05-09-2019, 01:50 PM
Update 19
फोन रखकर रूपाली उठी जे तभी पायल चाय लेकर आ गयी. रूपाली को रात का वो नज़ारा याद आया जब उसने पायल की गान्ड पर हाथ फेरते हुए अपने जिस्म की आग ठंडी की थी. वो एकटूक पायल को देखने लगी, उसकी अल्हड़ जवानी को निहारने लगी.
"क्या हुआ मालकिन?" पायल ने पुचछा "ऐसे क्या देख रही हैं?"
"कुच्छ नही" रूपाली ने कहा और अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी.
अगला कुच्छ वक़्त रूपाली ने यूँ ही बिस्तर पर पड़े पड़े ही गुज़ार दिया. उसका पूरा बदन टूट रहा था. लग रहा था जैसे बरसो की बीमार हो. उसे बहुत सारे काम करने थे पर हिम्मत ही नही हो रही थी के उठे. थोड़ी देर बाद दरवाज़े पर नॉक हुआ. रूपाली ने उठकर दरवाज़ा खोला. सामने पायल खड़ी थी.
"माँ आई हैं. कह रही थी के आपने बुलाया था" पायल ने कहा तो रूपाली को ध्यान आया के उसने आज बिंदिया को आने के लिए कहा था
"हां उसे यहीं उपेर मेरे कमरे में ले आ" उसने पायल को कहा और फिर बिस्तर पर आकर बैठ गयी. थोड़ी ही देर बाद पायल अपनी माँ के साथ वापिस आई
"नमस्ते मालकिन" रूपाली को देखते ही बिंदिया ने हाथ जोड़े
"नमस्ते" रूपाली ने जवाब दिया "आ अंदर आजा"
बिंदिया वहीं कमरे में आकर खड़ी हो गयी. पायल बाहर दरवाज़े पर ही खड़ी थी.
"अपनी माँ को चाय पानी के लिए नही पुछेगि?" रूपाली ने कहा तो पायल मुस्कुरकर नीचे चली गयी.
"कैसी है?" रूपाली ने बिंदिया की तरफ देखकर कहा "बैठ ना"
"ठीक हूँ" कहती हुई बिंदिया वहीं नीचे ज़मीन पर बिछि कालीन पर बैठ गयी
"घर जाने की कोई जल्दी तो नही है ना?" रूपाली ने मुस्कुराते हुए पुचछा
"नही तो." बिंदिया हैरानी से बोली "क्यूँ?"
"नही मैं सोच रही थी के तेरा और चंदर का तो रोज़ का प्लान होता है ना वो भी दिन में 3-4 बार. इसलिए मैने सोचा के .........." रूपाली ने बात अधूरी छ्चोड़ दी.
बिंदिया की हसी छूट पड़ी.
"नही अभी आज को कोटा पूरा करके आई हूँ" उसने हस्ते हुए कहा
"आगे से पूरा करवाके आई है या पिछे से?" रूपाली ने भी उसी अंदाज़ में पुचछा
दोनो ज़ोर ज़ोर से हासणे लगी. तभी पायल पानी लेकर आ गयी
"चाय पिएगी माँ?"उसने बिंदिया से पुचछा
"नही रहने दे" बिंदिया ने पानी का ग्लास लिया और पानी पीने लगी
"पायल तू नीचे जाके भूषण काका का हाथ में काम बटा. मुझे तेरी माँ से एक ज़रूरी बात करनी है" रूपाली ने पायल को जाने का इशारा किया. पायल सहमति में गर्दन हिलती नीचे चली गयी.
बिंदिया ने पानी ख़तम करके ग्लास एक तरफ रखा और रूपाली की तरफ देखकर बोली
"मुझसे ज़रूरी बात करनी है?"
"हां" रूपाली हल्के से हस्ते हुए बोली "तुझसे ये सीखना है के तू लंड गान्ड में भी कैसे ले लेती है?"
दोनो फिर ज़ोर ज़ोर से हासणे लगी. रूपाली ने कह तो दिया पर अगले ही पल अपनी ग़लती का एहसास हुआ. बिंदिया के नज़र में वो विधवा थी तो उसे ये क्यूँ पता करना था, उसे किसका लंड लेना था अब. पति तो उसका मर चुका था.
"तुझसे कुच्छ बातें मालूम करनी थी" उसे हसी रोक कर पुचछा
"हां पुच्हिए" बिंदिया ने कहा
"पर एक बात है. जो बातें यहाँ बंद कमरे में मेरे और तेरे बीच हो रही हैं कहीं और बाहर ना जाएँ" उसने ऐसे कहा जैसे बिंदिया से एक आश्वासन माँग रही हो
"आप फिकर ना करें मालकिन" बिंदिया ने कहा "ज़ुबान खुले तो कटवा दीजिएगा"
"देख मुझे वैसे तो हवेली में आए 10 साल से उपेर हो चुके हैं" पायल उठकर कमरे में चहल कदमी करने लगी "पर मेरे आने के कुच्छ वक़्त तक ही ये हवेली एक घर थी. उसके बाद तो जैसे एक वीरान खंडहर हो गयी जहाँ मैं और पिताजी भूत की तरह बसे हुए हैं"
बिंदिया ने सहमति में सर हिलाया
"मेरे पति का मरना मेरी सबसे बड़ी बदक़िस्मती थी. पर उससे भी ज़्यादा बुरा हवेली का यूँ बर्बाद हो जाना है. मैं जानती हूँ के हवेली और पिताजी के घर खानदान के बारे में काफ़ी कुच्छ ऐसा है जो मैं नही जानती पर मालूम करना चाहती हूँ" रूपाली ये सब कहते हुए जैसे अंधेरे में तीर चला रही थी. उसे भुसन की कही हुई वो बात आज भी याद थी के उसके पति की हत्या की वजह यहीं हवेली में दफ़न है कहीं, जिसे उसको पता करना है.
"आप क्या कह रही हैं मालकिन?" बिंदिया ने पुचछा
"मैं ये कह रही हूँ के तेरा मर्द तो हमेशा से ठाकुर साहब के लिए काम करता था और तू भी बड़े वक़्त से यहीं हमारी ज़मीनो पर काम कर रही है. क्या तू मुझे कुच्छ ऐसा बता सकती हैं जो मैं नही जानती पर जिस बात की खबर मुझे होनी चाहिए?"
"आप करना क्या चाहती हैं मालकिन?" बिंदिया ने थोड़ी फिकर भारी आवाज़ में पुचछा
"मैं इस हवेली को दोबारा घर बनाना चाहती हूँ. यहाँ दोबारा खुशियाँ देखना चाहती हूँ. फिर से इसे वैसे ही देखना चाहती हूँ जैसी के ये पहली थी और इसके लिए ज़रूरी है के मुझे पहले सब कुच्छ पता हो ताकि मैं बर्बादी की हर वजह को मिटा सकूँ. समझी?" रूपाली एक साँस में बोली
बिंदिया ने हां में सर हिलाया
"तो अब बता" रूपाली उसके सामने बिस्तर पर बैठते हुए बोली "तू जानती है ऐसा कुच्छ?"
