05-09-2019, 07:46 PM
Update 27
बेसमेंट में खड़ी रूपाली एकटूक सामने रखे बॉक्स को देखने लगी. उसकी समझ नही आ रहा था के बॉक्स में किस चीज़ के होने की उम्मीद करे. वो अभी अपनी सोच में ही थी के उसे सीढ़ियों से किसी के उतरने की आवाज़ सुनाई दी. पलटकर देखा तो वो पायल थी.
"क्या हुआ?" उसने पायल से पुचछा
"छ्होटे मलिक आपको ढूँढ रहे हैं" पायल ने तेज की और इशारा करते हुए कहा
रूपाली ने बॉक्स बाद में खोलने का इरादा किया और वापिस हवेली में आई. तेज उपेर अपने कमरे में ही था.
"क्या हुआ तेज?" वो तेज के कमरे में दाखिल होती हुई बोली
"वो हमें कुच्छ काम से बाहर जाना था पर हमारी गाड़ी स्टार्ट नही हो रही. तो हम सोच रहे थे के क्या हम आपकी कार ले जा सकते हैं? घंटे भर में ही वापिस आ जाएँगे" तेज ने पहली बार रूपाली से कुच्छ माँगा था
रूपाली जानती थी के वो फिर कहीं शराब पीने या किसी रंडी के पास ही जाएगा पर फिर भी उसने पुचछा
"कहाँ जाना है? पूरी रात के जागे हुए हो तुम. आराम कर लो"
"आकर सो जाऊँगा" तेज ने कहा "कुच्छ ज़रूरी काम है"
रूपाली ने उससे ज़्यादा सवाल जवाब करना मुनासिब ना समझा. वो नही चाहती थी के तेज उससे चिडने लगे
"मैं कार की चाभी लाती हूँ" कहते हुए वो अपने कमरे की और बढ़ गयी.
अपने कमरे में आकर रूपाली ने चाभी ढूंढी और वापिस तेज के कमरे की और जाने ही लगी थी के उसे ख़ान की कही बात याद आई के ये सारी जायदाद अब उसकी है. उसने दिल ही दिल में कुच्छ फ़ैसला किया और वापिस तेज के कमरे में आई.
तेज तैय्यार खड़ा था. रूपाली ने उसे एक नज़र देखा तो दिल ही दिल में तेज के रंग रूप की तारीफ किए बिना ना रह सकी. उसका नाम उसकी पर्सनॅलिटी के हिसाब से ही था. उसके चेहरे पर हमेशा एक तेज रहता था और वो भी अपने बाप की तरह ही बहुत खूबसूरत था. वो तीनो भाई ही शकल सूरत से बहुत अच्छे थे. बस यही एक फरक था ठाकुर शौर्या सिंग की औलाद में. जहाँ उनके तीनो लड़के शकल से ही ठाकुर लगते थे वहीं उनकी बेटी कामिनी एक मामूली शकल सूरत की लड़की थी. उसे देखकर कोई कह नही सकता था के वो चारों भाई बहेन थे.
रूपाली ने चाभी तेज को दी और बोली
"अब पिताजी हॉस्पिटल में है तो मैं सोच रही थी के तुम कारोबार क्यूँ नही संभाल लेते?"
तेज हस्ता हुए उसकी तरफ पलटा
"कौन सा कारोबार भाभी? हमारी बंजर पड़ी ज़मीन? और कौन सी हमारी फॅक्ट्री हैं?"
"ज़मीन इसलिए बंजर है क्यूंकी उसकी देखभाल नही की गयी. तुम्हारे भैया होते तो क्या ऐसा होने देते?" रूपाली पूरी कोशिश कर रही थी के तेज को अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास हो.
भाई का ज़िक्र आते ही तेज फ़ौरन खामोश हो गया और फिर ठहरी हुई आवाज़ में बोला
"भाय्या हैं नही इसी बात का तो अफ़सोस है भाभी और उससे ज़्यादा अफ़सोस इस बात का है के जिसने उनकी जान ली वो शायद आज भी कहीं ज़िंदा घूम रहा है. और आप तो जानती ही हैं के मुझसे ये सब नही होगा. आप विदेश से कुलदीप कोई क्यूँ नही बुलवा लेती? और कितनी पढ़ाई करेगा वो?"
कहते हुए तेज कमरे के दरवाज़े की तरफ बढ़ा और इससे पहले के रूपाली कुच्छ कहती वो कमरे के बाहर निकल गया. जाते जाते वो कह गया के एक घंटे के अंदर अंदर वापिस आ जाएगा.
रूपाली खामोशी से तेज के कमरे में खड़ी रह गयी. उसकी कुच्छ समझ नही आ रहा था के क्या करे. दिमाग़ में लाखों सवाल एक साथ चल रहे थे. ख़ान की कही बात अब भी दिमाग़ में चल रही थी. वो तेज से बात करके ये भी जानना चाहती थी के क्या उसे इस बात का शक है के ये पूरी जायदाद रूपाली के नाम है पर ऐसा कोई मौका तेज ने उसे नही दिया.
उसने दिल ही दिल में ठाकुर के वकील से बात करने की कोशिश की. उसे जाने क्यूँ यकीन था के ख़ान सच बोल रहा था पर फिर भी उसने अपनी तसल्ली के लिए वकील से बात करने की सोची.
