05-09-2019, 02:26 PM
Update 23
"आप ही की तरह हम भी ये कोशिश कर रहे हैं के हवेली को फिर पहले की तरह बसा सकें. कुच्छ लोगों से बात करी है. कल से हमारी ज़मीन पर फिर से काम शुरू हो जाएगा. वहाँ फिर से खेती होगी. और हमने फ़ैसला किया है के खेती के सिवा हम और भी दूसरा कारोबार शुरू करेंगे."
"दूसरा कारोबार?" रूपाली ने उनके सामने बैठते हुए पुचछा
"हां सोचा है के एक कपड़े की फॅक्टरी लगाएँ. काफ़ी दिन से सोच रहे थे. आज उस सिलसिले में पहला कदम भी उठाया है. वकील और फॅक्टरी लगाने के लिए एक इंजिनियर से भी मिलके आए हैं" ठाकुर ने जवाब दिया
"ह्म .... "रूपाली मुस्कुराते हुए बोली.उसने अपना घूँघट हटा लिया था क्यूंकी पायल आस पास नही थी "आपको बदलते हुए देखके अच्छा लग रहा है"
"ये आपकी वजह से है" ठाकुर ने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया "और एक और चीज़ करके आए हैं हम आज. वो हमने आपके लिए किया है"
"क्या" रूपाली ने फ़ौरन पुचछा
"वो हम आपको कल बताएँगे. और ज़िद मत करिएगा. हमारे सर्प्राइज़ को सर्प्राइज़ रहने दीजिए. कल सुबह आपको पता चल जाएगा"
ठाकुर ने पहले ही ज़िद करने के लिए मना कर दिया था इसलिए रूपाली ने फिर सवाल नही किया. अचानक उसके दिमाग़ में कुच्छ आया और वो ठाकुर की तरफ देखती हुई बोली
"उस लाश के बारे में कुच्छ पता चला?"
लाश की बात सुनकर ठाकुर की थोड़ा संगीन हुए
"नही. हम इनस्पेक्टर ख़ान से भी मिले थे. वो कहता है के सही अंदाज़ा तो नही पर काफ़ी पहले दफ़नाया गया था उसे वहाँ." ठाकुर ने कहा
"आपको कौन लगता है?" रूपाली ने पुचछा
"पता नही" ठाकुर ने लंबी साँस छ्चोड़ते हुए बोले " हमारे घर से ना तो आज तक कोई लापता हुआ और ना ही ऐसी मौत किसी को आई तो यही लगता है के घर में काम करने वाले किसी नौकर का काम है."
"आपका कोई दूर का रिश्तेदार भी तो हो सकता है" रूपाली ने शंका जताई
"हमारे परदादा ने ये हवेली बनवाई थी. उनकी सिर्फ़ एक औलाद थी, हमारे दादा जी और हमारे दादा की भी एक ही औलाद थी,हमारे पिताजी.तो एक तरह से हमारा पूरा खानदान इसी हवेली में रहा है. इस हवेली से बाहर हमारे कोई परिवार नही रहा." ठाकुर ने जवाब दिया तो पायल को थोड़ी राहत सी महसूस हुई
"हवेली के आस पास बाउंड्री वॉल के अंदर ही इतनी जगह है के ये मुमकिन है के हादसा हुआ और किसी को कानो कान खबर लगी. किसी ने लाश को कोने में ले जाके दफ़ना दिया और वहाँ जबसे हवेली बनी है तबसे हमेशा कुच्छ ना कुच्छ उगाया गया है. पहले एक आम का छ्होटा सा बाग हुआ करता था और फिर फूलों का एक बगीचा. इसलिए कभी किसी के सामने ये हक़ीक़त खुली नही." ठाकुर ने कहते हुए टीवी बंद कर दिया और संगीन आवाज़ में रूपाली से बात करने लगे
"ऐसा भी तो हो सकता है के ये काम किसी बाहर के आदमी का हो जिससे हमारा कोई लेना देना नही" रूपाली बोली
"मतलब?" ठाकुर ने आगे को झुकते हुए कहा
"इस हवेली में पिच्छले 10 साल से सिर्फ़ मैं और आप हैं और एक भूषण काका. यहाँ कोई आता जाता नही बल्कि लोग तो हवेली के नाम से भी ख़ौफ्फ खाते हैं. तो ये भी तो हो सकता है के इसी दौरान कोई रात को हवेली में चुपचाप आया और लाश यहाँ दफ़नाके चला गया. ये सोचकर के क्यूंकी हवेली में कोई आता नही तो लाश का पता किसी को नही चलेगा." रूपाली ने कहा
"हो तो सकता है" ठाकुर ने जवाब दिया "पर उस हालत में हवेली के अंदर लाश क्यूँ? इस काम के लिए तो लाश को कहीं जंगल में भी दफ़ना सकता था"
"हां पर उस हालत में लाश मिलने पर ढूँढा जाता के किसकी लाश है. पर हवेली में लाश मिलने पर सारी कहानी हवेली के आस पास ही घूमके रह जाती जैसा की अब हो रहा है" रूपाली ने कहा तो ठाकुर ने हां में सर हिलाया
कह तो आप सही रही हैं. जो भी है, हम तो ये जानते हैं के हमारी हवेली में कोई बेचारी जान कब्से दफ़न थी. उसके घरवाले पर ना जाने क्या बीती होगी" ठाकुर सोफे पर आराम से बैठते हुए बोले
"बेचारी?" रूपाली ने फ़ौरन पुचछा
"हां हमने आपको बताया नही?" ठाकुर ने कहा "वो ख़ान कहता है के वो लाश किसी औरत की थी."
सारी शाम रूपाली के दिमाग़ में यही बात चलती रही के हवेली में मिली लाश किसी औरत की थी. वो यही सोचती रही के लाश किसकी हो सकती है. जब कुच्छ समझ ना आया तो उसने फ़ैसला किया के भूषण और बिंदिया से इस बारे में बात करेगी के गाओं से पिच्छले कुच्छ सालों में कोई औरत गायब हुई है क्या? पर फिर उसे खुद ही अपना ये सवाल बेफ़िज़ूल लगा. जाने वो लाश कब्से दफ़न है. किसको याद है के गाओं में कौन है और कौन नही.
आख़िर में उसने इस बात को अपने दिमाग़ से निकाला तो बेसमेंट में रखे बॉक्स की बात उसके दिमाग़ में अटक गयी. सोच सोचकर रूपाली को लगने लगा के उसका सर दर्द से फॅट जाएगा.
