05-09-2019, 07:53 PM
Update 31
थोड़ी देर बाद रूपाली दरवाज़ा खोलकर इंदर के कमरे में दाखिल हुई. इंदर बिस्तर पर सर पकड़े ऐसे बैठा था जैसे लुट गया हो.
"सच क्या है इंदर? मैं जानती हूँ तू कुच्छ च्छूपा रहा है मुझसे" वो इंदर के करीब जाते हुए बोली
इंदर ने कोई जवाब नही दिया. बस सर पकड़े बैठा रहा.
"तुझे बताया नही मैने पर अब सोचती हूँ के बता ही दूँ." रूपाली इंदर के ठीक सामने जा खड़ी हुई "कामिनी का पासपोर्ट मुझे यहीं हवेली में मिला. हर वो चीज़ जो वो जाने से पहले पॅक करके ले गयी थी वो यहीं हवेली में बंद एक कमरे में मिली. वो विदेश कभी गयी ही नही इंदर और कोई नही जानता के पिच्छले 10 साल से कहाँ है"
रूपाली की बात सुनकर इंदर ने उसकी तरफ नज़र उठाई. वो आँखें फेलाए रूपाली की तरफ देख रहा था. आँखों में एक खामोश सवाल था जैसे के वो रूपाली से पुच्छ रहा हो के क्या वो सच बोल रही है. रूपाली ने भी उसी खामोशी से हां में सर हिलाया
"मुझे खुद अभी 3-4 दिन पहले ही पता चला" रूपाली ने कहा
"और किसी ने उसके बारे में पता करने की कोशिश नही की?" इंदर को जैसे अब भी यकीन नही हो रहा था
"पता नही. जिससे पूछती हूँ वो यही कहता है के कामिनी विदेश में है. ठाकुर साहब हॉस्पिटल में हैं और उनके आक्सिडेंट होने से पहले मुझे ये बात पता नही थी इसलिए उनसे बात करना अभी बाकी है" रूपाली ने कहा
"मैं जानता था के कुच्छ गड़बड़ हुई है वरना ऐसा हो ही नही सकता था के वो एक बार भी मुझे फोन ना करे. आपने पोलीस में बताया?" इंदर की आवाज़ से सॉफ पता चल रहा था के उसे अब भी इस बात पर यकीन नही हो रहा था
"ख़ान ये बात पहले से ही जानता है. असल में उसने ही मुझसे ये बात सबसे पहले बताई थी" रूपाली ने कहा
"आपने कुलदीप को फोन नही किया? उसके पास ही तो गयी थी कामिनी" इंदर सोचता हुआ बोला
"उसके जितने नंबर मुझे मिल सके मैने सब ट्राइ किए. एक भी काम नही कर रहा" रूपाली ने कहा तो इंदर फिर अपना सर पकड़ कर बैठ गया
"मुझे लगता है के अब वक़्त आ गया है के तुम मुझे सब सच बताओ. शुरू से आख़िर तक." रूपाली ने पुचछा तो इंदर इनकार में सर हिलाने लगा
रूपाली ने उसका चेहरा अपने हाथों में लिया और उपेर उठाकर इंदर की आँखों में देखा
"एक वक़्त था जब तेरी हर बात मुझे पता होती थी इंदर. मैं तेरी बहेन से ज़्यादा तेरी दोस्त थी. हर छ्होटी बड़ी शरारत तू मुझे बताया करता था और मैं तुझे बचाया करती थी. अब क्या हुआ मेरे भाई? कब इतना बदल गया तू के अपनी बहेन से बातें च्छुपाने लगा?"
रूपाली की बात सुनकर इंदर की आँखों से पानी बहने लगा
"कल रात जब मैं कामिनी के कमरे में कुच्छ तलाश कर रह था और आप आ गयी थी तब मैने आपको कहा था के मैं वो पेपर्स ढूँढ रहा था जिसपर मैने शायरी लिखी हुई थी. ये बात कुच्छ अजीब नही लगी आपको? आख़िर कुच्छ काग़ज़ ही तो थे. ऐसी कोई बड़ी मुसीबत तो नही थी के मैं आधी रात को कामिनी के कमरे में जाता" इंदर ने कहा
"आजीब तो लगी थी पर तेरी हर बात पर यकीन करने की आदत सी पड़ गयी है मुझे इसलिए कुच्छ नही बोली" रूपाली ने इंदर का चेहरा छ्चोड़कर उसके साथ बिस्तर पर जा बैठी
"मैं वो रेवोल्वेर ढूँढ रहा था दीदी. मेरी रेवोल्वेर जंगल में नही खोई थी. वो मैने कामिनी को दी थी. आख़िरी कुच्छ दीनो में वो बहुत परेशान सी रहती थी. कहती थी के उसे हवेली में डर लगता है. अपने ही घरवाले उसे अजनबी लगते हैं क्यूंकी हर किसी ने अपने चेहरे पर एक नकली चेहरा लगा रखा था. एक दिन वो मुझसे मिलने आई तो रो रही थी. मैने पुचछा तो कुच्छ बोली नही बस मुझसे मेरी गन माँगी. मुझे अजीब लगा. मैं रेवोल्वेर उसे देना नही चाहता था पर उसके आँसू देख भी नही सकता था. दिल के हाथों मजबूर होकर मैने वो रेवोल्वेर कामिनी को दे दी."
