ लेती हैं तो उसका शक़ पूरा यकीन में बदल जाता हैं कि निशा का प्यार और कोई नहीं बल्कि राहुल ही हैं. और उसे ऐसा लगने लगता हैं कि वो शायद निशा और राहुल के बीच में आ गयी हैं. आज राधिका की भी आँखें नम थी. आब उसके सामने केवल दो ही रास्ते बचे थे या तो दोस्ती के लिए अपने प्यार को कुर्बान कर देना या फिर प्यार के लिए दोस्ती को. अब यहाँ पर फ़ैसला राधिका को लेना था कि वो कौन सा ऑप्षन चूज़ करती हैं.. दोस्ती...................या प्यार.

काफ़ी देर तक वो ऐसे ही गुम्सुम बैठी रहती हैं. आज वक़्त ने उसके सामने ऐसी परिस्थिती खड़ा कर दी थी कि वो चाह कर भी कोई फ़ैसला नहीं ले पा रही थी. बस वो एक टक राहुल के बारे में सोचने लगती हैं और उसकी आँखें फिर से नम हो जाती हैं...............

.........................................................

उधेर निशा भी राधिका के जाने के करीब 1/2 घंटे बाद घर आती हैं. और आज भी उसका मूड बहुत डिस्टर्ब था. वो कुछ बोलती नहीं बस चुप चाप सीधे अपने कमरे में आकर बिस्तेर पर लेट जाती हैं. थोड़े देर में सीता भी उसके रूम में आती हैं.

सीता- आ गयी तू. अभी तुझसे राधिका मिलने आई थी. थोड़ा देर इंतेज़ार किया फिर वो अपने घर निकल गयी.

निशा- क्या??? लेकिन ऐसा आचनक बिन बताए. कोई बात थी क्या ???

सीता- नहीं ज़्यादा कुछ कहा नहीं बस चाइ पी और इधेर उधेर की दो चार बातें की और बस......

निशा- ठीक हैं मा. मैं राधिका से बाद में बात कर लूँगी.

सीता फिर अपने कमरे में आ जाती हैं और घर के काम में जुट जाती हैं. और उधेर निशा जाकर अपनी डायरी ड्रॉयर से निकालती हैं मगर उसे अपनी डायरी कहीं नज़र नहीं आती. जब वो पूरा घर छान मारती हैं तो वो परेशान होकर अपनी मा को आवाज़ देती हैं..

निशा- मम्मी क्या आपने मेरे ड्रॉयर में मैने एक लाल कलर की डायरी रखी थी.क्या आपने वो डायरी देखी हैं???

सीता- पता नहीं . हां याद आया आज कबाड़ी वाला आया था तो मैने घर में रखा सारा पुराना कापी किताब सब बेच दिया. हो सकता हैं वो डायरी भी वो कबाड़ी वाला ले गया हो.

निशा अपने सिर पर हाथ रखते हुए- हे भगवान कम से कम आपको मुझसे एक बार पूछ तो लेना चाहिए था ना. आप जानती नहीं हैं वो डायरी मेरे लिए कितनी इंपॉर्टेंट थी.

सीता- पर तू भी अपनी सारे किताबें इधेर उधेर हमेशा फेंक कर रखती हैं तो मुझे क्या मालूम कि कौन से किताब तेरे लिए ज़रूरी हैं और कौन नहीं. और सीता फिर अपने कमरे में चली जाती हैं.

निशा भी उस डायरी के खो जाने से काफ़ी परेशान रहती हैं. मगर उसे मालूम था कि वो डायरी उसे अब कभी नहीं मिलेगी. गुस्सा तो उसे अपनी मम्मी पर बहुत आता हैं मगर वो कुछ कहती नहीं और जाकर बिस्तर पर चुप चाप लेट जाती हैं.

जिस तरह निशा को डायरी लिखने का शौक था उसी तरह राधिका की भी हॉबी थी. और ये प्रेणना उसे राधिका से ही मिली थी. तब से वो भी अपनी पर्सनल मॅटर डायरी में ही लिखती थी.

............................................................

इधेर मोनिका ने भी अपनी डील की शुरूवात की पहली पहल शुरू कर दी थी. वो तो बस यही चाहती ही कि वो कैसे भी विजय और बिहारी के चंगुल से बाहर निकले चाहे इसके बदले राधिका की ही बलि क्यों ना देनी पड़े. और वो ये बात भी अच्छे से जानती थी कि अगर एक बार राधिका उनके चंगुल में फँस गयी तो उसकी ज़िंदगी पूरी तरह तबाह हो जाएगी. मगर स्वार्थ आदमी को कितना अँधा बना देता हैं. आज मोनिका अपने फ़ायदे के लिए राधिका को भी बर्बाद करने से पीछे नही हटने वाली थी.

