05-09-2019, 07:55 PM
Update 32
इंदर अपनी गाड़ी रोके कोई एक घंटे से कामिनी का इंतेज़ार कर रहा था. कभी ऐसा नही होता था के कामिनी देर से पहुँचे, बल्कि वो इंदर से पहले ही पहुँच जाती थी पर आज इंदर को इंतेज़ार करना पड़ रहा था. वो शहेर के बाहर एक सुनसान इलाक़े में गाड़ी रोके खड़ा था. कामिनी और वो अक्सर यहीं मिला करते थे.
थोड़ी देर बाद उसे कामिनी की गाड़ी आती हुई नज़र आई. वो अपनी कार से बाहर निकला. कामिनी ने उसकी कार के पिछे लाकर अपनी कार रोकी और उसकी तरफ चलती हुई आई.
"सॉरी" कामिनी ने करीब आते हुए कहा "आज देर हो गयी"
"कोई बात नही" इंदर ने मुस्कुराते हुए कहा "इतने वक़्त से तुम मेरा इंतेज़ार करती थी. आज मैने कर लिया तो कौन सी बड़ी बात है"
इंदर ने अपनी कार का दरवाज़ा खोला और वो दोनो उसकी कार की बॅक्सीट पर बैठ गये. दोपहर का वक़्त था और गर्मी सर चढ़कर बोल रही थी. इंदर ने कार का एसी ऑन कर दिया
कामिनी आज इंदर से पूरे 2 महीने बाद मिल रही थी. वो 2 महीने से कोशिश कर रहा था पर कामिनी मना कर देती थी. उसने हवेली जाने की सोची पर वहाँ वो अकेले में वक़्त नही बिता पाते थे.
"क्या हुआ?" इंदर ने रूपाली के माथे पर हाथ फेरते हुए कहा "परेशान सी लग रही हो"
"कुच्छ नही" कामिनी ने ज़बरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा "तक गयी हूँ"
"इंदर कार की बॅक्सीट पर एक कोने में हो गया और कामिनी को इशारा किया के वो लेट जाए. कामिनी ने पहले तो मना किया पर इंदर के ज़ोर डालने पर वो लेट गयी और अपना सर इंदर की जाँघ पर रख लिया
"क्या हुआ आज हमेशा की तरह कोई शायरी नही?" इंदर ने पुचछा
"जब ज़िंदगी खुद अपनी शायरी सुनाना शुरू कर दे तो इंसान कहाँ शायरी कर पता है" कामिनी ने उदास सी आवाज़ में जवाब दिया
"क्या हुआ?" इंदर ने दोबारा पुचछा
"कुच्छ नही. बस इंसान का चेहरा देखकर कभी कभी समझ नही आता के असली कौन सा है और नकली कौन सा" कामिनी ने कहा और अपनी आँखें बंद कर ली
इंदर ने उसके उदास चेहरे की तरफ देखा और आगे कुच्छ ना पुछा. वो प्यार से कामिनी के सर पर हाथ फेरता रहा
कामिनी ने सलवार कमीज़ पहेन रखी थी. इंदर की गोद में लेटे होने की वजह से उसका दुपट्टा सरक कर कार में नीचे गिर पड़ा था. वो इस तरीके से लेटी हुई थी के दोनो टांगे भी उपेर सीट पर थी और उसका पूरा जिस्म मुड़ा हुआ था जिसकी वजह से नीचे दे दबाव पड़ने के कारण उसकी चूचियाँ कमीज़ के उपेर से बाहर को निकल रही थी.
इंदर की नज़र कामिनी की चूचियों पर पड़ी तो पहले तो उसने नज़र फेर ली पर फिर दोबारा उसी तरफ देखने लगा. कामिनी और उसके बीच अब तक कोई जिस्मानी रिश्ता नही बना था. कभी कभी वो दोनो एक दूसरे को चूम लेते थे और बस. ना तो कभी इससे आगे बात गयी और ना ही इंदर ने कोशिश की के इससे आगे कुच्छ और करे. पर आज कामिनी को यूँ इस हालत में देखकर उसके दिल की धड़कन तेज़ होने लगी.
उसका हाथ कामिनी के सर पर रुक गया था. कुच्छ देर तक आँखें बंद रखने के बाद कामिनी ने आँखें खोली और इंदर की तरफ देखा. इंदर की नज़र अब भी उसकी चूचियों पर थी. कामिनी ने शर्मा कर अपने दोनो हाथ अपने सीने पर रख लिए.
उसकी इस हरकत से इंदर ने उसकी आँखों में देखा. वो धीरे से नीचे झुका और अपने होंठ कामिनी के होंठ पर रख दिए. कामिनी के मुँह से आह निकल गयी और उसका हाथ इंदर का सर सहलाने लगा. दोनो के होंठ आपस में एक दूसरे से चिपक गये और ज़ुबान एक दूसरे की ज़ुबान से टकराने लगी. अपने होंठ कामिनी के होंठों से चिपकाए हुए ही इंदर ने अपने एक हाथ से कामिनी के हाथों को उसके सीने से हटाया. कामिनी ने इनकार करना चाहा पर इंदर की ज़िद के आगे हार मानकर अपने हाथ हटा दिए. इंदर का हाथ उसके गले से होते हुआ उसके सीने पर आया और कमीज़ के उपेर से ही कामिनी की चूचियाँ दबाने लगा. अब तक कामिनी की साँसें भी भारी हो चली थी. ये पहली बार था के वो और इंदर इतने करीब आए थे और इंदर ने उसके जिस्म को च्छुआ था. उसने भी पलटकर पूरे ज़ोर से इंदर को चूमना शुरू कर दिया.
थोड़ी देर कमीज़ के उपेर से ही चूचिया सहलाने के बाद इंदर का हाथ फिर कामिनी के गले पर आया और इस बार उसके कमीज़ के गले से होते हुए अंदर गया और फिर ब्रा के अंदर घुसता हुआ सीधा कामिनी की नंगी चूची पर आ गया. कामिनी का पूरा जिस्म ऐसा हिला जैसे उसे कोई ज़बरदस्त झटका लगा हो. उसने अपने होंठ इंदर के होंठ से हटाया, उसका हाथ पकड़कर बाहर खींचा और उठकर बैठ गयी. बैठकर वो ज़ोर ज़ोर से साँस लेने लगी और अपने बाल ठीक करने लगी. नीचे पड़ा दुपट्टा उठाकर उसने अपने गले में डाल लिया
"क्या हुआ?" इनडर ने पुचछा.
कामिनी ने जवाब नही दिया तो उसने अपना हाथ उसके हाथ पर रखा
"क्या हुआ कामिनी? बुरा लगा क्या?" इंदर ने उसके करीब होने की कोशिश की पर कामिनी दूर होती हुई कार का दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल गयी
"ओक आइ आम सॉरी" इंदर भी अपनी तरफ का दरवाज़ा खोलकर बाहर निकला "तुम जानती हो मैं तुमसे प्यार करना चाहता हूँ और शादी करना चाहता हूँ इसलिए शायद थोड़ा आगे बढ़ गया. कुच्छ ग़लत किया मैने?"
"नही. कुच्छ ग़लत नही किया"कामिनी पलटकर चिल्लाई "ये तो हमारे रिश्ते के लिए बहुत ज़रूरी था ना"
"कामिनी !!!!! " इंदर ने पहली बार कामिनी को यूँ चिल्लाते देखा था इसलिए हैरानी से उसकी तरफ देखने लगा
"इस जिस्म में ऐसा क्या है इंदर जो हर कोई पागल हुआ रहता है इसके पिछे. के अपनी आग लोगों से संभाली नही जाती" कामिनी अब भी गुस्से में थी
"क्या मतलब?" इंदर को समझ नही आ रहा था के कामिनी यूँ ओवर रिक्ट क्यूँ कर रही थी
"हर किसी को यही चाहिए, है ना? हर किसी को बस इसी एक चीज़ की ख्वाहिश लगी रहती है. फिर ना तो रिश्ते मतलब रखते हैं और ना कोई और चीज़. फिर चाहे जितना गिरना पड़े पर जिस्म की आग बुझनी चाहिए, चाहे किसी के साथ भी हो. फिर ये नज़र नही आता के कौन अपने घर का है और कौन ........." कामिनी ने बात अधूरी छ्चोड़ दी. इंदर अब भी उसको चुप खड़ा देख रहा था
"बस यही एक चीज़ चाहिए सबको" कामिनी ने दोनो हाथ हवा में फेलते हुए फिर अपनी बात दोहराई
"सबको मतलब" इंदर बस इतना ही कह सका. कामिनी उसकी बात का जवाब दिए बिना अपनी कार में बैठी और वहाँ से निकल गयी.