उसने वापिस नही दी?" रूपाली हैरान सी इंदर को देख रही थी
"नौबत ही नही आई" इंदर ने सर झटकते हुए कहा "उसके 2 दिन बाद ही जीजाजी का खून हो गया और फिर मैं कामिनी से मिल नही सका. पिच्छले 10 साल से सोचता रहा के आकर उसका कमरा देखूं के शायद वो रेवोल्वेर यहीं कहीं रखा छ्चोड़ गयी हो पर हिम्मत नही पड़ी. एक दो बार आपसे मिलने के बहाने आया भी तो कामिनी के कमरे में जाने का मौका नही मिला"
"तेरे पास कामिनी के कमरे की चाभी कहाँ से आई?" रूपाली को अचानक याद आया के इंदर बड़ी आसानी से कमरा खोलकर अंदर चला गया था
"वो जब आखरी बार मिलने आई तो बहुर घबराई हुई थी. उसी घबराहट में चाभी मेरी गाड़ी में छ्चोड़ गयी थी" इंदर ने जवाब दिया
"शुरू से बता इंदर. सब कुच्छ" रूपाली ने कहा
"मैने कामिनी को अपने एक दोस्त की शादी में देखा था" इंदर ने बताना शुरू किया
पार्टी पूरे जोश पर थी. इंदर शराब नही पीता था पर आज उसके एक बहुत करीबी दोस्त की शादी थी इसलिए दोस्तों के कहने पर मजबूरन पीनी पड़ी. थोड़ी ही देर बाद उसे एहसास हो गया के नशा अब उसके सर पर चढ़ने लगा है. वो हमेशा से अपनी ज़ुबान पर काबू रखने वाला आदमी था. सिर्फ़ उतना ही बोलता था जितना ज़रूरी हो. कभी भी कहीं पर उसकी ज़ुबान से ऐसी बात नही निकलती थी जो वो ना कहना चाहता हो. पर इंसान नशे में हो तो ना खुद पर काबू रहता है और ना अपनी ज़ुबान पर और ये बात इंदर अच्छी तरह जानता था. पार्टी में मौजूद हर लड़की बस जैसे उसी की तरफ देख रही थी और उससे बात करने या उसके करीब आने की कोशिश कर रही थी. नशे की हालत में कहीं वो किसी के साथ कोई बदतमीज़ी ना कर दे ये सोचकर इंदर ने सबसे अलग कहीं अकेले जाकर बैठने का फ़ैसला किया. अभी वो नशे में था पर नशा इतना नही था के वो होश खो दे पर अगर दोस्तों के बीच रहता तो वो उसे और पीला देते और फिर बात काबू से बाहर हो जाती.
अकेला इंदर अपने दोस्त की ससुराल के घर की सीढ़ियाँ चढ़ता छत की और चला. छत पर पहुँचते ही ठंडी हवा का झोंका उसके चेहरे पर लगा और उसे कुच्छ रहट सी महसूस हुई. नीचे सिगेरेत्टे के धुएँ में उसका दम सा घुटने लगा था.
छ्हत पर कोई नही था. इंदर ने कोने में रखी एक चेर देखी और जाकर उसपर बैठ गया.
"हे भगवान " उसने ज़ोर से कहा "इंसान शराब क्यूँ पीता है"
तभी उसे छत के कोने पर कुच्छ आहट महसूस हुई. नज़र घूमकर देखा तो वहाँ एक लड़की खड़ी थी जो उसके ज़ोर से बोलने पर मुड़कर उसकी तरफ देख रही थी.
"माफ़ कीजिएगा" इंदर फ़ौरन चेर से उठ खड़ा हुआ "मैने आपको देखा नही. शायद ये चेर आप लाई हैं उपेर. आपकी है"
उस लड़की ने एक नज़र इंदर पर डाली और फिर आसमान की तरफ देखने लगी. इंदर को ये थोड़ा अजीब लगा. नीचे खड़ी हर लड़की बस उसी की तरफ देखे जा रही थी और इस लड़की ने उसपर एक नज़र डाली थी. आख़िर आसमान में ऐसा क्या है जिसके लिए उसे भी नज़र अंदाज़ कर दिया गया. ये सोचते हुए इंदर ने आसमान की तरफ नज़र उठाई.
"शिकन लिए मुस्कुराते लबों पे,बात आती है कभी कभी,
क़ुरबतों में पली वो ज़िंदगी, साथ आती है कभी कभी
आसमान से चाँद चुराकर कहीं ले जा तू आज सितम्गर,
जी लेने दे अंधेरे को, के अमावस की रात आती है कभी कभी"
आसमान की तरफ देखते हुए उस लड़की ने कहा
"जी?" इंदर ने उसकी तरफ देखा "अपने मुझसे कुच्छ कहा?"
वो लड़की फिर से इंदर की तरफ देखने लगी
"आप यहाँ उपेर अकेले में क्या कर रहे हैं? आइए नीचे चलें" लड़की ने कहा तो इस बार इंदर को और ज़्यादा हैरानी हुई. कहाँ तो हर लड़की अकेले में उससे बात करना चाह रही थी और कहाँ ये लड़की उसे वापिस नीचे जाने को कह रही थी.
इंदर ने एक नज़र उसपर डाली. वो एक मामूली सूरत की आम सी दिखने वाली लड़की थी. हल्का सावला रंग, गोल चेहरा, काली आँखें और काले बॉल.
"मैं अगर नीचे गया तो मुसीबत आ जाएगी. मेरे दोस्त फिर से मेरे हाथ में शराब थमा देंगे" उसने मुस्कुराते हुए उस लड़की से कहा
"तो क्या हुआ? यहाँ तो हर कोई पी रहा है" उस लड़की ने कहा
"जी हां पर अगर मैं पी लूँ तो मैं पागल हो जाता हूँ. अपने होश में नही रहता. अगर एक बार मुझे नशा चढ़ जाए तो मैं बीच बाज़ार में नाचना शुरू कर दूं" इंदर ने हल्का शरमाते हुए जवाब दिया
उसकी बात सुनकर वो लड़की हस पड़ी. उसके हासणे की आवाज़ ऐसी थी के इंदर बस उसे देखता रह गया. लड़की ने हाथ के इशारे से उसे फिर नीचे चलने को कहा तो इंदर ने फ़ौरन इनकार में सर हिला दिया
"जी बिल्कुल नही. ना तो मेरा आज पागल होने का इरादा है और ना कहीं नशे में नाचने का, ना बाज़ार में और ना ही यहाँ पार्टी में"
उसकी बात सुनकर वो लड़की उसके थोडा करीब आई और हल्की सी आवाज़ में ऐसे बोली जैसे कोई राज़ की बात बता रही हो
"आज बाज़ार में पबाजोला चलो
दस्त अफ्शान चलो,मस्त-ओ-रकसान चलो
खाक बरसर चलो,खून बदमा चलो
राह तकता है सब,शहेर-ए-जाना चलो
हाकिम-ए-शहेर भी, मजमा-ए-आम भी
तीर-ए-इल्ज़ाम भी, संग-ए-दुश्नाम भी
सुबह-ए-नाशाद भी, रोज़-ए-नाकाम भी
इनका दम्साज अपने सिवा कौन है
शहेर-ए-जाना में अब बसिफ़ा कौन है
दस्त-ए-क़ातिल के शायन रहा कौन है
रखत-ए-दिल बाँध लो, दिलफ़िगारो चलो
फिर हम ही क़त्ल हो आएँ यारो चलो"
"जी?" एक शब्द भी इंदर के पल्ले नही पड़ा "ये कौन सी भाषा थी"
उसकी बात सुनकर वो लड़की फिर खिलखिलाकर हस्ने लगी और सीढ़ियाँ उतरकर नीचे चली गयी.