उसने तेज के कमरे पर नज़र डाली. वो तेज के कमरे की तलाशी भी लेना चाहती थी. भूषण की कही बात के उसके पति की मौत का राज़ हवेली में ही कहीं है उसे याद थी. एक पल के लिए उसने सोचा के कमरे की तलाशी ले पर फिर उसने अपना दिमाग़ बदल दिया. तेज हवेली में ही था और उसे शक हो सकता था के उसके कमरे की चीज़ें यहाँ वहाँ की गयी हैं. रूपाली चुप चाप कमरे से बाहर निकल आई.
नीचे पहुँचकर वो बड़े कमरे में सोफे पर बैठ गयी. तभी बिंदिया आई.
"छ्होटे मलिक कहीं गये हैं?" उसने रूपाली से पुचछा
"हाँ कहीं काम से गये हैं. क्यूँ?" रूपाली ने आँखें बंद किए सवाल पुचछा
"नही वो आपने कहा था ना के मैं उनके करीब जाने की कोशिश शुरू कर दूँ. तो मैने सोचा के जाकर उनसे बात करूँ" बिंदिया थोडा शरमाते हुए बोली
"दिन में नही.दिन में किसी को भी शक हो सकता है. तुझे मेहनत नही करनी पड़ेगी. रात को किसी बहाने से तेज के कमरे में चली जाना." रूपाली ने खुद ही बिंदिया को रास्ता दिखा दिया
बिंदिया ने हां में सर हिला दिया
रूपाली की समझ में नही आ रहा था के अब क्या करे. दिमाग़ में चल रही बातें उसे पागल कर रही थी. समझ नही आ रहा था के पहले वकील को फोन करे, या तेज के कमरे की तलाशी ले, या हॉस्पिटल जाकर ठाकुर साहब को देख आए या नीचे रखे बॉक्स की तलाशी ले.
एक पल के लिए उसने फिर बसेमेंट में जाने की सोची पर फिर ख्याल दिमाग़ से निकाल दिया. वो बॉक्स की तलाशी आराम से अकेले में लेना चाहती थी और इस वक़्त ये मुमकिन नही था. और तेज कभी कभी भी वापिस आ सकता था. उसने फ़ैसला किया के वो ये काम रात को करेगी.उसने सामने रखा फोन उठाया और ठाकुर साहब के वकील का नंबर मिलाया. दूसरी तरफ से ठाकुर साहब के वकील देवधर की आवाज़ आई.
"कहिए रूपाली जी" उसने रूपाली की आवाज़ पहचानते हुए कहा
"जी मैं आपसे मिलना चाहती थी. कुच्छ ज़रूरी बात करनी थी" रूपाली ने कहा
"जी ज़रूर" देवधर बोला "मुझे लग ही रहा था के आप फोन करेंगी"
देवधर की कही इस बात ने अपने आप में ये साबित कर दिया के जो कुच्छ ख़ान ने कहा था वो सच था
"मैं कल ही हाज़िर हो जाऊँगा" देवधर आयेज बोला
"नही आप नही" रूपाली ने फ़ौरन मना किया "मैं खुद आपसे मिलने आऊँगी"
वो जानती थी के गाओं से शहेर तक जाने में उसे कम से कम 3 घंटे लगेंगे पर जाने क्यूँ वो देवधर से बाहर अकेले में मिलना चाहती थी.
"जैसा आप बेहतर समझें" देवधर ने भी हां कह दिया
"अभी कह नही सकती के किस दिन आऊँगी पर आने से एक दिन पहले मैं आपको फोन कर दूँगी" रूपाली ने कहा
देवधर ने फिर हां कह दी तो उसने फोन नीचे रख दिया.
तेज के लौट आने पर रूपाली उसके साथ हॉस्पिटल पहुँची. डॉक्टर के हिसाब से ठाकुर की हालत में सुधार पर उसे ऐसा कुच्छ ना लगा. ठाकुर अब भी पूरी तरह बेहोश थे. रूपाली ने थोड़ा वक़्त वहीं हॉस्पिटल में गुज़ारा और लौट आई. भूषण अब भी वहीं हॉस्पिटल में ही था.
चंदर ने हवेली के कॉंपौंत में काफ़ी हद तक सफाई कर दी थी. कुच्छ दिन से चल रहे काम का नतीजा ये था के पहले जंगल की तरह उग चुकी झाड़ियाँ अब वहाँ नही थी. अब हवेली का लंबा चौड़ा कॉंपाउंड एक बड़े मैदान की तरह लग रहा था जिसे रूपाली पहले की तरह हरा भरा देखना चाहती थी.
हमेशा की तरह ही तेज फिर शाम को गायब हो गया. वो रूपाली की गाड़ी लेकर गया था. उसने जाने से पहले ये कहा तो था के वो रात को लौट आएगा पर रूपाली को भरोसा नही था के वो आएगा.