"उसके बाद?" रूपाली इंदर से पुचछा
"वो आखरी बार था जब कामिनी मेरे इतने करीब आई थी. उसके बाद अगले 2 महीने तक मैं फोन ट्राइ करता रहा पर उससे बात नही हो पाई. मैं कई बार हवेली आपसे मिलने आया पर वो मुझे देखकर अपने कमरे में चली जाती थी और तब तक बाहर नही आती थी जब तक के मैं वापिस ना चला जाऊं" इंदर बोला
"उसने कुच्छ नही बताया के वो किस बात को लेकर इतना परेशान थी?" रूपाली को समझ नही आ रहा था के क्या सोचे
"इस बात का मौका ही नही मिला दीदी के मैं उससे आराम से बैठकर बात कर पाता या कुच्छ पुच्छ पाता. उस दिन जब वो मिली तो मुझसे लड़कर चली गयी थी. पता नही किसका गुस्सा उसने मुझपर निकाला था और उसके बाद कभी हमें मौका ही नही मिला के आराम से बैठकर बात कर पाते" इंदर ने कहा
"तो अपनी रेवोल्वेर कब दी तुमने उसको?" रूपाली ने पुचछा
"जीजाजी के खून से 3 दिन पहले उसका मेरे पास फोन आया" इंदर ने आगे बताना शुरू किया
इंदर अपने कमरे में बैठा एक किताब पढ़ रहा था. फोन की घंटी बजी तो उसने आगे बढ़कर फोन उठाया. फोन के दूसरी तरफ से कामिनी के रोने की आवाज़ आई.
"कामिनी" इंदर जैसे चिल्ला उठा "ओह थॅंक गॉड कामिनी. मुझे तो लगा था के तुम मुझसे अब कभी बात ही नही करोगी. मेरी ग़लती की इतनी बड़ी सज़ा दे रही थी मुझे?"
दूसरी तरफ से कामिनी ने कुच्छ नही कहा. बस रोती रही. उसके रोने की आवाज़ ऐसी थी जैसे वो बहुत तकलीफ़ में हो. इंदर से बर्दाश्त नही हुआ. उसकी अपनी आँखो में पानी आ गया
"मुझे माफ़ कर दो कामिनी. मैं मानता हूँ के ग़लती मेरी है. मुझे शादी से पहले ऐसी हरकत नही करनी चाहिए थी. पर तुम जानती हो मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ. मैं आज ही तुमसे शादी करने को तैय्यार हूँ अगर तुम कहो तो. हम अपने घर में बात कर लेंगे. नही माने तो कोर्ट मॅरेज कर लेंगे. मेरा यकीन करो कामिनी" इंदर पागलों की तरह कहता जा रहा था.
कुच्छ देर दोनो खामोश रहे. थोड़ी देर बाद रूपाली ने रोते रोते कहा
"मुझे नही पता के अब मैं किसका यकीन करूँ और किसका नही इंदर. अब तो हर कोई अजनबी सा लगने लगा है. हर किसी की शकल देखकर ऐसा लगता है जैसे उसने अपनी शकल पर एक परदा सा डाल रखा हो. अंदर से कुच्छ और और बाहर से कुच्छ और. किस्मत का खेल तो देखो इंदर के जो अपने थे वो पराए हो गये और जो पराया था वो अपना गया."
"मैं कभी पराया नही था कामिनी. मैं तो हमेशा से तुम्हारा अपना था. तुम ऐसी बातें क्यूँ कर रही हो?" इंदर तदपकर बोला
फोन पर फिर थोड़ी देर तक खामोशी बनी रही
"मेरी जान को ख़तरा है इंदर" रूपाली ने रोना बंद करते हुए कहा
इंदर को ऐसा लगा जैसे उसको 1000 वॉट का झटका लगा हो
"किससे?" उसने पुचछा
"ये सब बातें बाद में. मैं अभी ज़्यादा देर बात नही कर सकती. तुम मेरी बात सुनो. तुम मुझे कोई हथ्यार दे सकते हो? हिफ़ाज़त के लिए? तुम्हारी कोई पिस्टल या रेवोल्वेर?" कामिनी अब बहुत धीरे धीरे बोल रही थी
"पिस्टल? ऱेवोल्वेर? तुम क्या कह रही हो मेरी कुच्छ समझ नही आ रहा" ईन्देर के सचमुच कुच्छ भी पल्ले नही पड़ रहा था
"अभी समझने का वक़्त नही है. तुम एक काम करो. कल दोपहर 2 बजे उसी जगह पर मेरा इंतेज़ार करना जहाँ हम आखरी बार मिले थे. और अपनी रेवोल्वेर लेकर आना" कामिनी ने कहा
"कामिनी मेरी बात सुनो" इंदर बोला "कल 2 बजे तो मैं आ जाऊँगा पर ......."
वो अभी कह ही रहा था के पिछे से सरिता देवी की आवाज़ आई"
"कामिनी बेटा"
और कामिनी ने फोन काट दिया.
अगले दिन इंदर कामिनी की बताई हुई जगह पर खड़ा इंतेज़ार कर रहा था. कामिनी ने 2 बजे आने को कहा था पर 3 दिन बज चुके थे और वो अब तक नही आई थी. कल रात से इंदर का सोच सोचकर दिमाग़ फटा जा रहा था. जान को ख़तरा? अपने अजनबी हो गये? कामिनी की कही कोई बात उसे समझ नही आ रही थी.
जब घड़ी में 3 बज गये तो वो समझ गया के कामिनी नही आएगी. उसने वापिस जाने का फ़ैसला किया और कार स्टार्ट ही की थी के रिव्यू कार में उसे कामिनी की गाड़ी आती हुई दिखाई दी. उसकी जान में जान आई. कामिनी ने उसकी कार के पिछे अपनी कार लाकर रोकी. इंदर अपनी गाड़ी से निकालने ही वाला था के कामिनी खुद अपनी कार से निकलकर जल्दी जल्दी इंदर की गाड़ी की तरफ आई और दरवाज़ा खोलकर अंदर आ गयी.
"गन लाए?" कामिनी ने गाड़ी में बैठते ही पुचछा
"हां लाया हूँ पर मेरी बात सुनो कामिनी" इंदर ने कुच्छ कहना चाहा ही था के कामिनी ने सामने रखी रेवोल्वेर देखी और जल्दी से उठा ली
"अभी कुच्छ कहने या सुनने का वक़्त नही है इंदर. मैं ये गन कुच्छ दिन बाद तुम्हें लौटा दूँगी और तब सब कुच्छ समझा दूँगी" कहकर कामिनी ने अपनी तरफ का दरवाज़ा खोला और इससे पहले के इंदर कुच्छ कह पता या कर पाता वो कार से बाहर निकल गयी. इंदर भी जल्दी से अपनी तरफ का दरवाज़ा खोलकर बाहर निकला. कामिनी तेज़ कदमों से चलती अपनी कार की तरफ जा रही थी और जब तक के इंदर उस तक पहुँचता, वो कार स्टार्ट कर चुकी थी.
"रूको कामिनी" इंदर भागता हुआ कामिनी की तरफ आया और कार की विंडो पर हाथ रखकर झुका "तुम मेरे साथ ऐसा नही कर सकती. तुम्हें बताना होगा के आख़िर हो क्या रहा है"
कामिनी उसकी तरफ देखकर मुस्कुराइ और इंदर के चेहरे पर प्यार से हाथ फेरा.
"इंदर" उसने मुस्कुराते हुआ कहा "मेरा इंदर"
"मैं हमेशा तुम्हारा हूँ कामिनी पर .... "इंदर ने कुच्छ कहना चाहा ही था के कामिनी ने उसके होंठ पर अपनी अंगुली रख कर उसे चुप करा दिया
"तुम्हें याद है इंदर जब हम पहली बार मिले थे तब मैने तुम्हें एक शेर सुनाया था और मैने कहा था के खुदा ना करे मुझे कभी इसकी आखरी लाइन्स भी तुम्हें कहनी पड़ें?" कामिनी ने पुचछा तो इंदर ने हां में सर हिला दिया
कामिनी खिड़की के थोडा नज़दीक आई और इंदर के गले में हाथ डालकर उसे थोड़ा नज़दीक किया. अगले ही पल दोनो के होंठ मिल गये. कामिनी उसे धीरे धीरे प्यार से चूमने लगी और फिर अपने होंठ इंदर के होंठ से हटाकर उसके कान के पास लाई. अपनी उसी अंदाज़ में फिर वो ऐसे बोली जैसे कोई बहुत बड़े राज़ की बात बता रही हो.
"कुच्छ इस अदा से आप यूँ पहलू-नॅशिन रहे
जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे
ये दिन भी देखना फाज़ था तेरी आश्की में,
रोने की हसरत है मगर आँसू नहीं रहे,
जा और कोई सुकून की दुनिया तलाश कर,
मेरे महबूब हम तो तेरे क़ाबिल नहीं रहे"
और इससे पहले के इंदर कुच्छ समझ पाता, कामिनी के कार उसकी आँखो से तेज़ी के साथ दूर होती जा रही थी.