"छ्होटा मुँह बड़ी बात हो जाएगी मालकिन" बिंदिया ने हिचकिचाते हुए बोला
"तू फिकर ना कर. "रूपाली ने कहा "बस कुच्छ जानती है है तो बता मुझे"
"मैं नही जानती मालकिन के आपके लिए क्या ज़रूरी है क्या नही या आप क्या जानती हैं क्या नही. मैं बस अपने हिसाब से आपको कुच्छ बातें बता देती हूँ जो मुझे लगता है के आपसे च्छुपाई गयी होंगी. इस घर की नयी बहू से जो की आप आज से 10 साल पहले थी." बिंदिया ने कहा तो रूपाली ने हां में सर हिलाया
"आपको क्या लगता है के ठाकुर साहब की बर्बादी का सबसे बड़ा ज़िम्मेदार कौन है?" बिंदिया ने पुचछा तो रूपाली ने अपने कंधे हिलाए जैसे कह रही हो के पता नही
"आप अपने देवर जय के बारे में जानती हैं ना?" बिंदिया ने पुचछा "ठाकुर साहब के छ्होटे भाई का बेटा"
रूपाली ने हां में सर हिलाया
"वो हैं आस्तीन का असली साँप जो आपके पति ने पाल रखा था. आपके पति के मरते ही उसने ठाकुर साहब का सब कुच्छ ऐसे हड़प लिया जैसे कबे मौके की ताक में बैठा हो" बिंदिया ने आवाज़ यूँ नीची की जैसे बहुत बड़े राज़ की बात बता रही हो
"मालूम है मुझे" रूपाली ने कहा
"आप जानती हैं उसने ऐसा क्यूँ किया जबकि ठाकुर साहब ने अपने तीन बेटों के साथ उसे भी अपने चौथे बेटे की तरह पाला था" बिंदिया ने पुचछा
रूपाली ने फिर इनकार में सर हिलाया
"क्यूंकी गाओं में हर कोई ये कहता है के ठाकुर साहब ने पूरी जायदाद के लिए खुद अपने भाई का खून किया था" बिंदिया ने कहा
रूपाली पर जैसे कोई बॉम्ब गिरा हो
"मैं नही मानती. बकवास है ये" उसने बिंदिया से कहा
"मैं भी नही मानती मालकिन पर गाओं और आस पास के सारे इलाक़े में हर कोई यही कहता है. और जहाँ तक मेरा ख्याल है जय के कानो में भी यही बात पड़ गयी इसलिए तो खुद अपने चाचा के खिलाफ दिल में ज़हेर पालता रहा" बिंदिया ने जवाब दिया
"पर पिताजी ऐसा क्यूँ करेंगे?" रूपाली बोली
"वही तो." बिंदिया ने कहा "आपके ससुर और उनके भाई में बहुत बनती थी. भाई कम दोनो दोस्त ज़्यादा थे इसलिए तो ठाकुर साहब ने अपने भाई के बेटे को अपने बेटे की तरह पाला"
"जय के माता पिता की मौत कैसे हुई थी?" रूपाली ने पुचछा
"कार आक्सिडेंट था. गाड़ी खाई में जा गिरी थी. सब कहते हैं के ठाकुर साहब ने ही गाड़ी में कुच्छ खराबी की थी जिसकी वजह से आक्सिडेंट हुआ था." बिंदिया बोली
"कोरी बकवास है ये" रूपाली थोड़ा गुस्से में बोली "मैं जानती हूँ पिताजी को. वो ऐसा कुच्छ कर ही नही सकते"
"मैं जानती हूँ नही कर सकते मालकिन" बिंदिया ने भी हां में हां मिलाई "मैं तो बस आपको बता रही हूँ के गाओं के लोग क्या कहते हैं. मुझसे पुच्हिए तो मैं तो खुद ये कहती हूँ के ठाकुर साहब जैसा भला आदमी हो ही नही सकता"
उसकी बात सुन रूपाली मुस्कुराइ. जैसे अपने प्रेमी की तारीफ सुनकर खुश हुई हो
"और कोई बात?" उसने बिंदिया से पुचछा
"हां एक बात है तो पर पता नही के कितनी सच्ची है" बिंदिया ने कहा
"बता मुझे" रूपाली बोली
"मेरे मर्द की और मेरी एक अजीब आदत थी" बिंदिया ने कहा "बिस्तर पर हम चुप नही रहते थे. बातें करते करते चुदाई करते थे"
"कैसी बातें?" रूपाली हैरत से बोली "वो कोई बातें करने का टाइम होता है भला?"
"जानती हूँ बातें करने का वक़्त नही होता पर चुदाई की बातें करने का वक़्त वही होता है मालकिन. सच बड़ा मज़ा आता था" बिंदिया मुस्कुराते बोली
"मैं कुच्छ समझी नही" रूपाली बोली
"जब वो मुझे चोद्ता था तो हम गंदी गंदी बातें करते थे. जैसे मैं उसे कहती थी के चूत मारो, गान्ड मारो और वो कहता था के लंड चूस मेरा, गान्ड में ले, घोड़ी बन, उपेर आ. कभी कभी हम दोनो सोचते थे के हम बिस्तर पर नही कहीं और चुदाई कर रहे हैं जैसे खेत में या नदी किनारे और फिर हम दोनो बातों बातों में चुदाई करते थे. असल में वो मुझे उस वक़्त चोदा करता था और बातों में कहीं और चुदाई चल रही होती थी. वो मुझे कहता के अब मैं तुम्हें झुका कर चोद रहा हूँ और मैं कहती के मेरी चूचियाँ तुम्हारे हर धक्के के साथ हिल रही हैं. समझ रही हैं आप?" बिंदिया ने कहा
"कुच्छ कुच्छ" रूपाली बोली
"ऐसी ही एक चुदाई के वक़्त उसने मुझे बताया था के उसने आज एक लड़की को चूड़ते हुए देखा और बताया के उसने क्या देखा. मुझे चोद्ते हुए उसने पूरी कहानी बताई के उसने क्या देखा था. हम दोनो को बहुत मज़ा आया. चुदाई के बाद जब मैने उससे पुचछा के वो लड़की कौन थी तो वो बात टाल गया. और फिर अक्सर ऐसा ही करता. मुझे चोद्ता तो उस लड़की की कहानी दोहराता. उसकी चूचियाँ कैसी थी बताता. वो कैसे चुद्व रही थी ये पूरा अच्छे से मुझे बताता पर हमेशा उस लड़की का नाम टाल जाता. फिर एक दिन मैने उसे चूत देने से इनकार कर दिया. शर्त ये रखी के मैं चूत तब तक नही दूँगी जब तक के वो मुझे ये नही बताता के वो लड़की कौन थी. तब जाके उसने मुझे उसका नाम बताया." बिंदिया ने कहा और चुप हो गयी