शाम का खाना खाकर वो अपने कमरे की तरफ बढ़ी. ठाकुर अपने कमरे में पहले ही जा चुके थे. पायल और भूषण किचन की सफाई में लगे हुए थे. रूपाली सीढ़ियाँ चढ़ ही रही थी के बाहर एक गाड़ी के रुकने की आवाज़ सुनकर उसके कदम थम गये. थोड़ी ही देर बाद तेज हवेली में दाखिल हुआ.
वो नशे में धुत था. कदम ज़मीन पर पड़ ही नही रहे थे. उसकी हालत देखकर रूपाली को हैरानी हुई के वो कार चलाकर घर तक वापिस कैसे आ गया. वो चलता हुआ चीज़ों से टकरा रहा था. ज़ाहिर था के उसे सामने की चीज़ भी सॉफ दिखाई नही दे रही थी.
सीढ़ियाँ चढ़कर तेज रूपाली की तरफ आया. उसका कमरे भी रूपाली के कमरे की तरह पहले फ्लोर पर था. रूपाली उसे देखकर ही समझ गयी के वो सीढ़ियाँ चढ़ने लायक हालत में नही है. अगर कोशिश की तो नीचे जा गिरेगा. वो सीढ़ियाँ उतरकर नीचे आई और तेज को सहारा दिया.
उसने एक हाथ से तेज की कमर को पकड़ा और उसे खड़े होने में मदद की. तेज उसपर झूल सा गया जिस वजह से खुद रूपाली भी गिरते गिरते बची.उसने अपने कदम संभाले और तेज को सहारा देकर सीढ़ियाँ चढ़नी शुरू की. तेज ने उसके कंधे पर हाथ रखा हुआ था. रूपाली जानती थी के उसे इतना भी होश नही के इस वक़्त वो उसे सहारा दे रही है और मुमकिन है के वो सुबह तक सब भूल जाएगा.
मुश्किल से सीढ़ियाँ चढ़ कर दोनो उपेर पहुँचे. रूपाली तेज को लिए उसके कमरे तक पहुँची और दरवाज़ा खोलने की कोशिश की. पर दरवाज़ा लॉक्ड था.
"तेज चाबी कहाँ है?"उसने पुचछा पर वो जवाब देने की हालत में नही था.
रूपाली ने तेज को दीवार के सहारे खड़ा किया और उसकी जेबों की तलाशी लेने लगी. तेज उसके सामने खड़ा था और उसका जिस्म सामने खड़ी रूपाली पर झूल सा रहा था. अचानक तेज ने अपने हाथ उठाए और सीधा रूपाली की गान्ड पर रख दिए.
रूपाली उच्छल पड़ी और तभी उसे तेज की जेब में रखी चाभी मिल गयी. उसने कमरे का दरवाज़ा खोला और सहारा देकर तेज को अंदर लाई.
बिस्तर पर लिटाकर रूपाली तेज के जूते उतारने लगी.उसने उस वक़्त एक नाइटी पहेन रखी और नीचे ना तो ब्रा था ना पॅंटी. तेज के सामने झुकी होने के कारण उसकी नाइटी का गला सामने की और झूल रहा था और उसकी दोनो छातियाँ झूलती हुई दिख रही थी.
नशे में धुत तेज ने गर्दन उठाकर जूते उतारती रूपाली की तरफ देखा. रूपाली ने भी नज़र उठाकर उसकी और देखा तो पाया तो तेज की नज़र कहीं और है. तभी उसे अपनी झूलती हुई छातियों का एहसास हुआ और वो समझ गयी के तेज क्या देखा रहा. उसने अपनी नाइटी का गला पकड़कर फ़ौरन उपेर किया पर तब्भी तेज ने ऐसी हरकत की जिसके लिए वो बिल्कुल तैय्यार नही थी.
उसने रूपाली के दोनो हाथ पकड़े और उसे अपने साथ बिस्तर पर खींच लिया. इससे पहले के रूपाली कुच्छ समझ पाती या कुच्छ कर पाती वो उसके उपेर चढ़ गया और हाथों से पकड़कर उसकी नाइटी उपेर खींचने लगा
"तेज क्या कर रहे हो?" रूपाली फ़ौरन गुस्से में बोली पर तेज कहाँ सुन रहा था. वो तो बस उसकी नाइटी उपेर खींचने में लगा हुआ.
"खोल ना साली" तेज नशे में बड़बड़ाया
उसकी बात सुनकर रूपाली समझ गयी के वो उसे उन्हीं रंडियों में से एक समझ रहा था जिन्हें वो हर रात चोदा करता था. हर रात वो उसे सहारा देती थी और वो उन्हें चोद्ता था पर फ़र्क़ सिर्फ़ ये था के आज रात वो घर पे था और सहारा रूपाली दे रही थी.
रूपाली ने पूरी ताक़त से तेज को ज़ोर से धकेल दिया और वो बिस्तर से नीचे जा गिरा. रूपाली बिस्तर से उठकर उसकी तरफ गुस्से से मूडी ताकि उसे सुना सके पर तेज ने एक बार "ह्म्म्म्म" किया और नीचे ज़मीन पर ही करवट लेकर मूड सा गया. रूपाली जानती थी के वो नशे की वजह से नींद के आगोश में जा चुका था. उसने बिस्तर से चादर उठाई और तेज के उपेर डाल दी.
अपने कमरे में जाकर रूपाली बिस्तर पर लुढ़क गयी. बिस्तर पर लेटकर वो अभी जो हुआ था उस बारे में सोचने लगी. उसे 2 बातों की खुशी थी. एक तो ये के आज रात तेज घर लौट आया था. और दूसरा उसकी हरकत से ये बात सही साबित हो गयी थी के उसके लिए अगर यहीं घर में ही चूत का इंतज़ाम हो जाए तो शायद वो अपना ज़्यादा वक़्त घर पे ही गुज़ारने लगे.
हल्की आहट से रूपाली की आँख खुली. उसने कमरे के दरवाज़े की तरफ नज़र की तो देखा के ठाकुर अंदर आ रहे थे. रूपाली ने फ़ौरन नज़र अपने बिस्तर के पास नीचे ज़मीन पर डाली. पायल वहाँ नही थी. आज रात वो अपने कमरे में ही सो गयी थी. रूपाली ने राहत की साँस ली और ठाकुर की तरफ देखकर मुस्कुराइ.
