11-01-2019, 10:07 PM
गणेश बोला : "ओहो ..... इतना कॉन्फिडेन्स ....आज क्या हो गया तुझे...''
और हंसते हुए उसने फिर से 400 की चाल चल दी...डबल करते हुए.
अब तो केशव को भी डर सा लगने लगा..उसने अपने पत्ते उठा कर देखे...एक-2 करते हुए..
पहला पत्ता था इक्का..
दूसरा निकला बादशाह...
केशव का दिल ज़ोर-2 से धड़कने लगा...वो सोचने लगा की अगला पत्ता कोई भी आ जाए...बेगम आए तो सबसे बढ़िया ...वरना..एक और इक्का...या एक और बादशाह ...कलर तो बन नही सकता था...क्योंकि अभी तक के दोनो पत्ते अलग-2 थे..
उसने भगवान का नाम लेते हुए तीसरा पत्ता भी देखा...
वो गुलाम निकला..
शिट यार....ऐसा कैसे हो सकता है...शायद...मैं खेल रहा हू इसलिए...काजल खेलेगी तो उसके पास पत्ते आएँगे ना अच्छे ...मैं बेकार में ही इतना आगे खेल गया..पर फिर भी,शो माँगने लायक तो थे ही उसके पत्ते..
और उसने 400 बीच मे फेंक कर शो माँग लिया..
गणेश ने अपने पत्ते सामने फेंक दिए..उसके पास पान का कलर था..
केशव ने अपने पत्ते नीचे पटक दिए..
गणेश ने हंसते हुए सारे पैसे उठा लिए..
काजल ने झुक कर गणेश के पत्ते उठा कर देखे..शायद वो ये देखने की कोशिश कर रही थी की कही बीच मे पान के अलावा कोई दूसरा लाल रंग ना हो...
पर इतना ही समय काफ़ी था, गणेश की तीखी नज़रों ने उसके गले की गहराई नाप ली...
उसकी ब्लेक ब्रा मे कसे हुए उसके दोनो मुम्मे किसी टेनिस बॉल्स की तरह अपने जाल मे फँसे हुए दिख गये उसे...उसने गहरी मुस्कान के साथ बिल्लू की तरफ देखा...वो भी शायद उस गहराई को देख चुका था...दोनों के चेहरों पर कुटिलता से भरी हँसी आ गयी..और आँखो ही आँखो मे उन्होने काजल की जवानी से भरी छातियों का गुणगान कर दिया..
अगली गेम शुरू हुई...इस बार दो ब्लाइंड चलने के बाद बिल्लू ने पत्ते देखे और पेक कर दिया..दो और ब्लाइंड चलने के बाद केशव ने पत्ते उठा लिए...वो अभी के लिए ज़्यादा रिस्क नही लेना चाहता था...पर उसके पास बड़े ही बेकार पत्ते आए...7, 3, 5.
उसने बिना शो माँगे ही पैक कर दिया...
गणेश ने फिर से हंसते हुए सारे पैसे उठा लिए.
केशव : "आज तो लगता है इसी का दिन है...दो गेम में ही डेड -दो हज़ार जीत गया...''
गणेश : "केशव भाई, ये तो वक़्त-2 की बात है...कल तुम्हारा दिन था...आज मेरा दिन है...और वैसे भी, अभी तो खेल शुरू हुआ है...शायद तुम जीत जाओ आगे चलकर...''
केशव ने मन मे सोचा 'वो तो होना ही है...एक बार काजल को आने दो बीच मे..फिर देखना, तुम्हारी जेब कैसे खाली करवाता हूँ मैं...''
अगला खेल शुरू हुआ..तभी केशव बोला : "मैं ज़रा बाथरूम होकर आता हू...तुम मेरे पत्ते काजल को बाँट दो...तब तक ये खेल लेगी...''
इसमे भला उन दोनो को क्या परेशानी हो सकती थी..उनके तो चेहरे और भी ज़्यादा चमक उठे..
केशव उठकर उपर चला गया..
काजल सोफे पर बैठी..उसका दिल अब जोरो से धड़क रहा था..गणेश ने गड्डी को काजल की तरफ बढ़ाया .ताकि वो उसे काट सके..जैसे ही काजल ने गड्डी पर हाथ रखा, गणेश ने उसके हाथ के उपर अपना हाथ रखकर उसे दबोच लिया..
गणेश : "अर्रे...अर्रे ....ऐसे नही....इतने पत्ते मत निकालो...थोड़ा आराम से...आधे से कम काटो...आराम से...''
और ये सब कहते-2 वो काजल के नर्म और मुलायम हाथ को अपने कठोर हाथों से सहला भी रहा था..
काजल भी उसके ऐसे स्पर्श के महसूस करके कसमसा उठी..उसके शरीर के रोँये खड़े हो गये...क्योंकि आज तक उसे किसी ने इस तरह से छुआ नही था..कल अपने भाई का स्पर्श और अब इस गणेश का...दो दिन मे दो मर्दों के शरीर ने उसे छुआ था..ये एक कुँवारी लड़की के लिए एक शॉक से कम नही होता..
काजल ने थोड़े से ही पत्ते उठाए और ताश को काट कर नीचे रख दिया.गणेश ने पत्ते बाँटे.
बूट के बाद सभी ने 3-3 बार ब्लाइंड चली..काजल वैसे तो निश्चिन्त ही थी, क्योंकि उसे पता था की उसके पत्ते अच्छे ही निकलेंगे..पर एक डर भी लग रहा था..की कहीं कुछ गड़बड़ ना हो जाए...