"बस" इंदर ने एक लंबी साँस ली "इतनी ही थी हमारी कहानी. आप पुच्छ रही थी ना के हम कितना करीब आए थे? इतना करीब आए थे हम दीदी"
और इंदर अपना सर अपने हाथों में पकड़कर रोने लगा
"तुमने ये बात किसी से कही क्यूँ नही?" रूपाली ने पुचछा
"मैं क्या कहता? इंदर बोला "जीजाजी का खून होने के बाद अगर मैं किसी से ये कहता के मैने गन कामिनी को दी थी तो सब लोग क्या समझते? और अगर ये कहता के मेरे से गुम हुई है तो सब मेरे बारे में क्या सोचते? बिल्कुल वही सोचते जो इस वक़्त वो इनस्पेक्टर सोच रहा है"
रूपाली थोड़ी देर तक इंदर के सामने चुप बैठी रही. उसे समझ नही आ रहा थे के क्या कहे और इंदर को कैसे संभाले. माहौल को हल्का करने के लिए उसने बात बदलने की सोची
"एक लड़की के इश्क़ में यूँ रो रहे हो और हरकतें कुच्छ और कर रहे हो?" उसने इंदर के सर पर हल्के से थप्पड़ मारा
"क्या मतलब" इंदर ने अपना सर उपेर उठाया
"मैने देखा था बेसमेंट में. तुम्हें और वो कल की छ्छोकरी पायल को
इंदर का मुँह हैरानी से खुला रह गया. वो रूपाली के मुस्कुराते चेहरे को थोड़ी देर तक देखता रहा और फिर खुद शरमाता हुआ हस पड़ा
"आप वहाँ कब आई?"
"जिस तरह से वो पायल टेबल पर लेटी शोर मचा रही थी उससे तो मुझे हैरानी है के पूरा गाओं क्यूँ नही आ गया" रूपाली ने जवाब दिया तो दोनो भाई बहेन हस पड़े
"मैं क्या करता दीदी" इंदर ने कहा "कामिनी जिस तरह से गयी उससे मैं बोखला उठा था. सोचा मैं क्यूँ एक लड़की के इश्क़ में मारा जा रहा हूँ. उसके बाद जो सामने आई मैं नही रुका. पता नही क्या साबित करना चाह रहा था या पता नही दिल ही दिल में शायद कामिनी को दिखाना चाह रहा था के मैं उसके बिना जी सकता हूँ. कमी नही है मेरे पास"
उसके बाद रूपाली और थोड़ी देर इंदर के कमरे में बैठी रही. उसके बाद वो उठकर अपने कमरे में आ गयी. अचानक उसे कामिनी के कमरे में मिली सिगेरेत्टेस की बात याद आई. उसने सोचा के इंदर से पुच्छे के क्या वो कामिनी को सिगेरेत्टेस लाकर देता था? ये सोचकर वो वापिस इंदर के कमरे पर पहुँची तो कमरा अंदर से बंद था. रूपाली ने खोलने की कोशिश की तो कमरे को अंदर से लॉक पाया. वो इंदर का नाम पुकारने ही वाली थी के अंदर से आती पायल की आवाज़ सुनकर उसका हाथ रुक गया. आवाज़ से सॉफ पता चल रहा था के अंदर पायल और इंदर क्या कर रहे हैं.
रूपाली का मुँह हैरत से खुला रह गया. उसे अभी इंदर के कमरे से गये मुश्किल से 15 मिनट ही हुए थे. जो लड़का अभी थोड़ी देर पहले बैठा कामिनी के इश्क़ में आँसू बहा रहा था वो 15 मिनट में ही पायल पर चढ़ा हुआ था. वो भी भरे दिन में. तब जबकि उसकी अपनी बड़ी बहेन और पायल की माँ उसी हवेली में मौजूद थी.
रूपाली वापिस अपने कमरे की और चल पड़ी. इंदर की हरकत से उसे शक़ होने लगा था के जो इंदर ने कामिनी के और अपने बारे में कहानी रूपाली को सुनाई थी, क्या वो सच थी. और अगर सच थी तो कितनी सच थी.
रात ढाल चुकी थी. पिच्छली कुच्छ रातों की तरह ये रात भी अलग नही थी. रूपाली अपने बिस्तर पर पड़ी थी. पूरी तरह नंगी. टांगे फेली हुई, एक हाथ उसकी छाती पर और दूसरा टाँगो के बीच उसकी चूत पर. उसे अपने उपेर हैरत थी के कहाँ कल की एक सीधी सादी घरेलू औरत और कहाँ एक ये औरत जिससे अपने जिस्म की गर्मी एक रात भी नही संभाली जाती थी. उसने अपनी 3 अंगुलिया अपनी चूत में घुसा रखी थी पर जिस्म था के खामोश होने का नाम ही नही ले रहा था. चिढ़कर रूपाली ने अपना हाथ टाँगो के बीच से हटाया और गुस्से में बिस्तर पर ज़ोर से मारा.
रात के तकरीबन 9 बजे तेज वापिस आ गया था. उसने रूपाली या किसी और से कोई बात नही की थी. चुप चाप बस अपने कमरे में चला गया था. काम ख़तम करके बिंदिया को भी रूपाली ने उसके ही कमरे में जाते देखा था. आज की रात रूपाली ऐसा भी नही कर सकती थी के पायल के साथ ही अपने जिस्म की आग भुझाने की कोशिश करे क्यूंकी पायल भी अपने कमरे में नही थी और रूपाली अच्छी तरह जानती थी के इस वक़्त वो इंदर के कमरे में चुद रही होगी.
इस ख्याल से उसका जिस्म और भड़कने लगा. परेशान होकर वो बिस्तर से उठी और नीचे बड़े कमरे में जाकर टीवी देखने का फ़ैसला किया क्यूंकी नींद आँखो से बहुत दूर थी.
सीढ़ियाँ उतरती रूपाली के कदम अचानक से रुक गये. बड़े कमरे में टीवी ऑन था. इस वक़्त कौन देख रहा हो सकता है? टीवी आखरी बार वो खुद ही देख रही थी और उसको अच्छी तरह से याद था के वो टीवी बंद करके गयी थी. सोचती हुई वो सीढ़ियाँ उतरी और जैसे ही बड़े कमरे में आई उसकी आँखें खुली रह गयी.
कमरे में टीवी ऑन था और उसपर कोई गाना चल रहा था. सामने चंदर बैठा हुआ था. गाने में हेरोयिन भीगी हुई सारी में हीरो को रिझाने की कोशिश कर रही थी जो उसके करीब नही आ रहा था. चंदर सामने ज़मीन पर टांगे मोड बैठा था. उसका पाजामा नीचे था और कुर्ता उसने उपेर करके अपने गले में फसाया हुआ था.आँखें टीवी पर गाड़ी हुई और उसका हाथ लंड को पकड़े उपेर नीचे हो रहा था.
रूपाली उसे एक पल वहीं खड़ी देखती रही. चंदर टीवी में इतना खोया हुआ था के उसे रूपाली के आने का आभास ही नही हुआ. रूपाली कभी टीवी की तरफ देखती तो कभी चंदर के हाथ जो उपेर नीचे हो रहा था. रूपाली की आँखों के आगे फिर वो नज़ारा आ गया जब चंदर ने उसको बस्मेंट में बिंदिया समझकर अंधेरे में चोद दिया था. रूपाली की पहले से गीली चूत से जैसे नदी सी बहने लगी. उसका दिल किया के आयेज बढ़कर चंदर का लंड पकड़ ले पर फिर वो खुद ही रुक गयी और उसका दिल खुद से ही सवाल जवाब करने लगा
सवाल : "एक नौकर के साथ?"
जवाब : तो क्या हुआ. भूषण भी तो नौकर ही था. पायल के साथ भी रूपाली सोई थी और पायल भी तो नौकरानी थी.
सवाल : पर वो एक ठकुराइन है
जवाब : तो क्या हुआ. जब उसका भाई घर की नौकरानी को चोद सकता है तो वो क्यूँ नही. और आज से पहले कौन सा उसने इस बारे में सोचा था.
सवाल : और ठाकुर साहब? उनसे तो वो प्यार करती थी.
जवाब : तो क्या हुआ? उस रात रूपाली के कहने पर जब ठाकुर ने पायल को चोदा था तब उन्होने तो ऐसा कुच्छ नही सोचा
सवाल : किसी को पता लगा तो
जवाब : चंदर उससे डरता है. उसकी मज़ाल नही के किसी से कुच्छ कहे. और फिर वो तो गूंगा है. चाहे भी तो कुच्छ कह नही सकता
रूपाली अपने सवाल जवाब में ही उलझी हुई थी के टीवी पर गाना ख़तम हो गया. चंदर का ध्यान टीवी से हटा तो उसको एहसास हो गया के पिछे कोई खड़ा है. पलटा तो रूपाली को देखकर वो डर से काँप उठा. फ़ौरन खड़ा हो गया. उसको इतना भी होश नही रहा के उसका पाजामा नीचे था. बस उसने जल्दी से अपने दोनो हाथ जोड़ दिए.
रूपाली के दिल ने जैसे फ़ैसला कर लिया. वो आगे बढ़ी. उसे करीब आता देख चंदर और भी डर से काँपने लगा. आँखो से आँसू तक गिर पड़े.
रूपाली चुपचाप उसके करीब आई और कुच्छ भी नही कहा. एक पल चंदे की आँखो में देखा और हाथ से उसका लंड पकड़ लिया.
