05-09-2019, 07:51 PM
Update 29
रूपाली और तेज दोनो ही हवेली पहुँचे.
"आपको क्या ज़रूरत थी यूँ पोलीस स्टेशन जाने की?" तेज ने रूपाली से हवेली में घुसते ही पुचछा
रूपाली ने कोई जवाब नही दिया
"वो पोलीस वाला अपने आपको बहुत बड़ा शेर समझता है" तेज अब भी गुस्से में जल रहा था "1 दिन में हेकड़ी निकाल दूँगा. आज तक किसी की हिम्मत नही हुई के इस हवेली की शान में गुस्ताख़ी करे"
बोलकर तेज अपने कमरे की और बढ़ा ही था के रूपाली की आवाज़ सुनकर रुक गया
"कौन सी शान की बात कर रहे हो ठाकुर तएजवीर सिंग"
तेज रूपाली की तरफ पलटा
"इस हवेली में अब उल्लू भी नही बोलते. लोग इस तरफ आने से भी कतराते हैं. वो तो फिर गैर हैं छ्चोड़ो, यहाँ तो अपने भी हवेली में कदम नही रखते. किस शान की बात कर रहे हैं आप?" रूपाली ने पुचछा तो इस बार तेज के पास कोई जवाब नही था.
"ज़रा बाहर निकालकर नज़र डालिए तएजवीर जी. इस हवेली पर अब मनहूसियत बरसती है. बाहर से देखने से ऐसा लगता है जैसे यहाँ बरसो से कोई नही रहा. इस हवेली की शान में गुस्ताख़ी तो गुज़रते वक़्त ने कर दी है वो पोलीस वाला क्या करेगा." रूपाली बोलती रही और तेज चुप खड़ा उसकी तरफ देखता रहा
"हमारी ज़मीन हमारा ही अपना कोई हमारी नज़र के सामने से चुरा ले गया. जो रह गयी वो बंजर पड़ी हैं. बची हुई जो दौलत है वो ख़तम हो रही है. इस हवेली के मलिक हॉस्पिटल में पड़े हैं. आपके भाई को बीच सड़क किसी ने गोली मार दी थी. आपने नाम पर लोग हस्ते हैं. और आप हवेली की शान की बात कर रहे हैं?" रूपाली ने जैसे अपने दिल में जमा सारा ज़हेर तेज पर उगल दिया और अपने कमरे की तरफ बढ़ चली.
"और हां" जाते जाते वो फिर पलटी "जब घर के आदमियों का कहीं आता पता ना हो तो घर की औरतों को ही पोलीस स्टेशन जाना पड़ता है"
रूपाली ने एक आखरी ताना सा मारा और अपने कमरे की तरफ बढ़ चली. अपने पिछे उसे तेज गुस्से में पेर पटकता हुआ हवेली के बाहर जाता हुआ दिखाई दिया.
कमरे में पहुँच कर रूपाली के आँसू निकल पड़े. उसने जो कुच्छ तेज से कहा था वो गुस्से में था पर इन बातों ने उसके खुद के ज़ख़्म हरे कर दिए थे. कुच्छ देर तक यूँ ही आँसू बहाने के बाद उसने सामने रखा फोन उठाया और देवधर का नंबर मिलाया
"हां रूपाली जी कहिए" दूसरी तरफ से देवधर की आवाज़ आई
रूपाली को वो ज़माना याद आ गया जब देवधर जैसे उसे छ्होटी ठकुराइन के नाम से बुलाते थे. आज उसकी इतनी औकात हो गयी थी के उसे नाम से बुला रहा था. वो एक ठंडी आह भरकर रह गयी. दिल में जानती थी के ये ग़लती देवधर की नही बल्कि ठाकुर खानदान की ही है. जब अपने ही सिक्के खोटे हों तो कोई क्या करे.
"मैने आपसे कहा था ने के आने से एक दिन पहले फोन करूँगी." रूपाली ने जवाब दिया
"तो आप कल आ रही हैं?" देवधर उसकी बात का मतलब समझ गया
"हां" रूपाली ने जवाब दिया "कल सुबह यहाँ से निकलेंगे तो दोपहर तक आपके पास पहुँच जाएँगे."
"जैसा आप ठीक समझें" देवधर ने कहा "वैसे आप एक बार बता देती के किस बारे में बात करी है तो मैं पेपर्स वगेरह तैय्यार रखता"
"ये आकर ही बताती हूँ" कहकर रूपाली ने फोन काट दिया. अपनी हालत ठीक की और फिर नीचे आई.
पायल बड़े कमरे में बैठी टीवी देख रही थी.
"तेरी माँ कहाँ है?" रूपाली ने पुचछा
"जी वो नहाने गयी हैं" पायल ने टीवी की आवाज़ धीरे करते हुए कहा
"और चंदर?" रूपाली ने पुचछा तो पायल ने कंधे हिला दिए
"पता नही"
रूपाली हवेली से निकलकर बिंदिया के कमरे की तरफ बढ़ी. वो कमरे की नज़दीक पहुँची ही थी के बिंदिया के कमरे का दरवाजा खुला और वो माथे से पसीना साफ करती हुई बाहर निकली. पीछे चंदर था. रूपाली फ़ौरन समझ गयी के वो क्या करके आ रहे हैं पर कुच्छ नही बोली.
"अगर तू नहा ली हो तो मेरे कमरे में आ. कुच्छ बात करनी है" रूपाली ने कहा तो बिंदिया ने हां में सर हिला दिया.
रूपाली चंदर की तरफ मूडी
"और तुझे मैने कहा था सफाई के लिए. उस तरफ देख" रूपाली ने हवेली के कॉंपाउंड में उस तरफ इशारा किया जहाँ अब भी कुच्छ झाड़ियाँ थी. उसके चेहरे पर अब भी हल्के गुस्से के भाव थे. चंदर ने फ़ौरन इशारे से कहा के वो अभी सफाई शुरू कर देगा.
रूपाली अपने कमरे की तरफ बढ़ चली. कल रात के बाद उसने अब पहली बार चंदर को देखा था. जिस अंदाज़ से चंदर ने उसकी तरफ देखा था उससे रूपाली सोचने पर मजबूर हो गयी थी. उसमें ऐसा कोई अंदाज़ नही था जैसा की उसे चोदने के बाद होना चाहिए था. चंदर ने अब भी उसे उसी इज़्ज़त से देखा था जैसे पहले देखा था और अब भी वैसे ही उसका हुकुम माना था जैसे पहले मानता था.
थोड़ी देर बाद बिंदिया और रूपाली दोनो रूपाली के कमरे में बैठे थे और रूपाली गुस्से से बिंदिया को घूर रही थी.
"अपनी रंग रलियान ज़रा कम कर. दिन में इस वक़्त? वो भी तब जब तेरी बेटी यहीं बैठी थी? अगर तेज देख लेते तो काट देते तुझे और उस चंदर को भी"
माफ़ कर दीजिए मालकिन" बिंदिया ने सर झुकाए कहा "अब नही होगा"
रूपाली वहीं उसके सामने बिस्तर पर बैठ गयी
"कल रात का बता. क्या लगता है तुझे? खुश था चंदर तेरे साथ बिस्तर पर?" रूपाली ने बिंदिया से पुचछा तो वो मुस्कुरा उठी
"खुश? मालकिन कल पूरी रात सोने नही दिया मुझे" बिंदिया बोली
"तूने मनाया कैसे तेज को?" रूपाली ने पुचछा
"ज़रूरत ही कहाँ पड़ी मनाने की. वो तो पहले ही तैय्यार बैठे थे" बिंदिया ने जब देखा के रूपाली का गुस्सा थोड़ा कम हो रहा है तो वो भी खुलकर बात करने लगी
"मतलब?" रूपाली ने पुचछा
"मतलब ये के रात अपने कमरे में जाने से पहले उन्होने मुझसे कहा के एक कप चाय उनके कमरे में ले आओं. मैं उसी वक़्त इस समझ गयी की मुझे कुच्छ करने की ज़रूरत नही और मुझे कमरे में चाय के बहाने क्यूँ बुलाया जा रहा है. मैने चाय बनाई और लेकर उनके पास जाने से पहले पायल के कमरे में पहुँची. वहाँ जाकर में अपनी चोली उतारी और पायल की पहेन ली"
"पायल की चोली? वो क्यूँ?" रूपाली ने हैरत से पुचछा
"क्यूंकी पायल की छातिया मुझसे काफ़ी बड़ी हैं. कभी कभी तो मुझे खुद को हैरानी होती है. ज़रा सी उमर में ही उसकी छातिया मुझसे दुगुनी हो गयी हैं" बिंदिया ने कहा
"तू अपनी ही बेटी की छातिया क्यूँ देखती है?" रूपाली ने मुस्कुराते हुए पुचछा
"माँ हून मालकिन" बिंदिया ने कहा "जवान बेटी घर में हो तो सब देखना पड़ता है. और वैसे भी उस ज़रा सी बच्ची के जिस्म पर सबसे पहले उसकी बड़ी बड़ी छातिया ही दिखाई देती हैं"
रूपाली का दिल किया के उसको बताए के जिसे वो ज़रा सी बच्ची कह रही है उसके जिस्म में माँ से भी ज़्यादा आग है और एक लंड ले भी चुकी है.
"अच्छा वो छ्चोड़" रूपाली बोली "तूने पायल की चोली क्यूँ पहनी?"
"मालकिन उसकी चोली मुझे ढीली आती है क्यूंकी मेरी छातिया इतनी नही" बिंदिया ने अपनी चुचियों की तरफ देखते हुए कहा. रूपाली ने भी अपनी नज़र उधर ही डाली
"उसकी छातिया बड़ी होने की वजह से अगर मैं उसकी चोली पहेन लूँ तो सामने से इतनी ढीली हो जाती है के हल्का सा झुकते ही सारा नज़ारा सामने आ जाता है" बिंदिया ने समझाते हुए कहा
"ओह अब समझी. फिर?"
"फिर मैं चाय लेकर उनके कमरे में पहुँची और कप बिल्कुल उनके सामने रखा. कप रखते हुए मैं झुकी और बस. मेरी चूचियाँ आपके देवर के सामने थी" बिंदिया बोली
"तेज ने देखी?" रूपाली अब बेझिझक सवाल पुच्छ रही थी.
"देखी? हाथ बढ़ाकर सीधा एक चूची पकड़ ली." बिंदिया हस्ते हुए बोली
रूपाली दिल ही दिल में तेज की हिम्मत की दाद दिए बिना ना रह सकी
"पकड़ ली? तूने क्या कहा?" उसने बिंदिया से पुचछा
"मैं क्या कहती. मैं तो पहली ही तैय्यार थी. चूची पकड़कर छ्होटे ठाकुर ने हल्का सा दबाव डाला और कहा के मेरी चूचियाँ काफ़ी सख़्त हैं. इस उम्र में ज़रा भी ढीली नही हैं. अब बारी थी मेरी तरफ से इशारे की."
