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Adultery Isi Ka Naam Zindagi
#24
Update 17



ख़ान- आपने ठीक कहा सर!!! लाइफ ईज़ आ स्ट्रगल. यहाँ पर हर पल जीने के लिए संघर्ष करना पड़ता हैं.

राधिका भी चुप चाप उनकी बातें सुन रही थी. अब वो पहले से बेहतर महोसूस कर रही थी.

ख़ान- एक बात बोलू साहेब. ये आप पर पाँचवा हमला हुआ हैं. मुझे तो लगता हैं कि कोई आपसे दुश्मनी निकाल रहा हैं. और जो भी हो वो बहुत शातिर हैं क्यों कि वो आपकी पल पल की खबर रखता हैं. मुझे तो लगता हैं कि इन सब के पीछे कोई बहुत आपका करीबी आदमी हैं.

ख़ान की बातें सुनकर राधिका भी चौंक जाती हैं और राहुल भी गहरे विचार में डूब जाता हैं.

ख़ान- क्या सोच रहे हैं सर. आपको किसी पर शक हैं क्या???

राहुल एक नज़र राधिका के तरफ देखता हैं फिर वो ना में इशारा करता हैं. राधिका को इस बार राहुल पर बहुत ज़्यादा गुस्सा आता हैं मगर अभी ऐसे हालत नहीं थे कि वो इस बारे में कुछ बहस करे. इसलिए वो चुप ही रहती हैं.

अभय- यार हम भी कैसे इंसान हैं. तेरी लवर तुझसे मिलने आई हैं और हम बीच में काँटा बने बैठे हैं. और फिर ख़ान और अभय रूम से बाहर निकल जाते हैं. राहुल भी मुस्कुरा देता हैं.

राहुल राधिका को अपने करीब आने को कहता हैं और जैसे ही राधिका उसके करीब बिस्तर पर बैठती हैं वो उसे अपनी बाहों में जाकड़ लेता हैं.

राधिका- ये क्या कर रहे हो राहुल. छोड़ो मुझे. तुम तो अब हॉस्पिटल में भी शुरू हो गये. शरम नही आती इतनी चोट लगी हैं और आपको रोमॅन्स सूझ रहा हैं.

राहुल- अरे जान इस दर्द का ही तो इलाज़ कर रहा हूँ. बस एक बार प्यार से अपने लब चूम लेने दो देखना मेरा आधा दर्द दूर हो जाएगा.

राधिका- अच्छा तो बचा हुआ आधा दर्द के लिए क्या करना पड़ेगा.

राहुल- वही जो कल हमने किया था. अगर बोलो तो मैं यहाँ पर भी वो सब करने को तैयार हूँ.

राधिका- बहुत बिगड़ गये हो. सुधेर जाओ नहीं तो....................

राहुल बोलो ना नही तो क्या यहीं पर अपने कपड़े निकाल दोगि क्या....और राहुल मुस्कुरा देता हैं.

राधिका- बेशरम कहीं के... जाओ मुझे तुमसे अब कोई बात नहीं करनी.

राहुल- दे दो ना जान एक किस ही तो माँग रहा हूँ. देखना मैं दो दिन में फिर से पहले जैसे हो जाऊँगा.

राधिका धीरे से अपना लब राहुल के लब पर रख देती हैं और उसे बड़े प्यार से चूम लेती हैं.

राहुल- बस इतना छोटा सा........... ये तो ना-इंसाफी हैं.

राधिकल- पहले ठीक हो जाओ फिर जैसे कहोगी वैसे दूँगी.

राधिका- एक बात बताओ राहुल तुमने ख़ान जी से झूट क्यों बोला. क्यों तुम्हें नहीं लगता कि इन सब के पीछे विजय का हाथ होगा.

राहुल- नही राधिका मैं उसपर शक नही कर सकता. और मेरे पास फिलहाल कोई सुबूत भी नही है. और एक बात बता दूँ कि मेरा ज़मीर भी मुझे कभी इसकी इज़ाज़त नही देगा कि मैं अपने ही दोस्त की एंक्वाइरी करवाउ. बहुत एहसान हैं उसके घरवालों और विजय का मुझपर. और मैं उनके खिलाफ कभी नही जा सकता.

