05-09-2019, 08:01 PM
(This post was last modified: 07-09-2019, 10:57 AM by thepirate18. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
Update 35
भूषण रूपाली की तरफ बढ़ा तो रूपाली पिछे होकर फिर चिल्ल्लाने लगी.
"चिल्लओ" भूषण ने आराम से कहा "ये हवेली इतनी मनहूस है के किसी ने सुन भी लिया तो इस तरफ आएगा नही"
थोड़ी देर चिल्लाने के बाद रूपाली चुप हो गयी
"क्यूँ?" उसने भूषण से पुचछा
"क्यूँ?" भूषण बोला "क्यूंकी तुम अपने आपको झाँसी की रानी समझने लग गयी थी अचानक. मैं ये सब ऐसे नही चाहता था. मैं तो ठाकुर के खानदान को एक एक करके, सड़ सड़के, रिस रिसके मरते हुए देखना चाहता था. बची हुई इज़्ज़त को ख़तम होने के बाद मारना चाहता था. पर तुमने सारा खेल बिगाड़ दिया. क्या ज़रूरत थी वो तस्वीर दुनिया को दिखाते हुए फिरने की?"
"पर क्यूँ?" रूपाली ने सवाल फिर दोहराया
"क्यूंकी बर्बाद किया था मुझे ठाकुर ने. सारी ज़िंदगी मैने एक नौकर बनके गुज़ार दी. प्यार करता था मैं सरिता से और वो मुझसे पर क्यूंकी मैं ग़रीब उनके घर के नौकर का बेटा था इसलिए उसकी शादी मुझसे हो नही सकती थी. हम दोनो भाग जाने के चक्कर में थे के जाने कहाँ से ये शौर्या सिंग बीच में आ गया. ना सरिता कुच्छ कर सकी और ना मैं" भूषण गुस्से से चिल्लाते हुए बोला
"तो वो कहानी जो हॉस्पिटल में सुनाई थी?" रूपाली ने कहा
"झूठ थी. शादी के बाद मैने हार नही मानी. मैं सरिता के बिना ज़िंदा नही रह सकता था इसलिए यहाँ चला आया. पड़ा रहा एक नौकर बनके क्यूंकी यहाँ मुझे वो रोज़ नज़र आ जाती थी" भूषण ने कहा
"तो फिर ये सब क्यूँ?" रूपाली बोली
"2 वजह थी. पहली तो ये के इन्होने मेरी बीवी को मार दिया. सरिता के कहने पर मैने उस बेचारी से शादी की थी ताकि किसी को शक ना हो पर यहाँ लाकर तो मैने जैसे उसे मौत के मुँह में धकेल दिया. इन सबने उसे अपनी हवस का शिकार बनाया और फिर मारके पिछे ही दफ़ना दिया. जानती हो उसकी गर्दन पर तलवार से वार किसने किया था? तुम्हारे सबसे छ्होटे देवर कुलदीप ने जो उस वक़्त मुश्किल से 18-19 साल का था. और दूसरी वजह थी कामिनी. उसे पता चल गया था के वो मेरी बेटी है और सबको बता देना चाहती थी"
"आपकी बेटी?" रूपाली ने कहा
"हां मेरी बेटी थी वो. पर एक दिन उसने मुझे और सरिता को खेतों में नंगी हालत में देख लिया था और सरिता को उसको मजबूर होते हुए सब बताना पड़ा." भूषण की ये बात सुनते ही रूपाली को जैसे अपने बाकी सवालों के जवाब भी मिल गये.
टुबेवेल्ल पर बिंदिया के पति ने कामिनी और किसी आदमी को नही बल्कि सरिता देवी और भूषण को देखा था. क्यूंकी कामिनी की शकल सरिता देवी से मिलती थी इसलिए दूर से उसको लगा के कामिनी है क्यूंकी इस हालत में होने की उम्मीद एक जवान औरत से ही की जा सकती है, ना के एक जवान बेटी की माँ से. और इसलिए ट्यूबिवेल के कमरे की चाभी उसको सरिता देवी के पास से मिली थी. और यही वजह थी के कामिनी की शकल उसके भाइयों से नही मिलती थी. क्यूंकी वो ठाकुर की औलाद थी ही नही. जहाँ उसके चारों भाई बेहद खूबसूरत थे वहीं वो एक मामूली सी सूरत वाली थी क्यूंकी वो ठाकुर पर नही बल्कि अपनी माँ और घर के नौकर पर गयी थी.