रूपाली का हाथ लंड पर पड़ते ही चंदर उच्छल पड़ा और 2 कदम पिछे को हो गया. रूपाली भी उसके साथ साथी ही आगे को बढ़ी और फिर से चंदर का लंड पकड़ लिया. डर के मारे चंदर का लंड बिल्कुल बैठा हुआ था. रूपाली ने थोड़ी देर पाजामे के उपेर से लंड को सहलाया और फिर धीरे से हाथ चंदर के कुर्ते के अंदर डाल कर उसका लंड पकड़ लिया.
चंदर ने इस बार फिर से पिछे होने की कोशिश की पर रूपाली ने उसका लंड अपनी मुट्ठी में पकड़ रखा था इसलिए पिछे हो नही पाया. वो परेशान नज़र से रूपाली की तरफ देखने लगा. रूपाली ने एक बार उसकी तरफ देखा और फिर अपने दोनो तरफ नज़र घुमाई. उसने चंदर का लंड छ्चोड़ा और उसे अपना पाजामा उपेर करने को कहा. चंदर ने जल्दी से अपना पाजामा उपेर करके बाँध लिया और फिर से अपने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया.
रूपाली ने उसका एक हाथ पकड़ा और उसे लगभग खींचते हुए अपने कमरे में लाई. दरवाज़ा बंद करने के बाद रूपाली चंदर की तरफ बढ़ी ही थी के रुक कर मुस्कुराइ. उसे बिंदिया के कही वो बात याद आ गयी जब उसने ये बताया था के चंदर कह रहा था रात बेसमेंट में मज़ा नही आया. रूपाली चंदर की तरफ बढ़ी और उसको धक्का देकर बिस्तर पर गिरा दिया.
चंदर बिस्तर पर गिरते ही दोबारा उठने लगा पर रूपाली ने उसको लेट रहने का इशारा किया. चंदर फिर बिस्तर पर लेट गया.
रूपाली अपनी अलमारी की तरफ बढ़ी और उसमें से अपने चार दुपट्टे निकाल लाई. चंदर अब भी उसको हैरान नज़र से देख रहा था. रूपाली उसके करीब आई और बिस्तर पर चढ़कर उसका कुर्ता उतारने लगी.चंदर ने मना करना चाहा तो उसने उसको घूरके देखा और चंदर ने अपने हाथ उपेर उठा दिया.
कुर्ता उतेर जाने के बाद रूपाली ने इशारे से चंदर को अपने दोनो हाथ उपेर करने को कहा जो उसने कर दिए. रूपाली ने मुस्कुराते हुए उसका एक हाथ पकड़ा और अपने दुपट्टे से उसका हाथ बिस्तर के कोने पर बाँध दिया. यही हाल उसने उसके दूसरे हाथ और फिर उसकी टाँगो का भी किया. अब चंदर बिस्तर पर पूरी तरह से बँधा हुआ पड़ा था.
जब रूपाली को यकीन हो गया के चंदर चाहकर भी नही हिल सकता तो वो उठकर सीधी खड़ी हुई. उसने महसूस किया के चंदर कमरे में नज़र घूमकर कुच्छ ढूँदने की कोशिश कर रहा है. जब रूपाली ने उसकी तरफ देखा तो चंदर ने अपने होंठ हिलाए. आवाज़ तो नही आई पर होंठ पढ़कर रूपाली समझ गयी के वो पुच्छ रहा है के बिंदिया कहाँ है. उसे याद आया के बिंदिया ने चंदर को ये कह रखा है के वो रात को रूपाली के साथ सोती है. रूपाली ने अपने कमरे के बीच के दरवाज़े की तरफ इशारा किया और कहा के बिंदिया उस तरफ दूसरे कमरे में है.
इशारा करके वो उठ खड़ी हुई. बिस्तर पर खड़े खड़े ही उसने अपनी नाइटी उपेर खींची और उतारकर फेंक दी. चंदर उसके नंगे जिस्म को घूरता ही रह गया. बड़ी बड़ी छातिया, भरा हुआ जिस्म, सॉफ की हुई चूत, चंदर की नज़र जैसे रूपाली के जिस्म का एक्स्रे कर रही थी. रूपाली एक पल के लिए यूँ ही बिस्तर पर खड़ी रही और चंदर को अपनी तरफ घूर्ने दिया.
थोड़ी देर बाद वो झुकी और अपनी दोनो चूचियाँ लाकर चंदर के मुँह पर दबा दी. चंदर का पूरा चेहरा उसकी चूचियों के बीच जैसे खो सा गया. रूपाली को इस सब में एक अजीब सा मज़ा आ रहा था. आज से पहले वो जितनी बार भी चुदी थी, वो चुद रही होती थी पर आज ऐसा लगा रहा था जैसे के वो खुद चुड़वा रही है. वो कंट्रोल में है. बिस्तर पर कोई और उसके जिस्म से नही खेल रहा बल्कि वो खुद एक मर्दाना जिस्म से खेल रही है.
चूचियो को थोड़ी देर चंदर के चेहरे पर रगड़ने के बाद वो थोड़ा सा उपेर हुई और अपने निपल्स उसके होंठों पर लगाने लगी. चंदर ने निपल अपने मुँह में लेने के लिए जैसे ही मुँह खोला रूपाली ने अपनी चूची पिछे कर ली. फिर वो बार बार ऐसा ही करती. चूची चंदर के मुँह के करीब लाती और जैसे ही वो निपल मुँह में लेने लगता वो पिछे को हो जाती. चंदर जैसे बोखला सा रहा था. वो चाहकर भी कुच्छ नही कर पा रहा था. उसके दोनो हाथ मज़बूती से बँधे हुए थे.
रूपाली थोडा नीचे खिसकी और अपनी चूचियाँ चंदर के सीने पर रगड़ने लगी. एक हाथ से उसने चंदर के पाजामे को खोलना शुरू किया और खींचकर नीचे कर दिया. चंदर का लंड फिर से खड़ा हो चुका था जिसे रूपाली अपने हाथ में पकड़कर उपेर नीचे करने लगी. रूपाली के हाथ के साथ साथ चंदर की कमर भी उपेर नीचे हो रही थी. रूपाली का दूसरा हाथ खुद उसकी चूत पर था.
जब उससे और बर्दाश्त नही हुआ तो वो उठ खड़ी हुई और चंदर के उपेर आ गयी. एक पल के लिए उसने नीचे होकर लंड चूत में लेने की सोची पर फिर इरादा बदलकर आगे को हुई और ठीक चंदर के चेहरे पर आकर खड़ी हो गयी. चंदर के चेहरा ठीक उसकी टाँगो के बीच था और नज़र रूपाली की चूत पर. रूपाली नीचे हुई और अपनी चूत लाकर चंदर के होंठो पर रख दी.
वो फ़ौरन पहचान गयी के चंदर ने आजसे पहले चूत पर मुँह नही लगाया था और शायद उसको पसंद भी नही था क्यूंकी वो अपना चेहरा इधर उधर करने की कोशिश कर रहा था पर रूपाली की भरी हुई गांद में जैसे उसका पूरा चेहरा दफ़न हो गया था. रूपाली को इसमें एक अलग ही मज़ा सा आ रहा था. उसे महसूस हो रहा था के वो आज जो चाहे कर सकती है, जैसे चाहे अपने जिस्म को ठंडा कर सकती है. उसने अपनी गांद आगे पिछे करनी शुरू की और चूत चंदर के मुँह पर रगड़ने लगी. उसकी साँस भारी हो चली थी और मुँह से आहह आहह की आवाज़ आनी शुरू हो गयी थी.
कुच्छ देर यही खेल खेलने के बाद वो फिर से खड़ी हुई और पिछे होकर फिर से नीचे बैठी पर इस बार उसकी चूत चंदर के मुँह के बजाय उसके लंड पर आई जो बहुत आसानी के साथ अंदर घुसता चला गया. लंड के अंदर जाते ही रूपाली के मुँह से एक लंबी आह निकल गयी. उसे लगा जैसे किसी प्यासे को पानी मिल गया हो. वो कुच्छ देर तक यूँ ही बैठी रही, लंड को चूत में महसूस करती रही, और फिर उपेर नीचे हिलना शुरू कर दिया. चंदर का लंड ठाकुर के लंड के मुक़ाबले कुच्छ भी नही था और रूपाली को इस बात की कमी खल रही थी पर इस वक़्त उसका वो हाल था के जो मिले वो अच्छा. वो किसी पागल की तरह चंदर के उपेर कूदने लगी. वो आगे को झुकती, अपने निपल्स चंदर के मुँह पर रगड़ती तो कभी उसकी चूची पर. लंड का चूत में अंदर बाहर होना बराबर जारी रहा.
थोड़ी देर बाद रूपाली के दिमाग़ में एक ख्याल आया. उसके पति और खुद ठाकुर ने कई बार उसकी गांद मारने की कोशिश की थी पर रूपाली ने करने नही दिया था. चंदर का लंड दोनो के मुक़ाबले छ्होटा था क्यूंकी वो खुद अभी बच्चा था. रूपाली ने कोशिश करने की सोची. वो थोड़ा सा उपेर हुई और लंड चूत से निकालकर हाथ में पकड़ लिया.