राधिका- ठीक हैं राहुल मैं तुम्हारे दोस्ती के बीच में कभी नही ऑजी मगर दोस्त पर भी इतना विश्वास नही करनी चाहिए की कल को तुम्हें पछताना पड़े. और एक बात मैं कहना चाहूँगी की विजय की नियत मुझे ठीक नही लगती. और मेरा दिल कहता हैं कि उसकी नज़र मुझपर भी है. कहीं राहुल ऐसे ना हो जाए की जब तक तुम ये बात समझो तब तक बहुत देर हो जाए.............. इतना कहकर राधिका के मन में उस दिन वाले बात घूमने लगती हैं.

राहुल- छोड़ो ना जान तुम भी क्या लेकर बैठ गयी.

इतनी देर में ख़ान और अभय भी अंदर आ जाते हैं.

ख़ान- सर अब मुझे चलना चाहिए.

राहुल- ठीक हैं ख़ान आप एक काम कीजिए ज़रा राधिका को भी उसके घर पर ड्रॉप कर दीजिएगा.

ख़ान- आइए भाभी जी चलिए मैं आपको घर छोड़ देता हूँ.

राधिका भी ख़ान के मूह से भाभी जी सुनकर मुस्कुरा देती है और वो ख़ान के पीछे चल देती हैं.

राधिका के जाने के बाद वो फिर से उसकी कही हुई बातों उसके दिमाग़ में आने लगती हैं. तो क्या राधिका का शक सही है ,क्या इन सब के पीछे विजय का हाथ हैं. उस दिन भी तो विजय का मुझपर हमला होने के पहले फोन आया था. और आज भी ऐसा ही हुआ. लेकिन विजय तो रोज़ मुझसे ऐसी ही बात करता हैं. ऐसा कोई दिन नहीं गया जब उसका फोन ना आया हो. नही नही मैं अपने दोस्त पर शक नही कर सकता.

तभी एक बात उसके दिमाग़ में आती हैं. हां अगर विजय आज मुझसे मिलने यहाँ आता हैं तो वो ये सब में शामिल नही हो सकता.अगर वो यहाँ पर नहीं आया तो मैं कल से ख़ान को बोलकर उसकी एंक्वाइरी शुरू करवा दूँगा. क्यों कि मैं अच्छे से जानता हूँ कि कोई भी मुजरिम गुनाह करने के बाद वहाँ पर मौजूद नही होता.. इससे ये बात भी क्लियर हो जाएगा और मेरा शक भी दूर हो जाएगा.

ऐसे ही बहुत डियर तक उधेरबुन में राहुल की आँख लग जाती हैं. और वो सो जाता हैं.

करीब शाम को 4 बजे विजय भी वहाँ पर आ जाता हैं. और राहुल के पास जाकर बैठ जाता हैं. विजय को देखकर राहुल का बचा खुचा शक भी दूर हो जाता हैं.

विजय जैसे ही उसके पास बैठता हैं वो राहुल को अपने गले लगा लेता हैं.

विजय- ये सब क्या हो गया मेरे दोस्त. अच्छा ख़ासा तो तू ठीक था फिर ये सब.....................

राहुल- पता नहीं यार कौन मेरे पीछे पड़ा हुआ हैं. समझ में नही आ रहा कि आख़िर मेरे से किसी की क्या दुश्मनी हो सकती हैं.

विजय- रिलॅक्स यार. ये सब तू टेन्षन मत ले. और वैसे भी तो तू पोलीस वाला हैं ना तू तो उसे पता कर ही लेगा.

राहुल- आख़िर जो भी हो वो मुझसे कब तक बचेगा.

विजय- ठीक हैं दोस्त तू आराम कर और अपना ध्यान रखना. अगर कोई भी चीज़ की परेशानी हुई तो तेरा ये दोस्त हैं ना. जब चाहे तू मुझे याद कर लेना. मैं हाजिर हो जाउन्गा.

राहुल- अरे यार तू इतना ही मेरे पास आ गया तो मेरे दिल से एक बहुत बड़ा बोझ उतर गया. चल मैं ठीक हूँ तुझे तो अपने क्लिनिक भी तो जाना हैं ना.

विजय- हां अब मैं चलता हूँ तू अपना ख्याल रखना. और विजय वहाँ से निकल जाता हैं.

विजय के चेहरे पर फिर से एक बार कुटिल मुस्कान तैर जाती हैं और मन ही मन सोचता हैं. साला इस बार भी बच गया. सला मेरी तो किस्मत ही खराब हैं. जब से इस कुत्ते के पीछे पड़ा हूँ इसकी किस्मेत भी अब बुलंद हो गयी हैं. कब तक आख़िर मुझसे बचेगा... आख़िर कब तक बकरा अपनी खैर मनाएगा. कभी ना कभी तो किसी कसाई के हाथों हलाल होगा ही..................................

