05-09-2019, 07:58 PM
Update 33
चंदर ने उसकी तरफ ऐसे देखा जैसे पुच्छ रहा हो के हो गया क्या? रूपाली मुस्कुराइ, उसके लंड को अपनी गांद पर रखा और धीरे धीरे नीचे होने की कोशिश करने लगी.
वो नीचे को होती और लंड जैसे ही गांद में जाता उसके जिस्म में दर्द होना शुरू हो जाता और वो फिर उपेर हो जाती. कई जब कई बार कोशिश करने पर भी वो लंड ले नही सकी तो उसने गुस्से में एक लंबी साँस खींची, अपनी आँखें बंद की, लंड गांद पर रखा और नीचे बैठती चली गयी.
दर्द की एक ल़हेर उसके जिस्म में उपेर से नीचे तक दौड़ गयी पर वो रुकी नही. अगले ही पल उसकी गांद नीचे चंदर की जाँघ से मिल गयी और लंड पूरी तरह गांद में समा गया. रूपाली से दर्द बर्दाश्त नही हो रहा था और आँखो से आँसू बह रहे थे. वो अभी रुक कर साँस ही ले रही थी के नीचे से चंदर ने नीचे से कमर झटक कर गांद पर एक धक्का मारा. रूपाली की चीख निकल गयी.
अगले दिन रूपाली की आँख जल्दी खुल गयी. वो अब भी बिस्तर पर नंगी पड़ी थी और गांद में अब तक दर्द हो रहा था. कल रात उसने उस वक़्त तो गांद मारा ली थी क्यूंकी थोड़ी देर बाद मज़ा आने लगा था पर चंदर के जाने के बाद उसका सोना मुश्किल हो गया था. इतना दर्द तो उसे तब भी नही हुआ था जब वो शादी के बाद पहली बार चुदी थी.
वो बिस्तर से उठके नीचे आई और सबसे पहले देवधर को फोन करने की सोची जिसे उसने आज घर आने को कहा.
"मैं बस अभी निकल ही रहा था" देवधर ने कहा
"आप हवेली ना आएँ" रूपाली ने कहा
"जी?" देवधर की समझ ना आया
"आप सीधे जय के घर पहुँचे. मैं दोपहर 12 बजे आपसे वहीं मिलूंगी" रूपाली ने कहा और फोन रख दिया
तेज सुबह सुबह ही कहीं गायब हो गया था और इंदर अब तक सो रहा था. पायल और बिंदिया रूपाली को किचन में मिले.
बिंदया अब भी अपने पुराने कपड़े में ही खड़ी थी जबकि पायल ने रूपाली की दिए हुए कपड़े पहेन रखे थे.
बिंदिया को देखकर रूपाली के दिल में ख्याल आया के उसे भी कुच्छ कपड़े दे दे पर सवाल था के किसके. सोचा तो उसके दिमाग़ में अपनी सास का नाम आया. सरिता देवी के मरने के बाद से उनके कपड़े सब यूँ ही रखे थे.
रूपाली उस कमरे में पहुँची जिस में सरिता देवी ने अपने आखरी कुच्छ दिन गुज़ारे थे. बीमार होने के बाद उन्हें इस कमरे में शिफ्ट कर दिया गया था और उनका सारा समान भी यहीं था. रूपाली कमरे में आई और कपड़े उठा उठाकर देखने लगी
कुच्छ कपड़े पसंद करने के बाद वो कमरे से निकल ही रही थी के उसे वो डिब्बा नज़र आया जिसमें सरिता देवी अपनी दवाई रखा करती थी. कुच्छ गोलियाँ डिब्बे में अब भी थी. अब उनका कुच्छ काम नही था ये सोचकर रूपाली ने डिब्बा उठाया और खोला.
उसमें नीचे एक पेपर मॉड्कर रखा हुआ था और उसपर कुच्छ गोलियाँ रखी हुई थी. रूपाली ने डिब्बा उलटकर दवाइयाँ बिस्तर पर गिराई. गोलियों के साथ ही अंदर रखा वो काग़ज़ भी निकालकर बिस्तर पर गिर पड़ा और तब रूपाली का ध्यान पड़ा के वो असल में एक काग़ज़ नही बल्कि एक तस्वीर थी.