खाने के बाद रूपाली अपने कमरे में बैठी हुई कामिनी की वो डाइयरी देख रही थी जिसमें उसने काफ़ी शेरो शायरी लिखी हुई थी. साथ ही उसने काग़ज़ का वो टुकड़ा रखा हुआ था जो उसे कामिनी की डाइयरी के अंदर से मिला था और जिसकी हॅंड राइटिंग कामिनी की हॅंडराइटिंग से मॅच नही करती थी. रूपाली दिल ही दिल में इस बात पर यकीन कर चुकी थी की इस सारी उलझन की एक ही कड़ी है और वो है कामिनी. कामिनी की पूरी डाइयरी में शायरी थी जिसमें से ज़्यादातर शायरी दिल टूट जाने पर थी. डाइयरी की आख़िरी एंट्री पुरुषोत्तम के मरने से एक हफ्ते की थी जो कुच्छ इस तरह थी जिसपर रूपाली का सबसे ज़्यादा ध्यान गया
तू भी किसी का प्यार ना पाए खुदा करे
तुझको तेरा नसीब रुलाए खुदा करे
रातों में तुझको नींद ना आए खुदा करे
तू दर बदर की ठोकरें खाए खुदा करे
आए बाहर तेरे गुलिस्ताँ में बार बार
तुझपर कभी निखार ना आए खुदा करे
मेरी तरह तुझे भी जवानी में घाम मिले
तेरा ना कोई साथ निभाए खुदा करे
मंज़िल कभी भी प्यार की तुझको ना मिल सके
तू भी दुआ में हाथ उठाए खुदा करे
तुझपर शब-ए-विसल की रातें हराम हो
शमा जला जलके बुझाए खुदा करे
हो जाए हर दुआ मेरी मेरे यार ग़लत
बस तुझपर कभी आँच ना आए खुदा करे
दिल ही दिल में रूपाली शायरी की तारीफ किए बिना ना रह सकी. लिखे गये शब्द इस बात की तरफ सॉफ इशारा करते थे के कामिनी का दिल टूटा या किसी वजह से. उसके प्रेमी ने या तो हवेली के डर से उसका साथ निभाने से इनकार कर दिया था या कोई और वजह थी पर जो भी थी, वो आदमी ही इस पहेली की दूसरी कड़ी था. और शायद वही था जो रात को चोरी से हवेली में आने की हिम्मत करता था. पर डाइयरी में कहीं भी इस बात की तरफ कोई इशारा नही था के वो आदमी आख़िर था तो कौन था. परेशान होकर रूपाली ने डाइयरी बंद करके वापिस अपनी अलमारी में रख दी.
वो बिस्तर पर आकर बैठी ही थी के कमरे के दरवाज़ा पर बाहर से नॉक किया गया. रूपाली ने दरवाज़ा खोला तो सामने बिंदिया खड़ी थी.
"क्या हुआ?" उसने बिंदिया से पुचछा
"ये आज आया था" कहते हुए बिंदिया ने उसकी तरफ एक एन्वेलप बढ़ा दिया "आप जब हॉस्पिटल गयी थी तब. मैं पहले देना भूल गयी थी"
रूपाली ने हाथ में एन्वेलप लिए. वो एक ग्रीटिंग कार्ड था उसके जनमदिन पर ना पहुँचकर देर से आए थे.
रूपाली ने ग्रीटिंग कार्ड लेकर दरवाज़ा बंद कर दिया और अपने बिस्तर पर बैठकर एन्वेलप खोला. कार्ड उसके छ्होटे भाई इंदर ने भेजा था. ये वो हर साल करता था. हर साल एक ग्रीटिंग कार्ड रूपाली को पहुँच जाता था. चाहे कोई और उसे जनमदिन की बधाई भेजे ने भेजे पर इंदर ने हर साल उसे एक कार्ड ज़रूर भेजा था.
रूपाली ने ग्रीटिंग खोलकर देखा. ग्रीटिंग पर फूल बने हुए थे जिसके बीच इंदर और रूपाली के माँ बाप ने बिर्थडे मेसेज लिखा हुआ था. रूपाली बड़ी देर तक कार्ड को देखती रही. इस बात के एहसास से उसकी आँखों में आँसू आ गये के उसके माँ बाप को आज भी उसका उतना ही ख्याल है जितना पहले था. उसने सोचा के अपने घर फोन करके बता दे के उसे कार्ड मिल गया है और अपने माँ बाप से थोड़ी देर बात करके दिल हल्का कर ले. ये सोचकर उसके कार्ड सामने टेबल पर रखा और कमरे से बाहर जाने लगी.
दरवाज़े की तरफ बढ़ते रूपाली के कदम अचानक वहीं के वहीं रुक गये. उसके दिल की धड़कन अचानक तेज होती चली गयी और दिमाग़ सन्न रह गया. उसे समझ नही आया के क्या करे और एक पल के लिए वहीं की वहीं खड़ी रह गयी. दूसरे ही पल वो जल्दी से मूडी और अपनी अलमारी तक जाकर कामिनी की डाइयरी फिर से निकाली. कामिनी की डाइयरी से उसने वो पेज निकाला जिसपर कामिनी के साइवा किसी और की लिखी शायरी थी. उसने जल्दी से वो पेज खोला और टेबल पर जाकर ग्रीटिंग कार्ड के साथ में रखा. उसने एक नज़र काग़ज़ पर डाली और दूसरी ग्रीटिंग कार्ड पर. काग़ज़ पर लिखी शायरी और ग्रीटिंग कार्ड के एन्वेलप पर लिखा अड्रेस एक ही आदमी का लिखा हुआ था. दोनो हंदवरटिंग्स आपस में पूरी तरह मॅच करती थी. इस बात में कोई शक नही था के कामिनी की डाइयरी में पेपर उसे मिला था, उसपर शायरी किसी और ने नही बल्कि उसके अपने छ्होटे भाई इंदर ने लिखी थी.