राधिका जैसे ही घर पहुचती है उसके भैया घर पर आ चुके थे. आज वो पूरे नशे में थे. और राधिका के आने का ही इंतेज़ार कर रहे थे.

कृष्णा- आ गयी तू. इतनी देर कहाँ लगा दी. मैं कब से तेरा ही इंतेज़ार कर रहा था.

राधिका- भैया आज भी आपने शराब पी रखी हैं. और आज आप इतनी जल्दी काम से कैसे आ गये.

कृष्णा- वो बस ऐसे ही तू बता कहाँ रह गयी थी. क्या आज भी तू उस पोलिसेवाले से मिलकर आ रही हैं.

राधिका- भैया आज.....राहुल का आक्सिडेंट हो गया हैं. मैं बस हॉस्पिटल से ही आ रही हूँ.

कृष्णा- क्यों.....क्या हुआ उसे.

राधिका-वो किसी ट्रक वाले ने पीछे से ठोकर मार दी. थोड़ी ज़्यादा चोटें आईं हैं पर अब ख़तरे से बाहर हैं.

कृष्णा- अच्छा फिर ठीक हैं मैं कल काम पर जाउन्गा तो उससे मिलते हुए जाउन्गा.

राधिका भी बड़े प्यार से कृष्णा के गले लग जाती हैं.

राधिका- यकीन नहीं होता भैया की आप मेरे लिए इतनी भी बदल सकते हैं. सच में मैं बहुत खुस हूँ.

मगर शायद राधिका की खुशी ज़्यादा देर तक नही रहने वाली थी क्यों कि अब उसकी खुशी को जल्दी ही ग्रहण लगने वाला था.

कृष्णा- चल बहुत बातें करती हैं , मेरे लिए फटाफट चाइ बना कर ला, मैं थोड़ा हाथ मूह धो कर आता हूँ.

तभी उसके घर का बेल बजती हैं.कृष्णा जाकर मेन डोर खोलता हैं. सामने बिहारी था और साथ में उसके तीन आदमी भी थे.

बिहारी को देखकर कृष्णा के चेहरे का रंग बदल जाता हैं और वो एक साइड होकर खड़ा हो जाता हैं. बिहारी तो पहले उसे बड़े गौर से देखता हैं फिर वो घर के अंदर आ जाता हैं. वही सामने भी राधिका खड़ी थी.

कृष्णा- क्यों बिहारी जी कैसे आना हुआ मेरे घर पर कोई काम हैं क्या???

बिहारी- ज़ोर का एक लात कृष्णा के पट पर मारता हैं और कृष्णा वही पर दर्द से बैठ जाता हैं. हरामी कहीं का जब तक मेरे ख़ाता था तब तक मालिक बोलता था और आज नाम लेकर बुला रहा हैं. तू तो साला नमक हराम निकला रे. मैने तो तुझे अपने बच्चे की तरह चाहा था. तू तो आस्तीन का साँप हैं ...........

कृष्णा कुछ बोलता नहीं हैं बस वही पर चुप चाप बैठा रहता हैं. मगर राधिका को ये सब बर्दास्त नहीं होता और वो जाकर बिहारी के गाल पर एक ज़ोरदार थप्पड़ मार देती हैं. थप्पड़ इतना ज़ोरदार था की बिहारी का सिर घूम जाता हैं.

राधिका- लगता हैं कि आप तमीज़ बिल्कुल भूल गये हैं. किसी के घर जाते हैं तो किसी से किश तरह पेश आया जाता हैं लगता हैं आपको नहीं मालूम. बेहतर यही होगा कि आप इस वक़्त यहाँ से चले जाइए.

बिहारी- तेरी हिम्मत कैसी हुई मुझपर हाथ उठाने की. लगता हैं कि तू मुझे अच्छे से नहीं जानती.

राधिका- तुझ जैसे लोग को जाने की भी ज़रूरत नही हैं. बेहतर यही हैं कि आप यहाँ से अभी इसी वक़्त चले जाओ.

बिहारी- तुझसे तो मैं बाद में बात करता हूँ पहले तेरे भाई से कुछ बात करनी हैं.

बिहारी फिर कृष्णा की तरफ अपना मूह करके बोलता हैं.

बिहारी- क्यों रे कुत्ता. आज कल तू मेरे चौखट पर अपने पाँव नही रखता .. बात क्या हैं. कहीं अपनी बेहन से तो तुझे इश्क़ नही हो गया ना...... वैसे भी तेरी बेहन तो पूरी पाताका हैं.