तस्वीर ब्लॅक आंड वाइट थी. उसमें कामिनी एक लड़के के साथ खड़ी हुई थी. लड़का कौन था ये रूपाली पहचान नही सकी पर सबसे ज़्यादा हैरत उसे कामिनी के कपड़ो पर हुई. कामिनी कभी इस तरह के कपड़े नही पेहेन्ति थी और तब रूपाली ने ध्यान से देखा तो उसको एहसास हुआ को वो लड़की कामिनी नही बल्कि खुद सरिता देवी थी. ये उनकी जवानी के दीनो की तस्वीर थी. कामिनी शकल सूरत से बिल्कुल अपनी माँ पर गयी थी इसलिए कोई भी इस तस्वीर को देखकर ये धोखा खा सकता था के तस्वीर में कामिनी खड़ी है.
रूपाली का ध्यान सरिता देवी के साथ खड़े लड़के पर गया. जहाँ तक उसको पता था सरिता देवी का कोई भाई नही था और फोटो में खड़ा लड़का ठाकुर साहब तो बिल्कुल नही थे. लड़का शकल सूरत से खूबसूरत था पर सरिता देवी से हाइट में छ्होटा था. रूपाली ने तस्वीर उठाकर अपने पास रख ली और कमरे से बाहर निकल आई.
बाहर आकर उसने इनस्पेक्टर ख़ान को फोन किया और उसको भी हवेली आने के बजाय जय के घर पर मिलने की हिदायत दी.
इंदर अब तक सो रहा था. रूपाली ने उसे जगाना चाहा पर फिर अपनी सोच बदलकर तैय्यार हुई और खुद ही अकेली कार लेकर निकल पड़ी.
थोड़ी देर बाद वो हॉस्पिटल पहुँची.
ठाकुर अब भी बेहोश थे. भूषण वहीं बेड के पास बैठा हुआ था. रूपाली को देखकर वो खड़ा हुआ.
रूपाली वो तस्वीर अपने साथ लाई थी जो उसे सरिता देवी के कमरे में मिली थी. वो जानती थी के अगर कोई उसको तस्वीर में खड़े लड़के के बारे में बता सकता था तो वो एक भूषण ही था.
रूपाली ने तस्वीर निकालकर भूषण को दिखाई.
"कौन है ये आदमी काका?" उसने भूषण से पुचछा
तस्वीर देखते ही भूषण की आँखें फेल गयी.
"आपको ये कहाँ मिली?" भूषण ने पुचछा
"माँ के कमरे से" रूपाली अपनी सास को माँ कहकर ही बुलाती थी "कौन है ये?"
"था एक बदनसीब" भूषण ने कहा "जिसकी मौत इस हवेली में लिखी थी और उसको यहाँ खींच लाई थी"
"मतलब?" रूपाली ने पुचछा
"ये ठकुराइन के बचपन का दोस्त था. ये लोग साथ में पले बढ़े थे. सरिता देवी इसको अपने भाई की तरह मनती थी पर इसके दिल में शायद कुच्छ और ही था. जब उनकी शादी ठाकुर साहब के साथ हुई तो इसने बड़ा बवाल किया था सुना है पर शादी रोक नही पाया क्यूंकी सरिता देवी खुद ऐसा नही चाहती थी."
"फिर?" रूपाली ने पुचछा
"फिर शादी हो गयी और सब इस बात को भूल गये. ठाकुर साहब को तो इस बात की खबर भी उस दिन लगी जब ये हवेली में आ पहुँचा"
"हवेली?"रूपाली बोली
"हां" भूषण ने कहा "शादी के कोई 1 महीने बाद की बात है. एक दिन ये हवेली के दरवाज़े पर आ खड़ा हुआ और इसकी बदक़िस्मती के सबसे पहले ठाकुर साहब से ही टकरा गया. उनसे गुहार करने लगा के वो ठकुराइन से प्यार करता है और उनके बिना जी नही सकता. और जैसे इसके दिल की मुराद पूरी हो गयी"
रूपाली खामोश खड़ी सुन रही थी
"ठाकुर साहब ने इसे इतना मारा के इसने वहीं दम तोड़ दिया. लोग प्यार में जान देते हैं मैने सुना था पर उस दिन देखा पहली बार था" भूषण ने कहा
रूपाली को अपने कानो पर यकीन नही हो रहा था. उसे समझ नही आ रहा था के क्या कहे और क्या सोचे. उसने अपनी घड़ी पर नज़र डाली. दोपहर होने को थी. उसने फ़ैसला किया के तस्वीर के बारे में बाद में सोचेगी और वहाँ से निकालकर जय के घर की तरफ बढ़ी.