"कौन थी लड़की?" रूपाली ने पुचछा. बिंदिया ने जवाब ना दिया
"बता ना" रूपाली ने फिर कहा
"आपकी ननद, कामिनी" बिंदिया ने जैसे धमाका किया "ठाकुर साहब के एकलौती बेटी"
"तू जानती है तू क्या बकवास कर रही है?" रूपाली लगभग चीखते हुए बोली
"मैं नही मालकिन ऐसा मेरा मर्द कहता था" बिंदिया ज़रा सहमी से आवाज़ में बोली
"ठाकुर साहब के कानो में अगर ये बात पड़ गयी तो जानती है ना के तेरा क्या अंजाम होगा" रूपाली ने कहा
"जानती हूँ मालकिन और यही बात मैने अपने मर्द से कही थी." बिंदिया ने कहा तो रूपाली ने अपने चेहरे से गुस्से के भाव हटाए
"क्या बताया था तेरे मर्द ने?" उसने बिंदिया ने पुचछा पर बिंदिया ने डर से कुच्छ ना कहा
"अच्छा डर मत ये बात कहीं नही जाएगी. अब बता" रूपाली ने ज़रा मुस्कुराते हुए कहा
"जी मेरे घर से थोड़ी दूर पहले आपकी ज़मीन पर एक ट्यूबिवेल होता था. तब वहाँ पर हर भर खेत थे जिनकी देखभाल मेरा मर्द करता था" बिंदिया ने बताना शुरू किया "वो कहता था के एक दिन उसे कामिनी की गाड़ी खेतों के बाहर सड़क पर खड़ी दिखाई दी. गाड़ी इस अंदाज़ में खड़ी की थी के सड़क से किसी को ना दिखे पर अगर कोई खेत की तरफ से आए तो उसे सॉफ नज़र आती थी. वो हैरत में पड़ गया के कामिनी के गाड़ी यहाँ क्या कर रही है. वो उसे ढूंढता हुआ ट्यूबिवेल की तरफ निकला क्यूंकी वहीं पर ठाकुर साहब ने थोड़ी जगह सॉफ करवाके एक छ्होटा सा कमरा बनवा रखा था. उसी के आगे वो अक्सर आके बेता करते थे और उसी कमरे में एक कुआँ था जिसमें ट्यूबिवेल लगा हुआ था. मेरे मर्द को लगा के कामिनी भी शायद उधर ही गयी होगी. वो उसे ढूंढता हुआ वहाँ पहुँचा तो देखा के कमरे का ताला खुला हुआ था पर दरवाज़ा अंदर से बंद था और अंदर से किसी के धीमी आवाज़ में बात करने की आवाज़ आ रही थी. टुबेवेल्ल की मोटर कमरे के अंदर थी और ट्यूबिवेल का पाइप कमरे में एक जगह से बाहर निकलता था. मेरे मर्द ने वहीं से अंदर झाँक कर देखा तो........"
"तो क्या?" रूपाली ने पुचछा "बता मुझे"
"वो कहता था के उसने देखा के कामिनी नीचे ज़मीन पर झुकी हुई थी, बिल्कुल नंगी. वो जहाँ से देख रहा था वहाँ से उसे कामिनी के आगे का हिस्सा नज़र आ रहा था, मतलब के उसकी कमर से उपेर का हिस्सा. उसकी चूचियाँ नीचे को लटकी हुई थी और वो आगे पिछे हो रही थी जिससे के ज़ाहिर था के पिछे से कोई उसे चोद रहा था. उसके बाल उसके चेहरे पर बिखरे हुए थे और उसने मज़े में आँखें बंद की हुई थी" बिंदिया बोली
"कौन छोड़ रहा था?" रूपाली ने जल्दी से पुचछा
"ये मेरा मर्द नही देख पाया क्यूंकी कामिनी की कमर से नीचे का हिस्सा उसे नज़र नही आ रहा था. उसने बस किसी के हाथों को देखा था जो कामिनी की कमर और उसकी चूचियों को सहला रहे थे, हाथ किसके थे ये वो नही देख पाया.'"बिंदिया बोली
"फिर?" रूपाली ने सवाल किया
"फिर वो कहता था के चुद्ते चुद्ते कामिनी ने अपनी गर्दन घुमाई और ठीक उस तरफ देखा जहाँ से मेरा मर्द झाँक रहा था. उसे लगा के कामिनी ने उसे देख लिया है और वो वहाँ से सर पर पावं रखकर भागा." बिंदिया ने बोला
"उसने वहाँ रुक कर ये देखने की कोशिश नही की के कामिनी के साथ वो आदमी कौन था?" रूपाली ने पुचछा
"मज़ाक कर रही हैं? उसे तो लगा था के वो अब गया जान से. उसने सोचा कामिनी ठाकुर साहब से कहके उसकी गर्दन कटवा देगी. 2-3 दिन तक बोखलाया सा रहा और फिर जब उसे लगा के कुच्छ नही हुआ तो तब उसने मुझे ये बात बताई." बिंदिया ने जवाब दिया
"हर रात यही बात करता था?" रूपाली ने कहा
"हां. मर्द था ना. चोद मुझे रहा होता था और याद उसे नंगी कामिनी आती थी" बिंदिया ने ऐसे कहा जैसे अपने मरे हुए मर्द को ताना मार रही हो
"फिर क्या हुआ? उसने दोबारा कभी देखा कामिनी को वहाँ?" रूपाली ने सवाल किया
"कहाँ मालकिन. महीने भर बाद ही मर गया था वो."
"कैसे?"
"वहीं उसी कमरे में. जो कुआँ बना हुआ है ना अंदर, उसी में लाश मिली थी उसकी. टुबेवेल्ल ठीक करने गया था और पता नही कैसे अंदर गिर पड़ा. उसका सर नीचे जा रहे ट्यूबिवेल के पाइप पे लगा और वो मर गया. पता नही चोट लगने से या डूबके मरने से." बिंदिया ने आह लेते हुए कहा
"बुरा ना माने तो एक बात कहूँ मालकिन?" बिंदिया बोली
"हां बोल" रूपाली ने कहा
"कामिनी के बारे में लोग अच्छा नही कहते. जो नौकर उस वक़्त यहाँ काम करते थे वो कहते थे के उसका चल चलन ठीक नही है. पता नही क्यूँ कहते थे पर हर कोई कहता था के सीधी सी दिखने वाली चुप चुप रहने वाली कामिनी ऐसी नही थी जैसी वो दिखती थी"
"हां कुच्छ ऐसा सुना था मैने भी. पर आज से पहले किसी ने ऐसी किसी घटना का ज़िक्र नही किया था." रूपाली ने जवाब दिया
"नौकरों से ध्यान आया मालकिन" बिंदिया बोली "अब तो घर में कोई नौकर बचा नही, इतनी बड़ी हवेली का ध्यान कैसे रखती हैं?"