इंदर अपनी गाड़ी रोके कोई एक घंटे से कामिनी का इंतेज़ार कर रहा था. कभी ऐसा नही होता था के कामिनी देर से पहुँचे, बल्कि वो इंदर से पहले ही पहुँच जाती थी पर आज इंदर को इंतेज़ार करना पड़ रहा था. वो शहेर के बाहर एक सुनसान इलाक़े में गाड़ी रोके खड़ा था. कामिनी और वो अक्सर यहीं मिला करते थे.
थोड़ी देर बाद उसे कामिनी की गाड़ी आती हुई नज़र आई. वो अपनी कार से बाहर निकला. कामिनी ने उसकी कार के पिछे लाकर अपनी कार रोकी और उसकी तरफ चलती हुई आई.
"सॉरी" कामिनी ने करीब आते हुए कहा "आज देर हो गयी"
"कोई बात नही" इंदर ने मुस्कुराते हुए कहा "इतने वक़्त से तुम मेरा इंतेज़ार करती थी. आज मैने कर लिया तो कौन सी बड़ी बात है"
इंदर ने अपनी कार का दरवाज़ा खोला और वो दोनो उसकी कार की बॅक्सीट पर बैठ गये. दोपहर का वक़्त था और गर्मी सर चढ़कर बोल रही थी. इंदर ने कार का एसी ऑन कर दिया
कामिनी आज इंदर से पूरे 2 महीने बाद मिल रही थी. वो 2 महीने से कोशिश कर रहा था पर कामिनी मना कर देती थी. उसने हवेली जाने की सोची पर वहाँ वो अकेले में वक़्त नही बिता पाते थे.
"क्या हुआ?" इंदर ने रूपाली के माथे पर हाथ फेरते हुए कहा "परेशान सी लग रही हो"
"कुच्छ नही" कामिनी ने ज़बरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा "तक गयी हूँ"
"इंदर कार की बॅक्सीट पर एक कोने में हो गया और कामिनी को इशारा किया के वो लेट जाए. कामिनी ने पहले तो मना किया पर इंदर के ज़ोर डालने पर वो लेट गयी और अपना सर इंदर की जाँघ पर रख लिया
"क्या हुआ आज हमेशा की तरह कोई शायरी नही?" इंदर ने पुचछा
"जब ज़िंदगी खुद अपनी शायरी सुनाना शुरू कर दे तो इंसान कहाँ शायरी कर पता है" कामिनी ने उदास सी आवाज़ में जवाब दिया
"क्या हुआ?" इंदर ने दोबारा पुचछा
"कुच्छ नही. बस इंसान का चेहरा देखकर कभी कभी समझ नही आता के असली कौन सा है और नकली कौन सा" कामिनी ने कहा और अपनी आँखें बंद कर ली
इंदर ने उसके उदास चेहरे की तरफ देखा और आगे कुच्छ ना पुछा. वो प्यार से कामिनी के सर पर हाथ फेरता रहा
कामिनी ने सलवार कमीज़ पहेन रखी थी. इंदर की गोद में लेटे होने की वजह से उसका दुपट्टा सरक कर कार में नीचे गिर पड़ा था. वो इस तरीके से लेटी हुई थी के दोनो टांगे भी उपेर सीट पर थी और उसका पूरा जिस्म मुड़ा हुआ था जिसकी वजह से नीचे दे दबाव पड़ने के कारण उसकी चूचियाँ कमीज़ के उपेर से बाहर को निकल रही थी.
इंदर की नज़र कामिनी की चूचियों पर पड़ी तो पहले तो उसने नज़र फेर ली पर फिर दोबारा उसी तरफ देखने लगा. कामिनी और उसके बीच अब तक कोई जिस्मानी रिश्ता नही बना था. कभी कभी वो दोनो एक दूसरे को चूम लेते थे और बस. ना तो कभी इससे आगे बात गयी और ना ही इंदर ने कोशिश की के इससे आगे कुच्छ और करे. पर आज कामिनी को यूँ इस हालत में देखकर उसके दिल की धड़कन तेज़ होने लगी.
उसका हाथ कामिनी के सर पर रुक गया था. कुच्छ देर तक आँखें बंद रखने के बाद कामिनी ने आँखें खोली और इंदर की तरफ देखा. इंदर की नज़र अब भी उसकी चूचियों पर थी. कामिनी ने शर्मा कर अपने दोनो हाथ अपने सीने पर रख लिए.
उसकी इस हरकत से इंदर ने उसकी आँखों में देखा. वो धीरे से नीचे झुका और अपने होंठ कामिनी के होंठ पर रख दिए. कामिनी के मुँह से आह निकल गयी और उसका हाथ इंदर का सर सहलाने लगा. दोनो के होंठ आपस में एक दूसरे से चिपक गये और ज़ुबान एक दूसरे की ज़ुबान से टकराने लगी. अपने होंठ कामिनी के होंठों से चिपकाए हुए ही इंदर ने अपने एक हाथ से कामिनी के हाथों को उसके सीने से हटाया. कामिनी ने इनकार करना चाहा पर इंदर की ज़िद के आगे हार मानकर अपने हाथ हटा दिए. इंदर का हाथ उसके गले से होते हुआ उसके सीने पर आया और कमीज़ के उपेर से ही कामिनी की चूचियाँ दबाने लगा. अब तक कामिनी की साँसें भी भारी हो चली थी. ये पहली बार था के वो और इंदर इतने करीब आए थे और इंदर ने उसके जिस्म को च्छुआ था. उसने भी पलटकर पूरे ज़ोर से इंदर को चूमना शुरू कर दिया.
थोड़ी देर कमीज़ के उपेर से ही चूचिया सहलाने के बाद इंदर का हाथ फिर कामिनी के गले पर आया और इस बार उसके कमीज़ के गले से होते हुए अंदर गया और फिर ब्रा के अंदर घुसता हुआ सीधा कामिनी की नंगी चूची पर आ गया. कामिनी का पूरा जिस्म ऐसा हिला जैसे उसे कोई ज़बरदस्त झटका लगा हो. उसने अपने होंठ इंदर के होंठ से हटाया, उसका हाथ पकड़कर बाहर खींचा और उठकर बैठ गयी. बैठकर वो ज़ोर ज़ोर से साँस लेने लगी और अपने बाल ठीक करने लगी. नीचे पड़ा दुपट्टा उठाकर उसने अपने गले में डाल लिया
"क्या हुआ?" इनडर ने पुचछा.
कामिनी ने जवाब नही दिया तो उसने अपना हाथ उसके हाथ पर रखा
"क्या हुआ कामिनी? बुरा लगा क्या?" इंदर ने उसके करीब होने की कोशिश की पर कामिनी दूर होती हुई कार का दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल गयी
"ओक आइ आम सॉरी" इंदर भी अपनी तरफ का दरवाज़ा खोलकर बाहर निकला "तुम जानती हो मैं तुमसे प्यार करना चाहता हूँ और शादी करना चाहता हूँ इसलिए शायद थोड़ा आगे बढ़ गया. कुच्छ ग़लत किया मैने?"
"नही. कुच्छ ग़लत नही किया"कामिनी पलटकर चिल्लाई "ये तो हमारे रिश्ते के लिए बहुत ज़रूरी था ना"
"कामिनी !!!!! " इंदर ने पहली बार कामिनी को यूँ चिल्लाते देखा था इसलिए हैरानी से उसकी तरफ देखने लगा
"इस जिस्म में ऐसा क्या है इंदर जो हर कोई पागल हुआ रहता है इसके पिछे. के अपनी आग लोगों से संभाली नही जाती" कामिनी अब भी गुस्से में थी
"क्या मतलब?" इंदर को समझ नही आ रहा था के कामिनी यूँ ओवर रिक्ट क्यूँ कर रही थी
"हर किसी को यही चाहिए, है ना? हर किसी को बस इसी एक चीज़ की ख्वाहिश लगी रहती है. फिर ना तो रिश्ते मतलब रखते हैं और ना कोई और चीज़. फिर चाहे जितना गिरना पड़े पर जिस्म की आग बुझनी चाहिए, चाहे किसी के साथ भी हो. फिर ये नज़र नही आता के कौन अपने घर का है और कौन ........." कामिनी ने बात अधूरी छ्चोड़ दी. इंदर अब भी उसको चुप खड़ा देख रहा था
"बस यही एक चीज़ चाहिए सबको" कामिनी ने दोनो हाथ हवा में फेलते हुए फिर अपनी बात दोहराई
"सबको मतलब" इंदर बस इतना ही कह सका. कामिनी उसकी बात का जवाब दिए बिना अपनी कार में बैठी और वहाँ से निकल गयी.