नीचे आकर इंदर ने पता किया तो लड़की का नाम कामिनी था और वो ठाकुर शौर्या सिंग की बेटी थी. कामिनी में ऐसा कुच्छ भी नही था जिसपर आकर किसी की नज़र थम जाए पर जाने क्यूँ इंदर की नज़र बार बार उसी पर आकर रुकती. जिस तरह से वो उपेर खड़ी आसमान को देख रही थी, जिस तरह से उसने हाथ से इशारा करके इंदर को नीचे चलने को कहा था, और जिस तरह से वो कुच्छ धीरे से कहती थी जो इंदर को समझ नही आया था, इन सब बातों में इंदर उलझ कर रह गया थे. पूरी रात पार्टी में वो बस कामिनी को ही देखता रहा और उसने महसूस किया के वो भी पलटकर उसी की तरफ देख रही थी. कई बार दोनो की नज़र आपस में टकराती और दोनो ने मुस्कुरा कर नज़र फेर लेते.
सुबह के 4 बाज रहे थे. इंदर लड़केवालों की तरफ से बारात के साथ आया था जबकि कामिनी लड़की वालो की तरफ से थी. विदाई की वक़्त हो गया था और हर कोई दूल्हा और दुल्हन के आस पास भटक रहा था. इंदर जानता था के थोड़ी देर बाद उसको जाना होगा पर वो कामिनी से एक बार बात करना चाहता था. जाने क्या था के उसकी नज़र पागलों की तरह भीड़ में कामिनी को तलाश रही थी पर वो कहीं नज़र नही आई. अचानक इंदर को छत का ख्याल आया और वो भागता हुआ फिर छत पर पहुँचा. जैसा की उसने सोचा था, कामिनी वहीं खड़ी फिर से आसमान की तरफ देख रही थी. इंदर भागता हुआ छत पर आया था इसलिए उसकी साँस फूल रही थी. उसके हाफने की आवाज़ सुनकर कामिनी उसकी तरफ पलटी और खामोशी से उसे देखने लगी. कुच्छ देर तक इंदर भी कुच्छ नही बोला और छत की दीवार का सहारा लेकर खड़ा हो गया.
"शुक्रिया" थोड़ी देर बाद कामिनी बोली
इंदर ने सवालिया नज़र से उसकी तरफ देखा
"किस बात के लिए?" उसने कामिनी से पुचछा
"आज रात के लिए. आज रात आप हमारे साथ रहे उसके लिए" कामिनी ने एक नज़र इंदर की तरफ देखा और फिर आसमान की तरफ देखने लगी
"मैं आपके साथ कहाँ था. आपको तो अपनी दोस्तों से वक़्त ही नही मिला" इंदर ने कामिनी की तरफ देखा. वो अब भी उपेर ही देख रही थी
"क्या देख रही हैं आप? क्या है आसमान में" आख़िर इंदर ने पुच्छ ही लिया
उसकी बात सुनकर कामिनी ने उसकी तरफ देखा और उसके सवाल को नज़र अंदाज़ कर दिया
"भले आप खुद हमारे साथ नही थे पर आपकी नज़र ने हमें एक पल के लिए भी अकेला कहाँ होने दिया. पूरी रात आपकी नज़र हमारे साथ रही" कामिनी ने कहा तो इंदर ने मुस्कुराते हुए नज़र नीची कर ली
"तो आप जानती थी?" उसने कामिनी से पुचछा
जवाब में कामिनी कुच्छ नही बोली. बस खामोशी से उसके करीब आई और फिर उसी हल्की सी आवाज़ में बोली, जैसे कोई बहुत बड़े राज़ की बात बता रही हो
"कुच्छ इस अदा से आप यूँ पहलू-नसहीन रहे
जब तक हमारे पास रहे, हम नहीं रहे
या रब किसी के राज़-ए-मोहब्बत की खैर हो
दस्त-ए-जुनून रहे ना रहे आस्तीन रहे"
इंदर को एक बार फिर पूरी तरह से कामिनी की बात समझ नही आई पर वो किस मोहब्बत के राज़ की बात कर रही थी ये वो अच्छी तरह समझ गया था. उसने कामिनी की तरफ देखा.
"दुआ करती हूँ के मैने जो अभी कहा है, इसके बाद की लाइन्स कहने की नौबत कभी ना आए" कामिनी ने धीरे से पिछे होते हुए कहा
"जी?" इंदर ने कामिनी की और देखते हुए पुचछा
कामिनी फिर से हस्ने लगी और इंदर फिर उसको एकटूक देखने लगा
"कभी इस जी के सिवा कुच्छ और भी कहिए ठाकुर इंद्रासेन राणा" कामिनी ने कहा और सीढ़ियाँ उतरकर नीचे चली गयी
इंदर समझ गया था के जिस तरह वो अपने दोस्तों से कामिनी के बारे में मालूम करने की कोशिश कर रहा था वैसे ही कामिनी ने भी उसका नाम कहीं से मालूम किया था. थोड़ी ही देर बाद बारात विदा हो गयी. जाते हुए इंदर को कामिनी कहीं नज़र नही आई पर वो जानता था के वो उसे फिर ज़रूर मिलेगा.