रूपाली चुप चाप बैठी सुन रही थी
"मैं मुस्कुराइ और कहा के छ्होटे ठाकुर चोली के उपेर से हाथ लगाके कहाँ पता चलता है के चूचियाँ सख़्त हैं या उमर के साथ ढीली पड़ गयी हैं" बिंदिया ने बात जारी रखी "इतना इशारा काफ़ी था. वो उठे और चोली मेरे जिस्म से ऐसे अलग की जैसे फाड़ रहे हों. जब मैं उपेर से नंगी हो गयी तो उन्होने मेरी चूचियों पर हाथ फेरा और कहा के मैं सही था. तुम्हारी चूचियाँ सही में काफ़ी सख़्त हैं और हाथ से दबाने लगा. तब तक मैं खुद भी गरम हो चुकी थी. मैं उनके बाल सहलाने लगी. वो कभी मेरी चूचियो को दबाते तो कभी मेरे निपल्स को सहलाते. थोड़ी देर तक यही खेल चलता रहा. जब मुझसे और बर्दाश्त ना हुआ तो मैने उनका सर आगे को खींचा और उनका मुँह अपनी छाती पर दबा दिया. मेरा एक निपल सीधा उनके मुँह में गया और वो ऐसे चूसने लगे जैसे आज के बाद कोई औरत नंगी देखने को नही मिलेगी."
"तुझे मज़ा आया?"रूपाली ने पुचछा
"मेरे निपल्स मेरे शरीर का सबसे कमज़ोर हिस्सा हैं मालकिन. मुझे सबसे ज़्यादा मज़ा निपल्स चुसवाने में आता है " बिंदिया ने फिर एक बार अपनी चूचियों पर नज़र डाली "पर मेरी किस्मत के ना तो मेरा मर्द ये बात समझ सका और ना ही चंदर. दोनो ही मेरी चूचियों पर कुच्छ ख़ास ध्यान नही देते थे इसलिए जब छ्होटे ठाकुर ने तसल्ली के साथ मेरे निपल्स को रगड़ा तो मैं वही पिघल गयी. मैने खुद अपना ल़हेंगा खोलकर नीचे गिरा दिया और उनके सामने नंगी हो गयी. उनके हाथ मेरे पुर जिस्म पर फिरने लगे और जाकर मेरी गांद पर रुक गये. उन्होने मेरी आँखों में देखते हुए निपल मुँह से निकाला और बोले के उन्हें सबसे ज़्यादा मेरी गांद पसंद है और ये कहते हुए गांद को हल्के से दबा दिया."
"फिर?"रूपाली इतना ही कह सकी
"मैं समझ गयी के आज मेरी चूत के साथ साथ गांद का भी नंबर लगेगा. मैं मुस्कुराइ और बोली के ठाकुर साहब मैं तो पूरी आपकी हूँ पर पहले आपको तैय्यार तो कर दूँ. ये कहते हुए मैं उनके सामने बैठ गयी और उनका पाजामा नीचे सरका कर उनका लंड बाहर निकाला" बिंदिया ने कहा
कैसा था, ये बात रूपाली के मुँह से निकलते निकलते रह गयी. उसे फ़ौरन ये एहसास हुआ के वो अपने देवर के बारे में बात कर रही है और बिंदिया से इस तरह का कोई सवाल ग़लत साबित हो सकता है. दूसरा उसे खुद ये हैरत हुई के वो तेज के लंड के बारे में जानना चाहती है. उसने बात फ़ौरन अपने दिमाग़ से झटकी.
"थोड़ी ही देर बाद मैं नंगी उनके सामने बैठी थी और लंड मेरे मुँह में था" बिंदया ने कहा तो रूपाली मन मसोस कर रह गयी. वो उम्मीद कर रही थी के बिंदिया खुद ये कहेगी के उसे तेज का लंड कैसा लगा
"मेरा इरादा तो ये था के बिस्तर पर मैं जो जानती हूँ वो करूँ ताकि छ्होटे ठाकुर को खुश कर सकूँ पर ऐसा हो ना सका. थोड़ी देर बाद उन्होने लंड मेरे मुँह से निकाला और मुझे बिस्तर पर आने को कहा. मैं मुस्कुराते हुए बिस्तर पर आई और उनके सामने लेटकर अपनी टांगे फेला दी. पर उनका इरादा कुच्छ और ही था. उन्होने मेरी टांगे फिर बंद की और मुझे घूमकर उल्टा कर दिया" बिंदिया ने कहा
"मतलब तेरी......" रूपाली ने बात अधूरी छ्चोड़ दी
"हां" बिंदिया समझ गयी के वो क्या कहना चाह रही थी "मैं समझ गयी के पहला नंबर मेरी गांद का लगने वाला है और ऐसा ही हुआ. तेज ने अपने पुर लंड पर तेल लगा लिया और थोड़ा मेरी गांद पर. उनकी इस हरकत से मैं समझ गयी के वो पहले ही किसी औरत की गांद मार चुके हैं"
"फिर?" खुद रूपाली भी अब गरम हो रही थी
"फिर वो आकर मेरे उपेर आकर बैठ गये और दोनो हाथों से मेरी गांद को फेला दिया. और फिर लंड मेरी गांद पर दबाया और बिना रुके धीरे धीरे पूरा लंड अंदर घुसा दिया. मैं दर्द से कराह उठी" बिंदिया ने कहा
"दर्द? पर तू तो पहले भी ये कर चुकी है" रूपाली ने हैरान होते पुचछा
"तो क्या हुआ मालकिन" बिंदिया ने भी उसी अंदाज़ में पुचछा "कोई चूत थोड़े ही है के पहली बार में ही दर्द हो. गांद में लंड घुसेगा तो दर्द तो होगा ही. चाहे पहली बार हो या बार बार."
"अच्छा फिर ?" रूपाली ने उसे आयेज बताने को कहा
"छ्होटे ठाकुर भी बिस्तर पर खिलाड़ी थे. गांद में लंड जाते ही समझ गये की मैं आगे से क्या पिछे से भी कुँवारी नही हूँ. धीरे से मेरे कान में बोले के अच्छा तो यहाँ भी कोई हमसे पहले आके जा चुका है. मैं कहा के ठाकुर साहब ये कोई सड़क नही है जहाँ से लोग आए जाएँ तो सड़क खराब हो जाए. यहाँ तो कितने भी आकर चले जाएँ कोई फरक नही पड़ता. जगह वैसे की वैसी ही रहती है, थोड़ी देर बाद वो मेरे उपेर लेते थे और लंड मेरे अंदर बाहर हो रहा था. मुझे भी मज़ा आ रहा था इसलिए मैं भी पूरा साथ दे रही थी पर उल्टी लेटी होने की वजह से मैं ज़्यादा कुच्छ कर नही पा रही थी और ये बात ठाकुर भी समझ गये. थोड़ी देर ऐसे ही गांद मारने के बाद उन्होने मुझे उपेर आकर लंड गांद में लेने को कहा. फिर वो सीधा लेट गये और मैं उनके उपेर बैठ गयी. लंड एक बार फिर गांद में घुस गया. फिर मैं कभी आराम से हिलती तो कभी तेज़ी से उपेर नीचे होती. कभी अपनी चूचियाँ खुद दबाती तो कभी उनके मुँह में घुसा देती. बस ये मानिए के मैने तब तक हार नही मानी जब तक के मैं खुद भी झाड़ गयी और ठाकुर का पानी अपनी गांद में ना निकाल लिया. उपेर बैठकर सब मुझे करना था इसलिए मैं ख्याल रखा के कोई कमी नई रहने दूं और ठाकुर को खुश कर दूं" बिंदिया मुस्कुराते हुए ऐसे बोली जैसे कोई जुंग जीत कर आई हो
"शाबाश" रूपाली ने कहा "मतलब पूरी रात चूत और गांद ली गयी तेरी?"
"कहाँ मालकिन" बिंदिया ने कहा "ठाकुर ने चूत की तरफ तो ध्यान ही नही दिया. पूरी रात बस मेरी गांद में ही मारते रहे. कभी लिटाके मारी, तो कभी उपेर बैठके. कभी खड़ी करके मारी तो कभी झुकाके."
"पूरी रात?" रूपाली ने फिर हैरानी से कहा. "तूने कहा नही आगे से करने को?"
"मैं तो बस चूत में लंड लेने का सोचती ही रही पर कहा नही क्यूंकी मैं ठाकुर को जो वो चाहें बस वो करने देना चाहती थी." बिंदिया बोली
"फिर?" रूपाली ने पुचछा
"चंदर भी रात की ज़िद कर रहा था और मेरा भी चूत में लंड लेने का दिल हो रहा था इसलिए मैं उसे आने से पहले इशारा कर आई थी के रात को हवेली के पिछे जो तहखाना है वहाँ आ जाए" बिंदिया ने कहा तो रूपाली चौंक पड़ी
"क्या? बेसमेंट में? क्यूँ?"
"मालकिन अब ठाकुर के पास से उठकर अपने कमरे की तरफ जाती तो उन्हें शक हो सकता था क्यूंकी उनके कमरे की खिड़की से मेरा कमरा सॉफ नज़र आता है. ये मैने पहले ही देख लिया था इसलिए मैने चंदर को कह दिया था के अब से हर रात मुझे वहीं मिला करे क्यूंकी मैं रात को पायल के कमरे में सोया करूँगी और बाहर नही आ सकूँगी"
बिंदिया की ये बात सुनकर रूपाली को कल रात की कहानी समझ आ गयी और ये भी समझ आ गया के चंदर के बर्ताव में कोई बदलाव क्यूँ नही था. उसे तो पता भी नही था के बेसमेंट के अंधेरे में उसने बिंदिया की नही रूपाली की चूत मारी थी.
"तो फिर तू गयी?" रूपाली पक्का करना चाहती थी के बिंदिया ने वहाँ आकर उसे चूड़ते हुए देखा तो नही
"कहाँ मालकिन" बिंदिया हस्ते हुए बोली "गांद में से लंड निकलता तो जाती ना"
"और चंदर?" रूपाली ने कहा
"सुबह इशारा कर रहा था के रात को बेसमेंट में मज़ा नही आया. अब वहाँ नही करेंगे. पता नही क्या कह रहा था. मैं तो वहाँ गयी ही नही तो मज़ा कैसा. पक्का कोई सपना देखा होगा और बेवकूफ़ उसे ही सच समझ बैठा" बिंदिया ने कहा तो रूपाली की जान में जान आ गयी.
वो रात गुज़ारनी रूपाली के लिए जैसे मौत हो गयी. उसके जिस्म में आग लगी हुई थी. बिंदिया के साथ की गरम बातों ने उसकी गर्मी को और बढ़ा दिया था. बिस्तर पर पड़े पड़े वो काफ़ी देर तक करवट बदलती रही और जब सुकून नही मिला तो उसने अपनी नाइटी को उपेर खींचा और चूत की आग को अपनी उंगलियों से ठंडी करने की बेकार कोशिश करने लगी.