12 बजने में थोड़ी ही देर थी जब रूपाली ने जय के घर के बाहर कार रोकी. देवधर और इनस्पेक्टर ख़ान बाहर ही खड़े उसका इंतेज़ार कर रहे थे.
"यहाँ क्यूँ बुलाया?" ख़ान ने रूपाली को देखते हुए पुचछा
"सोचा के जो मेरा है वो वापिस ले लिया जाए" रूपाली ने कहा तो देवधर और ख़ान दोनो उसकी तरफ हैरानी से देखने लगे
"आप ही ने कहा था ना के मेरे पति की मौत होते ही सब मेरे नाम हो गया था.पवर ऑफ अटर्नी बेकार थी तो मतलब के जय ने जिस हक से ये घर खरीदा वो भी ख़तम था. तो मतलब के ये घर मेरा हुआ?" रूपाली ने कहा तो ख़ान और देवधर दोनो मुस्कुरा दिए और उसके साथ जय के घर के गेट की तरफ बढ़े.
वॉचमन ने बताया के जय घर पर ही था और अंदर जाकर जय को उनके आने की खबर करके आया. कुच्छ देर बाद वो तीनो जय के सामने बैठे थे.
जाई तकरीबन पुरुषोत्तम की ही उमर का था. शकल पर वही ठाकुरों वाली अकड़. बैठा भी ऐसे जैसे कोई राजा अपने महेल में बैठा हो.
रूपाली को हैरत थी के वो कभी जाई से मिली नही थी. वो उसकी शादी से पहले ही अलग घर बनाकर रहने लगा था पर कभी किसी ने उसका ज़िक्र रूपाली के सामने नही किया था और ना ही रूपाली ने उसको अपनी शादी में देखा था जबकि वो उसके पति का सबसे करीबी था. पर इसका दोष उसने खुद को ही दिया. उन दीनो तो उसे अपनी पति तक की खबर नई होती थी, जाई की क्या होती.
"कहिए" उसने रूपाली को देखते हुए पुचछा
"गेट आउट" रूपाली ने उसे देखते हुए कहा
"क्या?" जाई ने ऐसे पुचछा जैसे अँग्रेज़ी समझ ही ना आती हो
"मेरे घर से अभी इसी वक़्त बाहर निकल जाओ" रूपाली ने कहा
"आपके घर से?" जाई ने हस्ते हुए पुचछा
रूपाली ने देवधर की तरफ देखा. देवधर आगे बढ़ा और वो सारी बातें जाई को बताने लगा जो उसने पहले रूपाली को बताया था. धीरे धीरे जाई की समझ आया के रूपाली किस हक से उसके घर को अपना कह रही थी और वो परेशान अपने सामने रखे पेपर्स को देखने लगा.
"और अगर मैं जाने से इनकार कर दूँ तो?" जाई ने पेपर्स एक तरफ करते हुए पुचछा
रूपाली ने खामोशी से इनस्पेक्टर ख़ान की तरफ देखा. वो जानती थी के जाई ऐसा बोल सकता है इसलिए ख़ान को साथ लाई थी
"मैं ये मामला अदालत में ले जाऊँगा. ऐसे कैसे घर आपका हो गया? मैं अपने वकील को बुलाता हूँ" जाई ने फोन की तरफ हाथ बढ़ाया
"बाहर एक एसटीडी बूथ है. वहाँ से करना. फिलहाल घर से बाहर निकल" ख़ान बीचे में बोल पड़ा
"तमीज़ से बात करो" जाई ख़ान पर चिल्लाते हुए बोला
"ये देखा है?" ख़ान ने अपना हाथ आगे किए "एक कान के नीचे पड़ा ना तो तमीज़ और कमीज़ में फरक समझ नही आएगा तुझे. चल निकल"
जाई चुप हो गया. वो उठकर घर के अंदर की तरफ जाने लगा.