"वो जो आदमी हवेली में रात को आता था" रूपाली ने पुचछा
"झूठ था. मैने तो तुम्हें पहले दिन ही कहा था के तुम्हारे पति की मौत का राज़ इसी हवेली में है. मैं था इस हवेली में पर तुम देख नही सकी. शुरू से मैं तुम्हें वो दिखाता रहा जो तुम देखना चाहती थी."
भूषण बोला
"और कुलदीप?" रूपाली बोली
"उस साले को तो मैने कामिनी से पहले ही मार दिया था. उसकी लाश भी वहीं आस पास है जहाँ मेरी बीवी की लाश मिली थी." भूषण बोला
"कामिनी को आपने मारा था?" रूपाली को यकीन नही हुआ "अपनी बेटी को"
"तो क्या करता. वो खुद अपनी माँ को मारना चाहती थी जिसके लिए वो गन तुम्हारे भाई से लाई थी. ये गन" भूषण गन रूपाली को दिखता हुआ बोला
रूपाली को धीरे धीरे बाकी बात भी समझ आने लगी. रूपाली अपनी माँ के बारे में बात कर रही थी ना की अपने बारे में जब उसने इंदर को ये कहा था के सबको बस जिस्म की भूख मिटानी है क्यूंकी उसने अपनी माँ को घर के नौकर के साथ नंगी हालत में देखा था. तब उसकी माँ ये भूल गयी थी के कौन अपने घर का उसका अपना पति है और कौन एक मामूली नौकर. इसलिए उसने इंदर को कहा था के वो उसके काबिल नही क्यूंकी इंदर एक ठाकुर था और वो एक नौकर की बेटी.
"ठाकुर साहब?" रूपाली ने पुचछा
"अभी अपने हाथों से गला दबाके मारकर आया हूँ. यहाँ इरादा तो तेज को ख़तम करने का था पर पहले कमरे में इंदर मिल गया. तो उसी को निपटा दिया. गोली की आवाज़ से बिंदिया और पायल आई तो उन दोनो को भी मारना पड़ा. अभी मैं तेज को ढूँढ ही रहा था के बाहर से उसकी कार आती हुई दिखाई दी. साले की मौत सही वक़्त पर ले आई थी उसको यहाँ. मैं वही घर का बुद्धा नौकर बनके उसके पास गया, कमर झुकाए हुए और जैसे ही वो करीब आया, एक गोली उसके जिस्म में. खेल ख़तम"
"कुलदीप और कामिनी के बारे में किसी को पता कैसे नही था?" रूपाली जैसे आखरी कुच्छ सवाल पुच्छ रही थी
"क्यूंकी उनको मैने रास्ते में मारा. क्या है के उन दोनो के साथ मैं उन्हें एरपोर्ट तक छ्चोड़ने गया था. गाड़ी का ड्राइवर बनके. मेरा काम था उनको छ्चोड़ना और गाड़ी वापिस लाना. दोनो को रास्ते में ख़तम किया और डिकी में लाश डालकर वापिस हवेली ले आया. रात को दफ़ना दिया" भूषण ने जवाब दिया. वो भी जैसे चाहता था के मारने से पहले रूपाली को सब बता दे.
"पर एक सवाल रहता है जिसने ये सारा बखेड़ा शुरू किया. मेरे पति को क्यूँ मारा?" रूपाली ने कहा
"उस दिन कामिनी सरिता को मारने के इरादे से निकली थी. वो सोच रही थी के जाकर सरिता को मंदिर में ही मारकर आ जाएगी तब जबकि पुरुषोत्तम उसको छ्चोड़के चला जाएगा. मुझे उसके इरादे नेक नही लग रहे थे इसलिए उसपर नज़र रखा हुआ था. वो हवेली से कुच्छ दूर ही गयी थी के मैने उसका पिच्छा करके उसको रास्ते में रोक लिया. उससे बात करते हुए मैने ये गन उसके हाथ से छीन ली और अभी हम बात कर ही रहे थे के पुरुषोत्तम जाने क्यूँ हवेली वापिस आ गया. कामिनी मुझपर चिल्ला रही थी और मेरे हाथ में रेवोल्वेर थी. जाने उसने क्या सोचा पर वो चिल्लाता हुआ मेरी तरफ बढ़ा. मैने गोली मार दी. ये मेरी किस्मत ही थी के उस वक़्त कोई भी नौकर वहाँ से नही गुज़रा वरना घर के सारे नौकर उसी रास्ते से उसी वक़्त घर वापिस जाते थे. पुरुषोत्तम को मारने के बाद मैने कामिनी को डराकर चुप तो कर दिया पर मुझे पता था के वो मुँह खोल देगी इसलिए उसको भी मारना पड़ा."