"पता नही कब आँख लग गयी" कहते हुए उसने घड़ी की तरफ नज़र डाली. रात के 11 बज रहे थे.
"आप आई नही तो हमें लगा के पायल आज भी आपके कमरे में ही सो रही है इसलिए हम ही चले आए" ठाकुर ने उसके करीब आते हुए कहा
"पायल का नाम बड़ा ध्यान है आपको" रूपाली ने मुस्कुराते हुए कहा तो जवाब में ठाकुर भी मुस्कुरा दिए.
रूपाली बिस्तर पर अपनी टांगे नीचे लटकाए बैठी थी. ठाकुर उसके सामने आकर खड़े हुए और झुक कर उसके होंठों को चूमा.
"हमें तो सिर्फ़ आपका नाम ध्यान है" ठाकुर ने कहा और हाथ रूपाली की छाती पर रखकर दबाने लगे. रूपाली ने ठाकुर के होंठ से होंठ मिलाए रखे और नीचे उनका पाजामा खोलने लगी. नाडा खुलते ही पाजामा सरक कर नीचे जा गिरा और लंड उसके हाथों में आ गया.
फिर कमरे में वासना का वो तूफान उठा जो दोनो से संभाला नही गया. कुच्छ ही देर बाद रूपाली ठाकुर के उपेर बैठी उनके लंड पर उपेर नीचे कूद रही थी. उसकी चूचियाँ उसके जिस्म के साथ साथ उपेर नीचे उच्छल रही थी जिन्हें ठाकुर लगातार ऐसे दबा रहे थे जैसे आटा गूँध रहे हों.
"क्या बाआआआत है आजज्ज मेरी ककककचातियों से हाआआआथ हट नही रहे आआआपके?" रूपाली ने महसूस किया था के आज ठाकुर का ध्यान उसकी चूचियों पर कुच्छ ज़्यादा ही था
"कहीं कल रात की देखी पायल की तो याद नही आ रही?" वो लंड पर उपेर नीचे होना बंद करती हुई बोली और मुस्कुराइ
जवाब में ठाकुर ने उसे फ़ौरन नीचे गिराया और फिर चुदाई में लग गये. कमरे में फिर वो खेल शुरू हो गया जिसमें आख़िर में दोनो ही खिलाड़ी जीत जाते हैं और दोनो ही हार जाते हैं.
एक घंटे की चुदाई के बाद ठाकुर और रूपाली बिस्तर पर नंगे पड़े हुए ज़ोर ज़ोर से साँस ले रहे थे.
"हे भगवान" रूपाली अपनी चूचियों पर बने ठाकुर के दांतो के निशान देखते हुए बोली "आज इनपर इतनी मेहरबानी कैसे?"
"ऐसे ही" ठाकुर ने हस्ते हुए कहा
"ऐसे ही या कोई और वजह? कहीं किसी और का जिस्म तो ध्यान नही आ रहा था? जो कल तो यहाँ था पर आज आपको वो दीदार नही हुआ?" रूपाली ने उठकर बैठते हुए कहा
तभी घड़ी में 12 बजे
ठाकुर उठे और उठकर रूपाली के होंठ चूमे
"क्या हुआ?" रूपाली अचानक दिखाए गये इस प्यार पर हैरान होती बोली
"जनमदिन मुबारक हो" ठाकुर ने कहा
रूपाली फ़ौरन दोबारा घड़ी की तरफ देखा और डेट याद करने की कोशिश की. आज यक़ीनन उसका जनमदिन था और वो भूल चुकी थी. एक दिन था जब वो बेसब्री से अपने जमदीन का इंतेज़ार करती थी और पिच्छले कुच्छ सालों से तो उसे याद तक नही रहता था के कब ये दिन आया और चला गया. उसके पिच्छले जनमदिन पर भी उसे तब याद आया जब उसके माँ बाप और भाई ने फोन करके उसे बधाई दी थी
"मुझे तो पता भी नही था के आपको मालूम है मेरा जनमदिन" रूपाली ने कहा
"मालूम तो हमेशा था" ठाकुर ने जवाब दिया "माफी चाहते हैं के आज से पहले कभी हमने आपको ना कोई तोहफा दिया और ना ही इस दिन को कोई एहमियत"
तोहफा सुनते ही रूपाली फ़ौरन बोली
"तो इस बार भी कहाँ दिया अब तक?"
"देंगे. ज़रूर देंगे. बस कल सुबह तक का इंतेज़ार कर लीजिए" ठाकुर ने मुस्कुराते हुए कहा
थोड़ी देर बाद वो उठकर अपने कमरे में चले गये और रूपाली नींद के आगोश में
अगले दिन सुबह रूपाली उठकर नीचे आई ही थी के उसके भाई का फोन आ गया
"जनमदिन मुबारक हो दीदी" वो दूसरी तरफ फोन से लगभग चिल्लाते हुए बोला "बताओ आपको क्या तोहफा चाहिए?"
"मुझे कुच्छ नही चाहिए" रूपाली ने भी हासकर जवाब दिया "मम्मी पापा कहाँ हैं?"
उसे थोड़ी देर अपने माँ बाप से बात की. वो लोग खुश थे के रूपाली इस साल अपने जनमदिन पर खुश लग रही थी. वरना पहले तो वो बस हां ना करके फोन रख देती थी. उसके बाद रूपाली ने कुच्छ देर और अपने भाई इंदर से बात की जिसने उसे बताया के वो उससे कुच्छ वक़्त के बाद मिलने आएगा.
फोन रूपाली ने रखा ही था के उसके पिछे से तेज की आवाज़ आई
"जनमदिन मुबारक हो भाभी"
वो पलटी तो तेज खड़ा मुस्कुरा रहा था. ज़ाहिर था के उसे अपनी कल रात की हरकत बिल्कुल याद नही थी
"शुक्रिया" रूपाली ने भी उस बात को भूलकर हस्ते हुए जवाब दिया
"तो क्या प्लान है आज का?" तेज वहीं बैठते हुए बोला
"मैं कोई कॉलेज जाती बच्ची नही जो अपने जनमदिन पर कोई प्लान बनाऊँगी. कोई प्लान नही है." रूपाली उसके सामने बैठते हुए बोली "वैसे आप क्या कर रहे हैं आज?"