"वहाँ कहाँ जा रहा है?" ख़ान फिर बोला "दरवाज़ा उस तरफ है"
"अपना कुच्छ समान लेने जा रहा हूँ" जाई रुकते हुए बोला
"वो समान भी मेरे पैसो से आया था तो वो भी मेरा हुआ. अब इससे पहले के मैं ये कपड़े जो तुमने पहेन रखे हैं ये भी उतरवा लूँ, निकल जाओ" रूपाली खड़ी होते हुए बोली
"फिलहाल तो जा रहा हूँ पर इतना आसान नही होगा आपके लिए मुझे हराना" जाई ने कहा तो रूपाली मुस्कुराने लगी
"आपको क्या लगता है के ये सब उस नीच ठाकुर का है जो अपने ही भाई को दौलत के लिए मार डाले? जो साले अपने घर की नौकरानी को भी नही छ्चोड़ते?" जाई ने रूपाली के करीब आते हुए कहा.
उसकी इस हरकत पर ख़ान उसकी तरफ बढ़ा पर रूपाली ने उसको हाथ के इशारे से रोक दिया
"क्या मतलब?" उसने जाई से पुचछा "क्या बकवास कर रहे हो?"
"सच कह रहा हूँ" जाई ने कहा "आपको शायद नही पता पर मैने देखा है. वो भूषण की बीवी, उसे ठाकुर के खानदान ने अपनी रखैल बना रखा था. ज़बरदस्ती सुबह शाम रगड़ते थे उसे. ठाकुर, तेज, कुलदीप और खुद आपके पति पुरुषोत्तम सिंग जी"
"भूषण की बीवी?" रूपाली हैरान हुई
"जी हां" तेज बोला "जब उस बेचारी ने जाकर सब कुच्छ भूषण या आपकी सास को बता देने की धमकी दी तो गायब हो गयी और बात ये फेला दी गयी के अपने किसी आशिक़ के साथ भाग गयी"
रूपाली के दिमाग़ की बत्तियाँ जैसे एक एक करके जलने लगी. हवेली में मिली लाश जो कामिनी की नही थी, कुलदीप के कमरे में मिला वो ब्रा. खुद ख़ान भी चुप खड़ा सुन रहा था.
"तुम्हें ये कैसे पता?" रूपाली ने पुचछा
"हवेली में बचपन गुज़ारा है मैने. देखा है सब अपनी आँखो से. जैसे ही वो हवेली में काम करने आई तो सबसे पहले ठाकुर की नज़र उस पर पड़ी तो पहले उन्होने काम किया. फिर उनकी देखा देखी उनके सबसे बड़े बेटे पुरुषोत्तम सिंग जिन्हें दुनिया भगवान राम का अवतार समझती थी उन्होने अपना सिक्का चला दिया बेचारी पर. जब बड़े भाई ने मुँह मार लिया तो बाकी के दोनो कहाँ पिछे रहने वाले थे. मौका मिलते ही तेज और कुलदीप ने फ़ायदा उठा लिया"
रूपाली की आँखों के आगे अंधेरा सा च्चाने लगा.
"बकवास कर रहे हो तुम" उसने जाई से कहा
"सच बोल रहा हूँ मैं. अपनी हवस संभाली नही जाती इन लोगों से, फिर चाहे वो औरत की हो या दौलत की और इसी के चलते पुरुषोत्तम भी मरा. आपसी लड़ाई थी वो इन लोगों की दौलत के पिछे. एक भाई ने दूसरे को मारा है" जाई ने कहा
पर रूपाली का दिमाग़ उस वक़्त दूसरी ही तरफ चल रहा था. उसे इंदर की कही बातें याद आ रही थी जो कामिनी ने उसको कही थी.
"बस जिस्म की आग बुझनी चाहिए. फिर नज़र नही आता के कौन अपने घर का है और कौन ........."
उसे अपने पति का वो रूप याद आया जो वो रोज़ रात को बिस्तर पर देखा करती थी. किस तरह से वो उसको नंगी करते ही इंसान से कुच्छ और ही बन जाता था. उसे याद आया के किस आसानी से बिंदिया तेज के बिस्तर पर पहुँच गयी थी और तेज ने मौका मिलते ही उसको चोद लिया था. उसको याद आया के किस आसानी से उस रात ठाकुर ने उसके सामने ही पायल को चोद लिया था. ज़रा भी नही सोचा था दोनो ने के वो एक मामूली नौकरानी है और वो वहाँ के ठाकुर. पर क्या कोई इतना गिर सकता था के अपनी ही बहेन के साथ? सोचकर रूपाली का दिमाग़ फटने लगा. तो ये वजह थी पायल के गायब होने की. अपने भाई को गोली मारकर छुपति फिर रही थी.
