16-09-2019, 09:16 AM
(This post was last modified: 23-12-2020, 08:51 AM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
गीता
बाहर आसमान में कुछ नशे में धुत्त आवारा बादल टहल रहे थे ,चांदनी को छेड़ते। कभी वो घेर के खड़े हो जाते चंद्रमुख को तो बस रौशनी हलकी हो जाती और जब जबरन वो लोफर बादल उस के चेहरे पर हाथ रख कर भींच लेते तो घुप्प अँधेरा।
मंजू बाई का घर पास में ही था।
कुछ झोपड़ियां स्लम की तरह ,कच्चे पक्के मकान और उसी के आखिर में एक गली में , मंजू बाई का घर।
थोड़ा कच्चा ,थोड़ा पक्का।
गली में सन्नाटा हो चला था।
आसमान में तो वैसे ही चांदनी और बादलों का लुकाछिपी का खेल चल रहा था ,गली में कुछ कमजोर लैम्पपोस्ट के बल्ब , कमजोर हलकी पीली रोशनी से स्याह अँधेरे को हटाने की नाकामयाब कोशिश कर रहे थे ,
और मंजू बाई के घर के पास के लैम्प पोस्ट का बल्ब निशानेबाजी की प्रैक्टिस का शिकार हो गया था।
घुप्प अँधेरा।
चारो और सन्नाटा था ,फिर मंजू बाई के घर के आसपास कोई घर था भी नहीं , बस एक बड़ा सा पुराना नीम का पेड़ , जिसकी टहनियां मंजू बाई के आंगन को झुक कर छू लेती थीं।
घर की दीवालें तो कच्ची थी ,लेकिन छत पक्की।
उन्होंने आसपास देखा, कोई नहीं दिख रहा था। थोड़ी देर पहले दस बजने के घंटे की आवाज कहीं से आयी थी।
बस मैं नाक करूँगा , और मंजू बाई को बोल कर की उसे कल सुबह नहीं आना है ,ये बता के चला आऊंगा। घर के अंदर एकदम नहीं घुसूंगा।
बार बार ये मन में अपनी सोच दुहरा रहे थे।
लेकिन मंजू बाई के घर का दरवाजा खुला हुआ था , अँधेरे में अदंर से लालटेन की हल्की कमजोर पीली रौशनी बस छन छन कर आ रही थी।
क्या करें ,क्या करें ये सोचते रहे , फिर सांकल खड़का दी।
कोई जवाब नहीं मिला।
अबकी हिम्मत कर सांकल उन्होंने और जोर से खड़काई ,फिर भी कोई जवाब नहीं मिला।
उठंगे ,अधखुले दरवाजे से उन्होंने देखा ,
अंदर कुछ दिख नहीं रहा था , बस एक कच्चा सा छोटा सा बरामदा ,उसके बगल में एक कमरा। लेकिन कोई भी नही दिख रहा था।
उन्होंने अपना इरादा पक्का किया , बस एक बार और सांकल खड़काऊँगाँ , कोई निकला तो ठीक वरना चला जाऊंगा। अंदर नहीं जाऊंगा।
आसमान में आवारा बादलों की संख्या बढ़ गयी थी ,
और कुछ देर रुक के उन्होंने थोड़ी तेजी से सांकल खड़काई ,हलकी आवाज में बोला भी
मंजू बाई ,
लेकिन कोई जवाब नहीं ,और खुले दरवाजे से अंदर का कच्चा बरामदा ,थोड़ा सा कच्चा आँगन साफ़ दिख रहा था।
उहापोह में उनके पैर ठिठके थे।
" कही सो तो नहीं गयी वो लेकिन इस तरह दरवाजा खोल के ,... "
कुछ नहीं तय कर पा रहे थे वो।
" बस एक सेकेण्ड के लिए अदंर जा के ,बस बोल के वापस आ जाऊंगा। "
कमजोर मन से सोचा उन्होंने।
अंदर कोई भी नहीं दिखा।
बस कच्चे बरामदे के एक कोने में लालटेन जल रही थी ,हलकी हलकी परछाईं बरामदे के दीवारों पर पड़ रही थी।
छोटे से आँगन में भी एक दरवाजा था बाहर का।
कमरा बंद था ,.
उनकी निगाह आंगन की ओर लगी थी तभी बाहर के दरवाजे के बंद होने की आवाज आयी।
चरर , और फिर सांकल लगने की ,ताला लगने की।
मुड़ कर वो दरवाजे के पास पहुंचे ,पर दरवाजा बाहर से बंद हो चुका था।
एक बार उन्होंने फिर बरामदे की ओर देखा , कच्चा मिट्टी के फर्श का बरामदा , उसके एक कोने में टिमटिमाती लालटेन।
फिर वो दरवाजे के पास गए ,हिलाया ,डुलाया ,झाँक कर देखा।
दरवाजा अच्छी तरह बंद था , कुण्डी में लगा ताला भी दरवाजे की फांक से दिख रहा था।
किसी ने बाहर से दरवाजा बन्द कर ताला लगा दिया था।
………………………………………….