शादी के 2 दिन बाद इंदर अपने कमरे में सोया हुआ था. सुबह के 9 बाज रहे थे पर उसे देर से सोने और देर तक सोते रहने की आदत थी. उसके पास रखा फोन बजने लगा तो चिड़कर इंदर ने तकिया अपने मुँह पर रख लिया. फोन लगातार बजता रहा तो उसने गुस्से में फोन उठाया.
"हेलो" आधी नींद में इंदर बोला.
दूसरी तरफ से वही ठहरी हुई धीमी आवाज़ आई जिसने 2 दिन पहले इंदर को पागल सा कर दिया था.
लज़्ज़त-ए-घाम बढ़ा दीजिए,
आप यूँ मुस्कुरा दीजिए,
क़यामत-ए-दिल बता दीजिए,
खाक लेकर उड़ा दीजिए,
मेरा दामन बहुत साफ है
कोई इल्ज़ाम लगा दीजिए
"कामिनी" इंदर बिस्तर पर फ़ौरन उठ बैठा.
"हमें तो लगा के आप हमें भूल गये" दूसरी तरफ से कामिनी की आवाज़ आई
"कैसे भूल सकता हूँ पर आप अपने नंबर देकर ही नही गयीं" इंदर अपनी सफाई में बोला
"नंबर तो आपने भी नही दिया पर हमें तो मिल गया" कामिनी ने कहा तो इंदर के पास अब कोई जवाब नही था.
कुच्छ देर तक वो इधर उधर की बातें करते रहे. कामिनी ने उसे अपने बारे में बताया और इंदर ने कामिनी को अपने बारे में. खबर ही नही हुई के दोनो को बात करते करते कब 2 घंटे से ज़्यादा वक़्त हो गया. आख़िर में इंदर ने फिर से मिलने की बात की तो कामिनी खामोश हो गयी.
"क्या हुआ?" इंदर ने पुचछा "आप मिलना नही चाहती?"
"अगर इंसान के चाहने से सब कुच्छ हो जाया करता तो फिर दुनिया में इतनी मुसीबत ना हुआ करती" दूसरी तरफ से कामिनी की आवाज़ आई "हम फिर फोन करेंगे"
कहकर कामिनी ने फोन रख दिया. इंदर परेशान सा फोन की तरफ देखने लगा. इस बार भी कामिनी ने उसे अपना फोन नंबर नही दिया था.
"फिर क्या हुआ?" रूपाली खामोशी से बैठी इंदर की बात सुन रही थी
"उसने उस दिन फोन ऐसे ही रख दिया पर मैं समझ चुका था के वो भी मुझे चाहती है. मैने अपने उस दोस्त को फोन किया जिसकी शादी में मुझे कामिनी मिली थी और उसकी बीवी के ज़रिए मैने कामिनी का फोन नंबर निकाल लिया. यानी यहाँ हवेली का नंबर" इंदर ने कहा
":ह्म्म्म्मम "रूपाली ने हामी भारी
"पर मुसीबत ये थी के अगर मैं फोन करूँ तो पता नही कामिनी उठती या कोई और. फिर भी मैने कोशिश की. 3 दिन तक मैं लगातार कोशिश करता रहा पर हर बार कोई और ही फोन उठता और मुझे फोन काटना पड़ता. इस बीच कामिनी ने भी मुझे फोन नही किया. 3 दिन बाद एक दिन मैने फोन किया तो फोन कामिनी ने उठाया. पहले तो वो मेरे फोन करने पर ज़रा परेशान हुई के मुझे यूँ फोन नही करना चाहिए था और अगर घर में किसी को पता चला तो मुसीबत आ जाएगी. पर फिर खुद ही हस्कर कहने लगी के वो देखना चाहती थी के मैं फोन करूँगा या नही इसलिए खुद भी मुझे 3 दिन से फोन नही कर रही थी. ये थी मेरी और उसकी पहली मुलाक़ात. इसके बाद हम दोनो के बीच फोन शुरू हो गये और हम घंटो एक दूसरे से बातें करते रहते. मुझे खबर ही नही हुई के मैं कब कामिनी को इतना चाहने लगा था पर वो थी के मुझसे मिलने को तैय्यार ही नही होती थी. फिर तकरीबन 6 महीने बाद वो मुझसे मिलने को तैय्यार हुई." इंदर अब बिना रुके अपनी पूरी कहानी बता रहा था
"शहेर में मिलते थे तुम दोनो?" रूपाली ने पुचछा
"हां" इंदर ने हां में सर हिलाया "कामिनी गाड़ी अकेली ही लाती थी. ना ड्राइवर ना बॉडीगार्ड. उन दीनो वो काफ़ी खुश रहती थी. हम साथ रहते, बातें करते और कुच्छ वक़्त साथ गुज़रने के बाद वो वापिस चली आती. उन दीनो में ऐसा कुच्छ नही हुआ जो कुच्छ अजीब हो. बस एक लड़का लड़की मिलते और एक दूसरे का हाथ थामे घंटो बातें करते रहते. कुच्छ दिन बाद जाने कैसे पर आपकी शादी कामिनी के घर ही पक्की हो गयी. हम दोनो इस बात को लेकर बहुत खुश थे और इसे अपनी खुशमति मान रहे थे. मैं इसलिए खुश था के मैं आपकी शादी के बाद बिना किसी परेशानी के हवेली में आ जा सकता था और वो इसलिए खुश थी के उसे मेरे साथ शादी की बात चलाने का एक बहाना मिल गया था, यानी के आप. पर वो चाहकर भी कभी आपसे बात नही कर सकी और ना ही मैं और इसकी वजेह थी के आप मंदिर से कभी बाहर ही नही निकलती थी. हम दोनो ये सोचकर चुप रह जाते के जाने आप कैसे रिक्ट करेंगी. इसी उलझन में कब वक़्त गुज़रता चला गया हमें पता ही नही चला. कभी कभी मैं आपसे मिलने के बहाने हवेली आ जाया करता था पर अब भी हम ज़्यादातर बाहर ही मिला करते थे"
"कामिनी में बदलाव कब देखा तुमने" रूपाली ने पुचछा
"आखरी कुच्छ दीनो में. जीजाजी के मरने से कोई 2 महीने पहले से. एक दिन वो मुझसे मिलने शहेर आई" इंदर ने बताना शुरू किया...