चंदर ने उसकी तरफ ऐसे देखा जैसे पुच्छ रहा हो के हो गया क्या? रूपाली मुस्कुराइ, उसके लंड को अपनी गांद पर रखा और धीरे धीरे नीचे होने की कोशिश करने लगी.
वो नीचे को होती और लंड जैसे ही गांद में जाता उसके जिस्म में दर्द होना शुरू हो जाता और वो फिर उपेर हो जाती. कई जब कई बार कोशिश करने पर भी वो लंड ले नही सकी तो उसने गुस्से में एक लंबी साँस खींची, अपनी आँखें बंद की, लंड गांद पर रखा और नीचे बैठती चली गयी.
दर्द की एक ल़हेर उसके जिस्म में उपेर से नीचे तक दौड़ गयी पर वो रुकी नही. अगले ही पल उसकी गांद नीचे चंदर की जाँघ से मिल गयी और लंड पूरी तरह गांद में समा गया. रूपाली से दर्द बर्दाश्त नही हो रहा था और आँखो से आँसू बह रहे थे. वो अभी रुक कर साँस ही ले रही थी के नीचे से चंदर ने नीचे से कमर झटक कर गांद पर एक धक्का मारा. रूपाली की चीख निकल गयी.
अगले दिन रूपाली की आँख जल्दी खुल गयी. वो अब भी बिस्तर पर नंगी पड़ी थी और गांद में अब तक दर्द हो रहा था. कल रात उसने उस वक़्त तो गांद मारा ली थी क्यूंकी थोड़ी देर बाद मज़ा आने लगा था पर चंदर के जाने के बाद उसका सोना मुश्किल हो गया था. इतना दर्द तो उसे तब भी नही हुआ था जब वो शादी के बाद पहली बार चुदी थी.
वो बिस्तर से उठके नीचे आई और सबसे पहले देवधर को फोन करने की सोची जिसे उसने आज घर आने को कहा.
"मैं बस अभी निकल ही रहा था" देवधर ने कहा
"आप हवेली ना आएँ" रूपाली ने कहा
"जी?" देवधर की समझ ना आया
"आप सीधे जय के घर पहुँचे. मैं दोपहर 12 बजे आपसे वहीं मिलूंगी" रूपाली ने कहा और फोन रख दिया
तेज सुबह सुबह ही कहीं गायब हो गया था और इंदर अब तक सो रहा था. पायल और बिंदिया रूपाली को किचन में मिले.
बिंदया अब भी अपने पुराने कपड़े में ही खड़ी थी जबकि पायल ने रूपाली की दिए हुए कपड़े पहेन रखे थे.
बिंदिया को देखकर रूपाली के दिल में ख्याल आया के उसे भी कुच्छ कपड़े दे दे पर सवाल था के किसके. सोचा तो उसके दिमाग़ में अपनी सास का नाम आया. सरिता देवी के मरने के बाद से उनके कपड़े सब यूँ ही रखे थे.
रूपाली उस कमरे में पहुँची जिस में सरिता देवी ने अपने आखरी कुच्छ दिन गुज़ारे थे. बीमार होने के बाद उन्हें इस कमरे में शिफ्ट कर दिया गया था और उनका सारा समान भी यहीं था. रूपाली कमरे में आई और कपड़े उठा उठाकर देखने लगी
कुच्छ कपड़े पसंद करने के बाद वो कमरे से निकल ही रही थी के उसे वो डिब्बा नज़र आया जिसमें सरिता देवी अपनी दवाई रखा करती थी. कुच्छ गोलियाँ डिब्बे में अब भी थी. अब उनका कुच्छ काम नही था ये सोचकर रूपाली ने डिब्बा उठाया और खोला.
उसमें नीचे एक पेपर मॉड्कर रखा हुआ था और उसपर कुच्छ गोलियाँ रखी हुई थी. रूपाली ने डिब्बा उलटकर दवाइयाँ बिस्तर पर गिराई. गोलियों के साथ ही अंदर रखा वो काग़ज़ भी निकालकर बिस्तर पर गिर पड़ा और तब रूपाली का ध्यान पड़ा के वो असल में एक काग़ज़ नही बल्कि एक तस्वीर थी.