"उसके बाद?" रूपाली इंदर से पुचछा
"वो आखरी बार था जब कामिनी मेरे इतने करीब आई थी. उसके बाद अगले 2 महीने तक मैं फोन ट्राइ करता रहा पर उससे बात नही हो पाई. मैं कई बार हवेली आपसे मिलने आया पर वो मुझे देखकर अपने कमरे में चली जाती थी और तब तक बाहर नही आती थी जब तक के मैं वापिस ना चला जाऊं" इंदर बोला
"उसने कुच्छ नही बताया के वो किस बात को लेकर इतना परेशान थी?" रूपाली को समझ नही आ रहा था के क्या सोचे
"इस बात का मौका ही नही मिला दीदी के मैं उससे आराम से बैठकर बात कर पाता या कुच्छ पुच्छ पाता. उस दिन जब वो मिली तो मुझसे लड़कर चली गयी थी. पता नही किसका गुस्सा उसने मुझपर निकाला था और उसके बाद कभी हमें मौका ही नही मिला के आराम से बैठकर बात कर पाते" इंदर ने कहा
"तो अपनी रेवोल्वेर कब दी तुमने उसको?" रूपाली ने पुचछा
"जीजाजी के खून से 3 दिन पहले उसका मेरे पास फोन आया" इंदर ने आगे बताना शुरू किया
इंदर अपने कमरे में बैठा एक किताब पढ़ रहा था. फोन की घंटी बजी तो उसने आगे बढ़कर फोन उठाया. फोन के दूसरी तरफ से कामिनी के रोने की आवाज़ आई.
"कामिनी" इंदर जैसे चिल्ला उठा "ओह थॅंक गॉड कामिनी. मुझे तो लगा था के तुम मुझसे अब कभी बात ही नही करोगी. मेरी ग़लती की इतनी बड़ी सज़ा दे रही थी मुझे?"
दूसरी तरफ से कामिनी ने कुच्छ नही कहा. बस रोती रही. उसके रोने की आवाज़ ऐसी थी जैसे वो बहुत तकलीफ़ में हो. इंदर से बर्दाश्त नही हुआ. उसकी अपनी आँखो में पानी आ गया
"मुझे माफ़ कर दो कामिनी. मैं मानता हूँ के ग़लती मेरी है. मुझे शादी से पहले ऐसी हरकत नही करनी चाहिए थी. पर तुम जानती हो मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ. मैं आज ही तुमसे शादी करने को तैय्यार हूँ अगर तुम कहो तो. हम अपने घर में बात कर लेंगे. नही माने तो कोर्ट मॅरेज कर लेंगे. मेरा यकीन करो कामिनी" इंदर पागलों की तरह कहता जा रहा था.
कुच्छ देर दोनो खामोश रहे. थोड़ी देर बाद रूपाली ने रोते रोते कहा
"मुझे नही पता के अब मैं किसका यकीन करूँ और किसका नही इंदर. अब तो हर कोई अजनबी सा लगने लगा है. हर किसी की शकल देखकर ऐसा लगता है जैसे उसने अपनी शकल पर एक परदा सा डाल रखा हो. अंदर से कुच्छ और और बाहर से कुच्छ और. किस्मत का खेल तो देखो इंदर के जो अपने थे वो पराए हो गये और जो पराया था वो अपना गया."
"मैं कभी पराया नही था कामिनी. मैं तो हमेशा से तुम्हारा अपना था. तुम ऐसी बातें क्यूँ कर रही हो?" इंदर तदपकर बोला
फोन पर फिर थोड़ी देर तक खामोशी बनी रही
"मेरी जान को ख़तरा है इंदर" रूपाली ने रोना बंद करते हुए कहा
इंदर को ऐसा लगा जैसे उसको 1000 वॉट का झटका लगा हो
"किससे?" उसने पुचछा
"ये सब बातें बाद में. मैं अभी ज़्यादा देर बात नही कर सकती. तुम मेरी बात सुनो. तुम मुझे कोई हथ्यार दे सकते हो? हिफ़ाज़त के लिए? तुम्हारी कोई पिस्टल या रेवोल्वेर?" कामिनी अब बहुत धीरे धीरे बोल रही थी
"पिस्टल? ऱेवोल्वेर? तुम क्या कह रही हो मेरी कुच्छ समझ नही आ रहा" ईन्देर के सचमुच कुच्छ भी पल्ले नही पड़ रहा था
"अभी समझने का वक़्त नही है. तुम एक काम करो. कल दोपहर 2 बजे उसी जगह पर मेरा इंतेज़ार करना जहाँ हम आखरी बार मिले थे. और अपनी रेवोल्वेर लेकर आना" कामिनी ने कहा
"कामिनी मेरी बात सुनो" इंदर बोला "कल 2 बजे तो मैं आ जाऊँगा पर ......."
वो अभी कह ही रहा था के पिछे से सरिता देवी की आवाज़ आई"
"कामिनी बेटा"
और कामिनी ने फोन काट दिया.
अगले दिन इंदर कामिनी की बताई हुई जगह पर खड़ा इंतेज़ार कर रहा था. कामिनी ने 2 बजे आने को कहा था पर 3 दिन बज चुके थे और वो अब तक नही आई थी. कल रात से इंदर का सोच सोचकर दिमाग़ फटा जा रहा था. जान को ख़तरा? अपने अजनबी हो गये? कामिनी की कही कोई बात उसे समझ नही आ रही थी.
जब घड़ी में 3 बज गये तो वो समझ गया के कामिनी नही आएगी. उसने वापिस जाने का फ़ैसला किया और कार स्टार्ट ही की थी के रिव्यू कार में उसे कामिनी की गाड़ी आती हुई दिखाई दी. उसकी जान में जान आई. कामिनी ने उसकी कार के पिछे अपनी कार लाकर रोकी. इंदर अपनी गाड़ी से निकालने ही वाला था के कामिनी खुद अपनी कार से निकलकर जल्दी जल्दी इंदर की गाड़ी की तरफ आई और दरवाज़ा खोलकर अंदर आ गयी.
"गन लाए?" कामिनी ने गाड़ी में बैठते ही पुचछा
"हां लाया हूँ पर मेरी बात सुनो कामिनी" इंदर ने कुच्छ कहना चाहा ही था के कामिनी ने सामने रखी रेवोल्वेर देखी और जल्दी से उठा ली
"अभी कुच्छ कहने या सुनने का वक़्त नही है इंदर. मैं ये गन कुच्छ दिन बाद तुम्हें लौटा दूँगी और तब सब कुच्छ समझा दूँगी" कहकर कामिनी ने अपनी तरफ का दरवाज़ा खोला और इससे पहले के इंदर कुच्छ कह पता या कर पाता वो कार से बाहर निकल गयी. इंदर भी जल्दी से अपनी तरफ का दरवाज़ा खोलकर बाहर निकला. कामिनी तेज़ कदमों से चलती अपनी कार की तरफ जा रही थी और जब तक के इंदर उस तक पहुँचता, वो कार स्टार्ट कर चुकी थी.
"रूको कामिनी" इंदर भागता हुआ कामिनी की तरफ आया और कार की विंडो पर हाथ रखकर झुका "तुम मेरे साथ ऐसा नही कर सकती. तुम्हें बताना होगा के आख़िर हो क्या रहा है"
कामिनी उसकी तरफ देखकर मुस्कुराइ और इंदर के चेहरे पर प्यार से हाथ फेरा.
"इंदर" उसने मुस्कुराते हुआ कहा "मेरा इंदर"
"मैं हमेशा तुम्हारा हूँ कामिनी पर .... "इंदर ने कुच्छ कहना चाहा ही था के कामिनी ने उसके होंठ पर अपनी अंगुली रख कर उसे चुप करा दिया
"तुम्हें याद है इंदर जब हम पहली बार मिले थे तब मैने तुम्हें एक शेर सुनाया था और मैने कहा था के खुदा ना करे मुझे कभी इसकी आखरी लाइन्स भी तुम्हें कहनी पड़ें?" कामिनी ने पुचछा तो इंदर ने हां में सर हिला दिया
कामिनी खिड़की के थोडा नज़दीक आई और इंदर के गले में हाथ डालकर उसे थोड़ा नज़दीक किया. अगले ही पल दोनो के होंठ मिल गये. कामिनी उसे धीरे धीरे प्यार से चूमने लगी और फिर अपने होंठ इंदर के होंठ से हटाकर उसके कान के पास लाई. अपनी उसी अंदाज़ में फिर वो ऐसे बोली जैसे कोई बहुत बड़े राज़ की बात बता रही हो.
"कुच्छ इस अदा से आप यूँ पहलू-नॅशिन रहे
जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे
ये दिन भी देखना फाज़ था तेरी आश्की में,
रोने की हसरत है मगर आँसू नहीं रहे,
जा और कोई सुकून की दुनिया तलाश कर,
मेरे महबूब हम तो तेरे क़ाबिल नहीं रहे"
और इससे पहले के इंदर कुच्छ समझ पाता, कामिनी के कार उसकी आँखो से तेज़ी के साथ दूर होती जा रही थी.