तेज शाम ढले घर वापिस आ गया था और बिंदिया आज रात भी उसके कमरे में थी. रूपाली उस दिन हॉस्पिटल नही जा पाई थी पर फोन पर भूषण से बात हुई थी. ठाकुर की हालत अब भी वैसी ही थी. बिस्तर पर पड़े पड़े ठाकुर के दिमाग़ में सिर्फ़ ठाकुर का लंड घूम रहा था. जब उंगलियों से बात नही बनी तो वो परेशान होकर उठी और तेज के कमरे के सामने पहुँची. कान लगाकर सुना तो अंदर से बिंदिया के आ ऊ की आवज़ें आ रही थी. रूपाली थोड़ी देर तक वहीं खड़ी सुनती रही. अंदर से कभी बिंदिया के "धीरे ठाकुर साहब" तो कभी "आराम से करिए ना" की आवाज़ें आ रही थी. उसकी आवाज़ सुनकर रूपाली मुस्कुरा उठी. लगता है तेज उसके लिए बिस्तर पर काफ़ी भारी पड़ रहा था.
सुबह उठी तो रूपाली का पूरा जिस्म फिर से दुख रहा था. गयी पूरी रात वो बिस्तर पर परेशान करवट बदलती रही और ढंग से सो नही पाई. दिमाग़ में कयि बार उठकर पायल के पास जाने का ख्याल आया पर फिर उसने अपना इरादा बदल दिया और पायल को सुकून से सोने दिया.
उसने आज देवधर से मिलने जाना था. गाओं से शहेर तक जाने में उसे कम से कम 4 घंटे लगने वाले थे तो वो सुबह सवेरे ही उठकर निकल गयी. दोपहर के तकरीबन 11 बजे वो देवधर के ऑफीस में बैठी थी.
देवधर पटेल कोई 45 साल का एक मोटा आदमी थी. सर से आधे बॉल उड़ चुके थे. उसका पूरा खानदान वकील ही था और शुरू से वो ही ठाकुर का खानदानी वकील था. उससे पहले उसका बाप ये काम संभाला करता था और वकील बनने के बाद देवधर ने अपने बाप की जगह ले ली.
उसने रूपाली को फ़ौरन बैठाया और अपनी सेक्रेटरी को किसी को अंदर ना आने देने को कहकर रूपाली के सामने आ बैठा.
"कहिए छ्होटी ठकुराइन" उसने रूपाली से कहा
रूपाली उम्मीद कर रही थी के वो उसे नाम से बुलाएगा पर देवधर ने ऐसा नही किया.
"सीधे मतलब की बात पे आती हूँ" रूपाली ने कहा "मैं ठाकुर साहब की वसीयत के बारे में जानना चाहती हूँ"
"मुझे लगा ही था के आप इस बारे में ही बात करेंगी."देवधर मुस्कुराते हुए बोला "असल में वसीयत ठाकुर साहब की नही आपके पति की है, ठाकुर पुरुषोत्तम सिंग की"
रूपाली ये बात ख़ान के मुँह से पहले ही सुन चुकी थी
"मैं जानता हूँ के आप ये बात पहले से जानती हैं इसलिए इसमें आपके लिए हैरानी की कोई बात नही"
"आपको कैसे पता?" रूपाली ने पुचछा
"वो ख़ान पहले मेरे पास आया था. ज़ोर ज़बरदस्ती करके सब उगलवा गया. मैं जानता था के वो आपसे इस बारे में बात करेगा" देवधर ने चोर नज़र से रूपाली की और देखते हुए कहा
"आप एक खानदानी वकील हैं. और आपको पैसे हमारे घर के राज़ पोलीस को बताने के नही मिलते. और अगर आप कहें के एक पोलीस वाला आपसे ज़बरदस्ती सब उगलवा गया तो ये बात कुच्छ हजम नही होती देवधर जी" रूपाली ज़रा गुस्से में बोली
"मैं एक वकील हूँ छ्होटी ठकुराइन. मेरे भी हाथ कई जगह फसे रहते हैं जहाँ हमें पोलीस की मदद लेनी पड़ती है. ऐसी ही कई बातों में मुझे उलझाके सब मालूम कर गया वो कमीना पर मैं माफी चाहता हूँ" देवधर ने नज़र नीची करते हुए कहा
"खैर" रूपाली भी जानती थी के अब इस बात पर बहेस करने से कोई फ़ायदा नही "मतलब की बात पर आते हैं. ये सारी जायदाद मेरी कैसे है?"
"देखिए बात सॉफ है" देवधर कुच्छ काग़ज़ खोलते हुए बोला. एक काग़ज़ का उसने रूपाली की तरफ सरकाया "ये आपके ससुर ठाकुर शौर्या सिंग के पिता की वसीयत है जिसमें उन्होने अपना सब कुच्छ आपके पति के नाम कर दिया था. तब ही जब पुरुषोत्तम सिंग छ्होटे थे."
"पर ख़ान ने तो कुच्छ और ही कहा" रूपाली थोड़ी हैरान हुई "वो तो कह रहा था वसीयत सरिता देवी की थी"
"यहाँ आकर बात थोड़ी टेढ़ी हो जाती है" देवधर ने दूसरा काग़ज़ आगे सरकाया "ये पहली वसीयत है जिसमें सब कुच्छ ठाकुर शौर्या सिंग के भाई ठाकुर गौरव सिंग के नाम किया गया था.
फिर देवधर ने एक दोसरा काग़ज़ आगे सरकाया
"जब ठाकुर गौरव सिंग और उनकी पत्नी की कार आक्सिडेंट में मौत हो गयी और पिछे उनका एकलौता बेटा जय ही रह गया तो ये दूसरी वसीयत बनाई गयी जिसमें सब कुच्छ आपकी सास सरिता देवी के नाम किया गया था."
फिर एक चौथा काग़ज़ आगे किया
"और ये आपके पति की वसीयत है जो उन्होने मरने से कुच्छ दिन पहले बनाई थी. इसमें सब कुच्छ आपके नाम किया गया है."
रूपाली परेशान सी अपने सामने रखे पेपर्स को देखने लगी
"तो अब देखा जाए तो पहले ये जायदाद ठाकुर शौर्या सिंग के भाई के पास गयी, फिर उनकी पत्नी के पास, फिर उनके बड़े बेटे के पास और अब उनकी बहू के पास. उनके पास तो कभी आई ही नही."
रूपाली थोड़ी देर खामोश रही
"ये मुझे तब क्यूँ ना बताया गया जब मेरे पति की मौत हुई थी?" उसने देवधर से पुचछा
"आप शायद अपने ससुर को नही जानती. इस इलाक़े में राज था उनका जो कुच्छ हद तक अब भी है. इस इलाक़े के नेता और मिनिस्टर्स भी उनके आगे मुँह नही खोलते और आपके देवर तेज के तो नाम से लोगों की हवा निकल जाती थी. अपनी जान मुझे भी प्यारी थी. मेरी क्या मज़ाल जो मैं उनके हुकुम खिलाफ जाता" देवधर रूपाली की आँखों में देखते हुए बोला
"आपको ठाकुर साहब ने मना किया था?" रूपाली ने पुचछा तो देवधर ने हां में सर हिला दिया
"इस वसीयत के बारे में किस किसको पता है?" रूपाली ने काग़ज़ उठाते हुए कहा
"अब तो सबको पता है पर आपके पति के मरने के बाद सिर्फ़ ठाकुर साहब को पता था. आपके पति की मौत के बाद जब मैं आपसे मिलने हवेली पहुँचा तो मुझे आपसे मिलने नही दिया गया. आपके पति के मरने के बाद ही इस वसीयत का पता ठाकुर साहब को चला था. उससे पहले सिर्फ़ मैं जानता था के जायदाद आपके नाम हो चुकी है" देवधर ने जवाब दिया.
"एक बात समझ नही आई" रूपाली ने देवधर की और देखते हुए कहा "ठाकुर गौरव सिंग के नाम से जायदाद मेरी सास के नाम पर इसलिए गयी क्यूंकी वो मारे गये. पर मेरी सास के नाम से जायदाद हटाकर मेरी पति के नाम क्यूँ की गयी जो की उस वक़्त सिर्फ़ मुश्किल से 10 साल के थे? और दूसरी बात ये के क्यूँ कभी जायदाद ठाकुर के नाम नही हुई जो की अपने पिता की बड़े बेटे थे?"
देवधर की पास इन सवालों का कोई जवाब नही था
"ये बात तो शायद सिर्फ़ ठाकुर शौर्या सिंग के पिता भी बता सकते थे" देवधर बोला "ठाकुर के नाम जायदाद ना करने की वजह शायद उनका गुस्सा हो सकता था जो हमेशा से ही बड़ा तेज़ था. सिर्फ़ 15 साल की उमर में उन्होने घर के नौकर को गोली मार दी थी जबकि उनके पिता इसके बिल्कुल उल्टा थे. वो एक शांत आदमी थे जो हर किसी से प्यार से बात करते थे. शायद उन्हें ठाकुर शौर्या सिंग के गुस्से का डर था इसलिए उनके नाम कुच्छ नही किया. पर आपकी सास के नाम से जायदाद हटाने की वजह मैं खुद भी नही जानता."
"वसीयत आपने ही बदली थी?" रूपाली ने पुचछा तो देवधर हस्ने लगा
"मैं तो उस कॉलेज में ही था शायद. वसीयत मेरे पिताजी ने बदली थी"
"और वो कहाँ हैं?" रूपाली ने पुचछा तो देवधर ने अपनी एक अंगुली आसमान की तरफ उठा दी. रूपाली समझ गयी के देवधर का बाप मार चुका था.