"भूषण है ना. और फिर हम हवेली में 2 ही लोग हैं. मैं और पिताजी. चल जाता है" रूपाली ने कहा
"हां यही एक बेचारा रह गया जो हमेशा आपका वफ़ादार रहा."बिंदिया बोली "और वैसे भी इस उमर में जाता कहाँ. कोई है ही नही आगे पिछे. एक बीवी थी वो छ्चोड़के भाग गयी"
"भाग गयी?" रूपाली ने हैरानी से पुचछा "मुझे लगा था के वो मर गयी थी"
"अरे नही मालकिन" बिंदिया ने कहा "इतनी जल्दी कहाँ. अपनी भारी जवानी में थी वो"
"मतलब?" रूपाली ने पुचछा
"जब इसने शादी की थी तो ये लगभग 40 का था और वो लड़की मुश्किल से 20 की. कोई 15 साल इसके साथ रही और फिर भाग गयी किसी और के साथ" बिंदिया बोली
रूपाली को इस बात से काफ़ी हैरानी हुई. वो पुच्छना चाहती थी के वो लड़की क्यूँ भागी पर फिर जवाब खुद अपने दिल ने ही दे दिया. जब भूषण 40 का था तो बिस्तर पे उसे खुश रखता होगा. 15 साल में उमर ढली तो इसकी जवानी गयी और जवानी के साथ ही बीवी भी किसी और के साथ गयी.
रूपाली और बिंदिया थोड़ी देर और इधर उधर की बातें करते रहे. बिंदिया ने उसे गाओं और ठाकुर साहब की जायदाद के बारे में काफ़ी कुच्छ बताया पर कुच्छ भी ऐसा नही जो रूपाली पहले से ना जानती हो. कुच्छ देर बाद बिंदिया ने उठते हुए कहा के अब उसको चलना चाहिए.
"क्यूँ फिर टाँगो के बीच आग लग रही है क्या?" रूपाली ने कहा तो बिंदिया भी उसके साथ हस पड़ी
"वैसे मानना होगा तुझे बिंदिया. कोई देखके कह नही सकता के एक जवान बेटी की माँ है तू. साथ खड़ा कर दो तो पायल की बड़ी बहेन लगेगी, माँ नही" रूपाली बोली
"छ्चोड़िए मालकिन" हस्ते हुए बिंदिया ने कहा और कमरे से बाहर चली गयी.
रूपाली वहीं बिस्तर पर बैठी थोड़ी देर तक उसकी बातों पर गौर करती रही. अगर जो बिंदिया ने कहा था वो सच था तो कामिनी के बारे में जो घर के नौकर कहते थे वो भी ठीक ही था. मतलब कोई प्रेमी था उसका जिससे मिलने वो उस दिन खेतों की तरफ गयी थी और बहुत हद ये भी मुमकिन था के वहीं आदमी उससे मिलने हवेली में आता था. और ये भी मुमकिन था के उसी ने पुरुषोत्तम का भी खून किया हो. पर अब सवाल ये था के वो आदमी था कौन.
यही सोचती रूपाली अपने कमरे की खिड़की के पास आकर खड़ी हुई और नीचे देखने लगी. सामने से एक कार आकर रुकी और उसका देवर तेज गाड़ी से बाहर निकला. उसके पति का दूसरा भाई.
"आ गये मियाँ अययश" रूपाली ने दिल में सोचा
तभी हवेली के दरवाज़े से बिंदिया निकली और तेज के सामने हाथ जोड़कर नमस्ते करती हुई उसकी बगल से निकल गयी. जिस बात ने रूपाली का ध्यान अपनी और किया वो था तेज का पलटकर बिंदिया को देखना. वो कुच्छ पल के लिए पिछे से बिंदिया को देखता रहा. जिस अंदाज़ से वो देख रहा था उससे रूपाली ने यही अंदाज़ा लगाया के वो बिंदिया की गान्ड देख रहा था. बिंदिया थोड़ा आगे निकल गयी तो तेज पलटकर हवेली में दाखिल हो गया.रूपाली खिड़की से हटी ही थी के उसके दिमाग़ में एक ख्याल आया और वो मुस्कुरा उठी.
तेज अय्याश था, औरतों का शौकीन और इसी चक्कर में यहाँ वहाँ रंडियों में मुँह मारता फिरता था. रूपाली चाहती थी के वो हवेली में रुके और अपनी ज़मीन जायदाद की देखभाल की तरफ ध्यान दे, अपने पिता का हाथ बताए पर इसके लिए ज़रूरी था उसका हवेली में रुकना. उसे रोकने का एक तरीका ये था के घर में ही उसके लिए चूत का इन्तेजाम कर दिया जाए. रूपाली ने दोबारा खिड़की से बाहर कॉंपाउंड में जाती हुई बिंदिया को देखा, फिर एक पल पायल के बारे में सोचा और खुद ही मुस्कुरा उठी.
रूपाली अपने कमरे से बाहर निकली तो सामने से आता तेज मिल गया
"प्रणाम भाभी माँ" उसने बिल्कुल ठाकुरों के अंदाज़ में हाथ जोड़े और झुक कर रूपाली के पावं च्छुए
एक बात जो रूपाली को हैरत में डालती थी वो ये थी के तेज लाख आय्याश सही पर उसका हमेशा बहुत आदर करता था. हवेली में वो जबसे आई थी तबसे वो हमेशा उसे भाभी माँ कहकर बुलाता था और हमेशा उसके पावं छुता था
"कैसे हो तेज?" रूपाली ने पुचछा
"ठीक हूँ भाभी. आप कैसी हैं?" तेज ने जवाब दिया
"ठीक हूँ. घर की याद आ गयी आपको?" रूपाली ने हल्का सा ताना मारते हुए कहा. तेज ने कोई जवाब नही दिया
"दोबारा कब जा रहे हैं?" रूपाली ने फिर सवाल किया
"आप ऐसा क्यूँ कह रही हैं भाभी?" तेज ने कहा
"और कैसा कहूँ तेज?" रूपाली ने हल्का सा गुस्सा दिखाते हुए कहा "एक जवान देवर के होते हुए अगर उसकी भाभी को सार काम करना पड़ा तो और क्या कहूँ मैं?"
"कैसा काम भाभी?" तेज हल्का शर्मिंदा होते हुए बोला "आप मुझे कहिए"
"आप यहाँ हों तो आपको कहूँ ना. आप तो इस घर में मेहमान की तरह आते हैं" रूपाली ना उसी अंदाज़ में दोबारा ताना मारा
तेज फिर चुप खड़ा रहा. रूपाली को हमेशा उसपर हैरत होती थी. ये वही तेज वीर सिंग है जिसने जाने कितनी लाशें गिरा दी थी अपने भाई का बदला लेने के लिए, ये वही तेज है जिसके सामने कोई ज़ुबान नही खोलता था, खुद ठाकुर साहब भी नही पर रूपाली के सामने तेज हमेशा सर झुकाए ही खड़ा रहता था.
"खैर अब आप आए ही हैं तो हम चाहते हैं के आप कुच्छ दिन रुकें. हवेली में कुच्छ काम है और हमें अच्छा लगेगा के आप हमारा हाथ बटाये" रूपाली ने कहा
"जैसा आप ठीक समझें" तेज ने कहा और अपने कमरे की तरफ बढ़ गया
रूपाली उसे जाता देखकर मुस्कुराइ. वो जानती थी के उसका प्लान काम कर रहा है.