थोड़ी देर बाद रूपाली दरवाज़ा खोलकर इंदर के कमरे में दाखिल हुई. इंदर बिस्तर पर सर पकड़े ऐसे बैठा था जैसे लुट गया हो.
"सच क्या है इंदर? मैं जानती हूँ तू कुच्छ च्छूपा रहा है मुझसे" वो इंदर के करीब जाते हुए बोली
इंदर ने कोई जवाब नही दिया. बस सर पकड़े बैठा रहा.
"तुझे बताया नही मैने पर अब सोचती हूँ के बता ही दूँ." रूपाली इंदर के ठीक सामने जा खड़ी हुई "कामिनी का पासपोर्ट मुझे यहीं हवेली में मिला. हर वो चीज़ जो वो जाने से पहले पॅक करके ले गयी थी वो यहीं हवेली में बंद एक कमरे में मिली. वो विदेश कभी गयी ही नही इंदर और कोई नही जानता के पिच्छले 10 साल से कहाँ है"
रूपाली की बात सुनकर इंदर ने उसकी तरफ नज़र उठाई. वो आँखें फेलाए रूपाली की तरफ देख रहा था. आँखों में एक खामोश सवाल था जैसे के वो रूपाली से पुच्छ रहा हो के क्या वो सच बोल रही है. रूपाली ने भी उसी खामोशी से हां में सर हिलाया
"मुझे खुद अभी 3-4 दिन पहले ही पता चला" रूपाली ने कहा
"और किसी ने उसके बारे में पता करने की कोशिश नही की?" इंदर को जैसे अब भी यकीन नही हो रहा था
"पता नही. जिससे पूछती हूँ वो यही कहता है के कामिनी विदेश में है. ठाकुर साहब हॉस्पिटल में हैं और उनके आक्सिडेंट होने से पहले मुझे ये बात पता नही थी इसलिए उनसे बात करना अभी बाकी है" रूपाली ने कहा
"मैं जानता था के कुच्छ गड़बड़ हुई है वरना ऐसा हो ही नही सकता था के वो एक बार भी मुझे फोन ना करे. आपने पोलीस में बताया?" इंदर की आवाज़ से सॉफ पता चल रहा था के उसे अब भी इस बात पर यकीन नही हो रहा था
"ख़ान ये बात पहले से ही जानता है. असल में उसने ही मुझसे ये बात सबसे पहले बताई थी" रूपाली ने कहा
"आपने कुलदीप को फोन नही किया? उसके पास ही तो गयी थी कामिनी" इंदर सोचता हुआ बोला
"उसके जितने नंबर मुझे मिल सके मैने सब ट्राइ किए. एक भी काम नही कर रहा" रूपाली ने कहा तो इंदर फिर अपना सर पकड़ कर बैठ गया
"मुझे लगता है के अब वक़्त आ गया है के तुम मुझे सब सच बताओ. शुरू से आख़िर तक." रूपाली ने पुचछा तो इंदर इनकार में सर हिलाने लगा
रूपाली ने उसका चेहरा अपने हाथों में लिया और उपेर उठाकर इंदर की आँखों में देखा
"एक वक़्त था जब तेरी हर बात मुझे पता होती थी इंदर. मैं तेरी बहेन से ज़्यादा तेरी दोस्त थी. हर छ्होटी बड़ी शरारत तू मुझे बताया करता था और मैं तुझे बचाया करती थी. अब क्या हुआ मेरे भाई? कब इतना बदल गया तू के अपनी बहेन से बातें च्छुपाने लगा?"
रूपाली की बात सुनकर इंदर की आँखों से पानी बहने लगा
"कल रात जब मैं कामिनी के कमरे में कुच्छ तलाश कर रह था और आप आ गयी थी तब मैने आपको कहा था के मैं वो पेपर्स ढूँढ रहा था जिसपर मैने शायरी लिखी हुई थी. ये बात कुच्छ अजीब नही लगी आपको? आख़िर कुच्छ काग़ज़ ही तो थे. ऐसी कोई बड़ी मुसीबत तो नही थी के मैं आधी रात को कामिनी के कमरे में जाता" इंदर ने कहा
"आजीब तो लगी थी पर तेरी हर बात पर यकीन करने की आदत सी पड़ गयी है मुझे इसलिए कुच्छ नही बोली" रूपाली ने इंदर का चेहरा छ्चोड़कर उसके साथ बिस्तर पर जा बैठी
"मैं वो रेवोल्वेर ढूँढ रहा था दीदी. मेरी रेवोल्वेर जंगल में नही खोई थी. वो मैने कामिनी को दी थी. आख़िरी कुच्छ दीनो में वो बहुत परेशान सी रहती थी. कहती थी के उसे हवेली में डर लगता है. अपने ही घरवाले उसे अजनबी लगते हैं क्यूंकी हर किसी ने अपने चेहरे पर एक नकली चेहरा लगा रखा था. एक दिन वो मुझसे मिलने आई तो रो रही थी. मैने पुचछा तो कुच्छ बोली नही बस मुझसे मेरी गन माँगी. मुझे अजीब लगा. मैं रेवोल्वेर उसे देना नही चाहता था पर उसके आँसू देख भी नही सकता था. दिल के हाथों मजबूर होकर मैने वो रेवोल्वेर कामिनी को दे दी."