"और फिर मेरे नाम? वो वसीयत तो आपने बदली होगी?" रूपाली के इस सवाल पर देवधर ने हां में सर हिलाया
"मरने से कुच्छ दिन पहले ठाकुर पुरुषोत्तम मेरे पास आए थे. काफ़ी परेशान लग रहे थे. मैने वसीयत बदलने की वजह पुछि तो हॅस्कर कहने लगे के भाई आदमी का सब कुच्छ उसकी बीवी का ही तो होता है"
"तो अगर मैं कोर्ट में पहुँच जाऊं के ये सब मेरा है और बेचना शुरू कर दूँ तो मुझे कोई नही रोक सकता?" रूपाली ने पुचछा
"इतना आसान नही है" देवधर ने कहा "एक ये बात के वसीयत बार बार बदली गयी आपके खिलाफ जा सकती है. कोई भी आपके पति की वसीयत को कोर्ट में चॅलेंज कर सकता है और जब तक कोर्ट का फ़ैसला ना हो जाए, तब तक कुच्छ भी किसी को नही मिलेगा"
"कौन चॅलेंज कर सकता है?" रूपाली बोली
"कोई भी" देवधर ने हाथ फेलाते हुए जवाब दिया "ठाकुर साहब, आपके देवर ठाकुर तएजवीर, सबसे छ्होटे देवर कुलदीप, आपकी ननद कामिनी और सबसे बड़ी परेशानी खड़ी करेगा ठाकुर साहब का भतीजा जय"
"जय?" रूपाली फिर से हैरान हुई
"देखिए जय ने ठाकुर साहब की जायदाद आधी अपने नाम इस लिए कर ली क्यूंकी ठाकुर साहब के नाम पर कभी कुच्छ नही था. सब कुच्छ आपके पति के नाम पर था और ठाकुर साहब ने मुझे आपके पति की वसीयत का ज़िक्र करने से मना किया था. मैने नयी वसीयत के बारे में मुँह नही खोला और इस हिसाब से सब कुच्छ मौत के बाद भी आपके पति के नाम पर था. अब आपके पति को अपने कज़िन जय पर इतना भरोसा था के उन्होने उसे पोवेर ऑफ अटर्नी दे रखी थी जिसका फ़ायदा जय ने उनके मरने के बाद उठाया और धीरे धीरे प्रॉपर्टीस अपने नाम पर करता रहा. पेपर्स में उसने ये लिख दिया के असल मलिक अब ज़िंदा नही है और बिज़्नेस के भले के लिए ये फ़ैसला लिया जाना ज़रूरी है. अब अगर आप कोर्ट पहुँच जाती हैं ये कहते हुए के सब कुच्छ आपका है तो जो कुच्छ जाई ने अपने नाम पर किया था वो सब भी चॅलेंज हो जाएगा. क्यूंकी फिर ये बात उठ जाएगी के पति के मरते ही सब कुच्छ आपका हो गया था तो आपके पति की दी हुई पवर ऑफ अटर्नी भी बेकार हो जाती है. और उसका फ़ायदा उठाकर आपके पति के मरने के बाद उसने जो भी नये पेपर्स बनाए थे वो सब भी बेकार हो जाएँगे. इस हिसाब से सब कुच्छ फिर आपकी झोली में आ गिरेगा और जय सड़क पर आ जाएगा"
देवधर से थोड़ी देर और बात करके रूपाली वापिस हवेली की और चल पड़ी. ख़ान ने जो कुच्छ कहा था उस बात पर देवधर ने सच्चाई की मोहर लगा दी थी. रूपाली की आँखो के आगे दुनिया जैसे घूम रही थी. उसे समझ नही आ रहा था के किस्पर भरोसा करे और किस्पर नही. हर कोई उसे एक अजनबी लग रहा था. पिच्छले सवालों के जवाब मिले नही थे के नये कुच्छ और उठ खड़े हुए.
क्यूँ ठाकुर ने उस तक देवधर को पहुँचने नही दिया. क्यूँ उससे ये बात च्छुपाई गयी? शायद पहले ना बताने की वजह उसका चुप चुप रहना था पर एक बार जब वो ठाकुर के साथ सो चुकी थी तो तब ठाकुर ने उसको कुच्छ क्यूँ नही कहा? दूसरा उसे सब कुच्छ अपनी सास के नाम से हटाकर उसके पति के नाम पर कर देने की बात बहुत अजीब लगी? और पुरुषोत्तम मरने से पहले इतने परेशान क्यूँ थे? क्या उन्हें एहसास हो गया था के उन्हें नुकसान पहुँचाया जा सकता है और अगर हां तो उन्होने रूपाली से इस बात का ज़िक्र क्यूँ नही किया?
अब तक ये बात रूपाली के सामने सॉफ हो चुकी थी की उसकी पति की मौत की वजह ये सारी जायदाद ही थी. पर सवाल ये था के मौत का ज़िम्मेदार कौन था? उसके सामने सबके चेहरे घूमने लगे और उसे हर कोई एक हत्यारा नज़र आने लगा.
"जय ऐसा कर सकता था. सबसे ज़्यादा वजह उसी के पास थी क्यूंकी वो ठाकुर के खानदान से चिढ़ता था. पर तेज भी तो हो सकता है. अपनी अययाशी के लिए उसे पैसा चाहिए जो बहुत जल्दी मिलना बंद हो जाता क्यूंकी सारी जायदाद पुरुषोत्तम के पास थी. और सबसे छ्होटा भाई कुलदीप. वो भी तो उसके पति की मौत के वक़्त यहीं था. चुप चुप रहता है पर है बहुत तेज़ और इस बात का सबूत थी उसके कमरे से मिली वो ब्रा. क्या ठाकुर साहब खुद? हां क्यूँ नही. ये जायदाद बड़ा होने के नाते उन्हें मिलनी चाहिए थी पर मिली नही. कभी नही मिली. यहाँ से वहाँ होती रही पर उनके नाम नही हुई. और फिर देवधर को भी तो उन्होने मुँह खोलने से मना किया था. बिल्कुल कर सकते हैं वो ऐसा. सरिता देवी? ये सारी जायदाद अचानक ही उनके नाम से हटा दी गयी थी.हाथ आई इतनी सारी दौलत निकल जाए तो क्या बेटा और कहाँ का बेटा. हो सकता है उन्होने किया हो और पुरुषोत्तम मरने से पहले उन्हें ही तो छ्चोड़ने मंदिर गये थे. कामिनी? लड़की थी पर ऐसा करने की हिम्मत बिल्कुल थी उसमें. उसका किसी से प्यार था और ये बात ठाकुर बर्दाश्त ना करते. पर अगर सारी दौलत उसकी हो जाती तो कोई क्या कर सकता था"
कामिनी के प्रेमी के बारे में सोचते ही रूपाली को ध्यान आया के वो अब जानती है के उसका प्रेमी कौन था. उसका अपना छ्होटा भाई इंदर जिसने उससे हमेशा ये राज़ च्छुपाकर रखा. पर क्यूँ? उसको भला क्या ऐतराज़ होता अगर इंदर कामिनी से शादी करना चाहता. रूपाली अपने ख्यालों में इतना खोई हुई थी के कई बार आक्सिडेंट होते होते बचा. शाम के करीब 4 बजे वो हवेली वापिस पहुँची और हवेली में कदम रखते ही चौंक पड़ी. बड़े कमरे में खड़ा था उसका छ्होटा भाई इंदर. ठाकुर ईन्द्रसेन राणा.
"वो आए हैं महफ़िल में चाँदनी लेकर, के रोशनी में नहाने की रात आई है" रूपाली को आता देख इंदर खड़ा हुआ
"कब आया इंदर?" एक पल के लिए अपने भाई को देखकर रूपाली जैसे सब कुच्छ भूल गयी
"मैं तो सुबह ही आ गया था दीदी" इंदर बहेन के गले लग गया "पता चला के आप सुबह से कहीं गयी हुई हैं"
"हां कुच्छ काम था" रूपाली भाई के सर पर हाथ फेरते हुए बोली "आ बैठ ना"
"ठाकुर साहब के बारे में पता चला" तेज ने कहा "बहुत अफ़सोस हुआ. मैं आते हुए हॉस्पिटल होता हुआ आया था. अभी भी बेहोश हैं"
"हां जानती हूँ" रूपाली साँस छ्चोड़ते हुए बोली
इंद्रासेन राणा करीब 30 साल का एक बहुत खूबसूरत आदमी था. उसको भगवान ने ऐसा बनाया था के लड़कियाँ देखकर दिल थाम लें और लड़के जल जाए. लंबा चौड़ा कद, गोरा रंग, टन्द्रुस्त शरीर और जब बोलता था तो लगता था के जैसे फूल झाड़ रहे हों. रूपाली काफ़ी देर तक इंदर के साथ वहीं बैठी बात करती रही और पता ही नही चला के कब रात के 9 बज गये. वक़्त का एहसास तब हुआ जब तेज हवेली में दाखिल हुआ. इंदर को सामने बैठा देख वो एक पल के लिए रुका और फिर हाथ आगे करता इनडर की तरफ बढ़ा.
"कैसे हैं ठाकुर इंद्रासेन?" वो हमेशा इंदर को उसके पूरे नाम से ही बुलाता था
"मैं ठीक हूँ बड़े भाय्या" इंदर ने भी आगे बढ़कर हाथ आगे मिलाया
"आज इस तरफ कैसे आना हुआ?" तेज ने पुचछा तो इंदर ने मुस्कुरा के कंधे झटकाए
"ऐसे ही आप लोगों की याद आई तो मिलने चला आया"
खाने की टेबल पर तीनो साथ थे. रूपाली ने ध्यान दिया के पायल की नज़र तेज पर कुच्छ ज़्यादा ही थी. वो उसका ख़ास तौर पर ध्यान रख रही थी. बार बार आकर उससे पुछ्ति के कुच्छ चाहिए तो नही. इंदर को देख कर मुस्कुराती. रूपाली भी दिल ही दिल में उसकी हरकत देख कर मुस्कुरा उठी. ये पहली बार नही था के उसने अपने भाई के आस पास लड़कियों की पागल होते हुए देखा था. उसके भाई के पिछे पागल होने वाली एक तो उसकी अपनी ननद ही थी.
इंदर को उसने ग्राउंड फ्लोर पर ही कमरे दे दिया. जब वो और तेज अपने कमरे में चले गये तो वो बिंदिया और पायल को किचन सॉफ करने का कहकर अपने कमरे में पहुँची. वो तेज से कामिनी के बारे में और आज हुई देवधर से मुलाक़ात के बारे में बात करना चाह रही थी इसलिए एक नाइटी पहेनकर तेज के कमरे में पहुँची.
तेज के कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ था. वो अंदर दाखिल हुई. एक नज़र केमर में दौड़ाई तो तेज कहीं नज़र नही आया. रूपाली ने उसे बुलाने के लिए आवाज़ देनी चाही ही थी के अचानक उसके पेर हवा में उठ गये. एक हाथ पिछे से उसकी कमर पर होता हुआ सीधा नाइटी के उपेर से उसकी चूत पर आया और दूसरा उसकी एक छाती पर और उसे हवा में थोडा सा उपेर उठा दिया गया. अपनी कमर पर उसे किसी की छाती महसूस हुई और नीचे से एक लंड उसकी गांद पर आ दबा.
"आज इतनी देर कहाँ लगा दी थी?" पीछे से तेज की आवाज़ आई
ये सब एक पल में हुआ. रूपाली को कुच्छ कहने या करने का मौका ही नही मिला. और उसके अगले ही पल तेज को एहसास हुआ के उसने बिंदिया को नही बल्कि रूपाली को पकड़ रखा है. उसके हाथ रूपाली के जिस्म से फ़ौरन हट गये जैसे रूपाली में अचानक से करेंट दौड़ गया हो. वो जल्दी से 2 कदम पिछे को हुआ और परेशान नज़र से रूपाली को देखने लगा.
"माफ़ कीजिएगा भाभी" उसे समझ नही आ रहा था के क्या कहे "वो मुझे लगा के..... के....."
उसे समझ नही आया के कैसे रूपाली से कहे के वो घर की नौकरानी को चोद रहा था.
दोनो के लिए वो सिचुयेशन इतनी अजीब हो गयी के रूपाली चाह कर भी कुच्छ कह ना सकी. वो तेज से कुच्छ बात करने आई थी पर उस वक़्त उसने कुच्छ ना कहना बेहतर समझा और चुपचाप कमरे से निकल गयी.