"अपनी ही बेटी को?" रूपाली ने कहा "प्यार नही था उससे?"
"मुझे सिर्फ़ सरिता से प्यार था" भूषण बोला
"क्या हो रहा है यहाँ?" दरवाज़े की तरफ से आवाज़ आई तो भूषण और रूपाली दोनो पलटे. दरवाज़े पर जय खड़ा था. इससे पहले के वो कुच्छ समझ पाता भूषण का हाथ फिर सीधा हुआ और ऱेवोल्वेर से गोली चली और जय के सीने पर लगी.
जय लड़खदाया और अगले ही पल भूषण की तरफ बढ़ा. भूषण ने फिर फाइयर करने की कोशिश की पर वो पूरी 6 गोलियाँ चला चुका था. गन से फाइयर नही हुआ और जय उस तक पहुँच गया. उसने भूषण को गले से पकड़ा और पिछे की तरफ धकेलना शुरू कर दिया. पीछे रखे सोफे पर भूषण का पेर फँसा और दोनो नीचे टेबल पर गिरे और फिर ज़मीन पर.
रूपाली खड़ी दोनो की तरफ देख रही थी. भूषण नीचे गिरा हुआ था और जय उसके उपेर पड़ा था. भूषण के सर से खून नदी की तरह बह रहा था जो टेबल पर गिरने की वजह से लगी चोट से था. इसके बाद ना भूषण हिला और ना जय. रूपाली ने झुक कर जय को हिलाने की कोशिश की पर भूषण की चलाई गोली ने देर से सही मगर अपना असर ज़रूर दिखाया था. वो मर चुका था.
रूपाली उठकर खड़ी हो गयी. उसे आस पास 7 लाशें पड़ी थी और इनमें से एक लाश उस आदमी की भी थी जिसने उसके पति को मारा था. वो वहीं नीचे ज़मीन पर बैठ गयी. समझ नही आ रहा था के क्या करे. रात का अंधेरा धीरे धीरे फेलने लगा था.
वो हवेली आज भी वैसे ही सुनसान थी जैसे की वो पिच्छले 10 साल से थी
End
भूषण रूपाली की तरफ बढ़ा तो रूपाली पिछे होकर फिर चिल्ल्लाने लगी.
"चिल्लओ" भूषण ने आराम से कहा "ये हवेली इतनी मनहूस है के किसी ने सुन भी लिया तो इस तरफ आएगा नही"
थोड़ी देर चिल्लाने के बाद रूपाली चुप हो गयी
"क्यूँ?" उसने भूषण से पुचछा
"क्यूँ?" भूषण बोला "क्यूंकी तुम अपने आपको झाँसी की रानी समझने लग गयी थी अचानक. मैं ये सब ऐसे नही चाहता था. मैं तो ठाकुर के खानदान को एक एक करके, सड़ सड़के, रिस रिसके मरते हुए देखना चाहता था. बची हुई इज़्ज़त को ख़तम होने के बाद मारना चाहता था. पर तुमने सारा खेल बिगाड़ दिया. क्या ज़रूरत थी वो तस्वीर दुनिया को दिखाते हुए फिरने की?"