फोन रखकर रूपाली उठी जे तभी पायल चाय लेकर आ गयी. रूपाली को रात का वो नज़ारा याद आया जब उसने पायल की गान्ड पर हाथ फेरते हुए अपने जिस्म की आग ठंडी की थी. वो एकटूक पायल को देखने लगी, उसकी अल्हड़ जवानी को निहारने लगी.
"क्या हुआ मालकिन?" पायल ने पुचछा "ऐसे क्या देख रही हैं?"
"कुच्छ नही" रूपाली ने कहा और अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी.
अगला कुच्छ वक़्त रूपाली ने यूँ ही बिस्तर पर पड़े पड़े ही गुज़ार दिया. उसका पूरा बदन टूट रहा था. लग रहा था जैसे बरसो की बीमार हो. उसे बहुत सारे काम करने थे पर हिम्मत ही नही हो रही थी के उठे. थोड़ी देर बाद दरवाज़े पर नॉक हुआ. रूपाली ने उठकर दरवाज़ा खोला. सामने पायल खड़ी थी.
"माँ आई हैं. कह रही थी के आपने बुलाया था" पायल ने कहा तो रूपाली को ध्यान आया के उसने आज बिंदिया को आने के लिए कहा था
"हां उसे यहीं उपेर मेरे कमरे में ले आ" उसने पायल को कहा और फिर बिस्तर पर आकर बैठ गयी. थोड़ी ही देर बाद पायल अपनी माँ के साथ वापिस आई
"नमस्ते मालकिन" रूपाली को देखते ही बिंदिया ने हाथ जोड़े
"नमस्ते" रूपाली ने जवाब दिया "आ अंदर आजा"
बिंदिया वहीं कमरे में आकर खड़ी हो गयी. पायल बाहर दरवाज़े पर ही खड़ी थी.
"अपनी माँ को चाय पानी के लिए नही पुछेगि?" रूपाली ने कहा तो पायल मुस्कुरकर नीचे चली गयी.
"कैसी है?" रूपाली ने बिंदिया की तरफ देखकर कहा "बैठ ना"
"ठीक हूँ" कहती हुई बिंदिया वहीं नीचे ज़मीन पर बिछि कालीन पर बैठ गयी
"घर जाने की कोई जल्दी तो नही है ना?" रूपाली ने मुस्कुराते हुए पुचछा
"नही तो." बिंदिया हैरानी से बोली "क्यूँ?"
"नही मैं सोच रही थी के तेरा और चंदर का तो रोज़ का प्लान होता है ना वो भी दिन में 3-4 बार. इसलिए मैने सोचा के .........." रूपाली ने बात अधूरी छ्चोड़ दी.
बिंदिया की हसी छूट पड़ी.
"नही अभी आज को कोटा पूरा करके आई हूँ" उसने हस्ते हुए कहा
"आगे से पूरा करवाके आई है या पिछे से?" रूपाली ने भी उसी अंदाज़ में पुचछा
दोनो ज़ोर ज़ोर से हासणे लगी. तभी पायल पानी लेकर आ गयी
"चाय पिएगी माँ?"उसने बिंदिया से पुचछा
"नही रहने दे" बिंदिया ने पानी का ग्लास लिया और पानी पीने लगी
"पायल तू नीचे जाके भूषण काका का हाथ में काम बटा. मुझे तेरी माँ से एक ज़रूरी बात करनी है" रूपाली ने पायल को जाने का इशारा किया. पायल सहमति में गर्दन हिलती नीचे चली गयी.
बिंदिया ने पानी ख़तम करके ग्लास एक तरफ रखा और रूपाली की तरफ देखकर बोली
"मुझसे ज़रूरी बात करनी है?"
"हां" रूपाली हल्के से हस्ते हुए बोली "तुझसे ये सीखना है के तू लंड गान्ड में भी कैसे ले लेती है?"
दोनो फिर ज़ोर ज़ोर से हासणे लगी. रूपाली ने कह तो दिया पर अगले ही पल अपनी ग़लती का एहसास हुआ. बिंदिया के नज़र में वो विधवा थी तो उसे ये क्यूँ पता करना था, उसे किसका लंड लेना था अब. पति तो उसका मर चुका था.
"तुझसे कुच्छ बातें मालूम करनी थी" उसे हसी रोक कर पुचछा
"हां पुच्हिए" बिंदिया ने कहा
"पर एक बात है. जो बातें यहाँ बंद कमरे में मेरे और तेरे बीच हो रही हैं कहीं और बाहर ना जाएँ" उसने ऐसे कहा जैसे बिंदिया से एक आश्वासन माँग रही हो
"आप फिकर ना करें मालकिन" बिंदिया ने कहा "ज़ुबान खुले तो कटवा दीजिएगा"
"देख मुझे वैसे तो हवेली में आए 10 साल से उपेर हो चुके हैं" पायल उठकर कमरे में चहल कदमी करने लगी "पर मेरे आने के कुच्छ वक़्त तक ही ये हवेली एक घर थी. उसके बाद तो जैसे एक वीरान खंडहर हो गयी जहाँ मैं और पिताजी भूत की तरह बसे हुए हैं"
बिंदिया ने सहमति में सर हिलाया
"मेरे पति का मरना मेरी सबसे बड़ी बदक़िस्मती थी. पर उससे भी ज़्यादा बुरा हवेली का यूँ बर्बाद हो जाना है. मैं जानती हूँ के हवेली और पिताजी के घर खानदान के बारे में काफ़ी कुच्छ ऐसा है जो मैं नही जानती पर मालूम करना चाहती हूँ" रूपाली ये सब कहते हुए जैसे अंधेरे में तीर चला रही थी. उसे भुसन की कही हुई वो बात आज भी याद थी के उसके पति की हत्या की वजह यहीं हवेली में दफ़न है कहीं, जिसे उसको पता करना है.
"आप क्या कह रही हैं मालकिन?" बिंदिया ने पुचछा
"मैं ये कह रही हूँ के तेरा मर्द तो हमेशा से ठाकुर साहब के लिए काम करता था और तू भी बड़े वक़्त से यहीं हमारी ज़मीनो पर काम कर रही है. क्या तू मुझे कुच्छ ऐसा बता सकती हैं जो मैं नही जानती पर जिस बात की खबर मुझे होनी चाहिए?"
"आप करना क्या चाहती हैं मालकिन?" बिंदिया ने थोड़ी फिकर भारी आवाज़ में पुचछा
"मैं इस हवेली को दोबारा घर बनाना चाहती हूँ. यहाँ दोबारा खुशियाँ देखना चाहती हूँ. फिर से इसे वैसे ही देखना चाहती हूँ जैसी के ये पहली थी और इसके लिए ज़रूरी है के मुझे पहले सब कुच्छ पता हो ताकि मैं बर्बादी की हर वजह को मिटा सकूँ. समझी?" रूपाली एक साँस में बोली
बिंदिया ने हां में सर हिलाया
"तो अब बता" रूपाली उसके सामने बिस्तर पर बैठते हुए बोली "तू जानती है ऐसा कुच्छ?"