"बस" इंदर ने एक लंबी साँस ली "इतनी ही थी हमारी कहानी. आप पुच्छ रही थी ना के हम कितना करीब आए थे? इतना करीब आए थे हम दीदी"
और इंदर अपना सर अपने हाथों में पकड़कर रोने लगा
"तुमने ये बात किसी से कही क्यूँ नही?" रूपाली ने पुचछा
"मैं क्या कहता? इंदर बोला "जीजाजी का खून होने के बाद अगर मैं किसी से ये कहता के मैने गन कामिनी को दी थी तो सब लोग क्या समझते? और अगर ये कहता के मेरे से गुम हुई है तो सब मेरे बारे में क्या सोचते? बिल्कुल वही सोचते जो इस वक़्त वो इनस्पेक्टर सोच रहा है"
रूपाली थोड़ी देर तक इंदर के सामने चुप बैठी रही. उसे समझ नही आ रहा थे के क्या कहे और इंदर को कैसे संभाले. माहौल को हल्का करने के लिए उसने बात बदलने की सोची
"एक लड़की के इश्क़ में यूँ रो रहे हो और हरकतें कुच्छ और कर रहे हो?" उसने इंदर के सर पर हल्के से थप्पड़ मारा
"क्या मतलब" इंदर ने अपना सर उपेर उठाया
"मैने देखा था बेसमेंट में. तुम्हें और वो कल की छ्छोकरी पायल को
इंदर का मुँह हैरानी से खुला रह गया. वो रूपाली के मुस्कुराते चेहरे को थोड़ी देर तक देखता रहा और फिर खुद शरमाता हुआ हस पड़ा
"आप वहाँ कब आई?"
"जिस तरह से वो पायल टेबल पर लेटी शोर मचा रही थी उससे तो मुझे हैरानी है के पूरा गाओं क्यूँ नही आ गया" रूपाली ने जवाब दिया तो दोनो भाई बहेन हस पड़े
"मैं क्या करता दीदी" इंदर ने कहा "कामिनी जिस तरह से गयी उससे मैं बोखला उठा था. सोचा मैं क्यूँ एक लड़की के इश्क़ में मारा जा रहा हूँ. उसके बाद जो सामने आई मैं नही रुका. पता नही क्या साबित करना चाह रहा था या पता नही दिल ही दिल में शायद कामिनी को दिखाना चाह रहा था के मैं उसके बिना जी सकता हूँ. कमी नही है मेरे पास"
उसके बाद रूपाली और थोड़ी देर इंदर के कमरे में बैठी रही. उसके बाद वो उठकर अपने कमरे में आ गयी. अचानक उसे कामिनी के कमरे में मिली सिगेरेत्टेस की बात याद आई. उसने सोचा के इंदर से पुच्छे के क्या वो कामिनी को सिगेरेत्टेस लाकर देता था? ये सोचकर वो वापिस इंदर के कमरे पर पहुँची तो कमरा अंदर से बंद था. रूपाली ने खोलने की कोशिश की तो कमरे को अंदर से लॉक पाया. वो इंदर का नाम पुकारने ही वाली थी के अंदर से आती पायल की आवाज़ सुनकर उसका हाथ रुक गया. आवाज़ से सॉफ पता चल रहा था के अंदर पायल और इंदर क्या कर रहे हैं.
रूपाली का मुँह हैरत से खुला रह गया. उसे अभी इंदर के कमरे से गये मुश्किल से 15 मिनट ही हुए थे. जो लड़का अभी थोड़ी देर पहले बैठा कामिनी के इश्क़ में आँसू बहा रहा था वो 15 मिनट में ही पायल पर चढ़ा हुआ था. वो भी भरे दिन में. तब जबकि उसकी अपनी बड़ी बहेन और पायल की माँ उसी हवेली में मौजूद थी.
रूपाली वापिस अपने कमरे की और चल पड़ी. इंदर की हरकत से उसे शक़ होने लगा था के जो इंदर ने कामिनी के और अपने बारे में कहानी रूपाली को सुनाई थी, क्या वो सच थी. और अगर सच थी तो कितनी सच थी.
रात ढाल चुकी थी. पिच्छली कुच्छ रातों की तरह ये रात भी अलग नही थी. रूपाली अपने बिस्तर पर पड़ी थी. पूरी तरह नंगी. टांगे फेली हुई, एक हाथ उसकी छाती पर और दूसरा टाँगो के बीच उसकी चूत पर. उसे अपने उपेर हैरत थी के कहाँ कल की एक सीधी सादी घरेलू औरत और कहाँ एक ये औरत जिससे अपने जिस्म की गर्मी एक रात भी नही संभाली जाती थी. उसने अपनी 3 अंगुलिया अपनी चूत में घुसा रखी थी पर जिस्म था के खामोश होने का नाम ही नही ले रहा था. चिढ़कर रूपाली ने अपना हाथ टाँगो के बीच से हटाया और गुस्से में बिस्तर पर ज़ोर से मारा.
रात के तकरीबन 9 बजे तेज वापिस आ गया था. उसने रूपाली या किसी और से कोई बात नही की थी. चुप चाप बस अपने कमरे में चला गया था. काम ख़तम करके बिंदिया को भी रूपाली ने उसके ही कमरे में जाते देखा था. आज की रात रूपाली ऐसा भी नही कर सकती थी के पायल के साथ ही अपने जिस्म की आग भुझाने की कोशिश करे क्यूंकी पायल भी अपने कमरे में नही थी और रूपाली अच्छी तरह जानती थी के इस वक़्त वो इंदर के कमरे में चुद रही होगी.
इस ख्याल से उसका जिस्म और भड़कने लगा. परेशान होकर वो बिस्तर से उठी और नीचे बड़े कमरे में जाकर टीवी देखने का फ़ैसला किया क्यूंकी नींद आँखो से बहुत दूर थी.
सीढ़ियाँ उतरती रूपाली के कदम अचानक से रुक गये. बड़े कमरे में टीवी ऑन था. इस वक़्त कौन देख रहा हो सकता है? टीवी आखरी बार वो खुद ही देख रही थी और उसको अच्छी तरह से याद था के वो टीवी बंद करके गयी थी. सोचती हुई वो सीढ़ियाँ उतरी और जैसे ही बड़े कमरे में आई उसकी आँखें खुली रह गयी.
कमरे में टीवी ऑन था और उसपर कोई गाना चल रहा था. सामने चंदर बैठा हुआ था. गाने में हेरोयिन भीगी हुई सारी में हीरो को रिझाने की कोशिश कर रही थी जो उसके करीब नही आ रहा था. चंदर सामने ज़मीन पर टांगे मोड बैठा था. उसका पाजामा नीचे था और कुर्ता उसने उपेर करके अपने गले में फसाया हुआ था.आँखें टीवी पर गाड़ी हुई और उसका हाथ लंड को पकड़े उपेर नीचे हो रहा था.
रूपाली उसे एक पल वहीं खड़ी देखती रही. चंदर टीवी में इतना खोया हुआ था के उसे रूपाली के आने का आभास ही नही हुआ. रूपाली कभी टीवी की तरफ देखती तो कभी चंदर के हाथ जो उपेर नीचे हो रहा था. रूपाली की आँखों के आगे फिर वो नज़ारा आ गया जब चंदर ने उसको बस्मेंट में बिंदिया समझकर अंधेरे में चोद दिया था. रूपाली की पहले से गीली चूत से जैसे नदी सी बहने लगी. उसका दिल किया के आयेज बढ़कर चंदर का लंड पकड़ ले पर फिर वो खुद ही रुक गयी और उसका दिल खुद से ही सवाल जवाब करने लगा
सवाल : "एक नौकर के साथ?"
जवाब : तो क्या हुआ. भूषण भी तो नौकर ही था. पायल के साथ भी रूपाली सोई थी और पायल भी तो नौकरानी थी.
सवाल : पर वो एक ठकुराइन है
जवाब : तो क्या हुआ. जब उसका भाई घर की नौकरानी को चोद सकता है तो वो क्यूँ नही. और आज से पहले कौन सा उसने इस बारे में सोचा था.
सवाल : और ठाकुर साहब? उनसे तो वो प्यार करती थी.
जवाब : तो क्या हुआ? उस रात रूपाली के कहने पर जब ठाकुर ने पायल को चोदा था तब उन्होने तो ऐसा कुच्छ नही सोचा
सवाल : किसी को पता लगा तो
जवाब : चंदर उससे डरता है. उसकी मज़ाल नही के किसी से कुच्छ कहे. और फिर वो तो गूंगा है. चाहे भी तो कुच्छ कह नही सकता
रूपाली अपने सवाल जवाब में ही उलझी हुई थी के टीवी पर गाना ख़तम हो गया. चंदर का ध्यान टीवी से हटा तो उसको एहसास हो गया के पिछे कोई खड़ा है. पलटा तो रूपाली को देखकर वो डर से काँप उठा. फ़ौरन खड़ा हो गया. उसको इतना भी होश नही रहा के उसका पाजामा नीचे था. बस उसने जल्दी से अपने दोनो हाथ जोड़ दिए.
रूपाली के दिल ने जैसे फ़ैसला कर लिया. वो आगे बढ़ी. उसे करीब आता देख चंदर और भी डर से काँपने लगा. आँखो से आँसू तक गिर पड़े.
रूपाली चुपचाप उसके करीब आई और कुच्छ भी नही कहा. एक पल चंदे की आँखो में देखा और हाथ से उसका लंड पकड़ लिया.