उसने वापिस नही दी?" रूपाली हैरान सी इंदर को देख रही थी
"नौबत ही नही आई" इंदर ने सर झटकते हुए कहा "उसके 2 दिन बाद ही जीजाजी का खून हो गया और फिर मैं कामिनी से मिल नही सका. पिच्छले 10 साल से सोचता रहा के आकर उसका कमरा देखूं के शायद वो रेवोल्वेर यहीं कहीं रखा छ्चोड़ गयी हो पर हिम्मत नही पड़ी. एक दो बार आपसे मिलने के बहाने आया भी तो कामिनी के कमरे में जाने का मौका नही मिला"
"तेरे पास कामिनी के कमरे की चाभी कहाँ से आई?" रूपाली को अचानक याद आया के इंदर बड़ी आसानी से कमरा खोलकर अंदर चला गया था
"वो जब आखरी बार मिलने आई तो बहुर घबराई हुई थी. उसी घबराहट में चाभी मेरी गाड़ी में छ्चोड़ गयी थी" इंदर ने जवाब दिया
"शुरू से बता इंदर. सब कुच्छ" रूपाली ने कहा
"मैने कामिनी को अपने एक दोस्त की शादी में देखा था" इंदर ने बताना शुरू किया
पार्टी पूरे जोश पर थी. इंदर शराब नही पीता था पर आज उसके एक बहुत करीबी दोस्त की शादी थी इसलिए दोस्तों के कहने पर मजबूरन पीनी पड़ी. थोड़ी ही देर बाद उसे एहसास हो गया के नशा अब उसके सर पर चढ़ने लगा है. वो हमेशा से अपनी ज़ुबान पर काबू रखने वाला आदमी था. सिर्फ़ उतना ही बोलता था जितना ज़रूरी हो. कभी भी कहीं पर उसकी ज़ुबान से ऐसी बात नही निकलती थी जो वो ना कहना चाहता हो. पर इंसान नशे में हो तो ना खुद पर काबू रहता है और ना अपनी ज़ुबान पर और ये बात इंदर अच्छी तरह जानता था. पार्टी में मौजूद हर लड़की बस जैसे उसी की तरफ देख रही थी और उससे बात करने या उसके करीब आने की कोशिश कर रही थी. नशे की हालत में कहीं वो किसी के साथ कोई बदतमीज़ी ना कर दे ये सोचकर इंदर ने सबसे अलग कहीं अकेले जाकर बैठने का फ़ैसला किया. अभी वो नशे में था पर नशा इतना नही था के वो होश खो दे पर अगर दोस्तों के बीच रहता तो वो उसे और पीला देते और फिर बात काबू से बाहर हो जाती.
अकेला इंदर अपने दोस्त की ससुराल के घर की सीढ़ियाँ चढ़ता छत की और चला. छत पर पहुँचते ही ठंडी हवा का झोंका उसके चेहरे पर लगा और उसे कुच्छ रहट सी महसूस हुई. नीचे सिगेरेत्टे के धुएँ में उसका दम सा घुटने लगा था.
छ्हत पर कोई नही था. इंदर ने कोने में रखी एक चेर देखी और जाकर उसपर बैठ गया.
"हे भगवान " उसने ज़ोर से कहा "इंसान शराब क्यूँ पीता है"
तभी उसे छत के कोने पर कुच्छ आहट महसूस हुई. नज़र घूमकर देखा तो वहाँ एक लड़की खड़ी थी जो उसके ज़ोर से बोलने पर मुड़कर उसकी तरफ देख रही थी.
"माफ़ कीजिएगा" इंदर फ़ौरन चेर से उठ खड़ा हुआ "मैने आपको देखा नही. शायद ये चेर आप लाई हैं उपेर. आपकी है"
उस लड़की ने एक नज़र इंदर पर डाली और फिर आसमान की तरफ देखने लगी. इंदर को ये थोड़ा अजीब लगा. नीचे खड़ी हर लड़की बस उसी की तरफ देखे जा रही थी और इस लड़की ने उसपर एक नज़र डाली थी. आख़िर आसमान में ऐसा क्या है जिसके लिए उसे भी नज़र अंदाज़ कर दिया गया. ये सोचते हुए इंदर ने आसमान की तरफ नज़र उठाई.
"शिकन लिए मुस्कुराते लबों पे,बात आती है कभी कभी,
क़ुरबतों में पली वो ज़िंदगी, साथ आती है कभी कभी
आसमान से चाँद चुराकर कहीं ले जा तू आज सितम्गर,
जी लेने दे अंधेरे को, के अमावस की रात आती है कभी कभी"
आसमान की तरफ देखते हुए उस लड़की ने कहा
"जी?" इंदर ने उसकी तरफ देखा "अपने मुझसे कुच्छ कहा?"
वो लड़की फिर से इंदर की तरफ देखने लगी
"आप यहाँ उपेर अकेले में क्या कर रहे हैं? आइए नीचे चलें" लड़की ने कहा तो इस बार इंदर को और ज़्यादा हैरानी हुई. कहाँ तो हर लड़की अकेले में उससे बात करना चाह रही थी और कहाँ ये लड़की उसे वापिस नीचे जाने को कह रही थी.
इंदर ने एक नज़र उसपर डाली. वो एक मामूली सूरत की आम सी दिखने वाली लड़की थी. हल्का सावला रंग, गोल चेहरा, काली आँखें और काले बॉल.
"मैं अगर नीचे गया तो मुसीबत आ जाएगी. मेरे दोस्त फिर से मेरे हाथ में शराब थमा देंगे" उसने मुस्कुराते हुए उस लड़की से कहा
"तो क्या हुआ? यहाँ तो हर कोई पी रहा है" उस लड़की ने कहा
"जी हां पर अगर मैं पी लूँ तो मैं पागल हो जाता हूँ. अपने होश में नही रहता. अगर एक बार मुझे नशा चढ़ जाए तो मैं बीच बाज़ार में नाचना शुरू कर दूं" इंदर ने हल्का शरमाते हुए जवाब दिया
उसकी बात सुनकर वो लड़की हस पड़ी. उसके हासणे की आवाज़ ऐसी थी के इंदर बस उसे देखता रह गया. लड़की ने हाथ के इशारे से उसे फिर नीचे चलने को कहा तो इंदर ने फ़ौरन इनकार में सर हिला दिया
"जी बिल्कुल नही. ना तो मेरा आज पागल होने का इरादा है और ना कहीं नशे में नाचने का, ना बाज़ार में और ना ही यहाँ पार्टी में"
उसकी बात सुनकर वो लड़की उसके थोडा करीब आई और हल्की सी आवाज़ में ऐसे बोली जैसे कोई राज़ की बात बता रही हो
"आज बाज़ार में पबाजोला चलो
दस्त अफ्शान चलो,मस्त-ओ-रकसान चलो
खाक बरसर चलो,खून बदमा चलो
राह तकता है सब,शहेर-ए-जाना चलो
हाकिम-ए-शहेर भी, मजमा-ए-आम भी
तीर-ए-इल्ज़ाम भी, संग-ए-दुश्नाम भी
सुबह-ए-नाशाद भी, रोज़-ए-नाकाम भी
इनका दम्साज अपने सिवा कौन है
शहेर-ए-जाना में अब बसिफ़ा कौन है
दस्त-ए-क़ातिल के शायन रहा कौन है
रखत-ए-दिल बाँध लो, दिलफ़िगारो चलो
फिर हम ही क़त्ल हो आएँ यारो चलो"
"जी?" एक शब्द भी इंदर के पल्ले नही पड़ा "ये कौन सी भाषा थी"
उसकी बात सुनकर वो लड़की फिर खिलखिलाकर हस्ने लगी और सीढ़ियाँ उतरकर नीचे चली गयी.