तस्वीर ब्लॅक आंड वाइट थी. उसमें कामिनी एक लड़के के साथ खड़ी हुई थी. लड़का कौन था ये रूपाली पहचान नही सकी पर सबसे ज़्यादा हैरत उसे कामिनी के कपड़ो पर हुई. कामिनी कभी इस तरह के कपड़े नही पेहेन्ति थी और तब रूपाली ने ध्यान से देखा तो उसको एहसास हुआ को वो लड़की कामिनी नही बल्कि खुद सरिता देवी थी. ये उनकी जवानी के दीनो की तस्वीर थी. कामिनी शकल सूरत से बिल्कुल अपनी माँ पर गयी थी इसलिए कोई भी इस तस्वीर को देखकर ये धोखा खा सकता था के तस्वीर में कामिनी खड़ी है.
रूपाली का ध्यान सरिता देवी के साथ खड़े लड़के पर गया. जहाँ तक उसको पता था सरिता देवी का कोई भाई नही था और फोटो में खड़ा लड़का ठाकुर साहब तो बिल्कुल नही थे. लड़का शकल सूरत से खूबसूरत था पर सरिता देवी से हाइट में छ्होटा था. रूपाली ने तस्वीर उठाकर अपने पास रख ली और कमरे से बाहर निकल आई.
बाहर आकर उसने इनस्पेक्टर ख़ान को फोन किया और उसको भी हवेली आने के बजाय जय के घर पर मिलने की हिदायत दी.
इंदर अब तक सो रहा था. रूपाली ने उसे जगाना चाहा पर फिर अपनी सोच बदलकर तैय्यार हुई और खुद ही अकेली कार लेकर निकल पड़ी.
थोड़ी देर बाद वो हॉस्पिटल पहुँची.
ठाकुर अब भी बेहोश थे. भूषण वहीं बेड के पास बैठा हुआ था. रूपाली को देखकर वो खड़ा हुआ.
रूपाली वो तस्वीर अपने साथ लाई थी जो उसे सरिता देवी के कमरे में मिली थी. वो जानती थी के अगर कोई उसको तस्वीर में खड़े लड़के के बारे में बता सकता था तो वो एक भूषण ही था.
रूपाली ने तस्वीर निकालकर भूषण को दिखाई.
"कौन है ये आदमी काका?" उसने भूषण से पुचछा
तस्वीर देखते ही भूषण की आँखें फेल गयी.
"आपको ये कहाँ मिली?" भूषण ने पुचछा
"माँ के कमरे से" रूपाली अपनी सास को माँ कहकर ही बुलाती थी "कौन है ये?"
"था एक बदनसीब" भूषण ने कहा "जिसकी मौत इस हवेली में लिखी थी और उसको यहाँ खींच लाई थी"
"मतलब?" रूपाली ने पुचछा
"ये ठकुराइन के बचपन का दोस्त था. ये लोग साथ में पले बढ़े थे. सरिता देवी इसको अपने भाई की तरह मनती थी पर इसके दिल में शायद कुच्छ और ही था. जब उनकी शादी ठाकुर साहब के साथ हुई तो इसने बड़ा बवाल किया था सुना है पर शादी रोक नही पाया क्यूंकी सरिता देवी खुद ऐसा नही चाहती थी."
"फिर?" रूपाली ने पुचछा
"फिर शादी हो गयी और सब इस बात को भूल गये. ठाकुर साहब को तो इस बात की खबर भी उस दिन लगी जब ये हवेली में आ पहुँचा"
"हवेली?"रूपाली बोली
"हां" भूषण ने कहा "शादी के कोई 1 महीने बाद की बात है. एक दिन ये हवेली के दरवाज़े पर आ खड़ा हुआ और इसकी बदक़िस्मती के सबसे पहले ठाकुर साहब से ही टकरा गया. उनसे गुहार करने लगा के वो ठकुराइन से प्यार करता है और उनके बिना जी नही सकता. और जैसे इसके दिल की मुराद पूरी हो गयी"
रूपाली खामोश खड़ी सुन रही थी
"ठाकुर साहब ने इसे इतना मारा के इसने वहीं दम तोड़ दिया. लोग प्यार में जान देते हैं मैने सुना था पर उस दिन देखा पहली बार था" भूषण ने कहा
रूपाली को अपने कानो पर यकीन नही हो रहा था. उसे समझ नही आ रहा था के क्या कहे और क्या सोचे. उसने अपनी घड़ी पर नज़र डाली. दोपहर होने को थी. उसने फ़ैसला किया के तस्वीर के बारे में बाद में सोचेगी और वहाँ से निकालकर जय के घर की तरफ बढ़ी.