रूपाली और तेज दोनो ही हवेली पहुँचे.
"आपको क्या ज़रूरत थी यूँ पोलीस स्टेशन जाने की?" तेज ने रूपाली से हवेली में घुसते ही पुचछा
रूपाली ने कोई जवाब नही दिया
"वो पोलीस वाला अपने आपको बहुत बड़ा शेर समझता है" तेज अब भी गुस्से में जल रहा था "1 दिन में हेकड़ी निकाल दूँगा. आज तक किसी की हिम्मत नही हुई के इस हवेली की शान में गुस्ताख़ी करे"
बोलकर तेज अपने कमरे की और बढ़ा ही था के रूपाली की आवाज़ सुनकर रुक गया
"कौन सी शान की बात कर रहे हो ठाकुर तएजवीर सिंग"
तेज रूपाली की तरफ पलटा
"इस हवेली में अब उल्लू भी नही बोलते. लोग इस तरफ आने से भी कतराते हैं. वो तो फिर गैर हैं छ्चोड़ो, यहाँ तो अपने भी हवेली में कदम नही रखते. किस शान की बात कर रहे हैं आप?" रूपाली ने पुचछा तो इस बार तेज के पास कोई जवाब नही था.
"ज़रा बाहर निकालकर नज़र डालिए तएजवीर जी. इस हवेली पर अब मनहूसियत बरसती है. बाहर से देखने से ऐसा लगता है जैसे यहाँ बरसो से कोई नही रहा. इस हवेली की शान में गुस्ताख़ी तो गुज़रते वक़्त ने कर दी है वो पोलीस वाला क्या करेगा." रूपाली बोलती रही और तेज चुप खड़ा उसकी तरफ देखता रहा
"हमारी ज़मीन हमारा ही अपना कोई हमारी नज़र के सामने से चुरा ले गया. जो रह गयी वो बंजर पड़ी हैं. बची हुई जो दौलत है वो ख़तम हो रही है. इस हवेली के मलिक हॉस्पिटल में पड़े हैं. आपके भाई को बीच सड़क किसी ने गोली मार दी थी. आपने नाम पर लोग हस्ते हैं. और आप हवेली की शान की बात कर रहे हैं?" रूपाली ने जैसे अपने दिल में जमा सारा ज़हेर तेज पर उगल दिया और अपने कमरे की तरफ बढ़ चली.
"और हां" जाते जाते वो फिर पलटी "जब घर के आदमियों का कहीं आता पता ना हो तो घर की औरतों को ही पोलीस स्टेशन जाना पड़ता है"
रूपाली ने एक आखरी ताना सा मारा और अपने कमरे की तरफ बढ़ चली. अपने पिछे उसे तेज गुस्से में पेर पटकता हुआ हवेली के बाहर जाता हुआ दिखाई दिया.
कमरे में पहुँच कर रूपाली के आँसू निकल पड़े. उसने जो कुच्छ तेज से कहा था वो गुस्से में था पर इन बातों ने उसके खुद के ज़ख़्म हरे कर दिए थे. कुच्छ देर तक यूँ ही आँसू बहाने के बाद उसने सामने रखा फोन उठाया और देवधर का नंबर मिलाया
"हां रूपाली जी कहिए" दूसरी तरफ से देवधर की आवाज़ आई
रूपाली को वो ज़माना याद आ गया जब देवधर जैसे उसे छ्होटी ठकुराइन के नाम से बुलाते थे. आज उसकी इतनी औकात हो गयी थी के उसे नाम से बुला रहा था. वो एक ठंडी आह भरकर रह गयी. दिल में जानती थी के ये ग़लती देवधर की नही बल्कि ठाकुर खानदान की ही है. जब अपने ही सिक्के खोटे हों तो कोई क्या करे.
"मैने आपसे कहा था ने के आने से एक दिन पहले फोन करूँगी." रूपाली ने जवाब दिया
"तो आप कल आ रही हैं?" देवधर उसकी बात का मतलब समझ गया
"हां" रूपाली ने जवाब दिया "कल सुबह यहाँ से निकलेंगे तो दोपहर तक आपके पास पहुँच जाएँगे."
"जैसा आप ठीक समझें" देवधर ने कहा "वैसे आप एक बार बता देती के किस बारे में बात करी है तो मैं पेपर्स वगेरह तैय्यार रखता"
"ये आकर ही बताती हूँ" कहकर रूपाली ने फोन काट दिया. अपनी हालत ठीक की और फिर नीचे आई.
पायल बड़े कमरे में बैठी टीवी देख रही थी.
"तेरी माँ कहाँ है?" रूपाली ने पुचछा
"जी वो नहाने गयी हैं" पायल ने टीवी की आवाज़ धीरे करते हुए कहा
"और चंदर?" रूपाली ने पुचछा तो पायल ने कंधे हिला दिए
"पता नही"
रूपाली हवेली से निकलकर बिंदिया के कमरे की तरफ बढ़ी. वो कमरे की नज़दीक पहुँची ही थी के बिंदिया के कमरे का दरवाजा खुला और वो माथे से पसीना साफ करती हुई बाहर निकली. पीछे चंदर था. रूपाली फ़ौरन समझ गयी के वो क्या करके आ रहे हैं पर कुच्छ नही बोली.
"अगर तू नहा ली हो तो मेरे कमरे में आ. कुच्छ बात करनी है" रूपाली ने कहा तो बिंदिया ने हां में सर हिला दिया.
रूपाली चंदर की तरफ मूडी
"और तुझे मैने कहा था सफाई के लिए. उस तरफ देख" रूपाली ने हवेली के कॉंपाउंड में उस तरफ इशारा किया जहाँ अब भी कुच्छ झाड़ियाँ थी. उसके चेहरे पर अब भी हल्के गुस्से के भाव थे. चंदर ने फ़ौरन इशारे से कहा के वो अभी सफाई शुरू कर देगा.
रूपाली अपने कमरे की तरफ बढ़ चली. कल रात के बाद उसने अब पहली बार चंदर को देखा था. जिस अंदाज़ से चंदर ने उसकी तरफ देखा था उससे रूपाली सोचने पर मजबूर हो गयी थी. उसमें ऐसा कोई अंदाज़ नही था जैसा की उसे चोदने के बाद होना चाहिए था. चंदर ने अब भी उसे उसी इज़्ज़त से देखा था जैसे पहले देखा था और अब भी वैसे ही उसका हुकुम माना था जैसे पहले मानता था.
थोड़ी देर बाद बिंदिया और रूपाली दोनो रूपाली के कमरे में बैठे थे और रूपाली गुस्से से बिंदिया को घूर रही थी.
"अपनी रंग रलियान ज़रा कम कर. दिन में इस वक़्त? वो भी तब जब तेरी बेटी यहीं बैठी थी? अगर तेज देख लेते तो काट देते तुझे और उस चंदर को भी"
माफ़ कर दीजिए मालकिन" बिंदिया ने सर झुकाए कहा "अब नही होगा"
रूपाली वहीं उसके सामने बिस्तर पर बैठ गयी
"कल रात का बता. क्या लगता है तुझे? खुश था चंदर तेरे साथ बिस्तर पर?" रूपाली ने बिंदिया से पुचछा तो वो मुस्कुरा उठी
"खुश? मालकिन कल पूरी रात सोने नही दिया मुझे" बिंदिया बोली
"तूने मनाया कैसे तेज को?" रूपाली ने पुचछा
"ज़रूरत ही कहाँ पड़ी मनाने की. वो तो पहले ही तैय्यार बैठे थे" बिंदिया ने जब देखा के रूपाली का गुस्सा थोड़ा कम हो रहा है तो वो भी खुलकर बात करने लगी
"मतलब?" रूपाली ने पुचछा
"मतलब ये के रात अपने कमरे में जाने से पहले उन्होने मुझसे कहा के एक कप चाय उनके कमरे में ले आओं. मैं उसी वक़्त इस समझ गयी की मुझे कुच्छ करने की ज़रूरत नही और मुझे कमरे में चाय के बहाने क्यूँ बुलाया जा रहा है. मैने चाय बनाई और लेकर उनके पास जाने से पहले पायल के कमरे में पहुँची. वहाँ जाकर में अपनी चोली उतारी और पायल की पहेन ली"
"पायल की चोली? वो क्यूँ?" रूपाली ने हैरत से पुचछा
"क्यूंकी पायल की छातिया मुझसे काफ़ी बड़ी हैं. कभी कभी तो मुझे खुद को हैरानी होती है. ज़रा सी उमर में ही उसकी छातिया मुझसे दुगुनी हो गयी हैं" बिंदिया ने कहा
"तू अपनी ही बेटी की छातिया क्यूँ देखती है?" रूपाली ने मुस्कुराते हुए पुचछा
"माँ हून मालकिन" बिंदिया ने कहा "जवान बेटी घर में हो तो सब देखना पड़ता है. और वैसे भी उस ज़रा सी बच्ची के जिस्म पर सबसे पहले उसकी बड़ी बड़ी छातिया ही दिखाई देती हैं"
रूपाली का दिल किया के उसको बताए के जिसे वो ज़रा सी बच्ची कह रही है उसके जिस्म में माँ से भी ज़्यादा आग है और एक लंड ले भी चुकी है.
"अच्छा वो छ्चोड़" रूपाली बोली "तूने पायल की चोली क्यूँ पहनी?"
"मालकिन उसकी चोली मुझे ढीली आती है क्यूंकी मेरी छातिया इतनी नही" बिंदिया ने अपनी चुचियों की तरफ देखते हुए कहा. रूपाली ने भी अपनी नज़र उधर ही डाली
"उसकी छातिया बड़ी होने की वजह से अगर मैं उसकी चोली पहेन लूँ तो सामने से इतनी ढीली हो जाती है के हल्का सा झुकते ही सारा नज़ारा सामने आ जाता है" बिंदिया ने समझाते हुए कहा
"ओह अब समझी. फिर?"
"फिर मैं चाय लेकर उनके कमरे में पहुँची और कप बिल्कुल उनके सामने रखा. कप रखते हुए मैं झुकी और बस. मेरी चूचियाँ आपके देवर के सामने थी" बिंदिया बोली
"तेज ने देखी?" रूपाली अब बेझिझक सवाल पुच्छ रही थी.
"देखी? हाथ बढ़ाकर सीधा एक चूची पकड़ ली." बिंदिया हस्ते हुए बोली
रूपाली दिल ही दिल में तेज की हिम्मत की दाद दिए बिना ना रह सकी
"पकड़ ली? तूने क्या कहा?" उसने बिंदिया से पुचछा
"मैं क्या कहती. मैं तो पहली ही तैय्यार थी. चूची पकड़कर छ्होटे ठाकुर ने हल्का सा दबाव डाला और कहा के मेरी चूचियाँ काफ़ी सख़्त हैं. इस उम्र में ज़रा भी ढीली नही हैं. अब बारी थी मेरी तरफ से इशारे की."