"छ्होटा मुँह बड़ी बात हो जाएगी मालकिन" बिंदिया ने हिचकिचाते हुए बोला
"तू फिकर ना कर. "रूपाली ने कहा "बस कुच्छ जानती है है तो बता मुझे"
"मैं नही जानती मालकिन के आपके लिए क्या ज़रूरी है क्या नही या आप क्या जानती हैं क्या नही. मैं बस अपने हिसाब से आपको कुच्छ बातें बता देती हूँ जो मुझे लगता है के आपसे च्छुपाई गयी होंगी. इस घर की नयी बहू से जो की आप आज से 10 साल पहले थी." बिंदिया ने कहा तो रूपाली ने हां में सर हिलाया
"आपको क्या लगता है के ठाकुर साहब की बर्बादी का सबसे बड़ा ज़िम्मेदार कौन है?" बिंदिया ने पुचछा तो रूपाली ने अपने कंधे हिलाए जैसे कह रही हो के पता नही
"आप अपने देवर जय के बारे में जानती हैं ना?" बिंदिया ने पुचछा "ठाकुर साहब के छ्होटे भाई का बेटा"
रूपाली ने हां में सर हिलाया
"वो हैं आस्तीन का असली साँप जो आपके पति ने पाल रखा था. आपके पति के मरते ही उसने ठाकुर साहब का सब कुच्छ ऐसे हड़प लिया जैसे कबे मौके की ताक में बैठा हो" बिंदिया ने आवाज़ यूँ नीची की जैसे बहुत बड़े राज़ की बात बता रही हो
"मालूम है मुझे" रूपाली ने कहा
"आप जानती हैं उसने ऐसा क्यूँ किया जबकि ठाकुर साहब ने अपने तीन बेटों के साथ उसे भी अपने चौथे बेटे की तरह पाला था" बिंदिया ने पुचछा
रूपाली ने फिर इनकार में सर हिलाया
"क्यूंकी गाओं में हर कोई ये कहता है के ठाकुर साहब ने पूरी जायदाद के लिए खुद अपने भाई का खून किया था" बिंदिया ने कहा
रूपाली पर जैसे कोई बॉम्ब गिरा हो
"मैं नही मानती. बकवास है ये" उसने बिंदिया से कहा
"मैं भी नही मानती मालकिन पर गाओं और आस पास के सारे इलाक़े में हर कोई यही कहता है. और जहाँ तक मेरा ख्याल है जय के कानो में भी यही बात पड़ गयी इसलिए तो खुद अपने चाचा के खिलाफ दिल में ज़हेर पालता रहा" बिंदिया ने जवाब दिया
"पर पिताजी ऐसा क्यूँ करेंगे?" रूपाली बोली
"वही तो." बिंदिया ने कहा "आपके ससुर और उनके भाई में बहुत बनती थी. भाई कम दोनो दोस्त ज़्यादा थे इसलिए तो ठाकुर साहब ने अपने भाई के बेटे को अपने बेटे की तरह पाला"
"जय के माता पिता की मौत कैसे हुई थी?" रूपाली ने पुचछा
"कार आक्सिडेंट था. गाड़ी खाई में जा गिरी थी. सब कहते हैं के ठाकुर साहब ने ही गाड़ी में कुच्छ खराबी की थी जिसकी वजह से आक्सिडेंट हुआ था." बिंदिया बोली
"कोरी बकवास है ये" रूपाली थोड़ा गुस्से में बोली "मैं जानती हूँ पिताजी को. वो ऐसा कुच्छ कर ही नही सकते"
"मैं जानती हूँ नही कर सकते मालकिन" बिंदिया ने भी हां में हां मिलाई "मैं तो बस आपको बता रही हूँ के गाओं के लोग क्या कहते हैं. मुझसे पुच्हिए तो मैं तो खुद ये कहती हूँ के ठाकुर साहब जैसा भला आदमी हो ही नही सकता"
उसकी बात सुन रूपाली मुस्कुराइ. जैसे अपने प्रेमी की तारीफ सुनकर खुश हुई हो
"और कोई बात?" उसने बिंदिया से पुचछा
"हां एक बात है तो पर पता नही के कितनी सच्ची है" बिंदिया ने कहा
"बता मुझे" रूपाली बोली
"मेरे मर्द की और मेरी एक अजीब आदत थी" बिंदिया ने कहा "बिस्तर पर हम चुप नही रहते थे. बातें करते करते चुदाई करते थे"
"कैसी बातें?" रूपाली हैरत से बोली "वो कोई बातें करने का टाइम होता है भला?"
"जानती हूँ बातें करने का वक़्त नही होता पर चुदाई की बातें करने का वक़्त वही होता है मालकिन. सच बड़ा मज़ा आता था" बिंदिया मुस्कुराते बोली
"मैं कुच्छ समझी नही" रूपाली बोली
"जब वो मुझे चोद्ता था तो हम गंदी गंदी बातें करते थे. जैसे मैं उसे कहती थी के चूत मारो, गान्ड मारो और वो कहता था के लंड चूस मेरा, गान्ड में ले, घोड़ी बन, उपेर आ. कभी कभी हम दोनो सोचते थे के हम बिस्तर पर नही कहीं और चुदाई कर रहे हैं जैसे खेत में या नदी किनारे और फिर हम दोनो बातों बातों में चुदाई करते थे. असल में वो मुझे उस वक़्त चोदा करता था और बातों में कहीं और चुदाई चल रही होती थी. वो मुझे कहता के अब मैं तुम्हें झुका कर चोद रहा हूँ और मैं कहती के मेरी चूचियाँ तुम्हारे हर धक्के के साथ हिल रही हैं. समझ रही हैं आप?" बिंदिया ने कहा
"कुच्छ कुच्छ" रूपाली बोली
"ऐसी ही एक चुदाई के वक़्त उसने मुझे बताया था के उसने आज एक लड़की को चूड़ते हुए देखा और बताया के उसने क्या देखा. मुझे चोद्ते हुए उसने पूरी कहानी बताई के उसने क्या देखा था. हम दोनो को बहुत मज़ा आया. चुदाई के बाद जब मैने उससे पुचछा के वो लड़की कौन थी तो वो बात टाल गया. और फिर अक्सर ऐसा ही करता. मुझे चोद्ता तो उस लड़की की कहानी दोहराता. उसकी चूचियाँ कैसी थी बताता. वो कैसे चुद्व रही थी ये पूरा अच्छे से मुझे बताता पर हमेशा उस लड़की का नाम टाल जाता. फिर एक दिन मैने उसे चूत देने से इनकार कर दिया. शर्त ये रखी के मैं चूत तब तक नही दूँगी जब तक के वो मुझे ये नही बताता के वो लड़की कौन थी. तब जाके उसने मुझे उसका नाम बताया." बिंदिया ने कहा और चुप हो गयी