कृष्णा- बिहारी ज़ुबान संभाल कर बात कर. मैं अभी तक चुप हूँ इसका मतलब ये नहीं है कि मैं तुझसे डरता हूँ. मैं तो बस अब कोई भी बात आगे नहीं बढ़ाना चाहता. अच्छा होगा की अब तू मुझे भूल जा और कोई नया आदमी मेरी जगह पर रख ले.

बिहारी एक बार फिर कृष्णा को घूर कर देखता हैं.....

बिहारी- अपने साथी की ओर इशारा करते हुए- देखो कल तक ये मेरे आगे पीछे दुम हिलाता था और आज मुझसे ये कैसी बातें कर रहा हैं. मुझे समझ में नही आ रहा हैं कि तुझसे हो क्या गया हैं. तेरी बेहन ने तुझपर कौन सा जादू कर डाला हैं जो तू अपने बचपन के मालिक को ही भूल जाने की बात कर रहा हैं.

कृष्णा- बिहारी जी आप प्लीज़ यहाँ से चले जाइए. मैं इस बारे में अब कोई भी बात नहीं करना चाहता.

बिहारी- चले जाउन्गा. इतनी जल्दी भी क्या हैं. ज़रा मैं भी तो देखू कि तेरी बेहन में कितनी गर्मी हैं.

कृष्णा- नहीं बिहारी. जो बात करनी हैं मुझसे कर. मेरी बेहन को तू क्यों बीच में ला रहा हैं. उसका हम दोनो से कोई लेना देना नहीं हैं. और कृष्णा राधिका को अंदर जाने का इशारा करता हैं.

बिहारी के तीनों आदमी झट से आगे बढ़ते हैं और कृष्णा के दोनो हाथ पकड़कर दो तीन घूसा उसके मूह और पेट पर जड़ देते हैं. पंच इतना ज़ोरदार था कि कृष्णा का होंठ फट जाता हैं और उसके मुँह से खून निकलने लगता हैं. ये सब नज़ारा देखकर अब राधिका को बर्दास्त नही होता और वो दौड़कर कृष्णा के पास जाकर उससे लिपट जाती हैं और बिहारी के आदमी भी कृष्णा पेर हाथ उठाना अब बंद कर देते हैं.

राधिका- प्लीज़ मेरे भैया को मत मरो. मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूँ. प्लीज़ रुक जाइए आप सब.........

राधिका को ऐसे कृष्णा से लिपटा देखकर बिहारी के चेहरे पर कुटिल मुस्कान आ जाती हैं.

बिहारी- वाह!!! वाह!!! क्या नज़ारा हैं. भाई बेहन का ऐसा प्यार तो मैने आज तक नही देखा. देखो मार ये खा रहा है और दर्द इसे हो रहा है.

और बिहारी भी अंडू के एकदम करीब चला जाता है और अपना दाया हाथ आगे बढाकर राधिका के बाल को कसकर पकड़ लेता हैं. राधिका के मूह से एक तेज़्ज़ सिसकारी निकल पड़ती हैं. फिर वो राधिका को घसीटता हुआ कृष्णा से दूर लेजाता है और कसकर एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर मार देता हैं. थप्पड़ इतना ज़ोरदार था कि राधिका के आँखों से आँसू निकल जाते हैं और उसकी आँखों के सामने कुछ पल के लिए अंधेरा छा जाता हैं.

ये सब देखकर कृष्णा ज़ोर से चिल्ला पड़ता हैं. अब इस वक़्त वो भी मज़बूर था उसके दोनो हाथ बिहारी के आदमियों ने कसकर पकड़ रखे थे इस लिए वो चाह कर भी अपना हाथ नही छुड़ा पा रहा था.

कृष्णा- छोड़ दे बिहारी मेरी बेहन को. तेरी बात मुझसे हैं. तू मेरी बेहन को क्यों बीच में ला रहा हैं.

तभी बिहारी का एक आदमी कहता हैं- मालिक ये लड़की तो आप पर हाथ उठाई हैं. साली को यही पर इसके भाई के सामने इसका बलात्कार करते हैं. कसम से बहुत मज़ा आएगा.

कृष्णा भी अगर होश में रहता तो शायद वो उन तीनो का अकेला सामना कर लेता मगर वो इस समय खुद ठीक से खड़ा भी नही हो पा रहा था. सामना क्या खाक करता.