रूपाली का खड़े खड़े दिमाग़ घूमने लगा और वहीं सामने रखी चेर पर बैठ गयी. जिस आदमी को वो आज तक अपने पति का हत्यारा समझ रही थी वो कोई और नही उसका अपना छ्होटा भाई था. पर सवाल ये था के कैसे? इंदर हवेली में बहुत ही कम आता जाता था और कामिनी से तो उसने कभी शायद बात ही नही की थी? तो कामिनी और उसके बीच में कुच्छ कैसे हो सकता था? और दूसरा सवाल था के अगर कामिनी का प्रेमी ही उससे रात को मिलने आता था तो उसका भाई वो आदमी कैसे हो सकता है? रूपाली का घर एक दूसरे गाओं में था जो ठाकुर के गाओं से कई घंटो की दूरी पर था? तो उसका भाई रातों रात ये सफ़र कैसे कर सकता है? कैसे ये बात सबकी और सबसे ज़्यादा रूपाली की नज़र से बच गयी के उसके अपने भाई और ननद के बीच कुच्छ चल रहा है और क्यूँ इंदर ने ये बात उसे नही बताई?
और सबसे ज़रूरी सवाल जो रूपाली के दिमाग़ में उठा वो ये था के क्या उसके भाई ने ही डर से पुरुषोत्तम का खून किया था?
काफ़ी देर तक रूपाली उस काग़ज़ के टुकड़े और सामने रखे ग्रीटिंग कार्ड को देखती रही. जब कुच्छ समझ ना आया के क्या करे तो वो उठकर अपने कमरे से बाहर निकली और नीचे बेसमेंट की और बढ़ गयी. बेसमेंट पहुँचकर उसने वहीं कोने में रखा एक भारी सा सरिया उठाया और उस बॉक्स के पास पहुँची जो वो काफ़ी दिन से खोलने की कोशिश में थी. बॉक्स पर लॉक लगा हुआ था जिसपर रूपाली ने सरिया से 2 3 बार वार किया. लॉक तो ना टूट सका पर बॉक्स की कुण्डी उखड़ गयी और लॉक के साथ नीचे की और लटक गयी. रूपाली ने बॉक्स खोला और उसे सामने वही दिखा जिसकी वो उम्मीद कर रही थी.
बॉक्स में किसी लड़की के इस्तेमाल की चीज़ें थी. कुच्छ कपड़े, परफ्यूम्स, जूते और मेक अप का समान. एक नज़र डालते ही रूपाली समझ गयी के ये सारा समान कामिनी का था क्यूंकी जिस दिन कामिनी हवेली से गयी थी उस दिन रूपाली . उसे ये सारा समान पॅक करते देखा था. रूपाली ने बॉक्स से चीज़ें बाहर निकालनी शुरू की और हर वो चीज़ जो कामिनी के साथ होनी चाहिए थी वो इस बॉक्स में थी. रूपाली एक एक करके सारी चीज़ें निकालती चली गयी और कुच्छ ही देर मे उसे बॉक्स में रखा कामिनी का पासपोर्ट और वीसा भी मिल गया. रूपाली की दिमाग़ में फ़ौरन ये सवाल उठा के अगर ये सारी चीज़ें यहाँ हैं तो रूपाली विदेश में कैसे हो सकती है और अगर वो विदेश में नही है तो कहाँ है? क्या वो उसके भाई के साथ भाग गयी थी और अब उसके भाई के साथ ही रह रही है?
रूपाली समान निकाल ही रही थी के अचानक उसे फिर हैरानी हुई. कामिनी के समान के ठीक नीचे कुच्छ और भी कपड़े थे पर उनको देखकर सॉफ अंदाज़ा हो जाता था के वो कामिनी के नही हैं. कुच्छ सलवार कमीज़ और सारी थी जो रूपाली के लिए बिल्कुल अंजान थी. वो कपड़े ऐसे थे जैसे के उसने अपने घर के नौकरों के पहने देखा और इसी से उसे पता चला के ये कपड़े कामिनी के नही हो सकते क्यूंकी कामिनी के सारे कपड़े काफ़ी महेंगे थे.अंदर से कुच्छ ब्रा निकली जिन्हें देखकर अंदाज़ा हो जाता था के ये कामिनी के नही हैं क्यूंकी कामिनी की छातियो का साइज़ ब्रा के साइज़ से बड़ा था.
रूपाली ने सारा समान बॉक्स से निकालकर ज़मीन पर फैला दिया और वहीं बैठकर समान को देखने लगी. जो 2 सवाल उसे परेशान कर रहे थे वो ये थे के कामिनी कहाँ है और बॉक्स के अंदर रखे बाकी के कपड़े किसके हैं? हवेली में सिर्फ़ 3 औरतें हुआ करती थी. वो खुद, उसकी सास और कामिनी और तीनो में से ये कपड़े किसी के नही हो सकते और ख़ास बात ये थी के इन कपड़ों को कामिनी के कपड़ों के साथ ऐसे च्छुपाकर ताले में क्यूँ रखा गया था? कामिनी अभी अपनी सोच में ही थी के बाहर से कार की आवाज़ आई. तेज वापिस आ चुका था. उसने समान वहीं बिखरा छ्चोड़ा और बेसमेंट में ताला लगाकर बड़े कमरे में पहुँची.