और हंसते हुए उसने फिर से 400 की चाल चल दी...डबल करते हुए.
अब तो केशव को भी डर सा लगने लगा..उसने अपने पत्ते उठा कर देखे...एक-2 करते हुए..
पहला पत्ता था इक्का..
दूसरा निकला बादशाह...
केशव का दिल ज़ोर-2 से धड़कने लगा...वो सोचने लगा की अगला पत्ता कोई भी आ जाए...बेगम आए तो सबसे बढ़िया ...वरना..एक और इक्का...या एक और बादशाह ...कलर तो बन नही सकता था...क्योंकि अभी तक के दोनो पत्ते अलग-2 थे..
उसने भगवान का नाम लेते हुए तीसरा पत्ता भी देखा...
वो गुलाम निकला..
शिट यार....ऐसा कैसे हो सकता है...शायद...मैं खेल रहा हू इसलिए...काजल खेलेगी तो उसके पास पत्ते आएँगे ना अच्छे ...मैं बेकार में ही इतना आगे खेल गया..पर फिर भी,शो माँगने लायक तो थे ही उसके पत्ते..
और उसने 400 बीच मे फेंक कर शो माँग लिया..
गणेश ने अपने पत्ते सामने फेंक दिए..उसके पास पान का कलर था..
केशव ने अपने पत्ते नीचे पटक दिए..
गणेश ने हंसते हुए सारे पैसे उठा लिए..
काजल ने झुक कर गणेश के पत्ते उठा कर देखे..शायद वो ये देखने की कोशिश कर रही थी की कही बीच मे पान के अलावा कोई दूसरा लाल रंग ना हो...
पर इतना ही समय काफ़ी था, गणेश की तीखी नज़रों ने उसके गले की गहराई नाप ली...
उसकी ब्लेक ब्रा मे कसे हुए उसके दोनो मुम्मे किसी टेनिस बॉल्स की तरह अपने जाल मे फँसे हुए दिख गये उसे...उसने गहरी मुस्कान के साथ बिल्लू की तरफ देखा...वो भी शायद उस गहराई को देख चुका था...दोनों के चेहरों पर कुटिलता से भरी हँसी आ गयी..और आँखो ही आँखो मे उन्होने काजल की जवानी से भरी छातियों का गुणगान कर दिया..
अगली गेम शुरू हुई...इस बार दो ब्लाइंड चलने के बाद बिल्लू ने पत्ते देखे और पेक कर दिया..दो और ब्लाइंड चलने के बाद केशव ने पत्ते उठा लिए...वो अभी के लिए ज़्यादा रिस्क नही लेना चाहता था...पर उसके पास बड़े ही बेकार पत्ते आए...7, 3, 5.
उसने बिना शो माँगे ही पैक कर दिया...
गणेश ने फिर से हंसते हुए सारे पैसे उठा लिए.
केशव : "आज तो लगता है इसी का दिन है...दो गेम में ही डेड -दो हज़ार जीत गया...''
गणेश : "केशव भाई, ये तो वक़्त-2 की बात है...कल तुम्हारा दिन था...आज मेरा दिन है...और वैसे भी, अभी तो खेल शुरू हुआ है...शायद तुम जीत जाओ आगे चलकर...''
केशव ने मन मे सोचा 'वो तो होना ही है...एक बार काजल को आने दो बीच मे..फिर देखना, तुम्हारी जेब कैसे खाली करवाता हूँ मैं...''
अगला खेल शुरू हुआ..तभी केशव बोला : "मैं ज़रा बाथरूम होकर आता हू...तुम मेरे पत्ते काजल को बाँट दो...तब तक ये खेल लेगी...''
इसमे भला उन दोनो को क्या परेशानी हो सकती थी..उनके तो चेहरे और भी ज़्यादा चमक उठे..
केशव उठकर उपर चला गया..
काजल सोफे पर बैठी..उसका दिल अब जोरो से धड़क रहा था..गणेश ने गड्डी को काजल की तरफ बढ़ाया .ताकि वो उसे काट सके..जैसे ही काजल ने गड्डी पर हाथ रखा, गणेश ने उसके हाथ के उपर अपना हाथ रखकर उसे दबोच लिया..
गणेश : "अर्रे...अर्रे ....ऐसे नही....इतने पत्ते मत निकालो...थोड़ा आराम से...आधे से कम काटो...आराम से...''
और ये सब कहते-2 वो काजल के नर्म और मुलायम हाथ को अपने कठोर हाथों से सहला भी रहा था..
काजल भी उसके ऐसे स्पर्श के महसूस करके कसमसा उठी..उसके शरीर के रोँये खड़े हो गये...क्योंकि आज तक उसे किसी ने इस तरह से छुआ नही था..कल अपने भाई का स्पर्श और अब इस गणेश का...दो दिन मे दो मर्दों के शरीर ने उसे छुआ था..ये एक कुँवारी लड़की के लिए एक शॉक से कम नही होता..
काजल ने थोड़े से ही पत्ते उठाए और ताश को काट कर नीचे रख दिया.गणेश ने पत्ते बाँटे.
बूट के बाद सभी ने 3-3 बार ब्लाइंड चली..काजल वैसे तो निश्चिन्त ही थी, क्योंकि उसे पता था की उसके पत्ते अच्छे ही निकलेंगे..पर एक डर भी लग रहा था..की कहीं कुछ गड़बड़ ना हो जाए...