बिहारी भी राधिका के करीब जाता हैं और उसके सीने से दुपट्टा को उतार कर फर्श पर फेंक देता हैं. ये सब देखकर कृष्णा की आँखों में खून समा जाता हैं. राधिका झट से अपने दोनो हाथ अपने सीने पर रख देती हैं और अपना सिर नीचे झुका कर रोने लगती हैं. आज तक उसे अपनी ज़िंदगी में कभी इस तरह से किसी ने हाथ भी नही उठाया था. और ना ही किसी ने ऐसा जॅलील किया था.

कृष्णा- तेरी दुश्मनी मुझसे हैं. अगर तूने अब की बार राधिका को हाथ भी लगाया तो मैं भूल जाउन्गा की तेरा मुझपर कोई एहसान भी हैं. फिर चाहे मुझे फाँसी ही क्यों ना हो जाए लेकिन तू भी ज़िंदा नही बचेगा.

राधिका के आँख से आँसू रुकने का नाम ही नही ले रहे थे. और वो उसी अवस्था में नीचे फर्श पर बैठी हुई थी.

अपना सिर को झुकाए.

बिहारी- देख कृष्णा अगर मैं चाहू तो यही पर तेरी बेहन के साथ गॅंगरेप करवा सकता हूँ तेरे आँखों के सामने. और तू तो जानता हैं कि इस दुनिया में कोई भी भाई कितना भी गिरा क्यों ना हो अपनी ही बेहन का गॅंगरेप होते हुए अपनी आँखों के सामने कभी नहीं देख सकता. और मैं जांटा हूँ कि तू भी ये नही चाहेगा.

कृष्णा- देख बिहारी मेरी बेहन को बीच में मत घसीट. तुझे जो करना हैं मेरे साथ कर. .......

बिहारी हंसते हुए..... देख भाई मैं यहाँ पर तुझसे कोई दुश्मनी निकालने के लिए नहीं आया हूँ. मैं तो बस एक सौगात लेकर आया था मगर तुझे तो मेरी कोई भी बात सीधी तरह समझ में नहीं आती .

कृष्णा- कैसा सौगात.??? मैं कुछ समझा नहीं. ???

बिहारी फिर अपने आदमियों से कृष्णा का हाथ छोड़ने का इशारा करता है और तीनों आदमी एक साइड खड़े हो जाते हैं.

बिहारी- देख कृष्णा अब जो मैं तुझसे कहना चाहता हूँ वो तू ध्यान से सुन. तू मेरे यहाँ काम कर चाहे ना कर इस बारे मे मैं तुझे कुछ नही कहूँगा. पर.............

कृष्णा-पर............क्या बिहारी.

बिहारी- मैं तो तेरी बेहन से अपने ब्याह का प्रस्ताव लेकर आया हूँ. मैं तेरी बेहन से शादी करना चाहता हूँ.

राधिका ये सब सुनकर उसके होश उड़ जाते हैं और कृष्णा का भी मूह खुला रह जाता हैं.

कृष्णा- क्या............ ये......क्या कह रहे हो बिहारी.....ऐसा कभी नहीं हो सकता..

बिहारी- क्या करूँ कृष्णा तेरी बेहन हैं ही ऐसी. मेरा दिल उसपे आ गया हैं. सोच ले कोई जल्दी नहीं हैं. आराम से खूब सोच समझ कर बताना.

राधिका- भैया इनसे कह दो कि मैं मर जाउन्गि मगर इनसे कभी शादी नहीं करूँगी. अरे कम से कम अपनी उमर का तो लिहाज करो. मेरे बाप के उमर के हो और अपनी बेटी के बराबर लड़की से शादी करना चाहते हो.

बिहारी- अरे देख ना मुझे , क्या नहीं हैं मेरे पास. बंगला, गाड़ी, शोहरात, सब कुछ तो हैं. और तो और मैं इस सहर का एमएलए भी हूँ. बस तू हां कह दे फिर देखना तुझे रानी बनाकर रखूँगा. तुझे किसी भी चीज़ की तकलीफ़ नही होगी. यहाँ पर क्या रखा हैं. ये टूटा हुआ घर. तू कैसे ऐसे माहूल में रहती होगी. मेरे साथ चल तुझे मैं अपने पलकों पर बिठा कर रखूँगा.

कृष्णा- बिहारी , अगर तेरा मुझपर एहसान नहीं होता तो तू इस वक़्त यहाँ अपने कदमों पर खड़ा नही होता. तूने ये कैसे सोच लिया कि मैं अपनी बेहन का हाथ तुझे दूँगा. इससे पहले कि मैं सब कुछ भूल जाओं तू यहाँ से चला जा अपने आदमियों के साथ.