बाहर आसमान में कुछ नशे में धुत्त आवारा बादल टहल रहे थे ,चांदनी को छेड़ते। कभी वो घेर के खड़े हो जाते चंद्रमुख को तो बस रौशनी हलकी हो जाती और जब जबरन वो लोफर बादल उस के चेहरे पर हाथ रख कर भींच लेते तो घुप्प अँधेरा।
मंजू बाई का घर पास में ही था।
कुछ झोपड़ियां स्लम की तरह ,कच्चे पक्के मकान और उसी के आखिर में एक गली में , मंजू बाई का घर।
थोड़ा कच्चा ,थोड़ा पक्का।
गली में सन्नाटा हो चला था।
आसमान में तो वैसे ही चांदनी और बादलों का लुकाछिपी का खेल चल रहा था ,गली में कुछ कमजोर लैम्पपोस्ट के बल्ब , कमजोर हलकी पीली रोशनी से स्याह अँधेरे को हटाने की नाकामयाब कोशिश कर रहे थे ,
और मंजू बाई के घर के पास के लैम्प पोस्ट का बल्ब निशानेबाजी की प्रैक्टिस का शिकार हो गया था।
घुप्प अँधेरा।
चारो और सन्नाटा था ,फिर मंजू बाई के घर के आसपास कोई घर था भी नहीं , बस एक बड़ा सा पुराना नीम का पेड़ , जिसकी टहनियां मंजू बाई के आंगन को झुक कर छू लेती थीं।
घर की दीवालें तो कच्ची थी ,लेकिन छत पक्की।
उन्होंने आसपास देखा, कोई नहीं दिख रहा था। थोड़ी देर पहले दस बजने के घंटे की आवाज कहीं से आयी थी।
बस मैं नाक करूँगा , और मंजू बाई को बोल कर की उसे कल सुबह नहीं आना है ,ये बता के चला आऊंगा। घर के अंदर एकदम नहीं घुसूंगा।
बार बार ये मन में अपनी सोच दुहरा रहे थे।
लेकिन मंजू बाई के घर का दरवाजा खुला हुआ था , अँधेरे में अदंर से लालटेन की हल्की कमजोर पीली रौशनी बस छन छन कर आ रही थी।
क्या करें ,क्या करें ये सोचते रहे , फिर सांकल खड़का दी।
कोई जवाब नहीं मिला।
अबकी हिम्मत कर सांकल उन्होंने और जोर से खड़काई ,फिर भी कोई जवाब नहीं मिला।
उठंगे ,अधखुले दरवाजे से उन्होंने देखा ,
अंदर कुछ दिख नहीं रहा था , बस एक कच्चा सा छोटा सा बरामदा ,उसके बगल में एक कमरा। लेकिन कोई भी नही दिख रहा था।
उन्होंने अपना इरादा पक्का किया , बस एक बार और सांकल खड़काऊँगाँ , कोई निकला तो ठीक वरना चला जाऊंगा। अंदर नहीं जाऊंगा।
आसमान में आवारा बादलों की संख्या बढ़ गयी थी ,
और कुछ देर रुक के उन्होंने थोड़ी तेजी से सांकल खड़काई ,हलकी आवाज में बोला भी
मंजू बाई ,
लेकिन कोई जवाब नहीं ,और खुले दरवाजे से अंदर का कच्चा बरामदा ,थोड़ा सा कच्चा आँगन साफ़ दिख रहा था।
उहापोह में उनके पैर ठिठके थे।
" कही सो तो नहीं गयी वो लेकिन इस तरह दरवाजा खोल के ,... "
कुछ नहीं तय कर पा रहे थे वो।
" बस एक सेकेण्ड के लिए अदंर जा के ,बस बोल के वापस आ जाऊंगा। "
कमजोर मन से सोचा उन्होंने।
अंदर कोई भी नहीं दिखा।
बस कच्चे बरामदे के एक कोने में लालटेन जल रही थी ,हलकी हलकी परछाईं बरामदे के दीवारों पर पड़ रही थी।
छोटे से आँगन में भी एक दरवाजा था बाहर का।
कमरा बंद था ,.
उनकी निगाह आंगन की ओर लगी थी तभी बाहर के दरवाजे के बंद होने की आवाज आयी।
चरर , और फिर सांकल लगने की ,ताला लगने की।
मुड़ कर वो दरवाजे के पास पहुंचे ,पर दरवाजा बाहर से बंद हो चुका था।
एक बार उन्होंने फिर बरामदे की ओर देखा , कच्चा मिट्टी के फर्श का बरामदा , उसके एक कोने में टिमटिमाती लालटेन।
फिर वो दरवाजे के पास गए ,हिलाया ,डुलाया ,झाँक कर देखा।
दरवाजा अच्छी तरह बंद था , कुण्डी में लगा ताला भी दरवाजे की फांक से दिख रहा था।
किसी ने बाहर से दरवाजा बन्द कर ताला लगा दिया था।
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