12 बजने में थोड़ी ही देर थी जब रूपाली ने जय के घर के बाहर कार रोकी. देवधर और इनस्पेक्टर ख़ान बाहर ही खड़े उसका इंतेज़ार कर रहे थे.
"यहाँ क्यूँ बुलाया?" ख़ान ने रूपाली को देखते हुए पुचछा
"सोचा के जो मेरा है वो वापिस ले लिया जाए" रूपाली ने कहा तो देवधर और ख़ान दोनो उसकी तरफ हैरानी से देखने लगे
"आप ही ने कहा था ना के मेरे पति की मौत होते ही सब मेरे नाम हो गया था.पवर ऑफ अटर्नी बेकार थी तो मतलब के जय ने जिस हक से ये घर खरीदा वो भी ख़तम था. तो मतलब के ये घर मेरा हुआ?" रूपाली ने कहा तो ख़ान और देवधर दोनो मुस्कुरा दिए और उसके साथ जय के घर के गेट की तरफ बढ़े.
वॉचमन ने बताया के जय घर पर ही था और अंदर जाकर जय को उनके आने की खबर करके आया. कुच्छ देर बाद वो तीनो जय के सामने बैठे थे.
जाई तकरीबन पुरुषोत्तम की ही उमर का था. शकल पर वही ठाकुरों वाली अकड़. बैठा भी ऐसे जैसे कोई राजा अपने महेल में बैठा हो.
रूपाली को हैरत थी के वो कभी जाई से मिली नही थी. वो उसकी शादी से पहले ही अलग घर बनाकर रहने लगा था पर कभी किसी ने उसका ज़िक्र रूपाली के सामने नही किया था और ना ही रूपाली ने उसको अपनी शादी में देखा था जबकि वो उसके पति का सबसे करीबी था. पर इसका दोष उसने खुद को ही दिया. उन दीनो तो उसे अपनी पति तक की खबर नई होती थी, जाई की क्या होती.
"कहिए" उसने रूपाली को देखते हुए पुचछा
"गेट आउट" रूपाली ने उसे देखते हुए कहा
"क्या?" जाई ने ऐसे पुचछा जैसे अँग्रेज़ी समझ ही ना आती हो
"मेरे घर से अभी इसी वक़्त बाहर निकल जाओ" रूपाली ने कहा
"आपके घर से?" जाई ने हस्ते हुए पुचछा
रूपाली ने देवधर की तरफ देखा. देवधर आगे बढ़ा और वो सारी बातें जाई को बताने लगा जो उसने पहले रूपाली को बताया था. धीरे धीरे जाई की समझ आया के रूपाली किस हक से उसके घर को अपना कह रही थी और वो परेशान अपने सामने रखे पेपर्स को देखने लगा.
"और अगर मैं जाने से इनकार कर दूँ तो?" जाई ने पेपर्स एक तरफ करते हुए पुचछा
रूपाली ने खामोशी से इनस्पेक्टर ख़ान की तरफ देखा. वो जानती थी के जाई ऐसा बोल सकता है इसलिए ख़ान को साथ लाई थी
"मैं ये मामला अदालत में ले जाऊँगा. ऐसे कैसे घर आपका हो गया? मैं अपने वकील को बुलाता हूँ" जाई ने फोन की तरफ हाथ बढ़ाया
"बाहर एक एसटीडी बूथ है. वहाँ से करना. फिलहाल घर से बाहर निकल" ख़ान बीचे में बोल पड़ा
"तमीज़ से बात करो" जाई ख़ान पर चिल्लाते हुए बोला
"ये देखा है?" ख़ान ने अपना हाथ आगे किए "एक कान के नीचे पड़ा ना तो तमीज़ और कमीज़ में फरक समझ नही आएगा तुझे. चल निकल"
जाई चुप हो गया. वो उठकर घर के अंदर की तरफ जाने लगा.