बेसमेंट में खड़ी रूपाली एकटूक सामने रखे बॉक्स को देखने लगी. उसकी समझ नही आ रहा था के बॉक्स में किस चीज़ के होने की उम्मीद करे. वो अभी अपनी सोच में ही थी के उसे सीढ़ियों से किसी के उतरने की आवाज़ सुनाई दी. पलटकर देखा तो वो पायल थी.
"क्या हुआ?" उसने पायल से पुचछा
"छ्होटे मलिक आपको ढूँढ रहे हैं" पायल ने तेज की और इशारा करते हुए कहा
रूपाली ने बॉक्स बाद में खोलने का इरादा किया और वापिस हवेली में आई. तेज उपेर अपने कमरे में ही था.
"क्या हुआ तेज?" वो तेज के कमरे में दाखिल होती हुई बोली
"वो हमें कुच्छ काम से बाहर जाना था पर हमारी गाड़ी स्टार्ट नही हो रही. तो हम सोच रहे थे के क्या हम आपकी कार ले जा सकते हैं? घंटे भर में ही वापिस आ जाएँगे" तेज ने पहली बार रूपाली से कुच्छ माँगा था
रूपाली जानती थी के वो फिर कहीं शराब पीने या किसी रंडी के पास ही जाएगा पर फिर भी उसने पुचछा
"कहाँ जाना है? पूरी रात के जागे हुए हो तुम. आराम कर लो"
"आकर सो जाऊँगा" तेज ने कहा "कुच्छ ज़रूरी काम है"
रूपाली ने उससे ज़्यादा सवाल जवाब करना मुनासिब ना समझा. वो नही चाहती थी के तेज उससे चिडने लगे
"मैं कार की चाभी लाती हूँ" कहते हुए वो अपने कमरे की और बढ़ गयी.
अपने कमरे में आकर रूपाली ने चाभी ढूंढी और वापिस तेज के कमरे की और जाने ही लगी थी के उसे ख़ान की कही बात याद आई के ये सारी जायदाद अब उसकी है. उसने दिल ही दिल में कुच्छ फ़ैसला किया और वापिस तेज के कमरे में आई.
तेज तैय्यार खड़ा था. रूपाली ने उसे एक नज़र देखा तो दिल ही दिल में तेज के रंग रूप की तारीफ किए बिना ना रह सकी. उसका नाम उसकी पर्सनॅलिटी के हिसाब से ही था. उसके चेहरे पर हमेशा एक तेज रहता था और वो भी अपने बाप की तरह ही बहुत खूबसूरत था. वो तीनो भाई ही शकल सूरत से बहुत अच्छे थे. बस यही एक फरक था ठाकुर शौर्या सिंग की औलाद में. जहाँ उनके तीनो लड़के शकल से ही ठाकुर लगते थे वहीं उनकी बेटी कामिनी एक मामूली शकल सूरत की लड़की थी. उसे देखकर कोई कह नही सकता था के वो चारों भाई बहेन थे.
रूपाली ने चाभी तेज को दी और बोली
"अब पिताजी हॉस्पिटल में है तो मैं सोच रही थी के तुम कारोबार क्यूँ नही संभाल लेते?"
तेज हस्ता हुए उसकी तरफ पलटा
"कौन सा कारोबार भाभी? हमारी बंजर पड़ी ज़मीन? और कौन सी हमारी फॅक्ट्री हैं?"
"ज़मीन इसलिए बंजर है क्यूंकी उसकी देखभाल नही की गयी. तुम्हारे भैया होते तो क्या ऐसा होने देते?" रूपाली पूरी कोशिश कर रही थी के तेज को अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास हो.
भाई का ज़िक्र आते ही तेज फ़ौरन खामोश हो गया और फिर ठहरी हुई आवाज़ में बोला
"भाय्या हैं नही इसी बात का तो अफ़सोस है भाभी और उससे ज़्यादा अफ़सोस इस बात का है के जिसने उनकी जान ली वो शायद आज भी कहीं ज़िंदा घूम रहा है. और आप तो जानती ही हैं के मुझसे ये सब नही होगा. आप विदेश से कुलदीप कोई क्यूँ नही बुलवा लेती? और कितनी पढ़ाई करेगा वो?"
कहते हुए तेज कमरे के दरवाज़े की तरफ बढ़ा और इससे पहले के रूपाली कुच्छ कहती वो कमरे के बाहर निकल गया. जाते जाते वो कह गया के एक घंटे के अंदर अंदर वापिस आ जाएगा.
रूपाली खामोशी से तेज के कमरे में खड़ी रह गयी. उसकी कुच्छ समझ नही आ रहा था के क्या करे. दिमाग़ में लाखों सवाल एक साथ चल रहे थे. ख़ान की कही बात अब भी दिमाग़ में चल रही थी. वो तेज से बात करके ये भी जानना चाहती थी के क्या उसे इस बात का शक है के ये पूरी जायदाद रूपाली के नाम है पर ऐसा कोई मौका तेज ने उसे नही दिया.
उसने दिल ही दिल में ठाकुर के वकील से बात करने की कोशिश की. उसे जाने क्यूँ यकीन था के ख़ान सच बोल रहा था पर फिर भी उसने अपनी तसल्ली के लिए वकील से बात करने की सोची.