"पर क्यूँ?" रूपाली ने सवाल फिर दोहराया
"क्यूंकी बर्बाद किया था मुझे ठाकुर ने. सारी ज़िंदगी मैने एक नौकर बनके गुज़ार दी. प्यार करता था मैं सरिता से और वो मुझसे पर क्यूंकी मैं ग़रीब उनके घर के नौकर का बेटा था इसलिए उसकी शादी मुझसे हो नही सकती थी. हम दोनो भाग जाने के चक्कर में थे के जाने कहाँ से ये शौर्या सिंग बीच में आ गया. ना सरिता कुच्छ कर सकी और ना मैं" भूषण गुस्से से चिल्लाते हुए बोला
"तो वो कहानी जो हॉस्पिटल में सुनाई थी?" रूपाली ने कहा
"झूठ थी. शादी के बाद मैने हार नही मानी. मैं सरिता के बिना ज़िंदा नही रह सकता था इसलिए यहाँ चला आया. पड़ा रहा एक नौकर बनके क्यूंकी यहाँ मुझे वो रोज़ नज़र आ जाती थी" भूषण ने कहा
"तो फिर ये सब क्यूँ?" रूपाली बोली
"2 वजह थी. पहली तो ये के इन्होने मेरी बीवी को मार दिया. सरिता के कहने पर मैने उस बेचारी से शादी की थी ताकि किसी को शक ना हो पर यहाँ लाकर तो मैने जैसे उसे मौत के मुँह में धकेल दिया. इन सबने उसे अपनी हवस का शिकार बनाया और फिर मारके पिछे ही दफ़ना दिया. जानती हो उसकी गर्दन पर तलवार से वार किसने किया था? तुम्हारे सबसे छ्होटे देवर कुलदीप ने जो उस वक़्त मुश्किल से 18-19 साल का था. और दूसरी वजह थी कामिनी. उसे पता चल गया था के वो मेरी बेटी है और सबको बता देना चाहती थी"
"आपकी बेटी?" रूपाली ने कहा
"हां मेरी बेटी थी वो. पर एक दिन उसने मुझे और सरिता को खेतों में नंगी हालत में देख लिया था और सरिता को उसको मजबूर होते हुए सब बताना पड़ा." भूषण की ये बात सुनते ही रूपाली को जैसे अपने बाकी सवालों के जवाब भी मिल गये.
टुबेवेल्ल पर बिंदिया के पति ने कामिनी और किसी आदमी को नही बल्कि सरिता देवी और भूषण को देखा था. क्यूंकी कामिनी की शकल सरिता देवी से मिलती थी इसलिए दूर से उसको लगा के कामिनी है क्यूंकी इस हालत में होने की उम्मीद एक जवान औरत से ही की जा सकती है, ना के एक जवान बेटी की माँ से. और इसलिए ट्यूबिवेल के कमरे की चाभी उसको सरिता देवी के पास से मिली थी. और यही वजह थी के कामिनी की शकल उसके भाइयों से नही मिलती थी. क्यूंकी वो ठाकुर की औलाद थी ही नही. जहाँ उसके चारों भाई बेहद खूबसूरत थे वहीं वो एक मामूली सी सूरत वाली थी क्यूंकी वो ठाकुर पर नही बल्कि अपनी माँ और घर के नौकर पर गयी थी.
"वो जो आदमी हवेली में रात को आता था" रूपाली ने पुचछा
"झूठ था. मैने तो तुम्हें पहले दिन ही कहा था के तुम्हारे पति की मौत का राज़ इसी हवेली में है. मैं था इस हवेली में पर तुम देख नही सकी. शुरू से मैं तुम्हें वो दिखाता रहा जो तुम देखना चाहती थी."
भूषण बोला
"और कुलदीप?" रूपाली बोली
"उस साले को तो मैने कामिनी से पहले ही मार दिया था. उसकी लाश भी वहीं आस पास है जहाँ मेरी बीवी की लाश मिली थी." भूषण बोला
"कामिनी को आपने मारा था?" रूपाली को यकीन नही हुआ "अपनी बेटी को"
"तो क्या करता. वो खुद अपनी माँ को मारना चाहती थी जिसके लिए वो गन तुम्हारे भाई से लाई थी. ये गन" भूषण गन रूपाली को दिखता हुआ बोला
रूपाली को धीरे धीरे बाकी बात भी समझ आने लगी. रूपाली अपनी माँ के बारे में बात कर रही थी ना की अपने बारे में जब उसने इंदर को ये कहा था के सबको बस जिस्म की भूख मिटानी है क्यूंकी उसने अपनी माँ को घर के नौकर के साथ नंगी हालत में देखा था. तब उसकी माँ ये भूल गयी थी के कौन अपने घर का उसका अपना पति है और कौन एक मामूली नौकर. इसलिए उसने इंदर को कहा था के वो उसके काबिल नही क्यूंकी इंदर एक ठाकुर था और वो एक नौकर की बेटी.