नीचे आकर इंदर ने पता किया तो लड़की का नाम कामिनी था और वो ठाकुर शौर्या सिंग की बेटी थी. कामिनी में ऐसा कुच्छ भी नही था जिसपर आकर किसी की नज़र थम जाए पर जाने क्यूँ इंदर की नज़र बार बार उसी पर आकर रुकती. जिस तरह से वो उपेर खड़ी आसमान को देख रही थी, जिस तरह से उसने हाथ से इशारा करके इंदर को नीचे चलने को कहा था, और जिस तरह से वो कुच्छ धीरे से कहती थी जो इंदर को समझ नही आया था, इन सब बातों में इंदर उलझ कर रह गया थे. पूरी रात पार्टी में वो बस कामिनी को ही देखता रहा और उसने महसूस किया के वो भी पलटकर उसी की तरफ देख रही थी. कई बार दोनो की नज़र आपस में टकराती और दोनो ने मुस्कुरा कर नज़र फेर लेते.
सुबह के 4 बाज रहे थे. इंदर लड़केवालों की तरफ से बारात के साथ आया था जबकि कामिनी लड़की वालो की तरफ से थी. विदाई की वक़्त हो गया था और हर कोई दूल्हा और दुल्हन के आस पास भटक रहा था. इंदर जानता था के थोड़ी देर बाद उसको जाना होगा पर वो कामिनी से एक बार बात करना चाहता था. जाने क्या था के उसकी नज़र पागलों की तरह भीड़ में कामिनी को तलाश रही थी पर वो कहीं नज़र नही आई. अचानक इंदर को छत का ख्याल आया और वो भागता हुआ फिर छत पर पहुँचा. जैसा की उसने सोचा था, कामिनी वहीं खड़ी फिर से आसमान की तरफ देख रही थी. इंदर भागता हुआ छत पर आया था इसलिए उसकी साँस फूल रही थी. उसके हाफने की आवाज़ सुनकर कामिनी उसकी तरफ पलटी और खामोशी से उसे देखने लगी. कुच्छ देर तक इंदर भी कुच्छ नही बोला और छत की दीवार का सहारा लेकर खड़ा हो गया.
"शुक्रिया" थोड़ी देर बाद कामिनी बोली
इंदर ने सवालिया नज़र से उसकी तरफ देखा
"किस बात के लिए?" उसने कामिनी से पुचछा
"आज रात के लिए. आज रात आप हमारे साथ रहे उसके लिए" कामिनी ने एक नज़र इंदर की तरफ देखा और फिर आसमान की तरफ देखने लगी
"मैं आपके साथ कहाँ था. आपको तो अपनी दोस्तों से वक़्त ही नही मिला" इंदर ने कामिनी की तरफ देखा. वो अब भी उपेर ही देख रही थी
"क्या देख रही हैं आप? क्या है आसमान में" आख़िर इंदर ने पुच्छ ही लिया
उसकी बात सुनकर कामिनी ने उसकी तरफ देखा और उसके सवाल को नज़र अंदाज़ कर दिया
"भले आप खुद हमारे साथ नही थे पर आपकी नज़र ने हमें एक पल के लिए भी अकेला कहाँ होने दिया. पूरी रात आपकी नज़र हमारे साथ रही" कामिनी ने कहा तो इंदर ने मुस्कुराते हुए नज़र नीची कर ली
"तो आप जानती थी?" उसने कामिनी से पुचछा
जवाब में कामिनी कुच्छ नही बोली. बस खामोशी से उसके करीब आई और फिर उसी हल्की सी आवाज़ में बोली, जैसे कोई बहुत बड़े राज़ की बात बता रही हो
"कुच्छ इस अदा से आप यूँ पहलू-नसहीन रहे
जब तक हमारे पास रहे, हम नहीं रहे
या रब किसी के राज़-ए-मोहब्बत की खैर हो
दस्त-ए-जुनून रहे ना रहे आस्तीन रहे"
इंदर को एक बार फिर पूरी तरह से कामिनी की बात समझ नही आई पर वो किस मोहब्बत के राज़ की बात कर रही थी ये वो अच्छी तरह समझ गया था. उसने कामिनी की तरफ देखा.
"दुआ करती हूँ के मैने जो अभी कहा है, इसके बाद की लाइन्स कहने की नौबत कभी ना आए" कामिनी ने धीरे से पिछे होते हुए कहा
"जी?" इंदर ने कामिनी की और देखते हुए पुचछा
कामिनी फिर से हस्ने लगी और इंदर फिर उसको एकटूक देखने लगा
"कभी इस जी के सिवा कुच्छ और भी कहिए ठाकुर इंद्रासेन राणा" कामिनी ने कहा और सीढ़ियाँ उतरकर नीचे चली गयी
इंदर समझ गया था के जिस तरह वो अपने दोस्तों से कामिनी के बारे में मालूम करने की कोशिश कर रहा था वैसे ही कामिनी ने भी उसका नाम कहीं से मालूम किया था. थोड़ी ही देर बाद बारात विदा हो गयी. जाते हुए इंदर को कामिनी कहीं नज़र नही आई पर वो जानता था के वो उसे फिर ज़रूर मिलेगा.