उसने तेज के कमरे पर नज़र डाली. वो तेज के कमरे की तलाशी भी लेना चाहती थी. भूषण की कही बात के उसके पति की मौत का राज़ हवेली में ही कहीं है उसे याद थी. एक पल के लिए उसने सोचा के कमरे की तलाशी ले पर फिर उसने अपना दिमाग़ बदल दिया. तेज हवेली में ही था और उसे शक हो सकता था के उसके कमरे की चीज़ें यहाँ वहाँ की गयी हैं. रूपाली चुप चाप कमरे से बाहर निकल आई.
नीचे पहुँचकर वो बड़े कमरे में सोफे पर बैठ गयी. तभी बिंदिया आई.
"छ्होटे मलिक कहीं गये हैं?" उसने रूपाली से पुचछा
"हाँ कहीं काम से गये हैं. क्यूँ?" रूपाली ने आँखें बंद किए सवाल पुचछा
"नही वो आपने कहा था ना के मैं उनके करीब जाने की कोशिश शुरू कर दूँ. तो मैने सोचा के जाकर उनसे बात करूँ" बिंदिया थोडा शरमाते हुए बोली
"दिन में नही.दिन में किसी को भी शक हो सकता है. तुझे मेहनत नही करनी पड़ेगी. रात को किसी बहाने से तेज के कमरे में चली जाना." रूपाली ने खुद ही बिंदिया को रास्ता दिखा दिया
बिंदिया ने हां में सर हिला दिया
रूपाली की समझ में नही आ रहा था के अब क्या करे. दिमाग़ में चल रही बातें उसे पागल कर रही थी. समझ नही आ रहा था के पहले वकील को फोन करे, या तेज के कमरे की तलाशी ले, या हॉस्पिटल जाकर ठाकुर साहब को देख आए या नीचे रखे बॉक्स की तलाशी ले.
एक पल के लिए उसने फिर बसेमेंट में जाने की सोची पर फिर ख्याल दिमाग़ से निकाल दिया. वो बॉक्स की तलाशी आराम से अकेले में लेना चाहती थी और इस वक़्त ये मुमकिन नही था. और तेज कभी कभी भी वापिस आ सकता था. उसने फ़ैसला किया के वो ये काम रात को करेगी.उसने सामने रखा फोन उठाया और ठाकुर साहब के वकील का नंबर मिलाया. दूसरी तरफ से ठाकुर साहब के वकील देवधर की आवाज़ आई.
"कहिए रूपाली जी" उसने रूपाली की आवाज़ पहचानते हुए कहा
"जी मैं आपसे मिलना चाहती थी. कुच्छ ज़रूरी बात करनी थी" रूपाली ने कहा
"जी ज़रूर" देवधर बोला "मुझे लग ही रहा था के आप फोन करेंगी"
देवधर की कही इस बात ने अपने आप में ये साबित कर दिया के जो कुच्छ ख़ान ने कहा था वो सच था
"मैं कल ही हाज़िर हो जाऊँगा" देवधर आयेज बोला
"नही आप नही" रूपाली ने फ़ौरन मना किया "मैं खुद आपसे मिलने आऊँगी"
वो जानती थी के गाओं से शहेर तक जाने में उसे कम से कम 3 घंटे लगेंगे पर जाने क्यूँ वो देवधर से बाहर अकेले में मिलना चाहती थी.
"जैसा आप बेहतर समझें" देवधर ने भी हां कह दिया
"अभी कह नही सकती के किस दिन आऊँगी पर आने से एक दिन पहले मैं आपको फोन कर दूँगी" रूपाली ने कहा
देवधर ने फिर हां कह दी तो उसने फोन नीचे रख दिया.
तेज के लौट आने पर रूपाली उसके साथ हॉस्पिटल पहुँची. डॉक्टर के हिसाब से ठाकुर की हालत में सुधार पर उसे ऐसा कुच्छ ना लगा. ठाकुर अब भी पूरी तरह बेहोश थे. रूपाली ने थोड़ा वक़्त वहीं हॉस्पिटल में गुज़ारा और लौट आई. भूषण अब भी वहीं हॉस्पिटल में ही था.
चंदर ने हवेली के कॉंपौंत में काफ़ी हद तक सफाई कर दी थी. कुच्छ दिन से चल रहे काम का नतीजा ये था के पहले जंगल की तरह उग चुकी झाड़ियाँ अब वहाँ नही थी. अब हवेली का लंबा चौड़ा कॉंपाउंड एक बड़े मैदान की तरह लग रहा था जिसे रूपाली पहले की तरह हरा भरा देखना चाहती थी.
हमेशा की तरह ही तेज फिर शाम को गायब हो गया. वो रूपाली की गाड़ी लेकर गया था. उसने जाने से पहले ये कहा तो था के वो रात को लौट आएगा पर रूपाली को भरोसा नही था के वो आएगा.