रूपाली चुप चाप बैठी सुन रही थी
"मैं मुस्कुराइ और कहा के छ्होटे ठाकुर चोली के उपेर से हाथ लगाके कहाँ पता चलता है के चूचियाँ सख़्त हैं या उमर के साथ ढीली पड़ गयी हैं" बिंदिया ने बात जारी रखी "इतना इशारा काफ़ी था. वो उठे और चोली मेरे जिस्म से ऐसे अलग की जैसे फाड़ रहे हों. जब मैं उपेर से नंगी हो गयी तो उन्होने मेरी चूचियों पर हाथ फेरा और कहा के मैं सही था. तुम्हारी चूचियाँ सही में काफ़ी सख़्त हैं और हाथ से दबाने लगा. तब तक मैं खुद भी गरम हो चुकी थी. मैं उनके बाल सहलाने लगी. वो कभी मेरी चूचियो को दबाते तो कभी मेरे निपल्स को सहलाते. थोड़ी देर तक यही खेल चलता रहा. जब मुझसे और बर्दाश्त ना हुआ तो मैने उनका सर आगे को खींचा और उनका मुँह अपनी छाती पर दबा दिया. मेरा एक निपल सीधा उनके मुँह में गया और वो ऐसे चूसने लगे जैसे आज के बाद कोई औरत नंगी देखने को नही मिलेगी."
"तुझे मज़ा आया?"रूपाली ने पुचछा
"मेरे निपल्स मेरे शरीर का सबसे कमज़ोर हिस्सा हैं मालकिन. मुझे सबसे ज़्यादा मज़ा निपल्स चुसवाने में आता है " बिंदिया ने फिर एक बार अपनी चूचियों पर नज़र डाली "पर मेरी किस्मत के ना तो मेरा मर्द ये बात समझ सका और ना ही चंदर. दोनो ही मेरी चूचियों पर कुच्छ ख़ास ध्यान नही देते थे इसलिए जब छ्होटे ठाकुर ने तसल्ली के साथ मेरे निपल्स को रगड़ा तो मैं वही पिघल गयी. मैने खुद अपना ल़हेंगा खोलकर नीचे गिरा दिया और उनके सामने नंगी हो गयी. उनके हाथ मेरे पुर जिस्म पर फिरने लगे और जाकर मेरी गांद पर रुक गये. उन्होने मेरी आँखों में देखते हुए निपल मुँह से निकाला और बोले के उन्हें सबसे ज़्यादा मेरी गांद पसंद है और ये कहते हुए गांद को हल्के से दबा दिया."
"फिर?"रूपाली इतना ही कह सकी
"मैं समझ गयी के आज मेरी चूत के साथ साथ गांद का भी नंबर लगेगा. मैं मुस्कुराइ और बोली के ठाकुर साहब मैं तो पूरी आपकी हूँ पर पहले आपको तैय्यार तो कर दूँ. ये कहते हुए मैं उनके सामने बैठ गयी और उनका पाजामा नीचे सरका कर उनका लंड बाहर निकाला" बिंदिया ने कहा
कैसा था, ये बात रूपाली के मुँह से निकलते निकलते रह गयी. उसे फ़ौरन ये एहसास हुआ के वो अपने देवर के बारे में बात कर रही है और बिंदिया से इस तरह का कोई सवाल ग़लत साबित हो सकता है. दूसरा उसे खुद ये हैरत हुई के वो तेज के लंड के बारे में जानना चाहती है. उसने बात फ़ौरन अपने दिमाग़ से झटकी.
"थोड़ी ही देर बाद मैं नंगी उनके सामने बैठी थी और लंड मेरे मुँह में था" बिंदया ने कहा तो रूपाली मन मसोस कर रह गयी. वो उम्मीद कर रही थी के बिंदिया खुद ये कहेगी के उसे तेज का लंड कैसा लगा
"मेरा इरादा तो ये था के बिस्तर पर मैं जो जानती हूँ वो करूँ ताकि छ्होटे ठाकुर को खुश कर सकूँ पर ऐसा हो ना सका. थोड़ी देर बाद उन्होने लंड मेरे मुँह से निकाला और मुझे बिस्तर पर आने को कहा. मैं मुस्कुराते हुए बिस्तर पर आई और उनके सामने लेटकर अपनी टांगे फेला दी. पर उनका इरादा कुच्छ और ही था. उन्होने मेरी टांगे फिर बंद की और मुझे घूमकर उल्टा कर दिया" बिंदिया ने कहा
"मतलब तेरी......" रूपाली ने बात अधूरी छ्चोड़ दी
"हां" बिंदिया समझ गयी के वो क्या कहना चाह रही थी "मैं समझ गयी के पहला नंबर मेरी गांद का लगने वाला है और ऐसा ही हुआ. तेज ने अपने पुर लंड पर तेल लगा लिया और थोड़ा मेरी गांद पर. उनकी इस हरकत से मैं समझ गयी के वो पहले ही किसी औरत की गांद मार चुके हैं"
"फिर?" खुद रूपाली भी अब गरम हो रही थी
"फिर वो आकर मेरे उपेर आकर बैठ गये और दोनो हाथों से मेरी गांद को फेला दिया. और फिर लंड मेरी गांद पर दबाया और बिना रुके धीरे धीरे पूरा लंड अंदर घुसा दिया. मैं दर्द से कराह उठी" बिंदिया ने कहा
"दर्द? पर तू तो पहले भी ये कर चुकी है" रूपाली ने हैरान होते पुचछा
"तो क्या हुआ मालकिन" बिंदिया ने भी उसी अंदाज़ में पुचछा "कोई चूत थोड़े ही है के पहली बार में ही दर्द हो. गांद में लंड घुसेगा तो दर्द तो होगा ही. चाहे पहली बार हो या बार बार."
"अच्छा फिर ?" रूपाली ने उसे आयेज बताने को कहा
"छ्होटे ठाकुर भी बिस्तर पर खिलाड़ी थे. गांद में लंड जाते ही समझ गये की मैं आगे से क्या पिछे से भी कुँवारी नही हूँ. धीरे से मेरे कान में बोले के अच्छा तो यहाँ भी कोई हमसे पहले आके जा चुका है. मैं कहा के ठाकुर साहब ये कोई सड़क नही है जहाँ से लोग आए जाएँ तो सड़क खराब हो जाए. यहाँ तो कितने भी आकर चले जाएँ कोई फरक नही पड़ता. जगह वैसे की वैसी ही रहती है, थोड़ी देर बाद वो मेरे उपेर लेते थे और लंड मेरे अंदर बाहर हो रहा था. मुझे भी मज़ा आ रहा था इसलिए मैं भी पूरा साथ दे रही थी पर उल्टी लेटी होने की वजह से मैं ज़्यादा कुच्छ कर नही पा रही थी और ये बात ठाकुर भी समझ गये. थोड़ी देर ऐसे ही गांद मारने के बाद उन्होने मुझे उपेर आकर लंड गांद में लेने को कहा. फिर वो सीधा लेट गये और मैं उनके उपेर बैठ गयी. लंड एक बार फिर गांद में घुस गया. फिर मैं कभी आराम से हिलती तो कभी तेज़ी से उपेर नीचे होती. कभी अपनी चूचियाँ खुद दबाती तो कभी उनके मुँह में घुसा देती. बस ये मानिए के मैने तब तक हार नही मानी जब तक के मैं खुद भी झाड़ गयी और ठाकुर का पानी अपनी गांद में ना निकाल लिया. उपेर बैठकर सब मुझे करना था इसलिए मैं ख्याल रखा के कोई कमी नई रहने दूं और ठाकुर को खुश कर दूं" बिंदिया मुस्कुराते हुए ऐसे बोली जैसे कोई जुंग जीत कर आई हो
"शाबाश" रूपाली ने कहा "मतलब पूरी रात चूत और गांद ली गयी तेरी?"
"कहाँ मालकिन" बिंदिया ने कहा "ठाकुर ने चूत की तरफ तो ध्यान ही नही दिया. पूरी रात बस मेरी गांद में ही मारते रहे. कभी लिटाके मारी, तो कभी उपेर बैठके. कभी खड़ी करके मारी तो कभी झुकाके."
"पूरी रात?" रूपाली ने फिर हैरानी से कहा. "तूने कहा नही आगे से करने को?"
"मैं तो बस चूत में लंड लेने का सोचती ही रही पर कहा नही क्यूंकी मैं ठाकुर को जो वो चाहें बस वो करने देना चाहती थी." बिंदिया बोली
"फिर?" रूपाली ने पुचछा
"चंदर भी रात की ज़िद कर रहा था और मेरा भी चूत में लंड लेने का दिल हो रहा था इसलिए मैं उसे आने से पहले इशारा कर आई थी के रात को हवेली के पिछे जो तहखाना है वहाँ आ जाए" बिंदिया ने कहा तो रूपाली चौंक पड़ी
"क्या? बेसमेंट में? क्यूँ?"
"मालकिन अब ठाकुर के पास से उठकर अपने कमरे की तरफ जाती तो उन्हें शक हो सकता था क्यूंकी उनके कमरे की खिड़की से मेरा कमरा सॉफ नज़र आता है. ये मैने पहले ही देख लिया था इसलिए मैने चंदर को कह दिया था के अब से हर रात मुझे वहीं मिला करे क्यूंकी मैं रात को पायल के कमरे में सोया करूँगी और बाहर नही आ सकूँगी"
बिंदिया की ये बात सुनकर रूपाली को कल रात की कहानी समझ आ गयी और ये भी समझ आ गया के चंदर के बर्ताव में कोई बदलाव क्यूँ नही था. उसे तो पता भी नही था के बेसमेंट के अंधेरे में उसने बिंदिया की नही रूपाली की चूत मारी थी.
"तो फिर तू गयी?" रूपाली पक्का करना चाहती थी के बिंदिया ने वहाँ आकर उसे चूड़ते हुए देखा तो नही
"कहाँ मालकिन" बिंदिया हस्ते हुए बोली "गांद में से लंड निकलता तो जाती ना"
"और चंदर?" रूपाली ने कहा
"सुबह इशारा कर रहा था के रात को बेसमेंट में मज़ा नही आया. अब वहाँ नही करेंगे. पता नही क्या कह रहा था. मैं तो वहाँ गयी ही नही तो मज़ा कैसा. पक्का कोई सपना देखा होगा और बेवकूफ़ उसे ही सच समझ बैठा" बिंदिया ने कहा तो रूपाली की जान में जान आ गयी.
वो रात गुज़ारनी रूपाली के लिए जैसे मौत हो गयी. उसके जिस्म में आग लगी हुई थी. बिंदिया के साथ की गरम बातों ने उसकी गर्मी को और बढ़ा दिया था. बिस्तर पर पड़े पड़े वो काफ़ी देर तक करवट बदलती रही और जब सुकून नही मिला तो उसने अपनी नाइटी को उपेर खींचा और चूत की आग को अपनी उंगलियों से ठंडी करने की बेकार कोशिश करने लगी.