थोड़ी देर के बाद राधिका के मोबाइल पर एक कॉल आता हैं. नंबर अननोन था.

राधिका- हेलो!!! कौन???

फोन मोनिका ने ही किया था.

मोनिका- क्या आप राधिका बोल रहीं हैं.

राधिका- हां कहिए क्या बात हैं. और आप कौन.???

मोनिका- कौन हूँ मैं ये बताने के लिए मैने फोन नहीं किया हैं. मैं जानती हूँ कि तुम इस वक़्त अपने घर पर बिल्कुल अकेली हो.

राधिका- देखिए आप बोल कौन रहीं हैं और आपको ये सब कैसे पता.

मोनिका- मेरी बात ध्यान से सुनो. तुम्हारे भाई का नाम कृष्णा हैं ना. और वो तुमसे यही बता कर घर से गया होगा कि वो आज काम पर जा रहा हैं. वो कोई काम पर नहीं गया हैं. मैने यही अभी थोड़े देर पहले उसे एक वेश्या के साथ देखा हैं.

राधिका- ज़ोर से चिल्लाते हुए- आप बोल कौन रहीं हैं और आपकी हिम्मत कैसे हुई मेरे भैया के बारे में ऐसे गंदी बातें बोलने की.

मोनिका- चिल्लाने से सच नहीं बदल जाएगा. अगर तुम्हें यकीन नही होता मेरी बात का तो मैं तुम्हें एक अड्रेस देती हूँ. तुम तुरंत वहाँ पर पहुँच जाओ और जाकर खुद ही अपनी आँखों से देख लो. अगर मेरी बात झूट निकले तो जो सज़ा दोगि मुझे मंज़ूर होगा. फिर मोनिका उसे एक अड्रेस देती हैं.

मोनिका- ज़्यादा दिमाग़ पर ज़ोर मत डालो कि मैं कौन हूँ और ये सब बातें तुम्हें क्यों बता रही हूँ बस जहाँ का अड्रेस दिया हैं वहाँ पर तुरंत पहुँच जाओ और अपने भैया के करेक्टर को अपनी आँखों से आकर देखो.और हां जो भी हूँ तुम्हारी शुभ चिंतक ही हूँ. और इतना बोलकर मोनिका फोन रख देती हैं.

राधिका की परेशानी दिन ब दिन बढ़ती जा रही थी. उसे तो लगा था कि अब उसके भैया रंडी बाज़ी छोड़ चुके होंगे.और वो पूरी तरह से उसके लिए बदल गये होंगे. यह सब सोचकर वो तुरंत तैयार होती हैं और मोनिका के बताए जगह पर निकल पड़ती हैं. जिस एरिया में वो जाती हैं वो एक बहुत ही गंदी बस्ती थी. वहाँ पर एक भी पक्का मकान नही था. सब घरों के उपर छज्जे लगे हुए थे. और सभी घर टूटे फुट थे. जैसे जैसे उसके कदम आगे बढ़ रहें थे उसकी दिल की धड़कने भी वैसे वैसे तेज़ होती जा रही थी. वो तो यही भगवान से मना रही थी की ये बात झूट हो. पर कोई उससे क्यों इस तरह से मज़ाक करेगा.

वहाँ पर जितने भी लोग थे सब के सब राधिका को खा जाने वाली नजरो से देख रहे थे. लेकिन वो ये सब परवाह ना करते हुए आगे बढ़ती हैं और थोड़ी दूर के बाद उसे वो घर मिल जाता है जहाँ का उसके पास अड्रेस था. वो बहुत असमंजस में फँसी रहती हैं. हर तरफ गंदगी और नंगे बच्चे इधेर उधेर खेलते रहते हैं. चारों तरफ बदबू ही बदबू. उसे बहुत बुरा लगता हैं और वो जाकर उस घर के दरवाज़े के सामने खड़ी हो जाती हैं.