"वो जो आपने मुझे कल करने को कहा था" तेज ने जवाब दिया "माफ़ कीजिएगा कल कहीं काम से चला गया था. पर वाडा करता हूँ के आज से हवेली की सफाई का काम शुरू हो जाएगा"
रूपाली तेज की बात सुनकर दिल ही दिल में बहुत खुश हुई. कोई भी वजह हो पर वो उसकी बात सुनता ज़रूर था.
"चाय लोगे?" रूपाली ने तेज से पुचछा. उसने हां में सर हिला दिया
थोड़ी ही देर बाद ठाकुर भी सोकर जाग गये. बाहर आकर उन्होने रूपाली को फिर से जनमदिन की बधाई दी. क्यूंकी घर में तेज और पायल भी थे इसलिए रूपाली ने अब अपना घूँघट निकाल लिया था
"आइए आपको आपका तोहफा दिखाते हैं" ठाकुर ने जवाब दिया
वो उसे बाहर लेकर उस जगह पर पहुँचे जहाँ उनकी गाड़ी खड़ी रहती थी.
कवर में ढाकी हुई अपनी कार की तरफ इशारा करते हुए वो बोले
"आपका तोहफा बेटी"
रूपाली को कुच्छ समझ नही आया. ठाकुर उसे अपनी 11 साल पुरानी गाड़ी तोहफे में दे रहे हैं. वो हैरानी से ठाकुर की तरफ देखने लगी
"आपकी कार?"
"नही" ठाकुर कार की तरफ बढ़े और कवर खींच कर उतार दिया "आपकी कार"
रूपाली की आँखें खुली रह गयी. कवर के नीचे ठाकुर की पुरानी कार नही बल्कि चमकती हुई एक नयी बीएमडब्ल्यू खड़ी थी
"ये कब लाए आप?" वो कार के पास आते हुए बोली
"कल शाम जब आप नीचे बेसमेंट में थी" ठाकुर ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया
"और आपकी कार?"रूपाली ने चारों तरफ नज़र दौड़ाई
"वो बेच दी. हमने सोचा के आप ये गाड़ी चलाएंगी तो हम आपकी गाड़ी ले लेंगे" ठाकुर ने अपनी जेब से चाबियाँ निकालते हुए कहा "टेस्ट राइड हो जाए?"
रूपाली ने जल्दी से चाभी ठाकुर से ली और एक छ्होटे बच्चे की तरह खुश होती कार का दरवाज़ा खोला. उसकी खुशी में ज़ोर से चिल्लाने की आवाज़ सुनकर तेज भी बाहर आ गया था और खड़ा हुआ उन्हें देख रहा था.
रूपाली उसे देखकर बोली
"तेज देखो हमारी नयी कार " वो अब सच में किसी कॉलेज जाती बच्ची की तरह खुशी से उच्छल रही थी. उसे ये भी ध्यान नही था के उसका घूँघट हट गया है और वो ठाकुर के सामने बिना पर्दे के थी जो तेज देख रहा था.
तेज ने रूपाली की बात पर सिर्फ़ अपनी गर्दन हिलाई और पलटकर फिर हवेली में चला गया. उसका यूँ चले जाना रूपाली को थोड़ा अजीब सा लगा. जाने क्यूँ उसे लग रहा था के तेज को ठाकुर को यूँ कार लाकर रूपाली को देना पसंद नही आया.
अगले एक घंटे तक रूपाली कार लिए यहाँ से वहाँ अकेले ही भटकती रही. उसने ठाकुर को भी आपे साथ नही आने दिया था. अकेले ही कार लेकर निकल गयी थी.
तकरीबन एक घंटे बाद वो हवेली वापिस आई और ठाकुर के बुलाने पर उनके कमरे में आई.
"ये रहा आपका दूसरा तोहफा" ठाकुर ने एक एन्वेलप उसकी तरफ बढ़ते हुए कहा
"ये क्या है?" रूपाली ने एन्वेलप की तरफ देखा
"हमारी वसीयत जो हमने बदल दी है. इसमें लिखा है के अगर हमें कुच्छ हो जाए तो हमारा सब कुच्छ आपको मिलेगा." ठाकुर ने कहा
"पिताजी" रूपाली वहीं कुर्सी पर बैठ गयी. उसे यकीन सा नही हो रहा था
"क्या हुआ" ठाकुर ने पुचछा "ग़लत किया हमने कुच्छ?"
"हां" रूपाली ने जवाब दिया. "आपको ऐसा नही करना चाहिए था"
"पर क्यूँ?" ठाकुर उसके करीब आते हुए बोले
"क्यूंकी आपकी 3 औलाद और हैं. दोनो बेटे तेज और कुलदीप और आपकी एकलौती बेटी कामिनी. उनका हक़ इस जायदाद पर हमसे ज़्यादा है."
वो हम नही जानते" ठाकुर बोले "हमने अपना सब कुच्छ आपके नाम कर दिया है. अगर आप उन्हें कुच्छ देना चाहती हैं तो वो आपकी मर्ज़ी है. हम समझते हैं के ये फ़ैसला आपसे बेहतर कोई नही कर सकता"
"नही पिताजी. आपको ये वसीयत बदलनी होगी" रूपाली ने कहा तो ठाकुर इनकार में गर्दन हिलाने लगे
"ये अब नही बदलेगी हमारा जो कुच्छ है वो अब आपका है. अगर आप बाँटना चाहती हैं तो कर दें. और वैसे भी ....." ठाकुर ने अपनी बात पूरी नही की थी के रूपाली ने हाथ के इशारे से उन्हें चुप करा दिया.
ठाकुर ने हैरानी से उसकी तरफ देखा. रूपाली ने इशारा किया के दरवाज़े के पास खड़ा कोई उनकी बात सुन रहा है. रूपाली चुप चाप उतार दरवाज़े तक आई और हल्का सा बंद दरवाज़ा पूरा खोल दिया. बाहर कोई नही था.
"वहाँ हुआ होगा आपको" ठाकुर ने कहा पर रूपाली को पूरा यकीन था के उसने आवाज़ सुनी है.
"शायद" रूपाली ने कहा और फिर ठाकुर की तरफ पलटी
"आपको हमारे लिए ये वसीयत बदलनी होगी. या फिर अगर आप चाहते हैं के हम जायदाद आगे बराबर बाँट दे तो वकील को बुलवा लीजिए" रूपाली ने कहा
"ठीक है. हम उसे फोन करके बुलवा लेंगे. अब खुश?" ठाकुर ने हाथ जोड़ते हुए कहा
रूपाली धीरे से मुस्कुराइ और हाथ में एन्वेलप लिए कमरे से निकल गयी.