शादी के 2 दिन बाद इंदर अपने कमरे में सोया हुआ था. सुबह के 9 बाज रहे थे पर उसे देर से सोने और देर तक सोते रहने की आदत थी. उसके पास रखा फोन बजने लगा तो चिड़कर इंदर ने तकिया अपने मुँह पर रख लिया. फोन लगातार बजता रहा तो उसने गुस्से में फोन उठाया.
"हेलो" आधी नींद में इंदर बोला.
दूसरी तरफ से वही ठहरी हुई धीमी आवाज़ आई जिसने 2 दिन पहले इंदर को पागल सा कर दिया था.
लज़्ज़त-ए-घाम बढ़ा दीजिए,
आप यूँ मुस्कुरा दीजिए,
क़यामत-ए-दिल बता दीजिए,
खाक लेकर उड़ा दीजिए,
मेरा दामन बहुत साफ है
कोई इल्ज़ाम लगा दीजिए
"कामिनी" इंदर बिस्तर पर फ़ौरन उठ बैठा.
"हमें तो लगा के आप हमें भूल गये" दूसरी तरफ से कामिनी की आवाज़ आई
"कैसे भूल सकता हूँ पर आप अपने नंबर देकर ही नही गयीं" इंदर अपनी सफाई में बोला
"नंबर तो आपने भी नही दिया पर हमें तो मिल गया" कामिनी ने कहा तो इंदर के पास अब कोई जवाब नही था.
कुच्छ देर तक वो इधर उधर की बातें करते रहे. कामिनी ने उसे अपने बारे में बताया और इंदर ने कामिनी को अपने बारे में. खबर ही नही हुई के दोनो को बात करते करते कब 2 घंटे से ज़्यादा वक़्त हो गया. आख़िर में इंदर ने फिर से मिलने की बात की तो कामिनी खामोश हो गयी.
"क्या हुआ?" इंदर ने पुचछा "आप मिलना नही चाहती?"
"अगर इंसान के चाहने से सब कुच्छ हो जाया करता तो फिर दुनिया में इतनी मुसीबत ना हुआ करती" दूसरी तरफ से कामिनी की आवाज़ आई "हम फिर फोन करेंगे"
कहकर कामिनी ने फोन रख दिया. इंदर परेशान सा फोन की तरफ देखने लगा. इस बार भी कामिनी ने उसे अपना फोन नंबर नही दिया था.
"फिर क्या हुआ?" रूपाली खामोशी से बैठी इंदर की बात सुन रही थी
"उसने उस दिन फोन ऐसे ही रख दिया पर मैं समझ चुका था के वो भी मुझे चाहती है. मैने अपने उस दोस्त को फोन किया जिसकी शादी में मुझे कामिनी मिली थी और उसकी बीवी के ज़रिए मैने कामिनी का फोन नंबर निकाल लिया. यानी यहाँ हवेली का नंबर" इंदर ने कहा
":ह्म्म्म्मम "रूपाली ने हामी भारी
"पर मुसीबत ये थी के अगर मैं फोन करूँ तो पता नही कामिनी उठती या कोई और. फिर भी मैने कोशिश की. 3 दिन तक मैं लगातार कोशिश करता रहा पर हर बार कोई और ही फोन उठता और मुझे फोन काटना पड़ता. इस बीच कामिनी ने भी मुझे फोन नही किया. 3 दिन बाद एक दिन मैने फोन किया तो फोन कामिनी ने उठाया. पहले तो वो मेरे फोन करने पर ज़रा परेशान हुई के मुझे यूँ फोन नही करना चाहिए था और अगर घर में किसी को पता चला तो मुसीबत आ जाएगी. पर फिर खुद ही हस्कर कहने लगी के वो देखना चाहती थी के मैं फोन करूँगा या नही इसलिए खुद भी मुझे 3 दिन से फोन नही कर रही थी. ये थी मेरी और उसकी पहली मुलाक़ात. इसके बाद हम दोनो के बीच फोन शुरू हो गये और हम घंटो एक दूसरे से बातें करते रहते. मुझे खबर ही नही हुई के मैं कब कामिनी को इतना चाहने लगा था पर वो थी के मुझसे मिलने को तैय्यार ही नही होती थी. फिर तकरीबन 6 महीने बाद वो मुझसे मिलने को तैय्यार हुई." इंदर अब बिना रुके अपनी पूरी कहानी बता रहा था
"शहेर में मिलते थे तुम दोनो?" रूपाली ने पुचछा
"हां" इंदर ने हां में सर हिलाया "कामिनी गाड़ी अकेली ही लाती थी. ना ड्राइवर ना बॉडीगार्ड. उन दीनो वो काफ़ी खुश रहती थी. हम साथ रहते, बातें करते और कुच्छ वक़्त साथ गुज़रने के बाद वो वापिस चली आती. उन दीनो में ऐसा कुच्छ नही हुआ जो कुच्छ अजीब हो. बस एक लड़का लड़की मिलते और एक दूसरे का हाथ थामे घंटो बातें करते रहते. कुच्छ दिन बाद जाने कैसे पर आपकी शादी कामिनी के घर ही पक्की हो गयी. हम दोनो इस बात को लेकर बहुत खुश थे और इसे अपनी खुशमति मान रहे थे. मैं इसलिए खुश था के मैं आपकी शादी के बाद बिना किसी परेशानी के हवेली में आ जा सकता था और वो इसलिए खुश थी के उसे मेरे साथ शादी की बात चलाने का एक बहाना मिल गया था, यानी के आप. पर वो चाहकर भी कभी आपसे बात नही कर सकी और ना ही मैं और इसकी वजेह थी के आप मंदिर से कभी बाहर ही नही निकलती थी. हम दोनो ये सोचकर चुप रह जाते के जाने आप कैसे रिक्ट करेंगी. इसी उलझन में कब वक़्त गुज़रता चला गया हमें पता ही नही चला. कभी कभी मैं आपसे मिलने के बहाने हवेली आ जाया करता था पर अब भी हम ज़्यादातर बाहर ही मिला करते थे"
"कामिनी में बदलाव कब देखा तुमने" रूपाली ने पुचछा
"आखरी कुच्छ दीनो में. जीजाजी के मरने से कोई 2 महीने पहले से. एक दिन वो मुझसे मिलने शहेर आई" इंदर ने बताना शुरू किया...