फिर एक हाथ आगे बढ़ाकर वो दरवाजा खटखटाती हैं और कुछ देर के बाद दरवाज़ा खुलता हैं और सामने जिस इंसान की शकल उसे दिखाई देता है उसे ऐसा लगता हैं कि उसके शरीर का पूरा खून किसी ने निकाल लिया हो और वो बुत बनकर एक टक उस शक्श को देखने लगती हैं.

सामने जो शक्श खड़ा था वो और कोई नहीं बल्कि कृष्णा था. और उस वक़्त उसके शरीर पर मात्र एक लूँगी थी. जैसे ही कृष्णा की नज़र राधिका पर पड़ती हैं कृष्णा की तो पाँव तले ज़मीन खिसक जाती हैं. वो कभी सपने में भी अपनी बेहन को यहाँ पर होने की उम्मीद नही किया था. वो भी बस ऐसे ही खामोश होकर राधिका को हैरत से देखने लगता हैं.

राधिका- तो यहाँ पर ये काम आप कर रहें हैं. ठीक कह रही हूँ ना मैं.....

तभी अंदर से एक औरत की आवाज़ आती हैं..... कौन है ???

राधिका भी झट से अंदर आ जाती हैं. सामने एक औरत पूरी तरह से नंगी हालत में बिस्तेर पर पड़ी हुई थी. जैसे ही उस औरत की नज़र राधिका पर पड़ती हैं वो तुरंत वहाँ रखा कंबल ओढ़ लेती हैं. कृशा भी राधिका के पीछे पीछे आ जाता हैं.

राधिका- शरम आती हैं भैया मुझे आप पर. मैने आप पर कितना भरोसा किया था और आपने मेरे भरोसे का ये सिला दिया.

कृष्णा- मुझे माफ़ कर दे राधिका. मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गयी.

राधिका- बस.........अब बंद करो भैया ये सब ढोंगबाज़ी. सच तो ये हैं कि आप कभी सुधर ही नहीं सकते. मैने ही आपको पहचानने में भूल की थी. आज फिर अपने ये साबित कर दिया कि मैं......................

राधिका इससे आगे कुछ बोल पाती तभी वो औरत तुरंत बीच में बोल पड़ती हैं- वाह वाह क्या तेवर हैं इसके. साली जितनी मस्त हैं उतनी तेज़ इसकी ज़ुबान भी चलती हैं.अगर ये हमारे धंधे में आ जाए तो साला अपनी तो लॉटरी खुल जाए. इसको देखकर ही मूह माँगी रकम मिलेगी.

कृष्णा इतना सुनते ही आग बाबूला हो जाता हैं और जाकर उस औरत को एक थप्पड़ कस कर उसके गाल पर जड़ देता हैं.

राधिका- बस करो भैया. क्या यही सब अब बच गया था मुझे देखने और सुनने को. ये सब देखने से तो अच्छा था कि मैं मर गयी होती. और इतना कहकर राधिका की आँखों से आँसू निकल पड़ते हैं.

कृष्णा कुछ कह नही पाता और चुप चाप अपना सिर नीचे झुकाए खड़ा रहता हैं.

राधिका आगे कुछ नहीं कहती और चुप चाप वो भी वहाँ से बाहर निकलकर अपने घर की तरफ चल पड़ती हैं. आज उसके भैया की वजह से एक रंडी ने उसे ऐसे शब्द बोल दिए थे जिसकी वजह से उसका दिल आज पूरी तरह से टूट गया था. रास्ते भर वो यही सोच रही थी कि कौन हो सकती हैं वो जिसने मुझे फोन करके ये खबर दी थी. आख़िर क्या साबित करना चाहती हैं. पता नहीं वो एक दोस्त के नाते ये सब कर रही हैं या मुझसे कोई दुश्मनी निकाल रही हैं.

आज राधिका पूरी तरह से डिस्टर्ब थी. जैसे तैसे वो घर पहुँचती हैं और आकर धम्म से बिस्तेर पर गिर पड़ती हैं. और ना जाने कितने देर तक उसके आँखों से आँसू बहते रहते हैं.

इधेर कृष्णा भी जल्दी से अपने कपड़े पहनकर बाहर आज जाता हैं. वो आज किसी भी कीमत पर राधिका को अकेला नहीं छोड़ना चाहता था. उसे पता था कि आज उसकी वजह से राधिका को कितना बड़ा धक्का लगा हैं. आज उसका अपने भैया के प्रति जो विश्वास था वो आज पूरी तरह टूट कर बिखेर गया था. जो वो अब अपने भाई पर करने लगी थी. लेकिन कृष्णा के मन में ये बात बार बार परेशान कर रही थी कि आख़िर राधिका को ये सब बातें कैसे पता चली. किसने बताया उसे यहाँ का पता. मगर आज उसके अंदर थोड़ी भी हिम्मत नहीं बची थी कि वो राधिका से इस बारे में कोई सवाल जवाब करें.