"आप ही की तरह हम भी ये कोशिश कर रहे हैं के हवेली को फिर पहले की तरह बसा सकें. कुच्छ लोगों से बात करी है. कल से हमारी ज़मीन पर फिर से काम शुरू हो जाएगा. वहाँ फिर से खेती होगी. और हमने फ़ैसला किया है के खेती के सिवा हम और भी दूसरा कारोबार शुरू करेंगे."
"दूसरा कारोबार?" रूपाली ने उनके सामने बैठते हुए पुचछा
"हां सोचा है के एक कपड़े की फॅक्टरी लगाएँ. काफ़ी दिन से सोच रहे थे. आज उस सिलसिले में पहला कदम भी उठाया है. वकील और फॅक्टरी लगाने के लिए एक इंजिनियर से भी मिलके आए हैं" ठाकुर ने जवाब दिया
"ह्म .... "रूपाली मुस्कुराते हुए बोली.उसने अपना घूँघट हटा लिया था क्यूंकी पायल आस पास नही थी "आपको बदलते हुए देखके अच्छा लग रहा है"
"ये आपकी वजह से है" ठाकुर ने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया "और एक और चीज़ करके आए हैं हम आज. वो हमने आपके लिए किया है"
"क्या" रूपाली ने फ़ौरन पुचछा
"वो हम आपको कल बताएँगे. और ज़िद मत करिएगा. हमारे सर्प्राइज़ को सर्प्राइज़ रहने दीजिए. कल सुबह आपको पता चल जाएगा"
ठाकुर ने पहले ही ज़िद करने के लिए मना कर दिया था इसलिए रूपाली ने फिर सवाल नही किया. अचानक उसके दिमाग़ में कुच्छ आया और वो ठाकुर की तरफ देखती हुई बोली
"उस लाश के बारे में कुच्छ पता चला?"
लाश की बात सुनकर ठाकुर की थोड़ा संगीन हुए
"नही. हम इनस्पेक्टर ख़ान से भी मिले थे. वो कहता है के सही अंदाज़ा तो नही पर काफ़ी पहले दफ़नाया गया था उसे वहाँ." ठाकुर ने कहा
"आपको कौन लगता है?" रूपाली ने पुचछा
"पता नही" ठाकुर ने लंबी साँस छ्चोड़ते हुए बोले " हमारे घर से ना तो आज तक कोई लापता हुआ और ना ही ऐसी मौत किसी को आई तो यही लगता है के घर में काम करने वाले किसी नौकर का काम है."
"आपका कोई दूर का रिश्तेदार भी तो हो सकता है" रूपाली ने शंका जताई
"हमारे परदादा ने ये हवेली बनवाई थी. उनकी सिर्फ़ एक औलाद थी, हमारे दादा जी और हमारे दादा की भी एक ही औलाद थी,हमारे पिताजी.तो एक तरह से हमारा पूरा खानदान इसी हवेली में रहा है. इस हवेली से बाहर हमारे कोई परिवार नही रहा." ठाकुर ने जवाब दिया तो पायल को थोड़ी राहत सी महसूस हुई
"हवेली के आस पास बाउंड्री वॉल के अंदर ही इतनी जगह है के ये मुमकिन है के हादसा हुआ और किसी को कानो कान खबर लगी. किसी ने लाश को कोने में ले जाके दफ़ना दिया और वहाँ जबसे हवेली बनी है तबसे हमेशा कुच्छ ना कुच्छ उगाया गया है. पहले एक आम का छ्होटा सा बाग हुआ करता था और फिर फूलों का एक बगीचा. इसलिए कभी किसी के सामने ये हक़ीक़त खुली नही." ठाकुर ने कहते हुए टीवी बंद कर दिया और संगीन आवाज़ में रूपाली से बात करने लगे
"ऐसा भी तो हो सकता है के ये काम किसी बाहर के आदमी का हो जिससे हमारा कोई लेना देना नही" रूपाली बोली
"मतलब?" ठाकुर ने आगे को झुकते हुए कहा
"इस हवेली में पिच्छले 10 साल से सिर्फ़ मैं और आप हैं और एक भूषण काका. यहाँ कोई आता जाता नही बल्कि लोग तो हवेली के नाम से भी ख़ौफ्फ खाते हैं. तो ये भी तो हो सकता है के इसी दौरान कोई रात को हवेली में चुपचाप आया और लाश यहाँ दफ़नाके चला गया. ये सोचकर के क्यूंकी हवेली में कोई आता नही तो लाश का पता किसी को नही चलेगा." रूपाली ने कहा
"हो तो सकता है" ठाकुर ने जवाब दिया "पर उस हालत में हवेली के अंदर लाश क्यूँ? इस काम के लिए तो लाश को कहीं जंगल में भी दफ़ना सकता था"
"हां पर उस हालत में लाश मिलने पर ढूँढा जाता के किसकी लाश है. पर हवेली में लाश मिलने पर सारी कहानी हवेली के आस पास ही घूमके रह जाती जैसा की अब हो रहा है" रूपाली ने कहा तो ठाकुर ने हां में सर हिलाया
कह तो आप सही रही हैं. जो भी है, हम तो ये जानते हैं के हमारी हवेली में कोई बेचारी जान कब्से दफ़न थी. उसके घरवाले पर ना जाने क्या बीती होगी" ठाकुर सोफे पर आराम से बैठते हुए बोले
"बेचारी?" रूपाली ने फ़ौरन पुचछा
"हां हमने आपको बताया नही?" ठाकुर ने कहा "वो ख़ान कहता है के वो लाश किसी औरत की थी."
सारी शाम रूपाली के दिमाग़ में यही बात चलती रही के हवेली में मिली लाश किसी औरत की थी. वो यही सोचती रही के लाश किसकी हो सकती है. जब कुच्छ समझ ना आया तो उसने फ़ैसला किया के भूषण और बिंदिया से इस बारे में बात करेगी के गाओं से पिच्छले कुच्छ सालों में कोई औरत गायब हुई है क्या? पर फिर उसे खुद ही अपना ये सवाल बेफ़िज़ूल लगा. जाने वो लाश कब्से दफ़न है. किसको याद है के गाओं में कौन है और कौन नही.
आख़िर में उसने इस बात को अपने दिमाग़ से निकाला तो बेसमेंट में रखे बॉक्स की बात उसके दिमाग़ में अटक गयी. सोच सोचकर रूपाली को लगने लगा के उसका सर दर्द से फॅट जाएगा.