रूपाली का हाथ लंड पर पड़ते ही चंदर उच्छल पड़ा और 2 कदम पिछे को हो गया. रूपाली भी उसके साथ साथी ही आगे को बढ़ी और फिर से चंदर का लंड पकड़ लिया. डर के मारे चंदर का लंड बिल्कुल बैठा हुआ था. रूपाली ने थोड़ी देर पाजामे के उपेर से लंड को सहलाया और फिर धीरे से हाथ चंदर के कुर्ते के अंदर डाल कर उसका लंड पकड़ लिया.
चंदर ने इस बार फिर से पिछे होने की कोशिश की पर रूपाली ने उसका लंड अपनी मुट्ठी में पकड़ रखा था इसलिए पिछे हो नही पाया. वो परेशान नज़र से रूपाली की तरफ देखने लगा. रूपाली ने एक बार उसकी तरफ देखा और फिर अपने दोनो तरफ नज़र घुमाई. उसने चंदर का लंड छ्चोड़ा और उसे अपना पाजामा उपेर करने को कहा. चंदर ने जल्दी से अपना पाजामा उपेर करके बाँध लिया और फिर से अपने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया.
रूपाली ने उसका एक हाथ पकड़ा और उसे लगभग खींचते हुए अपने कमरे में लाई. दरवाज़ा बंद करने के बाद रूपाली चंदर की तरफ बढ़ी ही थी के रुक कर मुस्कुराइ. उसे बिंदिया के कही वो बात याद आ गयी जब उसने ये बताया था के चंदर कह रहा था रात बेसमेंट में मज़ा नही आया. रूपाली चंदर की तरफ बढ़ी और उसको धक्का देकर बिस्तर पर गिरा दिया.
चंदर बिस्तर पर गिरते ही दोबारा उठने लगा पर रूपाली ने उसको लेट रहने का इशारा किया. चंदर फिर बिस्तर पर लेट गया.
रूपाली अपनी अलमारी की तरफ बढ़ी और उसमें से अपने चार दुपट्टे निकाल लाई. चंदर अब भी उसको हैरान नज़र से देख रहा था. रूपाली उसके करीब आई और बिस्तर पर चढ़कर उसका कुर्ता उतारने लगी.चंदर ने मना करना चाहा तो उसने उसको घूरके देखा और चंदर ने अपने हाथ उपेर उठा दिया.
कुर्ता उतेर जाने के बाद रूपाली ने इशारे से चंदर को अपने दोनो हाथ उपेर करने को कहा जो उसने कर दिए. रूपाली ने मुस्कुराते हुए उसका एक हाथ पकड़ा और अपने दुपट्टे से उसका हाथ बिस्तर के कोने पर बाँध दिया. यही हाल उसने उसके दूसरे हाथ और फिर उसकी टाँगो का भी किया. अब चंदर बिस्तर पर पूरी तरह से बँधा हुआ पड़ा था.
जब रूपाली को यकीन हो गया के चंदर चाहकर भी नही हिल सकता तो वो उठकर सीधी खड़ी हुई. उसने महसूस किया के चंदर कमरे में नज़र घूमकर कुच्छ ढूँदने की कोशिश कर रहा है. जब रूपाली ने उसकी तरफ देखा तो चंदर ने अपने होंठ हिलाए. आवाज़ तो नही आई पर होंठ पढ़कर रूपाली समझ गयी के वो पुच्छ रहा है के बिंदिया कहाँ है. उसे याद आया के बिंदिया ने चंदर को ये कह रखा है के वो रात को रूपाली के साथ सोती है. रूपाली ने अपने कमरे के बीच के दरवाज़े की तरफ इशारा किया और कहा के बिंदिया उस तरफ दूसरे कमरे में है.
इशारा करके वो उठ खड़ी हुई. बिस्तर पर खड़े खड़े ही उसने अपनी नाइटी उपेर खींची और उतारकर फेंक दी. चंदर उसके नंगे जिस्म को घूरता ही रह गया. बड़ी बड़ी छातिया, भरा हुआ जिस्म, सॉफ की हुई चूत, चंदर की नज़र जैसे रूपाली के जिस्म का एक्स्रे कर रही थी. रूपाली एक पल के लिए यूँ ही बिस्तर पर खड़ी रही और चंदर को अपनी तरफ घूर्ने दिया.
थोड़ी देर बाद वो झुकी और अपनी दोनो चूचियाँ लाकर चंदर के मुँह पर दबा दी. चंदर का पूरा चेहरा उसकी चूचियों के बीच जैसे खो सा गया. रूपाली को इस सब में एक अजीब सा मज़ा आ रहा था. आज से पहले वो जितनी बार भी चुदी थी, वो चुद रही होती थी पर आज ऐसा लगा रहा था जैसे के वो खुद चुड़वा रही है. वो कंट्रोल में है. बिस्तर पर कोई और उसके जिस्म से नही खेल रहा बल्कि वो खुद एक मर्दाना जिस्म से खेल रही है.
चूचियो को थोड़ी देर चंदर के चेहरे पर रगड़ने के बाद वो थोड़ा सा उपेर हुई और अपने निपल्स उसके होंठों पर लगाने लगी. चंदर ने निपल अपने मुँह में लेने के लिए जैसे ही मुँह खोला रूपाली ने अपनी चूची पिछे कर ली. फिर वो बार बार ऐसा ही करती. चूची चंदर के मुँह के करीब लाती और जैसे ही वो निपल मुँह में लेने लगता वो पिछे को हो जाती. चंदर जैसे बोखला सा रहा था. वो चाहकर भी कुच्छ नही कर पा रहा था. उसके दोनो हाथ मज़बूती से बँधे हुए थे.
रूपाली थोडा नीचे खिसकी और अपनी चूचियाँ चंदर के सीने पर रगड़ने लगी. एक हाथ से उसने चंदर के पाजामे को खोलना शुरू किया और खींचकर नीचे कर दिया. चंदर का लंड फिर से खड़ा हो चुका था जिसे रूपाली अपने हाथ में पकड़कर उपेर नीचे करने लगी. रूपाली के हाथ के साथ साथ चंदर की कमर भी उपेर नीचे हो रही थी. रूपाली का दूसरा हाथ खुद उसकी चूत पर था.
जब उससे और बर्दाश्त नही हुआ तो वो उठ खड़ी हुई और चंदर के उपेर आ गयी. एक पल के लिए उसने नीचे होकर लंड चूत में लेने की सोची पर फिर इरादा बदलकर आगे को हुई और ठीक चंदर के चेहरे पर आकर खड़ी हो गयी. चंदर के चेहरा ठीक उसकी टाँगो के बीच था और नज़र रूपाली की चूत पर. रूपाली नीचे हुई और अपनी चूत लाकर चंदर के होंठो पर रख दी.
वो फ़ौरन पहचान गयी के चंदर ने आजसे पहले चूत पर मुँह नही लगाया था और शायद उसको पसंद भी नही था क्यूंकी वो अपना चेहरा इधर उधर करने की कोशिश कर रहा था पर रूपाली की भरी हुई गांद में जैसे उसका पूरा चेहरा दफ़न हो गया था. रूपाली को इसमें एक अलग ही मज़ा सा आ रहा था. उसे महसूस हो रहा था के वो आज जो चाहे कर सकती है, जैसे चाहे अपने जिस्म को ठंडा कर सकती है. उसने अपनी गांद आगे पिछे करनी शुरू की और चूत चंदर के मुँह पर रगड़ने लगी. उसकी साँस भारी हो चली थी और मुँह से आहह आहह की आवाज़ आनी शुरू हो गयी थी.
कुच्छ देर यही खेल खेलने के बाद वो फिर से खड़ी हुई और पिछे होकर फिर से नीचे बैठी पर इस बार उसकी चूत चंदर के मुँह के बजाय उसके लंड पर आई जो बहुत आसानी के साथ अंदर घुसता चला गया. लंड के अंदर जाते ही रूपाली के मुँह से एक लंबी आह निकल गयी. उसे लगा जैसे किसी प्यासे को पानी मिल गया हो. वो कुच्छ देर तक यूँ ही बैठी रही, लंड को चूत में महसूस करती रही, और फिर उपेर नीचे हिलना शुरू कर दिया. चंदर का लंड ठाकुर के लंड के मुक़ाबले कुच्छ भी नही था और रूपाली को इस बात की कमी खल रही थी पर इस वक़्त उसका वो हाल था के जो मिले वो अच्छा. वो किसी पागल की तरह चंदर के उपेर कूदने लगी. वो आगे को झुकती, अपने निपल्स चंदर के मुँह पर रगड़ती तो कभी उसकी चूची पर. लंड का चूत में अंदर बाहर होना बराबर जारी रहा.
थोड़ी देर बाद रूपाली के दिमाग़ में एक ख्याल आया. उसके पति और खुद ठाकुर ने कई बार उसकी गांद मारने की कोशिश की थी पर रूपाली ने करने नही दिया था. चंदर का लंड दोनो के मुक़ाबले छ्होटा था क्यूंकी वो खुद अभी बच्चा था. रूपाली ने कोशिश करने की सोची. वो थोड़ा सा उपेर हुई और लंड चूत से निकालकर हाथ में पकड़ लिया.