13-09-2019, 06:34 PM
अजय अपनी पुरानी कम्पनी को अब कम समय देकर हमारी कम्पनी को समय देने लगा था और कम्पनी के बारे में समझने भी लगा था। विदेश में हमने साथ पढ़ाई की थी और जैसा कि आपको बताया था वहां हम गोरी वेश्याओं के पास भी जाते थे। कभी अपने फ्लैट में बुलाकर चुदाई करते थे। कभी जब पैसे कम होते थे तो दोनों पूरी रात एक ही वेश्या के साथ पूरी रात चुदाई करते थे। वहीं से मुझे पता चला था कि अजय का लन्ड सामान्य लन्ड से काफी बड़ा है। उसका लिंग करीब साढ़े 9 इंच लम्बा और अच्छा चौड़ा था। इधर मेरी लम्बी चुदाई वाली खूबी का भी उसे पता था। हम जब भी किसी वेश्या को बुलाते तो वह जाते वक्त हमेशा कहती थी कि तुम जैसे पैसा वसूल करते हो वैसे आज तक किसी ग्राहक ने नहीं किया।
एक शाम हम दोनों हमारे विदेश के पुराने दिन याद कर रहे थे कि कैसे हमने वहां मजे किए।
अजय- यार बड़े मजे किए हमने, वो दिन भी काफी याद आते हैं। बड़ी बड़ी एस्कार्ट हमसे परेशान थी।
श्लोक- हां यार, क्या दिन थे वो भी।
अजय- साले तेरा तो ऑर्गाज़्म भी बड़ी मुश्किल से होता था।
श्लोक- और तेरा लम्बा लन्ड देख कर कोई भी वेश्या पैसा बढ़ाने की मांग करती थी।
दोनों जोर से हंसने लगे।
अजय- और बता कैसा है तेरा वैवाहिक जीवन? सीमा कैसे झेलती है तुझे?
श्लोक- हां-हां, वैसे ही जैसे तेरे लम्बे तगड़े लन्ड को संगीता झेलती है।
अजय- उसे तो आदत हो गयी है मेरे लन्ड की। मजे से चल रहा है जीवन। पूरी लम्बाई वसूल करती है।
श्लोक- और सीमा भी लम्बे समय तक चुदाई को वसूल करती है।
अजय- अच्छा चल एक बात कहता हूं। जब तूने मुझे तेरी इस कम्पनी का इतिहास सुनाया कि ये कैसे शरू हुई और कैसे इतनी बड़ी हुई तो सब ऐसे लग रहा था कि जैसे सब पहले सुना हुआ हो। जाना पहचाना हो कि कैसे एक गाँव से बढ़कर ये एक शहर में आई और कैसे जीजा-साले ने इसे इस मुकाम पर पहुंचाया। इस कम्पनी के मालिक भी तो तुम्हारे जीजा ही हैं!
श्लोक- हां ... लेकिन तुम्हें सब जाना पहचाना क्यों लगा?
अजय- मैंने भी ये सोचा मगर समझ नहीं आया, फिर एक दिन अचानक से याद आया कि यह कहानी तो मैंने net पर पढ़ी है।
श्लोक -- मैं कुछ समझा नहीं।
फिर अजय ने मुझे net खोल कर याराना और भाई-बहन, जीजा-सलहज का याराना पढ़ाई।
एक शाम हम दोनों हमारे विदेश के पुराने दिन याद कर रहे थे कि कैसे हमने वहां मजे किए।
अजय- यार बड़े मजे किए हमने, वो दिन भी काफी याद आते हैं। बड़ी बड़ी एस्कार्ट हमसे परेशान थी।
श्लोक- हां यार, क्या दिन थे वो भी।
अजय- साले तेरा तो ऑर्गाज़्म भी बड़ी मुश्किल से होता था।
श्लोक- और तेरा लम्बा लन्ड देख कर कोई भी वेश्या पैसा बढ़ाने की मांग करती थी।
दोनों जोर से हंसने लगे।
अजय- और बता कैसा है तेरा वैवाहिक जीवन? सीमा कैसे झेलती है तुझे?
श्लोक- हां-हां, वैसे ही जैसे तेरे लम्बे तगड़े लन्ड को संगीता झेलती है।
अजय- उसे तो आदत हो गयी है मेरे लन्ड की। मजे से चल रहा है जीवन। पूरी लम्बाई वसूल करती है।
श्लोक- और सीमा भी लम्बे समय तक चुदाई को वसूल करती है।
अजय- अच्छा चल एक बात कहता हूं। जब तूने मुझे तेरी इस कम्पनी का इतिहास सुनाया कि ये कैसे शरू हुई और कैसे इतनी बड़ी हुई तो सब ऐसे लग रहा था कि जैसे सब पहले सुना हुआ हो। जाना पहचाना हो कि कैसे एक गाँव से बढ़कर ये एक शहर में आई और कैसे जीजा-साले ने इसे इस मुकाम पर पहुंचाया। इस कम्पनी के मालिक भी तो तुम्हारे जीजा ही हैं!
श्लोक- हां ... लेकिन तुम्हें सब जाना पहचाना क्यों लगा?
अजय- मैंने भी ये सोचा मगर समझ नहीं आया, फिर एक दिन अचानक से याद आया कि यह कहानी तो मैंने net पर पढ़ी है।
श्लोक -- मैं कुछ समझा नहीं।
फिर अजय ने मुझे net खोल कर याराना और भाई-बहन, जीजा-सलहज का याराना पढ़ाई।