बिहारी- ठीक हैं अगर तुम दोनों का यही फैल्सा हैं तो यही सही. लेकिन एक बात जान ले अगर मुझे कोई भी चीज़ पसंद आ जाती हैं तो मैं उसे किसी भी तरह हासिल कर लेता हूँ. चाहे शाम................दाम ..........डंड................भेद......... अगर इन चारों नीति में से मुझे जो भी अपनाना पड़े , राधिका को अगर हासिल करने में तो.. मैं इससे पीछे नहीं हटूँगा. अगर राधिका मेरी नही हुई तो मैं उसे किसी और के लायक रहने भी नही दूँगा.

कृष्णा- बिहारी अबकी आखरी बार बोल रहा हूँ चुप चाप चल जा. वरना मैं भूल जाउन्गा कि ..................

बिहारी- जा रहा हूँ लेकिन कब तक तू अपनी बेहन को बचाता फ़िरेगा. देख लेना मुझसे दुश्मनी तुझे बहुत महँगी पड़ेगी.

और बिहारी अपने आदमियों से साथ बाहर निकल जाता हैं..

राधिका भी दौड़ कर कृष्णा के गले लग जाती हैं. आज वाकई में उसका दिन बहुत खराब बीता था. कृष्णा भी उसे बड़े प्यार से अपनी बाहों में ले लेता हैं और उसके सर पर अपना हाथ फेरता हैं.

राधिका- भैया मुझे कहीं से ज़हर लाकर दे दो. मैं सच में जीना नहीं चाहती. दुनिया में लोग खूबसूरत बनने के लिए ना जाने क्या क्या करते हैं. और आज मेरी सुंदरता ही मेरी दुश्मन बनती जा रही हैं. देख लेना किसी दिन ये मेरी जान लेकर ही रहेगी.

कृष्णा- वो तेरा कुछ नहीं बिगड़ पाएगा. मेरे जीते जी कोई तुझे आँख उठा कर भी देखेगा तो साले की आँखें निकाल लूँगा......

फिर दोनो की आँखें से आँसू बहने लगते हैं .................................

राधिका उसी तरह कृष्णा के बाहों में ऐसे ही लिपटी रहती हैं. फिर वो उठकर जाती हैं और डेटोल और रूई लेकर आती हैं और कृष्णा के होंठ पर लगाती हैं. कृष्णा भी एक टक राधिका को बड़े ही प्यार से देखने लगता हैं.

कृष्णा- रहने दे राधिका मैं इसी लायक हूँ. आज मेरी वजह से वो बिहारी तेरे पर हाथ उठा कर चला गया और मैं कुछ नहीं कर सका.

राधिका- इसमें आपकी कोई ग़लती नहीं हैं भैया. वो तो हैं ही कमीना.

कृष्णा के मन में कई सवाल उठ रहे थे. आज उसके दिल में अपनी ही बेहन के लिए डर बढ़ गया था. वो अच्छे से जानता था कि बिहारी किस हद्द का कमीना हैं. उसे जो भी चीज़ पसंद आ जाती हैं वो उसे किसी भी हाल में हासिल करना चाहता हैं. और जो वो धमकी देकर गया हैं वो बस बोलता ही नहीं हैं बल्कि करता भी हैं. ये सब सोचकर वो कुछ राधिका के लिए परेशान था.

कृष्णा-मैं तो ये सोच रहा हूँ कि हम ने बहुत बड़ी ग़लती की बिहारी से उलझकर. मैं उसको बहुत अच्छे से जानता हूँ वो बहुत ही कमीना हैं. मुझे तो बस तेरी चिंता हैं. अगर तुझे कुछ हो गया तो.......................

राधिका- कैसी बात करते हैं भैया. आपके रहते मुझे कुछ होगा क्या.

कृष्णा अपना हाथ प्यार से राधिका के सिर पर रख देता हैं और उसके माथे को चूम लेता हैं.

कृष्णा- मेरे रहते तुझे कोई छू भी नहीं सकता. जान दे दूँगा लेकिन तुझे कुछ नहीं होने दूँगा. आज से ये तेरा भाई तुझसे वादा करता हैं.

राधिका भी मुस्कुरा देती हैं. फिर कृष्णा उठकर बाहर जाता हैं और कुछ खाने का समान लेकर आता हैं.

कृष्णा- आज मैं तुझे अपने इन हाथों से खिलाउन्गा.

राधिका- हां भैया आपका मुझपर पूरा हक़ हैं. जो आपको अच्छा लगे मैं आज के बाद कभी आपको किसी बात के लिए नहीं रोकूंगी.