खाने के बाद रूपाली अपने कमरे में बैठी हुई कामिनी की वो डाइयरी देख रही थी जिसमें उसने काफ़ी शेरो शायरी लिखी हुई थी. साथ ही उसने काग़ज़ का वो टुकड़ा रखा हुआ था जो उसे कामिनी की डाइयरी के अंदर से मिला था और जिसकी हॅंड राइटिंग कामिनी की हॅंडराइटिंग से मॅच नही करती थी. रूपाली दिल ही दिल में इस बात पर यकीन कर चुकी थी की इस सारी उलझन की एक ही कड़ी है और वो है कामिनी. कामिनी की पूरी डाइयरी में शायरी थी जिसमें से ज़्यादातर शायरी दिल टूट जाने पर थी. डाइयरी की आख़िरी एंट्री पुरुषोत्तम के मरने से एक हफ्ते की थी जो कुच्छ इस तरह थी जिसपर रूपाली का सबसे ज़्यादा ध्यान गया
तू भी किसी का प्यार ना पाए खुदा करे
तुझको तेरा नसीब रुलाए खुदा करे
रातों में तुझको नींद ना आए खुदा करे
तू दर बदर की ठोकरें खाए खुदा करे
आए बाहर तेरे गुलिस्ताँ में बार बार
तुझपर कभी निखार ना आए खुदा करे
मेरी तरह तुझे भी जवानी में घाम मिले
तेरा ना कोई साथ निभाए खुदा करे
मंज़िल कभी भी प्यार की तुझको ना मिल सके
तू भी दुआ में हाथ उठाए खुदा करे
तुझपर शब-ए-विसल की रातें हराम हो
शमा जला जलके बुझाए खुदा करे
हो जाए हर दुआ मेरी मेरे यार ग़लत
बस तुझपर कभी आँच ना आए खुदा करे
दिल ही दिल में रूपाली शायरी की तारीफ किए बिना ना रह सकी. लिखे गये शब्द इस बात की तरफ सॉफ इशारा करते थे के कामिनी का दिल टूटा या किसी वजह से. उसके प्रेमी ने या तो हवेली के डर से उसका साथ निभाने से इनकार कर दिया था या कोई और वजह थी पर जो भी थी, वो आदमी ही इस पहेली की दूसरी कड़ी था. और शायद वही था जो रात को चोरी से हवेली में आने की हिम्मत करता था. पर डाइयरी में कहीं भी इस बात की तरफ कोई इशारा नही था के वो आदमी आख़िर था तो कौन था. परेशान होकर रूपाली ने डाइयरी बंद करके वापिस अपनी अलमारी में रख दी.
वो बिस्तर पर आकर बैठी ही थी के कमरे के दरवाज़ा पर बाहर से नॉक किया गया. रूपाली ने दरवाज़ा खोला तो सामने बिंदिया खड़ी थी.
"क्या हुआ?" उसने बिंदिया से पुचछा
"ये आज आया था" कहते हुए बिंदिया ने उसकी तरफ एक एन्वेलप बढ़ा दिया "आप जब हॉस्पिटल गयी थी तब. मैं पहले देना भूल गयी थी"
रूपाली ने हाथ में एन्वेलप लिए. वो एक ग्रीटिंग कार्ड था उसके जनमदिन पर ना पहुँचकर देर से आए थे.
रूपाली ने ग्रीटिंग कार्ड लेकर दरवाज़ा बंद कर दिया और अपने बिस्तर पर बैठकर एन्वेलप खोला. कार्ड उसके छ्होटे भाई इंदर ने भेजा था. ये वो हर साल करता था. हर साल एक ग्रीटिंग कार्ड रूपाली को पहुँच जाता था. चाहे कोई और उसे जनमदिन की बधाई भेजे ने भेजे पर इंदर ने हर साल उसे एक कार्ड ज़रूर भेजा था.
रूपाली ने ग्रीटिंग खोलकर देखा. ग्रीटिंग पर फूल बने हुए थे जिसके बीच इंदर और रूपाली के माँ बाप ने बिर्थडे मेसेज लिखा हुआ था. रूपाली बड़ी देर तक कार्ड को देखती रही. इस बात के एहसास से उसकी आँखों में आँसू आ गये के उसके माँ बाप को आज भी उसका उतना ही ख्याल है जितना पहले था. उसने सोचा के अपने घर फोन करके बता दे के उसे कार्ड मिल गया है और अपने माँ बाप से थोड़ी देर बात करके दिल हल्का कर ले. ये सोचकर उसके कार्ड सामने टेबल पर रखा और कमरे से बाहर जाने लगी.
दरवाज़े की तरफ बढ़ते रूपाली के कदम अचानक वहीं के वहीं रुक गये. उसके दिल की धड़कन अचानक तेज होती चली गयी और दिमाग़ सन्न रह गया. उसे समझ नही आया के क्या करे और एक पल के लिए वहीं की वहीं खड़ी रह गयी. दूसरे ही पल वो जल्दी से मूडी और अपनी अलमारी तक जाकर कामिनी की डाइयरी फिर से निकाली. कामिनी की डाइयरी से उसने वो पेज निकाला जिसपर कामिनी के साइवा किसी और की लिखी शायरी थी. उसने जल्दी से वो पेज खोला और टेबल पर जाकर ग्रीटिंग कार्ड के साथ में रखा. उसने एक नज़र काग़ज़ पर डाली और दूसरी ग्रीटिंग कार्ड पर. काग़ज़ पर लिखी शायरी और ग्रीटिंग कार्ड के एन्वेलप पर लिखा अड्रेस एक ही आदमी का लिखा हुआ था. दोनो हंदवरटिंग्स आपस में पूरी तरह मॅच करती थी. इस बात में कोई शक नही था के कामिनी की डाइयरी में पेपर उसे मिला था, उसपर शायरी किसी और ने नही बल्कि उसके अपने छ्होटे भाई इंदर ने लिखी थी.