ग़लती तो यहाँ पर कृष्णा की भी नहीं थी. आज सुबह राधिका ने उसके साथ जो हरकत की थी उससे उसका खून पहले से ही गरम हो गया था. आज बार बार राधिका के बूब्स उसकी नजरो के सामने घूम रहे थे.जब उसने आज पहली बार राधिका के बूब्स को अपने इन कठोर हाथों में महसूस किया था वो एहसास उसके दिमाग़ से नहीं निकल पा रहा था. वो तो हमेशा से ही राधिका के नाम की मूठ मारा करता था. मगर आज उसे ऐसा मौका भी नहीं मिला था कि वो आज फारिग हो पाता. इसलिए उसका आज काम में मन नहीं लग रहा था. इस वजह से वो आज सीधा एक रंडी के पास चला गया था अपनी प्यास को बुझाने मगर वहाँ भी निराशा ही उसके हाथ लगी.

इधेर राधिका का भी आत्म सम्मान और विश्वास पूरा टूट चुका था. वो बहुत देर तक ऐसे ही बिस्तेर पर रोती रहती हैं फिर अचानक से उठकर वो अपने भैया के कमरे में जाती हैं और जाकर उनके रूम की अलमारी खोलती हैं. और अलमारी में कुछ ढूँडने लगती हैं. और थोड़ी देर के बाद उसे वो चीज़ मिल जाती हैं.

करीब शाम को 6 बजे कृष्णा घर आता हैं. आज वो ये सोच कर आया था कि चाहे राधिका उसको कुछ भी बुरा भला कहे वो एक शब्द कुछ भी नहीं कहेगा. और उसकी मन की पूरी भडास निकाल लेने देगा. आख़िर सारी ग़लती उसकी की तो थी. जैसे ही वो अपने मेन डोर के पास पहुँचता हैं दरवाजा पहले से ही सटा हुआ था. वो भी चुप चाप दरवाजा बंद करके अंदर आ जाता हैं.

अंदर आकर जब उसकी नज़र राधिका पर पड़ती हैं तो कृष्णा लगभग चीखता हुआ राधिका के पास दौड़ कर आता हैं. जिस अवस्था में राधिका बिस्तेर पर सोई हुई थी वो उस वक़्त वो शराब के नशे में थी. आज ज़िंदगी में पहली बार राधिका ने शारब को हाथ लगाया था.

कहते हैं ना इंसान को अगर गम भूलना हो तो उसे शराब का सहारा लेना पड़ता हैं. और राधिका ने भी आज अपना गम भूलने के लिए आज शराब का शहरा लिया था. वो आज बेसूध होकर बिस्तेर पर पड़ी हुई थी. और साथ में उसके हाथ में एक विल्स सिगरेट का पॅकेट भी था.राधिका ने आज 2 पेग विस्की और साथ में 2 सिगरेटेस भी पी थी. ये सब देखकर तो कृष्णा के होश उड़ जाते हैं.

वो राधिका के एक दम करीब आता हैं और राधिका के गाल पर अपने हाथ रखकर उसे हिलाता हैं. थोड़ी देर के बाद राधिका अपनी आँखें खोलती हैं.

राधिका की ज़ुबान लड़खाड़े हुए निकलती हैं.

राधिका- भैया... आप ..आ गये .

कृष्णा- राधिका तूने शराब पी हैं.

राधिका- क्यों भैया...... नहीं.. पी सकती क्या..आख़िर क्या बुराई..... हैं... सब लोग ...तो पीते हैं...फिर.

कृष्णा- मुझे विश्वास नहीं होता राधिका कि तू ये सब..............

राधिका- किश विश्वास की बात कर रहे हो भैया.... वो विश्वास जो मैने आप पर अपने आप से ज़्यादा किया था..... वो विश्वास जो अबी अबी आप कुछ देर पहले उसकी धज़ियाँ उड़ा चुके हैं.

कृष्णा- तुझे जो कहना हैं कह ले. जो सज़ा मुझे देनी हैं दे दे. मुझे सब मंज़ूर हैं मगर तू अपने आप को इसकी सज़ा क्यों दे रही हैं. क्यों तू अपने आप को बर्बाद करने पर तुली हुई हैं.