"वहाँ कहाँ जा रहा है?" ख़ान फिर बोला "दरवाज़ा उस तरफ है"
"अपना कुच्छ समान लेने जा रहा हूँ" जाई रुकते हुए बोला
"वो समान भी मेरे पैसो से आया था तो वो भी मेरा हुआ. अब इससे पहले के मैं ये कपड़े जो तुमने पहेन रखे हैं ये भी उतरवा लूँ, निकल जाओ" रूपाली खड़ी होते हुए बोली
"फिलहाल तो जा रहा हूँ पर इतना आसान नही होगा आपके लिए मुझे हराना" जाई ने कहा तो रूपाली मुस्कुराने लगी
"आपको क्या लगता है के ये सब उस नीच ठाकुर का है जो अपने ही भाई को दौलत के लिए मार डाले? जो साले अपने घर की नौकरानी को भी नही छ्चोड़ते?" जाई ने रूपाली के करीब आते हुए कहा.
उसकी इस हरकत पर ख़ान उसकी तरफ बढ़ा पर रूपाली ने उसको हाथ के इशारे से रोक दिया
"क्या मतलब?" उसने जाई से पुचछा "क्या बकवास कर रहे हो?"
"सच कह रहा हूँ" जाई ने कहा "आपको शायद नही पता पर मैने देखा है. वो भूषण की बीवी, उसे ठाकुर के खानदान ने अपनी रखैल बना रखा था. ज़बरदस्ती सुबह शाम रगड़ते थे उसे. ठाकुर, तेज, कुलदीप और खुद आपके पति पुरुषोत्तम सिंग जी"
"भूषण की बीवी?" रूपाली हैरान हुई
"जी हां" तेज बोला "जब उस बेचारी ने जाकर सब कुच्छ भूषण या आपकी सास को बता देने की धमकी दी तो गायब हो गयी और बात ये फेला दी गयी के अपने किसी आशिक़ के साथ भाग गयी"
रूपाली के दिमाग़ की बत्तियाँ जैसे एक एक करके जलने लगी. हवेली में मिली लाश जो कामिनी की नही थी, कुलदीप के कमरे में मिला वो ब्रा. खुद ख़ान भी चुप खड़ा सुन रहा था.
"तुम्हें ये कैसे पता?" रूपाली ने पुचछा
"हवेली में बचपन गुज़ारा है मैने. देखा है सब अपनी आँखो से. जैसे ही वो हवेली में काम करने आई तो सबसे पहले ठाकुर की नज़र उस पर पड़ी तो पहले उन्होने काम किया. फिर उनकी देखा देखी उनके सबसे बड़े बेटे पुरुषोत्तम सिंग जिन्हें दुनिया भगवान राम का अवतार समझती थी उन्होने अपना सिक्का चला दिया बेचारी पर. जब बड़े भाई ने मुँह मार लिया तो बाकी के दोनो कहाँ पिछे रहने वाले थे. मौका मिलते ही तेज और कुलदीप ने फ़ायदा उठा लिया"
रूपाली की आँखों के आगे अंधेरा सा च्चाने लगा.
"बकवास कर रहे हो तुम" उसने जाई से कहा
"सच बोल रहा हूँ मैं. अपनी हवस संभाली नही जाती इन लोगों से, फिर चाहे वो औरत की हो या दौलत की और इसी के चलते पुरुषोत्तम भी मरा. आपसी लड़ाई थी वो इन लोगों की दौलत के पिछे. एक भाई ने दूसरे को मारा है" जाई ने कहा
पर रूपाली का दिमाग़ उस वक़्त दूसरी ही तरफ चल रहा था. उसे इंदर की कही बातें याद आ रही थी जो कामिनी ने उसको कही थी.
"बस जिस्म की आग बुझनी चाहिए. फिर नज़र नही आता के कौन अपने घर का है और कौन ........."
उसे अपने पति का वो रूप याद आया जो वो रोज़ रात को बिस्तर पर देखा करती थी. किस तरह से वो उसको नंगी करते ही इंसान से कुच्छ और ही बन जाता था. उसे याद आया के किस आसानी से बिंदिया तेज के बिस्तर पर पहुँच गयी थी और तेज ने मौका मिलते ही उसको चोद लिया था. उसको याद आया के किस आसानी से उस रात ठाकुर ने उसके सामने ही पायल को चोद लिया था. ज़रा भी नही सोचा था दोनो ने के वो एक मामूली नौकरानी है और वो वहाँ के ठाकुर. पर क्या कोई इतना गिर सकता था के अपनी ही बहेन के साथ? सोचकर रूपाली का दिमाग़ फटने लगा. तो ये वजह थी पायल के गायब होने की. अपने भाई को गोली मारकर छुपति फिर रही थी.