तेज शाम ढले घर वापिस आ गया था और बिंदिया आज रात भी उसके कमरे में थी. रूपाली उस दिन हॉस्पिटल नही जा पाई थी पर फोन पर भूषण से बात हुई थी. ठाकुर की हालत अब भी वैसी ही थी. बिस्तर पर पड़े पड़े ठाकुर के दिमाग़ में सिर्फ़ ठाकुर का लंड घूम रहा था. जब उंगलियों से बात नही बनी तो वो परेशान होकर उठी और तेज के कमरे के सामने पहुँची. कान लगाकर सुना तो अंदर से बिंदिया के आ ऊ की आवज़ें आ रही थी. रूपाली थोड़ी देर तक वहीं खड़ी सुनती रही. अंदर से कभी बिंदिया के "धीरे ठाकुर साहब" तो कभी "आराम से करिए ना" की आवाज़ें आ रही थी. उसकी आवाज़ सुनकर रूपाली मुस्कुरा उठी. लगता है तेज उसके लिए बिस्तर पर काफ़ी भारी पड़ रहा था.
सुबह उठी तो रूपाली का पूरा जिस्म फिर से दुख रहा था. गयी पूरी रात वो बिस्तर पर परेशान करवट बदलती रही और ढंग से सो नही पाई. दिमाग़ में कयि बार उठकर पायल के पास जाने का ख्याल आया पर फिर उसने अपना इरादा बदल दिया और पायल को सुकून से सोने दिया.
उसने आज देवधर से मिलने जाना था. गाओं से शहेर तक जाने में उसे कम से कम 4 घंटे लगने वाले थे तो वो सुबह सवेरे ही उठकर निकल गयी. दोपहर के तकरीबन 11 बजे वो देवधर के ऑफीस में बैठी थी.
देवधर पटेल कोई 45 साल का एक मोटा आदमी थी. सर से आधे बॉल उड़ चुके थे. उसका पूरा खानदान वकील ही था और शुरू से वो ही ठाकुर का खानदानी वकील था. उससे पहले उसका बाप ये काम संभाला करता था और वकील बनने के बाद देवधर ने अपने बाप की जगह ले ली.
उसने रूपाली को फ़ौरन बैठाया और अपनी सेक्रेटरी को किसी को अंदर ना आने देने को कहकर रूपाली के सामने आ बैठा.
"कहिए छ्होटी ठकुराइन" उसने रूपाली से कहा
रूपाली उम्मीद कर रही थी के वो उसे नाम से बुलाएगा पर देवधर ने ऐसा नही किया.
"सीधे मतलब की बात पे आती हूँ" रूपाली ने कहा "मैं ठाकुर साहब की वसीयत के बारे में जानना चाहती हूँ"
"मुझे लगा ही था के आप इस बारे में ही बात करेंगी."देवधर मुस्कुराते हुए बोला "असल में वसीयत ठाकुर साहब की नही आपके पति की है, ठाकुर पुरुषोत्तम सिंग की"
रूपाली ये बात ख़ान के मुँह से पहले ही सुन चुकी थी
"मैं जानता हूँ के आप ये बात पहले से जानती हैं इसलिए इसमें आपके लिए हैरानी की कोई बात नही"
"आपको कैसे पता?" रूपाली ने पुचछा
"वो ख़ान पहले मेरे पास आया था. ज़ोर ज़बरदस्ती करके सब उगलवा गया. मैं जानता था के वो आपसे इस बारे में बात करेगा" देवधर ने चोर नज़र से रूपाली की और देखते हुए कहा
"आप एक खानदानी वकील हैं. और आपको पैसे हमारे घर के राज़ पोलीस को बताने के नही मिलते. और अगर आप कहें के एक पोलीस वाला आपसे ज़बरदस्ती सब उगलवा गया तो ये बात कुच्छ हजम नही होती देवधर जी" रूपाली ज़रा गुस्से में बोली
"मैं एक वकील हूँ छ्होटी ठकुराइन. मेरे भी हाथ कई जगह फसे रहते हैं जहाँ हमें पोलीस की मदद लेनी पड़ती है. ऐसी ही कई बातों में मुझे उलझाके सब मालूम कर गया वो कमीना पर मैं माफी चाहता हूँ" देवधर ने नज़र नीची करते हुए कहा
"खैर" रूपाली भी जानती थी के अब इस बात पर बहेस करने से कोई फ़ायदा नही "मतलब की बात पर आते हैं. ये सारी जायदाद मेरी कैसे है?"
"देखिए बात सॉफ है" देवधर कुच्छ काग़ज़ खोलते हुए बोला. एक काग़ज़ का उसने रूपाली की तरफ सरकाया "ये आपके ससुर ठाकुर शौर्या सिंग के पिता की वसीयत है जिसमें उन्होने अपना सब कुच्छ आपके पति के नाम कर दिया था. तब ही जब पुरुषोत्तम सिंग छ्होटे थे."
"पर ख़ान ने तो कुच्छ और ही कहा" रूपाली थोड़ी हैरान हुई "वो तो कह रहा था वसीयत सरिता देवी की थी"
"यहाँ आकर बात थोड़ी टेढ़ी हो जाती है" देवधर ने दूसरा काग़ज़ आगे सरकाया "ये पहली वसीयत है जिसमें सब कुच्छ ठाकुर शौर्या सिंग के भाई ठाकुर गौरव सिंग के नाम किया गया था.
फिर देवधर ने एक दोसरा काग़ज़ आगे सरकाया
"जब ठाकुर गौरव सिंग और उनकी पत्नी की कार आक्सिडेंट में मौत हो गयी और पिछे उनका एकलौता बेटा जय ही रह गया तो ये दूसरी वसीयत बनाई गयी जिसमें सब कुच्छ आपकी सास सरिता देवी के नाम किया गया था."
फिर एक चौथा काग़ज़ आगे किया
"और ये आपके पति की वसीयत है जो उन्होने मरने से कुच्छ दिन पहले बनाई थी. इसमें सब कुच्छ आपके नाम किया गया है."
रूपाली परेशान सी अपने सामने रखे पेपर्स को देखने लगी
"तो अब देखा जाए तो पहले ये जायदाद ठाकुर शौर्या सिंग के भाई के पास गयी, फिर उनकी पत्नी के पास, फिर उनके बड़े बेटे के पास और अब उनकी बहू के पास. उनके पास तो कभी आई ही नही."
रूपाली थोड़ी देर खामोश रही
"ये मुझे तब क्यूँ ना बताया गया जब मेरे पति की मौत हुई थी?" उसने देवधर से पुचछा
"आप शायद अपने ससुर को नही जानती. इस इलाक़े में राज था उनका जो कुच्छ हद तक अब भी है. इस इलाक़े के नेता और मिनिस्टर्स भी उनके आगे मुँह नही खोलते और आपके देवर तेज के तो नाम से लोगों की हवा निकल जाती थी. अपनी जान मुझे भी प्यारी थी. मेरी क्या मज़ाल जो मैं उनके हुकुम खिलाफ जाता" देवधर रूपाली की आँखों में देखते हुए बोला
"आपको ठाकुर साहब ने मना किया था?" रूपाली ने पुचछा तो देवधर ने हां में सर हिला दिया
"इस वसीयत के बारे में किस किसको पता है?" रूपाली ने काग़ज़ उठाते हुए कहा
"अब तो सबको पता है पर आपके पति के मरने के बाद सिर्फ़ ठाकुर साहब को पता था. आपके पति की मौत के बाद जब मैं आपसे मिलने हवेली पहुँचा तो मुझे आपसे मिलने नही दिया गया. आपके पति के मरने के बाद ही इस वसीयत का पता ठाकुर साहब को चला था. उससे पहले सिर्फ़ मैं जानता था के जायदाद आपके नाम हो चुकी है" देवधर ने जवाब दिया.
"एक बात समझ नही आई" रूपाली ने देवधर की और देखते हुए कहा "ठाकुर गौरव सिंग के नाम से जायदाद मेरी सास के नाम पर इसलिए गयी क्यूंकी वो मारे गये. पर मेरी सास के नाम से जायदाद हटाकर मेरी पति के नाम क्यूँ की गयी जो की उस वक़्त सिर्फ़ मुश्किल से 10 साल के थे? और दूसरी बात ये के क्यूँ कभी जायदाद ठाकुर के नाम नही हुई जो की अपने पिता की बड़े बेटे थे?"
देवधर की पास इन सवालों का कोई जवाब नही था
"ये बात तो शायद सिर्फ़ ठाकुर शौर्या सिंग के पिता भी बता सकते थे" देवधर बोला "ठाकुर के नाम जायदाद ना करने की वजह शायद उनका गुस्सा हो सकता था जो हमेशा से ही बड़ा तेज़ था. सिर्फ़ 15 साल की उमर में उन्होने घर के नौकर को गोली मार दी थी जबकि उनके पिता इसके बिल्कुल उल्टा थे. वो एक शांत आदमी थे जो हर किसी से प्यार से बात करते थे. शायद उन्हें ठाकुर शौर्या सिंग के गुस्से का डर था इसलिए उनके नाम कुच्छ नही किया. पर आपकी सास के नाम से जायदाद हटाने की वजह मैं खुद भी नही जानता."
"वसीयत आपने ही बदली थी?" रूपाली ने पुचछा तो देवधर हस्ने लगा
"मैं तो उस कॉलेज में ही था शायद. वसीयत मेरे पिताजी ने बदली थी"
"और वो कहाँ हैं?" रूपाली ने पुचछा तो देवधर ने अपनी एक अंगुली आसमान की तरफ उठा दी. रूपाली समझ गयी के देवधर का बाप मार चुका था.