राधिका- सब कुछ ख़तम हो गया भैया. सब कुछ..

कृष्णा- नहीं राधिका ऐसा मत बोल मैं तेरा गुनेहगार हूँ. तुझे जो भी सज़ा देनी हैं, मुझे दे. मैं उफ्फ तक नहीं करूँगा. लेकिन तू आपने आप को इसकी सज़ा क्यों दे रहीं हैं.

राधिका- भैया कितना आसान हैं ना किसी के विश्वास को पल भर में तोड़ कर बस सॉरी बोल देना. भैया मेरे माफ़ करने ना करने से क्या होगा. आपने तो ना सिर्फ़ मेरा विश्वास को तोड़ा हैं बल्कि आज मेरे आत्म सम्मान को भी चोट पहुँचाई हैं. आपकी वजह से एक रंडी ने मेरी तुलना आप आप से की. उसका भी कहना सही हैं. मैं हूँ ही इसी लायक.

कृष्णा की आँखों से भी आँसू निकल पड़ते हैं.

राधिका-आप क्यों आपना आँसू बहा रहें हैं भैया. आपने तो सब कुछ एक ही पल में ख़तम कर दिया. मैं तो अब आप पर विश्वास करने लगी थी. शायद यही मेरी ग़लती थी...........

कृष्णा- आज तेरे दिल में मेरे लिए जितने शिकवे गीले हैं सब कह दे राधिका मैं तुझे आज नहीं रोकुंगा. ग़लती मेरी ही हैं. नहीं करना चाहिए था मुझे ये सब.

राधिका- भैया जिस तरह एक औरत की इज़्ज़त एक बार लूट जाने पर उसकी इज़्ज़त उसे दुबारा नहीं मिलती उसी तरह अगर आदमी का विश्वास अगर एक बार टूट जाए तो वो दुबारा नहीं जोड़ा जा सकता. देखिए ना भैया मेरे नसीब में सब कुछ होकर भी अब मेरे पास कुछ नहीं हैं.

कृष्णा- बस कर राधिका क्यों तू इन सब बातों को अपना पाप का भागीदार अपने आप को बना रही हैं. इसमें तेरा कोई दोष नहीं हैं. सारा कसूर मेरा हैं............बस मेरा.

राधिका- भैया क्या बुराई हैं मुझ में कि आपको मेरे होते हुए आपको उस रंडी के पास जाना पड़ा. अगर इतना ही आपका खून गरम था तो एक बार मुझसे कह दिया होता. राधिका आपकी खुशी के लिए आपने आपको आपके कदमों में बिछा देती. मगर आपने तो मुझे उस रंडी के बारबार भी नहीं समझा. आज जान गयी हूँ कि मेरी औकात आपकी नज़र में क्या हैं. और इतना कहते कहते राधिका की आँखें बंद हो जाती हैं और वो नशे में फिर से बेहोश हो जाती हैं..............

कृष्णा आज दिल खोल कर रोना चाहता था. आज उसकी वजह से ही राधिका की ये हालत हुई थी. आज इन सब बातों का ज़िम्मेदार भी वो ही था. और वो राधिका को अपनी बाहों में लेकर उसे बड़े प्यार से अपने सीने से लगा लेता हैं.

कृष्णा के मन में हज़ारों सवाल उठ रहे थे....... कैसे समझाऊ राधिका कि मैं तुझसे कितना प्यार करता हूँ. अरे तू नहीं जानती कि जब तक मैं तुझे एक नज़र देख नहीं लेता मुझे चैन ही नहीं मिलता हैं. आज जिस प्यार का एहसास मैने किया हैं वो बस सिर्फ़ तेरी वजह से. तूने ही मुझे जीना सिखाया हैं. मेरे इस बदलाव का सबसे बड़ी वजह भी तू हैं. मैं कसम ख़ाता हूँ राधिका कि आज के बाद मैं तुझे किसी भी तरह का कोई दुख नहीं दूँगा. आज से मेरी जिंदगी का मकसद हैं तेरी खुशी. अगर तेरी खुशी के लिए मुझे अपनी जान भी देनी पड़े तो मैं पीछे नहीं हटूँगा.तेरी खुशी के लिए वो सब करूँगा जो तू मुझसे उमीद करती हैं. मैं दूँगा तुझे वो प्यार , वो खुशी. सब कुछ राधिका ..................सब कुछ.......और कृष्णा की आँखों से भी आँसू फुट पड़ते हैं.....................