शाम का खाना खाकर वो अपने कमरे की तरफ बढ़ी. ठाकुर अपने कमरे में पहले ही जा चुके थे. पायल और भूषण किचन की सफाई में लगे हुए थे. रूपाली सीढ़ियाँ चढ़ ही रही थी के बाहर एक गाड़ी के रुकने की आवाज़ सुनकर उसके कदम थम गये. थोड़ी ही देर बाद तेज हवेली में दाखिल हुआ.
वो नशे में धुत था. कदम ज़मीन पर पड़ ही नही रहे थे. उसकी हालत देखकर रूपाली को हैरानी हुई के वो कार चलाकर घर तक वापिस कैसे आ गया. वो चलता हुआ चीज़ों से टकरा रहा था. ज़ाहिर था के उसे सामने की चीज़ भी सॉफ दिखाई नही दे रही थी.
सीढ़ियाँ चढ़कर तेज रूपाली की तरफ आया. उसका कमरे भी रूपाली के कमरे की तरह पहले फ्लोर पर था. रूपाली उसे देखकर ही समझ गयी के वो सीढ़ियाँ चढ़ने लायक हालत में नही है. अगर कोशिश की तो नीचे जा गिरेगा. वो सीढ़ियाँ उतरकर नीचे आई और तेज को सहारा दिया.
उसने एक हाथ से तेज की कमर को पकड़ा और उसे खड़े होने में मदद की. तेज उसपर झूल सा गया जिस वजह से खुद रूपाली भी गिरते गिरते बची.उसने अपने कदम संभाले और तेज को सहारा देकर सीढ़ियाँ चढ़नी शुरू की. तेज ने उसके कंधे पर हाथ रखा हुआ था. रूपाली जानती थी के उसे इतना भी होश नही के इस वक़्त वो उसे सहारा दे रही है और मुमकिन है के वो सुबह तक सब भूल जाएगा.
मुश्किल से सीढ़ियाँ चढ़ कर दोनो उपेर पहुँचे. रूपाली तेज को लिए उसके कमरे तक पहुँची और दरवाज़ा खोलने की कोशिश की. पर दरवाज़ा लॉक्ड था.
"तेज चाबी कहाँ है?"उसने पुचछा पर वो जवाब देने की हालत में नही था.
रूपाली ने तेज को दीवार के सहारे खड़ा किया और उसकी जेबों की तलाशी लेने लगी. तेज उसके सामने खड़ा था और उसका जिस्म सामने खड़ी रूपाली पर झूल सा रहा था. अचानक तेज ने अपने हाथ उठाए और सीधा रूपाली की गान्ड पर रख दिए.
रूपाली उच्छल पड़ी और तभी उसे तेज की जेब में रखी चाभी मिल गयी. उसने कमरे का दरवाज़ा खोला और सहारा देकर तेज को अंदर लाई.
बिस्तर पर लिटाकर रूपाली तेज के जूते उतारने लगी.उसने उस वक़्त एक नाइटी पहेन रखी और नीचे ना तो ब्रा था ना पॅंटी. तेज के सामने झुकी होने के कारण उसकी नाइटी का गला सामने की और झूल रहा था और उसकी दोनो छातियाँ झूलती हुई दिख रही थी.
नशे में धुत तेज ने गर्दन उठाकर जूते उतारती रूपाली की तरफ देखा. रूपाली ने भी नज़र उठाकर उसकी और देखा तो पाया तो तेज की नज़र कहीं और है. तभी उसे अपनी झूलती हुई छातियों का एहसास हुआ और वो समझ गयी के तेज क्या देखा रहा. उसने अपनी नाइटी का गला पकड़कर फ़ौरन उपेर किया पर तब्भी तेज ने ऐसी हरकत की जिसके लिए वो बिल्कुल तैय्यार नही थी.
उसने रूपाली के दोनो हाथ पकड़े और उसे अपने साथ बिस्तर पर खींच लिया. इससे पहले के रूपाली कुच्छ समझ पाती या कुच्छ कर पाती वो उसके उपेर चढ़ गया और हाथों से पकड़कर उसकी नाइटी उपेर खींचने लगा
"तेज क्या कर रहे हो?" रूपाली फ़ौरन गुस्से में बोली पर तेज कहाँ सुन रहा था. वो तो बस उसकी नाइटी उपेर खींचने में लगा हुआ.
"खोल ना साली" तेज नशे में बड़बड़ाया
उसकी बात सुनकर रूपाली समझ गयी के वो उसे उन्हीं रंडियों में से एक समझ रहा था जिन्हें वो हर रात चोदा करता था. हर रात वो उसे सहारा देती थी और वो उन्हें चोद्ता था पर फ़र्क़ सिर्फ़ ये था के आज रात वो घर पे था और सहारा रूपाली दे रही थी.
रूपाली ने पूरी ताक़त से तेज को ज़ोर से धकेल दिया और वो बिस्तर से नीचे जा गिरा. रूपाली बिस्तर से उठकर उसकी तरफ गुस्से से मूडी ताकि उसे सुना सके पर तेज ने एक बार "ह्म्म्म्म" किया और नीचे ज़मीन पर ही करवट लेकर मूड सा गया. रूपाली जानती थी के वो नशे की वजह से नींद के आगोश में जा चुका था. उसने बिस्तर से चादर उठाई और तेज के उपेर डाल दी.
अपने कमरे में जाकर रूपाली बिस्तर पर लुढ़क गयी. बिस्तर पर लेटकर वो अभी जो हुआ था उस बारे में सोचने लगी. उसे 2 बातों की खुशी थी. एक तो ये के आज रात तेज घर लौट आया था. और दूसरा उसकी हरकत से ये बात सही साबित हो गयी थी के उसके लिए अगर यहीं घर में ही चूत का इंतज़ाम हो जाए तो शायद वो अपना ज़्यादा वक़्त घर पे ही गुज़ारने लगे.
हल्की आहट से रूपाली की आँख खुली. उसने कमरे के दरवाज़े की तरफ नज़र की तो देखा के ठाकुर अंदर आ रहे थे. रूपाली ने फ़ौरन नज़र अपने बिस्तर के पास नीचे ज़मीन पर डाली. पायल वहाँ नही थी. आज रात वो अपने कमरे में ही सो गयी थी. रूपाली ने राहत की साँस ली और ठाकुर की तरफ देखकर मुस्कुराइ.