"और फिर मेरे नाम? वो वसीयत तो आपने बदली होगी?" रूपाली के इस सवाल पर देवधर ने हां में सर हिलाया
"मरने से कुच्छ दिन पहले ठाकुर पुरुषोत्तम मेरे पास आए थे. काफ़ी परेशान लग रहे थे. मैने वसीयत बदलने की वजह पुछि तो हॅस्कर कहने लगे के भाई आदमी का सब कुच्छ उसकी बीवी का ही तो होता है"
"तो अगर मैं कोर्ट में पहुँच जाऊं के ये सब मेरा है और बेचना शुरू कर दूँ तो मुझे कोई नही रोक सकता?" रूपाली ने पुचछा
"इतना आसान नही है" देवधर ने कहा "एक ये बात के वसीयत बार बार बदली गयी आपके खिलाफ जा सकती है. कोई भी आपके पति की वसीयत को कोर्ट में चॅलेंज कर सकता है और जब तक कोर्ट का फ़ैसला ना हो जाए, तब तक कुच्छ भी किसी को नही मिलेगा"
"कौन चॅलेंज कर सकता है?" रूपाली बोली
"कोई भी" देवधर ने हाथ फेलाते हुए जवाब दिया "ठाकुर साहब, आपके देवर ठाकुर तएजवीर, सबसे छ्होटे देवर कुलदीप, आपकी ननद कामिनी और सबसे बड़ी परेशानी खड़ी करेगा ठाकुर साहब का भतीजा जय"
"जय?" रूपाली फिर से हैरान हुई
"देखिए जय ने ठाकुर साहब की जायदाद आधी अपने नाम इस लिए कर ली क्यूंकी ठाकुर साहब के नाम पर कभी कुच्छ नही था. सब कुच्छ आपके पति के नाम पर था और ठाकुर साहब ने मुझे आपके पति की वसीयत का ज़िक्र करने से मना किया था. मैने नयी वसीयत के बारे में मुँह नही खोला और इस हिसाब से सब कुच्छ मौत के बाद भी आपके पति के नाम पर था. अब आपके पति को अपने कज़िन जय पर इतना भरोसा था के उन्होने उसे पोवेर ऑफ अटर्नी दे रखी थी जिसका फ़ायदा जय ने उनके मरने के बाद उठाया और धीरे धीरे प्रॉपर्टीस अपने नाम पर करता रहा. पेपर्स में उसने ये लिख दिया के असल मलिक अब ज़िंदा नही है और बिज़्नेस के भले के लिए ये फ़ैसला लिया जाना ज़रूरी है. अब अगर आप कोर्ट पहुँच जाती हैं ये कहते हुए के सब कुच्छ आपका है तो जो कुच्छ जाई ने अपने नाम पर किया था वो सब भी चॅलेंज हो जाएगा. क्यूंकी फिर ये बात उठ जाएगी के पति के मरते ही सब कुच्छ आपका हो गया था तो आपके पति की दी हुई पवर ऑफ अटर्नी भी बेकार हो जाती है. और उसका फ़ायदा उठाकर आपके पति के मरने के बाद उसने जो भी नये पेपर्स बनाए थे वो सब भी बेकार हो जाएँगे. इस हिसाब से सब कुच्छ फिर आपकी झोली में आ गिरेगा और जय सड़क पर आ जाएगा"
देवधर से थोड़ी देर और बात करके रूपाली वापिस हवेली की और चल पड़ी. ख़ान ने जो कुच्छ कहा था उस बात पर देवधर ने सच्चाई की मोहर लगा दी थी. रूपाली की आँखो के आगे दुनिया जैसे घूम रही थी. उसे समझ नही आ रहा था के किस्पर भरोसा करे और किस्पर नही. हर कोई उसे एक अजनबी लग रहा था. पिच्छले सवालों के जवाब मिले नही थे के नये कुच्छ और उठ खड़े हुए.
क्यूँ ठाकुर ने उस तक देवधर को पहुँचने नही दिया. क्यूँ उससे ये बात च्छुपाई गयी? शायद पहले ना बताने की वजह उसका चुप चुप रहना था पर एक बार जब वो ठाकुर के साथ सो चुकी थी तो तब ठाकुर ने उसको कुच्छ क्यूँ नही कहा? दूसरा उसे सब कुच्छ अपनी सास के नाम से हटाकर उसके पति के नाम पर कर देने की बात बहुत अजीब लगी? और पुरुषोत्तम मरने से पहले इतने परेशान क्यूँ थे? क्या उन्हें एहसास हो गया था के उन्हें नुकसान पहुँचाया जा सकता है और अगर हां तो उन्होने रूपाली से इस बात का ज़िक्र क्यूँ नही किया?
अब तक ये बात रूपाली के सामने सॉफ हो चुकी थी की उसकी पति की मौत की वजह ये सारी जायदाद ही थी. पर सवाल ये था के मौत का ज़िम्मेदार कौन था? उसके सामने सबके चेहरे घूमने लगे और उसे हर कोई एक हत्यारा नज़र आने लगा.
"जय ऐसा कर सकता था. सबसे ज़्यादा वजह उसी के पास थी क्यूंकी वो ठाकुर के खानदान से चिढ़ता था. पर तेज भी तो हो सकता है. अपनी अययाशी के लिए उसे पैसा चाहिए जो बहुत जल्दी मिलना बंद हो जाता क्यूंकी सारी जायदाद पुरुषोत्तम के पास थी. और सबसे छ्होटा भाई कुलदीप. वो भी तो उसके पति की मौत के वक़्त यहीं था. चुप चुप रहता है पर है बहुत तेज़ और इस बात का सबूत थी उसके कमरे से मिली वो ब्रा. क्या ठाकुर साहब खुद? हां क्यूँ नही. ये जायदाद बड़ा होने के नाते उन्हें मिलनी चाहिए थी पर मिली नही. कभी नही मिली. यहाँ से वहाँ होती रही पर उनके नाम नही हुई. और फिर देवधर को भी तो उन्होने मुँह खोलने से मना किया था. बिल्कुल कर सकते हैं वो ऐसा. सरिता देवी? ये सारी जायदाद अचानक ही उनके नाम से हटा दी गयी थी.हाथ आई इतनी सारी दौलत निकल जाए तो क्या बेटा और कहाँ का बेटा. हो सकता है उन्होने किया हो और पुरुषोत्तम मरने से पहले उन्हें ही तो छ्चोड़ने मंदिर गये थे. कामिनी? लड़की थी पर ऐसा करने की हिम्मत बिल्कुल थी उसमें. उसका किसी से प्यार था और ये बात ठाकुर बर्दाश्त ना करते. पर अगर सारी दौलत उसकी हो जाती तो कोई क्या कर सकता था"
कामिनी के प्रेमी के बारे में सोचते ही रूपाली को ध्यान आया के वो अब जानती है के उसका प्रेमी कौन था. उसका अपना छ्होटा भाई इंदर जिसने उससे हमेशा ये राज़ च्छुपाकर रखा. पर क्यूँ? उसको भला क्या ऐतराज़ होता अगर इंदर कामिनी से शादी करना चाहता. रूपाली अपने ख्यालों में इतना खोई हुई थी के कई बार आक्सिडेंट होते होते बचा. शाम के करीब 4 बजे वो हवेली वापिस पहुँची और हवेली में कदम रखते ही चौंक पड़ी. बड़े कमरे में खड़ा था उसका छ्होटा भाई इंदर. ठाकुर ईन्द्रसेन राणा.
"वो आए हैं महफ़िल में चाँदनी लेकर, के रोशनी में नहाने की रात आई है" रूपाली को आता देख इंदर खड़ा हुआ
"कब आया इंदर?" एक पल के लिए अपने भाई को देखकर रूपाली जैसे सब कुच्छ भूल गयी
"मैं तो सुबह ही आ गया था दीदी" इंदर बहेन के गले लग गया "पता चला के आप सुबह से कहीं गयी हुई हैं"
"हां कुच्छ काम था" रूपाली भाई के सर पर हाथ फेरते हुए बोली "आ बैठ ना"
"ठाकुर साहब के बारे में पता चला" तेज ने कहा "बहुत अफ़सोस हुआ. मैं आते हुए हॉस्पिटल होता हुआ आया था. अभी भी बेहोश हैं"
"हां जानती हूँ" रूपाली साँस छ्चोड़ते हुए बोली
इंद्रासेन राणा करीब 30 साल का एक बहुत खूबसूरत आदमी था. उसको भगवान ने ऐसा बनाया था के लड़कियाँ देखकर दिल थाम लें और लड़के जल जाए. लंबा चौड़ा कद, गोरा रंग, टन्द्रुस्त शरीर और जब बोलता था तो लगता था के जैसे फूल झाड़ रहे हों. रूपाली काफ़ी देर तक इंदर के साथ वहीं बैठी बात करती रही और पता ही नही चला के कब रात के 9 बज गये. वक़्त का एहसास तब हुआ जब तेज हवेली में दाखिल हुआ. इंदर को सामने बैठा देख वो एक पल के लिए रुका और फिर हाथ आगे करता इनडर की तरफ बढ़ा.
"कैसे हैं ठाकुर इंद्रासेन?" वो हमेशा इंदर को उसके पूरे नाम से ही बुलाता था
"मैं ठीक हूँ बड़े भाय्या" इंदर ने भी आगे बढ़कर हाथ आगे मिलाया
"आज इस तरफ कैसे आना हुआ?" तेज ने पुचछा तो इंदर ने मुस्कुरा के कंधे झटकाए
"ऐसे ही आप लोगों की याद आई तो मिलने चला आया"
खाने की टेबल पर तीनो साथ थे. रूपाली ने ध्यान दिया के पायल की नज़र तेज पर कुच्छ ज़्यादा ही थी. वो उसका ख़ास तौर पर ध्यान रख रही थी. बार बार आकर उससे पुछ्ति के कुच्छ चाहिए तो नही. इंदर को देख कर मुस्कुराती. रूपाली भी दिल ही दिल में उसकी हरकत देख कर मुस्कुरा उठी. ये पहली बार नही था के उसने अपने भाई के आस पास लड़कियों की पागल होते हुए देखा था. उसके भाई के पिछे पागल होने वाली एक तो उसकी अपनी ननद ही थी.
इंदर को उसने ग्राउंड फ्लोर पर ही कमरे दे दिया. जब वो और तेज अपने कमरे में चले गये तो वो बिंदिया और पायल को किचन सॉफ करने का कहकर अपने कमरे में पहुँची. वो तेज से कामिनी के बारे में और आज हुई देवधर से मुलाक़ात के बारे में बात करना चाह रही थी इसलिए एक नाइटी पहेनकर तेज के कमरे में पहुँची.
तेज के कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ था. वो अंदर दाखिल हुई. एक नज़र केमर में दौड़ाई तो तेज कहीं नज़र नही आया. रूपाली ने उसे बुलाने के लिए आवाज़ देनी चाही ही थी के अचानक उसके पेर हवा में उठ गये. एक हाथ पिछे से उसकी कमर पर होता हुआ सीधा नाइटी के उपेर से उसकी चूत पर आया और दूसरा उसकी एक छाती पर और उसे हवा में थोडा सा उपेर उठा दिया गया. अपनी कमर पर उसे किसी की छाती महसूस हुई और नीचे से एक लंड उसकी गांद पर आ दबा.
"आज इतनी देर कहाँ लगा दी थी?" पीछे से तेज की आवाज़ आई
ये सब एक पल में हुआ. रूपाली को कुच्छ कहने या करने का मौका ही नही मिला. और उसके अगले ही पल तेज को एहसास हुआ के उसने बिंदिया को नही बल्कि रूपाली को पकड़ रखा है. उसके हाथ रूपाली के जिस्म से फ़ौरन हट गये जैसे रूपाली में अचानक से करेंट दौड़ गया हो. वो जल्दी से 2 कदम पिछे को हुआ और परेशान नज़र से रूपाली को देखने लगा.
"माफ़ कीजिएगा भाभी" उसे समझ नही आ रहा था के क्या कहे "वो मुझे लगा के..... के....."
उसे समझ नही आया के कैसे रूपाली से कहे के वो घर की नौकरानी को चोद रहा था.
दोनो के लिए वो सिचुयेशन इतनी अजीब हो गयी के रूपाली चाह कर भी कुच्छ कह ना सकी. वो तेज से कुच्छ बात करने आई थी पर उस वक़्त उसने कुच्छ ना कहना बेहतर समझा और चुपचाप कमरे से निकल गयी.