घंटों वो भी बस राधिका को ऐसे ही अपनी गोद में लिए रहता हैं और फिर उसे अपने बाहों में लेकर सो जाता हैं. राधिका इस वक़्त पूरी तरह नशे में थी.उसे तो कोई भी होश नहीं था. थोड़ी देर के बाद कृष्णा भी राधिका के बगल में सो जाता हैं.

सुबह जब राधिका की आँख खुलती हैं तो कृष्णा उसके बगल में सोया रहता हैं. वो अपना दुपट्टा सही करती हैं और उठकर बाथरूम में जाती हैं. रात के नशे से अभी भी उसकी चाल में लड़खड़ाहट थी और उसका सिर भी थोड़ा घूम रहा था. थोड़ी देर के बाद कृष्णा भी उठ जाता हैं. जब उसकी नज़र बिस्तेर पर पड़ती हैं तो उसे राधिका वहाँ नहीं दिखती हैं. वो तुरंत घबराकर पूरे घर में उसे ढूँडने लगता हैं. आख़िर कर किचन में राधिका उसे दिख ही जाती हैं. और उसकी जान में जान आती हैं.

कृष्णा फिर धीरे से जाकर राधिका को अपनी बाहों में पीछे से पकड़ लेता हैं. और बड़े प्यार से उसकी गर्देन को चूम लेता हैं. राधिका की तो जैसे साँसें रुक जाती हैं. कृष्णा का ऐसा बदलाव देखकर उसे हैरानी भी होती हैं और खुशी भी.

राधिका- भैया आप यहाँ पर इस वक़्त किचन में क्या कर रहें हैं.???

कृष्णा- देख नहीं रही हो अपनी बेहन को प्यार कर रहा हूँ.

राधिका भी धीरे से मुस्कुरा देती हैं.

कृष्णा- कल जो भी हुआ राधिका वो तो सच में मुझे माफी के लायक नहीं हैं मगर मैं तेरे सर की कसम खाकर कहता हूँ कि मैं आज के बाद ये सब कभी नहीं करूँगा. अगर तुझे थोडा भी यकीन हो मुझपर तो....

राधिका एक टक कृष्णा की आँखों में देखती हैं- ठीक हैं भैया मैं आपको माफ़ कर देती हूँ. जाओ आप भी क्या याद करोगे. और राधिका भी धीरे से मुस्कुरा देती हैं.

कृष्णा उसे तुरंत अपने गोद में उठा लेता हैं और अपना लब राधिका के लब पर रख देता हैं और बड़े प्यार से उसके होंठो को चूसने लगता हैं. राधिका भी अपनी आँखें बंद कर लेती हैं और वो भी कृष्णा के होंठ को धीरे धीरे चूसने लगती हैं. आज जो एहसास और मज़ा होंठ चूसने में राधिका को मिल रहा था वो मज़ा उसे अपनी ज़िंदगी में कभी नहीं मिला था. पता नहीं क्या था उसके भैया में कि जब भी वो उनके करीब आती थी वो मदहोश होने लगती थी. आज राधिका भी पूरी तरह से बहकना चाहती थी.

करीब पाँच मिनिट के बाद राधिका कृष्णा को अपने से दूर करती हैं और कृष्णा भी उसे नीचे ज़मीन पर रख देता हैं.

राधिका- आज इतना मस्का किस लिए. बहुत प्यार आ रहा हैं मुझपर बात क्या हैं.कहीं आज मेरी इज़्ज़त तो लूटने वाले नहीं हो ना.............

कृष्णा- हाँ इरादा तो कुछ ऐसा ही हैं. आज तो सोच ही रहा हूँ कि आज मैं अपनी बेहन को चोद कर बेहन्चोद बन ही जाउ.
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Messages In This Thread
Isi Ka Naam Zindagi - by thepirate18 - 19-09-2019, 08:59 PM
RE: वक़्त के हाथों मजबूर - by thepirate18 - 20-09-2019, 11:07 AM
RE: Isi Ka Naam Zindagi - by thepirate18 - 17-02-2020, 09:45 AM
RE: Isi Ka Naam Zindagi - by Abr Roy - 26-07-2021, 04:42 PM
RE: Isi Ka Naam Zindagi - by koolme98 - 21-09-2022, 06:28 PM



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