"पता नही कब आँख लग गयी" कहते हुए उसने घड़ी की तरफ नज़र डाली. रात के 11 बज रहे थे.
"आप आई नही तो हमें लगा के पायल आज भी आपके कमरे में ही सो रही है इसलिए हम ही चले आए" ठाकुर ने उसके करीब आते हुए कहा
"पायल का नाम बड़ा ध्यान है आपको" रूपाली ने मुस्कुराते हुए कहा तो जवाब में ठाकुर भी मुस्कुरा दिए.
रूपाली बिस्तर पर अपनी टांगे नीचे लटकाए बैठी थी. ठाकुर उसके सामने आकर खड़े हुए और झुक कर उसके होंठों को चूमा.
"हमें तो सिर्फ़ आपका नाम ध्यान है" ठाकुर ने कहा और हाथ रूपाली की छाती पर रखकर दबाने लगे. रूपाली ने ठाकुर के होंठ से होंठ मिलाए रखे और नीचे उनका पाजामा खोलने लगी. नाडा खुलते ही पाजामा सरक कर नीचे जा गिरा और लंड उसके हाथों में आ गया.
फिर कमरे में वासना का वो तूफान उठा जो दोनो से संभाला नही गया. कुच्छ ही देर बाद रूपाली ठाकुर के उपेर बैठी उनके लंड पर उपेर नीचे कूद रही थी. उसकी चूचियाँ उसके जिस्म के साथ साथ उपेर नीचे उच्छल रही थी जिन्हें ठाकुर लगातार ऐसे दबा रहे थे जैसे आटा गूँध रहे हों.
"क्या बाआआआत है आजज्ज मेरी ककककचातियों से हाआआआथ हट नही रहे आआआपके?" रूपाली ने महसूस किया था के आज ठाकुर का ध्यान उसकी चूचियों पर कुच्छ ज़्यादा ही था
"कहीं कल रात की देखी पायल की तो याद नही आ रही?" वो लंड पर उपेर नीचे होना बंद करती हुई बोली और मुस्कुराइ
जवाब में ठाकुर ने उसे फ़ौरन नीचे गिराया और फिर चुदाई में लग गये. कमरे में फिर वो खेल शुरू हो गया जिसमें आख़िर में दोनो ही खिलाड़ी जीत जाते हैं और दोनो ही हार जाते हैं.
एक घंटे की चुदाई के बाद ठाकुर और रूपाली बिस्तर पर नंगे पड़े हुए ज़ोर ज़ोर से साँस ले रहे थे.
"हे भगवान" रूपाली अपनी चूचियों पर बने ठाकुर के दांतो के निशान देखते हुए बोली "आज इनपर इतनी मेहरबानी कैसे?"
"ऐसे ही" ठाकुर ने हस्ते हुए कहा
"ऐसे ही या कोई और वजह? कहीं किसी और का जिस्म तो ध्यान नही आ रहा था? जो कल तो यहाँ था पर आज आपको वो दीदार नही हुआ?" रूपाली ने उठकर बैठते हुए कहा
तभी घड़ी में 12 बजे
ठाकुर उठे और उठकर रूपाली के होंठ चूमे
"क्या हुआ?" रूपाली अचानक दिखाए गये इस प्यार पर हैरान होती बोली
"जनमदिन मुबारक हो" ठाकुर ने कहा
रूपाली फ़ौरन दोबारा घड़ी की तरफ देखा और डेट याद करने की कोशिश की. आज यक़ीनन उसका जनमदिन था और वो भूल चुकी थी. एक दिन था जब वो बेसब्री से अपने जमदीन का इंतेज़ार करती थी और पिच्छले कुच्छ सालों से तो उसे याद तक नही रहता था के कब ये दिन आया और चला गया. उसके पिच्छले जनमदिन पर भी उसे तब याद आया जब उसके माँ बाप और भाई ने फोन करके उसे बधाई दी थी
"मुझे तो पता भी नही था के आपको मालूम है मेरा जनमदिन" रूपाली ने कहा
"मालूम तो हमेशा था" ठाकुर ने जवाब दिया "माफी चाहते हैं के आज से पहले कभी हमने आपको ना कोई तोहफा दिया और ना ही इस दिन को कोई एहमियत"
तोहफा सुनते ही रूपाली फ़ौरन बोली
"तो इस बार भी कहाँ दिया अब तक?"
"देंगे. ज़रूर देंगे. बस कल सुबह तक का इंतेज़ार कर लीजिए" ठाकुर ने मुस्कुराते हुए कहा
थोड़ी देर बाद वो उठकर अपने कमरे में चले गये और रूपाली नींद के आगोश में
अगले दिन सुबह रूपाली उठकर नीचे आई ही थी के उसके भाई का फोन आ गया
"जनमदिन मुबारक हो दीदी" वो दूसरी तरफ फोन से लगभग चिल्लाते हुए बोला "बताओ आपको क्या तोहफा चाहिए?"
"मुझे कुच्छ नही चाहिए" रूपाली ने भी हासकर जवाब दिया "मम्मी पापा कहाँ हैं?"
उसे थोड़ी देर अपने माँ बाप से बात की. वो लोग खुश थे के रूपाली इस साल अपने जनमदिन पर खुश लग रही थी. वरना पहले तो वो बस हां ना करके फोन रख देती थी. उसके बाद रूपाली ने कुच्छ देर और अपने भाई इंदर से बात की जिसने उसे बताया के वो उससे कुच्छ वक़्त के बाद मिलने आएगा.
फोन रूपाली ने रखा ही था के उसके पिछे से तेज की आवाज़ आई
"जनमदिन मुबारक हो भाभी"
वो पलटी तो तेज खड़ा मुस्कुरा रहा था. ज़ाहिर था के उसे अपनी कल रात की हरकत बिल्कुल याद नही थी
"शुक्रिया" रूपाली ने भी उस बात को भूलकर हस्ते हुए जवाब दिया
"तो क्या प्लान है आज का?" तेज वहीं बैठते हुए बोला
"मैं कोई कॉलेज जाती बच्ची नही जो अपने जनमदिन पर कोई प्लान बनाऊँगी. कोई प्लान नही है." रूपाली उसके सामने बैठते हुए बोली "वैसे आप क्या कर रहे हैं आज?"
"वो जो आपने मुझे कल करने को कहा था" तेज ने जवाब दिया "माफ़ कीजिएगा कल कहीं काम से चला गया था. पर वाडा करता हूँ के आज से हवेली की सफाई का काम शुरू हो जाएगा"
रूपाली तेज की बात सुनकर दिल ही दिल में बहुत खुश हुई. कोई भी वजह हो पर वो उसकी बात सुनता ज़रूर था.