"कौन थी लड़की?" रूपाली ने पुचछा. बिंदिया ने जवाब ना दिया
"बता ना" रूपाली ने फिर कहा
"आपकी ननद, कामिनी" बिंदिया ने जैसे धमाका किया "ठाकुर साहब के एकलौती बेटी"
"तू जानती है तू क्या बकवास कर रही है?" रूपाली लगभग चीखते हुए बोली
"मैं नही मालकिन ऐसा मेरा मर्द कहता था" बिंदिया ज़रा सहमी से आवाज़ में बोली
"ठाकुर साहब के कानो में अगर ये बात पड़ गयी तो जानती है ना के तेरा क्या अंजाम होगा" रूपाली ने कहा
"जानती हूँ मालकिन और यही बात मैने अपने मर्द से कही थी." बिंदिया ने कहा तो रूपाली ने अपने चेहरे से गुस्से के भाव हटाए
"क्या बताया था तेरे मर्द ने?" उसने बिंदिया ने पुचछा पर बिंदिया ने डर से कुच्छ ना कहा
"अच्छा डर मत ये बात कहीं नही जाएगी. अब बता" रूपाली ने ज़रा मुस्कुराते हुए कहा
"जी मेरे घर से थोड़ी दूर पहले आपकी ज़मीन पर एक ट्यूबिवेल होता था. तब वहाँ पर हर भर खेत थे जिनकी देखभाल मेरा मर्द करता था" बिंदिया ने बताना शुरू किया "वो कहता था के एक दिन उसे कामिनी की गाड़ी खेतों के बाहर सड़क पर खड़ी दिखाई दी. गाड़ी इस अंदाज़ में खड़ी की थी के सड़क से किसी को ना दिखे पर अगर कोई खेत की तरफ से आए तो उसे सॉफ नज़र आती थी. वो हैरत में पड़ गया के कामिनी के गाड़ी यहाँ क्या कर रही है. वो उसे ढूंढता हुआ ट्यूबिवेल की तरफ निकला क्यूंकी वहीं पर ठाकुर साहब ने थोड़ी जगह सॉफ करवाके एक छ्होटा सा कमरा बनवा रखा था. उसी के आगे वो अक्सर आके बेता करते थे और उसी कमरे में एक कुआँ था जिसमें ट्यूबिवेल लगा हुआ था. मेरे मर्द को लगा के कामिनी भी शायद उधर ही गयी होगी. वो उसे ढूंढता हुआ वहाँ पहुँचा तो देखा के कमरे का ताला खुला हुआ था पर दरवाज़ा अंदर से बंद था और अंदर से किसी के धीमी आवाज़ में बात करने की आवाज़ आ रही थी. टुबेवेल्ल की मोटर कमरे के अंदर थी और ट्यूबिवेल का पाइप कमरे में एक जगह से बाहर निकलता था. मेरे मर्द ने वहीं से अंदर झाँक कर देखा तो........"
"तो क्या?" रूपाली ने पुचछा "बता मुझे"
"वो कहता था के उसने देखा के कामिनी नीचे ज़मीन पर झुकी हुई थी, बिल्कुल नंगी. वो जहाँ से देख रहा था वहाँ से उसे कामिनी के आगे का हिस्सा नज़र आ रहा था, मतलब के उसकी कमर से उपेर का हिस्सा. उसकी चूचियाँ नीचे को लटकी हुई थी और वो आगे पिछे हो रही थी जिससे के ज़ाहिर था के पिछे से कोई उसे चोद रहा था. उसके बाल उसके चेहरे पर बिखरे हुए थे और उसने मज़े में आँखें बंद की हुई थी" बिंदिया बोली
"कौन छोड़ रहा था?" रूपाली ने जल्दी से पुचछा
"ये मेरा मर्द नही देख पाया क्यूंकी कामिनी की कमर से नीचे का हिस्सा उसे नज़र नही आ रहा था. उसने बस किसी के हाथों को देखा था जो कामिनी की कमर और उसकी चूचियों को सहला रहे थे, हाथ किसके थे ये वो नही देख पाया.'"बिंदिया बोली
"फिर?" रूपाली ने सवाल किया
"फिर वो कहता था के चुद्ते चुद्ते कामिनी ने अपनी गर्दन घुमाई और ठीक उस तरफ देखा जहाँ से मेरा मर्द झाँक रहा था. उसे लगा के कामिनी ने उसे देख लिया है और वो वहाँ से सर पर पावं रखकर भागा." बिंदिया ने बोला
"उसने वहाँ रुक कर ये देखने की कोशिश नही की के कामिनी के साथ वो आदमी कौन था?" रूपाली ने पुचछा
"मज़ाक कर रही हैं? उसे तो लगा था के वो अब गया जान से. उसने सोचा कामिनी ठाकुर साहब से कहके उसकी गर्दन कटवा देगी. 2-3 दिन तक बोखलाया सा रहा और फिर जब उसे लगा के कुच्छ नही हुआ तो तब उसने मुझे ये बात बताई." बिंदिया ने जवाब दिया
"हर रात यही बात करता था?" रूपाली ने कहा
"हां. मर्द था ना. चोद मुझे रहा होता था और याद उसे नंगी कामिनी आती थी" बिंदिया ने ऐसे कहा जैसे अपने मरे हुए मर्द को ताना मार रही हो
"फिर क्या हुआ? उसने दोबारा कभी देखा कामिनी को वहाँ?" रूपाली ने सवाल किया
"कहाँ मालकिन. महीने भर बाद ही मर गया था वो."
"कैसे?"
"वहीं उसी कमरे में. जो कुआँ बना हुआ है ना अंदर, उसी में लाश मिली थी उसकी. टुबेवेल्ल ठीक करने गया था और पता नही कैसे अंदर गिर पड़ा. उसका सर नीचे जा रहे ट्यूबिवेल के पाइप पे लगा और वो मर गया. पता नही चोट लगने से या डूबके मरने से." बिंदिया ने आह लेते हुए कहा
"बुरा ना माने तो एक बात कहूँ मालकिन?" बिंदिया बोली
"हां बोल" रूपाली ने कहा
"कामिनी के बारे में लोग अच्छा नही कहते. जो नौकर उस वक़्त यहाँ काम करते थे वो कहते थे के उसका चल चलन ठीक नही है. पता नही क्यूँ कहते थे पर हर कोई कहता था के सीधी सी दिखने वाली चुप चुप रहने वाली कामिनी ऐसी नही थी जैसी वो दिखती थी"
"हां कुच्छ ऐसा सुना था मैने भी. पर आज से पहले किसी ने ऐसी किसी घटना का ज़िक्र नही किया था." रूपाली ने जवाब दिया
"नौकरों से ध्यान आया मालकिन" बिंदिया बोली "अब तो घर में कोई नौकर बचा नही, इतनी बड़ी हवेली का ध्यान कैसे रखती हैं?"