कृष्णा फिर बड़े प्यार से राधिका को अपने हाथों से खाना खिलाता हैं और राधिका भी अपने हाथों से कृष्णा को खाना खिलाती हैं. दोनो बड़े प्यार से एक दूसरे को देखते है.

कृष्णा- तुझे याद हैं आज पुर दस दिन बीत गये हैं. और अभी 4 दिन बाकी हैं. कृष्णा राधिका को कुछ याद दिलाते हुए बोला.

राधिका- क्या भैया आप भी ना........... नही सुधरोगे. एक तरफ तो मेरी हिफ़ाज़त करने को बोलते हो तो दूसरी तरफ मुझे सिड्यूस करने को. मैं सच में आभी तक आपको समझ नही पाई.

कृष्णा मुस्कुराते हुए- लगता हैं मैं ये शर्त हार जाउन्गा. अब तो लगता हैं की मेरा सपना कभी पूरा नहीं हो पाएगा.

राधिका- आप भी ना भैया.

कृष्णा- तो तू अपने मूह से बोल क्यों नहीं देती. बस मुझे और कुछ नहीं चाहिए.

राधिका- ठीक हैं भैया मैं खुद बोलूँगी, मगर अभी नहीं आज मैं पहले से ही बहुत डिस्टर्ब हूँ.

कृष्णा- ठीक हैं राधिका मुझे तुझपर पूरा भरोसा हैं. तेरे जवाब का मुझे पहले भी इंतेज़ार था आज भी हैं और कल भी रहेगा.

राधिका - चलिए भैया आज आप मेरे रूम में चलकर सो जाइए. इस वक़्त आप बहुत नशे में हैं और आज मुझे बहुत डर भी लग रहा हैं. मैं आपके बाजू में वही पर सो जाऊंगी.

कृष्णा- तू इतने यकीन से कैसे कह सकती हैं कि मैं तुझे हाथ भी नही लगाउन्गा. अगर रात में मैं तेरे साथ कुछ..............

राधिका- मुझे अपने आप से ज़्यादा आप पर भरोसा हैं. मैं जानती हूँ कि आप मेरी मर्ज़ी के बिना मुझे हाथ भी नही लगाएगे. फिर राधिका एक बार कृष्णा के गले लग जाती हैं.

फिर कृष्णा और राधिका आकर एक ही बिस्तेर पर सो जाते हैं . कृष्णा तो जैसे ही बिस्तेर पर आता हैं वो तुरंत सो जाता हैं मगर आज राधिका कुछ ज़्यादा ही परेशान और बेचैन थी. वो बड़े गौर से कृष्णा को देखने लगती हैं. आज ना जाने क्यों उसे अपने भैया के प्रति प्यार और बढ़ गया था. आज वो अपने आप को कृष्णा के लिए समर्पित करना चाहती थी.

थोड़े देर ये सब सोचने के बाद वो कृष्णा का दाया हाथ अपने हाथ मे लेकर उसे बड़े प्यार से देखने लगती हैं. मगर कृष्णा को कोई होश नहीं था. फिर राधिका कुछ सोचकर कृष्णा का हाथ धीरे धीरे सरकाते हुए पहले अपने लब पर रख देती हैं फिर उसके उंगली को एक एक करके बड़े प्यार से चूसने लगती हैं. कुछ देर तक ऐसा करने के बाद वो उसका हाथ धीरे धीरे सरकाते हुए अपने सीने पर रख देती हैं और अपने हाथ पर प्रेशर बढाने लगती हैं. अगर कृष्णा इस वक़्त जगा होता तो वो खुशी से पागल हो जाता.

फिर वो कृष्णा का हाथ को उसी तरह अपने सीने पर घुमाने लगती हैं और फिर अपना एक हाथ नीचे लेजा कर अपनी चूत को ज़ोर से मसल्ने लगती हैं. आज उसे ये भी होश नहीं था कि वो क्या कर रही हैं. इसी तरह कुछ देर बेचैन रहने के बाद वो उठ ती हैं और बाथरूम जाती हैं और फिर किचन में जाकर ठंडा पानी पीती हैं और फिर आकर कृष्णा की बाहों में अपना सिर रखकर उसके आगोश में सो जाती हैं. कृष्णा के बदन की गर्मी से राधिका के मन में फिर से बेचैन होने लगता हैं मगर वो नहीं चाहती थी कि आज वो कोई ऐसा वैसा काम करे. इसलिए बहुत कॉसिश करने के बाद वो कृष्णा से लिपटकर उसकी बाहों में सो जाती हैं...............