"चाय लोगे?" रूपाली ने तेज से पुचछा. उसने हां में सर हिला दिया
थोड़ी ही देर बाद ठाकुर भी सोकर जाग गये. बाहर आकर उन्होने रूपाली को फिर से जनमदिन की बधाई दी. क्यूंकी घर में तेज और पायल भी थे इसलिए रूपाली ने अब अपना घूँघट निकाल लिया था
"आइए आपको आपका तोहफा दिखाते हैं" ठाकुर ने जवाब दिया
वो उसे बाहर लेकर उस जगह पर पहुँचे जहाँ उनकी गाड़ी खड़ी रहती थी.
कवर में ढाकी हुई अपनी कार की तरफ इशारा करते हुए वो बोले
"आपका तोहफा बेटी"
रूपाली को कुच्छ समझ नही आया. ठाकुर उसे अपनी 11 साल पुरानी गाड़ी तोहफे में दे रहे हैं. वो हैरानी से ठाकुर की तरफ देखने लगी
"आपकी कार?"
"नही" ठाकुर कार की तरफ बढ़े और कवर खींच कर उतार दिया "आपकी कार"
रूपाली की आँखें खुली रह गयी. कवर के नीचे ठाकुर की पुरानी कार नही बल्कि चमकती हुई एक नयी बीएमडब्ल्यू खड़ी थी
"ये कब लाए आप?" वो कार के पास आते हुए बोली
"कल शाम जब आप नीचे बेसमेंट में थी" ठाकुर ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया
"और आपकी कार?"रूपाली ने चारों तरफ नज़र दौड़ाई
"वो बेच दी. हमने सोचा के आप ये गाड़ी चलाएंगी तो हम आपकी गाड़ी ले लेंगे" ठाकुर ने अपनी जेब से चाबियाँ निकालते हुए कहा "टेस्ट राइड हो जाए?"
रूपाली ने जल्दी से चाभी ठाकुर से ली और एक छ्होटे बच्चे की तरह खुश होती कार का दरवाज़ा खोला. उसकी खुशी में ज़ोर से चिल्लाने की आवाज़ सुनकर तेज भी बाहर आ गया था और खड़ा हुआ उन्हें देख रहा था.
रूपाली उसे देखकर बोली
"तेज देखो हमारी नयी कार " वो अब सच में किसी कॉलेज जाती बच्ची की तरह खुशी से उच्छल रही थी. उसे ये भी ध्यान नही था के उसका घूँघट हट गया है और वो ठाकुर के सामने बिना पर्दे के थी जो तेज देख रहा था.
तेज ने रूपाली की बात पर सिर्फ़ अपनी गर्दन हिलाई और पलटकर फिर हवेली में चला गया. उसका यूँ चले जाना रूपाली को थोड़ा अजीब सा लगा. जाने क्यूँ उसे लग रहा था के तेज को ठाकुर को यूँ कार लाकर रूपाली को देना पसंद नही आया.
अगले एक घंटे तक रूपाली कार लिए यहाँ से वहाँ अकेले ही भटकती रही. उसने ठाकुर को भी आपे साथ नही आने दिया था. अकेले ही कार लेकर निकल गयी थी.
तकरीबन एक घंटे बाद वो हवेली वापिस आई और ठाकुर के बुलाने पर उनके कमरे में आई.
"ये रहा आपका दूसरा तोहफा" ठाकुर ने एक एन्वेलप उसकी तरफ बढ़ते हुए कहा
"ये क्या है?" रूपाली ने एन्वेलप की तरफ देखा
"हमारी वसीयत जो हमने बदल दी है. इसमें लिखा है के अगर हमें कुच्छ हो जाए तो हमारा सब कुच्छ आपको मिलेगा." ठाकुर ने कहा
"पिताजी" रूपाली वहीं कुर्सी पर बैठ गयी. उसे यकीन सा नही हो रहा था
"क्या हुआ" ठाकुर ने पुचछा "ग़लत किया हमने कुच्छ?"
"हां" रूपाली ने जवाब दिया. "आपको ऐसा नही करना चाहिए था"
"पर क्यूँ?" ठाकुर उसके करीब आते हुए बोले
"क्यूंकी आपकी 3 औलाद और हैं. दोनो बेटे तेज और कुलदीप और आपकी एकलौती बेटी कामिनी. उनका हक़ इस जायदाद पर हमसे ज़्यादा है."
वो हम नही जानते" ठाकुर बोले "हमने अपना सब कुच्छ आपके नाम कर दिया है. अगर आप उन्हें कुच्छ देना चाहती हैं तो वो आपकी मर्ज़ी है. हम समझते हैं के ये फ़ैसला आपसे बेहतर कोई नही कर सकता"
"नही पिताजी. आपको ये वसीयत बदलनी होगी" रूपाली ने कहा तो ठाकुर इनकार में गर्दन हिलाने लगे
"ये अब नही बदलेगी हमारा जो कुच्छ है वो अब आपका है. अगर आप बाँटना चाहती हैं तो कर दें. और वैसे भी ....." ठाकुर ने अपनी बात पूरी नही की थी के रूपाली ने हाथ के इशारे से उन्हें चुप करा दिया.
ठाकुर ने हैरानी से उसकी तरफ देखा. रूपाली ने इशारा किया के दरवाज़े के पास खड़ा कोई उनकी बात सुन रहा है. रूपाली चुप चाप उतार दरवाज़े तक आई और हल्का सा बंद दरवाज़ा पूरा खोल दिया. बाहर कोई नही था.
"वहाँ हुआ होगा आपको" ठाकुर ने कहा पर रूपाली को पूरा यकीन था के उसने आवाज़ सुनी है.
"शायद" रूपाली ने कहा और फिर ठाकुर की तरफ पलटी
"आपको हमारे लिए ये वसीयत बदलनी होगी. या फिर अगर आप चाहते हैं के हम जायदाद आगे बराबर बाँट दे तो वकील को बुलवा लीजिए" रूपाली ने कहा
"ठीक है. हम उसे फोन करके बुलवा लेंगे. अब खुश?" ठाकुर ने हाथ जोड़ते हुए कहा
रूपाली धीरे से मुस्कुराइ और हाथ में एन्वेलप लिए कमरे से निकल गयी.