रूपाली का खड़े खड़े दिमाग़ घूमने लगा और वहीं सामने रखी चेर पर बैठ गयी. जिस आदमी को वो आज तक अपने पति का हत्यारा समझ रही थी वो कोई और नही उसका अपना छ्होटा भाई था. पर सवाल ये था के कैसे? इंदर हवेली में बहुत ही कम आता जाता था और कामिनी से तो उसने कभी शायद बात ही नही की थी? तो कामिनी और उसके बीच में कुच्छ कैसे हो सकता था? और दूसरा सवाल था के अगर कामिनी का प्रेमी ही उससे रात को मिलने आता था तो उसका भाई वो आदमी कैसे हो सकता है? रूपाली का घर एक दूसरे गाओं में था जो ठाकुर के गाओं से कई घंटो की दूरी पर था? तो उसका भाई रातों रात ये सफ़र कैसे कर सकता है? कैसे ये बात सबकी और सबसे ज़्यादा रूपाली की नज़र से बच गयी के उसके अपने भाई और ननद के बीच कुच्छ चल रहा है और क्यूँ इंदर ने ये बात उसे नही बताई?
और सबसे ज़रूरी सवाल जो रूपाली के दिमाग़ में उठा वो ये था के क्या उसके भाई ने ही डर से पुरुषोत्तम का खून किया था?
काफ़ी देर तक रूपाली उस काग़ज़ के टुकड़े और सामने रखे ग्रीटिंग कार्ड को देखती रही. जब कुच्छ समझ ना आया के क्या करे तो वो उठकर अपने कमरे से बाहर निकली और नीचे बेसमेंट की और बढ़ गयी. बेसमेंट पहुँचकर उसने वहीं कोने में रखा एक भारी सा सरिया उठाया और उस बॉक्स के पास पहुँची जो वो काफ़ी दिन से खोलने की कोशिश में थी. बॉक्स पर लॉक लगा हुआ था जिसपर रूपाली ने सरिया से 2 3 बार वार किया. लॉक तो ना टूट सका पर बॉक्स की कुण्डी उखड़ गयी और लॉक के साथ नीचे की और लटक गयी. रूपाली ने बॉक्स खोला और उसे सामने वही दिखा जिसकी वो उम्मीद कर रही थी.
बॉक्स में किसी लड़की के इस्तेमाल की चीज़ें थी. कुच्छ कपड़े, परफ्यूम्स, जूते और मेक अप का समान. एक नज़र डालते ही रूपाली समझ गयी के ये सारा समान कामिनी का था क्यूंकी जिस दिन कामिनी हवेली से गयी थी उस दिन रूपाली . उसे ये सारा समान पॅक करते देखा था. रूपाली ने बॉक्स से चीज़ें बाहर निकालनी शुरू की और हर वो चीज़ जो कामिनी के साथ होनी चाहिए थी वो इस बॉक्स में थी. रूपाली एक एक करके सारी चीज़ें निकालती चली गयी और कुच्छ ही देर मे उसे बॉक्स में रखा कामिनी का पासपोर्ट और वीसा भी मिल गया. रूपाली की दिमाग़ में फ़ौरन ये सवाल उठा के अगर ये सारी चीज़ें यहाँ हैं तो रूपाली विदेश में कैसे हो सकती है और अगर वो विदेश में नही है तो कहाँ है? क्या वो उसके भाई के साथ भाग गयी थी और अब उसके भाई के साथ ही रह रही है?
रूपाली समान निकाल ही रही थी के अचानक उसे फिर हैरानी हुई. कामिनी के समान के ठीक नीचे कुच्छ और भी कपड़े थे पर उनको देखकर सॉफ अंदाज़ा हो जाता था के वो कामिनी के नही हैं. कुच्छ सलवार कमीज़ और सारी थी जो रूपाली के लिए बिल्कुल अंजान थी. वो कपड़े ऐसे थे जैसे के उसने अपने घर के नौकरों के पहने देखा और इसी से उसे पता चला के ये कपड़े कामिनी के नही हो सकते क्यूंकी कामिनी के सारे कपड़े काफ़ी महेंगे थे.अंदर से कुच्छ ब्रा निकली जिन्हें देखकर अंदाज़ा हो जाता था के ये कामिनी के नही हैं क्यूंकी कामिनी की छातियो का साइज़ ब्रा के साइज़ से बड़ा था.
रूपाली ने सारा समान बॉक्स से निकालकर ज़मीन पर फैला दिया और वहीं बैठकर समान को देखने लगी. जो 2 सवाल उसे परेशान कर रहे थे वो ये थे के कामिनी कहाँ है और बॉक्स के अंदर रखे बाकी के कपड़े किसके हैं? हवेली में सिर्फ़ 3 औरतें हुआ करती थी. वो खुद, उसकी सास और कामिनी और तीनो में से ये कपड़े किसी के नही हो सकते और ख़ास बात ये थी के इन कपड़ों को कामिनी के कपड़ों के साथ ऐसे च्छुपाकर ताले में क्यूँ रखा गया था? कामिनी अभी अपनी सोच में ही थी के बाहर से कार की आवाज़ आई. तेज वापिस आ चुका था. उसने समान वहीं बिखरा छ्चोड़ा और बेसमेंट में ताला लगाकर बड़े कमरे में पहुँची.