सुबह जब राधिका की नींद खुलती हैं तो कृष्णा का एक हाथ उसके सीने पर रहता हैं. वो भी बस मुस्कुरा देती है और बड़े प्यार से अपने भैया का माथा चूम लेती हैं. फिर वो उठकर फ्रेश होती है और किचन में जाकर नाश्ता बनाने लगती हैं.

दूसरी तरफ......................

करीब 10 बजे विजय के घर पर...

विजय अपने घर में बस शर्ट पहने हुए अपना एक हाथ अपने लंड पर रखकर ज़ोर ज़ोर से मूठ मार रहा था और बार बार राधिका का नाम ले रहा था. वो अपने में इतना मस्त था कि वो घर का मेन डोर बंद करना भी भूल गया था और वो अब अपने चरम पर पहुँचने वाला ही था कि किसी ने उसके घर पर आकर उसके मैन डोर को एक ज़ोरदार लात मरता हैं और दरवाज़ खुल जाता हैं.

सामने बिहारी था और बिहारी अंदर आते ही एक ज़ोरदार लात विजय के लंड पर मारता हैं और विजय के मूह से एक ज़ोरदार चीख निकल जाती हैं.....

बिहारी- मदर्चोद........ अपने गले में फाँसी का फँदा लगने वाला हैं और ये मदर्चोद यहाँ पर मूठ मार रहा हैं.

विजय- ज़ोर से चीखते हुए.........ये क्या बदतमीज़ी हैं बिहारी. तूने मुझे लात क्यों मारी.

बिहारी- लात नहीं मारू तो क्या तेरी आरती उतारू. मदर्चोद किसी दिन तू मुझे भी ले डूबेगा.

विजय कुछ देर में नॉर्मल होता हैं और फिर अपना पेंट पहन लेता हैं.

बिहारी- तुझे किसने कहा था उस इनस्पेक्टर पर हमला करने को. तेरा दिमाग़ तो नहीं खराब हो गया ना. अभी कल ही हमारे दो आदमी मारे गये हैं और उपर से तूने उसपर हमला करवा दिया. अब तो उसे पूरा यकीन हो गया होगा कि ज़रूर ये हमलावर उसी के ही आदमी होगे.

विजय- तो मैं और क्या करता. कब तक मैं अपना धंधा बंद करके बैठूं. मेरी तो प्लॅनिंग उसे जान से मारने की थी मागर साला उसकी किस्मत अच्छी हैं कि वो फिर से बच गया.

बिहारी- तुझे पता भी हैं राहुल और उसके डिपार्टमेंट के सारे पोलिकवले कुत्ते की तरह उस ट्रक को ढूँढ रहे हैं. और हो ना हो उन्हें एक दो दिन में वो ट्रक मिल ही जाएगा.

विजय- अगर मिल भी जाएगा तो कोई फायेदा नहीं होगा. पोलीस उनसे कुछ नही उगलवा पाएगी. क्योंकि वो एक कांट्रॅक्ट किल्लर हैं. उनका काम ही हैं दूसरी पार्टी से पैसा लेना और काम ख़तम होते के बाद अपना पैसा लेकर चले जाना. ना तो उनलोगों ने मुझे देखा हैं ना ही मैं उन्हें पहचानता हूँ.

बिहारी- ठीक हैं लेकिन याद रखना अगली बार कोई ग़लती नहीं होना चाहिए. अगर इस बार हम से कोई चूक हुई तो हम इस बार दुनिया से ही चले जाएगे.

विजय- तू अपनी मौत से कितना डरता हैं बिहारी. एक ना एक दिन तो मरना ही हैं ना..........फिर डर कैसा.

बिहारी- तो इसका मतलब मैं जाकर मौत को अपने गले लगा लूँ क्या. अभी तो मुझे जीवन में बहुत मज़े करने हैं. और बिहारी और विजय हँसने लगते हैं
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Messages In This Thread
Isi Ka Naam Zindagi - by thepirate18 - 19-09-2019, 08:59 PM
RE: वक़्त के हाथों मजबूर - by thepirate18 - 20-09-2019, 10:29 AM
RE: Isi Ka Naam Zindagi - by thepirate18 - 17-02-2020, 09:45 AM
RE: Isi Ka Naam Zindagi - by Abr Roy - 26-07-2021, 04:42 PM
RE: Isi Ka Naam Zindagi - by koolme98 - 21-09-2022, 06:28 PM



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