"ठाकुर साहब?" रूपाली ने पुचछा
"अभी अपने हाथों से गला दबाके मारकर आया हूँ. यहाँ इरादा तो तेज को ख़तम करने का था पर पहले कमरे में इंदर मिल गया. तो उसी को निपटा दिया. गोली की आवाज़ से बिंदिया और पायल आई तो उन दोनो को भी मारना पड़ा. अभी मैं तेज को ढूँढ ही रहा था के बाहर से उसकी कार आती हुई दिखाई दी. साले की मौत सही वक़्त पर ले आई थी उसको यहाँ. मैं वही घर का बुद्धा नौकर बनके उसके पास गया, कमर झुकाए हुए और जैसे ही वो करीब आया, एक गोली उसके जिस्म में. खेल ख़तम"
"कुलदीप और कामिनी के बारे में किसी को पता कैसे नही था?" रूपाली जैसे आखरी कुच्छ सवाल पुच्छ रही थी
"क्यूंकी उनको मैने रास्ते में मारा. क्या है के उन दोनो के साथ मैं उन्हें एरपोर्ट तक छ्चोड़ने गया था. गाड़ी का ड्राइवर बनके. मेरा काम था उनको छ्चोड़ना और गाड़ी वापिस लाना. दोनो को रास्ते में ख़तम किया और डिकी में लाश डालकर वापिस हवेली ले आया. रात को दफ़ना दिया" भूषण ने जवाब दिया. वो भी जैसे चाहता था के मारने से पहले रूपाली को सब बता दे.
"पर एक सवाल रहता है जिसने ये सारा बखेड़ा शुरू किया. मेरे पति को क्यूँ मारा?" रूपाली ने कहा
"उस दिन कामिनी सरिता को मारने के इरादे से निकली थी. वो सोच रही थी के जाकर सरिता को मंदिर में ही मारकर आ जाएगी तब जबकि पुरुषोत्तम उसको छ्चोड़के चला जाएगा. मुझे उसके इरादे नेक नही लग रहे थे इसलिए उसपर नज़र रखा हुआ था. वो हवेली से कुच्छ दूर ही गयी थी के मैने उसका पिच्छा करके उसको रास्ते में रोक लिया. उससे बात करते हुए मैने ये गन उसके हाथ से छीन ली और अभी हम बात कर ही रहे थे के पुरुषोत्तम जाने क्यूँ हवेली वापिस आ गया. कामिनी मुझपर चिल्ला रही थी और मेरे हाथ में रेवोल्वेर थी. जाने उसने क्या सोचा पर वो चिल्लाता हुआ मेरी तरफ बढ़ा. मैने गोली मार दी. ये मेरी किस्मत ही थी के उस वक़्त कोई भी नौकर वहाँ से नही गुज़रा वरना घर के सारे नौकर उसी रास्ते से उसी वक़्त घर वापिस जाते थे. पुरुषोत्तम को मारने के बाद मैने कामिनी को डराकर चुप तो कर दिया पर मुझे पता था के वो मुँह खोल देगी इसलिए उसको भी मारना पड़ा."
"अपनी ही बेटी को?" रूपाली ने कहा "प्यार नही था उससे?"
"मुझे सिर्फ़ सरिता से प्यार था" भूषण बोला
"क्या हो रहा है यहाँ?" दरवाज़े की तरफ से आवाज़ आई तो भूषण और रूपाली दोनो पलटे. दरवाज़े पर जय खड़ा था. इससे पहले के वो कुच्छ समझ पाता भूषण का हाथ फिर सीधा हुआ और ऱेवोल्वेर से गोली चली और जय के सीने पर लगी.
जय लड़खदाया और अगले ही पल भूषण की तरफ बढ़ा. भूषण ने फिर फाइयर करने की कोशिश की पर वो पूरी 6 गोलियाँ चला चुका था. गन से फाइयर नही हुआ और जय उस तक पहुँच गया. उसने भूषण को गले से पकड़ा और पिछे की तरफ धकेलना शुरू कर दिया. पीछे रखे सोफे पर भूषण का पेर फँसा और दोनो नीचे टेबल पर गिरे और फिर ज़मीन पर.
रूपाली खड़ी दोनो की तरफ देख रही थी. भूषण नीचे गिरा हुआ था और जय उसके उपेर पड़ा था. भूषण के सर से खून नदी की तरह बह रहा था जो टेबल पर गिरने की वजह से लगी चोट से था. इसके बाद ना भूषण हिला और ना जय. रूपाली ने झुक कर जय को हिलाने की कोशिश की पर भूषण की चलाई गोली ने देर से सही मगर अपना असर ज़रूर दिखाया था. वो मर चुका था.
रूपाली उठकर खड़ी हो गयी. उसे आस पास 7 लाशें पड़ी थी और इनमें से एक लाश उस आदमी की भी थी जिसने उसके पति को मारा था. वो वहीं नीचे ज़मीन पर बैठ गयी. समझ नही आ रहा था के क्या करे. रात का अंधेरा धीरे धीरे फेलने लगा था.
वो हवेली आज भी वैसे ही सुनसान थी जैसे की वो पिच्छले 10 साल से थी
End