"भूषण है ना. और फिर हम हवेली में 2 ही लोग हैं. मैं और पिताजी. चल जाता है" रूपाली ने कहा
"हां यही एक बेचारा रह गया जो हमेशा आपका वफ़ादार रहा."बिंदिया बोली "और वैसे भी इस उमर में जाता कहाँ. कोई है ही नही आगे पिछे. एक बीवी थी वो छ्चोड़के भाग गयी"
"भाग गयी?" रूपाली ने हैरानी से पुचछा "मुझे लगा था के वो मर गयी थी"
"अरे नही मालकिन" बिंदिया ने कहा "इतनी जल्दी कहाँ. अपनी भारी जवानी में थी वो"
"मतलब?" रूपाली ने पुचछा
"जब इसने शादी की थी तो ये लगभग 40 का था और वो लड़की मुश्किल से 20 की. कोई 15 साल इसके साथ रही और फिर भाग गयी किसी और के साथ" बिंदिया बोली
रूपाली को इस बात से काफ़ी हैरानी हुई. वो पुच्छना चाहती थी के वो लड़की क्यूँ भागी पर फिर जवाब खुद अपने दिल ने ही दे दिया. जब भूषण 40 का था तो बिस्तर पे उसे खुश रखता होगा. 15 साल में उमर ढली तो इसकी जवानी गयी और जवानी के साथ ही बीवी भी किसी और के साथ गयी.
रूपाली और बिंदिया थोड़ी देर और इधर उधर की बातें करते रहे. बिंदिया ने उसे गाओं और ठाकुर साहब की जायदाद के बारे में काफ़ी कुच्छ बताया पर कुच्छ भी ऐसा नही जो रूपाली पहले से ना जानती हो. कुच्छ देर बाद बिंदिया ने उठते हुए कहा के अब उसको चलना चाहिए.
"क्यूँ फिर टाँगो के बीच आग लग रही है क्या?" रूपाली ने कहा तो बिंदिया भी उसके साथ हस पड़ी
"वैसे मानना होगा तुझे बिंदिया. कोई देखके कह नही सकता के एक जवान बेटी की माँ है तू. साथ खड़ा कर दो तो पायल की बड़ी बहेन लगेगी, माँ नही" रूपाली बोली
"छ्चोड़िए मालकिन" हस्ते हुए बिंदिया ने कहा और कमरे से बाहर चली गयी.
रूपाली वहीं बिस्तर पर बैठी थोड़ी देर तक उसकी बातों पर गौर करती रही. अगर जो बिंदिया ने कहा था वो सच था तो कामिनी के बारे में जो घर के नौकर कहते थे वो भी ठीक ही था. मतलब कोई प्रेमी था उसका जिससे मिलने वो उस दिन खेतों की तरफ गयी थी और बहुत हद ये भी मुमकिन था के वहीं आदमी उससे मिलने हवेली में आता था. और ये भी मुमकिन था के उसी ने पुरुषोत्तम का भी खून किया हो. पर अब सवाल ये था के वो आदमी था कौन.
यही सोचती रूपाली अपने कमरे की खिड़की के पास आकर खड़ी हुई और नीचे देखने लगी. सामने से एक कार आकर रुकी और उसका देवर तेज गाड़ी से बाहर निकला. उसके पति का दूसरा भाई.
"आ गये मियाँ अययश" रूपाली ने दिल में सोचा
तभी हवेली के दरवाज़े से बिंदिया निकली और तेज के सामने हाथ जोड़कर नमस्ते करती हुई उसकी बगल से निकल गयी. जिस बात ने रूपाली का ध्यान अपनी और किया वो था तेज का पलटकर बिंदिया को देखना. वो कुच्छ पल के लिए पिछे से बिंदिया को देखता रहा. जिस अंदाज़ से वो देख रहा था उससे रूपाली ने यही अंदाज़ा लगाया के वो बिंदिया की गान्ड देख रहा था. बिंदिया थोड़ा आगे निकल गयी तो तेज पलटकर हवेली में दाखिल हो गया.रूपाली खिड़की से हटी ही थी के उसके दिमाग़ में एक ख्याल आया और वो मुस्कुरा उठी.
तेज अय्याश था, औरतों का शौकीन और इसी चक्कर में यहाँ वहाँ रंडियों में मुँह मारता फिरता था. रूपाली चाहती थी के वो हवेली में रुके और अपनी ज़मीन जायदाद की देखभाल की तरफ ध्यान दे, अपने पिता का हाथ बताए पर इसके लिए ज़रूरी था उसका हवेली में रुकना. उसे रोकने का एक तरीका ये था के घर में ही उसके लिए चूत का इन्तेजाम कर दिया जाए. रूपाली ने दोबारा खिड़की से बाहर कॉंपाउंड में जाती हुई बिंदिया को देखा, फिर एक पल पायल के बारे में सोचा और खुद ही मुस्कुरा उठी.
रूपाली अपने कमरे से बाहर निकली तो सामने से आता तेज मिल गया
"प्रणाम भाभी माँ" उसने बिल्कुल ठाकुरों के अंदाज़ में हाथ जोड़े और झुक कर रूपाली के पावं च्छुए
एक बात जो रूपाली को हैरत में डालती थी वो ये थी के तेज लाख आय्याश सही पर उसका हमेशा बहुत आदर करता था. हवेली में वो जबसे आई थी तबसे वो हमेशा उसे भाभी माँ कहकर बुलाता था और हमेशा उसके पावं छुता था
"कैसे हो तेज?" रूपाली ने पुचछा
"ठीक हूँ भाभी. आप कैसी हैं?" तेज ने जवाब दिया
"ठीक हूँ. घर की याद आ गयी आपको?" रूपाली ने हल्का सा ताना मारते हुए कहा. तेज ने कोई जवाब नही दिया
"दोबारा कब जा रहे हैं?" रूपाली ने फिर सवाल किया
"आप ऐसा क्यूँ कह रही हैं भाभी?" तेज ने कहा
"और कैसा कहूँ तेज?" रूपाली ने हल्का सा गुस्सा दिखाते हुए कहा "एक जवान देवर के होते हुए अगर उसकी भाभी को सार काम करना पड़ा तो और क्या कहूँ मैं?"
"कैसा काम भाभी?" तेज हल्का शर्मिंदा होते हुए बोला "आप मुझे कहिए"
"आप यहाँ हों तो आपको कहूँ ना. आप तो इस घर में मेहमान की तरह आते हैं" रूपाली ना उसी अंदाज़ में दोबारा ताना मारा
तेज फिर चुप खड़ा रहा. रूपाली को हमेशा उसपर हैरत होती थी. ये वही तेज वीर सिंग है जिसने जाने कितनी लाशें गिरा दी थी अपने भाई का बदला लेने के लिए, ये वही तेज है जिसके सामने कोई ज़ुबान नही खोलता था, खुद ठाकुर साहब भी नही पर रूपाली के सामने तेज हमेशा सर झुकाए ही खड़ा रहता था.
"खैर अब आप आए ही हैं तो हम चाहते हैं के आप कुच्छ दिन रुकें. हवेली में कुच्छ काम है और हमें अच्छा लगेगा के आप हमारा हाथ बटाये" रूपाली ने कहा
"जैसा आप ठीक समझें" तेज ने कहा और अपने कमरे की तरफ बढ़ गया
रूपाली उसे जाता देखकर मुस्कुराइ. वो जानती थी के उसका प्लान काम कर रहा है.